Rajasthan Board RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 कम्प्यूटर नेटवर्किंग
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 बहचयनात्मक
प्रश्न 1.
इसमें से कौन-सा ट्रांसमिशन माध्यम है
(अ) मॉडेम
(ब) मल्टीप्लेक्सर
(स) हब
(द) कोऐक्सिअल केबल
उत्तर:
(द) कोऐक्सिअल केबल
प्रश्न 2.
सबसे पुरानी एवं अधिक काम में आने वाली ट्रांसमिशन लाइन है
(अ) कोऐक्सिअल केबल
(ब) फाइबर ऑप्टिक
(स) ट्विस्टेड पेअर
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) ट्विस्टेड पेअर
प्रश्न 3.
WAN का मतलब है
(अ) वायर एरिया नेटवर्क
(ब) लोकल एरिया नेटवर्क
(स) वाइड एरिया नेटवर्क
(द) वायर एक्सेसिबल नेटवर्क
उत्तर:
(स) वाइड एरिया नेटवर्क
प्रश्न 4.
OSI मॉडल में कितनी परते हैं?
(अ) 4
(ब) 2
(स) 7
(द) 5
उत्तर:
(स) 7
प्रश्न 5.
कौन-सा उपकरण पैकेट्स को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में भेजता है?
(अ) राउटर
(ब) हब
(स) स्विच
(द) गेटवे
उत्तर:
(अ) राउटर
प्रश्न 6.
किस तरह के ट्रांसमिशन में तरंगें सभी दिशाओं में जाती हैं?
(अ) रेडियो लिंक
(ब) माइक्रोवेव
(स) इन्फ्रारेड
(द) उपग्रह
उत्तर:
(अ) रेडियो लिंक
प्रश्न 7.
TCP/IP मॉडल की कौन-सी परत ट्रांसपोर्टेशन का काम करती है?
(अ) एप्लीकेशन
(ब) ट्रांसपोर्ट
(स) नेटवर्क एक्सेस
(द) इन्टरनेट
उत्तर:
(ब) ट्रांसपोर्ट
प्रश्न 8.
एनालॉग सिग्नल की शक्ति बढ़ाने के लिए किस उपकरण का प्रयोग करते हैं?
(अ) एम्प्लीफायर
(ब) ट्रांसमीटर
(स) रिपीटर
(द) ट्रांसपोंडर
उत्तर:
(अ) एम्प्लीफायर
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से किस उपकरण में टेलीफोन लाइन का उपयोग होता है?
(अ) राऊटर
(ब) मॉडेम
(स) स्विच
(द) हब
उत्तर:
(ब) मॉडेम
प्रश्न 10.
निम्न में से कौन फायरवॉल का भी काम कर सकता है?
(अ) राउटर
(ब) मॉडेम
(स) स्विच
(द) हब
उत्तर:
(अ) राउटर
प्रश्न 11.
कम्प्यूटर IP किस नम्बर सिस्टम में लिखता है?
(अ) बाइनरी
(ब) डेसीमल
(स) हेक्साडेसीमल
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) बाइनरी
प्रश्न 12.
IPV6 कितने बिट का एड्रेस है?
(अ) 128
(ब) 64
(स) 28
(द) 32
उत्तर:
(अ) 128
प्रश्न 13.
IP की क्लास D को किस नाम से पुकारते हैं?
(अ) ब्राडकास्टिंग
(ब) मल्टीकास्टिंग
(स) सबनेटिंग
(द) रूटिंग
उत्तर:
(ब) मल्टीकास्टिंग
प्रश्न 14.
मैक एड्रेस किस लेयर से सम्बंधित है?
(अ) इन्टरनेट
(ब) नेटवर्क
(स) डेटा लिंक
(द) एप्लीकेशन
उत्तर:
(स) डेटा लिंक
प्रश्न 15.
सबसे कम दूरी पर काम करने वाली तकनीक है
(अ) 3 जी
(ब) वायरलेस
(स) ब्लूटूथ
(द) उपग्रह उत्तरमाला
उत्तर:
(स) ब्लूटूथ
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दो तरह के नेटवर्क सिग्नल के नाम लिखें।
उत्तर-
दो प्रकार के नेटवर्क सिग्नल हैं
- एनालॉग सिग्नल्स
- डिजिटल सिग्नल्स
प्रश्न 2.
दो तरह की ट्विस्टेड पेअर केबल के नाम लिखें।
उत्तर-
दो प्रकार की ट्विस्टेड पेअर केबल हैं
- अनशील्डेड ट्विस्टेड पेअर (UTP)
- शील्डेड ट्विस्टेड पेअर (STP)
प्रश्न 3.
OSI तथा TCP/IP का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
OSI-Open System Interconnection
TCP/IP-Transmission Control Protocol/Internet Protocol
प्रश्न 4.
नेटवर्क में काम आने वाली टोपोलॉजी के नाम लिखें।
उत्तर-
नेटवर्क में काम आने वाली टोपोलॉजी इस प्रकार हैं
- बस टोपोलॉजी (Bus Topology),
- स्टार टोपोलॉजी (Star Topology),
- ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology)
प्रश्न 5.
नेटवर्क में काम आने वाले दो उपकरणों के नाम लिखो।
उत्तर-
मॉडेम, हब।
प्रश्न 6.
IP किस परत से सम्बंधित है?
उत्तर-
IP नेटवर्क परत से सम्बंधित है।
प्रश्न 7.
मैक एड्रेस किस प्रकार का एड्रेस है?
उत्तर-
मैक एड्रेस (MAC Address) एक अद्वितीय एवं भौतिक पता होता है जो कि किसी नेटवर्क कार्ड के भौतिक नेटवर्क में कम्युनिकेशन के लिए दिया जाता है।
प्रश्न 8.
वायरलेस में काम आने वाली दो सुरक्षा प्रणालियों के नाम लिखो।
उत्तर-
वायरलेस में काम आने वाली दो सुरक्षा प्रणालियाँ हैं
- SSID Cloaking
- MAC Addresses filtering
प्रश्न 9.
नेटवर्क में पैकेट्स की भीड़ को कम करने के लिए किस तकनीक का उपयोग किया जाता है? .
उत्तर-
नेटवर्क में पैकेट्स की भीड़ को कम करने के लिए कन्जेशन कण्ट्रोल (Congestion control) तकनीक का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 10.
सेवा की गुणवत्ता की जरूरत क्यों है?
उत्तर-
किसी यूजर, एप्लीकेशन, डेटा फ्लो को उच्च गुणवत्ता की प्राथमिकता देने के लिए सेवा की गुणवत्ता की जरूरत होती है।
प्रश्न 11.
DNS का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर-
DNS एक श्रेणीबद्ध वितरित प्रणाली है जिससे डोमेन नाम को IP में बदलते हैं।
प्रश्न 12.
SMTP का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
SMTP : Simple Mail Transfer Protocol
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विभिन्न प्रकार के तारों वाले ट्रांसमिशन कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
विभिन्न प्रकार के तारों वाले ट्रांसमिशन निम्नलिखित हैं
ट्विस्टेड पेअर केबल (Twisted Pair Cable) – ट्विस्टेड पेअर केबल टेक्नोलॉजी में दो तार आपस में एक-दूसरे से लिपटे हुए रहते हैं। दो तारों का आपस में लिपटे रहना एक-दूसरे के इलेक्ट्रिक हस्तक्षेप को कम करता है, तथा एक जोड़े का एक-दूसरे से लिपटे हुए रहना दूसरे जोड़े के इलेक्ट्रिक हस्तक्षेप को कम करता है। ट्विस्टेड पेअर केबल डिजिटल और एनालॉग सिग्नल्स को ट्रांसमिट कर सकती हैं। ट्विस्टेड पेअर केबल का उपयोग स्थानीय टेलीफोन ट्रांसमिशन के लिए और 1 किलोमीटर तक की छोटी दूरी में मुख्य कम्प्यूटर एवं नेटवर्क कम्प्यूटर के मध्य डिजिटल डेटा ट्रांसमिशन के लिए होता है डेटा ट्रांसमिशन की गति 100 मीटर की दूरी तक 9600 बिट्स प्रति सेकंड भी हो सकती है।
कोएक्सिअल केबल (Coaxial Cable) – इसमें एक कड़क तांबे का तार जिसे कोर कहते हैं अवरोधक से लिपटा हुआ होता है। यह अवरोधक गुंथे हुए महीन तारों से ढका होता है इन गुथे तारों के ऊपर एक सुरक्षात्मक प्लास्टिक का खोल चढ़ा होता है। संकेतों का आदान-प्रदान तांबे की कोर द्वारा होता है विद्युत कवच गुथे हुए तारों से बनाया जाता है।
कोएक्सिअल केबल का उपयोग सामान्यतया टेलीविजन के नेटवर्क के लिए किया जाता है। कोएक्सिअल केबल ट्विस्टेड पेयर केबल की तुलना में लंबी दूरी तक अधिक गति से डेटा का ट्रांसमिशन कर सकती है। यह फाइबर ऑप्टिक केबल से सस्ती होती है एवं आसानी से काम में ली जा सकती है।
फाइबर ऑप्टिक केबल (Fiber Optic Cable) – यह बिना तार वाली सबसे नई तकनीक केबल है। यह सुरक्षा एवं डेटा संभालने में सबसे उत्कृष्ट है। यह केबल विद्युत संकेतों के स्थान पर प्रकाश की तरंगों का ट्रांसमिशन करती है। डेटा भेजने का यह सबसे सुरक्षित तरीका है क्योकि इस केबल में डेटा चुराया नहीं जा सकता। इस केबल का भीतरी हिस्सा काँच अथवा प्लास्टिक का बना होता है जिसमें प्रकाश का ट्रांसमिशन होता है, इस भीतरी भाग के ऊपर एक कांच की परत चढ़ी होती है जो प्रकाश को टकराने के बाद भीतरी भाग में भेजती है।
प्रश्न 2.
दो प्रकार के सिग्नल्स के बारे में लिखें।
उत्तर-
सिग्नल्स दो प्रकार के हैं
- एनालॉग सिग्नल्स
- डिजिटल सिग्नल्स
एनालॉग सिग्नल्स-एनालॉग सिग्नल एक कंटीन्यूअस सिग्नल है जो समय के अनुसार बदलता है। इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल में वोल्टेज, करंट और फ्रीक्वेंसी इनफार्मेशन को प्रस्तुत करने में बदलते रहते हैं। ज्यादातर सिग्नल्स एनालॉग सिग्नल के रूप में रहते हैं जिनको बाद में डिजिटल सिग्नल्स में कन्वर्ट कर लिया जाता है क्योंकि एनालॉग सिग्नल्स को भेजने वाले उपकरण महंगे आते हैं। एनालॉग को डिजिटल में कनर्वट करने के लिए आई०सी० परिपथ उपयोग लाये जाते हैं। बाद में इन सिग्नल्स को एनालॉग में प्राप्त करना होता है। इसलिए इन्हें डिजिटल से एनालॉग में कन्वर्ट कर लिया जाता है। सिग्नल्स को कन्वर्ट करते समय तथा भेजने के समय इन में कुछ त्रुटियाँ भी जुड़ जाती हैं जो कि मुख्य सिग्नल को खराब कर देती हैं। इन्हें डिजिटल त्रुटियाँ (impairments) कहते हैं।
डिजिटल सिग्नल्स-डिजिटल सिग्नल इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल है जो कि बिट के पैटर्नस (Patterns) में कन्वर्ट (Convert) होता है। डिजिटल सिग्नल के हर बिंदु पर असतत वैल्यू होती है। डिजिटल सिग्नल को जीरो या वन से रिप्रेजेंट किया जाता है। एनालॉग सिग्नल्स की तरह डिजिटल सिग्नल में भी ट्रांसमिशन के समय त्रुटियाँ आ जाती हैं जिनके फलस्वरूप वास्तविक सिग्नल्स का स्वरूप बदल जाता है तथा जैसे-जैसे सिग्नल मीडिया के ऊपर आगे बढ़ता है उसकी एनर्जी भी कम होती जाती है। किसी भी सिग्नल की एनर्जी कम से कम इतनी होनी चाहिए ताकि रिसीवर उसके बीच पैटर्नुस को समझ सके अन्यथा रिसीवर सही इंफॉर्मेशन का पता नहीं लगा पाएगा।
प्रश्न 3.
IP एड्रेस की प्लानिंग क्यों जरूरी है?
उत्तर-
IP एड्रेस की योजना (Planning of IP Address)-IP एड्रेस की योजना एक महत्त्वपूर्ण काम है जिसका सही तरीके से क्रियान्वयन होना जरूरी है। IP एड्रेस किसी भी संगठन में नेटवर्क के उपलक्ष में बहुत ही कीमती संसाधन है जिसका उपयोग जरूरत के अनुसार करना जरूरी है। अगर किसी भी नेटवर्क के एड्रेस खत्म हो गए तो नए कम्प्यूटर या उपकरण जोड़े नहीं जा सकते हैं।
पारंपरिक सबनेटिंग में सभी सबनेटवर्क्स को समान संख्या में एड्रेस दिये जाते हैं। यह तभी अच्छा है जब सभी नेटवर्क्स की जरूरत समान हो जो सामान्यतया नहीं होता है।
प्रश्न 4.
सबनेटिंग क्यों करते हैं?
उत्तर-
किसी भी नेटवर्क को तीन पदक्रम में विभाजित कर सकते हैं—नेटवर्क, सबनेटवर्क और होस्ट। सबनेटिंग एक प्रोसेस है जिससे नेटवर्क बिट इनक्रीज होते हैं और होस्ट बिट डीक्रीज होते हैं।
नेटवर्क की सबनेटिंग – हर नेटवर्क के पास होस्ट एड्रेसेस की एक वैध शृंखला होती है। एक ही नेटवर्क में उपस्थित सभी कम्प्यूटर या उपकरण या होस्ट एक ही सबनेट मास्क रखते हैं और उस नेटवर्क के मेम्बर होते हैं। IPV4 एड्रेस में 32 बाइनरी बिट्स होती हैं जो नेटवर्क तथा होस्ट से सम्बंधित होती है। सबनेटिंग, होस्ट बिट्स को नेटवर्क को देने से होती है। किसी भी नेटवर्क के कितने सबनेटवर्क बनेंगे यह इस पर निर्भर करता है कि कितनी बिट होस्ट से नेटवर्क की दी है या कितनी बिट नेटवर्क ने होस्ट से उधार ली है।
प्रश्न 5.
मैक एड्रेस को समझाइए।
उत्तर-
मैक एड्रेस (MAC Address)-यह एक अद्वितीय एवं भौतिक पता होता है जो कि किसी नेटवर्क कार्ड के भौतिक नेटवर्क में कम्युनिकेशन के लिए दिया जाता है। मैक एड्रेस का उपयोग IEEE Network तकनीकों जैसे ईथरनेट (Ethernet) तथा वायरलेस (Wireless) में किया जाता है यह डेटा लिंक लेयर की सबलेयर पर काम करता है। मैक एड्रेस किसी भी इन्टरफेस कार्ड को बनाने वाली संगठन द्वारा दिया जाता है और हार्डवेयर पर स्थित रीड ओनली चिप में स्टोर रहता है। इसे बदला नहीं जा सकता। मैक एड्रेस Institute of Electrical and Electronics Engineers (IEEE) के अनुसार बने मानकों के अनुसार होते हैं जो निम्नलिखित हैं-MAC-48, EUI-48 and EUI-64.
मैक एड्रेस को बर्न एड्रेस या हार्डवेयर एड्रेस भी कहा जाता है। मैक एड्रेस 48 बिट का एड्रेस होता है।
प्रश्न 6.
चोक पैकेट प्रणाली को समझाइए।
उत्तर-
चोक पैकेट (Choke Packet)-इस तकनीक में एक विशेष प्रकार का पैकेट चोक पैकेट प्रेषक को भेजा जाता है। यह लगभग बेकप्रेशर तकनीक जैसा ही है परन्तु बेक प्रेशर में सूचना अपने से पहले वाली नोड को भेजी जाती है इसमें सूचना सीधे ही प्रेषक को भेजी जाती है तथा सूचना बीच वाली नोड को नहीं भेजी जाती है।
प्रश्न 7.
नेटवर्क में जिटर क्या होता है?
उत्तर-
जिटर (Jitter)-इसका का सम्बन्ध एक ही प्रवाह से संबंधित पैकेट्स में विलम्ब से है। अगर सभी पैकेट प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक एक ही समय विलंब पर पहुंच रहे हैं मतलब जिटर नहीं है परन्तु अगर पैकेट्स अलग-अलग विलम्ब पर पहुंच रहे हैं तो जिटर है जो नेटवर्क में जाने वाले पैकेट्स के लिए तथा एप्लीकेशन्स के लिए अच्छा नहीं है।
प्रश्न 8.
मेल ट्रान्सफर एजेंट को समझाइए।
उत्तर-
मेल स्थानांतरण एजेंट (Mail Transfer Agent)
यह सामान्यतया एक सर्वर होता है जो ई-मेल को एक-दूसरे को भेजने का कार्य करता है।
प्रश्न 9.
DNS की जरूरत क्यों होती है?
उत्तर-
DNS (Domain Name Service)
प्रस्तावना – DNS एक श्रेणीबद्ध (Hierarchical) वितरित प्रणाली है जिससे डोमेन नाम को IP में बदलते हैं। कम्प्यूटर, मानव जनित नाम को नहीं समझाता और बाइनरी में काम करता है जबकि मानव बाइनरी नहीं समझता और अपनी भाषा में काम करता है इसलिए यह जरूरी हो जाता है की ऐसी कोई प्रणाली हो जो मानव भाषा के नामों को कम्प्यूटर नेटवर्क के एड्रेस IP में बदल सके। उदाहरण के लिए www.google.co.in का IP216.58.196.3 यह DNS से ही मुमकिन है।
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
OSI मॉडल की परतों का विवरण संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
OSI Model की विभिन्न परतें-इस मॉडल को सात परतों में विभाजित किया गया है (ऊपर से नीचे) जो निम्नलिखित हैं।
1. एप्लीकेशन लेयर (Application Layer) – यह शीर्ष स्तर है। विभिन्न तरीकों से डेटा (सूचना) का हेर-फेर इस परत में किया जाता है। मेल सेवाओं, निर्देशिका सेवाओं, नेटवर्क संसाधन आदि का उपयोग एप्लीकेशन लेयर द्वारा ही होता है।
2. प्रेजेंटेशन लेयर (Presentation Layer) – यह परत ख्याल रखती है कि डेटा इस तरह से हो कि रिसीवर को (डेटा) समझ में आ जाए और डेटा का उपयोग करने में सक्षम हो जाए। यह परत अनुवादक की भूमिका भी निभाती है।
3. सेशन लेयर (Session Layer) – यह परत दो उपकरणों के मध्य बातचीत के सिंक्रोनाइजेशन का काम करती है। डेटा में कोई भी हानि ना हो इसके लिए प्रेजेंटेशन लेयर डेटा का सही तरीके से सिंक्रोनाइजेशन दूसरी तरफ की प्रेजेंटेशन लेयर से करती है।
4. ट्रांसपोर्ट लेयर (Transport Layer) – यह मुख्यत: सबसे महत्त्वपूर्ण लेयर है जिसका प्रमुख कार्य डेटा को एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक जिम्मेदारी से पहुंचाना होता है। यही परत फैसला करती है कि डेटा का संचरण समानांतर पथ पर होगा या एकल पथ पर होगा। इस परत के प्रमुख कार्य मल्टीप्लेक्सिग, विभाजन (segmentation) तथा addressing हैं। यह परत डेटा को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देती हैं जिससे डेटा का संचरण सही तरीके से हो सके। इसे प्रोटोकॉल डेटा यूनिट (PDU) कहते हैं। ट्रांसपोर्ट लेयर पर प्रोटोकॉल डेटा यूनिट को सेगमेंट (Segment) का नाम दिया गया है। ट्रांसपोर्ट लेयर इन सबके साथ-साथ एड्रेसिंग का भी काम करती है जो कि एप्लीकेशंस को नेटवर्क में पहचानने में मदद करती है। ट्रांसपोर्ट लेयर पर एड्रेसिंग के रूप में पोर्ट (Port) नंबर प्रयोग में लाये जाते हैं जो जीरो (0) से लेकर 65535 तक होते हैं।
ट्रांसपोर्ट लेयर द्वारा भेजा गया डेटा अगर प्राप्तकर्ता तक सही नहीं पहुंचता है तो यह ट्रांसपोर्ट लेयर की जिम्मेदारी होती है कि वह उस डेटा को दोबारा भेजे तथा यह सुनिश्चित करे कि डेटा सही तरीके से सही प्रकार एवं रूप में पहुंच गया है।
5. नेटवर्कलेयर (Network Layer) – यह लेयर ट्रांसपोर्ट लेयर से प्राप्त सेगमेंट में अपनी जानकारी जोड़कर पैकेट में बदल देती हैं। नेटवर्क लेयर का प्रमख कार्य डेटा को एक नेटवर्क से दसरे नेटवर्क में भेजना होता है जिसे राउटिंग कहते हैं। नेटवर्क लेयर के पास सारणी या राउटिंग टेबल होती है जिससे वह यह निर्धारित करता है कि कौन-सा रास्ता डेटा को भेजने के लिए अच्छा होगा। अगर किसी कारण से कोई रास्ता सही नहीं है तो राउटर अपनी राउटिंग टेबल में से दूसरे रास्ते का चयन करता है। नेटवर्क लेयर राउटिंग के साथ-साथ एड्रेसिंग भी देती है जिसे हम IP एड्रेस कहते हैं।
6. डेटा लिंक लेयर (Data Link Layer) – यह लेयर नेटवर्क लेयर से प्राप्त पैकेट को अपनी इंफॉर्मेशन जोड़कर फ्रेम में कन्वर्ट कर देती है जो कि बिट्स का एक समूह होता है। डेटा लिंक लेयर त्रुटि का पता करने तथा उसके निवारण का भी कार्य करती है। इन सबके साथ-साथ डेटा लिंक लेयर दो महत्त्वपूर्ण कार्य और करती है
- मीडियम को कैसे उपयोग में लाया जाए
- एड्रेसिंग मैक एड्रेस के रूप में (MAC Address)
7.फिजिकल लेयर (Physical Layer) – यह लेयर, डेटा लिंक लेयर से प्राप्त फ्रेम्स को भौतिक संकेतों में बदल देती है। यह परत लिंक को चालू करने, उसको सुचारु बनाए रखने तथा उसको बंद करने के लिए भी जिम्मेदार होती है।
कम्प्यूटर नेटवर्क्स में डेटा, एप्लीकेशन लेयर से जनरेट होता है तथा विभिन्न लेयर्स से प्रोसेस होकर फिजिकल लेयर तक पहुँचता है इसे बाद में विद्युत संकेतों में बदल दिया जाता है।
प्रश्न 2.
डेटा ट्रांसमिशन को समझाइए।
उत्तर-
डेटा ट्रांसमिशन-ट्रांसमिशन माध्यम पर डेटा दो तरीके से भेजा जा सकता है-असिंक्रोनस (Asynchronous) एवं सिंक्रोनस (synchronous)
1. असिंक्रोनस डेटा ट्रांसमिशन-असिंक्रोनस ट्रांसमिशन को स्टार्ट-स्टॉप ट्रांसमिशन भी कहा जाता है। असिंक्रोनस ट्रांसमिशन में हर अक्षर के मध्य स्टार्ट स्टॉप बिट जुड़ी रहती है। भेजने वाला कभी भी एक अक्षर भेज़ सकता है जिसे रिसीवर रिसीव करता है। जब तक लाइन का हार्डवेयर डेटा भेजने के लिए तैयार नहीं हो जाता है तब तक असिंक्रोनस कम्युनिकेशन लाइन खाली रहती है। डेटा भेजा जा रहा है, इसके बारे में बताने के लिए, बिट की एक श्रृंखला प्राप्तकर्ता उपकरण को भेजी जाती है क्योंकि लाइन खाली रहती है। संपूर्ण डेटा भेजने के बाद प्राप्तकर्ता को डेटा समाप्ती की सूचना दी जाती है कि डेटा समाप्त हो चुका है। इसके लिए स्टॉप बिट भेजी जाती है ताकि लाइन को खाली किया जा सके। असिंक्रोनस ट्रांसमिशन में दो अक्षरों के बीच अंतराल अनिर्धारित होता है अर्थात् कम्प्यूटर डेस्टिनेशन तक अक्षरों की एक श्रृंखला भेज सकता है या डेटा अनियमित अंतराल पर भेजा जा सकता है।
इसका प्रमुख लाभ यह है कि कम्प्यूटर पर स्टोरेज की जरूरत नहीं होती है क्योंकि ट्रांसमिशन अक्षरशः होता है। इस ट्रांसमिशन की एक हानि यह है कि दो अक्षरों को भेजने के बीच लाइन खाली रहती है।
2. सिंक्रोनस डेटा ट्रांसमिशन-सिंक्रोनस कम्युनिकेशन में दो चैनल होते हैं एक डेटा भेजने के लिए तथा दूसरा सभी लिंकों को एक साथ स्टार्ट रखने के लिए। दो कम्प्यूटर को एक साथ स्टार्ट करने के लिए चैनल हार्डवेयर में लगी घड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। जब एक कम्प्यूटर डेटा भेजने के लिए तैयार होता है तो वह रिसीवर के पास बिट का एक मिश्रण भेजता है जिसे सिंक (Sync) करैक्टर कहते हैं। चूँकि पहला अक्षर खराब हो सकता है इसलिए दूसरा अक्षर साथ ही भेजा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो जाए की सभी लिंक एक साथ स्टार्ट हो सकें।।
सिंक्रोनस ट्रांसमिशन अक्षरों का एक ब्लॉक बनता है। हर ब्लॉक में हैडर और ट्रेलर की सूचना दी जाती है जिसके द्वारा प्राप्त करने वाला कम्प्यूटर, भेजने वाले कम्प्यूटर से अपनी घड़ी मिलाता है। हैडर में भेजने वाले तथा प्राप्त करने वाले कम्प्यूटर की पहचान करने के लिए सूचना होती है। हैडर के बाद, अक्षरों का एक समूह होता है जो वास्तविक इनफार्मेशन (information) होती है तथा ब्लॉक के अंत में ट्रेलर होता है। ट्रेलर सन्देश के समाप्त होने की सूचना देता है। इसके बाद एक चेक (Check) अक्षर होता है जो ट्रांसमिशन के दौरान आये दोषों को ढूँढ़ने में मदद करता है।
सिंक्रोनस ट्रांसमिशन का लाभ इसकी दक्षता है। सिंक्रोनस ट्रांसमिशन का एक ही दोष है कि इसमें भेजने वाले उपकरण पर स्टोरेज के लिए बफर मेमोरी की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3.
नेटवर्किंग में प्रसारण माध्यमों को समझाइए।
उत्तर-
नेटवर्कों में प्रसारण माध्यम (Transmission Media in Networks) – ट्रांसमिशन माध्यम वह रास्ता है जिस पर ट्रांसमीटर तथा रिसीवर संकेतों का आदान-प्रदान करते हैं या डेटा को एक-दूसरे तक पहुँचाते हैं। ट्रांसमिशन मीडिया दो उपकरणों के मध्य भौतिक पथ को निर्धारित करता है। ट्रांसमिशन माध्यमों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
- निर्देशित ट्रांसमिशन मीडिया (Guided Transmission Media)
- अनिर्देशित ट्रांसमिशन मीडिया (Unguided Transmission Media)
1. निर्देशित ट्रांसमिशन मीडिया (Guided Transmission Media) – निर्देशित माध्यम वह माध्यम है जिसमें सिग्नल भौतिक पथ के अनुसार चलते हैं या पथ से भ्रमित नहीं होते हैं। निर्देशित मीडिया में मीडिया की कैपेसिटी उसकी लंबाई और वह किस प्रकार से जुड़ा हुआ है, इस पर निर्भर करती है।
उदाहरण-
ट्विस्टेड पेअर केबल, कोक्सिअल केबल तथा ऑप्टिकल फाइबल केबल।
ट्विस्टेड पेअर केबल (Twisted Pair Cable) – ट्विस्टेड पेअर/केबल टेक्नोलॉजी में दो तार आपस में एक-दूसरे से लिपटे हुए रहते हैं। दो तारों का आपस में लिपटे रहना एक-दूसरे के इलेक्ट्रिक हस्तक्षेप को कम करता है, तथा एक जोड़े का एक-दूसरे से लिपटे हुए रहना दूसरे जोड़े के इलेक्ट्रिक हस्तक्षेप को कम करता है। ट्विस्टेड पेअर केबल डिजिटल और एनालॉग सिग्नल्स को ट्रांसमिट कर सकती हैं। ट्विस्टेड पेअर केबल का उपयोग स्थानीय टेलीफोन ट्रांसमिशन के लिए और 1 किलोमीटर तक की छोटी दूरी में मुख्य कम्प्यूटर एवं नेटवर्क कम्प्यूटर के मध्य डिजिटल डेटा ट्रांसमिशन के लिए होता है। डेटा ट्रांसमिशन की गति 100 मीटर की दूरी तक 9600 बिट्स प्रति सेकंड भी हो सकती है।
कोएक्सिअल केबल (Coaxial Cable) – इसमें एक कड़क तांबे का तार जिसे कोर कहते हैं, अवरोधक से लिपटा हुआ होता है। यह अवरोधक गुंथे हुए महीन तारों से ढका होता है इन गुंथे तारों के ऊपर एक सुरक्षात्मक प्लास्टिक का खोल चढ़ा होता है। संकेतों का आदान-प्रदान तांबे की कोर द्वारा होता है विद्युत कवच गुंथे हुए तारों से बनाया जाता है।
कोएक्सिअल केबल का उपयोग सामान्यता टेलीविजन के नेटवर्क के लिए किया जाता है कोएक्सिअल केबल ट्विस्टेड पेयर केबल की तुलना में लंबी दूरी तक अधिक गति से डेटा का ट्रांसमिशन कर सकती है। यह फाइबर ऑप्टिक केबल से सस्ती होती है एवं आसानी से काम में ली जा सकती है।
फाइबर ऑप्टिक केबल (Fiber Optic Cable) – यह बिना तार वाली सबसे नई तकनीक की केबल है। यह सुरक्षा एवं डेटा संभालने में सबसे उत्कृष्ट है। यह केबल विद्युत संकेतों के स्थान पर प्रकाश की तरंगों का ट्रांसमिशन करती है। डेटा भेजने का यह सबसे सुरक्षित तरीका है क्योंकि इस केबल में डेटा चुराया नहीं जा सकता। इस केबल का भीतरी हिस्सा काँच अथवा प्लास्टिक का बना होता है जिसमें प्रकाश का ट्रांसमिशन होता है, इस भीतरी भाग के ऊपर एक कांच की परत चढ़ी होती है जो प्रकाश को टकराने के बाद भीतरी भाग में भेजती है।
प्रेषक से डेटा ट्रांसमिशन उपकरण जुड़ा होता है जो कि विद्युत संकेतों को प्रकाश तरंगों में परिवर्तित करता है। इन प्रकाश तरंगों का ट्रांसमिशन फाइबर ऑप्टिक केबल के द्वारा किया जाता है। प्राप्तकर्ता कम्प्यूटर से पहले, दूसरा डेटा ट्रांसमिशन उपकरण इन विद्युत संकेतों को प्रकाश तरंगों में बदल देता है बाद में यह प्रकाश तरंग प्राप्तकर्ता कम्प्यूटर को भेजे जाते हैं। फाइबर ऑप्टिक केबल, कोऐक्सिअल केबल से महंगी होती है। यह 60 मेगाबाइट प्रति सेकेंड से दो गीगाबाइट प्रति सेकंड की गति से डेटा ट्रांसमिशन कर सकती है। तीव्र गति एवं लंबी दूरी तक अधिक डेटा ट्रांसमिशन के लिए फाइबर ऑप्टिक केबल अधिक उपयुक्त है पर यह सबसे महंगा बिना तारवाला ट्रांसमिशन माध्यम है।
2. अनिर्देशित ट्रांसमिशन मीडिया (Unguided Transmission Media) – अनिर्देशित ट्रांसमिशन माध्यम वह माध्यम है जिसमें रेडियो तरंगों का उपयोग होता है तथा सिग्नल्स भौतिक पथ के अनुसार नहीं चलते हैं तथा इसका उपयोग वहाँ किया जाता है जहाँ पर पहुँचाना मुमकिन ना हो या कठिन हो।
रेडियो ट्रांसमिशन माध्यम-रेडियो तरंगों को आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है यह लम्बी दूरी तक पहुँच सकती हैं तथा यह इमारतों को भी आसानी से पार कर सकती हैं इसलिए इनको डेटा ट्रांसमिशन के काम में अधिक लिया जाता है, ट्रांसमिशन के बाद रेडियो तरंगें सभी दिशाओं में विचरण कर सकती है।
माइक्रोवेव ट्रांसमिशन माध्यम (Microwave Transmission Media) – इन संकेतों को भी TV और रेडियों के संकेतों की तरह बिना केबल के भेजा और प्राप्त किया जाता है। माइक्रोवेव संकेतों का प्रसारण इमारतों के ऊपर लगे एंटीना के द्वारा किया जाता है। प्रेषक एंटीना और प्राप्तकर्ता एंटीना को एक ही रेखा में रखा जाता है क्योंकि माइक्रोवेव संकेत केवल एक ही दिशा में आगे बढ़ते हैं। प्रेषक एंटीना एवं प्राप्तकर्ता एंटीना को एक ही रेखा में करने को लाइन ऑफ फाइट ट्रासंमिशन कहा जाता है। जमीन पर स्थित माइक्रोवेव स्टेशनों को इस प्रकार लगाया जाता है कि वह एक-दूसरे से सूचना का आदान-प्रदान कर सकें अत: इन माइक्रोवेव स्टेशनों को इमारतों की छत पर या पहाड़ पर लगाया जाता है ताकि ट्रांसमिशन पथ अवरोधमुक्त रहे।
इन्फ्रारेड ट्रांसमिशन माध्यम (Infrared Transmission Media) – इसका उपयोग छोटी दूरी के ट्रांसमिशन के लिए किया जाता है। इन्फ्रारेड ट्रांसमिशन सस्ता है एवं आसानी से काम में लिया जा सकता है तथा इनका उपयोग करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है क्योंकि यह भवन के अंदर ही काम आती है। इसमें प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता के मध्य कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। इंफ्रारेड माध्यम संकेतों के ट्रांसमिशन के लिए इंफ्रारेड प्रकाश का प्रयोग करता है। लाइट एमिटिंग डायोड (LED) प्रकाश के संकेतों को ट्रांसमिट करती है और फोटो डायोड प्रकाश संकेतों को प्राप्त करते हैं। क्योंकि इंफ्रारेड संकेत बहुत तेज आवृत्ति पर काम करते हैं इसलिए इनकी डेटा ट्रांसमिशन गति बहुत तेज होती है।
उपग्रह ट्रांसमिशन (Satellite Transmission) – पहली बार उपग्रह में ट्रांसमिशन का उपयोग 1960 में हुआ जब NASA ने इको उपग्रह का प्रक्षेपण किया। उपग्रह ट्रांसमिशन तभी हो सकता है जब दोनों ऐन्टेना एक रेखा में हों। उपग्रह ट्रांसमिशन एवं माइक्रोवेव ट्रांसमिशन में मुख्य अंतर यह है कि एक ऐन्टेना उपग्रह पर लगा होता है जो भूमध्य रेखा के करीब 3600 किलोमीटर ऊपर जियो सिंक्रोनस कक्षा पर स्थित होता है। यह उपग्रह पृथ्वी की तुलना में स्थिर रहता है और पृथ्वी के सापेक्ष एक बिंदु पर रहता है इस कारण से उपग्रह प्रणाली द्वारा मोबाइल उपकरणों में ट्रांसमिशन किया जा सकता है तथा सभी स्थानों तक पहुंचा जा सकता है।
प्रश्न 4.
उपग्रह ट्रांसमिशन क्या है? समझाइए।
उत्तर-
उपग्रह ट्रांसमिशन (Satellite Transmission) – पहली बार उपग्रह में ट्रांसमिशन का उपयोग 1960 में हुआ जब NASA ने इको उपग्रह का प्रक्षेपण किया। उपग्रह ट्रांसमिशन तभी हो सकता है जब दोनों ऐन्टेना एक रेखा में हो। उपग्रह ट्रांसमिशन एवं माइक्रोवेव ट्रांसमिशन में मुख्य अंतर यह है कि एक ऐन्टेना उपग्रह पर लगा होता है जो भूमध्य रेखा के करीब 3600 किलोमीटर ऊपर जियो सिंक्रोनस कक्षा पर स्थित होता है। यह उपग्रह पृथ्वी की तुलना में स्थिर रहता है और पृथ्वी के सापेक्ष एक बिंदु पर रहता है इस कारण से उपग्रह प्रणाली द्वारा मोबाइल उपकरणों में ट्रांसमिशन किया जा सकता है तथा सभी स्थानों तक पहुंचा जा सकता है।
उपग्रह ट्रांसमिशन में 6GHZ संकेतों का पृथ्वी पर ट्रांसमीटर द्वारा अंतरिक्ष में स्थित उपग्रह ट्रांसमिशन द्वारा प्रयोग होता है। ये संकेत लंबी दूरी तय करने के कारण क्षीण हो जाते हैं। उपग्रह पर एक ट्रांसपोंडर द्वारा इन संकेतों को शक्तिशाली बना कर वापस पृथ्वी पर 4GHz आवृत्ति पर भेज देते हैं पृथ्वी पर इन संकेतों को रिसीवर द्वारा प्राप्त करते हैं। कक्षा में उपग्रह स्थापित करना बहुत खर्चीला होता है।
प्रश्न 5.
IP को विस्तार से समझाइए।
उत्तर-
इन्टरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol-IP)
IP एड्रेसिंग नेटवर्क लेयर का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है जो किसी भी उपकरण के उसके नेटवर्क में होने या दूसरे नेटवर्क में होने पर भी संचरण को मुमकिन बनाता है। IP (Version 4) तथा IP (Version 6) दोनों ही पैकेट्स के द्वारा डेटा ले जाने के लिए श्रेणीबद्ध एड्रेसिंग प्रदान करती है। डिजाइन, कार्यान्वयन और एक प्रभावी आईपी (IP) योजना सुनिश्चित करती है कि नेटवर्क प्रभावी ढंग से और कुशलता से काम करेगा।
यह जानना भी आवश्यक है कि कम्प्यूटर केबल बाइनरी (Binary) सिस्टम में काम करते हैं जिसे जीरो (0) या वन (1) से प्रदर्शित करते हैं। कम्प्यूटर यूजर/ऑपरेटर द्वारा अपनी भाषा में दिये गए निर्देशों को बाइनरी में बदलता (Convert) है।
उदाहरण के लिए ASCII स्टैण्डर्ड में लिखे A का बाइनरी कोड 01000001 होता है।
हमें IP एड्रेस के लिए बाइनरी का प्रयोग जानना जरूरी है।
IP (Version 4) : IP (Version 4), 32 बिट का एक बाइनरी एड्रेस होता है। नेटवर्क लेयर पर पैकेट्स, प्रेषक और प्राप्तकर्ता की इस अद्वितीय (Unique) सूचना को शामिल कर लेते हैं। इसके फलस्वरूप पैकेट में 32 बिट का प्रेषक का तथा 32 बिट का प्राप्तकर्ता का एड्रेस शामिल हो जाता है। बाइनरी का डेसीमल में बदलना गणित के स्थितीय अंकन (positional notation) पर आधारित है। स्थितीय अंकन (positional notation) अर्थात् एक डिजिट, स्थान के अनुसार अलग मूल्य (value) देती है। स्थितीय अंकन (positional notation) में नंबर का आधार सूत्र (radix) कहलाता है। डेसीमल सिस्टम में रेडिक्स 10 होता है।
32 बिट के बाइनरी एड्रेस को हम डॉटेड डेसीमल (Dotted Decimals) फॉर्मेट में लिखते हैं क्योंकि मानव बाइनरी को अच्छी तरह से पढ़ और याद नहीं रख सकता तथा कम्प्यूटर अपना सारा काम बाइनरी में करता है।
इस 32 बिट बाइनरी एड्रेस को 8 बिट या ऑक्टल के समूह में दर्शाया जाता है तथा प्रत्येक 8 बिट का समूह एक बिंदु (Dot) से अलग रहता है।
उदाहरण के लिए 11000000 10101000 00001010 00001010 बाइनरी एड्रेस को डॉटेड डेसीमल में 192. 168.10.10 लिख सकते हैं। बाइनरी नंबर सिस्टम में रेडिक्स 2 होता है अत: संख्या या तो 0 होती है या 1। 8-बिट द्विआधारी बाइनरी संख्या में पद इन मात्राओं का प्रतिनिधित्व करते हैं
हर ऑक्टल 8 बिट से बना होता है जिसमें बिट या तो 0 होती है या 1। 8 बिट के 4 समूह की मात्रा (Value) 0 से 255 की श्रृंखला में होती है। हर बिट के स्थान की वैल्यू सीधे से उलटी दिशा में 1,2,4, 8, 16, 32, 64, 128 होती है। अगर डेसिमल को बाइनरी में बदलना है तो दी गई वैल्यू को उपर्युक्त संख्याओं के अनुसार विभाजित करें, जिन-जिन संख्याओं से मिले उनके स्थान पर 1 तथा अन्य के स्थान पर 0 रखें।
उदाहरण के लिए अगर 155 को बाइनरी में बदलना है तो निम्न विभाजन होंगे।
155 की बाइनरी 10011011 होगी।
अगर किसी बाइनरी को डेसीमल में बदलना है तो उपर्युक्त के अनुसार ही बदल सकते हैं। बाइनरी वैल्यू में जिस बिट का मान 1 है उसकी वैल्यू उसकी स्थिति के अनुसार रखें तथा अंत में जोड़ लें।
IP एड्रेस के दो भाग होते हैं जिसमें एक भाग उसके नेटवर्क तथा दूसरा होस्ट (Host) से सम्बंधित होता है।
IP एड्रेसेस को 5 कक्षाओं (Classes) में बाँटा गया है।
- Class A
- Class B
- Class C
- Class D (मल्टीकास्टिंग)
- Class E (भविष्य के लिए)
प्रश्न 6.
मॉडेम की कार्य-प्रणाली को चित्र सहित समझाइये।
उत्तर-
मॉडेम (Modem) – ट्रांसमिशन एनालॉग एवं डिजिटल में से किसी से भी हो सकता है जब डिजिटल डेटा को टेलीफोन लाइन से संचालित करना होता है तो पहले डिजिटल डेटा को एनालॉग डेटा में बदलना पड़ता है क्योंकि एनालॉग डेटा ज्यादा तेज गति से ट्रांसमिट होता है। प्रेषक के यहाँ जिस तकनीक से डिजिटल संदेशों को एनालॉग संदेशों में बदलना चाहता है उसे मोड्यूलेशन (Modulation) कहते हैं। संदेश प्राप्तकर्ता के यहाँ उलटा काम होता है यानी एनालॉग संकेतों को डिजिटल संकेतों में डिमोड्यूलेशन (demodulation) तकनीक द्वारा बदला जाता है। एक विशिष्ट उपकरण जिसे मॉडेम कहते हैं, modulation एवं demodulation दोनों का ही काम करता है अर्थात् वह संकेतों को डिजिटल से एनालॉग एवं एनालॉग से डिजिटल में बदल सकता है।
मॉडेम कम्प्यूटर के डिजिटल संकेतों को एनालॉग संकेतों में बदलता है ताकि उनका ट्रांसमिशन टेलीफोन लाइन से हो सके। मॉडेम की डेटा ट्रांसमिशन गति बिट्स प्रति सेकण्ड (bps) में मापी जाती है।
प्रश्न 7.
सबनेटिंग को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर-
सबनेटिंग-सबनेटिंग से हम क्लास फुल एड्रेस को मल्टीपल क्लास लेस एड्रेस में डिवाइड करते हैं। इसे हम सबनेटिंग कहते हैं और जो नए नेटवर्क क्रिएट होते हैं, उन्हें सबनेटवर्क कहते हैं। सबनेटिंग एक प्रोसेस है जिससे नेटवर्क बिट इनक्रीज होते हैं और होस्ट बिट डीक्रीज होते हैं।
उदाहरण के लिए अगर 1 बिट ली है तो 2 सबनेटवर्क, 2 बिट ली है तो 4, 3 बिट ली है तो 8 सबनेटवर्क बनेंगे। जैसे-जैसे होस्ट बिट्स कम होंगी उसके अनुसार किसी भी नेटवर्क में होस्ट एड्रेस भी कम हो जाएंगे। क्लास C के एक नेटवर्क में 24 बिट नेटवर्क की तथा 8 बिट होस्ट की होती हैं। अगर होस्ट की 8 बिट्स में से 1 बिट नेटवर्क को दी जाए तो अब होस्ट में 128 होस्ट एड्रेस ही बचेंगे। मतलब पहले इस नेटवर्क में 256 होस्ट थे और यह एक नेटवर्क था। अब इस नेटवर्क के दो टुकड़े हो गए हैं तथा होस्ट एड्रेसेस के टुकड़े हो गए हैं। हर सब नेटवर्क में 128-128 होस्ट एड्रेस होंगे और अब नेटवर्क में 24 के बजाए 25 बिट होंगी। नेटवर्क बिट्स को किसी भी एड्रेस के बाद स्लैश ( / ) में भी लिखा जा सकता है जैसे की 192.168.1.0/241
“अगर सरल भाषा में कहा जाए तो सबनेटिंग बिट्स का इधर से उधर होना है।
किसी भी नेटवर्क में पहला एडेस नेटवर्क एड़ेस जो कि किसी भी नेटवर्क का प्रतिनिधित्व करता है तथा अंतिम एड्रेस ब्रॉडकास्ट (Broadcast) एड्रेस होता है जो कि किसी भी नेटवर्क के सभी उपकरणों को सूचना भेजने में काम आता है। मानकों के अनुसार नेटवर्क एड्रेस तथा ब्रॉडकास्ट एड्रेस को भी उपकरण को सौंप (Assign) नहीं सकते। इसके अलावा के एड्रेसेज को कम्प्यूटर या अन्य उपकरणों को सौंपा जा सकता है। इसके अनुसार किसी भी नेटवर्क से 2 एड्रेस काम में नहीं लिए जा सकते।
उदाहरण के लिए अगर किसी नेटवर्क के होस्ट भाग में 8 बिट हैं तो उसमें कुल 256 होस्ट एड्रेस होंगे जिनमें से 2 को काम नहीं ले सकते तो 254 एड्रेसेज ही काम आ सकते हैं। इन सब की गणना उसकी क्लास के अनुसार होती है क्योंकि हर क्लास में अलग-अलग संख्या में बिट्स होस्ट भाग में होती हैं।
प्रश्न 8.
Congestion कण्ट्रोल क्या है? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
कन्जेशन कण्ट्रोल (Congestion Control) – कन्जेशन कण्ट्रोल वह तकनीक या तरीका है जो नेटवर्क में पैकेट्स की भीड़ या तो होने से पहले ही ठीक कर देता है अर्थात् ऐसा होने नहीं देता या होने के बाद उसे ठीक कर देता है। यह दो प्रकार का होता है
- ओपन लूप कन्जेशन कण्ट्रोल (Prevention)
- क्लोज लूप कंन्जेशन कण्ट्रोल (Removal)
ओपन लूप कन्जेशन कण्ट्रोल – इस प्रकार के तरीके में विभिन्न नीतियाँ (Rules), कन्जेशन को राकेने के लिए प्रयोग में लायी जाती हैं। इस तकनीक में कन्जेशन या तो प्रेषक या फिर प्राप्तकर्ता के स्थान पर रोका जाता है।
इस तकनीक में प्रयोग में लाने वाली नीतियाँ निम्नलिखित हैं
1. रिट्रांसमिशन नीति (Re-transmission Policy) – इस नीति में अगर प्रेषक को लगता है कि उसके द्वारा भेजा गया पैकेट रास्ते में नष्ट हो गया है तो उस पैकेट को दुबारा भेजा जाता है, परन्तु यह कन्जेशन उत्पन्न कर सकता है। इसे रोकने के लिए अच्छी नीति की आवश्यकता होती है। इसमें एक घड़ी का प्रयोग किया जाता है ताकि कन्जेशन ना हो। TCP प्रोटोकॉल पहले से ही इस प्रकार से बना हुआ की कन्जेशन उत्पन्न होने की सम्भावना कम हाती है।’
2. एकनॉलेजमेंट नीति (Acknowledgment Policy) – इस नीति में प्रेषक भेजे गए हर पैकेट के पुष्टिकरण (Acknowledgment) की उम्मीद रखता है। अगर किसी पैकेट का प्राप्तकर्ता की तरफ से प्राप्त होने का पुष्टिकरण नहीं होता है तो प्रेषक पैकेट भेजने की गति कम कर देता है जिससे कन्जेशन की सम्भावना कम हो जाती है।
क्लोज लूप कन्जेशन कण्ट्रोल-क्लोज लूप कन्जेशन कण्ट्रोल में कन्जेशन होने के बाद उसे ठीक किया जाता है। इसमें विभिन्न प्रोटोकॉल्स द्वारा विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
1. बैकप्रेशर (Back pressure) – इस तकनीक में जिस नोड (Node) पर कन्जेशन होता है वह नोड अपने से पहले वाली नोड से डेटा प्राप्त करना बंद कर देती है जिससे पहले वाली नोड पर कन्जेशन बढ़ सकता है पर ऐसा ही पहले वाली नोड करती है। इसे नोड-नोड कन्जेशन कण्ट्रोल कहते हैं। यह तकनीक केवल काल्पनिक पथ (Virtual Circuit) नेटवर्क में प्रयोग में लायी जाती है।
2. चोक पैकेट (Choke Packet) – इस तकनीक में एक विशेष प्रकार का पैकेट चोक पैकेट प्रेषक को भेजा जाता है। यह लगभग बेकप्रेशर तकनीक जैसा ही है परन्तु बेक प्रेशर में सूचना अपने से पहले वाली नोड को भेजी जाती है। इसमें सूचना सीधे ही प्रेषक को भेजी जाती है तथा सूचना बीच वाली नोड को नहीं भेजी जाती है।
प्रश्न 9.
ई-मेल भेजने की प्रक्रिया को समझाइए।
उत्तर-
ई-मेल भेजने की प्रक्रिया व उसके कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व निम्नलिखित हैं
- मेल उपयोगकर्ता एजेंट (Mail User Agent) – यह एक एप्लीकेशन या प्रोग्राम होता है जिसकी मदद से यूजर मेल लिखता है और भेज देता है।
- मेल स्थानांतरण एजेंट (Mail Transfer Agent) – यह सामान्यतया एक सर्वर होता है जो ई-मेल को एक-दूसरे को भेजने का कार्य करता है।
- मेल डिलिवरी एजेंट (Mail Delivery Agent) – यह मेल सर्वर की है तकनीक है जिसमें मेल के प्राप्तकर्ता का पता चलने के बाद उसे उसके इनबॉक्स (inbox) में डाल दिया जाता है।
- पॉप प्रोटोकॉल (Post Office Protocol) – यह सर्वर से क्लाइंट या यूजर की एप्लीकेशन या प्रोग्राम पर मेल को प्राप्त करने का प्रोटोकॉल है।
- SMTP (Simple Mail Transfer Protocol) – यह किसी यूजर के प्रोग्राम या एप्लीकेशन से ईमेल को सर्वर तक तथा सर्वर से किसी अन्य सर्वर पर भेजने के काम आता है।
- Internet Message Access Protocol – यह मेल को प्राप्त करने का नया तरीका है जो कुछ आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता है।
ईमेल के आर्किटेक्चर को हम चित्र से समझने का प्रयास करेंगे। जो निम्नलिखित हैं
- कोई भी यूजर प्रोग्राम या एप्लीकेशन से एक जानकारी लिखता या कोई चित्र उसमें जोड़ता है जिसे अटैचमेंट कहते । हैं। ईमेल लिखते समय कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी जैसे कि के प्राप्तकर्ता का एड्रेस, ईमेल का विषय लिखता है जिसे ईमेल का हैडर कहते हैं।
- अब इस बनाये हुए मेसेज को SMTP प्रोटोकॉल की मदद से उस ईमेल सर्वर को भेज दिया जाता है जिसकी सेवाएँ यूजर ले रहा है।
- अब सर्वर प्रेषक द्वारा भेजे गए ईमेल के हैडर में से प्राप्तकर्ता का एड्रेस के डोमेन को अपने डोमेन से मिलाता है। अगर प्राप्तकर्ता का डोमेन सर्वर के डोमेन से मिल जाता है तो सर्वर अपने डेटाबेस (Database) में यूजर का नाम ढूंढता है।
- नाम मिल जाने के बाद सर्वर मेल डिलीवरी एजेंट का काम करते हुए मेल को उसके इनबॉक्स में डाल देता है जो कि POP/IMAP प्रोटोकॉल द्वारा प्राप्त कर पढ़ लिया जाता है।
- अगर प्राप्तकर्ता एवं सर्वर का डोमेन मिलता नहीं है तो सर्वर उस ईमेल को उसके सम्बंधित सर्वर को SMTP प्रोटोकॉल द्वारा भेज देता है। अब दूसरा सर्वर भी उपरोक्त तरीके को काम में लेते हुए ईमेल को यूजर के इनबॉक्स में डाल देता है।
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 अन्यमहवपणप्रश्न
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नेटवर्किंग का मूल उद्देश्य बताइए।
उत्तर-
नेटवर्किंग का मूल उद्देश्य उत्पादकता को बढ़ाना होता है।
प्रश्न 2.
ट्रांसमीटर (प्रेषक) क्या होता है?
उत्तर-
ट्रांसमीटर वह उपकरण है जो आँड़ों को लक्ष्य की ओर भेजने हेतु तैयार करता है।
प्रश्न 3.
प्रेषक तंत्र क्या होता है?
उत्तर-
जब दो उपकरण आपस में आँकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं तो इनके बीच का संप्रेषण तंत्र ही प्रेषक तंत्र कहलाता है।
प्रश्न 4.
संदेश के बारे में बताइए।
उत्तर-
संदेश वह आंकड़ा या सूचना है जिसे हम दिये गए माध्यम पर प्रेषित करना चाहते हैं। संदेश विभिन्न रूपों का हो सकता है; जैसे-Text, Image, Videol
प्रश्न 5.
नेटवर्क की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
नेटवर्क, कुछ इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों का समूह होता है जो कुछ तारों एवं बेतार के माध्यम से आपस में जुड़े होते हैं।
प्रश्न 6.
यदि किसी नेटवर्क में ज्यादा उपभोक्ता होते हैं तो नेटवर्क पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
यदि किसी नेटवर्क में ज्यादा उपभोक्ता होते हैं तो उनका प्रभाव नेटवर्क में सूचनाओं के आदान-प्रदान की गति पर पड़ता है।
प्रश्न 7.
संचार-गति से क्या तात्पर्य होता है?
उत्तर-
इससे तात्पर्य आंकड़ों के संचारित होने की गति से है। इसे bps/kbps/Mpbs (bits per second) में नापा जाता
प्रश्न 8.
टोपोलॉजी किसे कहते हैं?
उत्तर-
कम्प्यूटरों को एक-दूसरे से जोड़ने की शैली को टोपोलॉजी कहते हैं।
प्रश्न 9.
नेटवर्क में कितने प्रकार की खराबियाँ हो सकती हैं?
उत्तर-
नेटवर्क में दो प्रकार की खराबियाँ हो सकती हैं-
पहली किसी एक नोड का खराब हो जाना, दूसरी पूरे नेटवर्क का खराब हो जाना।
प्रश्न 10.
LAN का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
LAN : Local Area Network.
प्रश्न 11.
WAN को पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
WAN : Wide Area Network.
प्रश्न 12.
MAN का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
MAN : Metropolitan Area Network.
प्रश्न 13.
प्रोटोकॉल किसे कहते हैं?
उत्तर-
नियमों के ऐसे समूह (Set of Rules) जो डेटा कम्यूनिकेशन को शासित करते हैं, प्रोटोकॉल कहलाते हैं।
प्रश्न 14.
ISO का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
ISO : International Organization for Standardization
प्रश्न 15.
असिंक्रोनस व सिंक्रोनस डेटा ट्रांसमिशन में एक अंतर बताइए।
उत्तर-
सिंक्रोनस डेटा ट्रांसमिशन, असिंक्रोनस की तुलना में उच्च डेटा ट्रांसमिशन गति प्रदान करता है।
प्रश्न 16.
सिग्नल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
सिग्नल, डेटा की इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और आप्टिकल रिप्रजेंटेशन है जिसको कम्युनिकेशन मीडियम पर भेजा जा सकता है।
प्रश्न 17.
ट्रांसमिशन माध्यम क्या होता है?
उत्तर-
ट्रांसमिशन माध्यम वह रास्ता है जिस पर ट्रांसमीटर तथा रिसीवर संकेतों का आदान-प्रदान करते हैं।
प्रश्न 18.
निर्देशित माध्यम क्या होता है?
उत्तर-
निर्देशित माध्यम वह माध्यम है जिसमें सिग्नल भौतिक पथ के अनुसार चलते हैं या पथ से भ्रमित नहीं होते हैं।
प्रश्न 19.
तीव्र गति एवं लंबी दूरी तक अधिक डेटा ट्रांसमिशन के लिए केबल सबसे उपयुक्त होती है?
उत्तर-
तीव्र गति एवं लंबी दूरी तक अधिक डेटा ट्रांसमिशन के लिए फाइबर ऑप्टिक अधिक उपयुक्त होती है।
प्रश्न 20.
लाइन ऑफ फाइट ट्रांसमिशन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
प्रेषक एंटीना एवं प्राप्तकर्ता एंटीना को एक ही रेखा में करने को लाइन ऑफ फाइट ट्रांसमिशन कहा जाता है।
प्रश्न 21.
पहली बार उपग्रह में ट्रांसमिशन का उपयोग कब हुआ?
उत्तर-
पहली बार उपग्रह में ट्रांसमिशन का उपयोग 1960 में हुआ था।
प्रश्न 22.
Encapsulation तथा Decapsulation क्या होते हैं?
उत्तर-
डेटा का एप्लीकशन लेयर से फिजिकल लेयर की ओर जाना Encapsulation कहलाता है तथा डेटा का फिजिकल लेयर से एप्लीकेशन लेयर की तरफ जाना Decapsulation कहलाता है।
प्रश्न 23.
मॉडेम की गति नापने की यूनिट क्या होती है?
उत्तर-
मॉडेम की डेटा ट्रांसमिशन गति बिट्स प्रति सेकंड (bps) में मापी जाती है।
प्रश्न 24.
एक स्विच (Switch) में कितने कम्प्यूटर जोड़े जा सकते हैं?
उत्तर-
एक स्विच में कितने कम्प्यूटर जोड़े जा सकते हैं, वह उसमें कितने पोर्ट हैं, इस बात पर निर्भर करता है।
प्रश्न 25.
रूट (Route) किसे कहते हैं?
उत्तर-
जब कई नेटवर्क को जोड़कर बड़ा नेटवर्क बनाया जाता है तो नेटवर्क के मध्य पथ होते हैं, इन पथों को रूट (Route) कहते हैं।
प्रश्न 26.
राउटर (Router) का मुख्य लाभ क्या है?
उत्तर-
राउटर संदेश भेजने के लिए कई पथों में से सबसे सुगम पथ को चुनते हैं। अगर राऊटर को एक पथ पर दोष का पता चलता है तो दूसरे पथ पर संदेश भेजने की कोशिश करता है।
प्रश्न 27.
हमें गेटवे (GATEWAY) की जरूरत कब पड़ती है?
उत्तर-
जब हम दो अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम वाले दो या दो से अधिक नेटवर्क को जोड़ते हैं तो गेटवे की जरूरत पड़ती है।
प्रश्न 28.
वायरलेस नेटवर्क का क्या उपयोग है?
उत्तर-
वायरलेस नेटवर्क किसी भी उपकरण को बिना तार किसी माध्यम से जुड़ने की सुविधा देता है।
प्रश्न 29.
Simple Mail Transfer Protocol (SMTP) का क्या काम है?
उत्तर-
SMTP किसी यूजर के प्रोग्राम या एप्लीकेशन से ईमेल को सर्वर तक तथा सर्वर से किसी अन्य सर्वर पर भेजने के काम आता है।
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नेटवर्क का निर्माण करते समय किन मूलभूत गुणों को ध्यान में रखा जाता है?
उत्तर-
नेटवर्क का निर्माण करते समय निम्नलिखित मूलभूत गुणों को ध्यान में रखा जाता है
- मूल्य : इस श्रेणी में उपयोगी तत्त्वों, उनका समायोजन एवं रख-रखाव आता है।
- सुरक्षा : इस श्रेणी में सभी तत्त्वों एवं आँकड़ों का बचाव आता है।
- गति : आँकड़ों का आदान प्रदान किस गति से होता है, जिससे नेटवर्क को गुणवत्ता मिलती है, इस श्रेणी में आता है।
- संस्थिति : इस श्रेणी में नेटवर्क के सभी तत्त्वों का आपस में भौतिक स्थिति में जुड़ाव आता है।
- मापनीयता : इस श्रेणी में नेटवर्क किस प्रकार नये रिवाज को स्वीकार करता है उसे ध्यान में रखा जाता है।
प्रश्न 2.
आँकड़ों का संचार(डेटा कम्युनिकेशन) से आप क्या समझते हैं? यह किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर-
आँकड़ों के संचार का सीधा मतलब उसके आदान-प्रदान से है न कि आँकड़ों की पीढ़ी और उसके परिणाम से होता है। आँकड़ों का आदान-प्रदान निम्नलिखित तीन बातों पर निर्भर करता है
- सुपुर्दगी-तंत्र सही लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही आँकड़ों का आदान-प्रदान करे अर्थात् आँकड़े सही लक्ष्य द्वारा ही प्राप्त किये जायें।
- शुद्धता-अगर माध्यम आँकड़ों में कोई परिवर्तन करता है तो यह अनुपयोगी होता है।
- सामयिकता-तंत्र आँकड़ों को सही समय पर आदान-प्रदान करता है तो ही इसका महत्त्व है।
प्रश्न 3.
संचार तंत्र को चित्र सहित समझाइये।
उत्तर-
संचार तंत्र-दिये गये संचार तंत्र हिस्सा होता है। हर हिस्से का अपना कार्य एवं अपनी उपयोगिता होती है। जैसे-
- उद्गम – यह उपकरण आँकड़ों को पैदा करता है।
- ट्रांसमीटर ( प्रेषक) – उद्गम उपकरण आँकड़ों को जिस रूप में पैदा करता है उस रूप में माध्यम इनको लक्ष्य की ओर भेजने हेतु स्वीकार नहीं करता। अत: ट्रांसमीटर वह उपकरण है जो आँकड़ों को लक्ष्य की ओर भेजने हेतु तैयार करता है।
- प्रेषक तंत्र – जब दो उपकरण आपस में आँकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं तो इनके बीच का संप्रेषण तंत्र ही प्रेषक तंत्र कहलाता है।
- प्राप्तकर्ता – प्राप्तकर्ता वह उपकरण है जो लक्ष्य पर जाने से पहले आँकड़ों को प्रेषक तंत्र से प्राप्त करते हैं।
- लक्ष्य – उद्गम उपकरण से चलकर आँकड़े प्रेषक तंत्र को पार करते हुए जिस अन्तिम उपकरण पर आकर रुकते हैं। वह लक्ष्य कहलाता है।
प्रश्न 4.
आँकड़ा संचार तंत्र के प्रमुख अंग कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर-
आँकड़ा संचार तंत्र के अंग-आँकड़ा संचार तंत्र के 5 प्रमुख अंग होते हैं
- संदेश – संदेश वह आँकड़ा या सूचना है जिसे हम दिये गये माध्यम पर प्रेषित करना चाहते हैं। संदेश विभिन्न रूपों का हो सकता है। जैसे—Text, Image, Video.
- भेजने वाला – यह वह उपकरण है जो कि संदेश भेजता है। यह कोई कम्प्यूटर, टेलीफोन उपकरण या कैमरा इत्यादि हो सकता है।
- प्राप्त करने वाला – यह वह उपकरण है जो सबसे अंत में संदेश को प्राप्त करता है।
- माध्यम – उद्गम से चलकर संदेश अपने लक्ष्य तक एक रास्ता तय करके पहुँचता है। यही रास्ता जो संदेश को. उद्गम से लक्ष्य तक पहुँचाता है, माध्यम कहलाता है। माध्यम कोई प्रकाशिक फाइबर, समाक्षीय तार, व्यावर्तित युग्म तार या रेडियों तरंगें हो सकती हैं।
- प्रोटोकॉल – प्रोटोकॉल नियमों का वह समूह है जो आँकड़ा संचारण को संचालित करता है। यह दो उपकरणों (उद्गम एवं लक्ष्य) के मध्य एक सहमति को निर्धारित करता है।
प्रश्न 5.
एक नेटवर्क के योग्य व प्रभावशाली होने के लिए किन कसौटियों पर खरा होना पड़ता है?
उत्तर-
एक नेटवर्क के योग्य एवं प्रभावशाली होने के लिए उसे कई कसौटियों पर खरा उतरना पड़ता है उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
- कार्य-संपादन – कार्य-संपादन से तात्पर्य त्रुटि रहित सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। इसमें सूचनाओं का लक्ष्य तक पहुँचने एवं उसके पश्चात् लक्ष्य द्वारा लिये गए निर्णय में लगा समय समाहित होता है।
- सामंजस्य – सामंजस्य से तात्पर्य लक्ष्य द्वारा पुन: प्रतिक्रिया देने में लिया जाने वाला समय एवं आँकड़ों की शुद्धता का पूर्वानुमान है। उदाहरण के लिए हम यह मान सकते हैं कि एक नेटवर्क का नेटवर्क प्रिन्टर द्वारा किसी पेज को प्रिन्ट देने में लिए गए समय का पूर्वानुमान 3 सेकण्ड है लेकिन वास्तविकता में यह 30 सेकण्ड लेता है मतलब मेरे नेटवर्क में लक्ष्य के साथ सामंजस्य नहीं है।
- विश्वसनीयता – विश्वसनीयता नेटवर्क की उपयोगिता का एक मानक है।
- पुनः प्राप्ति/बहाली – एक नेटवर्क खराब होने के बाद कितना जल्दी अपनी वास्तविक स्थिति में पुन: आ जाता है, इस पर उसकी उपयोगिता निर्भर करती है।
- सुरक्षा – हमारे नेटवर्क के उपकरणों, सॉफ्टवेयर एवं आँकड़ों को अनाधिकृत तरीके से उपयोग में लेने से बचाना ही सुरक्षा है। इस श्रेणी में वायर से बचाव भी आता है।
प्रश्न 6.
टोपोलॉजी से आप क्या समझते हैं? किसी टोपोलॉजी का चुनाव करने से पूर्व किन पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है?
उत्तर-
नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topologies) – कम्प्यूटरों को एक-दूसरे से जोड़ने की शैली को टोपोलॉजी कहते हैं। किसी टोपोलॉजी का चुनाव करने से पूर्व कई पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है। इनमें से कुछ पहलुओं का विवरण नीचे प्रस्तुत है
- मूल्य (Cost) – किसी नेटवर्क की कीमत को घटाने के लिए आवश्यक है कि हम उसकी निर्माण की लागत कम रखने का प्रयास करें। ऐसा करने हेतु सूचना संकेतों को बदलने वाले माध्यम का निर्धारण आवश्यक है। जिस माध्यम पर ट्रांसमिशन करना है, उसकी लम्बाई भी आवश्यकतानुसार बदली जा सकती है।
- लचीलापन (Flexibility) – चूंकि नेटवर्क का विस्तार पूर्व निर्धारित न होने के कारण नोड्स की संख्या भी निश्चित नहीं की जा सकती। इसी कारण हमारी चुनी हुई टोपोलॉजी ऐसी होनी चाहिए जिसमें विस्तार की क्षमता हो।
- विश्वसनीयता (Reliability) – एक नेटवर्क में दो प्रकार की खराबियाँ हो सकती हैं। पहली किसी एक नोड का खराब हो जाना, दूसरी पूरे नेटवर्क का खराब हो जाना। हमें यहाँ इस बात पर गौर करना चाहिए कि किसी एक नोड के खराब हो जाने पर बाकी नेटवर्क पर उसका प्रभाव नहीं पड़े।
प्रश्न 7.
लोकल एरिया नेटवर्क के विषय में बताइए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
लोकल एरिया नेटवर्क (LAN)—यह नेटवर्क एक भवन के अन्दर अथवा कुछ किलोमीटर क्षेत्र में फैला होता है। ये किसी कार्यालय अथवा कारखाने के विभिन्न कम्प्यूटरों द्वारा सूचना तंत्र संसाधनों के आदान-प्रदान के लिए काम में लिया जाता है।
लैन सामान्यतः छोटे क्षेत्र में ही फैले होते हैं जैसे एक विभाग या एक भवन में। लैन छोटे होते हैं इसलिए इन्हें संभालना आसान होता है। इनमें साधारणत: शॉर्ट सर्किट एवं अनचाहे संकेतों से कुछ दोष आ जाते हैं। लैन एक ही केबल से सभी नोड्स को जोड़ता है। ये टेलीफोन केबल का ट्रांसमिशन के लिए उपयोग करते हैं, इसलिए ये सस्ते पड़ते हैं।
लैन की विशेषताएँ
- लैन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी गति है। सामान्यतया इसकी डेटा ट्रांसमिशन गति 10 से 100 एम०बी०पी०एस० (Mbps) होती है। वर्तमान में यह 1 Gbps एवं इससे भी ज्यादा है।
- लैन काफी लचीला नेटवर्क है, इसमें बगैर सारे नेटवर्क को विघ्न पहुंचाये, कम्प्यूटर को जोड़ा एवं हटाया जा सकता है।
- चूंकि लैन का क्षेत्र सीमित होता है इसलिए इसमें हम कई प्रकार की टोपोलॉजी काम में ले सकते हैं।
प्रश्न 8.
मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क (मैन) (MAN)-मेट्रोपॉलिटन का मतलब है शहर। यह नेटवर्क बहुत बड़े क्षेत्र में फैला होता है जैसे कि शहर अथवा कस्बा। मैन, लैन का बड़ा स्वरूप है, यह भी लैन द्वारा काम में ली जा रही तकनीक का ही उपयोग करता है। इसको बनाना लैन की तुलना में अधिक जटिल है। यह 60 किलोमीटर तक के क्षेत्र में फैला हो सकता है। यह एक ही शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित बैंक शाखाओं और व्यवसायिक घरों को आपस में जोड़ता है। उदहारण-शहरों के केबल टी०वी० नेटवर्क।
मैन की विशेषताएँ
- पूरा नेटवर्क एक केन्द्रीकृत मशीन द्वारा संचालित एवं नियंत्रित होता है।
- मैन का मुख्य ध्येय, सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर संसाधनों का मिलकर उपयोग करना है।
- मैन डेटा और ध्वनी दोनों का ट्रांसमिशन कर सकता है।
प्रश्न 9.
वाइड एरिया नेटवर्क के विषय में बताइए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तर-
वाइड एरिया नेटवर्क (वैन) (WAN) – दूसरे नेटवर्को की तुलना में वैन बहुत बड़े क्षेत्र में काम करता है, यह सम्पूर्ण देश अथवा प्रायद्वीपों में भी फैला हो सकता है। वैन में देशों अथवा प्रायद्वीपों के सभी कम्प्यूटर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। ये कम्प्यूटर डेटा का आदान-प्रदान एवं केन्द्र नियंत्रित ट्रांसमिशन भी कर सकते हैं। वैन ट्रांसमिशन, तार वाले माध्यम (टेलीफोन लाइन, फाइबर ऑप्टिक्स) अथवा बेतार माध्यम (माइक्रोवेव) से हो सकता है। तीनों तरह के नेटवर्कों में यह सबसे बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं। वैन नेटवर्कों को जोड़ना बहुत ही जटिल होता है। इनमें शॉर्ट सर्किट, तार टूटने के कारण या दूसरे सर्किट से दोष आ सकते हैं।
वैन की विशेषताएँ
- वैन कई नेटवर्क उपकरणों का ट्रांसमिशन के लिए उपयोग करता है; जैसे—राउटर, स्विच और गेटवे।
- वैन डेटा ट्रांसमिशन के लिए दो प्रकार की स्विचिंग पद्धति का उपयोग करता है।
(अ) पैकेट स्विचिंग
(ब) सर्किट स्विचिंग - इनकी डेटा ट्रांसमिशन गति दूसरे नेटवर्कों की तुलना में धीमी होती है।
प्रश्न 10.
प्रोटोकॉल की परिभाषा दीजिए। इसके प्रमुख तत्त्व बताइए।
उत्तर-
नियमों के ऐसे समूह (Set of Rules) जो डेटा कम्यूनिकेशन को शासित करते हैं, प्रोटोकॉल कहलाते हैं। प्रोटोकॉल के निम्नलिखित तत्व होते हैं
- Syntax : किसी भी डेटा का प्रारूप बताता है।
- Semantics : एक बिट के हर भाग से सम्बन्धित है कि किस प्रकार उसकी व्याख्या की गई है।
- Timing : डेटा कब भेजा गया है तथा कितनी गति से।
प्रश्न 11.
स्टैण्डर्ड की परिभाषा दीजिए। ये क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
Standard : किसी भी तकनीक या सिस्टम का नियमों के अनुसार विनियमन (Regulation) ही स्टैण्डर्ड (Standard) कहलाता है।
Standards की जरूरत-स्टैण्र्ड्स उपकरण बनाने वाली कम्पनियों के लिए एक प्रतिस्पर्धात्मक एवं खुला मार्केट बनाते हैं और उपकरणों को विश्व भर में काम करने के लिए उपयोगी बनाते हैं जिससे कोई भी कम्पनी अपनी मनमानी नहीं कर सके।
Standardization Committees
- ISO (Internation Organization for Standardization)
- ANSI (American National Standards Interface)
- IEEE (Institute of Electrical and Electronics Engineers)
- ITU (International Telecommunication Union)
प्रश्न 12.
उपग्रह ट्रांसमिशन की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
उपग्रह ट्रांसमिशन की विशेषताएँ
- हर उपग्रह का जीवन चक्र 7 से 10 साल तक होता है।
- पृथ्वी पर स्थित स्टेशन उपयोगकर्ता से कुछ दूरी पर होते हैं। संकेतों को यह दूरी महंगे उच्च गति की ट्रांसमिशन माध्यमों द्वारा तय करनी पड़ती है।
- उपग्रह ट्रांसमिशन को कोई भी टेप कर सकता है।
- कई परिस्थितियों में उपग्रह काम नहीं कर पाते क्योंकि उपग्रह सौर ऊर्जा से चलते हैं। सूर्य ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी उपग्रह और सूर्य के बीच में आ जाती है जिसके कारण उपग्रह को सौर ऊर्जा मिलना बंद हो जाती है इस वजह से कभी उपग्रह की कार्य क्षमता घट जाती है तो कभी वह कार्य करना बंद कर देते हैं।
- उपग्रह को भेजने वाली आवृत्ति एवं वापस पृथ्वी पर संकेतों के आने वाली आवृत्ति C बेड (4/6 GHz) अथवा K4 (11/4 GHz) की हो सकती है इसलिए उसी आवृत्ति का बड़ा एंटीना चाहिए तथा भूस्थित स्टेशनों को बरसात एवं वातावरण के कारण अवरोधों का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 13.
OSI मॉडल कौन सी सुविधाएँ प्रदान करता है?
उत्तर-
OSI मॉडल की सुविधा
- नेटवर्क की बड़ी तस्वीर को समझा जा सकता है।
- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर एक साथ काम करते हुए देखना मुमकिन है।
- इसमें क्या नई तकनीक विकसित की है इसकी जानकारी लेना आसान है।
- अलग-अलग नेटवर्क की समस्याओं का निवारण आसान हो जाता है।
- अलग-अलग नेटवर्क पर बुनियादी कार्यात्मक संबंध तुलना करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रश्न 14.
वायरलेस (Wireless) के प्रमुख फायदे बताइए।
उत्तर-
वायरलेस के फायदे
- यह कार्य करने में लचीलापन (Flexibility), उत्पादकता को बढ़ाने, आगे बढ़ने तथा जरूरत के अनुसार अनुकूल वातावरण बनती है।
- कोई भी यूजर कभी भी कहीं भी, इन्टरनेट से जुड़ सकता है उसे किसी एक क्षेत्र या जगह पर होने की आवश्यकता नहीं है।
- वायरलेस से उत्पादकता में आ रहे खर्च में कमी आती है।
प्रश्न 15.
वायरलेस नेटवर्क क्या होता है? इसकी प्रमुख तकनीक बताइए।
उत्तर-
वायरलेस नेटवर्क किसी भी उपकरण को बिना तार किसी माध्यम से जुड़ने की सुविधा देता है। इसकी निम्नलिखित तकनीक है
- Wireless Personal Area Networks (WPANs) : यह तकनीक कुछ फीट के क्षेत्र में ही काम करती है। ब्लूटूथ (Bluetooth) इसका उदाहरण है। Bluetooth की मदद से यूजर जिनके पास मोबाइल है वो कभी भी डेटा एक-दूसरे को भेज सकते हैं।
- Wireless LANs (WLANs): यह तकनीक कुछ 100 मीटर के क्षेत्र में ही काम करती है। जिससे घर, दफ्तर तथा कैंपस में इन्टरनेट से जोड़ा जा सकता है।
- Wireless Wide-Area Networks (WWANs) : यह तकनीक बहुत लम्बी दूरी के क्षेत्र में काम करती है। इस तकनीक के द्वारा घर, शहर, देशों को जोड़ा जाता है। उपग्रह तथा मोबाइल कम्युनिकेशन इसके उदाहरण हैं।
प्रश्न 16.
वायरलेस सुरक्षा क्यों आवश्यक है? वायरलेस पर किस प्रकार आक्रमण हो सकते हैं?
उत्तर-
वायरलेस सुरक्षा (Wireless Security)-एक वायरलेस नेटवर्क से जुड़े नेटवर्क को सुरक्षित बनाये रखना कठिन है। जो कोई भी नेटवर्क प्रशासन को उपयोग में ला रहा है उसके लिए सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है।
वायरलेस नेटवर्क में उससे सम्बंधित खुफिया जानकारी जहाँ तक नेटवर्क आ रहा है वहाँ तक खुली रहती है या पता होती है। एक हमलावर को शारीरिक रूप से एक WLAN के लिए पहुँच प्राप्त करने के लिए कार्यस्थल में प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए वायरलेस नेटवर्क को सुरक्षा देना बहुत ही आवश्यक है।
वायरलेस पर निम्न प्रकार आक्रमण हो सकते हैं
Wireless intruders
Rogue apps
Interception of data
Dos attacks
प्रश्न 17.
सेवा की गुणवत्ता के प्रवाह विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
प्रवाह विशेषताएँ : मुख्यतया निम्नलिखित चार प्रकार की प्रवाह विशेषताएँ हैं :
1. विश्वसनीयता (Reliability) – विश्वसनीयता एक विशेषता है। अगर विश्वसनीयता कम है तो इसका सीधा मतलब यह नहीं की पैकेट/अभिस्वीकृति (acknowledgment) का नष्ट होना है जो रिट्रांसमिशन (दुबारा भेजना) को प्रेरित करता है।
2. विलम्ब (Delay) – प्रेषक से प्राप्तकर्ता के बीच के विलम्ब को एक हद तक सहन कुछ एप्लीकेशनस में किया जा सकता है। परन्तु कुछ एप्लीकेशनस जैसे की टेलीफोनी और ऑडियो कांफ्रेसिंग (Audio conferencing) में विलम्ब सहन नहीं किया जा सकता है।
3. जिटर (Jitter) – जिटर का सम्बन्ध एक ही प्रवाह से संबंधित पैकेट्स में विलम्ब से है। अगर सभी पैकेट प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक एक ही समय विलम्ब पर पहुंच रहे हैं मतलब जिटर नहीं है परन्तु अगर पैकेट्स अलग-अलग विलम्ब पर पहुँच रहे हैं तो जिटर है जो नेटवर्क में जाने वाले पैकेट्स के लिए तथा एप्लीकेशनस के लिए अच्छा नहीं है।
4. बैंडविड्थ (Bandwidth) – बैंडविड्थ का सीधा सम्बन्ध एक समय में भेजे गए पैकेट्स की गति से है। अलग-अलग एप्लीकेशनस को अलग-अलग बैंडविड्थ की जरूरत होती है। अगर बैंडविड्थ जरूरी बैंडविड्थ से ज्यादा या बराबर है तो एप्लीकेशन सही तरीके से काम करेंगी अन्यथा पैकेट्स का नष्ट होना शुरू हो जाएगा जिसके फलस्वरूप उन पैकेट्स को दुबारा भेजना पड़ेगा जो नेटवर्क तथा कम्प्यूटर एप्लीकेशनस के लिए अच्छा नहीं है।
प्रश्न 18.
डोमेन नेम स्पेस को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर-
डोमेन नेम स्पेस (Domain name space)-डोमेन नाम सिस्टम एक पेड़ जैसी डेटा संरचना है। यह पौधानुमा संरचना कई जोंस में विभाजित होती है जो एक रूट या डॉट (.) से शुरू होती है। रूट डोमेन या डॉट (.) कई श्रेणियों में बंटा होता है जिन्हें टॉप लेवल डोमेन (Top Level Domain) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए com, org, net
प्रश्न 19.
ईमेल की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
ईमेल सिस्टम (Email System)-ईमेल इन्टरनेट सेवाओं में सबसे प्रसिद्ध सेवा है। इन्टरनेट के शुरूआती दिनों में ईमेल से केवल छोटे व टैक्स्ट मेसेज ही भेजे जा सकते थे। पर आजकल ईमेल बहुत ही जटिल प्रणाली है जिसकी मदद से टेक्स्ट, चित्र, वीडियो को भी भेजा जा सकता है। ईमेल से जानकारी एक साथ एक से ज्यादा प्राप्तकर्ताओं को भेजी जा सकती है।
ईमेल की विशेषताएँ-ईमेल की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
- इसे आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है।
- जानकारी कुछ सेकंड में ही विश्व के किसी भी कोने में भेजी जा सकती है इसलिए यह बहुत तीव्र गति से कार्य करता
- जब किसी को किसी ईमेल का उत्तर देना होता है तो पहले से आयी जानकारी साथ में रहती है।
- अगर कोई यूजर अपने ईमेल को प्रयोग में नहीं ला पा रहा है या किसी काम से बाहर है तो वह स्वत: ईमेल भेजने की तकनीक का प्रयोग कर सकता है जिसमें जिस यूजर ने ईमेल किया है उसको अपने आप मेल चला जायेगा।
- पुराने पोस्टल सिस्टम पेपर का प्रयोग करते थे जबकि ईमेल इलेक्ट्रॉनिक डेटा का प्रयोग करता है अत: यह पर्यावरण अनुकूल है।
- ईमेल को किसी भी उपकरण जैसे कि कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, टेबलेट पर पढ़ा जा सकता है तथा उसका प्रतिउत्तर भेजा जा सकता है।
RBSE Class 11 Computer Science Chapter 4 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
टोपोलॉजी कितने प्रकार की होती हैं वर्णन कीजिए।
उत्तर-
टोपोलॉजी मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं, वे इस प्रकार हैं
बस टोपोलॉजी (Bus Topology) – बस टोपोलॉजी में सभी कम्प्यूटरों को एक ही केबल से जोड़ा जाता है। हर नोड , (कम्प्यूटर) दूसरे नोड्स से जुड़ा होता है इस शैली में एक बार में एक ही कम्प्यूटर संदेश भेज सकता है।
बस टॉपोलॉजी के लाभ –
- यह तकनीक सरल, आसानी से समझ में आने वाली तथा आसानी से काम में आने वाली है।
- इसमें कम्प्यूटरों को जोड़ने के लिए कम केबल काम में आती है। अत: ये सस्ती पड़ती है।
- इसमें आसानी से कई कम्प्यूटरों को जोड़ा जा सकता है।
बस टोपोलॉजी की हानियाँ –
- जब कम्प्यूटर एक-दूसरे के साथ समन्वय स्थापित नहीं कर पा रहे हैं तो फिर सभी कम्प्यूटर एक साथ ट्रांसमिशन शुरू कर देते हैं। इसके कारण नेटवर्क धीमा हो जाता है।
- केबल टूट जाने पर दो कम्प्यूटर आपस में ट्रांसमिशन नहीं कर पाते हैं।
स्टार टोपोलॉजी (Star Topology)
इस टॉपोलॉजी के सभी कम्प्यूटरों को हब या स्वीच से जोड़ा जाता है; हब या स्वीच नेटवर्क में होता है तथा एक नोड के संकेतों को सभी नोड्स को भेजता है।
स्टार टोपोलॉजी के लाभ
- इसमं नये कम्प्यूटर जोड़ना सरल है। कम्प्यूटर को केबल द्वारा हम तक जोड़ों और कम्प्यूटर नेटवर्क में जोड़ा जाता है।
- इसमें हब या स्वीच द्वारा दोषों का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
- एक कम्प्यूटर के काम बन्द कर देने से बाकी नेटवर्क पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
स्टार टोपोलॉजी की हानियाँ
- हब या स्वीच के खराब होने पर पूरा नेटवर्क काम करना बन्द कर देता है।
- स्टार टोपोलॉजी महँगी पड़ती है क्योंकि इसमें हर कम्प्यूटर को केन्द्र में स्थित हब या स्वीच से अलग केबल द्वारा जोड़ा जाता है।
ट्री टोपोलॉजी (Tree Topology) – इस टोपोलॉजी में कम्प्यूटरों को इस प्रकार जोड़ा जाता है जैसे वे पेड की कई शाखाएं हैं। सबसे ऊपर स्थित नोड को रूट (Root) कहा जाता है। रूट से शून्य या अधिक चाइल्ड नोड (Child Node) जुड़े होते हैं।
रूट नोड अपने चाइल्ड नोड का जनक (Parent) होता है। हर चाइल्ड नोड के भी कई चाइल्ड नोड हो सकते हैं। इस तरह से हर नोड के जनक नोड होते हैं केवल रूट नोड के ही जनक नोड नहीं होते हैं। इस प्रकार की टोपोलॉजी में एक नोड से दूसरे नोड तक केवल एक पथ होता है।
ट्री टोपोलॉजी के लाभ
- इस टोपोलॉजी में नए कम्प्यूटर चाइल्ड नोड से जोड़ना आसान होता है।
- इसमें केन्द्रित हब की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
ट्री टोपोलॉजी की हानियाँ
- कम्प्यूटर को रूट नोड पर जोड़ना आसान नहीं होता है।
- कम्प्यूटर को रूट नोड पर जोड़ने अथवा हटाने से नेटवर्क बाधित हो सकता है।
रिंग, मैश एवं हाईब्रिड टोपोलॉजीज इन्हीं तीन प्रमुख टोपोलॉजीज का संवर्धित एवं परिवर्तित रूप हैं :
(A) रिंग टोपोलॉजी – इस टोपोलॉजी में सभी कम्प्यूटर एक रिंग के स्वरूप में जुड़े होते हैं।
(B) मैश टोपोलॉजी – इस टोपोलॉजी में सभी कम्प्यूटर एक जाल के रूप में जुड़े होते हैं।
(C) हाईब्रिड टोपोलॉजी – इस प्रकार की टोपोलॉजी दो या दो से अधिक टोपोलॉजी का मिश्रण होता है।
प्रश्न 2.
डेटा ट्रांसमिशन की विभिन्न विधियाँ बताइए।
उत्तर-
डेटा ट्रांसमिशन की तीन विधियाँ हैं
- सिंप्लेक्स,
- हाफ डुप्लेक्स,
- फुल डुप्लेक्स
1. सिंप्लेक्स – सिंप्लेक्स ट्रांसमिशन (Simplex Transmission) विधि में एकतरफ डेटा कम्युनिकेशन होता है। सिंप्लेक्स ट्रांसमिशन का उदाहरण टेलीविजन कम्युनिकेशन है। इसमें मुख्य ट्रांसमीटर संकेत भेजता है परन्तु इसके जवाब की अपेक्षा नहीं रखता है। क्योंकि प्राप्तकर्ता, ट्रांसमीटर को कोई जवाब नहीं दे सकता। सिंप्लेक्स ट्रांसमिशन का उदाहरण कीबोर्ड भी है क्योंकि वह कम्प्यूटर से जुड़ा होता है और कम्प्यूटर को केवल (Only) डेटा दे सकता है। एक तरफा ट्रांसमिशन में भी एक संदेश की आवश्यकता होती है जो यह बता सके की प्राप्तकर्ता ने डेटा प्राप्त कर लिया है। सिंप्लेक्स ट्रांसमिशन सामान्यतया काम में नहीं लिया जाता क्योंकि स्वीकृति, नियंत्रण तथा त्रुटि संकेत भेजने के लिए एक वापस मार्ग की आवश्यकता होती है।
2. हाफ डुप्लेक्स – हाफ डुप्लेक्स विधि में दोनों इकाइयाँ एक ही माध्यम से एक कम्युनिकेशन करती हैं किन्तु एक बार में केवल एक ही इकाई डेटा का ट्रांसमिशन कर सकती है। जब एक इकाई डेटा भेज रही होती है तो दूसरी प्राप्त कर रही होती है अत: हाफ डुप्लेक्स लाइन वैकल्पिक रूप से डेटा भेजती और प्राप्त करती है। इसमें दो तारों की आवश्यकता होती है। यह बहुत ही सामान्य तरीका है। इसके द्वारा ध्वनि ट्रांसमिशन भी किया जा सकता है क्योंकि इसमें माना जाता है कि एक समय में एक ही व्यक्ति बोल सकता है। यह इकाई को कम्प्यूटर से जोड़ने के काम आती है। यह कम्पयूटर को डेटा का ट्रांसमिशन कर सकती है और कम्प्यूटर उसे स्वीकारोक्ति का सन्देश भेजता है। हाफ डुप्लेक्स में अगर दोनों उपकरण एक साथ डेटा भेजने तथा प्राप्त करने की कोशिश करते हैं तो पैकेट्स की टक्कर हो जाती है।
फुल डुप्लेक्स-फुल डुप्लेक्स में सूचना एक ही समय में दोनों दिशाओं में बहती है। फुल डुप्लेक्स विधि के प्रयोग से ट्रांसमिशन की दक्षता से सुधार ला सकते हैं। फुल डुप्लेक्स कम्युनिकेशन में दोनों उपकरण एक साथ दोनों दिशाओं में डेटा भेज तथा प्राप्त कर सकते हैं। इसका प्रमुख उदाहरण टेलीफोन सिस्टम है।
प्रश्न 3.
हब व स्विच का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हब (Hub)-हब ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा कई कम्प्यूटरों को एक नेटवर्क में भौतिक रूप से जोड़ा जा सकता है। इस उपकरण में पहले सूचना को इकट्ठा किया जाता है तथा बाद में उसे कम्प्यूटरों को ट्रांसमिट किया जाता है इसलिए इसे इंटरफेस (Interface) यूनिट कहा जाता है। यह केवल कुछ बिट्स का डेटा ही इकट्ठा कर सकता है इसलिए इसके द्वारा ट्रांसमिशन तीव्र गति से होता है। हब एक ऐसा उपकरण है जो पहले डेटा प्राप्त करता है फिर डेटा को शक्तिशाली बनाता है तथा दूसरे छोर के कम्प्यूटर के लिए उन्हें ट्रांसमिट करता है क्योंकि हब डेटा को शक्तिशाली बनाता है इसलिए वह डेटा के साथ संकेतिक अवरोधों को भी शक्तिशाली बना देता है। यह एक सशक्त वायरिंग केंद्र है जो प्रिंटर, स्केनर, कम्प्यूटर आदी उपकरणों को लेन (LAN) से जोड़ता है। केवल एक उपकरण ही एक समय में हब द्वारा डेटा ट्रांसमिशन कर सकता है। हब एक ऐसा बिंदु है जिसके द्वारा समस्या का पता लगाकर उसका निदान किया जा सकता है इसकी डेटा ट्रांसमिशन गति 10 मेगा बिट्स प्रति सेकंड (Mbps) होती है। हब दो प्रकार के होते हैं
- पैस्सिव हब (Passive Hub) – यह सबसे सरल हार्डवेयर उपकरण है। यह नेटवर्क में कई केबल से डेटा संकतों को प्राप्त कर सकते हैं।
- एक्टिव हब (Active Hub) – यह जटिल हार्डवेयर उपकरण है जो कि सब अलग-अलग नेटवर्क्स द्वारा दी गई सूचना का परीक्षण एवं नियंत्रण कर सकते हैं।
स्विच (Switch) – यह फ्रेम के शुरू होते ही प्राप्तकर्ता का पता देखकर स्विच फ्रेम्स को उनके गंतव्य पर भेजना शुरू कर देते हैं। भेजना शुरू करने से पहले यह फ्रेम का पूरा आने का इंतजार नहीं करते हैं। यह डेटा पैकेटों के संकेत अपराधों को दूर करता है जब डेटा पैकेट आते हैं तो उनके हैडर से रिसीवर का पता लगाया जाता है, फिर उन्हें रिसीवर तक भेज दिया जाता है। फ्रेम में बिट्स को एक पूर्व निर्धारित क्रम में लगाया जाता है जिनमें गंतव्य का पता लगाने, गलती के नियंत्रण, रिसीवर का डेटा तथा फ्रेम के खत्म होने की सूचना के लिए बिट्स होती हैं।
एक स्विच में कितने कम्प्यूटर जोड़ सकते हैं यह उसमें कितने पोर्ट हैं उस पर निर्भर करता है। स्विच सबसे ज्यादा तेज होते हैं तथा हर उपकरण के लिए अलग बैंडविड्थ देते हैं। स्विच अतिरिक्त ट्रैफिक को कम करके नेटवर्क की कार्य क्षमता बढ़ते हैं। वह इस बात को भी सुनिश्चित करते हैं कि सभी उपकरण एक ही समय पर ट्रांसमिशन कर सकें। स्विच जितने उपकरणों से जुड़ा होता है उन सभी के लिए अलग-अलग छोटी बफर मेमोरी रखता है। जब यह डेटा पैकेट प्राप्त करता है तो उसे बफर में सेव कर लेता है फिर उसका पता देखकर उसे उसके गंतव्य तक पहुँचा देता है अगर जिस स्थान से डेटा पैकेज आया है और उसका पता भी वही हो तो स्विच डेटा पैकेट को डिलीट कर देता है तथा उसका उन्हें ट्रांसमिशन नहीं करता है इस तरह अनावश्यक डेटा पैकेटों का ट्रांसमिशन रोककर वह डेटा ट्रैफिक को कम कर देता है और दूसरे शब्दों में कहें तो स्विच एक समझदार हब होता है।
प्रश्न 4.
राउटर व गेटवे का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राउटर (Router)-यह उपकरण असमान नेटवर्क के मध्य ट्रांसमिशन करता है। जब कई नेटवर्क को जोड़कर बड़ा नेटवर्क बनाया जाता है तो नेटवर्क के मध्य एक पथ (Route) होते हैं, इन पथों को रूट कहते हैं। राउटर आदि उपकरण इन पथों की एक सारणी बनाते हैं जिनमें से वह 2 कम्प्यूटरों के मध्य डेटा पथ का पता लगाते हैं। राउटर संदेश भेजने के लिए कई पथों में से सबसे सुगम पथ को चुनते हैं। अगर राउटर को एक पथ पर दोष का पता चलता है तो दूसरे पथ पर संदेश भेजने की कोशिश करता है।
राउटर केवल एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर को डेटा की प्रति ही नहीं भेजते अपितु उनके मध्य रूटिंग सारणी द्वारा सुगम पथ को भी चुनते हैं पथों की जानकारी के लिए राउटर पड़ोसी राउटर को अपनी जानकारी भेजते हैं। पड़ोसी राउटर इस जानकारी से अपनी जानकारी मिलाकर दूसरे पड़ोसी को भेजते हैं इस तरह सभी राउटर के पास अपनी जानकारी के अलावा पड़ोसी राऊटर की जानकारी भी होती है।
राउटर के पास जब डेटा आता है तो वह उसके प्राप्तकर्ता कम्प्यूटर का पता ज्ञात करता है तथा उसके बाद उसे प्राप्तकर्ता नेटवर्क को भेज देता है राउटर की मुख्य विशेषता उसका फायरवॉल (Firewall) की तरह कार्य करना होता है क्योंकि यह डेटा पैकेटों को परीक्षण कर सकता है इस प्रकार अनचाहे डेटा पैकेटों के नेटवर्क में आने और जाने पर अंकुश लगाता है। राऊटर डेटा नियंत्रण प्रणाली के माध्यम से डेटा को कम ट्रैफिक वाले पथों पर भेजकर ट्रैफिक जाम होने से बचाता है।
गेटवे (Gateway)-यह उपकरण असमान नेटवर्क को जोड़ता है। कुछ नेटवर्क यह जानकारी चाहते हैं कि डेटा के आने के बाद उन्हें किस तरह सुव्यवस्थित किया जा सकता है। जब हम दो अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम वाले दो या दो से अधिक नेटवर्क को जोड़ते हैं तो गेटवे की जरूरत पड़ती है। गेटवे संदेशों का पता और जरूरी प्रोटोकॉल बदलने के साथ उन्हें एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क को भेजते हैं।
गेटवे प्रेषक नेटवर्क से निर्देशों के समूह को प्राप्तकर्ता नेटवर्क के निर्देशों में बदलता है। गेटवे सामान्यत: राउटर में एक सॉफ्टवेयर होता है। गेटवे अपने से जुड़े सभी नेटवर्क के निर्देशों को समझ सकता है तथा उन्हें एक-से दूसरे निर्देशों में बदल संकता है। गेटवे अपने से जुड़े हुए कम्प्यूटरों के निवेदन को सर्वर को समझाने वाले निर्देशों में बदलता है। यह सर्वर के संदेशों को प्राप्तकर्ता कम्प्यूटर के समझने वाले संदेशों में बदलता है।
प्रश्न 5.
वायरलेस को सुरक्षा प्रदान करने की विभिन्न सुरक्षा व्यवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वायरलेस को सुरक्षा प्रदान करने के निम्न सुरक्षा व्यवस्थाएँ है
SSID cloaking : इसमें वायरलेस उपकरण द्वारा छोड़े जाने वाले संकेतों (beacon) फ्रेम्स को बंद कर दिया जाता है। जिससे वायरलेस का नेटवर्क किसी भी उपकरण में दिखाई नहीं देता है। जिस उपकरण को वायरलेस नेटवर्क से जोड़ना हो तो वायरलेस की पूर्ण जानकारी के बाद ही जोड़ा जा सकता है। अत: कोई भी नेटवर्क का पता नहीं लगा सकता है।
MAC address filtering : वायरलेस राऊटर में भौतिक मैक एड्रेस (MAC Address) की एक सूची बना सकते हैं जिससे किसी भी कम्प्यूटर या उपकरण को उस नेटवर्क से जुड़ने के लिए बंद व अनुमति दी जा सकती है।
उपरोक्त दोनों ही तरीकों को तोड़ा जा सकता है इसलिए वायरलेस नेटवर्क को एन्क्रिप्ट और प्रमाणित (authenticate) करना आवश्यक है इसलिए 802.11 मानक में दो प्रकार के तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं
Open system authentication : इसमें कोई भी ग्राहक या यूजर आसानी से कनेक्ट कर सकता है जहाँ सुरक्षा कोई ज्यादा मायने नहीं रखती। इस प्रकार की सुरक्षा कैफे, होटल की तरह मुफ्त इंटरनेट का उपयोग प्रदान स्थानों में के रूप में, जहाँ सुरक्षा कोई मायने नहीं रखी जाती है।
Shared key authentication : इसमें कम्प्यूटर और राऊटर के मध्य के कम्युनिकेशन को एन्क्रिप्ट (Encrypt) करने के लिए राउटर में एक पासवर्ड डालते हैं जिसकी जानकारी के बिना कोई भी ग्राहक या यूजर कनेक्ट नहीं कर सकता।
प्रश्न 6.
POP/IMAP में प्रमुख अंतर बताइए।
उत्तर-
POP/IMAP में अन्तर : POP/IMAP दोनों ही प्रोटोकॉल ईमेल को सर्वर से यूजर तक लाने में प्रयोग आते हैं। पर इनमें कुछ तकनीकी अंतर है जो निम्नलिखित है
- जैसे ही यूजर एप्लीकेशन या प्रोग्राम खोलके यूजर नाम और पासवर्ड देता है उसके बाद POP प्रोटोकॉल पूरे ईमेल को सर्वर से यूजर/क्लाइंट (Client) पर डाउनलोड कर देता है, डाउनलोड करते समय POP दो प्रकार से काम करता है या तो ईमेल की एक प्रतिलिपि सर्वर रखता है या डाउनलोड करने के बाद प्रतिलिपि को वह नष्ट कर देता है। POP पूरे ईमेल को अटेचमेंट के साथ डाउनलोड कर लेता है।
- IMAP.POP की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली और जटिल प्रोटोकॉल है और ज्यादा विशेषताएँ (features), यूजर को देता है।
- IMAP पूरे ईमेल को डाउनलोड करने के बजाय केवल ईमेल के हैडर को ही डाउनलोड करता है जिससे यूजर को यह पता चल जाता है कि मेल कहाँ से आया है तथा उसकी विषय क्या है। 4. यूजर अपने इनबॉक्स में किसी ईमेल को बिना पूरे ईमेल को डाउनलोड किये उसे ढूँढ़ सकता है।
- पूरे मेल का डाउनलोड ना होना बैंडविड्थ को बचाता है।
- यूजर अपनी सुविधा के अनुसार नए फोल्डर बना सकता है।
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