Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 34 अमीबा
RBSE Class 11 Biology Chapter 34 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 34 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
शब्द एमोइब (Amoibe) का क्या अर्थ है
(अ) अत्यन्त सूक्ष्म प्राणी
(ब) सरलतम प्राणी
(स) परिवर्तनशील प्राणी
(द) कूटपादों की उपस्थिति
प्रश्न 2.
अमीबा में संकुचनशील रिक्तिका का कार्य होता है
(अ) पोषण
(ब) श्वसन
(स) पंरासरण नियमन
(द) जनन
प्रश्न 3.
अमीबा की खाद्यधानी का माध्यम होता है
(अ) केवल अम्लीय
(ब) केवल क्षारीय
(स) पहले क्षारीय बाद में अम्लीय
(द) पहले अम्लीय बाद में क्षारीय
प्रश्न 4.
अमीबा में कूटपाद का प्रकार है
(अ) एक्टोपोडिया
(ब) रेटिकुलोपोडिया
(स) लोबोपोडिया
(द) फिलोपोडिया
प्रश्न 5.
अमीबा का उत्सर्जी पदार्थ होता है
(अ) अमोनिया
(ब) यूरिया
(स) गुआनिन
(द) यूरिक अम्ल
उत्तरमाला
1. (स)
2. (स)
3. (द)
4. (स)
5. (अ)
RBSE Class 11 Biology Chapter 34 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अमीबा किस वर्ग का प्राणी है?
उत्तर-
अमीबा सार्कोडिना/राइजोपोडा वर्ग का प्राणी है।
प्रश्न 2.
अमीबा के पश्च सिरे को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
अमीबा के पश्च सिरे को यूरॉइड (Uroid) कहते हैं।
प्रश्न 3.
अमीबीय गति का सॉल-जेल मत किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम प्रस्तुत किया?
उत्तर-
अमीबीय गति का सॉल-जेल हाइमन (Hyman-1917) ने प्रस्तुत किया।
प्रश्न 4.
अमीबा की खाद्यधानियों से कौनसी रचनाएँ जुड़कर एन्जाइम पहुँचाती हैं?
उत्तर-
अमीबा की खाद्यधानियों से लयन काय (Lysosome) रचनाएँ जुड़कर एन्जाइम पहुँचाती हैं।
प्रश्न 5.
अमीबा में उपस्थित उत्सर्जी रवों के नाम लिखिये।
उत्तर-
अमीबा में उपस्थित उत्सर्जी रवों के नाम बाइयूरेटस एवं ट्राइयूरेटस है।
प्रश्न 6.
अमीबा कहाँ पाया जाता है?
उत्तर-
अमीबा अलवणीय जल (तालाब, पोखर, झीलों) में पाया। जाता है।
प्रश्न 7.
अमीबा में अनुकूल परिस्थितियों में सम्पन्न होने वाली जनन विधि का नाम बताइये।।
उत्तर-
अमीबा में अनुकूल परिस्थितियों में सम्पन्न होने वाली जनन विधि का नाम द्विविभाजन है।
प्रश्न 8.
अमीबा में केन्द्रक को नष्ट करने पर क्या होगा?
उत्तर-
अमीबा में केन्द्रक को नष्ट करने पर नष्ट हो जायेगा।
प्रश्न 9.
शब्द प्रोटियस का क्या अर्थ है?
उत्तर-
शब्द प्रोटियस का अर्थ है आकार में परिवर्तन करना।
प्रश्न 10.
सॉल-जेल प्रावस्थाओं का विभेदात्मक आधार क्या है?
उत्तर-
प्रोटीन के अणुओं का सिमटन (folding) एवं खुलना (unfolding) सॉल-जेल अवस्थाओं का विभेदात्मक आधार है।
प्रश्न 11.
अमीबा पोषण की दृष्टि से किस प्रकार का प्राणी है?
उत्तर-
अमीबा पोषण की दृष्टि से सर्वाहारी प्राणी है।
प्रश्न 12.
अमीबा में भोज्य पदाथों का पाचन कहाँ होता है?
उत्तर-
अमीबा में भोज्य पदार्थों का पाचन खाद्यधानी (food vacuole) में होता है।
प्रश्न 13.
अमीबा में श्वसन विधि का नाम बताइये।
उत्तर-
अमीबा में श्वसन विधि का नाम विसरण है।
प्रश्न 14.
अमीबा में संचित भोजन किस रूप में पाया जाता है?
उत्तर-
अमीबा में संचित भोजन ग्लाइकोजन के रूप में पाया जाता है।
प्रश्न 15.
अमीबा द्वारा ठोस पदार्थों के ग्रहण करने की क्रिया क्या, कहलाती है?
उत्तर-
अमीबा द्वारा ठोस पदार्थों को ग्रहण करने की क्रिया को फेटोसाइटोसिस कहते हैं।
RBSE Class 11 Biology Chapter 34 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
डायस्टोल व सिस्टोल का अमीबा से सम्बन्ध बताइये।
उत्तर-
अमीबा के भीतर प्रवेश करने वाले जल को बाहर निकालने का कार्य संकुचनशील रिक्तिका द्वारा किया जाता है। रिक्तिका यह कार्य दो चरणों में पूर्ण करती है
- अनुशिथिलन या डायस्टोल (Diastole)-इस दौरान रिक्तिका में धीरे-धीरे जल प्रवेश करता है व यह आकार में बड़ी होती है, इसे डायस्टोल प्रावस्था कहते हैं।
- संकुचन या सिस्टोल (Systole)-एक निश्चित सीमा तक वृद्धि करने के बाद संकुचनशील रिक्तिका पश्च भाग में सतह पर जाकर फट जाती है व जल त्याग बाहर की ओर कर देती है। इसे सिस्टोल (Systole) कहते हैं।
प्रश्न 2.
अमीबा में जीवद्रव्य कला के प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर-
अमीबा में जीवद्रव्य कला के कार्य निम्न हैं
- जीवद्रव्य कला अमीबा में शरीर का बाह्य आवरण बनाती है, जो जीवद्रव्य को बहने से रोकती है।
- यह अन्तः परासरण (Endo osmosis) में सहायता करती है।
- इसमें सूक्ष्मांकुर पाये जाते हैं जो आधारतल से चिपकने में सहायता करते हैं।
- पुनरुद्भवन में सहायता करती है।
- कूटपादों के निर्माण में सहायक।
- बाह्य वातावरण से निरन्तर पदार्थों के लेन-देन में सहायक है। जैसे विसरण फेगोसाइटोसिस, पिनोसाइटोटिस आदि।
प्रश्न 3.
अमीबा समसूत्रण (Promitosis) क्या है?
उत्तर-
अमीबा में अलैंगिक जनन द्विविभाजन द्वारा होता है। इसके अन्तर्गत अमीबा में सूत्री विभाजन (Mitosis) द्वारा दो पुत्री अमीबा का निर्माण होता है। लेकिन इस विभाजन के दौरान केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) विलुप्त नहीं होती है। अतः वह विभाजन जिसमें केन्द्रक झिल्ली विलुप्त नहीं होती है उसे समसूत्रण (promitosis) कहते हैं। इसे क्रिप्टोमाइटोसिस (Cryptomitosis) भी कहते हैं।
प्रश्न 4.
पुटीभवन क्या है? इससे अमीबा को क्या लाभ है?
उत्तर-
प्रतिकूल परिस्थितियों में अमीबा अपने चारों ओर तीन स्तरीय आवरण बना लेता है जिसे पुटी (Cyst) कहते हैं। पुटी के निर्माण में पुटीभवन कहते हैं।
परिकोष्ठन वितरण में तथा प्रतिकूल वातवरण से बचाव में सहायता करती है।
प्रश्न 5.
अमीबा द्वारा धनात्मक अनुचलन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बताइए।
उत्तर-
अमीबा द्वारा धनात्मक अनुचलन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निम्न हैं
- भोज्य पदार्थों के प्रति
- मन्द प्रकाश प्रति
- कैथोड़ और
- गुरुत्व के प्रति
- भोजन रसायन के प्रति
- 20°C से 30°C के प्रति
उपरोक्त परिस्थितियों के प्रति धनात्मक प्रतिक्रिया करता है।
प्रश्न 6.
यदि स्वच्छ जल के अमीबा को समुद्री जल में रखेंगे तो संकुचनशील रसधानी के अस्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
यदि स्वच्छ जल के अमीबा को समुद्री जल में रखेंगे तो उसमें संकुचनशील रिक्तिका लुप्त हो सकती है।
प्रश्न 7.
वलन-अवलन सिद्धान्त के अनुसार अमीबीय गति को समझाइए।
उत्तर-
आणविक वलन व अवलन सिद्धान्त-यह सिद्धान्त गोल्डैकर तथा लॉर्क ने 1950 में प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार प्लाज्मासोल व प्लाज्माजेल अवस्थाएँ प्रोटीन श्रृंखलाओं में वलन व अवलन का परिणाम हैं। पॉली पेप्टाइड श्रृंखलाओं के यूरोइड भाग में वलित व संकुचित होने पर प्लाज्माजेल, प्लाज्मासोल में परिवर्तित हो जाता है तथा अग्र भाग में जब पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला सीधी होने लगती हैं, तो प्लाज्मासोल, प्लाज्माजेल में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार प्लाज्मासोल अवस्था वलन के कारण तथा प्लाज्माजेल अवस्था अवलन के फलस्वरूप होती है।
प्रश्न 8.
सोल और जेल अवस्था में विभेद कीजिए।
उत्तर-
सोल और जेल अवस्था में विभेद
सोल | जेल |
1. प्लाज्मा जेल से घिरे हुये केन्द्रीय भाग प्लाज्मा सोल कहलाता है। | एण्डोप्लाज्म का बाह्य भाग प्लाज्मा जेल कहलाता है। |
2. यह अपेक्षाकृत तरल होता है। | जबकि यह गाढ़ा होता है। |
3. प्रोटीन के अणुओं के सिमटने (Folding) से सोल अवस्था का निर्माण होता है। | प्रोटीन के अणुओं के खुलने (Unfolding) से जैल अवस्था बनती है। |
4. सोल जेल में बदलती है। | जेल सोल में बदलती है। |
प्रश्न 9.
सारकोडिना वर्ग के क्या लक्षण है?
उत्तर-
सारकोडिना वर्ग के लक्षण
- इनमें गमन कूटपादों (Pseudopodia) द्वारा होता है।
- अधिकांश प्राणी स्वतन्त्रजीवी व कुछ परजीवी।
- पोषण प्राणीसम (holozoic) या मृतोपजीवी (Safrophytic) या परजीवी (parasitic)।
- निश्चित मुख का अभाव।
- शरीर नग्न होता है या कुछ जन्तुओं में किसी प्रकार का बाह्य कंकाल पाया जाता है।
प्रश्न 10.
अमीबा के कूटपाद को कूटपाद क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
अमीबा के कूटपाद को कूटपाद ही कहते हैं, क्योंकि अमीबा के कूटपाद बनते एवं बिगड़ते रहते हैं। इनकी कोई निश्चित आकृति नहीं होती है। अतः अमीबा के कूटपाद को कूटपाद ही कहा जाता है।
प्रश्न 11.
अमीबा में बहिक्षेपण क्रिया को समझाइए।
उत्तर-
भोजन के पाचन के पश्चात् शेष अपचित पदार्थ को शरीर बाहर निकालना बहिक्षेपण (Ejection) कहलाता है। बहिंक्षेपण के समय खाद्यधानी प्रायः अमीबा के पश्च सिरे पर जीवद्रव्य कला के
सम्पर्क में आती है। जीवद्रव्य कला फटकर भोज्य अवशेष को बाहर निकलने का मार्ग प्रदान करती है।
प्रश्न 12.
अमीबा को अकोशिकीय कहना अधिक है, क्यों?
उत्तर-
अमीबा को अकोशिकीय कहना ज्यादा उचित होगा, क्योंकि यह बहुकोशिकीय प्राणियों के समान शरीर की समस्त क्रियाएँ करने में सक्षम होती है, जो कि सामान्य कोशिका नहीं कर पाती है। अतः अमीबा को अकोशिकीय कहना ही उचित होगा।
प्रश्न 13.
स्वांगीकरण क्या है?
उत्तेर-
पाचन के समय चक्रगति के द्वारा खाद्य रिक्तिका इधरउधर घूमती रहती है तथा पचा हुआ भोजन कोशिका द्रव्य में विसरित होता जाता है जिसका उपयोग अनेक उपापचयी क्रियाओं में तथा कोशिका द्रव्य निर्माण में लिया जाता है। इस क्रिया को स्वांगीकरण (Assimilation) कहते हैं।
प्रश्न 14.
अमीबा के अन्तर्द्रव्य में उपस्थित धानियों (Vacuoles) का विवरण दीजिए।
उत्तर-
अमीबा के अन्तर्दव्य में उपस्थित धानियों का विवरण निम्न
- संकुचनशील रिक्तिका (Contractile vacuole)-अमीबा में एक संकुचनशील रिक्तिका पायी जाती है। यह जलीय द्रव्य द्वारा भरी पारदर्शी गोलाकार रचना होता है, जो इकहरी कला द्वारा घिरी रहती है। इस कला के बाहर चारों ओर अनेक छोटी-छोटी जल रिक्तिकाएँ एवं माइटोकॉन्ड्रिया पाये जाते हैं। यह प्रायः प्राणी के पश्च भाग में स्थित होती है। अमीबा में इस रसधानी का परिमाण घटता-बढ़ता रहता है। इसका मुख्य कार्य शरीर में जल की मात्रा का नियमन करना है।
- खाद्य रिक्तिकाएँ (Food vacuoles)-अन्तर्रव्य में अनेक असंकुचनशील भोज्य पदार्थ युक्त रिक्तिकाएँ भी पायी जाती है। भोजन का पाचन इन्हीं रिक्तिकाओं में होता है, जिसके कारण ये लयनकान (Lysosome) से घिरी रहती है। भोजन के सम्पूर्ण पाचन एवं अवशोषण के पश्चात् बहिःक्षेपण हेतु ये सतह पर आकार फट जाती है।
- जलधानियाँ (Water vacuole)-अन्तर्द्रव्य में अनेक छोटी, गोलाकार, पारदर्शी जल धानियाँ पायी जाती है। इनमें जलभरा रहता है, ये असंकुचनशील होती है।
प्रश्न 15.
अमीबा में खाद्यधानियों का क्या कार्य होता है?
उत्तर-
अमीबा में उपस्थित खाद्यधानी में भोजन का पाचन होता है। पाचन एवं अवशोषण के पश्चात् अपचित खाद्य पदार्थों के बहिःक्षेपण हेतु ये बाहरी सतह पर आकर फट जाती है। खाद्यधानी एण्डोप्लाज्म के चक्रण (cyclosis) द्वारा पाचित भोज्य पदार्थ का वितःकारी है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 34 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अमीबा की सूक्ष्मदर्शीय संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अमीबा अकोशीय या एककोशीय होता है। इसे अकोशीय कहना अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी कोशिका ही शरीर के समस्त जैविक कार्य करने में सक्षम होती है अतः प्राणी अकोशीय होते हैं।
(1) परिमाण, आकार एवं रंग-
अमीबा का व्यास 0.25 मि.मी. से 0.6 मि.मी. (250-600 µ) होता है। यह अनियमित, पारदर्शी एवं रंगहीन होता है। इसमें पेलीकल का अभाव होता है जिससे शरीर का आकार लगाकर बदलता रहता है अत: यह असममित होता है। इसमें अग्र तथा पश्च भाग स्पष्ट होते हैं।
(2) कूटपाद-
अमीबा के अग्र सिरे पर अंगुली की भाँति कुन्द सिरों वाले कूटपाद बनते हैं जिन्हें लोबोपोडिया कहते हैं । पश्च सिरे पर कुटपाद कभी-कभी विलीन होते हुए झुरियों के रूप में दिखाई देते हैं, इसे यूरोइड (Uroid) कहते हैं। लोबोपोडिया प्रकार के कूटपादों द्वारा अमीबा में गमन होता है। ये कूटपाद बनते रहते हैं एवं विलुप्त होते रहते हैं। अमीबा में एक साथ अनेक कूटपादों का निर्माण होता है अतः इसे बहुकूटपादी भी कहते हैं । अमीबा में कूटपाद चलन एवं भोजन ग्रहण में महत्त्वपूर्ण है।
(3) जीवद्रव्य कला-
अमीबा पर कोशिका भित्ति या पेलिकल अनुपस्थित होती है। अमीबा एक महीन लगभग 1-2 µ मोटी, कोमल झिल्ली से ढका रहता है, जिसे जीवद्रव्य कला कहते हैं। जीवद्रव्य कला या प्लाज्मालेमा ही शरीर का बाहरी आवरण बनाती है। यह दृढ़ एवं लचीली होती है, जो जीवद्रव्य को बहने से रोकती है, लेकिन शरीर की वृद्धि व कूटपादों के बनने में किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं करती है। यह चयनात्मक पारगम्य होती है एवं अन्त:परासरण में सहायता करती है। यह प्रोटीन एवं लिपिड अणुओं के दोहरे स्तर से बनी होती है तथा इस पर सूक्ष्मांकुर भी पाये जाते हैं। ये सूक्ष्मांकुर आधार तल से चिपकने में सहायता करते हैं। इस कला में पुनरुद्भवन की अत्यधिक क्षमता पायी जाती है।
आन्तीरक संरचना (Internal Structure) –
कोशिकाद्रव्य-
कोशिका द्रव्य, जीवद्रव्य कला से घिरा रहता है। यह आधारभूत तरल तथा संघटित रचनाओं का बना होता है। कोशिका द्रव्य बाह्य प्रदव्य तथा अन्त:प्रदव्य में विभेदित रहता है। एक्टोप्लाज्म बाहरी, पतली परिधीय स्तर बनाता है। यह स्वच्छ, पारदर्शी व पतला होता है। यह कूटपाद के शीर्ष पर एक काचाभ टोपी बनाता है। अन्तःप्रदव्य चारों तरफ से बाह्य प्रद्रव्य द्वारा घिरा रहता है। अन्त:प्रदव्य कणिकामय, अर्ध पारदर्शी तथा अधिक तरल होता है। अन्त:प्रद्रव्य में तरल के बहाव | की स्पष्ट गतियाँ दिखाई देती हैं, जिन्हें चक्रगति कहते हैं। मास्ट (Mast, 1926) के अनुसार अन्त:प्रद्रव्य दो प्रकार की कोलाइडी अवस्थाओं में पाया जाता है-बाहरी जैली सदृश्य प्लाज्मा जेल तथा केन्द्रीय भाग में प्लाज्मासोल होता है। दोनों अवस्थाएँ परस्पर परिवर्तनशील होती हैं। प्लाज्माजेल में प्रोटीन श्रृंखला विस्तारित तथा प्लाज्मासोल में संकुचित होती है। प्लाज्माजेल से प्लाज्मासोल बनने की क्रिया को सोलेशन तथा प्लाज्मासोल से प्लाज्माजेल बनने की क्रिया को जेलेशन कहते हैं।
अन्तर्द्रव्यी कोशिकांग (Endoplasmic Organelles)-
अन्तर्दव्य में निम्न कोशिकांग पाये जाते हैं
- केन्द्रक-अमीबा में एक उभयोत्तल तश्तरीनुमा केन्द्रक पाया जाता है। केन्द्रक के चारों तरफ महीन, दोहरी एवं छिद्रित केरियोथीका या केन्द्रक कला पायी जाती है। प्राय: केन्द्रक मध्य में स्थित होता है। इसमें मधुमक्खी के छत्ते के समान जालक पाया जाता है। केन्द्रक द्रव्य में अनेक केन्द्रिकाएँ होती हैं । केन्द्रक द्रव्य में 500 से 600 तक क्रोमेटिन के कण पाये जाते हैं, इन कणों को क्रोमीडिया कहते हैं। अमीबा की। सभी जैविक क्रियाएँ केन्द्रक के नियन्त्रण में होती हैं।
- खाद्य रसधानियाँ-एन्डोप्लाज्म में अनेक असंकुचनशील रिक्तिकाएँ पायी जाती हैं। इनका निर्माण भोजन अन्तर्ग्रहण के समय बनने वाली अस्थाई रचनाएँ होती हैं। ये चक्रगति द्वारा इधर-उधर घूमती रहती हैं। इनमें भोजन का पाचन होता है। पाचन एवं अवशोषण के पश्चात् अपचित खाद्य पदार्थों के बहिःक्षेपण हेतु ये बाहर सतह पर आकर फट जाती हैं। ये चारों तरफ से लाइसोसोम के द्वारा घिरी रहती हैं।
- संकुचनशील रिक्तिका-संकुचनशील रिक्तिका की संख्या अमीबा प्रोटियस में एक होती है। ये पश्च भाग की तरफ गोल बड़ी स्पन्दनशील रिक्तिका होती है। ये स्पष्ट, स्वच्छ जल के बुलबुले के समान लगती है। रिक्तिका के चारों ओर इकहरी कला अर्थात् इकाई झिल्ली का आवरण होता है। इसके चारों तरफ माइटोकॉन्ड्रिया व जल रिक्तिकाएँ पायी जाती हैं। यह परासरण नियन्त्रण का काम करती हैं।
- जल रिक्तिकाएँ-ये एण्डोप्लाज्म में पायी जाती हैं, इनमें जल भरा रहता है, ये अकुंचनशील होती हैं।
- अन्य कोशिकांग निम्न हैं
- माइटोकॉन्ड्रिया-अण्डाकार या छड्नुमा होती हैं। ये संख्या में बहुत अधिक होती हैं। इनमें क्रिस्टी पायी जाती है।
- गॉल्जीकॉय-ये नलियों के समान होते हैं तथा ये दो तीन समूहों में पाये जाते हैं।
- अन्तःद्रव्यी जालिका-यह भी नलिकाओं को जाल होता है, इन पर राइबोसोम्स चिपके रहते हैं। इनमें आशय रचना भी होती है। परन्तु सिस्टर्नी का अभाव होता है।
- लाइसोसोम्स-ये खाद्य रिक्तिकाओं के चारों ओर अधिक पायी जाती हैं, इनमें पाचक एन्जाइम्स भरे रहते हैं।
- एण्डोप्लाज्म में अनेक बिखरे हुए उर्सी पदार्थों के क्रिस्टल्स पाये जाते हैं। ये द्वि-पिरामिडी होते हैं। ये कार्बोनिल डाइयूरिया के बने होते हैं।
- सूक्ष्म नलिकाएँ-कोशिका द्रव्य में बिखरी रहती हैं, ये प्रोटीनयुक्त होती हैं।
- अमीबा में सेन्ट्रोसोम अनुपस्थित रहता है। इसमें संचित भोजन ग्लाइकोजन एवं वसा के रूप में रहता है।
प्रश्न 2.
अमीबा का आहार क्या होता है? भोजन के अन्तर्ग्रहण की विभिन्न विधियों का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर-
अमीबा पोषण के आधार पर होलोजोइक प्राणी है एवं भोजन ग्रहण करने के आधार पर सर्वाहारी (Omnivorous) है। भोजन अन्त:ग्रहण भक्षाणु क्रिया (Phagocytosis) द्वारा होता है।
इसका मुख्य भोजन शैवाल, जीवाणु, डाऐटम, छोटे-छोटे प्रोटोजोआ होते हैं।
भोजन का अन्तःग्रहण (Ingestion of Food)-
अमीबा में भोजन अन्तर्ग्रहण निम्न विधियों द्वारा दिया जाता है
- आयात (Import)-
इस विधि में अमीबा भोजन ग्रहण करने का प्रयास करता है अर्थात् यह एक निष्क्रिय (Inactive) विधि है।
भोजन जैसे ही अमीबा के सम्पर्क में आता है वेसे ही भोजन धीरेधीरे कोशिका में धंसता चला जाता है। इस प्रकार अन्तर्ग्रहण अमीबा की वेरूकोसा प्रजाति में पाया जाता है। - अन्तर्वलन (Invagination)-इस विधि में भोजन जैसे ही अमीबा के सम्पर्क में आता है उस स्थान पर एक्टोप्लाज्म (Ectoplasm) एण्डोप्लाज्म (Endoplasm) में धंस कर एक नलिका का निर्माण करता है। इस नलिका के अन्तस्थ सिरे पर आहार (Food) पहुँच जाता है तथा खाद्य रिक्तिका का निर्माण होता है।
- परिभितिकाशन (Circumvallation)-इस विधि में अमीबा के आगे दो कूटपाद (Pseudopodia) एक कप के समान रचना का निर्माण करते हैं, जिसे आहार कप (Food Cup) कहते हैं।
आहार रूप की सहायता से भोजन को चारों ओर से घेर लेता है। अन्ततः दोनों कूटपाद (Pseudopodia) के अन्तिम सिरे जुड़ जाते हैं एवं भोजन का अन्तर्ग्रहण कर लिया जाता है। लेकिन भोजन के साथ जल भी अन्दर आता है एवं खाद्य रिक्तिका (Food Vacuale) का निर्माण होता है। - परिप्रवाह (Circumfluence)-इस विधि में जैसे ही भोजन अमीबा के कूटपाद (Pseudopodia) के सम्पर्क में आता है, कूटपाद (Pseudopodia) भोजन के ऊपर फैल जाता है एवं फिर इसको अन्दर ले लिया जाता है। इस क्रिया में 1-2 मिनट लगती है।
पादभों की उत्तरोत्तर स्थितियाँ ।
भोजन पाचन (Digestion of Food)-
अमीबा में अन्त:कोशिकीय (Intra cellular) पाचन पाया जाता है। अमीबा में। पाचन खाद्य रसधानियों में सम्पन्न होता है इसलिये इन्हें जठर धानियाँ (Gastric Vacuole or gastrioles) भी कहते हैं।
खाद्य रसधानियों में पहले अम्लीय व बाद में क्षारीय मध्यम पाया जाता है। अम्लीय माध्यम में सक्रिय शिकार को मारा जाता है। इस दौरान खाद्य रसधानी से जल बाहर निकलता है, जिससे यह आकार में छोटी हो जाती है।
जब खाद रसधानी के साथ लाइसोसोम जुड़ जाते हैं तो माध्यम क्षारीय हो जाता है। प्रोटीन का पाचन करने हेतु ट्रिपसीन (Trypsin), पैप्टीडैज (Peptidase) एवं प्रोटीनेज एन्जाइम पाये जाते हैं । वसा का पाचन लाइपेज द्वारा होता है। भोजन का पूर्ण पाचन एक दिन में हो जाता है।
अवशोषण एवं स्वांगीकरण (Absorption and Assimilation)-
पाचन के समय चक्रगति के द्वारा खाद्य रिक्तिको इधरउधर घूमती रहती है तथा पचा हुआ भोजन कोशिका द्रव्य में विसरित होता जाता है जिसका उपयोग अनेक उपापचयी क्रियाओं में तथा कोशिका द्रव्य निर्माण में लिया जाता है। इस क्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं।
बहिक्षेपण (Egestion)-
अपचित भोजन को शरीर से बाहर कर दिया जाता है। इस बाहर निकालने की क्रिया को बहिक्षेपण कहते हैं। यह क्रिया यूरॉइड (Uroid) भाग से होती है।
प्रश्न 3.
अमीबीय गति से आप क्या समझते हैं ? अमीबा में गति के सोल-जेल सिद्धान्त को आरेख चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर-
अमीबा में गमन कूटपादों द्वारा होता है। अमीबा का गमन, अमीबीय गमन कहलाता है। गमन बड़े कूटपाद की दिशा में होता है। अमीबा की गति लगभग 0.02-0.3 मि.मी. प्रति मिनट होती है। अमीबीय गमन आधार पर ही सम्पन्न हो पाता है। अमीबा को आधार से चिपकने में Ca++, Mg++ व K+ के आयन्स सहायता करते हैं। कूटपाद के निर्माण व गमन की विधि के विषय में निम्न मत हैं
- आसंजन सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अनुसर अमीबा में गमन, पानी की बूंद की तरह होता है। यह सिद्धान्त मान्य नहीं है।
- संकुचन सिद्धान्त (Contraction Theory) – शुल्ज (Schultze, 1875) के मतानुसार कोशिकाद्रव्य में किन्हीं पदार्थों के | संकुचन के कारण कुटपाद बनते व बिगड़ते हैं। परन्तु यह मत भी वैज्ञानिक कसौटी पर खरा नहीं उतरा।
- पृष्ठ तनाव सिद्धान्त – बर्थोल्ड (1886) के अनुसार, कूटपाद का निर्माण उस भाग पर होता है, जहाँ सतह तनाव स्थानीय कारणों से कम हो जाता है तथा भीतरी तनाव बढ़ जाता है।
- बेलनी ( लुढ़काव) गति सिद्धान्त – यह सिद्धानत जेनिंग्स ने 1994 में दिया था, उन्होंने अमीबा वेरुकोसा पर कार्बन के कण लगाकर देखा कि यह अमीबा गेंद की भाँति लुढ़कती है। इस प्रकार का गमन एक कूटपाद वाली जातियों में सम्भव है लेकिन बहुकूटपादी जातियों में असम्भव होता है।
- पदभ्रमण गति सिद्धान्त – यह सिद्धान्त डेलिजर ने 1906 में दिया था, इसके अनुसार अमीबा प्रोटियस अपने कूटपादों को टाँगों के समान काम में लेकर आधार पर गति करता है।
- सोल-जेल सिद्धान्त-यह सिद्धान्त हाइमन ने 1917 में प्रस्तुत किया था तथा इसका समर्थन पैन्टिन ने तथा मास्ट ने किया था। यह सबसे मान्य मत है। इस सिद्धान्त के अनुसार कूटपाद का बनना या बिगड़ना कोशिका द्रव्य की श्यानता पर निर्भर करता है। इस गमन में चार प्रमुख प्रक्रियाएँ होती हैं
- सर्वप्रथम प्लाज्मालेमा आधार पर चिपक जाती है।
- अगले भाग में प्लाज्मोजेल का आंशिक द्रवीकरण होने के कारण प्लाज्मासोल उस भाग पर पहुँच कर हायलिन केप पर दबाव डालता है और कूटपाद का बनना शुरू हो जाता है तथा प्लाज्मा सोल पाश्र्व में प्लाज्मासोल में परिवर्तित हो जाता है, इस क्रिया को जेलेशन कहते हैं।
- यूरोइड भाग में प्लाज्माजेल, प्लाज्मासोल में परिवर्तित होता है, इस क्रिया को सोलेशन कहते हैं।
- पश्च भाग में चारों ओर से संकुचन होता है, जिससे प्लाज्मासोल आगे की तरफ दबाव से प्रवाहित होता है।
- फव्वारा क्षेत्र संकुचन-सिद्धान्त-यह सिद्धान्त ऐलेन ने 1962 में प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार केन्द्र में एण्डोप्लाज्म का अक्षीय क्षेत्र होता है तथा इसके चारों तरफ व पीछे की ओर कर्तन क्षेत्र होता है। अक्षीय क्षेत्र में जेल आगे खिंचता है, जो हायलाइन केप से टकरा कर फव्वारे के समान इधर-उधर फैल जाता है। इस क्षेत्र में प्लाज्मा जेल संकुचित होकर अक्षीय क्षेत्र को आगे खींचता है।
- आणविक वलन व अवलन का सिद्धान्त-यह सिद्धान्त गोल्डेकर एवं लोचे ने सन् 1950 में प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनुसार अमीबा के कोशिका द्रव्य में प्रोटीन अणु पाये जाते हैं। ये प्रोटीन जब खुल (Unfold) जाते हैं तब जेल अवस्था का निर्माण होता है और जब प्रोटीन अणु वलित (Fold) हो जाते हैं तब सोल अवस्था का निर्माण होता है। प्रोटीन के खुलने व वुलन में ATP की आवश्यकता होती है।
- द्रवचालित दाब सिद्धान्त-यह सिद्धान्त 1963 में रेनॉल्डी एवं जाह्न ने प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार कूटपाद का निर्माण अग्र भाग पर द्रव चालित दाब के कारण होता है। द्रव चालित दाब अग्र सिरे पर सर्वाधिक व पश्च भाग में सबसे कम तथा मध्य भाग में मध्यम होता है। इस दाब के फलस्वरूप सोल कूटपाद की ओर बहता है।
प्रश्न 4.
परासरण नियमन क्या है? अमीबा में परासरण नियमन क्रिया को समझाइए।
उत्तर-
अमीबा प्रोटियस का जीव द्रव्य चारों तरफ के जलीय माध्यम की तुलना में अधिक सान्द्र होता है, इस कारण अन्तःपरासरण द्वारा अन्दर प्रवेश करता रहता है। यह अनावश्यक जंल, संकुचनशील रिक्तिका के द्वारा बाहर निकाला जाता है। इस प्रकार जल की शरीर के अन्दर निश्चित मात्रा को बनाये रखना तथा जल की अधिक मात्रा को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को परासरण नियमन (Osmoregulation) कहते है।
अमीबा के भीतर प्रवेश करने वाले जल को बाहर निकालने का कार्य संकुचनशील रिक्तिका द्वारा किया जाता है। रिक्तिका यह कार्य दो चरणों में पूर्ण करती है
- अनुशिथिलन या डायस्ट्रोल (Diastole) – इस दौरान रिक्तिका में धीरे-धीरे जल प्रवेश करता है व यह आकार में बड़ी होती है, इसे डायस्टोल प्रावस्था कहते हैं।
- संकुचन या सिस्टोल (Systole) – एक निश्चित सीमा तक वृद्धि करने के बाद संकुचनशील रिक्तिका पश्च भाग में सतह पर जाकर फट जाती है व जल त्याग बाहर की ओर कर देती है। इसे सिस्टोल (Systole) कहते हैं।
प्रश्न 5.
अमीबा में प्रजनन की विभिन्न विधियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अमीबा में प्रजनन सिर्फ अलैंगिक प्रकार का होता है। यह बहुविभाजन, बीजाणुजनन तथा पुनरुद्भवन के द्वारा होता है।
- द्विविभाजन – यह अमीबा के अलैंगिक प्रजनन की सबसे सामान्य व सरल विधि है, जो अनुकूल परिस्थितियों में सम्पन्न होती है। इस विधि द्वारा एक अमीबा से दो सन्तति अमीबा बनती है। इस समसूत्री विभाजन में केन्द्रक झिल्ली विलुप्त नहीं होती है, अतः इसे
प्रोमाइटोसिस या क्रिप्टोमाइटोसिस कहते हैं। यह क्रिया आधे घण्टे में पूर्ण हो जाती है। सन्तति अमीबा 48 घण्टे बाद पुनः इस क्रिया को दोहरा सकते हैं। सन्तति अमीबा के शरीर का व्यास पैतृक अमीबा से आधे से थोड़ा अधिक होता है। इस प्रजनन में पहले केन्द्रक-विभाजन तथा बाद में कोशिकाद्रव्य-विभाजन होता है। इस प्रक्रिया में मेटाफेज प्रावस्था में बहुध्रुवीय केन्द्रकीय तर्के बनते हैं तथा ये ऐनाफेज प्रावस्था में एक ध्रुवीय तर्क में बदल जाते हैं। - बहुविभाजन – यह प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है। सबसे पहले अमीबा सिकुड़ जाता है तथा अपने चारों तरफ तीन स्तरीय कोष्ठ या पुटी बना लेता है। बाद में केन्द्रक समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होकर लगभग 500-600 सन्तति केन्द्रकों में बँट जाता है। ये सन्तति केन्द्रक परिधि पर व्यवस्थित हो जाते हैं। प्रत्येक सन्तति केन्द्रक चारों ओर से कोशिका द्रव्य की छोटी मात्रा में घिर जाते हैं जिन्हें अमीब्यूली या स्युडोपोडियोस्पोर्स कहते हैं। अनुकूल परिस्थिति आने पर पुंटी फट जाती है तथा स्यूडोपोडियोस्पोर्स स्वतन्त्र हो जाते हैं। स्यूडोपोडियोस्पोर्स नन्हीं अमीबा में विकसित हो जाता है। परिकोष्ठन वितरण में तथा प्रतिकूल वातावरण में सहायता करता है।
- बीजाणुजनन – बीजाणुजनन भी प्रतिकूल परिस्थितियों में ही होता है। अमीबा की केन्द्रक-कला फट जाती है और क्रोमेटिन कण कोशिका द्रव्य में बिखर जाते हैं। क्रोमेटिन कणों के 2-2 या 3-3 के समूहों के चारों तरफ केन्द्रक कला बनकर सूक्ष्म केन्द्रक बन जाते हैं। इस प्रकार एक पैतृक अमीबा में लगभग 200-300 संतति केन्द्रक बन जाते हैं। इन संतति केन्द्रकों के चारों तरफ भी कोशिका द्रव्य इकट्ठा हो जाता है। तथा इनसे संतति अमीबा बन जाते हैं। संतति अमीबा के चारों तरफ बाहरी स्तर कठोर होकर बीजाणुवरण बना लेता है। इस प्रकार पैतृक अमीबा का शरीर धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है तथा बीजाणु जलाशय के तल पर गिर जाते हैं। अनुकूल वातावरण में ये नन्हें अमीबा में विकसित हो जाते हैं तथा बीजाणुवरण को फोड़ कर बाहर आ जाते हैं।
- पुनरुदभवन – अमीबा में पुनरुद्भवन की अपार क्षमता पायी जाती है। यदि अमीबा का शरीर टुकड़ों में टूट जाये या इसे काट दें तो अमीबा के ऐसे सभी टुकड़े अथवा भाग जिनमें केन्द्रक का अंश पाया जाता है, पुनरुद्भवन द्वारा पूर्ण अमीबा बन जाते हैं।
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