Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Chapter 20 निर्धनता
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता की परिभाषा के लिए न्यूनतम कैलोरी मापन कौन-सा है?
(अ) 2100 कैलोरी
(ब) 2400 कैलोरी
(स) 2250 कैलोरी
(द) 2500 कैलोरी
उत्तर:
(ब) 2400 कैलोरी
प्रश्न 2.
वर्ष 2011-12 में तेंदुलकर अनुमानों के अनुसार भारत में निर्धनता का प्रतिशत क्या था?
(अ) 25.7 प्रतिशत
(ब) 13.7 प्रतिशत
(स) 21.9 प्रतिशत
(द) 37.2 प्रतिशत
उत्तर:
(स) 21.9 प्रतिशत
प्रश्न 3.
वर्ष 2011-12 में तेंदुलकर अनुमान के अनुसार निम्न राज्यों में से किस राज्य में निर्धनता अनुपात सर्वाधिक था?
(अ) बिहार
(ब) छत्तीसगढ़
(स) झारखण्ड
(द) केरल
उत्तर:
(ब) छत्तीसगढ़
प्रश्न 4.
न्यूनतम उपयोग आवश्यकता पूर्ति के आधार पर निर्धनता की परिभाषा निम्न में से कौन-सी है?
(अ) निर्धनता का सापेक्ष मापन
(ब) निर्धनता का निरपेक्ष मापन
(स) दोनों
(द) दोनों नहीं
उत्तर:
(ब) निर्धनता का निरपेक्ष मापन
प्रश्न 5.
निर्धनता का क्षमता माप (Capacity Measurement of Poverty) के अनुसार निर्धनता की परिभाषा में कौन-सा मानक समाहित है?
(अ) पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का अनुपात
(ब) अकुशल प्रसव अनुपात
(स) महिला निरक्षरता अनुपात
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 6.
विश्व बैंक के अनुसार निर्धनता का मापन क्या है?
(अ) प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1 अमेरिकी डालर
(ब) प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डालर
(स) प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1.5 अमेरिकी डालर
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डालर
प्रश्न 7.
निम्न में से निर्धनता निवारण का मजदूरी रोजगार कार्यक्रम कौन-सा नहीं है?
(अ) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम
(ब) जवाहर रोजगार योजना
(स) ट्राईसेम
(द) काम के बदले अनाज योजना
उत्तर:
(स) ट्राईसेम
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निर्धनता को परिभाषित करने के लिये कैलोरी मापन आवश्यकता क्या है?
उत्तर:
भारत में गरीबी “कैलोरी उपभोग” के साथ जोड़ा गया है। इस मानक से कम कैलोरी उपभोग को गरीब माना जाता है अर्थात् भोजन की वस्तुओं को आधार मानकर निर्धनता की माप की जाती है।
प्रश्न 2.
वर्ष 2011-12 में तेन्दुलकर अनुमानों के अनुसार देश में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता अनुपात क्या था?
उत्तर:
शहरी क्षेत्र-13.7 प्रतिशत व ग्रामीण क्षेत्र-25.7 प्रतिशत।
प्रश्न 3.
निर्धनता निवारण के लिये अपनाये गए स्वरोजगार के किन्हीं दो कार्यक्रमों का नाम लिखिए।
उत्तर:
- ग्रामीण युवकों के लिये स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM)
- प्रधानमन्त्री रोजगार योजना (PMRY)
प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता वाले सर्वाधिक प्रभावित – पांच राज्यों का निर्धनता अनुपात के साथ नाम लिखिए।
उत्तर:
तेन्दुलकर अनुमानों के अनुसार वर्ष 2011-12 में सर्वाधिक प्रभावित निर्धनता राज्य :
- छत्तीसगढ़ 39.93 प्रतिशत
- झारखण्ड 36.96 प्रतिशत
- बिहार 33.74 प्रतिशत
- उड़ीसा 32.59 प्रतिशत
- मध्य प्रदेश 31.65 प्रतिशत।
प्रश्न 5.
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के प्रमुख घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, अक्षमता (विकलांग) पेंशन तथा परिवार लाभ योजना।
प्रश्न 6.
निर्धनता की क्षमता मापन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता की क्षमता मापन के अन्तर्गत निर्धनता को मापने के लिये पांच वर्ष से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों का अनुपात, अकुशल प्रसव अनुपात तथा महिला निरक्षरता अनुपात सहित तीन सूचकों का प्रयोग किया जाता
प्रश्न 7.
वर्ष 2011-12 में निर्धनता की परिभाषा योजना आयोग के अनुसार क्या है?
उत्तर:
वर्ष 2011-12 योजना के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के लिये ₹916 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह तथा शहरी क्षेत्र के लिये ₹ 1000 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह निर्धनता रेखा के रूप में परिभाषित किया है।
प्रश्न 8.
रिसाव प्रभाव (Trickle down effect) क्या है?
उत्तर:
देश में तीव्र आर्थिक विकास में आय में वृद्धि होती है तथा आय में यह वृद्धि जब रिसकर निर्धन वर्ग तक पहुँचती है तो इसे रिसाव प्रभाव कहा जाता है।
प्रश्न 9.
किन्हीं तीन भारतीय अर्थशास्त्रियों के नाम लिखिए जिन्होंने भारत में निर्धनता के सम्बन्ध में अध्ययन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है?
उत्तर:
- सुरेश तेन्दुलकर
- डॉ. सी. रंगराजन
- एम. एस. अहलूवालिया।
प्रश्न 10.
एन आर ई पी (NREP) का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (National Rural Employment Programme)
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निर्धनता मापन के विभिन्न मानकों को लिखिए।
उत्तर:
निर्धनता मापन के विभिन्न मानक निम्नलिखित हैं :
- न्यूनतम “कैलोरी उपभोग’ के द्वारा निर्धनता का मापन किया जाता है। योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी उपभोग से कम उपभोग प्राप्त करने वालों को गरीब माना जाता है।
- वर्ष 2011-12 में योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के लिये ₹ 816 प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह तथा शहरी क्षेत्र के लिये ₹ 1000 प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह निर्धनता के रूप में परिभाषित किया गया है।
- विश्व बैंक के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डॉलर से कम उपभोग व्यय को निर्धन माना गया है।
- निर्धनता का क्षमता माप (Capability Measurement of Poverty) द्वारा भी निर्धनता मापन किया जाता है। इस माप में गरीबी मापन के लिये सूचकों का प्रयोग किया जाता है इनमें पाँच वर्ष से कम उम्र के कम वजन (Low weight) वाले बच्चों का अनुपात, अकुशल प्रसव अनुपात तथा महिला निरक्षरता अनुपात शामिल है।
प्रश्न 2.
निर्धनता रेखा के मापन में कैलोरी उपभोग पद्धति व निर्धनता रेखा पद्धति की क्या कमियां हैं?
उत्तर:
निर्धनता रेखा के मापन में कैलोरी उपभोग पद्धति उपयुक्त तरीका नहीं है क्योंकि कैलोरी को आधार मानकर निर्धनों को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का मत यह भी है कि भोजन की वस्तुओं को आधार मानकर निर्धनता की माप करना उचित नहीं है क्योंकि निर्धनता को अनेक सामाजिक एवं आर्थिक कारक जैसे बीमारी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूख आदि प्रभावित करते हैं। निर्धनता रेखा पद्धति में निर्धनता रेखा के नीचे के सभी निर्धनों को समान समझा जाता है जबकि ऐसा नहीं होता है। इसके लिये निर्धनों की वास्तविक स्थिति का अनुमान आवश्यक है।
प्रश्न 3.
सापेक्ष गरीबी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सापेक्ष गरीबी से तात्पर्य दूसरे देशों की तुलना में पायी जाने वाली निर्धनता से है। जिस देश या वर्ग के लोगों का जीवन-निर्वाह स्तर निम्न स्तर का होता है वे उच्च निर्वाह स्तर के लोगों या देश की तुलना में गरीब सापेक्ष रूप में निर्धन होते हैं। इसके मापन में देश में आय वितरण की अवस्था व उसके असमान वितरण पर विचार किया जाता है। विकसित देशों में गरीबी मापन के लिये सापेक्ष गरीबी अवधारणा का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 4.
भारत में उच्च निर्धनता के लिये उत्तरदायी तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
- जनसंख्या वृद्धि (Population Growth) :
विश्व में जनसंख्या के मामले में भारत का दूसरा स्थान है लेकिन विश्व में भू-भाग 2.42 प्रतिशत है। यह अनुपात संसाधनों पर जनसंख्या के दबाव को व्यक्त करता है। अर्थात् भारत में जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है उसी गति से संसाधनों में वृद्धि नहीं हो पा रही है। जिसके कारण यहां निर्धनता व्याप्त है। - बेरोजगार (Unemployment):
भारत में बेरोजगारी की गम्भीर समस्या है। यहां लोगों को पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं प्राप्त होते हैं। देश में आर्थिक सुधारों के बाद संवृद्धि दर तेज हुई है लेकिन इस संवृद्धि के अनुरूप रोजगार में विस्तार नहीं हुआ है। - कृषि उत्पादन की धीमी वृद्धि (Low Increase in Agriculture Production) :
भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन देश में कृषि की उत्पादकता में बहुत धीमी वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप किसानों के आर्थिक स्तर में सुधार बहुत कम हुआ है।
प्रश्न 5.
आर्थिक विकास निर्धनता निवारण में किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता जैसी असाधारण समस्या को सुलझाने के लिये आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना एक मूलभूत उपाय है। जैसे-जैसे विकास गति में तेजी आयेगी तब खेतों और कारखानों में मजदूरों की संख्या में इजाफा होगा और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। रोजगार जितना अधिक होगा उतनी ही आय बढ़ेगी और जब आय बढ़ेगी तब निर्धनता का ग्राफ स्वतः ही निम्न होने लगेगा।
प्रश्न 6.
निर्धनता एक बहुआयामी अवधारणा है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
निर्धनता को किसी एक आयाम द्वारा ही परिभाषित नहीं किया जा सकता है। आय में कमी के कारण जब व्यक्ति पर्याप्त भोजन, आवास, उपभोग की आवश्यक वस्तुओं, शिक्षा तथा बेहतर स्वास्थ्य की आवश्यकतायें पूरी न कर पाना निर्धनता है। सामाजिक परिपेक्ष्य में शक्तिविहीनता, राजनैतिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व न होना और अवसरों का अभाव गरीबी की परिभाषा का आधार तैयार करते हैं। मानव विकास रिपोर्ट ने गरीबी को बहुआयामी माना है, जीवन का लम्बी अवधि का न होना, शिक्षा का अभाव, उच्च जीवन स्तर का अभाव ही निर्धनता का मापन है। अत: निर्धनता एक बहुआयामी अवधारणा है।
प्रश्न 7.
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन वर्ग में कौन आते हैं?
उत्तर:
भारत में लघु व सीमान्त कृषक, खेतिहार मजदूर व आकस्मिक श्रमिक आदि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन वर्ग में आते हैं। इनके पास कृषि कार्य करने हेतु पर्याप्त भूमि नहीं होती है तथा नियमित रूप से रोजगार का अभाव होता है जिससे इनकी आय बहुत ही कम होती है। ग्रामीण गरीबी अनुपात सर्वाधिक छत्तीसगढ़ राज्य में है।
प्रश्न 8.
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की शुरुआत 3 जून 2011 को हुई थी। यह ग्रामीण निर्धन परिवारों को प्रशिक्षण व कौशल विकास के द्वारा स्वरोजगार व कुशल मजदूरी रोजगार अवसरों की उपलब्धता में वृद्धि पर बल देता है। इसके अलावा यह खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि की दशा में सुधार, माइक्रो फाइनेंस व विपणन तक उनकी पहुँच निश्चित करने की आवश्यकता पर बल देता है। इस मिशन का उद्देश्य 2024-25 तक सभी ग्रामीण परिवारों को संगठित करना और उन्हें लगातार तब तक संपोषित व सहायता देना है जब तक वे दयनीय गरीबी से बाहर नहीं निकल जाते। यह कार्य योग्यता पर आधारित स्वयं सहायता समूह में प्रत्येक परिवार से एक महिला को मिलाकर किया जायेगा। 2013-14 के दौरान 22121.2 करोड़ रुपये के ऋण स्वयं सहायता समूह को वितरित किये गए।
प्रश्न 9.
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के प्रमुख उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन का उद्देश्य शहर में रहने वाले बेघर लोगों के लिये बुनियादी सुविधायुक्त . आवास उपलब्ध कराना, शहरी निर्धनता को कम करना, शहरी निर्धनों के जीवन स्तर में सुधार करना, इनके लिये लाभदायक व कुशल रोजगार उपलब्ध कराना है। यह मिशन कौशल विकास उद्यमिता विकास व साख की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा। वर्ष 2013 में स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना को इस मिशन से जोड़ा गया है, जिसका उद्देश्य शहरी बेरोजगारी व अल्प रोजगारों के लिये लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है।
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निर्धनता के मापन उसकी मापन समस्यायें लिखिए।
उत्तर:
निर्धनता का कोई एक निश्चित मापक नहीं है कि जिसे हर काल व स्थान पर एक ही अर्थ में प्रयोग में लाया जा सके। समाज, स्थान व काल के परिवर्तन के साथ-साथ निर्धनता का सन्दर्भ भी परिवर्तित होता है। गरीब की स्थिति के अनुमान के लिये आय का एक निश्चित स्तर निर्धारित किया जाता है व यह माना जाता है कि इस आय स्तर में व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकतायें पूरी कर सकता है। इस आय स्तर को गरीबी रेखा कहा जाता है। इस आय या व्यय से कम आय वाले व्यक्ति को गरीब माना जाता है। मुद्रास्फीति के कारण समय-समय पर इस आय स्तर को संशोधित किया जाता है तथा उसी के अनुसार गरीबी का अनुमान किया जाता है।
भारत में गरीबी को “कैलोरी उपभोग” के साथ जोड़ा गया है। इसके अन्तर्गत मानक से कम कैलोरी उपभोग को गरीब माना जाता है। योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी उपभोग से कम उपभोग प्राप्त करने वालों को गरीब माना गया है। वर्ष 2011-12 में योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्र में ₹ 27.20 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में ₹ 33.33 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के स्तर पर निर्धनता रेखा को निर्धारित किया है। अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र के लिये ₹ 816 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह तथा शहरी क्षेत्र के लिये ₹ 1,000 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह निर्धनता रेखा के रूप में परिभाषित किया गया। इस उपभोग स्तर से कम को निर्धनता रेखा से नीचे तथा इस से ऊपर को निर्धनता रेखा से ऊपर माना गया है।
कैलोरी आधारित मापक तरीके को उपयुक्त नहीं माना जाता है क्योंकि कैलोरी को आधार मानकर निर्धनों को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का मत यह भी है कि भोजन की वस्तुओं को आधार मानकर निर्धनता की माप करना उचित नहीं है क्योंकि निर्धनता को अनेक सामाजिक एवं आर्थिक कारक जैसे बीमारी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूख आदि प्रभावित करते हैं।
निर्धन लोगों की संख्या का कुल जनसंख्या के साथ अनुपात को निर्धनता अनुपात कहा जाता है। इसको 100 से गुणा करने पर निर्धनता प्रतिशत ज्ञात होता है कि जनसंख्या का कितना प्रतिशत निर्धन है। निर्धनता मापक को एक निश्चित उपभोग व्यय के रूप में मापन की अपनी सीमायें हैं। इसके अनुसार निर्धनता रेखा के नीचे के सभी निर्धनों को समान रूप से समझा जाता है जबकि ऐसा नहीं है इसके लिये निर्धनों की वास्तविक स्थिति का अनुमान आवश्यक है। उदाहरण के लिये वर्ष 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्र में ₹ 816 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह से कम व्यय करने वाले को निर्धन माना गया है। इसके अनुसार ₹ 110 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह व्यय करने वाला व्यक्ति भी निर्धन है तथा ₹ 815 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह व्यय करने वाला भी निर्धन है जबकि दोनों की दशा में अन्तर है।
इसीलिये अमर्त्य सेन के अनुसार दो चरण अपनाने चाहिये। प्रथम चरण में अलग-अलग लोगों को कितना मिला और इस आधार पर प्रति व्यक्ति आय के किसी मानदण्ड के आधार पर निर्धनता को ज्ञात किया जाना चाहिये तथा दूसरे चरण में इस बात का अनुमान लगाना चाहिये कि स्थिति कितनी खराब है अर्थात् यह ज्ञात करना चाहिये कि गरीब कितने गरीब हैं।
ओजलर, दत्त व रैवेलियन द्वारा निर्धनता मापन के लिये “गरीब की अन्तराल अनुपात’ (Poverty Gap Ratio) तथा “वर्गीकृत गरीब अन्तराल अनुपात’ (Square Poverty Gap Ratio) का प्रयोग किया गया है। ये माप गरीबी के अनुमान के साथ इसकी तीव्रता का भी माप करते हैं। विश्व बैंक के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डॉलर से कम उपभोग व्यय को निर्धन माना गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार गरीबी के मापन के लिये तीन अभाव महत्त्वपूर्ण हैं। इन अभावों में जीवन में लम्बी अवधि का न होना, शिक्षा का अभाव तथा उच्च जीवन स्तर का अभाव शामिल है।
इसी के आधार पर मानव गरीबी सूचकांक (Human Poverty Index) का निर्माण किया गया है। निर्धनता के मापन का एक अन्य माप भी प्रचलित है। निर्धनता का क्षमता माप, इस माप के अनुसार गरीबी मापने के लिये पांच वर्ष से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों का अनुपात, अकुशल प्रसव अनुपात तथा महिला निरक्षरता अनुपात सहित तीन सूचकों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 2.
भारत में निर्धनता की समस्या के आकार व क्षेत्रीय वितरण की व्याख्या करो।
उत्तर:
भारत में निर्धनता की समस्या का आकार (Size of the Problem of Poverty in India) :
भारत में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा निर्धनता की समस्या के आकार को प्रस्तुत किया है। बी. एस. मिन्हास के अनुसार 1967-68 में देश में 37.1 प्रतिशत निर्धनता थी। पी. के. वर्धन के अनुसार देश में 1967-68 में 54.0 प्रतिशत आबादी निर्धन थी। दाण्डेकर व रथ के अनुसार यह अनुपात 40.0 प्रतिशत व आहलूवालिया के अनुसार निर्धनता अनुपात 56.5 प्रतिशत था। इन सभी अर्थशास्त्रियों ने निर्धनता की अलग-अलग परिभाषा लेने के कारण इनके अनुमानों में अन्तर था। लेकिन ये सभी अनुमान यह तथ्य प्रस्तुत करते हैं कि साठ के दशक में देश में निर्धनता अनुपात काफी ऊँचा था तथा निर्धनों की अधिक संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में है व सीमान्त व छोटे किसानों में तथा खेतिहार मजदूरों में प्रमुख रूप से निर्धनता व्याप्त थी।
राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण संगठन द्वारा उपयोग व्यय पर संकलित समंकों के आधार पर निर्धनता के अनुमान प्रस्तुत किये। योजना आयोग के अनुसार 1973-74 में ग्रामीण निर्धनता का अनुपात 56.4 प्रतिशत था व शहरी निर्धनता का अनुपात 49.0 प्रतिशत था। इसी अनुमानों के आधार पर 1993-94 में ग्रामीण निर्धनता 37.3 प्रतिशत थी व शहरी क्षेत्र में निर्धनता 32.4 प्रतिशत थी। इस अवधि में निर्धनता में तीव्र कमी को देखा गया योजना आयोग द्वारा 1989 में डी. टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में कार्यदल का गठन किया गया। इस दल के अनुसार देश में निर्धनता 1973-74 में 54.9 प्रतिशत थी जो 1993-94 में 36 प्रतिशत हो गयी व 2004-05 में 27 प्रतिशत हो गयी।
भारत में तेन्दुलकर पद्धति से राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण संगठन के परिवार व्यय समंकों के आधार पर गरीबी के अनुमानों को प्रस्तुत किया गया। जिसमें वर्ष 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता 50.1 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011-12 में 25.7 प्रतिशत तक कम हो गयी तथा शहरी निर्धनता 1993-94 में 31.8 प्रतिशत से कम होकर 13.7 प्रतिशत रह गई। इसी प्रकार संयुक्त निर्धनता अनुपात जो 1993-94 में 45.3 प्रतिशत था जो वर्ष 2011-12 में गिरकर 21.9 प्रतिशत हो गया। इस अवधि में ग्रामीण निर्धनता में तीव्र कमी को देखा गया।
भारत में निर्धनता का क्षेत्रीय वितरण (Regional Distribution of Poverty) :
भारत में विभिन्न राज्यों में निर्धनता के अनुपात में भिन्नतायें पायी जाती हैं। तेन्दुलकर अनुमानों के अनुसार वर्ष 2011-12 में प्रमुख राज्यों में सर्वाधिक निर्धनता छत्तीसगढ़ राज्य में है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में 44.61 प्रतिशत, शहरी क्षेत्र में 24.75 प्रतिशत व संयुक्त रूप से 39.93 प्रतिशत जनसंख्या निर्धन है।
भारत के प्रमुख राज्यों में निर्धनता दर (प्रतिशत में)
स्रोत :
योजना आयोग, भारत सरकार :
योजना आयोग के अनुसार मिजोरम में निर्धनता 1993-94 में 11.8 प्रतिशत थी जो 2011-12 में बढ़कर 20.4 प्रतिशत हो गई। मणिपुर राज्य में 2004-05 में निर्धनता अनुपात 37.9 प्रतिशत था जो 2009-10 में 47.1 प्रतिशत व 2011-12 में 36.89 प्रतिशत था। अरुणाचल प्रदेश में 2004-05 में निर्धनता अनुपात 31.4 प्रतिशत था जो 2011-12 में 34.67 प्रतिशत हो गया। अर्थात् उत्तर पूर्वी राज्यों में 2004-05 से 2011-12 के मध्य निर्धनता अनुपात में वृद्धि हुई है जो देश के असमान विकास को प्रदर्शित करता है। 2004-05 में उड़ीसा में निर्धनता 57.2 प्रतिशत थी जो 2011-12 में कम होकर 32.6 प्रतिशत हो गई।
बिहार में 2004-05 में 54.5 प्रतिशत निर्धनता अनुपात था जो 2011-12 में कम होकर 33.7 प्रतिशत हो गया। 2004-05 से 2011-12 के मध्य देश में निर्धनता प्रतिशत में 15.3 प्रतिशत की कमी हुई। अखिल भारतीय गरीबी अनुपात में कमी की तुलना में 2004-05 से 2011-12 के मध्य उड़ीसा (24.6 प्रतिशत), बिहार (20.8 प्रतिशत), तमिनलाडु (17.6 प्रतिशत), राजस्थान (19.7 प्रतिशत) व मध्य प्रदेश (16.9 प्रतिशत) राज्यों में गरीबी अनुपात अधिक तेजी से बढ़ा है।
प्रश्न 3.
भारत में ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त निर्धनता के उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त निर्धनता के उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं
- अशिक्षा (Illetracy) :
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रूप से शिक्षा का पर्याप्त में विकास नहीं हो पाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षा की जानकारी के अभाव के कारण लघु व सीमान्त कृषक, खेतिहार मजदूर परम्परागत तरीके से कृषि कार्य करते हैं जिससे लागते अधिक आती हैं। - कृषि पर निर्भरता (Dependence on Agriculture) :
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों निवास करने वाली जनसंख्या सामान्यत: कृषि पर ही निर्भर है। लेकिन कृषि भारत में मानसूनी जुआ है यदि वर्षा अच्छी हो गई तो फसलें अच्छी हो जाती हैं, अन्यथा की स्थिति में लागत निकलना भी कठिन हो जाता है। - अनियमित रोजगार (Irregular Employment) :
ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों का रोजगार नियमित न होने के कारण उनकी आय कम होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी पायी जाती है। फसलों की बुवाई तथा कटाई के समय तो रोजगार मिल जाता है बाकी पूरे वर्ष रोजगार नहीं मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों से व्यक्ति रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं लेकिन वहां भी पर्याप्त रोजगार न होने के कारण वे निर्धन रहते हैं। - ऋणग्रस्तता (Indebtedness) :
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता का प्रमुख कारण ऋणग्रस्तता भी है यहां के लोग अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साहूकारों एवं जमींदारों से ऊंची ब्याज दर पर रुपया उधार लेते हैं और वे आजीवन ऋणग्रस्त ही बने रहते हैं तथा उनकी आय का एक हिस्सा ऋण चुकाने में ही चला जाता है। - सामाजिक पिछड़ापन व श्रम की गतिशीलता का अभाव (Social Backwardness and Lack of Mobility of Labour) :
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव, जागरूकता की कमी तथा परिवर्तन की चाहत के अभाव के कारण सामाजिक पिछड़ापन है तथा श्रम की गतिशीलता कमजोर है। इन्हीं कारणों से वैकल्पिक रोजगार की तलाश कम हो पाती है तथा वैकल्पिक आय के स्रोतों में वृद्धि नहीं हो पाती है। - दोषपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Faulty PDS) :
खाद्यान्नों की तीव्र कीमत वृद्धि निर्धनों के खाद्यान्न उपभोग को प्रभावित करती है। लेकिन देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा खाद्यान्नों का वितरण भी दोषपूर्ण है। यहां समय से लोगों को राशन का वितरण नहीं किया जाता है। - विकास प्रारूप की कमियाँ (Weakness of Development Strategy) :
भारत में नियोजन के आरम्भ में कृषि तथा श्रम गहन उद्योगों के बजाय बड़े व पूंजीगत उद्योगों के विकास पर बल दिया गया है जिसके कारण रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित नहीं हुए। आज भी कृषि पर देश की 55 प्रतिशत आबादी आरक्षित है जबकि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान मात्र 13.9 प्रतिशत है। - कृषि उत्पादन की धीमी वृद्धि (Low Increase in Agriculture Production) :
देश में कृषि में उत्पादकता में बहुत धीमी वृद्धि हुई है। श्रम की कृषि में उत्पादकता भी कम होने के कारण कृषि में कार्यरत अतिरिक्त श्रम कृषि से मुक्त नहीं हुआ है जो अतिरिक्त श्रम मुक्त होकर उद्योगों व सेवा क्षेत्रों में नियोजित होना चाहिये था वह आज भी कृषि में कार्यरत है।
प्रश्न 4.
निर्धनता निवारण के लिये सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता निवारण के लिये सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति का विवेचना निम्न प्रकार है
i. आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना (Increase the race of Economic Growth) :
नियोजन के आरम्भ से ही माना गया है कि यदि देश में तीव्र आर्थिक विकास होगा तो आय में वृद्धि होगी तथा आय में यह वृद्धि रिसकर निर्धन वर्ग तक पहुंचेगी। भारत में निर्धनता जैसी असाधारण समस्या को सुलझाने के लिये आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना एक मूलभूत उपाय है। जैसे-जैसे विकास की गति में तेजी आयेगी तब खेतों और कारखानों में मजदूरों की संख्या में इजाफा होगा और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। रोजगार जितना अधिक होगा, उतनी ही आय बढ़ेगी और जब आय बढ़ेगी तब निर्धनता का ग्राफ भी स्वत: निम्न होने लगेगा। लेकिन विकास की गति पर्याप्त नहीं होने के कारण आर्थिक विकास पर्याप्त मात्रा में रोजगार सृजित नहीं कर पाया। केवल आर्थिक विकास के द्वारा निर्धनता निवारण असफल रहा।
ii. मजदूरी रोजगार व स्वरोजगार कार्यक्रम लागू करना (Implementation of Wages Employment and Self Employment) :
देश के 1960 के दशक में मौजूदा आर्थिक विकास से रोजगार के साधनों में पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई, जिससे निर्धनता में कमी नहीं आयी। इसके पश्चात् निर्धनता निवारण के लिये निर्धनता पर प्रत्यक्ष प्रहार करने वाले कार्यक्रमों को अपनाया गया। ये कार्यक्रम मजदूरी या स्वरोजगार द्वारा निर्धनता उन्मूलन की अवधारणा पर आधारित थे। मजदूरी रोजगार कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक सम्पत्ति का निर्माण किया गया तथा निर्धनों को मजदूरी रोजगार के साथ पूरक पोषण भी प्रदान किया गया। स्वरोजगार के कार्यक्रम सहायता व ऋण पर आधारित थे। इसके अन्तर्गत कुशल एवं अर्द्धकुशल रोजगार के लिये प्रशिक्षण दिया गया। मजदूरी रोजगार व स्वरोजगार के प्रमुख कार्यक्रम निम्नवत् थे :
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP)
- ग्रामीण युवकों के लिये स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM)
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP)
- ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारन्टी कार्यक्रम (RLEGP)
- इन्दिरा आवास योजना (IAY)
- स्वरोजगार अश्वासन योजना (EAS)
- प्रधानमन्त्री रोजगार योजना (PMRY)
- गंगा कल्याण योजना (GKY)
- सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना (NAREGA)
iii. सामाजिक सहायता कार्यक्रम (Social Assistence Programme) :
निर्धनों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये 15 अगस्त, 1995 को राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम में वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, अक्षमता (विकलांग) पेंशन तथा परिवार लाभ चार घटक थे। सामाजिक सहायता कार्यक्रम मूलत: उन निर्धनों के लिये था जो किसी प्रकार अक्षमता के कारण मजदूरी रोजगार व स्वरोजगार कार्यक्रमों का अंग नहीं बन सकते हैं।
iv. क्षेत्र विकास कार्यक्रम तथा अद्यः संरचना का निर्माण (Area Development Programme and Infrastructure Development) :
सरकार द्वारा पिछड़े हुए क्षेत्रों व प्राकृतिक हानियों के कारण होने वाली हानियों से बचने के लिये सुखा प्रवण क्षेत्र विकास कार्यक्रम (DPAP), मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम (DDP), पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम (HADP) आदि विशेष कार्यक्रम चला कर ध्यान दिया गया जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाले निर्धनों की आय में वृद्धि हो सके। कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम (CADP) द्वारा सिंचाई के लिये नहरें, नालिया, भूमि को समतल करने, जोतों की चकबन्दी व मेडबन्दी के कार्य किये गए। ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों का निर्माण, शिक्षा व स्वास्थ्य सम्बन्धी अद्यः संरचना का विकास किया गया।
सरकार द्वारा निर्धनता के निवारण के हेतु नई रणनीति के अन्तर्गत कौशल विकास व प्रशिक्षण पर बल दिया जा रहा है जिससे स्थाई रोजगार के अवसर पैदा हो सके। इसके लिये स्व उद्यमिता को सामुदायिक उद्यमिता (स्वयं सहायता समूह द्वारा) के ढांचे पर विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है।
प्रश्न 5.
आपकी राय में भारत में निर्धनता निवारण के लिये क्या किया जा सकता है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत में व्याप्त निर्धनता के निवारण हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
- प्रभावी जनसंख्या नियन्त्रण :
जनसंख्या नियन्त्रण के कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से लागू कर, जनसंख्या को नियन्त्रित किया जाये। - कृषि विकास पर बल :
भारत में अधिकांश जनसंख्या कृषि पर ही आधारित है। अत: इस क्षेत्र के विकास पर सर्वाधिक बल देने की आवश्यकता है। - सामाजिक जागरूकता :
सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों द्वारा लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि के बारे में ज्ञान प्रदान किया जाए। - छोटी-छोटी बचतों को प्रोत्साहन :
छोटी बचतों को एकत्रित कर उनका विनियोग करके औद्योगिक विकास में तेजी लायी जा सकती है। - स्वरोजगार आधारित कार्यक्रमों को लागू करके :
बेरोजगारी को कम करने हेतु स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहिए। इससे लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा। - औद्योगिक विकास :
औद्योगिक विकास हेतु नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए तथा प्रशिक्षित कर्मचारियों का चयन करना चाहिए। - ग्रामीण एवं शहरी विकास हेतु अलग :
अलग कार्यक्रम-ग्रामीण एवं शहरी विकास हेतु अलग-अलग कार्यक्रम बनाने चाहिए क्योंकि दोनों की परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं। - सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार :
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ गरीबों को मिल सके इसलिए उसमें अपेक्षित सुधार करना चाहिए। - गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में जनसहभागिता :
गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों में जनसहभागिता बढ़ाने का प्रयास करने चाहिए। - आधारिक संरचनाओं के विकास पर बल :
आधारिक संरचना के विकास पर बल देना चाहिए जिससे लोगों को जीवन-निर्वाह में सरलता हो सके। - आर्थिक सहायता :
अति निर्धनता से पीड़ित लोगों को सरकारी अनुदान प्रदान कर उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
निर्धनता का क्षमता माप के अनुसार गरीबी मापन के लिये कितने सूचकों का प्रयोग किया जाता है?
(अ) चार
(ब) तीन
(स) दो
(द) पाँच
उत्तर:
(ब) तीन
प्रश्न 2.
भारत में निर्धनता के आरम्भिक अनुमान प्रस्तुत किये गए
(अ) बी. एस. मिन्हास द्वारा
(ब) पी. के. वर्धन द्वारा
(स) एम. एस. आहलूवालिया द्वारा
(द) ये सभी द्वारा
उत्तर:
(द) ये सभी द्वारा
प्रश्न 3.
बी० एस० मिन्हास के अनुसार वर्ष 1967-68 में देश में निर्धनता थी-
(अ) 37.1 प्रतिशत
(ब) 54.0 प्रतिशत
(स) 40.0 प्रतिशत
(द) 56.5 प्रतिशत
उत्तर:
(अ) 37.1 प्रतिशत
प्रश्न 4.
योजना आयोग द्वारा डी. टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में निर्धनता अनुमान हेतु कार्यदल का गठन किया गया
(अ) वर्ष 1983 में
(ब) वर्ष 1990 में
(स) वर्ष 1989 में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) वर्ष 1989 में
प्रश्न 5.
वर्ष 2011-12 में तेंदुलकर अनुमानों के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्र का निर्धनता का प्रतिशत था
(अ) 13.7
(ब) 25.7
(स) 21.9
(द) 33.8
उत्तर:
(ब) 25.7
प्रश्न 6.
विश्व बैंक द्वारा कितने निर्धनतम देशों के राष्ट्रीय गरीबी रेखा के औसत के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है?
(अ) 10
(ब) 20
(स) 15
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) 20
प्रश्न 7.
भारत सरकार द्वारा सन 2015 में निर्धनता आंकलन पर टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता की
(अ) डॉ. अरविन्द पनगड़िया ने
(ब) डॉ. सी. रंगराजन ने
(स) डी. टी. लकड़वाला ने।
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) डॉ. अरविन्द पनगड़िया ने
प्रश्न 8.
निर्धनता वृद्धि का कारण है
(अ) अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि
(ब) कार्य सहभागिता दर कम होना
(स) रोजगार हीन संवृद्धि
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 9.
ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल श्रम रोजगार के तहत परिवार को 100 दिन का रोजगार गारन्टी देने के लिये कार्यक्रम आरम्भ हुआ
(अ) नरेगा (NAREGA)
(ब) ट्राईसेम (TRYSEM)
(स) प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY)
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) नरेगा (NAREGA)
प्रश्न 10.
वाल्मीकी अम्बेडकर आवास योजना (VAMBAY) आरम्भ हुई थी
(अ) सन् 2006 में
(ब) सन् 2001 में
(स) सन् 2005 में
(द) सन् 1997 में
उत्तर:
(ब) सन् 2001 में
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निर्धनता किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीवन हेतु न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति न होना ही निर्धनता है।
प्रश्न 2.
ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता की परिभाषा के लिये न्यूनतम कैलोरी मापन क्या है?
उत्तर:
2400 कैलोरी।
प्रश्न 3.
शहरी क्षेत्र में कितनी कैलोरी उपभोग प्राप्त करने वाले को गरीब माना गया है?
उत्तर:
2100 कैलोरी।
प्रश्न 4.
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक कैलोरी उपभोग को आवश्यक क्यों माना गया है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्र में अधिक शारीरिक श्रम के कारण अधिक कैलोरी उपभोग को आवश्यक माना गया है।
प्रश्न 5.
वर्ष 2011-12 में योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्र में कितने रुपये व्यक्ति प्रतिदिन के स्तर पर निर्धनता रेखा को निर्धारित किया?
उत्तर:
₹ 27.20 प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन।
प्रश्न 6.
वर्ष 2011-12 में योजना आयोग द्वारा शहरी क्षेत्र के लिये कितने रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिमाह निर्धनता रेखा के रूप में परिभाषित किया है?
उत्तर:
₹ 1000 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह।
प्रश्न 7.
निर्धनता अनुपात (Head count ratio) क्या है?
उत्तर:
निर्धन लोगों की संख्या का कुल जनसंख्या के साथ अनुपात को निर्धनता अनुपात कहा जाता है।
प्रश्न 8.
निर्धनता के मापन में अमर्त्य सेन के अनुसार कितने चरणों को अपनाना चाहिये?
उत्तर:
निर्धनता मापन में दो चरणों को अपनाना चाहिये।
प्रश्न 9.
ओलजर, दत्त व रैवेलियन द्वारा गरीबी के अनुमानों के लिये किन मापकों का प्रयोग किया है?
उत्तर:
“गरीबी अन्तराल अनुपात’ (Poverty Gap Ratio) तथा “वर्गीकृत गरीबी अन्तराल अनुपात’ (Squared Poverty Gap Ratio)
प्रश्न 10.
विश्व बैंक के अनुसार निर्धनता मापन क्या है?
उत्तर:
विश्व बैंक के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डालर से कम उपभोग व्यय को निर्धन माना गया है।
प्रश्न 11.
निर्धनता की स्थिति के सम्बन्ध में मतभेदों के कारण किसकी अध्यक्षता में योजना आयोग में विशेषज्ञ समिति का गठन किया?
उत्तर:
प्रो. सुरेश तेन्दुलकर।
प्रश्न 12.
सापेक्ष निर्धनता किसे कहते हैं?
उत्तर:
सापेक्ष निर्धनता से तात्पर्य दूसरे देशों की तुलना में पायी जाने वाली निर्धनता से है।
प्रश्न 13.
निरपेक्ष निर्धनता किसे कहते हैं?
उत्तर:
निरपेक्ष निर्धनता से तात्पर्य किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है।
प्रश्न 14.
विकसित देशों में गरीबी मापन के लिये किस अवधारणा का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
सापेक्ष गरीबी अवधारणा।
प्रश्न 15.
भारत में निर्धनता के आरम्भिक अनुमान किन-किन अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किये गए?
उत्तर:
बी० एस० मिन्हास, वी. एम. दाण्डेकर, ए. के. रथ, पी. के. वर्धन व एम. एस. आहलूवालिया।
प्रश्न 16.
पी. के. वर्धन के अनुसार देश में वर्ष 1967-68 में कितने प्रतिशत आबादी निर्धन थी?
उत्तर:
54.0 प्रतिशत।
प्रश्न 17.
योजना आयोग के अनुसार वर्ष 1973-74 में ग्रामीण एवं शहरी निर्धनता अनुपात क्या था?
उत्तर:
ग्रामीण 56.4 प्रतिशत व शहरी 49.0 प्रतिशत।
प्रश्न 18.
योजना आयोग द्वारा वर्ष 1989 में किसकी अध्यक्षता में निर्धनता अनुमान हेतु एक कार्यदल का गठन किया गया?
उत्तर:
डी. टी. लकड़वाला।
प्रश्न 19.
वर्ष 1993-94 में तेन्दुलकर अनुमानों के अनुसार भारत में निर्धनता अनुपात क्या था?
उत्तर:
45.3 प्रतिशत।
प्रश्न 20.
तेन्दुलकर पद्धति के अनुसार वर्ष 2004-05 में ग्रामीण क्षेत्र में कितने रुपये प्रतिमाह प्रति व्यक्ति गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया है?
उत्तर:
₹ 446.8
प्रश्न 21.
तेन्दुलकर पद्धति के अनुमानों के आधार पर 2011-12 में देश में कुल कितने लोग निर्धन थे?
उत्तर:
269.3 मिलियन।
प्रश्न 22.
विश्व बैंक द्वारा किस आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है?
उत्तर:
विश्व बैंक द्वारा 10 निर्धनतम देशों के राष्ट्रीय गरीबी रेखा के औसत के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है।
प्रश्न 23.
2004-05 से 2011-12 के मध्य ग्रामीण गरीबी में तीव्र कमी के लिये किसे उत्तरदायी माना जाता
उत्तर:
ग्राम विकास रणनीति को।
प्रश्न 24.
वर्ष 2004-05 से 2011-12 के मध्य कौन-कौन से उत्तरी पूर्वी राज्यों में निर्धनता अनुपात में वृद्धि हुई है?
उत्तर:
असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम व नागालैण्ड में।
प्रश्न 25.
निर्धनता रेखा पर विवाद की पृष्ठभूमि में किस वर्ष डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया?
उत्तर:
वर्ष 2012 में।
प्रश्न 26.
रंगराजन समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता रेखा क्या है?
उत्तर:
प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह ₹ 972
प्रश्न 27.
भारत में निर्धनता के लिये उत्तरदायी दो कारण बताइये।
उत्तर:
- तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि।
- अशिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान का अभाव।
प्रश्न 28.
आई आर डी पी (IRDP) का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme)
प्रश्न 29.
ग्रामीण युवकों के लिये स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM) किस वर्ष लागू किया गया?
उत्तर:
वर्ष 1979 में।
प्रश्न 30.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार का सृजन करना।
प्रश्न 31.
ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP) कब आरम्भ किया गया?
उत्तर:
वर्ष 1983 में।
प्रश्न 32.
वर्ष 1985-86 में ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों को आवास सहायता के लिये कौन सी योजना प्रारम्भ की गई?
उत्तर:
इंदिरा आवास योजना (IAY)
प्रश्न 33.
रोजगार आश्वासन योजना (Employment Assurance Scheme) कब प्रारम्भ की गई?
उत्तर:
1993 ई० में।
प्रश्न 34.
सूखाग्रस्त, रेगिस्तानी, जनजातीय व पहाड़ी क्षेत्र में मजदूरी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु कौन-सा कार्यक्रम आरम्भ किया गया था?
उत्तर:
रोजगार आश्वासन योजना (EAS)
प्रश्न 35.
वर्ष 1993 में शिक्षित युवकों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने हेतु कौन-सी योजना प्रारम्भ की गयी?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री रोजगार योजना (PMRY)
प्रश्न 36.
वर्ष 1997-98 भूतल जल एवं भूमिगत जल की निकासी एवं रखरखाव हेतु कृषकों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिये कौन सी योजना प्रारम्भ की गई?
उत्तर:
गंगा कल्याण योजना (GKY)
प्रश्न 37.
निर्धन वर्ग के सर्वाधिक निर्धनों हेत अन्त्योदय योजना को कब प्रारम्भ किया गया?
उत्तर:
वर्ष 2000 में।
प्रश्न 38.
निर्धनों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया?
उत्तर:
16 अगस्त, 1995.
प्रश्न 39.
पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास व प्राकृतिक हानियों से बचाने के लिये चलाये गए दो कार्यक्रम बताइये।
उत्तर:
- सूखा प्रवण क्षेत्र विकास कार्यक्रम (DRAP)
- मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम (DDP)
प्रश्न 40.
कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम (CADP) कब लागू किया गया?
उत्तर:
सन् 1975 में।
प्रश्न 41.
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JGSY) कब लागू की गई?
उत्तर:
अप्रैल, 1999 में।
प्रश्न 42.
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत केन्द्र व राज्यों के बीच लागत विभाजन अनुपात क्या था?
उत्तर:
75 : 25.
प्रश्न 43.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना कब प्रारम्भ की गई?
उत्तर:
वर्ष 2004 में।
प्रश्न 44.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम कब पारित किया गया?
उत्तर:
सितम्बर, 2005 में।
प्रश्न 45.
निर्धनता दूर करने के कोई दो उपाय बताइये।
उत्तर:
- आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना।
- जनसंख्या वृद्धि दर पर नियन्त्रण करना।
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA-I)
प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निर्धनता वह स्थिति है जब व्यक्ति को पर्याप्त भोजन, आवास, उपभोग की आवश्यक वस्तुओं, शिक्षा तथा बेहतर स्वास्थ्य के अभाव की स्थिति में रहना होता है। आय की कमी के कारण व्यक्ति अपनी इन आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है।
प्रश्न 2.
निर्धनता रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
गरीबी की स्थिति के अनुमान के लिये आय का एक निश्चित स्तर निर्धारित किया जाता है व यह माना जाता है किस आय स्तर में व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकतायें पूरी कर सकता है। इस आय स्तर को गरीबी रेखा कहा जाता है। इस आय/व्यय स्तर से कम आय वाले व्यक्ति को गरीब के रूप में परिभाषित किया है।
प्रश्न 3.
भारत में निर्धनता को न्यूनतम कैलोरी मापदण्ड के अनुसार किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
भारत में गरीबी को “कैलोरी उपभोग’ के साथ जोड़ा गया है। इस मानक से कम कैलोरी उपभोग को गरीबी माना जाता है। योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी उपभोग से कम उपभोग प्राप्त करने वालों को गरीब माना है।
प्रश्न 4.
कैलोरी आधारित तरीका निर्धनता की पहचान के लिये क्यों उपयुक्त नहीं है?
उत्तर:
कैलोरी आधारित तरीका निर्धनता की पहचान के लिये उपयुक्त नहीं है क्योंकि कैलोरी को आधार मानकर निर्धनों को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का मत यह भी है कि भोजन की वस्तुओं को आधार मानकर निर्धनता की माप करना उचित नहीं है क्योंकि निर्धनता को अनेक सामाजिक एवं आर्थिक कारक; जैसे-बीमारी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भूख आदि प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 5.
निर्धनता अनुपात क्या है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
निर्धन लोगों की संख्या का कुल जनसंख्या के साथ अनुपात को निर्धनता अनुपात कहा जाता है। इसको 100 से गुणा करने पर ज्ञात होता है कि जनसंख्या का कितने प्रतिशत निर्धनव्यक्ति है। सरकार निर्धनता अनुपात को ध्यान में रखकर विभिन्न नीतियाँ एवं योजनायें संचालित करती है।
प्रश्न 6.
मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार गरीबी के मापन के लिये कौन-कौन से अभाव महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर:
मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार गरीबी मापन के लिये तीन अभाव महत्त्वपूर्ण है। इन अभावों में जीवन में लम्बी अवधि का न होना, शिक्षा का अभाव तथा उच्च जीवन स्तर का अभाव शामिल है। इसी के आधार पर मानव गरीबी सूचकांक (Human Poverty Index) का निर्माण किया गया है।
प्रश्न 7.
निर्धनता का क्षमता माप (Capability Measurement of Poverty) के अनुसार निर्धनता की परिभाषा में कौन-कौन से मानकों को समाहित किया गया है?
उत्तर:
इस माप के अनुसार गरीबी मापन के लिये तीन सूचकों का प्रयोग किया जाता है। इसमें पांच वर्ष से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों का अनुपात, अकुशल प्रसव अनुपात तथा महिला निरक्षरता अनुपात शामिल है।
प्रश्न 8.
निरपेक्ष निर्धनता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निरपेक्ष निर्धनता से तात्पर्य किसी एक देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता मापन से है। इसका अनुमान प्रतिव्यक्ति उपभोग की जाने वाली न्यूनतम कैलोरी की मात्रा या न्यूनतम उपभोग स्तर द्वारा लगाया जाता है। भारत में “न्यूनतम कैलोरी उपभोग’ से जुड़ी निर्धनता की परिभाषा गरीबी का निरपेक्ष मापन है।
प्रश्न 9.
रंगराजन समिति को निर्धनता के सम्बन्ध में दिये गए कार्यों को बताइये।
उत्तर:
रंगराजन समिति को दिये गए कार्य निम्न हैं :
- देश में निर्धनता रेखा को तय करना व निर्धनता के अनुमान लगाना।
- राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी तथा राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण संगठन द्वारा उपभोग आकलनों में भिन्नता का परीक्षण करना।
प्रश्न 10.
भारत सरकार द्वारा 2015 में गठित टास्क फोर्स का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
भारत सरकार द्वारा 2015 में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. अरविन्द पनगढ़िया की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य निर्धनता आंकलन के लिये तरीका सुझाना व उसके अनुरूप निर्धनता निवारण कार्यक्रम सुझाना था।
प्रश्न 11.
भारत के ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता के उत्तरदायी कारण बताइये।
उत्तर:
भारत के ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता के उत्तरदायी कारण निम्न हैं :
- अशिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान अभाव
- कृषि पर निर्भरता
- अनियिमित रोजगार
- ऋणग्रस्तता
- सामाजिक पिछड़ापन तथा श्रम की गतिशीलता का अभाव
- दोषपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली
- कृषि उत्पादन की धीमी वृद्धि।
प्रश्न 12.
देश में 1970 के दशक में निर्धनता की समस्या की व्यापकता को देखते हए कौन-कौन से कार्यक्रम अपनाये गए?
उत्तर:
देश में निर्धनता की समस्या की व्यापकता को देखते हुए 1970 के दशक में सीमान्त किसान व खेतिहार मजदूर विकास एजेन्सी, लघु किसान विकास एजेन्सी, ग्रामीण रोजगार का पुरजोर कार्यक्रम, आरम्भिक गहन ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, काम के बदले अनाज योजना आदि कार्यक्रमों को अपनाया गया।
प्रश्न 13.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (National Rural Employment Programme-NREP) 1980 में आरम्भ किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार सृजित करना था जिससे ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनों को मजदूरी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकें।
प्रश्न 14.
निर्धनता निवारण हेतु पिछड़े क्षेत्रों व प्राकृतिक हानियों से बचाने हेतु चलाये गए सूखा प्रवण क्षेत्र विकास कार्यक्रम एवं मरूक्षेत्र विकास कार्यक्रम में क्या-क्या कार्य किये गए?
उत्तर:
- सूखा प्रवण क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme-DPAP) 1973 में लागू किया गया है। इसके अन्तर्गत सूखा प्रवण (Prone) क्षेत्रों में कम पानी वाली उपजों को बढ़ावा दिया गया तथा पशुपालन, जल संरक्षा, वन रोपण व चारागाह विकास के कार्य भी किये गए।
- मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत मरुक्षेत्रों में पारिस्थितिक सन्तुलन, उत्पादक रोजगार, आय वृद्धि, मरुस्थल के फैलाव को रोकने व भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के कार्यक्रमों को सम्पन्न किया गया।
प्रश्न 15.
निर्धनता उन्मूलन के किन्हीं पांच प्रमुख कार्यक्रमों के नाम बताइये।
उत्तर:
- समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP)
- जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JGSY)
- प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY)
- स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना (SJSRY)
- सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)
प्रश्न 16.
“जवाहर ग्राम समृद्धि योजना” (JGSY) क्या है?
उत्तर:
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ उत्पादक सामुदायिक सम्पत्ति का निर्माण किया गया तथा केन्द्र व राज्यों के मध्य इसकी लागत 75 : 25 अनुपात में थी। इस योजना को जवाहर रोजगार योजना के पश्चात् केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में अप्रैल 1999 में लागू किया गया।
प्रश्न 17.
प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना का उद्देश्य 10वीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 500 व उससे अधिक आबादी वाले गांवों को पक्की सड़क से जोड़ना था। योजना के अन्तर्गत 2004 तक 7866 करोड़ रुपये खर्च किये गए तथा 60024. किमी ग्रामीण सड़कें बनायी गई। योजना का वित्तीयन डीजल के उपकर से प्राप्त आय से होता था।
प्रश्न 18.
भारत में निर्धनता निवारण के कोई पाँच बिन्दु बताइये।
उत्तर:
- जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण।
- स्वरोजगार को बढावा।
- कृषि विकास पर बल
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार
- औद्यौगिक विकास पर बल
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA-II)
प्रश्न 1.
ग्रामीण तथा शहरी परिवारों के लिये कैलोरी मानदण्ड किस प्रकार निर्धारित किया जाता है?
उत्तर:
कैलोरी मानदण्ड का मानक स्तर निश्चित नहीं होता। यह व्यक्ति की कार्य प्रणाली अथवा कार्यक्षमता पर निर्भर करता है, रहने वाले स्थान की जलवायु भी व्यक्ति की कैलोरी मानदण्ड को प्रभावित करती है, लोगों की आयु तथा लिंग भी कैलोरी मानदण्ड को प्रभावित करते हैं। योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी उपभोग से कम उपभोग प्राप्त करने वालों को गरीब माना है। ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आंकड़ा शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है क्योंकि ग्रामीण लोग शहरी लोगों की अपेक्षा कठोर परिश्रम करते हैं। लोगों की भोजन आवश्यकता इस निश्चित कैलोरी मानदण्ड से अधिक होने पर उन्हें अनिर्धन, जबकि उपभोग स्तर निश्चित कैलोरी मानदण्ड से कम होने पर उन्हें निर्धन मान लिया जाता है।
प्रश्न 2.
अमर्त्य सेन के अनुसार निर्धनता के मापन में कितने चरणों को अपनाना चाहिये?
उत्तर:
निर्धनता के मापन में अमर्त्य सेन के अनुसार दो चरण अपनाने चाहिये। प्रथम चरण में यह ज्ञात करना चाहिये कि अलग-अलग लोगों को कितना मिला और इस आधार पर प्रति व्यक्ति आय के किसी मानदण्ड के आधार पर निर्धनों को ज्ञात किया जाना चाहिये। दूसरे चरण में इस बात का अनुमान लगाना चाहिये कि स्थिति कितनी खराब है अर्थात् यह ज्ञात करना चाहिये कि गरीब कितने गरीब है।
प्रश्न 3.
भारत में निर्धनता रेखा निश्चित करने वाली कार्य विधि समझाइए।
उत्तर:
भारत में निर्धनता रेखा निश्चित करने हेतु कुछ ध्यान देने योग्य बातें :
- उपभोग सीमा को अनुमानित करते समय सार्वजनिक व्यय अथवा उपभोक्ता वस्तुओं पर सरकार द्वारा किये जाने वाले व्यय को सम्मिलित नहीं किया जाता। इसके अन्तर्गत निजी उपभोग व्यय को ही ध्यान में रखा जाता है।
- खाद्य पदार्थ मदों के उपभोग हेतु, हम कैलोरी के प्रति व्यक्ति उपभोग का ही अनुमान लगाते हैं।
- निजी उपभोग व्यय घटकों के रूप में हम न केवल खाद्य पदार्थ मदों को बल्कि गैर-खाद्य पदार्थ मदों की ओर भी ध्यान देते हैं।
- हर वर्ग अन्तराल के बदले आवृत्ति को रिकार्ड किया जाता है और हर आवृत्ति एक विशेष उपभोग वर्ग में सम्बन्धित लोगों की संख्या को दर्शाती है।
- अन्त में जनगणना तथा व्यक्ति गणना निकाली जाती है जो निर्धन तथा गैर-निर्धन को ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों हेतु अलग से प्रदर्शित करती है। यह गणना निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या के प्रतिशत को दर्शाती है।
प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता के आरम्भिक अनुमानों में विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने किन-किन तथ्यों को प्रस्तुत किया?
उत्तर:
भारत में निर्धनता के आरम्भिक अनुमान वी. एस. मिन्हास, वी. एम. डाण्डेकर, एन. के. रथ, पी. के. वर्धन व एम. एस. अहलूवालिया ने प्रस्तुत किये। इनके अनुसार साठ के दशक में देश में निर्धनता अनुपात काफी ऊँचा था। इन्होंने यह भी तथ्य प्रस्तुत किया कि निर्धनों की अधिक संख्या ग्रामीण क्षेत्र में है व सीमान्त व छोटे किसानों में तथा खेतिहर मजदूरों में प्रमुख रूप से निर्धनता व्याप्त थी। ग्रामीण गरीबी निम्न उत्पादकता के रूप में है तथा शहरी गरीबी ग्रामीण गरीबी का उत्प्रवाह (outflow) है जो शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के कमजोर संसाधन आधार के कारण है।
प्रश्न 5.
भारत में तेन्दुलकर पद्धति से राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण संगठन के परिवार व्यय संमकों के आधार गरीबी अनुमानों को तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत में निर्धनता (प्रतिशत में) :
प्रश्न 6.
भारत में तेन्दुलकर अनुमानों के अनुसार वर्ष 2011-12 में प्रमुख राज्यों में निर्धनता को तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के प्रमुख राज्यों में गरीबी की दरें (प्रतिशत में):
स्रोत :
योजना आयोग, भारत सरकार
प्रश्न 7.
क्या निर्धनता और बेरोजगारी के बीच कोई सम्बन्ध है? समझाइए।
उत्तर:
निर्धनता का सम्बन्ध व्यक्ति की बेरोजगारी, अल्प रोजगार अथवा यदा-कदा के काम मिलने से होता है। अधिकांश शहरी निर्धन या तो बेरोजगार होते हैं अथवा अनियमित मजदूर होते हैं जिन्हें यदा-कदा रोजगार मिल जाता है। यदा-कदा काम को पाने वाले मजदूर समाज की उपेक्षा के पात्र होते हैं, इनकी दशा अत्यधिक दयनीय होती है क्योंकि इनके पास रोजगार सुरक्षा परिसम्पित्तियाँ, वांछित कार्य कौशल, पर्याप्त अवसर तथा निर्वाह हेतु अधिशेष नहीं होते हैं। इस कारण भारत सरकार द्वारा अकुशल श्रमिकों को रोजगार प्रधान कार्यक्रमों में शामिल किया गया। इसी योजना के तहत् 1970 के दशक में “काम के बदले अनाज” कार्यक्रम को मंजूरी दी गई। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अकुशल निर्धन लोगों के लिये मज़दूरी पर रोजगार उपलब्ध कराने हेतु सरकार ने कुछ प्रमुख कार्यक्रम चलाये। यह हैं “राष्ट्रीय काम के बदल अनाज तथा सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना आदि।”
प्रश्न 8.
आय के असमान वितरण के सन्दर्भ में निर्धनता का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में निर्धनता की व्यापकता में सहयोग करने में दूसरा प्रमुख कारण देश में आय के असमान वितरण का होना माना जाता है। यद्यपि विभिन्न प्रकार की योजनाओं में प्रगतिशील कर-प्रणाली के माध्यम से तथा अन्य उपायों द्वारा इस आय के असमान वितरण को दूर करने के अथक प्रयास किये जा रहे हैं फिर भी आय तथा धन की असमानता बढ़ती ही जा रही है। मानव विकास सूचकांक 2007-08 के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2004-05 में देश में 20% धनी लोगों का आय या व्यय में 453% योगदान था, जबकि इसी वर्ष में निर्धन लोगों का योगदान सम्भवतः 8.1% था। इस प्रकार आय का असमान वितरण जहाँ एक ओर निर्धनता प्रकट करता है वहीं दूसरी ओर यह निर्धनता के फैलाव एवं व्यापकता पर भी व्यापक प्रभाव डालता है।
प्रश्न 9.
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistence Programme-NSAP)-राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम निर्धनों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये 15 अगस्त, 1995 को प्रारम्भ किया गया था। इस योजना के चार घटक थे। इनमें वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, अक्षमता (विकलांग) पेंशन तथा परिवार लाभ योजना घटक थे। सामाजिक सहायता कार्यक्रम मूलतः उन निर्धन लोगों के लिये था जो किसी प्रकार की अक्षमता के कारण मजदूरी रोजगार व स्वरोजगार कार्यक्रमों का अंग नहीं बन सकते हैं।
प्रश्न 10.
‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता निवारण के लिए सरकार ने अप्रैल 1999 में एक कार्यक्रम शुरू किया जिसे स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना के अन्तर्गत पहले से लागू हुई स्वरोजगार की सभी योजनाओं को शामिल किया गया है। जैसे: (1) समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, (2) स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि। इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में छोटे-छोटे उद्यमों को स्थापित किया जायेगा, जिन्हें व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में आत्मनिर्भर समूहों के आधार पर गठित किया जायेगा। इन उद्यमों को स्थापित करने के लिए निम्न ब्याज दरों पर बैंक ऋण एवं आर्थिक सहायता दी जायेगी। योजना पर खर्च किया जाने वाला धन केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें 75 : 25 के अनुपात में बाँटेंगी। यह योजना जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों द्वारा पंचायत समिति के अनुरूप लागू की जायेगी। इसकी प्रगति का मूल्यांकन निर्धारित बैंकों द्वारा किया जायेगा।
प्रश्न 11.
‘सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों की निर्धनता को दूर करने के लिए 1 सितम्बर, 2001 से एक कार्यक्रम शुरू किया गया जिसे ‘सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना’ के नाम से जाना जाता है। इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
- अधिक से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
- मूलभूत आवश्यकता के विकास पर बल देना। इस योजना के तहत् 100 करोड़ मानव दिवसों का निर्माण करना है। इस योजना की लागत को केन्द्र तथा राज्य सरकारें 87.5 : 12.5 के अनुपात में वहन करेंगी।
- क्षेत्रीय आर्थिक तथा सामाजिक दशाओं में इजाफा करना।
प्रश्न 12.
वाल्मीकी अम्बेडकर आवास योजना क्या है? समझाइये।
उत्तर:
वाल्मीकी अम्बेडकर आवास योजना शहरी स्लम क्षेत्रों में निर्धनों को आवास निर्माण व आवास उन्नयन प्रदान करने के लिये चलायी गयी थी। केन्द्र द्वारा इस योजना में 50 प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करायी गई। योजना में 2003 तक 211 करोड़ रुपये आंवटित किये गए व 1.6 लाख आवास निर्माण किये गए। यह योजना वर्ष 2001 में आरम्भ की गई।
प्रश्न 13.
“राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना” को समझाइये।
उत्तर:
भारत देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में “काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम इस भावना को लेकर प्रारम्भ किया गया था कि रोजगार के सृजन को बढ़ाया जा सके। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिये खुला था जो अदक्ष शारीरिक श्रम कर मजदूरी रोजगार करना चाहते थे। इसके अन्तर्गत जल संरक्षण, सूखा से सुरक्षा और भूमि विकास सम्बन्धी कार्यक्रम सम्पन्न कराये जाते हैं। मजदूरी का भुगतान नगद राशि और अनाज के रूप में किया जाता है। यह कार्यक्रम 2004 में प्रारम्भ किया गया था।
प्रश्न 14.
भारत में निर्धनता से मुक्ति पाने के लिए रोजगार सृजन करने वाले कार्यक्रम क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
भारत में निर्धनता से मुक्ति पाने के लिए रोजगार सृजन करने वाले कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण माने गए हैं क्योंकि रोजगार और निर्धनता में सीधा सम्बन्ध है। भारत एक विकासशील राष्ट्र होने के कारण यहाँ बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण किये हुए हैं। यदि लोगों को रोजगार मिलेगा तो निर्धनता कम होगी इसीलिए भारत में रोजगार सृजन के कार्यक्रम लागू किये गए हैं। इनके तहत् सरकार स्वरोजगार प्रारम्भ करने के लिए आर्थिक सहायता एवं प्रशिक्षण प्रदान करती है।
प्रश्न 15.
निर्धनता उन्मूलन में स्वरोजगार के अवसर’ और ‘कीमतों में गिरावट’ की भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- स्वरोजगार के अवसर :
स्वरोजगार प्राप्त करने के लिए अवसरों की अधिकाधिक खोज करनी चाहिए। उद्यमीय शिक्षा प्राप्त करने के लिए अधिक मात्रा में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान खोले जाने चाहिए। स्वरोजगार हेतु बेरोजगारों को व्यावसायिक परिसम्पत्तियाँ खरीदने हेतु निम्न ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाए और लघु उद्योग स्थापित कराये जाएँ। - कीमतों में गिरावट :
निर्धनता उन्मूलन के लिए कीमतों में गिरावट एक आवश्यक तथ्य है। कीमतों में लगातार वृद्धि से आम आदमी अपने जीवन-यापन की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है और उसका जीवन स्तर नीचा हो जाता है। कीमतों में गिरावट तभी आ सकती है जब खाद्य तथा अन्य आम वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाए तथा मूलभूत आवश्यकताओं की वस्तुओं का गरीबों में वितरण उचित मूल्य पर किया जाए।
RBSE Class 11 Economics Chapter 20 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रो. सुरेश तेन्दुलकर की अध्यक्षता में योजना आयोग द्वारा बनायी गयी विशेषज्ञ समिति ने निर्धनता रेखा के अनुमानों के सम्बन्ध में कौन-कौन सी सिफारिशें की गयीं?
उत्तर:
निर्धनता की स्थिति के सम्बन्ध में मतभेद के कारण प्रो. सुरेश तेन्दुलकर की अध्यक्षता में योजना आयोग ने विशेषज्ञ समिति का गठन किया। समिति ने निर्धनता रेखा के अनुमानों के सम्बन्ध में निम्न सिफारिशें की गयीं :
- निर्धनता के मापन के लिये भारत में राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण संगठन के पारिवारिक निजी उपयोग व्यय के समंकों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
- निर्धनता रेखा का अनुमान के लिये “कैलोरी उपभोग’ के स्थान पर वास्तविक उपभोग प्रारूप का प्रयोग करना चाहिये।
- उपभोग व्यय की जानकारी के लिये अलग-अलग याददास्त अवधि के प्रयोग के अनुसार अलग-अलग अनुमान आते हैं। समिति ने उपभोग व्यय की जानकारी के लिये एक समान याददास्त (Uniform Recall Period) अवधि के स्थान पर मिश्रित अवधि (Mixed Recall Period) के प्रयोग की सिफारिश की और उसके अनुसार ही गरीबी के अनुमानों को प्रस्तुत किया गया।
- समिति ने न्यूनतम उपभोग में खाद्य पदार्थों के साथ-साथ अखाद्य पदार्थों (वस्त्र, जूते, टिकाऊ वस्तुओं, शिक्षा व स्वास्थ्य) को भी सम्मिलित किया गया।
- समिति द्वारा प्रयास किया गया कि सभी राज्यों की ग्रामीण व शहरी जनसंख्या को अखिल भारतीय शहरी गरीबी रेखा में प्रस्तावित समूह के अनुसार उपभोग प्राप्त हो।
प्रश्न 2.
निर्धनता रेखा पर विवाद की पृष्ठभूमि में रंगराजन समिति को कौन-कौन से कार्य सौंपे गए तथा समिति ने निर्धनता आंकलन के लिये बनाये तरीकों में किन-किन बातों को सम्मिलित किया गया?
उत्तर:
निर्धनता रेखा पर विवाद की पृष्ठभूमि में 2012 में डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समूह का गठन किया। जिसको देश में निर्धनता रेखा को तय करना, निर्धनता के अनुमान लगाना, राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी तथा राष्ट्रीय सेम्पल सर्वेक्षण, संगठन द्वारा उपभोग आकलनों में भिन्नता का परीक्षण करना था। समिति ने निर्धनता आंकलन के लिये जो तरीका दिया है उसमें निम्न बातें सम्मिलित थीं :
- निर्धनता रेखा में पोषण, कपड़े, मकान, किराया, परिवहन, शिक्षा व अन्य गैर खाद्य खर्चों का निर्धारण मानदण्डों के आधार पर हो। जैसे पोषण मानदण्डों के लिये भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद द्वारा सुझाये गए कैलोरी, प्रोटीन व वसा मानदण्डों का उपयोग।
- पोषण पर खर्च अनुमान के लिये पोषण के इन मानकों को पूरा करने वाले व्यक्ति 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नतम 25-30 प्रतिशत में आते हैं तथा शहरी क्षेत्र में निम्नतम 15 से 20 प्रतिशत में आते हैं।
- समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह ₹ 972 तथा शहरी क्षेत्र में ₹ 1407 को निर्धनता रेखा माना गया। ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन ₹ 32.4 व शहरी क्षेत्र में ₹ 46.9 को निर्धनता रेखा माना गया। पांच सदस्य वाले परिवार के लिये ग्रामीण क्षेत्र में ₹ 4860 तथा शहरी क्षेत्र में ₹ 7035 को निर्धनता रेखा माना गया।
- समिति के अनुसार अपनाई गई विधि से 2009-10 में निर्धनता 38.2 प्रतिशत थी तथा वर्ष 2011-12 में 29.5 प्रतिशत थी। अर्थात् इस अवधि में निर्धनता में कमी 8.7 प्रतिशत हुई। तेन्दुलकर अनुमानों के अनुसार देश में 2009-10 में निर्धनता 29.8 प्रतिशत थी जो 2011-12 में 21.9 प्रतिशत रह गई।
प्रश्न 3.
भारत में व्याप्त निर्धनता के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में व्याप्त निर्धनता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
- सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक असमानता :
भारत में निर्धनता का एक प्रमुख कारण यहाँ के समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक असमानता है। - सामाजिक बहिष्कार :
भारतीय समाज में जातिवाद एक गम्भीर समस्या है जिसके कारण अनेक वर्गों को सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया जाता है। ऐसे बहिष्कृत लोग आर्थिक विकास भी नहीं कर पाते हैं। - बेरोजगारी :
भारत में बेरोजगारी की गम्भीर समस्या है। यहाँ लोगों को रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है अतः उनकी आर्थिक दशा खराब रहती है। - ऋणग्रस्तता :
यहाँ के गरीब लोग साहूकारों एवं जमींदारों के चंगुल में फंसे हुए हैं और वे आजीवन ऋणग्रस्त ही बने रहते हैं। - धन के वितरण में असमानता :
भारत में धन, सम्पत्ति के वितरण में असमानता पाई जाती है जिससे गरीब लोग गरीब ही बने रहते हैं। - निम्न पूँजी निर्माण:
गरीबी एवं बेरोजगारी के कारण यहाँ पूँजी निर्माण की दर भी निम्न है जिससे देश में आर्थिक विकास को बल नहीं मिल रहा है। - आधारिक संरचनाओं का अभाव:
भारत में आधारिक संरचनाओं का विकास पर्याप्त रूप से नहीं हुआ है अतः यहाँ . लोग न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संघर्षरत हैं। - माँग का अभाव :
गरीबी एवं बेरोजगारी के कारण यहाँ माँग की कमी पायी जाती है जिससे औद्योगिक विकास की दर धीमी है। अत: निर्धनता कम नहीं हो पा रही है। - जनसंख्या का दबाव-विश्व में जनसंख्या के मामले में भारत का दूसरा स्थान है। यहाँ जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है उसी गति से संसाधनों में वृद्धि नहीं हो पा रही है। अतः यहाँ निर्धनता व्याप्त है।
- सामाजिक कल्याण व्यवस्था का अभाव :
भारत में सामाजिक कल्याण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है अत: यहाँ का समाज पिछड़ा हुआ है जो निर्धनता का एक प्रमुख कारण है। - अन्य कारण :
उपरोक्त कारणों के अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं; जैसे-तकनीकी विकास न होना, उत्पादकता का निम्न स्तर, अधिसंख्य जनसंख्या का कृषि पर निर्भर होना, शिक्षा का अभाव, समाज में व्याप्त कुरतियाँ एवं अन्धविश्वास आदि।
प्रश्न 4.
सरकार द्वारा निर्धनता उन्मूलन हेतु चलायी गयी योजनाओं का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
उत्तर:
सरकार द्वारा चलायी कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार हैं :
i. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) :
देश के सभी गांवों को पक्के सड़क मार्गों से जोड़ने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना वर्ष 2000 में प्रारम्भ हुई। इस योजना के अन्तर्गत 500 व उससे अधिक आबादी वाले सभी गांवों को पक्की सड़क से जोड़ना था। योजना का वित्तीयन डीजल के उपकर से प्राप्त आय से होता था।
ii. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यालय (Integrated Rural Development Programme-IRDP) :
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम वर्ष 1978 में लागू किया गया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनों को उत्पादक सम्पत्ति (सिंचाई के साधन, खेती के लिये बीज व उर्वरक, डेयरी व पशुपालन के लिये पशु, कुटीर उद्योग व हस्तशिल्प के लिये उपकरण) निर्धनों का उपलब्ध करायी गई। जिससे इस उत्पादक सम्पत्ति के प्रयोग से निर्धन की आय में वृद्धि हो सके। वर्ष 1999 में इस कार्यक्रम को स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार में शामिल कर दिया गया।
iii. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SJGSY):
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता निवारण के लिए सरकार ने अप्रैल 1999 में एक कार्यक्रम शुरू किया जिसे स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना के अन्तर्गत पहले से लागू हुई स्वरोजगार की सभी योजनाओं को शामिल किया गया है। जैसे
- समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम,
- स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि।
इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में छोटे-छोटे उद्यमों को स्थापित किया जायेगा, जिन्हें व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में आत्मनिर्भर समूहों के आधार पर गठित किया जायेगा। इन उद्यमों को स्थापित करने के लिए निम्न ब्याज दरों पर बैंक ऋण एवं आर्थिक सहायता दी जायेगी। योजना पर खर्च किया जाने वाला धन केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें 75 : 25 के अनुपात में बाँटेंगी। यह योजना जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों द्वारा पंचायत समिति के अनुरूप लागू की जायेगी। इसकी प्रगति का मूल्यांकन निर्धारित बैंकों द्वारा किया जायेगा।
iv. रोजगार आश्वासन योजना (Employment Assurance Scheme) :
रोजगार आश्वासन योजना का मुख्य उद्देश्य मजदूरी रोजगार के तीव्र अभाव की अवधि में अतिरिक्त मजदूरी रोजगार सृजन करना था, उन ग्रामीण निर्धन परिवारों के लिये जो गरीबी रेखा के नीचे थे। यह कार्यक्रम 2 अक्टूबर 1993 को देश के सूखा प्रवण, रेगिस्तान, जनजातीय व पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित 1772 पिछड़े खण्डों में लागू किया गया। बाद में इसका विस्तार देश के 5448 खण्डों तक कर दिया गया। केन्द्र व राज्यों के बीच इसकी लागत विभाजन अनुपात 75 : 25 रखा गया।
v. प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY) :
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना को वर्ष 2000-01 के बजट में 5000 करोड़ रुपये के आंवटन के साथ लागू किया गया। इस योजना का उद्देश्य स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास व ग्रामीण सड़कों का विकास तथा ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना था। वर्ष 2001-02 में इस योजना के अन्तर्गत 2500 करोड़ खर्च किये गए।
vi. वाल्मीकी अम्बेडकर आवास योजना (VAMBAY) :
वाल्मीकी अम्बेडकर आवास योजना शहरी स्लम क्षेत्रों में निर्धनों को आवास निर्माण व आवास उन्नयन प्रदान करने के लिये चलायी गई थी। केन्द्र द्वारा इस योजना को 50 प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करायी गयी थी। योजना में 2003 तक 211 करोड़ रुपये आवन्टित किये गए व 1.6 लाख आवास निर्माण किये गए।
vii. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना (National Rural employment Gurantee Scheme) :
सितम्बर 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम पास किया गया। यह योजना फरवरी 2006 से प्रारम्भ की गई। इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण परिवार जो मजदूरी रोजगार चाहता है, उसे एक में 100 दिन के अकुशल मजदूरी रोजगार की गारन्टी दी गयी। इस योजना को प्रारम्भ में देश के 200 जिलों से आरम्भ किया गया। सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना तथा राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना का इसमें विलय कर दिया गया। वर्ष 2009 में इसका नाम महात्मा गान्धी राष्ट्रीय ग्रामीण गारन्टी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया।
viii. राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना (National Food for Work Programme) :
भारत देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में “काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम इस भावना को लेकर प्रारम्भ किया गया कि रोजगार के सृजन को बढ़ाया जा सके। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिये खुला था जो अदक्ष शारीरिक श्रम कर मजदूरी रोजगार करना चाहते हैं। इसके अन्तर्गत जल संरक्षण, सूखा से सुरक्षा और भूमि विकास सम्बनधी कार्यक्रम सम्पन्न कराये जाते हैं। मजदूरी का भुगतान नगद राशि और अनाज के रूप में किया जाता है। यह कार्यक्रम वर्ष 2004 में प्रारम्भ किया गया था।
ix. स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) :
शहरी क्षेत्र में निर्धनता उन्मूलन के अधीन कार्यशील अनेक कार्यक्रमों का विलय कर 1997 में स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना प्रारम्भ की गयी। इस योजना के मुख्य दो भाग थे-शहरी क्षेत्र में मजदूरी रोजगार तथा शहरी क्षेत्र में स्वरोजगार कार्यक्रम। इस योजना का केन्द्र व राज्यों के बीच लागत बंटवारा 75 : 25 के अनुपात में रखा गया।
प्रश्न 5.
निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम का आलोचनात्मक मूल्यांकन-निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम अपनी सफलता की ओर शनै:-शनैः आगे बढ़ रहा है। इस प्रकार उसकी कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ निम्न प्रकार हैं :
- कार्यक्रम की सफलता के फलस्वरूप गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों के प्रतिशत में गिरावट आई है, जैसे-1973-74 के समय में निर्धनता प्रतिशत 55 था जो 2004-05 में घटकर 218% रह गया है।
- कार्यक्रम की सफलता के परिणामस्वरूप निर्धन वर्ग के आय स्तर में इजाफा हुआ जिससे उनका पोषण स्तर भी सुधार की ओर है।
निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम यद्यपि एक अच्छी भावना को लेकर आगे बढ़ रह थे फिर भी वांछित परिणामों में आशातीत वृद्धि नहीं हुई। इसकी विफलता के कुछ प्रमुख कारण निम्न हैं :
- उन्मूलन कार्यक्रम की रणनीति को समूची विकास रणनीति से नहीं जोड़ा गया। इस कार्यक्रम ने निर्धनता के मूल कारण अर्थात् समूची अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली में सुधार लाने का प्रयास नहीं किया।
- यह भी नहीं सोचा गया कि क्या कोई भी निर्धन व्यक्ति इस कार्यक्रम को समझ कर इसका लाभ उठा पायेगा क्योंकि अधिकांशत: निर्धन व्यक्तियों में कौशल और पहल शक्ति का अभाव होता है।
- कार्यक्रम की कार्यविधि जटिल होने से प्रशासन तथा कार्यान्वित करने वाले कर्मचारी आदि अपना कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर पाये तथा इन लोगों का इस कार्यक्रम की प्रगति से भी कोई लेना-देना नहीं था।
- इन कार्यक्रमों को सरकार का समर्थन तो प्राप्त था किन्तु आम जनता इसे समर्थन नहीं दे रही थी।
- कार्यक्रम सम्पन्न कराने वाले अधिकारी भी निर्धन व्यक्तियों की अपेक्षा धनी, शिक्षित तथा साधन-सम्पन्न व्यक्ति का ही समर्थन एवं सहयोग करते हैं।
- गाँव के स्थानीय तथा समृद्धिशाली व्यक्तियों ने कार्यक्रम अधिकारियों के साथ मिलकर वितरण प्रणाली को स्वहितार्थ अपने पक्ष में कर लिया। फलस्वरूप निर्धन वर्ग इन कार्यक्रमों के लाभों से वंचित ही रहा।
- दूरस्थ क्षेत्रों के निर्धन तथा गाँवों के भीतरी हिस्सों में रहने वाले ग्रामीण इस उन्मूलन कार्यक्रमों के लाभों से वंचित रह जाते थे क्योंकि इन लोगों का वहाँ तक पहुँचना कठिन होता था।
- कुछ लोग निर्धन शब्द की परिभाषा समझने में असमर्थ थे। फलत: वे निर्धनों को मिलने वाले सुविधाओं से वंचित रह जाते थे, जबकि गैर-निर्धन व्यक्ति इन कार्यक्रमों का भरपूर लाभ उठा लेते थे।
- साख-विपणन आदि सुविधाएँ प्रदान करने वाली संस्थाओं से गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को संतोषजनक सहयोग नहीं मिल रहा था।
निष्कर्षतः सरकार द्वारा निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम पर अच्छा खासा व्यय किया गया। किन्तु उसी अनुपात पर इसके अच्छे परिणाम देखने को नहीं मिले। इस सम्बन्ध में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी द्वारा स्पष्ट किया गया था कि गरीबों को उपलब्ध कराई जाने वाली सहायता का केवल 15% ही इन तक पहुँच पाता था बाकी सभी बिचौलिये खा जाते थे अत: निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम को और अधिक शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है।
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