Rajasthan Board RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 परमाणु संरचना
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रशन
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
तत्व के परमाणु क्रमांक 25 तथा परमाणु भार 55 है, तो उसके नाभिक में होंगे –
(अ) 25 प्रोटॉन और 30 न्यूट्रॉन
(ब) 55 प्रोटॉन
(स) 25 न्यूट्रॉन और 30 प्रोटॉन
(द)55 न्यूट्रॉन
प्रश्न 2.
H – स्पेक्ट्रम क्या दर्शाता है –
(अ) विवर्तन
(ब) ध्रुवण
(स) क्वांटीकृत ऊर्जा स्तर
(द) हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त
प्रश्न 3.
एक फोटॉन की ऊर्जा की गणना किसके द्वारा करते हैं –
(अ) E = hν
(ब) h = Ev
(स) h = \(\frac { E }{ V } \)
(द) E =\(\frac { H }{ V } \)
प्रश्न 4.
यदि n = 3 हो, तो 1 के लिए कौनसा मान गलत है –
(अ) 0
(ब) 1
(स) 2
(द) 3
प्रश्न 5.
किसी परमाणु के उपकोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या का निर्धारण निम्न के द्वारा किया जाता है –
(अ) 4l + 2
(ब) 2l + 1
(स) n2
(द) 2n2
उत्तर – तालिका:
1. (अ)
2. (स)
3. (अ)
4. (द)
5. (अ)
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
मानक ताप और दाब पर 34 mg NH3 में प्रोटॉनों की कुल संख्या बताइए।
उत्तर:
34 mg NH3 = 0.034 g
NH3 = 34 × 10-3 g NH3
17 g NH3 = 1 मोल NH3 = 10 मोल प्रोटॉन। (NHS के एक अणु में प्रोटॉनों की संख्या = 7 + 3 = 10)
अतः 34 × 10-3 g NH3 के मोल
= \(\frac { 34\times { 10 }^{ -3 } }{ 17 } \)
अतः प्रोटॉनों की कुल संख्या = मोल × आवोगाद्रो संख्या × 10
= \(\frac { 6.022\times { 10 }^{ 23 }\times { 34\times }{ 10 }^{ -3 } }{ 17 } \) × 10
= 12.04 × 1020
प्रश्न 7.
मेथेन के एक मोल उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
मेथेन (CH4) के एक अणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
= 6 + 4 = 10
अतः CH4 के एक मोल में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
= एक मोल में अणुओं की संख्या × एक अणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
= 6.022 × 1023 × 10
= 6.022 × 1024 इलेक्ट्रॉन
प्रश्न 8.
4d और 4f में से कौनसा कक्षक उच्च प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेगा?
उत्तर:
4d और 4f में से 44 उच्च प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेगा क्योंकि 4d के लिए n + l का मान (6), 4f की तुलना में (7) कम है।
प्रश्न 9
n = 4 तथा m = \(\frac { -1 }{ 2 } \) वाले उपकोश में कितने इलेक्ट्रॉन उपस्थित होंगे?
उत्तर:
n = 4 के लिए कक्षकों की संख्या = n2 = 42 = 16 तथा प्रत्येक कक्षक में उपस्थित एक इलेक्ट्रॉन के लिए m = \(\frac { -1 }{ 2 } \) होगा।
अतः n = 4 वाले उपकोशों में m = \(\frac { -1 }{ 2 } \) वाले 16 इलेक्ट्रॉन होंगे।
प्रश्न 10.
Fe तथा Cr में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बताइए।
उत्तर:
26Fe = 1s2, 2s2, 2p6, 3s2, 3p6, 3d6, 4s2
24Cr = 1s2, 2s2, 2p6, 3s2, 3p6, 3d5, 4s1
प्रश्न 11.
कक्षकों में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, कौनसी क्वांटम संख्या के मान पर निर्भर करती है?
उत्तर:
कक्षकों में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, मुख्य तथा द्विगंशी क्वांटम संख्या के मान पर निर्भर करती है।
प्रश्न 12.
निम्न इलेक्ट्रॉनिक विन्यास का परमाणु कौनसे आवर्त का सदस्य होगा – 1s2 2s2 2p63s1
उत्तर:
यह परमाणु तीसरे आवर्त का सदस्य है।
प्रश्न 13.
एक ग्राम भार में इलेक्ट्रॉनों की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
एक इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
= 9.1 × 10-28 g
= 9.1 × 10-31 kg
1 ग्राम = 10-3 kg
अतः भार में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
= \(\frac { { 10 }^{ -3 }{ kg } }{ 9.1\times { 10 }^{ -31 }{ kg } } \)
= 1.0989 × 1027 इलेक्ट्रॉन
= 1.099 × 1027 इलेक्ट्रॉन
प्रश्न 14.
एक मोल इलेक्ट्रॉन के आवेश को परिकलन कीजिए।
उत्तर:
एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश = 1.60219 × 10-19 C
अतः एक मोल इलेक्ट्रॉनों पर आवेश
= 1.60219 × 10-19 × 6.022 × 1023 (आवोगाद्रो संख्या)
= 9.648 × 104 C
= 9.65 × 104 C
प्रश्न 15.
सोडियम लैम्प द्वारा उत्सर्जित पीले प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (Å) 580 nm है, इसकी आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
उत्सर्जित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (λ) = 580 nm
= 580 × 10-9 m, c = 3 × 108 ms-1
आवृत्ति (v) = \(\frac { c }{ \lambda } \)
= \(\frac { 3\times { 10 }^{ 8 } }{ 580\times { 10 }^{ -9 } } \)
= 5.17 × 1014 s-1
प्रश्न 16.
निम्नलिखित नाभिकों में इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन की संख्या बताइये –
उत्तर:
किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या = परमाणु क्रमांक = प्रोटॉनों की संख्या
प्रश्न 17.
निम्न क्वांटम संख्याओं के सम्बद्ध कक्षक कौनसे हैं –
(i) n = 1, 1 = 0
(ii) n = 2, 1 = 2
(iii) n = 4, 1 = 3
(iv) n = 3, 1 = 2
उत्तर:
(i) 1s
(ii) कक्षक संभव नहीं है क्योंकि n = 2 के लिए l = 2 नहीं हो सकता।
(iii) 4f
(iv) 3d
प्रश्न 18.
H2+,O2+तथा H2 में इलेक्ट्रॉन की संख्या दीजिए।
उत्तर:
H2+, O2+ तथा H2 में इलेक्ट्रॉन की संख्या क्रमशः 1, 1s तथा 2 है।
प्रश्न 19.
प्रोटॉन व न्यूट्रॉन की खोज किन वैज्ञानिकों ने की?
उत्तर:
प्रोटॉन की खोज गोल्डस्टीन ने तथा न्यूट्रॉन की खोज चैडविक ने की थी।
प्रश्न 20.
मूलभूत कण कौनसे हैं?
उत्तर:
मुख्यतः इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन परमाणु के मूलभूत कण हैं।
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 21.
हाइड्रोजन परमाणु के पांचवें बोर कक्ष की त्रिज्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
हाइड्रोजन परमाणु के 7वें बोर कक्ष की त्रिज्या
rn = 0.529 × n2 Å ; n = 5
अत: r5 = 0.529 × 52
= 13.225 Å
= 1.3225 nm
प्रश्न 22.
यदि इलेक्ट्रॉन n = 3 से n = 2 में जाता है, तब विसर्जित ऊर्जा कितनी होगी?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन के n = 3 से n = 2 में जाने पर उत्सर्जित ऊर्जा
E3 – E2
= 1.88 ev
= 1.9 ev उत्तर
प्रश्न 23.
बोर सिद्धान्त के अनुसार इवें ऊर्जा स्तर के इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग क्या होगा?
उत्तर:
बोर सिद्धान्त के अनुसार इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग =
\(\frac { n{ h } }{ 2{ \pi } } \)
n = 5
अतः कोणीय संवेग = \(\frac { 5{ h } }{ 2{ \Pi } } \)
प्रश्न 24.
100 ms-1 वेग से चलित वस्तु की द ब्रोग्ली तरंग दैर्घ्य 6.62 × 10-35 m है, अतः m का मान क्या होगा?
उत्तर:
तरंगदैर्घ्य, (λ) = \(\frac { h }{ m{ v } } \)
अतः m = \(\frac { h }{ \lambda { v } } \)
= \(\frac { 6.62\times { 10 }^{ -34 } }{ 6.62\times { 10 }^{ -35 }\times 100 } \)
m = 0.1 kg
प्रश्न 25.
इलेक्ट्रॉन की संवेग में अनिश्चितता 1 × 10-5 kgmS-1 है तो स्थिति में अनिश्चितता ज्ञात करो।
उत्तर:
∆x × ∆p = \(\frac { { h } }{ 4{ \Pi } } \)
∆x = \(\frac { h }{ 4{ \Pi \times \Delta { P } } } \)
= 5.27 × 10-30 m
प्रश्न 26.
क्रोमियम परमाणु का मूल अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्या है?
उत्तर:
क्रोमियम का परमाणु क्रमांक 24 है, अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d5 4s1 है। इसमें 3d4 4s2 के स्थान पर 3d5 4s1 आता है क्योंकि अर्धपूरित विन्यास अधिक स्थायी होता है।
प्रश्न 27.
रूबीडियम (z = 37) के संयोजी इलेक्ट्रॉन के लिए चारों क्वांटम संख्या के मान लिखिए।
उत्तर:
रूबीडियम (z = 37) का बाह्यतम विन्यास [kr]5s1 होता है। अतः इसका संयोजी इलेक्ट्रॉन 5s है, इसलिए इसकी क्वांटम संख्याएं निम्न प्रकार होंगी –
n = 5, l = 0, m = 0, s = \(\frac { +1 }{ 2 } \)
प्रश्न 28.
तीन क्वांटम संख्या n, l, m मुख्य रूप से परमाणु के किस गुण को दर्शाती हैं?
उत्तर:
(i) मुख्य क्वांटम संख्या n परमाणु में कक्ष, कक्षक का आकार तथा ऊर्जा को दर्शाती है।
(ii) दिगंशी क्वांटम संख्या l परमाणु में उपकक्ष तथा कक्षक की आकृति बताती है।
(iii) चुंबकीय क्वांटम संख्या m परमाणु में कक्षक तथा इनका अभिविन्यास दर्शाती है।
प्रश्न 29.
हुण्ड के नियम के अनुसार किस तत्व में छः अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं?
उत्तर:
हुण्ड के नियम के अनुसार क्रोमियम ( z = 24) में 6 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं क्योंकि इसका बाह्यतम इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d54s1 होता है।
प्रश्न 30.
d इलेक्ट्रॉन के लिए कक्षक कोणीय संवेग क्या होगा?
उत्तर:
कक्षक कोणीय संवेग =
d के लिए l = 2 अतः
कक्षक कोणीय संवेग =
= \(\frac { 6{ h } }{ 2{ \pi } } \)
= \(\frac { 3{ h } }{ \Pi } \)
प्रश्न 31.
तत्व \(_{ 89 }^{ 231 }{ Y }\) में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन की संख्या कितनी होगी?
उत्तर:
इस तत्व में 89 प्रोटॉन, 89 इलेक्ट्रॉन तथा 142 न्यूट्रॉन हैं।
प्रश्न 32.
द्वितीय कक्षा और प्रथम कक्षा द्वारा घेरे गये क्षेत्रफल का अनुपात क्या है?
उत्तर:
कक्षा का क्षेत्र = 4πr²
अतः द्वितीय कक्षा और प्रथम कक्षा द्वारा घेरे गए क्षेत्रफल का अनुपात =
अतः
= 4 : 1
इसलिए द्वितीय कक्षा और प्रथम कक्षा के क्षेत्रफल का अनुपात = 4 : 1
प्रश्न 33.
N परमाणु में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति का क्या कारण है?
उत्तर:
N में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं, क्योंकि 2p उपकोश में तीन कक्षकों में इलेक्ट्रॉन हुण्ड के नियम के अनुसार एक-एक भरे जाते हैं –
N7 = 1s2 2s2 2p3
प्रश्न 34.
35 तथा 2p कक्षकों के रेडियल (त्रिज्य) नोडों की संख्या बताइए।
उत्तर:
त्रिज्य नोडों की संख्या = (n – 1)
अतः 3s तथा 2p में त्रिज्य नोड क्रमशः (3 – 1) तथा (2 – 1) अर्थात् 2 एवं 1 होंगे।
प्रश्न 35.
यदि (n + 1) = 6 है तो उपकोशों की कुल संभावित संख्या क्या होगी?
उत्तर:
n + 1 = 6 के अनुसार n एवं 1 के विभिन्न मोन निम्न प्रकार हो सकते हैं –
अतः कुल उपकोश = तीन
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 36.
बोर के परमाणु मॉडल के मुख्य आधार एवं अभिगृहीत समझाइये। बोर प्रतिरूप की कमियां क्या थीं?
उत्तर:
बोर (1913) ने हाइड्रोजन परमाणु की संरचना तथा इसके स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने के लिए एक मॉडल दिया। यह मॉडल प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त पर आधारित था, जिसके अभिगृहीत निम्न प्रकार हैं –
1. परमाणु में इलेक्ट्रॉन, नाभिक के चारों ओर निश्चित त्रिज्या तथा निश्चित ऊर्जा युक्त वृत्ताकार पथों में गति करता है। इन वृत्ताकार पथों को कक्षा या कक्ष (orbit or class) या स्थायी अवस्था या अनुमत ऊर्जा स्तर (Energy level) या कोश (Shell) कहते हैं। ये कक्षाएँ नाभिक के चारों ओर संकेन्द्रीय रूप में व्यवस्थित होती हैं। किसी इलेक्ट्रॉन के लिए स्थायी अवस्थाएँ n = 1, 2, 3……….. (मुख्य गंटम संख्या) होती हैं। किसी स्थायी ऊर्जा स्तर में गति करते समय इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा निश्चित रहती है। इस स्थिति में नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन के मध्य स्थिर वैद्युत आकर्षण बल (नाभिक की ओर) तथा इलेक्ट्रॉन का अपकेन्द्रीय बल (centrifugal force) (बाहर की तरफ) समान होता है।
माना कि m द्रव्यमान तथा e आवेश युक्त इलेक्ट्रॉन, r त्रिज्या के वृत्ताकार कक्ष में ze औवेश युक्त नाभिक के चारों ओर v वेग से गति करता है, तो नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन के मध्य स्थिर वैद्युत आकर्षण बल
2. एक इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग दी गयी स्थायी अवस्था में निम्नलिखित समीकरण के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
mevr = \(\frac { n{ h } }{ { 2 }\Pi } \)
यहाँ n = 1, 2, 3….
तथा
h = प्लांक स्थिरांक
अतः एक इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षों में गति करता है, जिनमें कोणीय संवेग का मान \(\frac { h }{ 27 } \) का पूर्ण गुणक होता है। यही कारण है कि कुछ निश्चित कक्ष ही अनुमत होते हैं।
3. जब इलेक्ट्रॉन निम्न स्थायी ऊर्जा स्तर से उच्च स्थायी ऊर्जा स्तर में जाता है तो एक निश्चित मात्रा में ऊर्जा का अवशोषण करता है। तथा इसके वापस उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में आने पर ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। यह ऊर्जा परिवर्तन सतत न होकर ऊर्जा के छोटे – छोटे पैकिट के रूप में होता है जिन्हें क्वान्टा कहते हैं। ΔE ऊर्जा अंतर वाली दो स्थायी अवस्थाओं में इलेक्ट्रॉन के संक्रमण के समय अवशोषित अथवा उत्सर्जित विकिरण की ऊर्जा निम्नलिखित सम्बन्ध द्वारा दी जाती है
ΔE = hv
ΔE = E2 – E1
अतः v = \(\frac { n{ h } }{ { 2 }\Pi } \) = \(\frac { { E }_{ 2 }-{ E }_{ 1 } }{ h } \)
(बोर का आवृत्ति का नियम )
यहाँ E1 तथा E2 क्रमश: निम्न तथा उच्च ऊर्जा स्तर की ऊर्जाएँ
बोर कक्ष की त्रिज्या को परिकलन (Calculation of Radius of Bohr’s Orbit):
बोर मॉडल की प्रथम अभिधारणा के अनुसार –
बोर की द्वितीय अभिधारणा के अनुसार
या
V का मान समीकरण
(i) में रखने पर
हाइड्रोजन के प्रथम कोश के लिए z = 1 n = 1
अतः r1 = a0
अतः a0, पहली स्थायी अवस्था, जिसे बोर कक्ष कहते हैं, की त्रिज्या होती है। सामान्यतः हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन इसी कक्ष (n = 1) में पाया जाता है।
(a) n का मान स्थिर होने पर तथा z का मान बढ़ने पर त्रिज्या कम होती है।
अर्थात् r ∝ \(\frac { 1 }{ z } \)
(b) z का मान स्थिर होने पर तथा n का मान बढ़ने पर त्रिज्या का मान बढ़ता है अर्थात् इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर होता जाता है।
अर्थात् r ∝ n2
बोर कक्ष में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा का परिकलन (Calculation of Energy of an Electron in Bohr’s Orbit):
nवे कक्ष में इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा En = गतिज ऊर्जा (KE) + स्थितिज ऊर्जा (PE)
स्थितिज ऊर्जा नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षण के कारण होती है अतः इसके साथ ऋणात्मक चिह्न लगाया जाता है तथा स्थितिज ऊर्जा वह कार्य है जो कि इलेक्ट्रॉन को अनन्त दूरी से r दूरी तक लाने के लिए लगाया जाता है।
KE तथा PE का मान रखने
अतः
स्थिरांकों (π, m, e तथा h) का मान रखने पर
अर्ग प्रति परमाणु यह सूत्र हाइड्रोजन परमाणु के समान अन्य आयन जिनमें एक इलेक्ट्रॉन होता है। जैसे – He+, Li2+, Be3+ (z = 2, 3, 4) के लिए भी लागू होता है।
हाइ जन के लिए z = 1
अतः इसमें किसी कक्ष में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा निम्नलिखित सामान्य सूत्र द्वारा दी जा सकती है –
यहाँ n = 1, 2, 3…..
RH = रिडबर्ग स्थिरांक = 2.18 × 10-18 जूल
हाइड्रोजन के लिए निम्नतम अवस्था (Ground State) या तलस्थ अवस्था की ऊर्जा
तथा दूसरे कक्ष में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
n = ∞ की स्थायी अवस्था में इलेक्ट्रॉन नाभिक के प्रभाव से मुक्त होता है तो ऊर्जा का मान शून्य होता है। इसे आयनिक हाइड्रोजन परमाणु कहते हैं। इस स्थिति में इलेक्ट्रॉन परमाणु से बाहर निकल जाता है। जब इलेक्ट्रॉन निर्धारित nवीं कक्षा में उपस्थित होता है तो यह नाभिक द्वारा आकर्षित होता है। इससे ऊर्जा का उत्सर्जन होता है और इसकी ऊर्जा निम्न हो जाती है। इसी कारण ऊर्जा के साथ ऋणात्मक चिह्न लगाया जाता है तथा यह अवस्था n = ∞ की तुलना में अधिक स्थायी होती है।
(i) जूल प्रति परमाणु के अनुसार
En ∝ – z2 (n स्थिर होने पर)
अर्थात् z का मान बढ़ने पर ऊर्जा का मान अधिक ऋणात्मक होता जाता है अर्थात् ऊर्जा में कमी होती है, अर्थात् इलेक्ट्रॉन नाभिक से दृढ़तापूर्वक बंधा रहता है।
(ii) En ∝ \(\frac { 1 }{ { n }^{ 2 } } \) (Z स्थिर होने पर)
अर्थात् n का मान बढ़ने पर ऊर्जा का मान बढ़ता है।
बोर कक्ष में इलेक्ट्रॉन के वेग को परिकलन (Calculation of Velocity of an Electron in Bohr’s Orbit):
बोर की द्वितीय अभिधारणा के अनुसार
r का मान समीकरण mv2= \(\frac { z{ e }^{ 2 } }{ r } \) (बोर की प्रथम अभिधारणा) में रखने पर
स्थिरांकों (π, e तथा h) का मान रखने पर
vn= \(2.188\times { 10 }^{ 8 }\times \frac { z }{ n } \) सेमी सेकण्ड-1
vn= \(2.188\times { 10 }^{ 6 }\times \frac { z }{ n } \) मीटर सेकण्ड-1 (vn = nवें कक्ष में इलेक्ट्रॉन का वेग)
(a) n स्थिर होने पर तथा z को मान (नाभिकीय आवेश) बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन का वेग बढ़ता है।
अर्थात् v ∝ z
(b) z स्थिर होने पर तथा n का मान (मुख्य क्वान्टम संख्या) बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन का वेग घटता है।
अर्थात् v ∝ \(\frac { 1 }{ n } \)
हाइड्रोजन परमाणु के रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या (Explanation of Line Spectrum of Hydrogen Atom):
बोर के मॉडल से हाइड्रोजन परमाणु के रेखीय स्पेक्ट्रम की |मात्रात्मक व्याख्या की जा सकती है। बोर के अनुसार इलेक्ट्रॉन के निम्न से उच्च कक्षा में गमन करने पर ऊर्जा का अवशोषण होता है, जबकि उच्च से निम्न कक्षा की ओर गमन करने पर ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। हाइड्रोजन परमाणु के अवशोषण तथा उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में रेखाओं की तीव्रता, अवशोषित या उत्सर्जित फोटॉन (एक समान λ या v वाले) की संख्या पर निर्भर करती है। दो कक्षाओं के मध्य ऊर्जा के अंतर को निम्नलिखित समीकरण द्वारा दिया जा सकता है
ΔE = Ef – Ei
यहाँ Ef = अन्तिम कक्षा की ऊर्जा, Ei = प्रारंभिक कक्षा की ऊर्जा
समीकरण (1) में से समीकरण (2) को घटाने पर –
यहाँ ni तथा nf क्रमशः प्रारम्भिक और अंतिम कक्षा हैं
इस समीकरण की सहायता से फोटॉन के अवशोषण तथा उत्सर्जन से संबंधित आवृत्ति (v) की गणना की जा सकती है।
ΔE = hv
(i) अवशोषण स्पेक्ट्रम में nf > ni अतः कोष्ठक में दी गई मात्राएँ धनात्मक होती हैं तथा इस स्थिति में ऊर्जा का अवशोषण होता है।
(ii) उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में ni > nf तथा ΔE का मान ऋणात्मक होता है अर्थात् ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
(iii)
इससे हाइड्रोजन के रेखा स्पेक्ट्रम की पुष्टि होती है। (रिडबर्ग समीकरण उस समय पर उपलब्ध प्रायोगिक आँकड़ों द्वारा प्राप्त किया गया था।)
(iv) हाइड्रोजन परमाणु के अवशोषण तथा उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में प्रत्येक स्पेक्ट्रमी रेखा, एक विशेष संक्रमण के संगत होती है। अतः कई हाइड्रोजन परमाणुओं के स्पेक्ट्रमी अध्ययन में सभी संभव संक्रमण हो सकते हैं। जिनसे एक साथ बहुत-सी स्पेक्ट्रमी रेखाएँ प्राप्त होती हैं।
(v) जब इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में आता है तो प्राप्त स्पेक्ट्रम में रेखाओं की अधिकतम संख्या = \(\frac { n{ (n-1) } }{ 2 } \) यहाँ n = उच्च कक्षा की संख्या।
प्रश्न 37.
प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्लांक का क्वांटम सिद्धान्त (Plank’s Quantum Theory):
विद्युत चुम्बकीय विकिरण की तरंग प्रकृति द्वारा विवर्तन (Diffraction) तथा व्यतिकरण (Interference) की व्याख्या की जा सकती है। लेकिन इससे अग्रलिखित प्रेक्षणों को नहीं समझा सकते –
- गरम पिण्ड से विकिरण का उत्सर्जन (कृष्णिका विकिरण)
- धातु की सतह से विकिरणों (फोटॉन) के टकराने पर इलेक्ट्रॉनों। का निष्कासन (प्रकाश विद्युत प्रभाव)
- ठोसों में तापमान के फलन के रूप में ऊष्माधारिता का परिवर्तन
- परमाणुओं का रेखीय स्पेक्ट्रम।
विवर्तन (Diffraction):
किसी बाधा के आसपास तरंग के मुड़ने की घटना को विवर्तन कहते हैं।
व्यतिकरण (Interference):
एक समान आवृत्ति वाली दो तरंगें मिलकर एक ऐसी तरंग बनाती हैं, जिसका त्रिविम में प्रत्येक बिन्दु पर विक्षोभ (disturbance), प्रत्येक तरंग के उस बिन्दु पर विक्षोभ का बीजगणितीय या सदिश योग होता है। तरंगों के इस संयोजन को व्यतिकरण कहते हैं।
कृष्णिका विकिरण (Black Body Radiation):
मैक्स प्लांक (1990) – एक ऐसा आदर्श पिण्ड जो सभी प्रकार की आवृत्ति के विकिरणों को उत्सर्जित तथा अवशोषित करता है, उसे कृष्णिका (Black Body) कहते हैं तथा इस पिण्ड से उत्सर्जित विकिरणों को कृष्णिका विकिरण कहते हैं। जब किसी ठोस पदार्थ को गरम किया जाता है, तो उससे विस्तृत परास के तरंग – दैयों के विकिरण उत्सर्जित होते हैं।
उदाहरण:
किसी लोहे की छड़ को गरम करते हैं, तो इसका रंग पहले हल्का लाल होता है। जैसे ताप बढ़ता जाता है, यह अधिक लाल होता जाता है तथा जब इसे और अधिक गरम किया जाता है, तब इससे सफेद रंग के विकिरण उत्सर्जित होते हैं। जब ताप बहुत अधिक हो जाता है तो यह नीला हो जाता है, अर्थात्। ताप बढ़ाने पर उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति बढ़ती है। विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में लाल रंग की आवृत्ति कम तथा नीले रंग की आवृत्ति अधिक होती है। किसी कृष्णिका से उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति का वितरण ताप पर निर्भर करता है। दिए गए ताप पर, उत्सर्जित विकिरण की तीव्रता तरंगदैर्घ्य के बढ़ने पर बढ़ती है तथा एक निश्चित तरंगदैर्ध्य पर अधिकतम होने के पश्चात् कम होनी प्रारम्भ हो जाती है।
उपर्युक्त परिणामों की संतोषजनक व्याख्या प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के आधार पर नहीं की जा सकती है। अतः इसके लिए प्लांक का क्वांटम सिद्धान्त दिया गया।
1. प्लांक का क्वान्टम सिद्धान्त:
परमाणु और अणु केवल विविक्त मात्रा में ही ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण करते हैं न कि सतत रूप में, इसे प्लांक को क्वान्टम सिद्धान्त कहते हैं।
क्वान्टम:
ऊर्जा की वह न्यूनतम मात्रा जिसका उत्सर्जन या अवशोषण विद्युत – चुम्बकीय विकिरण के रूप में होता है, उसे क्वान्टम कहते हैं। विकिरण के एक क्वान्टम की ऊर्जा (E), उसकी आवृत्ति (v) के समानुपाती होती है अतः
Ε ∝ ν
E = hv (v = विकिरण की आवृत्ति)
h= आनुपातिक स्थिरांक है जिसे प्लांक स्थिरांक कहा जाता है जिसका मान = 6.626 × 10-34 Js है।
प्लांक के क्वान्टम सिद्धान्त की सहायता से विभिन्न तापों पर कृष्णिका द्वारा उत्सर्जित विकिरण की तीव्रता वितरण की व्याख्या आवृत्ति या तरंगदैर्घ्य के फलन के रूप में की जा सकती है। दूसरा प्रेक्षण जिसकी व्याख्या विद्युत चुम्बकीय तरंग प्रकृति से नहीं की जा सकी, वह है प्रकाश विद्युत प्रभाव।
2. प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo Electric Effect):
प्रकाश विद्युत प्रभाव के बारे में 1887 में हर्ट्स नामक वैज्ञानिक ने बताया था। उनके अनुसार सक्रिय धातुओं जैसे K, Rb तथा Cs इत्यादि पर उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश डालने पर, इनकी सतह से इलेक्ट्रॉनों का निष्कासन, प्रकाश विद्युत प्रभाव कहलाता है तथा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन (Photo Electrons) कहते हैं। इस प्रयोग के परिणाम निम्न प्रकार हैं –
1. धातु की सतह से प्रकाशपुंज के टकराते ही इलेक्ट्रॉन | निकलना प्रारम्भ हो जाते हैं अर्थात् धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन के निष्कासन तथा सतह पर प्रकाशपुंज के टकराने के बीच कोई समय-अंतराल नहीं होता है।
2.धातु की सतह से निष्कासित इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है।
3.प्रत्येक धातु के लिए एक न्यूनतम आवृत्ति होती है जिससे कम आवृत्ति का प्रकाश डालने पर प्रकाश-विद्युत प्रभाव प्रदर्शित नहीं होता है, जिसे देहली आवृत्ति (thresold frequency) (v) कहते हैं। जब प्रयुक्त आवृत्ति (v0) का मान देहली आवृत्ति (v) से अधिक होता है (v > v0) निष्कासित इलेक्ट्रॉनों की कुछ गतिज ऊर्जा होती है तथा यह प्रयुक्त प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने के साथ बढ़ती है।
4. निष्कासित इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है, लेकिन इन इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
उदाहरण:
पोटैशियम धातु के टुकड़े पर यदि किसी भी तीव्रता के लाल रंग का प्रकाश कई घंटों तक डाला जाए, तो भी इलेक्ट्रॉनों का निष्कासन नहीं होता है, परन्तु पीले रंग के कम तीव्रता के प्रकाश से भी पोटैशियम में प्रकाश – विद्युत प्रभाव होता है। पोटैशियम धातु के लिए देहली आवृत्ति (v0) 5.0 × 1014 Hz होती है।
निष्कासित इलेक्ट्रॉनों की KE एवं आपत्तित विकिरणों की आवृत्ति के मध्य आलेख
निष्कासित इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा K.E. आपतित विकिरणों की तीव्रता विकिरणों की तीव्रता के मध्य आलेख
प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या (Explanation of Photoelectric Effect):
आइंस्टीन (1905) ने प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के आधार पर की। इनके अनुसार धातु के इलेक्ट्रॉन विभिन्न आकर्षण बलों के द्वारा बंधे होते हैं। इन आकर्षण बलों को तोडने के लिए निश्चित ऊर्जा की आवश्यकता होती है। धातु की सतह पर प्रकाश पुंज के टकराने को फोटॉनों का टकरीना माना जा सकता है। जब कोई पर्याप्त ऊर्जायुक्त फोटॉन धातु परमाणु के इलेक्ट्रॉन से टक्कर करता है, तो वह इस इलेक्ट्रॉन को परमाणु से तुरन्त बाहर निकाल देता है। फोटॉन की ऊर्जा जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक ऊर्जा वह इलेक्ट्रॉन को देगा तथा निष्कासित इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा भी उतनी ही अधिक होगी, अर्थात् निष्कासित इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा विद्युत्चुम्बकीय विकिरण की आवृत्ति के समानुपाती होती है। अतः इलेक्ट्रॉन को निष्कासित करने के लिए टकराने वाले फोटॉन की ऊर्जा = hv
तथा इलेक्ट्रॉन को निष्कासित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा w0 = hv0
यहाँ w0 = कार्य फलन या देहली ऊर्जा = ऊर्जा में अन्तर = hv – hv0
ऊर्जा में यह अन्तर ही फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा के रूप में स्थानान्तरित होता है। अतः ऊर्जा के संरक्षण के नियम के अनुसार निष्कासित इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा
यहाँ me इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान तथा V इलेक्ट्रॉन का वेग है।
अतः अधिक तीव्रता वाले प्रकाश में फोटॉनों की संख्या अधिक होगी इसलिए निष्कासित इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी अधिक होगी। उपर्युक्त व्याख्या से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि –
1. यदि आपतित फोटॉनों की ऊर्जा, देहली ऊर्जा से कम है तो इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होगा।
2. जब फोटॉनों की ऊर्जा, देहली ऊर्जा के बराबर होती है तो इलेक्ट्रॉन, धातु की सतह से मुक्त हो जाते हैं लेकिन उनमें कोई गतिज ऊर्जा नहीं होगी।
3. फोटॉनों की ऊर्जा देहली ऊर्जा से अधिक होती है तो वह अतिरिक्त ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनों द्वारा गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त कर ली जाती है।
धातु का कार्य फलन, इलेक्ट्रॉनों पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के आकर्षण बलों के समानुपाती होता है अर्थात् आकर्षण बल का मान जितना अधिक होगा, कार्यफलन का मान भी उतना ही अधिक होगा, कुछ धातुओं के कार्यफलन (W0) को मान निम्नलिखित है –
(3) विद्युत चुम्बकीय विकिरण का द्वैत व्यवहार (Dual behaviour of Electromagnetic Radiation):
प्रकाश में कण और तरंग दोनों के गुण होते हैं अर्थात् प्रकाश का द्वैत व्यवहार होता है। प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि प्रकाश तरंग या कण के समान व्यवहार करता है। जब द्रव्य के साथ विकिरण की अन्योन्य क्रिया (Interaction) होती है, तब यह कण के समान तथा जब विकिरण का संचरण होता है तो यह तरंग जैसे गुण (व्यतिकरण एवं विवर्तन) दर्शाता है। प्रकाश के समान सूक्ष्म कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन इत्यादि भी द्वैत व्यवहार दर्शाते हैं। तरंग की ऊर्जा को E = hv से तथा कण की ऊर्जा आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण E = mc2 से दी जाती है, लेकिन दोनों ही स्थितियों में ऊर्जा का मान समान रहता है।
प्रश्न 38.
रदरफोर्ड परमाणु मॉडल क्या था? इसकी असफलता के कारण लिखिये।
उत्तर:
डाल्टन के अविभाज्य परमाणु में धनात्मक तथा ऋणात्मक अवपरमाणुक कण होते हैं। इन आवेशित कणों के वितरण की व्याख्या करने के लिए विभिन्न परमाणु मॉडल प्रस्तावित किए गए। यद्यपि इन सभी मॉडलों द्वारा परमाणुओं के स्थायित्व की व्याख्या नहीं की जा सकी। इनमें से दो मॉडल जे.जे. थॉमसन और अर्नेस्ट रदरफोर्ड द्वारा दिए गए थे, जो निम्न प्रकार है।
परमाणु का थॉमसन प्रतिरूप (Thomson Model of Atom):
जे.जे. थॉमसन (1898) के अनुसार परमाणु एक समान आवेशित गोला (त्रिज्या लगभग 10-10 m) होता है, जिस पर धनावेश समान रूप से वितरित रहता है तथा इसके ऊपर इलेक्ट्रॉन इस प्रकार स्थित होते हैं कि स्थायी स्थिर वैद्युत व्यवस्था (Stable electrostatic arrangement) प्राप्त हो जाती है। इसे प्लम पुडिंग, रेजिन पुडिंग या तरबूज मॉडल कहते हैं। इसमें धनावेश को पुडिंग या तरबूज तथा इलेक्ट्रॉन को प्लम या बीज की तरह माना गया है।
इस परमाणु मॉडल का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि इसमें परमाणु के द्रव्यमान को समान रूप से वितरित माना गया है। यद्यपि यह मॉडल परमाणु की विद्युत उदासीनता को स्पष्ट करता है लेकिन यह भविष्य के प्रयोगों जैसे रदरफोर्ड के प्रकीर्णन प्रयोग तथा परमाणु के रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं कर सका।
रदरफोर्ड का नाभिकीय परमाणु प्रतिरूप (Rutherford’s Nuclear Model of Atom):
रदरफोर्ड ने सोने की बहुत पतली पन्नी (100 mm मोटाई) पर एक रेडियोएक्टिव स्रोत (लैड बॉक्स में रखा रेडियम) की सहायता से उच्च ऊर्जा युक्त α – कणों की बौछार की। इस पन्नी के आसपास जिंक सल्फाइड (ZnS) से बना एक वृत्ताकार प्रतिदीप्तिशील पर्दा (Screen) होता है। जब कोई अल्फा कण इस पर्दे से टकराता है तो उस बिन्दु पर प्रकाश की प्रतिदीप्ति (flash) उत्पन्न होती है।
इस प्रकीर्णन प्रयोग के परिणाम अपेक्षा से काफी भिन्न थे। थॉमसन के परमाणु मॉडल के अनुसार सोने की पन्नी में उपस्थित सोने के प्रत्येक परमाणु का द्रव्यमान पूरे परमाणु पर एक समान रूप से वितरित होना चाहिए। α – कणों में ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि वे द्रव्यमान के ऐसे वितरण से भी सीधे पार हो जाते हैं। अतः यह अपेक्षित था कि पन्नी से टकराने के बाद कणों की गति धीमी हो जाएगी तथा वे बहुत कम कोण से विक्षेपित होंगे लेकिन इस प्रयोग से निम्नलिखित परिणाम प्राप्त हुए –
(i) अधिकांश अल्फा कण सोने की पन्नी से विक्षेपित हुए बिना सीधे निकल गए।
(ii) बहुत कम अल्फा कण बहुत कम कोण से विक्षेपित हुए।
(iii) बहुत ही थोड़े कण (लगभग 20000 में से 1) लगभग 180° के कोण से विक्षेपित हुए अर्थात् वे वापस लौट गए। इन प्रेक्षणों के आधार पर रदरफोर्ड ने परमाणु की संरचना के बारे में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले –
1. परमाणु का अधिकांश स्थान रिक्त होता है, क्योंकि अधिकांश अल्फा कण सोने की पन्नी को पार करके सीधे निकल गए।
2. कुछ α – कणों का विक्षेपण अवश्य ही अत्यधिक प्रतिकर्षण बल के कारण हुआ है। इससे यह ज्ञात होता है कि परमाणु का सम्पूर्ण धनावेश बहुत कम आयतन के अंदर संकेंद्रित होम है, जिससे धनावेशित अल्फा कण प्रतिकर्षित तथा विक्षेपित होते हैं। परमाणु के इस धनावेशित भाग को ही नाभिक कहते हैं। परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान इसी में केन्द्रित होता है तथा प्रोटॉन इस नाभिक में ही उपस्थित होते हैं।
3. रदरफोर्ड ने गणना करके बताया कि नाभिक का आयतन, परमाणु के कुल आयतन की तुलना में बहुत कम होता है। परमाणु की त्रिज्या लगभग 10-10 m होती है, जबकि नाभिक की त्रिज्या लगभग 10-15 m होती है अर्थात् नाभिक को यदि क्रिकेट की गेंद माना जाए तो परमाणु की त्रिज्या लगभग 5 km होगी।
4. परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन, नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथों में बहुत तेजी से गति करते हैं, जिन्हें कक्षा या कक्ष (orbit) कहते हैं। अतः रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल सौरमंडल से समानता रखता है, जिसमें सूर्य नाभिक के समान तथा ग्रह इलेक्ट्रॉन के समान होते हैं।
5. इलेक्ट्रॉन और नाभिक आपस में स्थिर वैद्युत आकर्षण बलों के द्वारा बँधे रहते हैं।
रदरफोर्ड मॉडल के दोष (Drawbacks of Rutherford’s Model):
1. रदरफोर्ड के नाभिकीय परमाणु मॉडल को सौरमण्डल का एक छोटा रूप माना जा सकता है, जिसमें नाभिक को भारी सूर्य के समान तथा इलेक्ट्रॉनों को हल्के ग्रहों की तरह माना गया तथा यह माना गया कि इलेक्ट्रॉन और नाभिक के बीच कूलॉम बल \(\frac { k{ q }_{ 1 }{ q }_{ 2 } }{ { r }^{ 2 } } \) पाया जाता है। जहाँ q1 व q2 आवेश, r उन आवेशों के मध्य की दूरी और k आनुपातिकता स्थिरांक है। कूलॉम बल गणितीय रूप में गुरुत्वाकर्षण बल
के समान होता है, जहाँ m1 व m2 द्रव्यमान, r दोनों द्रव्यमानों के बीच की दूरी तथा G गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक होता है।
2. जब सौरमण्डल पर चिरसम्मत यांत्रिकी को लागू किया जाता है। तो ज्ञात होता है कि ग्रह, सूर्य के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में गति करते हैं। इस सिद्धान्त से ग्रहों की कक्षाओं के बारे में सही – सही गणना की जा सकती है जो कि प्रायोगिक मापन से मेल खाती है।
3. सौरमण्डल और नाभिकीय मॉडल की तुलना करने पर ज्ञात होता है कि परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में गति करते हैं, परन्तु जब कोई पिंड स्थिर वेग से किसी कक्षा में गति करता है तो उसकी दिशा में परिवर्तन के कारण उसमें त्वरण होना चाहिए। अतः किसी परमाणु की कक्षाओं में गति करते हुए इलेक्ट्रॉन में भी त्वरण होना चाहिए।
4. मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त के अनुसार, त्वरित आवेशित कणों द्वारा विद्युत-चुम्बकीय विकिरणों का उत्सर्जन होना चाहिए (ग्रहों में ऐसा इसलिए नहीं होता है, क्योंकि वे उदासीन होते हैं।) इसलिए किसी कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन से विकिरणों का उत्सर्जन होगा। इन विकिरणों के लिए ऊर्जा इलेक्ट्रॉनिक गति से प्राप्त होती है। इस प्रकार कक्षा (orbit) छोटी होती जाएगी तथा इलेक्ट्रॉन सर्पिलाकार गति करता हुआ 10-8s में नाभिक में जाकर गिर जाएगा जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता है। अतः रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं करता है।
5. यदि परमाणु में इलेक्ट्रॉनों को नाभिक के चारों ओर स्थिर मान लिया जाए तो अत्यधिक घनत्व वाले नाभिक तथा इलेक्ट्रॉनों के मध्य स्थिर वैद्युत आकर्षण बल, इन इलेक्ट्रॉनों को नाभिक की ओर खींच लेगा जिससे थॉमसन परमाणु मॉडल का एक छोटा रूप प्राप्त होगा।
6. रदरफोर्ड का मॉडल परमाणुओं की इलेक्ट्रॉनिक संरचना की व्याख्या नहीं करता।
7. परमाणुओं के रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या भी इस मॉडल से नहीं होती।
प्रश्न 39.
निम्न पर टिप्पणी लिखो
1. द – ब्रॉग्ली का द्रव्य का द्वैत व्यवहार
2. हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त
3. क्वांटम संख्याएँ तथा कक्षक
4. कक्षकों की आकृति।
उत्तर:
1. द – ब्रॉग्ली का द्रव्य का द्वैत व्यवहार:
दे ब्रॉग्ली (1924) के अनुसार विकिरण के समान द्रव्य भी द्वैत व्यवहार प्रदर्शित करता है अर्थात् इसमें कण तथा तरंग दोनों के गुण पाए जाते हैं। अतः द्रव्य के सूक्ष्म कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन इत्यादि कण तथा तरंग दोनों गुण प्रदर्शित करते हैं। अर्थात् प्रकाश विकिरण के फोटॉन के समान इन कणों में भी संवेग तथा तरंगदैर्घ्य दोनों होते हैं। दे ब्रॉग्ली ने बताया कि द्रव्य के छोटे – छोटे कण तरंग के रूप में बहते हैं। तथा तरंग का तरंगदैर्घ्य, संवेग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
तरंगदैर्घ्य, λ = \(\frac { h }{ p } \) = \(\frac { h }{ mv } \) , यहाँ h = प्लांक स्थिरांक p = संवेग, m = कण का द्रव्यमान तथा v कण का वेग है। इसे दे ब्रॉग्ली सूत्र कहते हैं। प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात हुआ कि इलेक्ट्रॉन पुंज का विवर्तन होता है इससे द्रव्य की तरंग प्रकृति की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि विवर्तन तरंगों का गुण है। दे ब्रॉग्ली सिद्धान्त के आधार पर ही इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी बनाया गया है। दे ब्रॉग्ली सूत्र अधिक द्रव्यमान वाली वस्तुओं पर पूर्ण रूप से लागू नहीं होता क्योंकि λ α \(\frac { 1 }{ m } \), अतः अधिक द्रव्यमान वाली वस्तुओं के लिए तरंगदैर्घ्य का मान इतना कम होगा कि उसका प्रायोगिक मापन बहुत मुश्किल है। अतः भारी कणों में तरंग गुण ज्ञात नहीं होता।
दे ब्रॉग्ली संबंध की व्युत्पत्ति (Derivation of Debroglie Relation):
दे ब्रॉग्ली ने आइन्सटीन तथा प्लांक के ऊर्जा समीकरण की सहायता से इस संबंध की व्युत्पत्ति की थी।
आइन्सटीन समीकरण के अनुसार, E = mc2
तथा प्लांक समीकरण के अनुसार E = hv
अत: hv = mc2
∴ v = \(\frac { c }{ \lambda } \)
\(\frac { h{ c } }{ \lambda } \) = mc2
या λ = \(\frac { h }{ mc } \)
यहाँ m, फोटोन का द्रव्यमान तथा c, प्रकाश का वेग है।
दे ब्रॉग्ली ने इस सूत्र को द्रव्य तरंगों के लिए प्रयुक्त किया तब फोटॉन के द्रव्यमान को कण का द्रव्यमान तथा प्रकाश के वेग (c) को कण का वेग (v) मानकर निम्नलिखित सूत्र दिया।
λ = \(\frac { h }{ mv } \) या λ = \(\frac { h }{ p } \) (कण का संवेग p = mv)
2. हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त:
हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त (Heisenberg’s Uncertainty Principle):
द्रव्य तथा विकिरण की द्वैत प्रकृति के कारण यह सिद्धान्त दिया। गया। हाइजेनबर्ग (1927) के अनुसार परमाणु में किसी इलेक्ट्रॉन की सही स्थिति और सही संवेग (अथवा वेग) का एक साथ यथार्थता के साथ निर्धारण करना असम्भव है।
गणितीय रूप में
अथवा
यहाँ Δx = कण की स्थिति में अनिश्चितता, ΔP = संवेग में अनिश्चितता तथा h = प्लांक नियतांक हैं। अतः किसी इलेक्ट्रॉन की यथार्थ स्थिति और यथार्थ वेग का एक साथ निर्धारण करना संभव नहीं है। यदि इलेक्ट्रॉन की स्थिति बिल्कुल सही ज्ञात है (Δx कम है), तो। इलेक्ट्रॉन के वेग में अनिश्चितता (ΔV) अधिक होगी। अथवा इलेक्ट्रॉन का वेग बिल्कुल सही ज्ञात है (ΔV कम है) तो इलेक्ट्रॉन की सही स्थिति (Δx अधिक) ज्ञात नहीं होगी। Δx तथा Δp का गुणनफल प्लांक नियतांक की कोटि का होता है।
इलेक्ट्रॉन की स्थिति ज्ञात करने के लिए इसे प्रकाश या विद्युतचुंबकीय विकिरण द्वारा प्रदीप्त करना होगा। इसके लिए प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य, इलेक्ट्रॉन की विमाओं से कम होनी चाहिए, परंतु ऐसे प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा (आवृत्ति) बहुत अधिक होगी। अतः इस प्रकाश का उच्च संवेग p = \(\frac { h }{ \lambda } \) वाला फोटॉन, इलेक्ट्रॉन से टकराकर उसकी ऊर्जा में परिवर्तन कर देगा। इससे हम इलेक्ट्रॉन की स्थिति तो ठीक – ठीक ज्ञात कर लेंगे, परंतु टकराने के पश्चात् उसके वेग या संवेग के बारे में सही जानकारी प्राप्त नहीं होगी क्योंकि इलेक्ट्रॉन की स्थिति ज्ञात करने में उसका वेग या संवेग परिवर्तित हो जाता है।
अनिश्चितता के सिद्धांत का महत्त्व (Importance of Uncertainty Principle):
हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता का सिद्धांत निश्चित मार्ग या प्रक्षेप पथ के अस्तित्व का खंडन करता है। किसी पिंड का प्रक्षेप पथ भिन्न-भिन्न कोणों पर उसकी स्थिति एवं वेग द्वारा निर्धारित किया जाता है। यदि हमें किसी विशेष क्षण पर एक कण की स्थिति एवं वेग तथा उस पर उस क्षण कार्यरत बल ज्ञात हों, तो हम यह बता सकते हैं कि बाद के किसी समय में यह कण कहाँ पर होगा। अतः किसी कण की स्थिति एवं वेग से उसका प्रक्षेप-पथ निश्चित हो जाता है। इलेक्ट्रॉन जैसे सूक्ष्म कण के लिए किसी क्षण उसकी स्थिति एवं वेग का एक साथ निर्धारण यथार्थता के किसी वांछित हद तक करना संभव नहीं है। इसलिए इलेक्ट्रॉन के प्रक्षेप-पथ के बारे में भी बात करना संभव नहीं है। हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त केवल सूक्ष्म कणों के लिए लागू होता है, लेकिन बड़े कण जिन्हें हम नग्न आँखों से देख सकते हैं, पर यह सिद्धान्त लागू नहीं होता।
उदाहरण:
यदि एक मिलीग्राम (10-6 kg) द्रव्यमान वाले कण पर अनिश्चितता सिद्धान्त लागू करें तो
यह मान नगण्य है अतः इन बड़े कणों की अनिश्चितताएँ किसी वास्तविक परिणाम की नहीं होतीं। लेकिन एक सूक्ष्म कण जैसे इलेक्ट्रॉन जिसका द्रव्यमान 9.11 × 10-31kg है, के लिए
यह मान काफी अधिक है अतः इन सूक्ष्म कणों की अनिश्चितताएँ वास्तविक परिणाम की होती हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि इलेक्ट्रॉन की सही स्थिति 10-8m की अनिश्चितता तक जानने का प्रयास किया जाए तो वेग में अनिश्चितता
यह मान इतना अधिक है कि इलेक्ट्रॉन को बोर कक्षों में गतिशील मानने की चिरसम्मत धारणा की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं होती। अतः इलेक्ट्रॉन की स्थिति तथा संवेग के परिशुद्ध कथन को प्रायिकता कथन से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए, जो कि एक इलेक्ट्रॉन दिए गए स्थान एवं संवेग पर रखता है। परमाणु के क्वांटम यांत्रिकी मॉडल में ऐसा ही होता है।
3. क्वांटम संख्याएँ तथा कक्षक:
किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की स्थिति, ऊर्जा, कक्षकों का आकार, आकृति, अभिविन्यास तथा चक्रण को दर्शाने के लिए आवश्यक संख्याओं को क्वान्टम संख्याएँ कहते हैं। ये चार प्रकार की होती हैं
(1) मुख्य क्वान्टम संख्या (Principal Quantum Number) (n)
(2) दिगंशीय क्वान्टम संख्या (Azimuthal Quantum Number) (l)
(3) चुम्बकीय क्वान्टम संख्या (Magnetic Quantum Number) (ml)
(4) चक्रण क्वान्टम संख्या (Spin Quantum Number) (ms)
अतः क्वांटम संख्याएँ चार संख्याओं का वह समूह है जो परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देता है।
(1) मुख्य क्वान्टम संख्या (Principal Quantum Number) (n):
मुख्य क्वान्टम संख्या कोश या कक्ष या कक्षा को दर्शाती है। तथा यह कक्षक का आकार तथा ऊर्जा भी बताती है। इसका मान 1 से किसी भी पूर्णांक संख्या तक हो सकता है।
1. n = 1, 2, 3, 4, 5, 6 …
= K L M N O P
2. n का मान बढ़ने पर कक्षकों की संख्या बढ़ती है तथा किसी कोश में कक्षकों की संख्या = n2
3. n का मान बढ़ने पर कोश या कक्ष का आकार बढ़ता है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर होते जाते हैं। ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन द्वारा नाभिक के आकर्षण बल से दूर होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः n का मान बढ़ने पर कक्षक की ऊर्जा बढ़ती है तथा स्थायित्व कम होता है।
4. इस क्वान्टम संख्या के बारे में बोर ने बताया था।
5. n का मान कभी भी शून्य नहीं होता। किसी कोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या = 2n2, अतः K L M N तथा O कोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या क्रमशः 2, 8, 18, 32 तथा 50 हो सकती है।
कक्षा (कक्ष) तथा कक्षक एवं इनका महत्त्व (Orbit, Orbital and its Importance):
कक्षा, किसी परमाणु में नाभिक के चारों ओर वह वृत्ताकार काल्पनिक पथ है जिसमें इलेक्ट्रॉन गति करता है। इसे बोर ने प्रतिपादित किया था तथा इसे मुख्य क्वान्टम संख्या द्वारा दर्शाया जाता है। हाइजेनबर्ग के
‘अनिश्चितता सिद्धान्त’ के अनुसार, इलेक्ट्रॉन के इस पथ (कक्ष) का सही निर्धारण करना असंभव है। अतः बोर कक्षाओं का कोई वास्तविक अर्थ नहीं होता है इसलिए इनके अस्तित्व को प्रयोगों द्वारा नहीं दर्शाया जा सकता। कक्षक एक क्वांटम यांत्रिकीय धारणा है जो कि परमाणु में किसी एक इलेक्ट्रॉन के तरंग – फलन (ψ) को दर्शाती है। इसे तीन क्वांटम संख्याओं (n, l, ml) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तथा इसका मान इलेक्ट्रॉन के निर्देशांकों पर निर्भर करता है।
वास्तव में ψ का कोई भौतिक अर्थ नहीं होता है, परन्तु इसका वर्ग, किसी परमाणु में किसी बिन्दु पर प्रायिकता घनत्व का मान बताता है। प्रायिकता घनत्व प्रति इकाई आयतन प्रायिकता को मान होता है। |ψ|2 तथा एक छोटे आयतन (आयतन अवयव) का गुणनफल इलेक्ट्रॉन के उस आयतन में पाए जाने की प्रायिकता को दर्शाता है। (यहाँ कम आयतन लेने का कारण यह है कि |ψ|2 का मान त्रिविम में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बदलता रहता है, परन्तु एक छोटे आयतन अवयव में इसके मान को स्थिर माना जा सकता है।)
किसी दिए गए निश्चित आयतन में इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की कुल प्रायिकता, |ψ|2 और संगत आयतन अवयवों के समस्त गुणनफलों को जोड़कर प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार किसी कक्षक में संभावित इलेक्ट्रॉन वितरण का पता लगाया जाना संभव है। अतः कक्षक, किसी परमाणु में नाभिक के चारों ओर अन्तराल (space) में वह स्थान (आयतन) है जहाँ पर इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की प्रायिकता अधिकतम होती है।
(2) दिगंशीय या कक्षक कोणीय संवेग या भौम क्वान्टम संख्या (Azimuthal or Orbital Angular Momentum or Subsidiary Quantum Number) (l):
1. द्विगंशीय क्वान्टम संख्या के बारे में सोमरफील्ड ने बताया था।
2. यह क्वान्टम संख्या उपकोश को दर्शाती है तथा बहु – इलेक्ट्रॉन परमाणु की ऊर्जा भी बताती है।
3. यह कक्षक का त्रिविमीय आकार (आकृति) बताती है।
4. किसी nवें कोश में उपकोशों की संख्या = n का मान
5. l का मान 0 से n – 1 तक होता है अर्थात् n के किसी मान के लिए l = 0, 1, 2 ….. (n – 1) हो सकते हैं।
उदाहरण:
1. पहले कोश (n = 1) में केवल एक उप-कोश होता | है, जो l = 0 के संगत होता है। इसी प्रकार दूसरे (n = 2) कोश में दो उप – कोश (l = 0, 1) तथा तीसरे कोश (n= 3) में तीन उप – कोश (l = 0, 1, 2) होते हैं।
2. किसी कोश में स्थित उप-कोशों को दिगंशीय क्वांटम संख्या (l) द्वारा प्रदर्शित करते हैं तथा के विभिन्न मानों के संगत उप – कोशों को निम्नलिखित अक्षर संकेतों द्वारा दर्शाया जाती है –
l के मान: 0 1 2 3 4 5 होते हैं, जिनके लिए उप – कोश के लिए संकेतन (notation) क्रमशः s p d f g h होते हैं।
3. उप – कोशों के संकेत s, p, d, तथा f को sharp, principle, diffuse तथा fundamental स्पेक्ट्रम रेखाओं के पहले अक्षर से लिया गया है।
4. s – उपकोश गोलाकार, p – उपकोश – डम्बलाकार, d – उपकोश-द्विडम्बल तथा l – उपकोश जटिल आकृति का होता है।
5. l का मान n के समान या इससे अधिक कभी भी नहीं होता।
6. s उपकोश 1s से, p – उपकोश 2p से, d उपकोश 3d से तथा f उपकोश 4f से प्रारम्भ होता है।
7. नीचे दी गयी सारणी में दी गई मुख्य क्वांटम संख्या के लिए l के संभव मान तथा उनके संगत उप – कोशों के संकेत दिए गए हैं।
8. इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, कक्षक कोणीय संवेग पर भी निर्भर करती है। तथा कक्षक कोणीय संवेग
,
अतः द्विगंशीय क्वांटम संख्या कक्षक कोणीय संवेग पर निर्भर ऊर्जा का निर्धारण करती है।
9. द्विगंशीय क्वाण्टम संख्या द्वारा हाइड्रोजन तथा अन्य एक इलेक्ट्रॉन युक्त स्पीशीज के स्पेक्ट्रम में एक स्पेक्ट्रम रेखा के अनेक सूक्ष्म रेखाओं में विभाजित होने की व्याख्या भी की जा सकती है।
10. विभिन्न उपकोशों में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा का क्रम s < p < d < f होता है क्योंकि इनके लिए l का मान क्रमशः 0, 1, 2, 3 होता है।
11. s कक्षक के लिए कक्षक कोणीय संवेग का मान शून्य होता है (l = 0) अतः s कक्षक की ऊर्जा केवल मुख्य क्वान्टम संख्या पर ही निर्भर करती है।
(3) चुम्बकीय क्वान्टम संख्या (Magnetic Quantum Number) (ml):
1. इस क्वान्टम संख्या के बारे में लेन्डे ने बताया था।
2. इससे किसी उपकोश से सम्बद्ध कक्षकों की संख्या निर्धारित होती है।
3. जब परमाणु को बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो गतिशील इलेक्ट्रॉनों के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र तथा बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के मध्य अन्योन्य क्रिया से परमाणु में उपस्थित उपकोश अनेक भागों में विभाजित हो जाते हैं इसे कक्षकों का अभिविन्यास कहते हैं। अतः इस क्वान्टम संख्या से कक्षकों का त्रिविमीय अभिविन्यास ज्ञात होता है।
4. किसी उपकोश में कक्षकों की संख्या = 2l + 1 = ml के सम्भव मान।
5. चुम्बकीय क्वांटम संख्या (ml) के मान – l से + l तक होते हैं।
अतः ml = – l, – (l – 1), – (l – 2), ………. 0, ………. (l – 2), (l – 1),l
6. किसी परमाणु में प्रत्येक कक्षक n, l और ml के मानों द्वारा दर्शाया जाता है। जैसे –
n = 2, l = 1, ml = 0 (2p का कोई कक्षक)
विभिन्न कक्षकों के लिए चुम्बकीय क्वान्टम संख्याओं के मान निम्न प्रकार माने गए हैं –
(4) चक्रण क्वान्टम संख्या (Spin Quantum Number) (ms):
1. इस क्वान्टम संख्या के बारे में उहलेनबैक तथा गाऊटस्मिट ने बताया था।
2. बहु – इलेक्ट्रॉन परमाणुओं के रेखा स्पेक्ट्रम में द्विक या त्रिक को n, l तथा ml से नहीं समझा सकते।
3. यह क्वांटम संख्या इलेक्ट्रॉन के चक्रण को दर्शाती है।
4. एक इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्रण करते समय अपने अक्ष पर भी उसी प्रकार चक्रण करता है जैसे सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते समय पृथ्वी अपनी अक्ष पर करती है।
5. इलेक्ट्रॉन के चक्रण से एक दुर्बल चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। जिसके कारण इलेक्ट्रॉन एक छोटे चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है।
6. इलेक्ट्रॉन में आवेश तथा द्रव्यमान के साथ – साथ नैज (Intrinsic) कोणीय संवेग भी होता है जो कि एक सदिश राशि है तथा यह इलेक्ट्रॉन के चक्रण के कारण होता है। इसे इलेक्ट्रॉन का चक्रण कोणीय संवेग कहते हैं।
7. चक्रण कोणीय संवेग =
यहाँ s = \(\frac { 1 }{ 2 } \)
8. इलेक्ट्रॉन के लिए किसी चुने हुए अक्ष के सापेक्ष दो अभिविन्यास हो सकते हैं जिनके लिए चक्रण क्वान्टम संख्या का मान \(\frac { +1 }{ 2 } \) या \(\frac { -1 }{ 2 } \) हो सकता है। इन्हें इलेक्ट्रॉन की दो चक्रण अवस्थाएँ भी कहा जाता है, जिन्हें सामान्यत: दो तीरों ↑ (ऊपरी प्रचक्रण) (s = \(\frac { +1 }{ 2 } \)) तथा ↓ नि(चला प्रचक्रण) (s = \(\frac { -1 }{ 2 } \)) द्वारा दर्शाया जाता है।
9. ms के विभिन्न मान वाले दो इलेक्ट्रॉन (क्रमशः s = \(\frac { +1 }{ 2 } \) तथा \(\frac { -1 }{ 2 } \)) विपरीत चक्रण युक्त होते हैं अर्थात् चुम्बकीय क्वान्टम संख्या के प्रत्येक मान के लिए चक्रण क्वान्टम संख्या के दो मान होते हैं इसी कारण किसी कक्षक में अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन भरे जा सकते हैं जिनका चक्रण विपरीत होना चाहिए।
10. चक्रण क्वांटम संख्या का मान किसी अन्य क्वांटम संख्या पर निर्भर नहीं करता अतः यह एक स्वतंत्र क्वांटम संख्या है।
11. किसी उपकोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या = 2 (2l + 1) = 4l + 2
अतः s उपकोश में 2, p उपकोश में 6, d उपकोश में 10 तथा f उपकोश में 14 इलेक्ट्रॉन भरे जा सकते हैं।
4. कक्षकों की आकृति:
एक इलेक्ट्रॉन तरंग फलन (ψ), परमाणु कक्षक कहलाता है। ψ का कोई भौतिक अर्थ नहीं होता है, यह केवल इलेक्ट्रॉन के निर्देशांकों (coordinate) का गणितीय फलन होता है। यद्यपि विभिन्न कक्षकों के लिए नाभिक से कक्षक की दूरी (r) के फलन के रूप में संगत, तरंग फलन आरेख भिन्न – भिन्न कक्षकों के लिए भिन्न होते हैं। 1s तथा 2s कक्षकों के लिये आरेख दिए गए हैं। मैक्सबोर्न के अनुसार किसी बिन्दु पर ψ2 उस बिन्दु पर इलेक्ट्रॉन घनत्व की प्रायिकता को दर्शाता है।
प्रायिकता घनत्व [ψ2(r)] में परिवर्तन के आरेख। उपर्युक्त चित्र से ज्ञात होता है कि 1s कक्षक के लिए प्रायिकता घनत्व ψ2 (r) नाभिक पर अधिकतम है जो कि नाभिक से दूरी के साथ घटता जाता है तथा 2s कक्षक के लिए प्रायिकता घनत्व पहले तेजी से घटता है फिर शून्य होने के पश्चात् बढ़ना प्रारम्भ होता है। r का मान बढ़ने पर पहले प्रायिकता घनत्व बढ़ता है तथा एक छोटे अधिकतम (small maxima) के बाद पुनः कम होता जाता है एवं लगभग शून्य हो
जाता है। अतः किसी कक्षक में वह क्षेत्र जहाँ पर इलेक्ट्रॉन प्रायिकता घनत्व शून्य हो जाता है उसे नोडल सतह या नोड कहते हैं। n का मान बढ़ने पर नोडल सतह की संख्या भी बढ़ती जाती है।
सामान्यतः
s – कक्षक के लिए नोडो की संख्या n – 1 होती है। जो कि त्रिज्य नोड होते हैं। अतः 2s कक्षक में 1 तथा 3s कक्षक में 2 नोड होते हैं। प्रायिकता घनत्व परिवर्तन को आवेश अभ्र (Charge cloud) के रूप में समझा जा सकता है। उसमें बिन्दुओं द्वारा उस क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन प्रायिकता घनत्व को प्रदर्शित किया गया है, तथा बिन्दुओं का घनत्व उस क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन प्रायिकता घनत्व को दर्शाता है।
कक्षकों की आकृति को स्थिर प्रायिकता घनत्व वाले सीमा सतह आरेखों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें किसी कक्षक के लिए ऐसी परिसीमा सतह को आरेखित किया जाता है, जिस पर प्रायिकता घनत्व |ψ|2का मान स्थिर हो। सैद्धान्तिक रूप में, किसी कक्षक के लिए ऐसे कई परिसीमा सतह आरेख सम्भव हैं लेकिन वे आरेख ही कक्षक की आकृति माने जाते हैं, जिनके द्वारा निर्धारित क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की प्रायिकता बहुत अधिक (लगभग 90%) होती है। किन्तु निश्चित आकार के परिसीमा सतह आरेख बनाना संभव नहीं है जिनमें इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की प्रायिकता 100 प्रतिशत हो। s – कक्षकों की आकृति (Shape of s – orbitals)
s – कक्षक के लिए परिसीमा सतह आरेख गोलीय होता हैं जिसके केन्द्र में नाभिक होता है। द्विविमीय रूप में यह गोला एक वृत्त की भाँति दिखाई देता है। इस प्रकार s – कंक्षक अदिशात्मक तथा गोलाकार सममित होते हैं अतः इनमें नाभिक के चारों ओर प्रत्येक दिशा में इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की प्रायिकता समान होती है।
n का मान बढ़ने पर s – कक्षक को आकार भी बढ़ता जाता है अर्थात् 4s > 3s > 2s > 1s
p – कक्षक की आकृतियाँ (Shapes of p – orbitals):
p – कक्षक की आकृति डम्बलाकार (dumb-bell shape) होती है जिसमें नाभिक मूल बिन्दु पर स्थित होता है। p – कक्षक दिशात्मक होते हैं तथा प्रत्येक p – कक्षक के दो भाग होते हैं, जिन्हें ‘पालियाँ’ (lobes) कहते हैं। इन दोनों पालियों में इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की प्रायिकता बराबर होती है। ये पालियाँ नाभिक से गुजरने वाले तल के दोनों ओर स्थित होती. हैं। जहाँ ये दोनों पालियाँ एक – दूसरे को स्पर्श करती हैं, उस तल पर प्रायिकता घनत्व फलन शून्य होता है। सभी p – कक्षकों की आकृति व ऊर्जा समान होती है, लेकिन इन कक्षकों की पालियों का अभिविन्यास भिन्न होता है। ये पालियाँ x, y या z अक्षों की ओर निर्दिष्ट मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें 2px, 2py, तथा 2pz, द्वारा दर्शाया जाता है। p-कक्षक (l = 1) के लिए ml, के तीन संभव मान (-1, 0, +1) होते हैं, अतः p – कक्षक तीन होते हैं तथा ये एकदूसरे के लंबवत् होते हैं। p – कक्षकों के लिए त्रिज्य नोडों की संख्या n – 2 होती है, अतः 3p – कक्षक के लिए त्रिज्य नोड एक तथा 4p कक्षक के लिए त्रिज्य नोड 2 होंगे।
d – कक्षकों की आकृतियाँ (Shapes of d – orbitals):
d – कक्षक के लिए l = 2 होता है तथा इसके लिए n का न्यूनतम मान 3 होता है l = 2 के लिए ml के पाँच मान होते हैं (-2, -1, 0, +1 तथा +2) अतः d – कक्षक पाँच होते हैं, जिन्हें dxy, dyz, dzx, dx2 – y2 तथा dz2 नाम दिया गया है। पहले चार d – कक्षकों की आकृति द्विडम्बेल होती है जिनमें चार पॉलियाँ होती हैं लेकिन d – कक्षक की आकृति भिन्न होती है। पाँचों – कक्षकों की ऊर्जा बराबर होती है। भिन्न – भिन्न कक्षों के d – कक्षकों की आकृतियाँ तो समान होती हैं। लेकिन उनकी ऊर्जा तथा आकार भिन्न होते हैं। dxy, dyz, तथा dzx.
कक्षकों में इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की संभावना अक्षों के मध्य अधिक होती है क्योंकि इनकी पॉलियाँ अक्षों के मध्य होती हैं, जबकि dx2 – y2 तथा dz2 कक्षकों में इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की संभावना अक्षों पर अधिक होती है क्योंकि इनकी पॉलियाँ अक्षों पर होती हैं।
त्रिज्य नोडों के अतिरिक्त, np तथा nd कक्षकों के लिए प्रायिकता घनत्व फलन उस तल पर भी शून्य होते हैं जो कि नाभिक से गुजरता है, इन्हें कोणीय नोड या नोडल तल कहते हैं तथा कोणीय नोडों की संख्या l के बराबर होती है। अतः p – कक्षकों के लिए एक तथा d – कक्षकों के लिए दो कोणीय नोड होते हैं।
उदाहरण:
px कक्षक के लिए नोडल तल = yz,
py कक्षक के लिए नोडल तल = xz,
pz कक्षक के लिए नोडल तल = xy,
dxy कक्षक के लिए नोडल तल = yz, zx,
एक नाभिक से गुजरते हुए तथा दूसरा z अक्ष पर xy तल को भेदते हुए।
dyz कक्षक के लिए नोडल तल = xy, zx,
dzx कक्षक के लिए नोडल तल = xy, yz
लेकिन dx2 – y2 तथा dz2 कक्षक का कोई नोडल तल नहीं होता है।
अतः नोडों की कुल संख्या = n – 1 जिनमें कोणीय नोड = l तथा त्रिज्य नोड = (n – l – 1)
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 2 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 40.
सोडियम लैम्प द्वारा उत्सर्जित पीले प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 580nm है। इसकी आवृत्ति (v) तथा तरंग संख्या (\(\overset { \_ }{ v } \)) का परिकलन कीजिये।
हल:
आवृत्ति (v) = \(\frac { { c } }{ \lambda } \)
c = 3 × 108 ms-1
λ = 580 nm
= 580 × 10-9m
अतः
प्रश्न 41.
3 × 1015 Hz आवृत्ति वाले प्रकाश के संगत फोटॉन की ऊर्जा ज्ञात कीजिये। यदि प्रकाश की तरंगदैर्ध्य λ (0.50 Å) हो तो उसकी ऊर्जा E ज्ञात कीजिये।
हल:
(i) फोटॉन की ऊर्जा (E) = hv
h = प्लांक स्थिरांक
= 6.626 × 10-34 Js
अतः E = 6.626 × 10-34 Js × 3 × 1015 s-1
E = 1.9878 × 1018 J
E = 1.988 × 10-18 J
(ii) ऊर्जा (E) = hv = \(\frac { h{ c } }{ \lambda } \)
c = 3 × 108 ms-1, λ = 0.5 Å
= 0.5 × 10-10 m
= 3.9756 × 10-15 J
ऊर्जा = 3.98 × 10-15 J
प्रश्न 42.
किसी धातु का कार्यफलन 2.13 ev है उस पर 4 × 10-7 m तरंगदैर्ध्य का फोटॉन टकराता है तो फोटॉन की ऊर्जा, उत्सर्जन की गतिज ऊर्जा तथा फोटो इलेक्ट्रॉन का वेग ज्ञात कीजिये।
हल:
(i) फोटॉन की ऊर्जा E = hv = \(\frac { h{ c } }{ \lambda } \)
= 4.969 × 10-19 J
= 4.97 × 10-19 J
E = \(\frac { 4.97\times { 10 }^{ -19 } }{ 1.6020\times { 10 }^{ -19 } } \)
= 3.10 eV
(ii) ऊर्जा (E) = K.E. (गतिज ऊर्जा) + कार्यफलन
K.E.= E – कार्यफलन
= 3.10 – 2.13 = 0.97 eV
(iii) गतिज ऊर्जा K.E. = \(\frac { 1 }{ 2 } \) mv2
प्रश्न 43.
25 वॉट का एक बल्ब 0.57 km तरंगदैर्घ्य वाला पीले रंग का एकवर्णी प्रकाश उत्पन्न करता है। इससे प्रति सैकण्ड क्वांटा के उत्सर्जन की दर ज्ञात कीजिये।
हल:
तरंगदैर्घ्य (λ) = 0.57 μm
= 0.57 × 10-6 m
बल्ब की क्षमता = 25 वॉट = 25 Js-1
फोटॉन की ऊर्जा (E) = hv = \(\frac { h{ c } }{ \lambda } \)
= 3.48 × 10-19 J
प्रति सेकण्ड क्वान्टा के उत्सर्जन की दर
= 7.18 × 1019 s-1
प्रश्न 44.
6800 Å तरंगदैर्घ्य वाले विकिरण क़िसी धातु की सतह पर डालने से शून्य वेग वाले इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। धातु की देहली आवृत्ति (v) और कार्यफलन (W0) ज्ञात कीजिए।
हल:
तरंगदैर्ध्य v0 = \(\frac { { c } }{ { \lambda }_{ 0 } } \)
6800 A = 6800 × 10-10 m
देहली आवृत्ति % = \(\frac { 3\times { 10 }^{ 8 }{ m }{ s }^{ -1 } }{ 6800\times { 10 }^{ -10 }{ m } } \)
= 4.41 × 1014 s-1
कार्यफलन = hv0
क्योंकि वेग शून्य होने से गतिज ऊर्जा (K.E.) भी शून्य होगी।
अतः कार्यफलन W0
= 6.626 × 10-34 × 4.41 × 1014
= 2.92 × 10-19 J
प्रश्न 45.
हाइड्रोजन परमाणु के ऊर्जा स्तर n = 4 से ऊर्जा स्तर n = 2 में इलेक्ट्रॉन जाता है, तो किस तरंगदैर्घ्य का प्रकाश उत्सर्जित होगा?
हल:
हाइड्रोजन के लिए – तरंग संख्या
λ = 486 × 10-7 cm
λ = 486 × 10-9 m
λ = 486 nm
प्रश्न 46.
हाइड्रोजन परमाणु के प्रथम कक्षक से सम्बन्धित ऊर्जा – 2.18 × 10-18 J atm-1 है, तो पांचवें कक्षक से सम्बन्धित ऊर्जा का मान क्या होगा?
हल:
प्रश्न 47.
किसी इलेक्ट्रॉन की तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिये। यदि वह 2.05 × 107 ms-1 वेग से गति कर रहा है।
हल:
इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्घ्य λ = \(\frac { h }{ mv } \)
λ = 3.55 × 10-11 m
प्रश्न 48.
किसी इलेक्ट्रॉन को n = 2 से पूरी तरह निकालने के लिये आवश्यक ऊर्जा की गणना कीजिये। हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन ऊर्जा E = \(\frac { 2.18{ \times 10 }^{ -18 } }{ { n }^{ 2 }{ J } } \) है। प्रकाश की सबसे लम्बी तरंगदैर्घ्य ज्ञात करिये। जिसका उपयोग इस संक्रमण में किया जा सके।
हल:
इलेक्ट्रॉन को n = 2 कक्ष से निकालने अर्थात् इसे अनन्त तक ले जाने के लिए आवश्यक ऊर्जा
ΔE = E∞ – E2
E∞ – 0
λ = 3.647 × 10-7 m
= 3.647 × 10-7 cm
Leave a Reply