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RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक

January 11, 2022 by Fazal 1 Comment

RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक are part of RBSE Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Solutions Chapter 1 स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 10
Subject Social Science
Chapter Chapter 1
Chapter Name स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक
Number of Questions Solved 49
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Solutions Chapter 1 स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [Textbook Questions Solved]

स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजस्थान के प्रमुख महाजनपद कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख महाजनपद मत्स्य और शूरसेन हैं।

प्रश्न 2.
बिन्दुसार के समय आए यूनानी राजदूत का क्या नाम था?
उत्तर:
बिन्दुसार के समय आए यूनानी राजदूत का नाम डायमेकस था।

प्रश्न 3.
पुराणों में अशोक का क्या नाम मिलता है?
उत्तर:
पुराणों में अशोक का नाम अशोक वर्धन था।

प्रश्न 4.
अंतिम मौर्य सम्राट कौन था?
उत्तर:
अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ था।

प्रश्न 5.
‘समाहर्ता’ नामक अधिकारी का क्या कार्य था?
उत्तर:
समाहर्ता का कार्य राजस्व एकत्र करना, आय-व्यय का ब्योरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना था।

प्रश्न 6.
कौटिल्य की पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
कौटिल्य की पुस्तक का नाम अर्थशास्त्र है।

प्रश्न 7.
पतंजलि किस शासक के काल में हुए थे?
उत्तर:
पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में हुए थे।

प्रश्न 8.
सातवाहन वंश के सबसे प्रतापी राजा का नाम क्या था?
उत्तर:
सातवाहन वंश के सबसे प्रतापी शासक का नाम गौतमीपुत्र शातकर्णि था।

प्रश्न 9.
‘प्रयाग (इलाहाबाद) प्रशस्ति’ का लेखक कौन था? वह किस शासक का दरबारी कवि था?
उत्तर:
प्रयाग प्रशस्ति का लेखक हरिषेण था। वह समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था।

प्रश्न 10.
स्कन्दगुप्त ने मौर्यों द्वारा निर्मित किस झील का जीर्णोद्धार करवाया?
उत्तर:
जूनागढ़ अभिलेख द्वारा ज्ञात होता है कि स्कंदगुप्त ने मौर्यों द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था।

प्रश्न 11.
हर्षवर्धन की साहित्यिक रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
हर्षवर्धन ने संस्कृत में ‘नागानंद’, ‘रत्नावली’ तथा ‘प्रियदर्शिका’ नाम से तीन नाटकों की रचना की।

प्रश्न 12.
पालवंशी राजा किस धर्म के अनुयायी थे?
उत्तर:
पालवंशी राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाजनपदों में उल्लिखित गणराज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:
महाजनपदों में दो प्रकार के राज्य थे-राजतंत्र और गणतंत्र। कौशल, वत्स, अवंति और मगध उस समय सर्वाधिक शक्तिशाली राजतंत्र थे। छठी शताब्दी ई० पूर्व में अनेक गणतंत्रों का भी अस्तित्व था, जिनमें प्रमुख थे-कपिलवस्तु के शाक्य, सुंसुमार-गिरि के भाग, अल्लकप्प के बुली, केसपुत के कालाम, रामग्राम के कोलिय, कुशीनारा के मल्ल, पावा के मल्ल, पिप्पलिवन के मोरिय, वैशाली के लिच्छवि और मिथिला के विदेह।

प्रश्न 2.
अशोक के ‘धम्म’ का सार लिखिए।
उत्तर:
अशोक ने मनुष्य की नैतिक उन्नति हेतु जिने आदर्शों का प्रतिपादन किया उन्हें धम्म कहा गया। अशोक के धम्म की परिभाषा दूसरे तथा सातवें स्तंभलेख में दी गयी है। उसके अनुसार पापकर्म से निवृत्ति, विश्व कल्याण, दया, दान, सत्य एवं कर्मशुद्धि ही धम्म है।

साधु स्वभाव होना, कल्याणकारी कार्य करना, पाप रहित होना, व्यवहार में मृदुता लाना, दया रखना, दान करना, शुचिता रखना, प्राणियों का वध न करना, माता-पिता व अन्य बड़ों की आज्ञा मानना, गुरु के प्रति आदर, मित्रों, परिचितों, संबंधियों, ब्राह्मणों-श्रमणों के प्रति दानशील होना व उचित व्यवहार करना अशोक द्वारा प्रतिपादित धम्म की आवश्यक शर्ते हैं। तीसरे अभिलेख के अनुसार धम्म में अल्प संग्रह और अल्प व्यय का भी विधान था।

प्रश्न 3.
समुद्रगुप्त के सांस्कृतिक योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुप्त सम्राट वैदिक धर्म को माननेवाले थे। समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त प्रथम ने तो अश्वमेध यज्ञ भी किया था। उन्होंने बौद्ध और जैन धर्म को भी प्रश्रय दिया। उनके दरबारी कवि हरिषेण ने उनकी सैनिक सफलताओं का विवरण प्रयाग (इलाहाबाद) प्रशस्ति अभिलेख में किया है। यह अभिलेख उसी स्तंभ पर उत्कीर्णित है, जिस पर अशोक का अभिलेख उत्कीर्णित है।

उसके सिक्कों पर अश्वमेध पराक्रम लिखा मिलता है। यह ललित कलाओं में भी निपुण था। एक सिक्के पर उसकी आकृति वीणा बजाती हुई है। वह विष्णु का भक्त था, परन्तु दूसरे धर्मों का भी समान रूप से आदर करता था।

प्रश्न 4.
राष्ट्रकूट वंश का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
इस राजवंश की स्थापना दंतिदुर्ग ने 736 ई० में की थी। उसने नासिक को अपनी राजधानी बनाया। इसे वंश में 14 शासक हुए। दंतिदुर्ग वातापी के चालुक्यों के अधीन सामंत था। उसने अंतिम चालुक्य शासक कीर्ति वर्मा द्वितीय को पराजित करके दक्षिण में चालुक्यों की सत्ता समाप्त कर दी। कृष्ण प्रथम ने एलोरा के सुप्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

वंश के चौथे शासक ध्रुव ने गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज को पराजित किया और पाँचवें शासक गोविन्द तृतीय ने गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय और पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया। उसने राष्ट्रकूटों के साम्राज्य को मालवा प्रदेश से कांची तक विस्तृत कर दिया। छठा शासक अमोघवर्ष शांतिप्रिय था, जिसने लगभग 64 वर्षों तक राज्य किया। उसी ने मान्यखेड़ को राष्ट्रकूटों की राजधानी बनाया। अरब यात्री सुलेमान ने अमोघवर्ष की गणना विश्व के तत्कालीन चार महान शासकों में की।

प्रश्न 5.
चोल प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चोल का प्रशासन ग्राम पंचायत प्रणाली पर आधारित था। प्रशासन की सुविधा की दृष्टि से सम्पूर्ण चोल राज्य छह प्रांतों में बँटा हुआ था, जिनको मण्डलम कहा जाता था। मण्डलम के उप विभाग कोट्टम, कोट्टम के उपविभाग ‘नाडु’, कुर्रम’ और ‘ग्राम’ होते थे। अभिलेखों में नाडु की सभा को नाट्टर और नगर की श्रेणियों को ‘नगरतार’ कहा गया है।

गाँव के प्रतिनिधि प्रतिवर्ष नियमतः निर्वाचित होते थे। प्रत्येक मण्डलम को स्वायत्तता प्राप्त थी लेकिन राजा को नियंत्रित करने के लिए कोई केंद्रीय विधानसभा नहीं थी। भूमि की उपज का लगभग छठा भाग सरकार को लगान के रूप में मिलता था।

प्रश्न 6.
पल्लव वंश के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इस वंश के शासक अर्काट, मद्रास, त्रिचनापल्ली तथा तंजौर के आधुनिक जिलों पर राज्य करते थे। शिलालेखों में पहले पल्लव राजा का उल्लेख कांची के विष्णुगोप का मिलता है। पल्लवों में सिंहविष्णु छठी शताब्दी ई० के उत्तरार्ध में सिंहासन पर बैठा। उसके बाद लगभग दो शताब्दियों तक पल्लवों ने राज्य किया।

प्रमुख पल्लव राजाओं के नाम महेन्द्र वर्मा प्रथम, नरसिंह वर्मा प्रथम, महेन्द्र वर्मा द्वितीय, परमेश्वर वर्मा, नरसिंह वर्मा द्वितीय, परमेश्वर वर्मा द्वितीय, नन्दी वर्मा, नन्दी वर्मा द्वितीय तथा अपराजित। महेन्द्र के पुत्र तथा उतराधिकारी नरसिंह वर्मा ने 642 ई० में पुलकेशिन द्वितीय को परास्त कर दिया और उसकी राजधानी वातापी पर अधिकार कर लिया, परंतु चालुक्यों ने 655 ई० में इस हार का बदला ले लिया। चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम ने पल्लव राजा परमेश्वर वर्मा को पराजित कर उसकी राजधानी कांची पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 7.
कनिष्क का योगदान बताइए।
उत्तर:
कनिष्क ने 78 ई० में नया संवत चलाया, जिसे शक संवत के नाम से जाना जाता है। कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहाँ कनिष्कपुरै नामक नगर बसाया। उसने काशगर, यारकन्द व खेतान पर भी विजय प्राप्त की। महास्थाने में पायी गई सोने की मुद्रा पर कनिष्क की एक खडी मूर्ति अंकित है। मथुरा जिले में कनिष्क की एक प्रतिमा मिली है। इस प्रतिमा में उसने घुटने तक योगा और भारी बूट पहने हुए हैं। कनिष्क के राजदरबार में पाश्र्व, वसुमित्र, अश्वघोष जैसे बौद्ध विचारक, नागार्जुन जैसे प्रख्यात गणितज्ञ और चरक जैसे चिकित्सक विद्यमान थे। बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अभ्युदय और प्रचार कनिष्क के समय में ही हुआ।

स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
महाजनपदों का उल्लेख करते हुए राजस्थान के प्रमुख जनपदों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
वैदिक सभ्यता के विकासक्रम में राजस्थान में भी जनपदों का उदय देखने को मिलता है। जो निम्न प्रकार थे
1. जांगलः वर्तमान बीकानेर और जोधपुर के जिले महाभारत काल में जांगलदेश कहलाते थे। इस जनपद की राजधानी अहिछत्रपुर थी, जिसे इस समय नागौर कहते हैं। बीकानेर के राजा इसी जांगल देश के स्वामी होने के कारण स्वयं को जांगलाधर बादशाह कहते थे।

2. मत्स्यः वर्तमान जयपुर के आस-पास का क्षेत्र मत्स्य महाजनपद के नाम से जाना जाता था। इसका विस्तार चम्बल के पास की पहाड़ियों से लेकर सरस्वती नदी के जांगल क्षेत्र तक था। आधुनिक अलवर और भरतपुर के कुछ भू-भाग भी इसके अंतर्गत आते थे। इसकी राजधानी विराटनगर थी जिसे वर्तमान में ‘बैराठ’ नाम से जाता है।

3. शूरसेनः आधुनिक ब्रज क्षेत्र में यह महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी मथुरा थी। इसकी राजधानी को मेथोरा कहते हैं। महाभारत के अनुसार यहाँ यादव वंश का शासन था। भरतपुर, धौलपुर तथा करौली जिलों के अधिकांश भाग शूरसेन जनपद के अंतर्गत आते थे। अलवर जिले का पूर्वी भाग भी शूरसेन के अंतर्गत आता था। वासुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण का संबंध इसी जनपद से था।

4. शिविः शिवि जनपद की राजधानी शिवपुर थी तथा राजा सुशिन ने उसे अन्य जातियों के साथ दस राजाओं के युद्ध में पराजित किया था। प्राचीन शिवपुर की पहचान वर्तमान पाकिस्तान के शोरकोट नामक स्थान से की जाती है। कालांतर में दक्षिणी पंजाब की यह शिवि जाति राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में निवास करने लगी। चितौड़गढ़ के पास स्थित नगरी इस जनपद की राजधानी थी।

प्रश्न 2.
मौर्यकालीन प्रशासन एवं समाज का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौर्य काल में भारत में पहली बार केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। सत्ता का केंद्रीकरण राजा में होते हुए भी वह निरंकुश नहीं होता था। राजा द्वारा मुख्यमंत्री व पुरोहित की नियुक्ति उनके चरित्र की भलीभाँति जाँच के बाद ही की जाती थी। मंत्रिमंडल के अतिरिक्त परिशा मंत्रिणः भी होता था, जो एक तरह से मंत्रिपरिषद था।

केंद्रीय प्रशासन-अर्थशास्त्र में 18 विभागों का उल्लेख है, जिन्हें तीर्थ कहा गया है। तीर्थ के अध्यक्ष को महामात्र । कहा गया है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ थे-मंत्री, पुरोहित, सेनापति और युवराज।

समाहर्ता-इसका कार्य राजस्व एकत्र करना था।

सन्निधाता ( कोषाध्यक्ष )-साम्राज्य के विभिन्न भागों में कोषगृह और अन्नागार बनवाना। अर्थशास्त्र में 26 विभागाध्यक्षों का उल्लेख है, जैसे-कोषाध्यक्ष, सीताध्यक्ष (मुद्रा जारी करना), मुद्राध्यक्ष, पौतवाध्यक्ष, बंधनागाराध्यक्ष, आयविक (वन विभाग का प्रमुख) इत्यादि। ‘युक्त’ ‘उपयुक्त’ महामात्य तथा अध्यक्षों के नियंत्रण में निम्न स्तर के कर्मचारी होते थे।

प्रांतीय शासन-अशोक के समय में मगध साम्प्रज्य के पाँच प्रांतों का उल्लेख मिलता है-उत्तरापथ (तक्षशिला), अवंतिराष्ट्र (उज्जयिनी), कलिंग (तोसली), दक्षिणापथ (सुवर्णगिरि), मध्य देश (पाटलिपुत्र)। प्रांतों का शासन राजवंशीय ‘कुमार’ या आर्यपुत्र नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था। प्रांत विषयों में विभक्त थे, जो विषय पतियों के अधीन होते थे। जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक’ होता था, जो समाहर्ता के अधीन था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई का मुखिया ‘गोप’ था, जो दस गाँवों का शासन सँभालता था। समाहर्ता के अधीन प्रदेष्ट्र नामक अधिकारी भी होती था जो स्थानिक, गोप व ग्राम अधिकारियों के कार्यों की जाँच करता था। नगर शासन-मेगस्थनीज के अनुसार नगर का शासन-प्रबंध 30 सदस्यों का एक मंडल करता था जो 6 समितियों में विभक्त था।

सैन्य व्यवस्था-सेना के संगठन हेतु पृथक सैन्य विभाग था, जो 6 समितियों में विभक्त था। प्रत्येक समिति में पाँच सदस्य होते थे। ये समितियाँ सेना के पाँच विभागों की देखरेख करती थी। ये पाँच विभाग थे-पैदल. अश्व, हाथी, रथ तथा नौसेना। सैनिक प्रबंध की देखरेख करनेवाली अधिकारी अंतपाल कहलाता था।

न्याय व्यवस्था-सम्राट न्याय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। निचले स्तर पर ग्राम न्यायालय थे, जहाँ ग्रामणी और ग्रामवृद्ध अपना निर्णय देते थे। इसके ऊपर संग्रहण, द्रोणमुख, स्थानीय और जनपद स्तर के न्यायालय होते थे। सबसे ऊपर पाटलिपुत्र का केंद्रीय न्यायालय था। ग्राम संघ और राजा के न्यायालय के अतिरिक्त अन्य सभी न्यायालय दो प्रकार के थे-
(i) धर्मस्थीय
(ii) कंटकशोधन।

मौर्यकालीन समाज-कौटिल्य ने वर्णाश्रम व्यवस्था को सामाजिक संगठन का आधार माना है। कौटिल्य ने चारों वर्षों के व्यवसाय भी निर्धारित किए हैं। चार वर्षों के अतिरिक्त कौटिल्य ने अन्य जातियों; जैसे-निशाद, पारशव, रथाकार, क्षता, वेदेहक, सूत, चांडाल आदि का उल्लेख भी किया है। मेगस्थनीज की इंडिका में भारतीय समाज का वर्गीकरण सात जातियों में किया है-दार्शनिक, किसान, पशुपालक व शिकारी, कारीगर या शिल्पी, सैनिक, निरीक्षक, सभासद तथा अन्य शासक वर्ग। मौर्यकाल में स्त्रियों की स्थिति को अधिक उन्नत नहीं कहा जा सकता, फिर भी स्मृतिकाल की अपेक्षा वे अधिक अच्छी स्थिति में थीं तथा उन्हें पुनर्विवाह व नियोग की अनुमति थी।

प्रश्न 3.
गुप्तवंश के प्रमुख शासकों का वर्णन करते हुए इस काल की सांस्कृतिक उपलब्धियों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
गुप्त वंश को 275 ई० में श्रीगुप्त ने प्रारंभ किया था। श्रीगुप्त के बाद घटोत्कच गुप्त शासक हुआ।

चन्द्रगुप्त प्रथम (320-335 ई०)-चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 ई० में एक संवत चलाया, जो गुप्त संवत के नाम से प्रसिद्ध

समुद्रगुप्त ( 335-380 ई०)-चन्द्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। समुद्रगुप्त के पास एक शक्तिशाली नौसेना भी थी।

चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-412 ई०)-राक विजय के पश्चात उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य (414-455 ई०)-चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद उसका पुत्र कुमारगुप्त शासक बना। कुमारगुप्त को ही नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापक माना जाता है। उसका राज्य सौराष्ट्र से बंगाल तक फैला था।

स्कन्दगुप्त (455-467 ई०)-स्कन्दगुप्त ज्येष्ठ पुत्र न होते हुए भी राज्य का उत्तराधिकारी बना। स्कन्दगुप्त ने अंततः हूणों को पराजित कर दिया।

गुप्त वंश की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ-समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त प्रथम ने तो अश्वमेध यज्ञ भी किया था। उन्होंने बौद्ध और जैन धर्म को प्रश्रय दिया। चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था। गुप्तकाल की राजकाज की भाषा संस्कृत थी। अभिज्ञानशाकुंतलम् नाटक तथा रघुवंशम् महाकाव्य के रचयिता कालिदास, मृच्छकटिकम् नाटक के लेखक शूद्रक, मुद्राराक्षस नाटक के लेखक विशाखदत्त तथा सुविख्यात कोशकार अमरसिंह गुप्तकाल में ही हुए। .

रामायण, महाभारत तथा मनुसंहिता अपने वर्तमान रूप में गुप्त काल में ही सामने आई। गुप्तकाल में आर्यभट्ट, वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त ने गणित तथा ज्योतिर्विज्ञान के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया। इसी काल में दशमलव प्रणाली का आविष्कार हुआ, जो बाद में अरबों के माध्यम से यूरोप तक पहुँची। उस काल की वास्तुकला, चित्रकला तथा धातुकला के प्रमाण झाँसी और कानपुर के अवशेषों, अजन्ता की कुछ गुफाओं, दिल्ली में स्थित लौहस्तम्भ, नालंदा में 80 फुट ऊँची बुद्ध की ताँबे की प्रतिमा से मिलते हैं।

प्रश्न 4.
दक्षिण के चोल एवं चालुक्य राज्यों का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर:
चोल वंश का संस्थापक विजयालय था। चोल राजा विजयालय के पुत्र और उत्तराधिकारी आदित्य ने पल्लव नरेश
अपराजित को हराया था। आदित्य के पुत्र परांतक प्रथम ने पल्लवों की शक्ति को पुरी तरह कुचल दिया था। चोल राजराज प्रथम संपूर्ण मद्रास, मैसूर, कूर्ग और सिंहलद्वीप को अपने अधीन करके पूरे दक्षिणी भारत का एकछत्र सम्राट बन गया था। उसके पुत्र और उत्तराधिकारी राजेन्द्र प्रथम के पास शक्तिशाली नौसेना थी जिसने पेगू, मर्तबान तथा अंडमान निकोबार द्वीपों को जीता। उसने बंगाल और बिहार के शासक महिपाले से युद्ध किया। उसकी सेनाएँ कलिंग पार करके उड़ीसा, दक्षिण कोसल, बंगाल और मगध होती हुई गंगा तक भी पहुँची। इस विजय के उपलक्ष्य में उसने गंगईकोंड की उपाधि धारण की। उसका पुत्र और उत्तराधिकारी राजधिराज चालुक्य राजा सोमेश्वर के साथ हुए कोय्यम के युद्ध में मारा गया। परन्तु वीर राजेन्द्र ने चालुक्यों को कुडल संगमम के युद्ध में परास्त कर पिछली हार का बदला ले लिया।

चोलों में शीघ्र ही उत्तराधिकार के लिए युद्ध छिड़ गया। इसके फलस्वरूप सिंहासन राजेन्द्र कुलोतुंग को मिला, जिसकी माँ चोल राजकुमारी और पिता चालुक्य राज्य का स्वामी था। इस प्रकार कुलोतुंग ने चालुक्य चोलों के एक नये वंश की स्थापना की। उसने 40 वर्षों तक शासन किया। चालुक्य वंश-चालुक्य नरेशों में चौथा पुलकेशिन द्वितीय सबसे अधिक प्रख्यात है।

उसने 608 ई० में शासन ग्रहण किया। उसका राज्य विस्तार उतर में नर्मदा से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी तक था। 642 ई० में वह पल्लव नरेश नरसिंहवर्मा द्वारा पराजित हुआ। पुलकेशिन के पुत्र विक्रमादित्य द्वितीय ने 973 ई० में राष्ट्रकूट नरेश को परास्त कर दिया और कल्याणी को अपनी राजधानी बनाकर नये चालुक्य राज्य की स्थापना की। यह नया राज्य 973 ई० से 1200 ई० तक कायम रहा।

कल्याणी के इस चालुक्य राज्य का एक लम्बे अर्से तक तंजौर के चोलवंशी शासकों से संघर्ष चला। सत्याश्रम नामक चालुक्य राजा को चोल नरेश राजराज ने परास्त किया। चालुक्य सोमेश्वर प्रथम ने इस अपमान का बदला न केवल चोल नरेश राजाधिराज को कोय्यम के युद्ध में करारी हार देकर लिया, वरन इस युद्ध में उसने राजाधिराज का वध भी कर दिया। सातवें नरेश विक्रमादित्य षष्ठ ने, जो विक्रमांक के नाम से भी विख्यात था, कांची पर अधिकार कर लिया।

स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक अतिरिक्त प्रश्नोत्तर (More questions solved)

I. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
छठी शताब्दी ई०पू० में कितने महाजनपद थे?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई०पू० में 16 महाजनपद थे।

प्रश्न 2.
किन महाजनपदों में राजतंत्र कायम था?
उत्तर:
कोसल, वत्स, अवन्ति और मगध महाजनपद में सर्वाधिक शक्तिशाली राजतंत्र थे।

प्रश्न 3.
किन महाजनपदों में गणतंत्र कायम था?
उत्तर: कपिलवस्तु के शाक्य, सुंसुमारगिरि के भाग, अल्लकप्प के बुली, केसपुत के कालाम, रामग्राम के कोलिय, कुशीनारी के मल्ल, पावा के मल्ल, पिप्पलिवन के मोरिय, वैशाली के लिच्छवि और मिथिला के विदेह महाजनपद में गणतंत्र कायम था।

प्रश्न 4.
महाजनपद किसे कहा जाता था?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई०पू० में उत्तर भारत में अनेक विस्तृत और शक्तिशाली स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई जिन्हें महाजनपद
कहा गया।

प्रश्न 5.
गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली में शासन किनके हाँथों में होता था?
उत्तर:
गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली के बावजूद जनपदों की राजसता कुलीन परिवारों के हाँथों में ही थी। इन परिवारों के । प्रतिनिधि ही संथागार सभा के प्रमुखों के रूप में शासन की व्यवस्था करते थे।

प्रश्न 6.
अनयुविरोध किसे कहा जाता है?
उत्तर: संथागार के सदस्य निर्धारित विषयों पर अपने विचार व्यक्त कर सकते थे। इसे अनयुविरोध कहा जाता था।

प्रश्न 7.
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार कहाँ तक था?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, बलुचिस्तान, कंधार, पंजाब, गंगा-यमुना के मैदान, बिहार, बंगाल, | गुजरात, विंध्य और कश्मीर के भू-भाग सम्मिलित थे।

प्रश्न 8.
चन्द्रगुप्त मौर्य ने किस यूनानी शासक को हराया था?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ई०पू० में तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को हराया था।

प्रश्न 9.
बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पूर्व राजतंरगिणी के अनुसार अशोक किसका उपासक था?
उत्तर:
राजतंरगिणी के अनुसार बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पूर्व अशोक शिव का उपासक था।

प्रश्न 10.
धम्ममहामात्र नामक अधिकारी का क्या कार्य था?
उत्तर:
धम्ममहामात्र का मुख्य कार्य जनता में धम्म का प्रचार करना, उन्हें कल्याणकारी कार्य करने तथा दानशीलता के लिए प्रोत्साहित करना, कारावास से कैदियों को मुक्त करना या उनकी सजा कम करना, उनके परिवार की आर्थिक सहायता करना आदि।

प्रश्न 11.
रूम्मनदेई अभिलेख के अनुसार भूमिकर की दर कितनी थी?
उत्तर:
रूम्मनदेई अभिलेख से विदित होता है कि अशोक ने भूमिकर की दर से घटाकर % कर दी थी।

प्रश्न 12.
बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने आजीवकों के निवास हेतु कौन-कौन सी गुफाओं का निर्माण कराया?
उत्तर:
बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने सुदामा, चापार विश्वझोंपड़ी और कर्ण गुफाओं का निर्माण कराया था।

प्रश्न 13.
राज्याभिषेक से संबंधित लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को क्या कहा है?
उत्तर:
राज्याभिषेक से संबंधित लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को बुद्धशाक्य कहा है।

प्रश्न 14.
भारत के किस शासक ने शिलालेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को सर्वप्रथम संबोधित किया?
उत्तर:
अशोक प्रथम शासक था जिसने अभिलेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को संबोधित किया।

प्रश्न 15.
हर्षवर्धन ने किन विद्वानों को आश्रय प्रदान किया था?
उत्तर:
हर्षवर्धन ने बाणभट्ट, मयूर, सुबंधु, मातंग, दिवाकर, ईशान आदि विद्वानों और चीनी यात्री ह्वेनसांग को आश्रय प्रदान किया था।

स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
चोल कला और चोल समाज के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
चोलों ने पल्लवों की स्थापत्य कला को आगे बढ़ाया। चोलों की द्रविड़ मंदिर शैली की कुछ विशेषताएँ हैं-वर्गाकार विमान, मण्डप, गोपुरम, कलापूर्ण स्तम्भों आदि का होना। राजराज प्रथम का तंजौर का शिव मंदिर द्रविड़ शैली का शानदार नमूना है। दक्षिण भारत में नहरों की प्रणाली चोलों की देन है। चोल मंदिरों में चिदम्बरम और तंजौर के मंदिर सर्वोत्कृष्ट हैं। चोल युग की नटराज शिव की कांसे की मूर्तियाँ भी सर्वोत्कृष्ट मानी जाती हैं। मंदिरों की गोपुरम शैली का विकास इसी युग में हुआ।

समाज-चोल राजा शैव धर्मानुयायी थे। राजाधिराज के लेखों में अश्वमेध यज्ञ का भी उल्लेख है। समाज में स्त्रियाँ सम्पत्ति की स्वामिनी होती थी। दास और देवदासी प्रथा भी प्रचलित थी।

प्रश्न 2.
पल्लवों की सांस्कृतिक विरासत के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
पल्लवों के शासन काल में कई स्थापत्य कला का निर्माण हुआ। महेन्द्र वर्मा महान वास्तु निर्माता था। उसने पत्थरों को तराशकर अनेक मंदिर बनवाए। महेन्द्र वर्मा प्रथम ने मतविलासप्रहसन नामक नाटक भी लिखा।

उसने महेन्द्र तालाब भी खुदवाया। प्रारंभिक पल्लव राजाओं ने मामल्लपुरम या महाबलीपुरम नगर की स्थापना की और वहाँ पर पाँच रथ मंदिरों का निर्माण कराया। यहाँ चट्टानों को तराशकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। कांची में भी पल्लव राजाओं ने मंदिर बनवाए। पल्लव में कुछ विष्णु के उपासक थे और शिव के।

प्रश्न 3.
चालुक्यों की सांस्कृतिक विरासत के बार में बताएँ।।
उत्तर:
चालुक्यवंशी पुलकेशिन प्रथम ने अश्वमेध यज्ञ किया था। विक्रमादित्य षष्ठ ने प्रसिद्ध कवि विल्हण को संरक्षण प्रदान किया। विल्हण ने विक्रमादित्य के जीवन पर आधारित विक्रमांकदेवचरित नामक ग्रंथ लिखा। वातापी और कल्याणी के चालुक्य नरेशों ने हिन्दू होने पर भी बौद्ध और जैन धर्म को प्रश्रय दिया। चालुक्य राजाओं ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया।

याज्ञवल्क्य स्मृति की मिताक्षरा व्याख्या के लेखक प्रसिद्ध विधिवेता विज्ञानेश्वर चालुक्यों की राजधानी कल्याणी में ही रहते थे। मिताक्षरा को हिन्दू कानून का एक आधिकारिक ग्रंथ माना जाता है।

प्रश्न 4.
हूण कौन थे? इन्होंने भारत पर कब आक्रमण किया। इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
हूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाति थी जिसने शकों की भाँति भारत वर्ष में उत्तर-पश्चिमी सीमा की ओर से प्रवेश किया। इन्हें दैत्य भी कहा जाता था। सर्वप्रथम 458 ई० के लगभग स्कन्दगुप्त के समय इनका आक्रमण हुआ, जिसमें उनकी पराजय हुई। कालांतर में तोरमाण नामक सरदार ने गुप्त साम्राज्य को नष्ट भ्रष्ट करके पंजाब, राजपूताना, सिन्ध और मालवा पर अधिकार कर महाराजाधिराज की पदवी धारण की।

तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल था, जिसका राज्य 510 ई० से आरम्भ हुआ। स्यालकोट इसकी राजधानी थी। बौद्ध भिक्षुओं से महिरकुल को घृणा थी।
उसने अनेक मठों एवं स्तूपों को नष्ट किया। मालवा के शासक यशोवर्मन ने इसे पराजित किया। पराजित होने के बाद यह कश्मीर चला गया और कश्मीर में अपना राज्य कायम किया। हूणों के आक्रमण के कारण गुप्त साम्राज्य नष्ट हो गया और भारत
की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई। देश पुनः छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया।

प्रश्न 5.
कुषाण वंश के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
कुषाण वंश का संस्थापक कुजल कडफिसस प्रथम था। कुषाणों को यूचि या तौचेरियन भी कहा जाता है। यूचि कबीला पाँच भागों में बँट गया था। इन्हीं में से एक कबीले ने भारत के कुछ भागों पर शासन किया। कुजुल कडफिसस प्रथम ने दक्षिणी अफगानिस्तान काबुल, कन्धार और पर्सिया के एक भाग को अपने राज्य में मिला लिया।

इसने वैदिक धर्म को अंगीकार किया। विम कडफिसस द्वितीय का भारत के एक विशाल क्षेत्र पर राज्य था। वह शैव मत का अनुयायी था। इसकी कुछ मुद्राओं पर त्रिभुज, त्रिशूलधारी, व्याघ्रचर्माग्राही, नन्दी अभिमुख भगवान शिव की आकृति अंकित है। इसने भारत में पहली बार अपने नाम के सोने के सिक्के चलाए। कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा था। उतर भारत में कुषाण शासकों की सता लगभग 230 ई० तक बनी रही।

प्रश्न 6.
मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
अपने गुरु चाणक्य की सहायता से अंतिम नंद शासक धनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के राज्य-सिंहासन पर बैठा। चन्द्रगुप्त मौर्य ने व्यापक विजय अभियान करके प्रथम अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। 305 ई०पू० में उसने तत्कालीन यूनानी शासक सिल्यूकस निकेटर को पराजित किया। संधि हो जाने के बाद सिल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेकर पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु नदी के पश्चिम का क्षेत्र उसे दे दिया। सिल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह भी चन्द्रगुप्त से कर दिया और मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में उसके दरबार में भेजा।

चन्द्रगुप्त के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा-यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात, विंध्य और कश्मीर के भू-भाग सम्मिलित थे। तमिल ग्रंथ अहनानूरु और मुरनानुरु से विदित होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत पर भी आक्रमण किया था। वृद्धावस्था में उसने भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ले ली। उसने 298 ई० पूर्व में श्रवणबेलगोला (मैसूर) में उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया।

स्वर्णिम भारत-प्रारंभ से 1206 ई० तक निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
हर्षवर्धन के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
जिस समय हर्षवर्धन सिंहासन पर बैठा, राज्य की स्थिति अत्यंत संकटपूर्ण थी। गौड़ (बंगाल) के राजा शशांक ने उसके बड़े भाई राज्यवर्धन का वध कर डाला था और उसकी छोटी बहन राजश्री अपने प्राणों की रक्षा के लिए किसी अज्ञात स्थान पर चली गई थी। हर्षवर्धन ने शीर्घ ही अपनी बहन को ढूंढ निकाला और कामरूप के राजा भास्करवर्मा से संधि करके शशांक के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेज दी। यद्यपि दक्षिण में उसकी सेनाओं को लगभग 620 ई० में चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट से पीछे खदेड़ दिया था। हर्ष के साम्राज्य की सीमाएँ उत्तर में हिमाच्छादित पर्वतों, दक्षिण में नर्मदा नदी के तट, पूर्व में गंजाम तथा पश्चिम में वल्लभी तक विस्तृत थी। कन्नौज इस विशाल साम्राज्य की राजधानी थी। हर्षवर्धन ने महाधिराज की पदवी धारण की।

वह शिव और सूर्य की उपासना करता था। बाद में उसका झुकाव महायान बौद्ध धर्म की ओर अधिक हो गया। वह प्रति पाँचवें वर्ष, प्रयाग में गंगा और यमुना के संगम पर एक महोत्सव करके दान आदि करता था। चीनी यात्री ह्वेनसांग भी इस प्रकार के छठे महोत्सव में सम्मिलित हुआ था। हर्षवर्धन ने संस्कृत में नागानंद, रत्नावली’ तथा प्रियदर्शिका नाम से तीन नाटकों की रचना की। हर्षवर्धन ने वाणभट्ट, मयूर, सुबन्धु, मातंग दिवाकर आदि विद्वानों और चीनी यात्री ह्वेनसांग को आश्रय प्रदान किया था।

प्रश्न 2.
पालवंश के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
पालवंश का उद्भव बंगाल में लगभग 750 ई० में गोपाल से माना जाता है। पालवंश का दूसरी शासक धर्मपाल इस वंश का सबसे महान राजा था। उसने अपना राज्य कन्नौज तक विस्तृत किया और प्रतिहारों तथा राष्ट्रकूटों के साथ हुए त्रिकोणात्मक संघर्ष में भी अपने राज्य को सुरक्षित रखा। उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी देवपाल ने भी कई युद्धों में विजय प्राप्त की। वह अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र से बंगाल ले गया। उसकी राजसभा में सुमात्रा के राजा बलिपुत्र देव को दूत आया था। देवपाल के बाद पालवंश की राज्यशक्ति शासकों की निर्बलता तथा गुर्जर प्रतिहार राजाओं के आक्रमणों के कारण क्षीण होने लगी। नवें राजा महीपाल प्रथम के राज्यकाल में चोल राजा राजेन्द्र प्रथम ने लगभग 1023 ई० में गंगा तक के प्रदेशों को जीत लिया। बारहवीं शताब्दी के मध्य तक पालवंश की शक्ति क्षीण हो गई।

पालवंशी राजा बौद्ध थे और उनके राज्यकाल में बौद्ध शिक्षा केंद्रों की बड़ी उन्नति हुई। नालंदा तथा विक्रमशिला के प्रसिद्ध महाविहारों को उनका संरक्षण प्राप्त था। प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु अतिशा दसवें पाल राजा नयपाल के राज्यकाल में तिब्बत के राजा के निमन्त्रण पर वहाँ भी गया था। पालवंशी राजा कला तथा वास्तुकला के महान प्रेमी थे। उन्होंने धीमान तथा विटपाल जैसे महान शिल्पियों को संरक्षण प्रदान किया। पाल युग के अनेक जलाशय दीनापुर जिले में अभी भी बचे हुए हैं।

प्रश्न 3.
गुर्जर प्रतिहार वंश के इतिहास के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
इस राज्य की स्थापना नागभट्ट नामक एक सामंत द्वारा 525 ई० में गुजरात में हुई इसलिए इस वंश का नाम गुर्जर प्रतिहारे पड़ा। नागभट्ट प्रथम बड़ा वीर था। उसने सिंध की ओर से होनेवाले अरबों के आक्रमण का सफलतापूर्वक सामना किया। वत्सराज इस वंश का पहला शासक था जिसने सम्राट की पदवी धारण की। वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई० के लगभग गंगा की घाटी पर हमला किया और कन्नौज पर अधिकार कर लिया। वह अपनी राजधानी भी कन्नौज ले गया। नागभट्ट द्वितीय राष्ट्रकूट राजा गोविन्द तृतीय से पराजित हुआ।

उसके वंशज कन्नौज तथा आस-पास के क्षेत्रों पर 1018-1019 ई० तक शासन करते रहे। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा भोज प्रथम था जो महिर भोज के नाम से भी जाना जाता है और जो नागभट्ट द्वितीय का पौत्र था। अगला सम्राट महेन्द्र पाल था जो ‘कपूरमंजरी’ नाटक के रचयिता महाकवि राजशेखर का शिष्य और संरक्षक था। महेन्द्र पुत्र महिपाल राष्ट्रकूट राजा इन्द्र तृतीय से बुरी तरह पराजित हुआ। महिपाल के समय गुर्जर प्रतिहार राज्य का पतन होने लगा।

उसके बाद के भोज द्वितीय, विनयपाल ने 1013 ई० तक अपने राज्य को कायम रखा। महमूद गजनवी के हमले के समय कन्नौज का शासक राज्यपाल था। राज्यपाल बिना लड़े भाग खड़ा हुआ। बाद में उसने महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली। इससे आस-पास के राजपूत राजा बहुत नाराज हुए। महमूद गजनवी के लौट जाने पर कालिंजर के चन्देल राजा गण्ड के नेतृत्व में राजपूत राजाओं ने उसे मार डाला और उसके स्थान पर त्रिलोचनपाल को गद्दी पर बैठाया। कन्नौज पर गहड़वाल अथवा राठौर वंश का उद्भव होने पर 11वीं शताब्दी के द्वितीय चतुर्थाश में बाडी के गुर्जर प्रतिहार वंश को सदा के लिए उखाड़ दिया गया।

प्रश्न 4.
शक शासकों के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
शक मध्य एशिया की लडाकू जनजाति थी, जिसने पश्चिमी अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के सारे प्रदेश पर अधिकार कर लिया। यहाँ से शक बोलन द से होकर लगभग 71 ई०पू० में भारत आए। ‘रामायण’ एवं ‘महाभारत’ में शक बस्तियों को कम्बोजों और यवनों के साथ रखा गया है। कालकाचार्य कथानक में भारत पर शकों के आक्रमण का उल्लेख मिलता है, जिसमें उन्हें सगकुल कहा गया है। सिन्धु प्रदेश को जीतकर उन्होंने सौराष्ट्र में शक शासन की स्थापना की।

मुद्राओं और लेखों से स्पष्ट है कि इनकी एक शाखा ने उत्तरापथ और मथुरा में आधिपत्य स्थापित कर लिया और कालान्तर में वे अवन्ति, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र में फैल गए। तक्षशिला के शक शासकों में मावेज एवं एजेज के नाम आते हैं। तक्षशिला में शक शक्ति का विनाश पल्लवों द्वारा हुआ। हमामश और हगान मथुरा के प्रारंभिक शक क्षत्रप थे। मथुरा से प्राप्त सिंह शीर्षक-लेख में बाद के शक शासक राजबुल को महाक्षत्रप कहा गया है। मथुरा के शकों ने पूर्वी पंजाब तक अपनी सीमा का विस्तार कर लिया था। मथुरा में शक शक्ति का विनाश कुषाणों द्वारा हुआ।

पश्चिमी भारत में शकों के क्षहरात वंश के भूमक तथा नहपान दो शासक ज्ञात हैं। इन शक शासकों ने सात-वाहनों से कुछ प्रदेश जीते और महाराष्ट्र, काठियावाड़ और गुजरात पर शासन किया। नहपान के समय भारत तथा पश्चिमी देशों के बीच समृद्ध व्यापारिक संबंध कायम था। जोगलथाम्बी नामक स्थान से मिले सिक्कों से यह प्रमाणित होता है कि नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि से पराजित हुआ था। उज्जयिनी तथा कठियावाड़ के शक शासकों में चस्टन का नाम आता है, जिसने उज्जयिनी में शक राजवंश की स्थापना की थी। इस वंश के शासकों ने अपने लेखों तथा मुद्राओं पर शक संवत का उपयोग किया था। चस्टन का पौत्र रूददामन महत्वपूर्ण शासक हुआ। रूद्रदामन का साम्राज्य पूर्वी पश्चिमी मालवा, द्वारका, जूनागढ़, साबरमती नदी, मारवाड़, सिन्धु घाटी, उतरी कोंकण एवं विंध्य पर्वत तक फैला हुआ था। मुद्राओं से प्रदर्शित होता है कि चस्टन का वंश 305 ई० में समाप्त हो गया।

प्रश्न 5.
सम्राट अशोक के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
जैन अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने बिन्दुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध के शासन पर अधिकार कर लिया। दक्षिण भारत से प्राप्त मास्की तथा गुज्जरा अभिलेखों में उसका नाम अशोक मिलता है। अभिलेखों में अशोक देवनामप्रिय तथा देवनाप्रियदस्सी उपाधियों से विभूषित है। विदिशा की राजकुमारी से अशोक की पुत्री संघमित्रा तथा पुत्र महेन्द्र का जन्म हुआ।

अशोक के अभिलेखों में उसकी रानी कारुवाकी का उल्लेख भी मिलता है। राज्याभिषेक के सात वर्ष बाद अशोक ने कश्मीर तथा खोतान के अनेक क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिलाया। उसके समय में मौर्य साम्राज्य में तमिल प्रदेश के अतिरिक्त समूचा भारत और अफगानिस्तान का काफी बड़ा भाग शामिल था। राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया जिससे 1 लाख लोग मारे गये। हाथीगुंफा अभिलेख के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि उस समय कलिंग पर नंदराज शासन कर रहा था।

इस व्यापक नरसंहार ने अशोक को विचलित कर दिया, फलतः उसने शस्त्र त्याग की घोषणा कर दी।
मगध साम्राज्य के अन्तर्गत कलिंग की राजधानी धौली या तोसाली बनायी गयी। श्रवण निग्रोध तथा उपगुप्त के प्रभाव में आकर अशोक बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गया और उसने भेरीघोष के स्थान पर धम्मघोष अपना लिया। बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पूर्व राजतरंगिणी के अनुसार अशोक शिव का उपासक था। बाद में वह गुरु मोग्गलिपुत्रतिस्स के प्रभाव में आ गया। बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने आजीवकों के निवास हेतु चार गुफाओं का निर्माण करवाया, जिनके नाम थे-सुदामा, चापार, विश्व-झोंपड़ी और कर्ण।

उसने राज्याभिषेक के 10वें वर्ष में बोधगया तथा 20वें वर्ष में लुम्बिनी की धम्म यात्रा की। कम्मनदेई अभिलेख से विदित होता है कि उसने वहाँ भूमिकर की दर से घटाकर कर दी थी। अशोक के शिलालेखों में चोल, चेर, पांडव और केरल के सीमावर्ती स्वतंत्र राज्य बताए गए हैं। राज्याभिषेक से संबंधित लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को बुद्धशाक्य कहा है।

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