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RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम्

May 10, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् is part of RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम्.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम्

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् अभ्यास – प्रश्नाः

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् वस्तुनिष्ठ – प्रश्नाः

1. पाठेऽस्मन् ‘शरीर विज्ञान-विचक्षणः’ इति बिशेषणं कस्य कृते प्रयुक्तम्
(अ) आचार्य-चरकस्य
(आ) आचार्य-चार्वाकस्य
(इ) आचार्य-सुश्रुतस्य
(ई) आचार्य वाग्भटस्य

2. मरुः सुवर्णो नहि येन दृष्ट:’-इत्यस्य अर्थोऽस्ति
(अ) मरुभूमौ येन स्वर्णम् (काञ्चनम्) न दृष्टम्।
(आ) मरुभूमौ सुन्दर: वर्णः (रङ्ग) येन न दृष्टः।
(इ) स्वर्णस्य मरुप्रदेश: येन न दृष्टः।
(ई) सुवर्णः (सुरङ्ग) स्वर्णरूप: वा मरुदेश: येन ने दृष्टः।

3. ‘सैकतवप्रसानुः’ इत्यस्य कृते प्रयुक्तं विशेषणमस्ति
(अ) रम्यः
(आ) सुकोमलः
(इ) हैमवर्णः
(ई) उपर्युक्तानि सर्वाणि अपि

4. मरोः सौन्दर्यम् वर्धते विशेषतः
(अ) वसन्त
(आ) शीतर्ती
(इ) ग्रीष्मर्ती
(ई) वर्षर्ती

5. मरुदेशे के प्रसन्नाः सन्ति-
(अ) गावः
(आ) मनुजाः
(इ) देवाः
(ई) एते सर्वेऽपि

6. ‘मानं मनीषिता’ इत्यादिपद्यानुसार कियन्ति वस्तूनि मरुप्रदेशे मुख्यानि प्रतिपादितानि
(अ) पञ्च
(आ) सप्त
(इ) अष्टौ
(ई) नव

उत्तराणि:

1. (अ)
2. (ई)
3. (ई)
4. (ई)
5. (ई)
6. (आ)

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् लघूत्तरात्मक – प्रश्नाः

प्रश्न 1.
अधोलिखित-प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखन्तु- (निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)

(क) चरकाचार्येण मरुभूमेः का विशेषता प्रकटिता?
(आचार्य चरक द्वारा मरुभूमि की क्या विशेषता प्रकट की गईहै?)
उत्तरम्:
स्नेहार्द्र-भावैकरसैः विशिष्टः शुष्कोऽपि नित्यं सरसः सः देशः।
(स्नेह (प्रेम व घृतादि) आर्द्र भांव के एक रस से विशिष्ट यह सूखा (निर्जल) होते हुए भी सरस (आनन्ददायक और स्वादिष्ट) है।)

(ख) मरुदेशे सैकतवप्राः (बालुका-स्तूपाः) कीदृशाः सन्ति?
(मरुप्रदेश में बालू के टीले कैसे हैं?)
उत्तरम्:
मरुदेशे सैकतवप्राः सुकोमला: भास्वन्त: हैम वर्णाः च सन्ति।
(मरुप्रदेश के बालू के टीले कोमल, चमकते हुए और सुनहरी रंग के हैं।)

(ग) वर्षागमे मरोः शोभा कीदृशी भवति?
(वर्षा आगमन पर मरु की शोभा कैसी होती है?)
उत्तरम्:
वर्षागमे सर: सु शरत् प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।
(वर्षा के आगमन पर तालाबों में जल शरद् ऋतु की तरह निर्मल शोभा देता है।)

(घ) मरुमरीचिका स्पष्टी कुर्वन्तु?
(मृगतृष्णा को स्पष्ट कीजिए?)
उत्तरम्:
बालुकायाः तरंगिता: स्तूपाः जलम् इव प्रतिभान्ति अत: मृगाः पिपासुः जलाशयं मत्वा दूरं दूरं धावति नश्यति च।
(बालू के लहरों से युक्त टीले पानी की तरह लगते हैं। अतः प्यासा मृग जलाशय मानकर दूर और दूर भागता है और मर जाता है।)

प्रश्न 2.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन यथोचितं योजयतु-
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 1

प्रश्न 3.
अधोलिखित-पदानां पर्यायपदानि पाठाद् अन्विष्य लिख्यन्ताम्-
(निम्न पदों के पर्याय पाठ से हूँढ़कर लिखिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 2

प्रश्न 4.
अधस्तनपदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखन्तु-
(निम्न पदों के विलोम पद पाठ से चुनकर लिखो-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 3
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 4

प्रश्न 5.
अधस्तनपदानि आधृत्य (उदाहरणं च अनुसृत्य) संस्कृतेन वाक्य-निर्माणं कुर्वन्तु-
(निम्न पदों के आधार पर उदाहरण के अनुसार संस्कृत में वाक्य-निर्माण कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 5

प्रश्न 6.
स्थूलाक्षरपदमाश्रित्य संस्कृतेन प्रश्नवाक्य-निर्माणं क्रियताम्-
(मोटे अक्षर वाले पदों के आधार पर संस्कृत में प्रश्नवाक्यों का निर्माण कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 6

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् निबन्धात्मक प्रश्नाः

प्रश्न 1.
मरुभूमेः सौन्दर्यम् अवलम्ब्य दशः संस्कृत-वाक्यानि लिखन्तु-
(मरुभूमि की सुन्दरता का सहारा लेकर दश संस्कृत वाक्य लिखिए-)
उत्तरम्:
मरुप्रदेशः शुष्कोऽपि स्नेहेन सरसः भवति। मरौ सैकतवप्रसानवः स्पष्टः सुमेरुश्रृंगाः भान्ति। सैकतवप्रसानवः सुकोमला भास्वन्त: हैमवर्णाः च शोभते। प्रात:काले प्रदोषकाले ये जनाः सैकतवप्रसानुषु विहरन्ति तिष्ठन्ति च ते आनन्दम्। अनुभवन्ति। तत्र समीरः शीतलः गन्धवहस्य बहति। तित्तिराणां विराव: मधुरं भवति। मयूराणां नर्तन हरिणानां च समुत्प्लुतिः मानवानां चेतांसि विकासयन्ति। मरुप्रदेशे तुन्दिला: स्वादुरसाः कलिङ्गाः भवन्ति। शारदी चञ्चल चन्द्रिका: शोभते। तडागेषु वर्षाकालेऽपि जलं निर्मलं भवति। खगानां कलरवः उष्ट्राणां च गति: अपि आकर्षकः भवति।

(मरुप्रदेश सूखा होते हुए भी स्नेह से सरस होता है। मरु में बालू के टीले स्पष्ट सुमेरु की चोटी की तरह शोभा देते हैं। बालू की ऊँची शिखरें कोमल, चमकदार और सुनहरी शोभा देती हैं। प्रातः और रात्रि में जो लोग बालू के टीलों पर बैठते हैं। या विहार करते हैं वे आनन्द का अनुभव करते हैं। वहाँ वायु शीतल और सुगन्धित बहती है। तीतरों क़ी कूजन मधुर होती है। मोरों का नाचना और हिरनों की उछल-कूद मन को खिला देती है। मरुप्रदेश के मतीरे मीठे और स्वादिष्ट रस वाले होते हैं। शरद्कालीन चंचल चाँदनी भी शोभा देती है। तालाबों में वर्षाकाल में निर्मल जल होता है। पक्षियों का कलरव और ऊँटों की गति भी आकर्षक होती है।)

प्रश्न 2.
मरुदेशस्य वर्षाकालिकं माहात्म्यं वर्णयन्तु।
(मरुप्रदेश के वर्षाकाल के महात्म्य का वर्णन करो।)
उत्तरम्:
वर्षाकाले दृश्यं सर्वत्र मनोहरं भवति। शीतलः गन्धवहः समीरः बहति। सर:सु शरद्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।
(वर्षाकाल में दृश्य सब जगह मनोहर होता है। शीतल सुरभित पवन बहता है। तालाबों में शरद् ऋतु की तरह स्वच्छ जल होता है।)

प्रश्न 3.
‘रम्ये क्वचित् …… विकासवन्ति’-इत्यस्य पद्यस्य हिन्द्यनुवादो विधेयः।
(‘रम्ये क्वचित् …… विकासवन्ति’ इस श्लोक का हिन्दी अनुवाद कीजिए।)
उत्तरम्:
श्लोक सं० 3 का हिन्दी अनुवाद देखिए।

प्रश्न 4.
‘सः शीतलो …… कुरङ्गमाणाम्’-इत्यस्य पद्यस्य संस्कृत-व्याख्या विधेया।
(‘स: शीतलो …… कुरङ्गमाणाम् इस श्लोक की संस्कृत में व्याख्या दीजिए।)
उत्तरम्:
श्लोक सं० 4 की सप्रसंग संस्कृत व्याख्या देखिए।

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् व्याकरण – प्रश्नाः

प्रश्न 1.
सन्धि-विच्छेदं / संधिः वा कुर्वन्तु-
(सन्धि / संधि विच्छेद करिए)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 7

प्रश्न 2.
अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृतिप्रत्यय-विभागं कुर्वन्तु-
(निम्नलिखित पदों के प्रकृति-प्रत्यय विभाग करिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 8

प्रश्न 3.
निम्नलिखितेषु पदेषु समासः करणीय-
(निम्नलिखित पदों में समास कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 9

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुर्वन्तु-
(निम्न समस्त पदों का विग्रह कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 10

प्रश्न 5.
वाच्य-परिवर्तनं (कर्तृवाच्याद् कर्मवाच्यम्, कर्मवाच्याद् वा कर्तृवाच्यम्) कुर्वन्तु-
(निम्न का वाच्य परिवर्तन कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् image 11

RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 12 मरुसौन्दर्यम् अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि

अधोलिखित प्रश्नान् संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन लिखत – (निम्न प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में पूर्णवाक्य में लिखिए-)

प्रश्न 1.
चरकः कः आसीत्?
(चरक कौन था?)
उत्तरम्:
चरकः शरीर-विज्ञान-विशेषज्ञः आचार्यः आसीत्।
(चरक शरीर विज्ञान का विशेषज्ञ आचार्य था।)

प्रश्न 2.
मरुभूमिः शुष्का अपि सती कथं सरसा अस्ति?
(मरुभूमि सूखी होती हुई भी कैसे सरस है?)
उत्तरम्:
मरुभूमिः शुष्का अपि सती स्नेह रसेन सरसा अस्ति।
(मरुभूमि सूखी (निर्मल) होते हुए भी स्नेह (घृतादि प्रेम) के कारण सरस है।

प्रश्न 3.
कृष्णासु शिलासु काः नमृग्या:?
(काली शिलाओं में कौन नहीं ढूँढ़े जाते?)
उत्तरम्:
कृष्णासु शिलासु सुमेरुशृंगा: नमृग्याः।
(काली शिलाओं में सुमेरु पर्वत चोटी नहीं हूँढ़ी जाती।)

प्रश्न 4.
सैकतवप्रसानवः कीदृश्यः सन्ति?
(बालू के टीलों की चोटी कैसी है?)
उत्तरम्:
सैकतवप्रसानवः सुकोमलाः भास्वत्य: हैमवर्णाः च सन्ति।
(बालू के टीलों की चोटियाँ कोमल, चमकती हुई सुनहरी हैं।)

प्रश्न 5.
केषां चेतांसि विकासवन्ति भवन्ति?
(किनके चित्त प्रसन्न होते हैं?)
उत्तरम्:
ये जनाः प्रातः प्रदोषे च सैकतवप्रसानुसु तिष्ठन्ति तेषां चेतांसि विकसन्ति।
(जो लोग प्रातः और रात को बालू के टीलों की चोटियों पर बैठते हैं उनके चित्त प्रसन्न होते हैं।)

प्रश्न 6.
मरुप्रदेशस्य समीरः कीदृशः भवति?
(मरुप्रदेश की हवा कैसी होती है?)
उत्तरम्:
मरुप्रदेशस्य समीर: शीतलः गन्धवहः च भवति।
(मरुप्रदेश की हवा शीतल और सुगन्धित होती है।)

प्रश्न 7.
तित्तिराणां विरावः कीदृशः भवति?
(तीतरों का कूजन कैसा होता है?)
उत्तरम्:
तित्तिराणां विविः मधुरः भवति।
(तीतरों का कूजन मधुर होता है।)

प्रश्न 8.
मरुप्रदेशे केषां नर्तनं शोभते?
(मरुप्रदेश में किनका नाचना शोभा देता है?)
उत्तरम्:
मरुप्रदेशे बर्हविभूषणानां (मयूराणां) नर्तनं शोभते।
(मरुप्रदेश में मोरों का नाचना शोभा देता है।)

प्रश्न 9.
कुरङ्गमाणाम् किं शोभते?
(हिरनों को क्या शोभा देता है?)
उत्तरम्:
कुरङ्गमाणाम् समुत्प्लुति: शोभते।
(हिरनों की उछल-कूद शोभा देती )है।

प्रश्न 10.
केषां समत्प्लुतिः शोभते?
(किनकी उछलकूद शोभा देती है?)
उत्तरम्:
कुरङ्गमाणां समुत्प्लुति: शोभते।
(हिरनों की उछलकूद शोभा देती है।)

प्रश्न 11.
मरुप्रदेशे कीदृशाः कलिङ्गाः भवन्ति?
(मरुप्रदेश में कैसे मतीरे होते हैं?)
उत्तरम्:
मरुप्रदेशे तुन्दिलाः स्वादुरसाः कलिङ्गाः भवन्ति।
(मरुप्रदेश में मोटे और स्वादिष्ट रस वाले तरबूज होते हैं।)

प्रश्न 12.
खगानां का दर्शनीया?
(पक्षियों का क्या देखने योग्य है?)
उत्तरम्:
खगानां स्फुरन्ती स्फूर्तिः दर्शनीया।
(पक्षियों की फड़फड़ाती स्फूर्ति दर्शनीय है।)

प्रश्न 13.
शारदी-चन्द्रिका कीदृशी उक्ता?
(शरद् ऋतु की चाँदनी कैसी बताई गई है?)
उत्तरम्:
शारदी-चन्द्रिका चञ्चला उक्ता।
(शरद् ऋतु की चाँदनी चंचल कही गई है।)

प्रश्न 14.
मरुप्रदेशे केषां गतयः मनोहराः सन्ति?
(मरुप्रदेश में किनकी गतियाँ मनोहर होती हैं?)
उत्तरम्:
मरुप्रदेशे क्रमेलकानाम् (उष्ट्राणाम्) गतयः मनोहराः भवन्ति।
(मरुप्रदेश में ऊँटों की गतियाँ मनोहर होती हैं।)

प्रश्न 15.
कस्मिन् काले मरौ मानवानां मनः रमते?
(किस समय मरु में मनुष्यों का मन रमता है?)
उत्तरम्:
वर्षाकाले मरौ मानवानां मन: रमते।
(वर्षाकाल में मरु के मनुष्यों का मन रमता है।)

प्रश्न 16.
शरद् ऋतौ जलं कीदृशं भवति?
(शरद ऋतु में जल कैसा होता है?)
उत्तरम्:
शरद् ऋतौ तडागानां जलं निर्मलं भवति।
(शरद् ऋतु में तालाबों का जल निर्मल (स्वच्छ) होता है।)

प्रश्न 17.
वर्षाकाले मरुदेशे तड़ागानां जलं कीदृशं भवति?
(वर्षाकाल में मरुप्रदेश में तालाबों का जल कैसा होता है?)
उत्तरम्:
वर्षाकाले मरुदेशे तेडागानां जलं शरद् इवे निर्मलं भवति।
(वर्षाकाल में मरुप्रदेश में तालाबों का जले शरद् ऋतु की तरह स्वच्छ होता है।)

प्रश्न 18.
देवाः केः प्रसन्नाः?
(देवता किनसे प्रसन्न हैं?)
उत्तरम्:
देवाः व्रतदानयज्ञैः प्रसन्नाः।
(देवता व्रतदान और यज्ञों से प्रसन्न हैं।)

प्रश्न 19.
मरुदेशे कति प्रसन्नाः सन्ति?
(मरुप्रदेश में कितने प्रसन्न हैं?)
उत्तरम्:
मरुदेशे षट् प्रसन्नाः सन्ति।
(मरुप्रदेश में छः प्रसन्न हैं।)

प्रश्न 20.
अस्माभिः किं समृद्धं करणीयम्?
(हमें क्या समृद्ध करना है?)
उत्तरम्:
अस्माभिः विद्या-समृद्धः करणीयः।
(हमें विद्या से समृद्ध करना है।)

प्रश्न 21.
‘धरती धोराँ री’ इति गीतं केन लिखितम्?
(‘धरती धोराँ री’ गीत किसने लिखा है?)
उत्तरम्:
धरती धोराँ री’ इति गीत पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया महाभागेन लिखितम्।
(‘धरती धोराँ री’ गीत पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया ने लिखा है।)

प्रश्न 22.
कन्हैयालाल सेठिया कस्य भाषायो कविः आसीत्?
(कन्हैयालाल सेठिया किस भाषा के कवि थे?)
उत्तरम्:
कन्हैयालाल सेठिया मरुवाण्याः कविः आसीत्।
(कन्हैया लाल सेठिया मरुवाणी के कवि थे।)

स्थूलाक्षरपदान् आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत – (मोटे अक्षर वाले पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिये-)

प्रश्न 1.
प्रशंसितोऽयं चरकेश्वरेण। (आचार्य चरक द्वारा प्रशंसित)
उत्तरम्:
केन प्रशंसितोऽयम्? (यह किसके द्वारा प्रशंसित है?)

प्रश्न 2.
स्फुटं मरौ भान्ति सुमेरुशृङ्गाः। (मरु में सुमेरु-शिखर स्पष्ट शोभा देते हैं।)
उत्तरम्;
मरौ स्फुटं काः भान्ति? (मरु में स्पष्ट क्या शोभा देती है?)

प्रश्न 3.
शिलासु कृष्णासु न ते हि मृग्याः। (काली शिलाओं में वे ढूँढ़ने योग्य नहीं)
उत्तरम्:
कीदृशीसु शिलासु न ते हि मृग्या:? (वे कैसी शिलाओं में ढूँढ़ने योग्य नहीं?)

प्रश्न 4.
शीतलो गन्धवह समीरः। (शीतले सुगन्धित वायु)
उत्तरम्:
कः शीतलो गन्धवह? (शीतल और सुगन्धित क्या है?)

प्रश्न 5.
तित्तिराणां मधुरो विरावः। (तीतरों का मधुर कूजन)
उत्तरम्:
केषां मधुरो विरावः? (किनका मधुर कूजन?)

प्रश्न 6.
तित्तिराणां मधुरो विरावः। (तीतरों का मधुर कूजन)
उत्तरम्:
तित्तिराणां कीदृशः विरावः। (तीतरों का कैसा कूजन?)

प्रश्न 7.
बर्हविभूषणानां नर्तनं मनोहरम्। (मोरों का नाच सुन्दर है।)
उत्तरम्:
केषां नर्तनं मनोहरम्? (किनका नाच सुन्दर है?)

प्रश्न 8.
समुत्प्लुति: कुरङ्गमाणाम्। (हिरनों की उछलकूद।)
उत्तरम्:
केषां समुत्प्लुति:? (किनकी उछलकूद?)

प्रश्न 9.
तुन्दिलाः स्वादुरसा कलिङ्गाः। (मोटे स्वादिष्ट रस वाले मतीरे।)
उत्तरम्:
तुन्दिला: स्वादुरसा के? (मोटे और स्वादिष्ट रस वाले क्या?)

प्रश्न 10.
स्फूर्तिः स्फुरन्ती स्फुरावलीषु। (पक्षियों की पंक्तियों में फड़फड़ाती स्फूर्ति)
उत्तरम्:
स्फुरावलीषु कीदृशी स्फूर्ति? (पक्षियों की पंक्तियों में कैसी स्फूर्ति?)

प्रश्न 11.
क्रमेलकानां गतयः। (ऊँटों की चाल)।
उत्तरम्:
केषां गतयः? (किसकी चाल?)

प्रश्न 12.
शरद्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति। (शरद की तरह स्वच्छ पानी शोभा देता है।)
उत्तरम्:
शरद्-प्रसन्नं किं चकास्ति? (शरद की तरह स्वच्छ क्या शोभा देता है?)

प्रश्न 13.
सर:सु वर्षासमये शरद्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति। (तालाबों में वर्षाकाल में शरद के समान स्वच्छ जल शोभा देता है।)
उत्तरम्:
सर:सु कदा शरद्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति? (तालाबों में कब शरद के समान स्वच्छ जल शोभा देता है?)

प्रश्न 14.
वर्षागमे मरौ रमते चित्तम्। (वर्षाकाल में मरु में चित्त रमता है।)
उत्तरम्:
कदा मरौ रमते चित्तम्? (मरुप्रदेश में कब चित्त रमता है?)

प्रश्न 15.
देवाः प्रसन्नाः व्रतदान यज्ञैः। (देवता व्रतदान यज्ञों से प्रसन्न हैं।)
उत्तरम्:
देवाः केः प्रसन्नाः? (देवता किनसे प्रसन्न हैं?)

प्रश्न 16.
विद्यासमृद्धः भवता विधेयः। (आपके द्वारा विद्या-समृद्ध किया जाना चाहिए।)
उत्तरम्:
विद्यासमृद्धः केन विधेयः? (विद्या-समृद्ध किसके द्वारा किया जाना चाहिए?)

प्रश्न 17.
पश्चिमाञ्चले प्रसृतास्ति थारमरुभूमिः। (थार का रेगिस्तान पश्चिम अंचल में फैला हुआ है।)
उत्तरम्:
पश्चिमाञ्चले का प्रसृतास्ति? (पश्चिम अंचल में क्या फैला हुआ है?)

प्रश्न 18.
राजस्थानी-भाषायाः महाकविः। (राजस्थानी भाषा का महाकवि।)
उत्तरम्:
कस्याः भाषायाः महाकविः? (किस भाषा का महाकवि?)

प्रश्न 19.
वैदेशिका: मरुदर्शनं कृत्वा आत्मनः धन्यान् मन्यन्ते। (विदेशी मरुदर्शन करके अपने को धन्य मानते हैं?)
उत्तरम्:
वैदेशिकाः किं कृत्वा आत्मनः धन्यान् मन्यन्ते?
(विदेशी अपने को क्या करके धन्य मानते हैं?)

प्रश्न 20.
भूमिं स्तुवन् गीतं रचितवान्। (भूमि की स्तुति करते हुए गीत लिखा।)
उत्तरम्:
काम् स्तुवन् गीतं रचितवान्? (किसकी स्तुति करते हुए गीत की रचना की?)

पाठ-परिचयः
राजस्थान के पश्चिम अंचल में थार मरुभूमि फैली हुई है। हम राजस्थानी लोग विशेष रूप से इस मरुप्रदेश की शोभा-सम्पदा, अक्षय कोष (खजाने) के प्रति अनुरक्त और गौरवान्वित हैं। न केवल हम अपितु मरु (रेगिस्थान) की महिमा से आकर्षित देशाटन में रुचि रखने वाले विदेशी लोग भी मरुप्रदेश की सुन्दरता के दर्शन से वञ्चित, अपनी आँखों से वञ्चित मानते हुए मरुदर्शन करके अपने को धन्य मानते हैं। राजस्थानी भाषा के महाकवि स्वनाम धन्य पद्मश्री कन्हैया लाल सेठिया ने इसी धरती की स्तुति करते हुए ‘धरती धोराँ री’ (टीवों की धरती) इस अमर गीत की रचना की। आधुनिक संस्कृत कवियों ने भी अपने काव्यों में मरुभूमि का गौरवगान किया। प्रस्तुत पाठ में कुछ सरल श्लोकों से मरुभूमि के अपूर्व सौन्दर्य का यथावत् चित्राकर्षक और सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है।

मूलपाठ, अन्वय, शब्दार्थ, हिन्दी-अनुवाद एवं सप्रसंग संस्कृत व्याख्या

1. शरीर-विज्ञान-विचक्षणेन प्रशंसितोऽयं चरकेश्वरेण।
स्नेहार्द-भावैकरसैर्विशिष्टः शुष्कोऽपि नित्यं सरसः स देशः ॥1॥

अन्वयः-शरीरविज्ञानविचक्षणेन चरकेश्वरेण प्रशंसितः सः अयं देश: शुष्कः अपि (सन्) स्नेहार्द्रभावैकरसैः विशिष्टः (अतः) नित्यं सरसः (अस्ति)।

शब्दार्थाः-शरीरविज्ञान-विचक्षणेन = चिकित्साशास्त्रस्य विचक्षणेन, विशेषज्ञेन, चिकित्सकेन (शरीर-विज्ञान के विशेषज्ञ वैद्य)। चरकेश्वरेण = आचार्य चरक के द्वारा। स्नेहार्द्रभावैकरसैः विशिष्टः = स्नेहेन आर्द्रः भावः, केवलं तद्रसैः युक्तः। घृतादीनां स्नेह (चिकनाई, एकमात्र रेसों से) 2. प्रेम और दयादि भावों की एकमात्र मधुरता से। शुष्कः अपि = रूक्षः अपि। (सूखे होते हुए भी)। सरसः = रस युक्त है।

यहाँ भी दो अर्थ हैं-सरस-

  1. स्वादिष्ट,
  2. आनन्दमय।

हिन्दी-अनवादः-शरीर-विज्ञान के विशेषज्ञ आचार्य चरक द्वारा प्रशंसित है वह ऐसा यह देश (मरुप्रदेश) सूखा होते हुए भी स्नेह (घृतादि तथा प्रेम के कारण) सरस (स्वादिष्ट तथा आनन्दमय) है।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनीया’ ‘मरुसौन्दर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः महाकवि पं० विद्याधर शास्त्री महाभागेन विरचितः। अत्र कविः मरुभूमेः वैशिष्ट्यं वर्णयति-

(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पन्दना के ‘मरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है।) मूलतः यह पाठ महाकवि पं. विद्याधर शास्त्री महाभाग द्वारा लिखा गया है। यहाँ कवि मरुप्रदेश की विशेषता का वर्णन करता है।)

व्याख्या:-अयं मरुप्रदेश: शरीर-विज्ञानस्य विशेषज्ञेन आचार्य सुश्रुतेन प्रशंसित: अस्ति। यद्यपि अयं प्रदेश: मरुस्थलत्वात्। निर्जलः अस्ति परन्तु अत्र घृतादीनां स्निग्ध खाद्यपदार्थानां बाहुल्यम् अस्ति, मानवेषु परस्परं स्नेहः प्रेमभावः अस्ति अत्रः एक प्रदेशः सरस अर्थात् स्वादोपेतः आनन्दमयश्च अस्ति।

(यह मरुप्रदेश शरीर-विज्ञान के विशेषज्ञ आचार्य सुश्रुत द्वारा प्रशंसित है। यद्यपि यह प्रदेश मरुस्थल होने के कारण निर्जल (सूखा) है परन्तु यहाँ घी आदि स्निग्ध खाद्य पदार्थों की बहुतायत है तथा मनुष्यों में आपस में प्यार (स्नेह) है। अत: सरस (रसरहित) अर्थात् स्वादिष्ट और आनन्दमय है।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-शरीर-विज्ञान-विचक्षणेन = शरीरस्य विज्ञानस्य विचक्षणः तेन च। प्रशंसितः = प्र+शंस्+क्त। चरकेश्वरेण = चरक + ईश्वरेण (गुण संधि)। स्नेहार्द्र = स्नेहेन आर्द्रः (तृतीया तत्पुरुषः)। शुष्कः = शुष्+क्त। सरसः = रसेन सहितम्। शुष्कोऽपि = शुष्कः + अपि (विसर्ग, पूर्वरूप)।

2. मरुः सुवर्णो न हि येन दृष्टः किं तेन दृष्टं कुहचित् सुदृश्यम्।
स्फुटं मरौ भान्ति सुमेरुशृङ्गाः शिलासु कृष्णासु न ते हि मृग्याः।2।

अन्वयः-सुवर्ण: मरु: येन न हि दृष्टः तेन कुहचित् सुदृश्यं किं दृष्टम् ? (ये) सुमेरुशृङ्गाः मरौ स्फुटं भान्ति, कृष्णासु शिलासु ते नहि मृग्याः।

शब्दार्थाः-सुवर्ण = स्वर्णम् (सोना) सुन्दर वर्णयुक्त (सुन्दर रंग वाला, सुरंगा या रंगीला)। मरुः = मरुप्रदेशः, सुमेरुपर्वतः (रेगिस्तान, सुमेरुपर्वत)। दृष्टः = अवलोकितः (देखा गया)। कुहचित् = कुत्रचित् (कहीं पर)। सुदृश्यम् = दर्शनीयम् (सुन्दर दृश्य)। मरौ = मरुप्रदेशे (रेगिस्तान में)। स्फुटम् = स्पष्टम् (साफ-साफ)। भान्ति = शोभन्ते (शोभा देते हैं, चमकते हैं।)। सुमेरु शृङ्गाः = सुमेरु पर्वतस्य शिखराणि (सुमेरु पर्वत की चोटियाँ)। कृष्णासु = श्यामासु (काली)। मृग्याः = अन्वेषणीयाः (खोजने या ढूँढ़ने योग्य)।

हिन्दी-अनुवादः-सोने जैसा सुन्दर वर्ण (रंग) वाला मरुस्थल (रेगिस्तान) जिसने नहीं देखा उसने कहीं अच्छा दृश्य कहाँ देखा? सुमेरु पर्वत की चोटियों (शिखरों) के समान मरुस्थल में स्पष्ट शोभा देती हैं या चमकती हैं। (पर्वतों की) काली शिलाओं में उस (शोभा) को नहीं ढूँढ़ा जा सकता।

♦ सप्रसंग संस्कृतं व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनायाः’ मरुसौन्दर्यम् इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः महाकवि पं. विद्याधर शास्त्री महाभागेन विरचितोऽस्ति। श्लोकेस्मिन् कविः मरुप्रदेशस्यः वैशिष्ट्यं वर्णयति।

(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पन्दना’ के ‘मरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ पं० विद्याधर शास्त्री द्वारा रचा गया है। इस श्लोक में कवि मरुप्रदेश की विशेषता का वर्णन करता है।)

व्याख्याः -सुवर्ण इव सुन्दरवर्णेन युत: मरुस्थलं यो जनः न अपश्यत् सः कुत्रापि कि सुन्दरं दृश्यम् अपश्यत्। सुमेरु पर्वतस्य स्वर्णाभा: रजसः शिखराणि स्पष्टमेव शोभन्ते। अतः ईदृशं मनोहरं दृश्यं पर्वतानां श्यामासु प्रस्तरेषु अन्वेषणीयाः न सन्ति। अर्थात् एव सुन्दरं दृश्यं पर्वत प्रदेशे नोपलब्धम्।

(सोने के समान सुन्दर रंग से युक्त (सुरंगा) मरुस्थल जिस व्यक्ति ने नहीं देखा है उसने कहीं क्या सुन्दर दृश्य देखा है। सुमेरु पर्वत की सोने के समान चमक वाली रज के शिखर स्पष्ट ही शोभा देते हैं। अत: इस प्रकार का मनोहर दृश्य पहाड़ों की काली चट्टानों में नहीं हूँढ़ना चाहिए। अर्थात् ऐसा सुन्दर दृश्य पर्वतीय प्रदेश में उपलब्ध नहीं है।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-सुवर्णः = सुष्टुः वर्ण: (कर्मधारय) सुमेरुशृंगा = सुमेरोः शृङ्गाः (षष्ठी तत्पुरुष)। मृग्याः = मृग + यत्। 3. रम्ये क्वचित् सैकत-वप्र-सानौ सुकोमले भास्वति हैमवणें।
प्रातः प्रदोषे च सुखं स्थितानां केषां न चेतांसि विकासवन्ति ॥3॥ अन्वयः-क्वचित् रम्ये सुकोमले भास्वति हैमवर्गे सैकतवप्रसानौ प्रात: प्रदोषे च सुखं स्थितानां केषां चेतांसि विकासवन्ति न?

शब्दार्था:-क्वचित् = कुत्रचित् (कहीं पर)। रम्ये = रमणीये (सुन्दर)। सुकोमले = मृदौ (कोमल में)। भास्वति = द्युतिमाने, ज्योतिर्मये (चमकते हुए)। हैमवर्णे =स्वर्णिमे (सुनहरे)। सैकतवप्रसानौ = बालुका स्तूपः (बालू के टीवे)। सानौ = शिखरे (मिट्टी के टीलों या धोरों की चोटी पर)। प्रदोषे = निशीथकाले (रात में)। सुखम् = सुखपूर्वक (सानन्द या सुखपूर्वक)। स्थितानाम् = उपविष्टानाम् (बैठे हुओं का)। केषाम् = केषां जनानाम् (किन लोगों का)। चेतांसि = मनांसि (मन)। विकासवन्ति = विकसितानि, प्रफुल्लानि (प्रफुल्लित)।

हिन्दी-अनुवादः-कहीं रमणीय कोमल चमकती हुई सुनहरी रंग की बालू के टीले की चोटी पर रात्रिकाल में सुखपूर्वक बैठे किनके मन विकसित नहीं होते। अर्थात् सबके मन प्रफुल्लित हो जाते हैं।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनाया’ मरुसौन्दर्यम् इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलत: महाकवि पं. विद्याधर शास्त्री महाभागेन विरचितः। अस्मिन् श्लोके कविः बालूकामयस्तूपानां सौन्दर्यं वर्णयति-

(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पन्दना’ के ‘मरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक के रचयिता पंडित विद्याधर शास्त्री हैं। इस श्लोक में बालू के टीलों की शोभा का वर्णन किया गया है।)

व्याख्याः-कुत्रचित् रमणीये मृदौ भासमाने स्वर्णिमामये बालुकामये स्तूपे प्रातः रात्रौ च सुखपूर्वक आसीनानां केषां मानवानां हृदयानि विकसितानि न भवन्ति। अर्थात् प्रसन्नाः भवन्ति।

(कहीं रमणीय कोमल चमकती सुनहरे बालू के टीले पर प्रात: व रात को सुखपूर्वक बैठे हुए किन मनुष्यों के हृदय विकसित या प्रसन्न नहीं होते ? अर्थात् सभी के हृदय प्रसन्नता से खिल उठते हैं।)

व्याकरणिक-बिन्दवः–भास्वति = भासन् + मतुप् (सप्तमी ए.व.) रम्मे = रम् + यत। हैमवणे = हेम्नः वर्णे (ष. तत्पुरुष) सैकतवप्रसानौ-सैकतएव प्रस्यसानौ (षष्ठीतत्पुरुषः) सैकत-सिकता + अण्।

4. स शीतलो गन्धवहः समीरः स तित्तिराणां मधुरो विरावः।
तन्नर्तनं बर्हविभूषणानां समुत्प्लुतिः सा च कुरङ्गमाणाम् ॥4॥

अन्वयः–स शीतलः गन्धवहः (च) समीरः, तित्तिराणां से मधुरः विराव:, बर्हविभूषणानां तत् नर्तनम्, सा च कुरङ्गमाणां समुत्प्लुतिः।
शब्दार्थाः-गन्धवहः = सौरभं वहति (खुशबू को ढोने वाली अर्थात् सुगन्धित)। समीरः = वायुः (पवन, हवा)। तित्तिराणाम् = पक्षी विशेषाणाम् (तीतरों की)। विरावः = कूजनम् (ध्वनि, कलरव)। बर्हविभूषणानाम् = शिखिनाम्, मयूराणाम् (मोरों का)। नर्तनम् = नृत्यम् (नाच)। कुरङ्गमाणाम् = हरिणानाम् (हिरणों की)। उत्प्लुतिः = उछल-कूद। हिन्दी-अनुवादः-वह शीतल (ठंडी) सुगन्धित वायु (हवा), तीतरों का वह मधुर स्वर (कूजन) मोरों का वह (मनोहर) नाचना तथा हिरनों की उछल-कूद (किसके मन को आकर्षित नहीं करती)।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनायाः’ ‘मरुसौन्दर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलतः महाकवि पं. विद्याधर शास्त्रि महाभागेन विरचितम्। श्लोकेऽस्मिन् कविः मरुप्रदेशस्य रम्यं दृश्यं वर्णयति-
(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पन्दना’ के ‘मुरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक पं. विद्याधर शास्त्री द्वारा रचित है। इस श्लोक में कवि मरुधरा के रम्य दृश्य का वर्णन करता है।)

व्याख्याः-असौ शीतलः सुगन्धितः च पवन: याजुषोदराणां (तित्रिराणां) च तत् कूजनम्, शिखिनां च नृत्यम् हरिणानां च तत् उत्प्लवनं केषां मनांसि आकर्षितं न करोति अर्थात् सर्वान् आकर्षित। (वह शीतल सुगन्धित वायु, तीतरों का वह गुंजन, मयूरों का वह नृत्य और हिरणों की वह उछल-कूद किनके मन को आकर्षित नहीं करती अर्थात् सभी को आकर्षित करती है।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-गन्धवहः = गन्धं बहति यः सः (बहुव्रीहि समास) सौरभम् = सुरभि+ अण्। तन्नर्तनम् = तत् + नर्तनम्। बर्हविभूषण = बर्ह एव विभूषणं येषां ते मयूराः। (बहुव्रीहि) नर्तनम् = नृत् + ल्युट्।

5. ते तुन्दिलाः स्वादुरसाः कलिङ्गाः सा शारदी चञ्चलचन्द्रिका च।
स्फूर्तिः स्फुरन्ती स्फुरगावलीषु क्रमेलकानां गतयश्च तास्ताः ॥5॥

अन्वयः-ते तुन्दिलाः स्वादुरसा कलिङ्गाः, सा च शारदी चञ्चल-चन्द्रिका, स्फुरगा वलीषु स्फुरन्ती (सा) स्फूर्तिः, क्रमेलकानां चं ताः ताः गतयः।

शब्दार्था:-तुन्दिलाः = स्थूला (मोटे)। स्वादुरसाः = सुमधुराः (स्वादिष्ट रस वाले रसीले)। कलिङ्गाः = फल विशेषः ‘कलींदे’ इति ब्रजभाषायां (मतीरे)। शारदी = शरत्कालीना (शरद ऋतु की)। चञ्चल-चन्द्रिका = चपला-चन्द्रज्योत्स्ना (चंचल चाँदनी)। स्फुरगावलीषु = खगानां पंक्तिषु (पक्षियों की पंक्ति (कतार) में)। स्फुरन्ती = स्पन्दमाना, प्लवन्ती (फुदकती या फड़फड़ाती हुई)। स्फूर्तिः = स्फुरणम् (फुर्ती)। क्रमेलकानाम् = उष्ट्राणाम् (ऊँटों का)। गतयः = गमनम् (गति, चाल)।

हिन्दी-अनुवाद-वे मोटे-मोटे स्वादिष्ट रस वाले मतीरे, शरद् ऋतु की वह चंचल चाँदनी, पक्षियों में वह फड़कती फुदकती फुर्ती और ऊँटों की वे (तेज) गतियाँ किनके मन को आकर्षित नहीं करतीं ? अर्थात् सभी के मन को बलात् अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।)

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनाया:’ मरुसौन्दर्यम् इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकोऽयम् पं० विद्या रि शास्त्रिणा विरचितम् अस्ति। श्लोकेऽस्मिन् कविः मरुसौन्दर्यम् चित्रयति।

(यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पन्दना’ के ‘मरु सौन्दर्यम्’ पाठ से उद्धृत है। यह श्लोक पं. विद्याधर शास्त्री द्वारा रचित है। इस श्लोक में कवि मरुस्थल के सौन्दर्य का चित्रण करता है।)

व्याख्या-अस्मिन् मरुप्रदेशे उत्पन्नाः ते पृथुलाः सुस्वादुरस पूर्णाः कलिङ्गाः (मतीरा ख्याति फलानि), शरद् ऋतौ असौ चन्द्रस्य चञ्चला ज्योत्स्ना, खगावलीनां सा उत्प्लवन्ती स्फूर्ति: उष्ट्राणां च ता: तीव्र गतयः कियती शोभा बहन्ति? अर्थात् अति मनोहरा: प्रतिभान्ति।

(इस मरुप्रदेश में उत्पन्न वे मोटे-मोटे, स्वादिष्ट रस से परिपूर्ण मतीरे, शरद् ऋतु में वह चन्द्रमा की चपल चाँदनी, पक्षियों की पंक्ति की वह फड़फड़ाती फुर्ती, ऊँटों की वह तीव्रगति कितनी शोभा देती है। अर्थात् अत्यन्त मनोहर लगती है।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-गतयश्च = गतयः + च (विसर्ग सन्धि)। तास्ताः = ता : + ताः (विसर्ग सन्धि)।

6. वर्षागमे चारुमरु विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।
सरःसु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति ॥6॥

अन्वयः-वर्षागमे चारुमतं विहाय अन्यत्र क्व कस्यापि चित्तम् रमेत? यस्मिन् (मरौ) वर्षासमयेऽपि सर:सु शरत्प्रसन्न सलिलं चकास्ति।

शब्दार्थः-वर्षागमे = वृष्टिकाले (वर्षा के समय)। चारुमरुम् = सुन्दरं मरुदेशम् (सुन्दर मरुप्रदेश)। विहाय = त्यक्त्वा (त्याग कर या छोड़कर)। क्व = कुत्र (कहाँ)। चित्तम् = मनः (मन)। रमेत् = रमणं। सरःसु = सरोवरेषु, तडागेषु (तालाबों में, सरोवरों में)। शरत्प्रसन्न = शरत् ऋतौ इव प्रसन्नं (स्वच्छं (निर्मल) शरद् ऋतु के समान निर्मल)। सलिलम् = जलम् (पानी)। चकास्ति = शोभते (शोभा देता है।)।

हिन्दी-अनुवादः-वर्षा होने पर सुन्दर मरुप्रदेश को छोड़कर और कहीं भी मन नहीं रमता। जिस मरुप्रदेश में वर्षाकाल में भी शरद ऋतु की तरह तालाबों में अति निर्मल जल शोभा देता है।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनायाः ‘मरुसौन्दर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकोऽयं महाकविः पं. विद्याधर शास्त्रि महाभागेन विरचितः। अत्र कविः मरोः सौन्दर्यम् वर्णयति-

(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पन्दना के ‘मरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है। यह श्लोक पं. विद्याधर शास्त्री महोदय द्वारा रचा गया है। इस श्लोक में कवि रेगिस्तान। के सौन्दर्य का वर्णन करता है।)

व्याख्याः-वृष्टौः आगमे अत्र मरुस्थले दृश्यम् अति रम्यम् अभिजायते। अतः वर्षागमे एवं रम्यं मरुप्रदेशं परित्यज्य कोऽपि मनुष्यः कुत्रापि अन्यस्थानं न गन्तुम् इच्छति सः अत्रैव रमयितुम् इच्छति। यतोऽन्यत्र तस्य मनः न रमते। यस्मिन् मरुप्रदेशे पावस काले अपि शरद ऋतौ इव जलाशयेषु जलं निर्मलं स्वच्छ वा शोभते।

(वर्षा के समय में यहाँ मरुस्थल का दृश्य अत्यन्त सुन्दर लगता है। इसलिए वर्षा होने पर इस सुन्दर प्रदेश को छोड़कर कोई मनुष्य कहीं भी अन्य स्थान को जाने के लिए इच्छा नहीं करता। जिससे दूसरी जगह उसका मन नहीं रहता। इस मरुप्रदेश में वर्षाकाल में भी शरद ऋतु की तरह तालाबों में पानी स्वच्छ और निर्मल सुशोभित होता है।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-वर्षागमे = वर्षायाः आगमे (षष्ठी तत्पुरुष) चारुमतं = चारुः च अतौ मरुः तं च (कर्मधारय)। क्वान्यत्र = क्व+अन्यत्र (दीर्घ सन्धि)। विहाय = वि + हा + ल्यप्।

7. गावः प्रसन्नाः मनुजाः प्रसन्नाः देवाः प्रसन्नाः व्रतदानयज्ञैः।
किं नाम तद्यन्न मरौ समृद्धं विद्या-समृद्धो भवता विधेयः ॥7॥

अन्वयः-(मरौ) गाव: प्रसन्नीः, मनुजाः प्रसन्नाः, व्रतदानयज्ञैः च देवाः प्रसन्नाः। किं नाम तत् यत् मरौ न समृद्धम् ? (सोऽयं मरु:) भवता विद्यासमृद्धो विधेयः।

शब्दार्थाः-गावः = धेनवः (गायें)। प्रसन्नाः = तुष्टाः (खुश)। मनुजाः = मानवाः (मनुष्य)। व्रत दान यज्ञैः = व्रतेन दानेन यज्ञेन च (व्रत, दान और यज्ञ कर्म से)। विद्यासमृद्धोः = विद्याया समृद्धः सम्पन्नः वा (विद्या या ज्ञान से सम्पन्न)। विधेयः = करणीयः (करना है)।

हिन्दी-अनुवाद-(इस मरुप्रदेश में) गायें खुश हैं। मनुष्य भी प्रसन्न और व्रत, दान व यज्ञ (आदि धार्मिक कार्य) करने से देवता भी प्रसन्न हैं। वह क्या है जो मरुप्रदेश में सम्पन्न (समृद्ध) नहीं है? अर्थात् यह सर्वसम्पन्न है। (वह मरु-प्रदेश अब) आपको विद्या में सम्पन्न करना है।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनायाः’ ‘मरुसौन्दर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकोऽयम् पं. विद्याधर शास्त्रिणा महाभागेन विरचितमस्ति। अस्मिन् श्लोके कविः मरुप्रदेशस्यः समृद्धिः वर्णयति-

(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पन्दना के ‘मरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है। यह पं० विद्याधर शास्त्री द्वारा रचित है। इस श्लोक में कवि मरुप्रदेश की समृद्धि का वर्णन करता है।)

व्याख्याः-अस्मिन् मरुप्रदेशे धेनवः तुष्टाः मनुजा: आनन्दिताः, व्रतैः दानैः यज्ञैः च (स्वसम्मान प्राप्य) अत्र देवाः अपि मुदिताः सन्ति। अत्र मरुप्रदेशे न किम् यत् सम्पन्नं न वर्तते (अर्थात् अत्र सर्वमेव सम्पन्नमस्ति) स एव मरुप्रदेश भवता (विद्यार्थिगणेन) ज्ञाने सम्पन्नः करणीयः ईयत् एव अत्र न्यूनतम् यद् भवद्भिः पूरणीयम्।

(इस मरुप्रदेश में गायें प्रसन्न हैं, मनुष्य भी खुश हैं, व्रतों, दानों और यज्ञों से (अपना सम्मान पाकर) देवता प्रसन्न हैं। यहाँ मरुप्रदेश में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो सम्पन्न नहीं हो। (अर्थात् यहाँ सब ही सम्पन्न हैं।) वह ही मरुप्रदेश आपके (विद्यार्थी के द्वारा) द्वारा ज्ञान सम्पन्न करना चाहिए जिससे यहाँ जो न्यूनता है, वह आपके द्वारा थोड़ी पूर्ति करनी चाहिए।

व्याकरणिक-बिन्दवः-प्रसन्नाः = प्र + सद् + क्त। मनुजाः = मनो: जायते इति। व्रतदान यज्ञैः = व्रतैः च दानैः + यज्ञैः च (द्वन्द्व समास)। तद्यन्न = तत् + यत् + न (हल् सन्धि)। समृद्धम् = सम् + ऋष् + क्त। विधेय = वि + धा + यत्।

8. मानं मनीषिता मैत्री मरुदुष्णं मरीचिका।
मृगाः मूर्ध्नि मनुष्याणाम् उष्णीषं प्रमुखम्भरौ।8।

अन्वयः-मानं, मनीषिता, मैत्री, उष्णं मरुत्, मरीचिका, मृगाः, मनुष्याणां मूर्ध्वि उष्णीषम्-(इत्येतत्सर्वं) मरौ प्रमुखम्।

शब्दार्थाः-मानम् = सम्मानम् (आदर)। मनीषिता = विद्वत्ता (विचारशीलता)। मैत्री = मित्रता (दोस्ती)। मरुत् = वायुः (हवा)। मरीचिका = मृगतृष्णा (मृग-मरीचिका)। मूर्ध्नि = शिरसि, मस्तके (सिर पर)। उष्णीषम् = शिरस्त्राणम् (पगड़ी, साफा)। प्रमुखम्भरौ = मरुस्थले प्रधानम् (रेगिस्तान में खास है)।

हिन्दी-अनुवादः-सम्मान, विद्वत्ता या विचारशीलता, मित्रता (दोस्ती), गर्म हवा, मृगतृष्णा, (सभी मनुष्यों के) सिर पर पगड़ी (साफा) (यह सब कुछ) मरुप्रदेश में विशेषता है।

♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसङ्गः-श्लोकोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘स्पन्दनायाः’ ‘मरुसौन्दर्यम्’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं मूलत: महाकवि पं. विद्याधर शास्त्रिणा महाभागेन विरचितः। श्लोकेस्मिन् कविः मरौ: वैशिष्ट्यं वर्णयति-(यह श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पन्दना’ के ‘मरुसौन्दर्यम्’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि मरुप्रदेश की विशेषता को कहता है-)

व्याख्या:-अस्मिनु मरुप्रदेशे जनानां सम्मानं, तेषां विद्वत्ता परस्परं सौहार्दम्, उष्णः पवनः, मृगमरीचिका, हरिणाः मानवां शिरसि मस्तके व उष्णीषम् एते सर्वे प्रमुखतया शोभन्ते।

(इस मरुप्रदेश में लोगों का सम्मान, उनकी विद्वत्ता (विचारशीलता) आपसी सौहार्द (मित्रता), गर्म पवन, मृगतृष्णा, हिरन, मनुष्यों के सिर पर पाग (साफा) ये सब विशेषतः शोभा देते हैं।)

व्याकरणिक-बिन्दवः-मनीषिताः = मनस् + ईष + तल् (पररूप सन्धि)। मैत्री = मित्र + अण् + ङीप्।

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