Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 बेचारा ‘कामनमेन’
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
विचित्रता और असामंजस्य किसको भ्रम कराते हैं ?
(क) पवित्रता का
(ख) महानता का
(ग) नाटकीयता का
(घ) दुर्बलता का
उत्तर:
(ख) महानता का
प्रश्न 2.
इससे लोग निस्तेज, बलहीन हो रहे हैं।”इससे’ सर्वनाम किस चीज के लिए प्रयुक्त हुआ है ?
(क) चाय
(ख) शराब
(ग) गरिष्ठ भोजन
(घ) धन
उत्तर:
(क) चाय
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हर एक विचित्रता को प्रगति मानने वाले क्या कहलाने लगे हैं ?
उत्तर:
हर एक विचित्रता को प्रगति मानने वाले प्रगतिशील कहलाने लगे हैं।
प्रश्न 2.
होश सँभालने के बाद हलकू क्या-क्या सीख गया था ?
उत्तर:
होश सँभालने के बाद हलकू बीड़ी पीना और गाली देना सीख गया था।
प्रश्न 3.
किसका उत्साह हमेश खतरनाक समझने को कहा गया है ?
उत्तर:
चन्दा करने वालों का उत्साह हमेशा खतरनाक होता है। लेखक ने उससे सावधान रहने की सलाह दी है।
प्रश्न 4.
मधुर पकवान देखकर भी हेलकू के मुँह से क्या निकला?
उत्तर:
अपने सामने मधुर पकवान देखकर भी हलकू के मुँह से निकला – ‘भाजी रोटी’।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“हिन्दुस्थान में भोजन की उत्पत्ति कम और बच्चों की ज्यादा” किस सन्दर्भ में कहा गया है ?
उत्तर:
यह बात भारत के कल्याण के सन्दर्भ में कही गई है। भारत में जनसंख्या निरन्तर तेजी से बढ़ रही है। इससे देश के विकास में बाधा आती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण खाने-पीने की चीजों की कमी हो जाती है। इससे सामाजिक अशांति तथा निर्धनता की समस्या पैदा होती है।
प्रश्न 2.
रामपुर में बँट रहे पर्चे पर क्या छपा था ?
उत्तर:
रामपुर में पर्चे बँट रहे थे। उनमें छपा था कि “प्रसिद्ध किसान नेता स्वामी राघवानन्द जी रामपुर में आज शाम को जिला किसान परिषद् का उद्घाटन करेंगे। जनता भूली न होगी कि महान् क्रान्तिकारी स्वामी राघवानन्द जी हाल ही में 7 वर्ष के कठिन कारावास के बाद छूटे हैं।”
प्रश्न 3.
हलकू बुढ़िया का पुत्र था, इसका पता कैसे चलता था?
उत्तर:
हलकू बुढ़िया का पुत्र था और बुढ़िया उसकी माँ थी। यह बात लोगों को तभी पता चलती थी, जब हलकू एक-दो महीने में एक-दो दिन के लिए घर से भाग जाता था तथा बुढ़िया हाय-हाय करती परेशान होकर उसकी तलाश करती थी।
प्रश्न 4.
हलकू द्वारा नाखून चबाने की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर:
हलकू को स्वामी राघवानन्द मानकर लोगों ने जबरदस्ती ट्रेन से उतारा और पालकी में बैठा लिया। हलकू घबड़ा रहा था। वह घबड़ाहट में अपने नाखून चबा रहा था किन्तु लोग उसको उसकी विरक्ति को भाव मानकर उसको परमहंस कह रहे थे।
प्रश्न 5.
सेठ किशनलाल की सतर्कता का क्या कारण था?
उत्तर:
स्वामी राघवानन्द के स्वागतार्थ धन एकत्र करने के लिए चन्दा करने का विचार हो रहा था। सेठ किशन लाल काँग्रेस के मण्डलेश्वर थे। वह देश की सेवा करते थे परन्तु धन खर्च करना ही चाहते थे। चन्दे की बात सुनकर वह सतर्क हो गए। पहले एक-दो बार उनको चंदा देना पड़ा था।
प्रश्न 6.
दैनिक ‘उत्कर्ष’ के संवाददाता ने किस घटना का समाचार दिया ?
उत्तर:
गरम चाय से हलकू का मुँह जल गया और प्याला उसके हाथ से छूटकर फर्श पर गिर पड़ा। दैनिक ‘उत्कर्ष’ के संवाददाता ने इस घटना का समाचार तोड़-मरोड़ कर दिया। उसने लिखा कि स्वामी जी कहते हैं कि चाय का प्रयोग बन्द होना चाहिए। चाय भारतीय युवकों को निर्बल तथा निस्तेज बना रही है। यह एक विष है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हलकू का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘हलकू’ हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना ‘बेचारा कामनमेन’ का प्रमुख चरित्र है। वही परसाई का कामनमेन है तथा छली-कपटी राजनीतिज्ञों, समाज के धनी-प्रतिष्ठित जनों तथा स्वार्थी लोगों के शोषण का शिकार वही ‘बेचारा’ है। हलकू के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं निर्धन और बेसहारा हलकू के पिता की मृत्यु हो चुकी है। उसकी एक बुढ़िया माँ है। वह बेसहारा है। उसको पिता से दो भैंसे प्राप्त हुई हैं। वह उनको ही दूध बेचकर गुजारा करता है। वह निर्धन है। आशिक्षित – हलकू को पढ़ाई-लिखाई का अवसर नहीं मिला है। उसकी उम्र तो बढ़ी है, परन्तु शिक्षा नहीं। वह बीड़ी पीने और गालियाँ देने में कुशल है।
वह परिश्रम से बचता है। माँ के बहुत बार कहने पर ही वह उससे किराये के पैसे लेकर रामपुर काँजी हाउस में भैंस का पता करने जाता है। छल-कपट का शिकार-वह गलती से सैकेण्ड क्लास के डिब्बे में चढ़ जाता है। टीटी उसे उतारना चाहता है कि तभी स्वामी राघवानन्द की तलाश में आई भीड़ की निगाह उस पर पड़ती है। मोहनपुर के रामजीवन, किशन लाल, मास्टर प्रताप सिंह आदि उसको राघवानन्द कहकर ट्रेन से उतार लेते हैं और पालकी में बैठाकर ले जाते हैं।
वे उससे अपनी स्वार्थपूर्ति करना चाहते हैं। सीधा-सच्चा व्यक्ति-हलकू सीधा-सच्चा व्यक्ति है। वह रसिकेश से साफ कह देता है कि वह तो अपनी भैंस की तलाश में जा रहा था। उन लोगों ने उसे जबरदस्ती पकड़ लिया है। वह चाहता तो अजीवन सन्त बना रहकर लाभ उठाता परन्तु वह ऐसा नहीं करता। सामान्य दुर्बलताएँ-हलकू में सामान्य मानव चरित्र की दुर्बलताएँ हैं। वह दूध में पानी मिलाकर बेचता है। वह बीड़ी पीता है। और गाली-गलौज करता है। माँ के बहुत कहने पर ही वह अपनी भैंस की तलाश में जाता है।
प्रश्न 2.
पाठ में पत्रकारिता पर क्या व्यंग्य हुआ है?
उत्तर:
कुछ तथाकथित सम्भ्रान्त लोग हलकू को स्वामी राघवानन्द बना देते हैं। वे उसको रेलगाड़ी से उतारकर बलात् ले जाते हैं। भीड़ से घिरा हलकू परेशान है परन्तु भाग नहीं पाता। मार्ग में एक हृष्टपुष्ट गाय और भैंसें देखकर वह कुछ कहता है। “दैनिक सन्देश का पत्रकार उस घटना को नमक-मिर्च मिलाकर इस तरह प्रस्तुत करता है – ‘स्वामी जी ने भारत में गोधन के ह्रास पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि गोधन की वृद्धि से ही भारत का कल्याण होगा। वर्तमान पीढ़ी दूध के अभाव में निर्बल और निस्तेज हो रही है।’ दूसरी घटना यह है कि गरम चाय का प्याला हलकू के हाथ से फर्श पर गिर जाता है।
दैनिक ‘उत्कर्ष’ का संवाददाता इसकी रिपोर्टिग करता है-स्वामी जी ने कहा कि चाय भारत के नौजवानों को बलहीन बना रही है। यह विष है। इससे जीवन नष्ट हो रहा है। चाय का उपयोग बन्द होना चाहिए। जब हलक ने स्वादिष्ट पकवान छोड़कर ‘भाजी रोटी’ की माँग की तो इंडियन हीरो’ पत्र के संवाददाता ने लिखा-स्वामी जी सादा भोजन पर जोर देते हैं तथा हरी सब्जी खाने को कहते हैं। ऊपर उल्लिखित घटनाएँ बताती हैं कि किस प्रकार पत्रकार किसी खबर को सनसनीखेज बनाकर पेश करते हैं। इनके विवरण द्वारा परसाई जी ने पत्रकारिता पर कठोर व्यंग्य प्रहार किया है।
प्रश्न 3.
स्वामी राघवानन्द के बारे में अनुमानित आलेख लिखिए।
उत्तर:
स्वामी राघवानन्द एक प्रसिद्ध किसान नेता हैं। वह महान् क्रान्तिकारी हैं। किसानों के हित के लिए कार्य करते हुए उनका व्यवहार कठोर भी हो जाता है, यद्यपि वह अत्यन्त सौम्य तथा सरल स्वभाव के हैं। उनकी वेशभूषा अत्यन्त साधारण है। उनको अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी बनाने की भी चिन्ता नहीं रहती। वह मैले-कुचेले कपड़े पहनने में भी संकोच नहीं करते। वह सरल और विनम्र हैं किन्तु किसानों का अहित देखकर एक बार वह उग्र हो गए थे। इस कारण उनको सात वर्ष का कारावास भी भुगतना पड़ा था।
स्वामी जी चिन्तनशील हैं तथा अपने विचारों में ही मग्न रहते हैं, वह किसी से अधिक बातें नहीं करते उनको अपने शरीर की सुधबुध नहीं रहती। उनकी निस्पृहता को देखकर ही लोग उनको परमहंस कहकर पुकारते हैं। स्वामी जी सादा भोजन करते हैं। वह पकवान खाना पसंद नहीं करते। सब्जी रोटी ही उनका प्रिय भोजन है। वह हरी सब्जी खाना पसंद करते हैं तथा लोगों से भी चाहते हैं कि वे हरी सब्जी का सेवन करें। स्वामी जी चाय को विष कहते हैं। उनका कहना है कि चाय के कारण भारत के नवयुवकों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है तथा वह बलहीन और निस्तेज हो रहे हैं। उनकी निर्बलता का एक कारण भारत में पशुधन का कमी होना भी है। इसके कारण उनको दूध नहीं मिलता। स्वामी भारत में गोधन की वृद्धि चाहते हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) “अरे जमाना गया भाई ……कामनमेन की कहानी बन गई।
(ख) “ज्योंही रसिषकेश कमरे में …… वह भाग गया।”
उत्तर:
उपर्युक्त गद्यांशों की व्याख्या पूर्व में ही दी जा चुकी है। इसके लिए महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ’ शीर्षक देखिए।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक रचना सन् 1949 में प्रकाशित हुई थी –
(क) प्रहरी में
(ख) सन्देश में
(ग) उत्कर्ष में
(घ) वसुधा में
उत्तर:
(क) प्रहरी में
प्रश्न 2.
‘सात रानियाँ, हर एक के सात-सात बच्चे, साते-साते उनन्चास’ कथन का संकेत है –
(क) अच्छी फसल पैदा होने की ओर
(ख) जनसंख्या बढ़ने की ओर
(ग) धन-सम्पति बढ़ने की ओर
(घ) शिक्षा प्रसार की ओर।
उत्तर:
(ख) जनसंख्या बढ़ने की ओर
प्रश्न 3.
हलकू म्युनिसिपैलिटी के नलों का सदुपयोग करता था
(क) ठंडा पानी पीकर
(ख) पानी में स्नान करके
(ग) पानी से घर की सफाई करके
(घ) दूध में पानी मिलाकर।
उत्तर:
(घ) दूध में पानी मिलाकर।
प्रश्न 4.
स्वामी जी रामपुर नहीं पहुँचे थे क्योंकि वह –
(क) मोहनपुर में ही रुक गए थे।
(ख) जबलपुर से चले ही नहीं थे।
(ग) बीमार थे।
(घ) रामपुर जाना नहीं चाहते थे।
उत्तर:
(ग) बीमार थे।
प्रश्न 5.
कामनमेन के बारे में लिखने की मित्र की सलाह में लेखक को किसकी बू आई ?
(क) चमेली की
(ख) गुलाब की
(ग) बुद्धिज्म की
(घ) कम्यूनिज्म की।
उत्तर:
(घ) कम्यूनिज्म की।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘सेंचुरी आफ कामनमेन’ किसको कहा गया है?
उत्तर:
‘सेंचुरी आफ कामनमेन’ बीसवीं शताब्दी को कहा गया है।
प्रश्न 2.
हलकू कौन था ?
उत्तर:
हलकू एक ग्वाला था।
प्रश्न 3.
मोहनपुर में सेठ रामजीवन की दुकान पर सबेरे कौन उपस्थित थे ?
उत्तर:
रामजीवन की दुकान पर सबेरे गाँव के गण्यमान्य नागरिक इकट्ठे थे।
प्रश्न 4.
सेठ किशनलाल की सतर्कता का कारण क्या था ?
उत्तर:
सेठ किशनलाल को भय था कि स्वामीजी के स्वागत का खर्च उनके सिर पर ही न आ पड़े।
प्रश्न 5.
“दिनभर किसी नाम से चन्दा इकट्ठा करके शाम को नौ आने वाली सिनेमा सीट पर सुरैया की एक्टिंग देखने वाले” वाक्य में क्या भाव व्यक्त हुआ है ?
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य में हास्य और व्यंग्य का भाव व्यक्त हुआ है।
प्रश्न 6.
भीड़ ने गाड़ी के दो-चार चक्कर क्यों लगाए ?
उत्तर:
भीड़ गाड़ी में स्वामी राघवानन्द को तलाश रही थी। उनके न मिलने पर बार-बार गाड़ी के चक्कर लगा रही थी।
प्रश्न 7.
भीड़ किसको देखकर चिल्लाई-“वे हैं स्वामी जी!”
उत्तर:
भीड़ सैकेण्ड क्लास के डिब्बे का हैण्डल पकड़कर खड़े हुए हलकू को देखकर चिल्लाई-वे हैं स्वामी जी।’
प्रश्न 8.
टिकट चैकर क्या देखकर रुक गया ?
उत्तर:
टिकट चैकर ने देखा कि वह जिसको सैकेण्ड क्लास के डिब्बे से निकालना चाहता है, वह स्वामी राघवानन्द हैं तो वह रुक गया।
प्रश्न. 9.
हलकू को गाड़ी से किसने तथा किस प्रकार उतारा ?
उत्तर:
हलकू को गाड़ी से किशनलाल तथा रामजीवन ने जबरदस्ती उतारा और पालकी में बैठा लिया।
प्रश्न 10.
हलकू के पैदल चलने के आग्रह पर सेठ किशनलाल ने क्या कहा ?
उत्तर:
सेठ किशनलाल ने कहा-‘वाह क्या विनम्रता है। क्या विनय है। मान सम्मान से कोसों दूर भागते हैं।’
प्रश्न 11.
हलकू सोफे से नीचे दूर क्यों कूद गया ?
उत्तर:
हलकू स्प्रिंगदार सोफे में छाती तक नीचे धैस गया था। वह घबड़ाकर नीचे दूर कूद गया।
प्रश्न 12.
रामजीवन ने हलकू के सोफे से कूदने का क्या कारण बताया?
उत्तर:
रामजीवन ने बताया कि स्वामीजी की दृढ़ प्रतिज्ञा है कि जब तक भारत में किसान राज्य नहीं होगा, वह जमीन पर ही सोयेंगे।
प्रश्न 13.
चाय का प्याला हलकू के हाथ से गिरने पर उत्कर्ष’ के संवाददाता ने क्या लिखा ?
उत्तर:
‘उत्कर्ष’ के संवाददाता ने लिखा-स्वामी जी चाय को विष मानते हैं। इससे युवकों का स्वास्थ्य गिर रहा है। चाय बन्द होनी चाहिए।
प्रश्न 14.
स्वागत समिति के सभापति मोहनपुर क्यों आए ?
उत्तर:
स्वागत समिति को स्वामी जी के रामपुर आने, न आने के बारे में परस्पर विरोधी दो तार मिले थे। वह सत्य जानने मोहनपुर आए थे।
प्रश्न 15.
हलकू आजीवन सन्त पद का लाभ कब ले सकता था ?
उत्त्तर:
हलकू यदि अपना वास्तविक परिचय नहीं देता तभी वह सन्त पंद का आजीवन लाभ ले सकता था।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बेचारा कामनमेन’ शीर्षक के बारे में दूसरी भाषाओं के शब्दों से बचने वाले विद्वान् क्या कहेंगे ?
उत्तर:
‘बेचारा कामनमेन’ में अंग्रेजी भाषा के शब्द कामन तथा मेन सम्मिलित हैं। जो विद्वान् विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करने से बचते हैं, वे इस शीर्षक की आलोचना करेंगे और कहेंगे-‘क्या खिचड़ी है।’ ‘खिचड़ी’ इसलिए कि इसमें हिन्दी शब्द बेचारा के साथ अंग्रेजी शब्द कामनमेन भी है।
प्रश्न 2.
“कहानी के नाम की भी राम कहानी हैं-कहने का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर:
लेखक कहानी की भूमिका ही लिख रहा था कि उसका मित्र आ गया। लेखक ने उसे कहानी सुनाई तो उसको अच्छी नहीं लगी। उसने पुराने इतिहास की कहानी पसंद नहीं थी। लेखक ने उसको देश-प्रेम की वर्तमान की कहानियों के बारे में बताया परन्तु मित्र नापसंद करता चला गया। अन्त में बहुत विचार-विमर्श के बाद ‘कामनमेन’ के बारे में कहानी लिखी गई। लेखक ने कहानी की इसी पृष्ठभूमि के बारे में बताया है।
प्रश्न 3.
मित्र ने लेखक की किस विषय से सम्बन्धित कहानियाँ लिखने से रोका ?
उत्तर:
मित्र ने लेखक को प्राचीन ऐतिहासिक कहानियाँ लिखने से रोका, कहा-पीछे देखने से आगे बढ़ने में बाधा पड़ती है। उसने स्वदेश की कहानी लिखने से भी उसे रोका, कहा- धनकुबेरों का जमाना अब चला गया। वर्तमान की अमेरिकी कहानी भी उसे समझ नहीं आई। उसने कहा-यह बीसवीं शताब्दी है, सेंचुरी आफ कामनमेन। कामनमेन की कहानी लिखो।
प्रश्न 4.
हलकू कैसा दूधवाला था?
उत्तर:
हलकू के पास दो भैंसें थीं। उनको उसका बाप मरते समय दे गया था। हलकू उनका दूध बर्तन में भरकर सबेरे शहर ले जाकर बेचता था। वह वहाँ नल का पानी भी मिलाता था। उसके दूध के बर्तन इस कारण सदा भरे रहते थे।
प्रश्न 5.
हलकू की बुद्धि के बारे में लेखक ने क्या कहा है ?
उत्तर:
हलकू एक रुपये की चिल्लर भी नहीं मिन पाता था। वह चार सेर दूध का दाम नहीं लगा पाता था। उसकी उम्र लगभग 35 साल थी परन्तु उम्र के साथ उसका ज्ञान नहीं बढ़ा था। हाँ, होश सँभालने के बाद उसने बीड़ी पीना और गाली देना जरूर सीख लिया था।
प्रश्न 6.
हलकू पढ़ा-लिखा होता तो क्या करता ?
उत्तर:
हलकू बाल ब्रह्मचारी था। उसकी शादी नहीं हुई थी। वह पढ़ा-लिखा होता तो अखबार में अपनी ही बुराई करने वाले का विरोध छपवाता। अखबार के विवाह वाले विज्ञापनों को पढ़ता और कोई लड़की तलाश कर उससे शादी कर लेता। इस विशाल देश में प्रत्येक पुरुष को कोई न कोई समान गुणों वाली लड़की मिल ही जाती है।
प्रश्न 7.
अपनी माँ की बात मानकर हलकू ने क्या किया ?
उत्तर:
अपनी माँ के कहने पर हलकू रामपुर जाकर काँजी हौस देखने को तैयार हुआ। उसने माँ से टिकट के दस आने तथा चना-चबेना के पाँच आने लिए। उसने अपनी लाठी उठाई और चल दिया। स्टेशन जाकर टिकट लिया और जल्दी-जल्दी में सैकेण्ड क्लास के डिब्बे में चढ़ गया।
प्रश्न 8.
“अरे यह कौन मुश्किल बात है।” यह किसने कही तथा क्यों ?
उत्तर:
स्वामी राघवानन्द जी जिला किसान परिषद् का उद्घाटन करने रामपुर आ रहे थे। एक स्टेशन पहले मोहनपुर था। वहाँ के लोग स्वामी जी को अपने गाँव में रोककर उनका स्वागत करना चाहते थे। प्रतापसिंह मास्टर ने कहा-‘उनका कार्यक्रम तो बन गया होगा। वे कैसे रुकेंगे ?’ इस पर सेठ रामजीवन ने कहा-“यह कोई मुश्किल काम नहीं है। लोगों ने महात्मा गाँधी की स्पेशल तक रोक ली थी। . चलकर स्टेशन पर अड़ जाओ। जनता का प्रेम देखकर उतर ही पड़ेंगे।”
प्रश्न 9.
चन्दा करने वालों पर लेखक की दो व्यंग्यपूर्ण टिप्पणियों को लिखिए।
उत्तर:
चन्दा करने वालों के बारे में लेखक ने व्यंग्यपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं। दो टिप्पणियाँ निम्नलिखित हैं
- अब तो 25 प्रतिशत कमीशन पर पेशेवर चन्दा इकट्ठा करने वाले भी मिल जाते हैं।
- दिनभर किसी के नाम से चन्दा इकट्ठा करके शाम को नौ आने वाली सिनेमा सीट पर सुरैया की एक्टिंग देखने वाले आपको अनेक मिलेंगे।
प्रश्न 10.
‘टिकट चैकर रुक गया। महान् के सामने नतमस्तक हुआ’-कहने का आशय प्रकट कीजिए।
उत्तर:
हलकू जल्दी में सेकेण्ड क्लास के डिब्बे में चढ़ गया था। टिकट चैकर उसे वहाँ से उतारना चाहता था। तभी वहाँ आई भीड़ ने उसको स्वामी राघवानन्द मानकर उसकी जय के नारे लगाने लगी। जब टिकट चैकर ने देखा कि वह साधारण यात्री नहीं, स्वामी राघवानन्द हैं तो वह उनके आगे नतमस्तक होकर पीछे हट गया।
प्रश्न 11.
“विचित्रता और असामंजस्य अक्सर महानता का भ्रम कराते हैं।” कैसे ?
उत्तर:
महान् पुरुषों का स्वभाव सामान्य जनों से भिन्न होता है। उनमें कुछ विचित्र आदतें होती हैं। किसी विचित्र स्वभाव और असामान्य आदतों वाले मनुष्य को देखकर लगता है कि वह कोई महान् पुरुष है। इस कारण साधारण मनुष्य में भी महानता का भ्रम पैदा हो जाता है।
प्रश्न 12.
सेठ किशन लाल, सेठ राम जीवन, मास्टर प्रतापसिंह आदि किस सामाजिक वर्ग के प्रतीक हैं ?
उत्तर:
सेठ किशन लाल काँग्रेस के मण्डलेश्वर है, सेठ रामजीवन धनिक पुरुष हैं। मास्टर प्रतापसिंह शिक्षित व्यक्ति हैं। ये लोग समाज के विशिष्ट, प्रतिष्ठित और उच्च वर्ग के प्रतीक हैं। ये अपने आपको अन्य जनों की तुलना में अधिक ऊँचा समझते हैं और सामान्य जनता को धोखा देते हैं तथा उसका शोषण करते हैं।
प्रश्न 13.
“स्वामी जी सादा जीवन पसन्द करते हैं। जब तक भारत में किसान राज्य न हो जाय, फर्श पर सोने की प्रताप प्रतिज्ञा कर ली है। यह कथन किसका है तथा कब कहा गया है ?
उत्तर:
यह कथन रामजीवन का है, जब हंलकू को स्प्रिंगदार सोफे पर बैठाया गया तो वह छाती तक उसमें घुस गया। वह कूदकर फर्श पर बैठ गया। एकत्रित लोग आश्चर्य से देख रहे थे। तब रामजीवन ने इस घटना का अभिप्राय इन शब्दों में कहा था। .
प्रश्न 14.
“बस यहीं हलकू चूक गया” हुलकू से क्या चूक हुई और उसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर:
लोग हलकू को स्वामी राघवानन्द समझ रहे थे। उसमें कोई संशय नहीं रहा था परन्तु हलकू ने रसिकेश से अपना सही परिचय बता दिया। सही परिचय देने के कारण वह आजीवन सन्त पद का लाभ पाने से वंचित हो गया।
प्रश्न 15.
यदि आपको लोग स्वामी राघवानन्द बनाकर पेश करते तो आप क्या करने ? कल्पित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
यदि ऐसा मौका आता कि मुझे हलकू की तरह पकड़कर राघवानन्द बना दिया जाता तो मैं लोगों से कहता कि मैं राघवानन्द नहीं हूँ। ये रामजीवन, प्रतापसिंह तथा किशनलाल आदि धूर्त हैं। ये आपके धोखा दे रहे हैं तथा मुझे भी सता रहे हैं। यदि मार्ग में कहीं मुझे पुलिस दिखाई देती तो उसको तुरन्त सच्चाई बता देता।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘बेचारी कामनमेन’ पाठ से कुछ व्यंग्यात्मक कथन छाँटकर लिखिए तथा प्रत्येक में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘बेचारा कामनमेन’ हरिशंकर परसाई का व्यंग्यपूर्ण लेख है। इसके कुछ व्यंग्यात्मक कथने निम्नलिखित हैं –
- “राजा, सात रानियाँ, हर एक के सात-सात बच्चे-‘साते-सातेउनचास’ अरे बाप रे, हिन्दुस्तान में भोजन की उत्पत्ति कम और बच्चों की ज्यादा।” स्पष्टीकरण-इस कथन में लेखक ने भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या तथा उसके अनुपात में न बढ़ने वाले खाद्य-उत्पादन पर कटाक्ष किया है। तीव्र गति से बढ़ने वाली जनसंख्या भारत की अनेक समस्याओं की जननी है। वह भारत के सभी विकास को तेजी से निगल रही है।
- हलकू रोज सबेरे बर्तन में दूध रखकर शहर बेचने ले जाती और म्युनिसिपैलिटी के नलों का सदुययोग करके काफी लाभ उठाता। उसके बर्तन वशिष्ठ के कमण्डल की तरह खाली ही न होते। स्पष्टीकरण-लेखक ने यहाँ भारत के दूध विक्रेताओं पर व्यंग्य प्रहार किया है। वे शुद्ध दूध के नाम पर जनता को पानी मिला दूध बेचते हैं। पानी मिलाने के कारण उनके पास दूध की कमी नहीं होती।
- “अब तो 25 प्रतिशत कमीशन पर पेशेवर चन्दा इकट्ठा करने वाले भी मिल जाते हैं। दिनभरे किसी नाम से चन्दा इकट्ठा करके शाम को नौ आने वाली सिनेमा सीट पर सुरैया की एक्टिंग देखने वाले आपको अनेक मिलेंगे।” स्पष्टीकरण-लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो किसी सामाजिक, धार्मिक कार्यक्रम अथवा राजनेता के स्वागत आदि के लिए चन्दा करते रहते हैं। ये उनका पेशा बन चुका है। उस धन का प्रयोग वे अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए करते हैं। उससे वे खाते-पीते हैं तथा मनोरंजन करते हैं।
- “हल नाखून चबाने लगा घबड़ाहट में। रामजीवन ने किशनलाल के कान में कहा-‘पूरे परमहंस हैं।’ ज़रा सुधबुध नहीं शरीर की।” स्पष्टीकरण-रामजीवन तथा किशनलाल के कपटपूर्ण आचरण पर व्यंग्य है। वह हलकू को अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु स्वामी राघवानन्द बनाने पर तुले हैं।
- “गरम चाय थी, मुँह जल गया और प्याला हाथ से छूटकर फर्श पर गिर पड़ा।…… दैनिक ‘उत्कर्ष’ का संवाददाता वहीं बैठा था। उसने लिखा-” स्वामी जी ने कहा-चाय भारत के नौजवानों को बलहीन बना रही है। यह विष है …..”
स्पष्टीकरण – न्यूज वैल्यू के लिए साधारण खबर को सनसनीखेज बनाकर छापने वाली मौलिक पत्रकारिता पर कठोर व्यंग्य प्रहार किया गया है। समाचार पत्रों यह तरीका जनता के हित में नहीं है। इसी प्रकार अन्य अनेक व्यंग्य के उदाहरण इस पाठ से दिए जा सकते हैं। पूरा पाठ ही व्यंग्य-लेख है।
प्रश्न 2.
‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक लेख की विशेषताएँ संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
‘बेचारा कामनमेन’ हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य प्रधान रचना है। इसके आरम्भ में लेखक ने शीर्षक को आधार बनाकर रूढिवादी और प्रगतिवादी वर्गों के साहित्यकारों पर कटाक्ष किया है। आजकल की प्रचलित ‘कहानी’ पर भी व्यंग्य बाण छोड़े गए हैं तथा कामनमेन की एक ऐसी कहानी गढ़ी गई है जिसका देश और समाज में वर्तमान आपा-धापी से कोई लेना देना नहीं है। कहानी का प्रधान पात्र हुलकू है। वह एक ग्वाला है और ग्वाले का धर्म दूध में नल का पानी मिलाकर बखूबी निभाता है। अपनी खोई हुई भैंस की तलाश में निकला है कि अचानक समाज और देश के तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों के चंगुल में फँस जाता है। वह उनके चंगुल से निकलने के लिए हाथ-पैर मारता है। परन्तु को छूटो एनि जाल जाल परिकत कुरंग अकुलात’ के अनुसार छूट नहीं पाता। इस पाठ में राम जीवन, किशन लाल, प्रतापसिंह इत्यादि संभ्रान्त वर्ग की खाल ओढ़ने वालों के पाखण्ड तथा छलपूर्ण आचरण पर गहरा व्यंग्य किया गया है।
ये लोग हलकू को स्वामी राघवानन्द के रूप में पेश करते हैं तथा उसके क्रिया-कलापों की अपने अनुकूल मनमानी व्याख्या करते हैं। लेखक ने मौलिक पत्रकारिता को भी अपने पैने व्यंग्य बाण का निशाना बनाया है। पत्रकार किसी सामान्य घटना को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत करते हैं तो वे अपने कर्तव्य से विमुख तो होते हैं, पाठकों को भी पथभ्रष्ट करके भ्रमजाल में उकसाते हैं। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सामाजिक पाखण्ड और राजनैतिक, दोगलेपन की समस्यायें तेजी से उभरी हैं। परसाई जी ने व्यंग्य के चाकू से इनकी समाज और देश के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक शल्यक्रिया की है। स्वातंत्र्योत्तर भारतीय जीवन के अनेक पहलू इस लेख में उभरकर सामने आए हैं जिनको व्यंग्य रंग से ही भलीभाँति चित्रित किया जा सकता है। इस रचना में व्यंग्य के साथ-साथ हास्य और करुणा की भी झलक मिलती है।
प्रश्न 3.
अपनी यात्रा के दौरान आपको हेलकू मिल जाता है। आप कल्पना के आधार पर बताइए कि आप उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे ?
उत्तर:
अभी कुछ दिन पहले की बात है कि मुझे किसी काम से रामपुर जाना था। मैं जबलपुर से चला, टिकट ली और रेलगाड़ी के सामान्य डिब्बे में बैठ गया। उसी समय मैंने देखा कि फटे, पुराने, मैले कपड़े पहने हुए एक आदमी डिब्बे में घुसने का प्रयत्न कर रहा है। उसकी दाड़ी बढ़ी हुई है तथा उसके हाथ में एक लाठी है। उसने घुटनों तक ऊँची धोती बाँध रखी है। डिब्बे के दरवाजे पर खड़े कुछ युवक उसको ऊपर नहीं चढ़ने दे रहे, जब भी वह प्रयत्न करता है, वे उसे नीचे धकेल देते हैं। गाड़ी छूटने वाली है। वह विनती कर रहा है परन्तु उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा। मुझे लग रहा है कि उसकी गाड़ी छूट जायेगी अथवा वह नीचे गिर जायेगा। मैं अपनी सीट से उठता हूँ और उन युवकों को डाँटता हूँ। वे सहम जाते हैं।
मैं उस आदमी को हाथ पकड़कर डिब्बे में चढ़ाता हूँ और अपनी आधी सीट उसे बैठने के देता हूँ। मैं देखता हूँ कि उसकी आँखों से कृतज्ञता टपक रही है। गाड़ी चलने लगी है। बातचीत होती है तो पता चलता है कि उसका नाम हलकू है। वह रामपुर जा रहा है। उसकी एक भैंस कुछ दिन पहले खो गई है वह उसको ढूँढ़ने काँजी हाउस जा रहा है। रामपुर स्टेशन पर हम दोनों उतरते हैं। मैं जिस व्यक्ति से मिलने जा रहा हूँ, उसके घर के रास्ते में ही काँजी हाउस है। मैं उसके साथ काँजी हाउस जाता हूँ। वहाँ उसकी भैंस मिल जाती है। वह अत्यन्त प्रसन्न होता है। वह मेरे घर का पता पूछता है। कहता है-बाबूजी, मैं आपके घरे आगे से शुद्ध दूध पहुँचाया करूंगा।”
प्रश्न 4.
‘पर जो उसे राघवानन्द बनाकर स्वार्थ साधन करना चाहते थे उनके मुँह जनता में बहुत दिन तक नहीं दिखे।’ हलकू को राघवानन्द बनाकर कौन अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हलकू एक ग्वाला था। वह अपनी खोई हुई भैंस की तलाश में रामपुर जा रहा था। उधर रामपुर में स्वामी राघवानन्द के स्वागत की तैयारी हो रही थी। रामपुर स्टेशन से एक स्टेशन पहले मोहनपुर कस्बा था। मोहनपुर के लोग चाहते थे कि किसानों के क्रान्तिकारी नेता स्वामी राघवानन्द जबलपुर से रामपुर जाते समय एक-दो घंटों के लिए मोहनपुर में रुकें, इससे उनके गाँव का सम्मान बढ़ेगा। मोहनपुर के सेठ किशन लाल, सेठ रामजीवन, मास्टर प्रताप सिंह इत्यादि लोगों को लेकर स्टेशन पहुँचे। वहाँ स्वामी जी कहीं नहीं थे। तभी किसी की नजर हलकू पर पड़ी। उसने कह दिया-वह रहे स्वामी जी। फिर क्या था ?
स्वामी जी की जय-जय कार होने लगी। इन तथाकथित संभ्रान्त लोगों ने ऐसा नाटक किया कि बेचारा कामनमेन ग्वाला हलकू विशिष्ट पुरुष स्वामी राघवानन्द बन गया। जब रामपुर से समिति के सभापति और रसिकेश जी मोहनपुर आए तो हलकू ने रसिकेश के पैर पकड़कर स्वयं को उनके चंगुल से बचाने की गुहार की। हलकू सात साल से रसिकेश जी के यहाँ दूध देने जाता था और वे उसको जानते थे। उस प्रकार हलकू को राघवानन्द बनाकर पेश करने वालों का प्रयत्न निष्फल हो गया। उनका नाटंक समाप्त हो गया। अब तो उनको जनता के सामने आकर अपना चेहरा दिखाने का भी हिम्मत नहीं हो रही थी। वे चाहते कि इस कार्य के लिए जनता उनका सम्मान करेगी, चंदा-चिट्टे को ढेर सारा पैसा उनके हाथ आयेगा तथा मोहनपुर में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी परन्तु यह कुछ भी न हो सका।
बेचारा ‘कामनमेन’ लेखक-परिचय
जीवन-परिचय-
सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में 22 अगस्त, सन् 1924 को हुआ था। आपने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम० ए० की उपाधि प्राप्त की। आपने एक अध्यापक के रूप में अपना जीवन आरम्भ किया। किन्तु आत्मसम्मान के प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण त्यागपत्र दे दिया। तत्पश्चात् आप स्वतंत्र लेखन में जुट गए। आपने ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन-प्रकाशन किया किन्तु अर्थाभाव के कारण उसे बन्द कर देना पड़ा। आप सामयिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते थे। 10 अगस्त, सन् 1995 को आपका देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय-परसाई एक सशक्त व्यंग्यकार हैं। आपका व्यंग्य-क्षेत्र व्यापक है। आपके व्यंग्य सामाजिक आडम्बर और पाखण्ड पर गहरी चोट करने वाले हैं। आपने हिन्दी को हास्य व्यंग्य पूर्ण रचनाएँ प्रदान कर समृद्धिशाली बनाया है। आपकी कहानी, उपन्यास, निबन्ध सभी पर व्यंग्य का रंग चढ़ा हुआ है।
परसाई जी की भाषा व्यावहारिक है। विषय के अनुरूप किसी भी भाषा से शब्द ग्रहण करना वह अनुचित नहीं मानते। उसमें तत्समंता के प्रति आग्रह नहीं है। व्यंग्य की गहरी चुभन को व्यक्त करने में उनकी भाषा सफल रही है। आपकी प्रमुख शैली हास्य-व्यंग्य की है। आवश्यकतानुसार आपने विवरणात्मक शैली, अलंकरण शैली, उद्धरण शैली आदि का भी प्रयोग किया है।
कृतियाँ-आपकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं
1. कहानी-संग्रह-हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे’॥
2. उपन्यास-रानी नागफनी का कहानी, तट की खोज॥
3. निबन्ध संग्रह- भूत के पाँव पीछे, पगडंडियों का जमाना, और अन्त में, सदाचार का ताबीज, बेईमानी की परत, शिकायत मुझे भी है, इत्यादि।
पाठ-सार
‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध सन् 1949 में ‘प्रहरी’ पत्र में छपा था। इसका आरम्भ रूढ़िवादी साहित्यकारों के साथ-साथ स्वयं को प्रगतिवादी मानने वाले साहित्यकारों पर व्यंग्य से हुआ है। रूढ़िवादी ‘कामनमेन’ शब्द को विदेशी कहकर नाक-मुँह सिकोड़ेंगे और इसको खिचड़ी कहेंगे तो प्रगतिवादी इसे नवीन और प्रगतिशील कहकर प्रशंसा करेंगे। लेखक कहानी लिख रहा था कि उसका मित्र आ गया। उसने उसको प्राचीन ऐतिहासिक कहानी लिखने से रोका, संकीर्ण राष्ट्रीयता और धनपतियों की गाथा लिखने से भी मना किया। उसने कहा कि यह बीसर्वी शताब्दी कामनमेन की शताब्दी है। उसी के बारे में लिखने की सलह उसने दी।
हलकू बुढ़िया का बेटा था। पिता था नहीं। उसके पास दो भैंसें थीं। वह उनका दूध शहर में बेचने जाता था वह पढ़ा-लिखा था नहीं, बुद्धि भी अल्प विकसित थी। एक रुपये की चिल्लर गिनना तथा चार सेर दूध के दाम लगाना भी वह नहीं जानता था। उसकी उम्र 35 साल थी। शादी हुई नहीं थी। बुढ़िया के कहने पर उससे किराये के पैसे लेकर वह रामपुर काँजीहौस ही देखने गया। टिकट लेकर रेल के सेकेण्ड क्लास के डिब्बे में घुस गया। उसी दिन शाम को रामपुर में स्वामी राघवानन्द को जिला किसान परिषद् का उद्घाटन करना था। वह प्रसिद्ध किसान नेता थे तथा रामपुर आने वाले थे। … रामपुर से एक स्टेशन पहले मोहनपुर था। वहाँ के गणमान्य लोग चाहते थे कि स्वामी जी दोपहर एक-दो घण्टे के लिए मोहनपुर रुक जायें तो गाँव के भाग्य खुल जायें। गाँव के लोगों ने मिलकर तय किया कि वे लोग स्टेशन जाकर उनसे निवेदन करेंगे और उनको गाँव ले आयेंगे। स्वागत की तैयारी हुई और चन्दा भी एकत्र किया गया। चन्दा इकट्ठा करना मुश्किल नहीं है। आजकल पच्चीस प्रतिशत कमीशने पर भी चन्दा एकत्र करने वाले मिल जाते हैं।
सेठ रामजीवन के नेतृत्व में भीड़ स्टेशन पर पहुँची। राम जीवन कह रहे थे कि स्वामी जी उनके साथ पढ़े हैं। स्टेशन पर गाड़ी रुकी। लोगों ने दो-चार चक्कर प्लेटफार्म पर लगाएं, पर स्वामी राघवानन्द नहीं मिले। अचानक भीड़ की निगाह सेकेण्ड क्लास के डिब्बे में हैण्डल पकड़े हलकू पर पड़ी। भीड़ चिल्लाई-“वह हैं स्वामी जी। कैसा सरल वेश है।” राम जीवन ने भी कहा-हाँ, हाँ वे ही हैं। भीड़ ने स्वामी राघवानन्द की जय-जयकार की। हलकू को सैकेण्ड क्लास से बाहर निकालने आया टिकट चेकर नतमस्तक होकर रुक गया। भीड़ ने हलक से मोहनपुर उतरने का विनम्र आग्रह किया फिर न मानने पर जबरदस्ती उतार लिया। भीड़ उसको पालकी में बैठाकर चल दी। हलकू भौंचक्का-सा बैठा था और घबड़ा रहा था।
लोग हलकू को स्वामी राघवानन्द मानकर उनकी वेशभूषा की सादगी और स्वभाव की सरलता की तारीफ कर रहे थे। घबड़ाहट में हलकू के नाखून चबाने पर राम जीवन ने सेठ किशन लाल के कान में कहा-पूरे परमहंस हैं। शरीर की सुधबुध नहीं है। दाड़ी बनाने और कपड़े साफ करने की भी चिन्ता नहीं है। रास्ते में हलकू पालकी से कूद गया, कहा पैदल चलूंगा। लोगों ने इसमें भी उसकी विनम्रता के दर्शन किए।
मार्ग में एक सुन्दर पुष्ट गाय और एक भैंस को देखकर हेलकू ने प्रसन्नता के साथ उसकी तारीफ की। साथ चल रहे दैनिक ‘सन्देश’ के संवाददाता ने लिखा-‘स्वामी जी भारत में गोधन के हाल पर दु:खी हैं। उनका मानना है कि गोधन की वृद्धि से ही भारत का कल्याण होगा। दूध के अभाव में वर्तमान पीढ़ी निर्बल हो रही है।’ जुलूस एक अट्टालिका के सामने पहुँचा। हलकू को भीतर ले जाकर स्प्रिंगदार सोफे पर बैठाया गया। घबड़ाकर हलकू जमीन पर कूद कर बैठ गया। राम जीवन ने इस पर कहा-‘जब तक भारत में किसान राज्य न हो जाता स्वामी जी ने फर्श पर सोने का प्रण लिया है।’ सब लोग चले गए। हलकू के लिए चाय आई, जो गरम थी। मुँह से लगाते ही गरम चाय का प्याला हाथ से छूटकर जमीन पर गिर गया। यह देखकर दैनिक ‘उत्कर्ष’ के संवाददाता ने लिखा-“स्वामी जी चाहते हैं कि चाय का प्रयोग बन्द हो। चाय नवयुवकों को बलहीन बना रही है। यह एक विष है।” खाने के लिए पकवानों के स्थान पर साग-रोटी माँगने पर ‘इंडियन हीरो’ पत्र के संवाददाता ने रिपोर्ट दी-‘स्वामी जी हरी सब्जी खाने का संदेश दे रहे हैं।”
तभी जबलपुर किसान सभा को एक तार रामपुर किसान परिषद् की स्वागत समिति को मिला। उसमें स्वामी जी के बीमारी के कारण न आने की सूचना थी, दूसरा तार मोहन पुर से रामजीवन ने भेजा था जिसमें सूचना थी कि स्वामी जी को हमने रोक लिया है, शाम को आयेंगे। इससे बड़ा भ्रम हुआ। समिति के सभापति मोहनपुर आ गए। राम जीवन ने कहा-अपने ठीक किया। स्वामी जी आपकी मोटर से ही रामपुर चले जायेंगे। सभापति के साथ जबलपुर किसान मित्र’ साप्ताहिक के सहकारी सम्पादक पण्डित कौशलनाथ रसिकेश भी आए थे। हलकू पिछले सात साल से उनके यहाँ दूध देता था। रसिकेश जी कमरे में घुसे तो हलकू ने उनको पहचानकर उनके पैर पकड़ लिए। उसने रोकर स्वयं को बचाने के लिए कहा, यहीं हलकू चूक गया। नहीं तो उसमें और स्वामी राघवानन्द में कोई अन्तर नहीं बचा था। ईमानदार और सीधा हलकू आजीवन सन्तपन को लाभ नहीं ले सका। वह भाग गया। परन्तु उसको राघवानन्द बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों को जनता को अपना मुँह दिखाना मुश्किल हो गया।
शब्दार्थ-
(पृष्ठ सं. 94, 54)-
रूढ़िवादी = पुरानी बातों को मानने वाले। उच्छृखलता = उद्दण्डता। खिचड़ी = अनेक भाषाओं के शब्दों का मिश्रण।
(पृष्ठसं. 95)-
नाम = शीर्षक। विवशता = परवशता। बपौती = पूर्वजों से प्राप्त वस्तु। शिव = कल्याण। उत्पत्ति = पैदावार। संकीर्ण = कम चौड़ी, अनुदार। जमाना = युग। धनकुबेर = धनवान लोग। प्रभुता = स्वामित्व। सेंचुरी = शताब्दी; सौ वर्ष। तिरस्कार = अपमान। अक्ल = बुद्धि। चिल्लर = खुले पैसे।
(पृष्ठ सं. 96)-
प्रतिवाद = विरोध। स्पीच = भाषण। दो से चार हाथ करना = शादी करना। चवैना = भुजा हुआ अनाज। उदंगोर = विचार भाव। चन्दा = धन संग्रह। पेशेवर = रोजगार करने वाले। सुरैया = हिन्दी सिनेमा की एक अभिनेत्री।
(पृष्ठ सं. 97)-
विचित्रता = अनोखापन। विराट = विशाल। वृष्टि = वर्षा। क्षुद्र = तुच्छ। श्रवण = सुनने। लालायित = इच्छुकै। विदित = ज्ञात। अवहेलना = उपेक्षा। परमहंस = समदर्शी, निर्लिप्त।
(पृष्ठ सं. 98)-
इन्ते = इतने अधिकं। प्रोपेगण्डा = दिखावा, प्रचार। कृतकृत्य = आभारी। गोधन = गायें। अट्टालिका = ऊँचा विशाल भवन। प्रताप = राणा प्रताप की प्रतिज्ञा जैसी कठोर। निस्तेज = तेजहीन॥
(पृष्ठ सं. 99)-
सौम्य = गम्भीर। परवाह = चिन्ता। भूले से = ध्यानमग्न।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रंसग व्याख्याएँ
1. शीर्षक देखकरं रूढ़िवादी साहित्यिक पिता, पितामह और प्रपितामह सिर ठोंक लेंगे, “कैसी उच्छृखलता है!” और अन्य भाषाओं के शब्दों के स्पर्श से पल्ला बचाने वाले पण्डित घृणा से नाक सिकोड़ेगे, “यह क्या खिचड़ी है।” और एक पैर जमाने के पहले ही दूसरा पैर उठाकर लाँग जम्प करने को उतावले, हर एक विचित्रता को प्रगति मानने वाले प्रगतिवादी लोग मेरा नाम लिखकर चूम लेंगे और दस बार सिर से लगायेंगे, “कैसी नवीनता है। इसे कहते हैं प्रगति!” पर मेरा दुर्भाग्य कि मैं इनमें से कोई नहीं!
(पृष्ठसं. 94)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई हैं। देशी-विदेशी भाषाओं के शब्दों के संयोग से बने शीर्षक ‘बेचारा कामनमेन’ का सहारा लेकर लेखक ने साहित्यकारों पर व्यंग्य किया है, इनमें रूढ़िवादी तथा प्रगतिवादी दोनों ही प्रकार के साहित्यकार शामिल हैं।
व्याख्या-लेखक कहता है कि पुरानेपन के समर्थक साहित्यकार तथा उनके भी पूर्ववर्ती इस लेखक शीर्षक को देखकर पश्चात्ताप करेंगे और इसको परसाई जी की उद्दण्डता बतायेंगे। जो साहित्यकार दूसरी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करना अनुचित मानकर उनसे बचते हैं वे इसको खिचड़ी कहकर घृणा के साथ अपना मुँह बिचकाएँगे। जिन साहित्यकारों में धैर्य का अभाव है। और जो बिना विचारे आगे बढ़ने को व्याकुल रहते हैं तथा प्रत्येक विचित्र बात को प्रगति कहकर पुकारते हैं, वे परसाई जी का नाम लिखकर चूमेंगे और उसको अपने माथे से लगायेंगे। वे कहेंगे कि यह शीर्षक एकदम नया है। इसी का नाम प्रगति है। लेखक कहते हैं इन तीनों में से वह एक भी वर्ग के अन्तर्गत नहीं आते।
विशेष-
(i) निबन्ध के शीर्षक को आधार बनाकर विभिन्न प्रवृत्तियों और विचारों वाले साहित्यकारों पर व्यंग्य किया गया है।
(ii) भाषा तत्समता लिए हुए सरल है।
(iii) शैली व्यंग्यपूर्ण है।
2. कहानी के नाम की भी राम कहानी है। एक दिन कहानी लिख रहा था। भूमिका ही लिख रहा था कि एक मित्र आ गये। मैंने कहा, सुनो! भला सुनाने का शौकीनं कौन न होगा ? पर कोई सुनाने वाले की पीड़ा, विवशता, संकट को जान पाता!
(पृष्ठ सं. 95)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता-प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई हैं।
परसाई कहते हैं कि जो कहानी उन्होंने लिखी है उसकी रचना की एक कथा है।
व्याख्या-लेखक कहते हैं कि उनकी रचना बेचारा कामनमेन’ की भी एक कथा है। जब वह यह रचना लिख रहे थे इनका एक मित्र आया। उस समय वह उसकी भूमिका ही लिख पाये थे। उन्होंने सोचा कि वह इस कहानी को उसको सुना दें। संसार में प्रत्येक लेखक और कवि चाहता है कि लोग उसकी रचनों को सुनें। परन्तु अपनी रचना सुनाने का इच्छुक कोई भी लेखक यह नहीं सोचता कि इससे सुनने वाले को कितना कष्ट होगा, वह संकट में पड़ जायेगा और उसकी रचना को विवशता के कारण ही वह सुनेगा।
विशेष-
(i) कवियों और लेखकों की आदत होती है कि अपनी रचना दूसरों को सुनाएँ। उनको श्रोता की तलाश रहती है। श्रोता के कष्ट की उनको कोई चिन्ता नहीं होती।
(ii) एक कवि दुकान पर कपड़ा खरीदने गए। उनको अपनी कविता दुकानदार को सुनाने की प्रचंड इच्छा हुई। बोले-अर्ज है! दुकानदार ने समझा कि वह कपड़े की चौड़ाई पूछ रहे हैं। उसने तुरन्त उत्तर दिया-”देख लो, कपड़ों पर दर्ज है।”
(iii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली व्यंग्यपूर्ण है। साहित्यकारों की प्रदर्शनप्रियता पर व्यंग्य किया गया है।
3. “अरे जमाना गया भाई धनकुबेरों का। धन की प्रभुता का गान सुनने को कोई तैयार नहीं। यह शताब्दी बीसवीं है-सेंचुरी आफ कामनमेन, जन-साधारण की शताब्दी है यह। जनसाधारण के जीवन से हटा हुआ साहित्य तुम कहाँ खपाओगे ? किसके काम आयेगा। कुछ ‘कामनमेन’ के बारे में लिखो मेरे भाई!” पहिले तो मुझे मित्र के इन शब्दों में ‘कम्यूनिज्म’ की बू आयी और अपनी भलाई के लिए इनसे दूर रहना ही उचित समझा, पर बात कुछ ऐसी मन पर चढ़ी कि यह ‘कामनमेन’ की कहानी बन गयी।
(पृष्ठ सं. 95)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से संकलित है। इसके रचयिता हरिशंकर परसाई हैं। परसाई एक कहानी लिखना चाहते थे। वह अपने मित्र को उसके बारे में बताते किन्तु उनका मित्र उनके द्वारा चुने गए विषय पर सहमत नहीं होता था। उसने उनको जो कहानी लिखने का सुझाव दिया, उसके बारे में लेखक ने आगे बताया है।
व्याख्या-लेखक के मित्र ने कहा-पैसे वालों की कहानी मत लिखो। धन-सम्पत्ति वालों का समय अब नहीं है, वह बीत चुका है। उनको स्वामित्व स्वीकार करने के लिए अब कोई तैयार नहीं है। यह बीसवीं शताब्दी है। अँग्रेजी भाषा में यह सेंचुरी आफ कामनमेन है अर्थात् साधारण लोगों की शताब्दी है। यदि वह जन-साधारण के जीवन से अस्वीकृत साहित्य की रचना करेगा तो उसके लिए उसको पाठक और श्रोता नहीं मिलेंगे। अतः उसको जनसाधारण के बारे में लिखना चाहिए। लेखक को लगा कि उसका मित्र उसे साम्यवाद अपनाने की सलाह दे रहा है। उसने अपनी भलाई साम्यवाद से दूर रहने में ही समझी। परन्तु धीरे-धीरे मित्र की बात का प्रभाव हुआ और लेखक ने कामनमेन की कहानी लिख डाली।
विशेष-
(i) परसाई जी ने बताया है कि सर्वसाधारण के सम्बन्ध में कहानी लिखने की प्रेरणा उसको किससे प्राप्त हुई। इसकी रचना के पीछे की कहानी क्या है ?
(ii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iii) शैली व्यंग्यात्मक है।
(iv) स्वयं को सामान्य जन का पक्षपाती लेखक होने का दावा करने वालों पर व्यंग्य किया गया है।
4. हलकू ग्वाला था दो भैंसें थीं, जो बाप छोड़कर मरा था। हलकू रोज बर्तन में दूध रखकर शहर बेचने ले जाता और म्युनिसिपैलिटी के नलों का सदुपयोग करके काफी लाभ उठाता। उसके बर्तन वशिष्ठ के कमण्डल की तरह खाली ही न होते।
(पृष्ठसं. 95)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता हरिशंकर परसाई हैं।
लेखक हलकू ग्वाले के बारे में बता रहा है कि वह दूध बेचने का व्यवसाय करता था परन्तु उसकी आय उसकी बेईमानी के कारण ही बढ़ी हुई थी।
व्याख्या- लेखक कहता है कि हलकू एक दूध वाला था। उसके पास दो भैंसें थीं। ये भैंसें उसको अपने पिता से मिली थीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद वह उनका दूध बेचता था। वह रोज सबेरे बर्तन में भैंसों का दूध लेकर शहर जाता था। वहाँ नगरपालिका के नलों से पानी लेकर दूध में मिलाया करता था। इस तरह पानी मिला हुआ दूध बेचकर वह खूब धन कमाता था। उसके दूध के बर्तन महर्षि वशिष्ठ के कमण्डल के समान थे। जैसे वशिष्ठ का कमण्डल सदा भरा रहता था वैसे ही हलकू के दुग्धपात्र सदा भरे रहते थे।
विशेष-
(i) पानी मिलाकर दूध बेचने वालों पर लेखक ने तीव्र व्यंग्य प्रहार किया है।
(ii) भाषा-सरल है तथा विषयानुकूल है।
(iii) शैली-व्यंग्य पूर्ण है।
5. चन्दा भी हो गया। हमारे विश्वास-परायण समाज में चन्दा मिलना मुश्किल नहीं है। अब तो 25 प्रतिशत कमीशन पर पेशेवर चन्दा इकट्ठा करने वाले भी मिल जाते हैं। दिनभर किसी नाम से चन्दा इकट्ठा करके शाम को नौ आने वाली सीट पर सुरैया की ऐक्टिंग देखने वाले आपको अनेक मिलेंगे। चन्दा इकट्ठा करने वाले का उत्साह हमेशा खतरनाक समझें।
(पृष्ठ सं. 96)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता हरिशंकर परसाई हैं।
लेखक ने बताया है कि आजक़ल सामाजिक तथा राजनैतिक आयोजनों, किसी नेता के स्वागत-सत्कार आदि कार्यों के लिए जेनता से धन संग्रह किया जाता है। इस धन को चन्दा कहते हैं। चन्दे का प्रयोग ईमानदारी से न करके चन्दा करने वाले स्वार्थ सिद्ध करते
व्याख्या-स्वामी राघवानन्द को रामपुर से पहले मोहनपुर में रोककर उनके सत्कार की योजना बन रही थी। उसके लिए चन्दा करके धन एकत्र करने का सुझाव सेठ किशन लाल ने दिया। उसके अनुसार चन्दा किया गया। लेखक कहते हैं कि हमारा भारतीय समाज प्रत्येक बात पर विश्वास कर लेता है। यदि उनसे किसी काम के लिए चन्दा माँगा जाता है तो वे इसके लिए तुरन्त तैयार हो जाते हैं। इसमें कठिनाई नहीं आती। अब तो ऐसे पेशेवर लोग भी मिल जाते हैं जो पच्चीस प्रतिशत कमीशन लेकर चन्दा करने का काम सफलता पूर्वक करते हैं। कुछ लोग किसी का नाम लेकर दिनभर चन्दा करते हैं और शाम को उस धन से सिनेमा की नौ आने वाली टिकट खरीदकर अभिनेत्री सुरैया का अभिनय देखते हैं। चन्दा इकट्ठा करने वालों के उत्साह को हानिकारक मानकर उनसे सावधान रहना चाहिए।
विशेष-
(i) चन्दा करके उस धन का दुरुपयोग करने वालों पर लेखक ने कटाक्ष किया है।
(ii) ऐसे अनेक लोग होते हैं जो सार्वजनिक हितार्थ धन संग्रह करते हैं और उसका उपयोग अपने स्वार्थ को पूरा करने में करते हैं।
(iii) भाषा सरल है तथा विषयानुकूल है।
(iv) शैली व्यंग्यपूर्ण है।
6. जनसमूह धीरे-धीरे चला गया। अब सभा की तैयारी में लग गये। रामजीवन ने चाय बनवाकर भिजवायी। हलकू ने जल्दी से प्याला पकड़कर मुँह से लगा दिया। गरम चाय थी, मुंह जल गया और हाथ से प्याला छूटकर फर्श पर गिर पड़ा। नौकर घबड़ाकर मालिक के पास गया और हाल सुनाया।
दैनिक ‘उत्कर्ष’ का संवाददाता वहीं बैठा था। उसने लिखा-‘स्वामीजी ने कहा कि चाय भारत के नौजवानों को बलहीन बना रही है। यह विष है जो देश के जीवन को खाये जा रहा है। इससे देश के लोग निस्तेज, बलहीन हो रहे हैं। चाय को उपयोग बन्द होना चाहिए।
(पृष्ठ संः 98)
सन्दर्भ एवं प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता हरिशंकर परसाई हैं॥ हलकू को स्वामी राघवानन्द मानकर मोहनपुर में उसको बड़ा सत्कार हो रहा था। उसको एक भव्य भवन में बैठाया गया था। रामजीवन ने उसके लिए गरम चाय भेजी।
व्याख्या-जब भीड़ छैट गई तो रामजीवन ने गरम चाय हलकू के पीने के लिए भिजवाई। उधर सभा की तैयारी की जा रही थी हलकू ने जल्दी में चाय का प्याला उठाकर अपने मुँह से लगा लिया। चाय बहुत गरम थी। इससे उसका मुँह जल गया और प्याला उसके हाथ से छूट गया। प्याला फर्श पर गिरा। यह देखकर नौकर घबड़ाकर अपने मालिक के पास गया और पूरी बात उसको बताई।
उस समय दैनिक समाचार पत्र ‘उत्कर्ष’ का संवाददाता वहीं पर ही था। उसने इस घटना की रिपोर्टिंग करते हुए लिखा कि स्वामी जी कहते हैं कि चाय भारत के नौजवानों को अशक्त बना रही है। यह एक जहर है जिससे देश का जीवन नष्ट हो रहा है। चाय पीने से भारतीय शक्तिहीन हो रहे हैं और उनका तेज नष्ट हो रहा है। स्वामी जी चाहते हैं कि चाय का प्रयोग बन्द हो।
विशेष-
(i) पत्रकार किसी घटना की रिपोर्टिंग किस प्रकार करते हैं, इसका प्रभावशाली वर्णन किया गया है।
(ii) लेखक ने पत्रकारिता पर व्यंग्य किया है।
(iii) भाषा प्रभावशाली तथा सरल है। शैली व्यंग्य प्रधान है।
7. ज्यों ही रसिकेशजी कमरे में प्रविष्ट हुए त्यों ही हलकू उठा और उनके पैर पर गिरकर रोने गो-मैन्ना भैया मेरे को बचा लो! जे मैरे को मार डालेंगे। मैं तो भैंस …….! बस यहीं हलकू चूक गया। वरना उसमें और स्वामी राघवानन्द में कोई फर्क नहीं था, अभी तक। हलकू ईमानदार और सीधा होने के कारण आजीवन सन्त के पद का लाभ नहीं ले सका। वह भाग गया। पर उसे राघवानन्द बनाकर स्वार्थ-साधन करना चाहते थे, उनके मुँह जनता में बहुत दिन तक नहीं दिखे।
(पृष्ठसं. 99)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपुरा में संकलित ‘बेचारा कामनमेन’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता व्यंग्य निबन्धकार हरिशंकर परसाई हैं।
कौशलनाथ रसिकेश ‘किसान मित्र’ के सहकारी सम्पादक थे। हलकें पिछले सात साल से उनके यहाँ दूध पहुँचाता था। वह स्वागत समिति के सभापति के साथ स्वामी राघवानन्द से मिलने कमरे में प्रविष्ट हुए।
व्याख्या-लेखक कहता है कि जैसे ही रसिकेश जी ने कमरे में प्रवेश किया, हलकू ने उनको पहचान लिया। वह उठा और उनके पैरों पर गिरकर रोने लगा। उसने उनसे प्रार्थना की कि वह उसको बचाये। वे लोग उसको मार डालेंगे। वह तो अपनी खोई हुईभैंस की तलाश में निकला था कि उन लोगों ने उसे पकड़ लिया। हलकू से यहाँ एक भूल हो गई। उसने अपना सही परिचय दे दिया अन्यथा लोग उसको स्वामी राघवानन्द ही मान चुके थे। यदि वह ईमानदार और सीधा-सच्चा न होता तो अपने आरोपित सन्त रूप का लाभ जीवनभर उठा सकता था। मगर ऐसा नहीं हुआ और वह वहाँ से भाग गया॥ इससे उन लोगों की बड़ी बदनामी हुई जो हलकू को स्वामी राघवानन्द बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे। वह समाज में किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहे। बहुत दिनों तक वे कहीं दिखाई नहीं दिए।
विशेष-
(i) लेखक ने कामनमेन की ईमानदारी और सच्चाई के साथ ही धूर्त लोगों की धूर्तता का सजीव चित्रण किया है।
(ii) ऐसे लोगों पर कठोर व्यंग्य प्रहार किया गया है।
(iii) भाषा सरल है तथा विषयानुरूप है।
(iv) शैली व्यंग्यपूर्ण है।
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