Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 30 अकशेरुकी जन्तुओं का वर्गीकरण
RBSE Class 11 Biology Chapter 30 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 30 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रोटोजोआ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया’
(क) हीकल
(ख) गोल्डफस
(ग) लेमार्क
(घ) ल्यूवेनहॉक
प्रश्न 2.
बाथ स्पंज है
(क) यूस्पांजिया
(ख) स्पांजिला
(ग) हिप्पोस्पांजिला
(घ) फेरोनीमा
प्रश्न 3.
‘हाथीदांत’: के समान कवच है
(क) नाटिलस
(ख) लाइमेक्स
(ग) काइटनं
(घ) डेन्टेलियम
प्रश्न 4.
ऐनेलिडा एवं मौलस्का के बीच की योजक कड़ी है
(क) पेरीपेटस
(ख) नियोपिलाइना
(ग) लिमुलस
(घ) लाइमेक्स।
प्रश्न 5.
निम्न में से सबसे बड़ा अकशेरुकी जन्तु है
(क) दैत्य स्किवड
(ख) कटलमीन
(ग) फाईसेलिया
(घ) बेलेनोप्टेरा
प्रश्न 6.
‘अरस्तू की लालटेन’ किसमें मिलती है
(क) तारामछली
(ख) ब्रिटिल स्टार
(ग) सी-अर्चिन
(घ) सी-एनीमोन
प्रश्न 7.
मौलस्का में कवच किससे बनता है?
(क) पाद
(ख) मेन्टल
(ग) टिनिडिया
(घ) प्लेकोइडा
उत्तर तालिका
1. (ख)
2. (क)
3. (घ)
4. (ख)
5. (क)
6. (ग)
7. (ख)
RBSE Class 11 Biology Chapter 30 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रोटोजोआ संघ का वर्गीकरण किस आधार पर किया गया है?
उत्तर-
प्रोटोजोआ संघ का वर्गीकरण जन्तुओं में गमनांग/ चलन अंग के आधार पर किया गया है।
प्रश्न 2.
एन्टअमीबा हिस्टोलाइटिका से कौनसा रोग होता है?
उत्तर-
एन्टअमीबा हिस्टोलाइटिका से अमीबॉयसिस नामक रोग होता है।
प्रश्न 3.
संघ प्लेटीहैल्मिन्थीज के स्वतंत्र जीवी जन्तु का नाम बताइये।
उत्तर-
संघ प्लेटीहैल्मिन्थीज के स्वतंत्र जीवी जन्तु का नाम प्लेनेरिया है।
प्रश्न 4.
अकशेरुकी प्राणियों को सबसे बड़ा संघ कौनसा है?
उत्तर-
अकशेरुकी प्राणियों का सबसे बड़ा संघ आर्थोपोडा है।
प्रश्न 5.
‘नली के भीतर नली’ जैसी संरचना किन जन्तुओं में पाई जाती है?
उत्तर-
नली के भीतर नली’ जैसी संरचना ऐनेलिडा के जन्तुओं में पाई जाती है।
प्रश्न 6.
ऐनेलिडा संघ के जन्तुओं में किस प्रकार की देहगुहा पाई जाती है?
उत्तर-
ऐनेलिडा संघ के जन्तुओं में वास्तविक देहगुहा पाई जाती है।
प्रश्न 7.
किसी एक जीवित जीवाश्म जन्तु का नाम लिखिये।
उत्तर-
निओपिलिना एक जीवित जीवाश्म है।
प्रश्न 8.
ऐनेलिडा एवं आर्थोपोडा की संयोजक कड़ी कौनसा जन्तु है?
उत्तर-
ऐनेलिडा एवं आर्थोपोडो की संयोजक कड़ी पेरीपेट्स (Peripatus) है।
प्रश्न 9.
श्वसन वर्णक हिमोसाइनिन कौनसे संघ के जन्तुओं में पाया जाता है?
उत्तर-
श्वसन वर्णक हिमोसाइनिन मोलस्का संघ के जन्तुओं में पाया जाता है।
प्रश्न 10.
संघ सीलैन्ट्रेटा के जन्तुओं में पुनरुद्भवन की क्षमता कौनसी कोशिकाओं के कारण होती है?
उत्तर-
संघ सीलैन्ट्रेटा के जन्तुओं में पुनरुद्भवन की क्षमता अन्तराली कोशिकाओं (Interstitial Cells) के कारण होती है।
प्रश्न 11.
मीसोग्लिया स्तर कौनसे संघ के जन्तुओं में पाया जाता है?
उत्तर-
मीसोग्लिया स्तर सीलेन्ट्रेटा संघ के जन्तुओं में पाया जाता है।
प्रश्न 12.
आर्थोपोडा संघ के कौनसे उपसंघ के सभी जन्तु जीवाश्म अवस्था में पाए जाते हैं?
उत्तर-
आर्थोपोडा संघ के ट्राइलोबाइटा उपसंघ के सभी जन्तु जीवाश्म अवस्था में पाये जाते हैं।
प्रश्न 13.
मनुष्य में ‘हाथी पांव’ का रोग किस कृमि द्वारा होता हैं?
उत्तर-
मनुष्य में ‘हाथी पांव’ का रोग बूचैरेरिया बेन्कोफटाइ द्वारा होता है।
प्रश्न 14.
प्रोटोजोआ के किस वर्ग में गमनांगों का अभाव होता है?
उत्तर-
प्रोटोजोआ के स्पोरोजोआ वर्ग में गमनांगों का अभाव होता है।
प्रश्न 15.
मौलस्का संघ के जन्तुओं में श्वसन कौनसे अंग द्वारा होता है?
उत्तर-
मौलस्का संघ के जन्तुओं में श्वसन क्लोम या फुफ्फुस द्वारा होता है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 30 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संघ प्रोटोजोआ को गमन के आधार पर कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
उत्तर-
संघ प्रोटोजोआ को गमन के आधार पर चार वर्गों में विभाजित किया गया है
- फ्लैजीलेटा/ मैस्टीगोफेरा
- सॉरकोडिना या राइजोपोडा
- सिलियेटा
- स्पोरोजोआ
प्रश्न 2.
कूटगुहीय संघ के चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर-
कुटगुहीय संघ (निमैहेल्मिन्थीज ) के लक्षण
- इनका शरीर गोल व धागे के समान होता है। इसे गोलकृमि कहते हैं। इनमें स्पष्ट सिर का अभाव होता है।
- शरीर पर मोटा क्यूटिकल का आवरण पाया जाता है।
- अधिचर्म बहुकेन्द्रकीय तथा भीतर की ओर विशेष प्रकार अनुलम्ब पेशी कोशिकाओं के चार चतुर्थांशों में बंटा पेशी स्तर का होता
- शरीर खण्डहीन, त्रिस्तरीय एवं द्विपाश्र्वी सममित होता है।
प्रश्न 3.
किन्हीं दो अन्तः परजीवी के नाम एवं उनके द्वारा जनित रोग का नाम लिखिये जो मनुष्य में पाये जाते हैं?
उत्तर-
नाम अन्त:परजीवी रोग जो मनुष्य में होता है।
- प्लाजमोडियम वाइवैक्स मलेरिया ।
- एन्ट अमीबा हिस्टोलिटिका अमीबॅयसिस
प्रश्न 4.
जीवित जीवाश्म किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
ऐसे जीवित जीव (organisms) जो जीवाश्म के सादृश्य हो एवं उनमें जीवाश्म के लक्षण पाये जाते हों तो इन्हें जीवित जीवाश्म कहते हैं। जीवित जीवाश्म के उदाहरण
- निओपिलिना (Neopilina) मोलस्का का सदस्य
- लिमुलसे या किंग क्रेब (Limulus or King Crab) आर्थोपोडी का सदस्य।
प्रश्न 5.
संघ सीलैन्ट्रेटा में दंश कोशिकाओं का विशेष कार्य लिखिये।
उत्तर-
संघ सीलैन्ट्रेटा में पाई जाने वाली दंश कोशिकाओं के विशेष कार्य निम्न हैं
- दंश कोशिकाएं कोशिका को आधार से चिपकने में
- आत्मरक्षा करने में
- भोजन को पकड़ने में।
प्रश्न 6.
उन चार संघों का नाम लिखिये जिनमें परिवर्धन के दौरान लार्वा अवस्था पाई जाती है।
उत्तर-
चार संघ निम्न हैं जिनमें परिवर्धन के दौरान लार्वा अवस्था पाई जाती है
- संघ-ऐनेलिडा
- संघ-आर्थोपोडा
- संघ-मौलस्का
- संघ-इकाइनोडर्मेटा
प्रश्न 7.
संघ हेमीकॉर्डेटा के विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर-
संघ हेमीकॉर्डेटा के लक्षण
- इस संघ के सभी सदस्य समुद्रीय हैं। इनका शरीर कृमि समान (Worm-like) होता है।
- शरीर तीन भागों में विभक्त होता है
(i) शृंड (Proboscis)
(ii) कॉलर (Collar)
(iii) धड़ (Trunk) - नोटोकोर्ड केवल अग्र सिरे पर ही पाई जाती है। नोटोकोर्ड के बारे में अभी शंका व्यक्त की जाती है। अतः इसे मुखीय डाइवर्टिकुला (Buccal diverticula) कहते हैं। इसलिए इसे नॉनकाटा के अन्तर्गत रखा जाता है।
- इस संघ के सदस्यों में कंकाल ऊतक (Skeletal tissue) अनुपस्थित होता है।
- इनमें एन्ट्रोसील (Entrocoel) प्रकार की सीलोम पाई जाती है। यह तीन भागों में विभक्त होती है-प्रोटसील, मीसोसील व मेटासील।
- इनमें अनेक गिल दरारें (gill slits) पाई जाती हैं।
- इनका तंत्रिका तंत्र अधिचर्म में पाया जाता है।
- इनमें सीधी या ‘U’ के आकार की आहारनाल पाई जाती
- देह भित्ति (body wall) एक स्तरीय एपीडर्मिस से बनी होती है तथा डर्मिस (dermis) अनुपस्थित होती है।
- परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार का होता है।
- इनके प्रोबोसिस में एक ग्लोमेरुलस पाया जाता है जो । उत्सर्जन का कार्य करता है।
- लिंग पृथक् होते हैं व इनमें परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
- इनके जीवन चक्र में टोरनेरिया लार्वा पाया जाता है।
प्रश्न 8.
द्विरूपता से क्या तात्पर्य है? उदाहरण द्वारा समझाइये।
उत्तर-
द्विरूपता-सीलेन्ट्रेटा संघ के प्राणि दो रूपों (dimorphic) में पाये जाते हैं, जिन्हें जीवक या जोइड्स (Zooids) कहते हैं।
- पॉलिप-इन प्राणियों का शरीर बेलनाकार होता है। ये अलैंगिक अवस्था वाले स्थानबद्ध प्राणी हैं। उदाहरण- हाइड्रा ।
- मेड्यूसा-इन प्राणियों के शरीर छत्री के समाने अथवा घंटी के समान होते हैं। लैंगिक अवस्था वाले व स्वतंत्र जीवी प्राणी हैं।
उदाहरण-ऑरीलिया।
प्रश्न 9.
उन कारणों को लिखिये जिनमें हेमीकॉर्डेटा को अब अकशेरुकी समूह में अलग संघ के रूप में रखा गया है।
उत्तर-
जन्तुओं के आधुनिक वर्गीकरण में इस संघ को काटा के साथ नहीं रखा गया है। अब इसे पृष्ठवंशी संघ अपृष्ठवंशी संघ में एक स्वतंत्र संघ के रूप में रखा गया है क्योंकि इस वर्ग के जन्तुओं में वास्तविक पृष्ठ रज्जु नहीं होता है। इसके अतिरिक्त हेमीकाडैटा संघ का लार्वा टोरनेरिया इकाइनोडर्मेटा संघ के बाइपिझेरिया से बहुत समानता रखता है। इसलिए हेमीकाटा को नॉनकार्डटा संघ में रखा गया है।
प्रश्न 10.
कंकाल निर्माण के आधार पर पोरीफेरा संघ के वर्गों के नाम उदाहरण सहित लिखिये।
उत्तर-
कंकाल निर्माण के आधार पर पोरीफेरा संघ के वर्गों के नाम व उदाहरण निम्न हैं-
वर्ग का नाम | उदाहरण |
(1) कैल्केरिया या कैल्सीस्पोंजी | -साइकॉन, ल्यूसिला |
(2) हैक्सॉक्टिनेलिडा या हायलोस्पोंजी | -यूप्लैक्टैला, ग्लास रोप स्पंज |
(3) डिमोस्पांजिया या चौखटास्पंज | -यूस्पांजिया, क्लायेना |
प्रश्न 11.
इकाईनोडमेंटा संघ के कोई चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर-
- इस संघ के प्राणी केवल समुद्र में पाये जाते हैं।
- जल संवहन तंत्र पाया जाता है।
- गमन हेतु नाल पाद (tube feet) पाये जाते हैं।
- इस संघ के सदस्यों में पंचअरीय सममिति पाई जाती है। इनमें लार्वा अवस्था में द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है।
- इनका शरीर बहुकोशिकीय एवं त्रिस्तरीय (Triploblastic) होता है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 30 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मोलस्का संघ के प्रमुख लक्षणों के साथ वर्गों के नाम एवं उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
मोलस्का का तात्पर्य होता है कोमल अर्थात् संघ मोलस्का में सम्मिलित किए जाने वाले जन्तुओं का शरीर कोमल होता है। शरीर कोमल व खण्डविहीन होता है तथा कैल्शियम कार्बोनेट के कवच से ढका रहता है। इस संघ का नाम जॉन्स्टन (Johnston) ने दिया था। यह अकशेरुक प्राणियों का सबसे बड़ा दूसरा संघ (phylum) है।
मुख्य लक्षण (Main Characteristics)-
- अधिकांश समुद्री, कुछ अलवणीय जल में, कुछ नम भूमि पर अधिकांश स्वतंत्र रेंगने वाले, कुछ चट्टानों आदि से चिपके, कुछ तैरने वाले तथा कुछ सुरंगों में रहने वाले होते हैं।
- ये त्रिस्तरीय (triploblostic), द्विपाश्र्वीय एवं अखण्डित होते हैं। परन्तु अनेक सदस्यों में ऐंठन (torsion) के कारण कुण्डलित (coiled) एवं असममित होते हैं।
- शरीर मुलायम होता है। इनका शरीर कैल्केरियस कवच (calcareous) द्वारा ढका रहता है। कुछ जन्तुओं में कवच भीतर पाया जाता है। जैसे- लोलिगो (Loligo) व आक्टोपस (Octopus)।
- इनका शरीर मेन्टल (Mantle), सिर (Head), पाद (Foot) व विसरल मॉस (Visceral mass) में विभक्त होता है। मेन्टल सम्पूर्ण शरीर को घेरे रहता है। मेन्टल द्वारा कवच का स्रावण होता है।
- वर्ग- पेलेसिपोडा व स्केपोपोडा को छोड़कर सभी में सिर स्पष्ट होता है। सिर पर नेत्र, स्पर्शक व संवेदी अंग पाए जाते हैं।
- गमन हेतु पाद (Foot) पाया जाता है। पाद भिन्न-भिन्न प्रकार से अनुकूलित (Adapted) होते हैं। ये रेंगने, बिल बनाने व तैरने में सहायक हैं।
- मेन्टल व शरीर के बीच मेन्टल गुहा (Mantle cavity) पाई जाती है। आंतरंग (Visceral mass) में सभी अंग स्थित होते हैं।
- मोलस्का के सदस्यों में खुले प्रकार का परिसंचरण तंत्र (open type of blood vascular system) पाया जाता है। सिफेलेपोडा वर्ग के सदस्यों में बन्द प्रकार का रक्त परिसंचरण तंत्र में पाया जाता है।
- इनमें रक्त रंगहीन या नीले रंग का होता है। हीमोसायनिन (Haemocynin) नामक श्वसन वर्णक पाया जाता है। हृदय पेशीजन्य (Myogenic) होता है।
- पाचन तंत्र में पाचन ग्रन्थियां तथा एक यकृत (Liver)। भोजन को चबाने के लिए रैडुला (Radula) नाम का एक विशिष्ट अंग मुख गुहा में पाया जाता है। आहारनाल ‘U’ आकार की अथवा कुण्डलित होती है।
- श्वसन गिल्स (Gills) या टीनिडिया (Ctenidia) या पल्मोनरी सेक द्वारा होता है। मेन्टल भी श्वसन में सहायता करता है। स्थलवासी जन्तुओं में फुफ्फुस (Lungs) पाए जाते हैं।
- उत्सर्जन वृक्क या मेटानेफ्रिडिया (Metanephridia) द्वारा होता है। कुछ सदस्यो में बोजेनस का अंग (Organ of Bojanus) व केबर अंग (Keber’s organ) पाए जाते हैं, जो उत्सर्जन का कार्य करते हैं।
- तंत्रिका तंत्र जोड़ीदार गुच्छ (ganglion) और इन्हें जोड़ने वाली संयोजक तंत्रिकाओं का बना होता है।
- संवेदी अंग के रूप में नेत्र, स्पर्शक, स्टेटोसिस्ट, ओस्फोरेडिया आदि रचनाएं पाई जाती हैं।
- अधिकांश सदस्य एकलिंगी (unisexual) होते हैं। निषेचन आंतरिक या बाह्य पाया जाता है।
- परिवर्धन (Development) प्रत्यक्ष (direct) या अप्रत्यक्ष (indirect) प्रकार का होता है।
- इनके जीवन चक्र में ग्लोकीडियम (Glochidium) या वेलिजर (Velliger) लार्वा पाया जाता है।
इस संघ को श्वसन, अंग, पाद, मेन्टल तथा कवच के आधार
पर 6 वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
- वर्ग- मोनोप्लैकोफोरा (Monoplacophora)-
इस वर्ग के जन्तुओं में आवरण के रूप में कुण्डलित कवच पाया जाता है। उदाहरण- नियोपिलाइना (Neopilina)एनेलिडा व मोलस्का की योजक कड़ी है। - वर्ग- ऐम्फीन्यूरा (Amphineura)-
इस वर्ग के जन्तुओं में आवरण के रूप में,कवच उपस्थित होता है। इनमें स्पष्ट सिर का अभाव होता है। उदाहरण- काइटन (Chiton)। - वर्ग- स्कैफोपोडी (Scaphopoda)-
इस वर्ग के जन्तुओं में गमन अंग पाद अनुपस्थित होता है। उदाहरण- डैन्टेलियम (Dentalium)- हाथीदांत कवच । - वर्ग- गैस्ट्रोपोडा (Gastropoda)-
इस वर्ग के जन्तुओं में आवरण के रूप में ऐंठन के कारण कुण्डलित कवच एवं गमन हेतु मांसल पाद उपस्थित होता है। उदाहरणपाइला (Pila)- सेव घोंघा, डोरिस (Doris)- समुद्री नींबू, ऐप्लीसिया (Aplysia)- समुद्री खरगोश । - वर्ग- पेलेसिपोडा (Pelecypoda)-
इस वर्ग के जन्तुओं में पाद एवं दो कपाट प्यालेनुमा आकृति युक्त कवच उपस्थित होते हैं। उदाहरण- यूनियो (Unio), अलवणीय जल की सीपी, पिन्कटैडा (Pinctada)- पर्ल ऑयस्टर, बहुमूल्य मोती बनाना वाला जन्तु। - वर्ग- सैफेलोपोडा (Cephalopoda)-
इस वर्ग के जन्तुओं में आवरण के रूप में मेन्टल तथा सिर पर पाद भुजाओं में विभाजित होता है। उदाहरण- ऑक्टोपस (Octopus)- बेताल मछली, सीपिया (Sepia)- कटल फिश, लोलीगो (Loligo)- दैत्य स्क्विड।
संघ मोलस्का का आर्थिक महत्व-
1. भोजन के रूप में-
संघ मोलस्का की अनेक प्रकार की । सीपियां जैसे क्लेम (Clams), स्केलॉप (Scallop), मसेल (Mussel) चीन, जापान, मलाया, यूरोप व अमेरिका में भोजन के काम ली जाती है। ऐसे समुद्री भोजन (sea-food) को लजीज (delicacy) माना जाता है तथा बहुत पसन्द किया जाता है।
भारत में बिहार, पश्चिमी बंगाल व मिजोरम में स्वच्छ जलीय मॉलस्का जीवों जैसे पाइला, वैलामिया, लेमेलिडेन्स, ब्रोटिया (Brotia), पेरीसिया (Perrysia) को भोजन के रूप में खाया जाता है। तटीय क्षेत्रों में समुद्री मॉलस्का जीव खाए जाते हैं।
2. मोती उद्योग क्षेत्र में-
मोलस्का संघ के प्राणियों द्वारा मोती का उत्पादन किया जाता है। इस कारण उद्योग की दृष्टि से इस संघ की
प्राणियों का पालन किया जाता है। जिसे मोती पालन कहते हैं।
भारतीय जलाशयों में निम्न जातियां पाई जाती हैं जिनके द्वारा मोती उत्पादन किया जाता है-
- पिन्कटैडा रोडिंग
- पिन्कटैडा वलगैरिस
- माइटिलस
- पिन्कटैडा मारगेरीटीफेरा
भारत में सर्वोत्तम लिंघा मोती (Lingha pear) समुद्री ऑयस्टार से प्राप्त किया जाता है, जो व्यापारिक दृष्टि से मृल्यवान होता है।
प्रश्न 2.
आर्थोपोडा संघ आर्थिक दृष्टि से लाभकारी एवं हानिकारक किस प्रकार से होता है? समझाइये।
उत्तर-
आर्थों (Artho) का अर्थ है संधियुक्त तथा पोडा (poda) को अर्थ होता है उपांग अर्थात् इस संघ में आने वाले जन्तुओं के उपांग संधियुक्त होते हैं। यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इस संघ के प्राणी सभी प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं।
इस संघ की स्थापना 1845 में वाँन सीबोल्ड (Von Siebold) ने की थी। मुख्य लक्षण (Main Characteristics)
- इस संघ के सदस्य सभी प्रकार के आवासों में निवास करते हैं। ये समुद्रीय जल, स्वच्छ जल, स्थलीय, वायवीय, परजीवी आदि हैं।
- इस संघ के जन्तु त्रिस्तरीय (triploblastic), द्विपार्श्व सममित (bilateral symmetry) होते हैं।
- इनमें काइटिनी क्यूटिकल को बाह्य कंकाल पाया जाता है जो समय-समय पर नवीनीकृत किया जाता है।
- शरीर तीन भागों में विभक्त होता है- सिर (Head), वक्ष (Thorax) व उदर (Abdomen)। कुछ जन्तुओं में सिर व वक्ष के जुड़ने से सिरोवक्ष (Cephalothorex) का निर्माण हो जाता है।
- इनमें सन्धियुक्त उपांग (jointed legs) पाये जाते हैं। ये विभिन्न कार्यों के सम्पादन हेतु अनुकूलित होते हैं।
- इनमें वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। अधिकांशतः एक तरल से भरी रुधिर गुहा या हीमोसील (Haemocoel) होती है।
- पेशी तंत्र विकसित मांसपेशियां रेखित (Striped) प्रकार की होती हैं जो शीघ्र संकुचन करने में सक्षम होती हैं।
- संघ के सदस्यों में मेटामेरिक खण्डीभवन (Metameric segmentation) पाया जाता है।
- इनमें पूर्ण विकसित आहारनाल पाई जाती है। अर्थात् पाचन के लिए पूर्ण विकसित । इनमें मुखांग (Mouth parts) पाये जाते हैं जो भिन्न-भिन्न प्रकार के पोषण हेतु अनुकूलित होते हैं।
- परिसंचरण तंत्र (Circulatory) खुला (open) प्रकार का होता है। पृष्ठ भाग में हृदय, धमनियां व रक्त पात्र (Blood Sinus) पाये जाते हैं। रक्त रंगहीन होता है परन्तु कुछ जीवों में हीमोसाइनिन वर्णक के कारण रक्त नीला (Blue) होता है।
- श्वसन क्रिया सामान्य शरीर की सतह, गिलों (Gills), श्वसन नलियों (Trachea) एवं पुस्तक फुफ्फुसों (Book Lungs) द्वारा होता है।
- इनमें उत्सर्जन के लिए ग्रीन ग्रंथियां (Green glands), कक्ष ग्रंथियां (coxal glands) या मैलपीगी नलिकाएं (malpigh tubules) पाई जाती हैं।
- इनमें तंत्रिका तंत्र में एक पृष्ठ तंत्रिका वलय और एक दो अधर तंत्रिका रज्जु होता है।
- इनमें संवेदी अंगों में श्रृंगिकाएं सरल नेत्र या नेत्रक (ocelli) संयुक्त नेत्र (compound eyes), रसायनग्राही और स्पर्शग्राही होते हैं। सन्तुलनपुटी (स्टेटोसिस्ट) उपस्थित ।
- श्वसन के लिए जलीय सदस्यों में जल-क्लोम (gills) स्थलीय में वायु नलिकाएं (tracheae) या बुक-लंग्स (book-lungs) । कुछ में श्वसन देहभित्ति से विसरण (diffusion) द्वारा होता है।
- इसे संघ के सदस्य एकलिंगी (unisexual) होते हैं। इसमें लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) पाई जाती है।
- अधिकांशतया आन्तरिक निषेचन (Internal fertilization) किया जाता है।
- संघ के सदस्य अण्डज (Oviparous) या अण्डजराय (ovoviviparous) होते हैं।
- इनमें परिवर्धन प्रत्यक्ष (direct) या अप्रत्यक्ष (indirect) होता है। कुछ में अनिषेकजनन (Parthenogenesis) भी पाया जाता है। संघ आर्थोपोडा को स्टोरर व यूसिंगर ने निम्न आधारों एवं उपसंघों व कई वर्गों में वर्गीकृत किया –
- शरीर के विभाजन के आधार पर
- श्रृंगिकाओं (Antenna) के आधार पर
- जबड़ों के आधार पर।
1. उपसंघ- ट्राइलोबाइटा (Sub-phylum- Trilobata)
- इस उपसंघ के सभी जन्तु समुद्री तल में पाये जाते थे तथा अब विलुप्त हो चुके हैं।
- इनमें सिर अस्पष्ट, उदर भाग 2 से 29 खण्डों में बंटा होता है। एवं पश्च सिर पर एक संलयित पुच्छ प्लेट अथवा पायजीडियम पाई जाती है।
- इसके शरीर में से दो लम्बवत् खांचें पाई जाती हैं, के कारण तीन लम्बे पिण्डों में विभक्त था।
- 10 से 675 मि.मी. लम्बा शरीर एक दृढ़ खण्डित कवच के द्वारा ढका रहता है। उदाहरण- ट्राइआर्थस (जीवाश्म), डेलमेनिटिस (Dalmanites), एग्नोस्टस (Agnosteus)।
2. उपसंघ- कैलिसैरेटा (Sub-phylum Chelicerata)
- इस उपसंघ के सदस्यों का शरीर सिर, वक्ष एवं उदर भागों में विभेदित सिर एवं वक्ष भाग परस्पर समेकित होकर शिरोवक्ष यो प्रोसोमा का निर्माण करते हैं।
- शिरावक्ष पर नेत्र, एक जोड़ी पंजेदार चेलीसेरी, एक जोड़ी पेडीपेल्स तथा चार जोड़ी चलन पाद पाये जाते हैं।
- ऐन्टिनी अथवा श्रृंगिकाओं का अभाव होता है।
- श्वसन क्लोमो, ट्रेकिया, बुक-लंग्स (Book lungs) द्वारा होता है।
- उत्सर्जन मैल्पीघी नलिकाओं या कॉक्सल ग्रंथियों द्वारा होता है।
- जन्तु एकलिंगी होते हैं। विकास प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष (लार्वा अवस्था) में होता है।
इस उपसंघ को श्वसन अंगों के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
- वर्ग- मीरोस्टोमेटा (Class Merostomata)-
इस वर्ग के जन्तु जलवासी होते हैं। श्वसन गिल्स द्वारा होता है। सुविकसित संयुक्त नेत्र पाए जाते हैं। उदाहरण- लिमुल्स (Limulus) या किंग क्रेब (King Crab) । (यह इस वर्ग का एक मात्र जीवित सदस्य है बाकी सब विलुप्त हो चुके हैं। - वर्ग- एरेक्निडा (Class Arachnida)-
अधिकांश स्थलीय, श्वसन बुकं लंग्स (Book lungs) या ट्रैकिया द्वारा होता है। कई में विष ग्रंथियां एवं विषैले फैंग्स से होते हैं एवं जबड़े में डंक पाया जाता है। उदाहरण पेलेम्निअस (Palannnaeus)- बिच्छु (Scorpion) जरायुज होते हैं। लाइकोसा (Lycosa)- भेड़िया बकरी (Wolf spider), साल्टिकस (Salticus) कूदने वाली मकड़ी, एजिलीना (Agelena) कीप जाला मकड़ी। - वर्ग- पिक्नोगोनिडा (Pycnogonida)-
इस वर्ग के सदस्यों को सामान्यतया समुद्री मकड़ियां (Sea Spider) कहते हैं। इनके शिशु अकशेरुकी प्राणियों पर परजीवी होते हैं। उदाहरण- निम्फॉन (Nymphon) तथा पिक्नोगोनम (Pycnogonum) ।
3. उपसंघ- मैडिबुलेटो (Sub-phylam- Mandibulata)-
- इनका शरीर तीन भागों में बंटा होता है। सिर, वक्ष एवं उदर।
- सिर के उपांगों में एक या दो जोड़ी अंगिकाएं, एक जोड़ी जबड़े यो मेन्डिबल तथा दो जोड़ी मैक्सिला होती है।
- श्वसन ट्रेकियो (Trachea) या क्लोम (gills) द्वारा होता है।
- ग्रीन ग्रंथियां अथवा मैलपीजियन नलिकाओं द्वारा उत्सर्जन होता है।
- एकलिंगी, जीवन वर्त में लारवल (larval) अवस्था सामान्यतः उपस्थित ।
इस उपसंघ को छः वर्गों में विभाजित किया गया है-
- वर्ग-क्रस्टेशिया (Class- Crustacea)-
इस वर्ग में अधिकांश सदस्य जलीय होते हैं। शरीर कठोर मोटा सुरक्षात्मक काइटिन से बने क्यूटिकल से घिरा होता है। इनके उपांग द्विशाखित होते हैं। उदाहरण-साइक्लोपस (cyclops) सौ पत्नियों का पति (husband of hundred wives), यूपेगुरस- (Eupagurus), साधू केकड़ा (Hermit crab), सेक्यूलीना (Saculina)- केकड़े का परजीवी, पैलिमोन (palemon), झींगा मछली या प्रान (Prawn), डेफनिया (Daphnia) जलीय पिस्सू (water flea), केन्सर (Cancer), केकड़ा (Crab), पैलिनुरस (Palinurus)- लोबस्टर (Lobester)
- वर्ग- डिप्लोपोडा (Class- Diplopada)-
इस वर्ग के सदस्य जलवासी, शरीर लम्बा व बेलनाकार होता है। इनमें विषैला नखर अनुपस्थित। उदाहरण- जूलस (Julus)मिलीपीड (सहस्त्रपाद)/ गुजरी, ग्लोमेरिस, स्पाईरोबोल्स (Spirobolus), प्लेटीडेस्मस (Platydesmus) - वर्ग- चीलोपोडा (Class Chilopoda)-
इनका शरीर पृष्ठ से कान्वेक्स व अधर से चपटा होता है। शरीर दो भागों में विभक्त होता है- सिर व धड़। उदाहरणः स्कोलोपेन्ड्रा, शतपादी (Centipede), जिओफिलिस (Geophilus), लिथोवियस (Lithobius)। - वर्ग- इन्सेक्टा (Class- insecta)-
इस वर्ग के सदस्य (कीट) सभी प्रकार के वातावरण में पाए जाते हैं। लार ग्रंथियां उपस्थित । तीन जोड़ी टांगें उपस्थित । उदाहरणसाइमैक्स (cimax): खटमल (bed bug), मस्का (Musca), घरेलू मक्खी (House fly), एपीस मधुमक्खी (honey bee), बाम्बिक्स (Bombyx), रेशम का कीट (Silk worm), टरमाइट (Termite)- सामाजिक कीट पेडीकू लस (Pediculus): जू (louse), लेपिस्मा (Lepisma), रजत मीन (Silver fish), ड्रेगन मक्खी (Dragon fly), रानाटरा (Ranatra): जलीय बिच्छु (Water scorpion) । ड्रोसोफिला (Drosophila) (फलमक्खी )। - वर्ग- सिम्फाइला (Class- Symphyla)-
सभी सदस्य भूमिगत होते हैं। नेत्र अनुपस्थित । शरीर 6 mm लम्बा होता है। उदाहरण- स्क्यू टीजेरेला (Scutigerella) - वर्ग- पाँरोपोडा (Class- Pauropoda)-
वर्ग के सभी सदस्य स्थलवासी (Terrestrial) हैं। इसके सदस्य नलाकार एवं कृमि के समान होते हैं। शरीर में 12 खण्ड पाए जाते हैं। उदाहरण- पाँरोपस (pauropus)।
4. उप संघ पेन्टोस्टोमिडा (Pentostomida)-
- इस उपसंघ के सदस्य स्तनधारियों के ट्रेकिया (Trachea) में अन्तः परजीवी (Endoparasite) पाये जाते हैं।
- इनका शरीर कृमिरूपी, कोमल एवं अखण्डित होता है।
- श्रृंगिकाओं एवं गमन उपांगों का अभाव होता है।
उदाहरण– लिन्गुएटुला (Linguaula- अन्त:परजीवी)।
5. उपसंघ- टारडीग्रेडा (Tardigrada)-
- इन संघ के सदस्यों की लम्बाई 1 मि.मी. होती है।
- जन्तुओं का शरीर खण्डहीन एवं नलाकार होता है।
- ये एक लिंगी होते हैं एवं चार जोड़ी चलन पाद पाए जाते हैं।
- इस उप संघ के सदस्यों को जल भालू (water bear) भी कहा जाता है।
उदाहरण-ऐकाईनिस्कस (Echiniscus- जल भालू)।
6. उपसंघ- ओनाइकोफोरा (Onychophora)-
- इस उपसंघ के सदस्य स्थलीय, कृमि के समान व पतले होते है।
- इनका शरीर खण्डविहीन एवं केटरपिलर लार्वा के समान होता है।
- श्वसन ट्रेकिया (Trachea) एवं उत्सर्जन नेफ्रीडिया (nephridia) द्वारा होता है।
- शरीर पर 14 से 44 असन्धित पादे पाये जाते हैं।
- इनके सदस्यों में अस्पष्ट सिर पाया जाता है परन्तु श्रृंगिकाएं एवं पेल्प पाए जाते हैं।
संघ आर्थोपोडा का आर्थिक महत्व-
(क) लाभकारी महत्व-
आर्थोपोडा संघ के जन्तु आर्थिक महत्व की दृष्टि से बहुत लाभकारी हैं। व्यावसायिक स्तर पर संघ के कीटों का पालन किया जाता है; यथा
- मधुमक्खी पालन-
व्यावसायिक स्तर पर शहद और मोम प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी पालन किया जाता है। इनका शहद खाद्य एवं औषधि के रूप में काम आता है। शहद से रुधिर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है। शहद औषधि के रूप में खांसी, सर्दी, बुखार, रुधिर शुद्धिकरण, जीभ और आहारनाल के अल्सर निवारण के काम आता है। मधुमक्खी पालन को एपीकल्वर (Apiculture) कहते हैं। एपिड इण्डिका तथा एपिड डॉरसेटा मधुमक्खियों के उदाहरण - लाख उत्पादन-
लाख का कीट टेकार्डिया लैका एक छोटा रेंगने वाला कीट है। यह शत्रुओं से बचने और अण्डे देने के लिए। मोटी पपड़ी के रूप में लाख का रक्षात्मक आवरण बनाता है। व्यावसायिक लाख का निर्माण मादा जन्तु करती है। लाख का उपयोग आभूषणों में, पॉलिश, पेन्ट, वार्निश, फोटोग्राफी के पदार्थ तथा विस्फोटक सामग्री निर्माण में किया जाता है। - रेशम उत्पादन-
रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट के कोया (Cocoon) को गर्म पानी में उबालते हैं, जिससे कोया के अन्दर प्यूरा मर जाता है। इसके बाद कोया के धागों को निकाल लिया जाता है। एक कोकून से लगभग 300 मीटर लम्बी धागा प्राप्त होता है। रेशम निम्न प्रजातियों से प्राप्त किया जाता है
- बॉम्बिक्स मोराई-शहतूत का रेशम कीट।
- ऐन्थेरिया पैफिया-टसर रेशम कीट।
- एन्थेरिया असामा-मूंगा रेशम कीट।
- एकेटस रिसिनी-एरीकेशन कीट।
रेशम कीट पालन को सैरीकल्चर (Cericulture) कहते हैं। रेशम के धागों से वस्त्र, पैराशूट, साड़ियां, शाल, सजावटी फैब्रिक्स तैयार किए जाते हैं ।
- झींगा मछली उद्योग-भारत के दक्षिणी भाग में झींगा मछली खाने के काम आती है। झींगा की प्रजातियां-पीनस इंडिकस, पीनस मोनोडास, मेटोपीनस, एफिनिस का व्यापारिक स्तर पर पालन कर निर्यात भी किया जाता है।
- पुष्पों का परागण-अनेक प्रकार के कीटः जैसे- तितली और मधुमक्खियां आदि पुष्पों में परागण क्रिया सम्पन्न करती हैं।
- खाने वाले कीट-पक्षी व मछलियां तथा छिपकलियां कीटों का भक्षण करते हैं। मनुष्य इन पक्षियों एवं मछलियों का भक्षण कर अपरोक्ष रूप से इन कीटों को भोजन के रूप में खाता है।
- हानिकारक कीटों को नष्ट करना-आर्थोपोडा संघ के कुछ कीट हानिकारक कीटों का भक्षण कर मानव को लाभ पहुंचाने में सहायक होते हैं; जैसे ड्रैगन फ्लाई, हानिकारक मच्छरों को खाकर नष्ट करती है। इक्यूमान मक्खी कृषि के लिए हानिकारक कीटों के लार्वा व प्यूपा पर अण्डे देकर उन्हें नष्ट कर देती है।
- औषधि निर्माण-फलोला गुबरैला कीट के रक्त से केन्थराइडिन औषधि का निर्माण किया जाता है। लाही या कीकीनियल बग लाल रंग के कीटों को पीसकर लाल रंग की लाही बनाई जाती है, जो कूकर खांसी के उपचार व दवाइयों को रंगने के काम आती है। महिलाएं इसे पैरों पर महावर लगाने के काम में लाती हैं।
(ख) हानिकारकं महत्व-
आर्थोपोडा संघ के अनेक जन्तु हमारे लिए लाभकारी हैं, वहीं कुछ जन्तु हानिकारक भी हैं, जैसे
- मनुष्य में रोगवाहक दृष्टि से-
आर्थोपोडा संघ के कीट, रोगों का संक्रमण एक जन्तु से दूसरे जन्तु में रोगवाहक रोगाणुओं को ले जाकर शारीरिक रोग उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। जैसे
- एनोफिलीज क्वाड्रीमैक्यूलेट्स- मलेरिया ज्वर।
- क्यूलिक्स पाइपेस- फाइलेरिया व हाथी पांव रोग ।
- एडीज एजीप्टाई (लीने)- पीत ज्वर ।
- प्लेबोटोमस आर्जेन्टीपस ब्रन्क्टी (रेत मक्खी)- काला आजार।
- मस्का डोमेस्टिको (घरेलू मक्खी)- हैजा, टाइफाइड, ज्वर व डायरिया आदि।
- लेक्ट्रलेरियस (खटमल)- ज्वर, टाइफाइड, तपेदिक।
- पैडीकुलस ह्युमनस कैपीटस (मानव जू)- बेचैनी व खुजली, टाइफस ज्वर।।
- जेनोप्सिला कीओपिस (पिस्सू )- खुजली व बैचेनी।
- सी.सी. मक्खी – निद्रा रोग उत्पन्न करती है।
- भोज्य पदार्थों को नष्ट करने वाले- जैसे
- साइटोफिलस ओराइजी (चावल का घुन)
- ट्रेगोडर्मा ग्रेनेरियम (गेहूं का घुन व खसरा, बीटल) ।
- ट्राइबोलियम कनफ्यूजम (आटे का लाल बीटल)
- साइरोट्रोगा सिरिएलेला (एंगोथोइस अनोज शलभ)
- प्लोडिया इन्टरपक्टेला (भारतीय भोजन शलज)
- घरेलू सामग्रीनाशक कीट- जैसे
- माइकोटर्मिस ओवेसी दीमक (सफेद चींटी),
- मोनोमोरियम इण्डिकम (सफेद चींटी),
- लाइपोस्सेलिस ट्रान्सवेलेन्सीस (पुस्तक जू)- पुस्तकों को नष्ट करने वाला कीट,
- लेपिस्मा सेकेराइना (रतने मीन- सिल्वर फिश)- पुरानी पुस्तकों व कपड़ों को हानि पहुंचाने वाला कीट।
प्रश्न 3.
निमेटल्मिन्थीज संघ के लक्षण स्पष्ट करते हुए इसके वर्गों के नाम सहित लिखिये। इसकी आर्थिक महत्ता को समझाइये।
उत्तर-
इस संघ के सदस्य द्विपाश्र्वीय, त्रिस्तरीय, आभासी देहगुहा वाले, सूत्र या धागेनुमा होते हैं। धागेनुमा होने के कारण इन्हें सूत्र कृमि (thread worin) अथवा गोल कृमि (round worms) कहते हैं। कृमियों के अध्ययन को हैल्मिन्थोलोजी अथवा कृमि विज्ञान कहते हैं। अधिकांश सदस्य एकलिंगी (unisexual) होते हैं तथा इनमें लैंगिक द्विरूपता (sexual diamorphism) पाई जाती है। रूडोल्फी (1981) ने इस समूह के जन्तुओं को निर्मेटाइडिया (Nematodidea) के अन्तर्गत रखा। ग्रोपन (Groppen) ने इस संघ को एस्केल्मिन्थीज (Aschelminthes) नाम दिया परन्तु गेगेन बार (Gegenbaur) 1859 के अनुसार आज हम इस संघ को निमै ट है ल्मिन्थीज (Nemathelminthes) के नाम से जानते हैं। इस संघ की 12000 जातियां अब तक ज्ञात हैं।
मुख्य लक्षण (Main Characteristics)-
- इसके अधिकांश सदस्य जलीय (Aquatic) व कुछ स्थलीय (Terrestrial), स्वतंत्रजीवी (free living) या परजीवी (parasite) होते हैं।
- इनका शरीर अखण्ड, द्विपाश्र्व सममित (bilaterally) एवं त्रिस्तरीय (triploblastic) होता है। इन प्राणियों में सिर का अभाव होता है।
- शरीर बेलनाकार (cylindrical or vermi form) होता है तथा दोनों सिरों से नुकीला होता है। अनुप्रस्थ काट में शरीर गोल दिखाई देता है। अतः इन्हें गोलकृमि (round worm) कहते हैं।
- देहभित्ति बाहर स्केलेरोप्रोटीन की एक विशेष क्यूटिकल और एक बहुकेन्द्रिकित या कोशिकीय अधिचर्म (Epidermis) होती है।
- आहारनाल सम्पूर्ण होती है। इसमें मुख वे गुदा दोनों पाए जाते हैं। आहारनाल में मुखगुहा, पेशीय ग्रसनी, आन्त्र, मलाशय भी होते हैं तथा हुक (hook), शूकिका (stylets), दन्त (teeth) भी पाये जाते हैं।
- संघ के सदस्यों में आभासी देहगुहा (Pseudocoelom) पाई जाती है जो मीसोडर्म से आस्तरित नहीं होती है।
- श्वसन तंत्र व परिसंचरण तंत्र नहीं पाया जाता है।
- उत्सर्जन तंत्र उत्सर्जी नालों (Excretory canals) या प्रोटोनेफ्रिटिया (Protonephridia) का बना होता है। उत्सर्जन नाल शरीर से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन रन्ध्र के द्वारा बाहर निकालती है।
- तंत्रिका तंत्र में एक तंत्रिका वलय पाई जाती है। तंत्रिका वलय से अग्र व पश्च में तंत्रिकाएं पाई जाती हैं।
- इसमें सदस्य एकलिंगी (Unisexual) होते हैं। इनमें नर व मादा प्राणी अलग-अलग होते हैं। इसमें लैंगिक द्विरूपता (Sexual dimorphism) पाई जाती है। नर छोटा व मादा बड़ी होती है।
- जीवन-चक्र प्रत्यक्ष (direct) या अप्रत्यक्ष (indirect) प्रकार का होता है। जीवन-चक्र जटिल होता है।
इस संघ को संवेदी अंग या फैस्मिड (Phasmidia) के आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है
- वर्ग- फैस्मिडिया (Phasmdia)-
इस वर्ग के जन्तुओं में फैस्मिड या संवेदी अंग पाए जाते हैं । उदाहरण- एस्केरिस (Ascans)गोलकृमि, वाऊचेरिया (Wachereria)- फाइलेरिया कृमि, एनसाइलोस्टो (Ancylostoma)- अंकुश कृमि । - वर्ग- ऐफैस्मिडिया (Aphasmidia)-
इस वर्ग के सदस्य में फैस्मिड (Phasmid) नहीं पाए जाते हैं। उदाहरण- एनोप्लस (Enoplus), ट्राइलोबस (Trilobus) ।
प्रश्न 4.
प्रोटोजोआ संघ को गमन के आधार पर वर्गीकृत करते हुए इस संघ के आर्थिक महत्व को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-
(Gr., Protos = first = primitive, zoon = animal)
प्रोटोजोआ (Gr., protos = first = प्रथम, zoon = animal = जन्तु) में ऐसे प्रथम तथा आदिम जन्तुओं को सम्मिलित किया गया है जिनका शारीरिक संगठन जीवद्रव्य (protoplasmic) प्रकार का होता है। ये सबसे सरल, सूक्ष्मदर्शीय तथा एक कोशिकीय (unicellular) होते हैं। इनका एक कोशिकीय शरीर, बहुकोशिकीय जन्तुओं के समान सभी जैविक क्रियाएं करता है इसलिए डोबेल (Dobell) ने अकोशिकीय (acellular or non-cellular) कहना अधिक उचित समझा। विश्व में इनकी 15000 जातियां पाई जाती हैं।
डच प्राकृत वैज्ञानिक (Dutch naturalist) ल्युवेनहॉक (Leeuwenhock) ने 1964 में प्रोटोजोआ जन्तुओं का अध्ययन सर्वप्रथम अपने सूक्ष्मदर्शी (microscope) के द्वारा वर्षा के रुके जल में किया । ल्यूवेनहॉक ने इन्हें ‘Wretched little beasties’ कहा तथा बाद में इन्हें जन्तुक (animalcules) शब्द से सम्बोधित किया।
- ल्यूकार्ट (Leukart) ने स्पोरोजोआ (Sporozoa) समूह सृजित किया था।
- गोल्डफलस (Glodfus) ने 1817 में सर्वप्रथम प्रोटोजोआ (Protozoa) शब्द दिया।
- इजान (Dujardin) ने 1841 में कवचयुक्त प्रोटोजोआ के लिए राइजोपोडा (Rhizopoda) शब्द दिया।
- पेर्टी (Perty) ने सीलिएटा (Ciliata) नाम दिया था।
मुख्य लक्षण (Important characters)-
- इस संघ के सदस्य छोटे, प्राय: सूक्ष्मदर्शीय (Microscopic) होते हैं। इन्हें सामान्यतया सूक्ष्मदर्शी (microscope) की सहायता से देखा जाता है।
- ये जल में स्वतंत्र (free living) या पादपों एवं जन्तुओं में परजीवी (parasites) होते हैं।
- ये जन्तुओं में सबसे सरल (Simplest) और सबसे आदिम (primitive) होते हैं।
- इनका शारीरिक संघटन जीवद्रव्यी (protoplasmic) प्रकार का होता है।
- इनका आकार विभिन्न प्रकार का होता है, जैसे अनियमित (irregular), लम्बा (elongated), गोल (spherical) आदि ।
- ये एकल (solitary) होते हैं अथवा ऐसी शिथिल निवह (colony) बनाते हैं जिनमें सभी जन्तुक समान तथा स्वतंत्र होते हैं।
- इनका शरीर असममितीय (asymmetrical) द्विपाश्र्वीय (bilaterally symmetrical) या अरीय सममित (radial symmetrical) होता है ।
- अधिकांश जन्तुओं का शरीर नग्न (naked) होता है, कुछ सदस्यों के ऊपर बाह्य कंकाल (exoskeleton) के रूप में पेलिकल (pellicle), चोल (test) या कवच (Shell) पाया जाता है।
- शरीर एक कोशिकीय होता है जिसमें एक या अधिक केन्द्रक (nuclei monomorphic) होते हैं जो एक आकारी या द्विआकारी (dimorphic) होते हैं।
- एक कोशिकीय शरीर उन सभी जैविक क्रियाओं को करता है, इस प्रकार इनमें अधिकोशिकीय कार्यिकी श्रम विभाजन (subcellular physiological division of labour) पाया जाता है।
- प्रचलन अंगक (locomotry organelles) तीन प्रकार के होते हैं- अंगुलीनुमा कूटपाद (pseudopodia), या चाबुक नुमा कशाभ (flagella) या बालनुमा पक्ष्माभ (cilia) या कुछ जन्तुओं में इनका अभाव होता है। (गमन अंगकों के आधार पर संघ-प्रोटोजोआ को उपसंघों में वर्गीकृत किया गया है।)
- पोषण (nutrition) विभिन्न प्रकार का होता है, जैसे प्राणि-समपोषी (holozoic), पादप-समभोजी (holophylic), मृतोपजीवी (Saprozoic) या परजीवी (parasitic)। इनमें कोशिका मुख (cytostome) व कोशिका गुदा (cytopyge) उपस्थित या अनुपस्थित । होता है। पाचन क्रिया खाद्यधानियां (food-vacuoles) के अन्दर अन्तःकोशिकीय (intra cellular) होती हैं।
- गैसीय-विनिमय विसरण (diffusion) द्वारा शरीर की सामान्य सतह से होता है।
- उत्सर्जन क्रिया संकुचनशील धानियों (Contractile Vacuoles) द्वारा या सामान्य सतह से होती है। ये अमोनोटेलिक (anmonotelic) होते हैं।
- अलवणीय जल में पाये जाने वाले जन्तुओं में जलनियमन (osmoregulation) के लिए संकुचनशील धानियां (contractive vacuoles) पाई जाती हैं, जैसे अमीबा व पेरामिशियम में संकुचनशील धानियां पाई जाती हैं।
- जननक्रिया (reproduction) अलैंगिक (asexual) या लैंगिक (sexual) प्रकार का होता है। अलैंगिक जननः द्वि-विखण्डन (binary fission) या बहु-विखण्डन (multiple fission) और मुकुलन (budding), द्वारा। लैंगिक जननः वयस्कों में संयुग्मन (conjugation) या युग्मकों के संयोजन (fusion) द्वारा ।
- वितरण (dispersal) या वातावरणीय दशाओं जैसे भोजन, ताप एवं आर्द्रता की प्रतिकूल परिस्थितियों से सुरक्षा के लिए परिकोष्ठन या पुटिभवन (encystment) की अधिक क्षमता पाई जाती है।
- इनमे पुनरुदभवन (regeneration) की क्षमता भी पाई जाती है।
- जीवन चक्र (life cycle) अधिकांश जन्तुओं में सरल होता है। कुछ जन्तुओं में अलैंगिक तथा लैंगिक पीढ़ियों को एकान्तरण (alternation of generation) होता है।
- इनमें प्राकृतिक मृत्यु (natural death) नहीं होती है, क्योंकि सिर्फ एक कोशिकीय जन्तुक में कायिक प्रद्रव्य । (soilatoplasm) तथा जननिक प्रद्रव्य ( germplasm) में विभेदन नहीं होता है। अतः इन्हें अमर (immortal) मानते हैं।
प्रोटोजोआ का वर्गीकरण (Classification of Protozoa)-
प्रोटोजोआ संघ को प्रचलन अंगकों (ganelles) तथा केन्द्रकों (nuclei) के आधार पर चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
- वर्ग- फ्लैजीलेटा/ मैस्टीगोफोरा (Class Flagellata/ mastigophora)-
इस वर्ग के जन्तुओं में गमनांग के रूप में एक या अधिक कशाभिका (Flegella) होते हैं जो भोजन ग्रहण करने में भी सहायता करते हैं।
उदाहरण-लीशमानिया डोनोवनी (Leishmania donavani)-
इस परजीवी से मनुष्य में कालाअजार (Kala-azar) रोग होता है। ट्रिपेनोसोमा गैम्बिएन्स (Trypanosoma gambiense)- इससे मनुष्य में अफ्रीकी निद्रा रोग (African sleeping sickness) होता है।
ट्राइकोमोनास वैजिनेलिस (Trichomonas vaginalis)-
यह औरतों की योनि (vagina) का परजीवी है। इससे श्वेत-पानी रोग (vaginilis = leucorrhoea) हो जाता है।
युग्लीन (euglena)-यह पादपों व जन्तुओं के बीच संयोजक कड़ी (connecting & links) है।
नोक्टीलुका (Noctiluca)-ल्यूसीफेरीन प्रोटीन के कारण। संदीप्तिशील (Biolumini scence) है। यह रात्रि के समय समुद्र की सतह पर प्रकाश उत्पन्न करता है जिससे समुद्र के जलने के प्रभाव को प्रकट करता है। - वर्ग-सारकोडिना या राइजोपोडा (Class Sarcodina Rhizopoda)-
इस वर्ग के प्राणियों में गमन कूदपादों (pseudopodia) द्वारा होता है।
उदाहरण-अमीबा (Amoeba), एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba histolytica) पीलोमिक्सा (Pelomixa) पोलिस्टोमेला । (Polystomela) ई. कोलाई (E.Coli) । - वर्ग-सिलियेटा (Class Ciliata)-
इस वर्ग के जन्तुओं में गमन हेतु पक्ष्माभ (Cilia) पाए जाते हैं। जो सम्पूर्ण जीवनकाल में उपस्थित होते हैं।
उदाहरण-बैलेटीडियम (Balantidium)- यह मेंढक तथा मनुष्य के मलाशय में पाए जाते हैं। पैरामीशियम (Paramecium) इसे स्लीपर जन्तुक (Sleeper animaleule) कहा जाता है। स्पाइरोस्टोमम (Spirostomum)- यह सबसे बड़ा जीवित सिलिएट है। इसकी लम्बाई 4 mm होती है। वॉर्टीसेला (Vorticella)- इसे घन्टी जन्तुक (bell animalcule) कहते हैं। डिडीनियम (Didenium)- इसे जलीय भालू (water bear) के नाम से जाना जाता है। न्यूमलाईटस (Neunnulaites)-जीवाश्म रूप में सबसे बड़ा प्रोटोजोआ का सदस्य है। - वर्ग- स्पोरोजोआ (Sporozoa)-
इस वर्ग के जन्तुओं के गमनांग अनुपस्थित होते हैं। सभी सदस्य अन्त:परजीवी (endoparasite) होते हैं।
उदाहरण-प्लाजमोडियम (Plazmodium)- मनुष्य में मलेरिया रोग पैदा करता है। मोनोसिस्टीस (Mono cystis)- यह केंचुए के सेमीनल वेसाइकल में पाया जाता है। नोसेमा (Nosema)- यह रेशम कीट (silk warm) के ऊतकों का अन्तः परजीवी है। बोबसिया (Babesia)- इनसे पशुओं (cattles) में टेक्सास ज्वर (Texas Fiver or red water fever) नामक रोग होता है।
प्रोटोजोआ के आर्थिक महत्व (Economic Importants)-
संघ प्रोटोजोआ के जन्तु अकोशिकीय एवं सूक्ष्मदर्शीय होते हैं तथा विश्व के हर प्रकार के स्थानों में वास करते हैं। इतने सूक्ष्म होने के बाद भी इस संघ के सदस्यों के अनेक आर्थिक महत्व हैं, जो दोनों लाभदायक तथा हानिकारक हैं।
I. लाभदायक महत्व
- जल का स्वच्छीकरण (Water purification)-
प्रोटोजोआ जल को स्वच्छ एवं पीने योग्य बनाने में सहायक होते हैं। अनेक प्राणीसमभोजी (Holozoic) प्रोटोजोआ ऐसे भी होते हैं जो हानिकारक एवं जलाशयों में सड़न उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं का भक्षण करते हैं। तथा इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से जल को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। इस तरह ये निरन्तर जल का शुद्धिकरण कर पीने योग्य बनाते हैं। - प्रयोगशालाओं में अध्ययन (Research in lab)-
संघ प्रोटोजोआ के सदस्य (जन्तु) एक कोशिकीय होते हैं तथा बहुकोशिकीय जन्तुओं की तरह सभी जैविक क्रियाओं का संचालन करते हैं। अतः प्रयोगशालाओं में इनका अध्ययन किया जाता है। ये आकार में अति सूक्ष्म होते हैं तथा इनमें जनन तेज गति से होता है। अतः आनुवांशिकता व विभिन्नताओं के अध्ययन में इनका उपयोग किया जाता है। भूगर्भ व जीवाश्म विज्ञान के अध्ययन में भी इनके जीवाश्मों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। क्योंकि आज पृथ्वी पर उपस्थित समस्त बहुकोशिकीय प्राणियों की उत्पत्ति इन्हीं जन्तुओं से हुई है। - स्वास्थ्य रक्षा (Sanitation)-
कुछ प्रोटोजोआ का वासस्थान गन्दा-जल अथवा मल-जल (sewage) होता है जहां यह मल का विघटन कर उसका पोषण करते हैं तथा साथ ही मल से सहलग्न बैक्टीरिया आदि को भी खाते हैं। जिसके फलस्वरूप मल-जल सड़ता नहीं है तथा भयंकर हानिकारक बीमारियों से मनुष्य का बचाव होता है। - भवन निर्माण (Construction)-
समुद्री कंकालयुक्त फौसिल प्रोटोजोआ (Fossil protozoa) का कंकाल समुद्र के पैंदे अथवा उसके निकट धरती पर बड़ी-बड़ी चट्टानों के रूप में मिलता है जिसे लाइम स्टोन (Limestone) कहते हैं। इसे विश्व भर में भवन निर्माण के पत्थरों के रूप में काम में लाया जाता है।
II. हानिकारक महत्व
परजीवी रोगकारक जन्तु का नाम | परपोषी में संक्रमित स्थान | रोग का नाम | परजीविता का प्रकार |
1. एन्टअमीबा जिंजीवालिस | मंसूड़े | दाँतों की जड़ों व मंसूड़ों व ग्लसुओं की पस थैलियाँ तथा पायरिया रोग | एक पोषकीय परजीवी |
2. एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका | बड़ी आंत का अगला भाग (कोलन) | अमीबॉयसिस या आमातीसार | एक पोषकीय परजीवी |
3. ट्राइकोमोनैस टीनेक्स | दाँतों की जड़ों एवं रोगग्रस्त मसूडों में | पायरिया | एक पोषकीय परजीवी |
4. ट्राइकोमोनैस होमिनिस | बड़ी आँत | दस्त व अमीबॉयसिस | एक पोषकीय परजीवी |
5. जिआर्डिया लैम्बलिया | आँत के अगले भाग में | दस्त, सिरदर्द, पीलिया | एक पोषकीय परजीवी |
6. लीशमैनिया | रुधिर, यकृत, प्लीहा, आर.बी.सी., अस्थिमज्ज | एवं त्वचा रोग उत्पन्न | द्विपोषकीय एवं सेन्ड फ्लाई (Sandfly) वाहक परपोषी |
7. ट्रिपैनोसोम | रुधिर, सेरीब्रा-स्पाइनल हृदय पेशियों, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र | निद्रारोग, चागास रोग | द्विपरपोषी, सी-सी मक्खी या खटमल वाहक परपोषी |
8. प्लाज्मोडियम वाईवैक्स | लाल रुधिर कणिका व यकृत | तृतीय मलेरिया तीसरे दिन ज्वर होता है | द्विपरपोषी, मच्छर वाहक परपोषी |
9. प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम | लाल रुधिर कणिका व यकृत | दुर्दम मलेरिया दूसरे दिन ज्वर आता है | द्विपरपोषी, मच्छर वाहक परपोषी |
अतः प्रोटोजोआ संघ के सदस्यों के प्रति कई आर्थिक महत्व हैं जो दोनों लाभदायक तथा हानिकारक हैं। परन्तु शायद लाभदायक महत्वों की तुलना में हानिकारक महत्व अधिक हैं।
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