Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 24 भारतीय वानस्पतिक उद्यान एवं पादप संग्रहालय
RBSE Class 11 Biology Chapter 24 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 24 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में सर्वप्रथम किस प्रख्यात चिकित्सक को वानस्पतिक उद्यान की स्थापना का श्रेय दिया जाता है?
(अ) महर्षि पाराशर
(ब) सुश्रुत
(स) जीवक कौमार भृत्य
(द) चरक
प्रश्न 2.
वानस्पतिक उद्यान निम्नलिखित में से किस अध्ययन में उपयोगी है।
(अ) पौधों की पुनस्र्थापना व दशानुकूलन
(ब) खरपतवार के नियंत्रण एवं उन्मूलन
(स) प्रदूषण नियंत्रण
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3.
क्षेत्र (Field) से पादप प्रतिरूप एकत्र करने के लिए आप निम्न में से कौनसा उपकरण आवश्यक नहीं समझते –
(अ) कैंची
(ब) वेस्कुलम
(स) इलेक्ट्रिक हीटर
(द) पादप प्रेस
प्रश्न 4.
प्लान्ट प्रेस की मानक माप होती है –
(अ) 12″ x 18″
(ब) 12″ x 16″
(स) 10″ x 18″
(द) 10″ x 16″
प्रश्न 5.
भारत व इंग्लैण्ड में कौनसी वर्गीकरण पद्धति के आधार पर संग्रहालय व्यवस्थित किये गये हैं –
(अ) डी-केन्डोल
(ब) बैन्थम और हुकर
(स) ओसवाल्ड टिप्पो
(द) हचिन्सन
उत्तर तालिका:
1.(स), 2. (द), 3. (स), 4. (अ), 5. (ब)
RBSE Class 11 Biology Chapter 24 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पादप संग्रहालय की परिभाषा लिखिये।
उत्तर:
इस प्रकार के संग्रहालय जिनमें शुष्क एवं परिरक्षित पादप प्रतिरूपों (spicimens) का संग्रह, विशेष वर्गीकरण पद्धति के आधार पर किया जाता है, उसे पादप संग्रहालय या हर्बेरियम (Herbarium) कहते हैं।
प्रश्न 2.
पादप वर्गिकी के साधन लिखिए।
उत्तर:
इन साधनों को चार श्रेणियों में बांट सकते हैं- क्षेत्र अथवा फील्ड (Field), हर्बेरियम, वनस्पति उद्यान तथा पुस्तकालय।
प्रश्न 3.
प्लांट प्रेस क्या होती है?
उत्तर:
इसमें लगे पौधों की टहनी जिसका प्रतिरूप बनाना है, उसे फील्ड में ही प्रेस किए जाते हैं। अच्छी प्लांट प्रेस में धातु के दो फ्रेमों के बीच तार की जाली होती है। दोनों फ्रेमों को बांधने के लिए बेल्ट लगी होता है। इसकी उपयुक्त साइज 12” x 18” होती है। धातु की प्रेस के अलावा लकड़ी से बनी प्लांट प्रेस भी होती है।
प्रश्न 4.
प्लांट प्रेस का मानक माप क्या है?
उत्तर:
12″ x 18″
प्रश्न 5.
हरबेरियम शीट का स्टेण्डर्ड साइज लिखिए।
उत्तर:
11.50″ x 16.50″
प्रश्न 6.
वानस्पतिक उद्यान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान विशेष पर अलग-अलग या एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पाये जाने वाले पादप जब प्राकृतिक रूप से उगते हुए पाएं जावें एवं इनका उपयोग शुद्ध व व्यावहारिक दोनों प्रकार के अध्ययनों हेतु किया जावे तो ऐसे पादप समूह स्थान को वानस्पतिक उद्यान कहते हैं।
प्रश्न 7.
हरबेरियन तकनीक क्या है?
उत्तर:
पुष्पीय पौधों को शीट पर परिरक्षित करने एवं क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को पादपालय या पादप संग्रहालय तकनीक कहते हैं।
प्रश्न 8.
पादप प्रतिरूपों के फंफूद व कीड़ों से कैसे सुरक्षित रखा जाता है?
उत्तर:
पौधों को शीट पर चिपकाने के लिए मरक्यूरिक क्लोराइड युक्त सरेश के घोल में तैराकर फिर शीट पर चिपकाते हैं। मरक्यूरिक क्लोराइड इनकी फंफूद व कीड़ों से सुरक्षा करता है।
प्रश्न 9.
भारत के दो प्रमुख पादपालयों के नाम लिखिये।
उत्तर:
- दी सेन्ट्रल नेशनल हर्बेरियम, सिबपुर, कोलकाता।
- वन अनुसंधान संस्थान पादप संग्रहालय, देहरादून।
प्रश्न 10.
विश्व के दो प्रमुख वानस्पतिक उद्यानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- इण्डियन बोटेनिक गार्डन, सिबपुर, कोलकाता।
- वी.एल. बोमोराव बोटेनिक गार्डन, लेनिनग्राड।
प्रश्न 11.
अमेरिका के पादप विज्ञानी हेनरी शॉ द्वारा कब, कहां और कौन से वानस्पतिक उद्यान की स्थापना की थी?
उत्तर:
हेनरी शॉ ने सेंट लुइस (अमेरिका) में सन् 1859 में मिसौरी बोटेनिक गार्डन की स्थापना की थी।
प्रश्न 12.
पादप प्रतिरूपों को एकत्र करने में खुरपी का क्या कार्य है ?
उत्तर:
खुरपी की सहायता से भूमिगत भागों जैसे जड़ों या कंद को खोदने में खुरपी की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 13.
पादप प्रतिरूपों को वर्ष में एक बार कौन-सी गैस से धूमित किया जाता है और क्यों?
उत्तर:
वर्ष में एक बार प्रतिरूपों को बंद कक्ष या संदूक में रखकर कार्बन डाइसल्फाइड से धूमित किया जाता है जिससे कवक या जीवाणुओं से रक्षा होती है।
प्रश्न 14.
प्लांट प्रेस में रखे पादप प्रतिरूपों का अखबार हर 24 घंटे में क्यों बदला जाना चाहिए?
उत्तर:
प्रतिरूपों की नमी से अखबार नर्म हो जाते हैं। यह प्रक्रिया पादप प्रतिरूप के पूरी तरह से सूख जाने तक निरन्तर जारी रहती है।
प्रश्न 15.
फाइलिंग क्या है?
उत्तर:
हर्बेरियम शीट पर अच्छी तरह चिपकाये गए एवं पूर्णतः परिरक्षित पादप प्रतिरूप को सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं किसी मान्य वर्गीकरण प्रणाली के अनुरूप रखने की प्रक्रिया को फाइलिंग कहते हैं।
RBSE Class 11 Biology Chapter 24 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वानस्पतिक उद्यानों की उपयोगिता लिखिए।
उत्तर:
वानस्पतिक उद्यानों की उपयोगिता एवं उद्देश्य (Objective and usefulness of Botanical Gardens):
- विभिन्न प्रकार के पौधों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन हेतु सटीक एवं मूलभूत आकारिकीय विवरण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
- विभिन्न प्रकार के पौधों की तुलनात्मक वर्गिकीय अध्ययन यहां पर उगने वाली प्रजातियों को देखकर किया जा सकता है तथा इनके आधार पर पौधों का नामकरण एवं वर्गीकरण किया जा सकता है।
- विभिन्न प्रकार के प्रयोगशाला अध्ययनों, जैसे- शारीरिकी, पादप कार्यिकी, कोशिका विज्ञान ऊत्तक संवर्धन एवं पादप प्रजनन व पादप रसायन हेतु आवश्यक पादप सामग्री वानस्पतिक उद्यानों में उगने वाली पादप प्रजातियों से प्राप्त की जा सकती है।
- क्योंकि वानस्पतिक उद्यानों में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में उगने वाले पौधों को उनकी प्राकृतिक आवासीय परिस्थितियां कृत्रिम रूप से उत्पन्न कर लगाया जाता है। अतः यहां इन पौधों को देखकर इनकी प्राकृतिक आवास के बारे में जानकारी मिलती है। साथ ही यहाँ अनेक दुर्लभ पौधे अपने प्राकृतिक अवस्था में दृष्टिगोचर होते हैं।
- विभिन्न आवासीय क्षेत्रों के पौधों के देशानुकूलन (Acclimatization) के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करते हैं।
- उद्यान विज्ञान (Horticulture) के विकास में (विशेषकर मानवोपयोगी पौधों जैसे- फल उत्पादक पौधे, औषधिक पौधे इत्यादि की गुणवत्ता के सुधार में) ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- वानस्पतिक उद्यानों में उगने वाले पौधों की सुन्दरता, पौधों पर खिलने वाले पुष्पों की सुगन्ध, वृक्षों की सघन छाया, हमारी सौन्दर्य बोध (Aesthetic sence) की प्रवृत्ति को परिपूर्ण करती है।
- उद्यानों में विद्यमाने पौधा घरों (Green houses) की अनुसंधान कार्य में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- अनेक दुर्लभ व वानस्पतिक गुणों वाले पादपों का विद्यार्थियों से प्रत्यक्ष परिचय होता है। अतः उद्यान बहिरंग प्रयोगशालाएँ (outdoor laboratories) होते हैं।
प्रश्न 2.
वेस्कुलम का केवल नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 3.
पादप संग्रह तकनीक का विवरण दीजिए।
उत्तर:
पादप संग्रह की तकनीक (Technique of plant collection):
पादप संग्रह की सही तकनीक अपना कर पादप प्रतिरूपों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। शाकीय वे छोटे पौधों के सभी भागों (जड़, तना, पत्तियां, पुष्पक्रम, पुष्प व फल) सहित पादप प्रतिरूप के लिए लेना चाहिए। बड़े काष्ठीय व बहुवर्षीय पादपों व झाड़ियों में पुष्पयुक्त टहनियां एकत्र कर सकते हैं। संग्रह करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रतिरूप स्वस्थ हो व उसमें पुष्प उपस्थित हो। पादप प्रतिरूप को पुष्पन के अन्तिम चरण में लेना चाहिए। पादप प्रतिरूपों को एकत्रित करने के लिए एक ही ऋतु में 3 या 4 बार क्षेत्र में जाना चाहिए जिससे अलग-अलग वृद्धि अवस्थाओं में प्रतिरूप एकत्रित किये जा सकें।
प्रश्न 4.
पादप वर्गिकी के साधनों को समझाइये।
उत्तर:
पादप संग्रह पत्रे (Herbarium Sheet) का निर्माण दबाए हुए प्रतिरूप पूर्णतः सूख जाने के पश्चात् उन्हें सावधानीपूर्वक सफेद मोटे कागज पर चिपका दिया जाता है। पादप संग्रह के लिए मोटे कागज का अन्तर्राष्ट्रीय प्रामाणिक आकार 11.5 x 16.5 इंच है। पादप संग्रह पत्र के ऊपरी सिरे पर पादप संग्रहालय का नाम छपा रहता है। निचले सीधे हाथ की ओर कोने में प्रतिरूप से सम्बन्धित कुछ क्षेत्रीय एवं अन्य आँकड़े लेबिल (label) पर दिए जाने चाहिए। सूखे हुए प्रतिरूपों को पादप संग्रह पत्र पर स्थानान्तरण करने को आरोपण (mounting) कहते हैं। हर्बेरियम शीट –
संग्रहित पादप
प्रतिरूपों को पादप संग्रह पत्र पर विभिन्न प्रकार से चिपकाया जा सकता है, जो निम्न प्रकार है –
(अ) सूखे हुए प्रतिरूपों को गोंद (camels white gum or gloy) जिसमें 1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड (mercuric choride) मिला हो, 12 x 18 इंच आकारे वाली ट्रे में स्थानान्तरित कर तैरा देते हैं। फिर उन्हें पादप संग्रह पत्रों पर गोंद लगी तरफ से रख देते हैं तथा धीरे-धीरे दबाकर सूखने के लिए रख देते हैं।
(ब) एक अन्य विधि जो अमेरिका के बहुत से पादप संग्रहालयों में प्रयोग में लाई जाती है, में एथिल सेल्यूलोज (ethyl cellulose) एवं सरेस का मिश्रण जो टॉलीन (tolucne) एवं मिथाइल ऐल्कोहल (methyl alcohol) मिश्रण में घोला जाता है, को पादप संग्रह पर रखे प्रतिरूप को चिपकाने के लिए लगाया जाता है।
पादप संग्रह पत्रों का नामांकन (Labelling the Herbari garm Sheet):
सूचना जिन शीर्षकों के अन्दर आवश्यक होती है, वह पत्र के नीचे की तरफ दाहिनी ओर छपे होते हैं या लेबिल (लगभग 3×5 इंच आकार के) छपे होते हैं जो पादप संग्रह पत्र के निचले दाहिने कोने में चिपका दिए जाते हैं। इसमें कम से कम अग्र सूचना होनी चाहिए।
- वंश, जाति एवं कुल अन्वेषणकर्ता के नाम के साथ।
- संग्रह का सही स्थान, देश, प्रदेश, जिला एवं संग्रह का सही बिन्दु।
- आवास (habitat)।
- संग्रह का दिनांक।
- संग्रहकर्ता का नाम।
- संग्रहकर्ता का क्षेत्रीय अंक।
प्रतिरूप को पहचानने वाले का नाम यदि वह संग्रहकर्ता के अलावा कोई हो। अन्य सूचना –
- पुष्प का रंग
- वनस्पति का रूप
- पादप की ऊंचाई।
पादप संग्रहालय में पादप संग्रह पत्रों का संचयन एवं व्यवस्था (Storing and arrangement of sheets in a Herbarium):
आरोपित पादप संग्रह पत्रों को वर्गीकृत रूप में रखने के विधि को फाइलिंग (filing) कहते हैं। एक ही जाति के सभी प्रतिरूप एक या बहुत से मोटे कागज के एक ही फोल्डर (Folder) में रखे जाते हैं। ऐसे फोल्डर, स्टील या लकड़ी की अलमारियों में रखे जाते हैं जो छोटे-छोटे खानों में विभाजित होती हैं और जिनमें अच्छी तरह से बन्द होने वाले दरवाजे लगे होते हैं। उसके बाहर लगा लेबिल, अन्दर रखी वस्तुओं की प्रकृति के विषय में बतलाता है। (चित्र – 4)। भारत व इंग्लैण्ड में बैंथम व हुकर की वर्गीकरण पद्धति के आधार पर पादप संग्रहालय व्यवस्थित किये जाते हैं।
प्रश्न 5.
पादप वर्गीकरण का महत्व लिखिए।
उत्तर:
पादप जगत के समग्र अध्ययन हेतु हमारे लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न पौधों को इनके किसी भी प्रमुख लक्षण के आधार पर इनके सुनिश्चित वर्गों में स्थापित किया जावे या इनका वर्गीकरण किया जावे।
प्रश्न 6.
वानस्पतिक उद्यानों की वर्गिकीय उपयोगिता को समझाइये।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के पौधों का तुलनात्मक वर्गिकीय अध्ययन यहां पर आने वाली प्रजातियों को देखकर किया जा सकता है तथा इसके आधार पर पौधों का नामकरण एवं वर्गीकरण किया जा सकता है।
वानस्पतिक उद्यानों की उपयोगिता एवं उद्देश्य (Objective and usefulness of Botanical Gardens):
- विभिन्न प्रकार के पौधों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन हेतु सटीक एवं मूलभूत आकारिकीय विवरण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
- विभिन्न प्रकार के पौधों की तुलनात्मक वर्गिकीय अध्ययन यहां पर उगने वाली प्रजातियों को देखकर किया जा सकता है तथा इनके आधार पर पौधों का नामकरण एवं वर्गीकरण किया जा सकता है।
- विभिन्न प्रकार के प्रयोगशाला अध्ययनों, जैसे- शारीरिकी, पादप कार्यिकी, कोशिका विज्ञान ऊत्तक संवर्धन एवं पादप प्रजनन व पादप रसायन हेतु आवश्यक पादप सामग्री वानस्पतिक उद्यानों में उगने वाली पादप प्रजातियों से प्राप्त की जा सकती है।
- क्योंकि वानस्पतिक उद्यानों में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में उगने वाले पौधों को उनकी प्राकृतिक आवासीय परिस्थितियां कृत्रिम रूप से उत्पन्न कर लगाया जाता है। अतः यहां इन पौधों को देखकर इनकी प्राकृतिक आवास के बारे में जानकारी मिलती है। साथ ही यहाँ अनेक दुर्लभ पौधे अपने प्राकृतिक अवस्था में दृष्टिगोचर होते हैं।
- विभिन्न आवासीय क्षेत्रों के पौधों के देशानुकूलन (Acclimatization) के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करते हैं।
- उद्यान विज्ञान (Horticulture) के विकास में (विशेषकर मानवोपयोगी पौधों जैसे- फल उत्पादक पौधे, औषधिक पौधे इत्यादि की गुणवत्ता के सुधार में) ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- वानस्पतिक उद्यानों में उगने वाले पौधों की सुन्दरता, पौधों पर खिलने वाले पुष्पों की सुगन्ध, वृक्षों की सघन छाया, हमारी सौन्दर्य बोध (Aesthetic sence) की प्रवृत्ति को परिपूर्ण करती है।
- उद्यानों में विद्यमाने पौधा घरों (Green houses) की अनुसंधान कार्य में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- अनेक दुर्लभ व वानस्पतिक गुणों वाले पादपों का विद्यार्थियों से प्रत्यक्ष परिचय होता है। अतः उद्यान बहिरंग प्रयोगशालाएँ (outdoor laboratories) होते हैं।
प्रश्न 7.
भारत के प्रमुख वानस्पतिक उद्यानों का स्थापना वर्ष की सूची दीजिये।
उत्तर:
वानस्पतिक-उद्यान | स्थापना वर्ष |
इण्डियन बोटेनिकल गार्डन, शिवपुर, कोलकाता। | 1787 |
राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान, लखनऊ। | 1865 |
लॉयड वानस्पतिक उद्यान, दार्जिलिंग। | 1865 |
वानस्पतिक उद्यान, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून। | 1874 |
वानस्पतिक उद्यान, सहारनपुर। | 1779 |
लालबाग उद्यान, बेंगलुरू। | 1799 |
कम्पनी उद्यान, मसूरी। | 1799 |
प्रश्न 8.
विश्व के किन्हीं पांच वानस्पतिक उद्यानों का नाम व स्थापना की सूची दीजिए।
उ्त्तर:
नाम | स्थापना वर्ष |
पादुआ वानस्पतिक उद्यान, इटली | 1545 |
पीसा वानस्पतिक उद्यान, पीसा | 1543 |
नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री पेरिस, फ्रांस | 1635 |
बॉटेनिक गार्डन एण्ड म्यूजियम, बर्लिन, जर्मनी | 1646 |
उप्पसला वानस्पतिक उद्यान | 1655 |
रॉयल बोटेनिक गार्डन एडिनबर्ग स्कॉटलैण्ड, इंग्लैण्ड | 1670 |
बॉटेनिक गार्डन एण्ड बॉटेनिकल इंस्टीट्यूट ऑफ यूनिवर्सिटी ऑफ वियना, आस्ट्रिया। | 1754 |
इण्डियन बॉटेनिक गार्डन, सिबपुर हावड़ा कोलकाता, भारत | 1787 |
बॉटेनिक गार्डन, वाशिंगटन, डी.सी. यू.एस.ए. | 1820 |
रॉयल बॉटेनिक गार्डन, क्यू इंग्लैण्ड, यू.के. | 1841 |
आर्नल्ड आबोरेटम हावर्ड विश्वविद्यालय, यू.एस.ए. | 1872 |
दी न्यूयॉर्क बॉटेनिक गार्डन, न्यूयॉर्क, यू.एस.ए. | 1895 |
प्रश्न 9.
हरबेरियम शीट पर चिपकाए गए पादप प्रतिरूपों को कवक और जीवाणुओं के आक्रमण से बचाने के लिए आप क्या करेंगे?
उत्तर:
प्रतिरूपों की रक्षा (Care of Specimens):
सावधानीपूर्वक रखा हुआ प्रतिरूप अनिश्चित काल तक बना रहता है। प्रतिरूपों के नष्ट होने का सबसे अधिक भय सूक्ष्म जीवों एवं कीटों के आक्रमण से होता है। इसके लिए सामान्यतः 2 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड (mercuric chloride) के स्प्रिट में घोल का छिड़काव किया जाता है। पैराडाई क्लोरो बेन्जीन (Paradichlorobenzene) या व्यापारिक नेफ्थेलीन (naphtalene) की गोलियां भी दराजों में रखने के लिए प्रयोग में लाई जा सकती हैं। वर्ष में एक बार प्रतिरूपों को बन्द कक्षों या स्टील ट्रंकों में इकट्ठा रखकर कार्बन डाइ-सल्फाइड (carbon di-sulphide) से धूमित किए जा सकते हैं।
प्रश्न 10.
आधुनिक पादप वर्गिकी में पादप संग्रहालयों की भूमिका समझाइये?
उत्तर:
पादप वर्गिको सम्बन्धी अध्ययन अर्थात् पौधे की पहचान, नामकरण एवं वर्गीकरण इत्यादि वनस्पति शास्त्र की अन्य सभी शाखाओं के अध्ययन का आधार-स्तम्भ है। यदि किसी पौधे के कुल (Family), वंश (Genus) या प्रजाति (Species) के बारे में आवश्यक जानकारी नहीं हो तो उस पौधे से सम्बन्धित अन्य अध्ययन कार्य प्रारम्भ नहीं किए जा सकते। इसलिए अन्य शाखाओं के अध्ययन के लिए पहले आसपास उग रहे पौधों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हमारे लिए आवश्यक है तथा यह जानकारी हरबेरियम के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। पादप संग्रहालय पौधों के आवास व आकारिकीय लक्षणों से सम्बन्धित जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इसलिए पौधों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के अध्ययनों में पादप संग्रहालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
प्रश्न 11.
विश्व के प्रमुख पादप संग्रहालयों का नाम व प्रतिरूप संख्या की सूची दीजिये।
उत्तर:
नाम | प्रतिरूप संख्या |
रॉयल बोटेनिक गार्डन, न्यू, इंग्लैण्ड | 60 लाख |
वी.एल. कोमारोव बॉटेनिक इंस्टीट्यूट, लेनिनग्रेड | 50 लाख |
ब्रिटिश म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, लन्दन | 40 लाख |
पेरिस बॉटेनिक गार्डन | 1 करोड़ |
हावर्ड यूनिवर्सिटी, केम्ब्रिज | 50 लाख |
इण्डियन बॉटेनिक गार्डन, कोलकाता | 25 लाख |
प्रश्न 12.
भारत के किन्हीं पांच पादप संग्रहालयों का नाम व प्रतिरूप संख्या की सूची दीजिये।
उत्तर:
संग्रहालय का नाम | प्रतिरूपों की संख्या |
दी सेन्ट्रल नेशनल हर्बेरियम, कोलकाता। | 4,00,000 |
राष्ट्रीय वानस्पतिक शोध संस्थान,पादप संग्रहालय, लखनऊ। | 1,00,000 |
वन अनुसंधान संस्थान, पादप संग्रहालय, देहरादून। | 3,50,000 |
वनस्पति विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली पादप संग्रहालय। | 30,000 |
पादप संग्रहालय, वनस्पति विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर। | 40,000 |
प्रश्न 13.
वानस्पतिक उद्यानों को बहिरंग प्रयोगशालाएं क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
वनस्पति के अध्ययन में वानस्पतिक उद्यानों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन उद्यानों में उगने वाले पौधे मात्र सुन्दरता ही प्रदान नहीं करते अपितु ये पादप वर्गिकी, उद्यान विज्ञान (Horticulture) व पादप प्रजनन के क्षेत्र में अधिक उपयोगी हैं। इन उद्यानों में उगने वाली वनस्पति से पादपों की पुरस्थापना एवं दशानुकूलन (Introduction and acclimatization), खरपतवार उन्मूलन एवं नियंत्रण (Eradication and Control of weeds) तथा प्रदूषण नियंत्रण (Pollution Contral) आदि का अध्ययन किया जाता है।
इसके अलावा शोध कार्यों के लिए आवश्यक विभिन्न प्रकार के पौधे एवं पादप सामग्री की आपूर्ति भी इन्हीं वानस्पतिक उद्यानों से होती है। इसी कारण वानस्पति उद्यानों को वनस्पति शास्त्र के अध्ययन के लिए बहिरंग प्रयोगशालाएं (Outdoor laboratories) भी कहा जाता है। अतः ”किसी स्थान विशेष पर पृथक-पृथक या एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पाए जाने वाले पादप जब प्राकृतिक रूप से उगते हुए पाये जावे व इनका उपयोग शुद्ध एवं व्यावहारिक (pure and applied) दोनों प्रकार के अध्ययनों हेतु किया जावे तो इस प्रकार के पादप समूह को वानस्पतिक उद्यान (Botanical Garden) कहते हैं।”
प्राचीन काल से मानव ने उपयोगी पौधों को उद्यानों में उगाना प्रारम्भ कर दिया था। भारत, मिस्र एवं चीन की प्राचीन सभ्यताओं के अनुसार मन्दिरों के आसपास पूजा के लिए विभिन्न प्रकार के पुष्पीय व सजावटी पौधे उगाए जाते थे। किन्तु वनस्पतिशास्त्र के अध्ययन की प्रगति के साथ-साथ इन उद्यानों का महत्व अध्ययन कार्य के लिए उपयोगी होने लगा। अरस्तू ने 2350 वर्ष पूर्व विश्व के प्रथम वानस्पतिक उद्यान की स्थापना की थी।
परन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार भारत में अरस्तु से भी 550 वर्ष पूर्व मगध में चिकित्सक जीवक कौमारभृत्य द्वारा औषधीय महत्व के पौधों के लिए उद्यान की स्थापना की गई थी। गत 150 वर्षों में इन उद्यानों को आधुनिक स्वरूप दिया जाने लगा है। अमेरिका के पादप विज्ञानी हेनरी शॉ (Henry Shaw) ने इन उद्यानों को वैज्ञानिक अध्ययन का महत्व बताया व उन्होंने सेंट लुईस (अमेरिका) में मिसौरी वानस्पति उद्यान (Missouri Botanic Garden) की स्थापना की।
प्रश्न 14.
कार्यक्षेत्र में पौधे एकत्र करते समय फील्ड डायरी की उपयोगिता समझाइये?
उत्तर:
प्रतिरूप के संग्रह एवं सुखाने में रखी जाने वाली सावधानियां (Precautions to be taken in collecting and drying the Specimens):
- प्लान्ट प्रेस (Plant Press) जिसमें दबे हुए प्रतिरूप हों उसे धूप या साधारण गर्मी में रखा जा सकता है। सुखाने वाले ब्लाटिंग पेपर (bloting paper) के पन्ने (न कि अखबार के पन्ने) प्रत्येक चौबीस घंटों के बाद बदल दिए जाने चाहिए जब तक कि प्रतिरूप पूर्णतः सूख न जायें।
- क्षेत्र से संग्रह किए गए प्रत्येक प्रतिरूप को एक अंक दे देना चाहिए तथा इसे टिन से बने डिब्बे या वेस्कुलम (Vasculum) में रखा होना चाहिए। प्रतिरूपों को दिए गए अंकों के अनरूप अंक फील्ड डायरी में लिखे जाने चाहिए। फील्ड डायरी में प्रत्येक सूचना उसी समय उसी स्थान पर लिख लें।
प्रश्न 15.
वर्षा के मौसम में पहाड़ी क्षेत्रों में पौधों को सुखाने की युक्ति समझाइये?
उत्तर:
वर्षा के मौसम में तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पौधों को सुखाने के लिए बिजली के हीटर की सहायता लेते हैं।
प्रश्न 16.
हरबेरियम शीटों के रखरखाव (Filing) तकनीक का विवरण दीजिए।
उत्तर:
पादप संग्रहालय में पादप संग्रह पत्रों का संचयन एवं व्यवस्था (Storing and arrangement of sheets in a Herbarium):
आरोपित पादप संग्रह पत्रों को वर्गीकृत रूप में रखने के विधि को फाइलिंग (filing) कहते हैं। एक ही जाति के सभी प्रतिरूप एक या बहुत से मोटे कागज के एक ही फोल्डर (Folder) में रखे जाते हैं। ऐसे फोल्डर, स्टील या लकड़ी की अलमारियों में रखे जाते हैं जो छोटे-छोटे खानों में विभाजित होती हैं और जिनमें अच्छी तरह से बन्द होने वाले दरवाजे लगे होते हैं। उसके बाहर लगा लेबिल, अन्दर रखी वस्तुओं की प्रकृति के विषय में बतलाता है। (चित्र – 4)। भारत व इंग्लैण्ड में बैंथम व हुकर की वर्गीकरण पद्धति के आधार पर पादप संग्रहालय व्यवस्थित किये जाते हैं।
RBSE Class 11 Biology Chapter 24 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पादप संग्रहालय क्या है? भारत के प्रमुख पादप संग्रहालयों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
“शुष्क एवं परिरक्षित पादप प्रतिरूपों (Plant Speciman) का संग्रह या भण्डारण जिस स्थान विशेष में किया जाता है, उसे पादप संग्रहालय या हर्बेरियम (herbarium) कहते हैं।”
पादप संग्रहालय का उद्देश्य (Objectives of plant herbarium):
इसका मुख्य उद्देश्य आगामी सन्दर्भ (future reference) व शोध कार्य के लिए विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाले विभिन्न पौधों के प्रतिरूप व उनके विषय में आवश्यक समग्र जानकारी प्राप्त करने का होता है। इसके अतिरिक्त यह महसूस किया गया है कि विभिन्न पौधों की संरचना का ज्ञान उनके चित्र या फोटो को देखकर या उनके विवरण को पढ़कर पूर्ण रूप से सम्भव नहीं हो पाता। इसलिए कभी-कभी पादप प्ररूपों की तुलना उनके चित्र या विवरण से की जाती है। यह तुलनात्मक अध्ययन तब ही सम्भव है जब संग्रहालय में उस या उससे सम्बन्धित हर्बेरियम सीट उपलब्ध हो।
हमारे देश में पादप वर्गिकी के क्षेत्र में सुव्यवस्थित अध्ययन एवं अन्वेषण कार्य 19वीं शताब्दी के अन्त में हुकर द्वारा लिखे ग्रंथ ‘फ्लोरा ऑफ ब्रिटिश इण्डिया” (Flora of British India) के प्रकाशन के साथ ही आरम्भ हो गया था। भारत में हर्बेरियम स्थापना का कार्य सर्वप्रथम भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण संस्थान” (BSI) द्वारा प्रारम्भ किया गया। इसके सौजन्य से ”सेन्ट्रल नेशनल हर्बेरियम” की स्थापना कोलकाता में की गई थी। इसके बाद अनेक विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में पादप संग्रहालयों की स्थापना होने लगी। भारत के कुछ मुख्य पादप संग्रहालय निम्न प्रकार से हैं –
1. दी सेन्ट्रल नेशनल हर्बेरियम, कोलकाता (The Central National Herbarium, kolkata):
यह एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा हर्बेरियम है व इसकी स्थापना विलियम रॉक्सबर्ग ने वनस्पति उद्यान कोलकाता के परिसर में की थी। वर्तमान में यह 200 वर्ष पुराना है व इसमें लगभग चार लाख (4,00,000) से भी अधिक पादप प्रतिरूप परिरक्षित हैं। इस पादप संग्रहालय में भारत के अतिरिक्त यूरोप, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं जापान इत्यादि देशों के पादप प्रतिरूप भी हर्बेरियम शीट्स में परिरक्षित हैं।
यहां पुष्पीय पौधों के अतिरिक्त अनेक फर्क्स, जिम्नोस्पर्ल्स एवं कुछ अन्य अपुष्पी पादप समूहों के प्रतिरूप भी परिरक्षित किए गये हैं। हर्बेरियम में पादप प्रतिरूपों को बैंथम व हुकर की वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार व्यवस्थित किया गया है। इस संस्थान के सौजन्य से अभी तक 7 नये पादप वंश (Genera) एवं लगभग 200 से अधिक पादप प्रजातियों का वर्णन किया जा चुका है।
2. राष्ट्रीय वानस्पतिक शोध संस्थान का हर्बरियम, लखनऊ (The Herbarium – National Botanical Research Institute, Lucknow):
इसे सन् 1948 में राष्ट्रीय वानस्पतिक उद्यान की एक इकाई के रूप में प्रारम्भ किया गया। वर्तमान में इसका नियंत्रण ”वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद” (CSIR) के पास में है। पादप संग्रहालय में लगभग एक लाख (1,00,000) पादप प्रतिरूप परिरक्षित हैं। इसमें पुस्तकालय, वृहत् ग्रीन हाऊस तथा पेंलिनोलॉजी, पादप कार्यिकी एवं ऊतक संवर्धन प्रयोगशालाएं इत्यादि भी सार्थक रूप से यहां कार्यरत हैं। इस हर्बेरियम में भारत के सभी राज्यों से एकत्र पादप प्रतिरूप संगृहित हैं।
3. वन अनुसंधान संस्थान पादप संग्रहालय, देहरादून (Forest Research Institute Herbarium, Dehradun):
सर्वप्रथम यह हर्बेरियम ब्रिटिश सरकार के द्वारा सन् 1874 में देहरादून में स्थापित किया गया था परन्तु इसका वर्तमान प्रारूप सन् 1908 में सुस्थापित हुआ। इस संस्थान को कोलकाता के हर्बेरियम के बाद दूसरा स्थान है। यह संस्थान भारत सरकार के खाद्य व कृषि मंत्रालय के अधीन है।
यहां लगभग तीन लाख पचास हजार (3,50,000) पादप प्रतिरूप परिरक्षित हैं, जिनमें अधिकांश प्रतिरूप पुष्पधारी पौधों, फर्स व जिम्नोस्पर्स के हैं। वैसे तो यहां संचित अधिकांश पादप प्रतिरूप हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं से एकत्र किए गए हैं फिर भी इसके अतिरिक्त यहां काफी संख्या में भारत के अन्य राज्यों एवं कुछ पड़ौसी देशों जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तिब्बत एवं बर्मा के पादप प्रतिरूप भी संगृहित हैं।
4. वनस्पति विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय का पादप संग्रहालय (The Herbarium of department of Botany, Delhi University): यह उत्तर भारत का प्रमुख हर्बेरियम है जिसमें लगभग 30,000 पादप प्रारूप संरक्षित हैं।
5. वनस्पति विज्ञान विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय का पादप संग्रहालय (The Herbarium of department of Botany, University of Rajasthan): इसकी स्थापना सन् 1965 में हुई थी। यहां लगभग 40,000 पादप प्रतिरूप संरक्षित हैं।
प्रश्न 2.
वानस्पतिक उद्यान क्या होते हैं ? वानस्पतिक उद्यानों का इतिहास व महत्व का विस्तृत वर्णन कीजिये?
उत्तर:
वनस्पति के अध्ययन में वानस्पतिक उद्यानों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन उद्यानों में उगने वाले पौधे मात्र सुन्दरता ही प्रदान नहीं करते अपितु ये पादप वर्गिकी, उद्यान विज्ञान (Horticulture) व पादप प्रजनन के क्षेत्र में अधिक उपयोगी हैं। इन उद्यानों में उगने वाली वनस्पति से पादपों की पुरस्थापना एवं दशानुकूलन (Introduction and acclimatization), खरपतवार उन्मूलन एवं नियंत्रण (Eradication and Control of weeds) तथा प्रदूषण नियंत्रण (Pollution Contral) आदि का अध्ययन किया जाता है।
इसके अलावा शोध कार्यों के लिए आवश्यक विभिन्न प्रकार के पौधे एवं पादप सामग्री की आपूर्ति भी इन्हीं वानस्पतिक उद्यानों से होती है। इसी कारण वानस्पति उद्यानों को वनस्पति शास्त्र के अध्ययन के लिए बहिरंग प्रयोगशालाएं (Outdoor laboratories) भी कहा जाता है। अतः ”किसी स्थान विशेष पर पृथक-पृथक या एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पाए जाने वाले पादप जब प्राकृतिक रूप से उगते हुए पाये जावे व इनका उपयोग शुद्ध एवं व्यावहारिक (pure and applied) दोनों प्रकार के अध्ययनों हेतु किया जावे तो इस प्रकार के पादप समूह को वानस्पतिक उद्यान (Botanical Garden) कहते हैं।”
प्राचीन काल से मानव ने उपयोगी पौधों को उद्यानों में उगाना प्रारम्भ कर दिया था। भारत, मिस्र एवं चीन की प्राचीन सभ्यताओं के अनुसार मन्दिरों के आसपास पूजा के लिए विभिन्न प्रकार के पुष्पीय व सजावटी पौधे उगाए जाते थे। किन्तु वनस्पतिशास्त्र के अध्ययन की प्रगति के साथ-साथ इन उद्यानों का महत्व अध्ययन कार्य के लिए उपयोगी होने लगा। अरस्तू ने 2350 वर्ष पूर्व विश्व के प्रथम वानस्पतिक उद्यान की स्थापना की थी।
परन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार भारत में अरस्तु से भी 550 वर्ष पूर्व मगध में चिकित्सक जीवक कौमारभृत्य द्वारा औषधीय महत्व के पौधों के लिए उद्यान की स्थापना की गई थी। गत 150 वर्षों में इन उद्यानों को आधुनिक स्वरूप दिया जाने लगा है। अमेरिका के पादप विज्ञानी हेनरी शॉ (Henry Shaw) ने इन उद्यानों को वैज्ञानिक अध्ययन का महत्व बताया व उन्होंने सेंट लुईस (अमेरिका) में मिसौरी वानस्पति उद्यान (Missouri Botanic Garden) की स्थापना की।
वानस्पतिक उद्यानों की उपयोगिता एवं उद्देश्य (Objective and usefulness of Botanical Gardens):
- विभिन्न प्रकार के पौधों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन हेतु सटीक एवं मूलभूत आकारिकीय विवरण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
- विभिन्न प्रकार के पौधों की तुलनात्मक वर्गिकीय अध्ययन यहां पर उगने वाली प्रजातियों को देखकर किया जा सकता है तथा इनके आधार पर पौधों का नामकरण एवं वर्गीकरण किया जा सकता है।
- विभिन्न प्रकार के प्रयोगशाला अध्ययनों, जैसे- शारीरिकी, पादप कार्यिकी, कोशिका विज्ञान ऊत्तक संवर्धन एवं पादप प्रजनन व पादप रसायन हेतु आवश्यक पादप सामग्री वानस्पतिक उद्यानों में उगने वाली पादप प्रजातियों से प्राप्त की जा सकती है।
- क्योंकि वानस्पतिक उद्यानों में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में उगने वाले पौधों को उनकी प्राकृतिक आवासीय परिस्थितियां कृत्रिम रूप से उत्पन्न कर लगाया जाता है। अतः यहां इन पौधों को देखकर इनकी प्राकृतिक आवास के बारे में जानकारी मिलती है। साथ ही यहाँ अनेक दुर्लभ पौधे अपने प्राकृतिक अवस्था में दृष्टिगोचर होते हैं।
- विभिन्न आवासीय क्षेत्रों के पौधों के देशानुकूलन (Acclimatization) के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करते हैं।
- उद्यान विज्ञान (Horticulture) के विकास में (विशेषकर मानवोपयोगी पौधों जैसे- फल उत्पादक पौधे, औषधिक पौधे इत्यादि की गुणवत्ता के सुधार में) ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- वानस्पतिक उद्यानों में उगने वाले पौधों की सुन्दरता, पौधों पर खिलने वाले पुष्पों की सुगन्ध, वृक्षों की सघन छाया, हमारी सौन्दर्य बोध (Aesthetic sence) की प्रवृत्ति को परिपूर्ण करती है।
- उद्यानों में विद्यमाने पौधा घरों (Green houses) की अनुसंधान कार्य में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- अनेक दुर्लभ व वानस्पतिक गुणों वाले पादपों का विद्यार्थियों से प्रत्यक्ष परिचय होता है। अतः उद्यान बहिरंग प्रयोगशालाएँ (outdoor laboratories) होते हैं।
प्रश्न 3.
पादप संग्रह तकनीक से क्या अभिप्राय है? पादप संग्रह तकनीक हेतु प्रयुक्त उपकरणों को विस्तार से नामांकित चित्र सहित समझाइये?
उत्तर:
पादप संग्रह की तकनीक (Technique of plant collection):
पादप संग्रह की सही तकनीक अपना कर पादप प्रतिरूपों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। शाकीय वे छोटे पौधों के सभी भागों (जड़, तना, पत्तियां, पुष्पक्रम, पुष्प व फल) सहित पादप प्रतिरूप के लिए लेना चाहिए। बड़े काष्ठीय व बहुवर्षीय पादपों व झाड़ियों में पुष्पयुक्त टहनियां एकत्र कर सकते हैं। संग्रह करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रतिरूप स्वस्थ हो व उसमें पुष्प उपस्थित हो। पादप प्रतिरूप को पुष्पन के अन्तिम चरण में लेना चाहिए। पादप प्रतिरूपों को एकत्रित करने के लिए एक ही ऋतु में 3 या 4 बार क्षेत्र में जाना चाहिए जिससे अलग-अलग वृद्धि अवस्थाओं में प्रतिरूप एकत्रित किये जा सकें।
आवश्यक उपकरण (Essented tools):
क्षेत्र या फील्ड में प्रतिरूपों को एकत्र करने के लिए खुरपी (digger) कलम, कैंची (secateur), नई ब्लेड, प्लांट प्रेस, ब्लाटिंग पेपर, पुराने अखबार, पोलीथीन की थैलियां तथा वेस्कुलम (Vasculum) होना चाहिए। वेस्कुलम एल्मुनियम का बना एक बॉक्स होता है। इसकी भीतरी दीवार पर कॉर्क सीट चिपकी रहती है जो पौधों को लम्बे समय तक सूखने से बचाती है। इसके अतरिक्त फील्ड डायरी या नोट बुक, दो चिमटियां (forceps), हैंडलेंस, पीट पर लटकाया जाने वाला बड़ा थैला व कुछ रबर बैंडस (rubber bands) भी होनी चाहिए।
प्रश्न 4.
पादप संग्रह शीट तैयार करने की विधि सचित्र समझाइये ?
उत्तर:
प्रतिरूप के संग्रह एवं सुखाने में रखी जाने वाली सावधानियां (Precautions to be taken in collecting and drying the Specimens):
- प्लान्ट प्रेस (Plant Press) जिसमें दबे हुए प्रतिरूप हों उसे धूप या साधारण गर्मी में रखा जा सकता है। सुखाने वाले ब्लाटिंग पेपर (bloting paper) के पन्ने (न कि अखबार के पन्ने) प्रत्येक चौबीस घंटों के बाद बदल दिए जाने चाहिए जब तक कि प्रतिरूप पूर्णतः सूख न जायें।
- क्षेत्र से संग्रह किए गए प्रत्येक प्रतिरूप को एक अंक दे देना चाहिए तथा इसे टिन से बने डिब्बे या वेस्कुलम (Vasculum) में रखा होना चाहिए। प्रतिरूपों को दिए गए अंकों के अनरूप अंक फील्ड डायरी में लिखे जाने चाहिए। फील्ड डायरी में प्रत्येक सूचना उसी समय उसी स्थान पर लिख लें।
पादप संग्रह पत्रे (Herbarium Sheet) का निर्माण दबाए हुए प्रतिरूप पूर्णतः सूख जाने के पश्चात् उन्हें सावधानीपूर्वक सफेद मोटे कागज पर चिपका दिया जाता है। पादप संग्रह के लिए मोटे कागज का अन्तर्राष्ट्रीय प्रामाणिक आकार 11.5 x 16.5 इंच है। पादप संग्रह पत्र के ऊपरी सिरे पर पादप संग्रहालय का नाम छपा रहता है। निचले सीधे हाथ की ओर कोने में प्रतिरूप से सम्बन्धित कुछ क्षेत्रीय एवं अन्य आँकड़े लेबिल (label) पर दिए जाने चाहिए। सूखे हुए प्रतिरूपों को पादप संग्रह पत्र पर स्थानान्तरण करने को आरोपण (mounting) कहते हैं। हर्बेरियम शीट –
संग्रहित पादप
प्रतिरूपों को पादप संग्रह पत्र पर विभिन्न प्रकार से चिपकाया जा सकता है, जो निम्न प्रकार है –
(अ) सूखे हुए प्रतिरूपों को गोंद (camels white gum or gloy) जिसमें 1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड (mercuric choride) मिला हो, 12 x 18 इंच आकारे वाली ट्रे में स्थानान्तरित कर तैरा देते हैं। फिर उन्हें पादप संग्रह पत्रों पर गोंद लगी तरफ से रख देते हैं तथा धीरे-धीरे दबाकर सूखने के लिए रख देते हैं।
(ब) एक अन्य विधि जो अमेरिका के बहुत से पादप संग्रहालयों में प्रयोग में लाई जाती है, में एथिल सेल्यूलोज (ethyl cellulose) एवं सरेस का मिश्रण जो टॉलीन (tolucne) एवं मिथाइल ऐल्कोहल (methyl alcohol) मिश्रण में घोला जाता है, को पादप संग्रह पर रखे प्रतिरूप को चिपकाने के लिए लगाया जाता है।
पादप संग्रह पत्रों का नामांकन (Labelling the Herbari garm Sheet):
सूचना जिन शीर्षकों के अन्दर आवश्यक होती है, वह पत्र के नीचे की तरफ दाहिनी ओर छपे होते हैं या लेबिल (लगभग 3×5 इंच आकार के) छपे होते हैं जो पादप संग्रह पत्र के निचले दाहिने कोने में चिपका दिए जाते हैं। इसमें कम से कम अग्र सूचना होनी चाहिए।
- वंश, जाति एवं कुल अन्वेषणकर्ता के नाम के साथ।
- संग्रह का सही स्थान, देश, प्रदेश, जिला एवं संग्रह का सही बिन्दु।
- आवास (habitat)।
- संग्रह का दिनांक।
- संग्रहकर्ता का नाम।
- संग्रहकर्ता का क्षेत्रीय अंक।
प्रतिरूप को पहचानने वाले का नाम यदि वह संग्रहकर्ता के अलावा कोई हो। अन्य सूचना –
- पुष्प का रंग
- वनस्पति का रूप
- पादप की ऊंचाई।
प्रश्न 5.
भारत के तीन वानस्पतिक उद्यानों का विवरण दीजिये ?
उत्तर:
हमारे देश के प्रमुख वानस्पतिक उद्यानों का विवरण निम्न प्रकार से है –
1. इण्डियन बोटेनिकल गार्डन, सिबपुर, कोलकाता (Indian Botanic Gardan Sibpur, Kolkata)-यह एशिया का सबसे बड़ा वानस्पतिक उद्यान है। इसकी स्थाना 1787 में हुगली नदी के तट पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सैनिक अधिकारी कर्नल राबॅर्ट किड (Col, Robert Kyd) ने की थी तथा वे ही इस उद्यान के प्रथम अवैतनिक निदेशक थे। यद्यपि वे 6 वर्ष तक इस उद्यान के प्रभारी रहे परन्तु उद्यान के विकास का श्रेय वनस्पतिशास्त्री विलियम रॉक्सबर्ग (Willam Roxberg) को जाता है तथा वे फिर इसके निदेशक रहे।
उन्होंने यहां हर्बेरियम व अन्य प्रयोगशालाएं। स्थापित की। सन् 1864 में आये तूफान एवं ज्वार-भाटे से इस उद्यान को भारी क्षति पहुंची परन्तु जैसे ही डॉ. किंग इसके निदेशक बने, उन्होंने पुनः उद्यान को सुन्दर स्वरूप प्रदान किया। डॉ. किंग के प्रयास से 1890 में भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण संस्थान” (Botanical Survey Of India) की स्थापना की गई। डॉ. के. बिस्वास इस उद्यान के प्रथम भारतीय निदेशक बने। यह उद्यान 110 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
यहां 12,000 से अधिक वृक्षों, क्षुप, ताड़ों (Palms) घास एवं ऑर्किड्स (Orchids) की भारतीय एवं विदेशी जातियां उगाई गई है। इस उद्यान का प्रमुख आकर्षण केन्द्र 200 वर्ष पुराना बरगद का विशाल वृक्ष (Big Banyan Tree) है, जिसकी ऊंचाई लगभग 100 फीट है व इसकी शाखाएं लगभग 15,000 वर्ग मीटर के घेरे में फैली हुई हैं। इसके अतिरिक्त इस उद्यान में पाम वृक्षों, अनेक केक्ट्स एवं मांसल पादपों (succulent) का भी अद्भुत संग्रह है।
2. राष्ट्रीय वानस्पतिक उद्यान, लखनऊ (National Botanical Garden Lucknow, NBG):
इसकी स्थापना सन् 1865 में अवध के नवाबों द्वारा शाही बाग के रूप में की गई थी। इस बाग में सेंटोनिन औषध को प्राप्त करने के लिए आर्टीमीसीया मैरिटमा (Artemisia maritima) को उगाया गया था। पूर्व में इस उद्यान का नाम नवाब वाजिद अली शाह की बेगम सिकन्दर महल की स्मृति में सिकन्दर बाग रखा गया था। बाद में अंग्रेजों के आक्रमण से यह बर्बाद हो गया था। पुनः 1907 में इसका पुनर्निर्माण हुआ।
1948 में प्रो. के.एल. कौल तथा बाद में डॉ. टी.एन. खोशू इसके निदेशक रहे। राष्ट्रीय वानस्पतिक शोध संस्थान (NBRI) वर्तमान समय में सी.एस.आई.आर. (CSIR) द्वारा संचालित किया जाता है। इसका क्षेत्रफल 75 एकड़ है। इस उद्यान में पाम, फर्स, ऑर्किड्स, केक्यई, औषधीय एवं शोभाकारी पौधों का दुर्लभ एवं समृद्ध संग्रह है। इसके अतिरिक्त यहां नींबू कुल (Rutaceae) के पौधों की अनेक प्रजातियां तथा गुलाब की अनेक किस्में विद्यमान हैं।
3. लॉयड वानस्पतिक उद्यान, दार्जिलिंग (Llyod Botanical Garden Darjeeling):
दार्जिलिंग के प्रबुद्ध नागरिक विलियन लॉयड ने इस उद्यान हेतु 40 एकड़ भूमि उपहार में दी थी। अतः उनके सम्मान में इस उद्यान का नाम लॉयड रखा गया था तथा इसकी स्थापना सन् 1865 में हुई थी। इस उद्यान को तीन भागों में बांटा गया है। जिनमें ऊपरी क्षेत्र में स्थानीय पादप प्रजातियां, निचले भाग में विदेशी प्रजातियां तथा मध्यवर्ती भाग में मिश्रित पादप प्रजातियां उगाई गई हैं। उद्यान में सदाहरित व पर्णपाती वृक्षों की अनेक प्रजातियां हैं। इस उद्यान में विश्व की कुछ बहुमूल्य एवं दुर्लभ पादप प्रजातियां भी प्राकृतिक अवस्था में उगती हुई दिखाई देती हैं, जैसे- नीली पत्तियों वाला आस्ट्रेलियाई कोनीफर, कैलीट्रिस (Callitris) एवं जीवित जीवाश्म जैसे मेटासिकोइया (Metasequoia) गिंगोबाइलोबा (Ginkgo biloba) इत्यादि।
प्रश्न 6.
पादप संग्रहालय में हरबेरियम शीटों के रखरखाव को विस्तृत रूप से समझाइये?
उत्तर:
पादप संग्रह पत्रों का नामांकन (Labelling the Herbari garm Sheet):
सूचना जिन शीर्षकों के अन्दर आवश्यक होती है, वह पत्र के नीचे की तरफ दाहिनी ओर छपे होते हैं या लेबिल (लगभग 3 x 5 इंच आकार के) छपे होते हैं जो पादप संग्रह पत्र के निचले दाहिने कोने में चिपका दिए जाते हैं। इसमें कम से कम अग्र सूचना होनी चाहिए।
- वंश, जाति एवं कुल अन्वेषणकर्ता के नाम के साथ।
- संग्रह का सही स्थान, देश, प्रदेश, जिला एवं संग्रह का सही बिन्दु।
- आवास (habitat)।
- संग्रह का दिनांक।
- संग्रहकर्ता का नाम।
- संग्रहकर्ता का क्षेत्रीय अंक।
प्रतिरूप को पहचानने वाले का नाम यदि वह संग्रहकर्ता के अलावा कोई हो। अन्य सूचना –
- पुष्प का रंग
- वनस्पति का रूप
- पादप की ऊंचाई।
पादप संग्रहालय में पादप संग्रह पत्रों का संचयन एवं व्यवस्था (Storing and arrangement of sheets in a Herbarium):
आरोपित पादप संग्रह पत्रों को वर्गीकृत रूप में रखने के विधि को फाइलिंग (filing) कहते हैं। एक ही जाति के सभी प्रतिरूप एक या बहुत से मोटे कागज के एक ही फोल्डर (Folder) में रखे जाते हैं। ऐसे फोल्डर, स्टील या लकड़ी की अलमारियों में रखे जाते हैं जो छोटे-छोटे खानों में विभाजित होती हैं और जिनमें अच्छी तरह से बन्द होने वाले दरवाजे लगे होते हैं। उसके बाहर लगा लेबिल, अन्दर रखी वस्तुओं की प्रकृति के विषय में बतलाता है। (चित्र – 4)। भारत व इंग्लैण्ड में बैंथम व हुकर की वर्गीकरण पद्धति के आधार पर पादप संग्रहालय व्यवस्थित किये जाते हैं।
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