Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Chapter 18 औद्योगिक विकास
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नवीन औद्योगिक नीति की घोषण कब की गई?
(अ) 21 जुलाई, 1991
(ब) 24 जुलाई, 1991
(स) 24 जुलाई, 1990
(द) 21 जुलाई, 1990
उत्तर:
(ब) 24 जुलाई, 1991
प्रश्न 2.
‘भारत का आर्थिक संविधान’ कौन-सी औद्योगिक नीति को कहा जाता है?
(अ) औद्योगिक नीति, 1991
(ब) औद्योगिक नीति, 1977
(स) औद्योगिक नीति, 1956
(द) औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1948
उत्तर:
(स) औद्योगिक नीति, 1956
प्रश्न 3.
वर्तमान में कितने उद्योगों के लिए लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है?
(अ) 4
(ब) 5
(स) 6
(द) 3
उत्तर:
(ब) 5
प्रश्न 4.
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की घोषण कब की गई?
(अ) जुलाई 2014
(ब) अक्टूबर 2014
(स) अगस्त 2014
(द) सितम्बर 2014
उत्तर:
(द) सितम्बर 2014
प्रश्न 5.
सकल घरेलू उत्पाद में लघु एवं कुटीर उद्योगों का योगदान 2012-13 में कितना रहा है?
(अ) 37.54 प्रतिशत
(ब) 37.84 प्रतिशत
(स) 36.54 प्रतिशत
(द) 36.84 प्रतिशत
उत्तर:
(अ) 37.54 प्रतिशत
प्रश्न 6.
भारत अति लघु उद्योग (Tiny Industries) की अवधारणा कौनसी नीति के अन्तर्गत अपनाई गई?
(अ) औद्योगिक नीति, 1948
(ब) औद्योगिक नीति, 1977
(स) औद्योगिक नीति, 1956
(द) औद्योगक नीति, 1980
उत्तर:
(ब) औद्योगिक नीति, 1977
प्रश्न 7.
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम कब पारित किया गया?
(अ) 2006
(ब) 2007
(स) 2008
(द) 2005
उत्तर:
(अ) 2006
प्रश्न 8.
‘मुद्रा’ (MUDRA) योजना की शुरूआत कब की गई?
(अ) मार्च 2015
(ब) अप्रैल 2015
(स) मई 2015
(द) जून 2015
उत्तर:
(ब) अप्रैल 2015
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतंत्र भारत की प्रथम औद्योगिक नीति में उद्योगों को कितने वर्गों में बाँटा गया?
उत्तर:
चार
प्रश्न 2.
औद्योगिक लाइसेंस नीति 1970 की प्रमुख विशेषता बताइये।
उत्तर:
लघु उद्योगों के लिए आरक्षण की नीति जारी की गयी।
प्रश्न 3.
MSME का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
Micro, Small and Medium Enterprises!
प्रश्न 4.
LPG का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
Liberlisation, Privatisation, Globlisation
प्रश्न 5.
लघु उद्योगों के लिए आरक्षित वस्तुओं की सूची को कब समाप्त किया गया?
उत्तर:
2015 में।
प्रश्न 6.
डम्पिंग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अपने द्वारा उत्पादित माल को दूसरे राष्ट्रों में लागत से कम कीमत पर बेचना।
प्रश्न 7.
‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का प्रतीक चिन्ह क्या दर्शाता है?
उत्तर:
साहस, बुद्धिमत्ता तथा शक्ति।
प्रश्न 8.
‘मुद्रा’ का पूरा नाम लिखिए?
उत्तर:
Micro units Development and Refinance Agency
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
औद्योगिक विकास की कोई चार समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
- निर्धारित लक्ष्यों व उपलब्धियों में अंतर।
- उद्योगों की क्षमता का अपूर्ण प्रयोग।
- सार्वजनिक उद्योगों का प्रदर्शन।
- औद्योगिक रूग्णता।
प्रश्न 2.
‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितम्बर 2014 को इस कार्यक्रम की घोषणा भारतीय औद्योगिक विकास की गति को तेज करने हेतु निवेश में वृद्धि करके भारत को “मैन्यूफैक्चरिंग हब’ बनाने के उद्देश्य से की। इस कार्यक्रम का प्रतीक चिन्ह सिंह को बनाया गया जो न केवल देश के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक चक्र का अंश है बल्कि यह साहस, बुद्धिमत्ता तथा शक्ति को भी प्रदर्शित करता है।
प्रश्न 3.
नई औद्योगिक नीति अपनाने के क्या कारण रहे?
उत्तर:
नई औद्योगिक नीति अपनाने के निम्नलिखित कारण थे
- वर्ष 1990-91 में राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) का 8.4% हो गया था।
- वर्ष 1990-91 में ब्याज भुगतान बढ़कर कुल सरकारी व्यय का 36.4% हो गया था।
- भारत का भुगतान संतुलन (Balance of Payment) में घाटा बढ़ने लगा था।
- खाड़ी संकट भी एक महत्त्वपूर्ण कारण थे, जिसकी बजट से विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई थी।
- मुद्रास्फीति (Inflation) की दर 17% हो गयी थी।
- वर्ष 1991 में विदेशी मुद्रा भण्डार घटकर एक पखवाड़े से भी कम के आयात का भुगतान करने हेतु शेष बचा था।
प्रश्न 4.
औद्योगिक रुग्णता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, “किसी इकाई को औद्योगिक रुग्ण इकाई उस समय कहेंगे जबकि इकाई ने एक वर्ष में नकद हानि उठायी है और आगे आने वाले दो वर्षों में भी हानि की स्पष्ट संभावना हो जिससे इसके वित्तीय ढाँचे में काफी असंतुलन आ गया हो।”
प्रश्न 5.
लघु क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कोई चार योगदान बताइये।
उत्तर:
- औद्योगिक उत्पादन में योगदान
- लघु क्षेत्र का विस्तार
- रोजगार में योगदान
- लघु इकाइयों की कार्यकुशलता।
प्रश्न 6.
जिन उद्योगों के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य है, उनका नाम बताइये।
उत्तर:
ये उद्योग इस प्रकार से हैं :
- वायु, आकाश तथा रक्षा से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक्स,
- बारूद, औद्योगिक विस्फोटक तथा प्रस्फोटक फ्यूज,
- खतरनाक रसायन,
- तंबाकू, सिगरेट तथा अन्य संबंधित उत्पाद,
- मादक पेय (ऐल्कोहलिक ड्रिंक)।
प्रश्न 7.
औद्योगिक नीति 1956 पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
यह नीति ‘भारत का आर्थिक संविधान’ अथवा औद्योगिक नीति का मेग्नाकार्टा भी कही जाती है। इस नीति को तीन वर्गों में बाँटा गया
- भारत सरकार द्वारा एकाधिकृत उद्योगों को अनुसूची ‘अ’ (Schedule ‘A’) में रखा गया। इसके अंतर्गत 17 उद्योगों को शामिल किया गया जिनमें अस्त्र-शस्त्र उद्योग, परमाणु ऊर्जा, रेलवे व वायु परिवहन आदि उद्योग सम्मिलित थे।
- अनुसूची ‘B’ (Schedule ‘B’) के अंतर्गत सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के सह-अस्तित्व वाले उद्योगों को रखा गया। इसमें 12 उद्योग रखे गए; जैसे-खाद रसायन, सड़क परिवहन आदि।
- शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए रखे गए।
प्रश्न 8.
लघु व कुटीर उद्योगों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
लघु उद्योग (Small Scale Industry) :
वे उद्योग जो मध्यम स्तर के विनियोग की सहायता से उत्पादन प्रारम्भ करते हैं तथा श्रम शक्ति की मात्रा कम होती है व सापेक्षिक रूप से वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन भी कम मात्रा में किया जाता है, वे लघु उद्योग कहलाते हैं। इन्हें तीन प्रकार के उद्योगों में विभाजित किया जाता है :
- सूक्ष्म उद्योग (Micro Industry)
- लघु उद्योग (Small Industry) तथा
- मध्यम उद्योग (Medium Industry)
कुटीर उद्योग (Cottage Industry):
वे उद्योग जिनमें उत्पादन व सेवाओं का सृजन किसी कारखाने में नहीं अपितु अपने घर में ही किया जाता है। इन उद्योगों में कम पूँजी व अधिक कुशलता से अपने हाथों के द्वारा अपने घरों में ही वस्तुओं · का निर्माण किया जाता है।
परिभाषा :
“वे उद्योग जिनका एक ही परिवार के सदस्यों द्वारा पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से संचालन किया जाये, कुटीर उद्योग कहलाते हैं।”
प्रश्न 9.
सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों का नाम बताइये।
उत्तर:
वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की संख्या तीन है, जिन पर पूर्ण रूप से सरकार का ही स्वामित्व व अधिकार है। ये उद्योग हैं :
- परमाणु ऊर्जा,
- परमाणु ऊर्जा (उत्पादन व उपयोग नियंत्रण) आदेश,
- वर्ष 1995 की सूची में दर्ज किये गए खनिज व रेल परिवहन रेलवे आधारिक संरचना (Infrastructure) में वर्ष 2014 में निजी निवेश की अनुमति प्रदान की गयी।
प्रश्न 10.
भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना हाथी से क्यों की जाती है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों तथा निवेशकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना हाथी से की है, क्योंकि उनके अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था हाथी की ही भाँति बहुत विशाल तो है परन्तु इसकी चाल बहुत सुस्त है। यह अर्थव्यवस्था धीमी गति से विकास कर रही है।
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में औद्योगिक क्षेत्र की भूमिका को विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में औद्योगिक क्षेत्र की भूमिका (Role of Industrial Sector is Development of Indian Economy) :
इसे अग्रलिखित बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
- आय में तीव्र वृद्धि (Rapid Growth in Income) :
औद्योगीकरण के माध्यम से उद्योगों का विकास होने के साथ ही साथ लोगों की प्रति व्यक्ति आय (per capita income) में भी वृद्धि होती है जिससे राष्ट्रीय भी बढ़ती है तथा राष्ट्रीय आय में अद्योगों के योगदान में भी वृद्धि होती है। वर्ष 1950-51 में देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में औद्योगिक क्षेत्र का 16.6% योगदान था जो 2013-14 में बढ़कर 26.2% हो गया है। - रोजगार में योगदान (Role in Employment) :
उद्योगों का विकास होने से रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है। बढ़ती जनसंख्या की समस्या के कारण बेराजगारी की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है, जिसे कृषि अकेले दूर नहीं कर सकता, यहाँ उद्योगों की भूमिका अधिक बढ़ जाती है। - आधारभूत ढाँचे का विकास (Development of Infrastructure) :
आधारभूत ढाँचे के विकास के अभाव में औद्योगिक विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सरकार द्वारा आधारभूत ढाँचे का तेजी से विकास किया गया जिसका लाभ उद्योगों को मिला तथा उद्योगों का तीव्र गति से विकास होने लगा। - संसाधनों का उपयोग (Utilise of Resources) :
उद्योगों में संसाधनों को खपाने की अधिक क्षमता होने के कारण, अकुशल संसाधनों को प्रशिक्षण देकर उनकी कुशलता तथा उत्पादकता में वृद्धि करके अधिक लाभ कमाये जा सकते हैं। कृषि द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा कच्चे माल का उपयोग कर संसाधनों का पूर्ण उपयोग किये जाने के उपाय किये जाते हैं। - कृषि का विकास (Development of Agriculture) :
उद्योगों का विकास होने से कृषि के विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। उद्योगों के द्वारा उत्पादित किये जाने वाले कृषि औजार, कृषि यंत्रों, दवाइयों आदि का प्रयोग करने पर कृषि उत्पादन भी बढ़ता है। - संतुलित विकास (Balanced Growth) :
उद्योगों के विकास द्वारा विकास की कृषि पर होने वाली निर्भरता को थोड़ा कम किया जा सकता है। औद्योगीकरण को अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी (Backbone) माना जाता है, जो कि अर्थव्यवस्था में ऊर्जा प्रदान करती है। - आत्मनिर्भरता में वृद्धि (Growth is self-Dependance) :
उद्योगों के विकास से कृषि, यातायात, संचार आदि का विकास होता है। जिससे अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता में वृद्धि दखने को मिलती है। अपने ही देश में उपभोक्ता वस्तुओं (Consumer Goods) का उत्पादन करना व देश के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हें उपलब्ध कराये जाने में उद्योगों की भूमिका अहम् रहती है। - राष्ट्रीय सुरक्षा में वृद्धि (Increase in Nation’s Security) :
उद्योगों के विकसित होने से अब हम अपने ही देश में सुरक्षा अकरणों व अन्य मशीनरी का उत्पादन करने में सक्षम हो पाये हैं जिससे देश के स्वाभिमान में वृद्धि होने के साथ ही साथ हम आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्र हुए हैं।
निष्कर्ष (Conclusion) :
अत: यह कहा जा सकता है कि औद्योगिकीकरण होने के पश्चात् भारत विभिन्न वस्तुओं में उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ है। भारत एक विकासशील देश है जहाँ उद्योगों का विकास बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 2.
‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम पर एक विस्तृत नोट लिखिए।
उत्तर:
मेक इन इण्डिया (Make in India) :
भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितम्बर, 2014 को इस कार्यक्रम की घोषणा भारतीय औद्योगिक विकास की गति को तेज करने हेतु निवेश में वृद्धि करके भारत को “मैन्यूफैक्चरिंग हब’ (Manufacturing hub) बनाने के उद्देश्य से की। इस कार्यक्रम का प्रतीक चिन्ह सिंह को बनाया गया जो न केवल देश के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक चक्र का अंश है बल्कि यह साहस, बुद्धिमता तथा शक्ति को भी प्रदर्शित करता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य है-निवेश को प्रोत्साहित करना, नवोन्मेष को बढ़ावा देना, कौशल विकास में वृद्धि, बौद्विक संपदा का संरक्षण तथा बेहतरीन विनिर्माण अवसंरचना को निर्मित करना।
विवरण के साथ इसके वेब पोर्टल पर पच्चीस क्षेत्रों से संबंधित जानकारी दी गयी है, जैसे एफ. डी. आई. नीति, राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, औद्योगिक संपदा अधिकार, दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक गलियारा तथा अन्य राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारों के विषय में। निवेशकों को मार्गदर्शन प्रदान करने, उनकी मदद करने के लिए ‘इन्वेस्ट इण्डिया’ (Invest India) में एक निवेशक सुविधा केन्द्र की स्थापना की गयी है। इस योजना के तहत भारत में रूपांतरणकारी परिवर्तन (Transformational Change) पंजीकृत अथवा औपचारिक निर्माण में हो सकते हैं, जिससे उच्च उत्पादकता व उत्पादकता में तीव्र वृद्धि होनी सम्भव हो सकती है। उद्योगपतियों के मतानुसार ‘मेक इन इंडिया’ अभिदान से देश के विकास को गति प्रदान की जा सकती है।
अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कौशल को बढ़ाया जाना बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध प्रयोग भारत के अंतर्गत निर्माण तथा सेवा क्षेत्र ऐसे क्षेत्रों में आते हैं, जिन पर यदि अधिक ध्यान दिया जाये तो बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। वृद्धि के सिद्धांत के अनुसार रूपांतरणकारी क्षेत्रों का मूल्यांकन करने के लिए उनमें निहित विशेषताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पारम्परिक निर्माण सेवा के रूप में उन पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। इस प्रकार पाँच विशेषताओं की पहचान की गयी
- उच्च स्तर की उत्पादकता हो, जिससे कि आय में वृद्धि हो सके।
- बाहरी तथा घरेलू दोनों ही मोर्चों पर उत्पादकता में तीव्र वृद्धि दर प्राप्त हो।
- संसाधनों को आकर्षित करने की क्षमता निहित हो, जिससे कि पूरी अर्थव्यवस्था में लाभ का प्रसार हो सके।
- देश में उपलब्ध गैर-कौशल संसाधनों की क्षमता बढ़ सके।
- देश के संसाधनों में कौशल विहीन संसाधनों का समायोजन हो सके।
इस अभियान द्वारा गतिशील क्षेत्रों को कौशल सम्पन्न बनाने के प्रयास किये, जायेंगे, जिससे भारत उनका लाभ उठा सके। ‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम को सही ढंग से क्रियान्वित करने के साथ ही ‘स्किल इंडिया’ के लक्ष्य को भी उच्च प्राथमिकता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है। इस प्रकार से देश के औद्योगिक विकास को गति मिलेगी व देश का विकास होगा।
प्रश्न 3.
लघु एवं कुटीर उद्योगों का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्व को दर्शाइये।
उत्तर:
लघु व कुटीर उद्योगों का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्व (Importance of Small Scale and Cottage Industries in Indian Economy) यह निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :
- औद्योगिक उत्पादन में योगदान (Share in Industrial output) :
इनका योगदान औद्योगिक उत्पादन में निरंतर बढ़ रहा है। इनका योगदान 2006-07 में जी. डी. पी. का 35.13% था जो कि 2012-13 में बढ़कर 37.54% हो गया है। MSME का जी. डी. पी. में योगदान एक लगभग एक तिहाई है। - लघु क्षेत्र का विस्तार (Expansion of small-scale sector) :
सरकार द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् लघु क्षेत्र की वृद्धि की गयी। वर्ष 2006-07 में MSME की संख्या 361.8 लाख थी जो बढ़कर वर्ष 2012-13 में 467.54 ‘लाख तथा 2013-14 में 488.56 लाख हो गयी। - रोजगार में योगदान (Role in Employment) :
इन उद्योगों में श्रम की प्रधानता होने के कारण, यह रोजगार वृद्धि में सहायक होते हैं। वर्ष 2006-07 में MSME क्षेत्र में 805.23 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ जोकि 2013-14 में बढ़कर 1114.29 लाख हो गया। - लघु इकाइयों की कार्यकुशलता (Efficiency of Small Scale Industries) :
कुछ विद्वानों के मतानुसार, लघु इकाइयों की कार्यकुशलता बड़े उद्योगों की तुलना में अधिक होती है। लघु उद्योगों में यदि एक रुपये का निवेश किया जाये तो वह बड़े उद्योगों की तुलना में 3 गुना ज्यादा वर्धित मूल्य (value added) को सृजित करता है। - राष्ट्रीय आय का विकेन्द्रीकरण (Decentralization of National Income) :
लघु उद्योगों के द्वारा सम्पत्ति व आय को विकेन्द्रित करने में मदद मिलती है, जिससे राष्ट्रीय आय के वितरण को न्यायोचित बनाने में सहायता मिलती है। बहुत अधिक व्यक्तियों ने MSME क्षेत्र से राष्ट्रीय उत्पादन में अपना योगदान प्रदान किया है। - निर्यात में योगदान (Contribution in Exports):
लघु व कुटीर उद्योगों द्वारा प्रमुखतः चमड़े से निर्मित वस्तुएँ, ऊनी सामान, तैयार वस्त्र, खेल का सामान, इंजीनियरिंग वस्तुएँ आदि निर्यात की जाती हैं। कुल निर्यात में इनके योगदान में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। MSME द्वारा 1971-72 में कुल निर्यात 155 करोड़ रुपये का था जो 2012-13 में बढ़कर 6,77,318 करोड़ रुपये हो गया। - उद्योगों का क्षेत्रीय विकेन्द्रीकरण (Regional Dispersal of Industries) :
मुख्य रूप से बड़े उद्योगों का . केन्द्रीयकरण महाराष्ट्र, पश्चिम-बंगाल, गुजरात तथा तमिलनाडु में है, जबकि लघु उद्योग स्थानीय मांग के अनुसार सभी क्षेत्रों में विद्यमान हैं। आज पंजाब राज्य लघु उद्योगों की वजह से ही महाराष्ट्र से ज्यादा समृद्ध राज्य है। - औद्योगिक विवादों का कम होना (Less Industrial Disputes) :
विद्वानों के अनुसार लघु उद्योगों में बड़े उद्योगों की तुलना में कम औद्योगिक विवाद होते हैं। श्रमिक व मालिक के बीच सम्बंध मधुर होते हैं तथा हड़ताल, तालाबंदी जैसी समस्याएँ कम देखने को मिलती हैं। - स्थानीय संसाधनों का उपयोग (Utilization of Local Resources) :
MSME के द्वारा स्थानीय बचतों, कच्चा . माल तथा कारीगरों का बेहतर प्रयोग किया जाता है, जिससे उनकी आय का सृजन होता है। MSME क्षेत्र द्वारा शहरी क्षेत्रों में दस्तकारों, कारीगरों, शिल्पकारों आदि की क्षमता का प्रयोग किया जाता है। - कलात्मक वस्तुओं का संरक्षण (Protection of Creative Goods) :
यह उद्योग कलात्मक वस्तुओं को संरक्षण प्रदान करते हैं, जो कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग हैं। - आयातों पर कम निर्भरता (Less Dependence on Imports) :
MSME क्षेत्र के कारण आयातों पर निर्भरता कम होती है, परिणामस्वरूप हमारे विदेशी विनिमय कोष में बचत होती है। इन उद्योगों द्वारा देश की स्थानीय प्रौद्योगिकी का ही – प्रयोग किया जाता है तथा विदेशी तकनीकी का आयात बहुत कम मात्रा में किया जाता है।
प्रश्न 4.
नई औद्योगिक नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
नई औद्योगिक नीति, 1991(New Industrial Policy, 1991) :
वर्ष 1991 में नई औद्योगिक नीति आयी, जिसने भारतीय औद्योगिक ढाँचे में बहुत बड़ा बदलाव किया। इस नीति की कुछ सफलताएँ व असफलताएँ दृष्टिगत होती हैं, जो इस प्रकार से हैंनई औद्योगिक नीति की सफलताएँ (Success of New Industrial Policy)
- इस नीति को अपनाने के बाद औद्योगिक विकास तीव्र गति से बढ़ा। यह दर 1980-1990 में 7.8% थी जो 1995-96 में बढ़कर 13% हो गयी तथा 2006-07 में यह 11.5% रही।
- इस नीति को अपनाने के पश्चात् विदेशी पूँजी निवेश में वृद्धि देखी गयी। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) तथा संस्थागत विदेशी निवेश (Foreign Institutional Investment-FII) दोनों ही बढ़े। अंकटाड (UNCTAD) की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार यह 2009 में 34.6 बिलियन डॉलर था।
- विदेशी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला, जिससे भारत विश्व में प्रसिद्ध हुआ तथा विदेशी प्रौद्योगिकी का आयात करने से उद्योगों की उत्पादकता बढ़ी।
- भारत के विदेशी विनिमय भण्डार (Foreign Exchange Store) में वृद्धि हुई है। इसके पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के द्वारा भारत को ऋणदाता देशों की सूची में शामिल कर लिया गया।
- सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector) के उद्योगों का उत्पादन भी प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण मिलने के कारण अधिक बढ़ पाया।
- इन नीति के अपनाये जाने के पश्चात् प्रतिफल की दर में भी वृद्धि हुई।
नई औद्योगिक नीति की असफलताएँ (Failure of New Industrial Policy) :
- नई औद्योगिक नीति अपनाने के बाद भी बेरोजगारी की. दर व परिमाण दोनों में कमी नहीं देखने को मिली।
- इस नीति को अपनाने के पश्चात् कई उद्योग महँगी विदेशी तकनीकी को न अपना पाने के कारण बीमार हो गए या बंद हो
गए। - भारतीय उद्योगों के विदेशी उद्योगों से प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण कई उद्योग प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए।
- भारतीय उद्योगों की विदेशी तकनीकी पर निर्भरता बढ़ने लगी।
- विदेशी निवेश का फायदा हर क्षेत्र में देखने को नहीं मिला।
- विदेशी उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण बहुत से लघु व कुटीर उद्योग बंद हो गए।
- इस नीति के पश्चात् एकाधिकारात्मक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिला।
निष्कर्ष (Conclusion):
अत: हम यह कह सकते हैं कि नई औद्योगिक नीति को अपनाने के पश्चात् बहुत से सुधारात्मक व समष्टि स्थिरीकारक उपाय किये गए। भारतीय उद्योग अपनी क्षमता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित कर सके। परन्तु भारतीय कुटीर व लघु उद्योगों का पतन होना, विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ना, बेरोजगारी की समस्या आदि नई औद्योगिक नीति के भारतीय अर्थव्यवस्था पर दुष्परिणाम के रूप में सामने आये।
प्रश्न 5.
लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लघु व कुटीर उद्योगों के विकास में बाधाएँ (Obstacles in the Development of Small and Cottage Industries)-लघु व कुटीर उद्योगों के विकास की बाधाओं को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :
- कच्चे माल की समस्या (Problem of Raw Material) :
लघु उद्योग के बुनकरों को इस समस्या से ज्यादा जूझना . पड़ता है। उन्हें एक ओर तो व्यापारियों द्वारा ऊँची कीमतों पर कच्चा माल मिलता है तथा दूसरी ओर उनका बना कपड़ा व धागा कम कीमतों पर खरीदा जाता है। उन्हें कच्चा माल आयात करने की आवश्यकता पड़ती है, जिससे हमारे विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी आ जाती है। - पूँजी का अभाव (Lack of Capital) :
मशीनों व औजारों को खरीदने के लिए लघु व कुटीर उद्योगों के उद्यमियों को लम्बी अवधि को ऋण-पूँजी की जरूरत पड़ती है। जिसके कारण इन्हें साहूकारों, महाजनों आदि से ऋण लेना पड़ता है तथा इसके लिए ऊँची ब्याज दरों का भुगतान करना पड़ता है। - आधुनिक तकनीकी का अभाव (Lack of Modern Technology) :
ये उद्योग अभी तक पुरानी व परम्परागत तकनीकी का ही प्रयोग कर रहे हैं, जिसके कारण इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता (Quality) में कोई सुधार नहीं देखने को मिला है। - विपणन व प्रमाणीकरण की समस्याएँ (Problems of Marketing and Standardization) :
इन उद्योगों को अपने माल को बेचने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भारत में लघु उद्योगों के लिए 77 उत्पादों को आरक्षित किया गया था, जिनकी संख्या बढ़कर 836 हो गयी थी, जो अब वर्तमान में मात्र 20 रह गयी है। लघु उत्पादों के लिए बाजार ढूँढ़ने हेतु 1955 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम को स्थापित किया गया। सरकार द्वारा लघु उत्पादों की बिक्री के लिए मानकीकरण की प्रणाली को अपनाया गया हैं। इसके पश्चात् ही लघु उत्पादों का निर्यात बढ़ाया जा सकेगा। - रुग्णता की समस्या (Problem of Sickness) :
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें उद्योग अपने वित्तीय दायित्वों की पूर्ति समय से नहीं कर पाते हैं। Inter- Ministerial Committee for Accelerating Manufacturing in “Micro, Small and Medium Enterprises Sector की सितम्बर, 2013 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2013 के अंत तक देश में 2,49,903 रुग्ण लघु व अति-लघु इकाइयाँ थी, जिनमें बैंकों के 12,800 करोड़ रुपये फँसे हुए थे। इनमें से 2,32,525 मध्यम, लघु व अति-लघु इकाइयाँ ऐसी हैं, जिन्हें दोबारा से शुरू कर पाना मुश्किल है। - आधारिक संरचना की कमी (Lack of Infrastracture) :
अपर्याप्त बिजली आपूर्ति सड़कों के विकास का अभाव, आदि के कारण लघु उत्पाद तीव्र गति से बाजारों तक नहीं पहुँच पाते हैं। लघु व कुटीर उद्योगों की नई इकाइयों की स्थापना के लिए लम्बी व अनावश्यक कागजी कार्यवाही से गुजरना पड़ता है। जिसके कारण लघु क्षेत्र को प्रेरणा नहीं मिल पाती तथा उनके समय व स्थापना करने में अनावश्यक देरी हो जाती है। - आँकड़ों की अनुपलब्धता (Lack of Figures/Data) :
दो संस्थाएँ लघु उद्योग विकास निगम (Small Industries Development Organisation) तथा केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation) लघु व अति लघु उद्योगों से संबंधित आँकड़े उपलब्ध करवाती हैं। परन्तु लघु उद्योगों से संबंधित पर्याप्त आँकड़े इन दोनों संस्थाओं के पास उपलब्ध नहीं हैं। - भुगतान में विलम्ब (Late in Payment) :
इन उद्योगों को समय पर अपने माल का भुगतान नहीं मिल पाता है। इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं को मुख्यतः सरकारी विभागों व बड़ी इकाइयों द्वारा खरीदा जाता है जो भुगतान करने में विलम्ब करते हैं। - अन्य समस्याएँ (Other Problems) :
उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त प्रबन्धकीय व तकनीकी कौशल की कमी होना, बाजार स्थिति की अपूर्ण जानकारी होना, असंगठित व अव्यवस्थित कार्य का स्वरूप होना आदि समस्याओं से भी इन उद्योगों में जूझना पड़ता है। - आर्थिक सुधारों का प्रभाव (Effect of Economic Reforms) :
वर्ष 1991 में किये गए आर्थिक सुधारों के पश्चात् कुटीर व लघु उद्योग बुरी तरह से आहत हुए हैं। चीन के द्वारा अपने माल की डम्पिंग (Dumping) किये जाने से भारत के सम्पूर्ण MSME क्षेत्र की ओर खतरा बढ़ता नजर आ रहा है। भारत में इलैट्रोनिक्स व खिलौना उद्योग बंद होने की कगार पर है तथा इनकी 40% इकाइयों को तो बंद भी किया जा चुका है।
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होती है
(अ) कृषि क्षेत्र
(ब) औद्योगीकरण
(स) सेवा क्षेत्र
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) औद्योगीकरण
प्रश्न 2.
ऊर्जा की आपूर्ति में कोयले का योगदान कितने प्रतिशत है?
(अ) 50%
(ब) 52%
(स) 55%
(द) 60%
उत्तर:
(स) 55%
प्रश्न 3.
डम्पिंग (Dumping) किस देश द्वारा वर्तमान समय में की जा रही है?
(अ) चीन
(ब) भारत
(स) पाकिस्तान
(द) अमेरिका
उत्तर:
(अ) चीन
प्रश्न 4.
औद्योगिक नीति 1948 के अनुसार किस क्षेत्र को सरकारी नियंत्रण में नहीं रखा गया?
(अ) सुरक्षा
(ब) रेल यातायात
(स) कोयला
(द) आणविक शक्ति
उत्तर:
(स) कोयला
प्रश्न 5.
औद्योगिक नीति 1956 के अनुसार सरकारी क्षेत्र के अंतर्गत कितने उद्योगों को शामिल किया गया?
(अ) 16
(ब) 17
(स) 18
(द) 20
उत्तर:
(ब) 17
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्थिक सुधार या नई आर्थिक नीति को कब से लागू किया गया?
उत्तर:
आर्थिक संकट को दूर करने की दृष्टि से सरकार ने 1991 ई. में नवीन आर्थिक नीति की घोषणा की।
प्रश्न 2.
राजकोषीय घाटा किसे कहते हैं?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय का कुल प्राप्तियों (ऋणों को छोड़कर), पर आधिक्य है।
प्रश्न 3.
किन्हीं दो अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
- अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक)।
- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष।
प्रश्न 4.
औद्योगिक विकास की दो समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
- औद्योगिक क्षमता का अपूर्ण प्रयोग
- संरचनात्मक ढाँचे की कमियाँ।
प्रश्न 5.
औद्योगिक नीति 1956 में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के सहअस्तित्व में कितने उद्योगों को रखा गया?
उत्तर:
इसमें 12 उद्योगों को रखा गया जिनमेंरसायन, खाद, सड़क परिवहन आदि को शामिल किया गया।
प्रश्न 6.
लघु उद्योगों के लिए आरक्षण की नीति किस नीति के अंतर्गत लागू की गयी?
उत्तर:
औद्योगिक लाइसेंस नीति (1970) के अंतर्गत।
प्रश्न 7.
MRTP का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिबंधात्मक व्यापार विधियाँ (Monopolistic and Restrictive Trade Practices)!
प्रश्न 8.
MRTP Act को कब समाप्त करके प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम बना दिया गया?
उत्तर:
सन् 2002 में।
प्रश्न 9.
वर्तमान में किन क्षेत्रों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) प्रतिबंधित है?
उत्तर:
खुदरा व्यापार (एकल ब्रांड खुदरा व्यापार के अलावा), परमाणु ऊर्जा, लॉटरी का धंधा तथा जुआ व सट्टा।
प्रश्न 10.
स्वतंत्र लघु औद्योगिक नीति की घोषणा कब की गयी?
उत्तर:
6 अगस्त, 1991 में।
प्रश्न 11.
सर्वप्रथम लघु उद्योगों को निवेश सीमा के आधार पर कब परिभाषित किया गया?
उत्तर:
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1977 में।
प्रश्न 12.
MSME Development अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:
वर्ष 2006 में।
प्रश्न 13.
भारत की जनगणना, 2011 के अनुसार कितने प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है?
उत्तर:
68.8%
प्रश्न 14.
उद्योगों की कार्यकुशलता से संबंधित अध्ययन सर्वप्रथम किसने किया था?
उत्तर:
धर तथा लाइडाल ने।
प्रश्न 15.
MSME द्वारा मुख्यतः कौन-सी वस्तुएँ निर्यात की जाती हैं?
उत्तर:
चमड़े के निर्मित सामान, ऊनी वस्त्र, खेल-कूद का सामान, तैयार वस्त्र, इंजीनियरिंग वस्तुएँ आदि।
प्रश्न 16.
असंगठित क्षेत्र के कारोबारियों के लिए वित्त व पुनर्वित्त की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा कौन सी योजना शुरू की गयी?
उत्तर:
मुद्रा (MUDRA) योजना।
प्रश्न 17.
नई लघु औद्योगिक नीति, 1991 के तहत अति लघु क्षेत्र की सीमा बढ़ाकर कितनी कर दी गयी?
उत्तर:
यह सीमा 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गयी।
प्रश्न 18.
प्रौद्योगिकी के सुधार के लिए किस योजना की शुरुआत की गयी।
उत्तर:
साख सम्बद्ध पूँजी सहायता योजना (Credit Linked Capital Subsidey Scheme) की।
प्रश्न 19.
MSME उद्योगों का एकीकरण कर ईंधन की अवधारणा को किस एक्ट के तहतं वैधानिक जामा पहनाया गया?
उत्तर:
MSME Act, 2006 के अंतर्गत।
प्रश्न 20.
WTO का पूरा नाम बताइए।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO)
प्रश्न 21.
किस योजना के तहत गवर्नमेंट टू बिजनेस-जी2 बी पोर्टल स्थापित किया जा रहा है?
उत्तर:
ई. बिज परियोजना।
प्रश्न 22.
आर्थिक सुधार का अर्थ स्पष्ट करते हुए भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
आर्थिक सुधार उन्हें कहते हैं जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को पहले से अधिक कुशल, प्रतियोगी तथा अधिक विकसित करना है।
आवश्यकता के प्रमुख कारण :
- राजकोषीय घाटे में वृद्धि
- बढ़ता प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन
- खाड़ी संकट
- विदेशी विनिमय के भण्डारों में कमी
- कीमतों में वृद्धि
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की असफलता।
प्रश्न 23.
उदारीकरण का अर्थ बताते हुए उदारीकरण के प्रमुख उपाय बताइए। . .
उत्तर:
सरकार द्वारा लगाये गए प्रत्यक्ष अथवा भौतिक नियन्त्रणों से अर्थव्यवस्था को मुक्त करने को उदारीकरण कहते हैं।
उदारीकरण के उपाय :
- लाइसेन्स तथा पंजीकरण की समाप्ति,
- एकाधिकारी कानून से छूट,
- विस्तार तथा उत्पादन की स्वतन्त्रता,
- लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि,
- पूँजीगत पदार्थों के आयात की स्वतन्त्रता,
- टेक्नोलॉजी आयात की छूट,
- ब्याज दरों का स्वतन्त्र निर्धारण।
प्रश्न 24.
निजीकरण किसे कहते हैं? निजीकरण के प्रमुख उपाय बताइए।
उत्तर:
निजी क्षेत्र द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वामित्व प्राप्त करना तथा उसका प्रबन्ध करना निजीकरण कहलाता है।
निजीकरण के उपाय :
- सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन,
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विनिवेश,
- सार्वजनिक उद्यमों के शेयरों की बिक्री।
प्रश्न 25.
वैश्वीकरण से क्या तात्पर्य है? वैश्वीकरण के प्रमुख उपाय बताइए।
उत्तर:
अधिक खुलेपन से जुड़ी ऐसी प्रक्रिया जो विश्व अर्थव्यवस्था में बढ़ रही आत्मनिर्भरता तथा गहन एकीकरण की सूचक है उसे वैश्वीकरण कहते हैं।
वैश्वीकरण के उपाय:
- विदेशी पूँजी निवेश में वृद्धि,
- आंशिक परिवर्तनशीलता,
- दीर्घकालीन व्यापार नीति,
- टैरिफ दरों में कमी।
प्रश्न 26.
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाली प्रमुख नीतियों के नाम बताइए।
उत्तर:
वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करने वाली प्रमुख नीतियों के नाम निम्न हैं :
- आंशिक परिवर्तनीयता।
- प्रशुल्कों में कमी।
- विदेशी निवेश की सीमा में वृद्धि।
- दीर्घकालीन व्यापार नीति।
प्रश्न 27.
क्या आपके विचार से केवल घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रम का निजीकरण होना चाहिए? क्यों?
उत्तर:
घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रमों का प्राथमिकता के आधार पर निजीकरण करना चाहिए, लेकिन लाभ में चल रहे उपक्रमों का विनिवेश भी लाभप्रद है क्योंकि विनिवेश के पश्चात् संस्थानों को पर्याप्त पूँजी प्राप्त हो जाती है एवं अच्छी प्रबन्धकीय सेवाएँ भी प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 28.
‘सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के घाटे की भरपाई सरकारी बजट से होनी चाहिए।’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के घाटे की भरपाई सरकारी बजट से नहीं होनी चाहिए क्योंकि भारत अभी विकासशील देश है। यहाँ लोक कल्याण की योजनाओं को ही पूरा करने हेतु धन एकत्रित करना कठिन होता है। अतः इन कम्पनियों के घाटे की भरपाई में देश के राजस्व को व्यय करना उचित नहीं होगा।
प्रश्न 29.
भारत में व्यापारिक सेवाएँ प्रदान करने वाली पाँच कम्पनियों की सूची बनाइए।
उत्तर:
- टी. सी. एस
- रिलायन्स इन्श्योरेंस कं
- विप्रो
- इन्फोसिस
- बजाज-एलाएज।
प्रश्न 30.
भारत उदारीकरण और विश्व बाजारों के एकीकरण होने से लाभान्वित हो रहा है। क्या आप सहमत है।
उत्तर:
भारत में उदारीकरण लागू होने के बाद सेवा क्षेत्रक में उल्लेखनीय प्रगति हुई है लेकिन कृषि क्षेत्रक एवं उद्योग क्षेत्रक में ह्रास ही दर्ज हुआ है, गरीब एवं अमीरों के बीच की खाई और चौड़ी हुई है, अत; यह कहा जा सकता है कि उदारीकरण ने तात्कालिक कुछ लाभ दिये हैं लेकिन दीर्घावधि में यह, घातक हो सकता है।
प्रश्न 31.
क्या कॉल सेण्टरों में रोजगार स्थायी रूप धारण कर सकता है? नियमित आप कमाने के लिए इन कॉल सेण्टरों में काम करने वाले को किस प्रकार के कौशल सीखने होंगे?
उत्तर:
हाँ, कॉल सेण्टरों में रोजगार स्थायी रूप धारण कर सकता है, लेकिन इनमें रोजगार बनाये रखने के लिए निम्नलिखित कौशलों की आवश्यकता होगी :
- अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़।
- अपनी बात को सही प्रकार से रखने की योग्यता।
- वाक्पटुता।
- धैर्य से दूसरे की बात को सुनने की क्षमता।
- कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट के प्रयोग में पारंगत होना।
- विषय की पूर्ण जानकारी।
प्रश्न 32.
राष्ट्रीय सुरक्षा में औद्योगीकरण की क्या भूमिका है?
उत्तर:
उद्योगों के विकास से हम सुरक्षा उपकरणों तथा अन्य मशीनरी का उत्पादन अपने ही देश में करने में सक्षम हो पाये हैं। इनसे हमें इन वस्तुओं के आयात पर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च नहीं करनी पड़ती है। इस प्रकार हमारे देश के स्वाभिमान में भी वृद्धि हुई है तथा हम आर्थिक रूप से भी अधिक स्वतंत्र हो पाए हैं।
प्रश्न 33.
औद्योगिक विकास को प्रेरित करने के हाल ही में सरकार द्वारा लागू किन्हीं छ: उपायों को बताइए।
उत्तर:
- व्यावसाय करने में आसानी
- मेक इन इण्डिया कार्यक्रम
- ई. बिज परियोजना
- कौशल विकास
- पर्यावरण और वन संबंधी स्वीकृतियों को सुप्रभावी बनाना
- श्रम क्षेत्र सुधार।
प्रश्न 34.
मेक इन इण्डिया कार्यक्रम के उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
निवेश को प्रोत्साहित करना, नवोन्मेष को बढ़ावा देना, कौशल विकास का संवर्धन करना, बौद्धिक संपदा का संरक्षण करना तथा उमदा विनिर्माण अवसंरचना का निर्माण करना। पच्चीस क्षेत्रों से संबंधित जानकारी को वेब पोर्टल पर दे दिया गया है।
प्रश्न 35.
औद्योगिक नीति, 1948 में मिश्रित श्रेणी में किन आधारभूत उद्योगों को शामिल किया गया?
उत्तर:
ये उद्योग थे-कोयला, लोहा-इस्पात, हवाई जहाज निर्माण, पानी के जहाजों का निर्माण, टेलीफोनटेलीग्राफ व खनिज तेल। इन छ: आधारभूत उद्योगों को मिश्रित श्रेणी में रखा गया जिनकी स्थापना की जिम्मेदारी सरकार को दी गयी।
प्रश्न 36.
औद्योगिक नीति 1948 के तहत तीसरी श्रेणी में कौन से उद्योग रखे गए?
उत्तर:
तीसरी श्रेणी में 18 उद्योगों को रखा गया, जो सरकार के नियंत्रण व नियन्त्रण में उद्योगपतियों द्वारा संचालित किये गए। जैसे-भारी रासायनिक उद्योग, चीनी उद्योग, सूती तथा ऊनी वस्त्र उद्योग, कागज उद्योग, सीमेंट उद्योग आदि को सम्मिलित किया गया।
प्रश्न 37.
औद्योगिक लाइसेंस नीति (1970) के अंतर्गत क्या किया गया?
उत्तर:
औद्योगिक लाइसेंस नीति (1970) के अंतर्गत प्रमुख उद्योगों की एक सूची जारी की गयी थी, जिसके तहत लघु उद्योगों के लिए आरक्षण की नीति को जारी किया गया।
प्रश्न 38.
औद्योगिक नीति 1980 की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
औद्योगिक नीति 1980 के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना किये जाने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभावशाली क्रियान्वयन होने पर बल दिया जिससे क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जा सके।
प्रश्न 39.
औद्योगिक नीति 1991 के तहत कौन से प्रावधान किये गए?
उत्तर-
औद्योगिक नीति, 1991 के तहत निम्न प्रावधान किये गए.
- लाइसेंस से मुक्ति
- सार्वजनिक क्षेत्र में कमी
- एकाधिकारी व प्रतिबंधात्मक व्यापार विधियाँ (MRTP)
- विदेशी निवेश को बढ़ावा
- विदेशी प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन
- लघु उद्योगों हेतु 6 अगस्त, 1991 को एक स्वतन्त्र लघु औद्योगिक नीति की घोषणा की गयी।
प्रश्न 40.
MRTP एक्ट में संशोधन कब व क्यों किया गया?
उत्तर:
MRTP एक्ट में संशोधन 1969 में किया गया तथा 2002 में इसे समाप्त करके एकाधिकारात्मक प्रवृत्तियों व प्रतिबंधात्मक व्यवहार को नियंत्रित करने हेतु प्रतिस्पर्धा अधिनियम बना दिया गया। अब नई इकाइयों की स्थापना, विस्तार, विलयन, सम्मेलन आदि कार्यों के लिए सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रश्न 41.
औद्योगिक नीति 1991 का विदेशी विनिमय भण्डार पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औद्योगिक नीति 1991 के पश्चात् विदेशी विनिमय भण्डार में वृद्धि हुई है। यह 1991 में एक पखवाड़े से भी कम के आयात के लिए बचा था तथा इस नई आर्थिक नीति के कारण भारत का विदेशी विनिमय भण्डार इतना बढ़ गया कि IMF ने भारत को ऋणदाता वाले देशों में सम्मिलित कर दिया।
प्रश्न 42.
नई औद्योगिक नीति से भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
नई औद्योगिक नीति से भारतीय उद्योग बीमार हो गए या बंद हो गए। उनकी विदेशी तकनीकी पर निर्भरता बढ़ने लगी, जिससे उपनिवेशवाद के आसार दिखने लगे। विदेशी उद्योगों से प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया।
प्रश्न 43.
लघु व कुटीर उद्योगों पर नई औद्योगिक नीति का प्रभाव बताइये।
उत्तर:
लघु व कुटीर उद्योग नई औद्योगिक नीति के फलस्वरूप विदेशी उद्योगों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाये। अत: उनके लिए आरक्षित मदों को निजी क्षेत्र हेतु खोला गया। वर्तमान समय में इनके लिए आरक्षित मदों की संख्या बढ़ाकर 20 कर दी गयी है अर्थात् बहुत से लघु व कुटीर उद्योग बंद किये जा चुके हैं।
प्रश्न 44.
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1977 के तहत लघु उद्योगों में किन इकाइयों को शामिल किया गया?
उत्तर:
इस नीति के अनुसार लघु उद्योगों में वह इकाइयाँ शामिल की गयी जिनमें प्लांट तथा मशीनों में निवेश 10 लाख रुपये से कम का था। सहायक औद्योगिक इकाइयों (Ancillary Units) हेतु निवेश की अधिकतम सीमा 15 लाख रुपये तथा अति लघु इकाइयों (Tiny Units) हेतु निवेश की अधिकतम सीमा 1 लाख रुपये रखी गयी।
प्रश्न 45.
MSME का निर्यात में क्या योगदान है?
उत्तर:
MSME का निर्यात में योगदान निरंतर बढ़ता जा रहा है। वर्ष 1971-72 में MSME का कुल निर्यात 155 करोड़ रुपये था जो बढ़कर 2012-13 में 6,77,318 करोड़ रुपये हो गया। इस तरह से निर्यात में MSME का योगदान 1971-72 में 9.6% था जो 2012-13 में बढ़कर लगभग 41.4% हो गया।
प्रश्न 46.
संक्षेप में बताइए कि MSME विकास अधिनियम के तहत उद्योगों की कितनी निवेश सीमा निर्धारित की गयी है?
उत्तर:
MSME विकास अधिनियम के तहत विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र के लिए अलग-अलग सीमाएँ निर्धारित की गयीं। संक्षेप रूप में यह इस प्रकार से हैं :
इकाई | निवेश सीमा (रुपए में) | |
विनिर्माण क्षेत्र | सेवा क्षेत्र | |
माइक्रो | अधिकतम 25 लाख | अधिकतम 10 लाख |
लघु | 25 लाख से अधिक 5 करोड़ से कम | 10 लाख से अधिक, 2 करोड़ से कम |
मध्यम | 5 करोड़ से अधिक 10 करोड़ से कम | 2 करोड़ से अधिक, 5 करोड़ से कम |
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में आर्थिक सुधार क्यों आरम्भ किये गए?
उत्तर:
सन् 1991 ई. में भारत विदेशी ऋणों से चारों तरफ से घिरा हुआ था। सरकार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इन ऋणों का भुगतान कर सके। आयात हेतु सामान्य रूप से रखा हुआ विदेशी मुद्रा भण्डार पन्द्रह दिन हेतु अति आवश्यक आयात का भुगतान करने योग्य भी नहीं रहा था। जरूरी आवश्यकता की वस्तुओं में मूल्य वृद्धि ने संकट को और भी गम्भीर बना दिया था तब इन सभी समस्याओं से मुक्ति पाने हेतु आर्थिक सुधार आरम्भ करने के प्रयास किये गए।
प्रश्न 2.
‘लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर:
किसी सार्वजनिक उपक्रम के स्वामित्व या प्रबन्धन का सरकार द्वारा त्याग कर देना ही निजीकरण कहलाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा जनसामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को ही विनिवेश कहा जाता है। यद्यपि निजीकरण का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यक्षमता को बढ़ावा देना होता है परन्तु सदैव ऐसा नहीं होता। अत: लाभ में चल रहे ऐसे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए, जो राष्ट्र की सुरक्षा आदि से सम्बन्धित न हों। क्योंकि ऐसा करने से उनकी लाभप्रदाता में वृद्धि की जा सकती है।
प्रश्न 3.
सन् 1991 से भारत सरकार द्वारा देश को आर्थिक संकट से उबारने हेतु क्या हल ढूँढा गया?
उत्तर:
सन् 1991 से भारत द्वारा देश को आर्थिक संकट से उबारने तथा विकास को अधिक तीव्रता प्रदान करने हेतु निम्नलिखित तीन नीतियों के रूप में आर्थिक सुधारों को प्रारम्भ किया गया :
- उद्योग और व्यापार हेतु लाइसेसिंग के स्थान पर उदारीकरण की नीति को अपनाया गया।
- बड़े उद्योगपतियों के लिये कोटा के स्थान पर निजीकरण की नीति को अपनाया गया।
- आयात तथा निर्यात हेतु परमिट के स्थान पर वैश्वीकरण को प्रथामिकता दी गई।
प्रश्न 4.
निजीकरण के लाभ और हानियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लाभ :
- निजीकरण अर्थात् सामाजिक हित न होकर स्वहित प्रधान है। स्वहित प्रबल होने पर उद्यमी पूरी कर्मठता और लगन के साथ काम करते हैं। उद्यमी द्वारा अपनी कार्यकुशलता को कायम बनाये रखना उनके जीवन का ध्येय बन जाता है और प्रतिफल में उच्च उत्पादकता प्राप्त होती है।
- निजीकरण के अन्तर्गत उद्यमी द्वारा घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगी वातावरण में काम करने की सोची जाती है। यह स्पर्धा आधुनिकीकरण तथा उन्नतिशीलता को प्रोत्साहित करती है। बातें संवृद्धि तथा विकास के लिए आवश्यकता हैं।
- निजीकरण के अन्तर्गत सार्वजनिक उद्योगों की अपेक्षा निजी उद्यम अधिक लाभान्वित होते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इसका ज्वलन्त उदाहरण हैं।
- निजीकरण के अन्तर्गत उच्चकोटि के उपभोक्ता की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने हेतु उत्पादन किया जाता है जो जीवन को और अधिक बेहतर बनाने में सहायक होता है।
हानियाँ :
- निजीकरण में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को, निजी उद्यमियों को उनके स्वार्थ सिद्धि हेतु बेच दिया जाता है जिससे सामाजिक कल्याण को हानि होती है।
- निजीकरण में बाजारी शक्तियाँ कार्य करने हेतु पूर्ण स्वतन्त्र होती हैं। इस प्रक्रिया में उन्हीं व्यक्तियों हेतु वस्तु उत्पादित की जाती है जो इन्हें खरीदने हेतु समर्थ होते हैं। एक सामान्य-सी अवधारणा है कि मूल्य वृद्धि हेने पर समाज का कमजोर वर्ग उस वस्तु का उपभोग करने से वंचित रह जाता है क्योंकि वह इतनी महँगी वस्तु खरीदने में समर्थ नहीं है। सिरीसिला त्रासदी इसका प्रत्यक्ष और दु:खद परिणाम है।
प्रश्न 5.
वैश्वीकरण शब्द को परिभाषित करते हुए स्पष्ट कीजिए कि बाहरी स्रोत (बाह्य प्रापण) क्या है?
उत्तर:
वैश्वीकरण से हमारा अभिप्राय विश्व अर्थव्यवस्था में आए खुलेपन, बढ़ती हुई परस्पर आर्थिक निर्भरता तथा आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है उदारीकरण तथा निजीकरण की नीतियों के परिणामस्वरूप वैश्वीकरण विश्व अर्थव्यवस्थाओं को आर्थिक तथा सामाजिक रूप से एक-दूसरे के निकट लाने की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रारम्भ की गई एक प्रक्रिया है जिससे प्रत्येक देश विश्व विकास का भागीदार बन सके।
वैश्वीकरण के एक महत्त्वपूर्ण परिणाम के रूप में बाहरी स्रोत (बाह्य प्रापण) को जाना जाता है। इसके अन्तर्गत व्यवसाय सम्बन्धी सेवाएँ बाह्य स्रोतों से किराए पर ली जाती हैं कॉल सेण्टर, प्रतिलेखन, रोग विषयक परामर्श, अध्यापन/परीक्षा हेतु तैयार करना। भारत बाहरी स्रोत का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनता जा रहा है विशेषकर कॉल सेण्टर के रूप में। इसके दो निम्नांकित दो प्रमुख कारण हैं
- भारत में सस्ता श्रम, कुशल श्रमिक की सापेक्षिक निम्न मजदूरी तथा.
- भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का चमत्कारिक विकास।
प्रश्न 6.
औद्योगिक विकास से आय में तीव्र वृद्धि होती है। यह कैसे कहा जा सकता है?
उत्तर:
औद्योगिक विकास होने से प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है। कृषिगत उत्पादन की अपेक्षा उद्योगों की उत्पादकता अधिक होती है जिसका प्रभाव सभी क्षेत्रों पर पड़ता है। देश में औद्योगिक विकास के साथ ही साथ प्रति व्यक्ति आय पढ़ती है, जिससे राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है। देश की जी.डी.पी. में औद्योगिक क्षेत्र का अंश 1950-51 में 166 था जो 2013-14 में बढ़कर 26.2% हो गया।
प्रश्न 7.
रोजगार में औद्योगिक विकास का क्या योगदान है? .
उत्तर:
औद्योगिक क्षेत्र का रोजगार में बहुत अहम् योगदान होता है, जैसे-जैसे उद्योग विकसित होते हैं, रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ने लगती हैं, जिसे अकेले कृषि क्षेत्र द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता। इस प्रकार उद्योगों की भूमिका रोजगार प्रदान करने हेतु बहुत बढ़ जाती है जिससे लोगों को रोजगार मिलता है तथा उनके जीवन-स्तर में सुधार आने लगता है।
प्रश्न 8.
औद्योगिक विकास से आधरभूत ढाँचे का विकास तथा संसाधनों का उपयोग किस प्रकार होता है?
उत्तर:
भारत एक विकासशील देश है, यहाँ का आधारभूत ढाँचा मजबूत होना अति आवश्यक है। बिना आधार भूरा ढाँचे के औद्योगिक विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। स्वतंत्रता के दौरान हमारे देश का आधारभूत ढाँचा विकसित नहीं था, जिसे सरकार द्वारा तेजी से विकसित किया गया जिसका लाभ उद्योगों को मिला तथा उनका विकास होने लगा। तीव्र औद्योगिकीकरण हेतु आधारभूत ढाँचे में तीव्र विकास किया जाना अति आवश्यक था।
प्रश्न 9.
छठी पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में औद्योगिक रुग्णता के विषय में क्या कहा गया है?
उत्तर:
छठी पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में यह कहा गया है कि “औद्योगिक विकास का ढाँचा लागत के पदण्ड से निर्धारित नहीं किया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से संरक्षण के कारण उद्योगों की स्थापना के समय लागत’ पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है। तकनीक में सुधार और वस्तुओं की किस्म में सुधार की ओर भी उचित ध्यान नहीं दिया गया है। इन कारकों के परिणामस्वरूप कुछ उद्योग अस्वस्थ हो गए (विशेष रूप से उन परिस्थितियों में जब उन्हें अर्थव्यवस्था के बाकी उद्योगों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी)।”
प्रश्न 10.
संरचनात्मक ढाँचे की कमियों के कारण किस प्रकार औद्योगिक विकास अवरुद्ध होता है?
उत्तर:
आधुनिक तकनीकी ढाँचे का न होना, ऊर्जा व परिवहन की लागतों का बढ़ना, उद्योगों के उत्पादन की लागतों में भी वृद्धि कर देता है। देश में रेल-परिवहन पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हो पाया, अंतर्राज्यीय तेज पथ (Inter-State Express ways) व चार पथीय राजमार्ग (Four-lane Highways) का भी बहुत कम विकास हुआ है, जिससे औधोगिक केन्द्रों को जोड़ा जाता है। इस प्रकार संरचनात्मक ढाँचे के विकास का औद्योगिक विकास पर बहुत प्रभाव पड़ता है त इनका विकसित होना अति आवश्यक है।
प्रश्न 11.
औद्योगिक विकास की भविष्य से संबंधित समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
वर्ष 1991 में अपनाये गए आर्थिक सुधारों के पश्चात् हमारे भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह से यदि स्थितियाँ रही तो भविष्य में कई घरेलू औद्योगिक इकाइयाँ भविष्य में बंद हो जायेंगी। अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं का उद्योग पूरी तरह से संकटग्रस्त है क्योंकि अंतिम उपभोक्ता वस्तुएं मुख्यतः विदेशों द्वारा निर्यात की जाती है चीन से भारतीय इलैक्ट्रोनिक्स उद्योग को कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है जिससे ओद्योगिक जगत को भविष्य में खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
प्रश्न 12.
ई-बिज परियोजना के विषय में संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
ई-बिज परियोजना के तहत सरकार से व्यवसाय की ओर’ (Government to Business-G2B) पोर्टल स्थापित किये जा रहे हैं जिससे कि निवेशकों को सेवाएँ देने हेतु वन स्टॉप शॉप का कार्य किया जाएगा, जो उद्योग जगत की सभी आवश्यकताओं को शुरू से अंत तक पूरा करेगा। औद्योगिक लाइसेंस और औद्योगिक उद्यमी ज्ञापन के लिए आवेदन करने हेतु प्रक्रिया को ऑन-लाइन कर दिया गया है तथा यह सेवा अब उद्यमियों के ई-बिज वेबसाईट पर 24 x 7 आधार पर उपलब्ध करायी गयी है।
प्रश्न 13.
कौशल विकास योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कौशल और उद्यमशील कार्यकलापों को प्रोत्साहन देने हेतु कौशल विकास तथा उद्यमिता का नया मंत्रालय स्थापित करने के पश्चात् विभिनन केन्द्रीय मंत्रालयों/ विभागों में कौशल प्रशिक्षण से संबंधित सामान्य मापदण्ड तय करने का कार्य किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत उद्योग/नियोक्ता के नेतृत्व में 31 क्षेत्र कौशल परिषदें, जो कि प्रचालनरत हैं और उन्हें ‘मेक इन इण्डिया’ के 25 क्षेत्रों के साथ एकीकृत कर दिया गया है। देश के अंदर कौशल प्रशिक्षण तथा प्रमाणन के एक समान मानक तय करने हेतु राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीटी), स्कूल बोर्डों तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) आदि को समान रूप दिए जाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं।
प्रश्न 14.
औद्योगिक विकास हेतु पर्यावरण व वन संबंधी स्वीकृतियों को सप्रभावी बनाने के क्या प्रयास किये जा रहा है।
उत्तर:
पर्यावरण, तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) तथा वन संबंधी स्वीकृतियों के आवेदनों को ऑनलाइन जमा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। संघवाद को मजबूती प्रदान करके निर्णय लेने की प्रक्रिया का विकेन्द्रीकरण किया गया है। औद्योगिक तथा शैक्षिक विकास सुनिश्चित करने हेतु ऐसे औद्योगिक शेडों के निर्माण की परियोजना में पर्यावरण संबंधी स्वीकृति लेने की शर्त को हटा दिया गया है, जहाँ संयंत्र व मशीनरी, शैक्षिक संस्थाएँ तथा छात्रावास बने हों।
प्रश्न 15.
औद्योगिक विकास हेतु श्रम क्षेत्र सुधार किस प्रकार किया जा रहा है?
उत्तर:
सरकार द्वारा एक श्रम सुविधा पोर्टल की शुरुआत की गयी है जिससे यूनिटों का ऑनलाईन पंजीकरण, यूनिटों द्वारा स्वतः ही प्रमाणित, सरलीकृत एकल ऑनलाईन रिटर्न को जमा करना, जोखिम पर आधारित मापदण्डों के अनुरूप ही कम्प्यूटरीकृत प्रणाली के माध्यम से पारदर्शी श्रम निरीक्षण योजना की शुरुआत करना व 32 घंटों के अंदर निरीक्षण रिपोर्टों को अपलोड किया जा सके तथा शिकायतों को तुरंत समाधान किया जा सके। कर्मचारियों के लिए सार्वभौम खाता नम्बर शुरू किया गया है, जिससे उनके भविष्य निधि खाते को निर्बाध, सुवाह्य तथा हर जगह पहुँचने वाला बनाया जा सके। प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 को भी अधिक लचीला बनाने हेतु उसमें संशोधन किया गया है।
प्रश्न 16.
नई औद्योगिक नीति से विदेशी निवेश को किस प्रकार प्रोत्साहन मिला?
उत्तर:
नई औद्योगिक नीति से विदेशी निवेश बढ़ गया। इस नीति के तहत निवेश के आधार पर उद्योगों को विभाजित किया गया। जिनमें उच्च-निवेश वाले उद्योगों की सूची बनायी गयी तथा उनमें बिना सरकारी अनुमति के 51% तक के विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान की गयी। इसके अलावा सेवा क्षेत्र के उद्योगों हेतु विदेशी निवेश की सीमा 51% से बढ़ाकर 74% तथा बाद में 100% कर दी गयी। वर्तमान समय में कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेश पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है, जिनमें खुदरा व्यापार, परमाणु ऊर्जा, लॉटरी तथा जुआ व सट्टा आते हैं।
प्रश्न 17.
नई औद्योगिक नीति की चार सफलताएँ बताइए।
उत्तर:
- इस नीति को अपनाने से औद्योगिक विकास की दर बढ़ी है। यह (1980-90) में 7.8% थी जो 2006-07 में 11.5% हो गयी।
- इस नीति के बाद FDI तथा FII दोनों में ही वृद्धि देखी गयी है। 2010 की अंकटाड (UNCTAD) का निवेश रिपोर्ट के अनुसार 2009 में विदेशी पूँजी निवेश 34.6 बिलियन डॉलर हो गया।
- विदेशी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
- विदेशी विनिमय भण्डार में वृद्धि हुई है जिससे IMF ने भारत को ऋणदाता वाले देशों में सम्मिलित कर दिया।
प्रश्न 18.
नई औद्योगिक नीति की.चार असफलताएँ बताइए।
उत्तर:
- बेरोजगारी की समस्या को हल नहीं किया जा सका है। बेरोजगारी की दर तथा परिमाण दोनों में वृद्धि हुई है।
- इस नीति से कई उद्योग बीमार हो गए अथवा बंद ही करने पड़े। वे महँगी विदेशी तकनीकी को नहीं अपना सकें।
- भारतीय उद्योगों की विदेशी तकनीकी पर निर्भरता बढ़ने लगी, जिसे विद्वानों द्वारा आर्थिक उपनिवेशवाद का नाम दिया गया।
- लघु व कुटीर उद्योगों को बहुत नुकसान हुआ अर्थात् बहुत से लघु व कुटीर उद्योग बंद कर दिए गए।
प्रश्न 19.
लघु व कुटीर उद्योगों का औद्योगिक उत्पादन में योगदान बताइए।
उत्तर:
लघु व कुटीर उद्योगों का योगदान औद्योगिक उत्पादन में निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इनके द्वारा परम्परागत वस्तुओं से लेकर उच्च प्रौद्योगिकी तथा गुणवत्ता की लगभग 6000 वस्तुओं का उत्पादन होता है।
वर्ष | उत्पादन का कुल मूल्य (करोड़ रुपए में) | GDP में योगदान (प्रतिशत में) |
2006-07 | 11,98,818 | 35.13 |
2011-12 | 17,88,584 | 37.97 |
2012-13 | 18,09,976 | 37.54 |
स्रोत : Government of India, Ministry of MSME, Annual Report 2013-14, Table 2.2, P. 16.
तालिका में यह देखा जा सकता है कि MSME का 2006-07 में कुल उत्पादन मूल्य 11,98,818 करोड़ रुपये था तथा इनका जीडीपी में 35.13% का योगदान था। कुल उत्पादन मूल्य 2012-13 में बढ़कर 18,09,976 करोड़ रुपये हो गया जो जीडीपी का 37.54% हो गया MSME द्वारा आज भी जीडीपी में लगभग \(\frac{1}{3}\) योगदान प्रदान किया जाता है।
प्रश्न 20.
लघु व कुटीर उद्योगों का रोजगार वृद्धि में योगदान बताइए।
उत्तर:
लघु व कुटीर इकाइयों के श्रम प्रधान होने के कारण, इनके द्वारा अधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता है। तालिका से यह स्ष्ट है कि 2006-07 में MSME क्षेत्र द्वारा 805.23 लाख लोगों को रोजगार दिया गया तथा 2013-14 में यह बढ़कर 1114.29 लाख हो गया। शहरी क्षेत्रों में भी लघु इकाइयाँ विकसित करके रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। यह अनुमान लगाया गया है कि MSME क्षेत्र के अंतर्गत श्रम की गहनता बड़े उद्योगों की तुलना में चार गुना पायी जाती है।
वर्ष | रोजगार (लाख में) |
2006-07 | 805.23 |
2012-13 | 1061.40 |
2013-14 | 1114.29 |
स्रोत : Government of India, Ministry of MSME, Annual Report 2013-14, Table 2.1, P. 15.
प्रश्न 21.
रामसिंह के. अशर द्वारा लघु इकाइयों की कार्यकुशलता के सम्बंध में क्या अध्ययन किया गया?
उत्तर:
रामसिंह के अशर ने अपने अध्ययन द्वारा यह सिद्ध किया कि स्थिर पूँजी में एक रुपये का निवेश करने पर लघु उद्योग द्वारा सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया जाता है। स्थिर परिसम्पत्ति में एक रुपये का निवेश करने से बड़े क्षेत्र की अपेक्षा ‘7 गुना अधिक उत्पादन होता है तथा लघु उद्योगों में एक रुपये का निवेश बड़े उद्योगों की तुलना में तीन गुना’ ज्यादा वर्धित मूल्य (Value Added) का निर्माण करता है।
प्रश्न 22.
लघु उद्योग क्षेत्र की तीसरी गणना के विषय में बताइए।
उत्तर:
लघु उद्योग क्षेत्र की तीसरी गणना के अनुसार 2001-02 में जहाँ बड़े उद्योगों में एक लाख रुपये का निवेश करके 0.20 रोजगार का सृजन किया जाता है, वहीं लघु उद्योगों में एक लाख रुपये का निवेश करके 1.39 रोजगार का सृजन किया जाता है। अत: जहाँ बड़े उद्योगों में एक व्यक्ति को रोजगार देने के लिए 5 लाख रुपये का निवेश करना पड़ता है वहीं लघु उद्योग में 5 लाख रुपये का निवेश करके 7 लोगों को रोजगार प्रदान कराया जाता है। लघु क्षेत्र में बड़े उद्योगों से बहुत अधिक रोजगार का सृजन होता है, जबकि उनका निवेश उत्पादन अनुपात बड़े उद्योगों की तुलना में कम होता है।
प्रश्न 23.
लघु व कुटीर उद्योगों की चार समस्याएँ बताइए। .
उत्तर:
- कच्चे माल की समस्या-इन उद्योगों को ऊँचे दामों पर कच्चा माल मिलता है तथा इनके बने उत्पादों को कम कीमत पर खरीदा जाता है।
- पूँजी का अभाव-इन उद्योगों को वित्त की समस्या बहुत अधिक परेशान करती है। जिसके लिए उद्यमी लघु दस्तकारों, महाजनों से ऋण लेते हैं तथा ऊँची ब्याज देने के कारण कर्ज में ही फंसे रह जाते हैं।
- आधुनिक तकनीकी का अभाव-इन उद्योगों में आज भी पुरानी तकनीकी का इस्तेमाल किये जाने के कारण उत्पादों की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं देखने को मिला है।
- रुग्णता की समस्या-यह समस्या बहुत अधिक बढ़ती जा रही है। जिसमें उद्योग अपने वित्तीय दायित्वों को समय से पूर्ण नहीं कर पाते तथा इस कारण उन इकाइयों को बंद करना पड़ता है।
प्रश्न 24.
लघु उद्योगों हेतु नई नीति, 1991 के चार प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- इस नीति के अंतर्गत अति लघु क्षेत्र की सीमा को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया है तथा इसके अतिरिक्त उद्योगों से. स्थानिक प्रतिबंधों को हटा लिया गया है।
- अति लघु इकाइयों हेतु एक पैकेज की घोषणा की गयी है जिसके अंतर्गत इन इकाइयों को प्राथमिकता के आधार पर सहायता देने की बात कही गयी है।
- इस नीति के तहत अन्य औद्योगिक इकाइयों को भी लघु इकाइयों की इक्विटी में 24% तक का निवेश करने की अनुमति दी गयी है।
- इस नीति में ‘सस्ती साख’ की जगह ‘साख की पर्याप्तता’ पर अधिक बल दिया गया है।
प्रश्न 25.
लघु उद्योगों के विकास हेतु उठाये गए चार कदम बताइए।
उत्तर:
- लघु उद्योगों हेतु निवेश सीमा को 2006 में 1 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये कर दिया गया जिससे ये अपनी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति में वृद्धि कर सकें।
- प्रौद्योगिकी में सुधार करने हेतु साख सम्बद्ध पूँजी सहायता योजना (Credit Linked Capital Subsidy Scheme) शुरू किया गया।
- लघु क्षेत्र हेतु उत्पादन शुल्क में छूट की सीमा को 3 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4 करोड़ रुपये कर दिया गया।
- लघु क्षेत्र हेतु साख गारंटी फंड योजना को शुरु किया गया है।
प्रश्न 26.
लघु व कुटीर उद्योगों पर आर्थिक सुधारों का क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
लघु व कुटीर उद्योग आर्थिक सुधारों के पश्चात् बुरी तरह से आहत हुए हैं। इन उद्योगों से बेहतर, सस्ते, आयातित उत्पादों से प्रतिस्पर्धा का खतरा बना रहता है, जिसके कारण कई उद्योगों को बंद करना पड़ा। चीन के द्वारा अपने माल की डम्पिंग (Dumping) की जा रही है, जिससे भारतीय MSME क्षेत्र पर खतरे का संकट मंडरा रहा है। असंगठित क्षेत्र के छोटे कारोबारियों हेतु वित्त तथा पुनर्वित की सुविधा प्रदान करने हेतु सरकार ने ‘मुद्रा’ (MUDRA) योजना को शुरू किया।
प्रश्न 27.
लघु उद्योग विकास रिपोर्ट में आँकड़ों की अनुपलब्धता के विषय में क्या कहा गया है?
उत्तर:
लघु उद्योग विकास रिपोर्ट में यह कहा गया है कि, “लघु उद्योगों की तेज प्रगति और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि इन उत्पादन इकाइयों के लिए नियमित रूप से आँकड़े एकत्रित करने व उनका संशोधन करने की स्थायी व्यवस्था हो जाए। प्रति वर्ष उत्पादन की विभिन्न दिशाओं में कई लघु उद्यम स्थापित होते हैं और प्रतिवर्ष कई मौजूद उद्योग या तो अपना विस्तार करते हैं या फिर विविधीकरण करते हैं। उचित नीति-निर्धारण तभी संभव है जब इनके लिए नवीनतम जानकारी प्राप्त हो सके।”
प्रश्न 28.
नई लघु उद्योग नीति में सीमित साझेदारी (Limited Partnership) के विषय में क्या कहा गया है?
उत्तर:
कई लघु उद्योग नीति के अंतर्गत व्यवसाय संगठन की नई कानूनी व्यवस्था की शुरुआत की गयी, जिसे सीमित साझेदारी (Limited Partnership) का नाम दिया गया। इसके अंतर्गत कम से कम एक साझेदार का दायित्व असीमित था तथा अन्य साझेदारों का दायित्व उनकी निवेश की गयी पूँजी तक सीमित रखा गया था। अब इस नीति द्वारा लघु उद्योगपतियों के सगे-सम्बन्धी तथा रिश्तेदार अपनी पूँजी देने में नहीं घबरायेंगे क्योंकि उनके द्वारा निवेश की गयी पूँजी सीमित रहेगी।
प्रश्न 29.
‘मेक इन इण्डिया कार्यक्रम के तहत किन पाँच विशेषताओं की पहचान की गयी है?
उत्तर:
मेक इन इण्डिया कार्यक्रम के तहत निम्नलिखित पाँच विशेषताएँ पहचानी गयी :
- उच्च स्तरीय उत्पादकता हो जिससे आय में वृद्धि हो।
- बाहरी तथा घरेलू दोनों ही मोर्चों पर उत्पादकता में अधिक वृद्धि दर।
- संसाधनों को आकर्षित करने की क्षमता हो, जिससे शेष अर्थव्यवस्था में लाभ का प्रसार हो पाए।
- देश के विद्यमान गैर-कौशल संसाधनों की क्षमता को बढ़ाना।
- देश के संसाधनों के साथ कौशल विहीन संसाधनों का समायोजन हो पाये।
प्रश्न 30.
‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार कौन से माध्यम दिए गए हैं?
उत्तर:
इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु यह निम्नलिखित माध्यम दिए गए हैं, जिन्हें विवाद के आधार पर आरोही क्रम में तथा प्रभाव के आधार पर अवरोही क्रम में तीन श्रेणियों में बाँटा गया है :
(I) भारत द्वारा घरेलू तथा विदेशी निजी निवेश में वृद्धि करने हेतु कदम उठाने की आवश्यकता है :
- नियमों का सरलीकरण।
- करों की मात्रा व दर में कमी करना।
- आधारभूत ढाँचे का निर्माण।
- श्रम कानूनों में सुधार किया जाना।
ऐसा करने पर व्यापारिक लागत कम होगी तथा लाभ बढ़ने लगेगा।
(II) यह माध्यम ‘औद्योगिक नीति’ भी कहे गए। इनमें उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किये गए :
- पूँजी की लागत में कमी करना।
- रियासतों को बढ़ाना व उनकी उपलब्धता को बढ़ाना।
- सभी विनिर्माण गतिविधियों में विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone-STZ) निर्मित करना।
(III) माध्यमों की अंतिम श्रेणी ‘संरक्षणवादी’ (Protected) कही गयी।
- घरेलू उत्पादकों को निर्यात सम्बंधी लाभ प्रदान करना।
- सीमा शुल्क को बढ़ाकर घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षित करना।
- विदेशी कम्पनियों को स्थानीय माल की आपूर्ति करने हेतु बाध्य किया जाना।
RBSE Class 11 Economics Chapter 18 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
L.P.G. नीतियों के मूल्यांकन से क्या तात्पर्य है? इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
L.P.G. नीतियों के मूल्यांकन से तात्पर्य नई आर्थिक नीति अथवा 1991 में प्रारम्भ किये गए आर्थिक सुधारों के मूल्यांकन से है।
सकारात्मक प्रभाव-ये निम्नलिखित हैं :
- औद्योगिक उत्पादन के लिये स्फूर्तिदायक :
नीतियों के प्रभाव से औद्योगिक उत्पादन वर्तमान में 10% है. जो 1991 से पहले के स्तर से कहीं अधिक है। इन नीतियों के प्रारम्भ होने के पश्चात् ही भारत के IT (आई.टी.) उद्योग ने विश्व में तहलका मचा रखा है। - मुद्रास्फीति पर रोक :
नीतियों से प्रभावित होने के पश्चात् मुद्रास्फीति की दर शनैः-शनैः कम हुई है। सन् 2007-08 – तक यह दर 4.5% के मध्य तक थी जो चिन्ताजनक नहीं मानी जा सकती। यद्यपि बहुत कम भी नहीं ऑकी जा सकती। - विदेशी विनिमय कोषों में पर्याप्त वृद्धि :
नीतियों का ही परिणाम है कि वर्तमान में देश के विदेशी विनिमय कोष/भण्डार एक सुखद अवस्था में है। विदेशी विनिमय कोष की सुखद अवस्था अर्थव्यवस्था की.एक अच्छी स्थिति का संकेत देती है जिससे विश्व के निवेशकर्ताओं को भारतीय बाजारों में निवेश करने की भावना को प्रोत्साहन मिलता है। - भारत की पहचान एक उभरती शक्ति के रूप में :
भारत की पहचान एक उभरती शक्ति के रूप में विश्व में आँकी गई है जिसके फलस्वरूप भारत को आर्थिक स्तर पर ऊँचा स्थान मिलने के साथ-साथ वैश्वीय निवेशकर्ताओं पर यह मनोवैज्ञानिक असर भी हुआ है कि निवेश हेतु वे भारत को प्राथमिकता दें। - एक कंपायमान अर्थव्यवस्था :
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण नीतियों के सहयोग से देश की समस्त आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है। फलस्वरूप GDP की संवृद्धि दर में प्रभावपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है। वर्तमान में GDP की संवृद्धि दर 8% है, जो भविष्य में नीतियों की सफलता के फलस्वरूप 9% तक प्रतिवर्ष पहुँचने का अनुमान है। - राजकोषीय घाटे पर रोक :
निरन्तर बढ़ता.राजकोषीय घाटा एक चिन्ता का विषय बना हुआ था। सन् 1991 से पूर्व यह घाटा 8.5% था। नीतियों के प्रभाव से सरकारी राजस्व में शनैः-शनैः वृद्धि, होती गयी जिससे राजकोषीय घाटा 5% के आस-पास आया यद्यपि। - उपभोक्ता की प्रभुत्ता :
नीतियों की सफलता के फलस्वरूप विश्व बाजार में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपभोक्ता को सरलता से उपलब्ध हैं अर्थात् उपभोक्ता के दैनिक दिनचर्या स्तर अथवा गृहस्थों के व्यय स्तर में आशातीत वृद्धि हुई है। निःसन्देह लोगों का कल्याणकारी स्तर सुधरा है। - निजी विदेशी निवेश का प्रवाह :
नीतियों के प्रभाव के फलस्वरूप निजी विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला है जिससे भारतीय योजना निर्माता तथा राजनीतिज्ञों को सन्तुष्टि मिली है। निजी विदेशी निवेश से देश में न केवल पूँजी प्रवाहित होती है बल्कि प्रौद्योगिकी भी प्रवाहित होती है। - एकाधिकारी बाज़ार से प्रतियोगी बाजार की ओर अग्रसर :
नीतियों का प्रभाव है कि भारतीय बाजार अपनी एकाधिकारी विशेषता का परित्याग कर अधिकाधिक प्रतियोगी बनते जा रहे हैं।
नीतियों के नकारात्मक प्रभाव-निम्नलिखित हैं।
- विकास प्रक्रिया का शहरी केन्द्रीकरण :
नीतियों के फलस्वरूप विकास प्रक्रिया का शहरी केन्द्रीयकरण बढ़ रहा है। विकास विषय पर ग्रामीण क्षेत्रों की अवहेलना की जा रही है। इससे देश में शहरी और ग्रामीण अन्तर में दिनों-दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। - उपभोक्तावाद का फैलाव :
वैश्वीय वस्तुओं के विभिन्न ब्राण्ड होने से उपभोक्ता किसी एक ब्राण्ड पर अपना चयन स्थिर नहीं कर पाता। वह पश्चिमी सभ्यता के बहकावे में आकर अपनी आय से भी अधिक व्यय करने को तत्पर हो जाता है। - सांस्कृतिक हास :
वर्तमान समय में आर्थिक सम्पन्नता व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं का एक अभिन्न अंग बन चुकी है जिसके प्रभाव में व्यक्ति अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी सभी को भूलता जा रहा है। किसी समय में राष्ट्र, समाज और परिवार के प्रति वफादारी होना भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग समझी जाती थी किन्तु आज भौतिकवाद और दिखावा होने से ये सब बातें फीकी नजर आती हैं। - कृषि की अवहेलना :
नीतियों के विकास से औद्योगिक स्तर को बढ़ावा मिला है। कृषि स्तर की अवहेलना की गई है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि की अवहेलना का मतलब है। निर्धनता की अवहेलना अथवा जीविकोपार्जन को संकट में डालना। - एकतरफा संवृद्धि प्रक्रिया :
यद्यपि नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि प्रक्रिया को तेज किया है किन्तु सिर्फ एकतरफा, सम्मिलित अथवा सामूहिक रूप से नहीं। संवृद्धि प्रक्रिया केवल सेवा क्षेत्र पर प्रभावी है। औद्योगिक संवृद्धि मंद है कृषि संवृद्धि ऋणात्मक है।
प्रश्न 2.
उदारीकरण से क्या आशय है? इसके अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु क्या-क्या कदम उठाये गए हैं?
उत्तर:
उदारीकरण :
आर्थिक गतिविधियों पर लगाये गए प्रतिबन्धों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को ‘मुक्त’ करने की नीति को उदारीकरण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु निम्नलिखित कदम उठाये गए हैं :
- औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमीकरण:
उदारीकरण के अन्तर्गत लागू की गई सुधार नीतियों द्वारा उद्योगों पर लगे अनेक प्रतिबन्धों को समाप्त कर दिया गया। लाइसेन्स एवं कोटा प्रणाली को समाप्त कर दिया। लघु उद्योगों के लिए आरक्षित उद्योगों को कम किया गया। - वित्तीय क्षेत्रक सुधार :
भारत में वित्तीय क्षेत्रक का नियन्त्रण रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है। लेकिन उदारीकरण की नई – नीतियों के कारण रिजर्व बैंक को वित्तीय क्षेत्रक को सहयोगी की भूमिका में लाया गया तथा विदेशी निवेश संस्थाओं के लिए विदेश क्षेत्रक को खोल दिया गया। - कर व्यवस्था में सुधार :
राजकोषीय नीतियों के अन्तर्गत प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करों को कम करके तर्कसंगत बनाया गया जिससे उद्योगों एवं नागरिकों को कम कर चुकाने पड़े हैं तथा दूसरी ओर कुल कर संग्रह में भी वृद्धि हुई है। - विदेशी विनिमय सुधार :
उदारीकरण को अपनाने के बाद देश में रुपये का अवमूल्यन किया गया जिससे विदेशी मुद्रा का प्रवाह भारत की ओर बढ़ा तथा लगातार विदेशी मुद्रा के भण्डार में वृद्धि देखी गयी है। - व्यापार और निवेश नीति सुधार :
उदारीकरण के अन्तर्गत आयात और निर्यात पर मात्रात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त किया गया। प्रशुल्क दरों में कटौती तथा आयात हेतु लाइसेन्स व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि उदारीकरण से भारतीय उद्योगों, के विश्व स्तर की तकनीकी को अपनाने तथा उच्च प्रबन्धकीय योग्यता के आधार पर वैश्विक स्तर पर विकास के रास्ते खुले हैं।
प्रश्न 3.
भारतीय अर्थव्यवस्था में नवीन आर्थिक सुधारों के प्रभावों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में नवीन आर्थिक सुधारों के प्रभावों को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है :
- संवृद्धि और रोजगार :
सकल घरेलू उत्पाद में लगातार वृद्धि दर्ज की गयी है लेकिन इसके सापेक्ष रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हो पायी है जी इन सुधारों की असफलता की संकेतक है। - कृषि में सुधार :
कृषि में ऋणात्मक प्रगति देखी गई है जो सुधार कार्यक्रमों की असफलता का ही परिणाम है। - उद्योगों में सुधार :
आयात में वृद्धि से भारतीय उद्योगों की विकास दर थम गई है। आज औद्योगिक क्षेत्र को भी कोई लाभ नहीं हो पाया है। - विनिवेश :
सरकार सार्वजनिक उद्यमों का विनिवेश करके बजट घाटे को पूरा करने में लगी हुई है इससे कोई खास ‘लाभ सामान्य जनता को नहीं मिल पा रहा है। विनिवेश का लाभ केवल बड़े उद्योगपति ही उठा रहे हैं। - राजकोषीय नीतियों में सुधार :
राजकोषीय नीतियों में जो सुधार किये गए उनका अधिक लाभ सरकार को नहीं मिला है। जिस प्रकार करों की दर को कम करके अधिक राजस्व प्राप्त करने की कोशिश की गयी वह अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी है। - सकल घरेलू उत्पाद में सुधार :
आर्थिक सुधारों का GDP पर अच्छा प्रभाव देखा गया है। GDP की दर जो 1980-91 में 56% थी 1992-2001 की अवधि में 6.4% हो गयी। इसे देखते हुए दसवीं पंचवर्षीय योजना में इसका लक्ष्य 8% रखा गया है। - सेवा क्षेत्रक में सुधार :
सेवा क्षेत्रक में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत विश्वस्तरीय सेवा प्रदाताओं के केन्द्र के रूप में विकसित हो रहा है। भारत की कुशल श्रम शक्ति एवं न्यून मजदूरी ऐसे दो प्रमुख कारक हैं जो इस क्षेत्र में विकास की सम्भावनाओं को प्रबल बनाये हुए हैं।
अन्त में निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने से देश के कुछ क्षेत्रकों में विकास हुआ है लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है।
प्रश्न 4.
लघु उद्योगों के लिए नई नीति, 1991 का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लघु उद्योगों के लिए.नई नीति, 1991 (New Small Enterprise Policy, 1991)-सरकार द्वारा सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों के विकास हेतु अगस्त 1991 में नई नीति की घोषणा की गयी। इसमें नीति के तहत निम्नलिखित प्रावधान किये गए.जो इस प्रकार से हैं :
- अति लघु क्षेत्र की सीमा 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गयी (1997 में इस सीमा को बढ़ाकर 25 लाख रुपये किया गया था)। इसके अलावा अन्य उद्योगों से स्थानिक प्रतिबंधों को हटा लिया गया, पहले उन इकाइयों की स्थापना उन्हीं स्थानों पर हो सकती थी जहाँ की जनसंख्या 50,000 से कम हो। इस नीति के अंतर्गत सेवा क्षेत्र से – जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियों को भी इन उद्योगों में सम्मिलित कर लिया गया।
- नई नीति में अति लघु उद्योगों हेतु एक पैकेज की घोषणा की गयी, जिसमें इन्हें लगातार सहायता करने तथा लघु इकाइयों को प्राथमिकता के आधार पर सहायता देने का आश्वासन दिया गया।
- इन नीति के अंतर्गत अन्य औद्योगिक इकाइयों को लघु इकाइयों में 24% तक की इक्विटी में निवेश करने का मौका दिया गया। इसके माध्यम से दोनों औद्योगिक ‘छोर’ एक दूसरे के निकट आ सकेंगे तथा इसके साथ ही बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ भी इनके विकास में सहायक बन सकेंगी और दूसरी तरफ लघु इकाइयों पर पूरी इक्विटी की व्यवस्था स्वयं करने का भार नहीं आयेगा।
- इन नीति के अंतर्गत व्यवसाय-संगठन (Business-Organisation) की एक नई कानूनी व्यवस्था आरम्भ की गयी जो सीमित साझेदारी (Limited Partnership) कहलायीं। इसके अनुसार कम से कम एक साझेदार का दायित्व असीमित . तथा अन्य साझेदारों का दायित्व उनकी निवेश की गयी पूँजी तक सीमित रखा गया था।…
- इन नीति में ‘सस्ती साखं की जगह ‘साख पर्याप्तता’ पर बल दिया।
- इस नीति के अंतर्गत सरकार की खरीद में अति लघु क्षेत्र को प्राथमिकता देने पर बल दिया गया।
- लघु तथा अति लघु क्षेत्रों हेतु नये बाजारों की खोज करने के लिए सहकारी संस्थाओं, सार्वजनिक संस्थाओं तथा व्यावसायिक संस्थाओं को प्रतिबद्ध किया गया।
- ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में लघु तथा अति लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना करने पर अधिक बल दिया गया।
प्रश्न 5.
मुद्रा योजना विषय पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एण्ड रिफाइनेंस एजेंसी) योजना 8 अप्रैल, 2015 को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा असंगठित क्षेत्र के छोटे कारोबारियों हेतु वित्त व पुनर्वित्त की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गयी। यह सिडबी की ही भाँति एक पुनर्वित्त एजेंसी है जो प्रारम्भ में सिडबी की सहायक कम्पनी की तरह कार्य करेगी तथा बाद में संसदीय कानून के तहत इसे मुद्रा बैंक के रूप में स्थापित किया जायेगा।
असंगठित क्षेत्र के लिए मुद्रा बैंक से पहले राष्ट्रीय स्तर की एजेन्सियों में वर्ष 1982 में स्थापित राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) तथा वर्ष 1990 में स्थापित भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India-SIDBI) प्रमुख भूमिका निभाते थे। नाबार्ड द्वारा इतर गतिविधियाँ घोषित नहीं हो पाती हैं तथा सिडबी भी सूक्ष्म उद्यमियों हेतु कुछ खास कार्य नहीं कर सका है। इसी कारण मुद्रा बैंक की स्थापना की गयी।
इस संस्था द्वारा छोटे कारोबारियों व अनुसूचित जाति, जनजाति तथा वंचितं समूहों के उद्यमियों को सूक्ष्म वित्त उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं को पुनर्वित्त प्रदान करने का कार्य किया जायेगा। ‘मुद्रा बैंक द्वारा मुद्रा योजना के तहत प्रारम्भिक उत्पादों व योजनाओं को ‘शिशु’ ‘किशोर’ तथा ‘तरुण’ नाम प्रदान किया गया है, जिनकी ऋण सीमा निम्न प्रकार से दृष्टिगत है-
- ‘शिशु योजना के तहत ₹ 50,000 तक के ऋण।
- ‘किशोर योजना के तहत ₹ 50,000 से ₹ 5 लाख के ऋण।
- ‘तरुण योजना के तहत ₹ 5 लाख से ₹ 10 लाख तक के ऋण।
इस योजना के माध्यम से छोटे-मोटे कारोबार में लगे स्वरोजगार प्राप्त असंगठित क्षेत्र के लोग विशेष रूप से लाभ प्राप्त करेंगे। प्रधानमंत्री ने योजना का शुभारंभ करते हुए एनएसएसओ (National Sample Survey Organisation) के 2013 के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए यह बताया कि छोटी दुकान, सिलाई-कढ़ाई, मैकेनिकी, विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र की गतिविधियों से जुड़ी लगभग 5.77 लाख लधु इकाइयाँ देश में कार्य कर रही हैं तथा लगभग 12 करोड़ लोग इस कार्य में लगे हुए हैं।
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