Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 14 पादप ऊतक तंत्र
RBSE Class 11 Biology Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अधिचर्म ऊतक तंत्र की उत्पत्ति होती है –
(अ) रंभजन से
(ब) त्वचाजन से
(स) वल्कुटजन से
(द) कैल्पिट्रोजन से
प्रश्न 2.
पत्तियों की दोनों सतहों पर रंध्र पाये जाते हैं –
(अ) एकबीजपत्री पादपों में
(ब) मरुद्भिदों में
(स) जलोभिदों में
(द) लवणोभिदों में
प्रश्न 3.
कैस्पेरियन पट्टिका निम्न में से किसके स्थूलन से बनती है –
(अ) लिग्निन
(ब) पेक्टिन
(स) सुबेरिन
(द) सेल्यूलोस
प्रश्न 4.
अधिचर्म व अंतस्त्वचा के बीच का क्षेत्र होता है –
(अ) संवहन क्षेत्र
(ब) वल्कुट क्षेत्र
(स) रंभ क्षेत्र
(द) जाइलम क्षेत्र
प्रश्न 5.
मज्जा व मज्जा रश्मियाँ किस ऊतक की बनी होती हैं –
(अ) मृदूतक
(ब) स्थूलकोण ऊतक
(स) जाइलम
(द) दृढ़ोतक
प्रश्न 6.
ऐसा संवहन पूल जिसमें जाइलम व फ्लोएम अलग त्रिज्या पर हो कहलाता है –
(अ) अरीय
(ब) संयुक्त
(स) संकेन्द्री
(द) उभय फ्लोएमी
प्रश्न 7.
फ्लोएम केन्द्री संवहन पूल पाये जाते हैं –
(अ) डेसीना में
(ब) पर्णागों में
(स) सूरजमुखी में
(द) कुकरबिटा में
प्रश्न 8.
एकबीजी पादपों में रंध्र होते हैं –
(अ) वृक्काकार द्वार कोशिका वाले
(ब) सेम के बीज की आकृति वाले
(स) डुगडुगी या डम्बल जैसी द्वार कोशिकाओं वाले
(द) धंसे हुए रंध्र
प्रश्न 9.
मरुद्भिद पादपों में रंध्र होते हैं –
(अ) डुगी – डुगी की आकृति वाले
(ब) सेम के बीज जैसे आकृति वाले
(स) उभरे हुये
(द) धंसे हुए
प्रश्न 10.
अधिचर्म में नहीं पाये जाते हैं –
(अ) रंध्र
(ब) अन्तराकोशिक स्थल
(स) उपत्वचा
(द) त्वचारोम
उत्तरमाला:
1. (ब), 2. (अ), 3. (स), 4. (ब), 5. (अ), 6. (अ), 7. (अ), 8. (स), 9. (द), 10. (ब).
RBSE Class 11 Biology Chapter 14 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊतक तंत्र कितने प्रकार के होते हैं ? नाम लिखिए।
उत्तर:
ऊतक तंत्र तीन प्रकार के होते हैं –
- अधिचर्मी या बाह्यत्वचीय ऊतक तंत्र
- भरण ऊतक तंत्र तथा
- संवहन ऊतक तंत्र
प्रश्न 2.
उपत्वचा किस पदार्थ की बनी होती है ?
उत्तर:
उपत्वचा क्यूटिन (cutin) की बनी होती है।
प्रश्न 3.
एधा किस प्रकार के संवहन पूलों में पायी जाती है ?
उत्तर:
एधा संपार्श्विक (colettral) व द्विसंपार्श्विक (bicolletral) वर्धा (open) संवहन पूलों में पायी जाती है।
प्रश्न 4.
रंध्रयंत्र के.कौन-कौन से घटक हैं ?
उत्तर:
रंध्र छिद्र, द्वार कोशिकाएँ तथा सहायक कोशिकाएँ मिलकर रंध्रयंत्र या रंध्र उपकरण (stomatal apparatus) बनाती हैं।
प्रश्न 5.
मार्ग कोशिकाएँ कहाँ मिलती हैं ?
उत्तर:
मार्ग कोशिकाएँ अंतस्त्वचा में मिलती है। अंतस्त्वचा की मोटी भित्ति वाली कोशिकाओं के बीच कुछ पतली भित्ति वाली कोशिकाएँ प्रोटोजाइलम के अभिमुख (opposite) स्थित होती है। इन्हें मार्ग कोशिकाएँ (passage cells) कहते हैं।
प्रश्न 6.
संयुक्त संवहन पूल किन्हें कहते हैं ?
उत्तर:
जब जाइलम व फ्लोयम एक ही त्रिज्या पर होते हैं और आपस में मिलकर संवहन पूल का निर्माण करते हैं, संवहन पूल कहते हैं।
प्रश्न 7.
अपकेन्द्री जाइलम किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब जाइलम का परिवर्धन अक्ष के केन्द्रीय भाग से प्रारम्भ होकर परिधि की ओर होता है। इस प्रकार के परिवर्धन को अग्राभिसारी (acropetal) या अपकेन्द्री (centrifugal) जाइलम या परिवर्धन कहते हैं।
प्रश्न 8.
प्रथम निर्मित जाइलम का क्या नाम है ?
उत्तर:
प्रथम निर्मित जाइलम कोशिकाओं को आदिदारु या प्रोटोजाइलम (protoxylem) कहते हैं।
प्रश्न 9.
मण्ड आच्छद किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अंतस्त्वचा की कोशिकाओं में जब मण्ड कणों की उपस्थिति होती है तो इसे मण्ड आच्छद (starch sheath) कहते हैं।
RBSE Class 11 Biology Chapter 14 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊतक तंत्र की परिभाषा लिखिये।
उत्तर:
किसी विशेष कार्य को करने के लिए अनेक ऊतक (जिनका उद्गम भी समान होता है) मिलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं, ऊतकों के ऐसे समूह को ऊतक तंत्र कहते हैं।
प्रश्न 2.
बुलीफार्म कोशिकाएँ कहाँ पाई जाती हैं ? इनका क्या कार्य है ?
उत्तर:
कुछ पौधों विशेषतः एकबीजपत्री पादपों की पत्तियों में कुछ ऊपरी अधिचर्म कोशिकाएँ फूली हुई होती हैं। इन्हें बुलीफार्म कोशिकाएँ कहते हैं। ये जल संग्रह कर फूल जाती हैं जिससे पत्तियाँ खुल जाती हैं। जैसे ही ये कोशिकायें जल छोड़ती हैं त्योंही पत्तियाँ मुड़कर बन्द हो जाती हैं। उदाहरण-ग्रेमेनी कुल के पादपों की पर्ण।
प्रश्न 3.
बाह्य आदिदारुक व अन्तः आदिदारुक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाह्यआदिदारुक (Exarch) | अन्तः आदिदारुक (Endarch) |
1. यह स्थिति जड़ के संवहन पूल में पाई जाती है। | 1. स्तम्भ में पाई जाती है। |
2. इनमें आदिदारु (Protoxylem) बाहर की ओर तथा अनुदारु (Metaxylem) अन्दर की ओर स्थित होते हैं। | 2. आदिदारु अन्दर की ओर तथा अनुदारु बाहर की ओर स्थित होते है। |
3. दारु का विकास बाहर से अन्दर की ओर अग्रसर होता है। | 3. विकास अन्दर से बाहर की ओर अग्रसर होता है। |
प्रश्न 4.
वर्थी एवं अवर्थी संवहन पूलों में अन्तर बताइये।
उत्तर:
वर्षी संवहन पूल (Open vascular bundle) | अवर्षी संवहन पूल (Closed vascular bundle) |
1. द्विबीजपत्री स्तम्भ के संवहन पूल वर्षी किस्म के होते हैं। | 1. एकबीजपत्री स्तम्भ, मूल एवं पत्तियों के संवहन पूल अवर्षी होते हैं। |
2. संवहन पूल के जाइलम व फ्लोएम के बीच एधा उपस्थित होती है। | 2. अनुपस्थित होती है। |
3. संवहन पूल में एधा की उपस्थिति पर पूल वर्षी प्रकार के होते हैं। | 3. अनुपस्थिति पर अवर्षी प्रकार के होते हैं। |
4. द्वितीयक वृद्धि होती है। | 4. नहीं होती है। |
प्रश्न 5.
प्रोटोजाइलम तथा मेटाजाइलम में विभेद कीजिए।
उत्तर:
आदिदारु (Protoxylem) | अनुदारु (Metaxylem) |
1. यह पौधों के अपरिपक्व भागों में पहले बनने वाला जाइलम है। | 1. यह पौधों के विकसित भागों में आदिदारु के बाद बनता है। |
2. यह पौधे के विभिन्न भागों के विकसित होने से पहले परिपक्व हो जाता है। | 2. यह पौधे के विभिन्न भागों के विकसित होने के बाद परिपक्व होता है। |
3. आदिदारु की कोशिकाओं के विकसित होने पर चारों तरफ विकसित हो रही कोशिकाएँ दबाव डालती हैं। | 3. इसमें ऐसा नहीं होता है। |
4. इसमें टाइलोसिस (tylosis) व तन्तु नहीं मिलते हैं। | 4. इसमें टाइलोसिस व तन्तु मिलते हैं। |
5. इसमें कोशिकाभित्ति पर लिग्निन का स्थूलन वलयाकार व सर्पिलाकार होता है। | 5. इसमें जालिकावत तथा गर्ती स्थूलन मिलते हैं। |
प्रश्न 6.
बहिफ्लोयमी व उभयफ्लोयमी संवहन पूलों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
बहिफ्लोयमी संवहन पूल (Colletral vascular bundle) | उभयफ्लोयमी संवहन पूल (Bicolletral vascular bundle) |
1. इनमें जाइलम अन्दर की ओर एवं फ्लोयम बाहर की ओर विन्यासित रहता है। | 1. इनमें फ्लोयम, जाइलम के दोनों ओर स्थित होता है। |
2. द्विबीजपत्री तनों में जाइलम और फ्लोयम के बीच एधा होती है अतः पूल वर्षी (open) होते हैं परन्तु एकबीजपत्री तनों में एधा अनुपस्थित होता है, अतः पूल अवर्धा (closed) होते हैं। | 2. इनमें दो एधा होती है अर्थात् पूल सदैव वर्षी होते हैं। संवहन पूल में इनका विन्यास निम्न प्रकार से होता है-बाहरी फ्लोयम, बाहरी एधा, जाइलम, भीतरी एधा तथा भीतरी फ्लोयम। |
प्रश्न 7.
बाह्यत्वचीय अधिवृद्धियाँ कौन-कौन सी होती हैं ?
उत्तर:
अनेक पौधों में अधिचर्म की कोशिकाएँ त्वचारोम (trichomes) उत्पन्न करती हैं। इनमें मुख्यरूप से मूल अधिचर्म कोशिकाओं से एक कोशिकीय मूलरोम, तने, पत्तियों व पुष्पों के विभिन्न भागों व फलों पर उपस्थित एक या बहुकोशिक रोम स्तम्भ रोम व शल्क उत्पन्न करते हैं। मूल रोम जल अवशोषण का कार्य करते हैं तथा अन्य रोम वाष्पोत्सर्जन कम करने, आर्द्रता ग्रहण कर नमी या आर्द्रता बनाये रखने व संरक्षण प्रदान करने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 8.
मरुद्भिद पादपों में रंध्र धंसे हुए क्यों होते हैं ?
उत्तर:
मरुस्थल की वनस्पति को कम जल प्राप्त होता है तथा तापक्रम की अधिकता होने से गर्म व शुष्क हवाएँ चलती हैं। मरुद्भिद द्विबीजपत्री की पर्ण में निचली सतह पर अधिक से अधिक रंध्र उपस्थित होते हैं। इनकी पर्ण की निचली सतह में गर्त बन जाते हैं तथा इन गर्गों में रंध्र पाये जाते हैं, इन्हें गर्तीयरंध्र (sunken stomata) कहते हैं, उदाहरण – कनेर की पर्ण। इन्हीं गर्गों में अधिक संख्या में रोम भी पाये जाते हैं जो रंध्रों को ढके रखते हैं। इस स्थिति के कारण रंध्र शुष्क हवा के सम्पर्क में कम आते हैं व रोम भी इनकी रक्षा करते हैं। अतः इन पर्यों के द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया में कम से कम जल की हानि होती है व पौधा प्रतिकूल परिस्थिति में भी जीवित रहता है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 14 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अधिचर्म ऊतक तंत्र के घटक व कार्यों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
यह ऊतक तन्त्र मृदूतकी कोशिकाओं से बनता है। यह कुछ स्थानों जैसे रन्ध्र आदि को छोड़कर पौधे के सभी भागों तना, जड़, पत्ती व पुष्प को एक सतत स्तर के रूप में ढके रहती है। इसकी उत्पत्ति त्वचाजन (dermatogen) से होती है। बाह्यत्वचा प्रायः एकस्तरीय होती है, किन्तु कुछ पौधों जैसे बरगद, कनेर, रबर की पत्तियों में यह बहुस्तरीय हो जाती है। बाह्यत्वचा की कोशिकाओं के बीच में अन्तराकोशिक अवकाश नहीं पाये जाते हैं।
इनकी कोशिकाओं में एक बड़ी रिक्तिका के चारों ओर जीवद्रव्य की एक पतली परत रहती है। कोशिका भित्ति सैल्यूलोस की बनी हुई तथा लचीली होती है। इनमें हरितलवक का अभाव होता है। कुछ पौधों (जलीय पौधे, फर्न आदि) की बाह्यत्वचा कोशिकाओं एवं रन्ध्र की द्वार कोशिकाओं (guard cells) में हरितलवक उपस्थित होते हैं। कभी-कभी रेजिन, टैनिन, खनिज लवणों के क्रिस्टल भी इन कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
बाह्यत्वचा की बाहरी भित्तियाँ अपेक्षाकृत मोटी व भीतरी तथा अरीय (radial) भित्तियाँ पतली होती हैं। यह अतिरिक्त मोटाई, बाह्यत्वचा कोशिकाओं द्वारा स्रावित पदार्थ क्यूटिन (cutin) के जम जाने से बने स्तर के कारण होती है। यह अपारगम्य स्तर उपत्वचा (cuticle) कहलाता है। कभी-कभी बाह्यभित्ति पर मोम जैसा स्तर भी मिलता है जिसे ब्लूम (bloom) कहते हैं। उपत्वचा जड़ों में अनुपस्थित होती है।
अधिचर्म में उपस्थित विशिष्ट संरचनायें (Special structures present in epidermis): अधिचर्म में निम्न संरचनायें विशिष्ट रूप से पाई जाती हैं –
- रंध्र (Stomata)
- बाह्यत्वचीय या अधिचर्मी अतिवृद्धियाँ (Epidermal outgrowth)
- आवर्धत्वक कोशिकाएँ (Bulliform cells)
- जल पुटिका (Water vesicles)
- अजैव पदार्थों युक्त अधिचर्म कोशिकाएँ (Epidermal cells with ergastic substances)
1. रंध्र (Stomata):
रन्ध्र पादपों के सभी हरे, वायवीय भागों की बाह्यत्वचा पर विशेषकर पत्तियों में उपस्थित होते हैं। ये जड़ों में अनुपस्थित होते हैं। प्रत्येक रन्ध्र दो कोशिकाओं से घिरा रहता है, इन्हें द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। ये द्विबीजपत्री पादपों में सेम के बीज की तरह (अर्द्धचन्द्राकार) और घासों में मुग्दर जैसी (dumbell shaped) होती हैं। इनके जीवद्रव्य में हरितलवक होते हैं। इनकी बाहरी भित्तियाँ सामान्य परन्तु भीतरी (रन्ध्र की ओर) भित्तियाँ स्थूल होती हैं। इसी के कारण रन्ध्र बन्द व खुलते हैं।
कभी-कभी द्वार कोशिकाओं को घेरने वाली कोशिकाएँ शेष अधिचर्म कोशिकाओं से अपनी संरचना, आकार और आकृति से भिन्न होती हैं, इन्हें सहायक कोशिकाएँ (subsidiary cells) कहते हैं। रन्ध्र छिद्र (stomatal pore), द्वार कोशिकाएँ तथा सहायक कोशिकाएँ मिलकर रन्ध्र यन्त्र (stomatal apparatus) बनाती हैं। गैसों का आदान-प्रदान व वाष्पोत्सर्जन का कार्य रन्ध्रों द्वारा होता है। द्विबीजपत्री पादपों की पृष्ठाधारी पत्तियों की निचली सतह (abaxial surface) पर ही रन्ध्र पाये जाते हैं।
ऊपरी सतह पर ये अनुपस्थित अथवा बहुत कम होते हैं। ऐसी पर्यों को अधोरन्ध्री (hypostomatal) पर्ण कहते हैं। एकबीजपत्री पादपों की समद्विपार्श्विक पत्तियों में ये दोनों सतह पर बराबर संख्या में होते हैं। ऐसी पर्यों को उभयरन्ध्री (amphistomatal) पर्ण कहते हैं। जल पर तैरने वाली पत्तियों की निचली सतह और जल में डूबी पत्तियों की दोनों सतहों पर रन्ध्र नहीं पाए जाते हैं, किन्तु रन्ध्र उपस्थित भी हो तो ये कार्यहीन होते हैं। जल में तैरने वाले पौधों की पत्तियों की केवल ऊपरी सतह पर रंध्र होते हैं, ऐसी पर्ण को उपरिरन्ध्री (epistomatal) कहते हैं जैसे कमल। मरुभिदों (xerophyte) में धंसे हुए (sunken) अथवा रोमों द्वारा ढके हुए रन्ध्र पाये। जाते हैं। उदा. कनेर की पर्ण।
द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियों में रन्ध्र बिखरे हुए रहते हैं, परन्तु एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों में ये समानान्तर कतारों में व्यवस्थित रहते हैं। सामान्यतः रन्ध्र दिन में खुले तथा रात्री में बन्द हो जाते हैं। मुख्यरूप से द्वार कोशिकाओं में स्फीति दाब के परिवर्तन से ही रन्ध्रों का खुलना व बन्द होना प्रभावित होता है। रन्ध्रों की उत्पत्ति प्रोटोडर्म (Protoderm) की कोशिकाओं से होती है।कार्य: रन्ध्र के द्वारा गैसों (O2 एवं CO2) का वायुमण्डल में आदान-प्रदान तथा वाष्पोत्सर्जन क्रिया होती है।
2. अधिचर्म अतिवृद्धियाँ (Epidermal Outgrowths):
बाह्यत्वचा की कोशिकाओं पर अनेक रोम होते हैं। मूल में बाह्यत्तर को मूलत्वचा (rhizodermis) या मूलीयत्वचा या एपीब्लेमा (Epiblema) या रोमधारक या पिलीफेरस पर्त (piliferous layer) के नाम से जाना जाता है। इसमें क्यूटीकल का अभाव होता है। मूल की बाह्यत्वचा की कोशिकाओं का दीर्धीकरण होने से एककोशिकीय रोम बन जाते हैं, जिन्हें मूलरोम कहते हैं। ये जल एवं खनिज तत्वों के अवशोषण में सहायक होते हैं। तने पर पाए जाने वाले बाह्यत्वचीय रोम त्वचारोम (trichomes) कहलाते हैं। प्ररोह तन्त्र में यह त्वचारोम बहुकोशिकीय होते हैं। ये शाखित या अशाखित तथा कोमल या नरम हो सकते हैं, स्रावी हो सकते हैं। ये वाष्पोत्सर्जन से होने वाले जल की हानि को रोकते हैं तथा आर्द्रता ग्रहण कर नमी बनाये रखते हैं व संरक्षण प्रदान करने का कार्य करते हैं।
3. आवर्धत्वक कोशिकाएँ या बुलीफॉर्म कोशिकाएँ (Bulliform cells):
एकबीजपत्री पादपों की पत्तियों को बाह्यत्वचा की कुछ कोशिकायें पतली भित्ति की, बड़ी व रिक्तायुक्त, एककेन्द्रकी, गोलाकार तथा गुब्बारे जैसी होती हैं, इन्हें आवर्धत्वक या बुलीफॉर्म (Bulliform = bubble like) कोशिकायें या मोटर कोशिकाएँ (Motor cells) कहते हैं। इन कोशिकाओं में जल का संग्रह होता है अतः ये स्फीति (turgidity) में परिवर्तन के कारण वातावरण के अनुसार पत्तियों के खुलने व बन्द होने में सहायता करती है। जल की कमी होने पर पर्ण स्वतः ही अन्दर की ओर मुड़ जाती है। इस प्रकार ये प्रेरक कोशिकाओं की भाँति कार्य करती हैं। तथा जल हानि को रोकने में सहायक होती है।
4. जल पुटिकाएँ (Water vesicles):
कुछ पौधों की पर्ण की अधिचर्म कोशिका बड़ी होकर जल का संग्रह करती है। इन्हें आशयवत या थैलीनुमा रोम (Vesciculate hairs) भी कहते हैं। आशयी रोम में जल सूखकर समाप्त हो जाने पर पर्ण की सतह पर सफेद चूर्ण की पतली परत के रूप में लवण शेष रहता है उदाहरण लवणमृदोभिद पादप एट्रीप्लेक्स।
5. अजैव पदार्थों युक्त अधिचर्म की कोशिकाएँ (Epidermal cells with ergastic substances):
पौधों की अधिचर्म कोशिकाओं की बाहरी भित्ति पर अनेक पदार्थों जैसे मोम, तेल, रेजिन व क्रिस्टल रूप में लवण व सिलिका कण भी। विद्यमान रहते हैं। ऐसे अजैव पदार्थों युक्त कुछ विशिष्ट कोशिकायें निम्न प्रकार से हैं –
- सिलिकोसाइट (Silicocyte): इनमें सिलिका का निक्षेपण पाया जाता है, उदाहरण – इक्वीसीटम।
- अश्मकोशिका या लिथोसाइट्स (Lithocyte): बरगद (ficus) की बाह्यत्वचा कोशिकाओं में CaCO3 से निर्मित अंगूरे जैसा गुच्छा बनता है, जिसे सिस्टोलिथ (Cystolith) कहते हैं और जिन कोशिकाओं में सिस्टोलिथ पाया जाता है। उन्हें लिथोसाइट्स (lithocytes) कहते हैं।
- मायरोसीन कोशिकाऐं (Myrosine cells): कुछ कोशिकाएँ मिरिसिन एन्जाइम की उपस्थिति के कारण फूल जाती हैं, जिन्हें मायरोसीन कोशिकायें कहते हैं। उदाहरण – क्रुसीफेरी (ब्रेसीकेसी) कुल के कुछ पादप।
- दृढ़ीकृत कोशिकाएँ (Sclerotic cells): कुछ बीजों के बाह्य चोल की अधिचर्म कोशिकायें दृढ़ीकृत होकर स्केलेरॉइड में परिवर्तित हो जाती हैं। ऐसी कोशिकाओं को दृढ़ीकृत कोशिकाएँ कहते हैं। उदाहरण – मूंग, उड़द व अरण्ड के बीज चोल।
प्रश्न 2.
वल्कुट में पाये जाने वाले विभिन्न क्षेत्रों के कार्य बताते हुए नाम स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वल्कुट (Cortex): यह बाह्यत्वचा तथा परिरम्भ के बीच स्थित होता है। इसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है –
(अ) अधस्त्वचा (Hypodermis):
यह बाह्यत्वचा के नीचे होती है। यह स्थूलकोणोतक (द्विबीजपत्री), दृढ़ोतक (एकबीजपत्री) अथवा दोनों प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनती है। यह अनेक कोशिकीय मोटी परत हो सकती है। जड़ में अधस्त्वचा नहीं होती। यह पौधे को यांत्रिक शक्ति प्रदान करता है तथा आंतरिक भागों की रक्षा करने में भी सहायक होती है।
(ब) सामान्य वल्कुट (General cortex):
यह अधस्त्वचा तथा अन्तस्त्वचा के बीच का भाग है। यह बहुस्तरीय होता है तथा यह मृदूतक कोशिकाओं से बना होता है। कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिक अवकाश उपस्थित होता है। कुछ पादपों में हरितलवकयुक्त ऊतक अथवा वायुतक (aernchyma) भी होते हैं। सामान्य वल्कुट में रेजिन नलिकाएँ, म्यूसीलेज नलिकाएँ, लैटेक्स वाहिकाएँ आदि भी मिलती हैं। इस स्तर का मुख्य कार्य भोजन संग्रह करना है।
(स) अन्तस्त्वचा (Endodermis):
यह वल्कुट की सबसे अन्दर वाली परत होती है। यह एक स्तर व मृदूतक कोशिकाओं से बनी होती है। कोशिकाओं में अन्तरकोशिक अवकाश नहीं होते तथा अनुप्रस्थ काट में ये ढोलकाकार दिखाई देते हैं। द्विबीजपत्री तने में मण्ड कणों की उपस्थिति के कारण इस परत को मण्ड आच्छद (starch sheath) भी कहते हैं। प्रत्येक कोशिका की अरीय (radial) भित्ति पर सुबेरिन के जमने से पट्टियाँ बन जाती हैं। इसे कैस्पेरियन पट्टियाँ (casparian strips) कहते हैं।
इनकी खोज केस्पेरी (Caspery) ने की थी। जड़ों में यह स्थूलन कोशिका के चारों ओर मिलता है। इन मोटी भित्ति वाली कोशिकाओं के बीच कुछ पतली भित्ति वाली कोशिकाएँ प्रोटोजाइलम के अभिमुख (opposite) स्थित होती हैं, इन्हें मार्ग कोशिकाएँ (passage cells) कहते हैं। इनसे जल प्रवेश करता है। अन्तस्त्वचा संवहन ऊतक व सामान्य वल्कुट के बीच जलरोधी जैकेट (water tight jacket) का कार्य करती है।
प्रश्न 3.
निम्नांकित में अन्तर बताइये –
(i) अरीय, संयुक्त व संकेन्द्री संवहन पूल
(ii) जाइलम व फ्लोयम
उत्तर:
(i) अरीय, संयुक्त व संकेन्द्री संवहन पूलों में अन्तर –
अरीय संवहन पूल (Radial Vascular Bundle) | संयुक्त संवहन पूल (Conjoint Vascular Bundle) | संकेन्द्री संवहन पूल (Concentric Vascular Bundle) |
1. इस प्रकार के संवहन पूल जड़ों में पाये जाते हैं। | 1. ये तने में पाये जाते हैं। | 1. ये पर्ण व टेरिडोफाइट्स की फर्मों में पाये जाते हैं। |
2. जाइलम व फ्लोयम अलग-अलग त्रिज्याओं पर एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। | 2. जाइलम व फ्लोयम एक ही त्रिज्या पर होते हैं तथा दोनों मिलकर संवहन पूल बनते हैं। | 2. इनमें जाइलम व फ्लोयम दोनों एक संवहन पूल में होते हैं किन्तु इन दोनों में से एक केन्द्र में तथा दूसरा बाह्य होता है। |
3. ये अवर्षी होते हैं। | 3. ये वर्दी होते हैं किन्तु एक बीजपत्री तने में अवर्षी होते हैं। | 3. अवर्षी होते हैं। |
4. जाइलम परिवर्धन बाह्यआदिदारुक (exarch) या अभिकेन्द्री (centripetal) होता है। | 4. जाइलम परिवर्धन अन्त: आदिदारुक (endarch) या अपकेन्द्री (centrifugal) होता है। | 4. इनमें मध्यादिदारुक (mesarch) तथा विभेदन दोनों प्रकार का अभिकेन्द्री या अपकेन्द्री होता है। |
(ii) जाइलम व फ्लोयम में अन्तर (Differences in Xylem and Pholem) –
जाइलम (Xylem) | फ्लोयम (Pholem) |
1. यह जटिल व कठोर ऊतक है। | 1. यह जटिल व कोमल ऊतक है। |
2. यह जल संवाहक ऊतक (water conducting tissue) है। | 2. यह खाद्य पदार्थ संवाहक ऊतक है। |
3. इसमें संवहन का मार्ग पौधे में नीचे से ऊपर का होता है। | 3. संवहन का मार्ग ऊपर से नीचे की ओर होता है। |
4. इसमें चार घटक होते हैं – वाहिनिकाएँ, वाहिकाएँ, काष्ठ मृदूतक तथा काष्ठ तन्तु। | 4. इसमें भी चार घटक होते हैं-चालनी नलिकाएँ, सहकोशिकायें, फ्लोयम मृदूतक तथा फ्लोयम तन्तु। |
5. इनमें चार घटकों में से केवल काष्ठ मृदूतक सजीव होते हैं व शेष तीन मृत ऊतक होती है। | 5. इसमें भी चार घटकों में से फ्लोयम तन्तु मृत होते हैं शेष तीनों घटक सजीव होते हैं। |
प्रश्न 4.
विभिन्न प्रकार के संवहन पूलों को चित्र सहित समझाइये।
उत्तर:
यह फ्लोयम तथा जाइलम से मिलकर बनता है। फ्लोयम एवं जाइलम मिलकर संवहन पूल (vascular bundle) बनाते हैं। एक द्विबीजपत्री स्तम्भ के पूर्ण विकसित संवहन पूल के तीन भाग (जाइलम, फ्लोयम तथा एधा) होते हैं।
(i) जाइलम (Xvlem):
सर्वप्रथम बनने वाले जाइलम कोशिकाओं को आदिदारु (Protoxylem) कहते हैं। ये कोशिकाएँ लम्बाई तथा व्यास में छोटी होती हैं। बाद में परिवर्धित जाइलम अनुदारु (Metaxvlem) कहलाता है। ये लम्बाई तथा व्यास में अधिक होती हैं। जाइलम का परिवर्धन तीन प्रकार से हो सकता है –
(अ) बाह्यआदिदारुक (Exarch): इसमें जाइलम परिवर्धन का प्रारम्भ अक्ष के परिधीय भाग से क्रमशः केन्द्र की ओर होता है अर्थात् आदिदारु बाहर की ओर बनता है। ऐसे परिवर्धन को अभिकेन्द्री (centripetal) परिवर्धन कहते हैं। यह स्थिति प्रायः जड़ों में पाई जाती है।
(ब) अन्तः आदिदारुक (Endarch): इसमें जाइलम परिवर्धन अक्ष के केन्द्र से क्रमशः बाहर की ओर होता है अर्थात् प्रोटोजाइलम केन्द्र की ओर बनता है। ऐसे परिवर्धन को अपकेन्द्री (centrifugal) कहते हैं। यह स्थिति प्रायः तनों में पाई जाती है।
(स) मध्यादिदारुक (Mesarch): जब आदिदारु को अनुदारु (metaxylem) चारों ओर से घेर लेता है या जाइलम का विभेदन दोनों दिशाओं में अर्थात् अभिकेन्द्री व अपकेन्द्री होता है तो ऐसे परिवर्धन को मध्यादिदारुक कहते हैं। उदाहरण – फर्ना (Ferns) में तथा पर्ण में।
(ii) फ्लोयम (Phloem):
प्रथम निर्मित फ्लोयम आदिपोषवाह या प्रोटोफ्लोयम (Protophloem) तथा बाद में निर्मित अनुपोषवाह या मेटाफ्लोयम (Metaphloem) कहलाता है।
(iii) एधा (Cambium):
यह जाइलम तथा फ्लोयम के मध्य स्थित होता है। यह प्राथमिक विभज्योतक से बना होता है। इसकी कोशिकाएँ आयताकार व पतली भित्तियुक्त होती हैं। पादप शरीर में इसकी स्थिति पार्श्व (lateral) होती है। इसके उपस्थित होने पर संवहन पूल को वर्धा (open) तथा अनुपस्थित होने पर अवर्षी या बन्द (closed) कहते हैं। संवहन पूलों के प्रकार (Types of Vascular Bundles) संवहन पूलों में स्थित जाइलम व फ्लोयम की स्थिति के आधार पर संवहन पूल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –
(अ) अरीय संवहन पूल (Radial vascular bundles): इसमें जाइलम एवं फ्लोयम अलग-अलग त्रिज्याओं पर एकान्तर क्रम में पाए जाते हैं। इस प्रकार के पूल मुख्यतः जड़ों में पाए जाते हैं। इसमें जाइलम सदैव बाह्य आदिदारुक (exarch) होता है।
( ब ) संयुक्त संवहन पूल (Conjoint vascular bundles): जब जाइलम एवं फ्लोयम एक ही त्रिज्या पर होते हैं। और आपस में मिलकर संवहन पूल का निर्माण करते हैं। ये प्रायः स्तम्भों में पाए जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं –
- बहिःफ्लोयमी या संपार्शिवक (Collateral): ये अधिकतर पौधों के तनों में मिलते हैं, इनमें जाइलम केन्द्र की ओर व फ्लोयम बाहर की ओर स्थित होता है। ये द्विबीजपत्री तने में वर्धा (open) तथा एकबीजपत्री तने में अवर्धा (closed) होते हैं।
- उभयफ्लोयमी या द्विसंपार्शिवक (Bicollateral): ऐसे संवहन पूल में जाइलम के दोनों ओर (केन्द्र व परिधि) की ओर फ्लोयम होता है। ये पूल सदैव वर्धा (open) होते हैं। एक संवहन पूल में इनका विन्यास निम्न प्रकार से होता है-बाहरी फ्लोयम, बाहरी एधा, जाइलम, भीतरी एधा तथा भीतरी फ्लोयम। ये कुकरबिटेसी कुल के सदस्यों में प्रमुख रूप से पाये जाते हैं।
(स) संकेन्द्री (Concentric): ये दो प्रकार के होते हैं।
- जाइलम केन्द्री या दारुकेन्द्री (Amphiciribal): जब जाइलम केन्द्र में व फ्लोयम के द्वारा घिरा हुआ होता है जैसे कुछ फर्न (ferns) में।
- पलोयम केन्द्री या पोषवाहकेन्द्री (Amphivasal): इसमें फ्लोयम केन्द्र में तथा जाइलम द्वारा घिरा होता है। जैसे – युक्का (Yucca), ड्रेसीना (Dracaena)। संकेन्द्री पूलों में एधा कभी नहीं होती है अर्थात् अवर्धा (closed) होते हैं।
Leave a Reply