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RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

August 27, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) एक प्राथमिक चिकित्सक का सर्वोत्तम गुण है –
(अ) दूरदर्शिता
(ब) कार्यकुशलता
(स) फुर्तीलापन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।

(ii) आकस्मिक घटना के समय प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है –
(अ) दीर्घकालीन
(ब) निरुद्देश्य
(स) तत्काल
(द) अल्पकालीन
उत्तर:
(स) तत्काल।

(iii) प्राथमिक चिकित्सा का उद्देश्य है –
(अ) घायल व्यक्ति का जीवन बचाना
(ब) घायल को सांत्वना देना
(स) घायल को गंभीर होने से बचाना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

(iv) किस प्रकार की जलन में त्वचा लाल हो जाती है, परन्तु फफोले नहीं पड़ते हैं?
(अ) साधारण जलन
(ब) विशेष जलन
(स) विषम जलन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) साधारण जलन।

प्रश्न 2.
प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा-डॉक्टर के पहुंचने से पूर्व दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को जो चिकित्सीय सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।

प्रश्न 3.
प्राथमिक चिकित्सा क्यों करनी चाहिए?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा के दो उदेश्य होते हैं –

  • जीवन की रक्षा करना – इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि रोगी के प्राणों की रक्षा करना, यदि समय पर प्राथमिक चिकित्सा मिल जाती है तो संबंधित व्यक्ति की प्राण रक्षा संभव हो जाती है।
  • तुरंत चिकित्सा – प्राथमिक चिकित्सा दुर्घटना होने के तुरन्त बाद की जाती है ताकि स्थिति और अधिक गंभीर न हो।

प्रश्न 4.
एक आदर्श प्राथमिक चिकित्सक में कौन-कौन से गण होने चाहिए?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के गुण:
एक आदर्श प्राथमिक चिकित्सक में अग्रलिखित गुण होने चाहिए –
1. आत्म विश्वास – चिकित्सक को स्वयं पर विश्वास होना चाहिए। उसके कार्य को कोई बाधित न करे तो उस पर ध्यान देकर अपना कार्य पूरे विश्वास से करते रहना चाहिए।

2. त्वरित निर्णय क्षमता प्राथमिक चिकित्सक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति को भली प्रकार जाँच कर शीघ्र निर्णय लेने वाला होना चाहिए।

3. शारीरिक संरचना का ज्ञान – उसे मानव की शारीरिक संरचना का ज्ञान होना चाहिए जिससे वह आसानी से समझ सके कि चोट कहाँ लगी है, रक्त स्राव कहाँ से हो रहा हैं, इसे कैसे रोका जा सकता है, हड्डी टूटी है अथवा नहीं, कृत्रिम श्वास देने की आवश्यकता है या नहीं आदि।

4. उपलब्ध साधनों का उपयोग – प्राथमिक चिकित्सक दुर्घटना स्थल पर मौजूद साधनों का उपयोग कर रोगी की दशा को और अधिक बिगड़ने से रोक सके। इस प्रकार की समझ होनी चाहिए।

5. धैर्यशील – चूँकि दुर्घटना होने पर सभी व्यक्ति घबरा जाते हैं। अतः रोगी कैसा भी गंभीर हो, उपचारक को स्वयं धैर्य रखते हुए, घायल को धैर्य दिलाने की शक्ति होनी चाहिए ताकि उसकी घबराहट कम हो और उसमें हिम्मत आ जाए।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

6. दयावान – दूसरों के प्रति दयाभाव रखने वाला ही सच्ची सहायता कर सकता है। अत: दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के प्रति दयाभाव दिखाकर सहानुभूति प्रकट करने की क्षमता होनी चाहिए।

7. मृदु व्यवहार – प्रायः चिकित्सक को मृदुभाषी व हँसमुख होना चाहिए ताकि अपने व्यवहार से दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के मन में विश्वास पैदा कर सके।

8. स्वस्थ शरीर – चिकित्सक को स्वयं स्वस्थ एवं बलशाली होना चाहिए ताकि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को उठा सके, और उसे सहायता देने का कार्य कुशलता एवं सफलतापूर्वक कर सके।

9. कर्तव्य परायण – सेवा कार्य को अपना धर्म समझते हुए कार्य करना चाहिए। उसे जाति धर्म, वर्गभेद आदि से ऊपर उठकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति को लू लगने पर आप किस प्रकार उपचार करेंगी?
उत्तर:
लू लगने पर उपचार:

  • रोगी को ठंडे स्थान पर लिटाएँ और उसके वस्त्र उतार दें।
  • रोगी के सिर पर बर्फ की थैली रखें व रोगी को गीली चादर में लपेट कर पंखा करें।
  • तापमान कम हो जाने पर सूखी चादर में लपेट दें।
  • रोगी को ठंडे पानी में थोड़ा नमक मिलाकर पीने को दें।
  • लू से बचने के लिए कच्चे आम का नमकीन पानी पिलाना चाहिए।

प्रश्न 6.
नाक एवं आँख में बाहरी वस्तु गिरने पर आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
नाक में बाहरी चीज जाने पर उपचार:

  • तंबाकू पीसकर सुंघाने से तुरंत छीकें आती हैं और वस्तु बाहर निकल जाती है।
  • नाक का दूसरा छिद्र बन्द कर प्रभावित छिद्र से श्वास झटके से छोड़ने पर वस्तु निकल सकती है।
  •  नाक में चिमटी या पानी न डालें। ऐसा करने से वस्तु और ऊपर चढ़ जाती है।
  • फिर भी वस्तु नहीं निकले तो तुरन्त डाक्टर को दिखाना चाहिए।

आँख में बाहरी चीज जाने पर उपचार:

  • आँख को मलना नहीं चाहिए। मलने से आँख की कोमल त्वचा में रगड़ पड़ जाती है।
  • आँख के नीचे की पलक को खींचकर देखें, अगर कोई सूक्ष्म कण दिखाई दे तो स्वच्छ रूमाल के एक कोने – को ऐंठकर या साफ रूई की बत्ती बनाकर पानी में गीली कर उसकी नोंक से कण को बाहर निकालें।
  • अगर कण ऊपर की पलक में चिपक गया हो तो पानी में भीतर आँख को खोलना व बन्द करना चाहिए।
  • आँख में चूना या तेजाब पड़ने पर जल के छौंटों से आँख को धोना चाहिए व शीघ्र ही डॉक्टर को दिखाएँ।
  • आँख में एक बूंद अरंडी या जैतून का तेल डालने से भी किरकिटी आंसुओं के साथ निकल जाती है।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए –
प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सा का सिद्धान्त नहीं है –
(अ) भीड़ को हटाना
(ब) रक्तस्राव को बंद करना
(स) भीड़ इकट्ठा करना
(द) कपड़े ढीले करना
उत्तर:
(स) भीड़ इकट्ठा करना

प्रश्न 2.
प्राथमिक उपचार करने वाला हो सकता है –
(अ) डॉक्टर
(ब) अध्यापक
(स) स्काउट
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

प्रश्न 3.
प्राथमिक चिकित्सक में होना चाहिए –
(अ) आत्मविश्वास
(ब) कर्त्तव्य परायणता
(स) मृदु व्यवहार
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

प्रश्न 4.
अधिक लू लगने पर शरीर का तापमान हो सकता है –
(अ) 100°F तक
(ब) 50°C तक
(स) 105°F तक
(द) 110°F तक
उत्तर:
(स) 105°F तक

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

प्रश्न 5.
जलन के मुख्य प्रकार हैं।
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(ब) तीन

रिक्त स्थान
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. ………सिर्फ घटना के समय की गई देखभाल होती है।
2. घायल व्यक्ति की ………… से भी रक्षा करनी चाहिए।
3. प्राय: चिकित्सक को स्वयं पर ……… होना चाहिए।
4. गर्मी के दिनों में धूप में अधिक घूमने-फिरने से …….. लगने की संभावना रहती है।
5. कभी भी ……… प्रवाह को नंगे हाथों से नहीं छूना चाहिए।
उत्तर:
1. प्राथमिक चिकित्सा
2. मौसम
3. विश्वास
4. लू
5. विद्युत।

सुमेलन स्तम्भ A तथा स्तम्भ B का मिलान कीजिए
स्तम्भ A                                         स्तम्भ B
1. तुरन्त चिकित्सा             (a) प्राथमिक चिकित्सा का सिद्धान्त
2. विष पीने की आशंका    (b) विषम जलना
3. जाँच करना                  (c) प्राथमिक चिकित्सा का उद्देश्य
4. तन्तुओं का जलना         (d) साधारण जलन
5. त्वचा लाल पड़ना           (e) वमन कराना
उत्तर:
1. (c) प्राथमिक चिकित्सा का उद्देश्य
2. (e) वमन कराना
3. (a) प्राथमिक चिकित्सा का सिद्धान्त
4. (b) विषम जलना
5. (d) साधारण जलन

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सा कहाँ दी जाती है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा दुर्घटना स्थल या उसके आसपास दी जाती है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाना है।

प्रश्न 3.
प्रथमिक चिकित्सक का उत्तरदायित्व कब समाप्त हो जाता है?
उत्तर:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को चिकित्सक तक पहुँचाने के बाद।

प्रश्न 4.
प्राथमिक चिकित्सक को दयावान होने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:
दूसरों के प्रति दयाभाव रखने वाला ही दूसरे की सेवा कर सकता है अत: प्राथमिक चिकित्सक दयावान होना चाहिए।

प्रश्न 5.
विद्युत आघात लगने का क्या कारण है?
उत्तर:
नंगे तार छू लेने या विद्युत उपकरण में खराबी के कारण धारा प्रभावित होना और उसे छू लेना।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

प्रश्न 6.
प्राथमिक चिकित्सक को कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक को आत्मविश्वासी, निर्णय क्षमता वाला, धैर्यशील, दयावान तथा कर्तव्य-परायण होना चाहिए।

प्रश्न 7.
बिजली कार्य करते समय क्या सावधानी रखनी चाहिए?
उत्तर:
बिजली संबंधित कार्य करते समय रबड़ की चप्पलें एवं हाथों में रबड़ के दस्ताने पहनने चाहिए।

RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लू कैसे लग जाती है? इसके लक्षण बताइए।
उत्तर:
लू-लगना (Sun stroke):
गर्मी के दिनों में धूप में अधिक घूमने-फिरने से लू लगने की संभावना रहती है। गर्म वायु में अधिक देर तक तथा खुले सिर काम करने से भी गर्मी के दिनों में लू लग जाती है।
लक्षण:

  • मामूली लू लगने पर सिर में तेज दर्द होता है और चक्कर आने लगते हैं। कभी-कभी वमन भी हो जाता है।
  • प्यास अधिक लगती है, श्वास तेजी से चलती है तथा नाड़ी की गति भी तेज हो जाती है।
  • अधिक लू लगने पर मनुष्य अचेत हो जाता है, तेज बुखार, त्वचा गर्म व सूखी हो जाती है।
  • शरीर का तापमान शीघ्र ही बढ़कर 105°F तक हो जाता है। अगर कम करने का प्रबन्धन नहीं किया गया तो रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।

प्रश्न 2.
आँख में बाहरी चीज का प्रवेश तथा इसके लक्षण बताइए।
उत्तर:
आँख में बाहरी चीज का प्रवेश-आखों में रेत कण, कोयला, मिट्टी या लोहे के कण, कीड़े व कभी-कभी पलक का बाल भी टूटकर गिर जाता है। आँख शरीर का महत्त्वपूर्ण तथा बहुत ही नाजुक अंग होती है अत: शीघ्र इसका उपचार करना चाहिए। लक्षण – आँख में बेचैनी तथा पीड़ा होने लगती है। आँख लाल हो जाती है, पानी निकलने लगता है तथा आँख में मिटमिटाहट होने लगती है। कभी-कभी आँख पर सूजन आ जाती है।

प्रश्न 3.
नाक में बाहरी चीजों के प्रवेश तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर:
नाक में बाहरी चीज का प्रवेश:
प्राय: बच्चों की नाक में चना, मटर मोती या अन्य चीजें खेलते समय प्रवेश कर जाती हैं। नाक में गीलाफ रहने के कारण अनाज का दाना फूल जाता है और बुरी तरह फँस जाता है।
लक्षण:

  • श्वास लेने में कष्ट होता है।
  •  नाक पर सूजन हो जाती है।
  •  नाक के अन्दर दर्द एवं सूजन हो जाती है।
  • नाक लाल हो जाती है।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

RBSE Class 11 Home Science Chapter 28 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धान्त-प्राथमिक चिकित्सा सिर्फ घटना के समय की गई देखभाल होती है। प्राथमिक उपचार करने वाला कोई भी हो सकता है। जैसे-आप, हम, छात्र-छात्राएँ, शिक्षक, स्काउट आदि। दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को चिकित्सक तक पहुँचाने के बाद प्राथमिक उपचार करने वाले का उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है। एक अच्छे प्रायः उपचार करने वाले को निम्नलिखित सिद्धान्त अपनाने चाहिए –

  • भीड़ को हटाना।
  • रोगी की स्थिति की जाँच करना।
  • श्वसन क्रिया चालू करना।
  •  कपड़े ढीले करना।
  • नाड़ी व श्वसन क्रिया देखना।
  • रक्त स्राव को बन्द करना।
  • शान्त रहकर स्पष्ट सोचना।
  • रोगी को तुरन्त चिकित्सक तक पहुँचाना।
  •  तत्काल निर्णय लेना।

प्रश्न 2.
प्राथमिक चिकित्सक के कर्त्तव्य लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के कर्तव्य –

  • स्थाई चिकित्सक के कर्तव्य – प्राथमिकी का प्रमुख कर्त्तव्य है कि दुर्घटना की प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त कर किसी अन्य योग्य व्यक्ति को भेजकर डॉक्टर बुलाने का प्रबन्ध करें, ताकि डॉक्टर अपनी पूरी तैयारी के साथ घायल की स्थाई चिकित्सा हेतु आ सके।
  • सुरक्षित स्थान पर लिटाना – घायल व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर लिटाकर, धूप आदि से बचाव करें एवं अनावश्यक भीड़ को हटा दें।
  • कृत्रिम श्वास दिलाना – यदि घायल को श्वास नहीं आ रही हो तो उसे तुरन्त कृत्रिम श्वास दिलाना चाहिए।
  • वमन कराना – यदि रोगी द्वारा विष पी लिए जाने की आशंका हो तो उसे तुरन्त वमन कराना चाहिए।
  • हड्डी टूटना – यदि घायल के किसी अंग के टूटने की आशंका हो तो उस अंग को हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए।
  • पानी में डूबे व्यक्ति की चिकित्सा – पानी में डूबने से व्यक्ति के पेट में पानी भर जाता है, अत: उसके मुँह से कीचड़ आदि निकालकर उसे उल्टा करके पेट का पानी निकालने का प्रयास करना चाहिए।
  • मौसम की तीव्रता से बचाना – घायल व्यक्ति की मौसम से भी रक्षा करनी चाहिए। गर्मी में धूप से बचाने के लिए उसे छायादार, हवादार स्थान पर लिटाना चाहिए तथा सर्दी से बचाने के लिए उसे कम्बल, रजाई आदि से उसके शरीर को गर्म रखना चाहिए। होश आने पर मौसम के अनुसार गर्म या ठंडा पेय पिलाना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

प्रश्न 3.
जलन कितने प्रकार की होती है? प्रत्येक प्रकार की जलन के लिए प्राथमिक उपचार लिखिए।
उत्तर:
जलन मुख्यत: तीन प्रकार की होती है –
1. साधारण जलन-इसमें त्वचा लाल हो जाती है परन्तु फफोले नहीं पड़ते हैं।
उपचार:
ऐसी जलन में जले हुए अंग को तुरन्त पानी में डालना चाहिए। कच्चा आलू पीसकर लगाना चाहिए। जले हुए भाग पर नारियल या तिल के तेल में चूने का पानी मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

2. विशेष जलन – इस प्रकार की जलन में त्वचा लाल हो जाती है और फफोले भी पड़ जाते हैं।
उपचार:

  • फफोलों को फोड़ना नहीं चाहिए।
  • घाव पर बरनॉल लगानी चाहिए।
  • फफोलों पर चिकना पदार्थ (घी, तेल) नहीं लगाना चाहिए।

3. विषम जलन:
इस प्रकार की जलन में अंग विशेष के तंतु जल जाते हैं। इससे अधिक पीड़ा तथा जलन होती है।
उपचार:

  • तुरन्त डॉक्टरी व्यवस्था करनी चाहिए।
  • ठंडे पानी से धोना चाहिए।
  • बरनॉल लगानी चाहिए।

प्रश्न 4.
विद्युत आघात लगने, इसके लक्षण तथा उपचार बताइए।
उत्तर:
विद्युत आघात (Electric shock):
कभी-कभी असावधानी के कारण बिजली के नंगे तारों से या किसी विद्युत उपकरण में खराबी आने के कारण विद्युत आघात लग जाता है। यदि व्यक्ति को शीघ्र ही तार से दूर नहीं किया जाए तो उसकी मृत्यु भी हो जाती है।

लक्षण:
करंट लगने से प्रभावित अंग प्राय: जल भी जाता है। हाथों तथा बाजुओं से बिजली प्रवाह छू जाने से विद्युत धारा वक्ष से निकल जाती है, फलस्वरूप हृदय शक्तिहीन हो जाता है।

उपचार:

  • विद्युत प्रवाह को बटन दबाकर बंद कर दें, यदि प्लग लगा हो तो उसे निकाल दें।
  • घायल व्यक्ति को विद्युत प्रवाह के सम्पर्क से हटाएँ। कभी भी प्रभावित व्यक्ति को नंगे हाथ से न पकड़ें। किसी सूखी लकड़ी, सूखे कपड़े, सूखी रस्सी, रबर के दस्ताने आदि को हाथ में लपेटकर हटाना चाहिए। पैरों में रबर के तले वाले जूते, लकड़ी का ढेर या समाचार पत्रों के ढेर पर खड़े होकर छुड़ाएँ। ।
  • घायल व्यक्ति श्वास नहीं ले रहा हो तो उसे कृत्रिम श्वास दें।
  • आहत व्यक्ति के तलवों में मालिश करें ताकि रक्त संचार शीघ्रता से हो सके। 5. रोगी होश में आ जाए तो उसे गर्म चाय देनी चाहिए।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 28 प्राथमिक चिकित्सा

प्रश्न 5.
कान में बाहरी चीज के प्रवेश इसके लक्षण तथा उपचार लिखिए।
उत्तर:
कान में बाहरी चीज का प्रवेश-प्रायः खेलते समय बच्चों के कान में, बीज, मोटी अनाज के दाने आदि प्रवेश कर जाते हैं। कभी-कभी मच्छर या अन्य कीड़े भी प्रवेश कर जाते हैं।
लक्षण:

  • कान में कीड़ा प्रवेश करने पर कान के पर्दे पर भनभनाहट, दर्द तथा सिर में दर्द होने लगता है।
  • कान में दाने, बीज या मोती प्रवेश करने पर कान में दर्द तथा सूजन हो जाती है, कान का बाहरी भाग लाल हो जाता है।

उपचार:
यदि कान में कीड़ा प्रवेश कर गया हो तो निम्न उपाय करें –

  • कान में ग्लिसरीन, सरसों या जैतून के तेल की कुछ बूंदे डालें।
  • ऊपर से कान में 2-3 ओंस हल्का गर्म पानी डालें।
  • कभी-कभी टॉर्च की रोशनी कान में दिखाने से कीड़ा बाहर निकल जाता है। यदि अन्य वस्तु प्रवेश कर गई हो तो
  • कान में सरसों का तेल डालें।
  • उपर्युक्त विधि से यदि वस्तु बाहर न निकले तो डॉक्टर से परामर्श लें।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 31 योग का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

August 27, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Chapter 31 योग का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

RBSE Class 11 Home Science Chapter 31 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Home Science Chapter 31 बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए –
प्रश्न 1.
योग होता रहा है –
(अ) शारीरिक लाभ के लिए
(ब) मानसिक लाभ के लिए
(स) आध्यात्मिक लाभ के लिए
(द) इन सभी के लिए
उत्तर:
(द) इन सभी के लिए

प्रश्न 2.
योग से प्रतिरक्षा तंत्र प्रणाली की कार्य क्षमता –
(अ) बढ़ जाती है,
(ब) कमजोर हो जाती है
(स) अस्थिर हो जाती है
(द) ये सभी
उत्तर:
(अ) बढ़ जाती है,

प्रश्न 3.
योग के अंग हैं –
(अ) ध्यान व प्राणायाम
(ब) भोग एवं अभ्यास
(स) नमन व विनिमय
(द) विकार एवं प्रतिकार
उत्तर:
(अ) ध्यान व प्राणायाम

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 31 योग का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

प्रश्न 4.
योग से –
(अ) रक्त शर्करा का स्तर घटता है
(ब) कोलेस्ट्रोल बढ़ता है
(स) अस्थमा हो जाता है
(द) रक्त शर्करा स्तर बढ़ता है
उत्तर:
(अ) रक्त शर्करा का स्तर घटता है

प्रश्न 5.
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है –
(अ) 1 दिसम्बर को
(ब) 5 जून को
(स) 21 जून को
(द) 24 फरवरी को
उत्तर:
(स) 21 जून को

रिक्त स्थान
निम्नलिखित वाक्यों में खाली स्थान भरिए –
1. योग का प्रयोग ……… , ……… और ……… लाभों के लिए हमेशा से होता रहा है।
2. योग से ……… प्रणाली की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
3. योग के अंग ……… एवं ……… की योगासनों की तरह शरीर के लिए फायदेमंद हैं।
4. ………… भी योग का महत्त्वपूर्ण अंग है।
5. ………… के द्वारा श्वास-प्रश्वास की गति पर नियंत्रण होता है।
उत्तर:
1. शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक
2. प्रतिरक्षा तंत्
3. प्राणायाम, ध्यान
4. ध्यान
5. प्राणायाम।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 31 योग का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

RBSE Class 11 Home Science Chapter 31 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
योग के सम्बन्ध में चिकित्सा शोधों ने क्या साबित कर दिया है?
उत्तर:
आज के चिकित्सा शोधों ने यह साबित कर दिया है कि योग शारीरिक और मानसिक रूप से मानव के लिए वरदान है।

प्रश्न 2.
योग का क्या लाभ है?
उत्तर:
योग से तन एवं मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।

प्रश्न 3.
योग से पाचन पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
योग से पाचन क्रिया स्वस्थ होती है और भूख अच्छी लगती है।

प्रश्न 4.
योग किस प्रकार के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है?
उत्तर:
योग डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है।

प्रश्न 5.
योग दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को विश्व में योग का प्रसार करने के लिए मनाया जाता है।

RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 31 योग का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

RBSE Solutions for Class 11 Home Science

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

August 19, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर (PART-I)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) उपभोक्ता शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है –
(अ) सस्ती वस्तु उपलब्ध कराना
(ब) बाजार में वस्तु उपलब्ध कराना
(स) उपभोक्ता को संरक्षण देना
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) उपभोक्ता को संरक्षण देना

(ii) उपभोक्ता को वस्तु कहाँ से खरीदनी चाहिये?
(अ) राशन की दुकान से
(ब) सुपर मार्केट से
(स) पंजीकृत व अधिकृत दुकान से
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

(iii) उपभोक्ता शिक्षा अर्जित की जा सकती है –
(अ) पड़ोसी से
(ब) पत्र-पत्रिकाओं से
(स) टीवी से
(द) ये सभी
उत्तर:
(ब) पत्र-पत्रिकाओं से

(iv) निम्न में से कौन-सा उपभोक्ता अधिकार नहीं है?
(अ) सुनवाई का
(ब) सजा का
(स) चयन का
(द) सूचना का
उत्तर:
(द) सूचना का

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

(v) ग्राहक के साथ धोखाधड़ी का मुख्य कारण है –
(अ) औद्योगिकीकरण
(ब) आय में कमी
(स) वस्तुओं में कमी
(द) अज्ञानता
उत्तर:
(द) अज्ञानता

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. उपभोक्ता अपने हितों की रक्षा करता है उसे…………कहते हैं।
2. त्योहारों और पर्वो पर व्यापारी अधिक बिक्री हेतु…………लगाते हैं।
3. बाजार का चयन करने के पश्चात् उपभोक्ता को…………चयन करनी चाहिये।
4. खाद्य पदार्थों में मिलावट जानने के अधिकार का नाम…………है।
5. …………की कमी से उपभोक्ता का शोषण होता आ रहा है।
उत्तर:
1. उपभोक्ता संरक्षण
2. सेल
3. दुकान
4. सुरक्षा का अधिकार
5. उपभोक्ता शिक्षा।

प्रश्न 3.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
(1) उपभोक्ता शिक्षा का महत्त्व
(2) चयन का अधिकार
(3) कब खरीदें
(4) उपभोक्ता संरक्षण का अर्थ
उत्तर:
(1) उपभोक्ता शिक्षा का महत्त्व:
उपभोक्ता शिक्षा प्रत्येक उपभोक्ता के लिए आवश्यक है। उपभोक्ता को वस्तु के क्रय से पहले सारी जानकारी होनी चाहिए, जिससे वह किसी कम्पनी के लुभावने ऑफर अथवा विज्ञापन या विक्रेता के कहने पर कम गुणवत्ता की एवं महँगी वस्तु का क्रय नहीं करे। उपभोक्ता शिक्षा हेतु कोई औपचारिक संस्था नहीं होती है बल्कि स्वयं के ज्ञान एव बुद्धि, पत्र-पत्रिकाएं, इंटरनेट, दूसरों के अनुभव, प्रचार माध्यम का उपयोग करके हम उत्तम वस्तुएं क्रय कर सकते हैं।

अपने पैसे को सही स्थान पर व्यय कर करके उचित वस्तु की खरीद से अधिकतम सुख,आनन्द एवं सन्तुष्टि की प्राप्ति होती है। उपभोक्ता शिक्षा द्वारा उपभोक्ता को अपने दायित्वों का बोध होता है। वे यदि कभी ठगी का शिकार होते हैं, तो उपभोक्ता मंच के माध्यम से विक्रेता से क्षतिपूर्ति ले सकते हैं।

(2) चयन का अधिकार:
उपभोक्ता अपनी आवश्यकता के अनुरूप कौन सी वस्तु खरीदना चाहता है, वह अपनी आय के अनुसार व पसन्द के अनुसार सही वस्तु का चयन स्वयं कर सकता है। इसके लिए विक्रेता या प्रचारक उसे बाध्य करके अपने उत्पाद को नहीं बेच सकते। उत्पाद निम्न स्तर का पाए जाने पर उपभोक्ता को उसे वापस करने का अधिकार है। यदि विक्रेता उसको वापस नहीं लेता है तो उपभोक्ता शिकायत कर सकता है।

(3) कब खरीदें:
उपभोक्ता शिक्षा द्वारा उपभोक्ता को यह जानकारी दी जाती है कि वह वस्तुएँ कब खरीद सकता है। वैसे मनुष्य की आवश्यकताएँ पूरे वर्ष ही रहती हैं परन्तु मौसम की वस्तुएँ उचित समय पर खरीदी जा सकती हैं। इससे उपभोक्ताओं को कम दाम में अच्छी वस्तु मिल जाती है। जैसे अप्रैल माह में यदि गेहूँ पूरे वर्ष का खरीद लिया जाए तो उत्तम किस्म का कम दाम में मिलेगा व उपभोक्ता की बचत होगी। इस प्रकार अनेक ऐसी वस्तुएँ है जो अपने मौसम में कम दाम में मिलती हैं।

कुछ विद्युत उपकरण जैसे सर्दियों में कूलर, ए.सी., फ्रिज, पंखे तथा गर्मियों में गीजर, हीटर आदि काफी कब दामों में मिलते हैं। कभी-कभी त्योहारों व विभिन्न अवसरों पर अधिक बिक्री हेतु व्यापारी भी माल कुछ दाम कम करके बेचते हैं। अत: उपभोक्ताओं को मौसम व समय के अनुसार खरीददारी करनी चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

(4) उपभोक्ता संरक्षण का अर्थ:
उपभोक्ता के समक्ष आजकल अनेक कठिनाइयाँ हैं-मिलावट, जमाखोरी, चुनाव की समस्या, विज्ञापनों का आकर्षण, लुभावने ऑफर आदि। अक्सर पूरी कीमत देने के बाद भी उत्तम वस्तु नहीं प्राप्त होती। विक्रेता, व्यापारी, निर्माता उत्पादक उसे विभिन्न उपायों से बनाते हैं। अत: उपभोक्ता को इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए जागरूक होने की आवश्यकता है। उपभोक्ता जिन तरीकों की अपने हितों की रक्षा करता है, उसे उपभोक्ता संरक्षण कहते हैं।

प्रश्न 4.
कोई भी दो उपभोक्ता अधिकारों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता के दो अधिकार निम्नलिखित है –
1. चयन का अधिकार:
उपभोक्ता को अधिकार है कि वह किसी के बहकावे में न आकर अपने विवेक से स्वयं अपने लिए वस्तु का चयन करे। विक्रेता की लुभावनी बातों को न मानते हुए स्वयं देखे कि क्या उचित है। यदि वस्तु की गुणवत्ता में कमी है तो वह वस्तु को लौटा सकता है। यदि वापसी किसी कारणवश मना कर दी जाए तो वह शिकायत कर सकता है।

2. क्षतिपूर्ति का अधिकार:
यदि उपभोक्ता को विक्रेता किसी प्रकार ठगते हैं; जैसे-कम तोल कर, मूल्य अधिक लेकर, मिलावटी सामान देकर, नकली सामान देकर तो उपभोक्ता मंच पर वह शिकायत कर सकता है तथा उपभोक्ता मंच के माध्यम से क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता को वस्तु खरीदते समय क्या-क्या बातें ध्यान में रखनी चाहिए?
उत्तर:
उपभोक्ता को वस्तु खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान देना चाहिए –

  • सर्वप्रथम उपभोक्ता को वस्तु की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए फिर वस्तु को उसके दाम तथा गुण में तालमेल देखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
  • वस्तु खरीदते समय भ्रामक विज्ञापनों तथा विक्रेता की मीठी बातों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। अपनी बुद्धि एवं विवेक का उपयोग करना चाहिए।
  • वस्तु लेते समय उसके लेबल पर जानकारी को पढ़ लेना चाहिए जिससे प्रमुख है-ब्राण्ड, वजन, मूल्य, पैकिंग की तिथि, आदि।
  • वस्तु – समय, गारंटी एवं वारंटी वाली वस्तुओं को प्राथमिकता देते हुए कार्ड – तिथि डालवा कर विक्रेता से ले लेना चाहिए।
  • वस्तु खरीदने के बाद विक्रेता से बिल लेकर बिल सँभालकर रखना चाहिए।
  • उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहकर खरीददारी करनी चाहिए। नुकसान होने की स्थिति में उपभोक्ता मंच की मदद से क्षतिपूर्ति लेनी चाहिए।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता को जागरूक व संगठित कैसे बनना चाहिए?
उत्तर:
उपभोक्ता को जागरूक रहने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है उपभोक्ता शिक्षा द्वारा जानकारी होना। इसके अन्तर्गत उपभोक्ता को पता रहता है कि उसे क्या खरीदना है, कहाँ से खरीदना है एवं कब खरीदना है एवं उसका बजट क्या है। इस उपभोक्ता शिक्षा के पश्चात् उसे अपने अधिकारों का पता होना चाहिए। उपभोक्ता को चयन, सुरक्षा, क्षतिपूर्ति सुनवाई आदि का अधिकार है।

खरीदी गई वस्तु की गुणवत्ता में कमी होने पर अधिक दाम में घटिया वस्तु प्राप्त होने पर अथवा नकली वस्तु प्राप्त होने पर, मिलावटी व कम माप की वस्तु प्राप्त होने पर उपभोक्ता को उपभोक्ता संरक्षण नियम के अर्न्तगत उपभोक्ता मंच पर शिकायत दर्ज करने का क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है। यदि उपभोक्ता को अपने अधिकारों की जानकारी है तथा वह खरीददारी अपनी सूझ-बूझ व विवेक से करता है तो वह जागरूक एवं संगठित उपभोक्ता बन सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (PART-I)

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 वस्तुनिष्ठ प्रश्न (PART-I)

प्रश्न 1.
ग्राहक के साथ धोखाधड़ी का मुख्य कारण है –
(अ) वस्तुओं का अभाव
(ब) आय की कमी
(स) औद्योगिकीकरण
(द) उपभोक्ता शिक्षा का अभाव।
उत्तर:
(द) उपभोक्ता शिक्षा का अभाव।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता शिक्षा द्वारा हम अर्जित कर सकते हैं –
(अ) डिग्री
(ब) वस्तु की संपूर्ण जानकारी
(स) आय
(द) मुफ्त उपहार।
उत्तर:
(ब) वस्तु की संपूर्ण जानकारी

प्रश्न 3.
उपभोक्ता शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है –
(अ) बाजार में वस्तु उपलब्ध कराना ।
(ब) वस्तुओं को सस्ते दामों पर खरीदना
(स) उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करना
(द) ये सभी।
उत्तर:
(स) उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करना

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

प्रश्न 4.
उपभोक्ता को कैसी वस्तु खरीदनी चाहिए?
(अ) जो दिखने में सुंदर हो
(ब) जो सस्ती हो
(स) जिस पर मुफ्त उपहार योजना हो
(द) जो गुणवत्ता वाली हो।
उत्तर:
(द) जो गुणवत्ता वाली हो।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता को वस्तु कहाँ से खरीदनी चाहिए?
(अ) उचित मूल्य की दुकान से
(ब) सहकारी उपभोक्ता भंडार से
(स) पंजीकृत व अधिकृत दुकान से
(द) ये सभी।
उत्तर:
(द) ये सभी।

प्रश्न 6.
निम्न में से ऐसी कौन-सी वस्तु है जो मौसम में सस्ती व अच्छी मिलेगी?
(अ) गेहूँ
(ब) कूलर
(स) दूध
(द) पंखा।
उत्तर:
(अ) गेहूँ

प्रश्न 7.
वस्तु की मात्रा कितनी खरीदी जाए यह निर्भर करता है –
(अ) सदस्यों की आवश्यकताओं पर
(ब) पारिवारिक आय पर
(स) मौसम तथा संग्रहण सुविधाओं पर
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता संरक्षण नियम के अन्तर्गत उपभोक्ता को प्राप्त अधिकार है –
(अ) सुरक्षा का
(ब) चयन का
(स) क्षतिपूर्ति का
(द) ये सभी।
उत्तर:
(द) ये सभी।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. …………विज्ञापनों के जाल में न फंसते हुए उपभोक्ता को अपनी बुद्धि का प्रयोग कर वस्तु खरीदनी चाहिए।
2. जहाँ तक संभव हो वस्तु को…………दाम देकर ही खरीदना चाहिए।
3. वस्तु खरीदने हेतु उपभोक्ता किस प्रकार अपनी आय को व्यय करना चाहता है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसके पास कितनी…………उपलब्ध है?
4. त्योहारों एवं पर्यों पर व्यापारी अधिक बिक्री हेतु…………लगाते हैं।
5. बाजार का चयन करने के पश्चात् उपभोक्ता को…………का चयन करना चाहिए।
6. …………उपभोक्ता को दुकान का चयन करने में आसानी रहती है।
7. उपभोक्ता का शोषण रोकने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, पर ये सफल नहीं हो सके। इसका मुख्य कारण…………की कमी है।
8. …………द्वारा उपभोक्ता ठगे जाने पर क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता है।
उत्तर:
1. भ्रामक / झूठे
2. नगद
3. धनराशि
4. सेल
5. दुकान
6. सजग / शिक्षित / जागरूक
7. उपभोक्ता शिक्षा
8. उपभोक्ता मंच।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (PART-I)

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शिक्षा क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता को वस्तुओं तथा सेवाओं के संदर्भ में आवश्यक सम्पूर्ण जानकारी का ज्ञान ही उपभोक्ता शिक्षा है।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता शिक्षा का ज्ञान क्यों आवश्यक
उत्तर:
उपभोक्ता को जागरूकता तथा संरक्षण प्रदान करने के लिए उपभोक्ता शिक्षा का ज्ञान आवश्यक है।

प्रश्न 3.
वस्तु खरीदने से पहले सूची बनाने से क्या लाभ है?
उत्तर:
सूची बनाने से वस्तुएँ खरीदते समय व्यक्ति पारिवारिक आय एवं बजट के अनुसार व्यय करता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता को किस प्रकार की वस्तुएँ खरीदनी चाहिए?
उत्तर:
उपभोक्ता को प्रमाणीकृत वस्तुएँ खरीदनी चाहिए।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता को वस्तु कहाँ से खरीदनी चाहिए?
उत्तर:
उपभोक्ता को वस्तु पंजीकृत दुकान से ही खरीदनी चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

प्रश्न 6.
वस्तु कब खरीदनी चाहिए?
उत्तर:
वस्तु एक उत्तम समय व मौसम के अनुसार खरीदनी चाहिए।

प्रश्न 7.
किस वस्तु पर कितना खर्च करना चाहिए?
उत्तर:
यह उपभोक्ता की सामर्थ्य, आवश्यकता तथा तीव्रता पर निर्भर करता है कि उसे किस वस्तु पर कितना खर्च करना है।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता संरक्षण किसे कहते हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता अपने हितों की रक्षा जिन तरीकों से कर सकता है। उसे उपभोक्ता संरक्षण कहते हैं।

प्रश्न 9.
शिक्षित उपभोक्ता के क्या गुण है?
उत्तर:

  • भ्रामक विज्ञापन से दिग्भ्रमित न होना
  • वस्तु की पूरी जानकारी प्राप्त करना
  • क्रय करते समय लेबल चेक करना
  • गारंटी-वारंटी पर ध्यान देना
  • खरीद के बाद विक्रेता से बिल लेना
  • ठगे जाने पर उपभोक्ता मंच की मदद लेना
  • अपने उत्तरदायित्त्वों एवं अधिकारों को समझाना

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

प्रश्न 10.
चयन का अधिकार क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता द्वारा सही मूल्य पर सही वस्तु का चयन करना उसका अधिकार है।

प्रश्न 11.
सुरक्षा का अधिकार क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता को जीवन एवं सम्पत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं के क्रय-विक्रय के विरुद्ध संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रश्न 12.
क्षतिपूर्ति का अधिकार क्या है?
उत्तर:
विक्रेता / निर्माता द्वारा धोखा देकर मिलावटी, नकली, कम दाम की वस्तु अधिक दाम में देकर, निम्न गुणवत्ता की वस्तु उपभोक्ता को बेचने पर उपभोक्ता को उपभोक्ता मंच द्वारा क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रश्न 13.
सुनवाई का अधिकार क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता मंच पर उपभोक्ता की समस्या की सुनवाई होना, उपभोक्ता का सुनवाई का अधिकार है।

प्रश्न 14.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 वह अधिनियम है, जिसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को कई अधिकार प्राप्त हैं। इसके तहत उपभोक्ता मंच द्वारा उपभोक्ता क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता है।

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शिक्षा क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
उपभोक्ता शिक्षा की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है –

  • उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करने हेतु।।
  • उपभोक्ता को बाजार दशाओं के पूर्ण ज्ञान के लिए।
  • धोखा खाने तथा व्यापारियों के चंगुल से बचने के लिए।
  • क्रय की गई वस्तु का पूर्ण मौद्रिक लाभ प्राप्त करने में सहायता हेतु।
  • वस्तुओं की गुणवत्ता तथा टिकाऊपन की जानकारी प्रदान करने के लिए।
  • उपभोक्ता शिक्षा से उपभोक्ता को इस बात की जानकारी होती है कि कौन-सी वस्तु कहाँ से खरीदना उचित रहेगा।
  • उपभोक्ता को किस मौसम में कौन-सी वस्तु खरीदना किफायती रहेगा, इसकी जानकारी भी उपभोक्ता शिक्षा द्वारा हो जाती है।
  • उपभोक्ता शिक्षा द्वारा इस बात की जानकारी भी होती है कि वस्तु कितनी मात्रा में खरीदनी चाहिए तथा किन-किन वस्तुओं पर कितना व्यय करना उचित है।

प्रश्न 2.
‘वस्तु को कब खरीदें से आपका क्या तात्पर्य है? किन्हीं दो वस्तुओं का उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर:
वस्तु कब खरीदें? – वस्तु कब खरीदें का तात्पर्य है-वस्तु की प्रकृति तथा मूल्य देखते हुए इस बात का निर्धारण करना कि अमुक वस्तु को खरीदने के लिए कौन-सा समय तथा मौसम उत्तम रहेगा? कुछ ऐसी वस्तुएँ होती हैं जो किसी विशिष्ट मौसम में ही उपलब्ध होती हैं तथा उस मौसम में उनकी गुणवत्ता तथा मूल्य भी उचित रहता है। इसके अतिरिक्त जब दुकान पर भीड़ कम हो तब वस्तु खरीदनी चाहिए ताकि आप दुकानदार से पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें।

उदाहरणार्थ:

  • गर्मियों में गीजर तथा हीटर सस्ते हो जाते हैं तथा पर्व अथवा त्यौहार के अवसर पर व्यापारी वस्तुओं की सेल लगाते हैं जिससे वस्तुएँ अपेक्षाकृत उचित दामों पर व अच्छी मिल जाती हैं।
  • गर्मियों के मौसम में यदि गोभी खरीदी जाए तो एक तो वह महँगी मिलेगी साथ ही वह रसायनों की अधिकता में तैयार होती है तथा कीड़े भी पाए जाते हैं, वहीं सर्दियों में उसका मूल्य सामान्य होता है तथा गुणवत्ता की दृष्टि से भी ताजी तथा अच्छी होती है।

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प्रश्न 3.
किन्हीं पाँच लक्षणों के बारे में लिखिए, जिन्हें आप एक शिक्षित एवं जागरूक उपभोक्ता में देख सकते
उत्तर:
शिक्षित एवं जागरूक उपभोक्ता के लक्षण निम्नलिखित हैं –

  • शिक्षित एवं जागरूक उपभोक्ता कोई भी वस्तु खरीदते समय गारन्टी वाली वस्तुएँ खरीदने को प्राथमिकता देता है तथा गारन्टी कार्ड को ध्यानपूर्वक पढ़ता है।
  • शिक्षित तथा जागरूक उपभोक्ता भ्रामक विज्ञापनों से प्रभावित न होकर वस्तुएँ खरीदने के संदर्भ में स्वविवेक का प्रयोग करता है।
  • वस्तु को खरीदते समय उसके ब्राण्ड, लेबल, मूल्य, वजन आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेता है।
  • व्यापारी अथवा विक्रेता के दबाव में नहीं आता तथा उसकी बात को सुनता तो है किन्तु उनके आधार पर राय नहीं बनाता।
  • वस्तुओं को सहकारी उपभोक्ता भंडार अथवा उचित दाम की दुकान से खरीदने को प्राथमिकता देता है।

प्रश्न 4.
वस्तु कितनी मात्रा में खरीदी जाए, यह किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
वस्तु कितनी मात्रा में खरीदी जाए, यह निम्न बातों पर निर्भर करता है –

  • परिवार में विभिन्न सदस्यों की आवश्यकताएँ किस प्रकार की हैं?
  • आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कितनी आय उपलब्ध है?
  • वर्षभर की आवश्यकतानुसार वस्तुएँ आवश्यक धनराशि उपलब्ध होने पर इकट्ठी ही खरीद लेनी चाहिए।
  • वस्तु की मात्रा धन की उपलब्धता के साथ-साथ संग्रहण सुविधाओं पर भी निर्भर करती है।

प्रश्न 5.
कोई भी वस्तु खरीदते समय उपभोक्ता को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
1. विज्ञापनों से भ्रमित होने की अपेक्षा स्वविवेक का सहारा लें।
2. गारन्टी वाली वस्तुओं को प्राथमिकता दें।
3. वस्तु का मूल्य तथा गुण अनेक स्थानों तथा दुकानों से पता करके ही वस्तु खरीदें।
4. वस्तु अपनी आय तथा क्रय क्षमता के अनुरूप ही खरीदें।
5. वस्तु सदैव पंजीकृत दुकान अथवा उपभोक्ता भंडार से ही खरीदें।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता शिक्षा किसे कहते हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
उपभोक्ता शिक्षा:
उपभोक्ता शिक्षा से अभिप्राय ऐसी शिक्षा से है जिससे किसी भी वस्तु अथवा सेवा के सन्दर्भ में उपभोक्ता को सम्पूर्ण आवश्यक ज्ञान प्राप्त होता है ताकि वह खरीददारी के समय वस्तु या सेवा का उचित चयन कर सके तथा व्यय की गयी राशि से प्राप्त वस्तु या सेवा द्वारा उसे अधिकतम सन्तोष प्राप्त हो सके। उपभोक्ता शिक्षा का उद्देश्य-उपभोक्ता शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य है –

  • उपभोक्ता शिक्षा का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करना है।
  • बाजार समस्याओं से अवगत कराना।
  • समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव बताना।
  • उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करना।
  • उपभोक्ताओं को धोखेबाज व्यापारियों से बचाना।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

प्रश्न 7.
उपभोक्ता शिक्षा के अनुसार वस्तु कितनी मात्रा में खरीदनी चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वस्तु कितनी मात्रा में खरीदें:
वस्तु कितनी मात्रा में खरीदी जाये यह इस बात पर निर्भर करता है कि पारिवारिक सदस्यों की आवश्यकताएँ किस प्रकार की हैं और इसको पूरा करने के लिए कितनी आय है। कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में होती है और इनके लिए आवश्यक धनराशि भी प्राप्त होती है। वस्तुओं को पूरे साल के लिए एक साथ, छ: माह, तीन माह या एक माह की आवश्यकतानुसार खरीद लें।

वस्तुओं को आवश्यकता से ज्यादा न खरीदा जाए; जैसे – दूध, फल व सब्जियाँ प्रतिदिन आवश्यकतानुसार खरीदे जाते हैं। महीने भर के लिए एक साथ नहीं अन्यथा ये खराब होकर नष्ट हो जायेंगे। वस्तु की मात्रा धन की उपलब्धता के साथ-साथ संरक्षण सुविधाओं पर भी निर्भर करती है। जिन स्थानों पर नमी युक्त हवा अधिक होती है वहाँ वस्तुओं का संग्रहण बहुत कठिन होता है। अतः आवश्यकता व सुविधानुसार वस्तुओं को खरीदना उचित रहता है।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम, 1986 क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू किया गया। इसके अन्तर्गत उपभोक्ता, काउंसलर एवं अन्य उच्च अधिकारी नियुक्त किए गए उपभोक्ता संबंधी ठगी एवं जालसाजी के मामले सुलझाने हेतु इस अधिनियम के अर्न्तगत उपभोक्ता को निम्न अधिकार प्राप्त हैं –

  • वस्तु के चयन का अधिकार।
  • खरीदी गई वस्तु स्वास्थ्य व जीवन के लिए हानिकारक न हो अर्थात सुरक्षा का अधिकार
  • वस्तु की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का अधिकार
  • क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार
  • सुनवाई का अधिकार
  • स्वस्थ एवं सुरक्षित वातावरण का अधिकार

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शिक्षा द्वारा हम व्यय किए गये धन की उपयोगिता एवं जीवन-स्तर को किस प्रकार बढ़ा सकते
उत्तर:
उपभोक्ता शिक्षा के द्वारा उपभोक्ता को इस बात का पूर्ण ज्ञान हो जाता है कि बाजार की दशाएँ कैसी हैं। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाता है तथा वस्तुएँ अथवा सेवाएँ क्रय करते हुए उनकी गुणवत्ता को प्राथमिकता देता है था कई दुकानों से उनके मूल्य तथा मोलभाव का पता लगाकर ही कोई वस्तु क्रय करता है। उपभोक्ता विज्ञापनों के भ्रामक जाल में नहीं फँसता है अपितु स्वविवेक से काम लेता है। इस प्रकार उपभोक्ता शिक्षा के द्वारा उपभोक्ता को व्यय की गई राशि अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति होती है जिससे धन की उपयोगिता तथा जीवन-स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

जब उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करता है तो उसका व्यवहार उत्तम कोटि का हो जाता है। उसमें बाजार मूल्य के प्रति ज्ञान में वृद्धि हो जाती है जिससे उसे न केवल स्वयं के हितों का ज्ञान होता है बल्कि उत्पादन, वितरण, उपयोग, माँग, आपूर्ति आदि की जानकारी हो जाती है, जिससे वह धोखेबाज दुकानदारों व व्यापारियों से सजग रहता है।

उपभोक्ता उचित मूल्य पर टिकाऊ, गुणवत्ता युक्त वस्तु खरीदकर धन का सदुपयोग करता है अन्यथा उसे धन की हानि झेलनी पड़ती है जिसके फलस्वरूप आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ जाता है। इस प्रकार एक उपभोक्ता उपभोक्ता – शिक्षा के माध्यम से कम खर्च पर उत्तम कोटि की वस्तु खरीद कर जीवन-स्तर को सुधार सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

प्रश्न 2.
‘कहाँ से खरीदें ? का क्या अभिप्राय है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहाँ से खरीदें का अभिप्राय:
उपभोक्ता को वस्तु खरीदने के लिए यह निश्चित करना होता है कि वह वस्तु कहाँ से खरीदे। कुछ बाजार कुछ वस्तुओं के लिए विशेष प्रशिद्ध होते हैं जहाँ पर वस्तुएँ उत्तम और उचित कीमत पर उपलब्ध होती हैं।

उदाहरण के लिए:
मॉल की अपेक्षा बाहर के बाजारों में सभी वस्तुएँ सस्ती और अच्छी मिलती हैं। हर शहर में सदैव ऐसा होता है जहाँ बाजार में एक विशेष वर्गीय परिवारों की आवश्यकतानुसार वस्तुएँ मिलती हैं एवं हर शहर के थोक के सामान का भी बाजार होता है इससे वे अत्यधिक महँगी होती हैं। इसीलिए खरीदने से पहले बाजार के बारे में पूर्ण जानकारी पाप्त कर लेने के पश्चात् उपभोक्ता को वस्तु खरीदने के लिए बाजार का चुनाव करना चाहिए। जब बाजार का चुनाव ठीक से जाए उसके उपरान्त उस दुकान का चयन करना चाहिए जहाँ से वस्तु खरीदनी है।

अधिकांश उपभोक्ता को उसी दुकान से वस्तु खरीदनी चाहिए जोकि पंजीकृत हो और जिसके पास लाइसेंस हो या फिर गो वस्तुओं को उचित दाम पर बेचता हो और सही नीतियाँ अपनाता हो। अधिकतर वस्तुएँ थोक की दुकान या सहकारी उपभोक्ता भण्डार से खरीदनी चाहिये।

खरीददारी के लिए दुकान का चयन करते समय यह भी निश्चित कर लिया जाता है कि स्तु के खरीदने के बाद यदि किसी प्रकार की आवश्यकता पड़े तो व्यापारी मदद / उत्साह वर्धन कर सकता है या नहीं। जिकल विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ जैसे-उपहार, मुफ्त सेवा आदि दुकानदार अपने उपभोक्ताओं को प्रदान करता है। अत: मझदार, शिक्षित और जागरूक उपभोक्ता को दुकान का चयन करने में बहुत सरलता रहती है।

प्रश्न 3.
कितना खर्च करें? का क्या अभिप्राय है? समझाइये।
उत्तर:
किस वस्तु पर कितना खर्च करना है यह पारिवारिक आय पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त यह व्यक्ति की आदत, जीवन स्तर तथा मानसिकता पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति जिसकी कम आय है और उसे अपने काम पर कहीं दूर जाना होता है तो वह कार या बाइक खरीदने के स्थान पर या तो साइकिल खरीद ले या बस या अन्य केसी परिवहन का सहारा ले। आजकल उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने के लिए व्यापारियों ने कई विक्रय प्रणालियाँ अपनायी हैं जिससे उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों को ही लाभ होता है।

जैसे कि वस्तु को उधार देना, वस्तु के बदले वस्तु, किस्तों में देना, आज खरीदों, उपयोग करो, कल पैसा दो आदि। परन्तु सलाहकारों का मानना है कि वस्तुओं को नकद ही खरीदा जाए। यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उपभोक्ता अपनी आय और बजट के अनुसार ही विभिन्न वस्तुओं पर व्यय करे।

यदि किसी एक वस्तु पर अधिक खर्च आएगा तो दूसरी वस्तुओं के खर्च में कटौती करनी पड़ेगी जिससे लाभ के स्थान पर हानि ही होगी। ऐसी स्थिति में वैकल्पिक वस्तुओं का चयन किया जा सकता है। जैसे महँगी क्राकरी खरीदने के बजाय मिलती-जुलती सस्ती क्राकरी खरीद ली जाए। जो वस्तु अधिक आवश्यक है उस पर पहले खर्च किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 4.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
(1) उपभोक्ता शिक्षा
(2) क्या खरीदें?
(3) सजग उपभोक्ता
(4) उपभोक्ता का शोषण

उत्तर:
(1) उपभोक्ता शिक्षा:
आज के तीव्र प्रतियोगिता तथा अति उत्पादन के युग में उपभोक्ता को उचित तथा पूर्ण जानकारी के अभाव में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वस्तु परीक्षण तथा पूर्ण जानकारी के अभाव में अथवा विक्रेता के दबाव में आकर वह गलत वस्तु का चयन कर लेते हैं। अत: उपभोक्ता के संरक्षण हेतु उन्हें उपभोक्ता शिक्ष का ज्ञान होना अति आवश्यक है।

उपभोक्ता शिक्षा से तात्पर्य है-उपभोक्ता को किसी भी वस्तु अथवा सेवा का क्रय करने से पूर्व उसके संदर्भ में संपूर्ण आवश्यक जानकारी होना जिससे वह उचित वस्तु तथा सेवा के चयन द्वारा अपने धन का संपूर्ण मूल्य ज्ञात कर सके तथा अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति कर सके।

(2) क्या खरीदें?:
उपभोक्ता को किसी भी वस्तु को खरीदने से पूर्व भली प्रकार सोच – विचार करके, योजना बनाकर आवश्यकताओं की प्राथमिकता के अनुसार सूची बना लेनी चाहिए। सूची बनाते समय उपभोक्ता को यह ध्यान रखना चाहिा कि पारिवारिक आय, पारिवारिक बजट, जीवन – स्तर तथा आवश्यकताओं के अनुरूप किस स्तर तथा ब्राण्ड की वस्तुा खरीदना उचित रहेगा जिससे समस्त पारिवारिक सदस्यों की आवश्यकता की पूर्ति की जा सके।

साथ ही कोई भी वस्तु खरीद से पूर्व विभिन्न दुकानों से गुणवत्ता, मूल्य तथा टिकाऊपन की जानकारी प्राप्त करके ही वस्तु खरीदनी चाहिए तथा मानकीकृ वस्तुओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो, प्रमाणीकृत वस्तुएँ जिन पर आई. एस. आई., एगमार्क, एफ. पी. अं आदि का चिह्न हो, उन्हें ही खरीदें।

(3) सजग उपभोक्ता:
सजग उपभोक्ता वह है जिसे अपने अधिकारों तथा बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान होता है तथ वह किसी भी वस्तु को खरीदने में जल्दबाजी नहीं करता। सजग उपभोक्ता सदैव मानकीकृत वस्तुओं को खरीदने के प्राथमिकता देता है तथा वस्तु को जाँच – परखकर, विज्ञापनों से दिग्भ्रमित हुए बिना स्वविवेक से वस्तुएँ खरीदता है।

(4) उपभोक्ता का शोषण:
उपभोक्ता के अशिक्षित तथा जागरूक न होने की दशा में व्यापारी तथा विक्रेता उसक शोषण करते हैं। वस्तुओं के परीक्षण का ज्ञान न होने पर व्यापारी उपभोक्ता को मिलावटी व सस्ती वस्तुएँ दे देते हैं जिससे उर अपने धन का पूर्ण मूल्य नहीं मिल पाता। मोल-भाव करने तथा तोलने में, सही माप का ध्यान रखने के लिए पूछने प उपभोक्ता को विक्रेता तिरस्कृत करना अथवा उनकी उपेक्षा करना प्रारम्भ कर देते हैं।

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प्रश्न 5.
उपभोक्ता शिक्षा से उपभोक्ता को क्या जानकारी प्राप्त होती है? शिक्षित उपभोक्ता के क्या गुण हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता शिक्षा द्वारा उपभोक्ता को निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है –
1. क्या खरीदें:
व्यक्ति की उस समय क्या आवश्यकता है, उसका बजट क्या है। बाजार जाने से पूर्व उसे यह जान ज्यादा आवश्यक है। अत: उपभोक्ता को खरीददारी से पूर्व सामान की सूची बना लेनी चाहिए। उसके पश्चात् पारिवारिक बज के अनुरूप यह निश्चय लेना चाहिए कि कौन सी वस्तु उसके बजट एवं आवश्यकता के अनुरूप है। इसके लिए विभिन्न दुकान पर जाकर वस्तु का मूल्य, गुणवत्ता, मात्रा उपयोगिता, टिकाऊपन आदि की तुलनात्मक जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। उसके पश्चात ही निर्णय लेना चाहिए की वस्तु कहाँ से खरीदनी है। सदैव प्रमाणीकृत वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए।

2. कहाँ से खरीदें:
हर शहर में हर तरह के बाजार होते हैं। स्थान के अनुसार वस्तु की कीमत सही व अधिक होती है अतः जागरूक उपभोक्ता को पता होना चाहिए कि कौन-सी वस्तु कहाँ से लेनी है। किस बाजार में किस दुकान पर वर उचित दामों पर मिलेगी। उपभोक्ता को पंजीकृत एवं लाइसेंसधारी दुकान से सामान खरीदना चाहिए। संभव हो तो लो व्यापारी या सहकारी उपभोक्ता भण्डार से सामान खरीदना चाहिए।

3. कब खरीदें:
कुछ वस्तुएँ कुछ विशिष्ट समय में ही एवं उचित मूल्य पर अधिक गुणवत्ता वाली मिलती हैं। जैसेअप्रैल माह में गेहूँ, दिसम्बर में मूंगफली का तेल आदि उत्तम किस्म के व सस्ते मिलते हैं। इसी प्रकार कुछ विद्युत उपकर जैसे फ्रिज, कूलर, एसी गर्मी के मौसम की अपेक्षा सर्दी के मौसम में सस्ते मिलते हैं। इसी प्रकार ऊनी वस्तु भी मौसम जाने के बाद कुछ कम दामों में मिल जाते हैं। कुछ विशेष अवसरों पर भी समान के दामों में कुछ कमी होती है। अतः एक जागरूक उपभोक्ता को यह मस्तिष्क में रखना चाहिए कि कौन-सी वस्तु कब खरीदनी है।

4. कितना खरीदें:
वस्तु सदैव आवश्यकतानुसार लेनी चाहिए। कुछ वस्तुओं का तो संग्रहण किया जा सकता है परन्तु कुछ वस्तुएँ लम्बे समय तक रखने पर खराब हो जाती हैं, जिससे व्यर्थ ही हानि होती है। इसके अतिरिक्त परिवार में सदस्यों की संख्या के अनुसार वस्तु की खरीद होती है। वस्तु की खरीद परिवार का बजट, आवश्यकता, संग्रहण योग्यता, वस्तु की प्रकृति आदि पर निर्भर करती है।

5. कितना खर्च करें:
जागरूक उपभोक्ता को अपने बजटानुसार यह पता होता है कि उसे किस वस्तु पर कितना खर्च करना है। उपभोक्ता को धन, समय व शक्ति की बचत करनी चाहिए। अतः उसे योजना बनाकर क्रय करना चाहिए। शिक्षित उपभोक्ता के गुण-शिक्षित उपभोक्ता के गुण निम्नलिखित हैं –

  • शिक्षित उपभोक्ता वस्तु से सम्बन्धित सारी जानकारी प्राप्त करके, वस्तु को आवश्कयतानुसार ही खरीदते हैं।
  • शिक्षित उपभोक्ता किसी आकर्षक विज्ञापन, लुभावनी योजना, विक्रेता के कथन आदि के वशीभूत न होकर अपने जवेक द्वारा अपनी आवश्यकता व बजट को देखते हुए निर्णय लेते हैं।
  • शिक्षित उपभोक्ता सदैव वस्तु को लेने से पहले उस पर लगा लेबल पढ़ते हैं तथा ब्राण्ड, मूल्य, वजन, तिथि आदि र विशेष ध्यान देते हैं।
  • शिक्षित उपभोक्ता सदैव गारंटी-वारंटी वाली वस्तुएँ ही लेते हैं तथा इन गारंटी व वारंटी कार्ड को भरवा कर सँभाल र रखते हैं।
  • शिक्षित उपभोक्ता खरीद के बाद सदैव विक्रेता से बिल प्राप्त करते हैं।
  • शिक्षित उपभोक्ता सदैव अपने अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के प्रति सजग रहते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की गनकारी रखते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर अपने नुकसान के लिए इसकी मदद लेते हैं।

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प्रश्न 6.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता को क्या अधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं –
1. चयन का अधिकार:
हर उपभोक्ता को अपने विवेक के अनुसार सही मूल्य पर सही वस्तु के चयन का अधिकार . वस्तु को मूल्यानुसार सही नहीं पाए जाने की स्थिति में वह वस्तु को लौटा सकता है। :

2. सुरक्षा का अधिकार:
आजकल खाद्य पदार्थों एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं में मिलावट आम बात हो गई है। लावटी खाद्य पदार्थ अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याए उत्पन्न होती हैं। अत: पभोक्ता को जीवन एवं सम्पत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं के क्रय-विक्रय के विरुद्ध संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार है।

3. सूचित किए जाने का अधिकार:
हर उपभोक्ता को अधिकार है कि वह वस्तु संबंधित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करे। न जानकारी में कहीं भी झूठ या गुमराह किए जाने वाले तत्व पाकर वह अधिकारी को सूचना दे सकता है।

4. क्षतिपूर्ति का अधिकार:
यदि उपभोक्ता को विक्रेता द्वारा कोई धोखा दिया जाता है; जैसे-अधिक मूल्य लेकर कम ‘लना, मिलावटी सामान या नकली सामान देना, मूल्य अधिक लेकर कम गुणवत्ता की वस्तु देना तो वह विक्रेता निर्माता से भोक्ता मंच के माध्यम से क्षतिपूर्ति ले सकता है।

5. सुनवाई का अधिकार:
यदि उपभोक्ता कभी विक्रेता-निर्माता द्वारा ठगा जाता है तो उसे यह अधिकार है कि वह पनी समस्याओं को न्यायालय या उपभोक्ता मंच पर पहुँचाए एवं वहाँ उनकी सुनवाई हो। ।

6. स्वस्थ्य एवं सुरक्षित वातावरण का अधिकार:
यदि किसी व्यक्ति के आवास स्थल के आस-पास कोई ऐसा ‘रोबार या कारखाना चल रहा है जिससे प्रदूषण व स्वास्थ्य समस्याएँ है तो उसे पूरा अधिकार है कि वह उस कारखाना लिक के विरुद्ध उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कराए।

7. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:
हर उपभोक्ता को वस्तु के बारे में पूरा ज्ञान प्राप्त करके, उपभोक्ता शिक्षा प्राप्त हने का अधिकार है।

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर (PART-II)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) वस्तु के पैकेट पर उपभोक्ता सहायता हेतु निम्न में से किसका प्रयोग किया जाता है ?
(अ) विज्ञापन
(ब) प्रतिस्पर्धा
(स) लेबिल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) लेबिल

(ii) निम्न में से किस पर लेबिल लगा होना चाहिए –
(अ) हरी सब्जियों पर
(ब) एक गिलास पानी पर
(स) ताजा गाय के दूध पर
(द) अचार की बोतल पर
उत्तर:
(द) अचार की बोतल पर

(iii) एक लेबिल पर निम्न में से क्या अंकित नहीं होता?
(अ) अधिकतम खुदरा मूल्य
(ब) थोक मूल्य
(स) सभी प्रकार के कर सहित
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) थोक मूल्य

(iv) पैकेट पर घोषणाएँ अंकित न होने पर दोषी कौन होगा ?
(अ) निर्माता जो इसे बनाता है
(ब) थोक व्यापारी जो एक साथ कई मात्रा में खरीदता है
(स) खुदरा व्यापारी जो इसे ग्राहकों को बेचता है
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।

(v) मांसाहारी खाद्य पदार्थों पर किस रंग का प्रतीक चिह्न लगाना अनिवार्य है ?
(अ) लाल
(ब) पीला
(स) काला
(द) हरा
उत्तर:
(अ) लाल

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(vi) मानक द्वारा किसी वस्तु के किस बिन्दु पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है ?
(अ) सुन्दरता
(ब) मात्रा
(स) गुणवत्ता
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) गुणवत्ता

(vii) अचार या मुरब्बे पर कौन-सा चिह्न लगाया जाता है?
(अ) आई०एस०आई०
(ब) एगमार्क
(स) एफ०पी०ओ०
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) एफ०पी०ओ०

(viii) बिस्कुट के पैकेट पर कौन-सा चिह्न लगाया जाता है?
(अ) एगमार्क
(ब) आई०एस०आई०
(स) एफ०पी०ओ०
(द) कोई भी एक।
उत्तर:
(ब) आई०एस०आई०

(ix) विज्ञापनों से किसको लाभ होता है?
(अ) व्यापारी को
(ब) उपभोक्ता को
(स) निर्माता को
(द) उपरोक्त सभी को
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी को

(x) यदि आपको विज्ञापन भ्रमित लगे तो आप कहाँ शिकायत करेंगे?
(अ) भारतीय मानक संस्थान
(ब) उपभोक्ता संरक्षण मंच
(स) भारतीय विज्ञापन मानक संस्थान
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(स) भारतीय विज्ञापन मानक संस्थान

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. लुभावने ………… के साथ उपभोक्ता को भ्रमित किया जाता है।
2. कई वस्तुएँ घरेलू स्तर पर तैयार की जाती हैं। इन पर ………… लगाना अनिवार्य है।
3. 134 वस्तुएँ अनिवार्य मानकीकरण दायरे में आती हैं जिन्हें बिना ………… मार्क नहीं बेच सकते।
4. मसालों पर …………… का मानक चिह्न लगाया जाता है।
5. फल-सब्जियों से निर्मित खाद्य पदार्थों पर …………… मार्क लगाया जाता है।
6. विक्रेता के व्यक्तित्व के अभाव की पूर्ति …………… द्वारा की जाती है।
7. विज्ञापन ऐसा होना चाहिए कि आम उपभोक्ता आसानी से उस पर …………… कर सके।
8. विज्ञापनों में गलत शब्दों का उपयोग जैसे-सुपर पावर, एक्स्ट्रा रिच आदि का प्रयोग उपभोक्ता को …………… करते हैं।
9 वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में …………… के कारण भारी कमी आई है।
उत्तर:
1. विज्ञापन
2. लेबिल
3. आई०एस०आई०
4. एगमार्क
5. एफ०पी०ओ०
6. विज्ञापन
7. विश्वास
8. भ्रमित
9. प्रतिस्पर्धा।

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प्रश्न 3.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें –
(i) उपभोक्ता सहायता
(ii) भ्रामक विज्ञापन
(iii) प्रतिस्पर्धा
(iv) मानक।
उत्तर:
(i) उपभोक्ता सहायता-वे सभी स्रोत जो उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं के बुद्धिमत्तापूर्ण क्रय करने में तथा उन्हें निर्माताओं, दुकानदारों द्वारा शोषण से बचाते हैं, “उपभोक्ता सहायता” कहलाते हैं। मुख्य उपभोक्ता सहायता निम्न हैं –

  • लेबिल
  • मानक
  • विज्ञापन
  • मार्ग दर्शक पुस्तिका/पर्ण
  • उपभोक्ता संगठन
  • प्रतिस्पर्धा
  • उपभोक्ता संरक्षण कानून एवं अधिनियम।

(ii) भ्रामक विज्ञापन (Confusing advertisement):
आज की दुनिया को विज्ञापनों की दुनिया कहा जाता है। एक अच्छा विज्ञापन उपभोक्ता को सही-सही जानकारी देता है, जबकि भ्रामक विज्ञापन हानिकारक होता है। उपभोक्ता बाह्य दबाव में आकार अपनी रुचि व पसंद को खो बैठता है। निर्माता बार-बार एक ही वस्तु का विज्ञापन दिखाकर उपभोक्ताओं की मानसिकता पर इतना प्रभाव एवं दबाव डाल देते हैं कि एक उपभोक्ता आसानी से भ्रमित हो जाता है तथा उसे अपनी सोच एवं पसंद का ध्यान ही नहीं रह पाता और वह उस वस्तु को क्रय कर लेता है।

कुछ भ्रामक विज्ञापन निम्न हैं –
(1) जब विज्ञापन उपभोक्ताओं की मनोवैज्ञानिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं; जैसे – इस टूथपेस्ट से आपके दाँत मोती जैसे चमकने लगेंगे। इस शैम्पू से आपके बाल काले, रेशमी एवं चमकीले होंगे। इस टॉनिक की पीने आप में शेर जैसी ताकत आ जायेगी तथा इस साबुन से एक सप्ताह में आपका रंग गोरा हो जायेगा और आप सुन्दरी का खिताब जीतने में सक्षम हो जायेंगी।

(2) विक्रेता अपनी बिक्री बढ़ाने हेतु ज्यादातर उत्पादों के विज्ञापन में यह दर्शाते हैं कि इस उत्पाद के साथ एक अन्य उत्पाद मुफ्त। इसमें क्रेता भ्रमित हो जाते हैं; जैसे-चाय के साथ हीरा, साबुन के साथ सोना।

(3) कभी-कभी व्यापारी अपने विज्ञापन में इस बात को कहता है कि वह अपने उत्पादों पर कुछ विशेष प्रकार की छूट दे रहा है। उपभोक्ता इस बात को सुनकर वस्तु को खरीदने का मन बना लेता है। लेकिन दुकान पर अपनी पसंद की चीज लेने पर कहा जाता है ‘छूट सिर्फ गिने-चुने उत्पादों पर ही है सब पर नहीं।’

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(iii) प्रतिस्पर्धा (Competition):
प्रतिस्पर्धा ऐसी गतिविधि है जिसके जरिए व्यक्ति अपनी सर्वोच्चता या सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास करता है। अपने प्रतिद्वन्द्वी से मुकाबला करता है तथा वह अपने उपभोक्ता को सबसे सुरक्षित, उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तु देना चाहता है ताकि उपभोक्ता को उसके उत्पाद से किसी भी प्रकार की हानि न पहुँचे और वह हमेशा उसी के द्वारा निर्मित उत्पाद का ही सेवन करें। ऐसा करने के लिए वह हरसम्भव प्रयत्न करता है तथा अपने ग्राहक को उच्चकोटि की वस्तु देकर हमेशा के लिए एक नाता जोड़ लेता है। यही कारण है कि हम किसी एक ही दुकान से किसी विशेष ब्राण्ड की वस्तु का ही चयन करते हैं क्योंकि उसके उपयोग से हमें सुरक्षा का अहसास होता है।

(iv) मानक (Standerds):
उपभोक्ता वस्तुओं में बढ़ती हुई मिलावट के कारण जनता पर होने वाल कुप्रभावों से बचाने के लिए यह जरूरी हो गया है कि बाजार में बिकने वाले पदार्थों का प्रमाणीकरण किया जाए ताकि उनकी किस्म को नियन्त्रित किया जा सके। उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा के लिए भारतीय ब्यूरो ने 17,000 से अधिक मानक बनाये हैं और 134 वस्तुएँ अनिवार्य मानकीकरण के दायरे में आती हैं। आमतौर पर यह कहा जाता है कि “मानक उत्पाद द्वारा उपभोक्ता की रक्षा होती है।” वर्तमान में हमारे देश में प्रमुख निम्नलिखित मानक प्रचलित हैं –

(1) एगमार्क (2005):
यह मुख्यत: कृषि उपज खाद्य पदार्थों जैसे-घी, तेल, मसाले, मक्खन, अण्डे, शहद आदि पर लगाया जाता है। एगमार्क के मापदण्ड बनाते समय खाद्य पदार्थों के रंग-रूप, संरचना, वर्णन एवं किस्म आदि के आधार पर उत्तम, अति उत्तम एवं सामान्य किस्म का वर्गीकरण किया जाता है। प्राकृतिक एवं निर्मित वस्तुओं की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं के आधार पर व्यापारियों को लाइसेन्स दिया जाता है एवं दोषी व्यापारियों के लाइसेंस रद्द किये जाते हैं। .

(2) एफ०पी०ओ० (2005):
इस चिह्न के अन्तर्गत वे सभी पदार्थ आते हैं जो फल एवं सब्जियों से निर्मित हैं तथा उच्च गुणवत्ता के द्योतक हैं। यह वस्तुओं की पैदावार से लेकर बिक्री तक न्यूनतम मापदण्डों को निर्धारित करता है। यह चिह्न अचार, मुरब्बे, चटनी, सॉस, शर्बत, जैम, जैली तथा डिब्बाबन्द खाद्य पदार्थों पर दिखाई देगा।

(ग) आई०एस०आई० (2005):
यह मार्क भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रारम्भ किया गया है। इस प्रचलित मार्क को प्रयोग में लाने हेतु संस्थान उत्पादकों को लाइसेंस देता है। इस योजना के अन्तर्गत वस्तु के पूरे उत्पाद की प्रक्रिया पर नियन्त्रण रखा जाता है। यह संस्थान किसी भी फर्म को लाइसेंस तब देता है, जबकि उसे यह विश्वास हो जाता है कि फर्म उसके द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप उत्पाद को बनाने योग्य है। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा समय-समय पर आई०एस०आई० मार्क वाली वस्तुओं का परीक्षण किया जाता है एवं यदि कोई उत्पादक मापदण्डों का पालन करते हुए न पाया गया तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता को उपभोक्ता सहायता की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:
उपभोक्ता को उपभोक्ता सहायता की निम्न कारणों से आवश्यकता पड़ती है –

  • यदि उपभोक्ता द्वारा लेबिल लगी हुई वस्तुओं को खरीदने पर भी वे घटिया किस्म की निकलती हैं तो उपभोक्ता सहायता की आवश्यकता पड़ती है।
  • उत्पादकों द्वारा अपने उत्पादों में मानक चिह्नों को गलत ढंग से उपयोग कर बाजार में वस्तुओं को बेचा जा रहा है, जिनके ___ कारण उपभोक्ता ठगे जाते हैं। इस स्थिति में उपभोक्ता सहायता की आवश्यकता होती है।
  •  विभिन्न भ्रामक विज्ञापनों द्वारा उपभोक्ता द्वारा खरीदी गई वस्तु खराब निकल जाने पर अथवा अत्यधिक महँगी वस्तु खरीदने पर उपभोक्ता सहायता की आवश्यकता पड़ती है। 4. घटिया माल देने पर, कम तौलने पर अथवा मिलावटी वस्तु खरीदने पर उपभोक्ता सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

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प्रश्न 5.
एक आदर्श लेबिल में किस प्रकार का विवरण होना चाहिए ?
उत्तर:
किसी भी पदार्थ के बारे में उसके डिब्बे, शीशी, टिन, थैली, ट्यूब अथवा पैकेट आदि पर अंकित विवरण को लेबिल कहते हैं। लेबिल अधिकतम छपे हुए होते हैं परन्तु कई बार ये लिखे हुए, मोहर लगे हुए या खुदे हुए भी हो सकते हैं। एक आदर्श लेबिल पर दिया गया विवरण इस प्रकार होना चाहिए।

  • वस्तु का नाम।
  • वस्तु को बनाने में प्रयुक्त सामग्री का विवरण।
  • प्रयोग में लाये गये प्रमुख पदार्थों का चित्र।
  • पदार्थ को तैयार करते समय प्रयोग में लाये गये रासायनिक पदार्थ, कृत्रिम रंग एवं सुगन्ध का विवरण।
  • ब्राण्ड का नाम।
  • व्यापार चिह्न।
  • तैयार पदार्थ का कुल भार सही इकाई में।
  • निर्माता का नाम एवं पता।
  • प्रमाणीकरण की मुहर एवं रजिस्ट्रेशन नम्बर।
  • निर्माण एवं उपयोग की अन्तिम तिथि।
  • पदार्थ का लाइसेन्स नम्बर, बैच नम्बर तथा कोड नम्बर।
  • प्रयोग में लेने एवं सुरक्षित रखने के निर्देश।
  • दवाइयों के सम्बन्ध में उसकी खुराक, मात्रा एवं उपयोग हेतु निर्देश।
  • सभी करों सहित अधिकतम खुदरा मूल्य।
  • यदि कोई चेतावनी हो तो जैसे आँख से दूर आदि।
  • मांसाहारी उत्पाद पर लाल रंग का एवं शाकाहारी वस्तुओं पर हरे रंग का प्रतीक चिह्न अनिवार्य रूप से छपा होना चाहिए।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करने हेतु मानक किस प्रकार सहयोगी है ? उचित उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा के लिए भारतीय मानक ब्यूरो ने 17,000 से अधिक मानक बनाये हैं और 134 वस्तुएँ अनिवार्य मानकीकरण के दायरे में आती हैं। उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करने हेतु वर्तमान समय में निम्न मानक प्रचलित हैं –

1. आई०एस०आई० मार्क:
यह मार्क भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रारम्भ किया गया है। इस संस्थान द्वारा वस्तु की गुणवत्ता उसमें उपयोग आने वाले कच्चे माल से लेकर तैयार माल तक बरकरार रखी जाती है जो कि विशेषज्ञों द्वारा तैयार किये गये माल के आधार पर होती है। यह संस्थान किसी भी फर्म को लाइसेंस तब देता है, जबकि उसे यह विश्वास हो जाता है कि फर्म उसके द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप उत्पादन को बनाने में योग्य है।

साथ ही इन मानदण्डों का सदैव पालन करेगी तथा अपनी वस्तु की किस्म हमेशा निर्धारित स्तर के अनुरूप रखेगी तथा ऐसा करने के लिए उसमें आवश्यक सामर्थ्य भी है। भारतीय मानक ब्यूरो आई०एस०आई० मार्क वाली वस्तुओं का समय-समय पर परीक्षण निर्माण के समय एवं बाजार में बेचते समय नमूने लेकर करता है। मापदण्डों का पालन न करने वाले उत्पादकों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है।

2. एगमार्क:
उपभोक्ता के हितों के संरक्षण हेतु एगमार्क के मापदण्ड बनाते समय खाद्य पदार्थों के रंग-रूप, संरचना, वर्णन एवं किस्म आदि के आधार पर उत्तम, अति उत्तम, अच्छा एवं सामान्य वर्गीकरण किया जाता है। जिस प्रकार प्रत्येक उत्पादक को आई०एस०आई० जैसी मोहर लगवाना अनिवार्य नहीं है उसी प्रकार एगमार्क का चिह्न लगवाना भी ऐच्छिक होता है। प्राकृतिक एवं निर्मित वस्तुओं की भौतिक तथा रासायनिक विशेषताओं के आधार पर व्यापारियों को लाइसेंस दिया जाता है। समय-समय पर वस्तुओं का निरीक्षण कर दोषी व्यापारियों का लाइसेन्स रद्द कर दिया जाता है।

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3. एफ०पी०ओ०:
एफ०पी०ओ० वस्तुओं की पैदावार से लेकर बिक्री होने तक पदार्थों के न्यूनतम मानदण्डों को निर्धारित करता है। यह फूड प्रोडक्ट आर्डर के नाम से जाना जाता है तथा उच्च गुणवत्ता का द्योतक है। यह चिह्न अचार, मुरब्बे, सॉस, चटनी, शर्बत, जैम, जैली तथा डिब्बाबन्द खाद्य पदार्थों पर दिखाई देगा। इस प्रकार मानकों द्वारा उपभोक्ता के हितों की रक्षा होती है, उपभोक्ताओं में विश्वास पैदा होता है एवं उन्हें अपने धन का पूरा लाभ मिलता है।

प्रश्न 7.
“विज्ञापन उपभोक्ताओं को जानकारी देने का एक सशक्त माध्यम है।” कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन उपभोक्ताओं को जानकारी देने का सशक्त माध्यम है क्योंकि उत्पादक उपभोक्ता से मीलों दूर होता है तथा उसके साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क रखने में असमर्थ होता है। वस्तुओं के मध्य बढ़ती स्पर्धा के कारण प्रतिदित वह उत्पाद की कोई नई किस्म तैयार करता है तथा उसके बारे में अधिक-से-अधिक उपभोक्ताओं को सूचित करना चाहता है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं को जानकारी देने का सबसे सरल एवं सबसे सशक्त माध्यम विज्ञापन ही है जिसकी वजह से वह अपने उपभोक्ताओं के बीच सम्पर्क रख सकता है।

प्रश्न 8.
आप भ्रामक विज्ञापनों से अपने आपको किस प्रकार सुरक्षित रखेंगे ?
उत्तर:
उपभोक्ता को भ्रामक विज्ञापनों; जैसे – इस टॉनिक को पीने से आप में शेर जैसी ताकत आ जायेगी, इस साबुन से एक सप्ताह में आपका रंग गोरा हो जायेगा तथा आप सुंदरी का खिताब जीने में सक्षम हो जायेंगी, साबुन के साथ सोना, कौन बनेगा लखपति, इस उत्पाद के साथ एक अन्य उत्पाद मुफ्त आदि विज्ञापनों को पढ़कर तुरन्त वस्तुओं को खरीद लेते हैं तथा उपभोग में लेने पर ज्ञात होता है कि निर्माता ने अपने उत्पाद का कुछ ज्यादा ही ऊँचा आकलन कर उपभोक्ताओं को बेवकूफ बनाया है। उपभोक्ता को भ्रामक विज्ञापनों की ओर ध्यान न देकर उपभोग में लाने योग्य वस्तुओं को क्रय करते समय उन पर लगे हुए लेबिल पर ध्यान देना चाहिए एवं वस्तुओं में मिलावट के कुप्रभावों से बचने के लिए मानकीकरण का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 9.
प्रतिस्पर्धा का लाभ किस प्रकार उपभोक्ताओं को मिलता है? समझाइये।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धा का लाभ उपभोक्ताओं को इस प्रकार मिलता है कि व्यापारी अपने प्रतिद्वन्द्वी से मुकाबला करने के कारण उपभोक्ता को सबसे सुरक्षित, उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तु देना चाहता है, ताकि उपभोक्ता को उसके उत्पाद से किसी भी प्रकार की हानि न पहुँचे तथा वह हमेशा उसी के द्वारा निर्मित उत्पाद का ही सेवन करें। ऐसा करने के लिए वह अपने ग्राहक को उच्चकोटि की वस्तु देकर हमेशा के लिए नाता जोड़ लेता है। यदि प्रतिस्पर्धा नहीं होगी तो उत्पादक उपभोक्ताओं के संरक्षण का ध्यान नहीं रखेगा।

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प्रश्न 10.
बुद्धिमत्तापूर्ण खरीददारी से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
बुद्धिमत्तापूर्ण खरीददारी से अभिप्राय है कि उपभोक्ता को वस्तुओं की खरीददारी करते समय निम्न बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए –

  • मिलावटी एवं घटिया किस्म के माल से बचने के लिए खुली वस्तु न खरीदकर लेबिल लगी हुई पैकेटबन्द वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए जिन पर वस्तु का पूरा विवरण; जैसे – मूल्य, मात्रा, कम्पनी का नाम, पता आदि साफ-साफ लिखा हो।
  • मिलावटी वस्तुओं के कुप्रभाव से बचने के लिए मानकीकरण के दायरे में आने वाली वस्तुओं को ही खरीदना चाहिए।
  • लुभावने विज्ञापनों से बचना चाहिए।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (PART-II)

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 अतिलघूत्तरीय प्रश्न (PART-II)

प्रश्न 1.
मुख्य उपभोक्ता सहायताएँ कौन-कौनसी हैं
उत्तर:
लेबल, मानक, विज्ञापन, प्रतिस्पर्धा एवं उपभोक्ता संरक्षण कानून।

प्रश्न 2.
लेबिल किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी भी पदार्थ के बारे में उसके डिब्बे, टिन, थैली, ट्यूब अथवा पैकेट आदि पर अंकित विवरण को ‘लेबिल’ कहते हैं।

प्रश्न 3.
लेबिल लगाने से उपभोक्ता को क्या लाभ होता है?
उत्तर:
लेबिल लगाने से प्रमुख लाभ यह है कि उपभोक्ता को पैकेट में रखे गये पदार्थों के बारे में विभिन्न जानकारी रहती है तथा वस्तुओं को पहचानने में सरलता रहती

प्रश्न 4.
उत्पादक किस संस्था द्वारा अपने उत्पाद को प्रमाणित करवाता है?
उत्तर:
उत्पादक ‘मानक’ संस्था द्वारा अपने उत्पाद को प्रमाणीकृत करवाता है।

प्रश्न 5.
डिब्बाबन्द वस्तु अधिनियम कब जारी किया गया?
उत्तर:
डिब्बाबन्द वस्तु अधिनियम (Package commodity act) सन् 1977 में जारी किया गया।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

प्रश्न 6.
वर्तमान में हमारे देश में कौन-से मानक प्रचलित हैं?
उत्तर:
वर्तमान में हमारे देश में निम्न मानक प्रचलित हैं –

  • आई०एस०आई० मार्क
  • एगमार्क
  • एफ०पी०ओ० मार्क।

प्रश्न 7.
बिजली की प्रेस पर कौन-सा मानक चिह्न होना चाहिए?
उत्तर:
बिजली की प्रेस पर आई०एस०आई मानक चिह्न होना चाहिए।

प्रश्न 8.
विज्ञापनों द्वारा उपभोक्ता भ्रमित कैसे हो जाता है?
उत्तर:
निर्माता द्वारा लुभावने, आकर्षक एवं एक ही विज्ञापन बार-बार दिखाने पर उपभोक्ता भ्रमित हो जाता है।

प्रश्न 9.
प्रतिस्पर्धा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रतिस्पर्धा ऐसी गतिविधि है जिसके जरिए व्यक्ति या विक्रेता अपनी सर्वोच्चता अथवा श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 10.
किसी बन्द खाद्य पदार्थ के पैकेट को देखकर आप कैसे पता करेंगे कि इसमें उपस्थित पदार्थ शाकाहारी है या मांसाहारी?
उत्तर:
पैकेट पर एक चौकोर बॉक्स में लाल बूंद मांसाहारी खाद्य पदार्थ का तथा हरी बूंद शाकाहारी खाद्य पदार्थ का प्रतीक होता है। ऐसे चिह्न को देखकर पता करेंगे।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 लघु उत्तरीय प्रश्न (PART-II)

प्रश्न 1.
सरकार ने बाजार में बेची जाने वाली बन्द पैकेट वाली वस्तुओं पर लेबिल लगाना क्यों प्रारम्भ किया?
उत्तर:
विक्रेताओं ने बढ़ती हुई जनसंख्या, खाद्य पदार्थों की उपलब्धि में कमी तथा महिलाओं की दोहरी भूमिका के फलस्वरूप पदार्थों में मिलावट करना एवं घटिया किस्म का माल उच्च दामों में बेचना प्रारम्भ कर दिया। परिणामस्वरूप सरकार ने बाजार में बेची जाने वाली बन्द पैकेट वाली वस्तुओं पर लेबिल लगाना प्रारम्भ कर दिया।

प्रश्न 2.
मानक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
मानक तीन प्रकार के होते हैं –

  • आई०एस०आई० – उदाहरण – खाद्य पदार्थों, बिजली के उपकरण, पाठ्य सामग्री आदि पर।
  • एगमार्क-कृषि उपज वाले खाद्य पदार्थों पर।
  • एफ०पी०ओ० – खाद्य उत्पादों जैसे – शर्बत, जैम आदि।

प्रश्न 3.
आई० एस० आई० तथा एग मार्क दिए जाने वाली कुछ वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
आई० एस० आई०. मार्क – बिस्कुट, बल्ब, पानी गर्म करने का हीटर, पैंसिल। एगमार्क-मसाले, वनस्पति घी, शहद, तेल।

प्रश्न 4.
आधुनिक युग में विज्ञापन के प्रचलित माध्यमों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में विज्ञापन के प्रचलित माध्यम निम्न प्रकार हैं –

  • समाचार पत्रिकायें,
  • प्रतिपर्ण
  • पोस्टर, चार्ट, होर्डिंग
  • रेडियो, लाउडस्पीकर
  • दूरदर्शन, सिनेमाघर
  • प्रदर्शनी एवं सेल द्वारा।

प्रश्न 5.
एक आदर्श लेबल के चार गुण लिखिए।
उत्तर:
एक आदर्श लेबल के चार गुण निम्न प्रकार हैं –

  • व्यापार का चिह्न।
  • ब्राण्ड का नाम।
  • प्रयोग में लाये प्रमुख पदार्थों का चित्र।
  • वस्तु का नाम।

प्रश्न 6.
कुछ व्यापारी आई० एस० आई० मार्क का दुरुपयोग कैसे करते हैं?
उत्तर:
कुछ व्यापारी अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए निम्न प्रकार आई० एस० आई मार्क का दुरुपयोग करते हैं –

  • चिह्न का उपयोग ऐसी वस्तुओं पर करते हैं जो निर्धारित मापदण्डों के अनुकूल नहीं है।
  • चिह्न का प्रयोग बिना लाइसेंस कर लेते हैं।
  • इस चिह्न की हूब-हू नकल करते हैं।
  • भारतीय मानक ब्यूरो के अनुरूप होने का दावा करते हैं।
  • आई० एस० आई० के नाम पर भ्रम फैलाते हैं।
  • उपभोक्ता से झूठ बोलते हैं कि वह आई० एस० आई० लाइसेंसधारी है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 33 उपभोक्ता संरक्षण एवं सहायता

RBSE Class 12 Home Science Chapter 33 निबन्धात्मक प्रश्न (PART-II)

प्रश्न 1.
उपभोक्ता संगठन क्या है ? इसके उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संगठन (Consumer organization):
उपभोक्ता को सशक्त बनाने के लिए इस बात पर बल दिया गया है कि उपभोक्ताओं को मिलजुल कर एक उपभोक्ता संगठन बनाना चाहिए। जिससे वे अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें। कोई भी उपभोक्ता, एक उपभोक्ता संगठन द्वारा अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है। साथ अपने आपको एक सुरक्षित उपभोक्ता बना सकता है।

उपभोक्ता सहायता हेतु ही विश्वभर में अनेक उपभोक्ता संगठनों का गठन हुआ है। उपभोक्ता हितों की रक्षा करने एवं उपभोक्ता शिकायतों के निवारण में इन संगठनों की अहम् भूमिका होती है। भारत जैसे देश में जहाँ अत्यधिक जनसंख्या एवं अज्ञानता है, उपभोक्ता संगठनों की आवश्यकता अधिक है।

उपभोक्ता संगठन के उद्देश्य:

  • उपभोक्ता के संरक्षण एवं हितों से सम्बन्धित सभी गतिविधियों की सहकारिता एवं सहभागिता को बढ़ावा देना।
  • उपभोक्ता शिक्षा प्रदान करना।
    उपभोक्ता सम्बन्धी जानकारी का आदान-प्रदान करना।
  • प्रत्येक उपभोक्ता की मूलभूत आवश्यकताएँ, जैसे-खाद्य पदार्थ, आवास, स्वास्थ्य, शुद्ध वातावरण आदि के अधिकारों को सुरक्षित करना।
  • उत्पाद परीक्षण एवं अनुसंधान करना।
  • उपभोक्ता का शोषण करने वालों के विपक्ष में उपभोक्ता अपने केस का प्रतिनिधित्व करने हेतु आत्मविश्वास जाग्रत करना।

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RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

August 9, 2019 by Prasanna Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था - 1

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) एक निषेचित अण्ड कोशिका से शिशु बनने तक का नौ माह सात दिन का अन्तराल कहलाता है –
(अ) बाल्यावस्था
(ब) गर्भावस्था
(स) शैशवावस्था
(द) युवावस्था
उत्तर:
(ब) गर्भावस्था

(ii) गर्भावस्था को कितने चरणों में बाँटा गया है?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) एक
उत्तर:
(ब) तीन

(iii) कम क्रियाशील गर्भवती महिला को प्रोटीन की आवश्यकता होती है –
(अ) 78.2
(ब) 75.2
(स) 82.2
(द) 55.0
उत्तर:
(स) 82.2

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

(iv) गर्भावस्था में अतिरिक्त लौह लवण एवं फोलिक अम्ल की आवश्यकता होती है –
(अ) अतिरिक्त ऊर्जा के लिए
(ब) हीमोग्लोबिन का स्तर बनाए रखने के लिए
(स) माता के वजन के लिए
(द) इन सभी के लिए।
उत्तर:
(ब) हीमोग्लोबिन का स्तर बनाए रखने के लिए

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. गर्भावस्था सामान्यतः…………सप्ताह की एक अस्थायी अवस्था है।
2. गर्भावस्था में वजन एवं शरीर के क्षेत्रफल की तीव्र गति से वृद्धि के कारण उपापचय दर…………तक बढ़ जाती है।
3. गर्भकाल में हॉर्मोनल परिवर्तनों के कारण…………समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
4. महिला की गर्भावस्था के समय कैल्सियम की आवश्यकता…………मि. ग्रा. होती हैं।
5. …………समूह के विटामिनों की आवश्यकताएँ ऊर्जा की आवश्यकताओं के अनुरूप बढ़ती हैं।

उत्तर:
1. 40
2. 10 ₹ 25 प्रतिशत
3. अनेक
4. 12
5. बी – 121

प्रश्न 3.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
1. रक्ताल्पता
2. पाचन संबंधी समस्याएँ
3. प्रातःकालीन वमन
4. गर्भवती महिला के लिए दैनिक संतुलित आहार
उत्तर:
1. रक्ताल्पता (Anaemia):
गर्भावस्था में शिशु के विकास के साथ-साथ महिला के शरीर में भी परिवर्तन आते हैं जिसके लिए उसे अधिक मात्रा में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में न सिर्फ गर्भिणी के भार में वृद्धि होती है, अपितु रक्त की मात्रा में भी 1 – 2 लीटर तक की वृद्धि होती है किन्तु रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा में इस अनुपात में वृद्धि नहीं हो पाती है।

परिणामस्वरूप गर्भवती स्त्री के हीमोग्लोबिन का स्तर; सामान्य (12 -14 ग्राम / 100 मिली.) से कम हो जाता है। इस स्थिति में यदि हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम / 100 मिली. रक्त से कम हो जाता है तो इसे रक्ताल्पता कहते हैं। यदि यह स्तर 7 – 8 ग्राम / 100 मिली. रक्त तक गिर जाने पर महिला के पोषण स्तर एवं शिशु के विकास दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

2. पाचन संबंधी समस्याएँ (Problems of Digestion):
गर्भावस्था में अनुचित भोजन का सेवन करने, दूषित पदार्थों के शरीर से बाहर न निकल पाने की स्थिति में पाचन संबंधी परेशानियाँ हो जाती हैं। ऐसे में पेट में गैस उत्पन्न होने लगती है तथा कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसकी वजह से सिरदर्द, छाती में जलन तथा बवासीर जैसा कष्ट भी हो सकता पाचन संबंधी समस्याओं से बचने के लिए रेशेयुक्त भोज्य पदार्थों का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए तथा शौच-निवृत्ति में नियमितता रखनी चाहिए। प्रात:काल नियमित रूप से टहलने, फलों का सेवन करने से भी पाचन संबंधी समस्याएँ नहीं होती हैं। रात्रि में दूध में मुनक्का अथवा अंजीर उबालकर पीने से भी पाचन संबंधी समस्या नहीं होती।

3. प्रातःकालीन वमन:
गर्भावस्था के प्रथम 2-3 माह में गर्भवती महिला को प्रात: उठते ही चक्कर आना, जी मिचलाना, उबकाई तथा वमन आने की समस्या रहती है। यह समस्या शरीर में हॉर्मोन परिवर्तन तथा गर्भाशय में भ्रूण की उपस्थिति से महिला का सामंजस्य न होने से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। यद्यपि तीन माह के बाद यह समस्या स्वत: ही ठीक हो जाती है।

यदि ऐसा न हो एवं वमन पूरे दिर भर या लम्बे समय तक होती रहे तो निर्जलीकरण या विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न होने की आंशका रहती है। महिला उचित ढंग से आहार नहीं ले पाती है एवं उसके पोषण स्तर पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में चिकित्सक से परामर्श लेना अनिवार्य है। महिला को प्रात: उठते ही थोड़ा-सा ठोस आहार; जैसे-बिस्कुट, भुने चने आदि खाने चाहिए इसके बाद ही तरल पदार्थ लेने चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

4. गर्भवती महिला के लिये दैनिक संतुलित आहार:
गर्भवती महिला के लिये दैनिक संतुलित आहार अग्रतालिका के अनुसार देना चाहिए
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था - 1
नोट-माँसाहारी महिला 30 ग्राम दाल के बदले 50 ग्राम अण्डा/माँस, मछली इत्यादि का उपयोग कर सकती है।

प्रश्न 4.
गर्भावस्था महिलाओं के जीवन में आने वाली एक अस्थाई एवं विशिष्ट अवस्था है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गर्भावस्था : एक अस्थायी अवस्था(Pregnancy : A Temporal Phase):
गर्भावस्था महिला के जीवन का एक अस्थायी काल है। गर्भ धारण करने की सामान्य आयु 15 वर्ष से 45 वर्ष होती है। जब माता के गर्भाशय में एक निषेचित अण्डाणु कोशिका वृद्धि तथा विकास द्वारा एक स्वस्थ, सुंदर एवं सजीव शिशु का रूप लेती है, वह अवस्था गर्भावस्था कहलाती है जिसकी सामान्य अवधि 9 माह या 40 सप्ताह की होती है।

गर्भावस्था : एक विशिष्ट अवस्था (Pregnancy : A Special Phase)
गर्भावस्था अस्थायी होने के साथ – साथ विशिष्ट भी होती है। इस अवस्था में एक निषेचित अण्डाणु कोशिका 9 माह के सफर में पहले एक भ्रूण तथा इसके पश्चात् गर्भस्थ शिशु का रूप धारण करती है। जिसका वजन जन्म के समय लगभग 3 किलो होता है। गर्भावस्था के दौरान माता तथा शिशु दोनों में वृद्धि तथा विकास विशिष्ट परिवर्तनों की अवस्थाओं से गुजरता है। इसलिए गर्भावस्था को एक अस्थाई तथा विशिष्ट अवस्था माना जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

प्रश्न 5.
गर्भवती महिला हेतु आहार आयोजन करते समय महत्त्वपूर्ण बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
गर्भवती महिला के लिए आहार व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  •  एक ही बार में अधिक मात्रा में भोजन न देकर 5-6 बार में थोड़ा-थोड़ा करके भोजन दें।
  • प्रात:काल कुछ ठोस पदार्थ; जैसे – बिस्कुट, टोस्ट, चने आदि देने के उपरान्त ही तरल पदार्थ; जैसे-चाय, कॉफी, दूध, छाछ इत्यादि दें।
  • गर्भवती को अधिक तला-भुना व गरिष्ठ भोजन नहीं देना चाहिए।
  • गर्भवती के लिए आहार – आयोजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह गर्भावस्था के किस चरण में है? क्योंकि गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में पौषणिक आवश्यकताएँ भी भिन्न होती हैं।
  • कब्ज की समस्या से बचने हेतु मैदे की रोटी तथा इससे बने अन्य पदार्थों के सेवन से बचें।
  • तरल पदार्थ; जैसे – जल, दूध, छाछ, फलों का रस, नींबू की शिकंजी आदि का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें।
  • छिलके तथा चोकरयुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन अधिक करें।
  • रेशेयुक्त फल, साबुत दालों, छिलके वाली दालों, फलों आदि को अपने भोजन में वरीयता देनी चाहिए।
  • बादीकारक भोज्य पदार्थ कम मात्रा में लेने चाहिए।
  • रात को सोते समय गुनगुने दूध के साथ ईसबगोल की भूसी लेने से कब्ज में फायदा होता है।
  • चिकित्सक जिस भी दवा के लिए लिखें उसका सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।
  • रात्रि में सोने से कम – से – कम 2 – 3 घण्टे पूर्व हल्का तथा सुपाच्य भोजन लें।
  • गर्म पेय पदार्थ जैसे चाय या कॉफी का सेवन कम करें।
  • मादक पदार्थों अथवा तम्बाकू का सेवन बिल्कुल भी न करें। 15. भोजन में सलाद तथा मौसमी फलों का उपयोग अवश्य करें।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गर्भावस्था कितने सप्ताह की होती है?
(अ) 36 सप्ताह की
(ब) 40 सप्ताह की
(स) 45 सप्ताह की
(द) 42 सप्ताह की
उत्तर:
(ब) 40 सप्ताह की

प्रश्न 2.
गर्भधान से दो सप्ताह तक की अवस्था कहलाती है –
(अ) डिम्बावस्था
(ब) भ्रूणावस्था
(स) गर्भस्थशिशु अवस्था
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) डिम्बावस्था

प्रश्न 3.
गर्भवती महिला के शरीर भार में कितनी वद्धि होती है?
(अ) 8 – 10 किग्रा
(ब) 6 – 8 किग्रा
(स) 10 – 12.5 किग्रा
(द) 12 – 16 किग्रा
उत्तर:
(स) 10 – 12.5 किग्रा

प्रश्न 4.
गर्भकाल में वजन एवं शरीर दोनों के वृद्धि होने से उपापचय दर बढती है –
(अ) 20 प्रतिशत
(ब) 10 – 25 प्रतिशत
(स) 10 प्रतिशत
(द) 5 – 10 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 10-25 प्रतिशत

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

प्रश्न 5:
गर्भकाल में रक्त की कुल मात्रा में वृद्धि होती है –
(अ) 2 लीटर
(ब) 1 लीटर
(स) 1 से 2 लीटर
(द) 3 लीटर
उत्तर:
(स) 1 से 2 लीटर

प्रश्न 6.
गर्भकाल में कैल्सियम की कितनी मात्रा प्रतिदिन दी जानी चाहिए?
(अ) 1.2 ग्राम
(ब) 2 ग्राम
(स) 3 ग्राम
(द) 2.5 ग्राम
उत्तर:
(अ) 1.2 ग्राम

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(अ) एक कोशिका से पूर्ण परिपक्व शिशु विकसित होने का अन्तराल…………कहलाता है।
(ब) गर्भावस्था में वजन और…………दोनों के क्षेत्रफल में तीव्र गति से वृद्धि होती है।
(स) गर्भावस्था में त्वचा…………रंग की हो जाती है व पेशियाँ ढीली व…………हो जाती है।
(द) प्रोजेस्ट्रान हॉर्मोन के अधिक स्रवण से…………मुलायम होकर ढीली पड़ जाती है।
(य) प्रोटीन की पूर्ति के लिये गर्भिणी को अपने…………में………… वाले खाद्य पदार्थ लेने चाहिए।
(र) ग्रीष्म ऋतु में गर्भिणी को जल की मात्रा…………देनी चाहिए।

उत्तर:
(अ) गर्भावस्था
(ब) शरीर
(स) नीले, लचीली
(द) पेशियाँ
(य) उच्च गुणवत्ता
(र) बढ़ा।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 अति लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था की अवधि कितनी होती है ?
उत्तर:
गर्भावस्था की अवधि 9 माह या 40 सप्ताह होती है।

प्रश्न 2.
गर्भावस्था क्या है?
उत्तर:
गर्भाशय में शुक्राणु द्वारा निषेचित अण्डाणु से शिशु के बनने तक 9 माह की अवधि गर्भावस्था कहलाती है।

प्रश्न 3.
गर्भावस्था किस प्रकार की अवस्था होती
उत्तर:
गर्भावस्था महिलाओं के जीवन में आने वाली एक अस्थाई और विशिष्ट शारीरिक अवस्था है।

प्रश्न 4.
महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा 12-14 ग्राम/100 मिली रक्त होती है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

प्रश्न 5.
गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप की सम्भावना क्यों हो जाती है?
उत्तर:
गर्भ में पल रहे शिशु के कारण हृदय पर रक्त के परिवहन का अतिरिक्त कार्य-भार पड़ने से उच्च रक्तचाप की सम्भावना हो जाती है।

प्रश्न 6.
गर्भावस्था में प्रायः किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
गर्भावस्था में प्रायः रक्ताल्पता, उच्च रक्तचाप, सजन, अपच तथा प्रात:कालीन वमन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 7.
गर्भावस्था में अतिरिक्त पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
गर्भस्थ शिशु की वृद्धि एवं विकास गर्भवती स्त्री के शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर होता है। अतः गर्भिणी को अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 8.
महिलाओं में हीमोग्लोबिन के किस स्तर से नीचे हो जाने पर रक्ताल्पता मानी जाती है?
उत्तर:
हीमोग्लोबिन स्तर 11 ग्राम/100 मिली. रक्त से कम हो जाने पर महिला को रक्ताल्पता की अवस्था में माना जाता है।

प्रश्न 9.
गर्भावस्था में माँसपेशियों में ऐंठन किस तत्व की कमी के कारण होती है?
उत्तर:
कैल्सियम तत्व की कमी के कारण।

प्रश्न 10.
गर्भावस्था में अतिरिक्त कैल्सियम की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
गर्भ में बढ़ते शिशु की अस्थियों एवं दाँतों के निर्माण के लिए अतिरिक्त कैल्सियम की आवश्यकता होती

प्रश्न 11.
गर्भावस्था में नमक का सेवन कम क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
नमक के अत्यधिक सेवन से सूजन की सम्भावना बढ़ जाती है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला किस प्रकार की चीजें खाना अधिक पसन्द करती हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला खाने की कुछ चीजों से अधिक लगाव तथा कुछ चीजों से विशेष घृणा करने लगती हैं। उन्हें अखाद्य चीजें; जैसे-चॉक, चूना, स्लेट की बत्ती, मिट्टी, कुल्लड़, चिप्स, पेन्ट की पपड़ी, बर्फ खाना अधिक पसन्द होता है।

प्रश्न 2.
गर्भावस्था के प्रथम 2 – 3 माह में महिला को प्रायः चक्कर आना, जी मिचलाना, वमन करना आदि का क्या कारण है?
उत्तर:
गर्भावस्था के प्रथम 2 – 3 माह में महिला को सुबह-सुबह उठते ही चक्कर आना, बीमार-सा महसूस करना, जी मिचलाना, उबकाई आना व उल्टी आने की समस्याएँ रहती हैं। ऐसा शरीर में हॉर्मोन परिवर्तन तथा गर्भाशय में भ्रूण की उपस्थिति से महिला का सामंजस्य नहीं हो पाने से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। इस स्थिति में महिला को सुबह उठते ही थोड़ा-सा ठोस आहार; जैसे – टोस्ट, बिस्कुट, ब्रैड आदि लेना चाहिए।

प्रश्न 3.
गर्भावस्था में रक्ताल्पता क्यों होती है ? इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
गर्भावस्था में वजन बढ़ने के साथ-साथ रक्त की कुल मात्रा में भी 1-2 लीटर तक की वृद्धि होती है। लेकिन तरल रक्त में वृद्धि होने के साथ-साथ हीमोग्लोबिन में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाती जिससे हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य स्तर 12-14 ग्राम प्रति मिली. से कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम / 100 मिली. से कम होने पर रक्ताल्पता की अवस्था मानी जाती है। भयंकर रक्ताल्पता होने पर महिला के पोषण-स्तर एवं शिशु के विकास दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 4.
रक्ताल्पता से निपटने के लिए गर्भवती महिला को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
रक्ताल्पता से निपटने के लिए गर्भवती महिला को लौह तत्व से भरपूर भोज्य पदार्थों का नियमित सेवन करना चाहिए। चिकित्सक द्वारा दी गई लौह तत्व एवं फोलिक अम्ल की गोलियों का चिकित्सीय निर्देशों के अनुरूप नियमित सेवन करना चाहिए। उच्च रक्तचाप एवं सूजन की स्थिति में भोजन में नमक का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

प्रश्न 5.
गर्भावस्था में बी समूह के विटामिनों की क्यों आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बी-समूह की विटामिन; जैसे – थायमीन, राइबोफ्लेविन व नियासिन की आवश्यकताएँ ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुरूप बढ़ती हैं, क्योंकि ये तीनों विटामिन ऊर्जा के उपापचय अर्थात् कार्बोज, वसा व प्रोटीन का ऑक्सीकरण कर ऊर्जा मुक्त करके उपयोग में आते हैं। गर्भस्थ शिशु की वृद्धि व विकास के लिए विटामिन बी-12 व ए की अतिरिक्त आवश्यकता बहुत कम है जिनकी आपूर्ति प्रतिदिन के लिए प्रस्तावित सामान्य मात्राओं से ही हो जाती है।

प्रश्न 6.
गर्भावस्था में पोषण सम्बन्धी निम्न समस्याओं को समझाइए –
1. रक्ताल्पता,
2. पैरों से बायटें आना
उत्तर:
1. गर्भावस्था में वजन बढ़ने के साथ-साथ रक्त की कुल मात्रा में भी 1-2 लीटर तक की वृद्धि होती है। लेकिन तरल रक्त में वृद्धि होने के साथ – साथ हीमोग्लोबिन में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाती जिससे हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य स्तर 12-14 ग्राम प्रति मिली. से कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम / 100 मिली. से कम होने पर रक्ताल्पता की अवस्था मानी जाती है। भयंकर रक्ताल्पता होने पर महिला के पोषण – स्तर एवं शिशु के विकास दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

2. पैरों में बायटे आना-गर्भावस्था में माता एवं गर्भस्थ शिशु के लिए कैल्सियम तत्व की अत्यधिक आवश्यकता होती है। यदि ऐसी स्त्री के भोजन में कैल्सियम की कमी हो जाती है तो पैरों में बायटे आ जाते हैं। इस स्थिति में पैरों पर अत्यधिक सूजन आ जाती है।

प्रश्न 7.
गर्भावस्था में महिलाओं को पाचन सम्बन्धी समस्याओं से निपटने के लिए क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर:
गर्भावस्था में गर्भवती स्त्री को पाचन सम्बन्धी विभिन्न परेशानियाँ होती हैं। इन परेशानियों एवं कष्टों से बचने के लिए उसकी आहार व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन करने चाहिए –

  • गर्भवती महिला को एक बार में भरपेट भोजन न करके 5-6 बार में थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिए।
  • भोजन में जल व रेशेयुक्त भोज्य पदार्थों की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए।
  • भोजन में प्राकृतिक रेचक भोज्य पदार्थों को सम्मिलित करना चाहिए।
  • आहार एवं शौच के समय में नियमितता बरतनी चाहिए।
  • शौच जाने से पहले गुनगुने पानी में नींबू का रस पीना चाहिए।
  • हल्का – फुल्का व्यायाम करते रहें, जिससे पेशीय गतिशीलता बनी रहे।
  • भोजन में पौष्टिक तत्वों की उपयुक्त मात्रा उपस्थित हो।
  • भोजन में मिर्च-मसालों का कम प्रयोग करना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 16 विशिष्ट अवस्था में पोषण- गर्भावस्था

RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था के दौरान कौन-कौन से आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था के दौरान आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन (Physiological changes during pregnancy)गर्भावस्था एक ऐसी अवस्था है जब माता के शरीर में सबसे अधिक परिवर्तन होते हैं। इस दौरान स्त्री के शरीर में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –

(1) आधारीय उपापचय की दर में बढ़ोत्तरी:
गर्भावस्था में स्त्री के शरीर का आकार तथा शारीरिक वजन बढ़ जाने के कारण तथा विकास की तीव्र गति होने के कारण माता के शारीरिक अवयवों की क्रियाएँ बढ़ जाती हैं। ऐसा होने से आधारीय उपापचय की दर बढ़ जाती है।

(2) पाचन क्रिया का प्रभावित होना:
इस अवस्था में माता के शरीर में होने वाले परिवर्तनों से पाचन क्रिया भी प्रभावित हो जाती है। जी मिचलाना, उल्टियाँ होना, कब्ज रहना आदि सामान्य रोग गर्भवती स्त्रियों को प्रायः हो जाते हैं।

(3) गुर्दे का कार्य प्रभावित होना:
कैल्सियम, लोहा आदि तत्वों की अवशोषण क्षमता, गर्भावस्था के दौरान बढ़ जाने के कारण गुर्दो का कार्य-भार भी बढ़ जाता है। स्त्री के गुर्दे उसके शरीर के वर्ण्य पदार्थों के अतिरिक्त भ्रूण के वर्ण्य पदार्थों का भी उत्सर्जन करते हैं। गर्भावस्था के मध्य भाग में पानी का उत्सर्जन बढ़ जाता है। मूत्र में अमीनो अम्ल तथा आयोडीन के विसर्जन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

(4) रक्त संगठन में परिवर्तन:
गर्भावस्था में रक्त संगठन में परिवर्तन आ जाता है। शरीर में रक्त की मात्रा में वृद्धि के साथ – साथ हीमोग्लोबिन की कुल मात्रा में वृद्धि हो पाती व हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य (12-14 ग्राम/100 मिली.) से नीचे गिर जाता है। रक्त के सीरम में प्रोटीन की कमी हो जाती है।

(5) उच्च रक्तचाप व शिराओं का फूलना:
इस अवस्था में अधिक रक्त परिवहन का कार्य-भार हृदय पर पड़ने से उच्च रक्तचाप हो जाता है व अधिक रक्त को बहने देने के लिए शिराएँ विस्फारित होकर फूल जाती हैं।

(6) उपापचय की दर में वृद्धि:
इस अवस्था में विविध हॉर्मोनों की क्रियाशीलता में भी वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप उपापचय की दर में वृद्धि हो जाती है।

(7) उदर की पेशियों का ढीला व लचीला हो जाना:
उदर की पेशियाँ ढीली व लचीली होकर गर्भावस्था की वृद्धि के लिए स्थान देती हैं। उदर प्रदेश की त्वचा में खिंचाव से लम्बी-लम्बी धारियों के निशान पड़ जाते हैं।

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(8) अन्य परिवर्तन:
प्रसव के लिए योनि मार्ग व ग्रीवा की श्लेष्मिक झिल्ली मोटी हो जाती है। रक्त कोशिकाओं का जाल बढ़ जाता है, त्वचा नीले रंग की हो जाती है व पेशियाँ ढीली व लचीली हो जाती हैं। साथ – ही – साथ श्रोणि मेखला के जोड़ व स्नायु भी ढीले पड़ जाते हैं, जिससे प्रसव के समय शिशु को बाहर आने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।

प्रश्न 2.
गर्भवती महिला की पौषणिक आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गर्भवती महिला की पौषणिक आवश्यकताएँ (Nutritive needs of an expectant mother):
गर्भवती महिला को अपने साथ-साथ अपने गर्भस्थ शिशु के पोषण की आवश्यकता होती है। गर्भिणी की पौषणिक आवश्यकताओं का वर्णन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं –

ऊर्जा (Energy):
शिशु की वृद्धि तथा गर्भवती महिला के स्वयं के शरीर में आने वाले परिवर्तनों के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसके लिए गर्भवती महिला को उचित मात्रा में घी, तेल, शर्करा तथा मेवों का सेवन करना चाहिए।

प्रोटीन (Protein):
कोशिकाओं की वृद्धि तथा विकास हेतु प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अत: दूध, पनीर, अण्डा, मछली, माँस, सोयाबीन, सूखे मेवे आदि का प्रथम 6 माह में उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए।
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विटामिन (Vitamin):
गर्भावस्था में विटामिन्स की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। विशेष रूप से विटामिन ‘डी’ की आवश्यकता होती है, क्योंकि शरीर में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस का प्रयोग इसी के संयोग से होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन A, B, C तथा E भी आवश्यक हैं। थायमिन, राइबोफ्लोविन एवं नियासिन की आवश्यकताएँ ऊर्जा की आवश्यकताओं के अनुरूप बढ़ती हैं।
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जल एवं रेशेयुक्त भोजन (Water and roughage):
गर्भवती महिला को जल तथा अन्य तरल पेय पदार्थों (Liquids) का सेवन पहले से अधिक मात्रा में करना चाहिए। कब्ज की समस्या से बचने के लिए रेशेयुक्त भोज्य पदार्थों; जैसे-ईसबगोल की भूसी, चोकर युक्त आटा, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए।

खनिज लवण (Minerals):
गर्भस्थ शिशु माता की हड्डियों में संचित लवणों का शोषण करके अपनी पूर्ति कर लेता है तथा इस समय गर्भवती महिला को कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा लौह तत्वों की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। अत: दूध, फल, पालक, पत्तागोभी, शलजम का सेवन करना चाहिए।
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वसा (Fats):
वसा की अधिक मात्रा को गर्भवती महिला के भोजन में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। किन्तु फिर भी कुछ मात्रा में घी, मक्खन, चावल, आलू आदि का उपयोग आवश्यक है।

प्रश्न 3.
एक कम क्रियाशील गर्भवती महिला का आहार-आयोजन करते वक्त आप किन – किन बातों का ध्यान रखेंगे? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
एक कम क्रियाशील गर्भवती महिला का आहार-आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
एक कम क्रियाशील गर्भवती महिला को प्रतिदिन कम – से – कम 2000 कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि गर्भ में विकसित हो रहे शिशु को माता के आहार द्वारा ही पोषण मिलता है।

इस समय गर्भिणी के आहार में कार्बोज की मात्रा कम कर देनी चाहिए तथा प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि कर देनी चाहिए। कम क्रियाशील गर्भवती स्त्री के लिए 20 ग्रा. वसा प्रतिदिन के हिसाब से पर्याप्त है। इस समय गर्भवती स्त्री को खनिज लवणों तथा विटामिन की अधिक आवश्यकता होती है।

गर्भिणी के लिए अधिक तला-भुना तथा मसालेयुक्त घी, मक्खन, आलू, चावल वाले भोजन का कम प्रयोग करना चाहिए। चोकर युक्त अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियों, फलों के रस, सलाद को वरीयता देनी चाहिए। एक ही बार में अधिक मात्रा में भोजन न देकर 5-6 बार में थोड़ा-थोड़ा करके भोजन दें।

प्रात:काल ठोस पदार्थ; जैसे – बिस्कुट, चने इत्यादि देने के उपरान्त ही तरल पेय दूध, छाछ, चाय इत्यादि दें। भोजन में खून बढ़ाने वाले तथा भ्रूण के निर्माण में सहायक तत्वों; जैसे – प्रोटीन, लौह तत्व आदि को उचित मात्रा में सम्मिलित करना चाहिए। दूध, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियों का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए।

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कम क्रियाशील गर्भवती महिला के लिए पौष्टिक तत्वों की दैनिक प्रस्तावित आहारिक मात्राएँ 1989 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् द्वारा इस प्रकार प्रस्तुत की गई हैं –
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RBSE Class 12 Home Science Chapter 16 प्रयोगात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भवती महिला के लिये संतुलित व आहार (भोजन इकाइयों सहित) तालिका बनाइये।
उत्तर:
गर्भवती महिला के लिए दैनिक सन्तुलित आहार-तालिका
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प्रश्न 2.
एक मध्यम क्रियाशील महिला के लिए एक दिन के आहार-आयोजन तालिका बनाइये।
उत्तर:
मध्यम क्रियाशील महिला के लिए एक दिन का आहार – आयोजन भोजन का
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नोट-मसाले, हरी मिर्च, हरा धनिया, लहसुन आदि का प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है। अत: उपरोक्त तालिका में इनका उल्लेख नहीं किया गया है।

दिन भर के भोजन में भोज्य इकाइयों का विभाजन एवं कुल योग
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ऊपर दी गई आहार – आयोजन तालिका से एक मध्यम श्रम करने वाली गर्भवती महिला को सभी पौष्टिक तत्त्वों की दैनिक आवश्यकताएँ प्राप्त होंगी। उपरोक्त आहार अनुसार वांछित परिवर्तन करते हुए कम श्रम एवं कठोर श्रम करने वाली गर्भवती महिला के लिए आहार-आयोजन आप स्वयं करे। आहार आयोजन करते समय अध्याय में दर्शाये गए सुझावों को ध्यान में रखे।

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RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 11 गाँधीवाद

August 6, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 11 गाँधीवाद

  • गाँधीजी के विचारों और आदर्शों का ही दूसरा नाम गाँधीवाद है। वर्तमान में, गाँधीजी के इन्हीं विचारों तथा आदर्शों को ”गाँधी दर्शन”, ‘गाँधीवादी राजनीतिक दर्शन” तथा ”गाँधीवाद” इत्यादि नामों से जाना जाता है।
  • गाँधी स्वयं किसी ‘वाद’, सम्प्रदाय या सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते थे और न ही अपने पीछे किसी प्रकार का ‘वाद’ छोड़ना चाहते थे। उनका तरीका प्रयोगात्मक अनुभववादी तथा वैज्ञानिक था।

गाँधी व उनके जीवन मूल्य:

  • गाँधी जी राजनीति को पवित्र करना चाहते थे तथा उसे धर्म और न्याय पर आधारित करना चाहते थे। गाँधी व्यक्ति में प्रेम और स्वतन्त्रता का संचार करना चाहते थे; व्यक्ति को पुरुषार्थ का महत्त्व समझना चाहते थे।
  • बी.पी. सीतारमैया के शब्दों में, ‘गाँधीवाद सिद्धान्तों का, मतों का, नियमों का, विनियमों को और आदेशों का समूह नहीं है। वह जीवन शैली या जीवन दर्शन है। यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है तथा मनुष्य के जीवन तथा समस्याओं लिए प्राचीन समाधान प्रस्तुत करता है।’

गाँधीवाद विचारों का एक समूह मात्र:

  • गाँधीजी ने जीवन की भिन्न-भिन्न समस्याओं पर परिस्थितिजन्य विचार व्यक्त किये हैं। उनका नाम किसी एक ‘ विचार से सम्बन्धित नहीं किया जा सकता है। गाँधीजी के आदर्शों के जो आधार थे- सत्य, अहिंसा, प्रेम भ्रातृभाव।
  • गाँधीजी समूहवादी विचारक थे उनके विचारों में भारतीय व पाश्चात्य दोनों श्रेणी के विचारकों के विचारों का प्रभाव दिखाई देता है। वह महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, सुकरात, थोरो, क्रोपोटकिन एवं रस्किन के विचारों से प्रभावित थे।
  • गाँधीजी आध्यात्मिक समाजवाद के प्रतिपादक थे, इसलिए उन्होंने इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या की थी। उन्होंने केवल भौतिक कार्यकलापों या भौतिकवाद को सभ्यता व सँस्कृति का वाहक नहीं माना। उन्होंने गहन आन्तरिक विकास पर बल दिया।
  • गाँधीजी मार्क्स की इतिहास की भौतिक व्याख्या, वर्ग संघर्ष और हिंसा के प्रयोग के घोर विरोधी थे, वे केवल कार्यों में बल्कि विचारों और भावनाओं में भी हिंसा को स्वीकार नहीं करते थे।
  • गाँधीजी ने अपने विचारों की व्याख्या अंपनी रचनाओं विशेषकर हिन्द स्वराज्य, आत्मकथा और पत्रिकाओं विशेषकर हरिजन, यंग इण्डिया, इण्डियन ओपीनियन, नवजीवन, आर्यन पथ और अनेक भाषणों में की है।

गाँधीवाद के स्रोत:

  • गाँधीजी के विचारों पर चार प्रकार के प्रभाव नजर आते हैं-
    • धार्मिक ग्रन्थों का प्रभाव,
    • दर्शन का प्रभाव,
    • सुधारवादी आन्दोलनों का प्रभाव और
    • सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव।
  • गाँधीजी के विचारों पर अनेक दार्शनिकों का प्रभाव था जिनमें से मुख्य हैं- जॉन रस्किन, हेनरी डेविड थोरो, लियो टॉलस्टाय व सुकरात।
  • भारत की असहाय अवस्था और गरीबी का प्रभाव भी गाँधी जी के विचारों पर पड़ा जो उनके समाजवादी विचारों को आधार था।

दक्षिण अक्रीका गाँधी जी के प्रयोगों की प्रयोगशाला:

  • दक्षिण अफ्रीका गाँधीजी के प्रयोग की प्रयोगशाला थी वहीं पर उनकी धार्मिक चेतना का विकास हुआ, वहीं पर उन्होंने पश्चिम के लेखकों की विचारधाराओं का अध्ययन किया।
  • गाँधीजी के राजनीतिक दर्शन सत्याग्रह का विकास, श्वेत जातिवाद के प्रतिरोध में हुआ तथा उसका प्रारम्भिक प्रयोग भी उन्होंने वहीं किये । वहीं पर उनमें नि:स्वार्थ मानव सेवा की भावना पैदा हुई।

राजनीति का आध्यात्मीकरण:

  • गाँधीजी के लिए धर्म और राजनीति एक ही कार्य के दो नाम है। उनका विश्वास है कि राजनीति का उद्देश्य धर्म के उद्देश्य की तरह, उन सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन लाना है, जो अन्याय, अत्याचार तथा शोषण पर आधारित है तथा समाज में न्याय तथा न्यायपरायणता की व्यवस्था करना है।

साध्य और साधनों की पवित्रता:

  • गाँधीजी के विचारों की यह विशेषता है कि इनमें साध्य और साधन में कोई भिन्नता नहीं। वह कहा करते थे, मेरे | जीवन दर्शन में कोई भिन्नता नहीं।
  • गाँधीजी के लिए अपवित्र साधनों का प्रयोग तो दूर उनकी कल्पना भी त्याज्य थी। गाँधीजी छल,कपट, हत्या और पशु बल के द्वारा स्वराज्य प्राप्त करने के इच्छुक नहीं थे।
  • मानव प्रकृति- प्रत्येक दर्शन मानव की परिभाषा या मानव प्रकृति के विश्लेषण से ही आरम्भ होता है। कुछ के लिए जैसे मैक्यावली तथा हाब्स, मानव को झगड़ालू, स्वार्थी तथा ईष्र्यालु तथा वहीं रुसो ने शान्त एवम् न्यायप्रिय माना।
  • अहिंसा — अहिंसा का अर्थ है मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात् किसी का दिल न दुखाना। अहिंसक व्यक्ति प्रेम, दया, क्षमा, सहानुभूति और सत्य की मूर्ति होता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता।
  • सत्याग्रह की उत्पत्ति — सत्याग्रह शब्द की उत्पत्ति गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में की थी। इंग्लैण्ड और दक्षिण अफ्रीका में चल रहे निष्क्रिय प्रतिरोध में भेद दिखाने के लिए भी इस शब्द की उत्पत्ति की गई थी।
  • सत्याग्रह का अर्थ — साधारण भाषा में सत्याग्रह बुराई को दूर करने अथवा विवादों को अहिंसक तरीकों से दूर करने का तरीका है। साधारण भारतीय नागरिक के लिए यह भारतीयों की अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध स्वन्त्रता की लड़ाई का तरीका था।

असहयोग तथा उसके स्वरूप:

  • गाँधीजी के अनुसार बुराई के साथ असहयोग करना न केवल व्यक्ति का कर्तव्य है बल्कि उसका धर्म भी है। असहयोग निम्नलिखित रुप धारण कर सकता है।
  • हड़ताल- विरोध स्वरूप कार्य को स्वेच्छापूर्वक बन्द करने को हड़ताल कहते हैं। हड़ताल स्वेच्छापूर्वक तथा अन्तः शुद्ध के लिए आत्मोत्सर्ग है जो अनुचित मार्ग पर जाने वाले विरोधी का हृदय परिवर्तन करने वाली होती है।’
  • सामाजिक बहिष्कार- सामाजिक बहिष्कार एक बहुत पुरानी परम्परा है जिसका उद्भव जातियों के उदय के साथ हुआ । यह निषेधात्मक है और एक ऐसा भयंकर दण्ड हैं जिसका प्रयोग बड़े प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। जिस व्यक्ति का बहिष्कार किया जाता है उसे समाज द्वारा एक प्रकार का दण्ड दिया जाता है।
  • धरना — धरना देने का उद्देश्य ‘‘विचारों को बदलने” से है। यह अनिवार्य रूप से शान्तिमय होना चाहिए। इसमें असभ्यता का व्यवहार, जोर जबर्दस्ती, धमकी का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
  • हिजरत — जब व्यक्ति या जन समूह के पास न तो आत्मा की शक्ति हो और न उसके पास हिंसा की शक्ति (अस्त्र-शास्त्र की शक्ति) हो तो उस समय हिजरत की क्रिया की जाती है।
  • ‘‘गाँधीजी ने आत्म — सम्मान को बचाने के लिए सन् 1928 में वारदोली और सन् 1939 में लिम्बड़ीं, जूनागढ़ और विठ्ठलगढ़ के सत्याग्रहियों को अपने घर छोड़ने की सलाह दी थी।
  • सविनय अवज्ञा — सविनय अवज्ञा सत्याग्रह की महत्त्वपूर्ण शाखा है। इसका अभिप्राय अनैतिक कानून को भंग करना है। यह एक प्रकार की अहिंसक क्रान्ति है। गाँधीजी ने इसे पूर्ण प्रभावी और सशस्त्र क्रान्ति का रक्तहीन स्थापन्न कहा है।
  • उपवास — उपवास ऐसा कष्ट है जिसे व्यक्ति अपने ऊपर स्वयं लागू करते है। यह सत्याग्रह के शस्त्रागार में सबसे शक्तिशाली अस्त्र है।

गाँधीजी के आर्थिक विचार:

  • गाँधीजी का आर्थिक समस्याओं पर दृष्टिकोण उद्धारक था और उनके सुझाव समय, आवश्यकता और मानवता की दृष्टि से प्रेरित होते थे। उनके ये सुझाव वास्तविकता और स्वयं के अनुभव पर आधारित थे।

वर्तमान समय और गाँधी:

  • गाँधीजी के अनुसार यन्त्रों पर निर्भरता दु:खदायी है। यन्त्र के बारे में गाँधीजी के विचार रस्किन, टॉलस्टाय और आर.सी. दत्ता के विचारों से प्रभावित थे।
  • गाँधीजी ने पूँजीवाद की भर्त्सना कड़े शब्दों में की है। उनका विश्वास है कि पूँजीवाद ने दरिद्रता, बेरोजगारी, शोषण और साम्राज्यवाद की भावनाओं को बढ़ावा दिया है। उनके लिए पूँजी का एकत्रीकरण अनैतिक है।

आर्थिक-सामाजिक विषमताओं को दूर करने के गाँधीजी के सुझाव:

  • अस्तेय और अपरिग्रह — गाँधीजी ने अस्तेय को अहिंसा तथा सत्य के सहायक व्रत के रूप में स्वीकार किया है। अस्तेय का सामान्य अर्थ है चोरी न
  • करना — अर्थात कोई वस्तु अथवा धन उसके स्वामी की बिना आज्ञा के लेना। उन्होंने शारीरिक, मानसिक, वैचारिक व आर्थिक सभी प्रकार की चोरी से सदा दूर रहने को ही अस्तेय माना।
  • गाँधीजी अपरिग्रह को केवल धन संचय न करने तक ही सीमित नहीं रखा है, प्रत्युत भविष्य के लिए किसी भी | रूप में किसी भी प्रकार का संचय न करने को ही अपरिग्रह माना है।
  • ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त — वर्तमान आर्थिक असन्तोष को समाप्त करने के लिए गाँधीजी ने तो पश्चिमी अर्थ-व्यवस्था को पसन्द करते थे, क्योंकि यह व्यवस्था पूँजीवाद पर आधारित होने से शोषण, प्रतिद्वन्द्विता और संघर्ष को जन्म देती है और न ही पूर्वी समष्टिवादी अर्थ व्यवस्था को पसन्द करते थे।
  • गाँधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धान्त के अनुसार पूंजीपति (जिसके पास आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति है) अपनी आवश्यकतानुसार ही सम्पत्ति का प्रयोग करे व शेष सम्पत्ति का वह ट्रस्टी बन जाए व उसे जनकल्याण के कार्यों में लगाए।

स्वदेशी:

  • गाँधीजी स्वदेशी की परिभाषा किसी रूप में संकीर्ण नहीं थी। वह केवल उन विदेशी वस्तुओं को स्वीकार करते थे जो घरेलू या भारतीय उद्योगों को अधिक कुशल बनाने में अनिवार्य है। वह वस्तुओं के विनिमय और अन्तराष्ट्रीय व्यापार में विश्वास करते थे।
  • गाँधीजी भारत को विश्व से अलग नहीं करना चाहते थे, वह तो केवल स्वावलम्बन पर बल देते थे। वह विदेशी पूँजी और तकनीकी ज्ञान से भी समझौता कर सकते थे यदि उन्हें भारतीय नियन्त्रण में रखा जाए।
  • खादी का अर्थशास्त्र- भारत के आर्थिक पुनर्निर्माण की गाँधीवादी योजना में खादी के अर्थशास्त्र का मुख्य स्थान है। गाँधीजी का विश्वास था कि आर्थिक संकट की समस्या को हल करने के लिए खादी अर्थात् चरखा बहुत ही प्राकृतिक सरल, सस्ता और व्यावहारिक तरीका है।
  • खादी राजनीतिक दृष्टिकोण से संगठन और जन-सम्पर्क का आन्दोलन भी था, स्वन्त्रता संग्राम में तो यह राष्ट्रवादियों के लिए एकता प्रदर्शन का प्रतीक बन गया जिसे प्रत्येक भारतीय आसानी से समझ सकता था।

गाँधीजी के आर्थिक विचारों का मूल्यांकन:

  • गाँधीजी के आर्थिक विचारों की यह कह कर आलोचना की गई है कि वे अव्यावहारिक हैं; ये मानव प्रकृति के ‘एक पहलू पर ही बल देते हैं तथा उसकी भौतिक आवश्यकताओं की उपेक्षा करते हैं।
  • खादी का सिद्धान्त न केवल वर्तमान परिस्थितियों में गलत है बल्कि यह तकनीकी ज्ञान ही उपलब्धियों की उपेक्षा भी करते हैं। ये विचार इतिहास की गति से अनभिज्ञ भी हैं।
  • गाँधीजी का ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त अव्यावहारिक है क्योंकि यह सिद्धान्त वस्तुनिष्ठ क्षेत्र में परिवर्तन लाने के स्थान पर व्यक्तिनिष्ठ क्षेत्र में परिवर्तन लाने पर बल देता है।
  • गाँधीजी ने यन्त्रों की भर्त्सना की है। परन्तु यन्त्रों को अस्वीकार करना ‘‘उत्पत्ति के नियम की भर्त्सना है।” यन्त्रों से उत्पन्न होने वाली जिन आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक समस्याओं का वर्णन गाँधीजी ने किया है। वे वास्तव में यन्त्रों के कारण पैदा नहीं होतीं बल्कि यन्त्रों की गलत व्यवस्था, उत्पत्ति और वितरण की गलत प्रणालियों और नगरों की गलत योजनाओं से पैदा होती हैं।

गाँधीजी के राजनीतिक विचार:

  • गाँधीजी ने अपने आदर्श अहिंसक समाज की रूपरेखा स्पष्ट रूप से तैयार नहीं की थी जिस प्रकार कि प्लेटो, रूसो तथा कार्ल मार्क्स ने अपने आदर्श समाज की रूप रेखा तैयार की थी।
  • गाँधीजी ने स्पष्ट लिखा है कि ”मैं पहले से ही यह नहीं बता सकता कि पूर्णतया अहिंसा पर आधारित शासन कैसा होगा ।” फिर भी उनकी पुस्तक हिन्द स्वराज्य से और उनके द्वारा समय-समय पर भाषणों, लेखों, वक्तव्यों, भेंटों में व्यक्त किये गये विचारों से उनके आदर्श समाज की कल्पना की जा सकती है।
  • गाँधीजी ने मर्यादित राज्य की आवश्यकता को स्वीकार कियां गाँधीजी ने ऐसे राज्य का विरोध किया जो विशुद्ध रूप से राजनीति व सत्ता का प्रतिनिधत्व करता है। यदि राज्य संगठित हिंसा का अनैतिक संस्था है।
  • गाँधीजी ने ”सीमित राज्य की स्थापना पर बल दिया है। उनकी दृष्टि में राज्य का कार्य केवल विशुद्ध राजनीति करना ही नहीं है अपितु इससे भी कहीं अधिक उच्च, श्रेष्ठ व कल्याणकारी होता है। गांधीजी राज्य की शक्ति में अत्यधिक अभिवृद्धि के पक्षधर नहीं हैं।

गाँधीज़ी की देन:

  • गाँधीजी दर्शन में सभी विचार संश्लिष्ट हैं- अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, धर्म सभी एक दूसरे से सम्बद्ध हैं और नये विचारों से सामंजस्य का द्वार इसमें सर्वदा खुला है।
  • गाँधीजी ने राजनीति का आध्यात्मीकरण किया और राजनीतिक शब्द में नीति अर्थात् धर्म पर बल दिया।
  • गाँधीजी की राजनीति शास्त्र की सबसे बड़ी देन हैं- सत्याग्रह का पूर्ण सिद्धान्त। यह अहिंसा पर आधारित है। जहाँ अब तक विश्व के पास अन्याय को दूर करने का युद्ध के रूप में एक ही विकल्प था वहाँ गाँधीजी ने युद्ध के विकल्प के रूप में सत्याग्रह के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया।

गाँधीजी के विचारों का मूल्यांकन:

  • गाँधीजी के विचार नैतिक नियमों- सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहानुभूति करके ही गाँधीजी के विचारों की आलोचना की जा सकती है।
  • युद्ध ने केवल युद्ध को ही जन्म दिया है, शान्ति को नहीं। यही कारण है कि गाँधीजी के विचारों का समर्थन करने वाले उनके विचारों को न केवल सर्वकालिक बल्कि सर्वदेशीय भी मानते हैं।
  • कोई ऐसा क्षेत्र नहीं- व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, अन्तर्राष्ट्रीय-जहाँ गाँधीजी के विचारों ने सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, बलिदान और त्याग का पाठ नहीं सिखाया।
  • दूसरी ओर, जो लेखक गाँधीजी के विचारों की आलोचना करते हैं वे इन्हें अव्यावहारिक, अवैज्ञानिक, एक पक्षीय मौलिकतारहित, काल्पनिक, कोरे आदर्शवाद, समाज को पीछे धकेलने वाले पूँजीवाद के समर्थक, वर्ग भेद को स्थाई रखने वाले, इत्यादि बताते हैं।

निष्कर्ष:

  • महात्मा गाँधी के विचार पूर्णता, मानवता, जीवन मूल्य और राष्ट्रीय अस्मिता से ओत-प्रोत रहे हैं, जो हर युग और समय के सापेक्ष में अपनी अनुकूलता सिद्ध करते हैं।

महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

  • 20 मार्च 1937- गाँधी ने ‘हरिजन सेवक’ में लिखा- ‘मनुष्य-मनुष्य के बीच असमानता का और ऊँच-नीचपन का विचार बुरा है। पर इस बुराई को मैं मनुष्य के हृदय से तलवार के बल नहीं निकालना चाहता हूँ।
  • 1928- गाँधी जी ने बारदोली के सत्याग्रहियों को अपना आत्म-सम्मान बचाने के लिये घर छोड़ने की सलाह दी।
  • 1939- गाँधी जी ने लिम्बड़ी, जूनागढ़ और विठ्ठलगढ़ के सत्याग्रहियों को हिजरत अर्थात् आत्म सम्मान के लिये घर छोड़ने की सलाह दी।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 11 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • व्यक्तिवाद — यह व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं व्यक्तिगत आत्म- निर्भरता पर बल देने वाला दर्शन है। यह राज्य के सीमित अधिकारों, मुक्त बाजार व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन करता है।
  • आदर्शवाद — यह विचारधारा मानव तथा उसके व्यक्तित्व के विकास एवं आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन का लक्ष्य स्वीकार करता है।
  • समाजवाद — समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और विकास समाज के नियन्त्रण के अधीन | रहते हैं। यह व्यवस्था निजी सम्पत्ति
  • का विरोध करती है। इसके अनुसार संपत्ति का उत्पादन एवं वितरण समाज के हाथों में होना चाहिए।
  • उदारवाद — इसमें मनुष्य को एक विवेकशील प्राणी मानते हुए सामाजिक संस्थाओं को मनुष्य की सूझबूझ व सामूहिक प्रयास का परिणाम समझा जाता है। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। यह दर्शन व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। वर्तमान में यह विश्व की सर्वाधिक मान्य विचारधारा है।
  • अनुदारवाद — यह विचारधारा पारम्परिक मान्यताओं का अनुकरण आस्था के आधार पर करती है। इसमें तार्किकता का कोई महत्व नहीं होता। इसमें नवीन विचारों का विरोध किया जाता है।
  • राष्ट्रवाद — यह एक जटिल व बहुआयामी विचारधारा है। यह राष्ट्र के प्रति निष्ठा, उसकी प्रगति और उसके प्रति नियम-आदर्शों का बनाये रखने का सिद्धान्त है।
  • अन्तर्राष्ट्रवाद — यह एक ऐसा राजनीतिक सिद्धान्त है जो राष्ट्रों व लोगों के मध्य अधिक राजनीतिक व आर्थिक सहयोग का समर्थन करता है। इसके समर्थक चाहते हैं कि विश्व के लोग राष्ट्रीय, राजनीतिक, सांस्कृति व जातीय दृष्टिकोण से एक हो जाये जिससे कि अपने सामान्य हितों को आगे बढ़ा सके।
  • सर्वोदयवाद — गाँधीजी के द्वारा प्रतिपादित सर्वोदय दर्शन में सभी के उदय अर्थात् कल्याण की भावना | निहित है। यह सम्पूर्ण जीवन का पर्याय है।
  • मानवतावाद — यह मानव मूल्यों पर आधारित दर्शन है। इसका अर्थ है कि संपूर्ण मानव जाति में प्रेम, दया, करुणा व सहानुभूति की नैतिक भावना रहे। यह विचारधारा मनुष्यों के मध्य किसी भी आधार पर भेदभाव का विरोध करती है।
  • अध्यात्मवाद — अध्यात्मवाद आत्मा को जगत का मूल मानता है। इसके प्रतिपादकों की मान्यता है कि | आत्मा का शरीर से स्वतन्त्र अस्तित्व होता है। अध्यात्म का अर्थ है अपने अंदर के चेतन तत्व को जानना।
  • अस्तेय — अस्तेय जैन धर्म के पंच-महाव्रत में से एक है। इसका अर्थ है चोरी न करना अर्थात् कोई वस्तु अथवा धन उसके स्वामी की आज्ञा के बिना न लेना। गाँधीजी ने अस्तेय को सत्य व अहिंसा के सहायक व्रत के रूप में स्वीकार किया।
  • अपरिग्रह — अपरिग्रह भी जैन धर्म के पंच महाव्रत में से एक है। इसका अर्थ है आवश्यकता से अधिक संचय न करना गाँधीजी ने अपरिग्रह को केवल धन संचय तक ही सीमित नहीं रखा वरन् किसी भी प्रकार का संचय न करने को अपरिग्रह माना ।
  • अहिंसा — अहिंसा का अर्थ है मन, वचन व कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात् किसी का दिल न दुखाना। गाँधीजी ने लक्ष्य प्राप्ति हेतु अहिंसा का मार्ग अपनाने का सन्देश दिया।
  • सत्याग्रह — सत्याग्रह बुराई को दूर करने अथवा विवादों को अहिंसक तरीको से दूर करने का तरीका है। गाँधीजी के आग्रह पर भारतीय नागरिकों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध स्वतन्त्रता संघर्ष में यह तरीका अपनाया।
  • असहयोग — यह सत्याग्रह के तरीकों में से ही एक है। इसका अर्थ है असत्य व अहितकर के साथ असहयोग करना। गाँधीजी ने औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध इसी अस्त्र का प्रयोग किया।
  • हिजरत — हिजरत वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने निवास स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चला जाता है। ऐसा अपने आत्म सम्मान को बचाने के लिये किया जाता है।
  • कार्ल मार्क्स — कार्ल मार्क्स जर्मन दार्शनिक और समाजशास्त्री थे। वह वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे। उनके अनुसार समाज में दो वर्ग हैं- पूँजीपति वर्ग एवं श्रमिक वर्ग । इनके मध्य वर्ग संघर्ष बना रहता है।
  • गाँधीजी — गाँधीजी भारत व भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख राजनीतिक व आध्यात्मिक नेता थे। उन्होंने अहिंसा के सिद्धान्त के आधार पर सत्याग्रह की नींव रखी।
  • लाओत्से — प्राचीन चीन के एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वह एक लेखक भी थे। उनकी विचारधाराओं पर आधारित धर्म को ताओ धर्म कहते हैं। लाओ का अर्थ है ‘आदरणीय वृद्ध’ एवं सू का अर्थ है गुरु।
  • कन्फ्यूशियस — एक चीनी सुधारक थे। उनके समय में चीन में झोऊ वंश था। कन्फ्यूशियस ने अपनी शिक्षाओं से व्याप्त अराजकता को दूर किया। जॉन रस्किन — वह 19वीं सदी के विचारक थे। उनकी पुस्तक ‘अनटू दि लास्ट’ (unto the last) पढ़ने के बाद गाँधीजी ने कहा ‘अब ये वह नहीं रह
  • गये जो इस पुस्तक को पढ़ने से पहले थे। उन्होंने पुस्तक के शीर्षक का अनुवाद ‘अन्त्योदय’ के रूप में किया। इसी अन्त्योदय को गाँधीजी ने बाद में सर्वोदय के रूप में परिभाषित किया।
  • हेनरी डेविड थोरो — अमेरिका के विख्यात समाज सुधारक थे। वह सविनय अवज्ञा आन्दोलन के जनक थे। गाँधीजी ने उन्हीं की प्रेरणा से यह आन्दोलन भारत में आरम्भ किया था। थोरो की प्रसिद्ध पुस्तक ‘Walder’ थी।
  • लियो टॉलसटाय — 19 वीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक थे। उनका जन्म रुस में हुआ था। उन्होंने रुढ़िवादी समाज में सत्य व ज्ञान की ज्योति फैलाई।
  • सुकरात — यूनानी दार्शनिक थे। इन्हें पाश्चात्य दर्शन का जनक भी कहा जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द — वेदान्त के विख्यात अध्यात्मिक गुरु थे। 1893 में विश्व सर्वधर्म सम्मेलन, शिकागो में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

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