Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 9 कोशिकांगों की संरचना तथा कार्य
RBSE Class 11 Biology Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
इलियोप्लास्ट संग्रह करते हैं –
(अ) मण्ड को
(ब) प्रोटीन का
(स) ग्लाइकोजन का
(द) वसा का
प्रश्न 2.
कोशिका की आत्मघाती थैलियाँ हैं –
(अ) माइटोकॉन्ड्रिया
(ब) लाइसोसोम
(स) डिक्टियोसोम
(द) लवक
प्रश्न 3.
माइटोकॉन्ड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में उपस्थित राइबोसोम होता है –
(अ) 70S
(ब) 80S
(स) 50S
(द) 60S
प्रश्न 4.
निम्न में से कौनसा कोशिकांग पादप कोशिका में नहीं पाया जाता है –
(अ) लवकें
(ब) सूक्ष्मनलिकाएँ
(स) स्फीरोसोम्स
(द) तारककाय
प्रश्न 5.
निम्न में से कौनसा कोशिकांग जन्तु कोशिका में नहीं पाया जाता है –
(अ) लवकें
(ब) सूक्ष्मनलिकाएँ
(स) लाइसोसोम
(द) तारककाय
उत्तरमाला:
1. (द), 2. (ब), 3. (अ), 4. (द), 5. (अ)
RBSE Class 11 Biology Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अल्टमान ने माइटोकॉन्ड्रियों को क्या नाम दिया था ?
उत्तर:
अल्टमान ने माइटोकॉन्ड्रिया को बायोप्लास्ट (Bioplast) नाम दिया था।
प्रश्न 2.
माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्तिगृह क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
इसमें आक्सीश्वसन के दौरान निकलने वाली ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है। इस कारण इसे कोशिका का शक्तिगृह कहते है।
प्रश्न 3.
अवर्णीलवक प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) मंडलवक
(2) तेलदवक
(3) प्रोटीनोप्लास्ट
प्रश्न 4.
गॉल्जीकाय के घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) सिस्टर्नी
(2) वेसीकल्स
(3) स्रावी पुटिकाएँ
प्रश्न 5.
अन्तःद्रव्यी जालिका कितने प्रकार की रचनाओं से बनी होती है? उनके नाम बताइए।
उत्तर:
अन्तद्रव्यी जालिका तीन प्रकार की रचनाओं से बनी होती है –
- सिस्टर्नी
- वेसीकल्स
- नलिकाएँ
प्रश्न 6.
70S राइबोसोम किन दो उपइकाइयों से बना होता है ?
उत्तर:
50S एवं 30S दो उपइकाइयों से 70S राइबोसोम बना होता है।
प्रश्न 7.
तारककाय की खोज किसने की थी ?
उत्तर:
टी. बावेरी (1888) ने तारककाय की खोज की थी।
प्रश्न 8.
अंत:कोशिकीय पाचन हेतु कौनसा कोशिकांग उत्तरदायी होता है?
उत्तर:
लाइसोसोम (LysOSome) अन्त:कोशिकीय पाचन हेतु उत्तरदायी होता है।
RBSE Class 11 Biology Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य बताइये।
उत्तर:
माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Functions of Mitochondria):
- माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्तिगृह (Power House) कहते हैं, क्योंकि इसके द्वारा ATP का संश्लेषण होता है। ATP के निर्माण को ऑक्सीडेटिव फास्फोराइलेशन कहते हैं।
- माइटोकॉन्ड्रिया वसा उपापचय से भी सम्बन्धित है। ऑक्सीकरण की क्रिया भी माइटोकॉन्ड्रिया मैट्रिक्स में ही होती है।
- स्पर्मेटिड के शुक्राणु (Sperm) के रूपान्तरण के समय ‘माइटोकॉन्ड्रिया शुक्राणु के मध्य भाग में अक्षीय तन्तु (Axial filament) के चारों ओर एक सर्पिल आवरण बनाते हैं। यह शुक्राणु में गति करते समय ऊर्जा प्रदान करते हैं।
- अण्डजनन क्रिया में पीतक निर्माण में सहायक होता है।
- माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली विभिन्न पदार्थों के लिए पारगम्य होती है।
- पेशियों में संकुचन हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अतः इनमें माइटोकॉन्ड्रिया अधिक संख्या में उपस्थित रहते हैं।
- माइटोकॉन्ड्रिया ऊतक जनन में मदद करते हैं। तंत्रिका तन्तु को (Neurofibrils) एवं पेशीय पर्त (Muscle Layer) का निर्माण भी इनके द्वारा होता है।
- माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाद्रव्यी जीन्स की तरह कार्य करते हैं। इसमें उपस्थित लक्षण आनुवंशिकता की संततता में सहायक होते हैं।
प्रश्न 2. रंग के आधार पर लवक कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
रंग के आधार पर लवक तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं –
- अवर्णीलवक या ल्यूकोप्लास्ट (Leucoplast)
- वर्णीलवक या क्रोमोप्लास्ट (Chromoplast)
- हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast)
प्रश्न 3.
इकहरी झिल्ली वाले कोशिकाओं के नाम बताओ तथा इनके एक-एक मुख्य कार्य बताइये।
उत्तर:
एकल कलाबद्ध कोशिकांग (Single membrane bound organelles) निम्नलिखित हैं –
कोशिकांग का नाम (Name of Organelles) | कोशिकांग का कार्य (Function of Organelles) |
1. अंतःद्रव्यी जालिका (Endoplasmic retriculum) | यह कोशिका का अन्तःकंकाल बना कर उसे निश्चित आकृति, आकार एवं दृढ़ता प्रदान करती है। |
2. गॉल्जी उपकरण (Golgi appratus) | शुक्रजनन के समय शुक्राणु के एक्रोसोम (Acrosome) का निर्माण गॉल्जीकाय से होता है। |
3. लाइसोसोम्स (Lysosomes) | अन्त: कोशिकीय पदार्थों का पाचन। |
4. सूक्ष्मकाय (Microbodies) | |
(i) परऑक्सीसोम्स (Peroxysomes) | इनमें उपस्थित कैटेलज एंजाइम, उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न हाइड्रोजन पराऑक्साइड (H2O2) का विघटन करते हैं। |
(ii) ग्लाइऑक्सीसोम्स (Glyoxysomes) | ये एंजाइम द्वारा वसीय अम्ल का कार्बोहा इड्रेट्स में बदलने का कार्य करते हैं। |
(iii) स्फोरोसोम्स (Spherosomes) | वसीय पदार्थों का एकत्रण (collection), परिवहन तथा संश्लेषण करना। |
प्रश्न 4.
सूक्ष्मकाय क्या है ?
उत्तर:
सूक्ष्मकाय (Microbodies):
सूक्ष्मकाय एक थैली समान रचना होती है जो इकहरी झिल्ली द्वारा आवरित होती है। सूक्ष्मकाय का निर्माण अंतःद्रव्यी जालिका से होता है। ये तीन प्रकार के होते हैं –
(1) स्फेरोसोम्स (Sphaerosomes):
स्फेरोसोम्स पादपों में वसायुक्त कोशिकाओं में पाया जाता है जैसे मूंगफली, सरसों, तिल आदि के बीजपत्रों में भी कोशिकाओं में पाये जाते हैं। इनका मुख्य कार्य वसीय पदार्थों का एकत्रण, परिवहन तथा संश्लेषण करना है।
(2) परऑक्सीसोम (Peroxisome):
ये सूक्ष्म गोलाकार कोशिकांग हैं। ये जन्तुओं की यकृत एवं वृक्क कोशिकाओं तथा सभी पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं। प्रकाशीय श्वसन करने वाले पादपों की प्रकाश संश्लेषी कोशिकाओं में बहुतायत से मिलते हैं। इनमें ऑक्सीडेज एवं केटेलेज प्रकृति के एन्जाइम पाये जाते हैं जो उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न H2O2 का विघटन करते हैं।
(3) ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysome):
ये वसा बहुल पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं। जिनमें ग्लाइऑक्सीलेट चक्र परिचालित होता है। इसमें उपस्थित एंजाइम वसीय अम्ल को कार्बोहाइड्रेट्स में बदलने का कार्य क़रते हैं।
प्रश्न 5.
कोशिका इंजन अथवा ऊर्जा घर किसे कहते हैं ? इसकी उत्पत्ति व वितरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कोशिका इंजन अथवा ऊर्जा घर राइबोसोम (Ribosome) को कहते हैं। राइबोसोम की दोनों उपइकाइयों का संयोजन एवं वियोजन Mg+2 की सान्द्रता पर निर्भर करता है। सामान्य अवस्था में ये उपइकाइयाँ कोशिकाद्रव्य में अलग-अलग पायी जाती हैं। प्रोटीन संश्लेषण के समय। ये संदेशवाहक RNA के ऊपर जुड़कर सम्पूर्ण राइबोसोम बनाती है। प्रोटीन संश्लेषण के समय राइबोसोम संदेशवाहक RNA पर एक श्रृंखला से जुड़े होते हैं, जिसे बहुराइबोसोम, पोली राइबोसोम या पोलीसोम कहते है।
वितरण:
राइबोसोम यूकैरियोटिक कोशिका में खुरदरी अन्तद्रव्यी जालिका पर, कोशिकाद्रव्य, माइटोकॉन्ड्रिया, केन्द्रक एवं हरितलवक में पाये जाते हैं।
RBSE Class 11 Biology Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
माइटोकॉन्ड्रिया के इतिहास को बताते हुए इसकी संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए। आवश्यक नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria):
फ्लेमिंग (Flemming, 1882) ने इन्हें फायला (Fila), अल्टमैन (Altmann, 1894) ने बायोप्लास्ट (Bioplast) तथा बेन्डा (Benda, 1897) ने माइटोकॉन्ड्रिया नाम दिया। इन्हें कोन्ड्रियोसोम (Chondriosome) भी कहते हैं। एक कोशिका की समस्त माइटोकॉन्ड्रिया को सामूहिक रूप से कॉन्ड्रियोम (Chondriome) कहते हैं। परिपक्व RBC एवं प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में इनका अभाव होता है। उपापचयी। (Metabolically) कोशिकाओं में इनकी संख्या अधिक होती है।
संरचना (Structure):
इनकी आकृति छड़दार (Rod Shaped), गोलाकार (Spherical) या सूत्री (Filamentous) प्रकार की होती है जो 1.0 – 4.1 माइक्रोमीटर लम्बी व 0.2 – 1 माइक्रोमीटर (औसत 0.5 माइक्रोमीटर) व्यास की होती है। प्रत्येक माइटोकॉन्ड्रिया दोहरी परत वाली झिल्ली से घिरी रहती है। इन परतों को बाहरी झिल्ली (Outer membrane) व अन्दर वाली झिल्ली (Inner membrane) कहते हैं। इन दोनों झिल्लियों के बीच के स्थान को परिसूत्रकणिकीय स्थल (Perimitochondrial Space) कहते हैं। यह स्थान 60Å से 100Å तक का होता है तथा एंजाइम्स युक्त तरल द्रव्य से भरा होता है। माइटोकॉन्ड्रिया के अन्दर प्रोटीन युक्त समांग (Homogeneous) जलीय (Gell like) पदार्थ भरा रहता है जिसे माइटोकॉन्ड्रिया का मैट्रिक्स (Mitochondrial Matrix) कहते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया की अन्दर बाली झिल्ली की दो सतह होती हैंबाहरी या परिसूत्रकणिकीय स्थल की ओर की सतह जिसे साइटोसोल। (Cytosol) या C – Face कहते हैं तथा अन्दर की ओर या मैट्रिक्स वाली सतह को मैट्रिक्स (Matrix face) या M – Face कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की अन्दर वाली झिल्ली से अंगुलियों के समान उभार निकले रहते हैं, इन्हें क्रिस्टी (Cristae) कहते हैं। क्रिस्टी की सतह पर अनेक टेनिस के रैकिट के आकार के 85Å व्यास की लम्बाई के सूक्ष्म कण पाये जाते। हैं।
यह एक-दूसरे से 100Å की दूरी पर स्थित होते हैं। इन कणों को F, कण (F, Particle) या ऑक्सीसोम (OxySome) कहते हैं। ऑक्सीसोम के तीन भाग होते हैं जिन्हें शीर्ष (Head), वृन्त (Stalk) तथा आधार (Base) कहते हैं। F, कणों में अथवा आक्सीसोम में ATP ऐज (ATP ase) या ABP सिन्थेटेज (ATP Synthetase) एंजाइम होते हैं जो आक्सीकरण (Oxidation) व फॉस्फोरीकरण (Phosphorylation) में भाग लेते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया की अन्दर वाली झिल्ली पर श्वसन श्रृंखला (Respiratory chain) तथा ऑक्सीकारक फोस्फोरिलेशन के सभी एंजाइम उपस्थित रहते हैं। मैट्रिक्स में क्रेब्स चक्र के एंजाइम, लवण, जल, द्विरज्जुकीय एवं वृत्ताकार (Double Standard and Circular) DNA, RNA तथा राइबोसोम उपस्थित होते हैं। ये अर्धरूप से स्वशासित (Autonomous) कोशिकांग हैं क्योंकि इनमें स्वजनन की शक्ति होती है। परन्तु ये कोशिका के अन्दर रहकर ही जनन कर सकते हैं। इनके रासायनिक संगठन में प्रोटीन 65 – 70%, फास्फोलिपिड 25%, आर.एन.ए. 0.5% कुछ मात्रा में DNA पाया जाता है।
माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Functions of Mitochondria):
- माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्तिगृह (Power House) कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा ATP का संश्लेषण होता है।
- माइटोकॉन्ड्रिया वसा उपापचय से भी सम्बन्धित है। ऑक्सीकरण की क्रिया भी माइटोकॉन्ड्रिया मैट्रिक्स में ही होती है।
- स्पर्मेटिड के शुक्राणु के रूपान्तरण के समय माइटोकॉन्ड्रिया शुक्राणु के मध्य भाग में अक्षीय तन्तु (Axial Filament) के चारों ओर एक सर्पिल आवरण (Spiral sheath) बनाते हैं। यह शुक्राणु को गति करते समय ऊर्जा प्रदान करता है।
- अण्डजनन क्रिया में पीतक निर्माण (Yolk formation) में सहायक होता है।
- माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली विभिन्न पदार्थों के लिए पारगम्य होती है।
- माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाद्रव्यी जीन्स की तरह कार्य करते हैं। इनमें उपस्थित लक्षण आनुवंशिकता की सततता में। सहायता होते हैं।
- माइटोकॉन्ड्रिया ऊतक जनन (Histogenesis) में मदद करते हैं। तंत्रिका तन्तु को (Neurofibrils) एवं पेशीय पर्त (Muscle Layer) का निर्माण भी इनके द्वारा होता है।
- पेशियों में संकुचन हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अतः इनमें माइटोकॉन्ड्रिया अधिक संख्या में उपस्थित रहते हैं।
माइटोकॉण्ड्रिया एवं हरितलवकों में समानताएँ:
- माइटोकॉण्डूिया एवं हरितलवक दोनों दोहरी झिल्ली से परिबद्ध रहते हैं।
- दोनों कोशिकांग की उत्पत्ति व वृद्धि की विधियाँ समान होती हैं तथा इनका पूर्ववर्ती कोशिकांगों के विभाजन से निर्माण होता है।
- माइटोकॉण्डिया एवं हरितलवक दोनों में DNA, RNA व 70S प्रकार का राइबोसोम पाया जाता है।
- दोनों कोशिकांग ही अर्धस्वायत्तशासी (Semiautonomous) होते हैं।
- सम्भवत: इनका विकास स्वतंत्र जीव के रूप में हुआ तथा बाद में धीरे-धीरे इनका पादप व जन्तु कोशिकाओं से साथ सहजीवी सम्बन्ध बना होगा।
प्रश्न 2.
उच्च वर्ग के पादपों में पाये जाने वाले हरितलवक की सचित्र संरचना का वर्णन करते हुए इसके कार्य भी समझाइये।
उत्तर:
हरितलवक (Chloroplast):
इसकी खोज शिम्पर ने 1885 में की थी। ये क्लोरोफिल युक्त हरे रंगों के लवक होते हैं। इस कारण पादपों का रंग हरा होता है, ये प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया करते हैं। अधिकांशतः ये पत्ती की पर्णमध्योतक (Mesophyll) व स्तम्भ के हरिम् ऊतक (Chloren chyma) की कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये लवक लैंस के आकार के, अंडाकार, गोलाकार, चक्रिक, चपटे या दीर्घ वृत्ताकार होते हैं जबकि शैवालों में भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं, जैसे – यूलोप्रिम्स में मेखलाकार (Girdleshaped) क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुम (cuplike), स्पाइरोगारा में सर्पिल रिबन के समान (ribbonlike) एवं जिग्नीमा में तारेनुमा (starshaped) होती है।
जिनकी लम्बाई 5 – 10 मिमी, व चौड़ाई 2 – 4 मिमी. होती है। कोशिका में इनकी संख्या कार्यिकी के अनुसार 20 – 40 तक की हो सकती है। हरितलवक दो झिल्लियों द्वारा घिरा होता है जिन्हें क्रमशः बाह्य झिल्ली व आन्तरिक झिल्ली कहते हैं। इनका बाहरी आवरण वसा एवं प्रोटीन की दोहरी झिल्ली से बना होता है जिनकी मोटाई 25 – 70Å होती है। दोनों झिल्लियों के बीच के स्थान को परलवकीय स्थान (Periplastidial space) कहते हैं, जो 100 से 300Å तक का होता है। झिल्लियों के अन्दर दो मुख्य भाग होते हैं –
(i) पीठिका (Stroma):
हरितलवक के अन्दर प्रोटीनयुक्त तरल पारदर्शी पदार्थ भरा होता है जिसे पीठिका (stroma) कहते हैं। इसमें स्टार्च प्लास्टोग्लोब्युली, 70S प्रकार के राइबोस, DNA व जल आदि पाये जाते हैं। पीठिका में प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark reaction) होती है।
(ii) ग्रेना (Grana):
स्ट्रोमा में अनेक पटलिकाएँ (Lamellae) कुछ स्थानों पर एकत्रित होकर सिक्कों के ढेर जैसी संरचना बनाती हैं। चपटी, थैलीनुमा झिल्लीयुक्त प्रत्येक पटलिका (Lamella) को मेन्के (Menke, 1962) ने थाइलैकायड (Thylakoid) कहा तथा अनेक थाइलैकॉइड से बने एक ढेर को ग्रेनम (Granum) कहते हैं। थाईलैकॉइड को ग्रेनम पटलिका (granum lamella) भी कहा जाता है। प्रत्येक ग्रेनम में 2 – 100 तक थाईलैकायड मिलती है।
दो पास के ग्रैना एक-दूसरे से पटलिका के द्वारा जुड़े होते हैं। इन पटलिकाओं को अन्तराग्रेनम पटलिका (Intergranum lamellae) कहते हैं। एक हरितलवक में 40 से 60 तक ग्रेना होते हैं। ग्रैना में प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशीय अभिक्रिया (Light reaction) होती है। प्रत्येक ग्रैनम पटलिका की दो प्रोटीन परतों के मध्य लिपिड वर्णक की द्विआण्विक (bimolecular) परत होती है। इस लिपिड वर्णक (Lipo-pigments) की परत में क्लोरोफिल तथा कैरोटिनाइड वर्णक व फास्फोलिपिड व्यवस्थित रहते हैं।
प्रत्येक परत में क्लोरोफिल के अणुओं को पोरफायरिन जलरागी सिर (Porphyrin hydrophilic head) प्रोटीन की बाहरी परत के पास होता है तथा क्लोरोफिल की फायटोल पूंछ (phytol chain) वसा रागी (Lipophilic) अन्दर की ओर स्थित लिपिड की परत के पास होती है। पार्क व बिगिन्स (Park & Biggins 1964) ने थाइलैकायुड या ग्रैनम पटलिकाओं पर अनेक सूक्ष्म दाने देखे तथा यह बताया कि प्रत्येक दाने में 230 क्लोरोफिल अणु होते हैं और यह दाने प्रकाश संश्लेषण क्रिया हेतु अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, उन्होंने इन सूक्ष्मकणों को क्वाण्टासोम (Quantosome) कहा। प्रत्येक क्वांटासोम का व्यास 150 – 180Å होता है।
रासायनिक दृष्टि से हरित लवक (Chloroplast) में प्रोटीन (40 – 50%), फॉस्फोलिपिड (25%), क्लोरोफिल (3 – 10%), कैरोटिनॉइड (1 – 2%), DNA, RNA, 70S प्रकार के राइबोसोम्स, कुछ खनिज तत्व (Cu, Fe, Mg, Mn) इत्यादि होते हैं। इसमें DNA वलयाकार मिलता है। इन्हें कोशिका में कोशिका भी कहते हैं। क्लोरोप्लास्ट की उत्पत्ति प्राक् लवक (Proplastid) से होती है।
लवकों के कार्य (Functions of Plastids):
- क्लोरोप्लास्ट में प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि के द्वारा कार्बोहाइड्रेट के रूप में भोज्य पदार्थों का निर्माण होता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया ग्रेनम में तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया स्ट्रोमा में सम्पन्न होती है।
- हरितलवक प्रकाश श्वसने के स्थल भी हैं। प्रकाश श्वसन के लिए हरितलवक, परऑक्सीसोम एवं माइट्रोकॉन्ड्रिया तीनों ही आवश्यक होते हैं।
- ये वायुमण्डलीय CO2 को ग्रहण करके जल के अणु के अपघटन से O2 का निकास करते हैं जिससे वायुमण्डल का शुद्धीकरण होता है।
- अवर्णीलवकों द्वारा भोजन संचय करना; इनमें मंडलवक (Amyloplast), ते लदलवक (Elaiplast) तथा प्रोटीनलवक (Aleuroplast) प्रमुख हैं। इसी प्रकार वर्णीलवकों में क्लोरोफिल के अतिरिक्त अन्य प्रकार के वर्णक उपस्थित होते हैं।
प्रश्न 3.
सूक्ष्मकाय क्या है ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
सूक्ष्मकाय (Microbodies):
सूक्ष्मकाय एक थैली समान रचना होती है जो इकहरी झिल्ली द्वारा आवरित होती है। सूक्ष्मकाय का निर्माण अंतः द्रव्यी जालिका से होता है। ये तीन प्रकार की होती हैं –
- स्फेरोसोम्स (Sphaerosomes)
- परऑक्सीसोम (Peroxysome)
- ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysome)
(1) स्फेरोसोम्स (SphaeroSomes):
इनका अवलोकन सर्वप्रथम हैन्सटीन (1850) ने किया किन्तु इसकी खोज पेरनर (1952) ने की। शब्द स्फीरोसोम डेन्जीयार्ड ने दिया। स्फीरोसोम अन्तद्रव्यी जालिका (E.R.) से उत्पन्न होते हैं। यह सभी पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं। जो लिपिड के संश्लेषण एवं संग्रहण में सम्मिलित होते हैं। जैसेएण्डोस्पर्म, तेलीय बीजों के बीज पत्र (मूंगफली, सरसों, तिल आदि)।
इनकी आकृति गोलाकार एवं अण्डाकार होती है। जिनका व्यास लगभग 0.5 – 2.5um होता है। इसमें हाइड्रोलेज एन्जाइम, जैसे प्रोटियेज, राइबोन्यूक्लियेज, फास्फेटेज, एस्टेरेज आदि पाये जाते हैं। ये एकल इकाई कला द्वारा घिरे रहते हैं। स्फेरोसोम्स का मुख्य कार्य वसीय पदार्थों का एकत्रीकरण, परिवहन तथा संश्लेषण करना है। स्फेरोसोम को पादप लाइसोसोम के रूप में भी जाना जाता है।
2. परऑक्सीसोम (Peroxisome):
इसे सर्वप्रथम डी. ड्यूब (1966) द्वारा खोजा गया। डी ड्यूब (1966) ने विभिन्न प्रकार के जन्तुओं एवं पौधों से अनेक थैले के समान अंगकों को पृथक् किया। इन्हें परऑक्सीसोम कहा क्योंकि इसमें परऑक्साइड उत्पादित करने वाले एंजाइम (ऑक्सीडेज) एवं परऑक्साइड नाशक एंजाइम (केटालेज) पाये जाते हैं। ये पौधों की प्रकाशसंश्लेषी कोशिकाओं में पाये जाते हैं। जन्तुओं में परऑक्सीसोम कशेरुकियों (Vertbrates) (यकृत एवं वृक्क कोशिकाओं) मस्तिष्क, छोटी आंत, वृषण (Testis) में भी पाये जाते हैं। इनकी आकृति गोलाकार होती है।
इनका आकार लगभग 1.5um होता है। ये एकल इकाई कला से घिरे रहते हैं। इनकी कला अमीनो अम्लों, यूरिक अम्लों आदि के लिए पारगम्य होती है। इसमें H2O2 उपापचय के लिए 4 एन्जाइम होते हैं। ये एन्जाइम हैं-यूरेट ऑक्सीडेज, अमीनो आक्सीडेज, h – हाइड्रोक्सी एसिड, आक्सीडेज जो H2O2 का उत्पादन करते हैं जबकि कैटालेज H2O2 को नष्ट करने में एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षात्मक भूमिका निभाता है क्योंकि H2O2 कोशिका के लिए विषैला होता है।
पराक्सीसोम के कार्य:
- कोशिकाद्रव्य में आने वाले अन्य विषैले पदार्थों के प्रभाव को कम करते हैं।
- प्रकाशीय श्वसन की क्रिया परऑक्सीसोम, हरितलवक एवं माइटोकॉन्ड्रियो तीनों में संयुक्त रूप से होती है।
- जन्तु कोशिकाओं में वसा उपापचय का कार्य करते हैं।
- इनमें उपस्थित कैटेलेज एंजाइम, उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न H2O2 का विघटन करते हैं।
3. ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysome):
बीवर्स (1961) ने इनकी खोज की थी। ये कवकों, कुछ प्रोस्टिय एवं अंकुरण वाले वसीय बीजों में पाये जाते हैं। जहाँ अघुलनशील लिपिड के रूप में संचित भोज्य पदार्थ घुलनशील शर्करा में बदल जाता है। ये जन्तु कोशिका में अनुपस्थित होते हैं। इनकी आकृति गोलाकार होती है। इनका आकार लगभग 0.51µm होता है। इसमें ग्लाइऑक्सीलेट चक्र के ग्लाइकोलिक अम्ल के उपापचय के एंजाइम पाये जाते हैं। ये इकाई कला द्वारा घिरे होते हैं। इनमें वसा अम्लों के B – आक्सीकरण के लिए भी एन्जाइम पाये जाते हैं। एसिटाइल CoÅ उत्पन्न होता है। इसका ग्लाइऑक्सीलेट चक्र में बेहतर उपापचय होने से कार्बोहाइड्रेट उत्पन्न होता है। वसा का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तन ग्लाइऑक्सीसोम का मुख्य कार्य है।
प्रश्न 4.
राइबोसोम की मंरचना व प्रकार बताओ। राइबोसोम की उपइकाइयों का संयोजन व वियोजन को विस्तार से बताइये।
उत्तर:
राइबोसोम (Ribosome):
रोबिन्सन एवं ब्राउन (1953) ने सेम की जड़ों की कोशिकाओं (पादप कोशिकाओं) व पेलेड (Palade) ने प्राणी कोशिकाओं में देखा। ए. क्लाड (A. Claude) ने इन्हें माइक्रोसोम (Microsome) कहा, फिर रॉबर्ट (Robert, 1958) ने राइबोसोम नाम दिया। इनकी उपस्थिति सभी प्राणी व पादप कोशिकाओं में होती है। प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में ये कोशिका-द्रव्य में स्वतंत्र रहते हैं परन्तु यूकेरियोटिक कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य में मुक्त रहने के साथ-साथ अन्तःप्रद्रव्य जालिका (Endoplasmic Reticulum) की झिल्लियों पर संलग्न रहते हैं।
राइबोसोम पर इकाई झिल्ली (Unit Membrane) नहीं पायी जाती है। प्रत्येक राइबोसोम दो इकाइयों से निर्मित होता है। एक इकाई छोटी और दूसरी बड़ी होती है। दोनों इकाइयाँ मिलकर एक गरारी की तरह की संरचना बनाती हैं। बड़ी इकाई गुम्बदाकार (Dome shaped) तथा छोटी इकाई टोपी की तरह होती है। कोशिकाद्रव्य में जब Mg++ आयुन का सान्द्रण कम हो जाता है तो दोनों इकाइयाँ (Sub units) अलग-अलग हो जाती हैं।
किन्तु आयनों की अधिकता होने पर दो राइबोसोम भी जुड़ जाते हैं। इन जुड़े हुए आकार को डायमर (Dimer) कहते हैं। राइबोसोम्स को पराकेन्द्रावसारीकरण (Ultra-centrifugation) के द्वारा पृथक् किया जा सकता है। सेन्ट्रीफ्यूज को एक निश्चित रफ्तार पर घुमाया जाता है। निश्चित रफ्तार को अवसादन गुणांक कहते हैं। अवसादन (Sedimenting) गुणांक को स्वेडबर्ग इकाई (Swedberg’s unit) में मापा जाता है। राइबोसोम्स की संहति (Mass) को स्वेडबर्ग इकाई में व्यक्त करते हैं। स्वेडबर्ग इकाई स्वीडन के वैज्ञानिक T. Swedberg के सम्मान में रखा गया है, जिन्होंने पराअपकेन्द्रित (Ultracentrifuge) का आविष्कार किया था। अवसादन विधि से दो मूल प्रकार के राइबोसोम्स प्राप्त किये जा सकते हैं।
- 70S राइबोसोम आकार में छोटे तथा अवसाद गुणांक 70S होता है। इनके सबयूनिट 50S तथा 30S होते हैं। ये जीवाणु, माइयेकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट तथा अन्य प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
- 80S राइबोसोम: ये राइबोसोम बड़े होते हैं तथा अवसाद गुणांक 80S होता है। इनके सब-यूनिट 60S तथा 40S होते हैं। ये राइबोसोम सभी यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
राइबोसोम अन्य प्रकार के RNA के साथ मिलकर प्रोटीन-संश्लेषण की अन्तिम कड़ी बनाते हैं। राइबोसोम्स का निर्माण केन्द्रिक (Nucleolus) के अन्दर होता है। तथा वहाँ से निकलकर केन्द्रक द्रव्य में होकर ये केन्द्रक कला के चिह्नों (Nuclear pore) से निकल कर कोशिकाद्रव्य में आते हैं तथा बाद में अनेक प्रकार की कलाओं से सम्बन्धित हो जाते हैं। प्रोटीन-संश्लेषण के समय 4-5 या अधिक राइबोसोम अन्य प्रकार के RNA के ऊपर एकत्रित होकर एक जटिल संरचना बना लेते हैं। इन संरचनाओं को पॉलीसोम्स (Polysomes) या पालीराइबोसोम कहते हैं।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो –
(अ) तारक केन्द्र
(ब) रिक्तिका
(स) सूक्ष्म नलिका
उत्तर:
(अ) तारक केन्द्र:
टी. लोवेरी (T. Boveri) ने सर्वप्रथम 1888 में सेन्ट्रोसोम शब्द का प्रयोग किया था। साधारणतया यह केन्द्रक के पास पाया जाता है। इसे कोशिका केन्द्र (Cell centre) भी कहते हैं।
संरचना (Structure):
यह दो बेलनाकार संरचनाओं से मिलकर बना होता है जिसे तारक केन्द्र (Centriole) कहते हैं। इसलिए इसे तर काय (CentroSome) या डिप्लोसोम (Diplosome) कहते हैं। यह झिल्ली रहित रचना है। एक तारककाय (Centrosome) में दो तारक केन्द्र के बीच 90° का कोण होता है व यह T की आकृति में व्यवस्थित होती है। तारक केन्द्र अक्रिस्टलीय कोशिकाद्रव्य द्वारा घिरा होता है, जिसे सेन्ट्रोस्फीयर (Centrosphere) कहते हैं।
प्रत्येक तारक केन्द्र में 9 अनुदैर्घ्य परिधीय तन्तु पाये जाते हैं। प्रत्येक अनुदैर्घ्य परिधीय तन्तु में तीन उपतन्तु पाये जाते हैं, इसलिए इसे ब्रिक परिधीय तन्तु (Triplet Peripheral Fibre) कहते हैं। एक त्रिक परिधीय तन्तु में तीन उपतन्तु पाये जाते हैं, जिन्हें क्रमश: A, B व C उपतन्तु कहते हैं। A उपतन्तु केन्द्र की ओर व C उपतन्तु परिधि की ओर होता है। A उपतन्तु पूर्ण रिंग के रूप में होता है जबकि B व C उपतन्तु अपूर्ण रिंग या C के आकार के होते हैं। A उपतन्तु में 13 ग्लोब्यूलर प्रोटीन की इकाइयाँ पायी जाती हैं। A व B उपतन्तु के बीच 3 ग्लोब्यूलर इकाइयाँ कॉमन होती हैं।
इसी प्रकार B व C उपतन्तु के बीच 2 ग्लोब्यूलर इकाइयाँ कॉमन होती हैं। प्रत्येक त्रिक (Triplet) का A उपतन्तु पड़ौसी त्रिंक के उपतन्तु से सघन पदार्थ (Dense Material) द्वारा जुड़ा रहता है, इसे C – A कनेक्टिव (Connective) कहते हैं। तारक केन्द्र के केन्द्र में 25Å मोटाई की एक केन्द्रीय छड़ (Central Rod) पायी जाती है जिसे हब (Hub) भी कहते हैं। जिससे 9 छड़े/तन्तु (Spokes) निकलकर त्रिक के A उपतन्तु से जुड़ जाते हैं।
इस प्रकार बैलगाड़ी की एक पहिये के समान रचना का निर्माण होता है। इसे कोर्ट व्हील संरचना (Cort Wheel Structure) कहते हैं। प्रत्येक छड़ (Spoke) के बाहरी सिरे पर A उपतन्तु के नीचे एक कणिका पायी जाती है, जिसे X-कणिका (X-granule) कहते हैं। दो X-कणिकाओं के बीच एक Y-कणिका पायी जाती है। X व Y कणिकाएँ एक सघन पदार्थ से जुड़कर वृत्ताकार आकृति का निर्माण करती है।
रासायनिक संगठन (Chemical Composition):
इसमें ट्यूब्यूलिन नामक संरचनात्मक प्रोटीन पायी जाती है। तारक केन्द्र में DNA व RNA की उपस्थिति के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।
कार्य (Functions):
- तारक केन्द्र (Centriole) द्वारा जन्तु कोशिका में विभाजन आरम्भ होता है। इस दौरान पूर्ववर्ती तारक केन्द्र के विभाजन द्वारा पुत्री तारक केन्द्र का निर्माण होता है। विभाजन के समय तारक केन्द्र द्वारा तर्क तन्तुओं (Spindle Fibres) का निर्माण होता है।
- तारक केन्द्र द्वारा सिलिया (Cilia) व फ्लेजिला (Flagella) की आधार कणिका का निर्माण किया जाता है। इसे अनेक नामों से जाना जाता है जैसे काइनेटोसोम (Kinetosome) एवं ब्लेफेरोप्लास्ट (Blepheroplast)।
- शुक्राणुजनन में दूरस्थ तारककाय द्वारा शुक्राणु की पूँछ (tail) का उद्गमन होता है। शुक्राणु के निकटस्थ तारककाय को निषेचन के दौरान, अण्डाणु को दे दिया जाता है। क्योंकि अण्डाणु में तारककाय अनुपस्थित होती है।
(ब) रिक्तिका (Vacuole):
सर्वप्रथम डुजार्डिन (Dujardin) ने 1941 में पादप कोशिका में रिक्तिका की खोज की। कोशिकाद्रव्य में सूक्ष्म या बड़ी बुलबुले सदृश संरचनाएँ रिक्तिका (Vacuole) कहलाती हैं। मुख्यतः यह पादप कोशिका में पाई जाती हैं। विभाजनशील कोशिकाओं व नव कोशिका में यह अत्यन्त सूक्ष्म व संख्या में अधिक होती हैं और सम्पूर्ण कोशिकाद्रव्य में वितरित रहती हैं। जैसे-जैसे कोशिका परिपक्व होती है ये परस्पर संयोजित हो बड़ी रिक्तिका बनाती हैं। परिपक्व पादप कोशिका में, केन्द्रीय भाग में प्रायः एक या दो बड़ी रिक्तिकाएँ ही होती हैं।
केन्द्रीय भाग में बड़ी रिक्तिका, कोशिका का अधिकांश क्षेत्र घेरे रहती है और कोशिकाद्रव्य, कोशिका झिल्ली सहित, कोशिका भित्ति से सटा हुआ, परिधीय क्षेत्र में दिखाई देता है। रिक्तिका एक सजीव इकाई झिल्ली टोनोप्लास्ट (Tonoplast) द्वारा परिबद्ध रहती है। रिक्तिका में जल सदृश तरल व निर्जीव द्रव कोशिका रस (Cell Sap) भरा रहता है। कोशिका रस में विभिन्न खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट, कार्बनिक अम्ल व विभिन्न वर्णक हो सकते हैं। इस रस में एन्थोसाइनिन वर्णक भी घुला हुआ पाया जाता है जो फल, पुष्प, पत्तियों को रंग प्रदान करता है। ठोस कणों के रूप में इसमें प्रोटीन भी हो सकती है।
पादप कोशिका में रिक्तिका कोशिका का 90 प्रतिशत स्थान घेरती है। रिक्तिका की टोनोप्लास्ट क्योंकि एक चयनात्मक पारगम्य झिल्ली है अतः विभिन्न अणुओं के आदान-प्रदान में परासरणी प्रक्रिया प्लाज्मा झिल्ली के समान होती है। यह परासरण (Osmosis) द्वारा कोशिका को स्फीत (Turgid) बनाये रखती है। यह जल व अन्य पदार्थों का संग्रह करने वाला कोशिकांग है। रिक्तिका के प्रकार (Types of Vacuole) रिक्तिका में उपस्थित पदार्थों एवं कार्य के आधार पर रिक्तिकाओं। को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया –
- रसधानी (Sap vacuole): यह अजैव पदार्थों एवं खनिज लवणों का संचय एवं सान्द्रण करती है।
- खाद्य रसधानी (Food vacuole): यह खाद्य पदार्थों को पचाने (Digest) में सहायक है।
- वायु रसधानी (Air vacuole): यह कुछ प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में पायी जाती है तथा उपापचयी गैसों के संचय के साथ उत्प्लावकता बनाये रखने में सहायता करती है।
- संकुचनशील रसधानी (Contractile vacuole): यह परासरणं का नियमन एवं सान्द्रण करती है।
संकुचनशील रसधानी (Functions of Vacuole):
- रिक्तिकाएँ खाद्य पदार्थों एवं खनिज लवणों का संग्रहण तथा सान्द्रण करती हैं।
- कोशिकाओं के परासरणीय दाब एवं स्फीति को बनाये रखती है।
- उत्सर्जी पदार्थों का संचय कर उपापचयी क्रियाओं को बाधित होने से बचाती हैं।
- एंथोसाइनीन के कारण आकर्षक फूलों के परागण एवं फलों के प्रकीर्णन में सहायक होती हैं।
(स) सूक्ष्म नलिका (Microtubules):
सर्वप्रथम डी राबर्टिस एवं फ्रेची ने 1953 में मैडूयला युक्त नर्व – फाइबर के एक्सॉन (axon) में इन्हें खोजा एवं न्यूरोट्यूब्यूलस (Neurotubules) नाम दिया। पोर्टर (1963) ने पादप कोशिका में सूक्ष्म नलिकाओं को सर्वप्रथम देखा। सूक्ष्मनलिकाएँ इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक संरचनाएँ जैसे-सीलिया, फ्लैजिला, सैन्ट्रीयोल, बेसल बॉडी, एस्ट्रल लाइबर, तर्क तन्तु आदि में पाये जाते हैं।
संरचना:
एक सूक्ष्म नलिका खोखली बेलनाकार संरचना है जिसका व्यास लगभग 250Å एवं ल्यूसन लगभग 150Å होता है। इसकी भित्ति लगभग 50Å मोटी होती है। इसकी भित्ति 13 समानान्तर प्रोट्रब्युल्स से मिलकर बनी होती है।
रासायनिक संगठन:
ये मुख्यतः ट्यूब्यूलीन प्रोटीन की बनी होती है। एक ट्यूब्यूलीन प्रोटीन दो उपइकाइयों α – ट्यूब्यूलीन अणु एवं β – ट्यूब्यूलीन अणु से मिलकर बनी होती है जो एक हैलिकल में एक के बाद एक व्यवस्थित होती है।
सूक्ष्म नलिकाओं के कार्य:
- यह कोशिकीय कंकाल (Cytoskeleton) के एक भाग का निर्माण करती है। यह कोशिका को आकार देने एवं यांत्रिक सहारा प्रदान करने में सहायक।
- तारक केन्द्र का निर्माण।
- पादप कोशिकाद्रव्य विभाजन में सहायक।
- कशाभिका व पक्ष्माभिका का निर्माण करना।
- सीलिया एवं फ्लेजिला की सूक्ष्म नलिकाएँ चलन एवं भोजन क्रिया में सहायक।
- कोशिका विभाजन में गुणसूत्रों की विपरीत, ध्रुवों की ओर गति में सहायक होती है।
प्रश्न 6.
गॉल्जीकाय की सचित्र संरचना व कार्य बताओ।
उत्तर:
गॉल्जी उपकरण, गॉल्जी काय, गॉल्जी सम्मिश्र (Golgi appratus, Golgi body, Golgi complex):
गॉल्जीकाय की खोज केमिलो गोल्जी (Camillo Golgi) ने 1898 में उल्लू की तंत्रिका कोशिकाओं से की। इसके बाद उनके नाम पर ही इसका नाम गॉल्जीकाय पड़ा। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में यह नहीं पाया जाता है। इनका आकार निश्चित न होकर आवश्यकतानुसार बदलता रहता है अतः ये बहुरूपीय (Polymorphic) होते हैं। गॉल्जीकाय स्रावी व ग्रन्थिल कोशिकाओं में अधिक विकसित होती है।
संरचना (Structure):
इसमें अनेक विभिन्न प्रकार की चपटी, मुड़ी हुई थैलीनुमा रचनाओं का समूह होता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के आधार पर इसके तीन अवयव होते हैं –
- सिस्टर्नी (Cisternae): ये लम्बी नलाकार समानान्तर रचनाएँ हैं। इनके किनारे मुड़े होते हैं जिससे प्यालेनुमा आकृति बन जाती है। सिस्टर्नी की उत्तल सतह को सिसफेस (cis face) या निर्माणकारी रिश्रा (Formative face) तथा अवतल सतह को ट्रांसफेस (Transface) या परिपक्वन सिरा (Maturation face) कहते हैं।
- वेसीकल (Vesicle): ये छोटी-छोटी गोल रचनाएँ होती हैं। तथा सिस्टर्नी से जुड़ी होती हैं।
- स्रावी पुटिकाएँ (Secretory Vesicles) या रिक्तिकाएँ (Vacuoles): ये अनियमित आकृति की तथा सिस्टर्नी के किनारे अधिक फूलने से टूट-टूटकर बनती हैं। गाल्जीकाय का सिस फेस केन्द्रक की ओर तथा ट्रांस फेस प्लाज्मा कला की ओर होता है।
- अकशेरुक जन्तुओं व पादप कोशिकाओं में ये अल्पविकसित होती हैं, इन पादपों की कोशिकाओं को डिक्टियोसोम (Dictyosome) कहते हैं। कोशिका विभाजन के समय ये कोशिका भित्ति के निर्माण हेतु आवश्यक पदार्थों का स्रावण करती है। गॉल्जी में लिपिड व वसा अधिक मात्रा में पाई जाती है अतः इन्हें लाइपोकान्ड्रिया (Lipochondria) भी कहते हैं।
गॉल्जी काय के कार्य (Functions of Golgibody):
- गॉल्जीकाय का मुख्य कार्य स्रवण है। इनकी संख्या स्रावी कोशिकाओं में अधिक होती है, जैसे-अग्न्याशय कोशिकाएँ, श्लेष्मिल कोशिकाएँ, स्तन ग्रन्थि कोशिकाएँ, थाइरोक्सिन कोशिकाएँ। ये मुख्यतः प्रोटीनों का स्राव करती हैं। स्रावी पदार्थ को पुटिकाओं में लपेटकर (packaging) पारतल से बाहर निकाला जाता है।
- कोशिका विभाजन के समय मध्य में स्रावी पुटिकाएँ आपस में मिलकर कोशिका पट्टी बनाते हैं।
- कोशिका के अन्दर हारमोन का निर्माण होता है।
- ये लाइसोम के निर्माण तथा पदार्थों का संचय संवेष्टन (packaging) तथा स्थानान्तरण करते हैं।
- श्लेष्मा, गोंद, एन्जाइम तथा स्रावण तथा पॉलीसैकेराइड का संश्लेषण करते हैं।
- वेसीकल में प्रोटीन तथा वसा का संचय होता है।
- कार्बोहाइड्रेट को प्रोटीन से संयोजित कर ग्लाइकोप्रोटीन का निर्माण करते हैं।
- उत्सर्जी पदार्थों को कोशिका से बाहर निकलते हैं।
- शुक्राणु के एक्रोसोम (Acrosome) के निर्माण में सहायक।
- कोशिका झिल्ली के निर्माण में आवश्यक लाइपोप्रोटीनों का स्राव किया जाता है।
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