• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

May 14, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश is part of RBSE Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(1) पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना।
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर, वीर, निर्भीक मना ।।
जाग रहा वह कौन धनुर्धर, जबकि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा बना दृष्टिगत होता है।
किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किए।
राजभोग के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिए ।
बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है।
जिसकी रक्षा में रत इसका तन है, मन है, जीवन है॥
मर्त्यलोक मालिन्य मेटने, स्वामी संग जो आई है।
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह, कुटी आज अपनाई है।
वीर वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर न हो प्रहरी।
विजन देश है निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी ॥

प्रश्न
(क) उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) लक्ष्मण को किसकी उपमा दी गई है? वह प्रहरी बनकर किस प्रकार रक्षा कर रहा है?
(ग) ‘तीन लोक की लक्ष्मी’ किसे कहा है? वह वन में क्यों आई है?
(घ) वनवास में क्या-क्या संकट हो सकते हैं?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त काव्यांश को उचित शीर्षक-‘पंचवटी’।
(ख) लक्ष्मण को उपर्युक्त काव्यांश में योगी की उपमा दी गई है। कवि का कहना है कि पंचवटी के सामने कामदेव के समान सुंदर राजभोग के योग्य पुरुष योगी के समान दिखाई देता है।
(ग) “तीन लोक की लक्ष्मी’ यहाँ सीताजी के लिए कहा गया है। यह तीन लोक की लक्ष्मी पृथ्वी के दु:खों को दूर कराने के लिए सीताजी अपने पति भगवान श्रीराम के साथ यहाँ आई है।
(घ) वनवास में अनेकों कष्ट सहने होते हैं। हिंसक पशुओं का डेरे, रात्रि का अंधकार, राक्षसों (दुष्ट पुरुषों) का भय तथा प्राकृतिक आपदारूपी अनेक संकट वनों में रहते हैं।

(2) अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा परं-नाच रही तरु शिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकुम सारा।
लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये-समझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकराती अनंत की-पाकर जहाँ किनारा।
हेम-कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे ।
मदिर ऊँघते रहते-जब-जगकर रजनी भर तारा।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) इस काव्यांश में भारत देश की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
(ग) “हेम-कुंभ’ में प्रयुक्त अलंकार का नाम व लक्षण लिखिए।
(घ) “छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक – ‘मधुमय देश हमारा।’
(ख) भारत सब के प्रति मधुर व्यवहार करने वालों का देश है। यहाँ अपरिचित विदेशियों को भी सहारा मिलता है। भारत की प्रकृति अत्यन्त मनोहर है। मनुष्य ही नहीं पक्षी भी इस देश को अपना निवास मानकर प्यार करते। हैं। भारत में बादल करुणा का जल बरसाते हैं। यहाँ का प्रभातकालीन सौन्दर्य अनुपम होता है।
(ग) “हेम-कुंभ’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है। लक्षण-जहाँ कवि किसी दृश्य अथवा वस्तु का वर्णन करने में केवल उपमानों का आश्रय लेता है, वहाँ ‘रूपकातिशयोक्ति अलंकार होता है। इस पंक्ति में ‘हेम कुंभ’ प्रात:काल के सुनहरे सूर्य के लिए प्रयुक्त हुआ है। (घ) प्रात:कालीन सूर्य की धूप हरे-भरे मैदानों पर पड़ रही है। प्रात:काल का सूर्योदय नवजीवन, आशा, उल्लास
और सफलता का सूचक है। ऐसा लगता है कि उषा ने सूर्य-किरणों की रोली जीवन-जगत पर छिड़ककर मंगलकारी काम किया है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(3) उदयाचल से किरन-धेनुएँ
हाँक ला रहा
वह प्रभात का ग्वाला।
पूँछ उठाये चली आ रही
क्षितिज-जंगलों से टोली
दिखा रहे पथ इस भू का
सारस सुना-सुनाकर बोली
गिरता जातो फेन मुखों से
नभ में बादल बन तिरता
किरन-धेनुओं का समूह यह
आया अंधकार चरता।
नभ की अभ्र छाँह में बैठा
बजा रहा बंशी रखवाला।
ग्वालिन सी ले दूब मधुर
वसुधा हँस-हँस गले मिली
चमको अपने अपने स्वर्ण-सींग वे
अब शैलों से उतर चलीं।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) काव्यांश में ‘प्रभात का ग्वाला’ का क्या अभिप्राय है?
(ग) नभ में बादल बनकर कौन तैर रहा है?
(घ) ‘किरन-धेनुओं’ में प्रयुक्त अलंकार का नाम व लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक -‘प्रभात का ग्वाला’।
(ख) यहाँ कवि ने प्रभातकालीन सौन्दर्य का एक रूपक प्रस्तुत किया है। उसने प्रभात को एक ग्वाला बताया है। ग्वाले के आगे गायें चला करती हैं, उसी प्रकार प्रभात के आगे उसकी किरणें चल रही हैं। आकाश में तैरते बादलों को कवि ने गायों के मुँह से गिरता हुआ फेन माना है। प्रभात आम के वृक्ष की छाया में बैठकर वंशी बजाने वाले ग्वाले की तरह लग रहा है।
(ग) आकाश में बादल बनकर जो तैर रहा है, वह गायों के मुख से गिरने वाला फेन है। प्रभातरूपी ग्वाला किरणों रूपी गायों को हाँककर आकाश के मार्ग से ला रहा है। उनके मुख से बादलरूपी सफेद झाग गिर रहे हैं।
(घ) “किरन-धनुओं में प्रयुक्त अलंकार रूपक है। लक्षण-जब किसी काव्य में उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप किया जाता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है। इस पंक्ति में ‘किरन’ उपमेय है तथा उसमें ‘धेनु’ उपमान का भेदरहित आरोप होने से इसमें रूपक अलंकार है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(4) उठे राष्ट्र तेरे कन्धों पर, बढ़े प्रगति के प्रांगण में।
पृथ्वी को रख दिया उठाकर, तूने नभ के आँगन में ॥
तेरे प्राणों के ज्वारों पर, लहराते हैं : देश सभी।
चाहे जिसे इधर कर दे तू, चाहे जिसे उधर क्षण में ।
मत झुक जाओ देख प्रभंजन, गिरि को देख न रुक जाओ।
और न जम्बुक-से मृगेन्द्र को, देख सहम कर लुक जाओ।
झुकना, रुकना, लुकना, ये सब कायर की सी बातें हैं।
बस तुम वीरों से निज को बढ़ने को उत्सुक पाओ ।
अपनी अविचल गति से चलकर नियतिचक्र की गति बदलो।
बढ़े चलो बस बढ़े चलो, हे युवक ! निरन्तर बढ़े चलो।
देश-धर्म-मर्यादा की रक्षा का तुम व्रत ले लो।
बढ़े चलो, तुम बढ़े चलो, हे युवक ! तुम अब बढ़े चलो।।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) “पृथ्वी को रख दिया उठाकर, तूने नभ के आँगन में” कहने का क्या तात्पर्य है?
(ग) कायर की सी क्या बातें हैं?
(घ) नियतिचक्र की गति कैसे बदल जाती है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘देश के पराक्रमी नवयुवक।’
(ख) पृथ्वी को आकाश के आँगन में उठाकर रखने का आशय यह है कि युवकों की शक्ति से ही मातृभूमि का विकास और उत्थान होता है। उनके ही श्रम से वह उन्नति के शिखर पर चढ़ती है।
(ग) कायर मनुष्य शत्रु के सामने झुक जाता है, उसका साहस के साथ सामना नहीं करता। वह उससे डरकर अपने कदम रोक देता है। वह उससे भयभीत होकर छिप जाता है। कायर की सी बातों का यही अर्थ है।
(घ) पराक्रमी पुरुष भाग्यवादी नहीं होता, वह दृढ़ता से अपने कर्तव्य-पथ पर बढ़ता है तथा भाग्य के अवरोधों को भी हटा देता है। वह अपने पुरुषत्व से भाग्य की रेखा को बदल देता है।

(5) इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की दिव्य आरती. फेरी ॥
यह समाधि एक लघु समाधि है, झाँसी की रानी की।
अन्तिम लीला-स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न विजयमाला सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृतिशाला सी॥
सहे वार पर वार अन्त तक, बढ़ी वीर बाला सी।
आहुति सी गिर पड़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला सी।
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से ॥
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी ॥
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जन्तु ही गाते ॥

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) “उसके फूल यहाँ संचित हैं” – यहाँ फूल से क्या तात्पर्य है?
(ग) वीर का मान कब बढ़ जाता है? उदाहरण सहित लिखिए।
(घ) रानी से भी अधिक उसकी समाधि क्यों प्रिय है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक- ‘झाँसी की रानी की समाधि’।
(ख) यहाँ फूल संचित हैं से तात्पर्य है- चिता के शांत हो जाने पर उससे चुनी गई अस्थियाँ या रानी के अवशेष।
(ग) युद्ध भूमि में शत्रु से लड़ते हुए बलिदान हो जाने पर वीर का मान बढ़ जाता है।
(घ) रानी ने स्वतंत्रता के लिए संग्राम करते हुए अपना बलिदान किया था। उसके स्वतंत्रता के संदेश के पूरा होने ‘की आशा अब इस समाधि पर ही है। इसी से स्वतंत्रता की प्रेरणा मिलेगी। इसी कारण यह समाधि रानी से अधिक प्रिय हो गई है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(6) सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे,
तैंतीस कोटि हित सिंहासन तैयार करो,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) “तैंतीस कोटि-हित” से क्या तात्पर्य है?
(ग) देवता के यहाँ पर मिलने की क्या सम्भावना व्यक्त की गई है?
(घ) कवि सिंहासन किसके लिए व क्यों खाली कराना चाहता है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘जनतंत्र की महत्ता’।
(ख) तैंतीस कोटि से आशय भारतीय जनता है। भारत के ये करोड़ों-करोड़ लोग ही भारतीय जनतंत्र के सच्चे शासक हैं। कवि उनको सत्ता का अधिकार सौंपने का संदेश दे रहा है।
(ग) देवता मंदिरों में और राजमहलों में नहीं रहते। जनतंत्र के देवता किसान-मजदूर होते हैं। वे खेतों में और कारखानों में ही मिलते हैं। उनको वहीं पर देखा जा सकता है।
(घ) कवि सिंहासन देश की जनता के लिए खाली कराना चाहता है। भारत में जनतंत्र की स्थापना होने के पश्चात वहाँ राजा-महाराजाओं का अधिकार सत्ता से समाप्त हो चुका है। देश की असली शासक देश की जनता है।

(7) शब्दों की दुनिया में मैंने
हिन्दी के बल अलख जगाये।
जैसे दीप-शिखा के बिरवे
कोई ठण्डी रात बिताये।
जो कुछ हूँ हिन्दी से हूँ मैं।
जो हो लें हिन्दी से हो लें।
हिन्दी सहज क्रान्ति की भाषा ।
यह विप्लव की अकथ कहानी।
मैकॉले पर भारतेन्दु की।
अमर विजय की अमिट निशानी।
शेष गुलामी के दागों को
जब धो लें हिन्दी में धो लें।।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने हिन्दी के बल पर अलख किस प्रकार जगाई है?
(ग) हिन्दी को क्रान्ति की भाषा क्यों कहा गया है?
(घ) कवि किस बचे हुए कार्य को करना चाहता है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘स्वाधीन भारत की भाषा हिन्दी’।
(ख) कवि ने अपने काव्य की रचना हिन्दी भाषा में की है। हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करके कवि ने प्रेरणाप्रद भाषा में नवजागरण का संदेश दिया है।
(ग) हिन्दी के अनेक कवियों ने अंग्रेजी शासन से मुक्ति का संदेश भारतीयों को दिया है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने मैकॉले की नीति का विरोध हिन्दी में ही किया था। भारत के अनेक क्रान्तिकारियों ने हिन्दी में क्रान्ति का संदेश दिया है।
(घ) भारत आज स्वतंत्र हो चुका है किन्तु अब भी परतंत्रता के कुछ चिह्न बचे हुए हैं। भारत में अब भी अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बना हुआ है। कवि इन गुलामी के दागों को हिन्दी का प्रयोग करके धो डालना चाहता है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(8) यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को।
चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी-स्वर को।
सब ने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य-तृषारावृता तथापि विधु-लेखा।।
बैठी थी अचल तथापि असंख्य तरंगा,
वह सिंही अब थी हहा। गौमुखी गंगा
हाँ जनकर भी मैंने न भरत को जाना,
सब सुन लें तुमने स्वयं अभी यह माना।
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया,
अपराधिन मैं हूँ तात; तुम्हारी मैया।
दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है,
पर अबला जन के लिए कौन-सा पथ है?

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) सभा में सभी किसको स्वर सुनकर चौंक गए?
(ग) सभा में रानी कैकेयी कैसी दिखाई दे रही थी?
(घ) रानी कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘रानी कैकेयी का पश्चात्ताप ।
(ख) राम के कथन के उत्तर में रानी कैकेयी ने जब कुछ कहा तो उसका स्वर सुनकर सभा में उपस्थित सभी लोग चौंक पड़े।
(ग) सभा में रानी कैकेयी विधवा होने के कारण तेजहीन दिखाई दे रही थी, वह उसी प्रकार तेजविहीन दिखाई दे रही थी जिस प्रकार पाला पड़ने पर चन्द्रमा की चाँदनी फीकी पड़ जाती है।
(घ) रानी कैकेयी ने राम से कहा- मैं जन्म देकर भी भरत को जान न सकी। अतः मुझसे तुम्हारे अधिकार के हनन का पाप हो गया। तुम मान चुके हो कि दोष भरत की नहीं है। अतः अब तुम अयोध्या लौट चलो।

(9) विषम शृंखलाएँ टूटी हैं,
खुली समस्त दिशाएँ,
आज प्रभंजन बनकर चलती
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्न-चिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएँ।
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुए, सावधान रहना
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है।
शोषण से मृत है समाज
कमजोर हमारा घर है
किन्तु आ रही नई जिन्दगी
यह विख़ास अमर है।

जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए, सावधान रहनी।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ‘पहरुए’ से क्या कह रहा है?
(ग) कवि ने समाज को कैसा बताया है?
(घ) कविता के अन्त में क्या विश्वास व्यक्त हुआ है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘पहरुए सावधान रहना।’
(ख) कवि ‘पहरुए’ अर्थात् भारतीय गणतंत्र की पहरेदार जनता से कह रहा है कि उसे स्वदेश की स्वाधीनता की सुरक्षा के लिए सावधान रहने की जरूरत है। लम्बी पराधीनता के बाद भारत स्वतंत्र हुआ है परन्तु विभाजन के कारण उसकी सीमाएँ सिकुड़ गई हैं। इससे देश के सामने एकता का संकट खड़ा हो गया है।
(ग) कवि ने भारतीय समाज को शोषण से त्रस्त तथा कमजोर बताया है।
(घ) कविता के अन्त में कवि ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि भारत में एक नवीन जीवन आ रहा है। स्वाधीन भारतीय जनतंत्र भारत में एक नये युग का सृजन करेगा।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(10) अरे चाटते जूठे पत्ते जिस दिन मैंने देखा नर को
उस दिन सोचा : क्यों न लगा हूँ आज आग इस दुनिया भर को?
यह भी सोचा: क्यों न टेंटुआ घोंटा जाय स्वयं जगपति का ?
जिसने अपने ही स्वरूप को दिया रूप इस घृणित विकृति का।
जगपति कहाँ? अरे, सदियों से वह तो हुआ राख की ढेरी;
वरना समता-संस्थापन में लग जाती क्या इतनी देरी?
छोड़ आसरा अलख शक्ति का; रे नर, स्वयं जगपति तू है,
तू यदि . जूठे पत्ते चाटे, तो तुझ पर लानत है, थू है।
ओ भिखमँगे, अरे पराजित, ओ मज़लूम, अरे चिरदोहित,
तू अखंड भंडार शक्ति का; जाग अरे निद्रा-सम्मोहित,
प्राणों को तड़पाने वाली हुंकारों से जल-थल भर दे।
अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर दे।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का शीर्षक लिखिए।
(ख) जूठे पत्ते चाटना देश की किस ‘दशा’ को व्यक्त करता है?
(ग) ‘स्वयं’ जगपति तू है’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(घ) ‘समता-संस्थापन’ और ‘आसरा-अलख’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-सामाजिक शोषण के प्रति विद्रोह।
(ख) जूठे पत्ते चाटना देश की भीषण दुर्दशा को व्यक्त करता है। इससे पता चलता है कि समाज में मानव-मानव में असमानता है। एक ओर सम्पन्नता है तो दूसरे ओर भीषण गरीबी है। गरीबों की दैनिक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पातीं।
(ग) कवि ने मानव को ‘स्वयं जगपति तू है’ कहकर इस संसार का स्वामी बताया है। मनुष्य ने इस संसार को उन्नत और सुन्दर बनाया है। अपने श्रम से उसने ही इसका भव्य निर्माण किया है। वास्तव में तो मनुष्य ही इसका स्वामी है।
(घ) “समता-संस्थापन’ में तथा ‘आसरा-अलख’ में अनुप्रास अलंकार है।

(11) चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देवे बना।
काम पड़ने पर करे जो शेर का भी सामना ॥
जो कि हँस-हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना।
है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जी में यह ठना ॥
कोस कितने ही चलें पर वे कभी थकते नहीं।
कौन-सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं ॥
संकटों से वीर घबराते नहीं, आपदायें देख छिप जाते नहीं।
लग गये जिस काम में पूरा किया, काम करके व्यर्थ पछताते नहीं ॥
हो सरल या कठिन हो रास्ता, कर्मवीरों को न इससे वास्ता ।
बढ़ चले तो अंत तक ही बढ़ चले, कठिनतर गिरिशृंग ऊपर चढ़ चले ॥

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) काव्यांश में किस बात का वर्णन है?
(ग) चिलचिलाती धूप को चाँदनी बनाने का क्या अर्थ है?
(घ) ‘कोस कितने में किस अलंकार का प्रयोग है? उसके लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक – ‘कर्मवीर।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने उन मनुष्यों का वर्णन किया है जो सदा काम में लगे रहते हैं। वे अपने कठिन परिश्रम से रास्ते की कठिनाइयों को हटा देते हैं। वे कठिन से कठिन काम करने से भी पीछे नहीं हटते। वे जिस काम को करने का निश्चय करते हैं उसे पूरा करके ही मानते हैं।
(ग) किसी काम को करते समय हमारे सामने अनेक बाधाएँ आती हैं। कर्मवीर मार्ग की कठिनाइयों से नहीं डरते। वे सदा कठिन श्रम करते हैं तथा अपने परिश्रम से रास्ते की बाधाओं को भी दूर कर देते हैं। काम करते समय सभी कठिनाइयाँ उनको बहुत मामूली तथा महत्वहीन लगती हैं।
(घ) “कोस कितने’ में अनुप्रास अलंकार है। लक्षण-जब एक ही वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। प्रस्तुत उदाहरण में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति दो बार हुई है। अतः इसमें अनुप्रास अलंकार है।

(12) मैं न बँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं न खड़ा हूँ जाति-पाँति की ऊँची-नीची भीड़ में,
मेरा धर्म न कुछ स्याही-शब्दों का एक गुलाम है,
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,
मुझसे तुम न कहो मंदिर-मस्जिद पर मैं सर टेक हूँ,
मेरा तो आराध्य आदमी देवालय हर द्वार है।
कह रहे कैसे भी, मुझको प्यारा यह इंसान है,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है,
अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है ममुजत्व ही,
और छोड़कर प्यार, नहीं स्वीकार मुझे अमरत्व भी,
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।
मुझे मिली है प्यास विषमता का विष पीने के लिये,
मैं जन्मा हूँ नहीं स्वयं-हित, जग-हित जीने के लिये,
मुझे दी गई आग कि तम को भी मैं आग लगा सकें,
मेरे दर्दीले गीतों को मत पहनाओ हथकड़ी,
मेरा दर्द नहीं है मेरा, सबका हाहाकार है।
मैं सिखलाता हूँ कि जियो और जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को,
हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी,
चलो इस तरह, कुचले न जाये पग से कोई शूल भी,
सुख न तुम्हारा सुख केवल जग में भी उसका भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पाया, मेरा घर सारा संसार है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

प्रश्न
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि का आराध्य कौन है?
(ग) कवि का जन्म किसलिए हुआ है?
(घ) ‘घट-घट’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक – ‘मानवता महान् धर्म।’
(ख) कवि का आराध्य कोई देवी-देवता नहीं है। वह किसी मंदिर-मस्जिद में जाकर अपना माथी नहीं टिकाता। वह आदमी की पूजा करता है। हर घर उसके लिए मंदिर के समान है। वह मानव जाति से प्रेम करता है।
(ग) कवि का जन्म अपना हित करने के लिए नहीं हुआ है। उसने तो संसार की भलाई करने के लिए जन्म धारण किया है।
(घ) “घट-घट’ में पुनरुक्ति प्रकाशं अलंकार है।

(13) आओ मिलें सब देश बांधव हार बनकर देश के
साधक बनें सब प्रेम से सुख शांतिमय उद्देश्य के।
क्या साम्प्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता अहो ?
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो।
रक्खो परस्पर मेल, मन से छोड़कर अविवेकता,
मन का मिलन ही मिलन है, होती उसी से एकता।
सब बैर और विरोध का बल-बोध से वारण करो।
है भिन्नता में खिन्नता ही, एकता धारण करो।
है कांर्य ऐसा कौन-सा साधे न जिसको एकता,
देती नहीं अद्भुत अलौकिक शक्ति किसको एकता।
दो एक एकादश हुए किसने नहीं देखे सुने,
हाँ, शून्य के भी योग से हैं अंक होते देश गुने ।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने भारत की साम्प्रदायिक विविधता की तुलना किससे की है?
(ग) ‘दो एक एकादश हुए’ से कवि का क्या आशय है?
(घ) ‘मन का मिलन ही मिलन है’ में कौन-सा अलंकार है? उसका नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित. शीर्षक -‘अनेकता में एकता।’
(ख) कवि ने भारत की साम्प्रदायिक विविधता की तुलना एक ऐसी माला से की है, जो अनेक प्रकार के फूलों को मिलाकर बनती है। वैसे ही भारत में अनेक धर्मों, जातियों, वर्गों और विचार वाले लोग रहते हैं।
(ग) एक और एक संख्याओं के मिलने से एक की शक्ति अनेक गुना बढ़ जाती है, उसी प्रकार विभिन्न संस्कृतियों के मिलने से भारत की शक्ति में भी वृद्धि हो जाती है।
(घ) ‘मन का मिलन ही मिलन है’ – में अनुप्रास अलंकार है।
लक्षण – जब किसी काव्य-पंक्ति में एक ही वर्ण की दो अथवा दो से अधिक बार, आवृत्ति होती है, तब वहाँ अनुप्रास. अलंकार होता है। इन पंक्ति में ‘म’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

(14) कषमा शोभती उस भुजंग को
उठी अधीर धधक पौरुष की
जिसके पास गरल हो,
आग राम के शर से।
उसको क्या, जो दन्तहीन
सिन्धु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’
विषहीन विनीत सरल हो।
करता आ गिरा शरण में,
तीन दिवस तक पंथ माँगते
चरण पूज, दासता ग्रंहण की
रघुपति सिन्धु किनारे,
बँधा मूढ़ बन्धन में।
बैठे पढ़ते रहे छन्द ।
सच पूछो तो शर में ही
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
बंसती है दीप्ति विनय की,
उत्तर में जब एक नाद भी
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
उठा नहीं सागर से,
जिसमें शक्ति विजय की।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

प्रश्न:
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) सिन्धु ‘त्राहि-त्राहि करते हुए किसके चरणों में आ गिरा तथा, क्यों?
(ग) ‘सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की’ का क्या आशय है?
(घ) “विषहीन विनीत’ में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘शक्तिशाली का क्षमादान ।
(ख) राम अपनी सेना सहित समुद्र के पार स्थित लंका जाने के लिए समुद्र के मार्ग न देने पर राम को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर समुद्र को सुखाना चाहो तो भयभीत होकर समुद्र मानव रूप में उनके चरणों में आ गिरा।
(ग) ‘संधि वचन संपूज्य उसी का, जिसमें शक्ति विजय की’ इस पंक्ति का आशय है कि समझौता तभी सफल होता है, जब समझौता करने वाला व्यक्ति खूब शक्तिशाली होता है तथा विरोधी को युद्ध में परास्त करने की शक्ति रखता है।
(घ) विषहीन विनीत’ में ‘व’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।

(15) आज की दुनियाँ विचित्र नवीन,
और करता शब्दगुण अम्बर वहन सन्देश।
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
नव्य नर की मुष्टि में विकराल,
हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हैं सिमटते जा रहे दिक्काल।
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप
यह प्रगति निस्सीम ! नर का यह अपूर्व विकास।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
चरण तल भूगोल ! मुट्ठी में निखिल आकाश।
लाँघ सकता नर सरित्, गिरि, सिन्धु एक समान।
किन्तु है बढ़ता गया मस्तिष्क ही नि:शेष,
शीश पर आदेश कर अवधार्य
छूटकर पीछे गया है रह हृदय का देश;
प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य,
नर मनाता नित्य नूतन बुद्धि का त्यौहार,
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,
प्राण में करते दु:खी हो देवता चीत्कार।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि ने आज की दुनिया को विचित्र व नवीन क्यों कहा है?
(ग) छूट कर पीछे गया है रह हृदय को देश’-को भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘हृदय का देश’ में कौन-सा अलंकार है? नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश को उचित शीर्षक-विज्ञान और मनुष्य।
(ख) क्योंकि आज मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त कर चुका है। जल, बिजली और भाप की शक्ति पर उसका अधिकार हो चुका है। वह अपनी इच्छा से (बिजली के यंत्रों द्वारा) हवा को गरम या ठंडा कर सकता है।
(ग) विज्ञान के कारण मनुष्य ने बुद्धि के क्षेत्र में असीम प्रगति की है। इस बौद्धिक दौड़ में हृदय या मन का संसार कहीं पीछे छूट गया है अर्थात् मनुष्य के प्रति मनुष्य की सहानुभूति, सद्भाव तथा प्रेम आज उपेक्षित हो गए हैं।
(घ) ‘हृदय का देश’ में रूपक अलंकार है। लक्षण-जहाँ कवि उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप करता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यहाँ कवि ने हृदय को दूर पीछे छूटा हुआ देश मान लिया है। अत: रूपक अलंकार है।

(16) यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
किन्तु जग के पन्थ पर यदि स्वप्न दो तो सत्य दो, सौ,
जब असम्भव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले;
तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
पूर्व चलने के, बटोही, बाट की पहचान कर ले।
सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,
स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,
तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले;
रास्ते का एक काँटा पाँव का दिल चीर देता,
पूर्व चलने के, बटोही, बाट की पहचान कर ले।
रक्त की दो बूंद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,
कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,
‘आँख में हो स्वर्ग लेकिन पाँव पृथ्वी पर टिके हों’,
देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,
कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले;
और तू कर यत्न भी तो मिल नहीं सकती सफलता,
पूर्व चलने के, बटोही, बाट की पहचान कर ले।
ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय,

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) “तू इसे अच्छा समझ’ कवि किसको अच्छा समझने के लिए कह रहा है तथा क्यों?
(ग) मार्ग के काँटों से मनुष्य को क्या सीखना चाहिए?
(घ) “पाँव का दिल चीर देता’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘स्वप्न और सत्य।’
(ख) कवि का कहना है कि हम अपने लिए जो मार्ग तय करें उसी को अच्छा समझें तथा उस पर दृढ़ता से चलते रहें। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चयी होना जरूरी होता है।
(ग) मार्ग के काँटे से मनुष्य को सीखना चाहिए कि जीवन में सफलता पाने के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं। उनका ठीक ज्ञान होने पर ही उनसे बचकर सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है।
(घ) “पाँव का दिल चीर देता’ में रूपक अलंकार है। उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप होने पर रूपक अलंकार होता है। यहाँ कवि ‘पाँव’ में दिल’ का आरोप किया है। ‘पाँव’ को दिल कहने से इसमें रूपक अलंकार है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(17) जग में संचर-अचर जितने हैं, सारे कर्म निरते हैं।
धुन है एक-न-एक सभी को, सबके निश्चित व्रत हैं।।
जीवन-भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में वैसी तत्परता है।।
जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है।
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर, समीर पिया है।।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयी माता तुल्य मही है।
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
केवल अपने लिये सोचते, मौज भरे गाते हो।
पीते, खाते, सोते, जगते, हँसते, सुख पाते हो।।
जग से दूर स्वार्थ-साधन ही सतत तुम्हारा यश है।
सोचो, तुम्हीं, कौन अग-जग में तुम-सा स्वार्थ विवश है?
पैदा कर जिस देशजाति ने तुमको पाला-पोसा।
किये हुये है वह निज-हित का तुमपे बड़ा भरोसा।
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्त्तव्य तुम्हारा।
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) इस संसार में सभी किस में तल्लीन हैं?
(ग) वि ने सत्कर्त्तव्य के बारे में क्या बताया है?
(घ) “सुधा-सम नीर’- में कौन-सा अलंकार है? अलंकार का नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘कर्तव्यनिष्ठ जीवन।’
(ख) इस संसार में सभी लोग किसी न किसी काम में लगे हैं। सब किसी न किसी लक्ष्य को सामने रखकर अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।
(ग) कवि ने देश-जाति की सेवा करने की प्रेरणा दी है। देश-जाति का भारी ऋण हमारे ऊपर है। उसी ने हमको पैदा किया तथा पाल-पोषकर बड़ा किया है। उसका ऋण चुकाना है हमारा सत्कर्तव्य है।
(घ) “सुधा-सम नीर’ में उपमा अलंकार है।
लक्षण -जहाँ उपमेय और उपमान के किसी गुण के आधार पर उसमें समानता देखी जाती है वहाँ उपमा अलंकार होता है। यहाँ मातृभूमि के पानी को अमृत के समान बताया गया है।

(18) सी-सी कर हेमंत कॅपे, तरु झरे, खिले वन !
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को !
औ’ जब फिर से गाढ़ी ऊदी लालसा लिये,
नहीं समझ पाया था मैं उसके महत्त्व को !
गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर,
बचपन में छिः, स्वार्थ लोभ वश पैसे बोकर !
मैंने, कौतूहल वश, आँगन के कोने की
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ !
गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं,
बीज सेम के दबा दिये मिट्टी के नीचे !
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं,
भू के अंचल में मणि माणिक बाँध दिये हों !
इसमें मानव ममता के दाने बोने हैं,
आह, समय पर उनमें कितनी फलियाँ टूट !
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ,
मानवता की-जीवन श्रम से हँसें दिशाएँ।
यह धरती कितना देती है! धरती माता ।
हम जैसा बोऐंगे वैसा ही पायेंगे।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) ‘सी-सी कर ………. धरती पर’ -इन पंक्तियों में कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है?
(ग) आँगन में सेम के बीज बोकर कवि ने धरती माता के किस गुण के बारे जाना?
(घ) कवि ने धरती पर किस प्रकार की फसल उगाने की प्रेरणा दी है? उसे क्यों कहा है-हम जैसा बोएँगे वैसा ही पायेंगे।’
उत्तर;
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘रत्न प्रसविनी धरती।’
(ख) ‘सी-सी कर……धरती पर ‘पंक्तियों’ में कवि ने शीतऋतु, पतझड़, वसन्त तथा वर्षा ऋतुओं का वर्णन किया है। संक्षेप में कवि ने यहाँ छः ऋतुओं के वर्णन का प्रयास किया है।
(ग) कवि ने अपने घर के आँगन की गीली मिट्टी में सेम के बीज बो दिए। बाद में उस सेम की बेल पर सेम की अनेक फलियाँ लगीं। इस तरह कवि को पता चला कि धरती रत्नों को पैदा करती है। हम धरती में जैसा बीज बोते हैं, हमें वैसा ही फल मिलता है।
(घ) कवि ने हमें प्रेरणा दी है कि हम धरती पर मानव-मानव के बीच सच्ची समानता और प्रेम की फसल उगाएँ। हम मानव की सक्षमता के बीज बोएँ। धरती पर हम बैर-घृणा के स्थान पर प्रेम पैदा करेंगे तो पूरी पृथ्वी मानव-प्रेम से भर जायेगी।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(19) हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार।
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
जब हम लगे जगाने विश्व लोक में पैला फिर आलोक।
तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत ।
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय की शीत।
अरुण केतन लेकर निज हाथ वरुण–पथ में हम बढ़े अभीत।
सुना है दधीचि का वह त्याग हमारा जातीयता विकास।
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास।
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम।
भिक्षु होकर रहते सम्राट दया दिखलाते घर-घर घूम।
यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि।
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि।
किसी को हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं ।
हमारी जन्मभूमि थी यही, कहीं से हम आये थे नहीं।

प्रश्न
(क) काव्यांश हेतु एक उपयुक्त शीर्षक दीजिये।
(ख) ‘पुरंदर ने………….इतिहास’ में क्या अन्तर्कथा है?
(ग) “किसी को हमने छीना नहीं’ – में कवि ने किस वस्तु को अपना बताया है तथा क्यों?
(घ) ‘स्वर्ण-भूमि’ में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है? नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक- ‘हमारा भारतवर्ष ।’
(ख) इसमें देवासुर संग्राम की ओर संकेत है। देवराज इन्द्र ने त्यागी ऋषि दधीचि की हड्डियों का वज्र बनाकर असुरों को युद्ध में पराजित किया था। इन पंक्तियों में देवराज की सफलता के लिए प्राण त्यागने वाली दधीचि के अपूर्व त्याग की ओर संकेत है।
(ग) ‘किसी का हमने छीना नहीं’- में कवि ने बताया है कि भारत हमारा आदि देश है। हमारे पूर्वज सदा से यहीं रहते आये हैं। आर्य भारत में बाहर से आकर बसे थे- इतिहास में पढ़ाये जाने वाले विदेशी इतिहासकारों के इस कथन का कवि ने स्पष्ट शब्दों में खंडन किया है।
(घ) ‘स्वर्ण-भूमि’ में रूपक अलंकार है। इसमें भूमि को स्वर्ण माना गया है।
लक्षण – जब किसी काव्य पंक्ति में उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप होता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।

(20) कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
ठोकर मार, पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन!
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
ले-दे कर जीना, क्या जीना ?
कब तक गम के आँसू पीना ?
मानवता ने सींचा तुझको
बही युगों तक खून-पसीना !
कुछ न करेगा? किया करेगारे
मनुष्य-बस कातर कूदन ?
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
‘युद्धं देहि’ कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर !
या तो जीत प्रीति के बल पर,
या तेरा पथ चूमे तस्कर !
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
पर कायरता अधिक अपावन !
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) इस काव्यांश में कवि ने क्या प्रेरणा दी है?
(ग) ‘युद्धं देहि’ कहे जब पामर, दे न दुहाई पीठ फेर कर’-में व्यक्त भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
(घ) कवि के अनुसार प्रतिपक्ष को जीतने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘कायर मत बन।’
(ख) इस पद्यांश में कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। कवि का कहना है कि मनुष्य को कठिनाइयों से घबड़ाकर भागना नहीं चाहिए। शत्रु का बहादुरी से सामना करना चाहिए। मनुष्य को कायरता का जीवन नहीं बिताना चाहिए।
(ग) जब भावी शत्रु आपके ऊपर आक्रमण करने की नीयत से चढ़ आया हो, तो आपको पीठ दिखाकर भागना तथा उससे गिड़गिड़ाकर अपने जीवन की सुरक्षा माँगना शोभा नहीं देता। ऐसी दशा में शत्रु पर प्रहार करना ही उचित है।
(घ) प्रतिपक्ष अथवा विरोधी को पीठ दिखाना वीरोचित आचरण नहीं है। उसे अपने प्रेम से जीतना चाहिए। यदि यह संभव नहीं तो उसको अपने पराक्रम से आतंकित करना चाहिए कि वह आपके आगे घुटने टेक दे। प्रतिहिंसा और कायरता प्रकट करना अनुचित है।

(21) ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी इक बूंद कुछ आगे बढ़ी।
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यूँ कढ़ी।
देव मेरे भाग्य में है क्या बदा,
मैं बचेंगी या मिलूंगी धूल में।
बह उठी उस काल इक ऐसी हवी,
वह समंदर ओर आई अनमनी।
एक सुंदर सीप का था मुँह खुला
वह उसी में जा गिरी मोती बनी।
लोग अकसर हैं झिझकते सोचते,
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।
किन्तु घर को छोड़ना अकसर उन्हें,
बूंद लौं कुछ और ही देता है कर।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) बादलों से बाहर आकर बूंद ने क्या सोचा?
(ग) लोग घर छोड़कर बाहर जाने में क्यों डरते हैं? क्या उनका डरना उचित है?
(घ) बादलों से निकली बँद तथा घर से बाहर निकले व्यक्ति में क्या समानता है?
उत्तर:
(क) काव्यांश को उचित शीर्षक-‘प्रगति का अवसर प्रवास से मिलता है।’
(ख) बूंद जब बादलों से बाहर आयी तो उसे भय लगा उसने सोचा कि वह अपना घर छोड़कर बाहर निकली ही क्यों ? कहीं ऐसा न हो कि वह नीचे गिरकर धूल में मिल जाय और उसका अस्तित्व ही मिट जाय। न जाने उसके भाग्य में क्या लिखा है।
(ग) लोग जब घर से बाहर निकलते हैं तो वे भी बूंद के समान ही सोचते हैं। उनको अपने जीवन तथा भविष्य के बारे में डर लगता है। उनका इस प्रकार डरना कतई उचित नहीं है। घर से निकलने पर उनको भी बूंद के समान जीवन में प्रगति करने के अवसर मिलते हैं।
(घ) बादलों से निकली बँद तथा घर से बाहर निकले व्यक्ति में एक ही समानता है कि वे अपने जीवन तथा भविष्य के प्रति भय और संकोच से पूर्ण होते हैं। उनको डर लगता है कि बाहर आने पर उनको न जाने किस संकट का सामना करना होगा। परन्तु वे नहीं जानते कि बाहर निकलने वालों को ही जीवन में उन्नति करने का अवसर मिलता है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(22) जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
जो महाप्रलय में मुस्काए
जो अंतिम दम तक रहे डटे
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त-तिलक-भारत-ललाट
उनको मेरा पहला प्रणाम।
फिर वे जो आँधी बन भीषण
कर रहे आज दुश्मन से रण
वाणों के पवि संधान बने
जो ज्वालामुखी-हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर
बाधाओं के पर्वत चढ़कर
जो न्याय-नीति को अर्पित हैं
भारत के लिए समर्पित हैं
कीर्तित जिससे यह धरा धाम
उन वीरों को मेरा प्रणाम !

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि सर्वप्रथम किनको प्रणाम कर रहा है?
(ग) “जो न्याय नीति …….. धरा धाम’ में कवि ने भारतीय वीरों के बारे में क्या कहा है?
(घ) ‘बाधाओं के पर्वत’ में अलंकार निर्देश कीजिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘वीरों को प्रणाम।’
(ख) जिन्होंने भारत के माथे पर अपने रक्त से तिलक किया है, कवि उन बलिदानियों को सर्वप्रथम प्रणाम कर रहा है।
(ग) ‘जो न्याय-नीति……धरा धाम’-काव्य-पंक्ति में कवि ने न्याय तथा नीति के मार्ग पर चलने वाले, भारत को अपना सर्वस्व भेंट करने वाले वीर बलिदानियों की प्रशंसा की है तथा उनको सम्मानपूर्वक प्रणाम किया है।
(घ) “बाधाओं के पर्वत’ में रूपक अलंकार है। कवि ने यहाँ देशप्रेमियों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को पर्वत माना है। उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप होने से यहाँ रूपक अलंकार है।

(23) मन समर्पित, तन समर्पित,
और यह जीवन समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती,
तुझे कुछ और भी हूँ।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अंकिचन,
किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाले में लाऊँ सजाकर भाल जब भी,
कर दया स्वीकार लेना समर्पण,
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
रक्त का कण-कण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी हूँ।
कर रहा आराधना मैं आज तेरी,
एक विनती तो करो स्वीकार मेरी,
भाले पर मल दो चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया घनेरी,
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी हूँ।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि स्वदेश को क्या-क्या समर्पित कर चुका है? इसके बाद भी वह क्या चाहता है?
(ग) कवि थाल में क्या रखकर मातृभूमि को भेंट देना चाहता है तथा क्यों? उससे वह क्या प्रार्थना कर रहा है?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में कौन-सा रस है तथा उसका स्थायी भाव क्या है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘स्वदेश के प्रति समर्पण।’
(ख) कवि स्वदेश को अपना तन, मन, अगणित रक्तकण, सपने, अपनी आयु तथा अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर चुका है परन्तु उससे वह संतुष्ट नहीं है। वह चाहता है कि मातृभूमि को कुछ और वस्तुएँ भेंट करे।
(ग) कवि थाल में अपना मस्तक रखकर मातृभूमि को भेंट करना चाहता है, क्योंकि वह उसके कर्ज से दबा है। वह उससे निवेदन कर रहा है कि वह इस तुच्छ भेंट को दया करके स्वीकार कर ले।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में वीर रस है तथा इसका स्थायी भाव उत्साह है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(24) प्रकृति नहीं डरकर झुकती है।
के भी भाग्य के बल से ,
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से; श्रमजल से ।
ब्रह्म का अभिलेख पढ़ा
करते निरुद्यमी प्राणी,
धोते वीर कु-अंक भाल का
बहा भुवों से पानी
भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का
जिससे रखता दबा एक जन
भाग दूसरे जन की।
पूछो किसी भाग्यवादी से,
यदि विधि-अंक प्रबल है,
क्यों न उठा लेता निज संचित
को भाग्य के बल से ?

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) प्रकृति किससे नहीं डरती? उसको कौन जीतता है?
(ग) ‘ब्रह्मा का अभिलेख’ क्या है? उसको कौन पढ़ते हैं?
(घ) भाग्यवाद को शोषण का अस्त्र क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘मानव जीवन में श्रम की महत्ता ।’
(ख) प्रकृति भाग्य की शक्ति से नहीं डरती। पराक्रमी मनुष्य अपने परिश्रम से उसे जीत लेता है।
(ग) भाग्य को ब्रह्मा का अभिलेख कहा गया है। कायर और श्रम से डरने वाले लोग ही इसको पढ़ते हैं और भाग्य-भाग्य चिल्लाते हैं।
(घ) चालाक लोग भोले-भालेजनों का शोषण यह कहकर करते हैं कि निर्धनता और अभाव उनके भाग्य में लिखी है। इसके विपरीत उनको भाग्य ने ही सम्पन्न बनाया है।

(25) नीलांबर परिधान हरित पट सुंदर है,
सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन, है
बंदीजन खग-वृंद, शेषफन सिंहासन हैं
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की
है मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।
जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं।
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं।
परमहंस सम बाल्य काल में सब सुख पाए
जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाए
हम खेले कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृभूमि तुझको निरख, मग्न क्यों न हो गोद में
पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है
बस तेरे ही सरस सार से सनी हुई है
फिर अंत समय तू ही इसे अचल देख अपनाएगी
हे मातृभूमि यह अंत में, तुझमें ही मिल जाएगी।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश के पूर्व भाग में कवि ने प्रकृति का क्या वर्णन किया है?
(ग) कवि को मातृभूमि के दर्शन कर प्रसन्नता क्यों होती है?
(घ) कवि ने मानव-शरीर को मातृभूमि से क्या संबंध बताया है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘मातृभूमि के उपकार ।’
(ख) कवि ने काव्यांश के पूर्व भाग में आकाश को भारत माता का वस्त्र, सूर्य-चन्द्र को उसका मुकुट, समुद्र को उसकी मेखला, शेषनाग का फन उसका सिंहासन तथा पक्षियों को उसका गौरव बखान करने वाले चारण बताया है।
(ग) कवि बचपन से ही मातृभूमि की धूल में खेलकर बड़ा और समर्थ हुआ है। वह आज जो कुछ है, वह मातृभूमि के कारण ही है। अपनी उपलब्धियों के कारण मातृभूमि के दर्शन करने से उसे प्रसन्नता होती है।
(घ) कवि ने बताया है कि मनुष्य का शरीर मातृभूमि की मिट्टी से ही बनता है और अन्त में राख होकर इसी की मिट्टी में मिल जाता है। मानव देह का मातृभूमि से अटूट सम्बन्ध है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(26) पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश,
पल पल परिवर्तित प्रकृति वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रही है बार बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पड़ा ताल
दर्पण सा फैला है विशाल
गिरि के गौरव गाकर झर-झरे
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर
।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) पर्वत का आकार कैसा है? वह अपने सहस्र नेत्रों से क्या देख रहा है?
(ग) पर्वत के चरणों में क्या पड़ा है? किसके समान लग रहा है?
(घ) रेखांकित पंक्तियों की भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘पर्वत-प्रदेश में वर्षा ऋतु ।’
(ख) पर्वत का आकार मेखलाकार है। वह अपने हजार नेत्रों से नीचे फैले जल की परछाईं में अपने महान् आकार को देख रहा है।
(ग) पर्वत के चरणों में विशाल तालाब जल से भरा हुआ लहरा रहा है, जो पर्वत से बहने वाले झरनों से ही बना है।
(घ) भावार्थ-कवि पहाड़ से बहने वाले निर्झरों का वर्णन करते हुए कहता है कि झरने अपने झागों से भरे जल के साथ पहाड़ से नीचे झरते हैं तो ऐसा लगता है मानो वे मोतियों की लड़ियों से बनी सुंदर मालाएँ हों ।

(27) मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।
अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ।
तूफानों – भूचालों की भयप्रद छाया में
मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता हूँ।
मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी कितना व्यापक है,
इसमें मुझसे अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है
अपने पर अदम्य विश्वास रहा है।
मैं खण्डहर को फिर से महल बना सकता हूँ
जब-जब भी मैंने खण्डर आबाद किए हैं।
प्रलय-मेघ, भूचाल देख मुझको शरमाए
मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) मजदूर पृथ्वी पर किसका निर्माण करता है?
(ग) “मैं’ की संज्ञा के व्यापक होने का क्या तात्पर्य है?
(घ) अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ।’
मजदूर के इस कथन से उसकी तथा दूसरों की क्या विशेषता प्रकट होती है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-“मैं मजदूर हूँ।’
(ख) मजदूर पृथ्वी पर स्वर्ग का निर्माण करता है। वह अपने परिश्रम से पृथ्वी को स्वर्ग के समान सुन्दर और सुखद बना देता है।
(ग) “मैं’ शब्द का प्रयोग मजदूर ने अपने लिए किया है। इस शब्द में संसार के समस्त मजदूर सम्मिलित हैं। मैं की संज्ञा की व्यापकता का यही तात्पर्य है।
(घ) “अपने नहीं ‘अभाव ……….. मिटा सकता हूँ’-मजदूर के इस कथन से मजदूर की श्रमशीलता तथा । निर्धनता प्रकट होती है, तो दूसरी ओर धनवान् लोगों की दूसरों का शोषण करके ऐशो-आराम का जीवन जीने की प्रवृत्ति प्रकट होती है।

(28) आजानुबाहु ऊँची करके, वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले में भारत की आजादी तुम मुझसे लेना।
हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इन्कलाब के नारों के कोसों तक छाए जाते थे।
हम देंगे-देंगे खून” शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, “इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज है, कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है?
अब आगे आए, जिसके तन में भारतीय यूँ बहता हो ।
वह आगे आए जो अपने को हिन्दुस्तानी कहता हो ।
वह आगे आए, जो इस पर खूनी हस्ताक्षर देता हो
मैं कफन बढ़ाता हूँ आए जो इसको हँस कर लेता हो।”

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) सुभाष की बाँहें कैसी थीं? उन्होंने लोगों से क्या कहा?
(ग) सुभाष के कथन ‘इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है’ का क्या तात्पर्य है?
(घ) ‘भारतीय’ शब्द में कौन-सा प्रत्यय जुड़ा है? उस प्रत्यय की सहायता से एक अन्य शब्द बनाइए।
उत्तर:
(क) काव्यांश को उचित शीर्षक-‘सुभाष का आह्वान ।’
(ख) सुभाष की बाँहें जाँघों तक लम्बी थीं। उन्होंने अपनी बाँहें उठाकर लोगों से कहा कि वे भारत की आजादी चाहते हैं तो अपना खून देने को तैयार रहें।
(ग) “इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है’-सुभाष के इस कथन का आशय है कि देश को आजादी बातों से नहीं मिलेगी। उसके लिए त्याग-बलिदान करना जरूरी है।
(घ) ‘भारतीय’ शब्द में ‘ईय’ प्रत्यय जुड़ी है। इस प्रत्यय के योग से बना एक अन्य शब्द है-‘माननीय’।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(29) ओ निराशा, तू बता क्या चाहती है?
मैं कठिन तूफान कितने झेल आया,
मैं रुदन के पास हँस-हँस खेल आया।
मृत्यु-सागर-तीर पर पद-चिह्न रखकर
मैं अमरता का नया संदेश लाया।
आज तू किसको डराना चाहती है।
ओ निराशा, तू बता क्या चाहती है?

शूल क्या देखें चरण जब उठ चुके हैं
हार कैसी, हौसले जब बढ़ चुके हैं।
तेज मेरी चाल आँधी क्या करेगी?
आग में मेरे मनोरथ तप चुके हैं।
आज तू किससे लिपटना चाहती है?

चाहता हूँ मैं कि नभ-थल को हिला दें,
और रस की धार सब जग को पिला दें,
चाहता हूँ पग प्रलय-गीत से मिलाकर
आहे की आवाज पर मैं आग रख दें।
आज तू किसको जलाना चाहती है?
ओ निराशा, तू बता क्या चाहती है?

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) मनुष्य किससे डरता नहीं है तथा क्यों?
(ग) “हार कैसी, हौंसले जब बढ़ चुके हैं’ का आशय प्रकट कीजिए।
(घ) ‘मृत्यु-सागर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(क) काव्यांश का उचित शीर्षक-‘दृढ़ निश्चयी पुरुष।’
(ख) मनुष्य निराशा से नहीं डरता। वह जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझकर मजबूत हो चुका है और उसके मने से निराशा की भावना मिट चुकी है।
(ग) मनुष्य के मन में जब आगे बढ़ने की भावना मजबूत हो जाती है तो उसको हार का भय नहीं रहता। वह पक्के इरादों से साथ निरन्तर आगे बढ़ता है।
(घ) “मृत्यु-सागर’ में रूपक अलंकार है।

(30) मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
हैं फूल रोकते, काँटे मुझे चलाते,
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते,
सच कहता हूँ मुश्किलें न जब होती हैं,
मेरे पग तब चलने में भी शरमाते,
मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे,
तुम पथ के कण-कण को तूफान करो।
मैं तूफानों में चलने की आदी हूँ ।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।
फूलों से मग आसान नहीं होता है,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है,
अवरोध नहीं तो सम्भव नहीं प्रगति भी,
है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है,
मैं बसा सकें नव स्वर्ग धरा पर जिससे,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो।

प्रश्न
(क) पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) ‘मग’ के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
(ग) विनाश या निर्माण का परस्पर क्या सम्बन्ध है?
(घ) इस कविता की प्रेरणा क्या है?
उत्तर:
(क) पद्यांश का उचित शीर्षक–‘बाधाओं से संघर्ष करो।’
(ख) पर्यायवाची शब्द-मग-पथ, मार्ग।
(ग) विनाश होने पर ही निर्माण होता है। विनाश के बाद ही निर्माण सम्भव है।
(घ) इस कविता की प्रेरणा है कि हमें जीवन में आने वाली बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए, उनका दृढ़तापूर्वक मुकाबला करना चाहिए।

अभ्यास प्रश्न

[नोट-नीचे दिए गए काव्यांशों को पढ़कर उनके साथ लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं लिखें।]

(1) थका हारा सोचता मन।
उलझती ही जा रही है एक उलझन ।
अंधेरे में अंधेरे से कब तक लड़ते रहें।
सामने जो दिख रहा है, वह सच्चाई भी कहें।
भीड़ अंधों की खड़ी खुश रेवड़ी खाती
अंधेरों के इशारों पर नाचती-गाती ।
थको हारा सोचता मन।
भूखी प्यासी कानाफूसी दे उठी दस्तक
अंधा बन जो झुका दे तम-द्वार पर मस्तक।
रेवड़ी की बाँट में तू रेवडी बन जा
तिमिर के दरबार में दरबान-सा-तन जा।
उठा गर्दन-जूझता मन।
दूर उलझन, दूर उलझन, दूर उलझन।
चल खड़ा हो पैर में यदि लग गई ठोकर।
खड़ा हो संघर्ष में फिर रोशनी होकर।।
मृत्यु भी वरदान है संघर्ष में प्यारे
सत्य के संघर्ष में क्यों रोशनी हारे ।
देखते ही देखते तम तोड़ता है दम।
और सूरज की तरह हम ठोंकते हैं खम्।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) थके-हारे मन की उलझन क्या है?
(ग) ‘रेवड़ी की बाँट में तू रेवड़ी बन जा’-का क्या आशय है?
(घ) ‘तम’ किसको प्रतीक है। उसके दम तोड़ने का क्या तात्पर्य है?

(2) ईश्वर के बारे में
अनगिनती लोगों ने
अनगिन तरीकों से बखाना है।
उसको अपने ढंग से
अपने-अपने रंग में अनुमाना है।
मैंने जो कुछ बुजुर्गों से गुना है,
देखा-पढ़ा या सुना है,
उससे इतना ही जाना है,
ईश्वर के बारे में
बस इतना माना है
कि तुम भी ईश्वर हो
ये भी ईश्वर हैं,
मैं भी ईश्वर हूँ।
यानी
हम सब के सब ईश्वर हैं।
तो ऐसे रहें।
जैसे भाई-भाई रहते हैं,
प्यार से।
एक-दूसरे को
दलें नहीं, छलें नहीं,
क्योंकि
तुम, ये और मैं,
यानी
हम सब के सब ही तो
ईश्वर हैं।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) ईश्वर के सम्बन्ध में अनेक लोगों के क्या विचार हैं?
(ग) कवि के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या हैं?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने क्या संदेश दिया है।

RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश

(3) तरुणाई है नाम सिंधु की उठती लहरों के गर्जन का,
चट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने जिनके जीवन का।
विफल प्रयासों से भी दूना वेग भुजाओं में भर जाता,
जोड़ा करता जिनके गति से नव उत्साह निरंतर नाता।
पर्वत के विशाल शिखरों-सा यौवन उसका ही है अक्षय,
जिसके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार सदा लय।
अचल खड़े रहते तो ऊँचा, शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती, जिनके यौवन के प्राणों में ।
वही पंथ-बाधा को तोड़ते बहते हैं जैसे हों निर्झर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई ।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको है नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको, है नूतन इतिहास लिखाना
उठो राष्ट्र के नव यौवन तुम, दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जगो देश के प्राण, जगा दो नए प्रात का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो, हममें भी जागी तरुणाई;
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली अंगड़ाई ।।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि के अनुसार यौवन की क्या पहचान है?
(ग) कवि ने नवयुवकों को क्या काम करने की प्रेरणा दी है?
(घ) ‘ई’ प्रत्यय के ‘तरुण’ शब्द में योग से ‘तरुणाई’ शब्द बना है। ‘ई’ प्रत्यय के योग से एक अन्य शब्द बनाइए।

(4) दो न्याय अगर तो आधा दो।
पर इसमें भी यदि बाधा हो ।
तो दे दो केवल पाँच गाँव
रखो अपनी धरती तमाम ।
हम वहीं खुशी से खाएँगे,
परिजन पर असि न उठाएँगे।
दुर्योधन वह भी दे न सको,
आशीष समाज की ले न सका
उलटे हरि को बाँधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से क्या माँगा?
(ग) दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की बातों का क्या उत्तर दिया?
(घ) ‘परिजन पर असि ने उठाएँगे’ में कौन-सा अलंकार है तथा क्यों?

(5) सच हम नहीं सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही।
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।
जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृंत से झर के कुसुम ।
जो लक्ष्य भूल रुका नहीं।
जो हार देख झुका नहीं।
जिसने प्रणय पाथेय माना जीत उसकी ही रही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
ऐसा करो जिससे ने प्राणों में कहीं जड़ता रहे।
जो है जहाँ चुपचाप अपने-आप से लड़ता रहे।
जो भी परिस्थितियाँ मिलें। काँटे चुनें, कलियाँ खिलें।
हारे नहीं इंसान, है संदेश जीवन का यही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कवि के अनुसार सच क्या है?
(ग) “जो नत हुआ सो मृत हुआ’-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘पाथेय’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

We hope the RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi अपठित पद्यांश, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

RBSE Solutions for Class 10 Hindi

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)

Related

Filed Under: Class 10

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Solutions for Class 7 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 6 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 7 Maths Chapter 15 Comparison of Quantities In Text Exercise
  • RBSE Solutions for Class 6 Maths Chapter 6 Decimal Numbers Additional Questions
  • RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 3 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 3 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Maths in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 in Hindi Medium & English Medium

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2023 RBSE Solutions