Rajasthan Board RBSE Class 11 Chemistry Chapter 9 हाइड्रोजन
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रशन
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अतिशुद्ध डाइहाइड्रोजन किसके विद्युत अपघटन से प्राप्त होती है।
(अ) H2SO4 युक्त जल
(ब) NaOH युक्त जल
(स) Ba(OH)2
(द) KOH युक्त जल
प्रश्न 2.
भारी जल का अणुभार होगा।
(अ) 10
(ब) 12
(स) 18
(द) 20
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौनसा गुण हाइड्रोजन परॉक्साइड नहीं दर्शाता है –
(अ) अपचायक
(ब) ऑक्सीकारक
(स) निर्जलीकारक
(द) विरंजक
प्रश्न 4.
ऑर्थों तथा पैरा हाइड्रोजन किस कारण एक-दूसरे से भिन्नता दर्शाते हैं –
(अ) प्रोटॉन की संख्या
(ब) अणुभार
(स) इलेक्ट्रॉन के चक्रण की दिशा में
(द) प्रोटॉन के चक्रण की दिशा में
प्रश्न 5.
भारी जल है-
(अ) D2O
(ब) D2O2
(स) H2O
(द) H2O2
उत्तरमाला:
1. (स)
2. (द)
3. (स)
4. (द)
5. (अ)
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हाइड्रोजन की खोज किसने की थी ?
उत्तर:
हाइड्रोजन की खोज हैनरी केवेण्डिश ने की थी।
प्रश्न 2.
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर हाइड्रोजन को किस वर्ग में रखना चाहिए ?
उत्तर:
हाइड्रोजन का परमाणु क्रमांक एक है अतः इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 होगा। इस आधार पर इसको IA या VIA(17) वर्ग में रखना चाहिए।
प्रश्न 3.
हाइड्रोजन के समस्थानिकों के नाम लिखिए तथा उनमें प्रोटोन, इलेक्ट्रोन व न्यूट्रोन की संख्या बताइए।
उत्तर:
हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं
(i) प्रोटियम 11H या H
P = 1, e = 1, n = 0
(ii) ड्यूटीरियम 12H या D
P = 1, e = 1, n = 1
(iii) ट्राइटियम 13H या T
P = 1, e = 1, n = 2
प्रश्न 4.
आर्थो हाइड्रोजन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब प्रोटोन या नाभिक का चक्रण एक ही दिशा में हो तो इस प्रकार के हाइड्रोजन को आर्थो हाइड्रोजन कहते हैं।
प्रश्न 5.
हाइड्रोजन का कौनसा समस्थानिक रेडियो सक्रिय है ?
उत्तर:
ट्राइटियम समस्थानिक रेडियो सक्रिय है। 13H या T.
प्रश्न 6.
हाइड्रोजन के स्थान पर गुब्बारों में हीलियम भरी जाती है, क्यों?
उत्तर:
हीलियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1He4 (1s2, 2s2) होता है। यह अक्रियाशील होती है जबकि हाइड्रोजन ज्वलनशील होती है। अतः हीलियम हल्की एवं अक्रियाशील होने के कारण हाइड्रोजन के स्थान पर गुब्बारों में भरी जाती है।
प्रश्न 7.
जल में ऑक्सीजन की संकरण अवस्था बताइए।
उत्तर:
जल में ऑक्सीजन की संकरण अवस्था sp3 होती है।
प्रश्न 8.
जल के अणु में बंध कोण का मान क्या होता है ?
उत्तर:
जल के अणु में बंध कोण का मान 104.5° होता है।
प्रश्न 9.
जल के उच्च क्वथनांक का क्या कारण है ?
उत्तर:
जल में हाइड्रोजन बन्ध पाया जाता है इसी कारण जल का क्वथनांक उच्च होता है।
प्रश्न 10.
जल का घनत्व किस ताप पर अधिकतम होता है ?
उत्तर:
जल का घनत्व 4°C ताप पर अधिकतम होता है।
प्रश्न 11.
कैल्सियम कार्बाइड पर जल की क्रिया से कौनसी गैस नहीं बनती है ?
उत्तर:
CaC2 +2H2O → Ca(OH)2 + C2H2
इस प्रकार एसीटिलीन गैस बनती है।
प्रश्न 12.
जल की अस्थाई कठोरता का क्या कारण है ?
उत्तर:
जल की अस्थाई कठोरता कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट की उपस्थिति के कारण होती है।
प्रश्न 13.
केलगॉन का रासायनिक सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सोडियम हेक्सा मेटा फास्फेट Na6P4O18 को केलगॉन कहते हैं।
प्रश्न 14.
H2O2 में ऑक्सीजन का ऑक्सीकरण अंक क्या होता है ?
उत्तर:
H2O2
2(+1) + 2x = 0
2 + 2x = 0
2x = 2
x = 1
अतः +1 होता है।
प्रश्न 15.
H2O2 की संरचना किस प्रकार की होती है ?
उत्तर:
खुली पुस्तक के समान असमतलीय होती है। इसका बन्ध कोण 101.9° होता है एवं 0 – 0 के मध्य बन्ध दूरी 145.8 pm होती है।
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
हाइड्रोजन की क्षार धातुओं से समानताएँ लिखिए।
उत्तर:
हाइड्रोजन की क्षार धातुओं से निम्न समानताएँ होती हैं-
- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – हाइड्रोजन तथा क्षार धातुओं के बाह्यतम कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ns1) समान होता है अर्थात् दोनों के बाह्यतम कोश के s कक्षक में एक इलेक्ट्रॉन पाया जाता है।
1H = 1s1
3Li = 1s22s1
11Na = 1s22s22p63s1 - विद्युत धनात्मक प्रकृति – हाइड्रोजन तथा क्षार धातु एक संयोजी धनायन बनाते हैं।
H → H+ + e–
Na → Na+ + e - अधातुओं से अभिक्रिया – क्षार धातु एवं हाइड्रोजन दोनों ही अधातुएँ या विद्युत ऋणी तत्त्वों के साथ सुगमता से अभिक्रिया कर लेती है।
H2 + Cl2 → 2HCl
2Na + Cl2 → 2NaCl - ऑक्सीकरण अवस्था-हाइड्रोजन भी क्षार धातु यौगिक के समान +1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है। अतः हाइड्रोजन के अधिकांश यौगिकों में उसका ऑक्सीकरण अंक +1 होता है।
प्रश्न 17.
हाइड्रोजन की हेलोजन से समानताएँ लिखिए।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-हाइड्रोजन तथा हैलोजन दोनों के बाह्यतम विन्यास में संगत उत्कृष्ट गैस विन्यास से एक इलेक्ट्रॉन कम होता है। इसी कारण यह हैलोजनों के समान (FCI) एक संयोजी ऋणायन (H) बनाती है।
1H = 1s2 (2He = 1s1]
9F = 1s2 2s22p5 [10Ne = 1s2 2s2 2p6]
(ii) अधातु गुण-हैलोजनों के समान हाइड्रोजन भी एक अधातु है।
(iii) आण्विक अवस्था-हैलोजनों के समान, हाइड्रोजन भी द्विपरमाणुक अणु बनाता है, जैसे – H2, F2, Cl2 इत्यादि।
(iv) आयनन एन्थैल्पी-हाइड्रोजन की आयनन एन्थैल्पी भी हैलोजनों की आयनन एन्थैल्पी के समान उच्च होती है।
(∆iH = 1312 kJ mol-1 तथा ∆iF = 1680 kJmol-1)
(v) धातुओं तथा अधातुओं से क्रिया-हैलोजनों के समान हाइड्रोजन भी विभिन्न धातुओं तथा अधातुओं से क्रिया करके समान रससमीकरणमिति के यौगिक बनाती है। जैसे –
CaH2 CH4
CaCl2 CCl4
धातुओं के साथ बने यौगिक आयनिक होते हैं जबकि अधातुओं के साथ बने यौगिकों में सहसंयोजी गुण पाया जाता है।
(vi) संगलित अवस्था में NaX का ऋणायन (X–) एनोड़ पर इलेक्ट्रॉन प्रदान कर X2 बनाता है उसी प्रकार NaH का ऋणायन (H–) भी एनोड पर इलेक्ट्रॉन देकर H2 बनाता है।
प्रश्न 18.
बर्फ पानी पर तैरती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बर्फ की संरचना (Structure of Ice)-x-किरण अध्ययन से ज्ञात होता है कि बर्फ के क्रिस्टल में प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु चार हाइड्रोजन परमाणुओं से चतुष्फलकीय रूप से घिरा होता है। हाइड्रोजन बंध के कारण बर्फ की संरचना खुले हुए पिंजरे के समान होती है जिसमें बड़े छिद्र होते हैं, इसी कारण बर्फ का घनत्व जल से कम होता है तथा यह जल की सतह पर तैरती है। अतः बर्फ की एक सुव्यवस्थित, रंध्रयुक्त, त्रिविमीय हाइड्रोजन बंधित संरचना होती है।
प्रश्न 19.
जल की स्थाई कठोरता को दूर करने के लिए धावन सोडा विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस विधि में कठोर जल की क्रिया धावन सोडे से कराने पर कैल्सियम व मैग्नीशियम के क्लोराइड व सल्फेट अवक्षेपित हो जाते हैं, जिन्हें छानकर पृथक् कर लिया जाता है।
MgSO4 + Na2CO3 → MgCO3 ↓ + Na2 SO4
MgCl2 + Na2CO3 → MgCO3 ↓ +2NaCl
CaSO4 + Na2C03 → CaCO3 ↓ +Na2SO4
CaCl2 + Na2CO3 → CaCO3↓ +2NaCl
प्रश्न 20.
हाइड्रोजन सामान्य ताप व दाब पर एक परमाण्विक की अपेक्षा द्विपरमाण्विक अवस्था में क्यों पाया जाता है ?
उत्तर:
हाइड्रोजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1st है, अतः यह अपने निकटतम उत्कृष्ट गैस (He) के समान स्थायी इलेक्ट्रोनिक विन्यास प्राप्त करना चाहता है जिसे प्राप्त करने के लिए दो हाइड्रोजन परमाणु परस्पर संयोग करते हैं तथा ये एक-एक इलेक्ट्रॉन का साझा करके स्थायी सहसंयोजक बंध द्वारा द्वि-परमाण्विक अणु (H-H) बनते हैं। इस प्रक्रिया में अधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इससे भी इसके स्थायित्व की पुष्टि होती है।
H(g) + H(g) → H2(g), ∆H = – 435.8 kJ mol-1
प्रश्न 21.
भारी जल की अभिक्रियाएँ मन्द क्यों होती हैं ?
उत्तर:
भारी जल का O-D बन्ध, सामान्य जल के O-H बन्ध की तुलना में अधिक प्रबल होता है। जिसके कारण भारी जल की अभिक्रियाएँ साधारण जल की तुलना में मन्द होती हैं।
प्रश्न 22.
H2O2 के कोई चार उपयोग लिखिए।
उत्तर:
(i) H2O2 का उपयोग मंद कीटनाशी एवं बालों के विरंजन । में किया जाता है।
(ii) प्रतिरोधी (antiseptic) के रूप में क्रिया जाता है।
(iii) वस्त्र, कागज की लुगदी, चमड़ा, तेल, वसा आदि के विरंजन कारक के रूप में किया जाता है।
(iv) इसे दूध, शराब इत्यादि के परिरक्षण में प्रयुक्त किया जाता ।
प्रश्न 23.
डाइहाइड्रोजन बनाने की प्रयोगशाला विधि का वर्णन । कीजिए।
उत्तर:
प्रयोगशाला में डाइहाइड्रोजन गैस को दानेदार जिंक की तनु सल्फ्यूरिक अम्ल से अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस विधि में दानेदार जिंक को वुल्फ बोतल में लेते हैं तथा सल्फ्यूरिक अम्ल को कीप द्वारा एक-एक बूंद करके डालते हैं एवं उत्पन्न गैस को जल के निचले । भाग में विस्थापन विधि द्वारा गैस जार में एकत्रित कर लेते हैं।
प्रश्न 24.
परम्युटिट किसे कहते हैं ?
उत्तर:
परम्यूटिट या जीओलाइट जल युक्त सोडियम एलुमिनियम सिलिकेट Na2Al2Si2O8.6H2O को कहते हैं। इसे NaZ से प्रदर्शित करते हैं।
प्रश्न 25.
भारी जल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
D2O को भारी जल कहते हैं। इसे भारी हाइड्रोजन (D2) का ऑक्साइड भी कहते हैं। साधारण जल के 6000 भाग में D2O का एक भाग उपस्थित होता है।
प्रश्न 26.
प्राचीन लैड पेंटिंग को H2O2 के तनु विलयन से क्यों धोया जाता है ?
उत्तर:
प्राचीन लैड पेंटिंग को वातावरण में जब लम्बे समय तक रखा जाता है तो वायुमण्डल में उपस्थित H2S की अल्पमात्रा लैड ऑक्साइड (PbO) को लैड सल्फाइड (Pbs) में बदल देती है जिससे पेंटिंग काली पड़ जाती है। इसके कालेपन को दूर करने के लिए इन्हें कुछ समय तक H2O2 विलयन में रखा जाता है जिससे लैड सल्फाइड लैड सल्फेट के रूप में ऑक्सीकृत हो जाता है।
Pbs + H2O2 → PbSO4 + 4H2O
प्रश्न 27.
H2O2 की विरंजक क्रिया को समझाइये।
उत्तर:
H2O2 अपघटित होकर नवजात ऑक्सीजन देता है, अतः यह एक विरंजक कारक की तरह कार्य करता है। यह नवजात ऑक्सीजन पदार्थ को ऑक्सीकृत कर देती है। नम अवस्था में इस प्रकार से प्राप्त नवजात ऑक्सीजन रेशम, सिल्क, पुष्प, बाल, नरम लकड़ी इत्यादि का रंग उड़ाने में प्रयुक्त की जाती है।
H2O2 → H2O + [O]
प्रश्न 28.
कोल गैसीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सिन्गैस (कोल गैस) का निर्माण कोल तथा जलवाष्प से बॉश (Bosch Process) विधि द्वारा किया जाता है, इसे कोल गैसीकरण कहते हैं। इस क्रिया में रक्त तप्त कोयले पर 1270K ताप पर जलवाष्प डालते हैं।
जल गैस के मिश्रण में उपस्थित CO से H2O की क्रिया द्वारा H, का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। यह क्रिया आयरन क्रोमेट (FeCrO4) उत्प्रेरक द्वारा तीव्रता से होती है। इसे भाप अंगार गैस सृति अभिक्रिया (water gas shift reaction) कहते हैं।
प्रश्न 29.
जल की अस्थायी और स्थायी कठोरता के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
जल एक सार्वभौमिक (Universal) विलायक है। वर्षा का जल इसका शुद्धतम रूप होता है परन्तु जब यह जमीन पर गिरता है। तो मृदा में उपस्थित बाइकार्बोनेट, क्लोराइड सल्फेट Ca2+ तथा Mg2+ आयन इसे कठोर बना देते हैं।
जल की अस्थायी कठोरता का कारण Ca(HCO3)2 तथा Mg(HCO3)2, हैं जबकि स्थायी कठोरता का कारण विलेयशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम क्लोराइड (CaCl2, MgCl2) एवं सल्फेट (CaSO4, MgSO4) हैं।
प्रश्न 30.
H2O2 का भंडारण क्यों और कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
H2O2 को विघटन से बचाने के लिए अंधेरे में मोम की परत युक्त प्लास्टिक या कठोर काँच के पात्र में भण्डारित करते हैं, इसमें कुछ मात्रा में यूरिया स्थायी कारक के रूप में मिलाया जाता है इन्हें धूल के कणों से दूर रखा जाता है क्योंकि धूल से H2O2 का विस्फोटन हो सकता है।
RBSE Class 11 Chemistry Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 31.
आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को एक पृथक् स्थान देना तर्कसंगत है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाइड्रोजन तथा क्षार धातुओं में निम्नलिखित समानताएँ होती है।
(1) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-हाइड्रोजन तथा क्षार धातुओं के बाह्यतम कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ns1) समान होता है अर्थात् दोनों के बाह्यतम कोश के s कक्षक में एक इलेक्ट्रॉन पाया जाता है।
1H = 1s1
3Li = 1s2 2s1
11Na = 1s2 2s2 2p6 3s1
(2) ऑक्सीकरण संख्या-हाइड्रोजन तथा क्षार धातु एक संयोजी धनायन बनाते हैं।
H → H+ + e–
Na → Na+ + e–
(3) अधातुओं से क्रिया-हाइड्रोजन भी क्षार धातुओं के समान विभिन्न अधातुओं से क्रिया करके यौगिक बनाती है।
2H1 + O2 → 2H2O
4Na + O2 → 2Na2O
(4) विद्युतधनी प्रकृति-हाइड्रोजन का विद्युतधनी गुण लिथियम से कम होता है तथा प्रथम वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युतधनी गुण बढ़ता है अतः इसे प्रथम वर्ग में Li के ऊपर रखा जा सकता है।
H2 + Cl2 → 2HCl
2Na + Cl2 → 2NaCl
क्षार धातुओं की भाँति हाइड्रोजन भी एक इलेक्ट्रॉन त्याग कर एकल संयोजी धनायन का निर्माण करते हैं।
H → H+ + e
Na → Na+ + e
इस व्यवहार की पुष्टि दो प्रयोगों से की जाती है।
- जब अम्लीकृत जल का विद्युत अपघटन किया जाता है तो । कैथोड पर हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है।
- जब गलित सोडियम क्लोराइड का विद्युत अपघटन कराया जाता है तो कैथोड पर सोडियम मुक्त होता है।
(5) संयोजकता-क्षार धातुओं के समान हाइड्रोजन की संयोजकता भी एक होती है।
(6) अपचायक प्रकृति-क्षार धातुओं के समान हाइड्रोजन भी । अपचायक प्रकृति दर्शाते हैं। ये दोनों यौगिकों से ऑक्सीजन को हटाते ।
B2O3 +6K \(\underrightarrow { \Delta }\) 2B + 3K2O
Fe3O4 +4H2 → 3Fe + 4H2O
हाइड्रोजन की क्षार धातु से भिन्नता –
हाइड्रोजन, क्षार धातुओं से निम्नलिखित गुणों में असमानता दर्शाती है
- हाइड्रोजन की आयनन एन्थैल्पी, क्षार धातुओं से बहुत अधिक होती है अतः इसका विद्युत धनी गुण तथा क्रियाशीलता क्षार धातुओं की तुलना में बहुत कम होती है। तथा इसी कारण यह अधातु है जबकि क्षार धातु तत्त्व सक्रिय धातुएँ हैं।
- हाइड्रोजन के धनायन (H+) का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है जबकि क्षार धातुओं के धनायन (Li+, Na+) आयनिक क्रिस्टलों में इसी रूप में पाए जाते हैं।
- क्षार धातुओं के यौगिकों में आयनिक गुण होता है जबकि हाइड्रोजन सामान्यतः सहसंयोजी यौगिक बनाता है।
- हाइड्रोजन द्विपरमाण्विक (H2) है जबकि क्षार धातुएँ एक परमाण्विक (Li, Na, K, Rb, Cs) हैं।
प्रश्न 32.
हाइड्राइड किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
डाइहाइड्रोजन निश्चित परिस्थितियों में उत्कृष्ट गैसों के अतिरिक्त लगभग सभी तत्त्वों के साथ संयोग करके द्विअंगी यौगिक बनाते हैं। जिन्हें हाइड्राइड कहते हैं, इन्हें EHx या EmHn द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। जैसे MgH2, B2H6 आदि।
IUPAC के अनुसार वे तत्त्व जिनकी विद्युत ऋणता हाइड्रोजन से कम होती है हाइड्रोजन के साथ मिलकर हाइड्राइड बनाते हैं, जैसे NaH, CaH2, इत्यादि, परन्तु हाइड्रोजन के वे द्विअंगी यौगिक जिनमें हाइड्रोजन की विद्युत ऋणता दूसरे तत्त्व से कम होती है वे वास्तव में हाइड्राइड नहीं होते हैं लेकिन इन्हें भी हाइड्राइडों की श्रेणी में ही लिया जाता है तथा इन्हें हाइड्रोजन आइड कहा जाता है जैसे HCl (हाइड्रोजन क्लोराइड)।
हाइड्राइडों का वर्गीकरण (Classification of Hydrides): हाइड्राइडों में उपस्थित बन्ध की प्रकृति के आधार पर इन्हें मुख्यतः तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है –
- सहसंयोजक या आण्विक हाइड्राइड
- आयनिक या लवणीय या लवण-समान हाइड्राइड
- धात्विक या अरससमीकरणमितीय हाइड्राइड या अन्तराकाशी हाइड्राइड।
1. सहसंयोजक या आण्विक हाइड्राइड (Covalent or Molecular Hydrides):
अधिकतर p-ब्लॉक के तत्त्व हाइड्रोजन के साथ इलेक्ट्रॉनों का साझा करके सहसंयोजक हाइड्राइड बनाते हैं तथा ये अणु के रूप में पाए जाते हैं अतः इन्हें आण्विक हाइड्राइड भी कहा जाता है। उदाहरण – CH4, NH3, H2O तथा HF इत्यादि । अधातु तथा हाइड्रोजन से बने इन यौगिकों को भी सुविधा की दृष्टि से हाइड्राइड माना गया है जबकि वास्तव में ये हाइड्राइड नहीं हैं क्योंकि इनमें हाइड्रोजन, दूसरे तत्त्व की तुलना में कम विद्युतऋणी है।
सहसंयोजक हाइड्राइड मुख्यतः तत्त्वों का हाइड्रोजन के साथ सीधा संयोग, सहसंयोजक हैलाइडों का LiAlH4 द्वारा अपचयन तथा किसी धातु बोराइड, कार्बाइड, नाइट्राइड तथा सिलिसाइड के तनु HCl द्वारा जल अपघटन से बनाए जाते हैं। सहसंयोजक प्रकृति के होने के कारण ये हाइड्राइड वाष्पशील होते हैं एवं इनका गलनांक तथा क्वथनांक कम होता है। लुइस संरचना में इलेक्ट्रॉनों की आपेक्षिक संख्या तथा बंधों की संख्या के आधार पर इन्हें पुनः तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
- इलेक्ट्रॉन न्यून हाइड्राइड – इस प्रकार के हाइड्राइडों में। लुइस संरचना के लिए आवश्यक इलेक्ट्रॉनों से कम संख्या में इलेक्ट्रॉन होते हैं, अर्थात् इनमें इलेक्ट्रॉन की कमी होती है। इस प्रकार के हाइड्राइड 13वें वर्ग के तत्व बनाते हैं, जैसे – B2H6 । ये इलेक्ट्रॉन युग्म ग्राही होते हैं अतः लुइस अम्ल की भाँति व्यवहार करते हैं। इनकी आकृति त्रिकोणीय समतल होती है।
- इलेक्ट्रॉन परिशुद्ध हाइड्राइड – इनमें केन्द्रीय परमाणु पर पर्याप्त संख्या में इलेक्ट्रॉन उपलब्ध होते हैं। 14 वें वर्ग के तत्व इस प्रकार के हाइड्राइड बनाते हैं, जैसे- CH4, SiH4 इत्यादि जो कि चतुष्फलकीय ज्यामिति के होते हैं।
- इलेक्ट्रॉन समृद्ध हाइड्राइड – इन हाइड्राइडों में केन्द्रीय परमाणु पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म पाए जाते हैं। 15वें से 17वें वर्ग के तत्व इलेक्ट्रॉन समृद्ध हाइड्राइड बनाते हैं, जैसे – NH3 , H2O, HF। ये हाइड्राइड इलेक्ट्रॉन युग्म दाता होते हैं अतः ये लुइस-क्षार की तरह व्यवहार करते हैं। NH3 , H2 O तथा HF में N, O तथा F की उच्च विद्युतऋणता तथा इन पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों की उपस्थिति के कारण ये हाइड्रोजन बन्ध द्वारा संगुणित होते हैं अत: इनका क्वथनांक अपेक्षाकृत अधिक होता है तथा ये जल में विलेय होते हैं।
2. आयनिक या लवणीय हाइड्राइड (Ionic or Saline Hydrides):
अधिक विद्युतधनी प्रकृति के तत्त्व ( क्षार धातु, क्षारीय मृदा धातु तथा La) हाइड्रोजन के साथ मिलकर रससमीकरणमितीय हाइड्राइड बनाते हैं, इन्हें लवणीय हाइड्राइड कहते हैं। इस प्रकार के हाइड्राइडों में मुख्यत: आयनिक गुण होता है अतः इन्हें आयनिक हाइड्राइड भी कहा जाता है। यद्यपि कुछ हाइड्राइडों (LiH, BeH, तथा MgH,) में थोड़ा सहसंयोजी गुण भी पाया जाता है। वास्तव में LiH, BeH, तथा MgH, बहुलकों के रूप में पाए जाते हैं। आयनिक हाइड्राइडों में हाइड्रोजन, H के रूप में पायी जाती है।
सामान्यतः धातु तथा हाइड्रोजन की सीधे अभिक्रिया द्वारा आयनिक हाइड्राइड बनते हैं। जैसे –
गुण:
- आयनिक हाइड्राइड ठोस अवस्था में क्रिस्टलीय, अवाष्पशील तथा कुचालक होते हैं, तथापि क्षार-धातुओं के हाइड्राइड गलित अवस्था में विद्युत का चालन करते हैं। तथा इनके विद्युत-अपघटन से एनोड पर H2 मुक्त होती है, जिससे हाइड्राइड (H–) आयन के अस्तित्व की पुष्टि होती है।
- लवणीय हाइड्राइड जल के साथ अभिक्रिया करके विस्फोट के साथ हाइड्रोजन गैस देते हैं।
NaH(s) + H2O(aq) → NaOH(aq) + H2(g) - उच्च ताप पर आयनिक हाइड्राइड प्रबल अपचायक की भाँति व्यवहार करते हैं।
NaH + 2CO → HCOONa + C - लीथियम हाइड्राइड साधारण ताप पर O2 तथा Cl2 के साथ क्रिया करते हैं। अतः इनका उपयोग अन्य हाइड्राइड बनाने में किया जाता है। जैसे-
आयनिक या लवणीय हाइड्राइड
3. धात्विक या अरससमीकरणमितीय या अन्तराकाशी हाइड्राइड (Metallic or Non-stoichiometric or Interstitial Hydrides):
अन्तराकाशी हाइड्राइड सामान्यत: d तथा f – ब्लॉक के तत्वों (7 से 9 वर्ग के अलावा) द्वारा बनाए जाते हैं लेकिन छठे वर्ग में केवल Cr ही इस प्रकार के बनाता है। अन्तराकाशी हाइड्राइडों को उच्च ताप पर धातु द्वारा सीधे ही हाइड्रोजन के अवशोषण से या धातु ऑक्साइडों के विद्युत अपचयन द्वारा बनाया जा सकता है। हाइड्रोजन की कमी के कारण ये हाइड्राइड हमेशा अरससमीकरणमितीय होते हैं अर्थात् ये स्थिर संगठन के नियम का पालन नहीं करते हैं तथा इनका संगठन | परिवर्तनशील होता है।
उदाहरण – LaH2.87, TiH1.5-1.8, ZrH1.3-1.75, VH0.56, NiH0.6-0.7, PdH0.6-0.8 इत्यादि।
अन्तराकाशी हाइड्राइड ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक होते हैं। लेकिन इनकी चालकता जनक धातु से कम होती है। ये हाइड्राइड प्रबल अपचायक भी होते हैं क्योंकि इनमें हाइड्रोजन परमाण्वीय अवस्था में होती है।
पहले यह माना जाता था कि अन्तराकाशी हाइड्राइडों के धातुजालक में हाइड्रोजन अन्तराकाश में स्थित रहते हैं जिससे इनमें बिना किसी परिवर्तन की विकृति उत्पन्न होती है। अतः इन्हें ‘अंतराकाशी हाइड्राइड’ कहा गया था लेकिन बाद में अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ कि Ni, Pd, Ce तथा Ac के हाइड्राइडों को छोड़कर इस वर्ग के अन्य हाइड्राइडों का जालक, अपने जनक धातु से भिन्न होता है। संक्रमण धातुओं पर हाइड्रोजन के अवशोषण के इस गुण को उत्प्रेरकीय अपचयन अथवा हाइड्रोजनीकरण अभिक्रियाओं द्वारा अनेक यौगिक बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। कुछ धातुएँ हाइड्रोजन अनेक यौगिक बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। कुछ धातुएँ हाइड्रोजन के बहुत अधिक आयतन को अवशोषित कर लेती हैं जैसे Pd तथा Pt, अतः इन्हें हाइड्रोजन के भण्डारण में प्रयुक्त किया जाता है । हाइड्रोजन भण्डारण तथा ऊर्जा-स्रोत के रूप में इस गुण का प्रयोग भविष्य में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
प्रश्न 33.
जल की कठोरता से क्या तात्पर्य है ? जल की स्थायी कठोरता को दूर करने के लिए परम्युटिट विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामान्यतः वर्षा का जल लगभग शुद्ध होता है। यह जल जब पृथ्वी की सतह पर बहता है तो इसमें बहुत से लवण घुल जाते हैं। इससे जल कठोर हो जाता है। जल की कठोरता जल में विलेय कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के कार्बोनेट, क्लोराइड तथा सल्फेट के कारण होती है। अतः जल दो प्रकार का होता है – मृदु जल तथा कठोर जल।
मृदु जल (Soft water) – मृदु जल वह होता है जिसमें विलेयशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण नहीं होते हैं तथा यह साबुन के साथ आसानी से झाग दे देता है।
कठोर जल (Hard water) – वह जल जिसमें विलेयशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण, कार्बोनेट क्लोराइड तथा सल्फेट के रूप में उपस्थित होते हैं, उसे कठोर जल कहते हैं। यह साबुन के साथ आसानी से झाग नहीं देता है।
जल की कठोरता के कारण: कठोर जले साबुन के साथ अवक्षेप देता है क्योंकि साबुन में उपस्थित सोडियमस्टीयरेट (C17H35COONa) कठोर जल से क्रिया करके कैल्सियम या मैग्नीशियम स्टीयरेट का अवक्षेप बना देता है।
कठोर जल में उपस्थित कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवणों का । जब तक पूर्ण रूप से अवक्षेपण नहीं हो जाता है तब तक यह जल साबुन के साथ झाग नहीं देता है। इस प्रक्रिया में बहुत सारा साबुन । बेकार चला जाता है। अतः कठोर जल धुलाई के लिए उपयुक्त नहीं होता है। यह भाप क्वथित्र (Steam Boiler) के लिए भी उपयुक्त नहीं होता क्योंकि इसके लवण (CaSO4, MgSO4) पपड़ी के रूप में बायलर पर जमा हो जाते हैं जिससे उनकी दक्षता कम हो जाती है।
जल की कठोरता के प्रकार (Types of Hardness of Water):
जल की कठोरता दो प्रकार की होती है – (अ) अस्थायी कठोरता (ब) स्थायी कठोरता। (अ) अस्थायी कठोरता (Temporary Hardness)
अस्थायी कठोरता जल में कैल्सियम एवं मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट (हाइड्रोजन कार्बोनेट) की उपस्थिति के कारण होती है। इसे अस्थायी कठोरता इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे जल को गरम करने, उबालने, अथवा आसवन द्वारा दूर किया जा सकता है।
सामान्यतया जल की अस्थायी कठोरता को –
- उबालकर तथा
- क्लार्क विधि द्वारा दूर करते हैं।
1. उबालकर (By Boiling) – जब जल को उबाला जाता है तो Mg(HCO3)2) तथा Ca(HCO3)2 जैसे विलेयशील लवण, अविलेय Mg(OH)2 तथा CaCO3 के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं । MgCO3 की तुलना में Mg(OH)2 का विलेयता गुणनफल अधिक होता है अतः Mg(OH)2 अवक्षेप दे देता है। इसे छानकर पृथक् कर देते हैं तथा यह छनित ही मृदु जल होता है।
इस विधि को बड़े पैमाने पर प्रयुक्त करना सम्भव नहीं है।
2. क्लार्क विधि (By Clarks Method) – क्लार्क विधि में बुझे हुए चूने की परिकलित मात्रा को अस्थायी कठोरता युक्त जल में मिलाकर कुछ समय तक रखते हैं तथा इसे छान लेते हैं। ऐसा करने पर विलेय लवण, अविलेय लवणों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा जल की कठोरता दूर हो जाती है। अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार से होती हैं –
(ब) स्थायी कठोरता (Permanent Hardness):
जल की स्थायी कठोरता का कारण उसमें विलेय कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के क्लोराइड तथा सल्फेट के कारण होती है। यह कठोरता । जल को उबालकर दूर नहीं की जा सकती है।
स्थायी कठोरता की पहचान यह है कि इस जल में साबुन झाग (Foams) नहीं देता है न ही इसमें फसल अच्छी होती है और न ही यह पाचन क्रिया में लाभकारी है। निम्नलिखित विधियों द्वारा जल की स्थायी कठोरता को दूर किया जा सकता है
(1) धावन सोडा ( सोडियम कार्बोनेट) द्वारा (By Washing Soda-Sodium Carbonate) – इस विधि में कठोर जल में धावन सोडा (सोडियम कार्बोनेट) मिलाते हैं, जिससे यह विलेय कठोर लवणों को अविलेय कार्बोनेट में बदल देता है। इससे जल की कठोरता दूर हो जाती है तथा कठोरता उत्पन्न करने वाले आयन अवक्षेपित हो जाते हैं। अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है
अवक्षेप अवक्षेप को छानकर जल को पृथक् कर दिया जाता है। सोडियम कार्बोनेट के प्रयोग से अस्थायी कठोरता को भी दूर किया जा सकता है।
Ca(HCO3)2+ Na2CO3 → CaCO3 ↓ + 2NaHCO3
(2) परम्यूटिट विधि या आयन विनिमय विधि द्वारा (By Permutit Method or Ion Exchange Method) – परम्यूटिट या जियोलाइट एक जलयुक्त सोडियम ऐलुमिनियम सिलिकेट (NaAlSiO4. 3H2O या Na2Al2Si2O8. 6H2O) है तथा इसका संकेत Naz है। यह जल की कठोरता उत्पन्न करने वाले आयनों को बाँध लेता है जिससे जल मृदु हो जाता है। इसमें निम्नलिखित धनायन विनिमय अभिक्रिया होती है
जब परम्यूटिट में उपस्थित सोडियम आयन पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं तब जलीय सान्द्र (5 -10%) NaCl विलयन द्वारा उपचारित करके इसको पुनर्जनित (Regenerate) कर लिया जाता है।
MZ2(s) + 2NaCl(aq) → 2NaZ(s) + MCl2(aq)
विधि – कठोर जल को एक स्तम्भ में निक्षेपित परम्यूटिट की परतों पर से प्रवाहित किया जाता है जिससे उसमें उपस्थित कैल्सियम । तथा मैग्नीशियम लवण परम्यूटिट से क्रिया करके सोडियम लवण व कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के परम्यूटिट बना देते हैं इससे जल की। कठोरता दूर हो जाती है।
परम्यूटिट विधि द्वारा जल की कठोरता दूर करना
(3) कै लगॉन विधि द्वारा (By Calgon’s Method) – सोडियम हेक्सामेटाफॉस्फेट (Na2P6O18) को कैलगॉन कहते हैं। इसका सामान्य सूत्र Na2[Na4(PO3)6] होता है। जब जल की कठोरता उत्पन्न करने वाले कैल्सियम एवं मैग्नीशियम लवण इससे क्रिया करते हैं तो वे स्थायी तथा विलेय संकुल बनाकर जल से पृथक् हो जाते हैं। जिससे जल की कठोरता दूर हो जाती है।
बॉयलर में काम आने वाले जल को इस विधि द्वारा शुद्ध किया जाता है। जल की कठोरता दूर करने की यह आधुनिक विधि है।
(4) आयन विनिमयक संश्लेषित रेजिन्स द्वारा (By the Synthetic lon Exchange Resins) – जल की कठोरता दूर करने की यह एक नई, सस्ती एवं सरल विधि है। इस विधि में मुख्यतः संश्लेषित धनायन विनिमयक रेजिन्स का प्रयोग करते हैं। धनायन विनिमयक रेजिन – SO3H समूहयुक्त जल में अविलेय वृहत (large) कार्बनिक यौगिक होते हैं। इस आयन विनिमय रेजिन (RSOH) की NaCl से क्रिया कराके इसे RNa में परिवर्तित कर लिया जाता है। यहाँ R एक रेजिन ऋणायन है। यह रेजिन कठोर जल में उपस्थित Ca2+ तथा Mg2+ का विनिमय Na+ से करके कठोर जल को मृदु कर देता है।
2RNa + Ca2+(aq) → R2Ca(s) + 2Na+(aq)
रेजिन को पुनर्जनित करने के लिए इसकी क्रिया NaCl के साथ करवायी जाती है। जल को क्रमशः धनायन विनिमयक तथा ऋणायन विनिमयक रेजिन में से प्रवाहित करके शुद्ध जल प्राप्त किया जाता है।
2RH(s) + M2(aq) → R2M(s) + 2H+(aq) (M2+ = Ca2+/Mg2+)
धनायन विनिमय प्रक्रम में जल में उपस्थित Ca2+ तथा Mg2+ आयन का विनिमय H+ द्वारा हो जाता है तथा प्रोटॉन (H+) का निष्कासन होता है जिससे जल अम्लीय हो जाता है।
इसी प्रकार ऋणायन विनिमय प्रेक्रम में OH– का विनिमय जल में उपस्थित Cl–, SO42- तथा HCO3–, (\(\overline { X }\) ) आयनों द्वारा होता है।
RNH2(s) + H2O(l) ⇌ RNHOH(aq)
RNH, OHT(s) + X (aq) = RNH3+. X–(s) + OH–
इस प्रक्रम में OH– आयन निष्कासित होते हैं जो कि धनायन विनिमय से निष्कासित H+ आयनों से क्रिया करके H2O बनाते हैं। जिससे जल उदासीन हो जाता है तथा प्राप्त जल विखनिजित (Demineralised) एवं विआयनित (Deionised) होता है।
H+ (aq) + OH–(aq) → H2O(l)
जब धनायन तथा ऋणायन विनिमयकों के रेजिन तलों का पूर्ण रूप से उपयोग हो जाता है तो इन्हें क्रमश: तनु अम्ल तथा तनु क्षार विलयनों से अभिक्रिया कराकर पुनर्जनित कर लिया जाता है। संक्षेप में अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है-
संश्लेषित रेजिन विधि
प्रश्न 34.
जल में आण्विक संगठन से क्या तात्पर्य है ? जल के अणु की संरचना को सचित्र समझाइए। बर्फ के साधारण रूप की संरचना का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीवों का एक बहुत बड़ा भाग जल द्वारा ही निर्मित होता है। मानव शरीर में लगभग 65% तथा कुछ पौधों में लगभग 95% जल होता है। सजीवों के जीवित रहने के लिए जल एक अतिआवश्यक यौगिक है तथा यह एक महत्त्वपूर्ण विलायक भी है। पृथ्वी की सतह पर जल का वितरण एकसमान नहीं होता है तथा इसकी अधिकतम मात्रा (97.33%) महासागरों में उपस्थित होती है। इसके पश्चात् 2.04% जल ध्रुवीय बर्फ तथा ग्लेशियर के रूप में पाया जाता है। तथा जल की शेष मात्रा भूमिगत जल, झीलों, नदियों तथा वायुमण्डलीय जलवाष्प में पायी जाती है।
जल की संरचना (Structure of Water): जल के अणु (H2O) में ऑक्सीजन पर sp3 संकरण होता है तथा इसमें ऑक्सीजन पर दो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होने के कारण गैस अवस्था में इसकी आकृति V-जैसी, कोणीय या बंकित (bent) होती है। 1.p – 1.p प्रतिकर्षण के कारण बन्ध कोण का मान 104.5° हो जाता है तथा इसमें O – H बन्ध लम्बाई 95.7 pm होती है।
चित्र 9.6 :
(a) जल के अणु की संरचना
(b) जल के अणु का आण्विक कक्षक अतिव्यापन चित्रण
H2O जल में ऑक्सीजन की। विद्युतऋणता अधिक होने के कारण O – H बन्ध ध्रुवीय होता है, अत: यह एक द्विध्रुव के 8 रूप में व्यवहार करता है। इसी कारण इसमें हाइड्रोजन बन्ध बनाने की प्रवृत्ति होती है। जल का क्रिस्टलीय रूप, बर्फ होती है।
वायुमण्डलीय दाब पर जल का क्रिस्टलीकरण होकर षट्कोणीय आकृति के क्रिस्टल बनते हैं। लेकिन कम ताप पर यह घनीय आकृति के रूप में संघनित होता है।
बर्फ का घनत्व जल से कम होता है, अतः बर्फ जल की। सतह पर तैरती रहती है। शीतकाल में झीलों में पानी की सतह पर जमी बर्फ की परत जल के लिए तापरोधक का कार्य करती है, जिससे जलीय जीव सुरक्षित रहते हैं। यह पारिस्थितिकी (Ecological) दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
प्रत्येक अणु का धनावेशित हाइड्रोजन, अन्य अणु के ऋणावेशित ऑक्सीजन की ओर आकर्षित होकर एक नये प्रकार का दुर्बल बन्ध बनाता है जिसे हाइड्रोजन बन्ध कहते हैं। इसी हाइड्रोजन बंध की उपस्थिति के कारण जल में आण्विक संगुणन होता है।
जल का उच्च हिमांक, उच्च क्वथनांक, उच्च वाष्पन ऊष्मा, उच्च संलयन ऊष्मा का कारण जल के अणुओं के मध्य प्रबल हाइड्रोजन बन्ध का उपस्थित होना है।
बर्फ की संरचना (Structure of Ice):
X – किरण अध्ययन से ज्ञात होता है कि बर्फ के क्रिस्टल में प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु चार हाइड्रोजन परमाणुओं से चतुष्फलकीय रूप सेघिरा होता है। हाइड्रोजन बंध के कारण बर्फ की संरचना खुले हुए पिंजरे के समान होती है जिसमें बड़े छिद्र होते हैं, इसी कारण बर्फ का घनत्व जल से कम होता है तथा यह जल की सतह पर तैरती है। अतः बर्फ की एक सुव्यवस्थित, रंध्रयुक्त, त्रिविमीय हाइड्रोजन बंधित संरचना होती है।
बर्फ अणु की संरचना
प्रश्न 35.
H2O2 के संदर्भ में निम्नलिखित अभिक्रियाओं को समझाइए
(अ) ऑक्सीकारक एवं अपचायक गुण
(ब) योगात्मक अभिक्रियाएँ
(स) पराक्साइड का निर्माण
(द) विघटन।
उत्तर:
रासायनिक गुण (Chemical Properties)
H2O2 के रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं –
(1) विघटन ( अपघटन ) (Decomposition) – शुद्ध हाइड्रोजन परॉक्साइड अस्थायी होता है अतः यह धीरे – धीरे अपघटित होकर जल तथा ऑक्सीजन देता है। यह प्रक्रम ऊष्माक्षेपी होता है।
2H2O2 → 2H2O + O2
∆H = – 196 KJ/m
H2O2 का विघटन Pt, Au, Co, Cu आदि द्वारा उत्प्रेरित होता है तथा H2O2 के विघटन को अम्ल की कम मात्रा, एल्कोहल या ऐसीटेनिलाइड को मिलाकर रोका जा सकता है।
2. अपचयोपचय अभिक्रियाएँ (Redox Reactions) – हाइड्रोजन परॉक्साइड, अम्लीय तथा क्षारीय दोनों माध्यम में ऑक्सीकारक तथा अपचायक दोनों के रूप में कार्य करता है।
(i) ऑक्सीकारक गुण (Oxidising Property):
अम्लीय माध्यम में – हाइड्रोजन परॉक्साइड फैरस आयन (Fe2+) को फैरिक ऑयन (Fe3+) में लैड सल्फाइड (PbS) को लैड सल्फेट (PbSO4) में, I– को II2 में तथा फेरोसायनाइड आयन को फेरीसायनाइड आयन में ऑक्सीकृत कर देता है।
क्षारीय माध्यम में – H2O2, Fe+2 को Fe+3 में तथा Mn2+ को Mn+4 में ऑक्सीकृत करता है।
2Fe2+(aq) + H2O2(aq) → 2Fe3+(aq) + 20H– (aq)
Mn2+(aq) + H2O2(aq) → Mn4+(aq) + 20H– (aq)
क्षारीय माध्यम में यह क्रोमियम आयन (Cr3+) को क्रोमेट आयन (CrO42-) में ऑक्सीकृत करता है।
2Cr3+ (aq) + 3H2O2(aq) + 100H–(aq) → 2Cr3+(aq) + 8H2O(l)
(ii) अपचायक गुण (Reducing Property) :
1. अम्लीय माध्यम में – H2O2, MnO4– को Mn2+ तथा HOCl को Cl– एवं O2 में अपचयित कर देता है।
2. क्षारीय माध्यम में – H2O2, I2 को I– में तथा MnO4– को MnO2 में अपचयित कर देता है।
3. परॉक्साइड का निर्माण – निर्जल हाइड्रोजन परॉक्साइड अम्लीय है, अतः क्षारक के साथ अभिक्रिया कर लवण बनाते हैं।
4. विरंजन क्रिया (Bleaching action) – हाइड्रोजन परॉक्साइड एक मृदु विरंजक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। ऑक्सीकरण अभिक्रिया के कारण इसकी विरंजन क्रिया होती है।
5. योगात्मक अभिक्रियाएँ – हाइड्रोजन परॉक्साइड स्वयं एथीलीनिक श्रृंखला से जुड़ने में सक्षम हैं।
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