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RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

July 11, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्तमान भारतीय अधिनियम 2013 को राष्ट्रपति ने कब अपनी सहमति प्रदान की थी?
(अ) 20 अगस्त, 2013
(ब) 29 अगस्त, 2013
(स) 1 सितम्बर, 2013
(द) 29 सितम्बर, 2013
उत्तरमाला:
(ब) 29 अगस्त, 2013

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 2.
शाही आज्ञापत्र द्वारा किस कम्पनी की स्थापना हुई थी?
(अ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी
(ब) वेस्ट इण्डिया कम्पनी
(स) नार्थ इण्डिया कम्पनी
(द) साउथ इण्डिया कम्पनी
उत्तरमाला:
(अ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी

प्रश्न 3.
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 में कुल कितनी धाराएँ हैं?
(अ) 420 धाराएँ
(ब) 370 धाराएँ
(स) 470 धाराएँ
(द) 520 धाराएँ
उत्तरमाला:
(स) 470 धाराएँ

प्रश्न 4.
वर्तमान भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार निजी कम्पनी में अधिकतम सदस्य संख्या कितनी हो सकती है?
(अ) 200
(ब) 100
(स) 50
(द) 150
उत्तरमाला:
(अ) 200

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 5.
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 किस प्रकार की नई संकल्पना को प्रभाव में लाया –
(अ) एक सदस्य कम्पनी
(ब) गारन्टी द्वारा सीमित कम्पनी
(स) विदेशी कम्पनी
(द) सूत्रधारी कम्पनी
उत्तरमाला:
(अ) एक सदस्य कम्पनी

प्रश्न 6.
सरकारी कम्पनी की दशा में चुकता पूँजी को कम से कम कितना हिस्सा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों या मिश्रित रूप से धारण किया हुआ होना चाहिए?
(अ) 50%
(ब) 51%
(स) 75%
(द) 49%
उत्तरमाला:
(ब) 51%

प्रश्न 7.
एक सार्वजनिक कम्पनी में सदस्यों की न्यूनतम संख्या क्या होनी चाहिए?
(अ) 10
(ब) 20
(स) 7
(द) 15
उत्तरमाला:
(स) 7

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 8.
एक निजी कम्पनी को निम्न से कौन – सा प्रलेख बनाने की आवश्यकता नहीं है?
(अ) पार्षद सीमानियम
(ब) पार्षद अन्तर्नियम
(स) प्रविवरण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तरमाला:
(स) प्रविवरण

प्रश्न 9.
एक निजी कम्पनी में न्यूनतम कितने संचालक होने चाहिए?
(अ) 2
(ब) 3
(स) 4
(द) 7
उत्तरमाला:
(अ) 2

प्रश्न 10.
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 से पूर्व भारत में कौन सा अधिनियम था?
(अ) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1932
(ब) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1930
(स) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956
(द) कम्पनी अधिनियम, 1856
उत्तरमाला:
(स) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 11.
अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के लिए पार्षद सीमानियम का निम्न में से कौन – सा प्रारूप निर्धारित है?
(अ) तालिका A का प्रारूप
(ब) तालिका B का प्रारूप
(स) तालिका C का प्रारूप
(द) तालिका D का प्रारूप
उत्तरमाला:
(अ) तालिका A का प्रारूप

प्रश्न 12.
कम्पनी के निर्माण के लिए उसका प्रस्तावित नाम अवांछनीय नहीं होना चाहिए। अवांछनीय से आशय –
(अ) किसी अन्य कम्पनी या सीमित दायित्व साझेदारी के स्वीकृत नाम से मिलता – जुलती
(ब) किसी ट्रेडमार्क से मिलता – जुलता
(स) परम्परा, मान्यता व संस्कृति के विरुद्ध
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 13.
कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार कम्पनी को पंजीयन के कितने दिनों में अपना पंजीकृत कार्यालय तय कर लेना चाहिए जिससे सूचना सही पते पर भेजी जा सके –
(अ) 50 दिन
(ब) 60 दिन
(स) 30 दिन
(द) 15 दिन
उत्तरमाला:
(द) 15 दिन

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 14.
सार्वजनिक कम्पनी के सीमानियम पर कम से कम कितने अभिदाताओं के हस्ताक्षर होने चाहिए –
(अ) 2
(ब) 3
(स) 7
(द) 10
उत्तरमाला:
(स) 7

प्रश्न 15.
किस प्रकार की कम्पनी के पार्षद सीमानियम में उस व्यक्ति का नाम लिखा जाता है जो अभिदाता की मृत्यु अथवा अनुबन्ध के अयोग्य होने की दशा में कम्पनी का सदस्य बनेगा –
(अ) सार्वजनिक कम्पनी में
(ब) एक व्यक्ति वाली कम्पनी में
(स) निजी कम्पनी में
(द) सभी कम्पनियों में
उत्तरमाला:
(ब) एक व्यक्ति वाली कम्पनी में

प्रश्न 16.
यदि कम्पनी कोई ऐसा अनुबन्ध, व्यापार यो कारोबार करती है जो कि कम्पनी के पार्षद सीमानियम के बाहर है, वह होगा –
(अ) प्रवर्तनीय
(ब) व्यर्थ
(स) वैधानिक
(द) बाध्यकारी
उत्तरमाला:
(ब) व्यर्थ

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 17.
अन्तर्नियम है –
(अ) कम्पनी का चार्टर
(ब) कार्य – क्षेत्र का निर्धारक
(स) कम्पनी का पथ – प्रदर्शक
(द) सीमानियम का सहायक
उत्तरमाला:
(द) सीमानियम का सहायक

प्रश्न 18.
कम्पनी के आन्तरिक नियमों का उल्लेख होता है –
(अ) प्रविवरण में
(ब) पार्षद अन्तर्नियम में
(स) पार्षद सीमानियम में
(द) शेल्फ प्रविवरण में
उत्तरमाला:
(ब) पार्षद अन्तर्नियम में

प्रश्न 19.
रचनात्मक सूचना का सिद्धान्त सुरक्षा प्रदान करता है –
(अ) कम्पनी को बाह्य पक्षकार के विरुद्ध
(ब) बाह्य पक्षकार को कम्पनी के विरुद्ध
(स) निदेशकों को कम्पनी के विरुद्ध
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) कम्पनी को बाह्य पक्षकार के विरुद्ध

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 20.
आन्तरिक प्रबन्ध का सिद्धान्त सुरक्षा प्रदान करता है –
(अ) बाह्य पक्षकार को कम्पनी के विरुद्ध
(ब) कम्पनी को बाह्य पक्षकार के विरुद्ध
(स) प्रवर्तकों को
(द) उपर्युक्त सभी को
उत्तरमाला:
(अ) बाह्य पक्षकार को कम्पनी के विरुद्ध

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कम्पनी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
कम्पनी, कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत निर्मित कुछ लोगों का समूह है जो कृत्रिम व्यक्तित्व, पृथक्. वैधानिक अस्तित्व, शाश्वत उत्तराधिकार रखती है तथा जिसकी एक सार्वमुद्रा होती है।

प्रश्न 2.
कम्पनी के सदस्यों के सीमित दायित्व का सिद्धान्त भारत में कब लागू किया गया?
उत्तर:
सन् 1857 (बीमा और बैंकिंग को छोड़कर)।

प्रश्न 3.
“कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है।” कैसे?
उत्तर:
कम्पनी एक प्राकृतिक व्यक्ति के समान सम्पत्ति रख सकती है, ऋण दे सकती, ले सकती है, अनुबन्ध कर सकती है, दूसरे पर वाद प्रस्तुत कर सकती है तथा दूसरे इस पर वाद कर सकते हैं, लेकिन यह मानवोचित क्रियायें नहीं कर सकती, इसलिये इसे कृत्रिम व्यक्ति कहा जाता है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 4.
निजी कम्पनी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी अधिनियम के अनुसार – निजी कम्पनी का तात्पर्य ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा –

  • अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है।
  • ऐसे सदस्यों की संख्या (एकल व्यक्ति कम्पनी को छोड़कर) 200 तक सीमित रखती है।
  • जो जनता को अपने अंशों व ऋणपत्रों को क्रय करने के लिये आमन्त्रित नहीं करती।

प्रश्न 5.
सूत्रधारी कम्पनी किसे कहते है?
उत्तर:
सूत्रधारी कम्पनी से तात्पर्य किसी ऐसी कम्पनी से है जिसका किसी अन्य कम्पनी या कम्पनियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण होता है।

प्रश्न 6.
“एक व्यक्ति कम्पनी” किसे कहते है?
उत्तर:
“एक व्यक्ति कम्पनी” से तात्पर्य उस कम्पनी से है जिसका केवल एक ही सदस्य होता है।”

प्रश्न 7.
कम्पनी व्यापार प्रणाली की आवश्यकता क्यों हुई?
उत्तर:
व्यापार जगत में अत्यधिक जोखिम, सीमित पूँजी, असीमित दायित्व, असुरक्षित निवेश की समस्याओं के समाधान हेतु कम्पनी व्यापार प्रणाली की आवश्यकता हुई।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 8.
पार्षद सीमानियम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पार्षद सीमानियम एक महत्वपूर्ण एवं आधारभूत प्रलेख है जो कम्पनी की शक्तियों और उसके कार्यक्षेत्र को निर्धारित करता है जिसके आधार पर कम्पनी कार्य करती है।

प्रश्न 9.
पार्षद सीमानियम की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • यह कम्पनी के कार्यक्षेत्र की सीमाओं को स्पष्ट करता है।
  • यह कम्पनी के समार्मेलन के उद्देश्यों का उल्लेख करता है।

प्रश्न 10.
गारन्टी द्वारा सीमित कम्पनी जिसमें अंश पूँजी होती है, वह किस प्रारूप में पार्षद सीमानियम बनाती है?
उत्तर:
तालिका C में।

प्रश्न 11.
पार्षद सीमानियम कम्पनी का मार्गदर्शक होता है। समझाइये।
उत्तर:
पार्षद सीमानियम कम्पनी को सही दिशा प्रदान करने एवं महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करता है, इसलिये इसे कम्पनी का मार्गदर्शक कहते हैं।

प्रश्न 12.
अन्तर्नियमों से आप क्या समझते है?
उत्तर:
अन्तर्नियम कम्पनी के आन्तरिक नियम होते हैं जो कम्पनी के आन्तरिक कार्यों का प्रबन्ध और संचालन करने में सहायता करते हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 13.
रचनात्मक सूचना के सिद्धान्त से आप क्या समझते है?
उत्तर:
रचनात्मक सूचना का सिद्धान्त कम्पनी को बाह्य पक्षकारों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है।

प्रश्न 14.
आन्तरिक प्रबन्ध का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
आन्तरिक प्रबन्ध का सिद्धान्त बाह्य पक्षकारों को कम्पनी के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। इसका प्रतिपादन सन् 1856 में रॉयल ब्रिटिश बैंक बनाम टरक्वांड के मामले में किया गया था।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नये कम्पनी अधिनियम, 2013 की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
नये कम्पनी अधिनियम, 2013 की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं –

  1. निवेशकों की सुरक्षा हेतु कम्पनियों द्वारा पूँजी जुटाने हेतु जारी किये जाने वाले प्रविवरण के नियमों को अधिक कठोर एवं प्रभावी बनाया गया है और स्थानापन्न प्रविवरण का प्रावधान भी बन्द कर दिया गया है।
  2. कम्पनी की प्रथम वार्षिक सभा की अवधि समामेलन के 18 माह से घटाकर केवल 9 माह कर दी गयी है।
  3. निजी कम्पनी में अधिकतम संख्या 200 का प्रावधान किया गया है।
  4. निगमिय मामलों में “कपट” को परिभाषित किया गया है तथा इसमें कड़े दण्ड की व्यवस्था की गई है।
  5. कम्पनी के उचित संचालन हेतु ई – प्रबन्ध/प्रशासन सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 2.
कम्पनी की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
कम्पनी की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. कम्पनी विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति है।
  2. कम्पनी का अपने सदस्यों एवं संचालक मण्डल से पृथक् वैधानिक अस्तित्व होता है।
  3. कम्पनी का अस्तित्व कम्पनी की सार्वमुद्रा लगाकर प्रकट किया जाता है।
  4. कम्पनी व्यक्तियों का स्वैच्छिक संघ है, जो लाभार्जन के उद्देश्य से बनाया जाता है।
  5. कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है।
  6. कम्पनी के अंशों को हस्तान्तरित किया जा सकता है।
  7. कम्पनी द्वारा निर्गमित अंश तथा ऋणपत्र अपेक्षाकृत कम मूल्य के होने के कारण सामान्य व्यक्ति भी उसमें अपनी पूँजी निवेश कर सकता है।

प्रश्न 3.
सदस्यों की संख्या के आधार पर कम्पनियों के प्रकार बताइये।
उत्तर:
सदस्यों की संख्या के आधार पर कम्पनियों के निम्न प्रकार हैं –
1. एकल व्यक्ति कम्पनी – एकल व्यक्ति कम्पनी से तात्पर्य उस कम्पनी से है जिसका केवल एक ही सदस्य होता है और उसका दायित्व सीमित होता है। इसमें कम से कम एक संचालक होना आवश्यक है और अधिकतम 15 संचालक हो सकते हैं।

2. निजी कम्पनी – कम्पनी अधिनियम के अनुसार निजी कम्पनी का तात्पर्य ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्नियम द्वारा –

  • अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है।
  • सदस्यों की संख्या (एकल व्यक्ति कम्पनी को छोड़कर) 200 तक सीमित रखती है।
  • जो जनता को अपने अंशों पर (यदि हो तो) हस्तान्तरण के अधिकार का प्रतिबन्ध लगाती है।

3. सार्वजनिक कम्पनी – सार्वजनिक कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से होता है जिसका समामेलन भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत होता है तथा जिसके अंशों को हस्तान्तरण स्वतन्त्रतापूर्वक किया जा सकता है। इसमें सदस्यों की न्यूनतम संख्या 7 तथा अधिकतम पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 4.
सूचीबद्ध कम्पनियाँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी कोई कम्पनी जो अपनी प्रतिभूतियों (ऋणपत्र, अंशों) के स्वतन्त्रतापूर्वक क्रय – विक्रय हेतु मान्यता प्राप्त पूँजी बाजार या स्टॉक एक्सचेन्ज में पंजीकृत या सूचीबद्ध करवाने की कार्यवाही करती है, तो वह सूचीबद्व कम्पनी कहलाती हैं। अर्थात् सूचीबद्ध कम्पनी की प्रतिभूतियाँ ही स्टॉक बाजार में स्वतन्त्रतापूर्वक क्रय – विक्रय की जा सकती है। सार्वजनिक कम्पनियों की प्रतिभूतियों – अंश, ऋणपत्र के स्वतन्त्रतापूर्वक क्रय – विक्रय हेतु मान्यता प्राप्त बाजार – बम्बई स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज आदि है।

प्रश्न 5.
साझेदारी एवं कम्पनी में प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर:
साझेदारी और कम्पनी में अन्तर –
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 1
प्रश्न 6.
एक सार्वजनिक कम्पनी एवं निजी कम्पनी में अन्तर बताइये।
उत्तर:
सार्वजनिक कम्पनी एवं निजी कम्पनी में अन्तर –
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 2

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी
प्रश्न 7.
कम्पनी के उद्देश्य वाक्य को तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
उत्तर:
उद्देश्य वाक्य कम्पनी का महत्वपूर्ण वाक्य होता है इसलिये इसे तैयार करते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए –

  1. कम्पनी का उद्देश्य अवैधानिक नहीं होना चाहिए।
  2. कम्पनी के उद्देश्य पूर्ण, विस्तृत एवं स्पष्ट होने चाहिए।
  3. उद्देश्य वाक्य में किसी प्रकार की कठोरता एवं संदिग्धता नहीं होनी चाहिए।
  4. कम्पनी अधिनियम द्वारा निषेध उद्देश्य नहीं होने चाहिए।
  5. कम्पनी के उद्देश्य सार्वजनिक हितों के पोषक होने चाहिए।

प्रश्न 8.
पार्षद सीमानियम कम्पनी का एक आधारभूत प्रलेख है, स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
पार्षद सीमानियम कम्पनी का आधारभूत प्रलेख होता है क्योंकि यह कमपनी की शक्तियों और उसके कार्यक्षेत्र को निर्धारित करता है जिसके आधार पर ही कम्पनी अपना कार्य सम्पादित करती है। इस प्रलेख को बनाये बिना कोई कम्पनी समामेलित नहीं हो सकती है। यह प्रलेख कम्पनी का नाम, स्थान, उद्देश्य, पूँजी एवं सदस्यों के दायित्व की सीमा आदि की जानकारी प्रदान करता है।

प्रश्न 9.
पार्षद सीमा नियम के दायित्व वाक्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कम्पनी चाहे सीमित दायित्व वाली हो या असीमित दायित्व वाली लेकिन पार्षद सीमानियम के अन्तर्गत कम्पनी के सदस्यों के दायित्व का उल्लेख होता हैं। अंशों द्वारा सीमित कम्पनी में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा लिये गये अंशों पर बकाया राशि तक सीमित रहेगा। गारन्टी द्वारा सीमित कम्पनी के सदस्यों का दायित्व कम्पनी के समापन पर उनके द्वारा दी गयी गारन्टी की राशि तक सीमित रहेग, इस बात का उल्लेख पार्षद सीमानियम के दायित्व वाक्य में होता है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 10.
कम्पनी के पंजीकृत कार्यालय के स्थान का क्या महत्व है?
उत्तर:
कम्पनी का रजिस्टर्ड कार्यालय किस राज्य में होगा? इस वाक्य के माध्यम से सम्बन्धित सदस्यों या जनता तो जानकारी प्राप्त हो जाती है और इस वाक्य के माध्यम से न्याय क्षेत्र की सीमा भी निर्धारित हो जाती है जिसके आधार पर कम्पनी देशी है या विदेशी, इसका भी आसानी से पता लग जाता है। पंजीकृत कार्यालय पर ही सदस्यों तथा जनता के अवलोकनार्थ मुद के रजिस्टर तथा अन्य आवश्यक सार्वजनिक प्रलेख रखे जाते हैं।

प्रश्न 11.
पार्षद सीमानियम व अन्तर्नियम में चार अन्तर बतलाइए।
उत्तर:
पार्षद सीमा नि मि और अन्तर्नियम में अन्तर –
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 3
प्रश्न 12.
अधिकार के बाहर के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी के सीमा नियम के उद्देश्य वाक्य में उन उद्देश्यों का उल्लेख होता है जिनकी पूर्ति हेतु कम्पनी का निर्माण किया जाता है लेकिन जब कोई कम्पनी पार्षद सीमा नियम द्वारा प्रदत्त सीमा के बाहर जाकर कोई कार्य करती है तो वह कार्य अधिकारों के बाहर का कार्य कहलाता है। भारत वर्ष में अधिकारों के बाहर के सिद्धान्त को सर्वप्रथम सन् 1866 में बम्बई के उच्च न्यायालय ने जहांगीर आर. मोदी बनाम शामजी लढ्ढा के विवाद में लागू किया था।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कम्पनी को परिभाषित करते हुये एसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
कम्पनी:
कम्पनी व्यक्तियों का ऐसा समूह है जिसका समामेलन किसी निश्चित उद्देश्य के लिए कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत होता है। जिसके सदस्यों का दायित्व सीमित होता है, जिसका अस्तित्व सदस्यों से पृथक् तथा स्थायी होता है एवं जिसके पास व्यक्ति के रूप में कार्य करने के लिए एक सार्वमुद्रा होती है।

‘कम्पनी’ शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। इसकी उत्पत्ति दो लैटिन शब्दों ‘कम’ और ‘पेनिस’ के मेल से हुई है जिनका अर्थ क्रमशः ‘साथ – साथ’ तथा ‘रोटी’ हैं। प्रारम्भ में ‘कम्पनी’ शब्द से आशय ऐसे व्यक्तियों के समूह से था जो “भोजन के लिए एकत्रित हुए हों।”

हैने के अनुसार – “ज्वॉइट स्टॉक कम्पनी लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से निर्मित एक ऐच्छिक संस्था है, जिसकी पूँजी अन्तरणीय अंशों में विभक्त होती है तथा जिसके स्वामित्व के लिए सदस्यता आवश्यक है।”

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (20) [Company Act, 2013 Sec. 2 (20)] के अनुसार, “कम्पनी से तात्पर्य इस अधिनियम अथवा पूर्ववर्ती किसी कम्पनी विधि के अन्तर्गत निगमित कम्पनी से है।”

इन परिभाषाओं के निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि “कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका वास्तविक कारोबार किन्हीं सजीव व्यक्तियों द्वारा कुछ सजीव व्यक्तियों के हित या लाभ के लिए किया जाता है।”

कम्पनी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. कृत्रिम व्यक्ति – कम्पनी विधान के प्रावधानों के अनुसार निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। कम्पनी प्राकृतिक मनुष्यों की तरह ही अपने नाम से सम्पत्ति खरीद सकती है, अपने नाम से प्राकृतिक व्यक्त्यिों के माध्यम से अनुबन्ध कर सकती है तथा अपने नाम से अन्य पक्षकारों पर न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकती है तथा अन्य पक्षकार भी कम्पनी के भी उतने ही व्यावसायिक दायित्व तथा अधिकार हो सकते हैं जितने कि एक प्राकृतिक व्यक्ति के होते हैं। इस प्रकार सभी वैधानिक उद्देश्य की पूर्ति की दृष्टि से कम्पनी भी ठीक उसी प्रकारे का एक व्यक्ति है जिस प्रकार एक प्राकृतिक व्यक्ति होता है।

2. पृथक् वैधानिक अस्तित्व – कम्पनी को अपने सदस्यों एवं संचालक मण्डल से पृथक् वैधानिक अस्तित्व होता है। दूसरे शब्दों में, कम्पनी का अस्तित्व उन लोगों या सदस्यों से भिन्न एवं स्वतन्त्र होता है जो कम्पनी की स्थापना करते हैं या उसके अंश खरीदते हैं।

3. शाश्वत उत्तराधिकारी – कम्पनी का अस्तित्व चिरस्थायी होता है। दूसरे शब्दों में कम्पनी को अविच्छिन्न/शाश्वत उत्तराधिकारी प्राप्त होता है। कम्पनी कभी भी मरती नहीं है इसका कारण यह है कि यह विधान के अधीन बनायी जाती है तथा केवल उसी विधान के अधीन ही उसका विघटन किया जा सकता है। इसके सदस्यों (अंशधारक) की मृत्यु, अक्षमता (पागलपन या अन्य अपंगता), दिवालियापन आदि का कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

4. सीमित दायित्व – कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है। सामान्यत: अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों के अंकित मूल्य के अदत्त भाग तक सीमित होता है। गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी की दशा में प्रत्येक सदस्य का दायित्व उनके द्वारा दी गयी गारण्टी की राशि तक सीमित होता है। उसे यह राशि कम्पनी के समापन की दशा में चुकानी पड़ती है। (असीमित दायित्व वाली कम्पनी के सदस्यों के दायित्व की कोई सीमा नहीं होती।)

5. हस्तान्तरणीय अंश – कम्पनी के अंश हस्तान्तरित किये जा सकते हैं। एक सार्वजनिक कम्पनी के अंशधारी अपने अंशों को कम्पनी के अन्तर्नियमों में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक हस्तान्तरित कर सकते हैं।

6. निगमिय अर्थव्यवस्था – कम्पनी के अंश अन्तरणीय होने के कारण इस व्यवस्था में अधिक से अधिक पूँजी कम से कम समय में प्राप्त की जा सकती है। कम्पनी का एक स्वतन्त्र व्यक्तित्व होने के कारण वह अपने अस्तियों की स्वामी हो सकती है तथा अपने दायित्व से बाध्य होती है।

7. अप्रत्यक्ष प्रबन्ध – कम्पनी की व्यवस्था तथा प्रबंधन में अंशधरियों का प्रत्यक्षतः कोई हाथ नहीं रहता है अर्थात् कम्पनी की व्यवस्था उसके स्वामित्व (अंशधारियों द्वारा योग्य एवं कुशल व्यक्तियों की निदेशक के रूप में नियुक्ति की जाती है।

8. पूँजी का स्थायित्व तथा कम्पनी की स्थिरता – निगमित कम्पनी की एक विशेषता यह भी है कि कम्पनी द्वारा निर्गमित अंश तथा ऋणपत्र अपेक्षाकृत कम मूल्य के होने के कारण सामान्य व्यक्ति भी उसमें अपनी पूँजी का निवेश कर सकता है तथा उन्हें हानि की संभावना कम रहती है। साथ ही, कम्पनी में पूँजी लगाने वाले व्यक्ति को अपने अंशों या ऋणपत्रों को आवश्यकतानुसार बेचकर पूँजी वापस लेने में सुविधा रहती है। इससे कम्पनी की पूँजी को स्थायित्व प्राप्त होने के अलावा उसकी स्थिरता भी बनी रहती है।

9. निवेशकों को हानि से संरक्षण – भारतीय दण्ड संहिता की धारा 11 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि व्यक्ति’ के अन्तर्गत कोई कम्पनी या व्यक्तियों का संगठन भी समाविष्ट है, चाहे वह साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (General Clauses Act, 1897) की धारा 2 (42) के अन्तर्गत निगमित हो अथवा न हो। अतः कम्पनी पर आपराधिक दायित्व अधिरोपित किया जा सकता है जिससे कम्पनी में पूँजी निवेश करने वाले निवेशकों को हानि के विरुद्ध पर्याप्त संरक्षण उपलब्ध होता है।

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प्रश्न 2.
कम्पनी अधिनियम 2013 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी अधिनियम, 2013 में कुल 29 अध्याय, 470 धाराएँ एवं 7 अनुसूचियाँ हैं। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. इसमें कम्पनी के कार्य की जवाबदेही एवं पारदर्शी तथा निवेशकों एवं कम्पनी का हित रखने वाले व्यक्तियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया गया है।
  2. कम्पनी की प्रथम वार्षिक सभा की अवधि समामेलन के 18 माह से घटाकर 9 माह कर दी गयी है।
  3. निजी कम्पनी की अधिकतम सदस्य संख्या 200 कर दी गई है।
  4. कम्पनी अपने 50% ऋणदाताओं के भुगतान करने में असफल रहती है तो बीमार कम्पनी घोषित करने के प्रावधानों के साथ उनके पुन: विकास की व्यवस्था भी तय की गई है।
  5. इस नये अधिनियम के अन्तर्गत ‘कपट’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। कपट की स्थिति में दण्ड की व्यवस्था की गई है।
  6. कम्पनी के विरुद्ध कुप्रबन्ध या दमन तथा बीमार कम्पनियों के मामलों में कार्यवाही के लिए “राष्ट्रीय कम्पनी कानून अधिकरण “NCLT” बनाया गया है।
  7. केन्द्र सरकार द्वारा कुछ विशेष प्रकार की कम्पनियों के निदेशक मण्डल में एक महिला निदेशक की नियुक्ति को अनिवार्य कर दिया गया है।
  8. कम्पनी द्वारा निर्गमित ऋणपत्रों को ऋण में सम्मिलित नहीं किया जा सकेगा।
  9. कम्पनी के कुशल संचालन हेतु ई-प्रबन्ध/प्रशासन सम्बन्धी व्यवस्थाओं की समावेश किया गया है।
  10. कम्पनी द्वारा पूँजी जुटाने हेतु निर्गमित किये जाने वाले प्रविवरण के नियमों को अधिक कठोर एवं प्रभावी बनाया है तथा स्थानापन्न प्रविवरण का प्रावधान भी समाप्त कर दिया है।
  11. एकल व्यक्ति कम्पनी की संकल्पना को प्रभाव में लाया गया है।
  12. निष्क्रिय कम्पनी के पंजीयन की व्यवस्था भी इस अधिनियम में की गयी है।
  13. कम्पनी लगातार तीन वर्षों में हुए सकल लाभ से 7.5 प्रतिशत राजनीतिक दलों को चन्दा दे सकती है।
  14. कम्पनी को अपने गत तीन वर्षों में औसत लाभ की 2 प्रतिशत राशि सामाजिक दायित्व पर अनिवार्य रूप से व्यय करनी होगी।
  15. कम्पनी से सम्बन्धित अवैध भीतरी व्यापार की रोकथाम के लिए पर्याप्त प्रावधान किये गये हैं।

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प्रश्न 3.
कम्पनी किसे कहते है? कम्पनी के प्रकार बताइये।
उत्तर:
कम्पनी:
कम्पनी व्यक्तियों का ऐसा समूह है जिसका समामेलन किसी निश्चित उद्देश्य के लिए कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत होता है जिसके सदस्यों का दायित्व सीमित होता है, जिसका अस्तित्व सदस्यों से पृथक तथा स्थायी होता है एवं जिसके पास व्यक्ति के रूप में कार्य करने के लिए एक सार्वमुद्रा होती है।

कम्पनी के प्रकार:
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1. निर्माण की विधि/सृजन स्रोत के आधार पर –
(a) शाही राजपत्र द्वारा निर्मित कम्पनी (चार्टर्ड कम्पनी) – राज्य के (शासक) द्वारा जारी किये गये शाही अधिकार पत्र द्वारा इस प्रकार की कम्पनियों का निर्माण होता है। इन कम्पनियों का प्रचलन इंग्लैण्ड में अधिक रहा है। ईस्ट इंडिया कम्पनी चार्टर्ड कम्पनी का ही उदाहरण है।

(b) संसद के विशेष अधिनियम द्वारा निर्मित कम्पनी (वैधानिक/स्टेच्यूटरी) – इन कम्पनियों की स्थापना संसद या राज्य विधानसभा द्वारा पारित विशेष विधानों द्वारा की जाती है। भारतीय जीवन बीमा निगम, औद्योगिक वित्त निगम, दामोदर घाटी परियोजना आदि संसद के विशेष विधान द्वारा निर्मित कम्पनी हैं।

(c) कम्पंनी अधिनियम द्वारा पंजीकृत कम्पनी (रजिस्टर्ड कम्पनी) – जो कम्पनी अधिनियम, 2013 अथवा पूर्व में चलन में रहे किसी भी कम्पनी कानून के तहत पंजीकृत या समामेलित हुई है, पंजीकृत कम्पनी कहलाती है।

2. सदस्यों के दायित्व के आधार पर –
(a) अंशों द्वारा सीमित (दायित्व वाली) कम्पनी – ऐसी कम्पनी अपनी पूँजी को कुछ निश्चित राशि के अंशों में बाँट देती है और प्रत्येक अंशधारी का दायित्वं उसके अंशों के अंकित मूल्य तक सीमित रहता है। ऐसी कम्पनियों को अपने नाम के साथ “सीमित” शब्द लिखना अनिवार्य है।

(b) गारन्टी द्वारा सीमित (दायित्व वाली) कम्पनी – इस कम्पनी में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा दी गयी गारन्टी की राशि तक सीमित रहता हैं। “चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स” इस प्रकार की कम्पनी का उदाहरण हैं।

3. सदस्यों की संख्या के आधार पर –
(a) एक व्यक्ति कम्पनी – एक व्यक्ति कम्पनी से तात्पर्य उस कम्पनी से है जिसकी केवल एक ही सदस्य होता है यह एक समामेलित एवं विधिक व्यक्ति है जिसका अपने एकमात्र सदस्य से पृथक् अस्तित्व होता है।

(b) निजी कम्पनी – निजी कम्पनी में सदस्यों की संख्या एकल कम्पनी को छोड़कर 200 हो सकती है। इनके अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध रहता है और अपनी प्रतिभूतियों के क्रय के लिए जनता को आमन्त्रित नहीं कर सकती है। इन कम्पनियों को अपने नाम के साथ “प्राइवेट लिमिटेड़” शब्द लगाना अनिवार्य होता है।

(c) सार्वजनिक कम्पनी – वह कम्पनी जो निजी कम्पनी नहीं है, सार्वजनिक कम्पनी कहलाती है, जिस पर निजी कम्पनी की तरह कोई प्रतिबन्ध नहीं होते हैं। यह जनता में पूँजी एकत्रित करने हेतु प्रविवरण जारी कर सकती है तथा इसके सदस्य अंश हस्तान्तरण के लिए स्वतन्त्र होते हैं।

4. नियन्त्रण के आधार पर –
(a) सूत्रधारी या नियन्त्रक कम्पनी – ज़ो कम्पनी किसी अन्य कम्पनी या कम्पनियों पर नियन्त्रण करती है, वह नियन्त्रण करने वाली कम्पनी अथवा सूत्रधारी कम्पनी कहलाती है।

(b) सहायक कम्पनी – जिस कम्पनी पर नियन्त्रण किसी अन्य कम्पनी द्वारा किया जाता है, वह सहायक कम्पनी कहलाती है।

(c) सहचारी या सम्बद्ध कम्पनी – ऐसी कम्पनी जिस पर किसी अन्य कम्पनी का सारवान या महत्वपूर्ण प्रभाव होता है किन्तु वह कम्पनी उस प्रभाव रखने वाली कम्पनी की सहायक कम्पनी नहीं होती है।

5. पूँजी बाजार के आधार पर –
(a) सूचीबद्ध कम्पनी – जो कम्पनी स्टॉक बाजार से पंजीकृत होती है तथा उनकी प्रतिभूतियों का स्टॉक एक्सचेंज पर क्रय – विक्रय किया जाता है, सूचीबद्ध कम्पनियाँ कहलाती है।

(b) असूचीबद्ध कम्पनी – ऐसी कम्पनियाँ जो स्टॉक बाजार से पंजीकृत नहीं होती है तथा इनके अंश – ऋणपत्र स्टॉक एक्सचेंज पर क्रय – विक्रय नहीं किये जा सकते हैं।

6. अन्य कम्पनियाँ –
(a) सरकारी कम्पनी – वह कम्पनी जिसकी चुकता अंश पूँजी से कम – से – कम 51% हिस्सा केन्द्र सरकार या राज्य सरकार या दोनों ने धारण किया हो, सरकारी कम्पनी कहलाती हैं।

(b) विदेशी कम्पनी – जिस कम्पनी का समामेलन या पंजीकरण भारत से बाहर हुआ हो किन्तु व्यापार किसी रूप से भारत में करती हो, विदेशी कम्पनी कहलाती हैं।

(c) फेरा कम्पनी – ऐसी कम्पनियाँ जो विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 के अन्तर्गत भारत में कार्यरत् है, फेरा कम्पनी कहलाती है।

(d) निष्क्रिय/प्रसुप्त कम्पनी – ऐसी कम्पनी जिसने गत दो वर्षों के कोई वित्तीय विवरण प्रस्तुत नहीं किये हो अर्थात् व्यापारिक कार्य का संचालन नहीं किया है, निष्क्रिय कम्पनी कहलाती है।

प्रश्न 4.
पार्षद सीमानियम की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विषय – वस्तु का वर्णन कीजिए?
उत्तर:
पार्षद सीमानियम – पार्षद सीमानियम एक महत्वपूर्ण एवं आधारभूत प्रलेख है। जो कम्पनी की शक्तियों और उसके कार्यक्षेत्र को निर्धारित करता है। जिसके आधार पर कम्पनी कार्य करती है।

न्यायाधीश चार्ल्सवर्थ के अनुसार – “पार्षद सीमानियम कम्पनी का अधिकार पत्र है जो उसकी शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करता है।”

पार्षद सीमानियम की विषय – वस्तु – पार्षद सीमानियम की विषय – वस्तु के अन्तर्गत निम्न बातों को सम्मिलित किया जाता है –
1. नाम वाक्य – इस वाक्य में कम्पनी का नाम लिखा जाता है। कम्पनी निम्नलिखित प्रतिबन्धों के अधीन कोई भी नाम चुन सकती है –

  • नाम किसी दूसरी कम्पनी के नाम से समरूप या मिलता – जुलता नहीं होना चाहिए।
  • सार्वजनिक कम्पनी को नाम के पश्चात् लिमिटेड तथा निजी कम्पनी को प्राइवेट लिमिटेड शब्द लगाना होता है।
  • नाम में ऐसा कोई शब्द नहीं जुड़ा होना चाहिए जिससे कि उसका सरकार से सम्बन्ध प्रतीत होता हो, जैसे स्टेट आदि।
  • कम्पनी के नाम में सहकारी शब्द शामिल नहीं होना चाहिए।

2. पंजीकृत कार्यालय वाक्य – इस वाक्य में कम्पनी को उस राज्य का नाम लिखना होता है जिस राज्य में कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है। यह न्यायालय की सीमा निर्धारित करता है तथा इसके आधार पर देशी या विदेशी कम्पनी की पहचान हो जाती है।

3. उद्देश्य वाक्य – यह पार्षद सीमानियम का अत्यन्त महत्वपूर्ण वाक्य है क्योंकि इसमें कम्पनी के उद्देश्यों का वर्णन किया जाता है। यह वाक्य कम्पनी के कार्य क्षेत्र की सीमा निर्धारित करता है। इसे तैयार करते समय पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि इसमें परिवर्तन सीमित रूप में न्यायालय की अनुमति से ही किया जा सकता है। उद्देश्य वाक्य को तैयार करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • कम्पनी के उद्देश्य वैध होने चाहिए।
  • इसका उद्देश्य सार्वजनिक नीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिए।
  • उद्देश्य अनैतिक नहीं होने चाहिए।

4. दायित्व वाक्य – यह वाक्य कम्पनी के सदस्यों के दायित्व को स्पष्ट करता है। अंशों द्वारा सीमित कम्पनियों की स्थिति में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि सदस्यों का दायित्व सीमित है। प्रत्याभूति द्वारा सीमित कम्पनी की दशा में यह उल्लेख होना चाहिए कि सदस्यों का दायित्व प्रत्याभूति द्वारा सीमित है।

5. पूँजी वाक्य – यह वाक्य कम्पनी की अंश पूँजी की राशि का वर्णन करता है। ऐसी पूँजी जिंससे कम्पनी को पंजीकृत किया जाता है, पंजीकृत या अधिकृत पूँजी कहलाती है। इसमें अंशों के विभाजन का उल्लेख भी करते हैं।

6. संघ वाक्य – इसमें कम्पनी का निर्माण करने वाले व्यक्ति यह घोषणा करते हैं कि वे कम्पनी का निर्माण करना चाहते हैं तथा योग्यता अंशों को लेने के लिए सहमत हैं। यह घोषणा – पत्र कम्पनी के सभी संचालकों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है।

7. नामांकन वाक्य -एकल व्यक्ति कम्पनी में पार्षद सीमानियम में उस व्यक्ति का नाम लिखा जाता है जो अभिदाता की मृत्यु अथवा उसके अनुबन्ध करने के अयोग्य होने की दशा में कम्पनी का सदस्य बन जायेगा। यह नाम उस व्यक्ति की लिखित सहमति के बाद ही लिखा जाता है।

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प्रश्न 5.
कम्पनी के जीवन में पार्षद सीमानियम के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी के जीवन में पार्षद सीमानिंयम का महत्व:
निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से कम्पनी के जीवन में पार्षद सीमानियम के महत्व को स्पष्ट किया जा सकता है –
1. महत्वपूर्ण एवं आधारभूत प्रलेख – पार्षद सीमानियम कम्पनी के जीवन में महत्वपूर्ण एवं आधारभूत प्रलेख माना गया है जो कम्पनी के अधिकार एवं कार्यक्षेत्र की जानकारी प्रदान करता है। जिसके आधार पर कम्पनी अपना कार्य सम्पादित करती है। इस प्रलेख को बनाये बिना कोई कम्पनी समामेलन प्रक्रिया पूर्ण नहीं कर सकती है।

2. कम्पनी की शक्तियाँ और अधिकारों का निर्धारण – जब कम्पनी का समामेलन होता है तब पार्षद सीमानियम के प्रलेख में कम्पनी के कार्यक्षेत्र के अलावा उसकी शक्तियों एवं अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख किया जाता है। कोई भी कम्पनी सीमानियम में दिये गये अधिकारों के बाहर जाकर अनुबन्ध नहीं कर सकती हैं। यदि कोई कम्पनी ऐसा करती है तो यह कम्पनी की शक्तियों के बाहर का होने के कारण व्यर्थ होगा।

3. कम्पनी का पथ – प्रदर्शक – पार्षद सीमानियम के प्रलेख में उद्देश्य वाक्य के अन्तर्गत कम्पनी खोलने के महत्वपूर्ण उद्देश्य का वर्णन किया जाता है और इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर कम्पनी अपनी योजनायें बनाने तथा उचित निर्णय लेने में सहायता लेती है।

4. ऋणदाताओं को विश्वास – पार्षद सीमानियम कम्पनी को ऋण उपलब्ध कराने वाले ऋणदाताओं को सुरक्षा प्रदान करता है क्योंकि जो भी ऋणदाता हैं, ऋण देने से पहले कम्पनी द्वारा प्रस्तुत पार्षद सीमानियम का अवलोकन कर लेते हैं। कम्पनी के प्रति ऋणदाताओं का विश्वास बन जाता है।

5. विनियोजकों का संरक्षण – कम्पनी के लिए महत्वपूर्ण साधन पूँजी होती है और यह पूँजी विनियोजकों से ही प्राप्त होती है लेकिन विनियोजकों को पूँजी लगाने से पहले कम्पनी के उद्देश्यों की जानकारी पार्षद सीमानियम के माध्यम से आसानी से हो जाती है। विनियोजक सीमानियम में वर्णित उद्देश्यों का मूल्यांकन कर अच्छी ख्याति वाली कम्पनियों में अपनी पूँजी लगाते है। इस प्रकार उनकी पूँजी सुरक्षित रहती है।

6. अन्य पक्षकारों में विश्वास – कम्पनी से व्यवहार रखने वाले अन्य पक्षकारों को विश्वास दिलाने में पार्षद सीमानिमय की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, इस प्रलेख को देखकर अन्य पक्षकारों को कम्पनी के अधिकार एवं सीमाओं की जानकारी हो जाती है तथा उन्हें कम्पनी के साथ अनुबन्ध करने में सरलता हो जाती है जो कम्पनियों के लिए हितकर होता है।

प्रश्न 6.
पार्षद सीमानियम से आप क्या समझते हैं? पार्षद सीमानियम और पार्षद अन्तर्नियम में अन्तर बताइये।
उत्तर:
पार्षद सीमानियम कम्पनी के संविधान और शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करता है इसमें कम्पनी से सम्बन्धित समस्त महत्वपूर्ण सूचनाओं का उल्लेख होता है। कम्पनी तथा कम्पनी से सम्बन्ध रखने वाले सभी पक्षकारों को कम्पनी की समस्त जानकारी इस प्रलेख के माध्यम से प्राप्त हो जाती है। इस प्रलेख से कम्पनी का नाम, स्थान, उद्देश्य, पूँजी एवं सदस्यों के दायित्व की सीमा आदि की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

न्यायाधीश चार्ल्सवर्थ के अनुसार – “पार्षद सीमानियम कम्पनी का अधिकार पत्र है जो उसकी शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करता है।”

पार्षद सीमा नियम एवं अन्तर्नियम में अन्तर
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प्रश्न 7.
पार्षद अन्तर्नियम से आप क्या समझते है? पार्षद अन्तर्नियम की विषय – वस्तु बताइये।
उत्तर:
पार्षद अन्तर्नियम का अर्थ एवं परिभाषा:
पार्षद अन्तर्नियम कम्पनी का पार्षद सीमानियम के बाद दूसरा महत्वपूर्ण प्रलेख है। इसमें कम्पनी की आन्तरिक प्रबन्ध व्यवस्था से सम्बन्धित नियम एवं उपनियमों का उल्लेख होता है। यह प्रबन्धकों, अधिकारियों एवं संचालक मण्डल की शक्तियों, कर्तव्यों एवं अधिकारों का वर्णन करता है। निजी कम्पनियों के लिए मॉडल अन्तर्नियम में कोई प्रारूप नहीं है। निजी कम्पनी के लिए अन्तर्नियम बनाना अनिवार्य है।

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (5) के अनुसार – “अन्तर्नियम से आशय किसी कम्पनी के ऐसे अन्तर्नियमों से है जो किसी पिछले कम्पनी अधिनियम या वर्तमान कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत मूल रूप से बनाया गया है या समय – समय पर परिवर्तित किया गया है।”

न्यायाधीश चार्ल्सवर्थ के अनुसार – “पार्षद अन्तर्नियम एक ऐसा प्रलेख है जो कम्पनी के सदस्यों के आपसी अधिकारों तथा उन रीतियों का नियमन करता है जिसके अनुसार कम्पनी का व्यापार चलाया जायेगा।”

पार्षद् अन्तर्नियम की विषय – वस्तु:
अन्तर्नियम की विषय – सामग्री में प्राय: निम्न बातों का समावेश होता है –

  1. अंश पूँजी की राशि एवं अंशों के विभिन्न वर्गों का उल्लेख
  2. प्रत्येक श्रेणी के अंशधारियों के अधिकार
  3. अंशों के आवंटन की कार्य – विधि
  4. अंश प्रमाण – पत्र निर्गम विधि
  5. अंश अपहरण एवं पुनर्निगमन की कार्य – विधि
  6. अंश हस्तांतरण विधि
  7. संचालकों की नियुक्ति एवं हटाने की कार्य – विधि
  8. संचालकों के कर्त्तव्य, अधिकार एवं पारिश्रमिक
  9. सभाएँ बुलाने की कार्य – विधि
  10. अंश याचनाओं के मध्यांतर का समय
  11. अंश पूँजी में परिवर्तन की विधि
  12. अंश पूँजी के पुनर्गठन की विधि
  13. प्रारम्भिक प्रसंविदों के पुष्टीकरण की विधि
  14. ऋण लेने के अधिकार एवं विधि
  15. अभिगोपकों के कमीशन भुगतान की विधि
  16. सदस्यों के मताधिकार
  17. लाभांश की घोषणा एवं लाभांश भुगतान की कार्यविधि
  18. कम्पनी के समापन से सम्बन्धित कार्य – विधि
  19. लेखा – पुस्तकों के रख – रखाव एवं अंकेक्षण से सम्बन्धित कार्य – विधि
  20. कम्पनी की मुद्रा (यदि हो तो)

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अखण्ड भारत में “कम्पनी प्रारूप का आरम्भ सन् 1600 में किस कम्पनी की स्थापना से हुआ –
(अ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी
(ब) वेस्ट इण्डिया कम्पनी
(स) नॉर्थ इण्डिया कम्पनी
(द) साउथ इण्डिया कम्पनी
उत्तरमाला:
(अ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी

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प्रश्न 2.
व्यवसायं जगत में कम्पनी व्यापार प्रणाली के उदय का कारण था –
(अ) अत्यधिक जोखिम
(ब) सीमित पूँजी
(स) असीमित दायित्व
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
ब्रिटिश संसद द्वारा ज्वॉइंट स्टॉक कम्पनी रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1844 के आधार पर भारत में कौन – सा अधिनियम बनाया गया –
(अ) कम्पनी अधिनियम, 1956
(ब) संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम 1850
(स) कम्पनी अधिनियम, 1913
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(ब) संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम 1850

प्रश्न 4.
भारत में कम्पनी अधिनियम 1956 प्रभावी रहा –
(अ) 30 अगस्त, 2013 तक
(ब) 29 अगस्त, 2013 तक
(स) 08 अगस्त, 2013 तक
(द) 18 दिसम्बर, 2012 तक
उत्तरमाला:
(अ) 30 अगस्त, 2013 तक

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प्रश्न 5.
कम्पनी अधिनियम, 2013 में कुल अध्याय हैं –
(अ) 12
(ब) 470
(स) 29
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) 29

प्रश्न 6.
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 में कुल कितनी अनुसूचियाँ हैं?
(अ) 12
(ब) 7
(स) 6.
(द) 15
उत्तरमाला:
(ब) 7

प्रश्न 7.
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार कम्पनी की प्रथम वार्षिक सभा की अवधि समामेलन के 18 माह से घटाकर कितने माह कर दी गयी है –
(अ) 10
(ब) 12
(स) 15.
(द) 9
उत्तरमाला:
(द) 9

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प्रश्न 8.
कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा कुछ विशेष प्रकार की कम्पनी के निर्देशक मण्डल में कितनी महिला निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गई है –
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(अ) एक

प्रश्न 9.
“कम्पनी” शब्द किस भाषा से लिया गया है –
(अ) लैटिन
(ब) जर्मनी
(स) फ्रांसिसी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) लैटिन

प्रश्न 10.
“कम्पनी” की अदृश्य, अमूर्त तथा कृत्रिम व्यक्ति है जिसका अस्तित्व केवल कानून की दृष्टि में ही होता है।” यह कथन है –
(अ) हने
(ब) न्यायमूर्ति मार्शल
(स) लार्ड लिण्डले
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) न्यायमूर्ति मार्शल

प्रश्न 11.
कम्पनी की विशेषता है –
(अ) कृत्रिम व्यक्ति
(ब) पृथक् वैधानिक अस्तित्व
(स) शाश्वत उत्तराधिकारी
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 12.
कम्पनी को नागरिकता का अधिकार प्राप्त नहीं है –
(अ) कम्पनी अधिनियम 2013 के तहत
(ब) भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत
(स) कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत

प्रश्न 13.
ऐसी, कोई कम्पनी जिसका निर्माण किसी शासक द्वारा जारी किये गये अधिकार पत्र के द्वारा होता है तो वह कहलाती है –
(अ) चार्टर्ड कम्पनी
(ब) वैधानिक कम्पनी
(स) रजिस्टर्ड कम्पनी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) चार्टर्ड कम्पनी

प्रश्न 14.
एकल व्यक्ति कम्पनी में अधिकतम संचालक हो सकते हैं –
(अ) 7
(ब) 18
(स) 15
(द) 12
उत्तरमाला:
(स) 15

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प्रश्न 15.
एकल व्यक्ति कम्पनी की अवधारणा को भारत में इस अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम अंगीकार किया है –
(अ) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1932
(ब) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956
(स) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1930
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 16.
फेरा कम्पनी भारत में किस अधिनियम के अन्तर्गत कार्यरत् है –
(अ) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013
(ब) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956
(स) विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973
(द) भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1930
उत्तरमाला:
(स) विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973

प्रश्न 17.
ऐसी कम्पनी जिसकी प्रतिभूतियाँ स्टॉक बाजार में स्वतन्त्र रूप से क्रय-विक्रय की जा सकती है, वह कम्पनी कहलाती
(अ) फेरा कम्पनी
(ब) सम्बद्ध कम्पनी
(स) प्रसुप्त कम्पनी
(द) सूचीबद्ध कम्पनी
उत्तरमाला:
(द) सूचीबद्ध कम्पनी

प्रश्न 18.
सार्वजनिक कम्पनी में अधिकतम सदस्य हो सकते हैं –
(अ) 200
(ब) 50
(स) कोई प्रतिबन्ध नहीं
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) कोई प्रतिबन्ध नहीं

प्रश्न 19.
सार्वजनिक कम्पनी में स्वतंत्र संचालक कुल संचालकों के होने चाहिए –
(अ) 1/3
(ब) 1/2
(स) 1/4
(द) 1/6
उत्तरमाला:
(अ) 1/3

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प्रश्न 20.
कम्पनी का संविधान तथा उसकी शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करने वाला प्रलेख है –
(अ) पार्षद सीमानियम
(ब) पार्षद अन्तर्नियम
(स) प्रविवरण
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) पार्षद सीमानियम

प्रश्न 21.
कम्पनी का आधारभूत प्रलेखं माना जाता है –
(अ) पार्षद अन्तर्नियम
(ब) पार्षद सीमानियम
(स) प्रविवरण
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) पार्षद सीमानियम

प्रश्न 22.
असीमित दायित्व वाली कम्पनी जिसमें अंश पूंजी हो, के लिये पार्षद सीमा – नियम का निम्न में से कौन – सा प्रारूप निर्धारित है?
(अ) तालिका B
(ब) तालिका C
(स) तालिका D
(द) तालिका E
उत्तरमाला:
(द) तालिका E

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प्रश्न 23.
कम्पनी को अपने समामेलन के कितने दिनों के भीतर उचित प्रारूप में आवश्यक प्रलेखों के साथ पंजीकृत कार्यालय की सूचना रजिस्ट्रार को प्रेषित करनी चाहिये।
(अ) 50 दिन
(ब) 60 दिन
(स) 30 दिन
(द) 15 दिन
उत्तरमाला:
(स) 30 दिन

प्रश्न 24.
यदि कोई कम्पनी नाम तथा पंजीकृत कार्यालय के पते के प्रकाशन से सम्बन्धित प्रावधानों का पालन नहीं करती तो दोषी कम्पनी या प्रत्येक दोषी अधिकारी पर अधिकतम दण्ड लगाया जा सकता है –
(अ) 50 हजार
(ब) 1 लाख
(स) 2 लाख
(द) 3 लाख
उत्तरमाला:
(ब) 1 लाख

प्रश्न 25.
कम्पनी के पार्षद सीमानियम में उद्देश्य वाक्य को तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें होती है –
(अ) कम्पनी के उद्देश्य अवैध एवं कानून के विरुद्ध नहीं होने चाहिए
(ब) उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिए
(स) उद्देश्य वाक्य पूर्ण तथा विस्तृत होना चाहिए
(द) उपरोक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपरोक्त सभी

प्रश्न 26.
जिस कम्पनी में अंश पूँजी नहीं होती है उस कम्पनी के पार्षद सीमानियम में वाक्य नहीं होता है –
(अ) उद्देश्य वाक्य
(ब) पूँजी वाक्य
(स) दायित्व वाक्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) पूँजी वाक्य

प्रश्न 27.
“अधिकारों के बाहर किया गया अनुबन्ध व्यर्थ होता है और उसका अंशधारियों की सर्वसम्मति से भी पुष्टिकरण नहीं किया जा सकता है।” कथन है –
(अ) लॉर्ड केयर्स का
(ब) न्यायाधीश चार्ल्सवर्थ का
(स) लॉर्ड सेलबोर्न का
(द) न्यायाधीश बोवेन का
उत्तरमाला:
(अ) लॉर्ड केयर्स का

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प्रश्न 28.
भारत वर्ष में अधिकारों के बाहर का सिद्धान्त’ को सर्वप्रथम इस वर्ष में लागू किया था –
(अ) सन् 1956 में
(ब) सन् 1866 में
(स) सन् 1600 में
(द) सन् 1960 में
उत्तरमाला:
(ब) सन् 1866 में

प्रश्न 29.
पार्षद अन्तर्नियम की विशेषता नहीं है –
(अ) यह सार्वजनिक प्रलेख है
(ब) इसमें कम्पनी के आन्तरिक नियम होते हैं
(स) यह कम्पनी का आधारभूत प्रलेख है
(द) यह कम्पनी का सहायक प्रलेख है
उत्तरमाला:
(स) यह कम्पनी का आधारभूत प्रलेख है

प्रश्न 30.
अंशों द्वारा सीमित कम्पनियों के लिये पार्षद अन्तर्नियम का निम्न में से कौन-सा प्रारूप निर्धारित है?
(अ) तालिका F
(ब) तालिका G
(स) तालिका में
(द) तालिका I
उत्तरमाला:
(अ) तालिका F

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कम्पनी अधिनियम, 2013 में कुल कितने अध्याय, धारायें एवं अनुसूचियाँ है?
उत्तर:
कुल 29 अध्याय, 470 धारायें एवं 7 अनुसूचियाँ हैं।

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प्रश्न 2.
नये कम्पनी अधिनियम, 2013 की दो विशेषतायें बताइये?
उत्तर:

  • कम्पनी द्वारा जारी किये ऋणपत्रों का ‘ऋण’ में समावेश नहीं होगा।
  • निजी कम्पनी की अधिकतम सदस्य संख्या 200 कर दी गई है।

प्रश्न 3.
संसद के विशेष अधिनियम द्वारा निर्मित दो कम्पनियों के नाम बताइये।
उत्तर:

  • औद्यौगिक वित्त निगम
  • दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन

प्रश्न 4.
सहायक कम्पनी किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोई भी कम्पनी जिसका नियन्त्रण किसी अन्य कम्पनी द्वारा किया जाता है, उसे सहायक कम्पनी के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 5.
सरकारी कम्पनी किसे कहते है?
उत्तर:
वह कम्पनी जिसकी चुकता अंश पूँजी का कम – से – कम 51% हिस्सा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों या दोनों द्वारा संयुक्त रूप से धारण किया जाता है उसे सरकारी कम्पनी कहते हैं।

प्रश्न 6.
केन्द्रीय सरकार की अनुमति से साझेदारी में अधिकतम सदस्य संख्या कितनी हो सकती है?
उत्तर:
100।

प्रश्न 7.
सार्वजनिक कम्पनी में न्यूनतम संचालक संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 8.
कम्पनी अपने शुद्ध लाभ का कितने प्रतिशत संचालकों को पारिश्रमिक के रूप में दे सकती है?
उत्तर:
11 प्रतिशत तक।

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प्रश्न 9.
पार्षद सीमानियम में “पूँजी वाक्य” को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस वाक्य में पूँजी का वर्णन होता है, जिसके द्वारा कम्पनी का पंजीयन होता है। इस वाक्य में पूँजी को निश्चित राशि के अंशों में बाँटकर लिखा जाता है।

प्रश्न 10.
एकल व्यक्ति कम्पनी के पार्षद सीमानियम पर कम – से – कम कितने अभिदाताओं के हस्ताक्षर होने चाहिए?
उत्तर:
एक।

प्रश्न 11.
पार्षद सीमानियम में नामांकन वाक्य की आवश्यकता किस प्रकार की कम्पनी को पड़ती है?
उत्तर:
एकल व्यक्ति कम्पनी को।

प्रश्न 12.
भारत वर्ष में अधिकारों के बाहर के सिद्धान्त को सर्वप्रथम कहाँ लागू किया था?
उत्तर:
सन् 1866 में बम्बई के उच्च न्यायालय ने जहाँगीर आर मोदी बनाम शामजी लढ्ढ़ा के विवाद में लागू किया था।

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प्रश्न 13.
पार्षद अन्तर्नियम की दो विशेषतायें बताइये।
उत्तर

  • इसमें कम्पनी के नियमों एवं उपनियमों का उल्लेख होता है।
  • पार्षद अन्तर्नियम सार्वजनिक प्रलेख है।

प्रश्न 14.
अंशों द्वारा सीमित कम्पनियों के लिए पार्षद अन्तर्नियम का कौन – सा प्रारूप निर्धारित है?
उत्तर:
तालिका F।

प्रश्न 15.
कम्पनी का आधारभूत प्रलेख किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पार्षद सीमानियम को।

प्रश्न 16.
कम्पनी में पार्षद अन्तर्नियम बनाने का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर:
यह कम्पनी के आन्तरिक प्रबन्ध एवं संचालन को नियन्त्रित करता है।

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प्रश्न 17.
कम्पनी के साथ अनुबन्ध करने वाले व्यक्तियों के हितों की सुरक्षा किस सिद्धान्त के द्वारा होती है?
उत्तर:
आन्तरिक प्रबन्ध के सिद्धान्त द्वारा।

प्रश्न 18.
आन्तरिक प्रबन्ध के सिद्धान्त का प्रतिपादन कब हुआ था?
उत्तर:
सन् 1856 में।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)

प्रश्न 1.
व्यवसाय जगत में कम्पनी व्यापार प्रणाली के उदय होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
व्यवसाय जगत में अत्यधिक जोखिम एवं सीमित पूँजी के कारण एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस हुई जिसमें पूँजीदाता का निवेश सुरक्षित रहे, हानि की दशा में व्यक्तिगत सम्पत्ति दाँव पर न लगे तथा व्यावसायिक ज्ञान व कुशलता के अभाव में भी व्यापारिक लाभ कमा सके, इसलिए कम्पनी व्यापार प्रणाली का जन्म हुआ।

प्रश्न 2.
कम्पनी अधिनियम, 1956 के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
उत्तर:
सरकार द्वारा श्री सी.एच. भाभा की अध्यक्षता में नये कानून निर्माण हेतु अक्टूबर 1950 में विशेष समिति गठित की गई जिसने 1952 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1956 में सरकार ने रिपोर्ट को स्वीकार कर नया कम्पनी अधिनियम, 1956 पारित किया, जो अनेक संशोधनों के साथ लागू किया गया था। जिसमें 658 धाराएँ एवं 15 अनुसूचियाँ थीं, जो 30 अगस्त, 2013 तक प्रभावी रहा है।

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प्रश्न 3.
कम्पनी किसे कहते हैं? समझाइये।
उत्तर:
कम्पनी व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिसका समामेलन किसी निश्चित उद्देश्य के लिये कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत होता है जिसके सदस्यों का दायित्व सीमित होता है, जिसका अस्तित्व सदस्यों से पृथक् तथा स्थायी होता है एवं जिसके पास व्यक्ति के रूप में कार्य करने के लिये सार्वमुद्रा होती है।

प्रश्न 4.
कम्पनी के पृथक् वैधानिक अस्तित्व से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
कम्पनी का अस्तित्व उन लोगों या सदस्यों से भिन्न एवं स्वतन्त्र होता है जो कम्पनी की स्थापना करते हैं या उसके अंश खरीदते हैं। पृथक् वैधानिक अस्तित्व के बावजूद भी भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत कम्पनी को नागरिकता का अधिकार प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 5.
असूचीबद्ध कम्पनियाँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी कम्पनियाँ जो स्टॉक बाजार में सूचीबद्ध नहीं है, गैर – सूचीबद्ध कम्पनियाँ कहलाती है। ऐसी कम्पनियाँ अपनी प्रतिभूतियों (अंश – ऋण पत्रों) का स्टॉक एक्सचेंज पर क्रय – विक्रय नहीं कर सकती हैं। सूचीबद्ध सार्वजनिक कम्पनियों की प्रतिभूतियों का क्रय – विक्रय स्वतन्त्रतापूर्वक मान्यता प्राप्त स्टॉक बाजार में किया जाता है।

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प्रश्न 6.
पार्षद सीमानियम की प्रमुख विशेषतायें बताइये।
उत्तर:
पार्षद सीमानियम की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं –

  1. यह कम्पनी का महत्वपूर्ण एवं आधारभूत प्रलेख होता है।
  2. इसमें कम्पनी के कार्यक्षेत्र और उद्देश्यों का वर्णन होता है।
  3. प्रत्येक कम्पनी को इसे अनिवार्य रूप से तैयार करना पड़ता है।
  4. यह एक सार्वजनिक प्रलेख है जो बाहरी व्यक्तियों से यह अपेक्षा रखता है कि उन्हें इस प्रलेख की विस्तृत जानकारी है।
  5. यह प्रलेख कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत बनाया जाता है।

प्रश्न 7.
अनुसूची – 1 की तालिका A के अनुसार अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के पार्षद सीमानियम में किन – किन बातों का वर्णन होना चाहिए?
उत्तर:
कम्पनी के पार्षद सीमानियम में निम्नलिखित बातों का वर्णन होना चाहिए।

  1. कम्पनी का नाम
  2. कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय
  3. कम्पनी के उद्देश्य
  4. कम्पनी के सदस्यों का दायित्व
  5. कम्पनी की पूँजी
  6. अभिदान हेतु घोषणा
  7. एकल व्यक्ति कम्पनी की दशा में नामांकन

प्रश्न 8.
पार्षद सीमानियम के ‘नाम वाक्य’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कम्पनी के पार्षद सीमानियम की विषय – वस्तु का यह प्रथम वाक्य है क्योंकि इसी के द्वारा कम्पनी की पहचान होती है। इस वाक्य के अन्तर्गत कम्पनी का नाम लिखा जाता है जिसका चुनाव संचालकों द्वारा किया जाता है। नाम का चुनाव ऐसा होना चाहिए जो किसी दूसरी कम्पनी से मिलता – जुलता नहीं हो। प्रत्येक सार्वजनिक कम्पनी को अपने नाम के साथ “लिमिटेड” तथा निजी कम्पनी को अपने नाम के साथ ‘प्राइवेट लिमिटेड’ शब्द अवश्य जोड़ना चाहिए।

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प्रश्न 9.
पंजीकृत कार्यालय की सूचना से आप क्या समझते है?
उत्तर:
कम्पनी के पंजीयन के 15 दिनों में उसे अपने पंजीकृत कार्यालय का निर्धारण कर लेना चाहिए जिससे सूचना एवं प्रलेख इस निर्धारित पते पर भेजे जा सकें। कम्पनी को अपने समामेलन के 30 दिनों के भीतर उचित प्रारूप में आवश्यक प्रलेख के साथ अपने पंजीकृत कार्यालय की सूचना रजिस्ट्रार को प्रस्तुत करनी चाहिए।

प्रश्न 10.
एकल व्यक्ति कम्पनी में अभिदाता की मृत्यु अथवा उसके अनुबन्ध करने के अयोग्य होने की दशा में पार्षद सीमा नियम में क्या प्रावधान है?
उत्तर:
एकल व्यक्ति कम्पनी की दशा में पार्षद सीमा नियम में उस व्यक्ति का नाम लिखा जाता है जो अभिदाता की मृत्यु अथवा उसके अनुबन्ध करने के अयोग्य होने की दशा में कम्पनी का सदस्य बन जायेगा। यह नाम उस व्यक्ति की लिखित सहमति प्राप्त होने पर ही लिखा जाता है। यह सहमति कम्पनी के गठन के समय पार्षद सीमानियम व अन्तर्नियम के साथ रजिस्ट्रार को भेजी जाती है।

प्रश्न 11.
पार्षद सीमा नियम में परिवर्तन किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
कम्पनी में पार्षद सीमा नियम एक महत्वपूर्ण एवं आधारभूत प्रलेख है। जिसमें कम्पनी द्वारा एक विशेष प्रस्ताव पारित करके एवं कम्पनी अधिनियम के नियन्त्रण एवं नियमन के अधीन कम्पनी अपने नाम, पंजीकृत कार्यालय, कम्पनी का उद्देश्य, कम्पनी की पूँजी या दायित्व वाक्य में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 12.
पार्षद सीमानियम ऋणदाताओं के हितों की सुरक्षा किस प्रकार करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पार्षद सीमा नियम कम्पनी को ऋण उपलब्ध कराने वाले ऋणदाताओं की सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऋणदाता पार्षद सीमानियम का ठीक प्रकार से अध्ययन करके कम्पनी में जोखिम का अनुमान लगाकर ऋण देने या नहीं देने का निर्णय ले सकते हैं और अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं।

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प्रश्न 13.
पार्षद अन्तर्नियम क्या है? समझाइये।
उत्तर:
पार्षद अन्तर्नियम कम्पनी का दूसरा महत्वपूर्ण प्रलेख है जो, पार्षद सीमा नियम द्वारा शासित होता है तथा कम्पनी का सहायक प्रलेख माना जाता है जिसमें कम्पनी के आन्तरिक नियम होते हैं तथा कम्पनी के आन्तरिक कार्यों का प्रबन्ध और संचालन इन्हीं नियमों के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 14.
कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियम का पंजीयन कब और कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय जिस रजिस्ट्रार के क्षेत्र में स्थापित होगा, उसे रजिस्ट्रार के पास कम्पनी के पंजीयन के समय अन्तर्नियमों को फाइल करना होता है। जिसे कम्पनी निश्चित प्रारूप में प्रथम अभिदाताओं के द्वारा हस्ताक्षरयुक्त प्रपत्रों के साथ फाइल करती है।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)

प्रश्न 1.
कम्पनी अधिनियम, 2013 को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
कम्पनी अधिनियम, 1956 को प्रतिस्थापित करने हेतु एक नया कम्पनी विधेयक लोकसभा द्वारा 18 दिसम्बर, 2012 को तथा राज्यसभा द्वारा 8 अगस्त, 2013 को पारित किया गया। इस पारित विधेयक को 24 अगस्त, 2013 को महामहिम राष्ट्रपति द्व आरा अपनी सम्मति प्रदान कर कम्पनी अधिनियम, 2013 को वैधानिक स्वरूप प्रदान किया गया जिसमें कुल 29 अध्याय, 470 धाराएँ एवं 7 अनुसूचियाँ है। इस अधिनियम को एक युगान्तकारी एवं ऐतिहासिक कानून कहा गया है। इसमें कम्पनी के कार्य की व्यवस्था यथासम्भव पारदर्शी एवं जवाबदेह हो तथा निवेशकों एवं कम्पनी व्यापार में हित रखने वाले व्यक्तियों में या पक्षकारों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का सर्वाधिक प्रयास किया गया है।

प्रश्न 2.
“कम्पनी विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी का निर्माण, संगठन एवं समापन केवल विधान के द्वारा ही किया जाता है तथा यह प्राकृतिक व्यक्ति के समान कार्य करती है। इसका अस्तित्व इसके निर्माताओं अथवा विनियोक्ताओं से अलग होता है इसलिये इसे वैधानिक कृत्रिम व्यक्ति कहा जाता है। कम्पनी प्राकृतिक मनुष्य की तरह ही अपने नाम से सम्पत्ति खरीद सकती है, अपने नाम से प्राकृतिक व्यक्तियों के माध्यम से अनुबन्ध कर सकती है तथा अपने नाम से अन्य पक्षकारों पर न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकती है तथा अन्य पक्षकार भी कम्पनी पर वाद प्रस्तुत कर सकते है। न्यायमूर्ति मार्शल ने लिखा है कि “कम्पनी अदृश्य, अमूर्त तथा कृत्रिम व्यक्ति है जिसका अस्तित्व केवल कानून की दृष्टि में ही होता है।”

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 3.
निर्माण की विधि (सृजन स्रोत) के आधार पर कम्पनियों के प्रकार बताइये।
उत्तर:
निर्माण की विधि (सृजन स्रोत) के आधार पर कम्पनियों के प्रकार निम्नलिखित हैं –
1. शाही राजपत्र द्वारा निर्मित कम्पनी (चार्टर्ड कम्पनी) – राज्य के (शासक) द्व आरा जारी किये गये शाही अधिकार पत्र द्वारा इस प्रकार की कम्पनियों का निर्माण होता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी चार्टर्ड कम्पनी का ही उदाहारण है।

2. संसद के विशेष अधिनियम द्वारा निर्मित कम्पनी (वैधानिक/स्टेच्यूटेरी) – इन कम्पनियों की स्थापना संसद द्वारा पारित विशेष विधानों द्वारा की जाती है। इनका निर्माण राष्ट्रीय या राज्य के हित को ध्यान में रखकर किया जाता है जैसे दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन।

3. कम्पनी अधिनियम द्वारा पंजीकृत कम्पनी (रजिस्टर्ड कम्पनी) – जो कम्पनी अधिनियम, 2013 अथवा पूर्व में चलन में रहे किसी भी कम्पनी कानून के तहत पंजीकृत या समामेलित हुई है, पंजीकृत कम्पनी कहलाती है।

प्रश्न 4.
निष्क्रिय कम्पनी से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऐसी कम्पनी जो पंजीकृत हो जाती है जो भविष्य की परियोजना से सम्बन्ध रखती है, या जो भविष्य की परियोजना के लिये या किसी सम्पत्ति या बौद्धिक सम्पदा – पेटेन्ट की प्राप्ति के लिये कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होती है और कोई व्यावसायिक क्रिया नहीं करती है तो उसे निष्क्रिय कम्पनी कहते हैं। या कम्पनी ने गत दो वर्षों के कोई वित्तीय विवरण पत्र प्रस्तुत नहीं किये हों, तो वह कम्पनी निष्क्रिय कम्पनी कहलाती है।

प्रश्न 5.
कम्पनी के पार्षद सीमानियम में ‘अभिदाता वाक्य’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तंर:
पार्षद सीमानियम के इस वाक्य में कम्पनी के अभिदाताओं का विवरण होता है। इसमें कम्पनी के अभिदाताओं द्वारा इस बात की घोषणा की जाती है कि, “निम्न व्यक्ति जिनके नाम व पते नीचे दिये गये है, इस बात के इच्छुक है कि हमारा निर्माण इस पार्षद सीमा नियम के अधीन कम्पनी के रूप में हो जाये तथा हम अपने – अपने नाम के सामने लिखे अंशों की संख्या लेना स्वीकार करते है।” पार्षद सीमा नियम में सार्वजनिक कम्पनी की दशा में कम से कम 7 एवं निजी कम्पनी में कम – से – कम 2 तथा कोई निजी कम्पनी एकल व्यक्ति कम्पनी के रूप में पंजीकृत हुई है तो वहाँ कम – से – कम एक अभिदाता के हस्ताक्षर होते हैं। प्रत्येक अभिदाता के हस्ताक्षर को किसी साक्षी द्वारा प्रमाणित कराना होता है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 6.
रचनात्मक सूचना के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रचनात्मक सूचना सिद्धान्त के अन्तर्गत कम्पनी से व्यवहार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि उसको कम्पनी के पार्षद सीमानियम और अन्तर्नियम के बारे में पर्याप्त जानकारी है तथा उन्होंने इन प्रलेखों को पढ़ लिया है तथा उन्हें भलीभांति समझकर ही कम्पनी के साथ अनुबन्ध (समझौता) किया है चाहे उन्होंने इनको देखा, पढ़ा, सुना तथा समझा ही न हो। कम्पनी के साथ अनुबन्ध करने के पश्चात प्रलेखों की जानकारी के अभाव में यदि कोई व्यक्ति हानि उठाता है तो वह स्वयं इसके लिये उत्तरदायी होगा। इस सिद्धान्त से कम्पनियों को उनसे व्यवहार करने वाले वाहरी पक्षकारों से संरक्षण प्राप्त होता है।

प्रश्न 7.
पार्षद अन्तर्नियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइये?
उत्तर:
पार्षद अन्तर्नियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. पार्षद अन्तर्नियम कम्पनी का सार्वजनिक प्रलेख है जो कम्पनी के आन्तरिक प्रबन्ध का नियमन करता है।
  2. इसमें कम्पनी के नियमों, उपनियमों एवं विनियमों इत्यादि का उल्लेख होता है।
  3. यह एक परिवर्तनीय प्रलेख है। इसमें कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है।
  4. अन्तर्नियम पूर्ववर्ती कम्पनी विधान अथवा इस अधिनियम के अधीन बनाये हुए हो सकते हैं।
  5. यह कम्पनी के संचालकों एवं अधिकारियों की शक्तियों एवं कर्तव्यों को स्पष्ट परिभाषित करता है।
  6. निजी कम्पनियों के लिये मॉडल अन्तर्नियमों में कोई प्रारूप नहीं है। निजी कम्पनी के लिये अन्तर्नियम बनाना अनिवार्य है।

प्रश्न 8.
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 5 (6) तथा अनुसूची – 1 में विभिन्न प्रकार की कम्पनियों के पार्षद अन्तर्नियमों में कौन – कौन से प्रारूप दिये हैं?
उत्तर:
पार्षद अन्तर्नियम के विभिन्न प्रारूप निम्न हैं –

  1. तालिका F – अंशों द्वारा सीमित कम्पनियों के लिये।
  2. तालिका G – गारन्टी द्वारा सीमित कम्पनियाँ जिनमें अंश पूँजी है।
  3. तालिका H – गारन्टी द्वारा सीमित कम्पनियाँ जिनमें अंश पूँजी नहीं है।
  4. तालिका I – अंश पूँजी वाली असीमित कम्पनियाँ जिनमें अंश पूँजी है।
  5. तालिका J – असीमित कम्पनियाँ जिनमें अंश पूँजी नहीं है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 9.
कम्पनी पार्षद अन्तर्नियमों में किस प्रकार परिवर्तन करती है?
उत्तर:
कम्पनी विशेष प्रस्ताव पारित करके कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों का पालन करते हुए सीमानियम की सीमाओं के भीतर ही अन्तर्नियमों में परिवर्तन कर सकती है। कोई भी परिवर्तन कम्पनी अधिनियम या अन्य कानून के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। यदि अन्तर्नियमों में प्रावधान करके परिवर्तन पर रोक लगायी जाती है तो ऐसे प्रावधान व्यर्थ होते हैं। अन्तर्नियमों में परिवर्तन वैधानिक एवं कम्पनी के हित में होने चाहिए। परिवर्तन तभी प्रभावी माने जाते हैं जब रजिस्ट्रार के पास उनका पंजीयन करा लिया हो।

RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साझेदारी और कम्पनी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी और साझेदारी में अन्तर को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 6
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 7

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 2.
कम्पनी की परिभाषा दीजिए तथा एक निजी कम्पनी और सार्वजनिक कम्पनी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कम्पनी, कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत निर्मित कुछ लोगों का समूह है जो कृत्रिम व्यक्तित्व, पृथक् वैधानिक अस्तित्व, शाश्वत उत्तराधिकार रखती है तथा जिसकी एक सार्वमुद्रा होती है।

हैने के अनुसार – “ज्वॉइंट स्टॉक कम्पनी लाभ अर्जित करने के उददेश्य से निर्मित एक ऐच्छिक संस्था है जिसकी पूंजी अन्तर्राष्ट्रीय अंशों में विभक्त होती है तथा जिसके स्वामित्व के लिये सदस्यता आवश्यक है।”

निजी तथा सार्वजनिक कम्पनी में अन्तर –
RBSE Class 11 Business Studies Chapter 3 8
प्रश्न 3.
क्या सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी लाभ तथा दक्षता की दृष्टि से निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा कर सकती है? अपने उत्तर के कारण बताएँ।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी लाभ तथा दक्षता की दृष्टि से निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. आवश्यकता से अधिक मानव संसाधन – अधिकांश सार्वजनिक कम्पनियों में यह देखा जाता है कि उनमें मानव संसाधनों की अधिकता रहती है। उनका मानव संसाधन विभाग कुशलतापूर्वक मानव शक्ति को नियोजित नहीं कर पाता है। इसके परिणामस्वरूप कुछ कर्मचारी हमेशा अतिरिक्त बने रहते हैं इससे वस्तु एवं सेवा की उत्पादन लागत में अनावश्यक वृद्धि होती है।

2. औद्योगिक अशान्ति – सार्वजनिक कम्पनियों में आये दिन सरकार की विभिन्न नीतियों के विरोध में तथा कर्मचारियों की समस्याओं के कारण हड़ताल एवं तालाबन्दी होती रहती है। इससे इन उपक्रमों की उत्पादकता प्रभावित होती है।

3. दोषपूर्ण परियोजना नियोजन – सामान्यतया इन कम्पनियों में परियोजना नियोजन दोषपूर्ण पाया जाता है क्योंकि इनकी नीतियाँ एवं उद्देश्य स्पष्ट नहीं होते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की परियोजनाएँ सामान्यतया सरकार के निर्देशन पर निर्भर करती हैं अतः ये समय से पूर्ण नहीं हो पाती हैं। इससे इनकी लागत भी बढ़ जाती है।

4. दोषपूर्ण वित्तीय नियोजन – सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों में एक दोष प्रमुखता से पाया जाता है, वह है अतिपूँजीकरण वित्तीय नियोजन ठीक प्रकार न होने के कारण ये कम्पनियाँ पूँजी पर उचित प्रतिफल नहीं दे पाती हैं। इसके परिणामस्वरूप इनका लाभ कम हो जाता है।

5. अत्यधिक उपरिव्यय – सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों के लिए स्कूल, आवास, कैन्टीन आदि पर भी बड़ी मात्रा में खर्च करती हैं क्योंकि इन कम्पनियाँ का उद्देश्य जनता में एक अच्छे नियोक्ता की छवि बनाना भी होता है। अतः उन्हें इन व्यवस्थाओं पर व्यय करना आवश्यक हो जाता है। इससे इनके व्ययों में वृद्धि हो जाती है।

6. उत्पादन क्षमता का पूर्ण प्रयोग न होना – सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों में सामान्यतया अपनी पूर्ण उत्पादन क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता है जबकि स्थायी सम्पत्तियों पर व्यय में कोई कमी नहीं आती है। अतः इन कम्पनियों में उत्पादन लागत बढ़ जाती है।

7. दोषपूर्ण उत्पादन नियोजन – इन कम्पनियों में कब, कितना उत्पादन किया जाय इसकी कोई वैज्ञानिक योजना नहीं तैयार की जाती है जिसकी वजह से कभी उत्पादन आवश्यकता से अधिक हो जाता है तथा कभी आवश्यकता से कम रह जाता है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन लागत पर दबाव बना रहता है। कभी – कभी समय से वस्तुएँ प्राप्त नहीं हो पाती हैं।

8. कर्मचारी प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था का अभाव – इन कम्पनियों में कर्मचारियों के चयन के समय उनके प्रमाण – पत्रों पर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन योग्यता पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इनके प्रशिक्षण की भी उचित व्यवस्था नहीं की जाती है इससे ये पूर्ण दक्षता के साथ कार्य नहीं कर पाते हैं।

9. दोषपूर्ण प्रमोशन नीति – इन कम्पनियों में प्रमोशन की कोई वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं है। सरकार की विभिन्न नीतियों के आधार पर ही अवैज्ञानिक तरीके से इनमें प्रमोशन होता रहता है। इनके उच्चाधिकारियों के स्थानान्तरण भी जल्दी जल्दी होते रहते हैं इससे इनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है।

10. उद्देश्य – इन कम्पनियों का उद्देश्य निजी कम्पनियों की भाँति केवल लाभ कमाना नहीं होता है। ये सामाजिक समरसता, सामाजिक विकास, सरकारी नीतियों की पूर्ति, समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति, सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने आदि के उद्देश्य से भी कार्य करती हैं। अत: इनको लाभ निजी कम्पनियों के समान नहीं हो सकता है।

RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 3 कम्पनी

प्रश्न 4.
पार्षद सीमानियम के “नाम वाक्य” को विस्तार से समझाइये।
अथवा
कम्पनी को अपने नाम का चुनाव करते समय किन वैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
कम्पनी के पार्षद सीमानियम का यह महत्वपूर्ण प्रथम वाक्य है क्योंकि इसके माध्यम से ही कम्पनी की पहचान बनती है। साधारणतया एक कम्पनी किसी भी नाम का प्रयोग कर सकती है, किन्तु कोई ऐसा नाम जो कि किसी विद्यमान कम्पनी के समान है या उससे मिलता – जुलता है, केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुचित माना जा सकता है। इसी प्रकार जनता को धोखा देने वाले किसी नाम का भी प्रयोग नहीं किया जा सकता। सीमित दायित्व सार्वजनिक कम्पनियों के अन्त में शब्द ‘लिमिटेड’ तथा निजी सीमित कम्पनी के नाम के अन्त में शब्द “प्राइवेट लिमिटेड” अवश्य लिखा होना चाहिए।

कम्पनी नाम के चुनाव में वैधानिक प्रावधान:
कम्पनी के नाम का चुनाव करते समय निम्नलिखित वैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. कम्पनी का नाम किसी विद्यमान कम्पनी के समान या उससे मिलता जुलता नहीं होना चाहिए।
  2. कम्पनी का नाम ऐसा नहीं रखना चाहिए जिसका उपयोग करना देश के कानून के अधीन अपराध मान लिया जाये।
  3. कम्पनी के नाम में कोई ऐसा शब्द नहीं होना चाहिए जिससे यह प्रतीत होता हो कि उस कम्पनी को सरकार का संरक्षण प्राप्त है।
  4. कम्पनी को नाम केन्द्रीय सरकार की राय में अवांछनीय नहीं होना चाहिए।
  5. प्रतिबन्धित शब्द वाले नाम का प्रयोग करने से पूर्व केन्द्र सरकार की अनुमति प्राप्त करनी चाहिए।

नाम का रजिस्ट्रार से आरक्षण:
कम्पनी को अपना नाम आरक्षित करवाने के लिये निर्धारित शुल्क के साथ रजिस्ट्रार को प्रस्तुत करना चाहिए। कम्पनी का आवेदन प्राप्त करने के बाद रजिस्ट्रार प्रस्तुत की गयी सूचनायें एवं प्रलेखों के आधार पर कम्पनी के लिये उस नाम को आरक्षित कर देता है। यह आरक्षण 60 दिनों तक बना रहता है। यदि गलत सूचनाओं के आधार पर किसी कम्पनी को आरक्षण हो जाता है, उसके निम्न परिणाम हो सकते –

  1.  यदि कम्पनी का सममेलन नहीं हुआ है तो कम्पनी के लिये नाम के आरक्षण को निरस्त किया जायेगा और आवेदनकर्ता पर एक लाख रुपये तक का अर्थदण्ड लगाया जा सकेगा।
  2. यदि आरक्षित नाम से समामेलन हो गया है तो रजिस्ट्रार कम्पनी को सुनवाई का एक अवसर देने के बाद निम्न में से कोई भी कदम उठा सकता है –
    • कम्पनी को साधारण प्रस्ताव पारित कर नाम परिवर्तन का निर्देश देगा। यह परिवर्तन 3 माह के भीतर करना होगा।
    • कम्पनियों के रजिस्टर में से कम्पनी का नाम हटाना।
    • कम्पनी के समापन हेतु याचिका प्रस्तुत करना।

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प्रश्न 5.
“अधिकारों के बाहर का सिद्धान्त” से क्या आशय है? अधिकारों के बाहर के कार्यों के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कंम्पनी के सीमानियम के उद्देश्य वाक्य में उन उददेश्यों का उल्लेख होता है जिनकी पूर्ति हेतु कम्पनी का निर्माण किया जाता है। लेकिन जब कोई कम्पनी पार्षद सीमानियम द्वारा प्रदत्त सीमा के बाहर जाकर कोई कार्य करती है तो वह कार्य अधिकारों के बाहर का सिद्धान्त का कार्य कहलाता है। भारतवर्ष में अधिकारों के बाहर के सिद्धान्त को सर्वप्रथम सन् 1866 में बम्बई के उच्च न्यायालय ने जहाँगीर आर. मोदी बनाम शामजी लढ्ढा के विवाद में लागू किया था।

अधिकारों के बाहर के कार्यों का प्रभाव:
अधिकारों के बाहर किये गये कार्यों के प्रभाव निम्न प्रकार है –
1. कार्य व्यर्थ होना – अधिकारों के बाहर किये गये कार्य प्रारम्भिक अवस्था से ही व्यर्थ होते है। उसका कोई वैध प्रभाव नहीं होता है। कम्पनी इन कार्यों के लिये बाध्य नहीं होती हैं।

2. न्यायालय से निषेधाज्ञा – यदि कम्पनी अधिकारों के बाहर जाकर कोई कार्य करती है तो सदस्य न्यायालय से निषेधाज्ञा जारी करवा सकता है।

3. पुष्टि सम्भव नहीं – यदि कोई कम्पनी अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य करती है तो वह कार्य व्यर्थ एवं शून्य होता है, अनाधिकृत कार्यों की अंशधारियों द्वारा पुष्टि नहीं की जा सकती है।

4. वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता – सीमानियम के बाहर किये गये कार्य अनाधिकृत एवं व्यर्थ होते है। अधिकृत कार्यों के लिये न तो कम्पनी पर वाद चलाया जा सकता है और न ही कम्पनी किसी बाहरी पक्षकार पर वाद कर सकती है।

5. संचालकों को व्यक्तिगत दायित्व – संचालकों को कम्पनी की पूंजी का उपयोग अधिकृत कार्यों के लिए ही करना चाहिये। यदि वह पूँजी का अनाधिकृत कार्य के उपयोग करते हैं तो वे उसके लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होते हैं। पूँजी का दुरूपयोग करने पर कम्पनी का कोई भी सदस्य उन पर बाद प्रस्तुत कर सकता है।

6. अनाधिकृत कार्यों को दिया धन वसूल नहीं हो सकता – यदि किसी व्यक्ति, बैंक या संस्था ने कम्पनी को अनाधिकृत कार्यों के लिये धन उधार दिया है तो वह उस धन को वसूल नहीं कर सकता है। परन्तु कम्पनी अपनी इच्छा से भुगतान करना चाहे तो कर सकती है।

7. अधिकारों तथा शक्तियों से बाहर प्राप्त सम्पत्ति – यदि कम्पनी की धनराशि से अधिकारों तथा शक्तियों से बाहर कोई सम्पत्ति क्रय की गयी है तो वह कम्पनी के अधिकारों में रहती है, कम्पनी उसे रख सकती है।

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