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RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

May 4, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः is part of RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः.

Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

 सन्धिः

[नोट- पाठ्यक्रमानुसार इस अध्याय में स्वर संधि के अंतर्गत वृद्धि, यण, अयादि, पूर्वरूपम् तथा व्यंजन संधि के अंतर्गत परसवर्ण, मोऽनुस्वार, जश्त्वम् एवं विसर्ग संधि के अंतर्गत, उत्व, रुत्व, लोप, विसर्ग स्थाने श्, ७, स् आदि संधियों का अध्ययन ही अपेक्षित है। यहाँ उपर्युक्त संधियों के अतिरिक्त पाठ्यपुस्तक में दी गई सभी अन्य संधियों को भी छात्र के अतिरिक्त ज्ञानार्जन के लिये दिया गया है। ]

सन्धिशब्दय व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् डुधाञ् (धा) धातो: ‘उपसर्गे धो: किः’ इति सूत्रेण ‘किः’ प्रत्यये कृते सन्धिरिति शब्दो निष्पद्यते । (सम् उपसर्गपूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से ‘‘उपसर्गे धो: किः’ इस सूत्र से ‘किः’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ यह शब्द बनता है।)

सन्धिशब्दस्य परिभाषा – ‘वर्णसन्धान सन्धिः’ अर्थात् द्वयोः वर्णयोः परस्परं यत् सन्धानं मेलनं वो भवति तत्सन्धिरिति कथ्यते ।
‘वर्णसन्धान सन्धिः’ अर्थात् दो वर्षों का परस्पर जो सन्धान या मेल होता है वह सन्धि कहा जाता है।)

पाणिनीयपरिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णानाम् अत्यन्तनिकटता संहिता इति कथ्यते । यथा-सुधी + उपास्यः इत्यत्र ईकार-उकारवर्णयोः अत्यन्तनिकटता अस्ति। एतादृशी वर्णनिकटता एव संस्कृतव्याकरणे संहिता इति कथ्यते । संहितायाः विषये एव सन्धिकार्ये सति ‘सुध्युपास्यः’ इति शब्दसिद्धिर्जायते । (परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्षों की अत्यधिक निकटता संहिता कही जाती है। जैसे- ‘सुधी+उपास्यः’ यहाँ पर ‘ईकार’ तथा ‘उकार’ वर्षों की अत्यधिक निकटता है। इस प्रकार की वर्गों की निकटता ही संस्कृत व्याकरण में संहिता कही जाती है। संहिता के विषय में ही
सन्धि कार्य होने पर ‘सुध्युपास्य’ इस शब्द की सिद्धि होती है।)

सन्धिभेदाः – संस्कृतव्याकरणे सन्धेः त्रयो भेदाः सन्ति। ते इत्थं सन्ति

  1. अच्सन्धिः (स्वरसन्धिः) ।
  2. हलसन्धिः (व्यंजनसन्धिः) ।
  3. विसर्गसन्धिः।

अच्-सन्धिः (स्वर संधिः)

यदा द्वयोः स्वरयोः सन्धानं मेलनं वो जायते, तत् सन्धानं स्वरसन्धिः अच्सन्धिः वा कथ्यते । अत्र अचूसन्धौ स्वरस्य स्थाने आदेशो भवति । स्वरसन्धयोऽष्टविधाः भवन्ति । तथा हि- (जब दो स्वरों का सन्धान अथवा मेल होता है, वह सन्धान या स्वरसन्धि अथवा अच्सन्धि कहा जाता है। यहाँ पर अच् सन्धि में ‘स्वर’ के स्थान पर आदेश होता है। स्वर सन्धि आठ प्रकार की होती हैं जो कि-)

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 1

(1) यणुसन्धिः – ”इको यणचि” इत्यनेन सूत्रेण संहितायाः विषये अचि परे सति पूर्ववर्तिनः इकः स्थाने स्याद् यम्। माहेश्वरसूत्राष्टनुरूपं इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, लु एते वर्णा: इक् वर्णाः इति कथ्यन्ते । एवमेव य्, व्, र् ल् एते वर्णाः यण्वर्णाः इति कथ्यन्ते। उपरिलिखितानाम् इक्वर्णानां स्थाने अधोलिखिताः यण्वर्णाः यत्र क्रमशः भवन्ति, तत्र जायते यण् सन्धिः । इदानीं क्रमशः एतेषां स्थितिं: उदाहरणानि च दीयन्ते- (‘इको यणचि’ इस सूत्र संहिता के विषय में ‘अचि’ परे होने पर पूर्ववर्ती ‘इकः’ के स्थान पर ‘यण’ होवे। माहेश्वर सूत्रानुसार इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, लू ये वर्ण ‘इक्’ वर्ण कहे जाते हैं । इसी प्रकार य्, व्, र, ल् ये वर्ण ‘यण’ वर्ण कहे जाते हैं। ऊपर लिखे हुए ‘इक’ वर्गों के स्थान पर ‘यण’ वर्ण क्रमशः होते हैं, वहाँ ‘यण’ सन्धि होती है। अब क्रमशः इनमें स्थिति और उदाहरण दिये जा रहे हैं-)

(अ) ई/ई + अच् = य् + अच्

अति + उत्तम = अत्युत्तमः
इति + अत्र = इत्यत्र
इति + आदि = इत्यादि
इति + अलम् = इत्यलम्
यदि + अपि = यद्यपि
प्रति + एकम् = प्रत्येकम्
नदी + उदकम् = नद्युदकम्
स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः
सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः

पाठ्यपुस्तके आधारितानि उदाहरणानि

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 2

(आ) उ/ऊ + अच् = व् + अच्

अनु + अयः = अन्वयः
मधु + अरिः = मध्वरिः
सु + आगतम् = स्वागतम्
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः
वधू + आगमः = वध्वागमः
साधु + इति = साध्विति
अनु + आगच्छति = अन्वागच्छति

पाठ्यपुस्तके आधारितानि उदाहरणानि

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 3
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 4

(2) अयादिसन्धिः “एचोऽयवायावः” इत्यनेन सूत्रेण संहिताविषये अचि परे ‘एच’ ‘अयादिः भवति । माहेश्वरसूत्रानुरूपं क्रमश: ए, ओ, ऐ, औ इति वर्णाः, ‘एच’ कथ्यन्ते । एतेषां चतुर्णी स्थाने क्रमश: अय्, अव्, आय्, आव् इति भवन्ति । एतेषां क्रमशः स्थितिः उदाहरणानि च प्रस्तुयन्ते – (‘एचोऽयवायावः’ इस सुत्र से संहिता के विषय में ‘अचि’ के रे ‘एच’ होने पर अयादि सन्धि होती है। माहेश्वर सूत्रानुरूप क्रमश: ए, ओ, ऐ, औ ये वर्ण ‘एच’ कहे जाते हैं । इन चारों वर्गों के स्थान पर क्रमशः अय्, अव्, आयु, वूि ये होते हैं । इनकी क्रमशः स्थिति और उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।)

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 5

(3) गुणसन्धिः – “आद् गुणः” इत्यनेन सूत्रेण संहिताविषये अ/आ वर्णतः परे इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, वर्णेषु विद्यमानेषु पूर्वपरयोः स्थाने गुण-एकादेशः (अ, ए, ओ) भवति । इदानीं क्रमशः एतेषां स्थितिः उदाहरणानि च प्रस्तुयन्ते (‘‘आद् गुणः” इस सूत्र से संहिता के विषय में ‘अ’ अथवा ‘आ’ वर्ण से परे ‘इ’ अथवा ‘ई’, ‘उ’ अथवा ‘ऊ’, ‘ऋ’ अथवा ऋ, लू वर्षों में विद्यमान पूर्व’ और ‘पर’ के स्थान पर ‘गुण’ एकादेश (अ, ए, ओ) होता है । अब क्रमश: इनकी स्थिति और उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।)

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(4) वृद्धिसन्धिः – “वृद्धिचि” इत्यनेन सूत्रेण संहिताविषये अ/आ वर्णतः परे ‘एच् ‘ (ए, ओ, ऐ, औ) विद्यमाने | पूर्वपरयोः स्थाने वृद्धिरेकादेशः (आ, ऐ, औ) भवति । अधुना क्रमशः एतेषां स्थिति: उदाहरणानि च प्रस्तूयन्ते- (“वृद्धिरेचि” इस सूत्र से संहिता के विषय में ‘अ’ या ‘आ’ वर्ण से परे ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) विद्यमान होने पर पूर्व’ और ‘पर’ के स्थान
पर वृद्धि एकादेश (आ, ऐ, औ) होता है। अब क्रमशः इनकी स्थिति और उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं-)

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(5) सवर्णदीर्घसन्धिः – ”अकः सवर्णे दीर्घः’ इत्यनेन सूत्रेण संहिता-विषये ‘अक्’ प्रत्याहारस्य परे सवर्णे अचि सति पूर्वपरयोः स्थाने दीर्घ-एकादेशः भवति। अत्र क्रमशः ऐतेषां स्थितिः उदाहरणानि च प्रस्तूयन्ते–( अकः सवर्णे दीर्घः’। इस सूत्र से संहिता के विषय में ‘अक्’ प्रत्याहार के परे सवर्ण ‘अचि’ होने पर ‘पूर्व’ और ‘पर’ के स्थान पर दीर्घ एकादेश होता है । (अर्थात् ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के बाद ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ आए तो दोनों के स्थान में उसी वर्ण का दीर्घ (आ, ई, ऊ, ऋ) रूप हो जाता है । यहाँ क्रमशः उनकी स्थिति और उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।)

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(6) पूर्वरूपसन्धिः
“एङः पदान्तादति” इत्यनेन सूत्रेण पदान्ताद् एङोऽति परे पूर्वरूपमेकादेशो भवति। (“एङः पदान्तदिति” इस सूत्र से पदान्त एङ् से अत्- ह्रस्व अकार- परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में पूर्व रूप एकादेश होता है ।)
अयं भावः- पदान्ताद् एकाराद् ओकाराच्च अति परे (ए + अ अथवा ओ + अ अस्यामवस्थायाम्)। पूर्वपरयोः स्थाने पूर्वरूपमेकादेशो भवति । अकारस्य पूर्वरूपमेकादेशे सति अकारस्य स्पष्टप्रतिपत्तये ‘5’ इति अवग्रहचिह्न प्रयुज्यते । (भाव यह है- पदान्त एकार और ओकार से परे आकार (ए + अ अथवा ओ + अ यह अवस्था होने पर) “पूर्व
और ‘पर’ के स्थान पर पूर्व रूप एकादेश होता है। ‘अकार’ का पूर्वरूप एकादेश होने पर ‘अकार’ का स्पष्ट प्राप्ति के लिए ‘5’ अवग्रह चिह्न प्रयुक्त किया जाता है ।)

विशेष – पदान्त – विभक्ति-सुप् और तिङ जिसके अन्त में हो उसे पद और उसके अन्त को पदान्त कहते हैं । उदाहरणार्थ- ‘हरे’ पद है और इसके अन्त में ‘एकार’ है यह एकार’ पदान्त है ।।

अर्थात् – ‘एङः पदान्तादति” यदि किसी पद (सुबन्त या तिङन्त) के अन्त में (ए) ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हो और उसके परे ह्रस्व अकार अर्थात् ‘अ’ हो तो ‘अ’ अपने पूर्व वर्ण ‘ए’ अथवा ‘ओ’ का रूप हो जाता है । फलस्वरूप ‘अ’ का लोप होकर ‘अ’ के स्थान पर अवग्रह (5) का चिह्न लगा देते हैं। जैसे- हरे + अव यहाँ पर ‘हरे’ के ‘रे’ में स्थित ‘ए’ और उसके परे ‘अव’ का आदि वर्ण ‘अ’ ह्रस्व अकार है; अत ‘अ’ अपने पूर्व वर्ण ‘ए’ का रूप होगा और ‘अ’ का लोप हो। जाएगी। ‘अ’ के स्थान में अवग्रह (5) का चिह्न लग जायेगा । अतः “हरे + अव” की सन्धि होने पर हरेऽव” होगा ।

उदाहरणानि
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पाठ्यपुस्तके आधारितानि पूर्वरूप सन्धेः उदाहरणानि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 10
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7. पररूपसन्धिः

1. “एङि पररूपम्’ इत्यनेन सूत्रेण अवर्णान्तादुपसर्गादेङादौ धातौ परे पररूपमेकादेश: स्यात् । (‘‘एङि पररूपम्’ इस सूत्र से ‘अ’ वर्णान्त उपसर्ग से परे एङादि धातु हो तो ‘पूर्व’ और ‘पर’ के स्थान पर पररूप एकादेश हो ।

अयं भावः – अवर्णान्तादुपसर्गाद एकारादौ धातौ परे, ओकारादौ धातौ परे च पूर्वपरयोः स्थाने क्रमशः एकारः ओकारश्च पररूपमेकादेशो भवति । अयं सूत्रः वृद्धे: अपवादः । उदाहरणानि- ( भाव यह है – कि ‘अ’ वर्णान्त उपसर्ग से परे
सके आदि में हो धातु परे हो तो ‘पूर्व’ और ‘पर’ के स्थान पर क्रमश: अ + ए = एकार’ और अ + ओ = ओकार पररूप एकादेश हो जाता है । यह सूत्र वृद्धि सन्धि का अपवाद है। उदाहरण -)

(अ) अ + ए = ए (अवर्णान्तादुपसर्गाद् एकारादौ धातौ परे पूर्वपरयोः स्थाने एकार: पररूपमेकादेश:) (अ + ए = ए – प्र + एजते = प्रेजते (यहाँ पर ‘प्र’ उपसर्ग है जिसके अन्त में ‘अ’ स्थित है, ‘एजते’ धातु के आदि में (प्रारम्भ में) ‘ए’ स्थित है अतः पूर्व ‘अ’ और पर ‘ए’ के स्थान पर पररूप एकादेश = ‘ए’ हो गया।)
प्र + एजते = प्रेजते

(आ) अ + ओ = ओ (अवर्णान्तादुपसर्गाद् ओकारादौ धातौ परे पूर्वपरयो: स्थाने ओकारः पररूपमेकादेश:) (अ + ओ = ओ – उप + ओषति = उपोषति (यहाँ पर ‘उप’ उपसर्ग है सिजके अन्त में ‘अ’ विद्यमान है, ‘ओषति’ धातु के आदि में (प्रारम्भ में) ‘ओ’ स्थित है अत: पूर्व ‘अ’ और पर ‘ओ’ के स्थान पर पररूप एकादेश = ओ हो गया ।)
उप + ओषति = उपोषति

2. ‘शकन्ध्वादिषु पररूपं वाच्यम्’ इत्यनेन वार्तिकेन शकन्धु-आदिषु शब्देषु टिभागस्य पररूपमेकादेशः स्यात् ।। (‘‘शकन्ध्वादिषु पररूपं वाच्यम्” इस वार्तिक से शकन्धु आदि शब्दों में ‘टि’ भाग का पररूप एकादेश हो ।)

अयं भावः – शकन्धु-आदीनां शब्दाना निर्माण-प्रक्रियायां टिभागस्य (शब्दस्य अन्तिम-अचः प्रभृति भागस्य) पररूपमेकादेशः स्यात् । उदाहरणानि- (भाव यह है कि – शकन्धु आदि शब्दों के निर्माण प्रक्रिया में ‘टि’ भाग का (शब्द के अन्तिम अच् आदि भाग का) पररूप एकादेश हो । उदाहरण-)

(अ) शक + अन्धुः
शक् अ (टिभागः) + अन्धुः = (टिभागस्य पररूपमेकादेशे) शक् अन्धुः = शकन्धुः
मनस् + ईषा = मन् अस् (टिभागः) + ईषा = (टिभागस्य पररूपमेकादेशे) मन् + ईषा = मनीषा
(आ) कर्क + अन्धुः कर्क अ + अन्धु = कर्कन्धुः ।
(इ) कुल + अटा = कुल् अ + अटा = कुलटा
(ई) पतत् + अञ्जलिः = पत् अत् + अञ्जलिः = पतञ्जलिः

ध्यातव्य : अचोऽन्त्यादि ‘टि’ अचों में जो अन्त्य, वह है आदि में जिसके, उस समुदाय की ‘टि’ संज्ञा हो ।
जैसे- ‘मनस्’ में ‘न’ में मिला हुआ ‘अ’ अन्त्य अच् है ‘मनसे’ के ‘न’ में से ‘अ’ को अलग करने पर मन् अस् यह रूप सामने आया ‘अस्’ समुदास के आदि में ‘अ’ है इसलिए ‘अस्’ की ‘टि’ संज्ञा होगी। लेकिन ‘शक’ में अन्त्य अच् ‘क’ में मिला हुआ ‘अ’ है यह ‘अ’ किसी के आदि में नहीं है अतः ‘अ’ की ‘टि’ संज्ञा हुई । ‘टि’ भाग का पररूप एकादेश होता है ।

हल्सन्धिः (व्यंजन सन्धिः)

परिभाषा – यदा व्यञ्जनात् परे व्यञ्जनम् अथवा स्वरः आयाति तदा हल्सन्धिः भवति। (जब व्यञ्जन से परे (आगे) व्यञ्जन अथवा स्वर आता है तब हल् सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) होती है।) । अर्थात् – व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन या स्वर के साथ मेल होने पर जो परिवर्तन (विकार) होता है उसे हल् सन्धि कहते हैं । हल् सन्धि को दूसरा नाम व्यञ्जन सन्धि भी है।

(1) श्चुत्व सन्धिः – ‘स्तो: श्चुना श्चुः” । अर्थः – सकारतवर्गयोः शकारचवर्गाभ्यां योगे शकारचव स्तः।।
यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वम् पश्चात् वी आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् । इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमश: श् च् छ् ज् झ् ञ् इत्येते वर्णाः भवन्ति । यथा- (श्चुत्व सन्धि – ‘स्तो: श्चुना श्चु:’ यदि ‘स्’ या ‘त्’ वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में ‘श्’ या ‘च्’ वर्ग (च्, छ्, ज, झ, ञ्) हो तो ‘स्’ का ‘श्’ और त वर्ग का चवर्ग अर्थात ‘त् का चू’, ‘थ् को छु’, ‘द् का ज्’, ‘धू का झू’, ‘न्’ का ज्’ हो जाता है जैसे- सत् + चरितम् में ‘सत्’ के अन्त में ‘तू’ है और ‘चरितम्’ के आदि में च है, इन ‘तु’ तथा ‘च’ दोनों वर्गों की सन्धि होने पर ‘तू’ जो कि तवर्ग का प्रथम अक्षर (वर्ण) है, के स्थान पर चवर्ग का प्रथम वर्ण अर्थात् ‘च’ हो जाएगा। इस प्रकार सत् + चरितम् की सन्धि होने पर ‘सच्चरितम्’ रूप होगा ।)

उदाहरण सत् + चित् = सच्चित् ।
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 11

(2) ष्टुत्व सन्धिः = ष्टुना ष्टुः । अर्थ: – स्तो: ष्टुना योगे ष्टुः स्यात्।
व्याख्या – यदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येते वर्णाः ष् ट् ठ् ड् ढ् ण् इत्येतेषां वर्णानाम् पूर्वं पश्चाद् वा आयान्ति तदा स् त् थ् द् ध् न् इत्येतेषां वर्णानां स्थाने क्रमशः ष् ट् द् ड् ढ् ण् इत्येते वर्णाः भवन्ति । यथा
तथा तवर्ग (तु, थ, द, धु, नु) के पहले या बाद में ‘पू’ या टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) में से कोई वर्ण हो तो ‘स्’ को ‘ष’ तथा तवर्ग को क्रमशः टवर्ग त् का ट, थ् का ३, ६ का ड्, ध् का द्, न् का ए हो जाता है । जैसे- इष् + तः में ‘इष्’ का अन्तिम वर्ण ‘५’ है और उसके परे ‘त:’ है । अत: सन्धि कार्य होने पर तवर्ग टवर्ग में बदल जाएगा। अर्थात् ‘तः’ के स्थान पर ‘ट:’ होने पर इष् + तः = इष्टः रूप होगा ।
उदाहरण
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 12

(3) जश्त्व सन्धिः- झलां जशोऽन्ते । अर्थ:- पदान्ते झलां जशः स्युः। (‘‘झलां जशोऽन्ते” अर्थात् पद के अन्त में ‘झुल्’ ‘जश्’ हो जाता है ।)
व्याख्या- पदान्ते झल् प्रत्याहारान्तर्गतवर्णानां (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 वर्णानां श् ष स ह वर्णानां च) स्थाने जश्प्रत्याहारस्य (ज् ब् ग् ड् द्) वर्णाः भवन्ति । यथा (पद के अन्त में ‘झल्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले वर्षों (झू, भु, ध, धू, ज्, ब्, ग, ड्, द्, ख्, फ्, छ, ठ, थ्, च्, ट्, त्, क्, प्, श, ष, स्, ह) के स्थान पर जश्’ प्रत्याहार, (ज्, ब्, ग, ड्, द्) के वर्ण हो जाते हैं !)
(इस सन्धि के दो भाग हैं- प्रथम भाग व द्वितीय भाग । प्रथम भाग पद के अन्त में होने वाली जश्त्व सन्धि है और द्वितीय भाग पद के मध्य में होने वाली जश्त्व सन्धि है 🙂

प्रथम भाग – जब पद (सुबन्त और तिङन्त अर्थात् शब्दरूप, धातु रूप-युक्त शब्द) के अन्त में होने वाले किसी भी वर्ग के प्रथम वर्ण अर्थात् क्, च्, , त्, प् में से किसी भी एक वर्ग के ठीक बाद कोई भी घोष वर्ण अर्थात् ङ, ञ, ण, न्, म्, य, र, ल, व् और ह को छोड़कर कोई भी व्यञ्जन अथवा स्वर वर्ण आता है तो पूर्वोक्त प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त् और प्)। अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (‘क्’ के स्थान पर ‘ग’, ‘च’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ट्’ के स्थान पर ‘इ’, ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘ब्’ में बदल जाते हैं।) जैसे
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 13
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 13 a

अन्य उदाहरणानि
उत् + देश्यम् – उद्देश्यम्
षट् + एव = षडेव
चित् + आनन्दः = चिदानन्दः

पाठ्यपुस्तके आधारितानि उदाहरणानि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 14

(4) चवं सन्धिः – खरि च। अर्थः – खरि परे झलां चर: स्युः। (‘‘खरि च” अर्थ- खर् परे हो तो झलों के स्थान में चर आदेश हो ।)

व्याख्या – खरि (वर्गस्य 1, 2, श् स्) परे झला (वर्गस्य 1, 2, 3, 4 श् घ् स् ह) स्थाने चर् (क् चे ट् त् प् श् स्) प्रत्याहारस्य वर्णाः भवन्ति । यथा
खरि (वर्ग के क्, ख्, च्, छ्, , , , , , फ्, श्, ७, स्) परे हों तो झल् (वर्ग के क्, ख, ग, घ्, च्, छ, ज, झ्, ट्, , , , , , , ध्, प्, फ्, ब्, भ्, श, ष, स्, ह) के स्थान पर चर् (क्, च्, ट्, त्, प् श् स्) प्रत्याहार के वर्ण होते हैं । जैसे

सद् + कारः = सत्कारः। (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
विपद् + कालः = विपत्कालः (यहाँ ‘द’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘तु’ होने पर)
सम्पद् + समयः = सम्पत्समयः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)
ककुभ् + प्रान्तः = ककुप्प्रान्तः (यहाँ ‘ भ्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘प्’ होने पर)
उद् + पन्नः = उत्पन्नः (यहाँ ‘द्’ को अपने ही वर्ग का प्रथम वर्ण ‘त्’ होने पर)

(5) अनुस्वार-सन्धिः – मोऽनुस्वारः अर्थः- मान्तस्य पदस्यानुस्वारः स्याद् हलि। (‘मोऽनुस्वारः’ अर्थ- मोन्त पद के स्थान में अनुस्वार आदेश हो हल् परे होने पर।)

व्याख्या- पदान्तस्य मकारस्य स्थाने अनुस्वारः आदेशो भवति हलि (व्यञ्जने) परे । यथा
(पदान्त मकार के स्थान पर अनुस्वार आदेश होता है हल् (व्यञ्जन) परे होने पर। जैसे-)

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 15

ध्यातव्य – यदि शब्द के अन्त में ‘म्’ आये और उसके पश्चात् कोई हल् (व्यञ्जन) वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार (-) हो जाता है । पदान्त ‘म्’ के पश्चात् कोई स्वर वर्ण आये तो ‘म्’ को अनुस्वार नहीं होता । जैसे:
अहम् + अपि = अहमपि (यहाँ पर अहम् के स्थान पर अहं नहीं होगा ।)

(6) परसवर्णसन्धिः
(6.1) यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा – यरः पदान्तस्यानुनासिके परेऽनुनासिको वा स्यात् ।

व्याख्या – अनुनासिकव्यञ्जनेषु परेषु पदान्ते स्थितानां वर्गीयव्यञ्जनानां स्थाने तद्वर्गीयपञ्चमो
वर्णः (अनुनासिकः) विकल्पेन भवति । उदाहरणानि
(पदान्त ‘यर’, (य व र ल ज म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द ख फ छठ थ च ट त क प श ष स) के स्थान में अनुनासिक परे होने पर उसी वर्ग का पञ्चम वर्ण (अनुनासिक) विकल्प से होता है । उदाहरण-)
(ग् = ङ) वाग् + मूलम् = वाङ्मूलम्/वाग्मूलम् ।
(ड् = ण) षड् + मयूखाः = षण्मयूखा:/घड्मयूखा:
(द् = न्) एतद् + मुरारिः = एतन्मुरारि/एतमुरारिः

(6.2) प्रत्यये भाषायां नित्यम् (वा.) – अनुनासिकादौ प्रत्यये परे पदान्ते स्थितानां वर्गीयव्यञ्जनानां नित्यमेव अनुनासिकः आदेशो भवति । उदाहरणानि- (प्रत्यये भाषायां नित्यम् (वा.) अनुनासिकादि प्रत्यय परे हो तो पदान्त में स्थित वर्गीय व्यञ्जनों का नित्य अनुनासिक आदेश होता है । उदाहरण-)
(द् = न्) चिद् + मयम् = चिन् + मयम् = चिन्मयम् ।
तद् + मात्रम् = तन् + मात्रम् = तन्मात्रम्।
(प् = म्) अप् + मयम् = अम् + मयम् = अम्मयम् ।

पाठ्यपुस्तके आधारितानि उदाहरणानि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 16

(6.3) अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः – अनुस्वारस्य ययि परे परसवर्ण: स्यात् । (अनुस्वार के स्थान में ‘यय्’ परे होने पर पर सवर्ण आदेश हो ।)

व्याख्या – अनुस्वारस्य स्थाने यय् प्रत्याहारान्तर्गतेषु वर्णेषु परेषु तत्तद्वर्गस्य पञ्चमो वर्ण: (परसवर्णादेश:) भवति । यवले परे तु यूँ, बँ, हूँ इत्यादेशो भवति । उदाहरणानि- (अनुस्वार के स्थान पर यय् (य व र ल ज म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड द ख फ छ ठ थ च ट त क प) प्रत्याहारान्तर्गत वर्षों में परे में उसी वर्ग का पञ्चम वर्ण (परसवर्ण आदेश) होता है। परन्तु यवल (य कार, वकार, लकार) परक हकार परे रहते मकार के स्थान में क्रम से यकार, वकार, लकार विकल्प से हो। मकार स्थानी अनुनासिक है अतः स्थानकृत सादृश्य के कारण उसके स्थान में यूँ, वृं, लँ आदेश अनुनासिक ही होता है । उदाहरण- कियँ ह्यः (कल क्या है?)- ‘कि + ह्यः’ इस दशा में यकार परक हकार पर होने से मकार के स्थान में अनुनासिक यकार आदेश होकर कियँ ह्यः प्रयोग सिद्ध हुआ ।)

उदाहरणानि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 17

(6.4) वा पदान्तस्य- पदान्तस्य अनुस्वारस्य ययि परे परसवर्णादेशो वा स्यात् । (पदान्त अनुस्वार के स्थान में यय् परे होने पर पर सवर्ण आदेश हो विकल्प से ।)

व्याख्या – पदान्तस्य अनुस्वारस्य स्थाने यय्वर्णेषु परेषु तत्तद्द्वर्गस्य पञ्चमवर्णादेशो विकल्पेन भवति । इदमवधेयम्-‘ उपसर्गः सर्वोऽपि सुबन्तः । अतः तस्य पदत्वम् । उदाहरणानि
(पदान्त अनुस्वार के स्थान में यय् प्रत्याहार के वर्षों के परे में उसी वर्ग का पञ्चम वर्ण आदेश विकल्प से होता है । यह जानना आवश्यक है- सभी उपसर्ग सुबन्त हैं । अतः उसकी (सुबन्त की) पद संज्ञा है । उदाहरण-)

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 18

(6.5) तोलि – तवर्गस्य लकारे परे परसवर्णः स्यात् । (तवर्ग के स्थान में लकार परे होने पर परसवर्ण आदेश हो ।)
व्याख्या – तवर्गस्य स्थाने लकारे परे परसवर्णो लकारादेशो भवति । तत्र नकारस्य स्थाने अनुनासिकलँकारो भवति । उदाहरणानि-(तवर्ग के स्थान पर लकार परे होने पर परसवर्ण लकार आदेश होता है । वहाँ नकार के स्थान पर अनुनासिक ‘लँ’ होता है । उदाहरण-)
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 19

विसर्गसन्धिः

यदा विसर्गस्य स्थाने किमपि परिवर्तनं भवति तदा सः विसर्गसन्धिः इति कथ्यते । (जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब उसे विसर्ग सन्धि कहा जाता है ।)

(1) सत्वसन्धिः विसर्जनीयस्य सः- अर्थः – खरि परे विसर्जनीयस्य सः स्यात् । (विसर्जनीयस्य सः’ विसर्ग के स्थान में सकार आदेश हो ‘खर्’ परे होने पर। ‘खर्’ = ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स)

व्याख्या- विसर्गस्य स्थाने सकारो भवति खरि (वर्गस्य 1, 2, श् षु स्) परे। यथा- (विसर्ग के स्थान पर सकार होता है खर् (वर्ग के 1, 2, शु, षु, स्) परे होने पर ।) । अर्थात् विसर्ग के परे (क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स) इनमें से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘सु’ हो जाता है । जैसे- ‘नमः + ते’ यहाँ विसर्ग से परे ‘त’ वर्ण है जो खर् प्रत्याहार के अन्तर्गतं है अतः विसर्ग के स्थान पर ‘सु’ होकर ‘नम सु + ते = ‘नमस्ते’ सिद्ध होता है। उदाहरण
विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता
रामः + च = रामश्च
धनुः + टङ्कार = धनुष्टङ्कारः
निः + छलः = निश्छलः

(2) विसर्गसन्धिः – वा शरि
अर्थः – शरि विसर्गस्य विसर्गो वा स्यात्
वा शरि
अर्थः – शरि विसर्गस्य विसर्गो वा स्यात्

व्याख्या – विसर्गस्य स्थाने विकल्पेन विसर्गादेशो भवति शरिश (श् षु स्) परे । यथा
हरिः + शेते = हरिः शेते/हरिश्शेते
निः + सन्देहः = निःसन्देह/निस्सन्देह
नृपः + षष्ठः = नृपः षष्ठ:/नृपष्षष्ठ

पाठ्यपुस्तके आधारितानि उदाहरणानि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 20

(3.1) उत्वसन्धिः – अतो रोरप्लुतादप्लुते ।।
अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्यादप्लुतेऽति । (अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो अप्लुत अकार परे होने पर ।)
व्याख्या- ह्रस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति ह्रस्वे अकारे परे। (ह्रस्व अकार से पर (बाद में) रोः (रेफ के स्थान पर) का उकार आदेश होता है ह्रस्व अकार परे होने पर।)।
विशेषः – अः + अ इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति, अन्तिमस्य अकारस्य च स्थाने अवग्रहः (5) भवति । अर्थात् उत्सवसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धिः पररूपसन्धिः च भवतः । यथा
(अः + अ इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है और अन्तिम अकार के स्थान पर (5) अवग्रह होता है । अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुणसन्धि और पररूप सन्धि होती हैं । जैसे-)
कः । अपि = कोऽपि
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्
रामः + अयम् = रामोऽयम्
शिवः + अर्चः = शिवोऽर्थ्य:
सः + अपि = सोऽपि
छात्रः + अयम् = छात्रोऽयम्
नृपः + अस्ति = नृपोऽस्ति

पाठ्यपुस्तके आधारितानि उदाहरणानि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 21

(3.2) उत्वसन्धिः – हशि च ।
अर्थः – अप्लुतादतः परस्य रोरुः स्याद्धशि । (अर्थ- हश् (ह य व र ल ज म ङ ण न झ भ घ ढ ध ज ब ग ड दे) परे रहने पर भी अप्लुत अकार से परे ‘रु’ के स्थान में उकार हो ।)

व्याख्या – ह्रस्वात् अकारात् उत्तरस्य रोः (रेफस्य स्थाने) उकारादेशो भवति हशि (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य् व् र ल्) परे। (ह्रस्व अकार से बाद का रोः (रेफ के स्थान पर) उकार आदेश होता है हशि (वर्ग का 3, 4, 5, ह य व र ल्) परे होने पर भी ।) ।

विशेषः – अः + हश् (वर्गस्य 3, 4, 5, ह य् व् र ल्) इति स्थिते विसर्गस्य स्थाने ओकारस्य मात्रा भवति । अर्थात् उत्वसन्धेः अनन्तरं गुणसन्धि: भवति । यथा- (अः + हश् (वर्ग को 3, 4, 5, वर्ण या ह य् व् र ल्) इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार की मात्रा होती है । अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुण सन्धि होती है । जैसे-)

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(4.1) विसर्गस्य रेफः – इचोऽशि विसर्गस्य रेफ:” – इचः (अ, आ इत्येतौ वर्जयित्वा स्वरात्) परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदु-व्यञ्जने च) परे रेफादेशो भवति । उदाहरणानि
(अ आ इन दोनों वर्जित स्वर से) पर विसर्ग हो (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे रेफ आदेश होता है । अर्थात् ।
(यदि प्रथम पद के विसर्ग से पूर्व ‘अ’ अथवा ‘आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा विसर्ग के बाद कोई स्वर, वर्गों का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण या य व र् ल ह में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है ।)
जैसे- हरिः + अयम् = हरिरयम्,

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 23

(4.2) अव्ययसम्बन्धिन: ऋकारान्तशब्दस्य सम्बोधनसम्बन्धिनश्च विसर्गस्य अकारात् आकारात् चे परस्यापि रेफादेशो भवति । उदाहरणानि- (ऋकारान्त और सम्बोधन सम्बन्धी शब्दों के विसर्ग का अकार और अकार से परे को भी रेफ आदेश होता है।) उदाहरण

RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 24

(5.1) आतोऽशि विसर्गस्य लोपः – आकारात् परस्य विसर्गस्य अशि (स्वरे मृदुव्यञ्जने च) परे लोपो भवति । उदाहरणानि– आकार से परे विसर्ग का अशि (स्वर और मृदु व्यञ्जन में) परे होने का लोप हो जाता है । ( अर्थात् विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और उसके (विसर्ग के) पश्चात् कोई भी स्वर हो या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य् व् र लु हे में
से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-)
(: = लोप:) बालाः + अत्रे = बाला । अत्र = बाला अत्र,
(: == लोप:) लताः + धन्ते = लता + एधन्ते = लता एधन्ते
(: = लोपः) ताः + गच्छन्ति = ता + गच्छन्ति = ता गच्छन्ति
(: = लोपः) वृद्धाः + यान्ति = वृद्ध + यान्ति = वृद्धा यान्ति
(: = लोपः) बालाः । हसन्ति = बाला + हसन्ति = बाली हसन्ति

(5.2) “अतोऽनत्यचि विसर्ग लोप:” – अकारात् परस्य विसर्गस्य अकारं वर्जयित्वा स्वरे परे लोपो भवति । उदाहरणानि (विसर्ग से पहले अकार हो और उसके बाद ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है । जैसे-)

(: = लोप:) अतः + एव = अत एव बुद्ध; + इति = बुद्ध इति ।
शिवः + इति । शिव इति अर्जुनः + उवाच = अर्जुन उवाच
(: = लोपः) रामः + आगच्छति = राम + आगच्छति = राम आगच्छति ।
कृष्णः + एति = कृष्ण + एति = कृष्ण एति।
बालः + इच्छति = बाल + इच्छति = बाल इच्छति ।

(5.3) “एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनसमासे हलि” अककारयोः एतत्तदोः यः ‘सुः’ (स-विसर्गः) तस्य लोपः स्याद् | हलि न तु नसमासे। (ककार रहित एतद् और तद् शब्द का जो ‘सु’ (प्रथमा विभक्ति का एकवचन) (स – विसर्गः)
उसका लोप हो हल् परे होने पर परन्तु नसमास में न हो ।)

अयं भावः – नञ्समासं विहाय ‘एषः सः’ इत्यनयो पदयोः विसर्गस्य अकारं विहाय यत्किञ्चवर्णे परे लोपो भवति । उदाहरणानि- ( भाव यह है – नञसमास को छोड़कर ‘एष: ‘सः’ इन पदों में विसर्ग के अकार को छोड़कर अर्थात् ‘सः’ ‘एषः’ के पश्चात् ‘अ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर या व्यञ्जन हो, वहाँ विसर्ग का लोप होता है । जैसे-)
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 25

(5.4) ‘रो रि” रेफस्य रेफे परे लोप: स्यात् ।
अयं भावः – स्वरात्परस्य विसर्गस्य रेफे परे लोपो भवति । लोपे कृते पूर्वस्वरः दीर्घश्च भवति। उदाहरणानि- (भाव यह है – विसर्ग से बने ‘र’ के पश्चात् यदि ‘र’ आये तो पूर्व के ‘र’ का लोप हो जाता है तथा लोप होने वाले ‘र’ से पूर्व के अ, ई, उ का दीर्घ हो जाता है जैसे-)
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः image 26

अभ्यासः 1

1. रेखाङ्कितपदेषु सन्धिविच्छेदं सन्धिं वा कृत्वा उत्तरं उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(रेखांकित पदों में सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि कर उत्तर उत्तरपुस्तिका में लिखिए-)
(i) ब्रह्ममयि जय वागीश्वरी
(ii) बालाः + अत्र
(iii) मतिरास्ताम् नः तवे पद केमले
(iv) साधु: + भव
उत्तरम्:
(i) वाक् + ईश्वरी
(ii) बाला अत्र
(iii) मतिः + आस्ताम्।
(iv) साधुर्भव

2. (i) लताः + एधन्ते
(ii) पुन: + च
(iii) नानादिक् + देशात्
(iv) मनीषा
उत्तरम्:
(i) लता एधन्ते
(ii) पुनश्च
(iii) नानादिग्देशात्
(iv) मनस् + ईषा

3. (i) अद्य प्रातरेव अनिष्ट दर्शनं जातम्
(ii) तस्मिन्नेव काले
(iii) कुतोऽत्र निर्जने वने तण्डुलकणान्
(iv) पुनः + अपि
उत्तरम्:
(i) प्रातः + एवं
(ii) तस्मिन् + एव
(iii) कुतः + अत्र
(iv) पुनरपि

4. (i) वेदेषु + अपि
(ii) इति + आदिषु
(iii) किन्तु + अत्र
(iv) पतञ्जलि
उत्तरम्:
(i) वेदेष्वपि
(ii) इत्यादिषु
(iii) किन्त्वत्र
(iv) पतत् + अञ्जलि

5. (i) नो + अपत्य
(ii) धन्याः + तु
(iii) किलार्हति
(iv) शयनम्।
उत्तरम्:
(i) नोऽपत्य
(ii) धन्यास्तु
(iii) किल + अर्हति
(iv) शे + अनम् ।

6. (i) प्रत्यागच्छन्
(ii) मातुराख्या
(iii) अत्र + एकमत्यम्।
(iv) वाग् + मूलम्
उत्तरम्:
(i) प्रति + आगच्छन्
(ii) मातुः + आख्या
(iii) अत्रैकमत्यम्।
(iv) वाङ्मूलम्/वाग्मूलम्

7. (i) खलु + एषः
(ii) भीतोऽस्मि
(iii) इत्यधरं
(iv) एतत् + मुरारि
उत्तरम्:
(i) खल्वेषः
(ii) भीतः + अस्मि
(iii) इति + अधरं
(iv) एतन्मुरारि/एतमुरारि

8. (i) हरिम् वन्दे
(ii) तदत्र
(iii) दासी + असि
(iv) ताः + गच्छन्ति
उत्तरम्:
(i) हरिम् वन्दे
(ii) तत् + अञ्।
(iii) दास्यसि
(iv) ता गच्छन्ति

9. (i) कः + अत्र
(ii) विभ्रत् + न
(iii) पिबाम्यहम्।
(iv) व्याकुलश्चलितः
उत्तरम्:
(i) कोऽत्र
(ii) विभ्रन्न
(iii) पिबामि + अहम्
(iv) व्याकुल: + चलितः

10. (i) जगदीश्वरान्।
(ii) परमात्मानञ्च
(iii) ततः + तेषु
(iv) इति + आसीत्।
उत्तरम्:
(i) जगत् + ईश्वरान्
(ii) परमात्मानं + चे
(iii) ततस्तेषु
(iv) इत्यासीत् ।

अभ्यासः 2

अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्थेः नामापि लिखत ।
(निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि विच्छेद करके सन्धि का नाम भी लिखिए।)

1. (i) यद्यपि
(ii) कवये
(iii) भावयति
(iv) भूमिरस्ति
उत्तरम्:
(i) यदि + अपि, यण सन्धिः
(ii) कवे + ए, अयादि सन्धिः
(iii) भौ + अयति, अयादि सन्धिः
(iv) भूमिः + अस्ति (सत्व विसर्ग)

2. (i) गुर्वाज्ञया ।
(ii) सायकः
(iii) वृद्धा: यान्ति
(iv) सर्वैरेकचित्तीयभूय
उत्तरम्:
(i) गुरु + आज्ञया, यण् सन्धिः
(ii) सै + अकः, अयादि सन्धिः
(ii) वृद्धा यान्ति, विसर्ग लोप
(iv) सर्वैः + एकचित्तीयभूय, रुत्व विसर्ग

3. (i) भौ + उकः
(ii) बालाः + हसन्ति
(iii) कुलटा
(iv) जनन्यपि
उत्तरम्:
(i) भावुकः, अयादि सन्धिः
(ii) बाला हसन्ति, विसर्ग लोपः
(iii) कुल + अटा, पररूप सन्धिः
(iv) जननि + अपि, यण् सन्धिः

4. (i) भ्रान्तासन्ति ।
(ii) एकैक
(iii) दिक् + अम्बरः
(iv) भणितो + असि
210] व्याकरण
उत्तरम्- (i) भ्रान्तः + सन्ति सत्वे विसर्ग
(ii) एक + एकः, वृद्धि सन्धिः (iii) दिगम्बरः, जश्त्व सन्धि
(iv) भणितः + असि, उत्व विसर्ग

5. (i) उज्ज्व ल:
(ii) विपत्कालः
(iii) बालः + याति
(iv) पवनः
उत्तरम्:
(i) उद् + ज्वलः, श्चुत्व सन्धिः
(ii) विपद् + कालः चत्वं सन्धिः
(iii) बालो याति, उत्व सन्धिः
(iv) पो + अनः, अयादि सन्धिः

6. (i) कः + अपि
(ii) नमः + ते
(iii) सत्यं वद
(iv) कालादेव
उत्तरम्:
(i) कोऽपि, उत्व सन्धिः
(ii) नमस्ते, सत्व सन्धिः
(iii) ‘सत्यम् + वद् अनुस्वार सन्धिः
(iv) कालांत् + एव जश्त्व

सन्धिः

1. (i) सद् + कालः
(ii) दिक् + गजः
(iii) अन्तेऽपि
(iv) जनौचित्यम्
उत्तरम्:
(i) सत्कार; चत्वं सन्धिः
(ii) दिग्गजः, जश्त्व सन्धिः
(iii) अन्ते + अपि, पूर्वरूप सन्धिः
(iv) जन + औचित्यम्, वृद्धि सन्धि:

8. (i) कम्पते
(ii) तेव + औदार्यम्
(iii) गृहं गच्छति
(iv) इति + अकरोत्
उत्तरम्:
(i) के + पते, परसवर्ण
(ii) तवौदार्यम्, वृद्धि सन्धिः
(iii) गृहम् + गच्छति, मोऽनुस्वार
(iv) इत्यकरोत्, यण सन्धिः

9. (i) नयनम्
(ii) सुखार्त:
(iii) प्रति + एकम्।
(iv) रामः + अगिच्छति
उत्तरम्:
(i) ने + अनम्, अयादि सन्धिः
(ii) सुख+ ऋतः, वृद्धि सन्धिः
(iii) प्रत्येकम्, यण् सन्धिः
(iv) राम आगच्छति, विसर्ग लोप

10. (i) अत्युत्तमः
(ii) इन्दावुदिते
(iii) चित्तकैः + च
(iv) सो + अपि
उत्तरम्:
(i) अति + उत्तमः, यण् सन्धिः
(ii) इन्दौ + उदिते, अयादि सन्धिः
(iii) चित्तकैश्चे, सत्व विसर्ग
(iv) सोऽपि, पूर्वरूप सन्धिः

11. (i) जनैकता
(ii) दुखं प्राप्नोति
(iii) हरे + अव
(iv) गै + अकः
उत्तरम्:
(i) जन + एकती, वृद्धि सन्धिः
(ii) दुखम् प्राप्नोति, मोऽनुस्वार
(ii) हरेऽव, पूर्वरूप सन्धिः
(iv) गायकः, अयादि सन्धि

12. (i) सच्चित्
(ii) इष्टः
(iii) जगत् + ईशः
(iv) औषधिः + अस्य
उत्तरम्:
(i) सत् + चित्, श्चुत्व सन्धिः
(ii) इष् + त्ः, ष्टुत्व सन्धिः
(iii) जगदीशः, जश्त्व सन्धिः
(iv) औषधिरस्य, रुत्व विसर्ग

अभ्यासः 3

अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वे कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत
(निम्नलिखित पदों में सन्धि अथवा सन्धि–विच्छेद करे सन्धि का नाम भी लिखिए-)

1. (i) चिन्मयम्
(ii) त्वं पठसि
(iii) सत् + उपदेश
(iv) एकलः + अपि
उत्तरम्:
(i) चित् + मयम्, परसवर्ण सन्धिः
(ii) त्वम् + पठसि, मोऽनुस्वारे
(iii) सदुपदेश, जश्त्वे सन्धिः
(iv) एकलोऽपि, उत्व विसर्ग

2. (i) चित्तकैः + चे।
(ii) कृषेः + भयम्।
(iii) प्रा + ऋच्छति
(iv) कर्क + अन्धु
उत्तरम्
(i) चित्तकैश्च, सत्व विसर्ग
(ii) कृषेर्भयम्, रुत्व विसर्ग
(iii) प्रार्छति, वृद्धि सन्धिः
(iv) कर्कन्धु, पररूप सन्धिः

3. (i) मुं + चति
(ii) विपद् + काल
(iii) सुबन्त
(iv) अरयोऽपि
उत्तरम्:
(i) मुञ्चति, परसवर्ण सन्धिः
(ii) विपत्काल, चवं सन्धिः
(iii) सुप् + अन्त, जश्त्व
(iv) अरयः + अपि, उत्व विसर्ग सन्धिः

4. (i) भवतः + सर्वदा
(ii) प्रस्तुतो + अयम्
(iii) नायकः।
(iv) कारागारेष्वपि
उत्तरम्:
(i) भवतस्सर्वदा, सत्व विसर्ग सन्धिः
(ii) प्रस्तुतोऽम्, पूर्वरूप सन्धिः
(iii) नै + अकः, अयादि सन्धिः
(iv) कारागारेषु + अपि, यण् सन्धिः

5. (i) तथा + ऐव
(ii) वाक् + ईशः
(iii) कोऽभूत्
(iv) शकन्धुः
उत्तरम्:
(i) तथैव, वृद्धि सन्धिः
(ii) वागीश, जश्त्व सन्धिः
(iii) कः + अभूत, उत्वे विसर्ग सन्धिः
(iv) शक + अन्धु, पररूप सन्धिः

6. (i) महा + एश्वर्यम्
(ii) इति + अनेन
(iii) पावकः
(iv) पथिकोऽपि
उत्तरम्:
(i) महैश्वर्यम्, वृद्धि सन्धिः
(ii) इत्यनेन, यण् सन्धिः
(iii) पौ + अकः, अयादि सन्धिः
(iv) पथिको + अपि, पूर्वरूप सन्धिः

7. (i) विलक्षणः + अयम्।
(ii) अहम् + धावामि
(iii) तन्मात्रम्
(iv) जन्मभूमिश्च:
उत्तरम्:
(i) विलक्षणोऽयम् उत्व विसर्ग सन्धिः
(ii) अहं धावामि, मोऽनुस्वार
(iii) तद् + मात्रा, परसवर्ण सन्धिः
(iv) जन्मभूमिः + चे, सत्व विसर्ग सन्धिः

8. (i) देवैः + अनिशं
(ii) कृष्ण एति
(iii) मनः + तोषः
(iv) प्रागेव
उत्तरम्:
(i) देवैरनिशं, रुत्व विसर्ग सन्धिः
(ii) कृष्णः एति, विसर्ग लोप
(iii) मन स्तोषः, सत्व विसर्ग
(iv) प्राक् + एव, जश्त्व

9. (i) भूमिः + इयम्
(ii) बालः + इच्छति।
(iii) कस्तस्य
(iv) प्रेजते
उत्तरम्:
(i) भूमिरियम्, रुत्व विसर्ग सन्धिः
(ii) बाले इच्छति, विसर्ग लोप
(iii) कः + तस्य सत्व विसर्ग सन्धिः
(iv) प्र + एजते, पररूप सन्धि:

10. (i) अं + कितः
(ii) सम्पद् + समय:
(iii) अजन्तः
(iv) सुप्पोऽपि
उत्तरम्:
(i) अङ्कितः, परसवर्ण सन्धिः
(ii) सम्पत्समयः, चवं सन्धिः
(iii) अचे + अन्त, जश्त्व सन्धिः
(iv) शुष्कः अपि उत्व विसर्ग सन्धिः

11. (i) महा + औषधि
(ii) देवेषु + अपि
(iii) हरये
(iv) उपोषति
उत्तरम्:
(i) महौषधि, वृद्धि सन्धिः
(ii) देवेष्वपि, यण् सन्धिः
(iii) हरे + ए, अयादि सन्धिः
(iv) उप + ओषति, पररूप

12. (i) सदा + एव।
(ii) त्वम्
(iii) गै + अन्ति
(iv) इतोऽपि
उत्तरम्:
(i) सदैव, वृद्धि सन्धिः
(ii) तु + अहम्, यण सन्धिः
(iii) गायन्ति, अयादि सन्धिः
(iv) इतो + अपि, पूर्वरूप सन्धिः

We hope the RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

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