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RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

July 10, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मैहरोली का लौह स्तम्भ किस काल की देन है?
(अ) मौर्यकाल
(ब) गुप्तकाल
(स) हर्षोत्तर काल
(द) सैन्धव काल
उत्तरमाला:
(ब) गुप्तकाल

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 2.
मौर्यकाल में आयात कर को क्या कहा जाता था?
(अ) निष्क
(ब) निष्क्राम्य
(स) काकरणी
(द) प्रवेश्य
उत्तरमाला:
(द) प्रवेश्य

प्रश्न 3.
‘अर्थशास्त्र’ की रचना – किसने की?
(अ) अलबेरुनी
(ब) कालिदास
(स) चाणक्य
(द) युवान – च्चांग
उत्तरमाला:
(स) चाणक्य

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 4.
विश्व के प्रथम बन्दरगाह का वर्तमान नाम क्या है?
(अ) मुजिरिस
(ब) टिन्डिस
(स) मंगरोल.
(द) भृगुकच्छ
उत्तरमाला:
(स) मंगरोल.

प्रश्न 5.
‘माषक’ किस धातु का सिक्का था?
(अ) सोना
(ब) ताँबा
(स) चाँदी
(द) पीतल
उत्तरमाला:
(ब) ताँबा

प्रश्न 6.
जल – कर और नावों पर लगने वाले कर को वसूल करने वाला अधिकारी क्या कहलाता था?
(अ) श्रेष्ठी
(ब) सार्थवाह
(स) तरिक
(द) पण्याध्यक्ष
उत्तरमाला:
(स) तरिक

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 7.
किस देश की मुद्राओं पर भारतीय हाथी और बन्दरों के चित्र अंकित है?
(अ) ईरान
(ब) चीन
(स) मिस्र
(द) बेबीलोनिया
उत्तरमाला:
(द) बेबीलोनिया

प्रश्न 8.
‘मुद्राराक्षस’ की रचना किसने की?
(अ) चाणक्य
(ब) घुलघुले
(स) कालिदास
(द) कश्यप मातंग
उत्तरमाला:
(स) कालिदास

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सैन्धव निवासी माप – तौल की किस इकाई से परिचित थे?
उत्तर:
सैन्धव निवासी वस्तुओं को तौलने की इकाई बाँट से परिचित थे।

प्रश्न 2.
विश्व के प्रथम भारतीय बन्दरगाह का वर्तमान नाम बताइये।
उत्तर:
विश्व के प्रथम भारतीय बन्दरगाह को वर्तमान में मंगरोल बन्दरगाह के नाम से जाना जाता है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 3.
‘निष्क’ क्या है?
उत्तर:
वैदिक काल में सोने से बनी हुई मुद्रा को निष्क कहा जाता था।

प्रश्न 4.
‘अर्थशास्त्र’ की रचना किसने की है?
उत्तर:
चाणक्य (कौटिल्य) ने।

प्रश्न 5.
कार्दभिक क्या है?
उत्तर:
कार्दभिके मुक्ताओं का एक प्रकार है जिसे ईरान की कर्दभ नदी से उत्पन्न होने के कारण कार्दभिक कहा जाता है।

प्रश्न 6.
मौर्यकाल का राजमार्ग भारत के किस – किस भाग से जुड़ा हुआ था?
उत्तर:
मौर्यकाल का प्रमुख राजमार्ग उत्तर भारत को दक्षिणी भारत से जोड़ता था जो उज्जैन, विदिशा, कौशाम्बी और साकेत होता हुआ श्रावस्ती तक जाता था।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 7.
‘संयान पथ’ क्या है?
उत्तर:
चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा समुद्री जल मार्गों को ‘संयान पथ’ कहा गया है।

प्रश्न 8.
भारत और मिस्र के बीच व्यापार किस समुद्री मार्ग के द्वारा होता था?
उत्तर:
भारत और मिस्र के बीच व्यापार लाल सागर के तट पर बरनिस नामक बन्दरगाह से मिस्र के प्रमुख बन्दरगाह सिकन्दरिया तक बने मार्गों द्वारा होता था।

प्रश्न 9.
केरल तट के दो प्रमुख बन्दरगाहों के नाम बताइये।
उत्तर:
मुजिरिस और टिन्डिस बन्दरगाह।

प्रश्न 10.
‘प्रवेश्य’ और ‘निष्क्राम्य’ को समझाइये।
उत्तर:
मौर्यकाल में आयात कर को प्रवेश्य और निर्यात कर को निष्क्राम्ये कहा जाता था।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 11.
‘वर्तनी’ क्या है?
उत्तर:
मौर्य शासन काल में बड़े व्यापारियों की यात्रा के समय उनके सार्थ (काफिलों) की सुरक्षा हेतु राज्य द्वारा वसूल किया जाने वाला कर वर्तनी’ कहलाता था।

प्रश्न 12.
भूतोवात प्रत्याय क्या है?
उत्तर:
गुप्तकाल में विदेशों से आयात की जाने वाली और देश में निर्मित वस्तुओं पर जो कर (Tax) लगाया जाता था उसे भूतोवाव प्रत्याय कहा जाता था।

प्रश्न 13.
चीन जाने वाले प्रथम भारतीय धर्म प्रचारकों के नाम बताइये।
उत्तर:
चीन जाने वाले प्रथम भारतीय धर्म प्रचारक धर्म रत्न तथा कश्यप मातंग दो बौद्ध आचार्य थे।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत से निर्यात और आयात की जाने वाली वस्तुएँ बताइये।
उत्तर:
भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में सूती कपड़े, मसाले, हाथी दाँत, हाथी दाँत से बनी वस्तुएँ, मोती, कीमती पत्थर, दाल – चीनी, काली मिर्च आदि प्रमुख थे तथा आयात की जाने वाली वस्तुओं में सोना – चाँदी, ताँबा, मुँगा, शराब, खजूर, रेशम, अरबी घोड़े, गुलाम आदि थे।

प्रश्न 2.
मौर्यकाल में कौन – कौन से कर व्यापारियों पर लगाये जाते थे?
उत्तर:
मौर्यकाल में भूमि कर के बाद राजाओं की आय का प्रमुख साधन आयात और निर्यात कर था। आयात कर को प्रवेश्य और निर्यात कर को निष्क्राम्य कहा जाता था। बिक्री कर भी राज्य की आय का महत्वपूर्ण स्रोत था। जो वस्तुएँ गिनकर बेची जाती र्थी, उन पर 9.50 प्रतिशत; जो तौलकर बेची जाती थीं, उन पर 5 प्रतिशत और जो नापकर बेची जाती थीं, उन पर 6.25 प्रतिशत कर लिया जाता था। बड़े व्यापारियों के काफिलों की रक्षा का दायित्व राज्य पर होता था। इसके बदले में राज्य प्रत्येक व्यापारी से मार्ग कर (वर्तनी) वसूल करता था।

प्रश्न 3.
सैन्धव निवासियों का व्यापार किन देशों से था और इस काल के प्रमुख बन्दरगाहों के नाम बताइये।
उत्तर:
सैन्धव निवासियों का व्यापार मुख्य रूप से मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान और दक्षिणी तुर्कमेनिया से था। इसे काल के प्रारम्भ में विदेशी व्यापार थल मार्ग द्वारा ही होता था लेकिन बाद में जल मार्ग से होने लगा तथा नौकाओं और जहाजों का उपयोग किया जाने लगा। लोथल, सुत्कगनाडोर, बालाकोट, सोत्कोकोह आदि इस काल के प्रसिद्ध बन्दरगाह थे।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 4.
कौटिल्य ने कितने प्रकार की मुद्राओं का वर्णन किया है?
उत्तर:
कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में अग्र चार प्रकार की मुद्राओं का उल्लेख किया है –

  1. सुवर्ण (सोने का)
  2. कार्षपण या धरण (चाँदी का)
  3. माषक (ताँबे का)
  4. काकरणी (ताँबे का)

प्रश्न 5.
‘तर’ क्या है? इसकी वसूली कौन करता था?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी के आस – पास नावों पर लगाये जाने वाले जल कर को ‘तर’ कहते थे। इसकी वसूली ‘तरिक’ नामक अधिकारी करता था।

प्रश्न 6.
मौर्योत्तर भारत के प्रमुख व्यापारिक मार्गों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौर्योत्तर भारत में तीन व्यापारिक मार्गों का वर्णन मिलता है –

  • प्रथम मार्ग जो पाटलिपुत्र से कौशाम्बी और उज्जैन होते हुए बैरीगाजा तक जाने वाला मार्ग था।
  • द्वितीय मार्ग पाटलिपुत्र से मथुरा और सिन्धु घाटी होते हुए बैक्ट्रिया तक जाता था।
  • तृतीय मार्ग, पाटलिपुत्र से वैशाली और श्रावस्ती होते हुए नेपाल तक जाता था।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 7.
बेबीलोनिया पर भारतीय व्यापार का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारतीय व्यापार का बेबीलोनिया पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा, इसके परिणामस्वरूप आज भी वहाँ भारतीय संस्कृति की झलक दिखायी देती है। वहाँ की मुद्राओं और भवनों पर भारतीय हाथीं और बन्दरों के चित्र आज भी अंकित हैं। अतः मुद्राओं और भवनों के निर्माण पर सांस्कृतिक आदान – प्रदान की छवि स्पष्ट रूप से दिखायी देती है।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौर्यकाल की व्यापारिक स्थिति पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
मौर्यकाल में व्यापार पर राज्य का पूर्ण नियन्त्रण था। व्यापारिक गतिविधियों पर नियन्त्रण के लिये विशेष प्रकार के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी, जिसमें वाणिज्य की देखभाल के लिये पण्याध्यक्ष, तौल का निरीक्षण करने के लिये पौलवाध्यक्ष तथा पुलों पर चुंगी वसूल करने के लिये शुल्काध्यक्ष की नियुक्ति की जाती थी। कौटिल्य ने लिखा है कि राजा को व्यापार की उन्नति के लिये थल और जल के मार्गों पर सड़के व पुल बनाना चाहिए। राजा को व्यापारियों का ध्यान भी रखना चाहिए क्योंकि व्यापारी ही देश को विकास की ओर अग्रसर करते हैं।

कौटिल्य के अनुसार – “रेशर्म और चीन पटट् जो चीन देश में उत्पन्न होते हैं, श्रेष्ठ समझे जाते हैं।” कौटिल्य ने मुक्ताओं के एक प्रकार ‘कार्दभिक’ का उल्लेख किया है। ईरान की कर्दभ नदी में उत्पन्न होने के कारण इन मुक्ताओं को ‘कार्दभिक’ भी कहा जाता है। मौर्यकाल में भूमि कर के बाद राजस्व प्राप्ति का प्रमुख स्रोत आयात एवं निर्यात कर था। उस समय आयात कर को प्रवेश्य’ तथा निर्यात कर को ‘निष्क्राम्य’ कहा जाता था। आयात कर की दर सामान्यत: 20% थी परन्तु निर्यात कर की दर के बारे में सही जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। बिक्री कर भी राज्य की आय का प्रमुख स्रोत रहा होगा।

जो वस्तुएँ गिनकर बेची जाती थीं उन पर 9.5%, जो तौलकर बेची जाती थी उन पर 5% और जो नापकर बेची जाती थी उन पर 6.25% कर लिया जाता था। मौर्यकाल में व्यापारी बड़े – बड़े सार्थ (काफिले) बनाकर आते – जाते थे लेकिन इन काफिलों की रक्षा का दायित्व राज्य पर होता था और राज्य इस सुरक्षा के प्रतिफल में व्यापारियों से कर वसूलते थे। मौर्यकाल में विभिन्न वस्तुओं के बाजार अलग – अलग होते थे जो सामान्यत: बड़े नगरों में होते थे। मांस, चावल, रोटी, मिठाई आदि खाने – पीने की वस्तुओं के लिये अलग – अलग दुकानों की व्यवस्था होती थी। काश्मीर, कौशल, विदर्भ और कलिंग हीरे के लिए प्रसिद्ध थे। चमड़े के लिये हिमाचल प्रदेश, मलमल के लिये बंगाल, मोतियों के लिये ताम्रपर्ण पाण्ड्य और केरल प्रसिद्ध थे।

मौर्यकाल में व्यापार को सुगम और सरल बनाने के लिये सिक्कों की ढलाई का कार्य भी प्रारम्भ हुआ। चाणक्य द्वारा लिखित ‘अर्थशास्त्र’ में चार प्रकार की मुद्राओं का वर्णन मिलता है। मौर्यकाल में भारत और मिस्र के बीच व्यापारिक गतिविधियाँ बहुत ही प्रगतिशील थीं। अन्त में यह कहा जा सकता है कि मौर्यकाल में व्यापार एवं वणिज्य में काफी प्रगति हुई, जिसके कारण व्यापार में विशिष्टीकरण तथा विदेशी व्यापार को बल मिला। उस समय व्यापारी वर्ग खूब फल – फूल रहा था। इस प्रकार मौर्यकाल व्यापार की दृष्टि से उत्तम कहा जा सकता है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख मार्गों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में व्यापार के विकास के साथ नये नये मार्गों की खोज भी हुई तथा उनके माध्यम से विभिन्न देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुये। प्राचीन भारत में मुख्य रूप से समुद्री तथा स्थलीय मार्गों का प्रयोग किया जाता था तथा प्रमुख व्यापारिक केन्द्र समुद्र तट के किनारे पर बसे हुये थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि थल मार्ग द्वारा व्यापार जोखिमों से भरा हुआ था।

प्राचीन भारत के प्रमुख थलमार्ग उत्तरी भारत से अफगानिस्तान, अरब, ईरान आदि देशों के साथ व्यापार करने के काम आते थे। चीन का रेशम भारत के रास्ते बैक्ट्रिया होते हुये पश्चिम तक जाता था, इसीलिये यह थल मार्ग रेशम मार्ग के नाम से भी जाना जाता था। मौर्यकाल के समय मगध साम्राज्य में स्थल मार्गों का एक जाल – सा फैला हुआ था। मुख्य राजमार्ग उत्तर भारत को दक्षिणी भारत से जोड़ता था। यह मार्ग उज्जैन, विदिशा, कौशाम्बी और साकेत होता हुआ श्रावस्ती तक जाता था। दूसरा मार्ग पश्चिमी घाट को पूर्वी घाट तक जोड़ते हुये, भृगुकच्छ से कौशाम्बी होता हुआ ताम्रलिप्ति तक पहुँचता था। तीसरा राजमार्ग पूर्वी भारत को पश्चिमी भारत से जोड़ते हुये पाटलिपुत्र से ईरान तक जाता था। चौथा मार्ग चम्पा से पुष्कलावती तक पहुँचता था।

आन्ध्रप्रदेश और कलिंग तथा बंगाल के लोग समुद्री मार्ग से बर्मा, मलाया, सुमात्रा, जावा और कम्बोडिया के साथ व्यापार करते थे। इन लोगों का अधिकांश व्यापार ताम्रलिप्ति के बन्दरगाह से सम्पन्न होता था। दक्षिणी भारत के दो प्रमुख व्यापारिक मार्ग थे – जिसमें एक मार्ग मछलीपट्टम से प्रारम्भ होता था और दूसरे की शुरुआत विनकोंड से होती थी लेकिन कुछ दूर अलग – अलग चलने के बाद दोनों एक स्थान पर मिल जाते थे और फिर पुनः ऐक मार्ग के रूप में हैदराबाद, कल्याण, पैठान और दौलताबाद होते हुये बैरीगाजा पहुचते थे।

मध्य एशिया में भारत के काफिले हिन्दूकुश पर्वत पार कर बैक्ट्रिया की व्यापारिक मण्डी तक जाते थे। यहाँ पर चीन, भारत एवं पश्चिमी देशों से आने वाले रास्ते मिलते थे। यहीं पर माल का आदान – प्रदान करने के पश्चात् वस्तुयें बेड़ों द्वारा आक्सिस के बहाव द्वारा केस्पियन सागर तक ले जायी जाती अलबरुनी ने 11वीं शताब्दी के प्रारम्भ में 15 सड़कों का वर्णन किया है। ये मार्ग कन्नौज, मथुरा, बाड़ी, बयाना, धार, अन्हिलपाटन से देश के अलग – अलग मार्गों से जुड़े थे। इन मार्गों में से एक कन्नौज से प्रयाग होते हुये ताम्रलिप्ति तक और फिर वहाँ से दक्षिण में कलिंग प्रदेश से होते हुये कॉची तक सुदूर दक्षिण में जाता था। दूसरा प्रसिद्ध मार्ग कन्नौज से पानीपत, कटक और काबुल होते हुये गजनी तक जाता था। एक मार्ग कन्नौज से बयाना जाता था। बयाना में एक मार्ग मरूस्थल से होकर वर्तमान कराची तक जाता था। दिल्ली से जयपुर होकर अहमदाबाद तक एक मार्ग जाता था।

प्राचीन भारत के प्रमुख जल मार्ग लोथल, सुत्कगनाडोर, वालाकोट, सोकाकोह आदि सैन्धव काल के प्रमुख बन्दरगाह थे। सुमेर के साथ भारत को व्यापार बहरीन के जरिये समुद्री मार्ग से होता था। मौर्यकाल में बरनिस नामक एक बन्दरगाह बनवाया था। यहाँ से मिस्र के सिकन्दरिया बन्दरगाह तक व्यापार होता था। आन्ध्र प्रदेश, कलिंग तथा बंगाल के लोग ताम्रलिप्ति बन्दरगाह से समुद्री मार्ग द्वारा बर्मा, मलाया, सुमात्रा, जावा और कम्बोडिया के साथ व्यापार करते थे। मौर्योत्तर काल में कन्नड़ तट पर वैजयन्ति तथा केरल तट पर मुजिरिस और टिन्डिस बन्दरगाह थे। पांड्य राज्य में शालियूर तथा चेर राज्य में बंदर नामक तटों पर बंदरगाह थे।

प्रश्न 3.
भारतीय व्यापार की अवनति के प्रमुख कारण बताइये।
उत्तर:
भारतीय व्यापार की अवनति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. सामन्ती व्यवस्था का उदय होना – भारतीय व्यापार की अवनति में सामन्तवाद का उदय होना एक प्रमुख कारण था। हर्षोत्तर काल में व्यापार एवं वाणिज्य में भारी गिरावट का कारण सामन्तवाद ही था। ईसा की सातवीं से बारहवीं सदी में तुर्को के आगमन तक देश में सामन्तवाद अपने चरम तक पहुँच गया था। इस काल में केन्द्रीय शासन के अभाव में आन्तरिक और विदेशी व्यापार को भारी क्षति पहुँचने लगी थी।

2. व्यापारियों पर अत्यधिक कर लगाना – सैन्धव सभ्यता से लेकर मौर्यकाल तक राज्यों की आय के प्रमुख साधन व्यापारियों पर लगने वाले कर (Tax) ही थे। मौर्यकाल में व्यापारियों द्वारा अन्य देशों में निर्यात करने पर “निष्क्राम्य” तथा विदेशों से माल मंगाने पर ‘प्रवेश्य’ कर वसूला जाता था। इस काल में बिक्री कर भी आय का प्रमुख साधन था। गुप्तकाल में करों का इतना बोझ नहीं था लेकिन विदेशों से माल मंगाने एवं देश में उत्पन्न होने वाले पदार्थों पर कर लगाया जाता था जिसे “भूतोवाव प्रत्याय” कहा जाता था। इसके अलावा गुप्त काल में व्यापारियों से सुरक्षा के बदले में शुल्क वसूल किया जाता था।

3. रोमन साम्राज्य का पतन – रोमन साम्राज्य के साथ भारत को अत्यधिक मात्रा में व्यापार होता था लेकिन पाँचवी सदी ई. के अन्त तक रोमन साम्राज्य के पतन के साथ ही भारत के विदेशी व्यापार को ग्रहण लग गया। इस स्थिति में ईरान के ‘सासानी’ साम्राज्य के पतन ने भी विपरीत भूमिका निभाई। अरब के लोगों ने स्थलीय मार्ग पर अपना अधिकार जमा लिया। शीघ्र ही अरबी व्यापारियों ने अरब सागर और हिन्द महासागर पर अपना अधिकार कर लिया।

4. व्यापारिक मार्गों की असुरक्षा – प्राचीन भारत में व्यापारिक मार्ग बहुत ही असुरक्षित थे, सड़कों पर स्थल के डाकू और जल मार्गों में जल के डाकू व्यापारियों को लूट लेते थे। इसी कारण पहले व्यापारी काफिले बनाकर चलते थे। गुप्तोत्तर काल में भी व्यापारिक मार्ग सुरक्षित नहीं थे। चीनी यात्री युवान – च्चांग भी दो बार लूटा गया था। इस काल में व्यापारियों को चोर और डाकुओं के अलावा सामन्त भी लूट लिया करते थे। वास्तुपाल – चरित में मांडलिक घुगघुल द्वारा व्यापारियों के काफिले लूटने का वर्णन मिलता है। इससे व्यापार – वाणिज्य को धक्का लगा।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 4.
भारतीय संस्कृति के विस्तार में व्यापार की भूमिका को विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
भारतीय संस्कृति के विस्तार में व्यापार की अग्रणी भूमिका रही है। विभिन्न देशों के व्यापारियों के मध्य व्यापारिक आवागमन होने से विचारों का आदान – प्रदान, खान – पान, साहित्यिक विकास, स्थापत्य कला, मनोरंजन की शैलियाँ, पहनावा, धार्मिक विकास आदि की झलंक आज भी कई देशों में दिखायी देती है।

इण्डोनेशिया, कम्बोडिया, स्याम, चीन आदि देशों में भारतीय संस्कृति का विकास एवं बौद्धधर्म का प्रचार – प्रसार व्यापार की ही देन है। आज भी यहाँ मुद्राओं और भवनों के निर्माण में भारतीय संस्कृति का दर्शन होता है। चीन, जापान, कोरिया, फिलीपीन्स आदि देशों में विभिन्न व्यापारिक गतिविधियों के माध्यम से ही वहाँ बौद्धधर्म का प्रचार – प्रसार हुआ है।

दक्षिणी पूर्वी देशों से व्यापार के लिये भारतीय व्यापारियों का आना – जाना ईसा पूर्व पाँचवीं – छठी सदी से ही चला आ रहा था, उन देशों के निवासी “आग्नेय जाति” से सम्बन्ध रखते थे जो कि सभ्यता की दृष्टि से बहुत ही पिछड़े हुये थे, इसलिये उनका सारा ‘व्यापार भारतीय व्यापारियों के हाथ में था। जिसके फलस्वरूप भारत के निवासी वहाँ बड़ी संख्या में बस गये और पूरे इण्डोनेशिया तथा इण्डोचीन में भारतीयों के राज्य स्थापित हो गये एवं आज भी वहाँ भारतीय संस्कृति का प्रभाव देखा जा सकता है।

इण्डोचीन, मलाया और जावा में अभी भी नाटक, नृत्य, अभिनय तथा कठपुतलियों के खेलों के विषय में रामायण, महाभारत तथा पौराणिक कथाओं का ही सहारा लिया जाता है। भारत और बेबीलोन के मध्य व्यापार के कारण ही वहाँ की मुद्राओं और भवनों पर भारतीय हाथी और बन्दरों के चित्र अंकित हैं। मिस्र में शव को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिये आवरण के रूप में ममी पर भारतीय वस्त्र (मलमल) लपेटा जाता था।

कम्बोडिया और स्याम में बैंकाक के रहने वाले पुरोहित एवं बौद्ध मतावलम्बी उपवीत (जनेऊ) धारण करते हैं। हिन्दू और बौद्धधर्म की मूर्तियों को पूजते हैं और राजसभाओं में पौरोहित्य कार्यों को भी सम्पन्न करते हैं। महाभारत में इस बात का उल्लेख मिलता है कि राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर को अनेक राजाओं ने चीन में बने रेशम के वस्त्र भेंट किये थे।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 5.
विभिन्न बन्दरगाहों से विदेशों को भेजी जाने वाली और आयात की जाने वाली वस्तुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बन्दरगाहों द्वारा विदेशों को आयात एवं निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का विवरण
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सैन्धव सभ्यता से लेकर भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना तक की अवधि को ऐतिहासिक दृष्टि से कहा जाता है –
(अ) वैदिक भारत
(ब) प्राचीन भारत
(स) अर्वाचीन भारत
(द) अतुलनीय भारत
उत्तरमाला:
(ब) प्राचीन भारत

प्रश्न 2.
लोथल में विश्व का प्रथम बन्दरगाह बना था –
(अ) 2000 ई. पू. में
(ब) 1500 ई. पू. में
(स) 2500 ई. पू. में
(द) 3500 ई. पू. में
उत्तरमाला:
(स) 2500 ई. पू. में

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 3.
लोथल बन्दरगाह से सैन्धव काल में किस देश से व्यापार होता था?
(अ) मिस्र
(ब) चीन
(स) मैसोपोटामिया
(द) ईरान
उत्तरमाला:
(स) मैसोपोटामिया

प्रश्न 4.
लोथल बंदरगाह को वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है?
(अ) विशाखापट्टनम बन्दरगाह
(ब) पारादीप बन्दरगाह
(स) मंगरोल बन्दरगाह
(द) मार्मागाओ बन्दरगाह
उत्तरमाला:
(स) मंगरोल बन्दरगाह

प्रश्न 5.
सैन्धव काल में मंगरोल बन्दरगाह से निम्नलिखित में से किस देश से व्यापार होता था?
(अ) अफगानिस्तान
(ब) मिस्र
(स) ईरान
(द) मैसोपोटामिया
उत्तरमाला:
(द) मैसोपोटामिया

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प्रश्न 6.
आक्सास और कोकचा नदियों के संगम पर स्थित नगर का नाम था –
(अ) शोतुरगये
(ब) चम्पा
(स) तक्षशिला
(द) कौशाम्बी
उत्तरमाला:
(अ) शोतुरगये

प्रश्न 7.
भारत चीन को निर्यात करता था –
(अ) जस्ता और ताँबा
(ब) सोना और शीशा
(स) मनके और मसाले
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) सोना और शीशा

प्रश्न 8.
सिकन्दर के आक्रमण के समय क्षत्रिय नाम के गणराज्य के निवासियों ने उसकी सेना को कितने पतवार वाले जहाज दिए थे?
(अ) 20
(ब) 30
(स) 07
(द) 15
उत्तरमाला:
(ब) 30

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प्रश्न 9.
“मौर्य शासकों का जहाज बनाने के शिल्प पर एकाधिकार था।” यह बात निम्नलिखित में से किस विद्वान ने कही?
(अ) अलबेरुनी
(ब) मेगस्थनीज
(स) स्ट्रेबो
(द) विष्णुगुप्त
उत्तरमाला:
(स) स्ट्रेबो

प्रश्न 10.
पेरिप्लस के अनुसार पहली शताब्दी ईसवी में दक्षिणापथ के पश्चिमी तट पर सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह कौन – सा था?
(अ) भृगुकच्छ
(ब) शुपरिक
(स) वारबेरिकम
(द) ताम्रलिप्ति
उत्तरमाला:
(अ) भृगुकच्छ

प्रश्न 11.
दक्षिणापथ के पूर्वी तट पर सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह था –
(अ) ताम्रलिप्ति
(ब) शुपरिक
(स) वीरबेरिकम
(द) रोरूक
उत्तरमाला:
(अ) ताम्रलिप्ति

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प्रश्न 12.
चीन के सम्राट ने 787 ई. में तिब्बत के विरुद्ध सहायता माँगी थी –
(अ) उइघरों से
(ब) भारत के शासकों से
(स) बगदाद के खलीफा से।
(द) उपरोक्त सभी से
उत्तरमाला:
(द) उपरोक्त सभी से

प्रश्न 13.
‘शतपथ ब्राह्मण’ ग्रन्थ के अनुसार ‘शतमान’ प्रयुक्त होता था –
(अ) तौल के लिए
(ब) दान देने के लिए
(स) माप के लिए।
(द) दक्षिणा देने के लिए
उत्तरमाला:
(द) दक्षिणा देने के लिए

प्रश्न 14.
पश्चिमी पंजाब के निवासी (व्यापारी) ईरान के सम्राट दारा को कर के रूप में देते थे –
(अ) 360 टेलेंट सोने का चूर्ण
(ब) 260 टेलेंट सोने का चूर्ण
(स) 380 टेलेंट सोने का चूर्ण
(द) 480 टेलेंट सोने का चूर्ण
उत्तरमाला:
(अ) 360 टेलेंट सोने का चूर्ण

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प्रश्न 15.
कौटिल्य के अनुसार मौर्यकाल में बंगाल प्रसिद्ध था –
(अ) चमड़े के लिए
(ब) हीरे के लिए
(स) मलमल के लिए
(द) मोतियों के लिए
उत्तरमाला:
(स) मलमल के लिए

प्रश्न 16.
मौर्यकाल में हिमाचल प्रदेश किसके लिये प्रसिद्ध था?
(अ) हीरा
(ब) मलमल
(स) मोतियों
(द) चमड़ा
उत्तरमाला:
(द) चमड़ा

प्रश्न 17.
मौर्यकाल में निम्नलिखित में से कौन – सा अधिकारी तौल का निरीक्षण करता था?
(अ) पण्याध्यक्ष
(ब) पौलवाध्यक्ष
(स) शुल्काध्यक्ष
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) पौलवाध्यक्ष

प्रश्न 18.
“रेशम और चीन पट्ट जो चीन देश में उत्पन्न होते हैं, श्रेष्ठ समझे जाते हैं” – यह कथन निम्नलिखित में से किसका है?
(अ) अल इदरिसी
(ब) स्ट्रेबो
(स) अलबेरुनी
(द) कौटिल्य
उत्तरमाला:
(द) कौटिल्य

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प्रश्न 19.
निम्नलिखित में किस विद्वान के अनुसार बंगाल के निवासी कुशल नाविक थे?
(अ) कालिदास
(ब) चाणक्य
(स) अल इदरिसी
(द) इब्नखुर्ददबा अल मसूदी
उत्तरमाला:
(अ) कालिदास

प्रश्न 20.
‘कारवाँ’ था –
(अ) जल मार्ग से व्यापार करने का तरीका
(ब) थल मार्ग से व्यापार करने का तरीका
(स) वायु मार्ग से व्यापार करने का तरीका
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(ब) थल मार्ग से व्यापार करने का तरीका

प्रश्न 21.
कौटिल्य ने समुद्री जलमार्गों को नाम दिया –
(अ) संयान पथ
(ब) प्रवहण
(स) प्रवेश्य
(द) निष्क्राम्य
उत्तरमाला:
(अ) संयान पथ

प्रश्न 22.
सैन्धव सभ्यता से लेकर मौर्यकाल तक राजस्व प्राप्ति का प्रमुख स्रोत था –
(अ) आय कर
(ब) जल कर
(स) भूमि कर
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(स) भूमि कर

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प्रश्न 23.
मौर्यकाल में भूमि कर के बाद राज्य की आय को प्रमुख साधन था –
(अ) आयात कर
(ब) निर्यात कर
(स) आयात एवं निर्यात कर
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) आयात एवं निर्यात कर

प्रश्न 24.
मौर्यकाल में निर्यात कर को क्या कहा जाता था?
(अ) निष्क
(ब) निष्क्राम्य
(स) काकरणी
(द) प्रवेश्ये
उत्तरमाला:
(ब) निष्क्राम्य

प्रश्न 25.
ग्यारहवीं सदी के प्रारम्भ में आने वाले अलबरूनी ने कितने सड़क मार्गों का वर्णन किया है?
(अ) 15
(ब) 20
(स) 30
(द) 25
उत्तरमाला:
(अ) 15

प्रश्न 26.
गुप्त काल में विदेशों से आयात होने वाले और देश में उत्पन्न होने वाले पदार्थों पर कर लगाया जाता था, इस कर को कहा जाता था –
(अ) प्रवहण
(ब) भृगुकच्छ
(स) प्रवेश्य
(द) भूतोवाव प्रत्याय
उत्तरमाला:
(द) भूतोवाव प्रत्याय

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प्रश्न 27.
चीनी यात्री युवान च्वांग को लूटा गया था –
(अ) एक बार
(ब) दो बार
(स) तीन बार
(द) चार बार
उत्तरमाला:
(ब) दो बार

प्रश्न 28.
ग्यारहवीं शताब्दी के आस – पास निम्नलिखित में से कौन – सा कर जल कर के रूप में नावों पर लगता था?
(अ) जर
(ब) खर
(स) गोर
(द) तूर
उत्तरमाला:
(द) तूर

प्रश्न 29.
चीन जाने वाले प्रथम भारतीय धर्म प्रचारक धर्मरत्न और कश्यप मातंग मूलतः थे –
(अ) बौद्ध आचार्य
(ब) जैन आचार्य
(स) हिन्दू मतावलम्बी.
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) बौद्ध आचार्य

प्रश्न 30.
छठी शताब्दी ई. पू. के मुंगेर के शासक नेबूचदनिजर के महल में अनेक स्तम्भ किसकी लकड़ी के बने हुए थे?
(अ) नीम
(ब) शीशभ
(स) सागवान
(द) आम
उत्तरमाला:
(स) सागवान

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प्रश्न 31.
पाल अभिलेखों के अनुसार जल कर एवं नावों पर कर (TAX) वसूलने वाले अधिकारी को कहते थे –
(अ) तरिक
(ब) निष्क
(स) काकरणी
(द) वर्तनी
उत्तरमाला:
(अ) तरिक

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारत के किन्हीं चार राजवंशों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. मौर्य वंश
  2. शुंग वंश
  3. कुषाण वंश
  4. गुप्त वंश।

प्रश्न 2.
विश्व को प्रथम बन्दरगाह कब तथा कहँ बना था?
उत्तर:
विश्व का प्रथम बन्दरगाह 2500 ई. पू. में ‘लोथल’ में बना था।

प्रश्न 3.
शिल्प की दृष्टि से हड़प्पा संस्कृति कैसी थी?
उत्तर:
शिल्प की दृष्टि से हड़प्पा संस्कृति पूर्णतया संगठित थी। हस्तनिर्मित वस्तुओं में अत्यधिक एकरूपता इसका प्रमाण है।

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प्रश्न 4.
पिछले कुछ वर्षों में सिंधु घाटी से बाहर कितने स्थानों का उत्खनन हुआ है?
उत्तर:
सात स्थानों का।

प्रश्न 5.
उत्तरी अफगानिस्तान में आक्सास और कोकचा नदियों के संगम पर कौन – सा नगर स्थित था?
उत्तर:
शोतुरगये।

प्रश्न 6.
पश्चिमी तट पर भगतराय के द्वारा किन मूल्यवान रत्नों का आयात किया जाता था?
उत्तर:
गोमेद और इन्द्रगोप।

प्रश्न 7.
राजस्थान में उल्टे क्यू के आकार के पाषाण भाग कहाँ मिले हैं?
उत्तर:
खेतड़ी की ताँबे की खानों के निकट कुल्हादेका जोहद में।

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प्रश्न 8.
हड़प्पा के मनकों का निर्यात किन – किन मार्गों से होता था?
उत्तर:
हड़प्पा के मनकों का निर्यात समुद्र एवं स्थल – दोनों मार्गों से होता था।

प्रश्न 9.
प्राचीन भारत एवं मैसोपोटामिया के बीच आयात – निर्यात की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
तत्कालीन समय में मैसोपोटामिया से आयात कम वस्तुओं का किया जाता था जबकि निर्यात अधिक वस्तुओं का होता था।

प्रश्न 10.
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की मुहरों पर किसकी आकृतियाँ बनी होती थी?
उत्तर:
जहाजों की।

प्रश्न 11.
पक्की मिट्टी का जहाज कहाँ मिला है?
उत्तर:
लोथल में।

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प्रश्न 12.
भारत से विदेशों को भेजी जाने वाली चार वस्तुओं के नाम लिखिए।
अथवा
प्राचीन काल में भारत से निर्यात की जाने वाली चार वस्तुएँ बताइए।
उत्तर:

  1. सूती कपड़े
  2. मसाले
  3. हाथी दाँत
  4. कीमती पत्थर

प्रश्न 13.
प्राचीन काल में विदेशों से मंगाई जाने वाली चार वस्तुएँ बताइए।
अथवा
प्राचीन भारत में आयात की जाने वाली चार वस्तुएँ बताइए।
उत्तर:

  1. सोना
  2. ताँबा
  3. मूंगा
  4. रेशम्।

प्रश्न 14.
चीन और पश्चिमी देशों के बीच मध्यस्थता की भूमिका कहाँ के व्यापारियों द्वारा निभाई जाती थी?
उत्तर:
भारतीय व्यापारियों द्वारा।

प्रश्न 15.
भारत द्वारा चीन को निर्यात की जाने वाली दो वस्तुएँ बताइए।
उत्तर:

  1. सोना
  2. शीशा।

प्रश्न 16.
भारत द्वारा चीन से आयात की जाने वाली दो वस्तुएँ बताइए।
उत्तर:

  1. रेशम
  2. चीनी बर्तन।

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प्रश्न 17.
सिन्धुवासी थल मार्ग द्वारा माल ढोने के लिये किस प्रकार के साधनों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
बैलगाड़ियाँ, बैल और गधों का।

प्रश्न 18.
सिन्धुवासियों द्वारा जल मार्ग का अधिक उपयोग कब किया जाने लगा?
उत्तर:
600 ई. पू. के आस – पास।

प्रश्न 19.
सिन्धुवासी जलमार्ग द्वारा माल ढुलाई के लिए किन साधनों का उपयोग करते थे?
उत्तर:
नौकाओं और जहाजों का।

प्रश्न 20.
सैन्धव काल में उत्तर भारत का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग किन – किन स्थानों से होकर गुजरता था?
उत्तर:
सैन्धवे काल में उत्तर भारत का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग ताम्रलिप्ति से चम्पा, वाराणसी, कौशाम्बी, मथुरा, शाकेल और तक्षशिला से होकर पुष्पकलावती पहुँचता था।

प्रश्न 21.
उत्तर भारत के निवासियों के जीवन की विशेषताओं में अनेक समुद्रों द्वारा यात्रा करने का उल्लेख किस विद्वान ने किया है?
उत्तर:
बौधायन ने।

प्रश्न 22.
रोरूक का महत्वपूर्ण बन्दरगाह किस तट पर स्थित था?
उत्तरं:
जातकों के अनुसार सम्भवत: यह बन्दरगाह कच्छ खाड़ी के तट पर स्थित था।

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प्रश्न 23.
दक्षिण पथ के पूर्वी तट पर सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह कौन – सा था?
उत्तर:
ताम्रलिप्ति बन्दरगाह।

प्रश्न 24.
उस समय का उल्लेख कीजिए जब चीनी सम्राटों अथवा राजाओं ने अपना प्रभाव क्षेत्र ईरान तक फैला लिया था।
उत्तर:
सातर्वी शताब्दी का पूर्वार्द्ध।

प्रश्न 25.
चीनी स्रोतों के अनुसार मध्य एशिया पर अधिकार करने के लिए कब और किन चार शक्तियों के बीच संघर्ष हुआ?
उत्तर:
चीनी स्रोतों के अनुसार संभवत: 650 से 750 के काल में मध्य एशिया पर अधिकार करने के लिए चार शक्तियों – तुर्क, तिब्बती – शासक, अरबों एवं चीनियों के बीच संघर्ष हुआ।

प्रश्न 26.
कश्मीर किस काल में चीनियों के अधीन था?
उत्तर:
लगभग 650 से 750 के काल में कश्मीर चीनियों के अधीन था।

प्रश्न 27.
कामरूप से उत्तरी. बर्मा होकर चीन जाने वाला मार्ग कब बहुत प्रयोग किया जाने लगा?
उत्तर:
यह मार्ग आठवीं शताब्दी में अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा।

प्रश्न 28.
किस विद्वान ने अपने मार्ग – वितरण में टोनकिन से कामरूप तक का विस्तृत विवरण दिया है?
उत्तर:
कियातान नामक विद्वान ने।

प्रश्न 29.
तबकात ए नासिरी के अनुसार अनेक व्यापारी किस मार्ग के द्वारा घोड़े लाते थे?
उत्तर:
बिहार से तिब्बत होकर चीन जाने वाले मार्ग से।

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प्रश्न 30.
वैदिक काल में किस धातु से निर्मित वस्तु का प्रयोग मुद्रा के रूप में होता था?
उत्तर:
वैदिक काल में स्वर्ण धातु से निर्मित ‘निश्क’ वस्तु का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 31.
‘निश्क’ और ‘शतमान’ के सम्बन्ध में इतिहासकारों का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर:
इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि ये तौल के धातुखण्ड रहे होंगे। इनको मुद्रा नहीं माना जा सकता।

प्रश्न 32.
मौर्यकाल में मोतियों के लिये कौन – सा राज्य प्रसिद्ध था?
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 33.
मौर्यकाल में वाणिज्य की देखभाल एवं पुलों पर चुंगी वसूल करने वाले अधिकारियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
इन अधिकारियों के नाम क्रमशः पण्याध्यक्ष और शुल्काध्यक्ष थे।

प्रश्न 34.
“राजा को व्यापार की उन्नति के लिए थल एवं जल के मार्गों पर सड़कें व पुल बनाना चाहिए।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
कौटिल्य का।

प्रश्न 35.
कौटिल्य ने मुक्ताओं (मोतियों) के एक प्रकार कार्दभिक’ का उल्लेख किया है। ये “कार्दभिक’ कहाँ उत्पन्न हुए?
उत्तर:
ईरान की कर्दभ नामक नदी में।

प्रश्न 36.
किस काल में भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केन्द्र हो गया?
उत्तर:
गुप्त काल में भारत अन्तरर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया। इस काल में विदेशी व आन्तरिक व्यापार अपने चरमोत्कर्ष पर था।

प्रश्न 37.
गुप्त काल में कितने प्रकार के व्यापारियों का उल्लेख मिलता है?
उत्तर:
गुप्त काल में दो प्रकार के व्यापारियों का उल्लेख मिलता है –

  1. श्रेष्ठी
  2. सार्थवाह।

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प्रश्न 38.
‘चाणक्य ने चंदनदास को राज्य के सब नगरों का प्रधान व्यापारी नियुक्त किया।’ यह कहाँ लिखा हुआ है?
उत्तर:
मुद्राराक्षस में।

प्रश्न 39.
व्यापारी काफिलों में क्यों चलते थे?
उत्तर:
व्यापारी काफिलों में डाकुओं से बचने के लिए चलते थे।

प्रश्न 40.
‘कारवाँ’ क्या था?
उत्तर:
‘कारवाँ’ थल मार्ग से व्यापार करने का एक तरीका था, इसमें कई व्यापारी एक साथ यात्रा करते थे।

प्रश्न 41.
रेशम मार्ग किसे कहते थे?
उत्तर:
चीन का रेशम भारत के रास्ते बैक्ट्रिया होते हुए पश्चिम तक जाता था, इस कारण इस मार्ग को ‘रेशम मार्ग’ कहा जाता था।

प्रश्न 42.
सैन्धव सभ्यता के प्रसिद्ध किन्हीं चार बन्दरगाहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
लोथल, सुत्कगनाडोर, बालाकोट और सोकाकोह।

प्रश्न 43.
‘प्रवहण’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
महासमुद्रों में जाने वाले जहाजों को कौटिल्य ने ‘प्रवहण’ कहा है।

प्रश्न 44.
मौर्यकाल में आयात कर की दर कितनी थी?
उत्तर:
मौर्यकाल में आयात कर की दर 20 प्रतिशत थी।

प्रश्न 45.
मौर्यकाल में जो वस्तुएँ गिनकर बेची जाती थीं उन पर कितने प्रतिशत कर लगता था?
उत्तर:
9.50%।

प्रश्न 46.
मौर्यकाल में तौलकर एवं नापकर बेची जाने वाली वस्तुओं पर कितना कर लिया जाता था?
उत्तर:
मौर्यकाल में तौलकर एवं नापकर बेची जाने वाली वस्तुओं पर क्रमशः 5 प्रतिशत एवं 6.25 प्रतिशत कर लिया जाता था।

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प्रश्न 47.
‘सार्थ’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौर्यकाल में व्यापारी बड़े – बड़े काफिले (पैदल यात्रियों का समूह) बनाकर चलते थे जिन्हें सार्थ कहा जाता था।

प्रश्न 48.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कितने प्रकार की मुद्राओं का उल्लेख है? प्रत्येक का नाम लिखिए।
उत्तर:
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में चार प्रकार की मुद्राओं का उल्लेख है। इनके नाम हैं – सुवर्ण (सोने का), कार्षपण या धरण (चाँदी का), माषक (ताँबे का) एवं काकरणी (ताँबे का)।

प्रश्न 49.
‘तर’ और ‘तरिक’ से आप क्या समझते है?
उत्तर:
पाल अभिलेखों के अनुसार ‘तर’ एक प्रकार का जलकर था जो नावों पर लगता था। इस कर को वसूल करने वाला अधिकारी ‘तरिक’ कहलाता था।

प्रश्न 50.
भारतीय संस्कृति के विस्तार के दो प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संस्कृति के दो प्रमुख कारक हैं –

  1. व्यापारिक आदान – प्रदान
  2. धर्म प्रचार की प्रवृत्ति।

प्रश्न 51.
मिस्र में शव को सुरक्षित रखने के लिए आवरण के रूप में ‘ममी’ पर किस भारतीय वस्त्र को लपेटा जाता था? .
उत्तर:
मिस्र में ‘ममी’ को सुरक्षित रखने के लिए भारतीय वस्त्र’मलमल’ को लपेटा जाता था।

प्रश्न 52.
राजसूय यज्ञ के दौरान राजाओं ने युधिष्ठिर को कौन – से वस्त्र भेंट किए थे?
उत्तर:
इस यज्ञ में राजाओं ने युधिष्ठिर को चीन में निर्मित रेशम के वस्त्र भेंट किए।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)

प्रश्न 1.
इंतिहास की दृष्टि से प्राचीन भारत से क्या आशय है?
उत्तर:
इतिहास की दृष्टि से प्राचीन भारत से आशय सैन्धव सभ्यता से लेकर भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना अर्थात् 1200 ई. तक की अवधि से लिया जाता है। इस काल के विभिन्न राजवंशों के समय में भारतीय व्यापार ने उल्लेखनीय प्रगति की थी। प्राचीन भारत में व्यापार और उद्योग का इतिहास गौरवशाली रही है।

प्रश्न 2.
सैन्धव सभ्यता से लेकर मुस्लिम शासन की स्थापना तक भारत में किन राजवंशों का शासन रहा था?
उत्तर:
सैन्धव सभ्यता से लेकर मुस्लिम शासन की स्थापना तक भारत में मौर्यवंश, शृंगवंश, सातवाहन वंश, कुषाण वंश, गुप्त वंश, पल्लव वंश, चोल व चालुक्य वंश, गुर्जर प्रतिहार वंश, पाल, सेन, राष्ट्रकूट वंश आदि राजवंशों का शासन रहा था। इन सभी के शासनकाल में भारत का व्यापार निरन्तर प्रगतिशील रहा था।

प्रश्न 3.
हड़प्पा संस्कृति में मिली हस्तनिर्मित वस्तुओं से क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति में मिली हस्तनिर्मित वस्तुओं में इतनी अधिक एकरूपता है कि यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस संस्कृति में शिल्प पूर्णतया संगठित थे और वस्तुओं के वितरण की प्रणाली सुव्यवस्थित थी। एक ही स्थान पर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करके उनका सम्पूर्ण क्षेत्र में वितरण किया जाता था।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 4.
हड़प्पा संस्कृति में व्यापारिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति में भारत की व्यापारिक स्थिति बहुत अच्छी थी। दूसरे शब्दों में इस समय भारतीय व्यापार स्वर्णिम अवस्था में था। 2500 ई.पू. में विश्व का प्रथम बन्दरगाह लोथल में स्थापित होना, जो कि वर्तमान में मंगरोल बन्दरगाह के नाम से जाना जाता है, व्यापार की उन्नत दशा का प्रमाण है। हड़प्पा सभ्यता के लोग विदेशी व्यापार में सिद्धहस्त थे। लकड़ी, विभिन्न मूल्यवान धातुएँ एवं मूल्यवान रत्नों का व्यापार इस काल में अत्यन्त सहज एवं सरल था।

प्रश्न 5.
आप कैसे कह सकते हैं कि सैन्धव सभ्यता में समुद्र द्वारा विदेशों से व्यापार होता था?
उत्तर:
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की मुहरों पर जहाजों की आकृतियाँ बनी है और पक्की मिट्टी का जहाज भी लोथल में मिला है। लोथल में खुदाई में एक गोदी – बाड़ा भी मिला है इसलिए हम कह सकते हैं कि उस समय समुद्र द्वारा विदेशों से व्यापार होता था। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि विगत कुछ वर्षों में सिन्धु घाटी से बाहर ऐसे सात स्थानों पर उत्खनन कार्य हुआ है जिससे सैन्धव सभ्यता के लोगों के विदेशी व्यापार के सम्बन्ध में हमें स्पष्ट प्रमाण मिले हैं।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों द्वारा किए जा रहे व्यापार को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सैन्धव सभ्यता में आयात-निर्यात की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आयात – निर्यात की दृष्टि से सैन्धव सभ्यता का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
उत्खननों से प्राप्त विभिन्न प्रमाणों से यह बात स्पष्ट होती है कि आक्सास और कोकचा नदियों के संगम पर स्थित शोतुरगये नामक नगर से हड़प्पा निवासी अफगानिस्तान, मध्य एशिया और उत्तरी ईरान से लाजवर्द, फीरोजा और चाँदी आदि धातुओं का आयात करते थे। ऐसा अनुमान है कि जम्मू में चिनाब नदी के किनारे स्थित मण्डा के द्वारा हिमालय के जंगलों की लकड़ी लाई जाती थी। इसी प्रकार पश्चिमी तट पर स्थित भगत राय के द्वारा सम्भवतः इन्द्रगोप, गोमेद आदि मूल्यवान रत्नों का आयात किया जाता था। हड़प्पा के मनकों का निर्यात स्थल और समुद्र दोनों रास्तों से होता था।

प्रश्न 7.
प्राचीन भारत में निर्यात एवं आयात की जाने वाली महत्वपूर्ण वस्तुओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारत में मुख्यतया किन – किन वस्तुओं का विदेशी व्यापार होता था?
उत्तर:
प्राचीन भारत से विदेशों में भेजी जाने वाली वस्तुओं में सूती कपड़े, मुसाले, हाथी दाँत, कीमती पत्थर, दाल – चीनी, काली मिर्च आदि प्रमुख थीं जबकि आयात की जाने वाली वस्तुओं में सोना – चाँदी, ताँबा, मँगा, शराब, अरबी घोड़े, गुलाम एवं खजूर आदि सम्मिलित थे। भारत चीन को सोना और शीशे का निर्यात करता था बदले में रेशम और चीनी बर्तनों को प्राप्त करता था। जिनका विक्रय वह पश्चिम एशिया के देशों को करता था। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि भारतीय व्यापारी चीन एवं पश्चिमी देशों के मध्य मध्यस्थ की भूमिका का निर्वहन भी करते थे।

प्रश्न 8.
प्राचीन भारत के विदेशी व्यापार में थल व जल मार्गों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारतीय विदेशी व्यापार में थल व जल मार्गों का महत्व बताइए।
उत्तर:
प्राचीन भारत के विदेशी व्यापार में जल – थल मार्गों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही। यद्यपि आरम्भिक चरण में व्यापार केवल थल मार्ग द्वारा होता था किन्तु 600 ई.पू. के आस – पास जल मार्ग का प्रयोग अधिक किया जाने लगा। सिन्धु के निवासी थल मार्ग पर बैलगाड़ियों, बैलों व गधों का उपयोग माल ढोने के लिए करते थे। जल मार्ग में नौकाओं व जहाजों का उपयोग किया जाता था। उत्तर भारत का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता ताम्रलिप्ति से चम्पा, वाराणसी, कौशाम्बी, मथुरा एवं तक्षशिला आदि स्थानों से गुजरते हुए पुष्कलावती पहुँचता था। पुनः पुष्कलावती से आगे यह विभिन्न विदेशी क्षेत्रों तक पहुँचता था। विभिन्न मार्गों की उपयोगिता के कारण ही प्राचीन विदेशी व्यापार खूब फला – फूला।

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प्रश्न 9.
प्राचीन भारत में व्यापारिक गतिविधियों की दृष्टि से उत्तर भारत के निवासियों की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ईसा पूर्व 600 से 300 ई. तक उत्तर भारत की व्यापारिक गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न तथ्यों से यह बात प्रमाणित होती है कि प्राचीन भारत में उत्तर भारतीयों की व्यापारिक गतिविधियाँ अच्छी अवस्था में थीं। बौधायन ने इनके सम्बन्ध में बहुत – सी समुद्री यात्राओं का उल्लेख किया है। संभवतः उत्तर भारत के व्यापारी ईसा पूर्व 600 से 300 ई. तक अपना व्यापार समुद्री रास्तों द्वारा ही करते थे। रामायण में इससे संबंधित तथ्यों का उल्लेख है। प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में भी व्यापारियों के समुद्र पार जाने का उल्लेख मिलता है। जातकों में उल्लिखित तथ्य के अनुसार इस समय ऐसे भी जहाज थे जिनमें 1000 यात्रियों या पशुओं सहित 7 काफिले यात्रा कर सकते थे।

प्रश्न 10.
विभिन्न विवरणों के आधार पर प्राचीन भारतीय बन्दरगाहों और जहाजों की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
अथवा
व्यापारिक गतिविधियों की दृष्टि से प्राचीन भारतीय बन्दरगाहों और जहाजों की भूमिका को समझाइए।
उत्तर:
यदि हम प्राचीन भारतीय विभिन्न विवरणों का विश्लेषण करें तो यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है कि बंदरगाहों और जहाजों की व्यापार में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका थी। पेरिप्लस में उल्लेख है कि पहली शताब्दी ईसवी में दक्षिणापथ के पश्चिमी तट पर सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह भृगुकच्छ था। इसी प्रकार शुपरिक, वारबेरिकम भी इस काल के प्रसिद्ध बन्दरगाह थे। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि कच्छ – खाड़ी के तट पर स्थित रोरूक बन्दरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। मिलिन्दपञ्ह के अनुसार प्राचीन भारतीय जहाज बंगाल, मलयप्रायद्वीप, चीन, गुजरात आदि स्थानों पर जाते थे और सुव्यवस्थित आय के जरिए थे, जिसके कारण उनके स्वामी बहुत धनी हो गए थे।

प्रश्न 11.
सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में चीनी शासकों एवं अन्य शक्तियों के मध्य सत्ता संघर्ष को समझाइए।
अथवा
चीनी शासकों को सत्ता के विस्तार में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
अथवा
मध्य एशिया पर अधिकार करने के लिए किन – किन शक्तियों के मध्य संघर्ष हुआ?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में चीन के शासकों ने अपना प्रभाव क्षेत्र ईरान तक विस्तारित कर लिया था। चीनी साहित्य से हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि लगभग 650 ई. से 750 ई. के काल में मध्य एशिया पर अधिकार करने के लिए चार शक्तियों – तुर्क, तिब्बत के शासक, अरब तथा चीन में संघर्ष हुआ। इस समय कश्मीर चीनी शासकों के अधीन था। चीनी शासकों को तिब्बत की बढ़ती हुई शक्ति का अत्यधिक भय था। यही कारण था कि चीन के सम्राट ने 787 ई. में तिब्बत के विरुद्ध भारत के शासकों और बगदाद के खलीफा आदि से मदद मांगी।

प्रश्न 12.
आठवीं शताब्दी के महत्वपूर्ण मार्गों और इनसे जुड़े विभिन्न स्थानों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारत के विशिष्ट थल मार्गों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
ऐतिहासिक विवरणों से यह बात प्रमाणित होती है कि आठवीं शताब्दी ईसवी में कामरूप से उत्तरी बर्मा होकर चीन जाने वाला मार्ग अत्यधिक प्रयोग होने लगा था। बहुत से यात्री भारत से चीन इस मार्ग द्वारा ही जाते थे। एक दूसरा रास्ता बिहार से तिब्बत होते हुए चीन जाता था। तबकात ए नासिरी के अनुसार बहुत से व्यापारी इस मार्ग द्वारा घोड़े लाते थे। इब्नखुर्ददबा अल मसूदी, अल इदंरिसी तथा अलबेरूनी के अनुसार उत्तर-पश्चिमी भारत के मार्ग से बहुत से व्यापारी ईरान तक जाते थे। इन मार्गों के कारण प्राचीन भारतीय व्यापार ने बहुत उन्नति की।

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प्रश्न 13.
सैन्धव कालीन तौल – प्रणाली एवं वैदिक कालीन विनिमय व्यवस्था को समझाइए।
अथवा
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –

  1. सैंधव काल में तौल प्रणाली।
  2. वैदिक कालीन विनिमय व्यवस्था।

उत्तर:
1. सैन्धव काल में तौल – प्रणाली – वस्तुओं को तौलने के लिए सैन्धव निवासी बाँटों एवं तराजू का प्रयोग करते थे। यहाँ 1, 2, 4, 8, 16, 32 एवं 64 इकाइयों के बाँट प्राप्त हुए हैं।

2. वैदिक कालीन विनिमय व्यवस्था – वैदिक काल के प्रारम्भिक चरण में वस्तु विनिमय प्रथा का ही प्रचलन था। गाय को मूल्य की इकाई मानकर विनिमय का कार्य किया जाता था। यद्यपि कालान्तर में सोने से बने ‘निश्क’ का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाने लगा। हालांकि इस काल में प्रचलित ‘निश्क’ एवं ‘शतमान’ को इतिहासकार मुद्रा न मानकर तौल के धातु खण्ड मानते हैं।

प्रश्न 14.
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में व्यापारियों की समृद्धि को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारतीय व्यापारियों की समृद्धि को एक दृष्टांत द्वारा समझाइए।
उत्तर:
ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह बात प्रमाणित होती है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में व्यापारी निश्चित रूप से धनाढ्य अथवा समृद्ध थे। इसका मुख्य प्रमाण वह व्यापार कर था जो पश्चिमी पंजाब के व्यापारी ईरान के सम्राट दारा को 360 टेलेंट सोने के चूर्ण के रूप में देते थे। 360 टेलेंट वर्तमान तौल के रूप में 9 टन 5 हंड्रिड वेट होता है। निश्चित रूप से यह उदाहरण तत्कालीन व्यापारियों की समृद्धि का द्योतक है।

प्रश्न 15.
कौटिल्य (चाणक्य) के अनुसार मौर्यकालीन बाजार व्यवस्था का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
क्या मौर्यकालीन व्यापार में विशिष्टीकरण के तत्व विद्यमान थे? उदाहरण सहित समझाइए।
अथवा
आप कैसे कह सकते हैं कि मौर्यकालीन व्यापार में विशिष्टीकरण था?
उत्तर:
कौटिल्य (चाणक्य) के अनुसार मौर्यकालीन बाजार व्यवस्था में विशिष्टीकरण के तत्व विद्यमान थे। यही कारण था कि बड़े – बड़े नगरों में भिन्न – भिन्न वस्तुओं के अलग – अलग बाजार हुआ करते थे। मांस, चावल, रोटी एवं मिठाई आदि खाद्य पदार्थों के लिए अलग दुकानों की व्यवस्था होती थी। विभिन्न क्षेत्र अलग – अलग वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध थे। जैसे – कश्मीर, कौशल, विदर्भ और कलिंग हीरे के लिए, हिमाचल प्रदेश चमड़े के लिए, बंगाल मलमल के लिए तथा ताम्रपर्ण पाण्ड्य व केरल मोतियों के लिए प्रसिद्ध थे। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि मौर्यकाल में व्यापार पर राज्य का पूरा नियंत्रण था।

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प्रश्न 16.
मौर्यकाल में व्यापार पर नियन्त्रण के लिए कौन – कौन से अधिकारी नियुक्त किये गये थे?
उत्तर:
मौर्यकाल में व्यापार पर नियन्त्रण रखने के लिए कई अधिकारी नियुक्त किये जाते थे। जिनमें वाणिज्य की देखभाल के लिए ‘पण्याध्यक्ष’, तौल का निरीक्षण करने कि लिए ‘पौलवाध्यक्ष तथा पुलों पर चुंगी वसूल करने के लिए नियुक्त ‘शुल्काध्यक्ष’ प्रमुख थे। इनके द्वारा एवं इनके जैसे अन्य अधिकारियों के द्वारा राज्य व्यापार पर पूर्ण नियन्त्रण रखता था।

प्रश्न 17.
‘गुप्त काल में भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केन्द्र हो गया।’ इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से गुप्तकाल की संक्षिप्त समीक्षा कीजिए।
अथवा
गुप्त काल में भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केन्द्र कैसे था?
उत्तर:
गुप्त काल के दौरान भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केन्द्र हो गया था। इस काल में भारत का व्यापार पश्चिम में मिस्र, ग्रीस, रोम, ईरान, अरब, सीरिया और पूर्व में श्रीलंका, कम्बोडिया, स्याम, सुमात्रा, मलय प्रायद्वीप और चीन से हो रहा था। इतने वृहत पैमाने पर विदेशों से व्यापार नि:संदेह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का चरमोत्कर्ष था। गुप्त काल में विदेशी व्यापार के साथ – साथ आन्तरिक व्यापार भी अत्यधिक विकसित अवस्था में था।

प्रश्न 18.
प्राचीन भारत के समृद्ध विदेशी बाजार को क्षति पहुँचाने वाली किन्हीं दो घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारत के अन्तर्राष्ट्रीय बाजार/व्यापार को कुप्रभावित करने वाली दो स्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत के समृद्ध विदेशी बाजार को क्षति पहुँचाने वाली दो घटनाएँ थीं – पाँचवीं सदी ई. के अन्त तक रोमन साम्राज्य का पतन और ईरान के सासानी साम्राज्य का पतन। इन दोनों घटनाओं से भारत को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार/व्यापार बहुत कुप्रभावित हुआ क्योंकि इन दोनों से भारत के बहुत अच्छे एवं घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे। इन घटनाओं के बाद अरब के निवासियों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में वर्चस्व बढ़ने लगा। आगे चलकर अरबी व्यापारियों ने अरब सागर और हिन्द महासागर पर भी अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 19.
प्राचीन काल में व्यापारिक मार्गों की असुरक्षा और व्यापारियों में असुरक्षा की भावना के क्या कारण थे?
उत्तर:
प्राचीन काल में व्यापारी विभिन्न मार्गों पर चलने में अपने आप को असहज और असुरक्षित समझते थे क्योंकि डाकुओं का भय उन्हें सताता रहता था इसलिये वह सामान्यतः काफिले बनाकर चलते थे। गुप्त काल में चीनी यात्री युवानच्चांग को भी दो बार लूटा गया था। इस काल में चोर व डाकुओं के अलावा सामन्त भी व्यापारियों को लूट लिया करते थे। वास्तुपाल – चरित में मांडलिक घुगघुल द्वारा व्यापारियों के काफिलों के लुटने का वर्णन मिलता है। इसी कारण व्यापारी अपने घाटे को पूरा करने के लिए वस्तुओं को खरीद के मूल्य से तीन या चार गुने मूल्य पर बेचते थे।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)

प्रश्न 1.
गुप्त काल में कितने प्रकार के व्यापारियों का उल्लेख मिलता है? इनकी सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
‘श्रेष्ठी’ और ‘सार्थवाह’ कौन थे? इनकी सामाजिक स्थिति का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार गुप्त काल में दो प्रकार के व्यापारियों का उल्लेख मिलता है – श्रेष्ठी और सार्थवाह। नगर में श्रेष्ठियों की अत्यधिक प्रतिष्ठा होती थी। इसी प्रतिष्ठा के कारण जिला परिषद् में इनका एक प्रतिनिधि सम्मिलित किया जाता था। ये अपना व्यापार करने के साथ – साथ व्यापारियों को ब्याज पर धन भी उधार देते थे।

सार्थवाह व्यापारियों के काफिले के नेता होते थे। काफिलों की सुरक्षा का दायित्व इन्हीं के ऊपर रहता था। समाज में इनको भी अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी। अतः इनका भी एक प्रतिनिधि जिला परिषद् का सदस्य होता था।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि श्रेष्ठी और सार्थवाह को तत्कालीन समय में प्रतिष्ठित सामाजिक स्थिति प्राप्त थी। साथ ही साथ राजनीतिक गतिविधियों में भी इनका योगदान होता था।

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प्रश्न 2.
ईसा पूर्व 600 से 300 ई. तक के समुद्री व्यापार की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत के व्यापारी इस काल खण्ड में समुद्र द्वारा ही व्यापार करते थे जिसका वर्णन बौधायन ने अपने वृत्तान्तों में किया है। रामायण में भी कई स्थानों पर समुद्र के बीच में भारी बिक्री की वस्तुओं की बड़ी नाव की उपमा दी गई है। प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में व्यापारियों के समुद्र पार जाने का उल्लेख है। जातकों में कई स्थानों पर ऐसे जहाजों का उल्लेख है जो दूर की यात्रा के लिये पूर्णतया मस्तूल पाल आदि से सुसज्जित होते थे।

सिकन्दर ने अपने आक्रमण के दौरान क्षत्रिय नाम के गणराज्य के निवासियों को 30 पतवार वाले जहाज प्रदान किये थे। जातकों द्वारा भी स्पष्ट किया गया है कि इस काल खण्ड में ऐसे भी जहाज थे जिनमें 1000 यात्रियों या पशुओं सहित 7 काफिले यात्रा कर सकते थे। स्ट्रेबो ने भी लिखा है कि मौर्य शासकों का जहाज बनाने के शिल्प पर एकाधिकार था।

मिलिन्दपबह में लिखा है कि भारतीय, जहाज से बंगाल, मलय प्रायद्वीप, चीन, गुजरात, कठियावाड़ सिकन्दरियां कारोमण्डल तट, पूर्वी द्वीप समूह आदि अनेक प्रदेशों को जाते थे और उनके स्वामी अमीर हो गये थे।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत की विनिमय प्रणाली का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में व्यापार बहुत ही उन्नत अवस्था में था परन्तु प्रारम्भ में व्यक्ति वस्तु से वस्तु बदलकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे जिसे वस्तु विनिमय कहा जाता है। गाय को मूल्य की इकाई मानकर विनिमय का काम चलाया जाता था। बाद में स्वर्ण निर्मित ‘निश्क’ का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाने लगा। शतपथ ब्राह्मण (एक ग्रन्थ) में ‘शतमान’ का उल्लेख मिलता है जो दक्षिणा देने के काम आता था। इतिहासकारों का यह मानना है कि निश्क और शतमान तोल के धातु खण्ड रहे होंगे।

परन्तु इनको मुद्रा नहीं माना जा सकता है। सिन्धु और पश्चिम पंजाब के निवासी ईरान के सम्राट दारा को 360 टेलेंट सोने का चूर्ण कर (Tax) के रूप में देते थे। सैन्धव निवासियों ने वस्तुओं को तोलने के लिये तराजू और बांटों का प्रयोग भी शुरू कर दिया था। प्राचीन भारत की विनिमय प्रणाली संक्रमण काल में थी। दूसरे शब्दों में इसमें वस्तु विनिमय के साथ – साथ मुद्रा विनिमय के लक्षण भी दिखाई देने लगे थे।

प्रश्न 4.
गाँवों में वस्तुओं के विनिमय के लिए गुप्त काल में क्या व्यवस्था थी? समीक्षा कीजिए।
अथवा
वस्तुओं की बिक्री के लिए गुप्तकालीन ‘होटों’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुप्त काल में कुछ गांवों के समूहों के मध्य एक सप्ताह या पखवाड़े के बाद किसी एक गाँव में हाट लगता था जिससे गाँव की उत्पादित वस्तुओं का विनिमय या बिक्री होती थी। स्थानीय आवश्यकता से अधिक की वस्तुओं को व्यापारी खरीदकर उन स्थानों पर ले जाते थे जहाँ उनकी मांग होती थी तथा अन्य स्थानों से गांवों की हाटों में बेचने के लिए वस्तुएँ लाते थे जिनका उत्पादन उन गाँवों में नहीं होता था। इस प्रकार गाँवों में गुप्त काल में ‘हाटों’ द्वारा बिक्री का एक अच्छा नेटवर्क था। गुप्त काल में हाट या बाजार की ऐसी व्यवस्था से यह बात स्पष्ट होती है कि इस प्रकार की बाजार व्यवस्था में आधुनिकता के पुट विद्यमान थे जिसके लक्षण आज भी भारत के दूर – दराज के क्षेत्रों में दिखायी देते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि गुप्त काल में आन्तरिक व्यापार अत्यन्त विकसित अवस्था में था।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 1 प्राचीन भारत में व्यवसा: स्वरूप एवं व्यवहार

प्रश्न 5.
हर्षोंत्तर काल में व्यापार एवं वाणिज्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हर्ष के काल में व्यापार में जो प्रगति हो रही थी वह हर्षोत्तर काल में रूक गयी। इस काल में व्यापार में भारी गिरावट आई। हर्ष के बाद छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ इससे विकेन्द्रीय शासन व्यवस्था को बल मिला तथा सामन्तवाद फला – फूला। तुर्को के आगमन तक देश में सामन्तवाद अपने उत्कर्ष पर पहुँच चुका था। अतः इस काल में केन्द्रीय शासन की कमी के कारण आन्तरिक और विदेशी व्यापार की सम्पन्न परम्परा को भारी हानि उठानी पड़ी तथा भारतीय व्यापार रसातल की ओर बढ़ता चला गया।

प्रश्न 6.
“मौर्य काल में विशाल मगध साम्राज्य में स्थल मार्गों का एक जाल सा बिछा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मौर्यकाल में पूरे मगध साम्राज्य में कई राजमार्ग थे। प्रमुख राजमार्ग, उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ता था। यह मार्ग उज्जैन, विदिशा, कौशाम्बी और साकेत होते हुए श्रावस्ती तक जाता था। दूसरा मार्ग पश्चिमी घाट को पूर्वी घाट से जोड़ता था। वह भृगुकच्छ से कौशाम्बी होता हुआ ताम्रलिप्ति तक ज़ाता था। तीसरा राजमार्ग पूर्वी भारत को पश्चिमी भारत से जोड़ता था। चौथा मार्ग चम्पा से पुष्कलावती तक जाता था, पांचाल का, प्रसिद्ध नगर कमीपल्प और शाकल भी इसी मार्ग में पड़ते थे। आगे चलकर यह मार्ग तक्षशिला तक पहुँचता था। इस प्रकार स्पष्ट है कि पूरे मगध साम्राज्य में राजमार्गों का जाल बिछा हुआ था।

उपर्युक्त विवरण से प्रकारान्तर से यह सिद्ध होता है कि मौर्यकाल में व्यापार की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी क्योंकि यातायात की आधारभूत संरचनाओं (सड़कों आदि) का विकास व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है। जैसा कि ऐतिहासिक विवरणों से स्पष्ट है कि मौर्यकाल में आन्तरिक व्यापार के साथ – साथ विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था में था। इसमें निश्चित रूप से मार्गों की भूमिका महत्वपूर्ण रही होगी।

प्रश्न 7.
मौर्योत्तर भारत में किन व्यापारिक मार्गों की प्रतिष्ठा हुई? समझाइए।
उत्तर:
मौर्योत्तर भारत में तीन व्यापारिक मार्गों की प्रतिष्ठा हुई। जिनमें से प्रथम मार्ग पाटलिपुत्र से कौशाम्बी और उज्जैन होते हुए बैरीगाजा तक जाता था। दूसरा मार्ग पाटलिपुत्र से मथुरा और सिन्धु घाटी होते हुए बैक्ट्रिया तक जाता था तथा तीसरा मार्ग पाटलिपुत्र से प्रारम्भ होकर वैशाली और श्रावस्ती होते हुए नेपाल तक जाता था। ये तीनों मार्ग मौर्योत्तर काल के प्रसिद्ध एवं प्रमुख मार्ग थे। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस काल में दक्षिण भारत में दो प्रमुख व्यापारिक मार्ग अवस्थित थे। पहला मार्ग मछलीपट्टम से शुरू होता था और दूसरा विनकोंड से। ये दोनों मार्ग कुछ दूर अलग – अलग चलने के बाद एक स्थान पर मिल जाते थे और पुनः एक मार्ग के रूप में हैदराबाद, कल्याण, पैंठान और दौलताबाद होते हुए बैरीगाजा पहुँचते थे।

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प्रश्न 8.
भारतीय व्यापार के सांस्कृतिक प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय व्यापार का सांस्कृतिक प्रभाव अत्यन्त व्यापक था। चीन, जापान, कोरिया, फिलीपीन्स इन सभी देशों में व्यापारिक आदान – प्रदाने के कारण ही बौद्ध धर्म यहाँ पर तेजी से फला – फूला। चीन जाने वाले प्रथम भारतीय धर्म प्रचारक धर्म रत्न और कश्यप मातंग थे जो अपने साथ बौद्ध धर्म ग्रन्थ और बुद्ध की अस्थियाँ ले गए थे। व्यापारिक कारणों की वजह से ही ईसा की प्रथम सदी में दक्षिण – पूर्वी देशों में भारत के व्यापारी बड़ी संख्या में बस गए।

कालान्तर में सम्पूर्ण इण्डोनेशिया तथा इण्डोचीन में जगह – जगह पर भारतीयों के राज्य स्थापित हो गए। यहाँ भारतीय संस्कृति को प्रभाव आज भी दृष्टिगोचर होता है। इण्डोचीन, मलाया और जावों में आज भी नाटक, नृत्य, अभिनय एवं कठपुतलियों के खेलों के विषय रामायण, महाभारत एवं पौराणिक कथाओं से ही लिए जाते हैं। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय व्यापार को सांस्कृतिक प्रभाव अत्यन्त व्यापक था जिसके प्रभाव आज भी विदेशों में दिखाई देते हैं।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारत में गुप्त काल की व्यापारिक स्थिति का वर्णन विस्तार से कीजिए।
अथवा
गुप्तकालीन व्यापारिक व्यवस्था की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
गुप्त काल में व्यापार:
गुप्त काल में व्यापार चरम सीमा पर था। इस समय भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया था क्योंकि भारत का व्यापार पश्चिम में मिस्र, ग्रीस, रोम, ईरान, अरब, सीरिया, पूर्व में लंका, कम्बोडिया, स्याम, सुमात्रा, मलय प्रायद्वीप और चीन से हो रहा था। गुप्त काल में दो प्रकार के व्यापारियों का उल्लेख मिलता है – श्रेष्ठी और सार्थवाह। जिनकी समाज और नगर में प्रतिष्ठा होने के कारण इनका जिला परिषद् में एक प्रतिनिधि सम्मिलित किया जाता था। गुप्त काल में कई गाँवों के समूहों के बीच में प्रत्येक सप्ताह या पखवाड़े के बाद किसी एक गाँव में हाट लगता था।

जिससे गाँव में बनने वाली वस्तुओं का आदान – प्रदान (विनिमय) या बिक्री आसानी से हो जाती थी और आवश्यकता से अधिक जितनी भी वस्तुएँ होती थीं उन्हें व्यापारी खरीदकर दूर के उन स्थानों पर ले जाते थे जहाँ उनकी मांग होती थी। व्यापारी अपने माल को खरीदकर मूल्य से तीन या चार गुने मूल्य पर बेचते थे। देश में नदियों द्वारा नावों पर लादकर भी व्यापारी माल दूर के स्थानों पर ले जाते थे। गुप्त काल में भारत के विभिन्न उद्योग उपने चरमोत्कर्ष पर थे। वस्त्र उद्योग की उन्नति जोरों पर थी। लौह उद्योग भी उन्नत था। महरौली को लौहस्तम्भ उस समय के लौह उद्योग की प्रगति का उत्कृष्ट उदाहरण है।

लेकिन पाँचवीं सदी ई. के अन्त तक रोमन साम्राज्य के पतन के कारण भारत के समृद्ध विदेशी व्यापार को ग्रहण लग गया। इससे पूर्व रोमन साम्राज्य के साथ भारत का व्यापार बड़ी मात्रा में होता था। इस स्थिति में ईरान के ‘सासानी’ साम्राज्य के पतन के बाद अरब के लोगों ने थल मार्ग पर अपना अधिकार जमा लिया तथा आगे चलकर अरबी व्यापारियों ने अरब सागर और हिन्द महासागर पर भी अपना अधिकार कर लिया।

गुप्त काल में व्यापारिक कर:
गुप्त काल में राज्य व्यापारियों को सुरक्षा प्रदान करता था तथा बदले में निर्धारित शुल्क वसूल करता था। लेकिन उस समय व्यापारियों पर करों को बोझ अधिक नहीं था। विदेशों से आयात होने वाले तथा देश में निर्मित होने वाले पदार्थों पर कर लगाया जाता था जिसे उस समय ‘भूतोवाव प्रत्याय’ कहा जाता था। गुप्त काल में व्यापार की स्थिति अच्छी थी। राज्य व्यापारियों एवं व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा करता था। राज्य व्यापारियों की सुविधा के लिए उन्हें जिला परिषद् में भी प्रतिनिधित्व प्रदान करता था।

विदेशी व्यापार की दृष्टि से भी उस समय व्यापार अपने चरम पर था। उस समय व्यापारी स्वतन्त्रतापूर्वक व्यापार कर सकते थे। अतः देश धन – धान्य से पूर्ण था। उस समय व्यापारी विदेशों से बड़ी मात्रा में सोना – चाँदी तथा अन्य मूल्यवान वस्तुएँ लाते थे। उपर्युक्त विवरण से गुप्त काल की सुदृढ़, सुव्यवस्थित एवं प्रगतिशील व्यापारिक स्थिति स्पष्ट होती है। गुप्त शासकों के व्यापार के प्रति प्रगतिशील दृष्टिकोण ने तत्कालीन समय में व्यापार को अपने चरम पर पहुँचा दिया।

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प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में भारतीय संस्कृति के विस्तार के कारणों को स्पष्ट करते हुए विदेशों में भारतीय संस्कृति की छाप को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति के विदेशों में प्रचार – प्रसार का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में भारतीय संस्कृति के विस्तार के दो प्रमुख कारण थे – व्यापारिक आदान – प्रदान एवं धर्म के प्रचार की प्रवृत्ति। यदि हम व्यापारिक आदान – प्रदान की समस्त गतिविधियों का सूक्ष्मता से परीक्षण करें तो पाएंगे कि चीन, जापान, कोरिया, फिलीपीन्स आदि देशों में भारतीय संस्कृति का विस्तार अथवा प्रचार – प्रसार व्यापारिक आदान – प्रदान का ही परिणाम था। ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह बात प्रमाणित होती है कि व्यापारिक कारणों की वजह से ही ईसा की प्रथम सदी में दक्षिण पूर्वी देशों में भारतीय व्यापारी स्थाई रूप से बस गए।

कालान्तर में सम्पूर्ण इण्डोनेशिया एवं इण्डोचीन में भारतीयों के राज्य स्थापित हो गए। इसके कारण भारतीय संस्कृति को इन देशों के जनमानस के अन्त: करण पर अपना प्रभाव जमाने का अवसर प्राप्त हुआ। भारतीय संस्कृति का प्रभाव वर्तमान समय में भी इन देशों में देखा जा सकता है।

कम्बोडिया और स्याम में बैंकाक के रहने वाले पुरोहित और बौद्ध मतावलम्बी उपवीत अर्थात् जनेऊ धारण करते हैं। हिन्दू और बौद्ध मूर्तियों की पूजा करते हैं तथा राजसभाओं में पौरोहित्य कार्यों का अनुष्ठान करते हैं। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इण्डोचीन, मलाया एवं जावा में अभी तक नाटक, नृत्य, अभिनय तथा कठपुतलियों के खेलों के विषय महाभारत, रामायण और पौराणिक कथाओं से ही लिए जाते हैं।

भारतीय संस्कृति के विदेशों में प्रचार-प्रसार में व्यापारिक आदान – प्रदान के साथ – साथ धर्म प्रचार की प्रवृत्ति की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सम्भवतः इस प्रमुख कारण भारतीय संस्कृति में अध्यात्मिकता को अधिक स्थान मिलना है। चीन जाने वाले प्रथम भारतीय धर्म प्रचारक धर्म रत्न तथा कश्यप मातंग दो बौद्ध आचार्य थे जो अपने साथ बौद्ध धर्म ग्रन्थ के साथ – साथ बुद्ध की अस्थियों को भी ले गए थे। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति के विस्तार अथवा प्रचार – प्रसार में व्यापारिक गतिविधियों एवं धर्म – प्रचार की प्रवृत्ति की महती भूमिका रही।


पाठ्यपुस्तक में दिये चार्ट पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर

मुगल काल से स्वतंत्रता पूर्व तक प्रचलित भारतीय मुद्रा
3 फुटी कौड़ी = 1 कौड़ी
2 धेला = 1 पैसा
10 कौड़ी = 1 दमड़ी
4 पैसा = 1 आना
2 दमड़ी = 1 धेला
16 आना = 1 रुपया

अति लघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
मुगल काल से स्वतन्त्रता पूर्व तक प्रचलित भारतीय मुद्राओं के नाम बताइये?
उत्तर:
मुगल काल से स्वतन्त्रता पूर्व तक भारत में कौड़ी, धेला, पैसा, दमड़ी,आना, रुपया आदि मुद्रायें प्रचलित थीं।

प्रश्न 2.
वर्तमान में भारत में कौन-सी मुद्रा प्रचलित है?
उत्तर:
रुपया।

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प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता से पूर्व प्रचलित मुद्रा धेला “कितनी” दमड़ी के बराबर होता था?
उत्तर:
2 दमड़ी।

प्रश्न 4.
मुगल काल में एक “रुपया” कितने “आना” मूल्य के समकक्ष होता था?
उत्तर:
16 आना।

प्रश्न 5.
पाकिस्तान में मुगल काल के समय से प्रचलित मुद्राओं के नाम बताइये?
उत्तर:
पाकिस्तान में मुगलों के समय कौड़ी, धेला, पैसा, दमड़ी, आना, रुपया ही प्रचलित मुद्रा थी। मुगल काल के समय पाकिस्तान भारत का ही अभिन्न भाग था।

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लघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
मुगलकाल से स्वतन्त्रता पूर्व तक प्रचलित भारतीय मुद्राओं का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
3 फुटी कौड़ी = 1 कौड़ी
10 कौड़ी = 1 दमड़ी
2 दमड़ी = 1 धेलो
2 धेला = 1 पैसा
4 पैसा = 1 आना
16 आना = 1 रुपया

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