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RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 केंद्र सरकार

February 5, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 केंद्र सरकार are part of RBSE Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Solutions Chapter 6 केंद्र सरकार.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 10
Subject Social Science
Chapter Chapter 6
Chapter Name केंद्र सरकार
Number of Questions Solved 66
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Solutions Chapter 6 केंद्र सरकार

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [Textbook Questions Solved]

केंद्र सरकार अति लघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रधानमंत्री को कौन नियुक्त करता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति

प्रश्न 2.
राष्ट्रपति का चुनाव किस पद्धति के आधार पर होता है?
उत्तर:
एकल संक्रमणीय मत पद्धति

प्रश्न 3.
राज्यसभा का पदेन सभापति कौन होता है?
उत्तर:
उपराष्ट्रपति

प्रश्न 4.
केंद्रीय मंत्रिमण्डल की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर:
प्रधानमंत्री

प्रश्न 5.
संसद के सत्रावसान में राष्ट्रपति विशेष परिस्थितियों में जो आदेश जारी करता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
अध्यादेश

प्रश्न 6.
किस बात के संबंध में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों के संबंध में

प्रश्न 7.
कम से कम कितने समय तक उच्चतम न्यायालम में वकालत कर चुके भारतीय नागरिक को उच्चतम न्यायलय में । न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
10 वर्ष

प्रश्न 8.
एक बार नियुक्त हो जाने पर उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश कितने वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकता
उत्तर:
65 वर्ष की आयु तक

प्रश्न 9.
‘अभिलेख न्यायालय’ का आशय क्या है?
उत्तर:
अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करती है। अभिलेख न्यायालय के दो आशय हैं–प्रथम इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्ष्य के रूप में स्वीकार किये जाएँगे और इन्हें किसी भी न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने पर उनकी प्रामाणिकता के द्वारा न्यायालय अवमानना के लिए किसी भी प्रकार का दंड दिया जा सकता है।

केंद्र सरकार लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति समझाएँ।
उत्तर:
भारतीय संविधान के 63वें अनुच्छेद में उपराष्ट्रपति के पद की व्यवस्था की गई है। उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में होता है और यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की एकल संक्रमणीय मत | पद्धति से तथा गुप्त मतदान द्वारा होता है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार में कौन-सी योग्यताएँ आवश्यक हैं? ।
उत्तर:
संविधान में राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित होने वाले व्यक्ति के लिए निम्नांकित योग्यताएँ निश्चित की गई हैं:

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।

इसके अतिरिक्त ऐसा कोई भी व्यक्ति जो भारत सरकार, राज्य सरकार या किसी स्थानीय सरकार के अंतर्गत पदाधिकारी हो या लाभ का पद धारण किए हो, राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं हो सकता। राज्य सरकार या किसी स्थानीय सरकार के अंतर्गत पदाधिकारी हो या लाभ का पद धारण किए हो, राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं हो सकता।
राष्ट्रपति भारतीय संसद अथवा राज्यों के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति को किस प्रक्रिया के आधार पर उसके पद से हटाया जा सकता है?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष है किंतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा – केंद्र सरकार के
संविधान का उल्लंघन किए जाने पर संविधान में दी गई पद्धति के अनुसार इस पर महाभियोग लगाकर उसे पदच्युत किया जा सकता है। उस पर अभियोग लगाने का अधिकार भारतीय संसद के प्रत्येक सदन को प्राप्त है। अभियोग चलाने के लिए अभियोग चलाने वाले सदन की समस्त संख्या के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।

सदन में प्रस्ताव प्राप्त होने के 14 दिन बाद अभियोग लगाने वाले सदन में उस पर विचार किया जाएगा और यदि अभियोग का प्रस्ताव सदन की कुल संख्या के 2/3 सदस्यों द्वारा स्वीकृत हो जाए, तो उसके उपरांत प्रस्ताव द्वितीय सदन को भेज दिया जाता है।
दूसरा सदन इन अभियागों की या तो स्वयं जाँच करेगा या इस कार्य के लिए विशेष समिति नियुक्त करेगा। यदि इस सदन में राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं और दूसरा सदन भी अपने कुल सदस्यों के कम-से-कम दो तिहाई बहुमत से महाभियोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर ले तो प्रस्ताव स्वीकृत होने की तिथि से राष्ट्रपति पदच्युत समझा जाएगा।

प्रश्न 4.
राष्ट्रपति संविधान के कौन-कौन से अनुच्छेदों के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा कर सकता है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 352 में व्यवस्था है कि यदि राष्ट्रपति को यकीन हो जाए कि देश पर युद्ध या बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति कायम हो गया हो तो राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करते हैं। लेकिन 44वें संवैधानिक संशोधन में इसमें परिवर्तन किया गया है।

अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति को राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अन्य किसी प्रकार से यकीन हो जाए कि ऐसी परिस्थिति पैदा हो गई है कि राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह उस राज्य के लिए संकटकाल की घोषणा कर सकता है। संसद की स्वीकृति के बिना यह घोषणा दो माह से अधिक की अवधि के लिए लागू नहीं रहेगी।

प्रश्न 5.
राष्ट्रपति के चुनाव में संसद के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य और राज्य विधानसभा एवं संघीय क्षेत्र की विधानसभा | के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य किस आधार पर निर्धारित किया जाता है?
उस राज्य की जनसंख्या
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 केंद्र सरकार 1

प्रश्न 6.
उच्चतम न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय भारत का अंतिम अपीलीय न्यायालय है। उसे समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को निम्न रूप में विभाजित किया जा सकता है।

(i) संवैधानिक– संविधान के अनुच्छेद 132 के अनुसार यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि विवाद में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न निहित है तो उच्च न्यायालय के निर्णय की अपील सर्वोच्च न्यायालय में भी की जा सकती है।

(ii) दीवानी- इस संबंध में मूल संविधान के अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में केवल ऐसे ही दीवानी विवादों की अपील की जा सकती थी जिसमें विवादग्रस्त राशि 20,000 रुपये से अधिक हो, किंतु 1973 में हुए 30वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 133 को संशोधन कर उक्त धनराशि की सीमा 20,000 हटाते हुए अब यह निश्चित किया गया है कि दीवानी विवादों की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकेगी।

(iii) फौजदारी- फौजदारी के क्षेत्र में उन विवादों में उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जिनमें

  • उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय के ऐसे किसी निर्णय को रद्द करके अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो, जिसमें नीचे के न्यायालय ने अभियुक्त को अपराध मुक्त कर दिया था या
  • उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय में चल रहे किसी विवाद को अपने यहाँ लेकर अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो या
  •  उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है।

(iv) विशिष्ट- कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं जो उपयुक्त श्रेणी में नहीं आते लेकिन जिनमें सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक हो सकता है। अत: अनुच्छेद 135 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार दिया गया है। कि सैनिक न्यायालय को छोड़कर वह भारत के अन्य किसी न्यायालय अथवा न्यायमंडल के निर्णय के विरुद्ध
सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति प्रदान कर दे।

प्रश्न 7.
दीवानी और फौजदारी मुकदमे किस स्थिति में अपील के रूप में उच्चतम न्यायालय में सुने जा सकते हैं?
उत्तर:
(i) दीवानी- इस संबंध में मूल संविधान के अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में केवल ऐसे ही दीवानी विवादों की अपील की जा सकती थी जिसमें विवादग्रस्त राशि 20,000 रुपये से अधिक हो किंतु 1973 में हुए 30वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 133 को संशोधन कर उक्त धनराशि की सीमा 20,000 हटाते हुए अब यह निश्चित किया गया है कि दीवानी विवादों की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकेगी।

(ii) फौजदारी- फौजदारी के क्षेत्र में उन विवादों में उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जिनमें

  • उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय के ऐसे किसी निर्णय को रद्द करके अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो, जिसमें नीचे के न्यायालय ने अभियुक्त को अपराध मुक्त कर दिया था या
  • उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय में चल रहे किसी विवाद को अपने यहाँ लेकर (अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो या
  • उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है।

प्रश्न 8.
उच्चतम न्यायालय को एक ‘अभिलेख न्यायालय’ (Court of Record) क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्ष्य के रूप में स्वीकार किए जाएँगे और इन्हें किसी भी न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने पर उनकी प्रामणिकता के विषय में प्रश्न नहीं उठाया जाएगा। दूसरा इस न्यायालय के द्वारा ‘न्यायालय अवमानना’ के लिए किसी भी प्रकार का दण्ड दिया जा सकता है।

प्रश्न 9.
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश किसके द्वारा और कैसे हटाये जा सकते हैं?
उत्तर:
साधारणतया सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रह सकते हैं। सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के कारण संसद के द्वारा न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है। यदि संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से इसको अयोग्य या आपत्तिजनक आचरण करने वाला प्रमाणित कर देते हैं तो भारत के राष्ट्रपति के आदेश से उस न्यायाधीश को अपने पद से हटना होगी।

प्रश्न 10.
‘न्यायिक पुनर्विलोकन’ का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुच्छेद 131 और अनुच्छेद 132 सर्वोच्च न्यायालय का संघीय तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्मित विधियों के पुनर्विलोकन का अधिकार देता है। यदि संघीय संसद् या राज्य विधानमंडल संविधान का अतिक्रमण करते हैं या मौलिक अधिकारों के विरुद्ध विधि का निर्माण करते हैं तो संघीय संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित ऐसी विधि को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति के कारण कोई भी केंद्र और राज्य सरकार असंवैधानिक कानूनों का निर्माण नहीं कर सकता और न ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकता है।

केंद्र सरकार निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अप्रत्यक्ष निर्वाचन की पद्धति को अपनाया गया है और यह चुनाव एकल संक्रमणीय मत। पद्धति के आधार पर होता है। राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य और संघीय क्षेत्र के विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते
संसद तथा राज्यों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष मत पद्धति के अनुसार होगा जिसे एकल संक्रमणीय मत पद्धति कहा जाता है।
RBSE Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 केंद्र सरकार 2

प्रश्न 2.
राष्ट्रपति की सामान्य काल में शक्तियों तथा अधिकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रपति को सामान्य काल में निम्नलिखित शक्तियाँ तथा अधिकार प्राप्त हैं

(i) कार्यपालिका अथवा प्रशासनिक शक्तियाँ- संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह उसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा करेगा। इस प्रकार शासन का समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होगा और सरकार के समस्त निर्णय उसके ही माने जाएँगे।

(क) महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति- राष्ट्रपति भारत संघ के अनेक महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति करता है; जैसे-प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्री, राज्यों के राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, महालेखा परीक्षक, संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य तथा विदेशों में राजदूत आदि।

(ख) सैनिक क्षेत्र में शक्ति- राष्ट्रपति भारत की समस्त सेनाओं का प्रधान सेनापति है, किंतु इस अधिकार का प्रयोग वह कानून के अनुसार ही कर सकता है। प्रतिरक्षा सेवाओं, युद्ध और शांति आदि के विषय में कानून बनाने की शक्ति केवल संसद को प्राप्त है। अतः भारतीय राष्ट्रपति संसद की स्वीकृति के बिना न तो युद्ध की घोषणा कर सकता है और न ही सेनाओं का प्रयोग कर सकता है।

(ii) विधायी शक्तियाँ- राष्ट्रपति को भारतीय संसद का अभिन्न अंग माना जाता है और इस रूप में राष्ट्रपति को विधायी क्षेत्र की विभिन्न शक्तियाँ प्राप्त हैं:

(क) विधायी क्षेत्र का प्रशासन- राष्ट्रपति संसद के अधिवेशन बुलाता है और अधिवेशन समाप्ति की घोषणा करता है।
वह प्रधानमंत्री की सिफारिश पर लोकसभा को उसके निश्चित काल से पूर्व भी भंग कर सकता है। अब तक 9 बार लोकसभा को समय से पूर्व भंग किया जा चुका है। संसद के अधिवेशन के प्रारंभ में राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में भाषण देता है। इसके द्वारा अन्य अवसरों पर भी संसद को संदेश या उनकी बैठकों में भाषण देने का कार्य किया जा सकता है।

(ख) सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति- राष्ट्रपति को राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। जिनके द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला या अन्य किसी क्षेत्र में विशेष सेवा की गयी हो। वह लोकसभा में 2 आंग्ल भारतीय सदस्यों को मनोनीत करते हैं।

(ग) अध्यादेश जारी करने की शक्ति- जिस समय संसद का अधिवेशन न हो रहा हो, उस समय राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है। ये अध्यादेश संसद का अधिवेशन प्रारंभ होने के 6 सप्ताह बाद तक लागू रहेंगे लेकिन संसद चाहे तो उसके द्वारा जारी अध्यादेशों को अवधि से पूर्व भी समाप्त किया जा सकता है।

(iii) वित्तीय शक्तियाँ- राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में संसद के दोनों सदनों के सम्मुख भारत सरकार की | उस वर्ष के लिए आय और व्यय का विवरण रखवायेगा। उसकी आज्ञा के बिना धन विधेयक और अनुदान माँगे लोकसभा में प्रस्तावित नहीं की जा सकती।

(iv) न्यायिक शक्तियाँ- संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांत को अपनाया गया है। यह उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्मित न्यायालय की कार्य व्यवस्था से संबंधित नियमों के संबंध में राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है। राष्ट्रपति को एक अन्य महत्वपूर्ण शक्ति क्षमादान की प्राप्त है। राष्ट्रपति को न्यायिक शक्ति के अंतर्गत दंड प्राप्त व्यक्तियों को क्षमा प्रदान करने या दंड को कुछ समय के लिए स्थगित करने का अधिकार भी प्राप्त है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों की विवचना कीजिए।
उत्तर:
संकट की स्थिति का सामना करने के लिए संविधान द्वारा राष्ट्रपति को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। वर्तमान समय | में संविधान के संकटकालीन प्रावधानों की स्थिति निम्न प्रकार है

(i) युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति की स्थिति से संबंधित संकटकालीन व्यवस्था- मूल संविधान के अनुच्छेद 352 में व्यवस्था है कि यदि राष्ट्रपति को समाधान हो जाए कि युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या उसके किसी भाग की शांति व्यवस्था नष्ट होने का भय है तो यथार्थ रूप से इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने पर या इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने की आशंका होने पर राष्ट्रपति संकटकालीन व्यवस्था की घोषणा कर सकता है। संसद की स्वीकृति हो जाने पर शासन इसे जब तक लागू रखना चाहे रख सकता है। 44वें संवैधानिक संशोधन के बाद वर्तमान समय में इस संबंध में व्यवस्था निम्न प्रकार है

प्रथम- अब इस प्रकार की आपातकाल, युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह अथवा इस प्रकार की आशंका होने पर ही घोषित किया जा सकेगा। केवल आंतरिक अशांति के नाम पर आपातकाल घोषित नहीं किया जा सकता।
द्वितीय- राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा तभी की जा सकेगी जबकि मंत्रिमंडल लिखित रूप में राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श दे।
तृतीय- घोषणा के एक माह के अंदर संसद के विशेष बहुमत (दो तिहाई बहुमत) से इसकी स्वीकृति आवश्यक होगी और इसे लागू रखने के लिए प्रति 6 माह बाद स्वीकृति आवश्यक होगी।
चतुर्थ- लोकसभा में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से आपातकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है।

(ii) राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न संकटकालीन व्यवस्था- अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति को राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अन्य किसी प्रकार से यकीन हो जाय कि ऐसी परिस्थिति पैदा हो गई है कि राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह उस राज्य के लिए संकटकाल की घोषणा कर सकता है। संसद की स्वीकृति के बिना यह घोषणा दो माह से अधिक की अवधि के लिए लागू नहीं रहेगी। संसद के द्वारा एक प्रस्ताव पास कर राज्य में 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। इस प्रकार के प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग अपने साधारण बहुमत से पास किया जाना आवश्यक है। किसी भी परिस्थिति में तीन वर्ष के बाद राष्ट्रपति शासन लागू नहीं रखा जा सकेगा।

(iii) वित्तीय संकट- अनुच्छेद 360 के अनुसार जब राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाय कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी हैं जिनसे भारत के वित्तीय स्थायित्व यो साख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। ऐसी घोषणा के लिए भी वही अवधि निर्धारित है जो प्रथम प्रकार की घोषणा के लिए है।

प्रश्न 4.
मंत्रिमंडल के गठन एवं उसकी शक्तियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मूल संविधान के अनुच्छेद 74 में उपबंधित है कि राष्ट्रपति को उसके कार्यों के संपादन में सहायता एवं परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।

मंत्रिमंडल का गठन

(i) प्रधानमंत्री की नियुक्ति- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होगी तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के परामर्श से की जाएगी। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।

(ii) प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रियों का चयन- अन्य मंत्रियों की नियुक्ति के संबंध में संवैधानिक स्थिति यह है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की राय से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा लेकिन व्यवहार में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है।

(iii) मंत्रियों की श्रेणियाँ- मंत्रियों की तीन श्रेणियाँ होती हैं। मंत्रिमंडल या कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री तथा उपमंत्री। मंत्रिमंडल की शक्तियाँ-संविधान के अनुच्छेद 74 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को उसके कार्यों के संपादन में सहायता और परामर्श देगी। व्यवहार में मंत्रिमंडल भारतीय शासन की सर्वोच्च इकाई है और उसके द्वारा समस्त .शासन व्यवस्था का संचालन किया जाता है।

(iv) राष्ट्रीय नीति निर्धारित करना- मंत्रिमंडल का महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रीय नीति निर्धारित करना है। मंत्रिमंडल यह निश्चित करता है कि आंतरिक क्षेत्र में प्रशासन के विभिन्न विभागों द्वारा और वैदेशिक क्षेत्र में दूसरे देशों के साथ संबंध के विषय में किस प्रकार की नीति अपनायी जाएगी।

(v) कानून निर्माण- संसदात्मक व्यवस्था होने के कारण मंत्रिमंडल का कार्य क्षेत्र नीति निर्धारण तक ही सीमित नहीं है वरन इसके द्वारा कानून निर्माण के कार्य का भी नेतृत्व किया जाता है। मंत्रिमंडल द्वारा नीति निर्धारित कर दिए जाने के बाद उसके द्वारा ही विधि निर्माण का कार्यक्रम निश्चित किया जाता है और मंत्रिमंडल के सदस्य ही महत्वपूर्ण विधेयक सदन में प्रस्तावित करते हैं।

(vi) कार्यपालिका पर नियंत्रण- सैद्धांतिक दृष्टि से संघ सरकार की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के हाथों में है लेकिन ब्यवहार में इस प्रकार की समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिमंडल के द्वारा किया जाता है।

(vii) वित्तीय कार्य- मंत्रिमंडल द्वारा निर्धारित नीति के आधार पर ही वित्त मंत्री बजट तैयार करता है और वही उसे लोकसभा में प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 5.
उच्चतम न्यायालय के संगठन, क्षेत्राधिकार और शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का गठन-सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी है और संविधान के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन या सेवा शर्ते निश्चित करने का अधिकार संसद को दिया गया है। 2008 में मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 31 कर दी गई। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश के संबंध में राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों से परामर्श लेता है

जिनसे वह इस संबंध में परामर्श लेना आवश्यक समझता है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम व्यवस्था से की जाती है। जिसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह राष्ट्रपति को नाम प्रस्तावित करते हैं व राष्ट्रपति इन्हीं नामों में से न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार वे शक्तियाँ भारतीय संविधान के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को बहुत अधिक व्यापक क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है जो कि निम्न है

(i) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार- सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(क) प्रारंभिक एकमेव क्षेत्राधिकार- प्रारंभिक एकमेव क्षेत्राधिकार का आशय उन विवादों से है जिनकी सुनवाई केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक एकमेव क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत निम्न विषय आते हैं। भारत सरकार, संघ का कोई राज्य या राज्यों तथा एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद, दो या दो से अधिक राज्यों के बीच संवैधानिक विषयों के संबंध में उत्पन्न कोई विवाद, भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद।।
(ख) प्रारंभिक समवर्ती क्षेत्राधिकार- संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को लागू करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्च न्यायालय को भी अधिकार प्रदान किया गया है। अत: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित जो विवाद है, वे चाहे तो पहले किसी राज्य के उच्च न्यायालय में और चाहे तो सीधे सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित किए जा सकते हैं।

(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार- सर्वोच्च न्यायालय को संविधान ने अपीलीय क्षेत्राधिकार भी प्रदान किया है और यह भारत का अंतिम अपीलीय न्यायालय है। उसे समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। यदि उच्च न्यायालये यह प्रमाणित कर दें कि विवाद में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न निहित है तो उच्च न्यायालय के निर्णय की अपीले सर्वोच्च न्यायालय में भी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त सभी दीवानी विवादों की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। फौजदारी के क्षेत्र में उन विवादों में उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जिनमें

(क) उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय के ऐसे किसी निर्णय को रद्द करके अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो, जिसमें नीचे के न्यायालय ने अभियुक्त को अपराध मुक्त कर दिया था।
(ख) उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय में चल रहे किसी विवाद को अपने यहाँ लेकर अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो।
(ग) उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है। कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं जो उपर्युक्त श्रेणी में नहीं आते लेकिन जिनमें सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार दिया गया है कि सैनिक न्यायालय को छोड़कर वह भारत के अन्य किसी न्यायालय अथवा न्यायमंडल के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति प्रदान कर दें।

(iii) अपील के लिए विशेष आज्ञा देने का अधिकार- संविधान के अनुच्छेद 138 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं भी यह अधिकार प्राप्त है कि वह सैनिक न्यायालय को छोड़कर भारत राज्य क्षेत्र के किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण के निर्णय के विरुद्ध अपने यहाँ अपील की अनुमति दे सकता है। उसकी इस शक्ति पर कोई संवैधानिक प्रतिबंध नहीं है।

(iv) परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार- संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार प्रदान किया है। अनुच्छेद 143 के अनुसार यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न पैदा हुआ है जो सार्वजनिक महत्व का है तो वह उस प्रश्न परे सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श माँग सकता है। न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर होगा।

(v) अभिलेख न्यायालय- अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है। अभिलेख न्यायालय के दो आशय हैं प्रथम इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्ष्य के रूप में स्वीकार किये जाएँगे और इन्हें किसी भी न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने पर उनकी प्रामाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं उठाया जाएगा। द्वितीय इस न्यायालय के द्वारा अवमानना के लिए किसी भी प्रकार का दंड दिया जा सकता है।

प्रश्न 6.
उच्चतम न्यायालय के संगठन तथा क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का गठन-सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी है और संविधान के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन या सेवा शर्ते निश्चित करने का अधिकार संसद को दिया गया है। 2008 में मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 31 कर दी गई। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश के संबंध में राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों से परामर्श लेता है

जिनसे वह इस संबंध में परामर्श लेना आवश्यक समझता है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम व्यवस्था से की जाती है। जिसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह राष्ट्रपति को नाम प्रस्तावित करते हैं व राष्ट्रपति इन्हीं नामों में से न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार वे शक्तियाँ भारतीय संविधान के द्वारा

सर्वोच्च न्यायालय को बहुत अधिक व्यापक क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है जो कि निम्न है

(i) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार- सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(क) प्रारंभिक एकमेव क्षेत्राधिकार- प्रारंभिक एकमेव क्षेत्राधिकार का आशय उन विवादों से है जिनकी सुनवाई केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक एकमेव क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत निम्न विषय आते हैं। भारत सरकार, संघ का कोई राज्य या राज्यों तथा एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद, दो या दो से अधिक राज्यों के बीच संवैधानिक विषयों के संबंध में उत्पन्न कोई विवाद, भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद।

(ख) प्रारंभिक समवर्ती क्षेत्राधिकार- संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को लागू करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्च न्यायालय को भी अधिकार प्रदान किया गया है। अत: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित जो विवाद है, वे चाहे तो पहले किसी राज्य के उच्च न्यायालय में और चाहे तो सीधे सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित किए जा सकते हैं।

(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार- सर्वोच्च न्यायालय को संविधान ने अपीलीय क्षेत्राधिकार भी प्रदान किया है और यह भारत का अंतिम अपीलीय न्यायालय है। उसे समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। यदि उच्च न्यायालये यह प्रमाणित कर दें कि विवाद में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न निहित है तो उच्च न्यायालय के निर्णय की अपीले सर्वोच्च न्यायालय में भी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त सभी दीवानी विवादों की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। फौजदारी के क्षेत्र में उन विवादों में उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जिनमें

(क) उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय के ऐसे किसी निर्णय को रद्द करके अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो, जिसमें नीचे के न्यायालय ने अभियुक्त को अपराध मुक्त कर दिया था।
(ख) उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालय में चल रहे किसी विवाद को अपने यहाँ लेकर अभियुक्त को मृत्युदंड दे दिया हो।
(ग) उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है। कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं जो उपर्युक्त श्रेणी में नहीं आते लेकिन जिनमें सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार दिया गया है कि सैनिक न्यायालय को छोड़कर वह भारत के अन्य किसी न्यायालय अथवा न्यायमंडल के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति प्रदान कर दें।

(iii) अपील के लिए विशेष आज्ञा देने का अधिकार- संविधान के अनुच्छेद 138 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं भी यह अधिकार प्राप्त है कि वह सैनिक न्यायालय को छोड़कर भारत राज्य क्षेत्र के किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण के निर्णय के विरुद्ध अपने यहाँ अपील की अनुमति दे सकता है। उसकी इस शक्ति पर कोई संवैधानिक प्रतिबंध नहीं है।

(iv) परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार- संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार प्रदान किया है। अनुच्छेद 143 के अनुसार यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न पैदा हुआ है जो सार्वजनिक महत्व का है तो वह उस प्रश्न परे सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श माँग सकता है। न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर होगा।

(v) अभिलेख न्यायालय- अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है। अभिलेख न्यायालय के दो आशय हैं–प्रथम इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्ष्य के रूप में स्वीकार किये जाएँगे और इन्हें किसी भी न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने पर उनकी प्रामाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं उठाया जाएगा। द्वितीय इस न्यायालय के द्वारा अवमानना के लिए किसी भी प्रकार का दंड दिया जा सकता है।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर (More Questions Solved)

केंद्र सरकार अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सरकार के प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सरकार के प्रमुख तीन अंग निम्नानुसार है-

  1. व्यवस्थापिका,
  2.  कार्यपालिका
  3. न्यायपालिका।

प्रश्न 2.
सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
राज्य एक भावात्मक अवधारणा है जो एक अमूर्त एवं अदृश्य संस्था होती है। इसे मूर्त रूप प्रदान करने वाली संस्था को ही सरकार कहते हैं।

प्रश्न 3.
भारत का संवैधानिक प्रधान कौन होता है?
उत्तर:
भारत का संवैधानिक प्रधान राष्ट्रपति होता है।

प्रश्न 4.
भारत का वास्तविक प्रधान कौन होता है?
उत्तर:
भारत का वास्तविक प्रधान प्रधानमंत्री होता है।

प्रश्न 5.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश को कितना वेतन मिलता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक लाख रुपये मासिक तथा अन्य न्यायाधीशों को 90,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है। \

प्रश्न 6.
संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर किस तरह का प्रतिबंध लगाया गया है?
उत्तर:
संविधान में यह निश्चित किया गया है कि जो व्यक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रह चुके हैं वे पद से निवृत्ति के बाद भारत में किसी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं।

प्रश्न 7.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 8.
संसद का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
संसद का निर्माण राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर होता है।

प्रश्न 9.
लोकसभा और राज्यसभा का अधिवेशन बुलाने का नियम क्या है?
उत्तर:
लोकसभा और राज्यसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा ही बुलाए और स्थगित किए जाते हैं और इस संबंध में नियम केवल यह है कि लोकसभा की दो बैठकों में 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 10.
राष्ट्रपति राज्यसभा में कितने सदस्यों को मनोनीत करता है और वे किस तरह के व्यक्ति होते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करते हैं। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें, कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा या खेल के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।

प्रश्न 11.
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने के लिए सदन के कितने सदस्यों की हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने के लिए सदन की समस्त संख्या के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।

प्रश्न 12.
संविधान में संशोधन के लिए सदन में कितने बहुमत की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
संविधान में संशोधन के लिए दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 13.
वर्तमान में लोकसभा और राज्यसभा में कितने सदस्य हैं?
उत्तर:
वर्तमान में लोकसभा में 545 सदस्य और राज्यसभा में 245 सदस्य हैं।

प्रश्न 14.
लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाने के लिए कितने दिन पहले सूचना दी जाती है?
उत्तर:
लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश करने के लिए कम-से-कम 14 दिन पहले सूचना दी जाती है।

प्रश्न 15.
राज्यसभा का प्रमुख पदाधिकारी कौन होता है?
उत्तर:
राज्यसभा का प्रमुख पदाधिकारी सभापति और उपसभापति होता है।

केंद्र सरकार लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
लोकसभा सदस्य के लिए क्या योग्यताएँ होनी चाहिए?
उत्तर:
लोकसभा के लिए योग्यताएँ|

  1. वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो।।
  2. उसकी आयु 25 वर्ष या इससे अधिक हो।
  3.  भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अंतर्गत वह कोई लाभ का पद धारण किए हो।
  4.  वह किसी न्यायालय द्वारा पागल तथा दिवालिया न ठहराया गया हो।

प्रश्न 2.
लोकसभा के अध्यक्ष के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत के लोकसभा के अध्यक्ष को निम्नलिखित अधिकार एवं शक्ति प्राप्त है

  1. अध्यक्ष के द्वारा लोकसभा की सभी बैठकों की अध्यक्षता की जाती है और अध्यक्ष होने के नाते उसके द्वारा सदन में शांति व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने का कार्य किया जाता है।
  2. लोकसभा का समस्त कार्यक्रम और कार्यवाही अध्यक्ष के द्वारा ही निश्चित की जाती है। वह सदन के नेता के । परामर्श से विभिन्न विषयों के संबंध में वाद-विवाद का समय निश्चित कर सकता है।
  3.  वह सदन की कुछ समितियों का पदेन सभापति होता है। प्रवर समिति के सभापति को वही नियुक्त करता है और इन समितियों के द्वारा उसके निर्देशन में ही कार्य किया जाता है।
  4.  अध्यक्ष ही यह निर्णय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं।
  5.  संसद और राष्ट्रपति के बीच सारा पत्र व्यवहार उसके द्वारा ही होता है।

प्रश्न 3.
राज्यसभा के अधिकार या शक्ति का वर्णन करें जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है?
उत्तर:
राज्यसभा को दो ऐसे अधिकार प्राप्त हैं जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है और जिनका प्रयोग अकेले राज्यसभा ही करती है। इस प्रकार की शक्तियों का संबंध देश के संघीय ढाँचे से है और राज्यसभा को राज्य का एकमात्र प्रतिनिधि होने के नाते निम्न शक्तियाँ प्राप्त हैं

(i) अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित कर सकती है।
(ii) संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा ही अपने दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास कर नयी अखिल भारतीय सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार केंद्र सरकार को दे सकती है।

प्रश्न 4.
उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों के बारे में व्याख्या करें। उत्तर: उपराष्ट्रपति को निम्नलिखित कार्य एवं शक्तियाँ प्राप्त हैं

(i) राज्यसभा का पदेन सभापति- उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। चूंकि वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता इसलिए उसे मतदान का अधिकार नहीं है परंतु विषय के पक्ष और विपक्ष में बराबर मत हो तो उसे निर्णायक मत देने का अधिकार होता है।
(ii) राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उसके पद का कार्यभार सँभालना- उपराष्ट्रपति निम्न चार स्थितियों में राष्ट्रपति पद का कार्यभार सँभालता है-

  • राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाने पर
  •  राष्ट्रपति के त्यागपत्र देने पर
  •  महाभियोग के कारण राष्ट्रपति की पदच्युति पर
  •  अन्य किसी कारण से उत्पन्न राष्ट्रपति की असमर्थता की स्थिति में जैसे रोग या विदेश यात्रा।

प्रश्न 5.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए क्या योग्यताएँ होनी चाहिए?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम-से-कम

या

  1. किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटी का ज्ञाता हो।

प्रश्न 6.
व्याख्या करें कि सरकार के अभाव में राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
उत्तर:
राज्य एक भवनात्मक अवधारणा है जो एक अमूर्त एवं अदृश्य संस्था होती है, इसे मूर्त रूप प्रदान करने वाली संस्था को ही सरकार कहा जाता है। सरकार द्वारा ही राज्य की सामूहिक इच्छा को निर्धारित, अभिव्यक्त एवं कार्यान्वित किया जाता है। हम कह सकते हैं कि सरकार के अभाव में राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती जो राज्य को निश्चित भू-भाग में बसने वाले लोगों की सेवा करने हेतु कानूनों का निर्माण करती है, उसका निष्पादन करती है तथा उनका उचित रूप से पालन न करने वालों को दंडित कर उन्हें उचित रास्ते पर लाती है।

गार्नर ने सरकार की परिभाषा करते हुए कहा है-सरकार वह अभिकरण या मशीन है जिसके द्वारा राज्य की नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं। सामान्य मामलों को नियमित किया जाता है तथा सामान्य हितों को उन्नत किया जाता है।

केंद्र सरकार निबंधात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियों के बारे में वर्णन करें।
उत्तर:
प्रधानमंत्री को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं संसदात्मक शासन व्यवस्था में प्रधानमंत्री शासन का वास्तविक प्रधान होता है उसके नेतृत्व में ही शासन का संचालन होता है।

(i) मंत्रिपरिषद का निर्माण- अपना पद ग्रहण करने के बाद प्रधानमंत्री का सर्वप्रथम कार्य मंत्री परिषद का निर्माण करना होता है। प्रधानमंत्री ही निर्णय करता है कि वैधानिक सीमा के अंतर्गत रहते हुए मंत्रिपरिषद में कितने मंत्री हों और कौन-कौन मंत्री हो।

(ii) मंत्रियों के विभागों का बँटवारा- मंत्रियों में विभागों का बँटवारा करते समय भी प्रधानमंत्री स्वविवेक के अनुसार ही कार्य करता है और प्रधानमंत्री द्वारा किए गए अंतिम विभाग वितरण पर साधारणतया कोई आपत्ति नहीं की जाती है।

(iii) मंत्रिपरिषद का कार्य संचालन- प्रधानमंत्री की बैठकों का नेतृत्व और मंत्रिमंडल की समस्त कार्यवाही को संचालन करता है। मंत्रिपरिषद की बैठक में उन्हीं विषयों पर विचार किया जाता है जिन्हें प्रधानमंत्री कार्यसूची या एजेंडा में रखे।

(iv) शासन के विभिन्न विभागों का समन्वय- प्रधानमंत्री शासन के समस्त विभागों में समन्वय स्थापित करता है। जिससे कि समस्त शासन एक इकाई के रूप में कार्य कर सकें।

(v) लोकसभा का नेता- प्रधानमंत्री संसद का मुख्यतया लोकसभा का नेता है और कानून निर्माण के समस्त कार्य में प्रधानमंत्री ही नेतृत्व प्रदान करता है। वार्षिक बजट सहित सभी सरकारी विधेयक उसके निर्देशानुसार ही तैयार किए जाते हैं।

(vi) राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच संबंध स्थापितकर्ता- सार्वजनिक महत्व के मामलों पर राष्ट्र के प्रधान से केवल प्रधानमंत्री के माध्यम से ही संपर्क स्थापित किया जा सकता है। वही राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल के निश्चयों से परिचित कराता है और वही राष्ट्रपति के परामर्श को मंत्रिमण्डल तक पहुँचाता है।

(vii) विभिन्न पद प्रदान करना- संविधान द्वारा राष्ट्रपति को जिन उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया है, व्यवहार में उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति स्वविवेक से नहीं, वरन प्रधानमंत्री के परामर्श से ही करता है।

प्रश्न 2. राज्ससभा का गठन, राज्यसभा के सदस्यों की योग्यताएँ तथा कार्यकाल के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
राज्यसभा भारतीय संसद का द्वितीय सदन या उच्च सदन है। इसका गठन निम्न प्रकार से हुआ है

(i) सदस्य संख्या और निर्वाचन पद्धति- राज्यसभा के सदस्यों की अधिक से अधिक संख्या 250 हो सकती है परंतु वर्तमान समय में यह संख्या 245 ही है। इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा या खेल के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो। शेष सदस्य संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं और ये जनता द्वारा निर्वाचित न होकर अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। इन सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय पद्धति के अनुसार संघ के विभिन्न राज्यों और संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है।

(ii) सदस्यों की योग्यताएँ- राज्यसभा के सदस्यों के लिए वे ही योग्यताएँ हैं जो लोकसभा की सदस्यता के लिए 25 वर्ष की आयु किंतु राज्यसभा की सदस्यता के लिए 30 वर्ष या इससे अधिक की आयु होना आवश्यक है।

(iii) सदस्यों का कार्यकाल- राज्यसभा एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है और राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

3.
संसद के कार्य तथा शक्तियों के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
संविधान के द्वारा संसद को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं जो निम्न हैं

(i) विधायी शक्तियाँ- संसद का सबसे प्रमुख कार्य राष्ट्रीय हितों की दृष्टि में रखते हुए कानूनों का निर्माण करना है।
संसद को संघीय सूची में और समवर्ती सूची में उल्लेखित विषयों पर कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त है। यद्यपि समवर्ती सूची के विषयों पर संघीय संसद और राज्य विधानमंडल दोनों के द्वारा ही कानूनों का निर्माण किया जा सकता है। किंतु इन दोनों द्वारा निर्मित कानूनों में पारस्परिक विरोध होने की स्थिति में संसद द्वारा निर्मित कानून ही मान्य होंगे। संसद के द्वारा अवशिष्ट विषयों पर भी कानून का निर्माण किया जा सकता है।

(ii) संविधान में संशोधन की शक्ति- संविधान में संशोधन के संबंध में संसद को महत्वपूर्ण शक्ति प्राप्त है।
संविधान के अनुसार संविधान में संशोधन का प्रस्ताव संसद में ही प्रस्तावित किया जा सकता है, किसी राज्य के विधानमंडल में नहीं। संसद के दोनों सदनों द्वारा संविधान के अधिकांश भाग में अकेली संसद के द्वारा ही या तो सामान्य बहुमत से या पृथक-पृथक दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत से परिवर्तन किया जा सकता है। संविधान की केवल कुछ ही व्यवस्थाएँ ऐसी हैं जिनमें संशोधन के लिए भारतीय संघ के आधे राज्यों के विधानमंडलों की स्वीकृति आवश्यक होती है।

(iii) वित्तीय शक्तियाँ- जनता के प्रतिनिधि होने के नाते भारतीय संसद को राष्ट्रीय वित्त पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है और प्रतिवर्ष वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तावित बजट जब तक संसद से स्वीकार न करा लिया जाए उस समय तक आय-व्यय से संबंधित कोई कार्य नहीं किया जा सकेगा।

(iv) प्रशासनिक शक्तियाँ- भारतीय संविधान के द्वारा संसदात्मक व्यवस्था की स्थापना की गई है अतः संविधान के अनुसार संघीय कार्यपालिका अर्थात मंत्रिमंडल संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। मंत्रिमंडल संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। मंत्रिमंडल केवल उसी समय तक अपने पद पर रहता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। संसद अनेक प्रकार से कार्यपालिका पर नियंत्रण रख सकती है।

(v) निर्वाचन संबंधी शक्तियाँ- अनुच्छेद 54 के द्वारा संसद को कुछ निर्वाचन संबंधी शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए गठित निर्वाचक मंडल के अंग हैं। अनुच्छेद 66 के अनुसार संसद के दोनों सदनों के सदस्य उपराष्ट्रपति का निर्वाचन करते हैं।

4.
लोकसभा की शक्तियाँ अथवा अधिकार और कार्य के बारे में वर्णन करें।
उत्तर:
(i) संविधान के अनुसार भारतीय संसद संघीय सूची, समवर्ती सूची, अवशिष्ट विषयों और कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून का निर्माण कर सकती है। संविधान के द्वारा साधारण अवित्तीय विधेयकों और संविधान संशोधन विधेयकों के सम्बन्ध में कहा गया है कि इस प्रकार के विधेयक लोकसभा या राज्यसभा दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं और दोनों सदनों से पारित होने पर ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजे जाएँगे।

(ii) वित्तीय शक्ति- भारतीय संविधान द्वारा वित्तीय क्षेत्र के संबंध में शक्ति लोकसभा को ही प्रदान की गई है और इस संबंध में राज्यसभा की स्थिति बहुत गौण है। अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं। लोकसभा से पारित होने के बाद धन विधेयक राज्यसभा में भेजा जाता है और राज्यसभा के लिए आवश्यक है कि उसे धन विधेयक की प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अंदर-अंदर विधेयक लोकसभा को लौटा देना होगा। राज्यसभा विधेयक में संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है, लेकिन उन्हें स्वीकार करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है।

(iii) कार्यपालिका पर नियंत्रण की शक्ति- भारतीय संविधान के द्वारा संसदात्मक व्यवस्था की, स्थापना की गई है।
अत: संविधान के अनुसार संघीय कार्यपालिका अर्थात मंत्रिमंडल संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। मंत्रिमंडल केवल उसी समय तक अपने पद पर रहता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो।

(iv) संविधान संशोधन संबंधी शक्ति- लोकसभा को राज्यसभा के साथ मिलकर संविधान में संशोधन परिवर्तन का अधिकार भी प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान के अधिकांश भाग में संशोधन का कार्य | अकेली संसद के द्वारा ही किया जाता है।

(v) निर्वाचक मण्डल के रूप में कार्य- लोकसभा निर्वाचक मंडल के रूप में भी कार्य करती है। अनुच्छेद 54 के अनुसार लोकसभा के सदस्य राज्यसभा के सदस्यों तथा राज्य विधान सभाओं के सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति को निर्वाचित करते हैं।

5.
राज्यसभा के कार्य एवं शक्तियों के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर:
राज्यसभा को निम्नलिखित कार्य एवं शक्तियाँ प्राप्त हैं

(i) विधायी शक्तियाँ- लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा भी निर्माण संबंधी कार्य करती है। संविधान के द्वारा अवित्तीय विधेयकों के संबंध में लोकसभा और राज्यसभा दोनों को बराबर शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।

(ii) संविधान संशोधन की शक्ति- संविधान संशोधन के संबंध में राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्ति प्राप्त है। संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में असहमति होने पर संविधान में संशोधन का प्रस्ताव गिर जाएगा।

(iii) वित्तीय शक्ति- राज्यसभा को कुछ वित्तीय शक्ति प्राप्त है यद्यपि इस संबंध में संविधान द्वारा राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में निर्बल स्थिति प्रदान की गई है। संविधान के अनुसार धन विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जाएँगे।

(iv) लोकसभा से स्वीकृत होने पर विधेयक राज्यसभा में भेजे जाएँगे। जिसके द्वारा अधिक से अधिक 14 दिन तक इस विधेयक पर विचार किया जा सकेगा। राज्यसभा धन विधेयक के संबंध में अपने सुझाव लोकसभा को दे सकती है, लेकिन यह लोकसभा की इच्छा पर निर्भर है कि उन प्रस्तावों को माने या न माने।

(v) कार्यपालिका संबंधी शक्ति- संसदात्मक शासन व्यवस्था में मंत्रिपरिषद संसद के लोकप्रिय सदन के प्रति ही उत्तरदायी होती है। अत: भारत में भी मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्यसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं और उनकी आलोचना भी कर सकते हैं, परंतु इन्हें अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मंत्रियों को हटाने का अधिकार नहीं है।

(vi) विविध शक्तियाँ- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेना कई बड़े अधिकारियों जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीशों, महालेखापरीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, चुनाव आयोग के आयुक्त पर महाभियोग लगा सकती है।

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