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RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 7 मुक्तियोद्धाओं के शिविर में

July 12, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 7 मुक्तियोद्धाओं के शिविर में

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
फौजी सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन कौन कर रहा था?
(क) डॉ. टुन्नूमिया
(ख) ले. करीम
(ग) ले. अल्लामिया
(घ) कैप्टन मोहम्मद मिया
उत्तर:
(क) डॉ. टुन्नूमिया

प्रश्न 2.
लेखक ने जो दूसरी कविता सुनाई, वह किसके द्वारा रचित थी?
(क) सिकंदर अबू जफर
(ख) नसीमुन आरा
(ग) तसलीमा
(घ) हैदर अली
उत्तर:
(ख) नसीमुन आरा

प्रश्न 3.
सिकंदर और नसीमुन क्या थे?
(क) शिक्षक
(ख) विद्यार्थी
(ग) व्यापारी
(घ) मजदूर
उत्तर:
(ख) विद्यार्थी

प्रश्न 4.
बांग्लादेश के मुक्तिफौज के स्थानीय अधिकारी कैप्टन का क्या नाम था?
उत्तर:
बांग्लादेश के मुक्तिफौज के स्थानीय अधिकारी कैट का नाम रशीद था।

प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार कैप्टन के चेहरे पर स्पष्टतः क्या अंकित था?
उत्तर:
लेखक के अनुसार कैप्टन के चेहरे पर उत्तरदायित्व का बोध और संघर्ष का संकल्प स्पष्टत: अंकित था।

प्रश्न 6.
पूर्वी बंगाल के लोगों में नई चेतना का उदय किस कारण हुआ? समझाइए।
उत्तर:
लेखक के अनुसार पाकिस्तानियों ने तेइस सालों तक लगातार पूर्वी बंगाल का शोषण किया और बाँग्लादेशियों को गुलाम बनाकर रखा। इसके विरुद्ध बांग्लादेश की जनता ने संघर्ष आरंभ किया। मुक्ति की इस लड़ाई में पाकिस्तानियों ने बहुत बड़ा विश्वासघात किया तथा पशुता का परिचय दिया। अब इस मुक्ति युद्ध से तथा खासकर शेख मुजीबुर्रहमान के आन्दोलन के कारण पूर्वी बंगाल के लोगों में नई चेतना का उदय हुआ।

प्रश्न 7.
कैप्टन किस साधना में लगे थे?
उत्तर:
कैप्टन रशीद बांग्लादेश की मुक्ति फौज के स्थानीय अधिकारी थे। पाकिस्तानी सैनिक आधुनिक शस्त्रास्त्रों (अस्त्र-शस्त्रों) से सुसज्जित थे। उनकी सैन्यशक्ति के आगे कैप्टन के टुकड़ी टिक नहीं सकी, किन्तु उन्होंने दुश्मन को भारी क्षति पहुँचाई। कैप्टन अपनी कर्मठता और योग्यता के दृा अत्यन्त प्रतिकूः परिस्थितियों में भी अपनी टुकड़ी को आवश्यकतानुसार नए सिरे से पुनर्गठित करने की साधना में लगे थे।

प्रश्न 8.
पुराने जवानों को किस युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था?
उत्तर:
पुराने जवान वे थे जो पहले लड़ाई में भाग ले चुके थे। उनकी संख्या लगभग 250 थी। उन पुराने जवानों को विशेष रूप से गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था। गुरिल्ला युद्ध ऐसा युद्ध होता है जिसमें सैनिक टुकड़ियाँ मौका पाकर और घात लगाकर शत्रुओं पर हमला करती हैं।

प्रश्न 9.
बांग्लादेशी किस देश से तथा क्यों युद्ध कर रहे थे? बताइए।
उत्तर:
बांग्लादेशी पाकिस्तान के साथ युद्ध कर रहे थे। पाकिस्तानी तेइस वर्षों से बांग्लादेशियों को शोषण कर रहे थे। पाकिस्तानी उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करते थे। बांग्लादेशी उनके शोषण और अत्याचारों से तंग आकर उनसे मुक्ति के लिए युद्ध कर रहे थे।

प्रश्न 10.
कलकत्ता से बांग्लादेश के शिविर में जवानों से मिलने के लिए कौन-कौन रवाना हुए?
उत्तर:
कलकत्ता से बांग्लादेश के शिविर में जवानों से मिलने के लिए लेखक, कलकत्ता विश्वविद्यालय बांग्लादेश सहायक समिति के मंत्री प्रो. दिलीप चक्रवर्ती, विश्वभारती के तीन प्राध्यापक, दो अध्यापिकाएँ, दो समाज सेविकाएँ तथा बांग्लादेश मिशन के एक विशिष्ट पदाधिकारी मिलने के लिए रवाना हुए।

प्रश्न 11.
कैप्टन ने राजनीतिक चर्चा बंद करते हुए क्या कहा?
उत्तर:
कैप्टन को राजनीति में किसी प्रकार की अभिरुचि नहीं थी। उन्होंने राजनीतिक चर्चा बंद करते हुए कहा कि वह एक सिपाही हैं। वे केवल इतना ही जानते हैं कि पाकिस्तानियों ने तेइस वर्षों तक बांग्लादेश का शोषण किया है और यहाँ के लोगों को गुलाम बनाकर रखा है। वे इस देश पर कब्जा बनाए रखने के लिए नीचता की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। बांग्लादेशी जीतने तक युद्ध करते रहेंगे।

प्रश्न 12.
शिविरार्थियों द्वारा लेखक से क्या अनुरोध किया गया और लेखक ने उसे कैसे पूर्ण किया?
उत्तर:
शिविरार्थियों द्वारा लेखक से यह अनुरोध किया गया कि वह बांग्लादेश की नई संग्रामी कविताएँ सुनाए। लेखक ने उनके अनुरोध को सहर्ष स्वीकार किया। लेखक ने बड़ी तन्मयता (तल्लीनता) से कविताएँ सुनाईं। सबसे पहले उसने सिकंदर अबू जफर की ‘आमादेर संग्राम चलवेइ’ कविता सुनाई। केवल उसी कविता को सुनकर श्रोताओं को पूर्ण संतुष्टि नहीं मिली। श्रोताओं की भावना को समझकर लेखक ने नसीमुन आरा की ‘तिमिर हननेर गान आमार कठे, आमार हाते इ चाबी आवसी दिनेर’ कविता सुनाई। सिकंदर अबू जफर और नसीमुन आरा उस समय विद्यार्थी ही थे, उनकी ये कविताएँ बड़ी जोरदार और धारदार हैं।

प्रश्न 13.
‘आमार सोनार बांग्ला’ गीत का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है। इस गीत में कवि बंगाल की भूमि को संबोधित करते हुए कहता है-‘ओ मेरे सोने के बंगाल, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। तुम्हारा आकाश, तुम्हारी हवा बाँसुरी की मधुर धुन की तरह मेरे हृदय में धुन भरते हैं। ओ माँ, वसंत ऋतु में आम की मंजरियों से निकलने वाली भीनी गंध मुझे प्रसन्नता से पागल बना देती है। ओह! यह कैसा रोमांच है। ओ मेरी माँ, पतझड़ के समय धान के खेतों में जब पूरी तरह प्रसन्नता (हरियाली) छाई रहती है, तब मैं सर्वत्र तुम्हारी मधुर मुस्कान फैली हुई देखता हूँ।

आह! कैसी शोभा, कैसी छाया, कैसा स्नेह और कैसी सुकुमारता है! माँ, तुमने वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की जड़ में और नदियों के किनारे-किनारे कैसा आँचल फैला दिया है। माँ, तुम्हारे मुख से निकली मधुर वाणी मेरे कानों में सुधा(अमृत) की बूंदें टपकाती है। आह, कैसा रोमांच है! ओ मेरी माँ (मातृभूमि), अगर तुम्हारे चेहरे पर मैं उदासी देखता हूँ, तो मेरी आँखें आँसुओं से भर आती हैं। ओ मेरे सोने के बंगाल, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।

प्रश्न 14.
लेखक द्वारा सुनाई गई सिकंदर अबू जफर की कविता का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक ने सिकंदर अबू जफर द्वारा रचित ‘आमादेर संग्राम चलवेइ’ कविता सुनाई। लेखक के अनुसार इस कविता में ‘अँधेरी कब्रगाह में उषा के बीज बोने वालों का संकल्प’ अभिव्यक्त हुआ है। कवि के अनुसार बांग्लादेश में मुक्ति का युद्ध चल रहा है। इस देश ने कल्याण की भावना से पाकिस्तान के अत्याचारों को शांति के साथ सहा है। लेकिन शत्रुओं ने उन्हें केवल सताया, उन्हें बैचेनी दी। अब वे नहीं सहेंगे। अपनी हड्डियाँ लुटा देंगे, यदि आवश्यकता हुई तो रक्त की नदियाँ बहा देंगे। शत्रु चाहे उनके मुक्ति मार्ग में कठोर से कठोर बाधाएँ उपस्थित करें, उनका संघर्ष बिना रुके चलता रहेगा। कवि को विश्वास है कि निश्चय ही वह दिन आएगा जब उसकी विपत्तियों का विशाल पहाड़ भी बह जाएगा। हमारा मुक्ति संग्राम विजय होने तक लगातार चलता रहेगा।

प्रश्न 15.
कैप्टन ने लेखक को जो दो पत्र दिए, उसमें क्या लिखा हुआ था? समझाइए।
उत्तर:
कैप्टन ने लेखक को जो दो पत्र दिए उनमें से एक में शिविर के लोगों के सुबह साढ़े पाँच बजे से रात के दस बजे तक का व्यस्त सैनिक कार्यक्रम था। दूसरे पत्र में लिखा था कि मुक्ति सैनिक स्वाधीनता और गणतंत्र में विश्वास करते हैं। वे मनुष्य की तरह जीना चाहते हैं, इसलिए वे संग्राम कर रहे हैं। वे बांग्लादेश में अत्याचार नहीं चाहते। वे आतंकपूर्ण शासन से मुक्ति पाना चाहते हैं। इसीलिए संग्राम कर रहे हैं। जब तक साढ़े सात करोड़ बांग्लादेशी स्वाधीन बांग्लादेश के नागारिक नहीं बन जाते, उस दिन तक संग्राम चलता रहेगा। शांति और गणतंत्र के शत्रु उनकी स्वाधीनता कुचल देना चाहते हैं, किन्तु वे पूर्णतः पराजित होंगे, यह निश्चित है। मुक्तियोद्धा बांग्लादेश के निवासियों से समर्थन की कामना करते हैं।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 7 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक मुक्ति योद्धाओं के शिविर के लिए कब चला और कब पहुँचा?
उत्तर:
मुक्ति योद्धाओं का शिविर कलकत्ते से 200 मील की दूरी पर अवस्थित था। लेखक अपने साथियों के साथ सुबह साढ़े नौ बजे कलकत्ते से चला। जेठ की तपती दुपहरी में लम्बी यात्रा ने उन्हें थका तो दिया किन्तु उनका मन उत्साह से भरा हुआ था। कुछ अनिवार्य कारणों से रुक-रुककर चलते हुए वे लोग शाम के समय साढ़े सात बजे मुक्ति सेना के शिविर पहुँचे।

प्रश्न 2.
कैप्टन रशीद पहले क्या थे और बाद में क्या बने?
उत्तर:
कैप्टन रशीद पहले पाकिस्तान की रेगुलर आर्मी (नियमित सेना) में थे। फिर वे पूर्वी बंगाल के किसी सैन्य प्रशिक्षण केन्द्र में रहे। बाद में जब पाकिस्तान से बांग्लादेश की मुक्ति हेतु संग्राम छिड़ा तो कैप्टन रशीद बांग्लादेश की मुक्ति सेना के क्षेत्रीय अधिकारी बने। उन्होंने पाकिस्तानी सेना से हुई कई मुठभेड़ों का नेतृत्व किया।

प्रश्न 3.
कैप्टन रशीद की कर्मठता और योग्यता का सबसे बड़ा प्रमाण क्या था ?
उत्तर:
कैप्टन रशीद को अपने उत्तरदायित्व का पूरा बोध था। वे पाकिस्तानी सैनिकों से संघर्ष का दृढ़ संकल्प ले चुके थे। वे कर्मठ और योग्य व्यक्ति थे। उनकी कर्मठता और योग्यता का सबसे बड़ा प्रमाण यह था कि अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थतियों में भी उन्होंने अपनी सैन्य टुकड़ी को बिखरने नहीं दिया। उन्होंने युद्ध की आवश्यकतानुसार नए सिरे से उनका पुनर्गठन किया।

प्रश्न 4.
लेखक के लिए नई जानकारी क्या थी ?
उत्तर:
पहले लेखक को विश्वास था कि बंगाली बातूनी (अधिक बातें करने वाले) होते हैं। किसी भी बात के लिए वे खूब बोलते हैं। लेखक कैप्टन रशीद से मिलकर इस बात से हैरान था कि तीस-पैंतीस मिनट तक की बातचीत में कैप्टन ने अधिक बातें नहीं क, राजनीति पर भी वे कुछ नहीं बोले। इस बात से लेखक को नई जानकारी मिली कि बंगाली अल्पभाषी होते हैं और राजनीतिक चर्चा से अलग होते हैं।

प्रश्न 5.
मुक्ति योद्धाओं की छावनी का वातावरण लेखक को रहस्यमय क्यों लगा ?
उत्तर:
एक बड़े मैदान के ठीक बीचोबीच विशाल बरगद के पेड़ के दोनों ओर मुक्ति योद्धाओं की छावनी थी। रात का समय था। चारों तरफ के अंधकार से संघर्ष करती हुई चार लालटेने झूल रही थीं। बीच-बीच में इधर-उधर के संतरियों की टार्चे चमक रही र्थी। इस कारण लेखक को कुल मिलाकर छावनी का वातावरण सहस्यमय और रोमांचक लगा।

प्रश्न 6.
बांग्लादेश मिशन के प्रतिनिधि ने अपने संक्षिप्त भाषण में क्या कहा ?
उत्तर:
बांग्लादेश मिशन के प्रतिनिधि ने मुक्ति योद्धाओं के शिविर में अपना संक्षिप्त किन्तु तेजस्वी भाषण में कहा कि बांग्लादेश की मुक्ति लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक हमारी जीत नहीं हो जाती। यह निश्चित है कि जीत हमारी ही होगी, क्योंकि यहाँ की सारी जनता इस शोषण और गुलामी का विरोध करती है। यहाँ की सारी जनता इस लड़ाई में हमारे साथ है।

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में किस प्रकार ध्वंस और निर्माण दोनों साथ-साथ चलते थे?
उत्तर:
बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में कुछ जवानों को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। प्रशिक्षण में गुरिल्ला योद्धाओं को विस्फोटकों, मोर्टारों, मशीनगनों, हथगोलों इत्यादि का प्रयोग करना सिखाया जाता था। इसके साथ ही उनमें सामाजिक एवं राजनीतिक क्षमता के विकास पर भी पूरा जोर दिया जाता था। इस प्रकार बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में ध्वंस और निर्माण दोनों साथ-साथ चल रहे थे।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुक्ति योद्धाओं के शिविर की ओर जाते हुए लेखक ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर:
मुक्ति योद्धाओं के शिविर की ओर जाते हुए लेखक ने मार्ग के वातावरण का वर्णन किया है। रात का समय था। चाँद अभी तक नहीं निकला था। सर्वत्र घना अंधकार छाया हुआ था। सभी ओर घोर शांति छाई हुई थी। रास्ता कच्चा और खराब था। उबड़-खाबड़ रास्ते पर दो जीपें दौड़ रही थीं। नीचे की यह स्थिति थी। ऊपर निर्मल आकाश तारों से भरा था। कलकत्ते के धूल और धुएँ से भरे आकाश में इतने तारे नहीं दिखाई पड़ते हैं। वहाँ प्राकृतिक हवा विस्तार में और उन्मुक्त होकर बह रही थी। जीप के सामने से कोई जीव दौड़ गया। जीप के ब्रेक के झटके ने लेखक की विचारधारा को भी झकझोर दिया।

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार यह कहने का अधिकार किसे है कि ‘ओ मेरे देश, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ ?
उत्तर:
‘मुझे अपने देश से प्रेम है’ केवल इतना कह भर देने से देशप्रेम नहीं कहा जा सकता। देश की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए जो अपना जीवन, अपना सब कुछ बलिवेदी पर न्योछावर (समर्पित करने) के लिए तत्पर न हो, उसे यह कहने का अधिकार नहीं है कि ‘ओ मेरे देश, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।’ लेखक के अनुसार उन्हें ही यह कहने का अधिकार है जिन्होंने अपना सब कुछ देश के प्रति होम कर दिया हो और अपने प्राणों को अपनी हथेली पर लिए शत्रुओं से जूझनें, उन्हें मार भगाने के लिए तत्पर हों। उन्हें ही यह कहने का अधिकार है’ओ मेरे देश, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।

प्रश्न 3.
कैप्टन द्वारा लेखक को दिए गए दोनों कागज कैसे थे ?
उत्तर:
कैप्टन द्वारा दिए गए दोनों कागजों में से एक में मुक्ति योद्धाओं के दैनिक प्रशिक्षण का कार्यक्रम था। उसमें सुबह साढ़े पाँच बजे से रात दस बजे तक का व्यस्त सैनिक कार्यक्रम था। दूसरा कागज वह था जो बड़ी संख्या में बांग्लादेश की सामान्य जनता में बाँटा गया था। उस दूसरे कागज में बांग्लादेश की जनता के प्रति मुक्ति योद्धाओं की ओर से निवेदन किया गया था। उसमें मुक्ति योद्धाओं ने अपने स्वरूप और लक्ष्य को स्पष्ट किया था। वह कागज छपा हुआ था। उसका प्रकाशन तब हुआ था जब बांग्लादेश में मुख्य नगर और यातायात के साधने पर उनका अधिकार था। उस समय स्थिति बदल चुकी थी, किन्तु उनके मौलिक स्वरूप और लक्ष्य में परिवर्तन, नहीं हुआ था।

मुक्तियोद्धाओं के शिविर में

पाठ-सारांश

विष्णुकांत शास्त्री द्वारा लिखित ‘मुक्तियोद्धाओं के शिविर में साहित्य की रिपोर्ताज विधा में है। इस रिपोर्ताज में बांग्लादेश के मुक्तिसंग्राम की कहानी है। विष्णुकांत शास्त्रीजी ने स्वयं उन शिविरों में जाकर उन योद्धाओं के संघर्ष एवं आजादी के प्रति अनुराग को देखा, समझा और अनुभव किया।

मुक्ति योद्धाओं का शिविर कलकत्ते से 200 मील उत्तर बांग्लादेश के एक अंचल में अवस्थित था। उस शिविर के जवानों से मिलने के लिए लेखक अपने दल के साथ 16 मई को सुबह साढ़े नौ बजे कलकत्ते से रवाना हुआ था। दल के लोग अपने देश की जनता की आंतरिक सहानुभूति के प्रतीक के रूप में काफी असामारिक सामग्री उन्हें भेंट देने के लिए ले
गए थे। लेखक अपने दल के साथ शाम के समय सीमा पर पहुँचा। वहाँ सीमावर्ती भारतीय अधिकारियों का स्नेह, सौजन्य और सहयोग उन्हें मिला।

लेखक लगभग शाम साढ़े सात बजे अपने दल के साथ बाँग्लादेश की मुक्ति फौज के स्थानीय अधिकारी कैप्टन रशीद के छोटे से प्रशासनिक शिविर में पहुँचा। कैप्टन ने बड़े प्रेम से उन लोगों का स्वागत किया। कैप्टन ने पाकिस्तानी फौज से हुई कई मुठभेड़ों का नेतृत्व किया था। आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित पाकिस्तानी सैन्यबल के सम्मुख कैप्टन की टुकड़ी के पास कुछ भी नहीं था, फिर भी उन्होंने अपनी टुकड़ी को बिखरने से बचाया। लेखक को इस बात से आश्चर्य हुआ कि तीस-पैंतीस मिनट की बातचीत में कैप्टन ने किसी प्रकार की शिकायत नहीं की। उन्होंने इतना ही कहा कि वह एक सिपाही हैं। वह केवल इतना ही जानते हैं कि पाकिस्तानियों ने तेइस वर्षों तक लगातार उनके देश का शोषण किया है और उन्हें गुलाम बनाकर रखा है। उनका एक ही उद्देश्य है जीतने तक युद्ध करते जाना। लेखक के अनुसार उस मुक्ति से, खासकर शेख मुजीब के आन्दोलन से पूर्वी बंगाल के लोगों में नई चेतना का उदय हुआ।

लेखकका दल जहाँ था, पता चला कि उसके आसपास ही दो शिविर और थे। उनमें एक शिविर नए रंगरूटों का था और दूसरा पुराने ई.पी.आर. के उन जवानों का था, जो लड़ाई में हिस्सा ले चुके थे। पुराने जवानों की संख्या 250 के लगभग थी। अब उन्हें विशेष रूप से गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। लेखक अपने दल के साथ उन जवानों से मिलना चाहता था। उन जवानों का शिविर वहाँ से लगभग डेढ़-दो मील की दूरी पर था। वे लोग मुक्ति-फौज की बड़ी पिकअप जीप और दूसरी छोटी जीप पर सवार होकर उस शिविर की ओर चले। अँधेरी रात थी। उनकी जीपें एक बड़े मैदान में आईं। मैदान के ठीक बीच में विशाल बरगद का एक पेड़ था। उसके दोनों ओर फौजी छावनी थीं। वहाँ का वातावरण रहस्यपूर्ण और रोमांचक था।

लेखक और उनके साथ के लोगों से अनुरोध किया गया कि वे लोग जवानों को देशभक्ति मूलक गीत और कविताएँ सुनाएँ। सेकेंड इन कमांड ले. टुन्नूमिया उस फौजी-सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। सबसे पहले बाँग्लादेश का राष्ट्रगीत गाया गया-“आमार सौनार बांगला, आमी तोमार भालोवासी।” (ओ मेरे सोने के बंगाल, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।)

लेखक से कहा गया कि वह बांग्लादेश की नई संग्रामी कविता सुनाए। उसने पहले सिकन्दर अबू जफर की कविता ‘आमादेर संग्राम चलवेइ’ (हमारा संग्राम चलेगा।) तथा बाद में नसीमुल आरा की ‘तिमिर हननेर गान आमार कंठे, आमार हाते ई चाबी आवसी दिनेर’ (किनारों को डुबो देने वाला अँधेरा टिक सकेगा कितनी देर, अँधेरे को चीर देने वाला गान मेरे कंठ में ……………….1) कविता सुनाई॥

अपने शिविर पहुँचकर कैप्टन रशीद ने लेखक और उसके साथियों को धन्यवाद दिया। उसने बाँग्लादेश विशेषांक वाली धर्मयुग की एक प्रति कैप्टन को दी। उसने कैप्टन से कहा कि यदि उनके पास कोई मुद्रित या लिखित साहित्य हो तो दें। कैप्टन ने लेखक को एक छोटा सा पर्चा दिया जो बाँग्लादेश की सामान्य जनता के बीच बाँटा गया था। कैप्टन ने एक और कागज दिया जिस पर उन लोगों के दैनिक प्रशिक्षण का कार्यक्रम था। लेखक और उनके साथी ‘जय बाँग्ला’ कहकर वहाँ से विदा हुए।

कठिन शब्दार्थ

पृष्ठ-46. संतरी = पहरेदार, द्वारपाल। मुक्तियोद्धा = बाँग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानी। शिविर = सैनिक पराव, खेमा। असामरिक = जो युद्ध संबंधी न हो। कर्मठता = कार्यकुशलता, कर्मनिष्ठ, परिश्रमी। पुनर्गठन = फिर से गठन करना। रेगुलर = नियमित।

पृष्ठ-47. नेतृत्व = मार्गदर्शन एवं संचालित करना। दाँवपेच = छल-कपट, कार्य सिद्धि हेतु विभिन्न उपाय। दो-टूक उत्तर = सीधा उत्तर। अल्पभाषी = कम बोलने वाला। गुरिल्ला युद्ध = छापामार युद्ध, छिपकर युद्ध करने की एक पद्धति। विरत = अलग, विरक्त। अभिज्ञता = जानकारी, ज्ञान। खातिर करना = आवभगत (स्वागत-सत्कार) करना। निस्तब्धता = शांति। उन्मुक्त = आजाद, स्वतंत्र॥

पृष्ठ-48. भावजगत् = कल्पना लोक। वस्तुजगत् = यथार्थ लोक। परिशीलित = जिसका गम्भीर अध्ययन किया गया हो। कटिबद्ध = तत्पर, तैयार। तन्मयता = तल्लीनता, मग्नता। व्यंजित होना = प्रकट होना, अभिव्यक्त होना। स्वस्ति = कल्याण, मंगल, . शुभ हो। संभ्रम = बैचेनी, विकलता। अस्थि = हड्डी।

पृष्ठ-49. प्यास न बुझना = संतुष्टि न मिलना, इच्छा की पूर्ति नहीं होना। उदात्त = ऊँचा, महान, श्रेष्ठ। स्वतः स्फूर्त = अपने आप मन में उठने वाला। तेजस्वी = कांतिमान, तेजयुक्त। मुद्रित = छपा हुआ। यथेष्ट = पर्याप्त। भर्सना = डाँट, निन्दा। ध्वंस = नाश। संत्रास = अत्यधिक भय, आतंक, दुख।

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