Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 15 जड़, तना तथा पत्ती की आंतरिक संरचना
RBSE Class 11 Biology Chapter 15 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
केस्पेरियन पट्टियाँ पायी जाती है –
(अ) क्यूटिकल में
(ब) सामान्य वल्कुट में
(स) अंतःस्त्वचा में
(द) मज्जा में
प्रश्न 2.
द्विबीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काट में हम देख सकते हैं –
(अ) बिखरे संवहन पूल
(ब) वलय में व्यवस्थित संवहन पूल
(स) अरीय संवहन पूल
(द) अवर्षी संवहन पूल
प्रश्न 3.
एकबीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काटे में संवहन पूल –
(अ) बिखरे होते हैं
(ब) वलय में व्यवस्थित
(स) वर्धी होते हैं
(द) अरीय संवहन पूल
प्रश्न 4.
मूलों में संवहन पूल होते हैं –
(अ) संयुक्त
(ब) संपार्श्विक
(स) वर्धा
(द) अरीय
प्रश्न 5.
पर्ण मध्योतक होता है –
(अ) हरितमृदूतकी
(ब) दृढ़ोतकी
(स) विभज्योतकी
(द) बुलीफॉर्म कोशिकाओं से बना
उत्तरमाला:
1. (स), 2. (ब), 3. (अ), 4. (द), 5. (अ)
RBSE Class 11 Biology Chapter 15 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मूल में किस प्रकार के संवहन पूल पाये जाते हैं ?
उत्तर:
अरीय (radial) प्रकार के संवहन पूल पाये जाते हैं।
प्रश्न 2.
संयोजी ऊतक क्या होता है ?
उत्तर:
जाइलम व फ्लोयम के मध्य उपस्थित ऊतक को संयोजी ऊतक कहते हैं।
प्रश्न 3.
रोमिल परत किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मूल की बाह्यत्वचा को रोमिल परत कहते हैं।
प्रश्न 4.
जाइलम या आदिदारुक की संख्या के आधार पर रंभ कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर:
एक आदिदारुक (monarch) से छह आदिदारुक (hexarch) तथा इससे अधिक होने पर बहुआदिदारुक (polyarch) प्रकार का होता है।
प्रश्न 5.
एकबीजपत्री स्तम्भों में संवहन पूल किस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं?
उत्तर:
इन स्तम्भों में संवहन पूल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।
प्रश्न 6.
द्विबीजपत्री स्तम्भों में संवहन पूल किस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं ?
उत्तर:
संवहन पूल एक वलय में व्यवस्थित रहते हैं।
प्रश्न 7.
कठोर बास्ट या हार्डबास्ट कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर:
स्तम्भ में संवहन पूलों के बाहर की ओर परिरंभ दृढ़ोतकी हो जाता है, इन दृढ़ोतकी समूहों को कठोर बास्ट या हार्डबास्ट कहते हैं।
प्रश्न 8.
भरण ऊतक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एकबीजपत्री स्तम्भ में संवहन पूलों को छोड़कर अधःस्त्वचा से स्तम्भ के केन्द्रीय भाग तक का समस्त ऊतक भरण ऊतक कहलाता है।
प्रश्न 9.
लयजात गुहिका किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एक बीजपत्री स्तम्भ में संवहन पूल में कुछ प्रोटोजाइलम वाहिकाओं व मृदूतक कोशिकाओं के विघटित होने से प्रोयेजाइलम वाहिकाओं के नीचे केन्द्र की ओर लयजात गुहिका का निर्माण होता है। इसमें जल भरा होता है।
प्रश्न 10.
पृष्ठाधारी पर्णो की ऊपरी बाह्यत्वचा पर रंध्र प्रायः अनुपस्थित होते हैं। इस स्थिति का पादपों को क्या लाभ है ?
उत्तर:
पृष्ठाधारी पर्णो की ऊपरी सतह पर सूर्य का प्रकाश निचली सतह की तुलना में अधिक पड़ता है। अतः ऊपरि बाह्यत्वचा पर रंध्र कम होने से न्यून वाष्पोत्सर्जन होता है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मूल के संरचना के प्रमुख आंतरिक लक्षण लिखिए।
उत्तर:
जड़ों की बाह्य परत को मूलत्वचा या रोमिल परत कहते हैं जिस पर एककोशिकीय रोम होते हैं, इन्हें ही मूलरोम कहते हैं। क्यूटिकल व अधस्त्वचा का अभाव होता है। वल्कुट मृदूतकीय व अन्तस्त्वचा स्पष्ट होती है। संवहन पूल अरीय होते हैं तथा जाइलम का विकास बाह्यआदिदारुक होता है। द्विबीजपत्री मूल में छः तक संवहन पूल होते हैं। परन्तु एकबीजपत्री में छः से अधिक होते हैं। जाइलम व फ्लोएम के मध्य उपस्थित मृदूतक को संयोजी ऊतक कहते हैं।
प्रश्न 2.
एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री मूलों में कैसे विभेद करेंगे?
उत्तर:
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री मूल में अन्तर (Differences in Monocot and Dicot Root):
लक्षण | एकबीजपत्री (Monocot Root) | द्विबीजपत्री मूल (Dicot Root) |
1. वल्कुट (Cortex) | 1. कम विकसित होता है। | 1. अधिक विकसित होता है। |
2. अन्तस्त्वचा (Endodermis) | 2. कोशिकाओं में कैस्पेरियन पट्टिकायें अरीय व स्पर्शरेखीय भित्तियों पर होती हैं, अतः इनमें मार्ग कोशिकायें स्पष्ट होती है। | 2. कोशिकाओं की भित्तियाँ पतली होती हैं, इनमें अरीय भित्तियों पर कैस्पेरियन पट्टिकायें होती हैं अतः मार्ग कोशिकायें स्पष्ट नहीं होती। |
3. परिरम्भ (Pericycle) | 3.इनसे केवल पावं मूलों (lateral roots) का निर्माण होता है। | 3.पार्श्व मूलों के निर्माण के अतिरिक्त संवहन एधा (vascular cambium) व कार्क एधा का निर्माण भी इससे ही होता है। |
4. संवहन पूल (Vascular bundle) | (i) प्रायः 6 से अधिक होते हैं। | (i) प्राय: 2 से 6 तक होते हैं। |
(ii) एधा का निर्माण नहीं होता, इससे द्वितीयक वृद्धि नहीं होती। | (ii) बाद में एधा का निर्माण होता है, इससे द्वितीयक वृद्धि होती है। | |
5. मज्जा (Pith) | 5. सुविकसित होता है। | 5. अल्पविकसित होता है। |
प्रश्न 3.
एकबीजपत्री मूल के T-S. का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
द्विबीजपत्री स्तम्भ के T.S. का चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 5.
एकबीजपत्री पर्ण की विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
एकबीजपत्री पर्ण समद्विपार्श्विक होती है। इसकी दोनों बाह्यत्वचा (नीचे व ऊपर की) समान मोटाई की तथा रंध्र भी समान संख्या में होते हैं। कभी-कभी ऊपरी बाह्यत्वचा में कुछ कोशिकायें विशेष रूप से बड़ी व रंगहीन होती हैं, इन्हें बुलीफार्म (Bulliform) कोशिकाएँ कहते हैं। पर्णमध्योतक स्पंजी प्रकार की तथा संवहन पूल संयुक्त, बहिफ्लोएमी व अवर्धा (closed) होते हैं। संवहन पूल के चारों ओर मृदूतकी बंडल आच्छद (bundle sheath) होती है जिसमें मण्डकण होते हैं।
प्रश्न 6.
पर्ण मध्योतक क्या होता है ? द्विबीजपत्री पर्ण में यह किन क्षेत्रों में विभक्त रहता है ?
उत्तर:
पर्ण की ऊपरी व निचली बाह्यत्चा के बीच का क्षेत्र पर्णमध्योतक होता है। इसमें हरितलवकयुक्त मृदूतकी कोशिकायें मिलती हैं। द्विबीजपत्री की पृष्ठाधारी पर्ण के पर्ण मध्योतक में स्पष्ट विभेदन पाया जाता है। ऊपर की ओर खम्भाकार ऊतक तथा नीचे की ओर स्पंजी ऊतक होती हैं। खम्भाकार ऊतक की कोशिकायें सटी हुई व्यवस्थित रहती हैं। तथा अन्तराकोशिक अवकाशों का अभाव होता है जबकि स्पंजी ऊतक में प्रचुर रूप से अन्तराकोशिक अवकाश पाये जाते हैं। एकबीजपत्री पादपों की पत्तियाँ समद्विपाश्र्वपर्ण होती है जिसके पर्णमध्योतक में विभेदन नहीं होता तथा सम्पूर्ण पर्णमध्योतक स्पंजी ऊतक से भरा होता है।
प्रश्न 7.
पृष्ठाधारी पर्ण की निचली सतह का रंग हल्का हरापीला क्यों होता है ?
उत्तर:
पृष्ठाधारी पर्ण द्विबीजपत्री पादपों में मिलती है। पत्तियों की ऊपरी सतह को सूर्य का प्रकाश अधिक तथा निचली सतह को कम सूर्य प्रकाश प्राप्त होता है। हरितलवक सूर्य के प्रकाश प्राप्ति के आधार पर विकसित होते हैं। अतः पर्ण की निचली सतह को कम सूर्य का प्रकाश मिलने से हरितलवक कम विकसित होने से हरी-पीली होती है।
प्रश्न 8.
पूल आच्छद किसे कहते हैं ? एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री पूल आच्छदों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
पूल आच्छद केवल एकबीजपत्री स्तम्भ में ही होते हैं। क्योंकि संवहन पूल वलय में व्यवस्थित न होकर भरण ऊतक में बिखरे होते हैं। इस कारण संवहन पूलों को अपनी रक्षा हेतु एक आवरण की आवश्यकता होती है। यह आवरण पूल आच्छद होता है। इसमें प्रत्येक संवहन पूल एक दृढ़ोतकी पूलाच्छ से घिरा होता है। यह पूल के बाहरी व भीतरी सिरे की ओर अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा पार्श्व में 2 – 3 कोशिका मोटा होता है। द्विबीजपत्री स्तम्भ में संवहन पूल अन्तस्त्वचा व परिरंभ होने के कारण एक वलय में व्यवस्थित रहते हैं किन्तु इन पर पूल आच्छद नहीं होता है।
प्रश्न 9.
एकबीजपत्री स्तम्भ व द्विबीजपत्री स्तम्भ की अनुप्रस्थ काट में दिखाई देने वाला अन्तर बताइये।
उत्तर:
एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री तनों की आन्तरिक संरचना में अन्तर (Differences between Monocot and Dicot Stems):
लक्षण | एकबीजपत्री स्तम्भ (Monocot Stem) | द्विबीजपत्री स्तम्भ (Dicot Stem) |
1. बाह्यत्वचा (Epidermis) | 1. उपस्थित, कोशिकायें तुलनात्मक छोटी तथा रोमरहित होती है। | 1. उपस्थित, कोशिकायें बड़ी तथा बहुकोशिकीय रोमयुक्त होती हैं। |
2. अधस्त्वचा (Hypodermis) | 2. दृढ़ोतक की (sclernchymatous) होती हैं। | 2. प्रायः स्थूलकोणोतक (collenchymatous) की बनी होती है। |
3. वल्कुट (Cortex) | 3. अनुपस्थित होता है, इसके स्थान पर भरण ऊतक होता है जिसमें अधस्त्वचा से मज्जा तक मृदूतकीय कोशिकायें फैली रहती हैं। | 3. मूदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। |
4. अन्तस्त्वचा (Endodermis) | 4. अनुपस्थित | 4. एक परत की मण्डयुक्त कोशिकाओं से बनी होती हैं। |
5. परिरम्भ (Pericycle) | 5. अनुपस्थित | 5. मृदूतक्रीय यी दृढ़ोतक की बनी होती है। |
6. मज्जा किरणे (Medullary rays)
मज्जा (Pith) |
6. अनुपस्थित
अनुपस्थित |
6. संवहन पूलों के बीच-बीच में मृदूतकीय कोशिकाओं से बनी होती हैं! तने के केन्द्र में स्थित मृतूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। |
7. संवहन पूल (Vascular bundle) | (i) बिखरे होते हैं। | (i) वलय (ring) में व्यवस्थित होते हैं। |
(ii) संवहन पूल संयुक्त (conjoint), संपाश्विक (colletial), बन्द या अवर्धा (closed) होते हैं। | (ii) संयुक्त, संपाश्विक था बाइकोलेटरल (bicolletral) व खुले या वर्षी (open) होते हैं। | |
(iii) बाहर की ओर के पूल संख्या में अधिक परन्तु आकार में छोटे तथा अन्दर के अर्थात् तने के केन्द्र वाले पूल संख्या में कम परन्तु आकार में बड़े होते हैं। | (iii) आकार में सभी पूल.समान होते हैं। | |
(iv) संवहन पूल अण्डाकार आकृति के होते हैं। | (iv) वेज आकार (Wedge – shaped) के होते हैं। | |
(v) पूल पर पूल आच्छद (bundle sheath) होती है। | (v) अनुपस्थित होती है। | |
(vi) फ्लोयम मृदूतक अनुपस्थित होती है। | (vi) उपस्थित होती है। | |
(vii) जाइलम Y या V के रूप में स्थित होता है। | (vii) अरीय (radial) पंक्तियों में व्यवस्थित होता है। | |
8. मज्जा (Pith) | 8. अनुपस्थित होती है। | 8. केन्द्र में यह मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। |
9. द्वितीयक वृद्धि | 9. अनुपस्थित होती है। | 9. उपस्थित होती है। |
RBSE Class 11 Biology Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
द्विबीजपत्री मूल की आन्तरिक संरचना का सचित्र वर्णन करते हुए द्विबीजपत्री व एकबीजपत्री मूलों के संवहन पूलों में अन्तर बताइये।
उत्तर:
द्विबीजपत्री मूल की आन्तरिक संरचना (Inter Emal structure of Dicot root):
इसमें निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई पड़ती हैं –
- मूलीय त्वचा (Epiblema): इसे रोमिल पर्त (piliferous layer) भी कहते हैं। यह सजीव कोशिकाओं की एक परत होती है, इस पर एककोशिक मूल रोम होते हैं। इस पर रन्ध्र तथा उपत्वचा (cuticle) अनुपस्थित होते हैं।
- बल्कुट (Cortex): यह अनेक कोशिकीय मोटा स्तर होता है। यह मृदूतकी, पतली भित्तियों वाली तथा अन्तराकोशिक अवकाशों से परिपूर्ण कोशिकाओं से बना होता है। कुछ पौधों की पुरानी जड़ों में मूलीय त्वचा के नष्ट हो जाने पर वल्कुट की बाहरी कोशिकाएँ क्यूटिनयुक्त (cutinized) यो लिग्नीभूत (lignified) होकर रक्षक आवरण बनाती हैं, इस स्तर को बाह्यमूलत्वचा (exodermis) कहते हैं। वल्कुट की सबसे अन्दर की परत को अन्तस्त्वचा (endodermis) कहते हैं। अन्तस्त्वचा की कोशिकाएँ ढोलकाकार व आपस में सटी होती हैं। इनकी भीतरी व अरीय भित्तियों पर कैस्पेरियन पट्टियों का स्थूलन होता है। प्रोटोजाइलम के सामने पथ कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं।
- अंतस्त्वचा (Endodermis): यह वल्कुट की सबसे भीतरी परत होती है। यह आपस में सटी ढोलकाकार कोशिकाओं की एक परत होती है। इनकी कोशिकाओं में कैस्पेरियन पट्टियाँ उपस्थित होती हैं। कोशिकाओं की अरीय व अनुप्रस्थ भित्तियों पर लिग्निने या सुबेरिन का स्थूलन होता है परन्तु प्रोटोजाइलम के सम्मुख कोशिकाओं पर यह स्थूलन नहीं होता है व इन कोशिकाओं को मार्ग कोशिकाएँ कहते हैं। मार्ग या पथ कोशिकाएँ जल व लवणों का अरीय संवहन वल्कुट से जाइलम को करती हैं। इन कोशिकाओं में मण्ड कण उपस्थित होते हैं।
- परिरम्भ (Pericycle): यह रम्भ की सबसे बाहरी परत तथा अन्तस्त्वचा के नीचे स्थित होती है। यह एक कोशिकीय मोटा व मृदूतकीय होता है। इसी से पाश्र्व मूल बनती हैं।
- संवहन पूल (Vascular bundle): ये परिरम्भ के अन्दर घेरे में व्यवस्थित रहते हैं। संवहन पूल अरीय (radial), जाइलम बाह्य आदिदारुक (exarch) होता है। पूलों की संख्या 2 से 6 तक होती है। आदिदारु की संख्या के आधार पर द्विआदिदारुक (diarch), त्रिआदिदारुक (triarch) जब तीन हों, चतुरादिदारुक (tetrarch) जब चार हों, पंचादिदारुक (pentarch) व षटादिदारुक (hexarch) आदि कहते हैं। जाइलम व फ्लोयम के मध्य संयोजी ऊतक (conjunctive tissue) उपस्थित होती है।
- मज्जा (Pith): मज्जा अनुपस्थित या बहुत कम होती है।
द्विबीजपत्री व एकबीजपत्री मूलों के संवहन पूलों में अन्तर –
द्विबीजपत्री | एकबीजपत्री |
1. संवहन पूल प्राय: 2 से 6 तक होते हैं। | 1. प्राय: 6 से अधिक होते हैं। |
2. आदिदारु की संख्या के आधार पर द्विआदिदारुक (diarch), होते हैं। त्रिआदिदारुक (triarch), चतुरादिदारुक (tetrarch) व Penta तथा hexarch होते हैं। | 2. ये बहुआदिदाक (Pohyarch) होते हैं। |
3. इनमें बाद में एधा बनती है। | 3. नहीं बनती । |
प्रश्न 2.
एकबीजपत्री स्तम्भ के T. S. का सचित्र वर्णन करते हुए एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री स्तम्भों के वल्कुट में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एकबीजपत्री तने की आन्तरिक संरचना (Internal structure of monocot stem):
एकबीजपत्री तने के उदाहरण स्वरूप मक्की (Zea mavs) के तने की अनुप्रस्थ काट को सूक्ष्मदर्शी में देखने के उपरान्त निम्न संरचनायें व्यवस्थित होती हैं –
(i) बाह्यत्वचा (Epidermis): यह कोशिकाओं की एक परत होती है। बाह्यत्वचीय रोम अनुपस्थित होते हैं, कहीं कहीं पर रंध्र होते हैं तथा क्यूटिकल की मोटी परत होती है।
(ii) अधस्त्वचा (Hypodermis): बाह्य त्वचा के नीचे दोचार परत की दृढ़ोतक कोशिकाओं की परत होती है।
(iii) भरण ऊतक (Ground tissue):
अधस्त्वचा से केन्द्र तक मृदूतक कोशिकायें होती हैं, इसे भरण ऊतक कहते हैं तथा इसमें संवहन पूल बिखरे रहते हैं। भरण ऊतक वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरम्भ व मज्जा में विभक्त नहीं होती। इसकी कोशिकाएँ केन्द्र में बड़ी व परिधि की ओर क्रमशः छोटी होती जाती है। घास कुल के पादपों में केन्द्रीय भाग खोखला हो जाता है, इसे मज्जा गुहा कहते हैं।
(iv) संवहन पूल (Vascular bundle):
संवहन पूल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं। किनारे के पूल संख्या में अधिक एवं आकार में छोटे तथा अन्दर के पूल संख्या में कम एवं आकार में बड़े होते हैं। प्रत्येक संवहन पूल संयुक्त (conjoint), संपाश्विक तथा अवध (closed) होते हैं। संवहन पूल को दृढ़ोतक कोशिकाओं से बना पूलाच्छद (bundle sheath) ढके रखता है व सुरक्षा प्रदान करता है परन्तु पूलाच्छद ऊपर व नीचे अधिक विकसित होता है। संवहन पूल में जाइलम व फ्लोयम ही होते हैं, इनमें निम्न लक्षण मिलते हैं।
(v) जाइलम (Xylem):
यह Y या V के आकार का होता है। इसमें दो अनुदारु वाहिकायें (vessels) भुजाएँ तथा एक या दो आदिदारु वाहिकायें (protoxylem vessels) आधार बनाती है। अतः संवहन पूल अंतः आदिदारुक (endarch) होते हैं। इस प्रकार अनुदारु तथा आदिदारु Y के रूप में व्यवस्थित रहते हैं। अनुदारु वाहिकाओं में गर्ती (pitted) तथा आदिदारु वाहिकाओं में स्पाइरल (spiral) व वलयाकार (annular) स्थूलन होता है। आदिदारु के नीचे (अन्दर की ओर) कुछ वाहिकायें व मृदूतकी कोशिकाओं के नष्ट हो जाने से लयजात गुहिका या जल गुहिका (lysigenous cavity or water containing cavity) का निर्माण हो जाता है। उसके आस-पास मृदूतकीय कोशिकायें होती
(vi) फ्लोयम (Phloem):
यह केवल चालनी नलिकाओं (sieve tubes) व सह कोशिकाओं (companion Cells) का बना होता है। इसमें पलोयम मृदूतक (phloem parenchyma) का अभाव होता है। पूल के बाहरी ओर फ्लोयम टूटी हुई कोशिकाओं से बना प्रोटोफ्लोयम (protophloem) कहलाता है तथा Y की भुजाओं के बीच मेटाफ्लोयम (metaphloem) होता है।
एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री स्तमभ के वल्कुट में अन्तर –
एकबीजपत्री स्तम्भ | द्विबीजपत्री स्तम्भ |
1. इनमें दृढ़ोतक की अधस्त्वचा होती है। | 1. प्रायः स्थूलकोणोतक की होती है। |
2. वल्कुट अनुपस्थित होता है, इसके स्थान पर मृदूतकी भरण ऊतक होती है। | 2. वल्कुट उपस्थित होता है, भरण ऊतक नहीं होती। |
3. अन्तस्त्वचा, परिरंभ, मज्जा किरणें व मज्जा अनुपस्थित होती है। | 3. उपस्थित होती हैं। |
4. संवहन पूल भरण ऊतक में बिखरे होते हैं। | 4. संवहन पूल परिरंभ के अन्दर वलय में व्यवस्थित होते हैं। |
प्रश्न 3.
पृष्ठाधारी पर्ण की आन्तरिक संरचना का चित्र सहित वर्णन कीजिए। पृष्ठाधारी एवं समद्विपाश्विक पर्ण की आन्तरिक संरचना में अन्तर बताइये।
उत्तर:
पृष्ठाधार या द्विबीजपत्री पर्ण की आन्तरिक संरचना (Internal structure of Dorsiyentral or dicot leaf):
पृष्ठाधार पत्तियाँ द्विबीजपत्री पादपों में मिलती हैं। इस प्रकार की पर्णो की केवल एक ही सतह (ऊपरी) पर सूर्य का सीधा प्रकाश पड़ता है। इस कारण दोनों सतहों में उपस्थित ऊतकों की संरचना में परिवर्तन आ जाता है उदा. आम, कनेर, बरगद आदि। इनकी आन्तरिक संरचना निम्न प्रकार से होती है –
(i) बाह्यत्वचा (Epidermis): पत्ती की ऊपरी व निचली सतहों को बाह्यत्वचा ढके रहती है।
- ऊपरी बाह्यत्वचा (Upper or adaxial epidermis): यह कोशिकाओं की एक परत की बनी होती है व इनकी बाहरी भित्तियाँ क्यूटिन युक्त होती हैं। रन्ध्र बहुत ही कम या अनुपस्थित होते हैं।
- निचली बाह्यत्वचा (Lower or abaxial epidermis): यह भी एक परत की होती है। इस पर उपत्वचा (cuticle) की पतली परत होती है। इस बाह्यत्वचा पर अनेक रन्ध्र उपस्थित होते हैं।
(ii) पर्ण मध्योतक (Mesophyll): ऊपरी तथा निचली बाह्यत्वचा के बीच की ऊतक पर्णमध्योतक कहलाती है। यह दो क्षेत्रों में बँटा होता है –
- खम्भ ऊतक (Palisade tissue): यह ऊतक ऊपर की तरफ होती है। इसकी कोशिकाएँ लम्बी, खम्भाकार व पतली भित्ति वाली होती हैं। इनमें अन्तराकोशिक अवकाश बहुत छोटे होते हैं। इस ऊतक की कोशिकाओं में हरितलवक प्रचुर मात्रा में होता है। ये कोशिकाएँ प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करती हैं।
- स्पंजी ऊतक (Spongy tissue): खम्भ ऊतक से लेकर निचली बाह्यत्वचा तक स्पंजी मृदूतक होता है। इसकी कोशिकाएँ गोल व ढीली व्यवस्था वाली होती हैं। इनमें बड़े अन्तराकोशिक अवकाश मिलते हैं तथा हरितलवक की संख्या कम होती है।
(iii) संवहन पूल (Vascular bundle):
जिन पत्तियों में मध्यशिरा होती है उनमें मध्यशिरा का संवहन पूल अन्य पुलों की अपेक्षा सबसे बड़ा होता है। संवहन पूल संयुक्त, संपार्श्विक तथा अवर्षी होते हैं। प्रोटोजाइलम सदैव ऊपरी बाह्यत्वचा की ओर तथा मैटाजाइलम निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। फ्लोयम निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। प्रत्येक पूल के चारों ओर मृदूतकी पूल आच्छद पाई जाती है। मध्यशिरा वाले संवहन पूल के दोनों तरफ पूल आच्छद की अतिवृद्धियाँ पाई जाती हैं जो मृदूतकी अथवा स्थूलकोणोतकी होती हैं। संवहन पूलों का आमाप (size) व संख्या आधार से शीर्ष की ओर क्रमशः कम होती जाती है।
द्विबीजपत्री व एकबीजपत्री पत्तियों की आन्तरिक संरचना में अन्तर (Difference in Internal Structure of Monocot and Dicot Leaf):
विवरण | द्विबीजपत्री पर्ण (Dicot Leaf) | एकबीजपत्री पर्ण (Monocot Leaf) |
1. पत्ती का आकार | 1. पृष्ठाधारी (dorsiventral) या द्विपृष्ठी (bifacial) होती हैं। | 1. समद्वि पाश्विक (isobilateral) या समपृष्ठीय (equifacial) होती हैं। |
2. रंध्र | 2. निचली बाह्यत्वचा पर होते हैं। | 2. दोनों ही सतह पर पाये जाते हैं। |
3. पर्णमध्योतक (merophyll) | 3. खम्भकार मृतक व स्पंजी मृदूतक का होता है। नीचे की स्पंजी मृदूतक में अधिक बड़े अन्तराकोशिकीय स्थान होते हैं। | 3. इस प्रकार का विभेदन नहीं होता। अन्तराकोशिकीय स्थान बहुत ही कम व छोटे होते हैं। |
4. पूल आच्छद (bundle sheath) | (i) मृदूतक की बनी होती है। | (i) मृदूतक की बनी होती है। |
(ii) पूल के ऊपर व नीचे स्थूलकोण ऊतक या मृदूतक की कोशिकायें बाह्यत्वचा तक फैली रहती है। पूल संयुक्त कोलेटरल व अवर्धा (conjoint, colletral and closed) होते हैं। | (ii) संवहन पूल के ऊपर व नीचे दृढ़ोतक की कुछ कोशिकायें फैली रहती हैं। संवहन पूल संयुक्त, कोलेटरल व अवर्षी होते हैं। | |
5. बुलीफार्म कोशिकायें (Bulliform cells) | 5. अभाव होता है। | 5. ऊपरी बाह्यत्वचा में उपस्थित होती है। |
प्रश्न 4.
एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री स्तम्भों की आन्तरिक संरचना में अन्तर बताइये।
उत्तर:
एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री तनों की आन्तरिक संरचना में अन्तर (Differences between Monocot and Dicot Stems):
लक्षण | एकबीजपत्री स्तम्भ (Monocot Stem) | द्विबीजपत्री स्तम्भ (Dicot Stem) |
1. बाह्यत्वचा (Epidermis) | 1. उपस्थित, कोशिकायें तुलनात्मक छोटी तथा रोमरहित होती है। | 1. उपस्थित, कोशिकायें बड़ी तथा बहुकोशिकीय रोमयुक्त होती हैं। |
2. अधस्त्वचा (Hypodermis) | 2. दृढ़ोतक की (sclernchymatous) होती हैं। | 2. प्रायः स्थूलकोणोतक (collenchymatous) की बनी होती है। |
3. वल्कुट (Cortex) | 3. अनुपस्थित होता है, इसके स्थान पर भरण ऊतक होता है जिसमें अधस्त्वचा से मज्जा तक मृदूतकीय कोशिकायें फैली रहती हैं। | 3. मूदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। |
4. अन्तस्त्वचा (Endodermis) | 4. अनुपस्थित | 4. एक परत की मण्डयुक्त कोशिकाओं से बनी होती हैं। |
5. परिरम्भ (Pericycle) | 5. अनुपस्थित | 5. मृदूतक्रीय यी दृढ़ोतक की बनी होती है। |
6. मज्जा किरणे (Medullary rays)
मज्जा (Pith) |
6. अनुपस्थित
अनुपस्थित |
6. संवहन पूलों के बीच-बीच में मृदूतकीय कोशिकाओं से बनी होती हैं! तने के केन्द्र में स्थित मृतूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। |
7. संवहन पूल (Vascular bundle) | (i) बिखरे होते हैं। | (i) वलय (ring) में व्यवस्थित होते हैं। |
(ii) संवहन पूल संयुक्त (conjoint), संपाश्विक (colletial), बन्द या अवर्धा (closed) होते हैं। | (ii) संयुक्त, संपाश्विक था बाइकोलेटरल (bicolletral) व खुले या वर्षी (open) होते हैं। | |
(iii) बाहर की ओर के पूल संख्या में अधिक परन्तु आकार में छोटे तथा अन्दर के अर्थात् तने के केन्द्र वाले पूल संख्या में कम परन्तु आकार में बड़े होते हैं। | (iii) आकार में सभी पूल.समान होते हैं। | |
(iv) संवहन पूल अण्डाकार आकृति के होते हैं। | (iv) वेज आकार (Wedge – shaped) के होते हैं। | |
(v) पूल पर पूल आच्छद (bundle sheath) होती है। | (v) अनुपस्थित होती है। | |
(vi) फ्लोयम मृदूतक अनुपस्थित होती है। | (vi) उपस्थित होती है। | |
(vii) जाइलम Y या V के रूप में स्थित होता है। | (vii) अरीय (radial) पंक्तियों में व्यवस्थित होता है। | |
8. मज्जा (Pith) | 8. अनुपस्थित होती है। | 8. केन्द्र में यह मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। |
9. द्वितीयक वृद्धि | 9. अनुपस्थित होती है। | 9. उपस्थित होती है। |
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