Rajasthan Board RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 मङ्गलाचरणम्
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अस्य पाठस्य प्रथममन्त्रः कस्माद् ग्रन्थाद् उद्धृतोऽस्ति
(क) ऐतरेयोपनिषदः शान्तिपाठात्
(ख) तैत्तिरीयोपनिषदः शान्तिपाठात्
(ग) कठोपनिषदः शान्तिपाठात्
(घ) ऋग्वेदस्य प्रथममण्डलतः
उत्तर:
(घ) ऋग्वेदस्य प्रथममण्डलतः
प्रश्न 2.
अस्य पाठस्य प्रथममन्त्रस्य ऋषिः कः अस्ति?
(क) संवननः
(ख) मेधातिथिः
(ग) विश्वामित्रः
(घ) अङ्गिरा
उत्तर:
(ग) विश्वामित्रः
प्रश्न 3.
ओङ्कारपदस्य अर्थः कः?
(क) मोक्षः
(ख) ब्रह्मसेवकः
(ग) सच्चिदानन्दः
(घ) अभिषेकः
उत्तर:
(ग) सच्चिदानन्दः
प्रश्न 4.
ॐ सह नाववतु वाक्ये ‘नौ’ पदस्य अर्थः कः?
(क) नावौ
(ख) नद्यौ
(ग) शिवरामौ
(घ) गुरुशिष्यौ
उत्तर:
(घ) गुरुशिष्यौ
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
‘दाशुषे’ इत्यस्य पदस्य अर्थः कः?
उत्तर:
हविदातृयजमानाय
प्रश्न 2.
तेजस्वि किं अस्तु?
उत्तर:
अधीतम् (ज्ञानम्)
प्रश्न 3.
अहं किं वदिष्यामि?
उत्तर:
ऋतं च सत्यं च
प्रश्न 4.
त्वमेव कीदृशं ब्रह्मासि?
उत्तर:
प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि।
प्रश्न 5.
मम वाणी कुत्र प्रतिष्ठिता भवतु?
उत्तर:
मनसि।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
प्रथममन्त्रस्य संस्कृतव्याख्या कर्तव्या?
उत्तर:
संस्कृत-व्याख्या-प्रथमः मन्त्रः मूलतः ऋग्वेदस्य प्रथममण्डलस्य प्रथमसूक्तात् उद्धृतः। अस्य मन्त्रस्य ऋषिः विश्वामित्रः देवता अग्निः छन्दश्च गायत्री वर्तते अस्मिन् मन्त्रे ऋषिः विश्वामित्रः हविदातृ-यजमानाय कल्याणार्थं अग्निदेवं प्रार्थयन् कथयति यत्-हे अग्निदेव! यदपि त्वम् हविदातृयजमानाय कल्याणकारिपदार्थ: कर्तुमिच्छसि, त्वदीयं तत्कल्याणकारिसर्वपदार्थं प्राप्नुयात् भवान् ‘अङ्गिरः’ इति ऋषि विशेषः सत्यरूपेणास्ति।
प्रश्न 2.
द्वितीयमन्त्रस्य व्याख्या करणीया।
उत्तर:
द्वितीयमन्त्रः मूलतः ऋग्वेदस्य दशममण्डलस्य संज्ञानसूक्तात् उद्धृतः अस्ति अस्मिन् मन्त्रे ऋषिः संवननः सर्वजनानां मध्ये सहकारभावनायाः विकासार्थं परस्परविरोधनिराकरणार्थं च आवाहनं कुर्वन् कथयति यत् हे स्तोतारः! येन प्रकारेण प्रारम्भिकसमये सम्यक् प्रकारेण ज्ञात्वा देवताः स्वस्वांशं स्वीकृतवन्तः, तथैव युष्माभिः सहैव गन्तव्यम्, सहैव वक्तव्यम् युष्माकं विचाराः परस्परं समानं विचारयन्तु युष्माकं विचारेषु वैमत्यं नास्तु।
प्रश्न 3.
अस्य पाठस्य सारः संक्षेपेण लेखनीयः।
उत्तर:
पाठ परिचय-हमारी भारतीय संस्कृति मङ्गलमयी है। यहाँ सभी कार्यों के निर्विघ्न समाप्ति के लिए मंगलाचरण होता है। इसलिए अध्यापन में संलग्न गुरुओं को, अध्ययन में लीन छात्रों को मंगलकारी मन्त्रों के ज्ञान और स्मरण के लिए यहाँ। मंगलाचरण-पाठ प्रस्तुत किया गया है।
प्रथम मन्त्र ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के प्रथम सूक्त से उद्धृत है। इस मन्त्र में ऋषि विश्वामित्र ने हवि प्रदान करने वाले यजमान के कल्याण के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की है। इस मन्त्र के ऋषि विश्वामित्र, देवता–अग्नि और छन्दगायत्री है।
द्वितीय मन्त्र ऋग्वेद के दशम मण्डल के संज्ञान-सूक्त (191वाँ सूक्त) से उद्धत है। इस मन्त्र में ऋषि संवनन ने सभी लोगों के मध्य में सहयोग- भावना के विकास के लिए और परस्पर में विरोध को दूर करने के लिए आह्वान किया है।
तृतीय मन्त्र ऐतरेयोपनिषद् के शान्तिपाठ से उद्धत है। इस मन्त्र में सभी विघ्नों की शान्ति के लिए परमात्मा से प्रार्थना की गई है। और वाणी व मन की एकरूपता होवे-ऐसी कामना की गई है।
चतुर्थ मन्त्र तैत्तिरीयोपनिषद् की शिक्षावल्ली के बारहवें अनुवाद से उद्धत है। यह मन्त्र ऋग्वेद के 1/9 मण्डल में, यजुर्वेद के 36/9 स्थल में और अथर्ववेद के 19/9/6 स्थल में भी उल्लेखित है। इसमें प्रार्थना की गई
है कि परमेश्वर कल्याण करें और गुरु-शिष्यों की लक्ष्य-प्राप्ति में निर्विघ्नता करें।
पंचम मन्त्र कठोपनिषद् के शान्ति-पाठ से संकलित है। इसमें सहयोग की भावना के साथ ही उत्कृष्ट सामर्थ्य प्राप्ति की भी कामना है।
प्रश्न 4.
अनेन पाठानुसारेण के कान् च अवन्तु?
उत्तर:
अनेन पाठानुसारेण सच्चिदानन्दः परमात्मा, सूर्यदेवः, वरुणः, विष्णुः, ब्रह्मा, इन्द्रः, बृहस्पतिः इत्यादयः देवाः स्तोतारम् गुरुशिष्यौ च अवन्तु।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 व्याकरणात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितपदेषु सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेर्नामपि लेखनीयम्।
उत्तर:
प्रश्न 2.
अधोलिखितपदेषु उपसर्गः-प्रकृतिः प्रत्ययश्च लिखत।
उत्तर:
प्रश्न 3.
अधोलिखितपदेषु धातुः लकारः पुरुषः वचनञ्च लिखत।
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पदानि प्रयुज्य वाक्यनिर्माणं कर्त्तव्यम्।
उत्तर:
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्येषु वाच्यपरिवर्तनं करणीयम्।
उत्तर:
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 1 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अधोलिखितशब्दानाम् हिन्द्याम् अर्थं लिखत
उत्तर:
प्रश्न 2.
कालांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
- त्वम् दाशुषे भद्रं करिष्यसि
- तव तत् इत्।
- पूर्वे सञ्जानानाः देवाः भागं उपासते।
- यूयम् सह गच्छध्वम्।
- वः मनांसि संजानताम्।
- मे वाक् मनसि प्रतिष्ठिता भवतु
- मे मनः वाचि प्रतिष्ठितं भवतु।
- मे वेदस्य आणीस्थः।
- अनेन अधीतेन अहोरात्रान् संदधामि।
- अहम् ऋतं वदिष्यामि।
- अहम् सत्यं वदिष्यामि।
- तत् माम् अवतु।
- तत् वक्तारम् अवतु
- त्वम् एव प्रत्यक्षं ब्रह्म असि।
- नौ सह भुनक्तु
उत्तर:
प्रश्ननिर्माणम्
- त्वम् कस्मै भद्रं करिष्यसि?
- तव किम् इत्?
- पूर्वे कीदृशाः देवाः भागं उपासते?
- यूयं कथं गच्छध्वम्?
- वः कानि संजानताम्?
- मे वाक् कस्मिन् प्रतिष्ठिता भवतु?
- मे किम् वाचि प्रतिष्ठितं भवतु?
- मे कस्य आणीस्थः?
- अनेन अधीतेन का संदधामि?
- अहं किम् वदिष्यामि?
- अहं किम् वदिष्यामि?
- तत् कम् अवतु?
- कम् वक्तारम् अवतु?
- त्वम् एव प्रत्यक्षं किम् असि?
- को सह भुनक्तु?
प्रश्न 3.
अधोलिखितानां मन्त्रांशानां वाक्यानां भावार्थं लिखते
(क) संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
(ख) वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठितो मनो मे वाचि प्रतिष्ठितम्।
(ग) तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
उत्तर:
(क) भावार्थ-प्रस्तुत मन्त्रांश ऋग्वेद के दशम मण्डल के संज्ञानसूक्त से उद्धृत है। ऋषि संवनन ने इस मन्त्रांश में वैचारिक मतभेदों को भुलाकर सभी सांसारिक प्राणियों को एकमत होने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि हे स्तोताओं ! जैसे पूर्व में सभी देवता एकमत होकर अपने-अपने तत्त्व भाग को ग्रहण करते थे, उसी। प्रकार तुम सब भी साथ-साथ मिलकर चलो, साथ मिलकर बोलो अर्थात् तुम सब लोगों की वाणी एक जैसी हो, कथनों में परस्पर विरोध न हो, तुम लोगों के मन समान रूप से विचारवान् होवे अर्थात् तुम्हारे विचारों में मत-भिन्नता नहीं होवे।
(ख) भावार्थ-प्रस्तुत मन्त्रांश ऐतरेयोपनिषद् के शान्ति पाठ से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में वाणी एवं मन की एकरूपता होने की कामना करते हुए कहा गया है कि– हे सच्चिदानन्द परमात्मा ! मेरी वाणी मन में प्रतिष्ठित होवे और मेरा मन वाणी में प्रतिष्ठित होवे, अर्थात् मन और वाणी एकरूपता को प्राप्त होवें, जिससे मेरे संकल्प (विचार) और वचन (वाणी) पूर्णतः शुद्धरूप से एक होकर ज्ञानरूपी लक्ष्य को प्राप्त करें।
(ग) भावार्थ-प्रस्तुत मन्त्रांश कठोपनिषद् के शान्ति पाठ से उद्धत है। इस मंत्रांश में परस्पर सहयोग एवं उत्कृष्टता की कामना करते हुए कहा गया है कि-हे परमात्मा ! हम दोनों गुरु-शिष्य की सभी प्रकार से रक्षा करो। हम दोनों द्वारा प्राप्त ज्ञान (विद्या) तेजस्विनी होवे अर्थात् हम कहीं भी परास्त नहीं होवें हम दोनों के हृदय में हमेशा प्रेम-भाव रहे, द्वेष कभी नहीं होवे।
यहाँ गुरु-शिष्य के मधुर एवं पावन सम्बन्ध को दर्शाया गया है।
प्रश्न 4.
अधोलिखितमन्त्रयोः अन्वयं लिखत
(क) यदङ्ग दाशुषे ……………………………… त्वेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥
(ख) संगच्छध्वं ……………………………………….”उपासते।
उत्तर:
[नोट-उपर्युक्त मन्त्रों का अन्वय पूर्व में दिया जा चुका है। वहाँ से देखकर लिखिए।]
प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तकाधारितं भाषिककार्यम्
(i) कर्तृक्रियापदचयनम्
प्रश्नः अधोलिखितमन्त्रांशेषु कर्तृक्रियापदचयनं कुरुत
(क) यत् त्वम् दाशुषे भद्रम् करिष्यसि।
(ख) देवी भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।
(ग) से वो मनांसि जानताम्।
(घ) वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता।
(ङ) त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
(च) ॐ सह नाववतु
उत्तर:
(ii) विशेषण-विशेष्यचयनम्
प्रश्नः (क)
”यथापूर्वे सञ्जानानाः देवाः भागं उपासते”इत्यत्र ‘देवाः’। इत्यस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
सञ्जानानाः
प्रश्नः
(ख) “अनेनाधीतेनाहोरात्रीन्संदधामि।” इत्यत्र ‘अनेन’ इत्यस्य विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
अधीतम्।
प्रश्नः (ग)
”तद्ववक्तारमवतु” इत्यत्र ‘तद्’ इत्यस्य विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
वक्तारम्
प्रश्नः (घ)
“त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।” इत्यत्र ‘ब्रह्म’ इत्यस्य विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
प्रत्यक्षम्।
प्रश्नः (ङ)
“शं नो विष्णुरुरुक्रमः।” इत्यत्र ‘उरुक्रमः’ इत्यस्य विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
विष्णुः।
(iii) सर्वनाम-संज्ञा प्रयोगः
प्रश्नः
अधोलिखितमन्त्रांशेषु कालांकितसर्वनामपदस्य स्थाने संज्ञापदस्य प्रयोगं कृत्वा वाक्यं पुनः लिखत
(क) त्वम् दाशुषे भद्रं करिष्यसि।
(ख) वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता
(ग) तत् वक्तारम् अवतु
(घ) शं नो भवत्वर्यमा।
(ङ) सह नौ भुनक्तु।
उत्तर:
(क) अग्ने ! दाशुषे भद्रं करिष्यसि
(ख) वाङ् स्तोतुः मनसि प्रतिष्ठिता।
(ग) परमात्मा वक्तारम् अवतु
(घ) शं स्तोतृणां भवत्वर्यमा।
(ङ) सह गुरुशिष्यौ भुनक्तु।
प्रश्नः
निम्नलिखितवाक्येषु कालांकित पदानां सर्वनामपदं लिखत
(क) यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने।
(ख) यथा पूर्वे ते देवाः भागं उपासते।
(ग) तन्माम् वक्तारमवतु
(घ) अनेन अधीतेन अहोरात्रान् संदधामि।
(ङ) तस्मै ब्रह्मणे नमः।
उत्तर:
(क) त्वम्,
(ख) ते,
(ग) माम्,
(घ) अनेन,
(ङ) तस्मै।
(iv) समानविलोमपदचयनम्
प्रश्न: अधोलिखितवाक्येषु कालांकितपदानां पर्यायबोधकपदानि लिखत
(क) त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि।
(ख) देवा भागं उपासते।
(ग) वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता।
(घ) शं नो मित्रः वरुणः।
(ङ) शं न इन्दो बृहस्पतिः।
उत्तर:
(क) कल्याणम्, श्रेष्ठम्।
(ख) देवताः, सुराः।
(ग) वाणी, वचनम्, कथनम्।
(घ) सूर्यः, आदित्यः, रविः।
(ङ) शचिः, देवराजः, सुरेन्द्रः।
प्रश्न:
अधोलिखितवाक्येषु कालांकितपदानां विलोमार्थकपदानि लिखत
(क) त्वेत्तत् सत्यम् अङ्गिरः।
(ख) यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।
(ग) मे मनः वाचि प्रतिष्ठितम्
(घ) तत् माम् अवतु।
(ङ) नौ अधीतम् तेजस्वि अस्तु
उत्तर:
(क) असत्यम्
(ख) वर्तमाने।
(ग) अप्रतिष्ठितम्
(घ) त्वाम्
(ङ) अनधीतम्।
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