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RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 4 गाँधीजी

July 12, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 4 गाँधीजी

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गुजराती में ‘शु’ का अर्थ होता है –
(क) कौन
(ख) कब
(ग) क्यों
(घ) किसे?
(च) क्या प्रश्न
उत्तर:
(च) क्या प्रश्न

प्रश्न 2.
माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘मस्तक-भंजन’ किसे कहा है –
(क) लाठी।
(ख) हॉकी स्टिक
(ग) क्रिकेट बॉल
(घ) हथौड़ा
(च) पत्थर
उत्तर:
(क) लाठी।

प्रश्न 3.
विलायती संवाददाता के प्रश्न का गाँधीजी ने क्या जवाब दिया ?
उत्तर:
विलायती संवाददाता ने जब गाँधीजी से पूछा, ‘क्या आप में हास्य प्रवृत्ति भी हैं?’ उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया कि यदि मुझमें हास्य की प्रवृत्ति न होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता।

प्रश्न 4.
बापू की स्वाभाविक कोमलता के साथ-साथ कौन-सी वृत्ति काम करती थी?
उत्तर:
बापू की स्वाभाविक कोमलता के साथ-साथ कठोर नियंत्रण वृत्ति भी काम करती थी।

प्रश्न 5.
लेखक को गाँधीजी के समक्ष लज्जित क्यों होना पड़ा?
उत्तर:
एक बार गाँधीजी ने लेखक को सात और सवा सात के बीच का टाइम बातचीत के लिए दिया। लेखक उन दिनों नए-नए ही आश्रम में गए थे। मन में सोचा कि बापू कहीं जाते तो हैं नहीं दो-चार मिनट की देर भी हो जाए तो क्या ? जब वह सात बजकर दस-बारह मिनट पर पहुँचा तो बापू मुस्कराकर बोले-“तुम्हारा टाइम तो बीत गया। अब भाग जाओ। फिर कभी वक्त तय करके आना।” इस तरह लेखक को समय की पाबन्दी न होने के कारण लज्जित होना पड़ा।

प्रश्न 6.
गाँधीजी के संस्मरणों के आधार पर बतलाइए कि जीवन में हास्य की प्रवृत्ति का क्या महत्व है?
उत्तर:
‘गाँधीजी’ नामक संस्मरण में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के महान् जीवनादर्शों के साथ-साथ हास-परिहास एवं व्यंग्य-विनोद के कुछ विशिष्ट प्रसंग हैं, इनसे युवाशक्ति को आत्मानुशासन की प्रेरणा मिलती हैं। उन्हें यह भी जानकारी मिलती है कि जीवन में कितनी ही व्यस्तता एवं गुरुतर जिम्मेदारियाँ क्यों न हों, उनके बीच भी अनुशासन, मूल्यरक्षा तथा हास्य-विनोद के लिए स्थान रखा जा सकता है। महात्मा गाँधी इतने व्यस्त होने के बावजूद हास्य-विनोद को बराबर महत्व देते थे, तो हमें भी इस प्रवृत्ति के समुचित उपयोग के साथ जीवन को सरस बनाए रखना चाहिए।

प्रश्न 7.
समय की नियमितता के संबंध में गाँधीजी का क्या दृष्टिकोण था? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
गाँधीजी समय के पाबन्द थे। जब लेखक नियत समय पर नहीं पहुँचा तो उन्होंने बातचीत का अवसर नहीं दिया, स्वयं लेखक को लज्जित होना पड़ा। इसी तरह राजा साहब को लाने में मात्र एक मिनट की देरी हो गई तो लेखक से वे बोल पड़े कि मैं तो मिनट भर से आपका इन्तजार कर रहा हूँ। इस प्रकार की घटनाएँ उनके समय की महत्ता समझने वाले व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती हैं।

प्रश्न 8.
“विनोद के समय भी गाँधीजी अपनी जागरूकता एवं हाजिर-जवाबी में पारंगत थे?” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महात्मा गाँधी के मजाक, हाजिर-जवाबी और जागरूकता के अनेक किस्से हैं। मुनिश्री जिन विजय ने बापू का एक किस्सा सुनाया। बापू पहले मोटर से बाहर निकले, परन्तु थोड़ी दूर चलकर कोने में अपनी मोटर खड़ी कर ली। इसके दो मिनट बाद ही पंडित मोतीलाल जी नेहरू और मुनि जी की मोटर निकली। मोतीलाल जी ने मुनि से कहा, “देखा आपने? महात्माजी ने मेरे ख्याल से अपनी मोटर रोक रखी है। चलकर उनसे कारण पूछे।” पंडितजी ने जब पूछा तो महात्माजी बोले, “मैं यह नहीं चाहता था कि आपको धूल फाँकनी पड़े। मैं तो आपको ज्यादा दिन जिन्दा देखना चाहता हूँ।” इस प्रकार बापू ने अपनी हाजिर-जवाबी से सभी को चकित कर दिया।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित विषयों पर गाँधीजी की दृष्टि से टिप्पणियाँ लिखिए :

  1. छुआ-छूत
  2. चाय-कॉफी
  3. स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग
  4. अस्त्र-शस्त्र

उत्तर:

  1. छुआ-छूत – गाँधीजी छूआ-छूत को अनुचित मानते थे। जब उनकी गोद ली हुई लड़की को रसोई सिखाने से आश्रम की सभी महिलाओं ने इनकार कर दिया, तो अपने भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को हुक्म दिया कि आप मायके चली : जाएँ। मुझे ऐसी बहू नहीं चाहिए जो मेरी लड़की को चौके के अन्दर घुसने न दे। वे इस हेतु लम्बी लड़ाई के लिए संकल्प ले चुके थे।
  2. चाय-कॉफी – गाँधीजी स्वयं चाय-कॉफी नहीं पीते, परन्तु मेहमानों के लिए प्रबंध अवश्य कर देते थे। बातों-बातों में इसके दुष्प्रभाव का संकेत भी कर देते। मिस आगेथा हैरिसन को कहा, “आप फिक्र न कीजिए। मैंने आपके लिए आधा – पौंड जहर रख लिया है।”
  3. स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग – गाँधीजी विदेश में बनी कितनी ही आकर्षक वस्तु क्यों न हो, उपयोग नहीं करना चाहते थे। जब डच-गायना वाले प्रवासी उनके घर आए तो हाथ से बने हुए कागज, नेजे की कलम और घर की स्याही से संदेश लिखा। स्वदेशी की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी थी, उसका यह प्रमाण है।
  4. अस्त्र-शस्त्र – गाँधीजी अहिंसा को सबसे प्रभावी अस्त्र-शस्त्र मानते थे। वे स्थायी शत्रुता की अपेक्षा हृदय-परिवर्तन पर जोर देते थे। हिंसा वे किसी भी स्थिति में सहन नहीं कर सकते थे। उनका जीवन-संघर्ष इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अहिंसा के अमोघ अस्त्र से लड़ा।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 4 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गाँधीजी के लिए हँसनो-हँसाना क्यों आवश्यक था?
उत्तर:
महात्मा गाँधी अत्यन्त परिश्रमी व्यक्ति थे। कभी-कभी तो वे रात के ढाई बजे उठ बैठते और दिन में घंटे-आधे घंटे का विश्राम करके रात के दस बजे तब काम करते रहते। उनके सिर पर काम का इतना बोझ निरंतर बना रहता था और समस्त देश की चिंता उन्हें इतना व्यस्त रखती थी कि उनके लिए हँसना-हँसाना अत्यन्त आवश्यक हो गया था।

प्रश्न 2.
“तब मुझे अभी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।” बापू ने यह कथन किस संदर्भ में कहा?
उत्तर:
एक बार महात्मा जी ने आश्रम की सभी महिलाओं की मीटिंग अपने कमरे में की। बातचीत का विषय था – उनकी गोद ली गई अछूत कन्या को अपने चौके में बैठ कर रसोई बनाना कौन सिखाएगा। डेढ़ घंटे तक गंभीर वार्तालाप होता रहा। एकत्र स्त्रियों में से कोई भी इस पुण्य काम के लिए तैयार नहीं हुई। सबने एक स्वर में ‘ना’ कर दिया। गंभीर वातावरण के दृश्य में गाँधीजी ने कहा, अर्थात् अछूतोद्धार का संकल्प इतनी आसानी से पूरा नहीं होगा।

प्रश्न 3.
“आप अपने मायके चली जाएँ …….।” उक्त वाक्य किसने, किसको और क्यों कहे?
उत्तर:
उक्त वाक्य बापू ने अपने भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को कहे। कारण यह था कि अछूत बालिका को चौके के भीतर न घुसने देने का तुच्छ विचार गाँधीजी को अच्छा नहीं लगा। उनके अच्छे विचारों का यदि अपने घर में ही सम्मान न हो तो समाज को वे क्या संदेश देते ? अत: उन्होंने कहा, “आप अपने मायके चली जाएँ, पर बच्चों को यहीं छोड़ती जाएँ। मुझे ऐसी बहू नहीं चाहिए। जो मेरी लड़की को चौके के भीतर न घुसने दे।”

प्रश्न 4.
“आप फिक्र ना कीजिए। मैंने आपके लिए आधा-पौंड जहर रख लिया है।” कथन की विशिष्टता बताइए।
उत्तर:
प्रस्तुत कथन में हास्य-विनोद के साथ संदेश भी है। वस्तुत: बापू चाय को स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक समझते थे, पर जिन्हें पाय पीने की आदत पड़ गई थी, उनके लिए वे चाय का समुचित प्रबंध अवश्य कर देते थे। एक बार मिस आगेथा हैरिसन नामक एक अंग्रेज महिला उनके साथ यात्रा पर आ रही थी और उन्हें इस बात की चिंता थी कि उनकी प्रात:कालीन चाय का इन्तजाम कैसे हो सकेगा। महात्मा जी को जब यह पता लगा तो वे बोले-“आप फिक्र न कीजिए। मैंने आपके लिए आधा-पौंड जहर रख लिया है।”

प्रश्न 5.
हॉकी-स्टिक का नाम ‘मस्तक-भंजन’ किसने रखा था? गाँधीजी ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर:
जब लेखक के हाथ में बापू ने हॉकी-स्टिक देखी तो उन्होंने हँसते हुए कहा, “ये लाठी आपने बड़ी मजबूत बाँधी है।” तब लेखक ने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी ने इसका नाम ‘मस्तक-भंजन’ रख दिया है। बापू ने कहा, “हाँ और सत्याग्रह आश्रम में ‘मस्तक-भंजन’ रखनी ही चाहिए। हास्य-विनोद गाँधीजी के जीवन का हिस्सा था, यह इस घटना से संकेतित होता है।

प्रश्न 6.
‘खूब आराम से चाय पीना।’ बापू ने लेखक को ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
गाँधीजी चाय को हानिकारक मानते थे। उन्हें यह पता चल गया था कि लेखक चाय पीने लग गए हैं। जब कलकत्ता से चलकर लेखक वर्धा में उनकी सेवा में उपस्थित हुआ तब बातचीत समाप्त होने पर चलते वक्त बापू ने कहा- “खूब आराम से चाय पीना।” जब लेखक ने उनसे पूछा कि आपको कैसे पता लगा तो उन्होंने बताया कि काकासाहब ने उन्हें बतला दिया है कि तुम कलकत्ते में चाय पीने लग गए हो। वस्तुत: बापू हास्य-विनोद के साथ अच्छा संदेश भी दे देते थे।

प्रश्न 7.
लेखक के पास फाउन्टेन पेन देखकर गाँधीजी ने किस तरह प्रतिक्रिया दी? इसमें क्या भाव निहित था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक के पास फाउन्टेन पेन देखकर बापू को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा, “दक्षिण अफ्रीका में मेरे पास फाउन्टेन पेन । था, परन्तु अब तो कलम से लिखता हूँ। ड्च-गायना वाले भी क्या कहेंगे कि इनके पास घर की कलम भी नहीं । तुरन्त चोकू और कलम मंगवाई गई। संदेश स्वदेशी कागज पर लिखा। स्याही भी घर की बनी हुई थी। इस घटना से गाँधीजी का स्वदेशी वस्तुओं के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट होता है।

प्रश्न 8.
“बापू, मेरी वोट बढ़ रही है।” कथन पर बापू ने क्या टिप्पणी दी?
उत्तर:
जब श्री पद्मजा नायडू के लिए ‘कॉफी’ का सब सामान लाया गया तो लेखक ने कहा कि बापू, मेरी वोट बढ़ रही है। आशय यह था कि महादेव भाई चाय पीते हैं, बा कॉफी पीती हैं और पद्मजा जी भी कॉफी पीती हैं और लेखक स्वयं चाय पीता है। अर्थात् लेखक के पक्ष में संख्या बढ़ रही थी तो बापू ने कहा, “बुरी चीजों के प्रचार के लिए वोट की जरूरत थोड़े ही पड़ती है, वे तो अपने आप फैलती हैं।”

प्रश्न 9.
विद्यापीठ के प्रिंसीपल ने बापू से क्या कहा? बापू ने किस प्रकार हाजिर-जवाबी का परिचय दिया?
उत्तर:
एक बारे विद्यापीठ के प्रिंसीपल कृपलानी जी बोले, “जब तक हम लोग आपसे दूर रहते हैं, हमारी अक्ल ठीक रहती है, परन्तु आपके पास आते ही खराब हो जाती है।” तब बापू ने हाजिर-जवाबी का परिचय देते हुए कहा, “तब तो मैं आपकी खराब अक्ल का जिम्मेदार रहा।” इस प्रकार बापू ने अपनी हाजिर-जबाबी से कृपलानी जी को निरुत्तर कर दिया।

प्रश्न 10.
मुनिश्री जिनविजय ने बापू का कौन-सा किस्सा सुनाया?
उत्तर:
मुनश्री जिनविजय ने बापू का एक किस्सा सुनाया कि एक बार बापू पहले मोटर से निकले, परन्तु थोड़ी दूर चलकर कोने में अपनी मोटर खड़ी कर ली। इसके दो मिनट बाद ही पं. मोतीलाल जी नेहरू और मुनि जी की मोटर निकली। मोतीलाल जी ने मुनि से कहा-“देखा आपने? महात्मा जी ने मेरे ख्याल से अपनी मोटर रोक रखी है चलकर उनसे कारण पूछे।” पण्डितजी ने जब पूछा तो महात्मा जी बोले-“मैं यह नहीं चाहता था कि आपको धूल फाँकनी पड़े। मैं तो आपको ज्यादा दिन जिन्दा देखना चाहता हूँ।” इस प्रकार हाजिर-जवाबी का एक और उदाहरण था।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 4 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘गाँधीजी’ संस्मरण के आधार पर गाँधीजी के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
प्रस्तुत संस्मरण में बनारसीदास चतुर्वेदी ने गाँधीजी के किन पहलुओं को उजागर किया है? लिखिए।
उत्तर:
‘गाँधीजी’ संस्मरण में बनारसीदास चतुर्वेदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के महान् जीवनादर्शों के साथ हास्य-व्यंग्य के विशिष्ट प्रसंग भी उजागर हुए हैं, जिनमें संदेश छिपे हुए हैं। कतिपय विशेषताएँ निम्नलिखित बिन्दुओं में इस प्रकार हैं –

  1. हास्य-विनोदी – प्रस्तुत संस्मरण में तीन-चार ऐसे प्रसंग हैं, जहाँ गाँधीजी हास्य-विनोदी के रूप में चित्रित हैं। इसकी महत्ता को वे स्वयं स्वीकार करते हैं। जब विलायती संवाददाता को वे कहते हैं, “यदि मुझमें हास्य की प्रवृत्ति न होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता। चाय को जहर समान बताना, मस्तक-भंजन को आश्रम में रखना, मुनि जिनविजय का किस्सा आदि उनके हास्य-विनोद प्रिय व्यक्तित्व को प्रकट करते हैं।
  2. अछूतोद्धार हेतु प्रयासरत – अस्पृश्यता निवारण हेतु गाँधीजी का गंभीर प्रयास प्रकट हुआ है। जब उन्होंने आश्रम की महिलाओं से पूछा कि उनके द्वारा गोद ली गई अछूत कन्या को रसोई के चौके में रसोई बनाना कौन सिखाएगा? जब सभी ने ‘ना’ स्वर में उत्तर दिया तो बापू ने कहा, “तब मुझे अभी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।” यह उनका गंभीर कथन था।
  3. दृढ़-निश्चयी – अपने संकल्प के प्रति सजगता उस समय व्यक्त होती है जब वे अपने भतीजे की पत्नी को मायके चले जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उसने भी अछूत कन्या को रसोई में ले जाने से मना किया था। वे अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चयी थे। अपने संकल्प की पूर्ति हेतु कठोर निर्णय लेने से वे नहीं चूकते थे।
  4. समय के पाबंद – लेखक के साथ दो बार ऐसी घटनाएँ घट, जहाँ मात्र एक मिनट अथवा दो-चार मिनट की देरी के लिए लज्जित होना पड़ा। वे समय की महत्ता को समझते थे। उनका यह कथन विचारणीय है-“मैं तो मिनट भर से आपका इंतजार कर रहा
  5. स्वदेशी की भावना – डच-गायना प्रवासियों को हाथ से बने कागज पर संदेश लिखना, नेजे की कलम का उपयोग करना, घर पर बनी स्याही काम में लेना आदि उनके स्वदेशी वस्तुओं के प्रति दृष्टिकोण को व्यक्त करते हैं। लेखक का फाउन्टेन पेन प्रयोग करना भी उन्हें अच्छा नहीं लगा।
  6. कठोर परिश्रमी – दिन भर मेहनत करना, रात ढाई बजे उठ जाना, देर रात तक काम करना और बीच में 15-20 मिनट का विश्राम भी न कर पाना इसका प्रमाण है कि वे कठोर परिश्रमी थे।
  7. प्रत्युत्पन्नमति – हाजिर-जवाबी में उनका कोई सानी नहीं था। कुलपति कृपलानी जी, स्वयं लेखक, पं. मोतीलाल नेहरू को जिस प्रकार मजाक करते हुए तत्काल जवाब दिया, यह उनकी प्रत्युत्पन्नमति क्षमता को उजागर करता है। इस प्रकार प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने बापू के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। इससे उनके महान् व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति मिली है।

प्रश्न 2.
निम्न पंक्तियों का निहितार्थ स्पष्ट कीजिए
1. “तब मुझे अभी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।’
2. ‘मैं तो मिनट भर से आपका इन्तजार कर रहा हूँ।’
3. “मेरा संदेश स्वदेशी कागज पर लिखो।’
उत्तर:

  1. उक्त कथन अछूतोद्धार के प्रति उनके संकल्प को व्यक्त करता है। उनके आश्रम की महिलाओं ने ही जब अछूत कन्या को रसोई में ले जाने से मना कर दिया, तब बापू को लगा कि अस्पृश्यता का कलंक हमारे समाज से बिना लम्बी लड़ाई लड़े दूर नहीं किया जा सकता।
  2. ‘मिनट भर का इन्तजार’ यद्यपि चकित करने वाला वाक्य है, पर एक-एक मिनट का जीवन में महत्व है। गाँधीजी इससे अच्छी तरह परिचित थे। अत: लेखक को जब यह कहा तो उनका आशय समय के महत्व को उजागर करना था।
  3. डच-गायना वाले प्रवासी को अपना संदेश स्वदेशी कागज पर लिखने का उद्देश्य अपनी सादगी के साथ स्वदेशी की भावना को व्यक्त करना था। इससे बापू संदेश देना चाहते थे कि अनावश्यक रूप से विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता उचित नहीं है।

प्रश्न 3.
चाय को हानिकारक बताने वाली दोनों घटनाओं का उल्लेख कीजिए, जो इस संस्मरण में प्रस्तुत की गई हैं।
उत्तर:
बापू चाय को स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक समझते थे पर जिन्हें चाय पीने की आदत पड़ गई थी, उनके लिए वे चाय का समुचित प्रबन्ध अवश्य कर देते थे। एक बार मिस आगेथा हैरिसन नामक एक अंग्रेज महिला उनके साथ यात्रा पर आ रही थी। और उन्हें इस बात की चिंता थी कि उनकी प्रात:कालीन चाय का इन्तजाम कैसे हो सकेगा। महात्मा जी को जब यह पता लगा तो वे बोले- “आप फिक्र न कीजिए। मैंने आपके लिए आधा-पौंड जहर रख लिया है।” एक बार मेरे साथ भी बापू ने चाय के बारे में कई मजाक किए। कलकत्ते से चलकर वर्धा उनकी सेवा में उपस्थित हुआ था। रात के साढ़े आठ से नौ बजे तक का टाइम मुझे दिया था। ठीक वक्त पर पहुँचा। आधे घंटे बातचीत होती रही। चलते वक्त बापू ने कहा खूब आराम से चाय पीना।” मैंने कहा-“बापू क्या आपको मेरे चाय पीने का पता लग गया है? उन्होंने कहा-“हाँ, काका साहब ने मुझे बतला दिया है कि तुम कलकत्ते में चाय पीने लग गए हो।”

मुझे भी उस उक्त मजाक सूझा। मैंने कहा “बापू, आप मि. एंडूज को छोटा भाई मानते हैं?”
उन्होंने कहा – “हाँ।”
“और वे आपको बड़ा भाई मानते हैं।”
बापू ने कहा-“हाँ।”
मैने तुरंत की कहा- “तो मैं बड़े भाई की बात न मानकर छोटे भाई की बात मानता हूँ।”
बापू हँसकर बोले- “तब तो मैं एन्ड्रज को लिख दूंगा कि तुमको अच्छा शिष्य मिल गया है।”

गाँधीजी पाठ-सारांश

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के महान् जीवनादर्शों के साथ-साथ हास-परिहास एवं व्यंग्य-विनोद के विशिष्ट प्रसंगों का समावेश प्रस्तुत संस्मरण में किया गया है।

पाठ का सारांश

इस प्रकार है हास्य-विनोद प्रवृत्ति-महात्मा गाँधी अत्यंत परिश्रमी व्यक्ति थे। काम के बोझ और चिंता से घिरे रहने के कारण हँसना-हँसाना आवश्यक था। हँसी के सम्बन्ध में एक बार विलायती संवाददाता के पूछने पर उन्होंने जवाब दिया कि यदि मुझमें हास्य की प्रवृत्ति न होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता॥

अछूतोद्धार का दृढ़ संकल्प-एक बार महात्माजी ने आश्रम की सभी महिलाओं की मीटिंग ली। विषय था – उनकी गोद ली गई अछूत कन्या को अपने चौके में रसोई बनाना कौन सिखाएगा। डेढ़ घंटे तक गंभीर वार्तालाप के पश्चात् भी जब कोई स्त्री इसे काम के लिए तैयार नहीं हुई तो उन्होंने कहा, “तब मुझे अभी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।”

कठोर नियंत्रण वृत्ति-बापू की स्वाभाविक कोमल वृत्ति के साथ संकल्प पर दृढ़ता के कारण कठोर नियंत्रण भी था। अपने भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को उन्होंने हुक्म दिया,“आप अपने मायके चली जाएँ, पर बच्चों को यहीं छोड़ती जाएँ। मुझे ऐसी बहू नहीं चाहिए जो मेरी लड़की को चौके के भीतर न घुसने दें।” इन्हीं आदर्शो से वे सामाजिक परिवर्तन करने में सफल रहे।

समय के पाबंद-एक बार महात्माजी ने मुझे सवेरे सात और सवा सात के बीच का टाइम बातचीत के लिए दिया। मैं दो-चार मिनट देरी से पहुँचा तो मुस्कराकर बोले, “तुम्हारा टाइम तो बीत गया। अब भाग जाओ। फिर कभी वक्त तय करके आना।” मैं बहुत लज्जित हुआ। बापू ने एक बार एक राजा को शाम तीन बजे का समय दिया था। उन्हें अहमदाबाद से आना था। एक मिनट देरी पर पहुँचने पर बापू ने कहा, “ मैं तो मिनट भर से आपका इंतजार कर रहा हूँ।” यह समय की कीमत पहचानने का संदेश था।

चाय को हानिकारक मानना-यद्यपि बापू चाय को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते थे, पर घर आए मेहमान के लिए प्रबंध -। कर देते थे। एक बार मिस आगेथा हैरिसन की प्रात:कालीन चाय के संदर्भ में उन्होंने कहा, “आप फिक्र न कीजिए। मैंने आपके लिए आधा-पौंड जहर रख लिया है।” कलकत्ते में मेरी चाय पीने की आदत के बारे में भी बापू को पता चल गया था।

कठोर परिश्रमी-दिनभर मेहनत करने के बाद भी गाँधीजी तरोताजा एवं चुस्त रहते थे। लेखक को एक बार उन्होंने कहा,“ रात् को ढाई बजे से उठा हुआ हूँ और अब नौ बज रहे हैं, दिन में बस बीस मिनट आराम मिला है।” अठारह घंटे के बाद भी बापू की सजीवता उनके कठोर परिश्रमी व्यक्तित्व का प्रमाण थी।

स्वदेशी को महत्व देना-लेखक के पास फाउन्टेन पेन देखकर बापू ने कहा, “दक्षिण अफ्रीका में मेरे पास फाउन्टेन पेन था परन्तु अब कलम से लिखता हूँ ……………………….।” बढ़िया कागज देखने पर उन्होंने कहा, “यह बढ़िया कागज हम लोगों को कहाँ से मिल सकता है? यह तो तुम्हारे ऑफिस वालों को ही मिलता है, जहाँ चाय भी मिलती है। हम तो कोरा पानी पीने वाले गरीब आदमी ठहरे।” बापू का कथन स्वदेशी की भावना जाग्रत करने वाला था। उन्होंने फिर कहा, “मेरा संदेश स्वदेशी कागज पर लिखो।” लेखक लज्जित हो गया॥

हाजिर-जवाबी-बापू अपने लोगों से मजाक-मजाक में संदेश दे देते थे। मैंने कहा कि ‘महादेव भाई चाय पीते हैं, बा कॉफी पीती है और पद्मजा भी कॉफी पीती है और मैं चाय।’ हमारे वोट बढ़ गए हैं। बापू ने तुरंत उत्तर दिया, ‘ बुरी चीजों के प्रचार के लिए वोट की जरूरत नहीं पड़ती वे तो अपने आप फैलती हैं।’ कृपलानी जी को भी हाजिर जवाबी से उत्तर दिया, “तब तो मैं आपकी खराब अक्ल का जिम्मेदार ठहरा।” ऐसे कई प्रसंग हैं जो उनकी विनोद-प्रियता को उजागर करने वाले हैं।

कठिन शब्दार्थ

विलायती = विदेशी। आत्मघात = आत्महत्या, स्वयं को नुकसान पहुँचाना। वार्तालाप = बातचीत। निगाह = नजर डालना॥ दिल्लगी = मजाक। बाल काढ़ना = केश सँवारना॥
(पृष्ठ 26)

शु = क्या (गुजराती शब्द)। हुक्म = आदेश। सुपुर्द = सौंपना। अछूत = जिसे नहीं छुआ जाए। धृष्टता = दुस्साहस। मस्तक-भंजन = सिर फोड़ना। पौंड = वजन नापने की इकाई॥ (पृष्ठ 27)

काहिली = आलसीपन। नेजे = वनस्पति से बनी देशी कलम। अधीनस्थ = किसी के अधीन कार्य करने वाला। स्वाधीनता = आजादी। हिमाकत = अविवेकपूर्ण मूर्खता। (पृष्ठ 28)

धूल फाँकना = व्यर्थ घूमना। हाजिर-जवाबी = तुरंत उत्तर देने की क्षमता। पावन स्मृति = पवित्र यादें। सहस्रों = हजारों। (पृष्ठ 29)

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