Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 अनोखी परीक्षा
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
महात्मा अपना गुरु किसे मानते थे?
(क) कुदरत को
(ख) शिष्य को
(ग) ईश्वर को
(घ) भाइयों को
उत्तर:
(क) कुदरत को
प्रश्न 2.
छोटे भाई को चरित्र किस प्रकार का था?
(क) हिंसक
(ख) दयालु
(ग) भक्त
(घ) मूर्ख
उत्तर:
(ख) दयालु
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बड़ा भाई बकरे को लेकर कहा गया?
उत्तर:
बड़ा भाई बकरे को लेकर पहाड़ की तलहटी में एकान्त गुफा में गया।
प्रश्न 2.
महात्मा जब मौन धारण कर लेता तो क्या करता था?
उत्तर:
महात्मा मौन धारण कर लेता था तो अपने होठ भी नहीं खोलता था।
प्रश्न 3.
महात्मा ने अनुमति क्यों नहीं दी?
उत्तर:
बकरे की हत्या जघन्य काम था।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महात्मा क्या डींग हाँकता था?
उत्तर:
महात्मा अपने बड़प्पन की डींग हाँकता था। वह कहता था कि उससे बड़ा सन्त दुनिया में कोई नहीं है और भविष्य में होगा। भी नहीं।
प्रश्न 2.
महात्मा ने भाइयों की परीक्षा कैसे ली?
उत्तर:
महात्मा ने भाइयों से कहा कि वे एक-एक बकरा लें। उसकी बलि किसी ऐसे स्थान पर जाकर दें जहाँ कोई उनको ऐसा करते देख या सुन नहीं रहा हो। उनके इस काम का पता किसी चींटी को भी नहीं लगे।
प्रश्न 3.
छोटा भाई बौडम क्यों निकला?
उत्तर:
छोटा भाई बौडम निकला। बड़े भाई ने पहाड़ की तलहटी की एकान्त गुफा में बकरे की बलि दे दी किन्तु छोटे भाई खूब तलाश करके भी ऐसा स्थान प्राप्त नहीं कर सका, जहाँ कोई उसको देख-सुन रहा हो।
प्रश्न 4.
छोटा भाई बकरे की बलि क्यों नहीं दे सका?
उत्तर:
छोटा भाई एकान्त की तलाश में तीन दिन तीन रात भटकता रहा परन्तु उसको ऐसा स्थान नहीं मिला जहाँ उसको कोई बकरे की बलि देते देख-सुन न रहा हो। अतः वह बकरे की बलि न दे सका।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महात्मा का चरिच-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
महात्मा औघड़ साधु हैं। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं अघोर सम्प्रदाय का साधु-महात्मा अघोर सम्प्रदाय को मानने वाला है। साधारण बोलचाल में उसको औघड़ कहते हैं। इस सम्प्रदाय के साधुओं के समान ही उसका व्यवहार भी असामान्य है। विचित्र व्यवहार-महात्मा का व्यवहार विचित्र है। वह नीम पागल है। कभी-कभी वह पागलों के समान व्यवहार करता है। वह किसी को अपना शिष्य नहीं बनाती। इस सम्बन्ध में अनुनय-विनये भी नहीं मानता। अपनी इच्छा हो तो किसी को भी बुलाकर शिष्य बना लेता है।
हठी और सनकी-वह हठी है और सनकी भी। प्रात: उदित होते सूर्य को सात बार जल चढ़ाता है किन्तु मन होने पर सात मुट्ठी धूल भी उछाल देता है। सात दिन और रात माला जपता है, तो मन हो तो माला तोड़कर मनके घूरे पर फेंक देता है। कभी कहता कि वह मनुष्य योनि में एक गधा है तो कभी कहता है उससे बड़ा सन्ते इस संसार में न जन्मा है न जन्मेगा। अपने से बड़े हठी व्यक्ति के आगे वह झुक भी जाता है। क्रोधी-बाबा क्रोधी है।
उसकी शर्त के अनुसार बकरे और तलवारें लेकर जब दो भाई उसके पास आते हैं तो वह भड़क उठता है, कहता है-‘इस जंघन्य काम के लिए मेरी अनुमति चाहते हो, नहीं मिलेगी।’ गुरु की तलाश-महात्मा को किसी सुयोग्य गुरु की तलाश है। उसकी इच्छा तब पूरी होती है जब उसका शिष्य बनने आया छोटा भाई उसकी शर्तों पर शिष्य बनना स्वीकार नहीं करता। उसके मन में आध्यात्मिक ज्ञानोदय देखकर वह उसको अपना गुरु स्वीकार कर लेता है। महात्मा के अन्दर भारतीय साधुओं की अनेक चारित्रिक विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 2.
छोटे भाई ने महात्मा को शिष्य बनने से क्यों मना कर दिया ?
उत्तर:
महात्मा ने शर्त रखी थी कि वह एक बकरे का सिर तलवार से ऐसे स्थान पर काटेगा, जहाँ कोई भी उसको ऐसा करते हुए देखे और सुनें नहीं। छोटा भाई महात्मा का आदेश पाकर ऐसे स्थान की तलाश में तीन दिन और तीन रात स्थान-स्थान पर भटकता रहा परन्तु उसको ऐसा स्थान नहीं मिला। वह बकरे का सिर काटने के लिए तलवार उठाता तो उसका हाथ काँपने लगता। वह सोचता कि सूर्य अपनी प्रखर किरणों से उसको देख रहा है। वायु उसको देख रही है।
पेड़-पौधे उसको देख रहे हैं। पक्षी उसको देख रहे हैं। कीड़े-मकोड़े उसी को देख रहे हैं। बकरा और यहाँ तक कि तलवार भी उसे देख रहे हैं। वह स्वयं भी तो अन्धा नहीं है, वह भी सब कुछ देख रहा है। तीन दिन और रात में भी एकान्त स्थल की तलाश करने में सफल नहीं हो सका। उसने जान लिया कि महात्मा की शर्त को पूरा करना उसके बस की बात नहीं है। कहीं न कहीं कोई उसको देख रहा है। महात्मा की इस शर्त को पूरा करने के प्रयास में उसको आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो गया था।
उसने जान लिया था कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और उसकी दृष्टि से कुछ भी अदृश्य नहीं है। अन्त में, वह महात्मा के पास पहुँचा और बकरा तथा तलवार की जिम्मेदारी से मुक्त होकर कहा कि वह उनकी शर्तों पर उनका शिष्य नहीं बनेगा। संसार में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ उसको बकरे की हत्या का जघन्य कार्य करते हुए कोई भी न देखे। वह यह काम नहीं कर सकेगा। वह शिष्य बनेगा तो अपनी ही शर्तों पर बनेगा।
प्रश्न 3.
महात्मा ने अपना गुरु किसे बनाया और क्यों? लिखिए।
उत्तर:
महात्मा ने छोटे भाई को अपना गुरु बनाया। वह अपने बड़े भाई के साथ महात्मा को शिष्य बनने की इच्छा लेकर अपने पास आया था। महात्मा ने शिष्य बनाने के लिए शर्त रखी कि वह एक बकरे की बलि ऐसा स्थान पर जाकर दे जहाँ कोई भी उसको ऐसा करते देख और सुन न सके। उसने तीन दिन और तीन रात इधर-उधर भटक कर ऐसे स्थान की तलाश की परन्तु असफल रहा। उसको ऐसा कोई स्थान धरती पर तो क्या पृथ्वी लोक के ऊपर भी नहीं मिला, जहाँ कोई बकरे का सिर काटते हुए उसको देखे नहीं। जब भी वह एकान्त स्थान मानकर बकरे का सिर काटने को उद्यत होता, उसका हाथ काँपने लगता वह सोचता कि सूर्य, वायु, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि उसको देख रहे हैं। बकरा उसको देख रहा है, तलवार आँखें झपकाकर उसको देख रही है।
वह स्वयं भी सब कुछ देख रहा है। उसको लगा कि पहला कार्य उसके बस का नहीं है। उसने जान लिया कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और इस संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है जो उसकी निगाह से दूर हो वह सभी को देख रहा है। उससे छिपाकर कोई काम नहीं किया जा सकता। उसने महात्मा की शर्त पर उसका शिष्य बनने से इनकार कर दिया। उससे पूरा वृत्तान्त सुनकर महात्मा ने उसके चरण स्पर्श किए और कहा कि उसको किसी का भी शिष्य बनने की जरूरत नहीं है। उसको पाकर उनकी वर्षों की साधना पूरी हो गयी है। वह जिस सुयोग्य गुरु की तलाश में था, वह उसे मिल गया है। इस प्रकार महात्मा ने उसका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया।
प्रश्न 4.
छोटे भाई अजीब ऊहापोह में क्यों फँस गया?
उत्तर:
छोटा भाई अजीब ऊहापोह में फंस गया। वह तीन दिन और तीन रात इधर-उधर चक्कर लगाता रहा और किसी ऐसे स्थान की तलाश करता रहा। जहाँ बकरे की बलि देते हुए उसको कोई नहीं देखे। वह विचित्र असमंजस में था। उसको ऐसा एकान्त स्थान मिल ही नहीं रहा था, जहाँ कोई भी उसको देख नहीं रहा हो। वह बकरे का सिर काटने के लिए तलवार उठाता तो उसका हाथ काँपने लगता। उसको प्रतीत होता कि सूर्य अपनी हजारों किरणों से उसको देख रहा : है। बहती हवा उसको देख रही है। पेड़-पौधे अपने असंख्य पत्तों से उसे देख रहे हैं। पशु-पक्षी, कीट-पतंग भी उसको देख रहे हैं। बकरा उसे देख रहा है।
तलवार भी उसको देख रही है। वहाँ निर्जीव पत्थर उसे देख रहा है। वह स्वयं भी तो सब कुछ अपनी आँखों से देख रहा महात्मा की शर्त के अनुरूप स्थान की खोज करते-करते उसने जान लिया कि संसार में कोई स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ उसको कोई न देखे और वह बकरे की हत्या का जघन्य कार्य कर सके। उसको पता चल गया कि ईश्वर सर्वव्यापी है और कई स्थान या कोई कार्य उसकी दृष्टि से छिपा नहीं है। | यह ज्ञान होते ही उसका असमंजस समाप्त हो गया और उसने महात्मा का शिष्य बनने का विचार त्याग दिया।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
नीम पागल कहते हैं –
(क) नीम के नीचे रहने वाला पागल
(ख),नीम की पत्तियाँ खाने वाला पागल
(ग) नीम के पेड़ की घनी छाया जैसी गम्भीर पागल
(घ) आधा या लगभग पागल
उत्तर:
(घ) आधा या लगभग पागल
प्रश्न 2.
औघड़’ का अर्थ है –
(क) असामान्य शारीरिक बनावट वाला
(ख) असामान्य मानसिक दशा वाला।
(ग) अघोर सम्प्रदाय का अनुयायी
(घ) उजड्ड और उद्दण्ड
उत्तर:
(ग) अघोर सम्प्रदाय का अनुयायी
प्रश्न 3.
‘श्लथ और विपर्ण’ का तात्पर्य है –
(क) थका हुआ और निस्तेज
(ख) भयभीत और सफेद
(ग) दु:खी और निद्रागस्त
(घ) आहत और पीड़ित
उत्तर:
(क) थका हुआ और निस्तेज
प्रश्न 4.
छोटा भाई कैसा था?
(क) डरपोक
(ख) हठी
(ग) आत्म ज्ञानी
(घ) बौडम
उत्तर:
(ग) आत्म ज्ञानी
प्रश्न 5.
“अब तो शिष्य बने बिना सात जन्म तक पाँव नहीं छोड़ेंगे”-दोनों भाइयों के इस कथन में निहित भाव है –
(क) श्रद्धा
(ख) हठ
(ग) मूर्खता
(घ) चतुराई।
उत्तर:
(ख) हठ
प्रश्न 6.
संसार में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ छोटे भाई को बकरे का वध करते कोई नहीं देखे-इस अनुभव का आशय यह है कि –
(क) सूर्य किरणों के माध्यम से देख सकता है।
(ख) वायु प्रवाहित होकर देख रही है।
(ग) ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और सब कुछ देखता है।
(घ) ऐसा सोचना बुद्धिमत्ता नहीं है।
उत्तर:
(ग) ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और सब कुछ देखता है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
छोटे भाई का तलवार वाला हाथ काँपने क्यों लगता था?
उत्तर:
बकरे के वध के लिए तलवार उठाते ही छोटे भाई का हाथ काँपने लगता था क्योंकि उसे लगता था कि कोई उसे देख रहा
प्रश्न 2.
औघड़ महात्मा ने छोटे भाई के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
औघड़ महात्मा ने उसके चरणस्पर्श किए और उसको अपना गुरु मान लिया।
प्रश्न 3.
औघड़ बाबा की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
औघड़े बाबा मनमौजी और नीम पागल था।
प्रश्न 4.
बाबा लोगों को अपना शिष्य क्यों नहीं बनाता था?
उत्तर:
औघड़ बाबा का विचार था कि अधिक शिष्य बनाने से बड़े से बड़े पंथ का पतन हो जाता है।
प्रश्न 5.
शिष्य बनाने के लिए बाबा ने भाइयों के सामने क्या’शर्त रखी?
उत्तर:
शिष्य बनाने के लिए बाबा ने भाइयों के सामने शर्त रखी कि वे एक-एक बकरा लें और उनका ऐसे स्थान पर वध करें जहाँ उनको कोई देख-सुन न रहा हो।
प्रश्न 6.
बड़े भाई ने बाबा की शर्त कैसे पूरी की?
उत्तर:
बड़े भाई ने एक पहाड़ी गुफा में बकरे को ले जाकर बकरे का वध करते हुए उसकी गर्दन काट दी।
प्रश्न 7.
छोटा भाई बोडम क्यों निकला?
उत्तर:
बड़े भाई ने एक पहाड़ी गुफा में बकरे को ले जाकर बकरे का वध करते हुए उसको कोई नहीं देख सका। वह बकरे का सिर नहीं काट सका।
प्रश्न 8.
दोनों भाइयों के शिष्य बनने का हठ करने पर बाबा ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
उस समय पास में पत्थर तथा बाँकी लकड़ी न होने के कारण बाबा ने उनको मुक्कों से ही धम-धम पीटा।
प्रश्न 9.
बड़े भाई के बारे में महात्मा का क्या कहना था?
उत्तर:
महात्मा का कहना था कि उसके समान बकरे की मुंडी काटने वाले हजार शिष्य भी मिल जायें पर वे पंथ की गरिमा को ही गिरायेंमे।
प्रश्न 10.
छोटे भाई को बकरे की गर्दन काटने में सफलता क्यों नहीं मिली?
उत्तर:
छोटे भाई को लगता था कि सूर्य, वायु, पेड़-पौधे, कीट-पतंग, बकरा, पत्थर और वह स्वयं सब कुछ देख रहे हैं। उसे एकान्त नहीं मिल सका।
प्रश्न 11.
‘प्रकृति की प्रत्येक वस्तु उसको देख रही है’-ऐसा आभास छोटे भाई को क्यों हो रहा था?
उत्तर:
छोटे भाई को आत्मज्ञान हो गया था। वह जान गया था कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है तथा सब कुछ देखता है।
प्रश्न 12.
‘अनोखी परीक्षा’ कहानी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
‘अनोखी परीक्षा’ कहानी का उद्देश्य यह बताना है कि संसार की प्रत्येक वस्तु में ईश्वर व्याप्त है तथा वह सब कुछ देखता-सुनता है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
औघड़ महात्मा का स्वभाव कैसा था?
उत्तर:
औघड़ महात्मा विचित्र स्वभाव का था। वह मनमौजी और नीम पागल था। वह किसी को अपना शिष्य नहीं बनाता था।
प्रश्न 2.
छोटा भाई महात्मा की शर्त पूरी क्यों नहीं कर सका?
उत्तर:
छोटा भाई महात्मा की शर्त पूरी नहीं कर सकता क्योंकि वह ऐसा स्थान तलाश नहीं कर सका जहाँ बकरे का सिर काटते हुए उसको कोई नहीं देखे। उसे लगता कि प्रकृति की प्रत्येक चीज उसको देख रही है।
प्रश्न 3.
छोटे भाई तथा बड़े भाई में क्या अन्तर है?
उत्तर:
छोटा भाई आध्यात्मिक प्रवृत्ति का था। उसको ज्ञान हो गया था कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है तथा सृष्टि के कण-कण को देखता है। वह महात्मा की शिष्य बनाने की शर्त पूरी न कर सका। इसके विपरीत बड़ा भाई भौतिक विचारों का था। उसने पहाड़ी की एकान्त गुफा में बकरे का सिर काटकर महात्मा की शर्त पूरी कर दी।
प्रश्न 4.
“ज्यों ही बकरे की मुंडी काटने को उद्यत होता तो राम जाने पत्थर पर भी आँखें उग आतीं।” इस पंक्ति के आधार पर छोटे भाई में विकसित होते आध्यात्मिक भाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पत्थर पर आँखें उग आने’ का आशय यह है कि छोटे भाई को लगता कि निर्जीव पत्थर भी सजीव हो गया है और उसके दुष्कर्म को आँखें खोलकर देख रहा है। छोटे भाई के मन में पत्थर के सजीव होने की भावना उसके मन में उदय हुए आध्यात्मिक भावों का ही परिणाम है। उसको पत्थर में भी चेतना का आभास होता है। उसे लगता है कि अपनी चेतना और तेज के रूप में ईश्वर इस पत्थर में भी व्याप्त है। ईश्वर प्रकृति के कण-कण में व्याप्त है तथा अपनी असंख्य आँखों और कानों से सब कुछ देखता और सुनता है।
प्रश्न 5.
छोटे भाई ने महात्मा का शिष्य बनने से मना क्यों कर दिया?
उत्तर:
छोटे भाई ने महात्मा की शर्त के आधार पर उसका शिष्य बनना स्वीकार नहीं किया। उसकी समझ में आ गया कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु की नहीं जिज्ञासा की आवश्यकता होती है। किसी का उचित-अनुचित शर्तों को मानकर उसका शिष्य बनना मूर्खता है। अपनी शर्तों के अनुसार शिष्य बनने पर ही योग्य गुरु प्राप्त होता है। शिष्य को धोखे में रखने वाले गुरु का जीवन में कोई महत्व नहीं
प्रश्न 6.
महात्मा ने किसको अपना गुरु माना तथा क्यों?
उत्तर:
महात्मा ने छोटे भाई को अपना गुरु स्वीकार किया, उसने उसकी बातें विस्तार से सुनीं। उसने बताया कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु उसे देख रही है, तो महात्मा ने जाना कि उसके मन में दिव्य ज्ञान का उदय हो गया है। वह ईश्वर की सर्वव्यापकता को पहचान चुका है। उसके हृदय में ईश्वर के तेज की और चेतना का आभास पाकर महात्मा ने उसके चरण स्पर्श किए और उसको अपना गुरु मान लिया।
प्रश्न 7.
‘अनोखी परीक्षा’ आपकी दृष्टि में कैसी कहानी है?
उत्तर:
‘अनोखी परीक्षा’ विजयदान देथा की एक सोद्देश्य रचना है। इस लोक कथा श्रेणी की कहानी में कहानीकार ने संदेश दिया कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है। वह अपनी असंख्य आँखों और कानों से सब कुछ देख और सुन रहा है। इसकी दृष्टि से छिपकर कोई काम मनुष्य नहीं कर सकता। ईश्वर के व्याप्त होने के कारण कोई भी पदार्थ निर्जीव नहीं है। वह सजीव है तथा उसमें ईश्वरीय तेज और चेतना व्याप्त है, संसार में ईश्वर से कुछ भी अदृश्य, अश्रव्य तथा गोपनीय नहीं है।
प्रश्न 8.
“जिन पेड़ों की जड़ें धरती के सघन अँधियारे में अपने अदीठ प्राणों को अविलम्ब खोज लेते हैं, उनके अनगिनत पत्तों से भला क्या चीज छिपी रह सकती है?” इस उक्ति में छोटे भाई के आधार पर अंतर्द्वन्द्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छोटा भाई ऐसे एकान्त स्थान की तलाश में निकला है जहाँ बकरे का वध करते कोई उसे देख न सके। घने वन में उसे कोई नहीं देखेगा। परन्तु उसके मन में विचार आता है कि यहाँ वृक्ष हैं। इनकी जड़ें गहरे अंधकार में नीचे स्थित अपने भोजन को देख लेती हैं तो उनके पत्ते तो ऊपर हैं और प्रकाश में उनसे क्या चीज छिपी रह पायेगी। अतः यह स्थान भी बकरे के वधं के उपयुक्त नहीं है। इस तरह की अन्तर्द्वन्द्व उसके मन में निरन्तर उठता है।
प्रश्न 9.
औघड़ महात्मा की शिष्य बनाने की शर्त आपको कैसी लगती है?
उत्तर:
महात्मा ने शिष्य बनने के लिए शर्त रखी भी कि वे भाई बकरे का सिर ऐसे स्थान पर काटें जहाँ कोई उनको देख न सके। ऊपर से देखने पर यह शर्त उनको अपने निश्चय से विरत करने के लिए रखी गई लगती है। इससे महात्मा को हठी और घमण्डी होने का आभास भी होता है। परन्तु गम्भीरता से सोचने पर लगता है कि महात्मा उन भाइयों की शिष्यत्वे ग्रहण करने की योग्यता का पता करना चाहता था। वह जानना चाहता था कि उनके मन में ईश्वर के सर्वव्यापी होने के बारे में क्या भाव है? इससे महात्मा की विचारपूर्ण, समझदारी पता चलती है।
प्रश्न 10.
ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु की आवश्यकता को क्या महत्व है?
उत्तर:
ज्ञान की प्राप्ति के लिए कुशल मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। गुरु ऐसा ही व्यक्ति है जो शिष्य को ज्ञानप्राप्ति के मार्ग का निर्देश करता है। वैसे अभ्यास ही गुरु होता है, निरन्तर लगन के साथ किसी विद्या का अभ्यास करने से ही वह प्राप्त होती है। गुरु का महत्त्व इतना ही है कि उसके मार्गदर्शन से ज्ञान-पथ की बाधाएँ हट जाती हैं और एक सुगम पथ का प्रदर्शन हो जाता है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु की आवश्यकता तथा शिष्य के मन में जिज्ञासा के होने में से किसका महत्त्व अधिक है? तर्कपूर्ण विवेचना कीजिए।
उत्तर:
शिष्य शिक्षा ग्रहण करने वाला होता है, गुरु शिक्षा देने वाला और मार्गदर्शक होता है। भारत में, विशेषतः आध्यात्मिक जगत् में शिष्य के हृदय में ज्ञानोदय के लिए गुरु का होना आवश्यक है। गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता। गुरु शिष्य को ज्ञान के पथ का निर्देशन करता है। वह उसको पाने के रास्ते में आने वाली बाधाओं से अवगत और सतर्क करता है। इस तरह गुरु की कृपा और मार्गप्रदर्शन से शिष्य ज्ञान मार्ग की बाधाओं को सरलता से पार करके लक्ष्य को पा लेता है।
ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु को महत्त्व है तो किन्तु उसके बिना भी ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इसके लिए जरूरत इस बात की है कि शिष्य के मन में प्रबल जिज्ञासा हो। जिज्ञासा के अभाव में शिष्य ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। जिज्ञासा के कारण ही महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य द्वारा अपना शिष्य बनाने से मना करने पर भी निरन्तर अंभ्यास, लगन और जिज्ञासा के कारण एकलव्य अर्जुन से भी श्रेष्ठतर धनुर्धर बन सकता था। ज्ञान की प्राप्ति के लिए जिज्ञासा का होना प्रथम आवश्यकता है। ज्ञानप्राप्ति के इच्छुक में लगन को साथ अभ्यास करने और श्रम करने का गुण भी होना चाहिए। यदि उसमें ये गुण हैं तो वह बिना गुरु के भी ज्ञान पा सकता है। इन गुणों के अभाव में कोई कुशल गुरु भी उसको ज्ञानसम्पन्न नहीं बना सकता।
प्रश्न 2.
“छोटा भाई तो निपट बौड़म ही निकला’ क्या आप लेखक के इस कथन से सहमत हैं? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
छोटा भाई बौड़म नहीं था। हम लेखक के इस कथन से सहमत नहीं हैं। बौड़म मूर्ख को कहते हैं। वह मूर्ख और अज्ञानी नहीं था। गुरु के निर्देश के अनुसार उसको बकरे का सिर किसी ऐसे एकान्त, निर्जन स्थान पर काटना था, जहाँ उसको ऐसा दुष्कृत करते कोई भी देखे-सुने नहीं। यदि वह भौतिकवादी दृष्टिकोण का होता तो उसको इस संसार में पहाड़ की गुफा, घने जंगल अथवा अन्य अनेक ऐसे स्थान मिल जाते, जो निर्जन होते और बकरे की गर्दन काटते हुए उसको वहाँ कोई नहीं देखता। अपने बड़े भाई की तरह वह बहुत सरलता से यह कार्य कर सकता था और स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध कर सकता था।
छोटा भाई आत्मज्ञान से पूर्ण था। उसके हृदय में आध्यात्मिकता का उदय हो चुका था। वह जान गया था कि इस संसार के प्रत्येक पदार्थ में ईश्वर व्याप्त है। उसमें ईश्वर का तेज और चेतना है। ईश्वर के असंख्य अदृश्य आँखें हैं, जिनसे कुछ भी अदृश्य तथा गोपनीय नहीं है। उसके असंख्य कान छोटी से छोटी आवाज भी सुन लेते हैं। अपने इस आत्मज्ञान के कारण ही छोटे भाई को कोई ऐसा स्थान मिला ही नहीं, जहाँ कोई भी उसको बकरे का सिर काटते न देखे। उपर्युक्त परिस्थिति में उसको हम बौड़म नहीं कह सकते।
प्रश्न 3.
‘अनोखी परीक्षा’ कहानी से सच्चे गुरु की खोज में क्या सहायता मिलती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘अनोखी परीक्षा’ कहानी का एक पात्र औघड़ महात्मा है। वह सच्चे गुरु की तलाश में है। उसके विचित्र व्यवहार के कारण अनेक लोग उसको पहुँचा हुआ साधु मानते हैं और उसके शिष्यत्व के प्रार्थी रहते हैं। वे उसके दुर्व्यवहार और तिरस्कार को सहकर भी उसका आदर करते हैं। दो भाई उसके शिष्य बनने आते हैं। महात्मा उनके सामने शर्त रखता है कि वे एक बकरे का वध किसी ऐसे स्थान पर करें जहाँ उनको ऐसा करते कोई भी देख न सके। छोटा भाई जब ऐसे स्थान की तलाश में निकलता है तो पूरे संसार में उसे ऐसा कोई स्थान नहीं मिलता जहाँ उसको ऐसा काम करते कोई देखे नहीं।
उसको लगता था कि सूर्य, वायु, पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, पत्थर, बकरा, तलवार और वह स्वयं भी सब कुछ देख रहा था। वह महात्मा के पास जाकर सब कुछ स्पष्ट बता देता है तथा उसकी शर्तों पर उसका शिष्य बनना अस्वीकार कर देता है। उसके हृदय में आध्यात्मिक ज्ञान के उदय हुआ देखकर हात्मा उसके चरणस्पर्श कर उसको अपना गुरु स्वीकार कर लेता है। उसको आस-पास ऐसा गुरु मिल जाता है जिसकी वह वर्षों से खोज कर रहा था। इस कहानी से यह स्पष्ट पता चलता है कि सच्चा गुरु वही हो सकता है जो शिष्य को सही मार्ग दिखा सके।
जो स्वयं अज्ञानी है तथा संदेह और भ्रम में पड़ा है, वह शिष्य को सन्मार्ग नहीं दिखा सकता तथा परमात्मा से उसका साक्षात्कार नहीं करा सकता। जिसने ईश्वर की सर्वव्यापकता को नहीं समझा वह शिष्य को परमात्मा से मिलन कैसे करा सकता है? शिष्य को धोखा देने वाला तथा उचित-अनुचित शर्ते थोपने वाला सच्चा गुरु नहीं हो सकता।
प्रश्न 4.
‘अनोखी परीक्षा’ कहानी में इसके रचयिता द्वारा क्या संदेश दिया गया है?
अथवा.
‘अनोखी परीक्षा’ कहानी में व्यक्त आध्यात्मिक विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘अनोखी परीक्षा’ लोककथा की प्रकृति की रचना है। इसकी रचना कहानीकार ने एक उद्देश्य के विचार से की है। कहानी का पात्र औधड़ महात्मा अपना शिष्य बनाने के लिए दो भाइयों के सामने शर्त रखता है। शर्त के अनुसार उनको एक-एक बकरे का वध ऐसे स्थान पर करना है जहाँ उनको ऐसा करते कोई भी देखे नहीं। बड़ा भाई इस शर्त को आसानी से पूरा कर देता है किन्तु छोटा भाई असमंजस में फंस जाता है। छोटे भाई को ऐसा कोई स्थान नहीं मिलता जहाँ उसे कोई देख न रहा हो।
वह बकरे का सिर काटने तलवार उठाता है तो उसका हाथ काँपने लगता है। उसको लगता है कि सूर्य अपनी असंख्य किरणों से उसको देख रहा है। प्रवाहित होती वायु, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंग, पत्थर, बकरा और तलवार भी उसको देखती हुई प्रतीत होती है। फिर वह भी तो अन्धा नहीं है, वह भी सब कुछ देख रहा है। हताश होकर वह महात्मा को सब कुछ बता देता है और उसकी शिष्य बनने से इंकार कर देता है। महात्मा उसके चरणस्पर्श कर उसको अपना गुरु स्वीकार कर लेता है। छोटे भाई के मन में आत्मज्ञान प्रस्फुटित हो चुका है। उसकी चेतना आध्यात्मिकता से पूर्ण हो चुकी है। उसके माध्यम से कथाकार यह संदेश देना चाहता है कि ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ में व्याप्त है। संसार में सजीव-निर्जीव कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसमें ईश्वर व्याप्त न हो, जिसमें उसकी चेतना तथा तेज का समावेश न हो।
ईश्वर की असंख्य अदृश्य आँखें हैं तथा उसके अनेक कान हैं। अपनी आँखें तथा कानों से वह संसार की प्रत्येक गतिविधि को देखता है तथा सब कुछ सुनता है। उससे कुछ भी अदृश्य तथा गोपनीय नहीं है। कोई स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ वह उपस्थित नहीं हो और सब कुछ देख-सुन न रहा हो। कट्टानीकार ने ‘अनोखी परीक्षा’ कहानी में इसी आध्यात्मिक ज्ञान का संदेश दिया है। उसने यह संदेश भी दिया है कि आत्मज्ञान स्वयं की लगन और जिज्ञासा के द्वारा ही प्राप्त होती है। तरह-तरह की शर्ते थोपने वाले सच्चे गुरु नहीं होते वे शिष्य को संदेह और भ्रम में ही डालते हैं। ज्ञान की प्राप्ति के लिए ऐसे गुरु की कोई आवश्यकता नहीं होती।
अनोखी परीक्षा लेखक परिचय
जीवन परिचय-
विजयदान देथा का जन्म राजस्थान के जोधपुर के ‘बोरुन्दा’ नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा के बाद आप साहित्य क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। आपकी कहानियाँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में बिजी की कहानियाँ’ शीर्षक से प्रकाशित हुई हैं।
साहित्यिक परिचय-हिन्दी कहोनी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर विजयदान देथा राजस्थान के कहानीकार हैं। पुरातन परिवेश को नए सन्दर्भ में प्रस्तुत कर कहानियाँ लिखना विजयदान देथा की कहानी कला की विशेषता है। आपने अपनी अखण्ड साहित्य साधन से, प्रकाशित और अप्रकाशित अपनी कहानियों द्वारा हिन्दी कथा साहित्य को समृद्धि प्रदान की है। आपकी कहानियों में राजस्थानी धरती की सोंधी गन्ध है। आपकी भाषा सरल, सरस और विषयानुकूल है तथा शैली रोचक है। उसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का सफल प्रयोग हुआ है। कृतियाँ-आपने अनेक कहानियाँ लिखी हैं। आपकी प्रसिद्ध कहानी ‘दुविधा’ पर हिन्दी फिल्म ‘पहेली’ नाम से बन चुकी है।
पाठ-सार
एक औघड़ महात्मा था। वह बहुत विचित्र और मनमौजी था। नीम पागल। तब भी लोग उसका सम्मान करते थे। वे उसके सामने श्रद्धापूर्वक सिर झुकाते थे और उसको दण्डवत प्रणाम करते थे। वह किसी को अपना शिष्य नहीं बनाता था। शिष्य बनने के इच्छुक लोगों की संख्या बहुत बड़ी थी। वह चाहता तो राह चलते को बुलाकर अपना शिष्य बना लेता, नहीं चाहता तो बहुत अनुनय-विनय करने पर भी धक्के देकर भगा देता।
एक बार,दो भाइयों की उसका शिष्य बनने की इच्छा हुई। महात्मा ने उनको अपना शिष्य बनाने से स्पष्ट मना कर दिया परन्तु वे दोनों भी निश्चय के धनी थे। उन्होंने महात्मा के पैर पकड़ लिए और तब तक न छोड़ने की बात कही जब तक वह उनको अपना शिष्य ने बना ले।
अब महात्मा कुछ द्रवित हुआ। उसने एक शर्त पर उनको अपना शिष्य बनाना स्वीकार किया। उसने कहा कि वे एक बकरा लेकर किसी ऐसे स्थान पर जायें, जहाँ कोई उनको देख नहीं रहा हो। वे तलवार से उसका सिर काटकर ले आएँ। तभी वह उनको अपना शिष्य स्वीकार करेगा।
दोनों भाइयों ने एक कसाई से दो बकरे खरीदे। घर से अपने पूर्वजों की चमकती तलवारें ले लीं। अब वे किसी एकान्त स्थान की खोज में निकले। बड़े भाई को एक पहाड़ी पर एक
शान्त गुफा मिल गई। वह बकरे को लेकर उस गुफा में गया। वहाँ उसे कोई नहीं देख रहा था। उसने बकरे का सिर तलवार से काट दिया और उसको लेकर तथा रक्त से सनी तलवार के साथ महात्मा के पास पहुँचा। महात्मा ने उसको अपने पास ही बैठा लिया। बड़ा भाई प्रसन्न था कि रात पूरी होने पर महात्मा उसको अपना शिष्य बना लेगा।
छोटा भाई भी तलवार लेकर बकरे के साथ निकला। वह तीन दिन तक पहाड़ी जंगल आदि में भटकता रहा परन्तु उसको कोई ऐसा स्थान नहीं मिला जहाँ कोई उसको देख न रहा हो उसको लगता था कि कहीं सूर्य उसको देख रहा है तो कहीं वायु उसको देख रही है। ” पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, रेत के कण-कण, बकरा, तलवार आदि भी उसको देख रहे हैं और नहीं तो वह स्वयं भी तो अंधा नहीं था, वह भी तो देख रहा था। उसने महात्मा का शिष्य बनने का विचार छोड़ दिया। उससे ऐसी शर्त पूरा होना सम्भव नहीं था। वह महात्मा के पास पहुँचा और उसे कहा कि वह उसको शिष्य बनाए न बनाए, वह किसी जीव का हत्या नहीं करेगा। उस समय वह पूरी तरह थका हुआ था जैसे महीनों की बीमारी अथवा अनशन से उठा हो।
उससे सपने में भी यह काम नहीं हो सकता। फिर सपने की आँखें तो पहाड़ और समुद्र के आर-पार देख सकती हैं। ब्रह्माण्ड के परे भी उनसे कुछ गोपनीय नहीं रहता। उसने महात्मा से कहा-“मान लीजिए, दूसरा कोई मुझे न देख रहा हो पर मैं स्वयं तो अपने आपको तथा अपने मन को देख पा रहा था। ………………… यदि मुझे किसी का चेला बनना है तो अपनी शर्तों पर बनूंगा। …………………………. और इस तरह चेला मँड़ने वाले गुरु की भी क्या अहमियत है?
तब उस औघड़ ने छोटे भाई के चरणस्पर्श करके कहा-“तुझे किसी का भी शिष्य बनने की जरूरत नहीं है। आज मेरी अन्तिम साध भी पूरी हुई। जिस गुरु की तलाश थी आज वह मुझे उसमें ही मिल गया। तेरे बड़े भाई के समान बकरे की मुण्डी काटने वाले हजार चेले भी मिल जाएँ तो किस काम के। उलटे पन्थं और गुरु की महिमा ही घटाएँगे।”
शब्दार्थ-
(पृष्ठ सं. 115)
औघड़ = अघोरी। महात्मा = साधु। नीम पागल = आधा पागल। धोबे = अंजलि। मनके = मोती। घूरा = कूड़े का ढेर। योनि = शरीर। खोमी = कमी। दण्डवत् = जमीन पर लेटकर। निमित्त = खातिर। बन्दगी = स्तुति। ठेठ= अन्त। मेहर = दया। पिराता = तंग-परेशान करता।
(पृष्ठ सं. 116)
चेला = शिष्य। जचना = ठीक लगना। अंज्ञान = अपरिचित। ढाणी = बस्ती। बन्दा = मनुष्य। अदेर = बिना देर किए। मर्तबा = बार। बेशी = ज्यादा। भीष्म प्रतिज्ञा = अटल प्रतिज्ञा। झख मारना = विवश होना। मुनासिब = उचित। अरदास = प्रार्थना। ठौर = स्थान। भनक पड़ना = पता चलना। मुताबिक = अनुसार। वेवक्त = असमय। धोक देना = प्रणाम करना। बिफस्ना = नाराज होना। जघन्य = निन्दनीय॥ कुदरत = प्रकृति। झीना = पतला। दुश्वार = कठिन। मर्म = रहस्य। ताकना = देखना। कलम करना = काटना। निवारण = दूर होना। महेर-मया =दया। सलट गया = पूरा हो गया। सतर्क = सावधान। आदमजाद् = मनुष्य। मुजब =अनुसार, अनुरूप। ठौर = स्थान। आकांक्षा = इच्छा। बौडम = अनाड़ी,अज्ञानी। अदीठ= अदृश्य। पारखी = पक्षी। पुख्ता = मजबूत। औझरी = आमाशय। ऊहापोह = अनिश्चय। आँखें टिमकारना = आँखें झपकाना। उद्यत = तैयार॥
(पृष्ठ सं. 118)
गोपनीय = छिपा हुआ। प्रतिरूप = स्वरूप। क्षत-विक्षत = घायल, निराश। श्लथ = थका हुआ। विवर्ण = निस्तेज। रिरियाना = चिरौरी करना। देवदूत = ऊहापोह। हिदायत = निर्देश। अहमियत = महत्त्व। साध= इच्छा। अजाने = बिना जाने।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ॥
1. एक था औघड़ महात्मा। मन-मौजी और नीम-पागल। इच्छा होती तो उगते सूरज के सामने आँखें मूंदकर सात बार जल चढ़ाता और कभी-कभी उसकी किरणों पर सात धोबे धूल उछाल देता। कभी माला जपने बैठता तो सात दिन और सात रातों तक उठता ही नहीं और कभी माला के मनके तोड़कर घूरे के हवाले कर देता। कभी कहता कि मनुष्य योनि के बावजूद वह गधे की जिन्दगी जी रहा है और कभी डींग हाँकता कि उससे बड़ा संन्त तो जन्मा है और न कोई जन्मेगा। कई बार मौन व्रत धारण कर लेता तो होंठ ही नहीं खोलता और कभी माँ-बहिन की भद्दी गालियाँ निकालता तो रुकने का नाम ही नहीं। फिर भी उसके प्रति भक्ति-भाव में कोई खामी नहीं पड़ी।
(पृष्ठ सं. 115)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तकं अपरा में संकलित ‘अनोखी परीक्षा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता राजस्थान के कथाकार विजयदान देथा हैं।६६
अपनी कहानी के प्रमुख पात्र की चरित्रगत विशेषताओं की कहानीकार ने इस गद्यांश में परिचय दिया है।
व्याख्या-लेखक कहता है-एक अघोरी साधु थी उसका स्वभाव विचित्र था। वह अपने मन का मालिक थे और लगभग आधा पागल था। उसका मन होता तो सबेरे उगते सूरज को सात बार जल चढ़ाता था तो कभी-कभी उसकी किरणों के ऊपर मुट्ठी भरकर धूल उछाल देता। कभी सात दिन और सात रातों तक माला जपता रहता और कभी माला के मनके तोड़कर कूड़े के ढेर पर बिखेर देता। कभी वह कहता था कि मनुष्य के शरीर में वह एक गधे की जिन्दगी बिता रहा है। कभी अपनी प्रशंसा करते हुए कहता कि उसके जैसा महात्मा आज तक पैदा नहीं हुआ और होगा भी नहीं। बहुत बार वह मौन धारण कर लेता और अपने होंठ भी नहीं खोलता और कभी माँ-बहिन की गन्दी गालियाँ बकता और रुकता ही नहीं था। उसके ऐसे असामान्य व्यवहार के बाद भी लोग उसका आदर करते थे, उसके प्रति उनका सम्मान कम नहीं होता था।
विशेष-
(1) औघड़ महात्मा के विचित्र स्वभाव के बारे में बताया गया है।
(2) भाषा सरल तथा विषयानुकूल है। नीम, पूरा, धोबे आदि लोकभाषा के शब्द प्रयुक्त हुए हैं।
(3) शैली परिचयात्मक तथा वर्णनात्मक है।
2. गुरु के पास उस वक्त न तो पत्थर थे और न कोई बाँकी टेढ़ी लकड़ी। सो मुक्कों से ही धमाधम पीटते-पीटते उसके ही हाथ दुख चले पर भाइयों ने चूं तक नहीं की। दोनों तरफ मामला पूरा खिंच गया। आखिर औघड़ सन्त को ही हार स्वीकार करनी पड़ी। मुस्कुराते हुए धीमे से बोला, “मुझे क्यों खामखाह परेशान कर रहे हो? अधिक शिष्य बनाने पर बड़े से बड़े पंथ का भी पतन होने में देर नहीं लगती।
(पृष्ठ सं. 116)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘अनोखी परीक्षा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता राजस्थान के कथाकार विजयदान देथा हैं।
औघड़ महात्मा पागलपन तक हठी था। यह किसी को अपना शिष्य नहीं बनाता था। एक बार उससे भी अधिक हठी दो भाई उसके शिष्य बनने आए और उसके पैर पकड़कर कहा- शिष्य बने बिना सात जन्म तक ये पैर नहीं छोड़ेंगे। व्याख्या-शिष्यों ने पैर कसकर पकड़े हुए थे। उस महात्मा के पास उस समय न तो पत्थर थे और न साधुओं जैसी टेढ़ी लकड़ी। उनसे शिष्य बनने का हठ करने वाले को मारा-पीटा जा सकता था। उनके अभाव में उसने उनको मुक्कों से ही धम-धम पीटना शुरू कर दिया। पीटते-पीटते उसके हाथ दुखने लगे परन्तु शिष्यों ने उफ तक न की। वे उसके पैर पकड़े रहे और महात्मा उनको पीटता रहा। अन्त में उस औघड़ साधु को ही हार माननी पड़ी। उसने मुस्कराते हुए धीरे से कहा-”मुझे क्यों व्यर्थ परेशान कर रहे हो। अधिक शिष्य बनाना ठीक नहीं होता। उससे बड़े-से-बड़े पन्थ का भी पतन हो जाता है।
विशेष-
(1) साधु शिष्य बनाना नहीं चाहता था परन्तु आने वाले दोनों भाई शिष्य बनने पर अड़े थे।
(2) भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण तथा विषय के अनुरूप है।
(3) शैली वर्णनात्मक है॥
3. मैंने तो किसी को भी अपना गुरु नहीं बनाया। समुची कुदरत ही मेरी गुरु है। कोई ज्ञान ग्रहण करने वाला चाहिए। भला कोई मनुष्य किसी मनुष्य को गुरु क्यों कर बन सकता है? खैर छोड़ो इसी झीने और दुश्वार मर्म को।
(पृष्ठ सं. 117)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘अनोखी परीक्षा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता राजस्थान के कथाकार विजयदान देथा हैं।
महात्मा की शर्त के अनुसार बकरे तथा तलवारें लेकर दोनों भाई उसको दण्डवत् करने पहुँचे तो वह नाराज हो गया। उसने कहा कि वे उसकी उसकी अनुमति लेने आए हैं तो इस जघन्य काम की वह अनुमति नहीं देगा। यह उनकी इच्छा कि वे बकरे की बलि चढ़ायें अथवा न चढ़ायें।
व्याख्या-महात्मा ने कहा कि उसका कोई गुरु नहीं है। उसने किसी को अपना गुरु नहीं बनाया। पूरी प्रकृति ही उसकी गुरु है। ज्ञान ग्रहण करने की इच्छा होना आवश्यक है। तभी मनुष्य को ज्ञान मिलता है। गुरु हो अथवा न हो। कोई मनुष्य किसी का गुरु क्यों बने ? महात्मा ने आगे कहा कि इस बारे में ज्यादा बात करना बेकार है। यह विषय बहुत गहरा और कठिन है।
विशेष-
(1) ज्ञानप्राप्ति ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा वाले मनुष्य की होती है। उसके लिए किसी को गुरु बनाना जरूरी नहीं है।
(2) भाषा विषयानुकूल और प्रवाहपूर्ण है।
(3) संवाद शैली है।
4. छोटा भाई तो अजीब ही ऊहापोह में फंस गया। चारों तरफ भटकता हुआ तीन दिन और तीन रात इधर-उधर चक्कर लगाता रहा। किन्तु उसे कहीं भी ऐसी गुप्त ठौर नहीं मिली, जहाँ न कोई देख रहा हो और न कोई सुन रहा हो। रात का अँधियारा भी आँखें टमकारते देखे बिना नहीं रहता। तिस पर उसके दो ही नहीं, असंख्य आँखें हैं। चंचल जुगनू भी बगैर देख नहीं माने। ज्योंही बकरे की मुंडी काटने को उद्यत होता तो राम जाने पत्थर पर भी आँख उग आती। बकरे और तलवार को देखने के लिए दमकने लगती।
(पृष्ठ सं. 118)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘अनोखी परीक्षा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता राजस्थान के कथाकार विजयदान देथा हैं॥ महात्मा ने अपना शिष्य बनाने के लिए दोनों भाइयों के सामने शर्त रखी थी कि वे बकरे की बलि ऐसे स्थान पर दें जहाँ कोई उनको ऐसा करते देखे, सुने नहीं। छोटा भाई बहुत प्रयास करने के बाद भी ऐसा स्थान तलाश नहीं कर सका।
व्याख्या-लेखक कहता है कि छोटा भाई बहुत असमंजस में पड़ गया। वह किसी एकान्त स्थान की तलाश में चारों तरफ भटकता रहा। तीन दिन और तीन रात वह इधर-उधर घूमता रहा। परन्तु उसको ऐसा गुप्त स्थान कहीं नहीं मिला, जहाँ कोई उसे देख या सुन न रहा हो। उसे लगता था कि रात को अँधेरा भी आँखें खोल-बन्द करके उसे देख रहा है। ऊपर से यह और कि उसकी आँखें दो ही नहीं अनेक हैं। वहाँ उड़ते चंचल जुगनँ भी उसे देख रहे हैं। वह जैसे ही तलवार उठाकर बकरे का सिर काटना चाहता वैसे ही ऐसा लगता कि पत्थर में भी आँखें पैदा हो गई हैं। पत्थर की वे आँखें बकरे तथा तलवार को देखने के लिए चमकने लगतीं। इस प्रकार उसे लगता कि सब उसी को देख रहे हैं।
विशेष-
(1) लेखक ने बताया है कि ईश्वर से कुछ अदृश्य नहीं है। वह सब कुछ देखता और सुनता है।
(2) भाषा सरल और विषयानुरूप है।
(3) शैली विवेचनात्मक है।
5. आखिर बुरी तरह परेशान व भीतर से क्षत-विक्षत होकर वह महात्मा के आसन पहुँचा। पूर्णतया श्लथ और विवर्ण। मानो महीनों की बीमारी या अनशन से उठा हो। तलवार और बकरा-दोनों की जिम्मेवारी से मुक्त होकर रिरियाते कहने लगा, माफ करिये, मुझे इस शर्त पर चेला बनने की कतई इच्छा नहीं है। इतनी बड़ी जीवंत दुनिया में कोई भी ऐसी गुप्त ठौर नहीं है, जहाँ मुझे या तलवार को या बकरे को कोई न कोई न देखता हो और न सुनता हो। धरती से ऊपर वायुमण्डल में भी मुझे ऐसी जगह कहीं नजर नहीं आती जो मेरे कृत्य को न देखे और न सुने।”
(पृष्ठ सं. 118)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अपरा’ में संकलित ‘अनोखी परीक्षा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता राजस्थान के कथाकार विजयदान देथा हैं।
छोटा भाई बहुत प्रयास करने पर भी महात्मा की शर्त पूरी नहीं कर सका। उसको ऐसा कोई एकान्त स्थान न मिला। जहाँ कोई भी उसे देख-सुन न रहा हो। अन्त में हारकर वह महात्मा के पास पहुँचा।
व्याख्या-लेखक कहता है कि छोटा भाई अपने प्रयत्न में सफल नहीं हुआ। वह खूब भटका परन्तु उसे कोई एकान्त स्थान नहीं मिला। हारकर वह महात्मा के पास पहुँचा। वह शरीर और मन से थका हुआ था। वह निढाल हो गया था। उसके मुँह का रंग उड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे कि वह महीनों बीमार रहकर उठा हो अथवा भूखा रहा हो। उसने बकरे की गर्दन काटने का विचार त्याग दिया था। इस जिम्मेदारी से मुक्त होने के लिए उसने गिड़गिड़ाते हुए महात्मा से कहा कि वह उनकी शर्त के अनुसार उनका शिष्य बनना नहीं चाहता। इस इतनी विशाल सजीव दुनिया में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ कोई उसको बकरे की बलि देते न देखे। हर स्थान पर बकरे को, तलवार को तथा उसको कोई-कोई देख रही है। पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल में भी उसको ऐसा कोई स्थान नहीं मिला, जहाँ कोई भी उसके काम को न देखे।
विशेष-
(1) छोटे भाई के इस कथन के माध्यम से लेखक ने ईश्वर के सर्वत्र व्याप्त होने का संदेश दिया है। उसकी दृष्टि से कुछ ही अदृश्य नहीं है। वह सब कुछ सुनता है।
(2) भाषा प्रवाहपूर्ण, विषयानुकूल तथा सरल है।
(3) शैली वर्णनात्मक है॥
6. तब उस औघड़ ने छोटे भाई के चरण स्पर्श करते कहा, तुझे किसी का भी शिष्य बनने की जरूरत नहीं है। और आज मेरी अन्तिम साध भी पूरी हुई। जिस गुरु की तलाश थी, वह मुझे अजाने ही मिल गया। और उधर तेरे बड़े भाई के उनमान बकरे की मुंडी काटने वाले हजार चेले भी मिल जाएँ तो किस काम के। उलटे पन्थ और गुरु की गरिमा ही घटाएँगे।
(पृष्ठ सं. 118)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘अनोखी परीक्षा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता राजस्थान के कथाकार विजयदान देथा हैं।
छोटे भाई ने पाया कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है। संसार में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ कोई उसको देख-सुन न रहा हो। अर्थात् ईश्वर सब कुछ देखता और सुनता है। उसने महात्मा की शर्तों पर उसका शिष्य बात अस्वीकार कर दिया।
व्याख्या-लेखक कहता है कि औघड़ ने छोटे भाई की बरत का मर्म समझा। उसने जान लिया कि ईश्वर सर्वव्याप्त है। उसने छोटे भाई के चरणों को छुआ और कहा कि उसको किसी का शिष्य बनने की आवश्यकता नहीं है। उसने बताया कि उस दिन उसकी अन्तिम इच्छा भी पूरी हो गई थी। वह जिस गुरु को तलाश कर रहा था, वह उसको अनजाने में ही मिल गया है। यदि बकरे का सिर काटने वाले उसके बड़े भाई के समान हजारों शिष्य मिल जायें तो उनसे क्या लाभ? वे तो पन्थ और गुरु की महिमा को घटाने वाले ही सिद्ध होंगे।
विशेष-
(1) भाषा सरल है तथा प्रवाहपूर्ण है। वह विषयानुरूप भी है।
(2) शैली वर्णनात्मक तथा संवादात्मक है।
(3) छोटे भाई को ईश्वर की सर्वत्र व्यापकता का आभास हो गया है। यह देखकर औघड़ साधु ने उसको अपना गुरु स्वीकार कर लिया।
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