RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् पत्र-लेखनम् is part of RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् पत्र-लेखनम्.
Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् पत्र-लेखनम्
अयं कालः संचारक्षेत्रे समृद्धकालः अस्ति। विचाराणाम् आदानप्रदानार्थं बहूनि संचारसाधनानि सन्ति परम् अद्यापि पत्रं विचारसम्प्रेषणस्य प्रमुखं साधनं वर्तते । पत्रस्य महत्त्वम् अनेन ज्ञातुं शक्यते यत् अस्मिन् संचारसमृद्धकालेऽपि कार्यालयसम्बन्धि-सूचनानाम् आदान-प्रदानं पत्रमाध्यमेन एव अधिकं भवति ।
पत्रमाध्यमेन वयं विविध-वार्ताः, वैयक्तिकविचारान्, चिन्तनानि, संवेदनाः, अनुभूतिं च प्रकटयितुं शक्नुमः। व्यापारक्षेत्रे, कार्यालयानां कार्यसंदर्भ च वयं पत्राणाम् एव प्रयोगं कुर्मः। अतएव अस्मिन् युगेऽपि पत्रलेखनस्य विशिष्टं महत्त्वं वर्तते । पत्रं द्विविधं भवति-
- औपचारिक-पत्रम्
- अनौपचारिक-पत्रम् ।
औपचारिकपत्रान्तर्गतं सर्वकारकार्यालयैः व्यावसायिकसंस्थाभि: च कृत: पत्रव्यवहारः आयाति । शुभकामनापत्रं, निमन्त्रणपत्रं, शोकसंवेदनापत्रं, समस्यामूलकपत्रम् इत्यादीनि पत्राणि अपि औपचारिकपत्राणि एवं कथ्यन्ते।
अनौपचारिकपत्रस्य अपरनाम व्यक्तिगतपत्रमपि भवति । स्वात्मीयजनानां कृते यत् पत्रं लिख्यते तत् अनौपचारिकपत्रं, व्यक्तिगतपत्रं वा कथ्यते।
(यह समय संचार क्षेत्र में उन्नति का समय है। अर्थात आधुनिक समय में संचार क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई है। विचारों के आदान-प्रदान के लिए अनेक सञ्चार के साधन हैं, लेकिन आज भी पत्र विचारों को भेजने का मुख्य साधन है। पत्र का महत्व इससे जान सकते हैं कि इस सञ्चार के प्रगतिकाल में भी कार्यालय-सम्बन्धी सूचनाओं का आदान-प्रदान पत्र के माध्यम से ही अधिक होता है।
पत्र के माध्यम से हम सब अनेक वार्ता, व्यक्तिगत विचारों को, चिन्तन को, संवेदना और अनुभव को प्रकट करने में समर्थ हैं। व्यापार क्षेत्र में, कार्यालयों के कार्य-सन्दर्भ में, हम सब पत्रों का ही प्रयोग करते हैं। इसलिए इसे युग में भी पत्रे लिखने का विशेष महत्व है। पत्र दो प्रकार का होता है- 1. औपचारिक पत्र 2. अनौपचारिक पत्र। औपचारिक पत्र के अन्तर्गत सरकारी कार्यालयों से और व्यावसायिक संस्थाओं से किया गया पत्र व्यवहार आता है। शुभकामना पत्र, निमन्त्रण पत्र, शोकसंवेदना पत्र, समस्यामूलक पत्र आदि पत्र भी अनौपचारिक पत्र ही कहे जाते हैं । अनौपचारिक पत्र का दूसरा नाम व्यक्तिगत पत्र भी होता है। प्रियजनों (परिवार, मित्र आदि) के लिए जो पत्र लिखा जाता है वह अनौपचारिक पत्र अथवा व्यक्तिगत पत्र कहा जाता है।
प्राचीनकाल में तो पत्र-लेखन-प्रणाली आज की प्रणाली से पूर्णतया भिन्न थी । उस समय पत्र-लेखन का आरम्भ ‘स्वस्ति’ या ‘शुभमस्तु’ से किया जाता था और प्रथम वाक्य में लिखने के स्थान अर्थात् लेखक के स्थान की सूचना देते हुए पत्र-लेखक जहाँ और जिसके पास अपना पत्र भेजना चाहता था, उसका उल्लेख करते हुए अपना परिचय (नाम-निवासादि) लिखता था, परन्तु वर्तमान काल में हिन्दी भाषा में लिखे जाने वाले पत्रों के समान संस्कृत में भी पत्र लिखे जाने लगे हैं । हिन्दी पत्र-लेखन पर अंग्रेजी पत्र-लेखन का प्रभाव स्पष्ट है । अतः यहाँ जो भी पत्र दिए जाएँगे, वे नूतन शैली पर ही होंगे।
वर्तमान पत्र-लेखन शैली के अङ्ग – वैयक्तिक (अनौपचारिक) पत्रों के सामान्यतः आठ अङ्ग होते हैं
- माङ्गलिक पद
- स्थान और दिनांक
- सम्बोधन
- नमस्कारात्मक (प्रणाम, आशीर्वाद, अभिनन्दन) ।
- कुशल सूचना
- सन्देश
- उपसंहार
- प्रेषक का परिचय और हस्ताक्षर
पत्र-लेखन सम्बन्धी आवश्यक निर्देश
पत्र जितना संक्षिप्त एवं व्यवस्थित रूप में लिखा जाएगा, वह पाठक को उतना ही अधिक प्रभावित करेगा । अतः पत्र को अधिक आकर्षक, बोधगम्य एवं असंदिग्ध बनाने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए
- पत्र-लेखन बहुत ही सरल एवं स्पष्ट भाषा में होना चाहिए ।
- वाक्य यथासंभव छोटे और सारगर्भित होने चाहिए ।
- पत्र जिस उद्देश्य से लिखा जा रहा हो, उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ।
- पत्र में अनावश्यक बातों एवं विशेषणों का प्रयोग न करें ।
- जिसके लिए पत्र लिखा जा रहा है, उसके लिए यथोचित संबोधन प्रयुक्त करना चाहिए ।
वैयक्तिक (अनौपचारिक) पत्रों के अङ्गों का स्थान-निर्देश
1. स्थान और दिनांक आदि – पत्र के दायीं ओर भेजने वाले का पूरा पता, उसके नीचे दिनांक लिखी जाती है । जैसे:
आदर्श विद्यामन्दिरम्
भरतपुरतः
दिनांक – 28.08.20–
2. स्थान के नाम के साथ पंचमी विभक्ति के स्थान पर ‘तसिल्’ (त:) प्रत्यय का भी प्रयोग किया जा सकता है ? जैसे- ‘जयपुरात्’ के स्थान पर ‘जयपुरतः’ आदि ।
3. वर्तमान समय में स्थान के साथ पंचमी विभक्ति व ‘तसिल्’ (त:) प्रत्यय की जगह नपुंसकलिङ्ग प्रथमा विभक्ति, एकवचन का प्रयोग किया जा सकता है । जैसे – जयपुरम्, दिल्लीनगरम् आदि ।
4. दिनांक लिखने में (पत्र के दायीं ओर स्थान के नीचे) हिन्दी की शैली अपनाई जा सकती है जैसे- 04.08.20– आदि ।
5. सम्बोधन – पत्र के बायीं ओर किनारे पर आदरसूचक या स्नेहसूचक सम्बोधन-शब्दों द्वारा जिसे पत्र लिखा जाता है, उसी के अनुरूप सम्बोधन का प्रयोग किया जाना चाहिए । ये सम्बोधन के शब्द पत्र के बायीं ओर लिखे जाने चाहिए, जैसे
परमादरणीयाः पितृमहाभागाः
सादरं प्रणतिः ।
6. नमस्कारात्मक शब्द- अभिवादन में अपने से बड़े के लिए प्रणामः, प्रणतिः, सादराभिवादनम् आदि शब्दों का प्रयोग, बराबर वालों (मित्रों आदि) के लिए नमस्ते, वन्दे, अभिनन्दनम् आदि शब्दों का प्रयोग तथा अपने से छोटों के लिए शुभाशिषः, चिरञ्जीव, प्रिय आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
7. कुशल-सूचना – विषयवस्तु लिखने से पूर्व कुशल-सूचना लिखी जानी चाहिए, जैसे- ‘अत्र कुशलं तत्रास्तु । अत्र सर्वं कुशलं भवान्/भवती अपि तथैव स्यात्’ आदि ।
8. मुख्य विषय – अभिवादन के नीचे कुशल समाचार लिखे जाने के बाद मुख्य विषय के रूप में सन्देश लिखा जाना चाहिए । विषय-वस्तु ऐसी होनी चाहिए कि पत्र पढ़ने वाला स्पष्ट रूप से समझ सके ।
9. उपसंहार – मुख्य विषय या सन्देश के पश्चात् छोटे-बड़ों को यथायोग्य अभिवादन प्रस्तुत करके पत्र का उपसंहार किया जाना चाहिए ।
10. निवेदन – सन्देश अथवा मुख्य विषय की प्रस्तुति के पश्चात् नीचे दाहिनी ओर निवेदन के रूप में भवदाज्ञाकारी, भवदीयः, भवत्कः, विनीतः, शुभेच्छु: आदि शब्दों का प्रयोग करके अपना नाम लिखना चाहिए ।
अन्य – यह विशेष ध्यान देने योग्य बिन्दु है कि पत्र लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्नपत्र में जिसे पत्र लिखने के लिए कहा जाए, जिस नाम और स्थान से लिखने को कहा जाए तथा जो भी आपका नाम लिखने के लिए कहा जाये, परीक्षा में नाम एवं स्थान आदि के स्थान पर उन्हीं का प्रयोग किया जाना चाहिए । प्रश्नपत्र में कहे गये सम्बोधन का भी उल्लेख करना चाहिए । अपना स्वयं का वास्तविक नाम, स्थान तथा अन्य कोई काल्पनिक नाम व स्थान नहीं लिखना चाहिए।
संक्षेप में पत्र का प्रारूप
(i) स्थान …………
ii) दिनाङ्क ……………….
(iii) सम्बोधन ।
(iv) अभिवादन
(v) कुशल-सूचना (vi) सन्देश (मुख्य विषय) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..(vii) उपसंहार ……………
(viii) पत्र लिखने वाले का नाम
(हस्ताक्षर)
उपर्युक्त निर्देशों को निम्नलिखित सारणी द्वारा संक्षेप में स्पष्ट किया गया है
अत्र अभ्यासार्थं कानिचन पत्राणि दीयन्ते। छात्राः तानि पठित्वा पत्रलेखनस्य अभ्यासं कुर्युः। (यहाँ अभ्यास के लिए कुछ पत्र दिये गए हैं। छात्रों को उनको पढ़कर पत्र लिखने का अभ्यास करना चाहिए।)
पाठ्यपुस्तक में प्रदत्त पत्र
अनौपचारिक-पत्राणि
(1) पित्रे पत्रम्
जयपुरतः
दिनाङ्कः 11.03.20–
श्रद्धेयेषु पितृचरणेषु,
सादरं प्रणामाः।
अत्रकुशलं तत्रास्तु। भवदीयं स्नेहापूरितं पत्रम अद्यैव अहं प्राप्तवान्। सम्पूर्णं वृत्तं च ज्ञातवान् । अधुना मम वार्षिकी परीक्षा प्रचलति । परीक्षायाम् इदानीं यावत् सर्वाणि प्रश्नपत्राणि सम्यक् अभवन् । शेषविषयाणां स्थितिः अपि समीचीना वर्तते। आशासे यत् परीक्षायाम् उत्तमान् अङ्कान् प्राप्य कक्षायां श्रेष्ठस्थान प्राप्स्यामि।
परीक्षानन्तरं शीघ्रमेव गृहम् आगमिष्यामि। पूजनीयेषु मातृचरणेषु मम प्रणामः कथनीयः। अनुजाय आशिषः।
भवदाज्ञाकारी पुत्रः
राकेश:
हिन्दी अनुवाद – पिता के लिए पत्र
जयपुर
दिनाङ्कः 11.03.20–
श्रद्धेय पिता के चरणों में
सादर प्रणाम।
यहाँ कुशल हैं, वहाँ भी कुशल हों। आपका स्नेह (प्रेम) भरा हुआ पत्र आज ही मुझे प्राप्त हुआ। सम्पूर्ण समाचार मालूम हुए। अब मेरी वार्षिक परीक्षा चल रही है। परीक्षा में इस समय तक सभी प्रश्नपत्र ठीक हुए हैं। शेष विषयों की स्थिति भी ठीक है। आशा है कि परीक्षा में अच्छे अङ्क प्राप्त करके कक्षा में अच्छा स्थान प्राप्त करूंगा।। परीक्षा के बाद शीघ्र ही घर आऊँगा। पूज्यनीय माताजी के चरणों में प्रणाम कहना। छोटे भाई के लिए आशीर्वाद।
आपका आज्ञाकारी बेटा
राकेश
(2) अनुजाय पत्रम्
बीकानेरत:
संस्कृत-दिवस:
दिनाङ्कः 18.08.20–
प्रिय अनुज प्रवीण !
शुभाशीर्वादाः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु । तव पत्रम् अद्य एव मया प्राप्तम्। पत्रं पठित्वा सर्वं वृत्तं ज्ञातं, प्रसन्नता च संजीता। त्वं संस्कृतविद्यालये आयोजिते संस्कृतसम्भाषणशिविरे भागं गृहीतवान्। एकमासस्य अभ्यासानन्तरम् अधुना त्वं संस्कृतसम्भाषणे प्रवीणः अभवः इति अस्माकं कृते प्रसन्नतायाः विषयः वर्तते। पित्रा उक्तं यत् यदि योग्यताभिवृद्धयर्थं एतादृशाः अन्ये अपि कार्यक्रमाः आयोज्यन्ते तर्हि तेषु त्वया पूर्णोत्साहन भागः गृहीतव्यः। अध्ययने अपि अवधानं दातव्यम्।
शेषं सर्वं कुशलम्। समये-समये च स्वाध्ययनस्थिति-विषये अवबोधय।।
त्वदीय: शुभाकांक्षी
सुरेशः
हिन्दी अनुवाद – छोटे भाई के लिए पत्र
बीकानेर
संस्कृत-दिवस
दिनांक 18.08.20–
प्रिय अनुज प्रवीण
शुभ आशीर्वाद
यहाँ कुशल है वहाँ भी कुशल हों। तुम्हारा पत्र आज ही मुझे प्राप्त हुआ। पत्र पढ़कर सब समाचार मालूम हुए और प्रसन्नता हुई । तुमने संस्कृत विद्यालय में आयोजित संस्कृत संभाषण शिविर में भाग लिया। एक महीने के अभ्यास के बाद अब तुम संस्कृत भाषण में चतुर (होशियार) हो गये हो, यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है। पिताजी द्वारा कहा गया है कि यदि योग्यता बढ़ाने के लिए ऐसे अन्य भी कार्यक्रम आयोजित होते हैं, तो उनमें तुम्हारे द्वारा पूर्ण उत्साह से भाग लेना चाहिए। पढ़ने में भी ध्यान देना चाहिए।
शेष सब कुशल हैं। समय-समय पर अपने पढ़ने की स्थिति के विषय में बताना चाहिए।
तुम्हारा शुभाकांक्षी
सुरेश
(3) मित्राय पत्रम्
अजयमेरुतः
दिनाङ्कः 08.05.20–
प्रियमित्र दीपक!
नमस्ते !
अत्र अहं कुशलः, भवतः कुशलतां कामये। अहं मातापितृभ्यां सह अस्मिन् ग्रीष्मावकाशसमये भ्रमणार्थं हिमाचलप्रदेश गमिष्यामि। भवान् अपि अस्माभिः सह तत्र चलतु इति मम प्रबलेच्छा अस्ति। वयं सर्वे तत्र मिलित्वा आनन्दानुभवं करिष्यामः। मदीयः अयं प्रस्तावः भवते रोचते चेत्, ज्ञापयतु ।। परिवारे पूज्येभ्यो सर्वेभ्यो जनेभ्यो मम सादरप्रणाम: निवेदनीयः। पत्रस्योत्तरं शीघ्रमेव प्रेषणीयम्।
भवतः मित्रम्
सोहनः
हिन्दी अनुवाद – मित्र के लिए पत्र
अजमेर
दिनाङ्कः 08.05.20_
प्रिय मित्र दीपक
नमस्ते ।
यहाँ मैं कुशल हूँ, आपकी कुशलता की कामना करता हूँ। मैं माता-पिता के साथ इन गर्मी की छुट्टियों में घूमने के लिए हिमाचल प्रदेश जाऊँगा। आप भी हमारे साथ वहाँ चलें, इस प्रकार मेरी प्रबल इच्छा है। हम सब वहाँ मिलकर आनन्द का अनुभव करेंगे। मेरा यह प्रस्ताव आपको रुचिकर लगेगा, ठीक है सूचित करो।
परिवार में सभी पूज्यनीयों के लिए मेरा सादर प्रणाम निवेदन करना।
पत्रोत्तर शीघ्र भेजना चाहिए।
आपका मित्र
सोहन
प्रार्थना-पत्राणि
1. भवान् दशम्याः कक्षायाः छात्रः महेन्द्रः अस्ति। स्वविद्यालयस्य प्रधानाचार्याय दिनद्वयस्य रुग्णावकाशार्थं प्रार्थनापत्रं लिखतु।
उत्तरम्:
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यामहोदयाः
राजकीयः आदर्श-उच्च माध्यमिक विद्यालय,
जयपुरम् (राज.)
विषय – दिनद्वयस्य रुग्णावकाशार्थं प्रार्थनापत्रम्।
महोदयाः !
उपर्युक्तविषयान्तर्गते निवेदनम् अस्ति यत् अहं गतदिवसात् अतीव रुग्णोऽस्मि। अतः अहं विद्यालयम् आगन्तुं समर्थ: नास्मि।
प्रार्थना अस्ति यत् 13.3.20– तेः 14.3.20– दिनाङ्कपर्यन्तं दिनद्वयस्य अवकाशं स्वीकृत्य माम् अनुग्रहीष्यन्ति।
दिनांक
13.03.20_
भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः 13.03.20_
महेन्द्रः
कक्षा-दशमी
हिन्दी अनुवाद
1. आप देशवीं कक्षा के छात्र महेन्द्र हैं। अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य के लिए बीमार होने के अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय
राजकीय आदर्श-उच्च माध्यमिक विद्यालय
जयपुर (राजस्थान)
विषयः- दो दिन की अस्वस्थता अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र
महोदय,
उपर्युक्त विषय के अन्तर्गत निवेदन है कि मैं गत दिन से अत्यन्त बीमार हूँ। इसलिए मैं विद्यालय आने में समर्थ नहीं है।
प्रार्थना है कि 13.03.– से 14.03.– दिन तक दो दिन का मुझे अवकाश स्वीकार कर अनुगृहीत करेंगे।
दिनाङ्कः
13.03.20_
आपका आज्ञाकारी शिष्य
महेन्द्र
कक्षा-10
2. आत्मानं दशम्याः कक्षायाः योगेशं मत्वा स्वविद्यालयस्य प्रधानाचार्याय पार्श्वस्थे विद्यालये आयोज्यमानासु क्रीडाप्रतियोगितासु धावन-प्रतिस्पर्धायां भागं ग्रहीतुं प्रार्थनापत्रं लिखतु ।
उत्तरम्:
सेवायाम्,
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदया:,
राजकीय-माध्यमिक विद्यालयः,
कोटड़ा, उदयपुरम्
विषयः- धावनप्रतियोगितायां भाग-ग्रहणम्
महोदयाः।
उपर्युक्तविषयान्तर्गतं सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् राजकीय-आदर्श-उच्चमाध्यमिक-विद्यालये (कोटड़ा इत्यत्र) 23.09.20.-.- तः 25.09.20-… दिनाङ्कपर्यन्तं क्रीडाप्रतियोगिता आयोजिताः भविष्यन्ति।
अहमपि तत्र धावनप्रतियोगितायां भाग ग्रहीतुम् इच्छामि। अत: निवेदनम् अस्ति यत् भवन्तः मां क्रीडाप्रतियोगितायां भागं ग्रहीतुम् अनुमति प्रदाय अनुग्रहीष्यन्ति।
दिनाङ्कः
20.09.20–
भवताम् आज्ञाकारी शिष्यः
योगेशः
कक्षा-दशमी
हिन्दी अनुवाद
2. अपने को दशमी कक्षा का योगेश मानकर अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य के लिए पास में स्थित विद्यालय में आयोजित खेल प्रतियोगिता में दौड़ने में भाग लेने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य महोदय
राजकीय-माध्यमिक विद्यालय
कोटड़ा, उदयपुर
विषय:- दौड़ प्रतियोगिता में भाग ग्रहण करना
महोदय,
उपरोक्त विषय के अन्तर्गत निवेदन है कि राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में (कोटड़ा यह यहाँ) 23.09. 20– से 25.09.20– दिनांक तक खेल प्रतियोगिता आयोजित होगी।
मैं भी वहाँ दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ। इसलिए निवेदन है कि आप मुझे खेल प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु अनुमति प्रदान कर अनुग्रहीत करेंगे।
दिनाङ्क:
20.09.2017
आपको आज्ञाकारी शिष्य
योगेश
कक्षा-10
अन्य महत्त्वपूर्ण पत्र
अभ्यासः
निर्देशः – समुचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयित्वा पत्रं पुनः लिखत- (उचित पदों (शब्दों) के द्वारा रिक्त स्थानों को भर कर पत्र को पुनः लिखिए– )
(1) विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवम् अधिकृत्य मित्रं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयत ।
(विद्यालय के वार्षिक उत्सव के आधार पर मित्र को लिखे गये पत्र के रिक्तस्थानों की पूर्ति मजूषा में दिये पदों की सहायता से कीजिए ।)
मञ्जूषा – वार्षिकोत्सवः, कार्यक्रमम्, मित्रम्, प्रणाम:, व्यस्ताः, मुख्यातिथिः, पारितोषिकानि, राम ।
परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः25-03-20
प्रिय (i) …………..
अद्य तव पत्रं प्राप्तम् । अग्रे समाचार: अयम्, यत् गते सप्ताहे विद्यालयस्य (ii) …………. आसीत् । अहं सर्वे च अध्यापकाः (iii) ………… आस्मः । शिक्षानिदेशकः कार्यक्रमस्य (iv) ……………आसीत् । सः अस्माकम् (v) ……………… प्राशंसत् । सः योग्येभ्यः छात्रेभ्यः (vi) …………….. अयच्छत् । पितृभ्यां मम (vii) ………………… निवेदयतु ।
भवत: (viii) …………………….
क ख ग
उत्तरम्
परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय राम !
अद्य तव पत्रं प्राप्तम् । अग्रे समाचारः अयम्, यत् गते सप्ताहे विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः आसीत् । अहं सर्वे च अध्यापका: व्यस्ताः आस्मः । शिक्षानिदेशकः कार्यक्रमस्य मुख्यातिथि: आसीत् । सः अस्माकं कार्यक्रम प्राशंसत् । सः योग्येभ्य: छात्रेभ्य: पारितोषिकानि अयच्छत् । पितृभ्यां मम प्रणाम: निवेदयतु ।
भवतः मित्रम्
क ख ग
हिन्दी-अनुवाद
परीक्षा भवन
दिनांक: 25.03.20–
प्रिय राम !
आज तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ । आगे समाचार यह है कि गत सप्ताह विद्यालय का वार्षिक उत्सव हुआ । मैं और सभी अध्यापक व्यस्त थे । शिक्षा निदेशक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे । उन्होंने हमारे कार्यक्रम की प्रशंसा की । उन्होंने योग्य छात्रों को पारितोषिक भी प्रदान किये । माताजी और पिताजी को प्रणाम निवेदन करना ।
तुम्हारा मित्र
क ख ग
(2) मित्रं प्रति लिखितं निम्नलिखितं पत्रं मजूषायां प्रदत्तैः उचितैः शब्दैः पूरयत ।
(मित्र को लिखे गए निम्नलिखित पत्र को मञ्जूषा में दिये गये पदों से भरिए ।)
मजूषा- विना, तत्र, वयं, सस्नेहं, चेन्नईतः, ह्यः, मग्नाः अपि ।।
(i) …………..
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय मित्र दिवाकर !
(ii) …………… नमस्ते ।
(iii) ………………. अहं मित्रैः सह जन्तुशालां द्रष्टुं काननवनम् अगच्छम् । तत्र (iv) …………………. अनेकान् पशून् अपश्याम । सर्वे पशवः इतस्तत: भ्रमन्ति स्म । सिंहाः उच्चस्वरैः अगर्जन् । मयूराः नृत्ये (v) …………… आसन्। वस्तुतः मयूरं (vi)……………. जन्तुशालायाः भव्यशोभा ? तत्र आम्रवृक्षाः अपि आसन्, कोकिला (vii) ……………। वस्तुत: यत्र आम्रवृक्षाः (viii) …………….. कोकिला तु भविष्यति एव । अग्रे पुन: लेखिष्यामि । सर्वेभ्यः मम नमस्कारः कथनीयः ।
भवदीयम् अभिन्नमित्रम्
शेखरः
उत्तरम् –
चेन्नईतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय मित्र दिवाकर !
सस्नेह नमस्ते ।
ह्यः अहं मित्रैः सह जन्तुशाला द्रष्टुं काननवनम् अगच्छम् । तत्र वयम् अनेकान् पशून् अपश्याम । सर्वे पशवः इतस्ततः भ्रमन्ति स्म । सिंहाः उच्चस्वरैः अगर्जन् । मयूराः नृत्ये मग्ना: आसन् । वस्तुत: मयूरं विना कुत्र जन्तुशालायाः भव्यशोभा ? तत्र आम्रवृक्षाः अपि आसन्, कोकिला अपि । वस्तुतः यत्र आम्रवृक्षाः तत्र कोकिला तु भविष्यति एव । अग्रे पुनः लेखिष्यामि । सर्वेभ्यः मम नमस्कारः कथनीयः ।।
भवदीयम् अभिन्नमित्रम्
शेखरः
हिन्दी-अनुवाद
चेन्नई
दिनांक: 25.03.20–
प्रियमित्र दिवाकर !
सप्रेम नमस्ते ।
कल मैं मित्रों के साथ चिड़ियाघर देखने काननवन गया । वहाँ हमने अनेक पशुओं को देखा । सभी पशु इधरउधर घूम रहे थे । सिंह उच्च स्वर में गर्जना कर रहे थे । मोर नाचने में मग्न थे । वास्तव में मोर के बिना चिडियाघर की भव्य शोभा कहाँ ? वहाँ आम के वृक्ष भी थे, कोयल भी ( थी) । वास्तव में जहाँ आम के पेड़ (हों), वहाँ कोयल भी होगी ही । आगे फिर लिखेंगा । सभी के लिए मेरा नमस्कार कहना ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
शेखर
(3) अनुजं प्रति लिखिते पत्रे मजूषायां प्रदत्तैः शब्दैः रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत ।
(छोटे भाई को लिखे गए पत्र में मजूषा में दिये गये शब्दों से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए ।)
मञ्जूषा- गणितविषये, छात्रावासतः, अनुज, आशिष:, ह्यः, शोभनः, तव, प्राप्ताः ।
(i) ………….
आगरा
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय (ii) ………… सोमेश !
सस्नेहं (iii) …………….. ।
(iv) …………….. अहं तव पत्रं प्राप्तवान् । (v) ……………. परीक्षा परिणामः (vi) …………… अस्ति, परं (vii) …………… भवता न्यूना: अङ्काः (viii) …………. इति सखेदं मया अधीतम् । त्वं प्रतिदिनं प्रात:काले उत्थाय गणितस्य अभ्यासं कुरु, गणिताध्यापकं च पुनः पुनः प्रश्नान् पृच्छ । अभ्यासेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति । पित्रोः चरणयोः सादरं प्रणामः ।
भवदीयः अग्रजः
श्रीशः
उत्तरम् –
छात्रावासतः
आगरा
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय अनुज सोमेश !
सस्नेहम् आशिषः ।।
ह्यः अहं तव पत्रं प्राप्तवान् । तव परीक्षापरिणाम: शोभन: अस्ति, परं गणितविषये भवता न्यूना: अङ्काः प्राप्ताः इति सखेदं मया अधीतम् । त्वं प्रतिदिन प्रात:काले उत्थाय गणितस्य अभ्यासं कुरु, गणिताध्यापकं च पुनः पुनः प्रश्नान् पृच्छ । अभ्यासेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति । पित्रो: चरणयोः सादरं प्रणामः ।
भवदीयः अग्रजः
श्रीशः
हिन्दी-अनुवाद
छात्रावास
आगरा
दिनांक 25.03.20–
प्रिय अनुज सोमेश !
सस्नेह आशीर्वाद ।
कल मुझे तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारा परीक्षा परिणाम अच्छा है, परन्तु गणित विषय में तुमने कम अंक प्राप्त किये, ऐसा मैंने खेद के साथ पढ़ा । तुम प्रत्येक दिन प्रात:काल उठकर गणित का अभ्यास न करो, गणित के अध्यापक से बार-बार प्रश्न पूछो । अभ्यास से ही सारे कार्य सिद्ध होते हैं । माता-पिताजी के चरणों में सादर प्रणाम ।
तुम्हारा बड़ा भाई
श्रीश
(4) स्वविद्यालयस्य वर्णनं कुर्वन् मित्रं संजीवं प्रति अधः लिखित पत्रम् उत्तर-पुस्तिकायां रिक्तस्थानपूर्ति कृत्वा पुनः लिखत । सहायतायै मञ्जूषायां पदानि दत्तानि ।।
(अपने विद्यालय का वर्णन करते हुए मित्र संजीव को नीचे लिखे पत्र को उत्तर-पुस्तिका में रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पुन: लिखिए । सहायतार्थ मञ्जूषा में पद दिये हुए हैं ।)
मजूषा – पुस्तकालये, संजीव, सस्नेह नमस्कारः, शतप्रतिशतम्, मनोयोगेन, करोमि, क्रीडाक्षेत्रे, विद्यालयः ।
परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय (i) …………
(ii) …………. ।
भवत: पत्रं प्राप्तम् । मन: प्रासीदत् । यथा भवता कथितं तथा अहं पत्रोत्तरे स्व विद्यालयस्य वर्णनं (iii) ………… मम (iv) …………… अतीव विशाल: सुन्दरः च अस्ति । अत्र त्रिसहस्रछात्राः । (v) ………… पठन्ति । (vi) ……………. पुस्तकानां पत्र-पत्रिकाणां च सुव्यवस्था अस्ति । (vii) ………… वालीबाल-बैडमिण्टनक्रिकेट-रज्जु-आकर्षणादि-खेलानाम् उत्तमः प्रबन्धः अस्ति । बोर्डस्य परीक्षापरिणामः प्रतिवर्षम् (viii) …………… भवति । मातापित्रो: चरणयोः प्रणामाः ।
भवत: अभिन्नमित्रम्
क ख ग
उत्तरम् –
परीक्षाभवनम्
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय संजीव !
सस्नेहं नमस्कारः ।
भवतः पत्रं प्राप्तम् । मन: प्रासीदत् । यथा भवता कथितं तथा अहं पत्रोत्तरे स्व-विद्यालयस्य वर्णनं करोमि । मम विद्यालयः अतीव विशाल: सुन्दर: च अस्ति । अत्र त्रिसहस्रछात्रा: मनोयोगेन पठन्ति । पुस्तकालये पुस्तकानां पत्र-पत्रिकाणां च सुव्यवस्था अस्ति । क्रीडाक्षेत्रे वालीबाल-बैडमिण्टन-क्रिकेट-रज्जु-आकर्षणादिखेलानाम् उत्तमः प्रबन्धः अस्ति । बोर्डस्य परीक्षापरिणामः प्रतिवर्ष शतप्रतिशतं भवति । मातापित्रो: चरणयोः प्रणामाः ।
भवत: अभिन्नमित्रम्
क ख ग
हिन्दी-अनुवाद
परीक्षाभवन
दिनांक : 25.03.20–
प्रिय संजीव !
सस्नेह नमस्कार ।
आपका पत्र प्राप्त हुआ । मन प्रसन्न हुआ। जैसा आपने कहा था, वैसे ही मैं पत्र के उत्तर में अपने विद्यालय का वर्णन कर रहा हूँ । मेरा विद्यालय अत्यन्त विशाल और सुन्दर है । यहाँ तीन हजार छात्र मनोयोग से पढ़ते हैं । पुस्तकालय में पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं की सुव्यवस्था है । क्रीडा के क्षेत्र में वालीबाल, बैडमिण्टन, क्रिकेट और रस्साकशी आदि खेलों का उत्तम प्रबन्ध है । बोर्ड का परीक्षा परिणाम प्रतिवर्ष शत-प्रतिशत रहता है । माता-पिताजी के चरणों में प्रणाम ।
आपका अभिन्न मित्र
क ख ग
(5) भवती रश्मिः । भवती छात्रावासे पठति । भवत्याः अनुजः सूर्यः नवमकक्षायां संस्कृतं पठितुं न इच्छति । तं प्रेरयितुम् अधोलिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां पुनः लिखत ।
(आप रश्मि हैं । आप छात्रावास में पढ़ती हैं । आपका छोटा भाई सूर्य नवम कक्षा में संस्कृत पढ़ना नहीं चाहता है । उसको प्रेरित करने के लिए निम्नलिखित पत्र मञ्जूषा के पदों की सहायता से भरकर उत्तर-पुस्तिका में पुनः लिखे ।)
( मञ्जूषा – संस्कृतभाषायाः, प्रेरणाप्रदम्, भोपालतः, उन्मीलितम्, शुभाशिषः, कृत्वा, अनुज, भवतः।
गङ्गाछात्रावास:
नवोदयविद्यालयः
(i) …………….
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय (ii) ………….. सूर्य !
(iii) ………….. ।
भवान् अष्टं कक्षायां नवतिप्रतिशतम् अङ्कान् प्राप्य उत्तीर्णः जातः इति (iv) ………… पत्रात् ज्ञात्वा अहम् अतीव प्रसन्ना अस्मि । शतश: वर्धापनानि । मया इदम् अपि ज्ञातं यत् भवान् नवम्यां कक्षायां संस्कृतविषयं स्वीकर्तुं न इच्छति । प्रिय वत्स ! (v) ………………. ज्ञानं विना अस्माकं जीवनम् एव अपूर्णं भवति । अस्माकं संस्कृतसाहित्यं तु सम्पूर्णविश्वाय (vi) ……….. अस्ति । तत्कथं भवान् तस्मात् अपूर्वज्ञानात् वञ्चितः भवितुम् इच्छति । मम तु ज्ञानचक्षुः एव अनेन (vii) ……………… जातम् ।
आशासे यद् भवान् नवमकक्षात: ऐव स्वज्ञानवर्धनं (viii) …………… अन्यान् अपि प्रेरयिष्यति । मातृपितृचरणयोः मे प्रणामाः निवेद्यन्ताम् इति ।
भवत: अग्रजा
रश्मिः
उत्तरम्
गङ्गाछात्रावास:
नवोदयविद्यालयः
भोपालत:
दिनाङ्कः 25.03.20….
प्रिय अनुज सूर्य !
शुभाशिषः ।
भवान् अष्टं कक्षायां नवतिप्रतिशतम् अङ्कान् प्राप्य उत्तीर्णः जातः इति भवतः पत्रात् ज्ञात्वा अहम् अतीव प्रसन्ना अस्मि । शतश: वर्धापनानि । मया इदम् अपि ज्ञातं यत् भवान् नवम्यां कक्षायां संस्कृतविषयं स्वीकर्तुं न इच्छति । प्रिय वत्स! संस्कृतभाषायाः ज्ञानं विना अस्माकं जीवनम् एव अपूर्णं भवति । अस्माकं संस्कृतसाहित्यं तु सम्पूर्णविश्वाय प्रेरणाप्रदम् अस्ति। तत्कथं भवान् तस्मात् अपूर्वज्ञानात् वञ्चित: भवितुम् इच्छति । मम तु ज्ञानचक्षुः एव अनेन उन्मीलितं जातम् ।
आशासे यद् भवान् नवमकक्षातः एव स्वज्ञानवर्धनं कृत्वा अन्यान् अपि प्रेरयिष्यति । मातृपितृचरणयोः मे प्रणामाः निवेद्यन्ताम् इति ।
भवतः अग्रजा
रश्मिः
हिन्दी-अनुवाद
गंगा छात्रावास
नवोदय विद्यालय
भोपाल
दिनांक: 25.03.20–
प्रिय अनुज सूर्य !
शुभाशिष ।
आप आठवीं कक्षा में नब्बे प्रतिशत अंक प्राप्त करके उत्तीर्ण हुए, आपके पत्र से यह जानकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ । शत-शत बधाईयाँ । मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि आप नवमी कक्षा में संस्कृत विषय स्वीकार करना नहीं चाहते हैं । प्रिय भाई (बच्चे) ! संस्कृत ज्ञान के बिना हमारा जीवन अपूर्ण होता है। हमारा संस्कृत साहित्य तो संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा देने वाला है । तो क्यों आप उस अपूर्व ज्ञान से वञ्चित रहना (होना) चाहते हैं । मेरे तो ज्ञानचक्षु ही इसने खोल दिये ।
आशा है कि आप नवम कक्षा से ही अपना ज्ञानवर्धन करके दूसरों को भी प्रेरित करेंगे । माता-पिता के चरणों में मेरा प्रणाम निवेदन करें ।
आपकी बड़ी बहिन
रश्मि
(6) भवान् ‘चन्द्रः । भवतां विद्यालये संस्कृतस्य सम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत् । स्व-अनुभवान् वर्णय भवान् स्वमित्रं सुरेशं प्रति पत्रं लिखति, परन्तु मध्ये कानिचित् पदानि त्यक्तानि । पत्रं पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु । सहायतायै अधः मञ्जूषा दत्ता ।
(आप’चन्द्र’ हैं। आपके विद्यालय में संस्कृत-सम्भाषण-शिविर आयोजित किया गया था । अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए आप अपने मित्र सुरेश को पत्र लिखते हैं परन्तु बीच में कुछ पद छूट गए हैं । पत्र को पूरा करके फिर से उत्तर-पुस्तिका में लिखिए । सहायता के लिए नीचे मञ्जूषा दी हुई है ।)
मञ्जूषा – इन्द्रपुरीतः, हसित्वा, अभ्यासम्, सुरेश, सस्नेह नमस्ते, वयम्, अभिनयं, मयि ।
अ 77, शालीमारबागः
(i) …………….
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय (ii) …………
(iii) ……………. ।
अत्र सर्वगतं कुशलम् । मन्ये भवान् अपि कुशली । गत सप्ताह अस्माकं विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत् । दशदिनानि वयं संस्कृतेन सम्भाषणस्य (iv) ………… कृतवन्तः । एकस्याः लघुनाटिकाया: मञ्चनम् अपि (v) …….. अकर्म । अहं तु विदूषकस्य (vi) …………… तवान् । सर्वे जनाः हसित्वा (vii) ………….. पौन:पुन्येन करतलध्वनिम् अकुर्वन् । अहं तु इदानीं सर्वदा संस्कृते एव वदामि । मम शिक्षकाः अपि (viii) ………………… स्नेहं कुर्वन्ति । त्वम् अपि प्रयत्नं कुरु । नूनं यशस्वी भविष्यसि । पितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिं निवेदयतु ।
भवताम् अभिन्नहदयः
चन्द्रः
उत्तरम्
अ 77, शालीमारबाग:
इन्द्रपुरीतः
दिनांक: 25.03.20–
प्रिय सुरेश !
सस्नेह नमस्ते ।
अत्र सर्वगतं कुशलम् । मन्ये भवान् अपि कुशली । गत सप्ताहे अस्माकं विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरम् आयोजितम् आसीत् । दशदिनानि वयं संस्कृतेन सम्भाषणस्य अभ्यासं कृतवन्तः । एकस्या: लघुनाटिकायाः मञ्चनमपि वयम् अकुर्म । अहं तु विदूषकस्य अभिनयं कृतवान् । सर्वे जनाः हसित्वा हसित्वा पौन:पुन्येन करतलध्वनिम् अकुर्वन् । अहं तु इदानीं सर्वदा संस्कृते एव वदामि । मम शिक्षकाः अपि मयि स्नेहं कुर्वन्ति । त्वम् अपि प्रयत्नं कुरु । नूनं यशस्वी भविष्यसि । पितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिं निवेदयतु ।
भवताम् अभिन्नहृदयः
चन्द्रः
हिन्दी-अनुवाद
अ 77, शालीमार बाग
इन्द्रपुरी
दिनांक: 25.03.20–
प्रिय सुरेश !
सस्नेह नमस्ते ।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है । मानता हूँ, आप भी सकुशल होंगे । गत सप्ताह हमारे विद्यालय में संस्कृत-सम्भाषण शिविर आयोजित किया गया था । दस दिन तक हमने संस्कृत सम्भाषण का अभ्यास किया । एक लघु नाटिका का मंचन भी हमने किया। मैंने तो विदूषक का अभिनय किया । सभी लोगों ने हँस-हँसकर बार-बार करतल ध्वनि की । मैं तो अब सदैव संस्कृत में ही बोलती हूँ । मेरे शिक्षक भी मुझसे स्नेह करते हैं । तुम भी प्रयत्न करो । निश्चित यशस्वी होओगे । माता-पिता को मेरा प्रणाम निवेदन करना।
आपको अभिन्न हृदय
चन्द्र
(7) भवती सरोजिनी । भवत्याः वर्गेण अनाथबालकैः सह प्रतियोगितायां पराजयः अनुभूतः । आत्मानुभवान् वर्णयन्त्या भवत्या मातरं प्रति लिखितं पत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः लेखनीयम् ।
(आप सरोजिनी हैं । आपके वर्ग ने अनाथ बालकों के साथ प्रतियोगिता में पराजय का अनुभव किया । अपने अनुभवों का वर्णन करती हुई आप माताजी के लिए लिखे गए पत्र को मंजूषा के पदों की सहायता से पूरा करके फिर से लिखिए ।)
मजूषा- सर्वे, पराजिताः, मात:, कुशलिन:, आयोजितवान्, सह, चरणस्पर्शः, सर्वगतम् ।
नूतनविद्यापीठम्।
कर्णाटकत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
पूज्ये (i) ………
सादरं (ii) …………
अत्रे खलु (iii) ………… कुशलम् । मन्ये तत्रापि सर्वे (iv) …………. मातः ! अस्माकं विद्यालयस्य समीपे एकः अन्यः विद्यालयः अस्ति । यत्र (v) ………… दीनाः असहायाः छात्राः एव पठन्ति । अस्माकं प्राचार्यः तस्य विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रैः (vi) ……….. गीतान्त्याक्षरी-प्रतियोगिताम् (vii) ………….. नाति भवती, वयं सर्वे तस्यां (viii) ………….. जाताः । तेषां प्रदर्शनं तु अभूतपूर्वम् आसीत् । नूनं दर्पः सर्वं नाशयति, श्रमः सर्वत्र विजयते ।
पितृचरणयोः प्रणामाः ।
भवत्याः प्रिया सुता
सरोजिनी
उत्तरम् –
नूतनविद्यापीठम्
कर्णाटकतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
पूज्ये मातः !
सादरं चरणस्पर्शः ।
अत्र खलु सर्वगतं कुशलम् । मन्ये तत्रापि सर्वे कुशलिनः । मात: ! अस्माकं विद्यालयस्य समीपे एकः अन्यः विद्यालयः अस्ति । यत्र सर्वे दीनाः असहायाः छात्राः एव पठन्ति । अस्माकं प्राचार्यः तस्य विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रैः सह गीतान्त्याक्षरी-प्रतियोगिताम् आयोजितवान् । जानाति भवती, वयं सर्वे तस्यां पराजिता: जाताः । तेषां प्रदर्शनं तु अभूतपूर्वम् आसीत् । नूनं दर्पः संर्वं नाशयति, श्रमः सर्वत्र विजयते ।
पितृचरणयोः प्रणामाः ।
भवत्याः प्रिया सुता
सरोजिनी
हिन्दी-अनुवाद
नूतन विद्यापीठ
कर्णाटक
दिनांक : 25.03.20—
पूज्य माताजी !
सादर चरणस्पर्श ।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है । मानती हूँ वहाँ भी सभी कुशल से हैं । माताजी ! हमारे विद्यालय के समीप एक अन्य विद्यालय है जहाँ सभी दीन-असहाय छात्र ही पढ़ते हैं। हमारे प्राचार्य ने उस विद्यालय की दशमी कक्षा के छात्रों के साथ गीतान्त्याक्षरी की प्रतियोगिता आयोजित की । आप जानती हैं, हम सब उस प्रतियोगिता में पराजित हो गये । उनका प्रदर्शन तो अभूतपूर्व था । निश्चित ही घमण्ड सबको नाश कर देता है, श्रम की सर्वत्र विजय होती है ।
पिताजी के चरणों में प्रणाम ।
आपकी प्यारी बेटी
सरोजिनी
(8) भवान् आशुतोषः । भवतः मित्रं शुभम् ऊन-एकोनविंशतिवर्षीय क्रिकेटप्रतियोगिता विजित्य आगतः । स्वानुभवान् वर्णयन् भवान् स्वपितरं प्रति पत्रं लिखति । तस्मिन् पत्रे विद्यमानानि रिक्तस्थानानि मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः लिखतु ।
(आप आशुतोष हैं । आपका मित्र शुभम् उन्नीस वर्ष से कम आयु की क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी होकर आया है । अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए आप अपने पिता को पत्र लिख रहे हैं । उस पत्र में विद्यमान रिक्तस्थानों को मजूषा के पदों की सहायता से पूरा करके पुन: लिखिए ।)
मञ्जूषा – पितृचरणाः, प्रार्थये, प्रणामाः, परितोषम्, विजयी, समाचार:, शुभम्, कुशलिनः ।
प्रतिभाविकासविद्यालय,
इन्द्रप्रस्थम्।
दिनांक: 25.03.20 —
प्रातः स्मरणीयाः (i) …………..
सादरं (ii) …………
अत्र सर्वं कुशलम् । तत्रापि सर्वे (iii) ……….. सन्तु इति श्रीपतिं ‘विष्णु’ (iv) ………… । आनन्दप्रदः (v) …………. अस्ति यत् मम मित्रम् (vi) ……………… ऊन-एकोनविंशतिवर्षीया क्रिकेटप्रतियोगितायां (vii) ………….. भूत्वा प्रतिनिवृत्तः । अतः अहं महान्तं (viii) …………… अनुभवामि । आशासे यत् स भूयो भूयः बह्वीः प्रतियोगिताः विजेष्यते । भवानपि तस्मै वर्धापनपत्रं लिखतु । मातृचरणयोः साभिवादनं प्रणामाः, राधिकायै शुभाशिषः ।
भवतां वशंवदः
आशुतोषः
उत्तरम् –
प्रतिभाविकासविद्यालयः
इन्द्रप्रस्थम्
दिनांक: 25.03.20–
प्रातः स्मरणीयाः पितृचरणाः !
सादरं प्रणामाः ।
अत्र सर्वं कुशलम् । तत्रापि सर्वे कुशलिनः सन्तु इति श्रीपतिं ‘विष्णु’ प्रार्थये । आनन्दप्रद: समाचार: अस्ति यत् मम मित्रं शुभम् ऊन-एकोनविंशतिवर्षीय क्रिकेटप्रतियोगितायां विजयी भूत्वा प्रतिनिवृत्तः । अतः अहं महान्तं परितोषम् अनुभवामि । आशासे यत् सः भूयो भूय: बह्वीः प्रतियोगिता: विजेष्यते । भवानपि तस्मै वर्धापनपत्रं लिखतु ।
मातृचरणयो: साभिवादनं प्रणामाः, राधिकायै शुभाशिषः ।
भवतां वशंवदः
आशुतोषः
हिन्दी-अनुवाद
प्रतिभाविकास विद्यालय,
इन्द्रप्रस्थ
दिनांक 25.03.20…
प्रातः स्मरणीय पिताजी !
सादर प्रणाम ।
यहाँ सब सकुशल हैं । वहाँ भी सब कुशल हों, ऐसी श्रीपति विष्णु से प्रार्थना करता हूँ। (एक) सुखद समाचार है कि मेरा मित्र शुभम् उन्नीसवर्ष से कम उम्र वालों की क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी होकर लौटा है । अतः मैं बहुत सन्तोष की अनुभव कर रहा हूँ । आशा है कि वह बार-बार बहुत-सी प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त करेगा । आप भी उसके लिए बधाई पत्र लिख दें । माताजी के चरणों में अभिवादन सहित प्रणाम, राधिका के लिए शुभ आशीष ।
आपका आज्ञाकारी
आशुतोष
(9) मित्रं प्रति लिखितं निम्नलिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः पदैः पूरयत ।
(मित्र को लिखे गए निम्नलिखित पत्र को मंजूषा में दिये पदों से पूरा कीजिए ।)
मञ्जूषा – वृक्षैः, मित्रम्, नमस्ते, अरुणाचलतः, अस्य, एव, वयं, गतसप्ताहे ।।
(i) …………..
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय (ii) ………… भास्क रे !
सस्नेहं (iii) ………….. ।
(iv) ……… अहं मित्रैः सह शैक्षिकभ्रमणाय ‘दार्जिलिङ्ग’ इति पर्वतीयस्थलं गतवान् । (v) ………. स्नानस्य सौन्दर्यम् अद्भुतम् (vi) ……………. अस्ति । विशालैः (vii) …………… सुसज्जिता इयं देवभूमिः शव अस्ति । एवं प्रतीयते यत् (viii) ……….. अन्यस्मिन् एव संसारे वसामः । इमं सुरम्यं प्रदेशं दृष्ट्वा इदम् असत्यम् एव प्रतीयते यत् पर्वताः केवलं दूरतः एव रम्याः । पर्वता: तु सदैव रम्याः एव भवन्ति । अहं त्वया सह अपि एकवारं तत्र पुनः गन्तुम् इच्छामि । आशासे आवां शीघ्रं गमिष्यावः । अधुना विरमामि । सर्वेभ्यो मम नमस्कार: कथनीयः ।
भवत: मित्रम्
शैलज
उत्तरम्
अरुणाचलतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियं मित्रं भास्कर !
सस्नेहं नमस्ते ।
गतसप्ताहे अहं मित्रैः सह शैक्षिकभ्रमणाय ‘दार्जिलिङ्ग’ इति पर्वतीयस्थलं गतवान् । अस्य स्थानस्य सौन्दर्यम् अद्भुतम् एव अस्ति । विशालैः वृक्षैः सुसज्जिता इयं देवभूमिः एव अस्ति । एवं प्रतीयते यत् वयम् अन्यस्मिन् एव संसारे वसामः । इमं सुरम्यं प्रदेशं दृष्ट्वा इदम् असत्यम् एव प्रतीयते यत् पर्वता: केवलं दूरतः एव रम्याः । पर्वता: तु सदैव रम्या: एव भवन्ति । अहं त्वया सह अपि एकवारं तत्र पुनः गन्तुम् इच्छामि । आशासे आवां शीघ्रं गमिष्यावः । अधुना विरमामि । सर्वेभ्यो मम नमस्कार: कथनीयः ।।
भवतः मित्रम्
शैलजा
हिन्दी-अनुवाद
अरुणाचल
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय मित्र भास्कर !
सस्नेह नमस्ते ।
गत सप्ताह मैं मित्रों के साथ शैक्षिक भ्रमण के लिए दार्जिलिंग’ पर्वतीय स्थल को गया । इस स्थान का सौन्दर्य अद्भुत ही है । विशाल वृक्षों से सुसज्जित यह देवभूमि ही है । ऐसा प्रतीत होता है कि हम दूसरे ही संसार में रह रहे हैं । इस सुरम्य प्रदेश को देखकर यह असत्य ही प्रतीत होता है कि पर्वत केवल दूर से ही सुन्दर लगते हैं । पर्वत तो सदैव रम्य ही होते हैं । मैं तुम्हारे साथ भी एक बार वहाँ फिर जाना चाहता हूँ । आशा है हम दोनों शीघ्र ही जाएँगे । अब विराम देता हूँ । सभी को मेरा नमस्कार कहना ।
आपका मित्र
शैलज
(10) मित्रं प्रति परीक्षासफलतायां लिखितं पत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तैः शब्दैः पूरयत।
(मित्र के लिए परीक्षा की सफलता पर लिखे गए पत्र को मंजूषा में दिये गये शब्दों से पूरा करो ।)
मजूषा:
परीक्षाभवनात्, सन्तोषः, अङ्कान्, साधुवादान्, कामये, प्राप्तम्, प्रिय मित्र, सप्रेमनमस्कारम् ।
(i) ………….
दिनाङ्कः 25.03.20–
(ii) …………… ।
(iii) ……………. ।। भवतः परीक्षासफलतापत्रम् अधुनैव (iv) ……………….. भवत: उत्तीर्णतां ज्ञात्वा मयि अति (v) …………… अस्ति । अहोरात्रं प्रयासं विधाय भवान् 95 प्रतिशतम् (vi) …………….. लब्धवान् । त्वं मम परिवारजन: (vii) अर्हसि । पत्रसमाप्तौ तुभ्यं पुन: वर्धापनम् (viii) ………….. । पितृभ्यां सादरं नमः ।
भवतः प्रियमित्रम्
अ ब स
उत्तरम् –
परीक्षाभवनात्
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय मित्र !
सप्रेमनमस्कारम् ।
भवत: परीक्षासफलतापत्रम् अधुनैव प्राप्तम् । भवत: उत्तीर्णतां ज्ञात्वा मयि अति सन्तोषः अस्ति । अहोरात्रं प्रयासं विधाय भवान् 95 प्रतिशतम् अङ्कान् लब्धवान् । त्वं मम परिवारजनस्य साधुवादान् अर्हसि । पत्रसमाप्तौ तुभ्यं पुनः वर्धापनं कामये । पितृभ्यां सादरं नमः ।
भवतः प्रियमित्रम्
अ ब स
हिन्दी-अनुवाद
परीक्षाभवन
दिनांक 25.03.20–
प्रिय मित्र !
सप्रेम नमस्कार ।
आपका परीक्षाफल पत्र अभी प्राप्त हुआ । आपकी उत्तीर्णता को जानकर मुझे अत्यंत सन्तोष हुआ है । दिन-रात प्रयास करके आपने 95 प्रतिशत अंक प्राप्त किये । तुम मेरे परिवारीजनों के साधुवादों के योग्य हो । पत्र-समाप्ति पर तुम्हें फिर बधाई की कामना करता हूँ । माता-पिता जी को सादर नमस्कार ।
आपका प्रिय मित्र
अ ब स
(11) भवतां नाम सौरभः । भवतां विद्यालये वार्षिकोत्सवे संस्कृतनाटकस्य मञ्चनं भविष्यति । तदर्थं स्वमित्रं गौरवं प्रति लिखितं निमन्त्रणपत्रं मञ्जूषापदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत ।
(आपका नाम सौरभ है । आपके विद्यालय में वार्षिकोत्सव में संस्कृत नाटक का मञ्चन होगा। इसके लिए अपने मित्र गौरव को लिखे गये निमन्त्रण पत्र को मंजूषा के पदों की सहायता से भरकर पुन: उत्तरपुस्तिका में लिखिए ।)
मजूषा – द्रष्टुम्, दिल्लीतः, कुशली, मञ्चनम्, गौरव !, दीपावल्याः, करिष्यामि, उत्साहवर्धनम् ।
सर्वोदयविद्यालयः
(i) ……… ।
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियमित्र (ii) …………
दीपावलिपर्वणः शुभाशंसाः । अत्र सर्वगतं कुशलम् । भवान् अपि (iii) ………. इति मन्ये । अस्माकं विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः (iv) ……….. पर्वणः शुभावसरे भविष्यति । तत्र अस्माकं पुस्तकस्य रमणीया हि सृष्टिः एषा’ इति नाटकस्य (v) …………. भविष्यति । अहं तस्मिन् नाटके काकस्य अभिनयं (vi) ………….। भवान् अवश्यमेव तत् (vii) ………….. आगच्छतु । मम अपि (viii) …….. भविष्यति । सर्वेभ्यः अग्रजेभ्यः मम प्रणामाञ्जलिः निवेद्यताम् इति ।
भवदीय: वयस्यः
सौरभः
उत्तरम् –
सर्वोदयविद्यालयः
दिल्लीत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियमित्र गौरव !
दीपावलिपर्वणः शुभाशंसाः । अत्र सर्वगतं कुशलम् । भवान् अपि कुशली इति मन्ये । अस्माकं विद्यालयस्य वार्षिकोत्सवः दीपावल्याः पर्वणः शुभावसरे भविष्यति । तत्र अस्माकं पुस्तकस्य रमणीया हि सृष्टिः एषा’ इति नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति । अहं तस्मिन् नाटके काकस्य अभिनयं करिष्यामि । भवान् अवश्यमेव तत् द्रष्टुम् आगच्छतु । मम अपि उत्साहवर्धन भविष्यति । सर्वेभ्यः अग्रजेभ्यः मम प्रणामाञ्जलिः निवेद्यताम् इति ।
भवदीयः वयस्य:
सौरभः
हिन्दी-अनुवाद
सर्वोदय विद्यालय
दिल्ली
दिनांक 25.03.20–
प्रिय मित्र गौरव !
दीपावली पर्व की शुभकामनाएँ । यहाँ सब प्रकार कुशल है । आप भी सकुशल होंगे, ऐसा मानता हूँ । हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर होगा । वहाँ हमारी पुस्तक के ‘यह सृष्टि रमणीय है’ इस नाटक का मंचन होगा। मैं इस नाटक में कौए का अभिनय करूंगा । आप अवश्य ही उसे देखने आएँ । मेरा भी उत्साहवर्धन होगा । सभी बड़ों के लिए मेरा प्रणाम निवेदन करें ।
आपका मित्र
सौरभ
(12) भवती सुनीता। भवती पुस्तकालयात् एकं पुस्तकं ‘चुटुकुल्याशतकम्’ प्राप्य पठितवती । तस्य पुस्तकस्य छायाप्रति स्वभगिन्याः स्मितायाः सकाशं प्रेषयति । तदर्थं ‘लिखितं पत्रं मञ्जूषादत्तपदैः पूरयित्वा पुनः लिखतु ।
(आप सुनीता हैं । आपने पुस्तकालय से एक पुस्तक “चुटुकुल्याशतकम्’ लेकर पढ़ी । उस पुस्तक की छायाप्रति (फोटोकॉपी) अपनी बहन स्मिता के पास भेज रही हैं । इस आशय से लिंखे गये पत्र को मंजूषा में दिये गये पदों से भरकर पुनः लिखिए ।)
मञ्जूषा – वर्धताम्, कुशलिनी, स्मिते, संस्कृतपुस्तकम्, भवत्याः, हसित्वा, लिखतु, कानपुरतः ।
ए 10, विष्णुनगरम् ।
(i) …………..
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिये (ii) ……………
सस्नेह नमः ।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति । मन्ये भवती अपि (iii) ………….। भवती लिखितवती यत् भवती संस्कृत भाषायां लिखितं सरलपुस्तक पठितुम् इच्छति । मया पुस्तकालयात् ‘चुटुकुल्याशतकम्’ (iv) ………….. प्राप्य पठितम् । हसित्वा (v) ………….. मम उदरे तु पीडा जाता । तस्य पुस्तकस्य छायाप्रतिं कारयित्वा अहं (vi) …………… सकाशं प्रेषयामि । पठन-पाठने भवत्याः रुचिः सर्वदा (vii) ……………..। पठतु तावत् । कथम् .. अस्ति इति (viii) …………. । स्वपितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिः निवेदनीया ।
भवदीया स्नेहसिक्ता भगिनी,
सुनीता
उत्तरम् –
ऐ 10, विष्णुपुरम्
कानपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिये स्मिते !
सस्नेहं नमः ।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति । मन्ये भवती अपि कुशलिनी । भवती लिखितवती यत् भवती संस्कृतभाषायां लिखितं सरलपुस्तकं पठितुम् इच्छति । मया पुस्तकालयात् ‘चुटुकुल्याशतकम्’ संस्कृतपुस्तकं प्राप्य पठितम् । हसित्वा-हसित्वा मम उदरे तु पीडा जाता । तस्य पुस्तकस्य छायाप्रतिं कारयित्वा अहं भवत्याः सकाशं प्रेषयामि । पठन-पाठने भवत्याः रुचिः सर्वदा वर्धताम् । पठतु तावत् । कथम् अस्ति इति लिखतु । स्वपितरौ प्रति मम प्रणामाञ्जलिः निवेदनीया ।
भवदीया स्नेहसिक्ता भगिनी,
सुनीता
हिन्दी-अनुवाद
ए 10, विष्णुपुर
कानपुर
दिनांक 25.03.20–
प्रिये स्मिते !
सस्नेह नमस्ते ।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है । मानती हूँ, आप भी सकुशल हैं । आपने लिखा है कि आप संस्कृत भाषा में लिखी हुई सरल पुस्तक पढ़ना चाहती हैं । मैंने पुस्तकालय से ‘चुटुकुल्याशतकम्’ संस्कृत-पुस्तक लेकर पढ़ी । हँसते-हँसते मेरे तो पेट में दर्द होने लगा । उस पुस्तक की छायाप्रति मैं आपके पास भेज रही हूँ । पठन-पाठन में आपकी रुचि हमेशा बढ़े। तो पढ़ो। कैसी है ? यह लिखना । अपने माता-पिताजी को मेरी प्रणामाञ्जलि कहना ।
आपकी स्नेहमयी बहन,
सुनीता
(13) भवान् सोमेशः । भवतः ज्येष्ठा भगिनी रमा जयपुरे छात्रावासे निवसति । रक्षाबन्धनपर्वणि भवतां विद्यालये संस्कृतदिवसस्य भव्यम् आयोजनम् अस्ति । तदर्थं तां निमन्त्रयितुं लिखिते पत्रे मञ्जूषापदसाहाय्येन रिक्तस्थानपूर्तिं कृत्वा पत्रं पुनः लिखतु ।
(आप सोमेश हैं । आपकी बड़ी बहन रमा जयपुर में अअवास में रहती है। रक्षाबन्धन पर्व पर आपके विद्यालय में संस्कृत दिवस का भव्य आयोजन है । इस प्रयोजन से उसे निमन्त्रित करने के लिए लिखे गये पत्र में मंजूषा के पदों की सहायता से रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पत्र को पुनः लिखिए ।)
मञ्जूषा- चारुदत्तमिति, चारुदत्तस्य, भगिनि !, तत्रास्तु, अभिवादनम्, प्रतिवर्षम्, जानाति, प्रसन्नचित्ता ।
115, शालीमारबागः
दिल्लीत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिये (i) ……….
सस्नेहं (ii) ………… ।
अत्र कुशलम् (iii) ……………. । मन्ये भवती सर्वथा स्वस्था (iv) ………… च भविष्यति । भवती (v) …………… एव यत् श्रावणमासस्य पौर्णमास्यां रक्षाबन्धनपर्वणि अस्माकं विद्यालये (vi) …………… संस्कृतदिवसस्य आयोजनं भवति । अस्मिन् वर्षे (vii) ………… नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति । अहं तत्र (viii) …………… अभिनयं करिष्यामि । भवत्याः आगमनेन रक्षाबन्धनम्’ इति पर्वणः अपि आयोजनं भविष्यति । विद्यालये भवत्याः उपस्थित्या मम उत्साहवर्धनम् अपि भविष्यति ।
भवत्याः स्नेहपात्रम् ।
सोमेशः
उत्तरम् –
115, शालीमारबागः
दिल्लीत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिये भगिनि !
सस्नेहम् अभिवादनम् ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु । मन्ये भवती सर्वथा स्वस्था प्रसन्नचित्ता च भविष्यति । भवती जानाति एव यत् श्रावणमासस्य पौर्णमास्यां रक्षाबन्धनपर्वणि अस्माकं विद्यालये प्रतिवर्ष संस्कृतदिवसस्य आयोजनं भवति । अस्मिन् वर्षे ‘चारुदत्तमिति’ नाटकस्य मञ्चनं भविष्यति । अहं तत्र चारुदत्तस्य अभिनयं करिष्यामि । भवत्याः आगमनेन रक्षाबन्धनम्’ इति पर्वण: अपि आयोजनं भविष्यति । विद्यालये भवत्याः उपस्थित्या मम उत्साहवर्धनम् अपि भविष्यति ।
भवत्याः स्नेहपात्रम्
सोमेशः
हिन्दी-अनुवाद
115, शालीमार बाग
दिल्ली
दिनांक 25.03.20–
प्रिय बहन !
सस्नेह अभिवादन।
यहाँ कुशल है, वहाँ (भी) होंगे। मानता हूँ (कि) आप पूर्णतः स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगी । आप जानती ही हैं कि श्रावण मास पूर्णिमा पर रक्षाबन्धन त्योहार पर हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष संस्कृत दिवस का आयोजन होता है । इस वर्ष ‘चारुदत्तम्’ नाटक का मंचन होगा। मैं वहाँ चारुदत्त का अभिनय करूगा । आपके आगमन से रक्षाबन्धन त्योहार का भी आयोजन हो जाएगा । विद्यालय में आपकी उपस्थिति से मेरा उत्साहवर्धन भी होगा ।
आपका स्नेह पात्र
सोमेश
(14) भवान् नीरजः । भवतः ग्रामे स्वास्थ्यकेन्दस्योद्घाटनं भवति । भवतः मनसः आह्लादस्य वर्णनं कुर्वन् भवान् मित्रं सुनन्दं प्रति पत्रं लिखति । तस्मिन् पत्रे मजूषायाः रिक्तस्थानानि पूरयन् पत्रं पूर्णं कृत्वा पुनः लिखतु ।
(आप नीरज हैं । आपके गाँव में स्वास्थ्य केन्द्र का उद्घाटन हो रहा है । आपके मन की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए आप मित्र सुनन्द को पत्र लिखते हैं । उस पत्र में मजूषा से रिक्त स्थानों को भरते हुए पत्र को पूरा करके फिर लिखिए ।)
मञ्जूषा – चिकित्सायै, सुनन्द !, पञ्चविंशत्याम्, प्रसन्नाः, ग्रामीणाः, नमः, ग्रामे, आर्तवानाम् ।
गुरुग्रामः
पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियमित्र (i) ……….
सस्नेहं (ii) …………… ।
भवत: पत्रं प्राप्तम् । समाचाराः अवगताः । हर्षस्य विषयोऽयं यद् अस्माकं (iii) ……………. मण्डलाधिकारिभिः स्वास्थ्यकेन्द्रस्योद्घाटनं (iv) …………. तारिकायां भविष्यति । सर्वे (v)
………… समाचारम् एतं ज्ञात्वा (vi) ………… सजाताः । अनेन स्वास्थ्य केन्द्रेण (vii) …………… रोगाणाम् उपचारो ग्रामे एव भविष्यति । ग्रामीणाः अधुना उपनगरं (viii) ……… न गमिष्यन्ति । एतेन न केवलं ग्रामीणानां धनस्य अपव्ययो न भविष्यति, परं तेषां समयस्य नाशोऽपि न भविष्यति । क्षणेन रोगेषु नष्टेषु ग्रामे वातावरणं सुखदं भविष्यति । भावं जनानां ज्ञातुं भवान् अवश्यं मम ग्रामम् आगच्छतु । मातृचरणयो: प्रणाम: स्निग्धायै च शुभाशिषः ।
भवतां सुहद्
नीरज:
उत्तरम् –
गुरुग्राम:
पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्कः 25.03.20.
प्रिय मित्र सुनन्द !
सस्नेहं नमः ।
भवत: पत्रं प्राप्तम् । समाचारा: अवगताः । हर्षस्य विषयोऽयं यद् अस्माकं ग्रामे मण्डलाधिकारिभि: स्वास्थ्यकेन्द्रोद्घाटन पञ्चविंशत्यां तारिकायां भविष्यति । सर्वे ग्रामीणा: समाचारम् एतं ज्ञात्वा प्रसन्नाः सञ्जाताः । अनेन स्वास्थ्यकेन्द्रेण आर्तवानां रोगाणाम् उपचारो ग्रामे एव भविष्यति । ग्रामीणा: अधुना उपनगरं चिकित्सायै न गमिष्यन्ति । एतेन न केवलं ग्रामीणानां धनस्य अपव्ययो न भविष्यति, परं तेषां समयस्य नाशोऽपि न भविष्यति । क्षणेन रोगेषु नष्टेषु ग्रामे वातावरणं सुखदं भविष्यति । भावं जनानां ज्ञातुं भवान् अवश्यं मम ग्रामम् आगच्छतु । मातृचरणयोः प्रणामाः स्निग्धायै च शुभाशिषः ।
भवतां सुहद्
नीरज:
हिन्दी-अनुवाद
गुरुग्राम
पाटलिपुत्र
दिनांक: 25.03.20–
प्रियमित्र सुनन्द !
सप्रेम नमस्कार ।
आपका पत्र प्राप्त हुआ । समाचार ज्ञात हुए । हर्ष का विषय यह है कि हमारे गाँव में मंडल अधिकारियों द्वारा स्वास्थ्य केन्द्र का उद्घाटन पच्चीस तारीख को होगा । सभी ग्रामीण इस समाचार को जानकर प्रसन्न हो गए हैं । इस स्वास्थ्य केन्द्र से रोगियों के रोगों का इलाज गाँव में ही हो जाएगा । ग्रामीण अब चिकित्सा के लिए कस्बे को नहीं जाएँगे । इससे न केवल ग्रामीणों के धन का अपव्यय ही नहीं होगा, अपितु उनका समय भी नष्ट नहीं होगा । क्षणभर में रोगों के नष्ट होने पर गाँव में वातावरण सुखद होगा ।
लोगों की भावना को जानने के लिए आप अवश्य गाँव आएँ । माताजी के चरणों में प्रणाम और स्निग्धा के लिए शुभ आशीष ।
आपका मित्र
नीरज
(15) भवान् कमलेशः । बैंगलुरुनगरे निवसति । भवतां मित्रं सोमेशः दिल्लीनगरे वसति । सः संस्कृतभाषणप्रतियोगितायां प्रथम स्थान प्राप्तवान् । तं प्रति लिखितं वर्धापनपत्रं पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु । सहायतार्थं मञ्जूषायां पदानि दत्तानि ।
(आप कमलेश हैं। बैंगलुरु नगर में रहते हैं । आपका मित्र सोमेश दिल्ली नगर में रहता है । उसने संस्कृत भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । उसको लिखे गये बधाई पत्र को भरकर दोबारा उत्तरपुस्तिका में लिखिए । सहायतार्थ मंजूषा में शब्द दिए हुए हैं ।)
मञ्जूषा – सोमेश, आनन्दितम्, कोटिशः, प्रशंसनीयः, भवताम्, बैंगलुरुः, प्राप्तवान्, साफल्यम् ।
10, गिरिनगरम्
(i) …………..
कर्णाटकप्रदेशतः ।
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियमित्र (ii) ………… नमोनमः ।
(iii) …………. जातम् । भवान् संस्कृ तभाषणप्रतियोगितायां प्रथम स्थानं (v) ……………..। भवतां संस्कृतानुरागः (vi) ……………। अस्मत्पक्षतः (vii) ………… वर्धापनानि । भगवान् इतः अपि अधिक (viii) ………….. ददातु । पितृचरणयोः प्रणाम: निवेद्यते ।
सेवायाम्, भवतां प्रियसुहृद्
श्रीमान् सोमेशः कमलेशः
120, शक्तिनगरम्, दिल्ली
उत्तरम् –
10, गिरिनगरम्
बैंगलुरुः
कर्णाटकप्रदेशतः ।
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियमित्र सोमेश !
नमो नमः ।
भवतां पत्रं प्राप्तम् । पत्रं पठित्वा मम मनः आनन्दितं जातम् । भवान् संस्कृतभाषण-प्रतियोगितायां प्रथमस्थानं प्राप्तवान् । भवतां संस्कृतानुरागः प्रशंसनीयः । अस्मत्पक्षतः कोटिशः वर्धापनानि । भगवान् इतः अपि अधिकं साफल्यं ददातु । पितृचरणयोः प्रणाम: निवेद्यते ।
सेवायाम्, भवतां प्रिय सुहृत्
श्रीमान् सोमेशः कमलेशः
120, शक्तिनगर, दिल्ली
हिन्दी-अनुवाद
10, गिरिनगरम्
बैंगलुरु
कर्नाटक प्रदेश
दिनांक 25.03.20–
प्रिय मित्र सोमेश !
नमोनमः ।
आपका पत्र प्राप्त हुआ । पत्र पढ़कर मेरा मन आनन्दित हो गया । आपने संस्कृत-भाषण-प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया । आपका संस्कृत-अनुराग प्रशंसनीय है । हमारी ओर से कोटि-कोटि बधाईयाँ । भगवान् आपको इससे भी अधिक सफलता प्रदान करें । पिताजी के चरणों में प्रणाम निवेदन करें ।
सेवा में,
श्रीमान् सोमेश आपका प्रिय मित्र
120, शक्ति नगर, दिल्ली । कमलेश
(16) भवान् सुरेशः, छात्रावासे वसति । शारदीये अवकाशे भवतां विद्यालये संस्कृतसम्भाषणशिविरं प्रचलिष्यति, अतः भवान् गृहं न गमिष्यति इति सूचयन् पितरं प्रति लिखितं पत्रं मंजूषापदसहायतया पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां पुनः लिखतु । (आप सुरेश हैं और छात्रावास में रह रहे हैं । शीतकालीन अवकाश में आपके विद्यालय में संस्कृत सम्भाषण | शिविर चलेगा, अत: आप घर नहीं जाएँगे । ऐसा सूचित करते हुए पिता के प्रति लिखे हुए पत्र को मंजूषा के शब्दों द्वारा पूर्ण करके उत्तर-पुस्तिका में पुनः लिखिए ।)
मञ्जूषा- सम्यक्, जयपुरतः, कुशलिनः, मातृचरणयोः सुरेशः, सादरं वन्दनानि, समाप्ता, संस्कृतसम्भाषणशिविरम् ।
नर्मदाछात्रावास:
नवोदयविद्यालय:
(i) ………….
दिनाङ्कः 25.03.20–
परमपूज्यपितृमहाभागाः !
(ii) ………..
अत्र कुशलं तत्रास्तु । तत्रापि भवन्तः सर्वे (iii) ……….. इति मन्ये । अत्र मम पठनं (iv) ………… प्रचलति । अर्धवार्षिकी परीक्षा (v) …………. । मम विद्यालये शारदीयेऽवकाशे (vi) ……….. प्रचलिष्यति। अतः अहम् अवकाशदिनेषु गृहम् आगन्तुं न शक्नोमि । भवतां दर्शनेन अहं वञ्चितः भवामि इति खेदः, तथापि शिविरेण मम ज्ञानवर्धनं भविष्यति इति नास्ति सन्देहः । (vii) ………….. अपि मम वन्दनानि । स्वकीयं क्षेमसमाचारं सूचयन्तु इति ।
भवदीयः पुत्रः
(viii) …………….
उत्तरम्
नर्मदाछात्रावासः
नवोदयविद्यालयः
जयपुरत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
परमपूज्यपितृमहाभागाः !
सादरं वन्दनानि ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु । तत्रापि भवन्तः सर्वे कुशलिनः इति मन्ये । अत्र मम पठनं सम्यक् प्रचलति । अर्धवार्षिकी परीक्षा समाप्ता । मम विद्यालये शारदीयेऽवकाशे संस्कृतसम्भाषणशिविरं प्रचलिष्यति । अतः अहम् अवकाशदिनेषु गृहम् आगन्तुं न शक्नोमि । भवतां दर्शनेन अहं वञ्चितः भवामि इति खेदः, तथापि शिविरेण मम ज्ञानवर्धनं भविष्यति इति नास्ति सन्देहः । मातृचरणयोः अपि मम वन्दनानि । स्वकीय क्षेमसमाचारं सूचयन्तु इति ।
भवदीयः पुत्रः
सुरेशः
हिन्दी-अनुवाद
नर्मदा छात्रावास,
नवोदय विद्यालय,
जयपुर
दिनाङ्कः 25.03.20–
परमपूज्य पिताजी !
सादर वन्दना ।
यहाँ सब कुशल हैं, वहाँ भी हों । वहाँ पर भी आप सब सकुशल हैं, ऐसा मानता हूँ । यहाँ मेरी पढ़ाई ठीक चल रही। है । अर्द्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हुई । मेरे विद्यालय में शीतकालीन अवकाश में संस्कृत सम्भाषण शिविर चलेगा । अतः मैं अवकाश के दिनों में घर नहीं आ सकता हूँ । आपके दर्शनों से वंचित रहूँगा, यही खेद है, फिर भी शिविर से मेरा ज्ञानवर्धन होगा, इसमें सन्देह नहीं । माँ के चरणों में भी मेरा प्रणाम । अपने कुशल समाचार सूचित करें ।
आपका पुत्र
सुरेश
(17) भवती श्यामला । भवती पितरं प्रति एक पत्र लिखति । मञ्जूषायाः उचितानि पदानि चित्वा पत्रं पूरयतु। (आप श्यामला हैं । आप पिताजी को एक पत्र लिखती हैं । मंजूषा से उचित पद चुनकर पत्र पूर्ण कीजिए ।)
मञ्जूषा- अभवतु, श्रीनगरतः, स्वास्थ्यविषये, प्रियपुत्री, आगत्य, वन्दनानि, मातृचरणयोः, कुशलिनी ।
(i) ………….
दिनाङ्कः 25.03.20–
पितृश्रीचरणसन्निधौ,
सादरं (ii) : …………. ।
भवतः पत्रं प्राप्तम् । पत्रं पठित्वा बहु आनन्दः (iii) …………… । अहम् अत्र (iv) ……….. । भवतः मातुः च (v) …………. अधिकं चिन्तयामि । अत्र मम प्रशिक्षणं सम्यक् प्रचलति । भवता दत्तं पुस्तकम् आगमनसमये मार्गे एव मया पठितम् । प्रशिक्षणस्य पश्चात् अहं शैक्षिकप्रवासाय गमिष्यामि । ततः (vi) ………… गृहम् आगमिष्यामि । एतं विषयं पूज्यमातरम् अपि सूचयतु । (vii) …………….. अपि मम वन्दनानि अनुजाय च शुभाशिषः ।
भवदीया (viii) …………..
उत्तरम् –
श्यामला
श्रीनगरत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
पितृश्रीचरणसन्निधौ,
सादरं वन्दनानि ।
भवत: पत्रं प्राप्तम् । पत्रं पठित्वा बहु आनन्दः अभवत् । अहम् अत्र कुशलिनी । भवतः मातुः च स्वास्थ्यविषये अधिक चिन्तयामि । अत्र मम प्रशिक्षणं सम्यक् प्रचलति । भवता दत्तं पुस्तकम् आगमनसमये मार्गे एव मया पठितम् । प्रशिक्षणस्य पश्चात् अहं शैक्षिकप्रवासाय गमिष्यामि । ततः आगत्य गृहम् आगमिष्यामि । एतं विषयं पूज्यमातरम् अपि सूचयतु । मातृचरणयोः अपि मम वन्दनानि, अनुजाय च शुभाशिषः ।
भवदीया प्रियपुत्री
श्यामला
हिन्दी-अनुवाद
श्रीनगर
दिनांक 25.03.20–
पिताजी के श्रीचरणों में
सादर वन्दना।
आपका पत्र प्राप्त हुआ । पत्र पढ़कर बहुत आनन्द हुआ । मैं यहाँ पर सकुशल हूँ। आप और माताजी के स्वास्थ्य के विषय में चिन्तित हूँ । यहाँ मेरा प्रशिक्षण ठीक चल रहा है । आपके द्वारा दी गयी पुस्तक आगमन के समय रास्ते में ही मैंने पढ़ ली थी । प्रशिक्षण के पश्चात् मैं शैक्षिक प्रवास पर जाऊँगी । वहाँ से आकर घर आऊँगी । इस विषय में पूज्य माताजी को भी सूचित कर दें । माताजी के चरणों में भी मेरी वन्दना । अनुज के लिए शुभ आशीर्वाद ।
आपकी प्रिय पुत्री
श्यामला
(18) भवती सुशीला । भवती छात्रावासे पठति । और्णवस्त्राणि पुस्तकानि च क्रेतुं धनप्रेषणार्थं पितरं प्रति अधः अपूर्णपत्रं लिखितम् । मञ्जूषायाः सहायतया उचितशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयित्वा पुनः पत्रम् उत्तरपुस्तिकायां लिखतु । (आप सुशीला हैं। आप छात्रावास में पढ़ती हैं । ऊनी वस्त्र और पुस्तकें खरीदने के लिए धन भेजने के लिए पिता को नीचे अधूरा पत्र लिखा है । मंजूषा की सहायता से उचित शब्दों से रिक्तस्थानों की पूर्ति करके पुनः पत्र उत्तरपुस्तिका में लिखिए ।)
मञ्जूषा – प्रणामाः, धनादेशद्वारा, छात्रावासतः, चिराद्, पूज्यपितृचरणेषु, और्णवस्त्राणि, सुशीला, स्नेहवेचनानि ।
(i) ………..
दिनाङ्कः 25.03.20–
(ii) ………….
सादरं (iii) ………..
अत्र अहं स्वस्था अस्मि । (iv) ………… भवतां कृपापत्रं न आयातम् । चिन्तिता अस्मि । अत्र मम सकाशे धनाभावः वर्तते । शीत: वर्धते । (v) ………… क्रेतव्यानि । पुस्तकानि चापि क्रेतव्यानि सन्ति । अतः सहस्ररूप्यकाणि । (vi) ………… शीघ्रमेव प्रेषणीयानि । मातृचरणेषु प्रणती: समर्पये । रमायै अतुलाय च (vii) ………… दद्यात् भवान् ।
भवतः पुत्री
(viii) …………….
उत्तरम् –
छात्रावासतः
पूज्य पितृचरणेषु दिनाङ्कः 25.03.20–
सादर प्रणामाः ।
अत्र अहं स्वस्था अस्मि । चिराद् भवतां कृपापत्रं न आयातम् । चिन्तिता अस्मि । अत्र मम सकाशे धनाभावः वर्तते । शीत: वर्धते । और्णवस्त्राणि क्रेतव्यानि । पुस्तकानि चापि क्रेतव्यानि सन्ति । अतः सहस्ररूप्यकाणि धनादेशद्वारा शीघ्रमेव प्रेषणीयानि । मातृचरणेषु प्रणती: समर्पये । रमायै अतुलाय च स्नेहवचनानि दद्यात् भवान् ।
भवतः पुत्री
सुशीला
हिन्दी-अनुवाद
छात्रावास
दिनांक 25.03.20–
पूज्य पिताजी के चरणों में,
सादर प्रणाम !
यहाँ मैं स्वस्थ हुँ । बहुत दिनों से आपका कृपापत्र नहीं आया । चिन्तित हूँ । यहाँ मेरे पास धन का अभाव है । सर्दी बढ़ रही है। ऊनी कपड़े खरीदने हैं और पुस्तकें भी खरीदनी हैं । अत: एक हजार रुपये मनीऑर्डर (धनादेश) द्वारा शीघ्र ही भेज दें । माताजी को प्रणाम समर्पित करती हूँ । रमा और अतुल के लिए स्नेहवचन कहें।
आपकी पुत्री
सुशीला
(19) विनीतः नागपुरनगरे वसति। तस्य मित्रं प्रगीतः कर्णपुरनगरे वसति । विनीतेन गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः गृहीतः । सः स्वानुभवान् स्वमित्रं प्रगीतं प्रति पत्रे लिखति । भवान् मञ्जूषातः पदानि चित्वा पत्रं पृरयतु ।
(विनीत नागपुर नगर में रहता है । उसका मित्र प्रगीत कानपुर नगर में रहता है । विनीत ने गणतन्त्र दिवस की शोभायात्रा में भाग लिया । वह अपने अनुभवों को अपने मित्र प्रगीत को पत्र में लिखता है । आप मजूषा से पदों को चुनकर पत्र पूरा करें ।)
मञ्जूषा – गृहीतः, नमस्ते, मम, वाद्यवृन्दम्, राजमार्गम्, लोकनृत्यानि, गणतन्त्रदिवससमारोहस्य, प्रमुखसञ्चालकः।
नागपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियमित्र प्रगीत !
(i) ……………
अत्र कुशलं तत्रास्तु । अहं (ii) ………… सज्जायां व्यस्त: असम् । अत: विलम्बेन तव पत्रस्य उत्तरं ददामि । अस्मिन् वर्षे मयापि गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः (iii) ………… ।
अस्माकं विद्यालयस्य (iv) …………. स्वकलाया: प्रदर्शनम् अकरोत् । अहं नृत्यस्य (v) …………. असम् ।
छात्राणां राष्ट्रगानस्य ओजोयुक्तध्वनिः (vi) ……….. गुञ्जितम् अकरोत् । स्वराष्ट्रस्य सैन्यबलानां पराक्रम- प्रदर्शनानि विचित्रवर्णानि परिदृश्यानि (vii) ……….. च दृष्ट्वा अहं गौरवान्वितः अस्मि । (viii) …………. ल्यावस्थायाः स्वप्नः तत्र पूर्णः जातः । पितरौ वन्दनीयौ ।
भवत: सुहद्
विनीतः
उत्तरम्
नागपुरतः
प्रियमित्र प्रगीत ! दिनाङ्कः 25.03.20–
नमस्ते
अत्र कुशलं तत्रास्तु । अहं गणतन्त्रदिवससमारोहस्य सज्जायां व्यस्तः आसम् । अतः विलम्बेन तत्र पत्रस्य उत्तरं ददामि । अस्मिन् वर्षे मयापि गणतन्त्रदिवसस्य शोभायात्रायां भागः गृहीतः ।
अस्माकं विद्यालयस्य वाद्यवृन्दम् स्वकलायाः प्रदर्शनम् अकरोत् । अहं नृत्यस्य प्रमुखसञ्चालक: आसम् । छात्राणां राष्ट्रगानस्य ओजोयुक्तध्वनिः राजमार्गं गुञ्जितम् अकरोत् । स्वराष्ट्रस्य सैन्यबलानां पराक्रमप्रदर्शनानि, विचित्रवर्णानि, परिदृश्यानि लोकनृत्यानि च दृष्ट्वा अहं गौरवान्वित: अस्मि । मम बाल्यावस्थायाः स्वप्नः तत्र पूर्ण: जातः । पितरौ वन्दनीयौ।
भवतः सुहृद्
विनीतः
हिन्दी-अनुवाद
नागपुर
दिनांक 25.03.20–
प्रियमित्र प्रगीत !
नमस्ते ।
यहाँ कुशल है, वहाँ भी हो । मैं गणतन्त्र दिवस समारोह की तैयारी में व्यस्त था । अतः तुम्हारे पत्र का उत्तर विलम्ब से दे रहा हूँ । इस वर्ष मैंने भी गणतन्त्र दिवस शोभायात्रा में भाग लिया । हमारे विद्यालय के वाद्यवृन्द ने अपनी कला का प्रदर्शन किया । मैं नृत्य का प्रमुख सञ्चालक था । छात्रों के राष्ट्रगान की ओजस्वी ध्वनि ने राजमार्ग को गुंजित कर दिया । अपने राष्ट्र की सेना के पराक्रम का प्रदर्शन, विचित्र वर्गों के परिदृश्यों तथा लोकनृत्यों को देखकर मैं गौरवान्वित हूँ। मेरे बचपन का स्वप्ने वहाँ पूरा हो गया । माता-पिता वन्दनीय हैं ।
आपका सुहृद्
विनीत
(20) भवती स्मृतिः । अमृतसरे निवसति । स्वस्य जन्म-दिवसे आमन्त्रणाय सखीम् अनितां प्रति अधोलिखितम् अपूर्णपत्रं मञ्जूषायां प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु ।
(आप स्मृति हैं । अमृतसर में रहती हैं। अपने जन्मदिन पर बुलाने के लिए सहेली अनिता को लिखे गये निम्न अधूरे पत्र को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके फिर से उत्तर पुस्तिका में लिखिए ।)
मञ्जूषा – दिवसे, अवसरे, सखी, आगन्तव्यम्, हर्षस्य, कुशलं, जन्मदिवसः, उत्साहवर्धनम् ।
अमृतसरतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिय (i) ……………….. अनिते !
सप्रेम नमः । अत्र (ii) ………… तत्रस्तु। अपरं च अयम् अतीव (iii) …………. विषयः यत् विगतवर्षाणि इव अस्मिन् अपि वर्षे मम (iv) ……….. ऐप्रिलमासस्य अष्टमे (v) ……… मन्यते । अस्मिन् (vi) …………. भवत्या अपि अवश्यमेव (vii) …………. । तवागमनेन मे (viii) …………. भविष्यति । भवत्याः पित्रोः चरणयोः प्रणत्य: अनुजाय स्नेहश्च ।
भवत्याः सखी
स्मृतिः
उत्तरम् –
अमृतसरत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियसखि अनिते !
सप्रेम नमः ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु । अपरं च अयम् अतीव हर्षस्य विषयः यत् विगतवर्षाणि इव अस्मिन् अपि वर्षे मम जन्मदिवस: ऐप्रिलमासस्य अष्टमे दिवसे मन्यते । अस्मिन् अवसरे भवत्या अपि अवश्यमेव आगन्तव्यम् । तवागमनेन में उत्साहवर्धनं भविष्यति । भवत्याः पित्रो: चरणयोः प्रणत्य: अनुजाय स्नेहश्च ।
भवत्याः सखी
स्मृतिः
हिन्दी-अनुवाद
अमृतसर
दिनांक 25.03.20–
प्रिय सखी अनिता !
सप्रेम नमस्कार ।
यहाँ कुशल है (आशा है) वहाँ भी (कुशल होंगे) । और दूसरा यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी मेरा जन्म दिवस आठ अप्रैल को मनाया जा रहा है । इस अवसर पर आपको भी अवश्य ही आना है । आपके आगमन से मेरे उत्साह में वृद्धि होगी। आपके माता-पिता जी के चरणों में प्रणाम और अनुज के लिए स्नेह ।
आपकी सखी
स्मृति
(21) भवती कविता। जयपुरे निवसति कैलाशपुर्याम्। स्वस्य दिनचर्याविषयक स्वसखीं स्मिता प्रति अधोलिखितमपूर्णपत्रं मजूषायां प्रदत्तपदसहायतया पूरयित्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखतु ।।
(आप कविता हैं । जयपुर में कैलाशपुरी में रहती हैं। अपनी सखी स्मिता को अपनी दिनचर्याविषयक निम्नलिखित अधूरे पत्र को मंजूषा में दिए शब्दों की सहायता से पूरा करके पुन: उत्तर-पुस्तिका में लिखिए ।)
मञ्जूषा – दिनचर्याम्, चिरात्, पञ्चवादने, हर्षम्, सार्धषड्वादनपर्यन्तं, दशवादने, निवृत्य, भुक्त्वा
कैलाशपुरी
जयपुरतः
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियसखि स्मिते !
सस्नेह नमस्ते ।
अत्र सर्वं कुशलम् । भवती अपि कुशलिनी इत्यहं कामये । अद्य (i) ………….. भवत्पत्रं प्राप्तम् । अहम् अतीव (ii) ………….. अनुभवामि । भवती मम (iii) ………….. ज्ञातुम् इच्छति । अतोऽहम् अत्र में दिनचर्या लिखामि । सखि ! अहं प्रात: (iv) ………………. उत्तिष्ठामि । सार्धपञ्चवादनात् (v) ………….. भ्रमणं करोमि । ततः स्नानादिभिः (vi) …………. नववादनतः दशवादनपर्यन्तम् अध्ययनं करोमि । (vii) …………… विद्यालयं गच्छामि । सायं पञ्चवादने विद्यालयात् आगत्य कीडाङ्गणे क्रीडामि । सप्तवादने अहं भोजनं (viii) …………. पठामि गृहकार्यं च करोमि । रात्रौ दशवादने शये । मातापित्रोः चरणयो: मे प्रणत्यः ।
भवदीया प्रिय सखी
कविता
उत्तरम् –
कैलाशपुरी
जयपुरत:
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रियसखि स्मिते !
सस्नेह नमस्ते ।
अत्र सर्वं कुशलम् । भवती अपि कुशलिनी इत्यहं कामये । अद्य चिरात् भवत्पत्रं प्राप्तम् । अहम् अतीव हर्षम् अनुभवामि । भवती मम दिनचर्या ज्ञातुम् इच्छति । अतोऽहम् अत्र मे दिनचर्या लिखामि ।
सखि ! अहं प्रातः पञ्चवादने उत्तिष्ठामि । सार्धपञ्चवादनात् सार्धषड्वादनपर्यन्तं प्रातः भ्रमणं करोमि । ततः स्नानादिभिः निवृत्य नववादनत: दशवादनपर्यन्तम् अध्ययनं करोमि । दशवादने विद्यालयं गच्छामि । सायं पञ्चवादने विद्यालयात् आगत्य क्रीडाङ्गणे क्रीडामि । सप्तवादने अहं भोजनं भुक्त्वा पठामि गृहकार्यं च करोमि । रात्रौ दशवादने शये । मातापित्रो: चरणयो: में प्रणत्यः ।
भवदीया प्रिय सखी,
कविता
हिन्दी-अनुवाद
कैलाशपुरी
जयपुर
दिनांक 25.03.20–
प्रिय सखी स्मिता !
सस्नेह नमस्ते ।
यहाँ सब कुशल है । आप भी कुशल हों ऐसी मेरी कामना है । आज बहुत दिनों बाद आपका पत्र मिला । मैं अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रही हैं । आप मेरी दिनचर्या जानना चाहती हैं । इसलिए यहाँ मैं अपनी दिनचर्या लिख रही हूँ ।
सखि ! मैं प्रात:काल पाँच बजे उठती हूँ । साढे पाँच बजे से साढ़े छ: बजे तक प्रातः भ्रमण करती हूँ। तब स्नान आदि से निवृत्त होकर नौ बजे से दस बजे तक अध्ययन करती हूँ । दस बजे विद्यालय जाती हूँ । सायं पाँच बजे विद्यालय से आकर खेल के मैदान में खेलती हूँ । सात बजे मैं खाना खाकर पढ़ती हूँ और गृहकार्य करती हूँ । रात को दस बजे सोती हूँ । माता जी और पिताजी के चरणों में मेरा प्रणाम ।
आपकी प्यारी सखी
कविता
(22) भवती राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः रामनगरम् इत्यस्य दशमकक्षायाः नन्दिनी नामा छात्रा अस्ति। भवत्याः सर्वी प्रतिभाम् एकं पत्रं लिखतु, यस्मिन् ‘मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिक रोचते’ इति वर्णनं स्यात् ।
(आप राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रामनगर की कक्षा दस की नन्दिनी नामक छात्रा हैं । अपनी सखी प्रतिभा को एक पत्र लिखिए कि जिसमें मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है ऐसा वर्णन हो ।)
मजूषा – कुशलम्, निवेद्यताम्, आदर्शविद्यालय:, सुसज्जितम्, पुस्तकानि, पत्र-पत्रिका, रामनगरम्, भवत्या
राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः
(i) …………
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिये सखि प्रतिभे !
सादरं वन्दे ।
अत्र सर्वगतं (ii) ………… अस्ति । भवती अपि तत्र कुशलिनी इत्यहं मन्ये । अद्य चिरात् प्राप्तम् (iii) ………….. स्नेहसिक्तं पत्रम् । भवती इच्छति यद् अहं मम विद्यालयस्य विषये भवर्ती प्रति लिखेयम् । निः संशयोऽयं मम विद्यालय: मह्यम् अत्यधिक रोचते यतः अस्य भवनम् अतिविस्तृतं, भव्यम्, (iv) ………… द्विभूमिक च । अस्य पुस्तकालये बहूनि (v) …………. सन्ति, वाचनालये विविधाः नूतना: (vi) ………… च समायान्ति । अत्र पठन-पाठनस्य क्रीडायाः च सम्यग् व्यवस्था अस्ति । एष एकः सुव्यवस्थितः, सम्यगनुशासित: प्रशासितश्च
(vii) ………… अस्ति । अतः अयं मम विद्यालय: मह्यम् अत्यधिक रोचते । शेषं कुशलम् । पित्रो: चरणयोः प्रणत्यः मनीषायै च रनेहः (viii) ………… ।
भवत्याः प्रिय सखी
नन्दिनी ।
उत्तरम्
राजकीय-उच्च-माध्यमिकविद्यालयः
रामनगरम्
दिनाङ्कः 25.03.20–
प्रिये सखि प्रतिभे !
सादरं वन्दे ।
अत्र सर्वगतं कुशलम् अस्ति । भवती अपि तत्र कुशलिनी इत्यहं मन्ये । अद्य चिरात् प्राप्तम् भवत्याः स्नेहसिक्तं पत्रम् । भवती इच्छति यद् अहं मम विद्यालयस्य विषये भवर्ती प्रति लिखेयम् । निः संशयोऽयं मम विद्यालय: मह्यम् अत्यधिक रोचते यतः अस्य भवनम् अतिविस्तृतं, भव्यम्, सुसज्जितं द्विभूमिकं च । अस्य पुस्तकालये बहूनि पुस्तकानि सन्ति, वाचनालये विविधाः नूतनाः पत्र-पत्रिकाः च समायन्ति । अत्र पठन-पाठनस्य क्रीडायाः च सम्यग् व्यवस्था अस्ति । एष एकः सुव्यवस्थितः, सम्यगनुशासितः प्रशासितश्च आदर्शविद्यालयः अस्ति । अतः अयं मम विद्यालयः मह्यम् अत्यधिक | रोचते । शेषं कुशलम् । पित्रोः चरणयोः प्रणत्यः मनीषायै च स्नेहः निवेद्यताम् ।
भवत्याः प्रियसखी
नन्दिनी ।
हिन्दी-अनुवाद
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
रामनगर
दिनांक 25.03.20–
प्रिय सखी प्रतिभा !
सादर वन्दे ।
यहाँ सब प्रकार से कुशल है । आप भी वहाँ कुशल हैं, ऐसा मानती हूँ । आज बहुत दिन बाद आपका स्नेहसिक्त पत्र प्राप्त हुआ । आप चाहती हैं कि मैं अपने विद्यालय के विषय में आपको लिखें । निस्सन्देह यह मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इसका भवन अति विस्तृत, भव्य, सुसज्जित और दोमंजिला है । इसके पुस्तकालय में बहुत-सी। पुस्तकें हैं । वाचनालय में विविध नवीन पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं । यहाँ पठन, पाठन और क्रीड़ा की सम्यक् व्यवस्था है । यह | एक सुव्यवस्थित, सम्यक् अनुशासित और प्रशासित आदर्श विद्यालय है। अत: यह मेरा विद्यालय मुझे बहुत रुचिकर लगता । है । शेष कुशल है । माता-पिताजी के चरणों में प्रणाम और मनीषा को प्यार कहें ।
आपकी प्यारी सहेली
नन्दिनी
(23) भवती कनकग्रामवासिनी रेखा स्वकीयां सखीम् अंकिता प्रति ‘संस्कृतभाषाशिक्षणम्’ इति विषये अधोलिखितं पत्रं मजूषांपदसहायता पूरयित्वा लिखतु ।
(आप कनक ग्राम की निवासी रेखा हैं । मञ्जूषा में दिये शब्दों की सहायता से अपनी सखी अंकिता को ‘संस्कृतभाषाशिक्षणम्’ विषय पर अधोलिखित पत्र लिखिए ।)
मञ्जूषा – केनकग्रामतः, अस्माकम्, इच्छति, रेखा, पृथक्, पठित्वा, प्राप्तम्, सुगन्धम् ।
(i) ………..
दिनाङ्कः 18.03.20–
प्रिये अंकिते !
नमस्ते ।
भवत्या पत्रं (ii) ………….. । भवती संस्कृतभाषां पठितुम् (iii) ………… एषा भाषा वैज्ञानिकी संस्कृतम् (iv) ………….. देशस्य प्रसिद्धा भाषा। भारतीयसंस्कृते: संस्कृतं (v) …………. कर्तुं तथैव न शक्यते यथा पुष्पेभ्य (vi) …………… । अतः भवती अपि संस्कृतं पठतु एवं च (vii) …….. प्रचार करोतु ।
भवत्याः प्रिय सखी
(viii) …………
उत्तरम् –
कनकग्रामत:
दिनाङ्कः 18.03.20–
प्रिये अंकिते !
नमस्ते ।
भवत्या पत्रं प्राप्तम् । भवती संस्कृतभाषां पठितुम् इच्छति। एषा भाषा वैज्ञानिकी । संस्कृतम् अस्माकं देशस्य प्रसिद्धा भाषा। भारतीयसंस्कृते: संस्कृतं पृथक् कर्तुं तथैव च शैक्यते यथा पुष्पेभ्य: सुगन्धम् । अत: भवती अपि संस्कृतं पठतु एवं च पठित्वा प्रचारं करोतु ।
भवत्याः प्रियसखी
रेखा ।
हिन्दी-अनुवाद
प्रिय अंकिता !
नमस्ते ।
आपको पत्र मिला। आप संस्कृत पढ़ना चाहती हो । यह एक वैज्ञानिक भाषा है । संस्कृत हमारे देश की प्रसिद्ध भाषा है । संस्कृति को संस्कृत से, फूलों से सुगन्ध की भाँति अलग-अलग नहीं किया जा सकता है । इसलिए आप भी संस्कृत पढ़ें और इस प्रकार पढ़कर (इसका) प्रचार करें ।
आपकी प्यारी सहेली
रेखा
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