Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 19 पर्ण-बाह्य आकारिकी
RBSE Class 11 Biology Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
मटर में फलक रूपान्तरित हो जाते हैं –
(क) कांटों में
(ख) शल्कों में
(ग) प्रतान में
(घ) तने में
प्रश्न 2.
फूला हुआ पर्णाधार कहलाता है –
(क) पर्णवृन्त तल्प
(ख) आच्छादी
(ग) पालिवत
(घ) पिच्छक
प्रश्न 3.
समानान्तर शिराविन्यास नहीं पाया जाता है –
(क) मक्का में
(ख) घास में
(ग) गेहूं में
(घ) बरगद में
प्रश्न 4.
घटपादप में घट पर्ण के किस भाग का रूपान्तरण है –
(क) पर्ण शीर्ष का
(ख) पर्णफलक का
(ग) पर्ण वृन्त का
(घ) अक्ष का
प्रश्न 5.
पर्णाभवृन्त रूपान्तरण है –
(क) पर्णवृन्त का
(ख) पर्णाधार का
(ग) पर्ण शीर्ष का
(घ) शाखा का
प्रश्न 6.
बहुपिच्छकी संयुक्त पर्ण का उदाहरण है –
(क) सहजन
(ख) बबूल
(ग) इमली
(घ) गाजर
प्रश्न 7.
पर्णक प्रतान का उदाहरण है –
(क) मटर
(ख) गोभी
(ग) गाजर
(घ) आलू
प्रश्न 8.
अवशोषी पणें पायी जाती हैं –
(क) जलीय पादपों में
(ख) मरुद्भिद पादपों में
(ग) लवणीय पादपों में
(घ) सामोभिद पादपों में
उत्तरमाला:
1. (ग), 2. (क), 3. (घ), 4, (ख), 5. (क) 6. (घ), 7. (क), 8. (क)
RBSE Class 11 Biology Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जालिकावत शिराविन्यास किन पौधों में मिलता है ?
उत्तर:
द्विबीजपत्री पौधों की पर्यों में जालिकावत शिराविन्यास होता है।
प्रश्न 2.
फूला हुआ स्पंजी पर्णवृन्त किस पादप में मिलता है ?
उत्तर:
जलकुम्भी में।
प्रश्न 3.
प्याज में खाद्य संग्रह पौधे के किस भाग में होता है ?
उत्तर:
मांसल पर्ण में।
प्रश्न 4.
पर्ण के विभिन्न भागों को नामांकित चित्र से बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 5.
एकान्तर व सम्मुख प्रकार के पर्णविन्यास में मुख्य अन्तर क्या है ?
उत्तर:
एकान्तर में पर्णसन्धियों पर एक ही पर्ण लगती है। यदि एक पर्णसंधि पर पर्ण दाईं ओर है तो अगली पर्णसंधि पर बाईं ओर होती है। सम्मुख में एक पर्णसंधि पर दो पणें सदैव एक-दूसरे के सम्मुख स्थित होती है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शाखा व संयुक्त पर्ण में विभेद बताइये।
उत्तर:
शाखा तथा संयुक्त पत्ती में अन्तर –
शाखा (Branch) | संयुक्त पत्ती (Compound Leaf) |
1. प्रत्येक शाखा कक्षस्थ कलिका से निकलती है। | 1. संयुक्त पत्ती में रेकिस की कक्ष में कक्षस्थ कलिका पाई जाती है। |
2. शाखा कभी पत्ती में समाप्त नहीं होती है। | 2. संयुक्त पत्ती कभी-कभी पत्रक में समाप्त होती है। जैसे विषम पिच्छाकर (imparipinnate) पत्ती। |
3. शाखा के अन्त में अग्रस्थ होती है। | 3. संयुक्त पत्ती में अग्रस्थ कलिका कलिका नहीं होती है। |
4. शाखा में सरल पत्ती के कक्ष में कक्षस्थ कलिका होती है। | 4. संयुक्त पत्ती के पत्रक के कक्ष में कक्षस्थ कलिका नहीं मिलती है। |
5. शाखा में पर्व (internode) तथा पर्वसन्धियाँ मिलती हैं। | 5. संयुक्त पत्ती में पर्व अथवा पर्व सन्धियाँ नहीं मिलती हैं। |
6. शाखा कभी नहीं झड़ती है। | 6. संयुक्त पत्ती झड़ सकती है। |
7. शाखा के आधार पर अनुपर्ण (stipule) नहीं पाए जाते हैं। | 7. संयुक्त पत्ती के आधार पर अनुपर्ण मिल सकते हैं। |
8. शाखा पर पुष्प मिलते हैं। | 8. संयुक्त पत्ती पर पुष्प नहीं मिलते हैं। |
9. शाखा पर पत्तियाँ अग्राभिसारी क्रम में नहीं लगते हैं। | 9. संयुक्त पत्ती में पत्रक अग्राभिसारी क्रम में लगती हैं अर्थात् नई पत्ती अग्रस्थ होती है। |
प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के पर्णों के नाम लिखिये।
उत्तर:
पर्णों के प्रकार:
- पर्णिल (Foliage leaves): हरे रंग की सामान्य पर्ण।
- बीजपत्री पर्ण (Cotyledonary leaves): बीज में उपस्थित भ्रूण से जुड़ी हुई पर्ण जो बीज के अंकुरण के समय सर्वप्रथम विकसित होती है।
- शल्क पर्ण (Scaly leaves or cataphylls): इस प्रकार की पर्ण भूरी, झिल्ली जैसी होती है जो प्रायः भूमिगत तनों पर मिलती है, इनका मुख्य कार्य कक्षस्थ कलिका को सुरक्षा प्रदान करना होता है।
- सहपत्री पर्ण या सहपत्र (Bract leaves or Bract): इनके कक्ष में पुष्प विकसित होता है। प्राय: ये हरे रंग की या रंगीन होती है।
- पुष्पी पर्ण (Floral leaves): पुष्प में उपस्थित बाह्यदल, दल, पंकुसेर व स्त्रीकेसर पर्यों के रूपान्तरण है।
- बीजाणुपर्ण (Sporophylls): वे पर्ण जिन पर बीजाणु लगते हैं।
प्रश्न 3.
हैटरोफिली किसे कहते हैं ? उदाहरण बताइये।
उत्तर:
जब किसी एक ही पादप में दो प्रकार की पत्तियाँ लगती हों तो इस लक्षण को विषमपर्णता या हैटरोफिली (Hetcrophylly) कहते हैं जैसे जलीय पादप रैननकुलस (Ranunculus) एवं सेजिटेरिया (Sagittavia) इत्यादि।
प्रश्न 4.
सम्मुख अध्यारोपित व सम्मुख क्रॉसित में अन्तर बताइये।
उत्तर:
दोनों में ही एक पर्वसन्धि पर सदैव दो पणे एक-दूसरे के सम्मुख स्थित होती हैं। सम्मुख क्रॉसित में उत्तरोत्तर पर्यों के जोड़े एकदूसरे से 90° का कोण बनाते हैं जिससे ऊपर से देखने पर पर्यों की चार उर्ध्वाधर कतारें दिखाई देती हैं जबकि सम्मुख अध्यारोपित में पर्यों के उपरोक्त जोड़े एक-दूसरे पर अध्यारोपित होते हैं अर्थात् ऊपर वाली पर्ण ठीक नीचे वाली पर्यों के तल में होती है व जब ऊपर से देखते हैं तो पर्णो की दो कतारें दिखाई देती हैं।
प्रश्न 5.
मुक्त पाश्र्व अनुपर्ण व संलग्न अनुपर्यों में उदाहरण सहित अन्तर बताइये।
उत्तर:
मुक्त पाश्र्व अनुपर्ण में पर्ण के दोनों ओर दो पतले हरे रंग की स्वतंत्र अनुपर्ण उपस्थित होती है, उदाहरण – गुडहल। संलग्न अनुपर्ण में अनुपर्ण पर्णवृन्त के साथ कुछ दूरी तक जुड़े रहते हैं, उदाहरण – गुलाब।
RBSE Class 11 Biology Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पर्णवृन्त के विभिन्न रूपान्तरणों का चित्र सहित वर्णन कीजिये।
उत्तर:
- पक्षवत पर्णवृत (Winged petiole):पर्णवृन्त पंख की भाँति चपटा व हरा होता है, उदाहरण नींबू, नारंगी, चकोतरा।
- प्रतानीय पर्णवृन्त (Tendrillar petiole): पर्णवृन्त प्रतान में रूपान्तरित होकर आरोहण में सहायता करता है, उदाहरण क्लीमेटिस (Clematis), कलश पादप (Pitcher plant), उद्यान नैस्टरनियम (Garden nasturtium)।
- स्पंजी पर्णवृन्त (Spongy petiale): पर्णवृन्त स्पंजी होने से फूल कर गोल हो जाता है, इससे पोधे को उत्प्लावन बल प्राप्त होकर तैरने में सहायता मिलती है, उदाहरण सिंघाड़ा (Trapa bispinosa), जलकुम्भी।
- पर्णाभवृन्त (Phyllode): पर्णवृन्त चपटा, हरा तथा पत्ती सदृश्य हो जाता है, इसके ऊपरी सिरे पर छोटी-छोटी संयुक्त पत्तियाँ मिलती हैं। पर्णाभवृन्त प्रकाश संश्लेषण क्रिया कर भोजन बनाने का कार्य करता है परन्तु वाष्पोत्सर्जन क्रिया को बहुत ही कम कर देता है, उदाहरण ऑस्ट्रे लियन अके सिया (Australian Acacia = Acacia melanoxylon)।
प्रश्न 2.
शिराविन्यास किसे कहते हैं ? विभिन्न प्रकार के शिराविन्यासों को समझाइये।
उत्तर:
पर्ण में शिराओं और शिरिकाओं के विन्यास को शिराविन्यास कहते हैं। यह मुख्यतः दो प्रकार का जालिकावते व समानान्तर प्रकार का होता है –
(अ) जालिकावत शिराविन्यास (Reticulate Venation): जब प्रत्येक शिरा अनेक बार विभाजित होती जाती है तथा एक जाल बना लेती हैं। यह प्रायः द्विबीजपत्री पौधों में पाया जाता है। यह दो प्रकार का होता है –
- Toneria Guifrichida (Unicostate reticulate): इस प्रकार के शिराविन्यास में केवल एक मुख्य शिरा या मध्य शिरा पाई जाती है। शेष शाखाएँ इसी से निकलती हैं। उदा – पीपल, आम्।
- बहुशिरीय जालिकावत (Multicostate reticulate): पर्ण फलक में प्रवेश करते ही मुख्य शिरा दो या अधिक शाखाओं में बँट जाती है। यह दो प्रकार का होता है –
- बहु शिरीय जालिकावत अभिसारी (Multicostate reticulate convergent): जब मुख्य शिराएँ निकलने के बाद पहले बाहर की ओर बढ़ती हैं तथा फिर पर्ण शिखाग्र पर जाकर पास-पास आ जाती हैं। उदा – बेर (Zizyphus)।
- बहुशिरीय जालिकावत अपसारी (Reticulate multicostate divergent): जब सभी शिराएँ एक-दूसरे से अलग ऊपर की ओर बढ़ती हैं। उदा – अरण्डी (Castor), खीरा (Cucurbita)।
(ब) समानान्तर शिराविन्यास (Parallel venation): यह शिराविन्यास एकबीजपत्री पर्यों में पाया जाता है। यह दो
प्रकार का होता है –
- एकशिरीय समानान्तर (Unicostate parallel): पर्ण फलक में एक प्रमुख शिरा होती है। इसमें अनेक पार्श्व शिराएँ निकल कर एक-दूसरे के समानान्तर चलती हैं। उदा – केला।
- बहुशिरीय समानान्तर (Multicostate parallel): पर्णवृन्त के सिरे से अनेक शिराएँ निकलकर एक-दूसरे के समानान्तर बढ़ती हैं। यह दो प्रकार का होता है –
- बहु शिरीय अभिसारी (Multicostate convergent): समानान्तर शिराएँ शिखाग्र की ओर जाकर पास-पास आ जाती हैं। उदा – बाँस, गेहूँ।
- बहु शिरीय अपसारी (Multicostate divergent): पर्णवृन्त से शिराएँ निकलकर फलककोर की ओर बढ़ती हैं। उदा – फैन पाम (fan palm)। अपवादस्वरूप ऐरिन्जयम (Eryngium) तथा केलोफिलम (Calophyllum) द्विबीजपत्री पौधा है परन्तु इसमें समानान्तर शिराविन्यास पाया जाता है। स्माइलैक्स, डिओस्कोरिया तथा पो थोस एकबीजपत्री है परन्तु इसमें जालिकावत शिराविन्यास पाया जाता है।
प्रश्न 3.
सरल पर्ण व संयुक्त पर्ण में अन्तर बताइये। विभिन्न प्रकार के संयुक्त पर्यों को चित्र सहित समझाइये।
उत्तर:
सरल व संयुक्त पत्ती में अन्तर –
सरल पत्ती (Simple Leaf) | संयुक्त पत्ती (Compound Leaf) |
1. केवल एक पर्णफलक होता है। | 1. कई पर्णफलक अथवा पत्रक (leaflet) मिलते हैं। |
2. पत्ती के कक्ष में कक्षस्थ कलिका मिलती है। | 2. रेकिस के कक्ष में कक्षस्थ कलिका होती है परन्तु पत्रक के कक्ष में नहीं मिलती है। |
3. इसके आधार पर अनुपत्र (stipule) मिल सकते हैं। | 3. अनुपत्र नहीं मिलते हैं। |
संयुक्त (Compound): ऐसी पत्ती जिसके पर्ण फलक या स्तरिका (lamina) का कटाव स्थान-स्थान पर मध्य शिरा अथवा पर्णवृन्त तक पहुँचकर उसे दो या अधिक पर्णकों में अलग कर देता है; जैसे – मटर। यह दो प्रकार की होती है – हस्ताकार संयुक्त और पिच्छाकार संयुक्त।
(अ) हस्ताकार संयुक्त (Palmately compound): ऐसी संयुक्त पत्ती जिसके पर्णक, पर्णवृन्त के अग्र सिरे पर जुड़े होते हैं और इस प्रकार एक सामान्य बिन्दु से चारों ओर सभी उसी प्रकार फैले दिखाई देते हैं, जिस प्रकार हथेली से चारों ओर की अँगुलियाँ। यह निम्न प्रकार की होती हैं –
- एकपर्णी (Unifoliate): केवल एक पर्णक, पर्णवृन्त के साथ जुड़ा होता है; जैसे – सिट्रस (citrus)।
- द्विपर्णी (Bifoliate): पर्णवृन्त के साथ केवल दो पर्णक जुड़े होते हैं; जैसे – प्रिंसेपिया (prinsepia)।
- त्रिपर्णी (Trifoliate): पर्णवृन्त के साथ तीन पर्णक जुड़े। होते हैं; जैसे – मैडिकागो (Medicago)।
- चतुष्पर्णी (Qudrifoliate): पर्णवृन्त के साथ चार पर्णक जुड़े होते हैं; जैसे – मार्सीलिया (Marsilea)।
- बहुपर्णी (Multifoliate): पाँच या इससे अधिक पर्णक पर्णवृन्त के साथ जुड़कर अंगुलियों की भाँति चारों ओर फैले रहते हैं, जैसे – सिमल (silk cotton tree), बॉम्बेक्स (Bombax)।
(ब) पिच्छाकार संयुक्त पत्ती (Pinnately compound leaf): ऐसी संयुक्त पत्ती, जिसमें पर्णक मध्य शिरा के दोनों ओर लगे होते हैं; जैसे इमली। ये निम्न प्रकार की होती हैं –
- एकपिच्छकी (Unipinnate): ऐसी पिच्छाकार संयुक्त पत्ती जिसके पर्णक सीधे मध्यशिरा के दोनों ओर जुड़े होते हैं; जैसे-कैसिया (Cassia)। यह या तो समपिच्छकी अथवा विषमपिच्छकी होती है।
- समपिच्छकी (Paripinnate): ऐसी एकपिच्छकी संयुक्त पत्ती जिसमें पर्णकों की संख्या सम (even) होती है; जैसे – अमलतास (Cassia fistula)।
- विषमपिच्छ की (Imparipinnate): ऐसी एकपिच्छकी संयुक्त पत्ती जिसमें पर्णकों की संख्या विषम (odd) होती है; जैसे – गेन्दा (Tagetus)।
- समपिच्छकी (Paripinnate): ऐसी एकपिच्छकी संयुक्त पत्ती जिसमें पर्णकों की संख्या सम (even) होती है; जैसे – अमलतास (Cassia fistula)।
- द्विपिच्छकी (Bipinnate): दो बार विभाजित हुई पिच्छाकार संयुक्त पत्ती, अर्थात् मध्य शिरा द्वितीयक अक्षों को बनाती है जिन पर पर्णक लगे होते हैं; जैसे-बबूल (Acacia), छुईमुई (Mimosa)।
- त्रिपिच्छकी (Tripinnate): तीन बार विभाजित हुई। पिच्छाकार संयुक्त पत्ती, अर्थात् द्वितीयक अक्षों से तृतीयक असें निकलती हैं जिन पर पर्णक लगे होते हैं; जैसे मोरिंगा (Moringa)।
- पुनर्विभाजित (Decompound): एक ऐसी पिच्छाकार संयुक्त पत्ती जो तीन से अधिक बार विभाजित हो जाती है; जैसे – धनिया (Coriandrum)।
प्रश्न 4.
पर्णों के कार्यों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
पर्णों के कार्य:
- प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis): पर्ण का मुख्य कार्य प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करना है।
- गैसों का आदान-प्रदान (Exchange of gases): पण पर उपस्थित पर्ण रन्ध्रों द्वारा वायुमण्डलीय ऑक्सीजन व कार्बन ‘डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है।
- पत्तियाँ दीप्तिकालिक (photoperiod) या प्रकाश उद्दीपनों (photoperiodic stimulus) के ग्राही अंग हैं। ये प्रकाश उद्दीपनों को ग्रहण करके पुष्पीय हार्मोन फ्लोरीजन.का संश्लेषण करती हैं।
- वाष्पोत्सर्जन (Transpiration): पर्ण रन्ध्रों द्वारा वाष्प के रूप में जल की हानि होती है जिससे पौधों का तापमान नियंत्रित होता है तथा वाष्पोत्सर्जन खिंचाव द्वारा रसारोहण होता है।
- विशिष्ट कार्य (Specialized functions): कुछ विशिष्ट कार्य जैसे खाद्य संग्रह, सुरक्षा, आरोहण, कीट पकड़ने के लिए तथा कायिक प्रवर्धन हेतु पर्ण रूपान्तरित हो जाती है।
- कायिक प्रवर्धन (Vegetative propogation): पत्थर चट्टा (Bryophyllum), बिगोनिया (Bigonia) इत्यादि पादपों की पत्तियाँ पर्ण के किनारों पर स्थित कलिकाओं द्वारा नवपादपों को जन्म देती हैं।
प्रश्न 5.
कीटाहारी पादपों में पर्ण के रूपान्तरण को समझाइये।
उत्तर:
इसे समझाने के लिए यहाँ दो कीटाहारी पादपों (घटपादप तथा ब्लेडरवर्ट) का वर्णन दिया जा रहा है –
(अ) घटपादप (Pitcher plant):
कीटहारी पादप अपने पोषण में प्रोटीन की पूर्ति कीटों से करते हैं। इन पादपों में कीटों को पकड़ने की विशेष युक्ति है या कीट पिंजर होते हैं। कीट पिंजर पर्ण या पर्ण के किसी अंग का रूपान्तरण होता है। शेष पर्ण का भाग हरा होता है। घटपादप (Nepenthes) में पर्णफलक घड़े या कलश के आकार की संरचना में परिवर्तित हो जाता है। पर्ण शिखाग्र इस घड़े के ढक्कन में रूपान्तरित होता है। पर्णवृन्त प्रतान में रूपान्तरित होता है जो घड़े से जुड़ा होता है, पर्णाधार चौड़ा, चपटा, हरे रंग का पर्ण की भाँति होकर प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है।
घड़े या कलश की भीतरी सतह पर रोम होते हैं जो अन्दर की ओर झुके होते हैं जिससे ये कीटों को बाहर नहीं निकलने देते। कलश की अन्दरी सतह चिकनी होती है व इसी सतह पर पाचक ग्रन्थियाँ भी होती है। जैसे ही कोई कीट ढक्कन पर बैठता है तो वह फिसलकर कलश में चला जाता है व ढक्कन बन्द हो जाता है। जब कीट बाहर निकलने का प्रयास करता है तो रोम की दिशा नीचे होने के कारण उनमें फंस जाता है तथा पाचक ग्रन्थियों से रस का स्रवण हो जाता है, इसमें कीटों का पाचन हो जाता है।
(ब) यूट्रीकु लेरिया या ब्लेडरवर्ट (Utricularia or Bladderwort):
यूट्रीकुलेरिया एक कीटहारी जलोभिद पादप है। यह जल की सतह के नीचे तैरता रहता है तथा इसकी पत्तियाँ कटी फटी होती हैं। इन पत्तियों में से कुछ खण्ड फूल कर गुब्बारे का रूप धारण कर लेते हैं, इसे ही ब्लेडर (bladder) कहते हैं। गुब्बारे के अग्र भाग नुकीले रोम में एक छिद्र होता है जिसमें ब्लेडर कु छ संवेदनशील रोम (sensetive hairs) लगे रहते हैं। जैसे ही कोई कीट गुब्बारे या ब्लेडर में प्रवेश करता है तो ये रोम छिद्र को इस प्रकार बन्द कर देते हैं कि कीट बाहर नहीं निकल पाता तथा इसका अन्दर ही पाचन हो जाता है।
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