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RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 8 जीवद्रव्य

June 13, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 8 जीवद्रव्य

RBSE Class 11 Biology Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन सा जीवद्रव्य को गुण नहीं है –
(अ) कोलायडी विलयन
(ब) भयानता
(स) कोशिका का अजैव द्रव है।
(द) जीवत्व का गुण

प्रश्न 2.
हींग प्राप्त होता है –
(अ) फेरूला की जड़ों से
(ब) फेरूला की पत्तियों से
(स) फेरूला के तने से
(द) फेरूला के पुष्पों से

प्रश्न 3.
रैफाइड्स बने होते हैं –
(अ) कैल्सियम ऑक्सेलेट
(ब) कैल्सियम कार्बोनेट
(स) सिलिको
(द) रेजिन से

प्रश्न 4.
जीवद्रव्य में सबसे अधिक कार्बनिक पदार्थ होता है –
(अ) वसा
(ब) प्रोटीन
(स) कार्बोहाइड्रेट्स
(द) न्यूक्लिक अम्ल
उत्तरमाला:
1. (स), 2. (अ), 3. (अ), 4. (ब)

RBSE Class 11 Biology Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवद्रव्य में संचयी पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर:
(i) कार्बोहाइड्रेट्स
(ii) वसा
(iii) प्रोटीन

प्रश्न 2.
रबर किस पौधे से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
रबर हीवीया ब्राजिलिएंसिस एवं फाइकस इलिस्टिका से प्राप्त होता है।

प्रश्न 3.
सिस्टोलिथ क्या है ?
उत्तर:
कैल्सियम कार्बोनेट के क्रिस्टल कोशिका भित्ति पर अंगूर के गुच्छे के समान होते हैं जिन्हें सिस्टोलिथ कहते हैं।

प्रश्न 4.
क्वीनीन क्या है ?
उत्तर:
सिनकोना वृक्ष के तने की छाल से प्राप्त पदार्थ को क्वीनीन कहते हैं। जिसका उपयोग मलेरिया रोग के उपचार में किया जाता है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गोंद किन पौधों से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
गोंद निम्न पौधों से प्राप्त होता है –

  1. कीकर
  2. बबूल
  3. नीम
  4. खेजड़ी

अकेसिया सनेगल (Acacia Senegal) से सर्वश्रेष्ठ गोंद प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
रेजिन का महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
रेजिन का महत्त्व –

  1. यह काष्ठ को कठोर तथा टिकाऊ बनाता है।
  2. कनाडा बालसम इसका महत्त्व प्रयोगशाला में किया जाता है।
  3. पेन्ट एवं वार्निश बनाने में काम आता है।
  4. हींग का, जिसका निर्माण औषधि बनाने में उपयोग किया जाता है।
  5. मसाले के रूप में हींग का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
स्रावी पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर:
स्रावी पदार्थ (Secretory Substance):
पौधों की कोशिकाओं में पोषण को छोड़कर अन्य किसी कार्यवश अथवा कुछ विशेष मेटाबॉलिक (Metabolic) क्रियाओं के कारण विशेष प्रकार के पदार्थ बनते रहते हैं। ये पदार्थ स्रावी पदार्थ (Secretory materials) कहलाते हैं। इनका पौधे की वृद्धि में सामान्यतः सृजनात्मक भाग नहीं होता है। ये स्रावी पदार्थ थैली समान संरचनाओं अथवा ग्रन्थियों में पाये जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. विकर या एन्जाइम्स (Enzymes)
  2. मकरन्द (Nectar)

RBSE Class 11 Biology Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवद्रव्य के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जीवद्रव्य एक रंगहीन, जेली सदृश्य, लसलसा, अर्द्धतरल, अर्द्धपारदर्शी, संकुचनशील गाढ़ा मिश्रण होता है। यह एक कणिकामय कोलाइडल मिश्रण होता है। इसमें उपस्थित कणिकाओं का व्यास 0.02 µ से 20 µ का होता है। जीवद्रव्य में घुले हुए कण विसर्जित कण कहलाते हैं। इसमें अधिक मात्रा में जल पाया जाता है। जिसमें विभिन्न पदार्थ जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन, हार्मोन आदि पाये जाते हैं। जल में घुलित पदार्थ समांगी (Homogenous) व अघुलित पदार्थ असमांगी (Heterogenous) होते हैं। जीवद्रव्य एक-कोलाइडी विलयन के निम्न गुण होते हैं –

  1. जीवद्रव्य में निलम्बित कोलॉयडीय कण निरन्तर गति की। अवस्था में रहते हैं तथा एक-दूसरे से टकराते रहते हैं व टेढ़ी-मेढ़ी गति प्रदर्शित (Zigzag movement) करते हैं । इसे ब्राउनियन गति (Brownian movement) कहते हैं।
  2. जीवद्रव्य का कोलोइडल विलयन दो परस्पर परिवर्तनशील प्रावस्थाओं जेल (gel) व सॉल (sol) में पाया जाता है।
    RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 8 जीवद्रव्य img-1
  3. जीवद्रव्य के कोलाइडली कण प्रकाश की किरणों को बिखेर कर चमक उत्पन्न करते हैं जिसे टिण्डल प्रभाव (Tyndall effect) कहते हैं।
  4. बड़े आकार के कण विद्युत आवेशित होते हैं, इस कारण इसमें आकर्षण व प्रतिकर्षण होता रहता है, जिससे जीवद्रव्य में निरन्तर प्रवाही गति (Cyclosis) होती रहती है।
  5. अणुओं को परस्पर बाँधे रखने वाले बल को द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। जीवद्रव्य में पृष्ठ तनाव गुण पाया जाता है।
  6. जीवद्रव्य में विद्युत प्रवाहित करने या गर्म करने पर जीवद्रव्य स्कन्दित हो जाता है अर्थात् जीवद्रव्य में स्कन्दन का गुण पाया जाता है।
  7. प्रत्यास्थता के गुण के कारण जीवद्रव्य प्रसारित होकर पुनः अपना मूल आकार ग्रहण कर लेता है।
  8. संसजनता गुण के कारण जीवद्रव्य को श्यानता का गुण प्राप्त होता है। श्यानता के बढ़ने से जीवद्रव्य में उपापचयी क्रियाओं में कमी आती है।
  9. जीवद्रव्य में लम्बाई में खिंचने का सामर्थ्य होता है अर्थात् इसमें तनन सामर्थ्य (Tensile strength) का गुण पाया जाता है।
  10. जीवद्रव्य में संकुचनशीलता एवं दृढ़ता का भी गुण पाया जाता है।
  11. घोल की सतह के ऊपर किसी पदार्थ के सान्द्रण में होने वाली वृद्धि को अधिशोषण (Adsorption) कहते हैं। अधिशोषण के प्राकृतिक व्यवहार के कारण जीवद्रव्य को प्रोटीन सीमाएँ बनाने में सहायता मिलती है।
  12. जीवद्रव्य अपनी सतह पर अन्य कोलाइडली विलयनों के समान अर्द्ध पारगम्य झिल्ली का निर्माण करता है।
  13. जीवद्रव्य का परावर्तन गुणांक (refractive index) 1.4 होता है जो इसकी समांगता का द्योतक है।
  14. जीवद्रव्य का विशिष्ट गुरुत्व 1.02 से 1.07 होता है।

रासायनिक दृष्टि से जीवद्रव्य एक जटिल मिश्रण होता है व इसे अति मिश्रण (Super mixture) कहते हैं। जीवद्रव्य में लगभग 50 प्रकार के पदार्थ यौगिक (Compound) में पाये जाते हैं। जीवद्रव्य में पाये जाने वाले विभिन्न यौगिक जिनकी मात्रा निम्न है –

नाम यौगिक मात्रा प्रतिशत
1. जल 75.85%
2. प्रोटीन 7.9%
3. कार्बोहाइड्रेट्स 2 – 2.5%
4. लिपिड्स 1 – 1.5%
5. अकार्बनिक पदार्थ 1 – 1.5%
6. आर.एन.ए. 0.7%
7. डी.एन.ए. 0.4%
8. जलीय पादपों के जीवद्रव्य में जल 95%
9. बीजों की कोशिकाओं के जीवद्रव्य में जल 10 – 15%

जीवद्रव्य में उपस्थित जल, लवण व गैसें मुख्यतः अकार्बनिक यौगिक होते हैं। जीवद्रव्य में विभिन्न प्रकार के खनिज लवण धनात्मक (+) तथा ऋणात्मक (-) आयनों जैसे – Na+, K+, Ca++, Mg++, Fe++ व HCO–3, PO–4, SO–4, CO–3, Cl– आदि के रूप में पाये जाते हैं। जीवद्रव्य में लवणों की उचित मात्रा, कोशिकाओं की क्रियाशीलता के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 2.
उत्सर्जी पदार्थ क्या होते हैं? दो पादप उत्सर्जी पदार्थों का वर्णन करो।
उत्तर:
उत्सर्जी पदार्थ (Excretory Products):
विभिन्न मैटाबॉलिक क्रियाओं में कुछ ऐसे पदार्थ भी बन जाते हैं। जो पौधे या कोशिका के किसी काम के नहीं होते हैं बल्कि कभी-कभी तो ये कोशिका के लिए परेशानी बन जाते हैं। पौधों में कोई ऐसी व्यवस्था तो होती नहीं कि बेकार या हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जा सके। अतः ये कोशिका में ही एकत्रित होते रहते हैं। वृक्षों की छाल, मृतकाष्ठ (Dead wood), पुरानी पत्तियों, फलों के आवरणों आदि में ये पदार्थ एकत्रित किये जाते हैं और वहाँ व्यर्थ पड़े रहते हैं या अलग होकर गिर जाते हैं। इनमें से अधिकतर पदार्थ मनुष्य के लिए अत्यन्त लाभकारी हैं और वह उन्हें अपनी बुद्धि से अनेक लाभकारी कार्यों में उपयोग करता है। अपशिष्ट प्रमुख रूप से नाइट्रोजनी (Nitrogenous) अथवा विनाइट्रोजनी (non-nitrogenous) हो सकते हैं। ये प्रमुख रूप से निम्न प्रकार से हैं –

(1) एल्केलाइड्स (Alkaloids):
ये नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ हैं। ये जटिल कार्बनिक यौगिक हैं जिनमें नाइट्रोजन पायी जाती है। ये जल में अघुलनशील तथा एल्कोहॉल में घुलनशील होते हैं। ज्यादातर एल्केलाइड्स विषैले और स्वाद में कड़वे होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण ये पौधों के रक्षक पदार्थ हैं। इन एल्केलाइड्स का औषधीय महत्त्व अधिक है। कुछ महत्त्वपूर्ण एल्केलाइड्स
निम्नलिखित हैं –

नाम एल्केलाइड्स स्रोत उपयोग
1. क्वीनीन (Quinine) सिनकोना की छाल से। मलेरिया के उपचार में।
2. मार्फीन (Morphine) पेपेवर सोमनीफेरम (पोस्त अफीम) के कच्चे फलों से। दर्दनाशक एवं निद्राकारक के रूप में उपयोग।
3. निकोटीन (Nicotine) तम्बाकू की पत्तियों से। निद्राकारक एवं दर्दनिवारक दवा में उपयोग।
4. एट्रोपीन (Atropine) एट्रोपा बेलेडोना (Atropa baladona) की जड़ों से। आँखों की औषधि एवं तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करने में।
5. रेसरपीन (Rasrpine) राउलफिया सर्पेन्टाइना की जड़ों से। उच्च रुधिर चाप को कम करने में।
6. थीइन (Theine) चाय की पत्तियों से। उत्तेजक के रूप में उपयोग।
7. टेक्सॉल (Texsole) टेक्सस (जिम्नोस्पर्म) पादप से। कैंसर रोधी दवा के निर्माण में।

एल्केलाइड्स अधिकतर दवाओं, पेय पदार्थों (विशेषकर बिना एल्कोहॉल वाले पेयों में) के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं। इनके अलावा पौधों में ग्लाइकोसाइड्स (Glycosides) भी पाये जाते हैं। ये पदार्थ कार्बोहाइड्रेट्स के विघटन से बनते हैं। एल्केलाइड्सों की तरह ये भी महत्त्वपूर्ण पदार्थ हैं। डिजीटाक्सिन (digitoxin) नामक ग्लाइकोसाइड फाक्सग्लॅव (Foxglove Digitalts purpurea) नामक पौधे में होता है तथा हृदय के लिए अत्यन्त उत्तेजक पदार्थ है।

2. गोंद (Gum):
यह कीकर, बबूल, खेजड़ी, नीम आदि वृक्षों में पाया जाता है। इसका निर्माण सेल्यूलोज युक्त कोशिका भित्ति के | विघटन से होता है। गोंद जल में घुलनशील किन्तु एल्कोहॉल में अघुलनशील होता है। यह चिपचिपे पदार्थ के रूप में बाहर निकलता है। हवा के सम्पर्क में आने पर कठोर समांगी क्रिस्टल समान रचना में बदल जाता है। अकेसिया सनेगल (Acacia Senegal) से सर्वश्रेष्ठ गोंद प्राप्त होता है।

3. रेजिन्स (Resins):
रेजिन्स एक प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) के व्युत्पन्न होते हैं जिनका निर्माण सुगंधित तेलों की ऑक्सीकरण से होता है। यह ठोस पीले रंग का पदार्थ जो चीड (Pine) इत्यादि के तनों में रेजिन नलिकाओं (Resin canals) में पाया जाता है। जल में अघुलनशील लेकिन अल्कोहल (alcohol), तारपीन के तेल आदि में शीघ्र घुल जाता है। यह काष्ठ को कठोर तथा टिकाऊ बनाता है। कनाडा बालसम (Canada Balsam) इसी का उदाहरण है। पेन्ट, वार्निश आदि बनाने के काम आता है। हींग भी फेरुला फोयटिडा (Ferula foetida) पादप की जड़ों के सिरे पर काटे गये भाग से निकलने वाला रेजिन युक्त पदार्थ है, अर्थात् हींग उक्त पादप की जड़ों से प्राप्त किया जाता है जिसका औषधि के निर्माण में एवं मसाले के रूप में उपयोग होता है।

4. टैनिन्स (Tannins):
ये जटिल नाइट्रोजन युक्त पदार्थ हैं जो अम्लीय प्रकृति के होते हैं। प्रायः ये घुलित अवस्था में मिलते हैं। साधारणतः फलों में कच्ची अवस्था में अधिक मात्रा में तथा पकने पर कम हो जाते हैं। पौधों में कड़वापन प्रायः इन्हीं के कारण होता है। चाय की पत्तियों में लगभग 18% टैनिन पाया जाता है। कत्था-अकेसिया कटैचू (Acacia Catechu) वृक्ष की छाल से प्राप्त किया जाता है। टैनिन की उपस्थिति काष्ठ (Wood) या अंग को बहुत कठोर बना देती है। इस पर कोई कीट और कवक (Fungi) आक्रमण नहीं करते। अतः इसकी उपस्थिति काष्ठ को जर्मप्रतिरोधी एवं काष्ठ को टिकाऊ बना देती है। टैनिन का उपयोग दवाओं, स्याही बनाने और प्रमुख रूप से चमड़ा उद्योग में होता है।

5. लैटेक्स (Latex):
यह एक विशेष प्रकार का दूध जैसा सफेद पीला या भूरे रंग का विचित्र मिश्रण होता है जो लैटेक्स वाहिनियों में पाया जाता है। आक (Calatropis), पीपल, यूफॉर्बिया (Euphorbia) आदि में सफेद किन्तु कंटेली (Argemone) पोस्त (Poppy) आदि में पीले रंग का होता है। कभी-कभी जैसे केले में जल की तरह होता है। इन विलयनों में प्रायः मण्ड, शर्करा, वसा, टैनिन, गोंद, रेजिन, संचित भोजन, कुछ एंजाइम्स आदि मिलते हैं। ऐसे पादप जिनमें लैटेक्स पाया जाता है उन्हें पैट्रो-पादप भी कहते हैं।

हीबीया, ब्राजिलिएसिस एवं फाइकस इलास्टिका से प्राप्त रबर एक प्रकार का लैटेक्स ही होता है। यूर्फीबिया, आक, कनेर आदि के लैटेक्स से पेट्रोलियम बनाये जाने की सम्भावनाएँ हैं। कभी-कभी इनमें कुछ विषैले पदार्थ भी मिले होते हैं और इसलिए यह दवाओं के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है। इसका उपयोग रबर (Rubber), अफीम (Opium) आदि बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 3.
संचयी पदार्थ कितने प्रकार के होते हैं ? उनका विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर:
संचित पदार्थ (Reserve Materials):
रासायनिक रूप में प्रमुख रूप से कार्बोहाइड्रेट्स, वसा व प्रोटीन ऐसे पदार्थ हैं जो कोशिका स्वयं अपने लिये बनाती है। इन पदार्थों का उपयोग भोजन (पोषक पदार्थों) के रूप में किया जाता है। अधिक मात्रा में उत्पन्न ये पदार्थ संचित भोजन (Stored food) के रूप में एकत्रित कर लिए जाते हैं। इनमें से बहुत से पदार्थ घोल के रूप में कोशिका रस (Cell sap) में अथवा ठोसों के रूप में जीवद्रव्य में एकत्रित किये जाते हैं। ये निम्न प्रकार हैं –

(1) कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates):
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के यौगिक हैं। इनका सामान्य सूत्र (CH2O)n होता है। यहाँ पर n का मान 3 – 7 तक होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स में सल्फर तथा नाइट्रोजन के अणु भी होते हैं। ये कार्बोहाइड्रेट्स विविध आकृतियों में पाये जाते हैं जिनको रासायनिक संरचना के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है –

  • मोनोसैकेराइड
  • ओलिगोसैकेराइड
  • पॉलीसैकेराइड

मोनोसैकेराइड जल में घुलनशील, मीठे एवं सरल शर्करा होते हैं। जैसे ट्रायोज (फास्फोग्लिसरौल्डहाइड, डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फास्फेट) टेट्रोज (इरिथुलोज, इरिथ्रोज) पेंटोज (राइ बोज, जाइ लूलोज, डीऑक्सीराइबोज), हेम्बोज (ग्लूकोज, फ्रक्टोज, गैलेक्टोज), हेप्टोज (सीडोहेप्टूलोज) आदि। ओलिगोसैकेराइड्स भी स्वाद में मीठे होते हैं। इनका निर्माण दो से दस मोनोसैकेराइड्स के बीच ग्लाइकोसिडिक बन्ध बनने से होता है। जैसे सुक्रोज, माल्टोज, लैक्टोज
आदि। पॉलीसैकेराइड्स जल में अविलेय, स्वादहीन एवं अक्रिस्टलीय पदार्थ होते हैं। इनका उपयोग संरचनात्मक कार्यों में अधिक होता है। जैसेसेल्यूलोज, स्टार्च, ग्लाइकोजन, इन्यूलिन, काइटीन, पेप्टीग्लाइकॉन आदि।

(2) वसा (Lipids):
वसा जीवद्रव्य में बूंदों के रूप में होती है। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन मुख्य तत्त्व होते हैं। वसा जल में अघुलनशील व कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होते हैं। वसा अधुवी, जल विरागी (Hydrophobic) एवं चिकनाहट युक्त होते हैं। तरल रूप में इन्हें तेल (Oil) कहते हैं। ये विविध प्रकार वसीय अम्ल (Falty acids) तथा ग्लिसरॉल (Glycerol) के अणुओं से मिलकर बने होते हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में ऑक्सीजन का अनुपात कम होता है। इनको निम्न तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है –

  • सरल लिपिड (Simple lipid)
  • संयुक्त लिपिड (Compound lipid)
  • व्युत्पन्न लिपिड (Derived lipid)

सरल लिपिड में वसाएँ तथा तेल आते हैं। इनको ट्राइग्लिसरॉइड भी कहते हैं। यह एक ग्लिसरॉल अणु से तीन वसीय अम्ल के अणुओं से संगठित होने से बनता है। अधिकांश ठोस वसा संतृप्त होती है जबकि तेल असंतृप्त वसा होते हैं। जब सरल लिपिड अन्य पदार्थों के साथ जुड़ते हैं तो संयुक्त लिपिड (Compound Lipid) का निर्माण होता है, जैसे-फास्फोलिपिड्स, ग्लाइकोलिपिड्स आदि। इसकी संरचना ट्राइग्लिसरॉइड्स के समान होती है। इसमें ग्लिसरॉल से दो वसीय अम्ल के अणु जुड़े होते हैं। तीसरा बन्ध फास्फेट समूह से जुड़ा होता है। व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived Lipids) सरल व संयुक्त लिपिड से। मिलकर बनते हैं जैसे स्टीरॉइड्स, कैरोटिनाइड्स, कोलेस्टरॉल, विटामिनडी, मोम आदि।

(3) प्रोटीन (Protein):
‘प्रोटीयोस’ ग्रीक शब्द से प्रोटीन बना, जिसका अर्थ है ‘प्रथम स्थान’। कोशिका में सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण कार्बनिक पदार्थ है जिसकी भौतिक एवं रासायनिक संरचना विविधता दर्शाती है। सजीवों की संरचना व्यवहार एवं गुणों की विशिष्टता उनमें मौजूद प्रोटीनों की क्रियाशीलता पर निर्भर करती है। प्रोटीन का निर्माण एमीनो अम्लों से होता है। एमीनो अल 20 प्रकार के होते हैं। एक एमीनो अम्ल में कार्बन के एक तरफ हाइड्रोजन, एक तरफ कार्बोक्सिल समूह (-COOH) तथा एक तरफ एमीनो समूह (-NH2) होता है।

R समूह अलग-अलग एमीनो अम्लों में विविधता लिए होता है। प्रोटीन संश्लेषण में एक एमीनो अम्ल को अमीनो समूह दूसरे एमीनो अम्ल के कार्बोक्सिल समूह से सहसंयोजक बन्ध बनाता है जिसे पेप्पटाइड बन्ध कहते हैं। इस प्रकार श्रृंखला में जब बहुत से पेप्पटाइड बन्ध बनते हैं तो बहुपेप्पटाइड या पॉलीपेप्पटाइड श्रृंखला को प्रोटीन कहते हैं।
एमीनो अम्लों की बहुलीकरण की क्रिया से प्रोटीन का निर्माण होता है। प्रोटीन अमीनो अम्लों के बहुलक होते हैं। प्रोटीन संरचनात्मक रूप से निम्न प्रकार की होती है –
(i) सरल प्रोटीन
(ii) संयुग्मित प्रोटीन
(iii) व्युत्पन्न प्रोटीन

  • सरल प्रोटीन (Simple Protein): ये जल अपघटन से अमीनो अम्लों में टूटते हैं। जैसे-ऐल्ब्यूमीन, ग्लोब्यूलीन।
  • संयुग्मित प्रोटीन (Conjungted Protein):एमीनो अम्ल व अन्य यौगिकों से मिलकर बनते हैं। जैसे-ग्लाइको प्रोटीन, न्यूक्लियो प्रोटीन, लिपोप्रोटीन आदि।
  • व्युत्पन्न प्रोटीन (Derived Protein): ये प्रोटीन के जल अपघटनीय उत्पाद होते हैं। जैसे-प्रोटीयोजेज, पेप्टाइड्स आदि।

प्रश्न 4.
मकरन्द एवं स्रावी एंजाइमों के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर:
स्रावी पदार्थ (Secretory Substance):
पौधों की कोशिकाओं में पोषण को छोड़कर अन्य किसी कार्यवश अथवा केवल कुछ विशेष मेटाबॉलिक (Metabolic) क्रियाओं के कारण विशेष प्रकार के पदार्थ बनते रहते हैं। ये पदार्थ स्रावी पदार्थ (Secretory materials) कहलाते हैं तथा इनका पौधे की वृद्धि में सामान्यतः सृजनात्मक भाग नहीं होता है। ये स्रावी पदार्थ थैली समान संरचनाओं अथवा ग्रन्थियों में पाये जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –

(1) विकर या एन्जाइम्स (Enzymes):
लगभग सभी प्रकार की रासायनिक क्रियायें जो कोशिका में होती हैं एन्जाइम्स की उपस्थिीत के कारण ही सरलता से होती हैं। सामान्य ताप इत्यादि पर ये क्रियायें एन्जाइम्स के बिना सम्भव नहीं हैं। अतः कोशिका आवश्यकतानुसार एन्जाइम्स बनाती रहती है। परजीवी (Parasites) में कुछ एन्जाइम्स इस प्रकार के बनते हैं ताकि पोषक (host) की कोशिका भित्ति (Cell Wall) को गलाकर ये परजीवी को पोषक के अन्दर मार्ग दे सकें। जीवधारियों में विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स पाये जाते हैं जो विभिन्न प्रकार के उत्प्रेरक (Catalyst) का कार्य करते हैं। एक एन्जाइम एक ही प्रकार की क्रिया को उत्तेजित करता है। इस प्रकार एमाइलेज (Amylase), माल्टेज (Maltase), प्राटियेज (Proteasep), लाइपेज (Lipase), कार्बोहाइड्रेजेज (Carbohydrases) आदि अनेक प्रकार की रासायनिक क्रियाओं को चलाते हैं।

(2) मकरन्द (Nectar):
कुछ विशेष कोशिकाओं के द्वारा एक मीठा तरल स्रावित किया जाता है जो प्रमुख रूप से ग्रन्थियों के रूप में पुष्पों या उनके आस-पास होती है। यह मीठा तरल जिसे मकरन्द (nectar) कहते हैं। कीटों को परागण के लिए आकर्षित करने के लिए समर्थ है। ये कीट इसका स्वाद चखने अथवा भोजन के रूप में इसे प्राप्त करने के लिए आते हैं और अनायास ही परागण कर जाते हैं। मकरन्द में प्रमुखतः सुक्रोज (Sucrose) तथा अन्य शर्करायें जैसे ग्लूकोस, फ्रक्टोस आदि पाये जाते हैं। मकरन्द एक मीठा कार्बनिक पदार्थ है।

प्रश्न 5.
एल्केलाइड्स क्या होते हैं ? किन्हीं पाँच का महत्त्व एवं प्राप्त स्रोत का नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) एल्केलाइड्स (Alkaloids):
ये नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ हैं। ये जटिल कार्बनिक यौगिक हैं जिनमें नाइट्रोजन पायी जाती है। ये जल में अघुलनशील तथा एल्कोहॉल में घुलनशील होते हैं। ज्यादातर एल्केलाइड्स विषैले और स्वाद में कड़वे होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण ये पौधों के रक्षक पदार्थ हैं। इन एल्केलाइड्स का औषधीय महत्त्व अधिक है। कुछ महत्त्वपूर्ण एल्केलाइड्स
निम्नलिखित हैं –

नाम एल्केलाइड्स स्रोत उपयोग
1. क्वीनीन (Quinine) सिनकोना की छाल से। मलेरिया के उपचार में।
2. मार्फीन (Morphine) पेपेवर सोमनीफेरम (पोस्त अफीम) के कच्चे फलों से। दर्दनाशक एवं निद्राकारक के रूप में उपयोग।
3. निकोटीन (Nicotine) तम्बाकू की पत्तियों से। निद्राकारक एवं दर्दनिवारक दवा में उपयोग।
4. एट्रोपीन (Atropine) एट्रोपा बेलेडोना (Atropa baladona) की जड़ों से। आँखों की औषधि एवं तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करने में।
5. रेसरपीन (Rasrpine) राउलफिया सर्पेन्टाइना की जड़ों से। उच्च रुधिर चाप को कम करने में।
6. थीइन (Theine) चाय की पत्तियों से। उत्तेजक के रूप में उपयोग।
7. टेक्सॉल (Texsole) टेक्सस (जिम्नोस्पर्म) पादप से। कैंसर रोधी दवा के निर्माण में।

एल्केलाइड्स अधिकतर दवाओं, पेय पदार्थों (विशेषकर बिना एल्कोहॉल वाले पेयों में) के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं। इनके अलावा पौधों में ग्लाइकोसाइड्स (Glycosides) भी पाये जाते हैं। ये पदार्थ कार्बोहाइड्रेट्स के विघटन से बनते हैं। एल्केलाइड्सों की तरह ये भी महत्त्वपूर्ण पदार्थ हैं। डिजीटाक्सिन (digitoxin) नामक ग्लाइकोसाइड फाक्सग्लॅव (Foxglove Digitalts purpurea) नामक पौधे में होता है तथा हृदय के लिए अत्यन्त उत्तेजक पदार्थ है।

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