Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 मैथिलीशरण गुप्त
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतवर्ष की भूमि किससे भरी हुई है ?
(क) घृत से
(ख) भावों से
(ग) पर्वतों से
(घ) नदियों से
उत्तर:
(ख) भावों से
प्रश्न 2.
यहाँ का जल कैसा है ?
(क) अमृत के समान
(ख) गरल के समान
(ग) गर्म
(घ) खारा
उत्तर:
(क) अमृत के समान
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘ज्ञान-गौरव-शालिनी’ किसके लिए कहा गया है?
उत्तर:
ज्ञान-गौरव-शालिनी भारत-भूमि को कहा गया है।
प्रश्न 2.
यहाँ की जलवायु कैसी है ?
उत्तर:
भारत की जलवायु अमृत के समान आलस्य दूर करने वाली तथा बलदायिनी है।
प्रश्न 3.
जल पीकर कौन प्रसन्न होता है?
उत्तर:
जल पीकर शरीर प्रसन्न होता है।
प्रश्न 4.
दान करने की बारी कब आती है?
उत्तर:
स्नान करने के बाद दान करने की बारी आती है।
प्रश्न 5.
इस लोक का अमृत क्या है ?
उत्तर:
गाय का दूध इस लोक का अमृत है।
प्रश्न 6.
पत्नी संयोग में क्या होती है?
उत्तर:
पत्नी संयोग में सम्पत्ति के समान सुखद होती है।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन समय का नीर किस प्रकार का था ?
उत्तर:
प्राचीन समय का नीर अमृत के समान था। जिसको पीकर शरीर प्रसन्न हो जाता था। वह आलस्य को भगाने वाला था तथा शरीर की शक्ति को बढ़ाने वाला था।
प्रश्न 2.
घृत के आधिक्य से किसका विकास होता है?
उत्तर:
गाय के घृत के आधिक्य से मनुष्यों को बल तथा पराक्रम विकसित होता था। शरीर पुष्ट और शक्तिशाली होने से रोगों का भय नहीं रहता था।
प्रश्न 3.
यहाँ की प्रभात वेला किस प्रकार की है?
उत्तर:
यहाँ अर्थात् प्राचीन भारत की प्रभात वेला पुनीत है। सभी मनुष्य उषाकाल में ही जाग जाते हैं तथा अपने-अपने कर्तव्य-कर्मों में लग जाते हैं, किन्तु आज ऐसा नहीं है लोग देर तक सोते रहते हैं।
प्रश्न 4.
नर-नारी देवालयों में क्या करते हैं?
उत्तर:
नर-नारी देवालयों में जाते हैं तथा वहाँ भगवान के दर्शन करते हैं और उनकी पावन कथा सुनते हैं। वे उनके गुणों का कीर्तन तथा मन में उनका मनन करते हैं। भगवान का चरणोदक लेकर राजा-प्रजी उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे अपने कर्तव्य पर दृढ़ रहें।
प्रश्न 5.
यहाँ के पुरुष कैसे हैं?
उत्तर:
यहाँ अर्थात् भारत के पुरुष सदाशय वाले हैं। उनके शरीर में अलौकिक कान्ति तथा मन में सुख-शान्ति है। वे यशस्वी हैं। वे देवताओं के समान दिखाई देते हैं।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत भूमि की विशेषताएँ पाठ में आए पद्यांशों के आधार पर बताइए।
उत्तर:
भारते अत्यन्त प्राचीन संस्कृति वाला देश है। भारत की भूमि ब्राह्मी स्वरूपा, धन-धान्य और ज्ञान गौरव सम्पन्न थी। वह शक्तिशालिनी, रुद्राणी के समान रूप वाली, शत्रु सृष्टि को नष्ट करने वाली तथा भव्यभावों से परिपूर्ण थी। उसके नगर, वन, पर्वत और नदियाँ सुन्दर थीं। भारत में भव्य भवन थे, जिन पर ऊँचे झंडे लहराते थे। वे आकाश में उड़ते बादलों से होड़ करते थे। भारत की जलवायु स्वास्थ्य के लिए उत्तम थी। वहाँ को जल अमृत के समान था। उसके पीने से आलस्य नष्ट हो जाता था तथा बल की वृद्धि होती थी। भारत की प्रभात सुन्दर होता था। लोग सवेरा होने से पूर्व ही जागकर अपने कामों में लग जाते थे। प्रातः उठकर वे स्नान करते थे। स्नान के बाद दान देने का नियम था। उस समय दानी अधिक और याचक कम थे।
भारत में गोपालन होता था। गायों को दूध अमृत के समान मधुर तथा पुष्टिकारक होता था। उस पर देवता भी मुग्ध थे। भारतीय उसे पीकर निरोग तथा स्वस्थ रहते थे। उस समय प्रत्येक घर में यज्ञ होते थे तथा उनका सुगन्धित धुआँ घरों में फैला रहता था। यज्ञों के कारण लोग स्वस्थ, कर्मशील तथा उत्साहपूर्ण होते थे। स्त्री-पुरुष तथा सभी मंदिरों में जाकर ईश्वर के दर्शन, भ्रमण, कीर्तन, मनन करते थे। वे ईश्वर से कर्तव्यनिष्ठ जीवन का वरदान माँगते थे। गृहस्थ अतिथि परायण थे तथा अतिथि सेवा में सदैव तत्पर रहते थे। उस समय पुरुष सदाशय और यशस्वी थे। उस समय की नारियाँ पति की अनुयायी, सीने, पिरोने, चित्रकारी तथा संगीत में निपुण होती थीं। वे पति का साथ बिना थके निभाती थीं। वे दुःख में धैर्य तथा सुख में शान्ति देती थी। वे शोक में सांत्वना, रोग में औषधि, संयोग में सम्पत्ति तथा वियोग में विपत्ति के समान थीं।
प्रश्न 2.
गोपालन के महत्व को पाठ में आए पद्यांशों के आधार पर समझाइए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में गोपालन का बहुत महत्व था। घर-घर में गायों पाली जाती थीं। गाय दूध देकर लोगों का पालन-पोषण किसी स्नेहमयी धाय के समान करती थीं। उसको दूध इस धरती लोक का अमृत माना जाता था। देवता भी उसके दूध पर मुग्ध थे तथा उसको पीना चाहते थे। प्रत्येक घर में गायें होती थीं और दूध देती थीं। उनका दूध पीकर भारतीय पुष्ट और बलवान शरीर वाले होते थे। गायों से दूध ही नहीं घी, दही आदि अन्य पदार्थ भी प्राप्त होते थे। भारत में घी-दूध आदि की कमी नहीं थी। इससे लोगों के बल-वीर्य की वृद्धि होती थी। आजकल जिस प्रकार लोगों को बीमारियाँ घेरे रहती हैं, वैसा उस समय नहीं था। लोग बीमार नहीं पड़ते थे तथा स्वस्थ रहते थे। उस समय गोवंश का पालन किया जाता था परन्तु आज वह पालन पोषण के अभाव में मर रहा है। गोवध किया जाता है। कवि के मन में प्रश्न उठता है कि क्या आज भारतभूमि प्राचीन भारतभूमि जैसी नहीं हो सकती? क्या आज गोवंश का पालन करके भारत के लोग और पुष्ट नहीं हो सकते !
प्रश्न 3.
यहाँ के पुरुषों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्राचीन भारत के श्रेष्ठ पुरुष सदाशयों वाले होते थे। वे अत्यन्त यशस्वी थे तथा उनके सुन्दर यश का उजाला पूरे विश्व में फैला हुआ था। उनके शरीर की कान्ति अलौकिक थी। उनके मन सदा सुख और शान्ति से भरे रहते थे। अपने सद्गुणों के कारण वह देवताओं के समान लगते थे। अपने इन गुणों के लिए वे समस्त विश्व में प्रसिद्ध थे।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) अपने अतिथियों से ………………. पावन कीजिए।
(ब) सुस्नान के पीछे ……………….. है हाल में।
(स) संसार यात्रा में ……………….. विपत्ति वियोग में।
उत्तर:
संकेत-उपर्युक्त पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या के लिए पूर्व में दिए गए महत्वपूर्ण पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ’ शीर्षक को देखिए तथा पढ़िए।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
मैथिलीशरण गुप्त किस नाम से विख्यात थे
(क) दद्दा
(ख) दादा
(ग) बाबा
(घ) चचा।
उत्तर:
(क) दद्दा
प्रश्न 2.
मैथिलीशरण गुप्त को माना जाता है
(क) स्वदेशी कवि
(ख) राष्ट्रकवि
(ग) प्रदेशीय कवि
(घ) महाकवि
उत्तर:
(ख) राष्ट्रकवि
प्रश्न 3.
पुरातन भारत में जल था
(क) वायुनाशक
(ख) भेदनाशक
(ग) आलस्यनाशक
(घ) सर्वविनाशक
उत्तर:
(ग) आलस्यनाशक
प्रश्न 4.
प्राचीन भारत में दान देने की परम्परा थी
(क) सोकर उठने के बाद,
(ख) भोजन करने के बाद
(ग) रात को सोने से पहले
(घ) प्रातः स्नान के बाद
उत्तर:
(घ) प्रातः स्नान के बाद
प्रश्न 5.
इस लोक का अमृत कहा गया है।
(क) गाय के दही को
(ख) गाय के दूध को
(ग) गाय के घी को
(घ) गाय के मढ़े को
उत्तर:
(ख) गाय के दूध को
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘हैं आज भी, पर आज वैसी जान पड़ती हैं कहाँ’ कथन किसके बारे में है?
उत्तर:
यह कथन भारत के नगरों, वनों, पर्वतों, नदियों इत्यादि के बारे में है। इनका प्रभाव अब पहले जैसा नहीं है।
प्रश्न 2.
बादलों से होड़ करके आकाश में क्या फहरा रहे हैं?
उत्तर:
बादलों से होड़ करके आकाश में उन्नत मंदिरों के झंडे फहरा रहे हैं।
प्रश्न 3.
भारत का जल आजकल कैसा हो गया है?
उत्तर:
भारत का जल आजकल आलस्यनाशक और बलदायक नहीं रहा है। उसका प्रभाव बदल गया है।
प्रश्न 4.
पहले भारतीय प्रात:काल क्या करते थे?
उत्तर:
पहले भारतीय प्रात:काल उषाकाल में जागकर अपने कर्तव्यकर्मों में लग जाते थे।
प्रश्न 5.
प्रातः जल्दी उठने पर वर्तमान सभ्यता का क्या प्रभाव देखा जाता है?
उत्तर:
देखा जाता है कि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से भारतीय सबेरा होने पर भी देर तक सोते रहते हैं।
प्रश्न 6.
दान देने वालों तथा याचकों के बारे में गुप्तजी ने क्या कहा है?
उत्तर:
गुप्तजी ने कहा है कि पहले दानी बहुत अधिक और याचक कम थे किन्तु आजकल माँगने वालों की संख्या बहुत बढ़ गई है।
प्रश्न 7.
प्राचीन भारत में प्रात:काल स्नान के पश्चात् भारतीय आनन्दपूर्वक किसकी तैयारी करते थे ?
उत्तर:
प्राचीन भारत में प्रात:काल स्नान के पश्चात् भारतवासी अपना सर्वस्व दान करने की तैयारी आनन्दपूर्वक करते थे।
प्रश्न 8.
धात्री के समान दूध कौन पिलाता है?
उत्तर:
गाय धात्री के समान दूध पिलाती है।
प्रश्न 9.
देवता किस पर मुग्ध हैं?
उत्तर:
देवता गाय के दूध पर मुग्ध हैं।
प्रश्न 10.
गाय के दूध को धरती का क्या कहा जाता है?
उत्तर:
गाय के दूध को धरती का अमृत कहा जाता है।
प्रश्न 11.
वर्तमान में भारत में गोवंश की क्या दशा है?
उत्तर:
वर्तमान में भारत में गोवंश की देखभाल में उपेक्षा होती है। गोवध भी किया जाता है।
प्रश्न 12.
प्राचीन भारत में मंदिरों में ईश्वर से अपने कर्तव्य पर दृढ़ रहने की प्रार्थना कौन करता था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में राजा और प्रजा दोनों ही ईश्वर से अपने-अपने कर्तव्य पालन के लिए प्रार्थना करते थे।
प्रश्न 13.
पहले भारतीय गृहस्थों का अतिथियों के प्रति कैसा भाव था?
उत्तर:
पहले भारतीय गृहस्थ अतिथियों को देवता मानकर उनका सत्कार करते थे।
प्रश्न 14.
भारतीय पुरुषों के तन-मन कैसे थे?
उत्तर:
भारतीय पुरुषों का तन कान्तिपूर्ण तथा मन शान्तिपूर्ण होता था।
प्रश्न 15.
भारतीय नारियाँ कब तक नही सोतीं थीं?
उत्तर:
भारतीय नारियाँ दिन अथवा रात में पति के सोने से पहले नहीं सोती थीं।
प्रश्न 16.
भारतीय नारियाँ जीवन-यात्रा में अपने पति का साथ कैसे निभाती थीं?
उत्तर:
भारतीय नारियाँ जीवन-यात्रा में अपने पति का साथ अथक भाव से निभाती थीं।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत-भूमि’ कविता किस ग्रन्थ से ली गई है तथा इसमें कवि ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर:
‘भारत-भूमि’ कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध काव्य’ भारत-भारती’ से उद्धृत है। इसमें कवि ने भारत-भूमि के अतीत गौरव का वर्णन किया है। कवि ने भारत की पुरानी गौरवशाली परम्पराओं के बारे में बताया है।
प्रश्न 2.
गुप्त जी को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी काव्य-रचनाओं में भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के सभी स्वरों को मुखरित किया है। आपके काव्य में भारत के गौरवपूर्ण अतीत का वर्णन है। उसमें भारत के सांस्कृतिक नवजागरण का प्रयास है। इसीलिए उनको राष्ट्रकवि कहा जाता है।
प्रश्न 3.
भारत भूमि की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारत भूमि ब्राह्मीस्वरूपा है। वह जीवों को जन्म देने वाली, ज्ञान देने और गौरव प्रदान करने वाली, साक्षात् लक्ष्मीरूपिणी और धन-धान्य से पूर्ण है। वह लोगों का पालन करती है। वह शत्रु की सृष्टि को नष्ट करने वाली है।
प्रश्न 4.
भारत में प्राचीन मन्दिर कैसे थे? अब उनकी क्या दशा है?
उत्तर:
भारत के प्राचीन मन्दिर भव्य और उन्नत थे। उन पर उँचे झंडे फहराते थे। अब उनमें से अधिकांश भूमितल में दब चुके हैं। जो शेष बचे हैं वे भी हो रहे हैं।
प्रश्न 5.
भारत का जल कैसा था? अब वह कैसा हो गया है?
उत्तर:
भारत का जल अमृत के समान था। वह आलस्य दूर करने वाला तथा शक्तिवर्धक था। अब उसका शक्तिवर्द्धक तथा ताजगी देने वाला यह प्रभाव नष्ट हो चुका है।
प्रश्न 6.
ऊषा भारतीयों को किस बात का संदेश देती थी?
उत्तर:
ऊषा भारतीय जनों को प्रातः उठने तथा अपने-अपने कर्तव्य-कर्मों में लग जाने का संदेश देती थी। वह देर तक, सूर्योदय के बाद भी, सोते रहने के विरुद्ध उनको सचेत करती थी।
प्रश्न 7.
वर्तमान सभ्यता के किस दोष के प्रति कवि ने सचेत किया है?
उत्तर:
वर्तमान सभ्यता के कारण लोग रात देर तक जागते हैं तथा प्रातः सूरज निकलने के बाद भी देर तक सोते रहते हैं। कवि ने इसको वर्तमान सभ्यता का दोष मानकर उसके प्रति सतर्क किया है। देर तक सोने वाला अपने जीवन का मूल्यवान् समय नष्ट कर देता है।
प्रश्न 8.
भारत में दान देने की प्रथा के बारे में गुप्त जी ने क्या कहा है?
उत्तर:
गुप्त जी ने बताया है कि भारत में प्रात: स्नान के बाद अपना सर्वस्व दान करने की परम्परा थी। उस समय दाता अधिक और याचक कम होते थे। आज इसके विपरीत याचकों की संख्या बहुत बढ़ गई है।
प्रश्न 9.
गायें पालने से क्या लाभ है?
उत्तर:
गायें पालने से अनेक लाभ हैं। गाय धात्री के समान अपना दूध पिलाकर लोगों को पालती है। उसका दूध इस धरती का अमृत है, देवता भी उस पर मुग्ध हैं। गाय का घी-दूध आदि शक्तिवर्धक पदार्थ हैं। वह बीमारियों से बचाते हैं।
प्रश्न 10.
प्राचीन भारत में यज्ञ की अग्नि कहाँ जलती थी?
उत्तर:
प्राचीन भारत में यज्ञ की अग्नि ब्राह्मणों के घरों में जलती थी। उससे सर्वत्र सुगन्ध फैलती थी। वह आलस्य दूर कर उत्साह की वृद्धि करती थी।
प्रश्न 11.
प्राचीनकाल में मंदिरों में कौन जाते थे तथा क्यों?
उत्तर:
प्राचीन काल में स्त्री-पुरुष, राजा-प्रजा सभी मंदिरों में जाते थे। वहाँ वे ईश्वर का दर्शन, श्रवण, मनन, कीर्तन आदि करते, थे। वे ईश्वर से अपने कर्तव्य के प्रति दृढ़ रहने की प्रार्थना करते थे।
प्रश्न 12.
भारत में अतिथि-सत्कार की परम्परा कैसी थी?
उत्तर:
भारत में अतिथि सत्कार की अनुपम परम्परा थी। गृहस्थ उनसे पूछते थे- हे माननीय, मेरे घर में रात में रहते समय आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ यदि कोई भूल हुई हो तो हमें क्षमा कीजिए। यदि अनुचित न लगे तो इस घर को आज भी पवित्र कीजिए।
प्रश्न 13.
भारतीय पुरुषों की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय पुरुषों की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- उस काल में भारतीय पुरुष सदाशय वाले होते थे।
- उनका शरीर अलौकिक कान्तिपूर्ण था।
- उनका मन शान्त और सुखी था।
- उनको देखकर देवताओं का भ्रम होता था।
प्रश्न 14.
भारतीय नारियाँ अपने पतियों के साथ किस प्रकार समय बिताती थीं?
उत्तर:
भारतीय नारियाँ अपने पति के साथ बिना थके काम करती थीं। वे दु:ख में धैर्य तथा सुख में शान्ति प्रकट करती र्थी। शोक में वे उनको सान्त्वना देती थीं तथा रोग होने पर औषधि के समान हितकारी उपाय करती थी। वे संयोग में सम्पत्ति के समान सुखदायक आचरण करती थीं। उनका वियोग उनके पति को विपत्ति के समान लगता था।
RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन भारत में महिलाओं की भूमिका को पठित काव्यांश के आधार पर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में महिलायें परिश्रमी थीं। वे आलसी नहीं थीं। वे अपना अवकाश का समय व्यर्थ ही नष्ट नहीं करती थीं। वे दिन तो क्या, रात में भी अपने पति से पहले सोती नहीं थीं। आशय यह है कि वे दिनभर अपने पति से भी अधिक समय तक काम करती। थीं। वे सिलाई-कढ़ाई जानती थीं। उनको चित्र बनाना भी आता था। उनको संगीत का ज्ञान और शौक था। वे सुन्दर गीत गाती थीं, कभी भी गन्दे गीत नहीं गाती थीं। पुराने भारत की नारियाँ अपने पतियों की परम सहयोगिनी थीं। पति के साथ रहकर वे बिना थके निरन्तर काम करती थीं।
थकना और आराम करना तो वे जानती ही नहीं थीं। जब पति संकट में होता था तो वे धैर्य का परिचय देती थीं। सुख के अवसर पर वे कभी उतावलापन नहीं दिखाती र्थी तथा परिवार वालों को सान्त्वना देती थीं। जब कोई बीमार होता था तो वे उसके लिए औषधि के समान हितकारिणी होती र्थी। वे उसके रोगनिदान तथा उपचार में सहायिका होती थीं। संयोग के अवसर पर वे अपने पति को उसी प्रकार आनन्दित करती थीं जिस प्रकार किसी को सम्पत्ति प्राप्त होने पर आनन्द मिलता है। उनका वियोग उनके पतियों के लिए अत्यन्त पीड़ादायक होता था और गहरी विपत्ति के समान होता था।
प्रश्न 2.
गोपालन का भारतीयों के जीवन में क्या आर्थिक और स्वास्थ्य-सम्बन्धी महत्व है? प्राचीन भारत में गोपालन के आधार पर बताइए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में गोपालन का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान था। घर-घर में गायें पाली जाती थीं और उनके दूध-घी आदि के सेवन द्वारा उत्तम स्वास्थ्य का आनन्द प्राप्त होता था। आज भी भारत में गाय का महत्व कम नहीं हुआ है वह अब भी उतनी ही उपयोगी है जितनी पहले थी। भारत एक कृषिप्रधान देश है। पशुपालन उससे ही जुड़ा हुआ एक व्यवसाय है। गोपालन आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है। गाय से मिलने वाले बछड़े बैल बनकर खेती तथा ग्रामीण क्षेत्र में अन्य कार्यों में सहायक होते हैं।
यद्यपि अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है किन्तु अब भी उनका महत्व कम नहीं हुआ। है। कच्चे मार्गों पर सामान ढोने आदि में वे अब भी सहायक होते हैं। गाय से हमको दूध प्राप्त होता है। दूध को पृथ्वी का अमृत कहते हैं। दूध-पीने से शरीर पुष्ट दूध से दूसरों का पोषण करती है। गाय से दूध के साथ ही दही, घी, मक्खन, मट्ठा आदि पदार्थ भी मिलते हैं। ये सभी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। गाय के दूध-घी आदि के सेवन करने से शरीर रोगमुक्त रहता है। इस प्रकार गोपालनं समाज को स्वास्थ्य तथा शक्ति प्रदान करने की कुंजी है। गाय से प्राप्त पदार्थों का विपणन भी किया जा सकता है। दूध तथा अन्य पदार्थों को बाजार में बेचने से आर्थिक लाभ भी कमाया जा सकता है। इस तरह गाय का भारतीयों के लिए आर्थिक तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी क्षेत्रों में गहरा महत्व है।
प्रश्न 3.
प्राचीन भारतीयों के पारिवारिक जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राचीन भारतीयों का पारिवारिक जीवन अनेक विशेषताओं से भरा-पूरा था। वे भव्य, उन्नत भवनों में निवास करते थे। उन पर उन्नत ध्वजाएँ लहराती थीं। वे स्वास्थ्यवर्धक, निर्मल जल पीते थे। प्रात:काल उठकर वे स्नान आदि दैनिक कर्म करते थे। वे घरों में होम की अग्नि प्रज्वलित करते थे। उस होमधूम से उनके घर सुगन्धित रहते थे। वे दानशील होते थे। स्नानदि के उपरान्त वे दान देने की प्रसन्नतापूर्वक तैयारी करते थे। उस समय दानियों की संख्या अधिक तथा याचकों की संख्या कम होती थी। उनके घरों में गायें पाली जाती थीं। उनके घी-दूध आदि पदार्थों का सेवन करके वे स्वस्थ रहते थे। भारतीय स्त्री-पुरुष देवालयों में ज़ाते थे तथ ईश्वर के दर्शन, श्रवण, कीर्तन, मनन आदि कार्यों में रुचि लेते थे। वे ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि वे अपने-अपने कर्तव्यों का पालन दृढ़तापूर्वक कर सकें।
भारतीय अतिथिपरायण थे। वे अतिथि की सुख-सुविधा का ध्यान रखते थे। वे निवेदन करते थे कि वे कुछ दिन और उनको सत्कार और सेवा का अवसर प्रदान करें। भारतीय स्त्री-पुरुष उच्चाशय, सदाचारी, परिश्रमी तथा कार्यकुशल होते थे। वे एक-दूसरे का सहयोग करके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन में योगदान देते थे।
प्रश्न 4.
प्राचीन भारतीय समाज में पुरुषों तथा स्त्रियों की भूमिका की तुलना कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में समाज में पुरुष सदाशय वाले होते थे। वे यशस्वी थे तथा उनका यश पूरे विश्व में फैला था। उनका मन शान्त तथा तन कान्तिपूर्ण था। उनको देखकर भ्रम होता था कि वे मनुष्य न होकर देवता हों। उस काल की स्त्रियाँ भी पुरुषों से पीछे नहीं थीं। वे श्रमशीला थीं तथा बिना थके हुए पति के कार्यों में हाथ बँटाती थीं। वे रात में पति के सोने के बाद सोती थीं। वे सिलाई, कढ़ाई, चित्रकारी और संगीत में निपुण थीं। वे सुन्दर गीत गाती थीं। वे बिना थके हुए अपने पतियों के साथ श्रम करती थीं। वे दुःखे में उनको धैर्य बँधातीं थीं तथा सुख में शान्त रहती थीं। वे शोक में सान्त्वना देने वाली थीं। रोग में औषधि के समान थीं। संयोग में वे सम्पत्ति तथा वियोग में विपत्ति थीं। देश तथा समाज के निर्माण और संचालन में पुरुषों और स्त्रियों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण थी।
प्रश्न 5.
‘भारत-भूमि’ कविता के आधार पर बताइए कि गुप्त जी को वर्तमान भारत से क्या शिकायतें हैं?
उत्तर:
प्राचीन भारत में जीवन सम्पत्तिशाली, ज्ञानसम्पन्न, धन-धान्यपूर्ण तथा यशस्वी था। वहाँ भव्य भवन थे। वहाँ के नगर, पर्वत, वन, नदी आदि सुन्दर थे। भारतीय ईश्वरभक्त, अतिथिपरायण, दानी, पराक्रमी और शक्तिशाली थे। वहाँ की स्त्रियाँ भी श्रमशीला थीं। वहाँ गोपालन होता था, जीवन समृद्ध था। गुप्त जी ने ‘भारत-भूमि’ कविता में भारतीयों के गौरवशाली अतीत का चित्रण किया है। साथ ही उन्होंने भारत की वर्तमान दशा के साथ उसकी तुलना भी की है। वर्तमान भारत का पतन देखकर वे क्षुब्ध हुए हैं।
गुप्त जी को शिकायत है कि वर्तमान भारत में नगर, वन, पर्वत, नदियाँ वैसी नहीं रह गई हैं जैसी वे पहले थीं। वे बदल गई हैं। इसका कारण यह है कि संभवत: भारतीय भी पहले जैसे नहीं रहे हैं। भारत के विशाल भव्य भवन भूतल में दब गए हैं, शेष गिरासू हो रहे हैं। भारत की स्वास्थ्यवर्धक जलवायु भी अब पहले जैसी नहीं रह गई है। उसमें आलस्य दूर करने तथा बल बढ़ाने के गुण अब नहीं बचे हैं। प्रातः काल लोग जल्दी जागकर अपने कार्य अब नहीं करते।
वे देर तक सोते रहते हैं। दान देने वाले तो आज भी हैं परन्तु उनकी संख्या घट गई है। अब याचक अधिक दानी कम हैं। भारत में आज गोपालन पर ध्यान नहीं दिया जाता। गायों के संरक्षण, पालन और वर्धन के स्थान पर अब उनकी उपेक्षा होती है और गोवध किया जाता है। आज ब्राह्मणों के घरों में यन की अग्नि नहीं जलती। उसकी सुगन्ध सर्वत्र नहीं फैलती, लोग देवालयों में कर्तव्य-निष्ठा बनाये रखने के लिए प्रार्थना नहीं करते। अतिथि का आगमन बोझ समझा जाता है। किसी के आने पर उसका सत्कार नहीं होता। वह कब जायेगा, यही चिन्ता रहती है। पुरुष पहले जैसे सदाशय नहीं हैं। उनके शरीर की कान्ति तथा मन की शांति नष्ट हो चुकी है। स्त्रियाँ पति-सेवा परायण नहीं हैं। उनमें पहले जैसी कर्तव्य भावना नहीं है। वे परिवार और पति के हित की अपेक्षा अपने हित तथा अधिकारों को अधिक महत्व देती हैं।
कवि परिचय जीवन-परिचय-
मैथिलीशरण गुप्त को जन्म चिरगाँव जिला झाँसी(उत्तरप्रदेश) में सन् 1886 ई. में हुआ था। आपके पिता का। नाम सेठ रामचरण था। आपने स्वाध्याय के द्वारा ही शिक्षा ग्रहण की थी। ‘सरस्वती’ के सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने पर आपकी काव्य-प्रतिभा का विकास हुआ था। हिन्दी-संसार में गुप्त जी को ‘दद्दा’ के नाम से जाना जाता था। उनके साहित्य में राष्ट्रीय विशेषताओं के कारण ही महात्मा गाँधी ने उनको ‘राष्ट्रकवि’ घोषित करके सम्मानित किया था। आपका देहावसान सन् 1964 ई. में हो। गया था।
साहित्यिक परिचय-गुप्त जी को भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्रीयता से प्रबल अनुराग था। उनका यह अनुराग उनके साहित्य में व्यक्त हुआ है। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए आगरा विश्वविद्यालय ने सन् 1948 ई. में तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने सन् 1958 ई. में आपको डी. लिट्. की मानद उपाधियाँ प्रदान की थीं। आपकी ‘साकेत’ नामक महाकाव्य पर मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। आपका प्रसिद्ध ग्रन्थ’ भारत-भारती’ भारत के सांस्कृतिक जागरण का अग्रदूत है।
गुप्तजी ने परिष्कृत खड़ी बोली में काव्य रचना की है। आपकी भाषा सरल, सरस तथा संस्कृतनिष्ठ है। उनकी संवाद रचना उत्कृष्ट है। गुप्तजी ने मुक्तक तथा प्रबन्ध काव्य शैलियों में काव्य-रचनाएँ की हैं। आपकी अलंकार योजना स्वाभाविक और व्यवस्थित है। आपने तुकान्त-अतुकान्त सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है।
कृतियाँ-‘साकेत’ (महाकाव्य) तथा पंचवटी, भारत-भारती, यशोधरा, जयद्रथवध, सिंहराज-जयसिंह, द्वापर आदि आपकी प्रमुख प्रबन्धं और मुक्तक काव्य-रचनाएँ हैं।
पाठ-परिचय
भारत-भूमि’ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘भारत-भारती’ से उद्धृत है। कवि ने इस पद्यांश में भारत की प्राचीन परंपराओं का चित्रण किया है।
भारत की भूमि ब्राह्मी-स्वरूपा, ज्ञानदायिनी, लक्ष्मीरूपिणी तथा धन-धान्यपूर्णा थी। भारतीय प्राचीन नगर, वन, पर्वत नदियाँ तो आज भी हैं परन्तु वे वैसे नहीं हैं। प्राचीन काल में भारतीय भवनों पर सुंदर ध्वजाएँ लहराती थीं। वे मंदिर नष्ट हो चुके हैं अथवा नष्ट होने वाले हैं। भारत की जलवायु स्वास्थ्यवर्द्धक र्थी। यहाँ का जल आलस्यनाशक तथा बलवर्धक था। पानी का वह सद्गुण अब नष्ट हो चुका है। भारत का प्रभात मनोहर था। लोग शीघ्र जागकर कर्त्तव्य-कर्मों में लग जाते थे परन्तु भारतीय आज गहरी नींद से जागे ही नहीं हैं। भारत में स्नान के बाद दान देने का नियम था। दानी अधिक लेने वाले कम थे। दानी और याचक का यह नियम भी उलट चुका है।
प्राचीन भारत में गायें पाली जाती थीं। उनका दूध-घी आदि बलवर्धक होता था। लोग व्याधि-मुक्त रहते थे। आज वह गोवंश दुर्दशापूर्वक मर रहा है और लोग बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। पहले घरों में होम की अग्नि जलती थी और उनकी सुगंध सर्वत्र व्याप्त हो जाती थी। उससे पुण्य और उत्साह की वृद्धि होती थी। नर-नारी, राजा-प्रजा सभी मंदिरों में जाते थे, कीर्तन-भजन द्वारा ईश्वर का आशीर्वाद लेते थे और अपना कर्तव्य पूरा करते थे। प्राचीन भारत में अतिथि को देवता मानकर पूजा जाता था। उस काल के पुरुष देवताओं जैसे थे।
उनके तन सुंदर तथा मन शान्त थे। वे यशस्वी थे। प्राचीन भारतीय नारियाँ आलसी नहीं थीं। वे चित्रकारी, संगीत, गृहकार्यों में कुशल र्थी। रात में पति के सोने के बाद सोती थीं। वे शोक में सान्त्वना देने वाली थीं तथा रोगी के लिए औषध के समान थीं। वे संयोग में सुखद तथा विपत्ति से बचाने वाली थीं।
महत्त्वपूर्ण पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।
1. भारत भूमि
ब्राह्मी-स्वरूपा, जन्मदात्री, ज्ञान-गौरव-शालिनी,
प्रत्यक्ष लक्ष्मीरूपिणी, धन-धान्यपूर्णा, पालिनी,
दुर्द्धर्ष रुद्राणी स्वरूपा शत्रु-सृष्टि-लयंकरी,
वह भूमि भारतवर्ष की है भूरि भावों से भरी॥
वे ही नगरे, वन, शैल, नदियाँ जो कि पहले थीं यहाँ
हैं आज भी, पर आज वैसी जान पड़ती हैं कहाँ ?
कारण कदाचित् है यही-बदले स्वर हम आज हैं,
अनुरूप ही अपनी दशा के दीखते सब साज हैं॥
कठिन शब्दार्थ-जन्मदात्री = जन्म देने वाली। लक्ष्मी रूपिणी = लक्ष्मी के स्वरूप वाली। पालिनी = पालन करने वाली। दुर्द्धर्ष = भयंकर। लयंकरी = नाश करने वाली। शैल = पर्वत। अनुरूप = समान। साज = सामान॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत-भूमि’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
कवि ने भारत के अतीत गौरव तथा ऐश्वर्य का वर्णन इन पंक्तियों में किया है। कवि को खेद है कि भारतीय भूमि के ये सद्गुण आज कहीं दिखाई नहीं देते।
व्याख्या-गुप्त जी भारत भूमि के प्राचीन गौरव का वर्णन कर रहे हैं। पुरातन काल में भारत की भूमि ब्राह्मी स्वरूपा थी। वह जन्म देने वाली, ज्ञान और गौरव से युक्त, देवी लक्ष्मी का साक्षात् रूप, धन-सम्पत्ति से पूर्ण, समस्त जीव-जन्तुओं को पालन-पोषण करने वाली, रुद्राणी के समान भयंकर स्वरूप वाली तथा शत्रु की सृष्टि को नष्ट करने वाली थी। भारत की वह भूमि अनेक सुंदर भावों से भरी थी।
आज भी यह भूमि है। नगर, वन, पर्वत और नदियाँ भी वही हैं। किन्तु ये सब पहले के समान प्रतीत नहीं होते हैं। इसका कारण संभवत: यह है कि हम स्वयं पहले जैसे नहीं रहे हैं तथा बदल गए हैं। आज के साज-सामान भी हमारी बदली हुई अवस्था के अनुसार बदल गए हैं।
विशेष-
(i) भाषा सरल, सरस है, संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त है।
(ii) अनुप्रास अलंकार, चित्रात्मक शैली है।
(iii) भारत भूमि के स्वर्णिम अतीत का चित्रण है।
(iv) मुरत के पतन पर कवि ने दु:ख व्यक्त किया है तो उसे भारतीयों के परिवर्तित सोच का फल बताया है।
2. भवन
चित्रित घनों से होड़ कर जो व्योम में फहरा रहेवे
केतु उन्नत मन्दिरों के किस तरह लहरा रहे?
इन मन्दिरों में से अधिक अब भूमितल में दब गये,
अवशिष्ट ऐसे दीखते हैं अब गये या तब गये॥
कठिन शब्दार्थ-घन = बादल। व्योम = आकाश। केतु = ध्वजा, झंडा। मंदिर = भवन। अवशिष्ट = शेष।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘भारत-भारती’ से उद्धृत है तथा हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित है। कवि ने प्राचीन भारत के भव्य भवनों के बारे में बताया है जो अब नष्ट हो चुके हैं।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्राचीन भारत में भव्य भवन थे। वे भवन अत्यन्त ऊँचे थे। ऊपर सुंदर ध्वजाएँ लहराती थीं तथा आकाश में छाए हुए रंग-बिरंगे बादलों के समान प्रतीत होती र्थी। उन उन्नत भवनों में से अनेक तो अबे भूमितल में दब चुके हैं। जो शेष बचे हैं, वे भी गिरने के करीब हैं।
विशेष-
(i) भाषा सरल, सरस और प्रवाहपूर्ण है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) उपमा अलंकार है।
(iv) प्राचीन भारत के भव्य उन्नत भवनों का वर्णन है।
3. जलवायु
पीयूष-सम, पीकर जिसे होता प्रसन्न शरीर है,
आलस्य-नाशक, बल-विकासक उस समय का नीर है।
है आज भी वह, किन्तु अब पड़ता न पूर्व प्रभाव है,
यह कौन जाने नीर बदला या शरीर-स्वभाव है?॥
कठिन शब्दार्थ-पीयूष = अमृत। नीर = जल॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत-भूमि’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
कवि ने प्राचीन भारत के जल को स्वास्थ्य के लिए उत्तम तथा हितकारी बताया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्राचीन भारत की जलवायु बहुत स्वास्थ्यवर्द्धक थी। उस समय यहाँ का जल अमृत के समान था। उसको पीकर शरीर प्रसन्न होता था। वह आलस्य को दूर करने वाला तथा शक्तिवर्द्धक था। आज भी भारत में जल तो वही है किन्तु उसका पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा है। कहा नहीं जा सकता कि इसका क्या कारण है। क्या पानी बदल गया है अथवा भारतीयों के शरीर में ही परिवर्तन हो गया है।
विशेष-
(i) सरल, भावानुकूल भाषा है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) उपमा तथा अनुप्रास अलंकार हैं।
(iv) पुराने भारत के जल को स्वास्थ्य के लिए हितकर बताया है। कवि को खेद है कि वर्तमान में जल का प्रभाव वैसा नहीं रहा
4. प्रभात
क्या ही पुनीत प्रभात है, कैसी चमकती है मही;
अनुरागिणी ऊषा सभी को कर्म में रत कर रही।
यद्यपि जगाती है हमें भी देर तक प्रतिदिन वही,
पर हम अविध निद्रा-निकट सुनते कहाँ उसकी कहीं?॥
कठिन शब्दार्थ-पुनीत = पवित्र। मही = धरती। अनुरागिणी = प्रेम करने वाली। रत = लीन। अविध = अटूट। कही = कहना।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत भूमि’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
कवि ने,प्रभातकाल के सौन्दर्य का वर्णन किया है। पहले लोग जल्दी जागकर दैनिक कर्म करने लगते थे किन्तु नई सभ्यता में वे देर तक सोते रहते हैं।
व्याख्या- कवि कहता है कि प्रभात का समय अत्यन्त मनोहर तथा पवित्र है। सूर्योदय होने के कारण धरती अत्यन्त चमक रही है। प्रेम करने वाली ऊषा सभी प्राणियों को नींद से जगाकर अपने-अपने कामों में लग जाने की प्रेरणा दे रही है। यद्यपि ऊषा हम को प्रतिदिन नींद से पहले की तरह आज भी जगाती है परन्तु गहरी अटूट नींद में सोने वाले हम उसकी आवाज नहीं सुनते हैं।
विशेष-
(i) भाषा सरस, मधुर तथा विषयानुरूप है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार हैं।
(iv) पुरातन युग में सवेरे लोग जल्दी जाग जाते थे किन्तु अब नई सभ्यता के काल में वे देर तक सोते रहते हैं। देर तक सोना कवि की दृष्टि में वर्तमान का दोष है।
(v) भाव साम्य
Early to bed and early to rise
Makes a man healthy, wealthy and wise.
उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरुन सिखा धुनि कान।
गुरु तें पहलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान। – तुलसीदास
5. दान
सुस्नान के पीछे यथाक्रम दान की बारी हुई,
सर्वस्व तक के त्याग की सानन्द तैयारी हुई।
दानी बहुत हैं किन्तु याचक अल्प हैं उस काल में,
ऐसा नहीं जैसी कि अब प्रतिकूलता है हाल में॥
कठिन शब्दार्थ-यथाक्रम = कार्यक्रम के अनुसार। सर्वस्व = सब कुछ। याचक = माँगने वाला। अल्प = कम। प्रतिकूलता = विपरीत भाव॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत भूमि’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। यह अंश उनकी प्रसिद्ध रचना ‘भारत भारती’ से लिया गया है।
कवि ने प्राचीन भारत की संस्कृति में दान देने की परिपाटी का उल्लेख किया गया है। तब दानी बहुत थे किन्तु आज वैसा नहीं है।
व्याख्या- कवि कहता है कि प्राचीन भारत में प्रात:काल ही स्नान करने की प्रथा थी। लोग स्नान के पश्चात् दान देने के लिए नियमानुसार तैयार होते थे। दान देना आनन्दपूर्ण कार्य माना जाता था। उस समय दाता लोगों की संख्या अधिक होती थी तथा माँगने वालों की संख्या कम होती थी। अब यह क्रम उलट गया है। आज माँगने वाले बहुत अधिक हैं और दान दाता हूँढ़े नहीं मिलते।
विशेष-
(i) भाषा सरल, मधुर और प्रवाहपूर्ण है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) अनुप्रास अलंकार है॥
(iv) प्राचीन भारत में दान देने की परिपाटी प्रचलित थी।
(v) इतिहास में प्रसिद्ध है कि सम्राट हर्षवर्धन अपना सर्वस्व याचकों को दे देते थे। वह अपने शरीर से वस्त्र भी उतारकर दे देते थे। अपनी बहिन राज्यश्री से वस्त्र माँगकर पहनते थे।
6. गो-पालन
जो अन्य धात्री के सदृश सबको पिलाती दुग्ध हैं,
(है जो अमृत इस लोक का, जिस पर अमर भी मुग्ध हैं।)
वे धेनुएँ प्रत्येक गृह में हैं दुही जाने लगी
यों शक्ति की नदियाँ वहाँ सर्वत्र लहराने लगीं॥
घृत आदि के आधिक्य से बल-वीर्य का सु-विकास है,
क्या आजकल का-सा कहीं भी व्याधियों का वास है?
है उस समय गो-वंश पलता, इस समय मरता वही।
क्या एक हो सकती कभी यह और वह भारत मही?॥
कठिन शब्दार्थ-धात्री = धाय, पालन-पोषण करने वाली। अमर = देवता। धेनु = गाय। शक्ति की नदियाँ = गायें। घृत = घी। आधिक्य = अधिकता। बल-वीर्य = शक्ति और पराक्रम। व्याधि = बीमारी। यह और वह = वर्तमान और पुरातन।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत भूमि’ कविता से उधृत है। इसकी रचना राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने की है। यह उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ’ भारत भारती’ से लिया गया है।
कवि ने प्राचीन भारत में गाय की महत्ता के बारे में बताया है। गो पालन से दूर होने से वर्तमान पीढ़ी अशक्त होती जा रही है।
व्याख्या-कवि कहता है कि गाय हमको किसी धाय के समान अपना दूध पिलाकर हमारा पालन-पोषण करती है। गाय का दूध इस संसार का अमृत है। गाय के दूध पर देवता भी मुग्ध रहते हैं। प्राचीनकाल में गोपालन होता था। प्रत्येक घर में गायें पाली जाती थीं और उनका दूध दुहा जाता था। गाय का दूध बलवर्द्धक होता है। अत: ऐसा लगता था कि घर-घर में शक्ति की नदियाँ लहरा रही हैं।
घी आदि की अधिकता होने के कारण पहले के भारतवासी बलवान और पराक्रमी थे। उस समय वे आजकल के मनुष्यों की तरह रोगों के शिकार नहीं होते थे। उस समय गोवंश को पाला जाता था किन्तु आज गाये और उसके बच्चे भूखे-प्यासे मरते हैं। कवि पूछता है कि क्या पुराने भारत और आज के भारत की धरती एक समान हो सकती है? आशय यह है कि क्या आज भी गोपालन तथा गो संरक्षण पहले की तरह किया जा सकता है।
विशेष-
(i) भाषा सरल, सरस और विषयानुरूप है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) प्राचीन समय में गोवंश पालन और संरक्षण का वर्णन किया गया है। वर्तमान में इसकी आवश्यकता बताई गई है।
(iv) अनुप्रास और रूपक अलंकार हैं।
7. होमाग्नि
निर्मल पवन जिसकी शिखा को तनिक चंचल कर उठी-
होमाग्नि जलकर द्विज-गृहों में पुण्य परिमल भर उठी॥
प्राची दिशा के साथ भारत-भूमि जगमग जग उठी,
आलस्य में उत्साह की-सी आग देखो, लग उठी॥
शब्दार्थ-निर्मल = स्वच्छ। शिखा = चोटी, लौ। तनिक= थोड़ा। होमाग्नि = यज्ञ की आग। द्विज = ब्राह्मण। परिमल = गन्ध। प्राची = पूर्व॥
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘ भारतभूमि’ शीर्षक कविता से लिया गया है। यह कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध ग्रन्थ’ भारत भारती’ से उधृत है।
गुप्तजी कहते हैं कि प्राचीन भारत में घरों में यज्ञ की अग्नि जलती थी। उससे पूर्व के देशों में भारत की भूमि जगमगाया करती थी।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्राचीन भारत में द्विजों के घरों में यज्ञ की अग्नि जलकर उसे सुगन्ध से भर देती थी। जब स्वच्छ वायु प्रवाहित होती थी तो उसकी लौ थोड़ा-सा हिलने लगती थी। उस यज्ञ की अग्नि से पूरी पूर्वी दिशा तथा भारत की भूमि जगमगाती थी। वह यज्ञाग्नि ऐसी लगती थी जैसे उत्साह की प्रबल ओग ने आलस्य को भगा दिया हो।
विशेष-
(i) भाषा सरल, मधुर और साहित्यिक है।
(ii) अनुप्रास और उपमा अलंकार हैं।
(iii) प्राचीन भारत में घर-घर में होम होता था, जिससे वातावरण और सुगन्धित होता था।
(iv) यज्ञ का भारतीय वैदिक धर्म में विशेष स्थान है।
8. देवालय
नर-नारियों का मन्दिरों में आगमन होने लगा,
दर्शन, श्रवण, कीर्तन, मनन से मग्न मन होने लगा।
ले ईश-चरणामृत मुदित राजा-प्रजा अति चाव से
कर्तव्य दृढ़ता की विनय करने लगे समभाव से॥
शब्दार्थ-देवालय = मंदिर दर्शन = देखना। श्रवण = सुनना। कीर्तिन= स्तुति गाना। मनन = चित्र। चरणामृत = पैरों के धोने का अमृत समान जल। मुदित = प्रसन्न। चाव = इच्छा, लगन। दृढ़ता = अटल रहना।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत-भूमि’ कवित से उद्धृत है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त है।
कवि ने इन पंक्तियों में प्राचीन भारत के निवासियों की भक्ति-भावना तथा मंदिरों का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्राचीन भारत में स्त्री-पुरुष मन्दिरों में जाया करते थे। वहाँ वे ईश्वर के दर्शन करते थे तथा ईश्वर से संबंधित कथाओं को सुनते थे। वे ईश्वर के स्वरूप का चिंतन करते थे तथा उसका कीर्तन किया करते थे। भगवान के चरणों का अति चाव से ग्रहण करके राजा और प्रजा दोनों ही स्वयं को धन्य मानते थे। वे भगवान से प्रार्थना करते थे कि वे अपने-अपने कर्तव्यों का दृढ़तापूर्वक पालन करते रहें। ऐसा प्रार्थना दोनों ही समान रूप से किया करते थे।
विशेष-
(i) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) प्राचीन भारत के राजा-प्रजा दोनों के ईश्वर भक्ति में लगे रहने के बारे में बताया गया है।
(iv) अनुप्रास अलंकार है।
9. अतिथि-सत्कार।
अपने अतिथियों से वचन जाकर गृहस्थों ने कहे
सम्मान्य! आप यहाँ निशा में कुशलपूर्वक तो रहे।
हमसे हुई हो चूक जो कृपया क्षमा कर दीजिए –
अनुचित न हो तो, आज भी यह गेह पावन कीजिए।
शब्दार्थ-अतिथि = अनायास आया हुआ मेहमान। सम्मान्य = सम्मानीय, आदरणीय। निशा = रात। चूक = भूल। गेह = मकान भवन।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत-भूमि’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। यह उनके ग्रन्थ भारत-भारती से उधृत है।
कवि बंता रहा है कि प्राचीन काल में भारतीय अतिथि-परायण होते थे तथा उनके स्वागत-सत्कार में रहते थे।
व्याख्या-कवि कहता है कि जब घर पर कोई अतिथि आकर ठहरता था तो गृहस्वामी उसका प्रसन्नता के साथ स्वागत-सत्कार करते थे। वे उससे पूछते थे हे आदरणीय अतिथि, आपको मेरे घर में रात्रि को कोई कष्ट तो नहीं हुआ। आप कुशलतापूर्वक तो रहे? यदि आपके सत्कार में हमसे कोई भूल हो गई हो तो कृपा करके हमको क्षमा करें। यदि आपको अनुचित प्रतीत न हो तो एक दिन और रुकें और अपने निवास से इस घर को पवित्र करें।
विशेष-
(i) भाषा सरल और मधुर है तथा उसमें प्रवाह है।
(ii) प्राचीन भारत के लोगों के अतिथिपरायण होने का चित्रण है।
(iii) शैली वर्णनात्मक है। इति वृत्तात्मकता है।
(iv) अनुप्रास अलंकार है।
10. पुरुष
पुरुष-प्रवर उस काल के कैसे सदाशय हैं अहा!
संसार को उनका सुयश कैसा समुज्जवल कर रहा!।
तन में अलौकिक कान्ति है, मन में मही सुख-शान्ति है,
देखो न, उनको देखकर होती सुरों की भ्रान्ति है!॥
शब्दार्थ-प्रवर = श्रेष्ठ। सदाशय = श्रेष्ठ पवित्र विचारों वाला। समुज्जवल = प्रकाशपूर्ण। अलौकिक = लोकोत्तर। कान्ति = शोभा। सुर = देवता। भ्रान्ति = भ्रम।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित “भारत-भूमि” शीर्षक कविता से उधृत है। इसकी रचना राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने की है।
कवि ने प्राचीन भारत के पुरुषों का वर्णन किया है तथा उनको उच्च विचारों वाला कान्तिवान बताया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्राचीन भारत में वहाँ के पुरुष अत्यन्त पवित्र और उच्च विचारों वाले थे। उनका यश पूरे विश्व में फैला था तथा इस कारण पूरा संसार प्रकाशपूर्ण और देदीप्यमान दिखाई दे रहा था। उनके शरीर की शोभा अलौकिक और अनुपम थी। उनके मन सदा शान्त रहते थे। वे अत्यन्त सुखी थे। उनको देखने पर वे देवताओं जैसे प्रतीत होता था। यह भ्रम होता था कि वे मनुष्य नहीं देवता हैं।
विशेष-
(i) भाषा सरल, मधुर और तत्सम शब्दों वाली है।
(ii) शैली वर्णात्मक, इतिवृत्तात्मक है।
(iii) भ्रान्तिमान अलंकार है।
(iv) प्राचीन भारत के श्रेष्ठ पुरुषों के अलौकिक गुणों का चित्रण हुआ है।
11. स्त्रियाँ
आलस्य में अवकाश को वे व्यर्थ ही खोती नहीं,
दिन क्या, निशा में भी कभी पति से प्रथम सोती नहीं,
सीना, पिरोना, चित्रकारी जानती हैं वे सभीसंगीत भी,
पर गीत गन्दे वे नहीं गातीं कभी॥ 13॥
संसार-यात्रा में स्वपति की वे अटल अश्रान्ति हैं,
हैं दुःख में वे धीरता, सुख में सदा वे शान्ति हैं।
शुभ सान्त्वना है शोक में वे, और ओषधि रोग में,
संयोग में सम्पत्ति हैं, बस हैं विपत्ति वियोग में॥14॥
शब्दार्थ-अवकाश = काम से छुट्टी का समय। सीना-पिरोना = कपड़ों की सिलाई का काम। चित्रकारी = चित्र बनाना। अश्रान्ति = थकावट न होना। धीरता = धैर्य। सान्त्वना = धीरज। औषधि = दवा। संयोग = मिलन। सम्पत्ति = धन-ऐश्वर्य के समान सुख दायिनी।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘भारत-भूमि’ शीर्षक कविता से लिया गया है, यह राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध ग्रन्थ भारत-भारती से उद्धृत है।
कवि ने भारत की महिलाओं को अपने पति की सच्ची सहयोगिनी बताया है, वे श्रमशीला तथा विविध कलाओं को जानने वाली र्थी। व्याख्या-कवि का कहना है कि भारत की महिलायें आलसी नहीं होतीं। वे अपना अवकाश का समय व्यर्थ नष्ट नहीं करतीं। दिन की तो बात ही क्या है, वे रात में भी पति से पहले कभी नहीं सोतीं। वे वस्त्रों की सिलाई करने और चित्र बनाने के कार्यों में कुशल होती हैं। वे संगीतज्ञा भी होती हैं परन्तु कभी भी गन्दे गीत नहीं गाती। वे अपने पति का साथ इस संसार में जीवनभर बिना थके हुए देती हैं। वे दु:ख के समय धैर्य तथा सुख के समय शान्तिप्रियता का परिचय देती हैं। शोक के अवसर पर वे धीरज बाँधती हैं तथा रोग होने पर वे किसी दवा के समान पीड़ाहीन तथा रोगमुक्त करने वाली होती हैं। वे संयोग में स्वभाव के समान तथा वियोग में विपत्ति के समान होती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मिलन के अवसर पर वह पति का सुखदायक साथ निभाती हैं तथा वियोग होने पर उनके पति को उनका बिछुड़ना अत्यन्त पीड़ादायक लगता है।
विशेष-
(i) भाषा सरल, सरस, काव्यात्मक और प्रवाहपूर्ण है।
(ii) शैली वर्णनात्मक और चित्रात्मक है।
(iii) भारतीय नारियों के सद्गुणों का समुचित ही उल्लेख किया गया है।
(iv) अनुप्रास तथा रूपक अलंकार हैं।
(v) अश्रान्ति, धीरता, शान्ति, सांत्वना, औषधि, संपत्ति, विपत्ति इत्यादि भाववाचक उपमानों का प्रयोग हुआ है।
Leave a Reply