• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 बावजी चतुर सिंह

July 10, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 बावजी चतुर सिंह

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
दूसरों के घर बिना मान-मनुहार के जाने पर क्या होता है?
(क) स्वागत होता है
(ख) अपमान होता है
(ग) नाच-गाना होता है
(घ) सिग्नल मिलता है
उत्तर:
(ख) अपमान होता है

प्रश्न 2.
रहट चलता है तब क्या होता है –
(क) खेतों को पानी मिलता है।
(ख) छिलकों का ढेर होता है।
(ग) अकाल पड़ता है।
(घ) गन्ने का रस मिलता है।
उत्तर:
(क) खेतों को पानी मिलता है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चतुरसिंह जी के अनुसार धर्म क्या है?
उत्तर:
चतुरसिंह जी के अनुसार धर्म का उद्देश्य है-ईश्वर या परम तत्त्व को जानना।

प्रश्न 2.
सिंगल का शब्दार्थ क्या है?
उत्तर:
सिंगल अंग्रेजी शब्द सिग्नल का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है-संकेत।

प्रश्न 3.
छिलकों का ढेर कौन करता है?
उत्तर:
छिलकों को ढेर चरखा करता है।

प्रश्न 4.
बातों को गोपनीय कौन रखता है?
उत्तर:
बातों को गोपनीय लिफाफा रखता है।

प्रश्न 5.
कैसा व्यक्ति नहीं भटकता है?
उत्तर:
जिस व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित होता है, वह नहीं भटकता है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रहट और चरखे में क्या अंतर है?
उत्तर:
रहट और चरखे दोनों घूमते हैं, परन्तु रहट के घूमने से पानी खेतों तक पहुँचता है और वह हरा-भरा बन जाता है। दूसरी ओर चरखे के घूमने से छिलकों का ढेर लग जाता है। आशय यह है कि एक के घूमने में सार्थकता है तो दूसरे में निरर्थकता।

प्रश्न 2.
बिना मान के दूसरों के घर पैर क्यों नहीं रखना चाहिए?
उत्तर:
बिना मान के दूसरों के घर पैर रखने से व्यक्ति का सत्कार नहीं किया जाता, जिससे उसके सम्मान में गिरावट आती है। जिस प्रकार सिग्नल मिलने पर ही इंजन आगे बढ़ता है उसी प्रकार मान-मनुहार होने पर ही व्यक्ति को दूसरों के घर पैर रखना चाहिए।

प्रश्न 3.
इंजन सिग्नल की बात क्यों मानता है?
उत्तर:
इंजन सिग्नल की बात इसलिए मानता है ताकि उसका सम्मान बना रहे। उसका संकेत मिलने पर वह जब आगे बढ़ता है। तो उसका सम्मान रहता है। इसी प्रकार व्यक्ति को भी आग्रह करने, मान-सम्मान से निमंत्रण देने पर ही दूसरों के घर जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
गोखड़िया खड़िया’ वाले पद में किस बात की ओर संकेत है?
उत्तर:
इसे पद में बताया गया है कि मनुष्य का जीवन सीमित अवधि का है। महल में गवाक्ष वहीं के वहीं रह गए, लेकिन उनमें से जो झाँकते थे, वे अब संसार में नहीं रहे। अर्थात् सांसारिक उपभोग क्षणिक है, व्यक्ति को इनके प्रति आकर्षण व मोह नहीं रखना चाहिए। एक दिन ये सब यहीं रह जाएँगे और उसे संसार से विदा होना पड़ेगा।

प्रश्न 5.
मूर्ख व्यक्ति की बात मानने से क्या होता है?
उत्तर:
मूर्ख व्यक्ति की बात मानने से समझदार व्यक्ति भी अज्ञानी प्रतीत होता है। क्योंकि उसकी बात भरोसा करने लायक नहीं होती। वस्तुतः मूर्ख व्यक्ति को सही-गलत की पहचान नहीं होती, जिससे उसकी बात मानने से लोक में उपहास ही होता है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दोहों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

(क) पर घर पग …………. सिंगल रो सतकार।।
(ख) रैंठ फरै ………… छूता रो ढेर।।
(ग) कारट तो केता ………… हियै लिफाफो राख।
(घ) ओछो भी …………. मुजब अहार।
उत्तर:
कृपया, व्याख्या खण्ड का अवलोकन करें।

प्रश्न 2.
“बावजी चतुरसिंह की वाणी दिव्य थी।” उक्त पंक्ति के आलोक में चतुरसिंह जी के नीति और वैराग्य संबंधी विचारों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
बावजी चतुरसिंह जी की वाणी दिव्य थी, क्योंकि वे दिव्यता के पोषक थे। उनका चिंतन उदात्त था, क्योंकि वे अनुपम सौंदर्य के उपासक थे। नीति और वैराग्य संबंधी दोहों में उनकी दिव्यता प्रकट होती है। संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है

  1. धर्म का मर्म समझकर उन्होंने कहा कि पंथ भिन्न हैं, पर मर्म एक ही है, वह है-ईश्वर की पहचान। यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर करता है।
  2. संसार में अपना सम्मान बनाये रखने हेतु सत्कार होने पर पराये घर जाना, काम करने से पहले उद्देश्य का निर्धारण करना, बातों को तोल-मोलकर कहना और आँखों के इशारों को समझकर व्यवहार करने का संदेश दिया।
  3. जीवन की सार्थकता सिद्ध करते हुए उन्होंने हट के माध्यम से व्यक्ति को उद्देश्यपूर्ण कार्य करने की सलाह दी, मन की बात उपयुक्त पात्र को बताना, क्षमा को-जीवन में उतारने का संदेश उनकी दिव्य वाणी का सूचक है।
  4. सांसारिक निस्सारता का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि सूर्योदय से सूर्यास्त की भांति मनुष्य का जीवन काल है। संसार रूपी सड़क को गाते हुए, रोते हुए, लड़ते हुए और प्यार करते हुए पार कर रहे हैं। लेकिन मनुष्य जन्म की सफलता सार्थकता सिद्ध करने में है। सांसारिक ऐश्वर्य क्षणभर का है, एक दिन मानव इस संसार से चला जाएगा

और उसके निर्मित सुख यहीं रह जायेंगे। इस प्रकार उन्होंने सांसारिक यथार्थ को विभिन्न संकेतों के माध्यम से लोकवाणी में अपनी बात कही। लोगों के अन्तर्मन की गहराई तक अपनी दिव्य वाणी पहुँचाने में सफल रहे। इसी कारण उनकी यह वाणी आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
बावजी चतुरसिंह जी की रचनाओं का विषय है
(क) प्रकृति वर्णन
(ख) श्रृंगार वर्णन
(ग) नीति एवं वैराग्य
(घ) लोक कथा।
उत्तर:
(ग) नीति एवं वैराग्य

प्रश्न 2.
किसी वस्तु की सार्थकता है|
(क) कम होने में
(ख) अधिक होने में
(ग) चमकदार होने में
(घ) पर्याप्त होने में
उत्तर:
(घ) पर्याप्त होने में

प्रश्न 3.
अपने मन की बात को बताना चाहिए
(क) परिवार वालों को
(ख) सगे-संबंधियों को
(ग) मित्रों को
(घ) उपयुक्त पात्र को
उत्तर:
(घ) उपयुक्त पात्र को

प्रश्न 4.
बावजी चतुरसिंह ने अपनी रचनाओं में राजस्थानी की किस बोली का प्रयोग किया है?
(क) मेवाड़ी
(ख) मारवाड़ी
(ग) हाडौती
(घ) वागड़ी।
उत्तर:
(क) मेवाड़ी

प्रश्न 5.
कवि के अनुसार कौनसा भाव रखना बहुत कठिन है?
(क) दया भाव
(ख) क्षमा भाव
(ग) घृणा भाव
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ख) क्षमा भाव

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौनसा व्यक्ति अपने मार्ग से नहीं भटकता है?
उत्तर:
जिस व्यक्ति का लक्ष्य पूर्व निर्धारित होता है, वह अपने मार्ग से नहीं भटकता है।

प्रश्न 2.
रँहट और चरखा किसके प्रतीक हैं?
उत्तर:
इँहट सार्थकता का और चरखा निरर्थकता का प्रतीक है।।

प्रश्न 3.
जीवनरूपी वृक्ष पर फल का सुख कब प्राप्त होता है?
उत्तर:
जब विद्यारूपी लता से सींचन होगा, तो जीवनरूपी वृक्ष फल अर्थात् सुख प्रदान करेगा।

प्रश्न 4.
किस तरह के विवाद में मनुष्य जन्म व्यर्थ नहीं आँवाना चाहिए?
उत्तर:
धन और स्त्री के विवाद में मनुष्य जन्म व्यर्थ नहीं आँवाना चाहिए।

प्रश्न 5.
चतुरसिंह जी ने अपने काव्य में ‘वयण सगाई’ अलंकार का प्रयोग किया है। दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. बना मान मनवार।
  2. ओछो भी आछो नहीं।

प्रश्न 6.
बावजी चतुरसिंह रचित दो रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. गीता पर लिखित ‘गंगा-जलि’
  2. चतुर चिंतामणि

प्रश्न 7.
संकलित पदों में बावजी चतुरसिंह जी का वर्ण्यविषय क्या रहा है?
उत्तर:
्ञान, भक्ति और वैराग्य के साथ नीति और लोक व्यवहार का सुन्दर विवेचन संकलित पदों में हुआ है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ईश जाणणे धरम हैं’-कथन के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
उक्त कथन के माध्यम से बावजी चतुरसिंह जी ने स्पष्ट किया है कि संसार में धर्मों की विविधता है। सभी के क्रिया-कलाप, उपासना पद्धति, मत-मतान्तर, कांर्य-व्यवहार भिन्न-भिन्न हैं परन्तु सभी धर्मों का उद्देश्य एक ही है-ईश्वर को जानना। ईश्वर को जानने का एक ही उपाय है-विवेक। आशय यह है कि धर्म कोई भी हों, सही मार्ग पर चलकर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
पोस्टकार्ड और लिफाफे के रूपक से कवि ने लोक व्यवहार को किस तरह स्पष्ट किया है?
उत्तर:
पोस्टकार्ड पर लिखा हुआ संदेश हर कोई पढ़ सकता है, उसमें गोपनीयता नहीं रहती। लिफाफे में रखा हुआ संदेश संबंधित व्यक्ति ही पढ़ पाता है। आशय यह है कि अपने मन की बात हर किसी को नहीं कहनी चाहिए, इससे वह लोक-उपहास का पात्र बनता है। उपयुक्त पात्र से ही अपनी बात कहने में सार्थकता है। इस लोक-व्यवहार को कवि ने बहुत अच्छे ढंग से प्रकट किया है।

प्रश्न 3.
‘ओछो भी आछो नहीं’-कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि के मतानुसार किसी वस्तु या कार्य की सार्थकता उसकी पर्याप्तता में है। कम होने पर उसका महत्त्व नहीं रहता और अधिक होने पर वह बेकार जाती है। जिस प्रकार अग्नि के लिए उचित मात्रा में ईंधन ही सार्थक होता है, उसी प्रकार पर्याप्तता एक ऐसा गुण है, जो कार्य की सार्थकता सिद्ध करता है।

प्रश्न 4.
पढ़िबौ ही जल सचिबौ’ कहकर कवि ने जीवन के सुख का मार्ग किसे बताया है?
उत्तर:
कवि ने उक्त पंक्ति में विद्यार्जन को जीवन में सुख का मार्ग बताया है। जिस प्रकार किसी वृक्ष पर लिपटी हुई लता से जल-सींचन होता है तो वृक्ष पर फल आते हैं। उसी प्रकार जीवनरूपी वृक्ष में विद्यार्जनरूपी लता से ही सुखरूपी फल की प्राप्ति हो सकती है। इस प्रकार कवि ने लता और वृक्ष के रूपक से ज्ञान के महत्त्व को सांसारिक सुख का हेतु बताया है।

प्रश्न 5.
कवि की दृष्टि में ‘क्षमा भाव’ का आचरण कठिन क्यों है?
उत्तर:
कवि के मतानुसार क्षमा एक महान् भाव है, परन्तु इसका निर्वाह करना कठिन है। संसार में सभी व्यक्ति कहते हैं कि हमें क्षमावान रहना चाहिए, लेकिन व्यक्ति सांसारिक कषाय-ईष्र्या, द्वेष, मोह, राग आदि से पूर्णत: मुक्त नहीं हो पाता, परिणामस्वरूप क्षमा जैसा भाव का निर्वाह नहीं हो पाता। इसी कारण कवि ने कहा कि क्षमा की बातें करना आसान है, लेकिन तदनुरूप आचरण करना उतना ही कठिन है।

प्रश्न 6.
संसाररूपी सड़क पर मनुष्य किस तरह गुजरता है?
उत्तर:
कवि के अनुसार संसाररूपी सड़क पर मनुष्य कभी गाते हुए तो कभी रोते हुए अथवा लड़ते हुए व प्यार करते हुए गुजरता’ है। एक दिन यह सड़क समाप्त हो जाती है। आशय यह है कि वह संसार से चला जाता है, अत: मनुष्य को अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए और उसकी सार्थकता सिद्ध करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
खड़खड़िया पड़िया रया’ -पद में कवि ने किस यथार्थ को प्रकट किया है?
उत्तर:
उक्त पद में कवि ने मनुष्य जीवन की नश्वरता का वर्णन किया है। जिस प्रकार तांगे को हाँकने वाले संसार से चले जाते हैं, पर तांगे वहीं खड़े रह जाते हैं उसी प्रकार सांसारिक ऐश्वर्य यहीं रह जाता है और मनुष्य संसार से विदा हो जाता है। मनुष्य को यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि उसका जीवन काल क्षणिक है, अत: अपने जीवन को व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 8.
संकलित पदों के आधार पर बावजी चतुरसिंह जी की काव्य शैली पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
बावजी चतुरसिंह जी ने अपने पदों में राजस्थानी की मेवाड़ी बोली का प्रयोग किया है। नीति, लोक व्यवहार व दार्शनिक उक्तियों को भी सरलतम उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है। उपमा, रूपक, उदाहरण, व्यतिरेक अलंकारों के साथ राजस्थानी के ‘वयेण-सगाई’ अलंकार का दर्शनीय प्रयोग है। ‘दोहा’ जैसे छोटे पद में गंभीर कथनं ‘गागर में सागर’ भरने जैसा है। काव्य में प्रसाद गुण की व्याप्ति से सहजता व सुबोधता आ गई है। कहीं-कहीं पद मैत्री की छटा भी काव्य को आकर्षक बना रही है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
संकलित पदों के आधार पर बावजी चतुर सिंह जी के काव्य-सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
अथवा
बावजी चतुरसिंह जी के काव्य की काव्यगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
संकलित पद चतुर चिंतामणि’ से उधृत है। इन पदों के आधार पर बावजी चतुरसिंह जी के काव्य की काव्यगत विशेषताओं को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता है
भाव पक्ष-

  1. लोक व्यवहार – कवि ने सामान्य लोक-व्यवहार को नीति के पदों के माध्यम से मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है। बिना सत्कार के पराये घर जाने, हर किसी के समक्ष मन की बात न कहना, वस्तु की सार्थकता पर्याप्तता में है। वाणी पर संयम का संदेश देते हुए कहा- ई छै वातां तोल नै, पछै बोलणो सार।
  2. सांसारिक यथार्थ – संसार में आदर्श के साथ यथार्थ दृष्टि भी होती है। यहाँ कर्म से वन्दन होता है। क्षमा का भाव निर्वाह में कठिन होता है। इसको सुन्दर ढंग से अभिव्यंजित किया है- “क्षमा राखिनैं तै कठिन, क्षमा राखिवौ होय।”
  3. सांसारिक निस्सारता – वैराग्य संबंधी पदों में उन्होंने मनुष्य जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाने की सीख दी है। संसार का ऐश्वर्य यहीं रह जाता है, जबकि मनुष्य यहाँ से चला जाता है- ‘गोखड़िया खड़िया रया, कड़िया झांकण हारा।
  4. वैराग्य – संसार के प्रति आकर्षण बंधन का कारक है। उन्होंने जीवन की तुलना दिन से की है जो उदय से अस्त तक का गंतव्य पार करता है। मनुष्य को उसी के अनुरूप जीवन का संदेश देते हुए कहा- तन नै जातो जाण यूँ दन नै जातो देख।

कला पक्ष – बावजी चतुरसिंह जी के संकलित पदों में भाषा मेवाड़ी ब्रज, राजस्थानी का मिश्रण है। अलंकार स्वाभाविक रूप से हैं। ‘रूपक’ की छटा दर्शनीय है।, जीवन तरु लिपटात (रूपक) रेल दौड़ती ज्यूं घणां (उपमा)। इसके अतिरिक्त कहीं-कहीं पद मैत्री भी काव्य को आकर्षक बनाती है। यथा- ‘खड़खड़िया पड़िया रया, खड़िया हाकणहार।’ समग्रतः बावजी चतुरसिंह जी का काव्य भाव और कला पक्ष की दृष्टि से उन्नत कोटि का काव्य है।

बावजी चतुर सिंह लेखक परिचय

जीवन परिचय-

वीतरागी भक्त एवं महात्मा बावजी चतुर सिंह जी का जन्म 9 फरवरी, 1880 ई. को हुआ। मेवाड़ की भक्ति परम्परा में आपका उल्लेखनीय स्थान है। वे मेवाड़ की राज-परम्परा से जुड़े व्यक्तित्व थे। उदात्त-चिंतन एवं दार्शनिक दृष्टि से आपके नीति-कथन जन-सामान्य में बहुत लोकप्रिय थे।

साहित्यिक परिचय-बावजी चतुरसिंह ने लोकभाषा मेवाड़ी (राजस्थानी की उपबोली) में अपने विचार प्रकट किए। आपकी वाणी में दिव्यता थी। आप द्वारा रचित कुल 18 ग्रंथ हैं। ‘गंगाजलि’, ‘चतुर चिंतामणि’ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। आप द्वारा अनुभूत विचार साहित्य के माध्यम से प्रकट होकर जन-जन के लिए सुलभ हो गए।

पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ में दो शीर्षक हैं:
(i) नीति,
(ii) वैराय और चेतावनी। नीति शीर्षक में कवि ने अनेक शिक्षाप्रद बातें बताई हैं सभी धर्मों का उद्देश्य एक है, यद्यपि मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। बिना मान-मनुहार के दूसरों के घर जाने से सम्मान नहीं रहता। रहँट और चरखा दोनों घूमते हैं, पर फल भिन्न हैं। कर्तृत्व सदैव वन्दनीय होता है। अपने मन की बात उपयुक्त पात्र को ही कहनी चाहिए। जिन्हें अपने लक्ष्य का ज्ञान होता है, वे कभी भटकते नहीं हैं। हमें अपनी वाणी संयमित ढंग से तौल-मोलकर बोलनी चाहिए। वस्तु की सार्थकता पर्याप्त होने में है, कम या अधिक होने पर उसका महत्त्व नहीं रहती। समझदार व्यक्ति संकेत मात्र से समझ जाता है। क्षमा की बात सभी करते हैं, पर उसका निर्वाह करना अत्यंत कठिन है। विद्या की प्राप्ति से ही जीवन सुखमय बनता है।

वैराग्य और चेतावनी शीपक के अंतर्गत कवि ने बताया है कि दिन की भाँति यह शरीर है, जो एक दिन समाप्त हो जाएगा। जीवनरूपी सड़क गाते हुए, रोते हुए, लड़ते हुए और प्यार करते हुए पार करनी है। गोखड़े यहीं रह जाते हैं, झाँकने वाले चले जाते हैं, उसी तरह ताँगा वहीं रह जाता है और उसको हाँकने वाले चले जाते हैं। मूर्ख व्यक्ति कभी सही रास्ते की पहचान नहीं कर सकता। धन और स्त्री के विवाद में अपना जन्म व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

1. नीति
धरम धरम सब एक है, पण वरताव अनेक।
ईश जाणणो धरम है, जीरो पंथ विवेक॥1॥
पर घर पग नी मेळणों, वना मान मनवार॥
अंजन आवै देखनैं, सिंगल रो सतकार॥2॥

कठिन शब्दार्थ-धर्म = धर्मपण = लेकिन। वरताव = व्यवहार। जाणणो = जानना। जीरो = जिसका। पर = पराये। पग = पाँव। मेळणों = रखना। वना = बिना। अंजन = इंजन। सिंगल = सिग्नल।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत दोहे बावजी चतुरसिंह जी द्वारा रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से उधृत हैं। इन पदों में नीति का मार्ग बताकर जीवनोपयोगी संदेश दिया गया है।
व्याख्या-कवि के मतानुसार संसार में अनेक धर्म हैं, सभी की उपासना पद्धति, कार्य-व्यवहार और व्यवहार पद्धति में भिन्नता है। लेकिन उक्त भिन्नता के बाद भी सभी धर्मों का एक ही उद्देश्य है-ईश्वर को जानना। यह उद्देश्य विवेक होने पर ही प्राप्त हो सकता है। आशय यह है कि विवेक के अभाव में किसी भी धर्म का पालन किया जाए तो उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा।

द्वितीय पद में बावजी चतुर सिंह जी ने नीतिगत संदेश दिया है कि बिना मान-मनुहार के पराये घर में पाँव नहीं रखना चाहिए, अन्यथा उसका सम्मान नहीं रहता। जिस प्रकार रेलगाड़ी के इंजन का सत्कार सिग्नल करता है, तब ही वह आगे बढ़ता है, उसी प्रकार आमंत्रण उपरान्त ही हमें पराये घर जाना चाहिए, तब हमारा सत्कार होगा।

विशेष-
(i) धर्म के उद्देश्य की प्राप्ति विवेक से संभव है, अति गूढ़ दार्शनिक निष्कर्ष है।
(ii) अंजन आवै पंक्ति में दृष्टांत अलंकार है।
(iii) भाषा-राजस्थानी (मेवाड़ी बोली) है। छंद दोहा है।

2. रेंठ फरै चरक्यो फरै, पण फरवा में फेर,
वो तो वाड़ हरयौ करै, यो छूता रो ढेर।
कारट तो केतो फरै, हरकीनै हकनाक,
जीरो है वींनै कहै, हियै लिफाफो राख।

कठिन शब्दार्थ-रेंठ= रँहट। चरक्यों = चरखी। फेर = फुर्क। वाड़ = खेत। छूता = छिलको। कारट = पोस्टकार्ड। केतो = कहता। हरकीने = हर किसी को। हकनाक = गोपनीय। जीरो = जिसकी। वींनै = उसी को। हियै = हृदय।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत दोहे बावजी चतुरसिंह जी द्वारा रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से उद्धृत हैं। इन पदों में नीति का मार्ग बताकर जीवनोपयोगी संदेश दिया गया है। व्याख्या-बावजी चतुर सिंह जी कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव भिन्न होता है। उसकी महानता उसके द्वारा किए गए कार्यों से प्रकट होती है। जिस प्रकार रँहट और चरखी दोनों घूमते हैं; लेकिन रँहट के घूमने से पानी फसल तक पहुँचता है और खेत हरा-भरा हो जाता है। दूसरी ओर चरखी के घूमने से गन्ने के छिलकों का ढेर तैयार हो जाता है।

उन्होंने संदेश दिया है कि अपने मन की बात हर किसी को नहीं बतानी चाहिए। जिस प्रकार पोस्टकार्ड हर किसी को अपना भेद बता देता है, पर लिफाफा संबंधित व्यक्ति को ही अपनी बात कहता है। आशय यह है कि अपने मन की बात संबंधित या विश्वसनीय व्यक्ति को ही कहनी चाहिए।

विशेष-
(i) भाषा मेवाड़ी (राजस्थानी की बोली) है।
(ii) दृष्टांत अलंकार के साथ राजस्थानी ‘वयण-सगाई’ अलंकार प्रयुक्त हुआ है।
(iii) छन्द-दोहा है।

3.
वी भटका भोगै नहीं, ठीक समझलै ठौर।
पग मेल्यां पेलां करै, गेला ऊपर गौर॥
क्यू कीसू बोलू कठै, कूण कई कीं वार।
ई छै वातां तोल नै, पछै बोलणो सार॥

कठिन शब्दार्थ-ठौर = ठिकाना। पेलां = पहले। गेला = रास्ता। कीसू = किससे। कूण = कौन। वातां = बातें। पछै = बाद में।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत दोहे बावजी चतुरसिंह जी द्वारा रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से उधृत हैं। इन पदों में नीति का मार्ग बताकर जीवनोपयोगी संदेश दिया गया है।

व्याख्या-कवि.बावजी चतुर सिंह जी का संदेश है कि इधर-उधर भटकने मात्र से भोग की प्राप्ति नहीं होती। उसके लिए पहले मूल स्थान अर्थात् ठिकाने का पता होना चाहिए। समझदार व्यक्ति पाँव रखने से पहले रास्ते को ध्यान से देखते हैं। अर्थात् किसी भी कार्य को करने से पहले उद्देश्य निर्धारित होना चाहिए, तब ही उसकी सफलता सुनिश्चित हो सकती है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को बोलने से पहले यह तय करना चाहिए कि उसे किसी से क्यों बोलना है? कब बोलना है? कौन सी बात बोलनी है? व किसकी बात क्यों बोलनी है? इन सभी बातों का पहले मन में अच्छी तरह से विचार कर लेना चाहिए। फिर सारयुक्त बात करने से व्यक्ति की बात का महत्त्व बढ़ जाता है।

विशेष-
(i) उद्देश्य का निर्धारण कर गंतव्य निर्धारण एवं वाणी पर संयम का संदेश सारगर्भित है।
(ii) वयण-सगाई अलंकार का सार्थक प्रयोग है।
(iii) भाषा राजस्थानी, मेवाड़ी है। छंद दोहा है।

ओछो भी आछो नहीं, वत्तो करै कार।
दैणों छावै देखनै, अगनी मुजब अहार॥
अपनी आण अजाणता, कईक कोरा जाय।
समझदार समझै सहज, आँख इशारा माँय॥

कठिन शब्दार्थ-ओछो = कम। आछो = अच्छा। वत्तो = अधिक। अग्नि = आग। अहार = आहार। आण = मर्यादा। अजाणता = नहीं जानने पर। कई = कई-कई। कोरा = व्यर्थ॥

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत दोहे बावजी चतुरसिंह जी द्वारा रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से उद्धृत हैं। इन पदों में नीति का मार्ग बताकर जीवनोपयोगी संदेश दिया गया है।

व्याख्या-कवि का मंतव्य है कि किसी भी वस्तु की सार्थकता उसकी पर्याप्तता में है, कम या अधिकता में नहीं। वे कहते हैं कि कम देना भी अच्छा नहीं और अधिक देने से बेकार जाता है। जिस प्रकार अग्नि में कम ईंधन देने से पूरी तरह जल नहीं पाएगी और अधिक देने पर बेकार जाएगा। अतः आहार समुचित दिया जाना चाहिए॥ वे कहते हैं कि जो अपनी मर्यादा से अनभिज्ञ रहते हैं, वे कई-कई बार व्यर्थ ही अपना समय आँवा देते हैं, दूसरी ओर समझदार व्यक्ति आँखों के इशारों से ही समझ लेता है और तदनुरूप अपना व्यवहार तय कर लेता है। अत: परिस्थिति एवं समय को शीघ्र भाँप लेना समझदार व्यक्ति का गुण है।

विशेष-
(i) वस्तु की सार्थकता पर्याप्त होने में है, बात को अग्नि के उदाहरण से अच्छी तरह समझाया गया है।
(ii) ‘आँख इशारा मांय’ मुहावरा प्रयुक्त हुआ है।
(iii) दृष्टान्त अलंकार, मेवाड़ी भाषा का सार्थक प्रयोग हुआ है।

5.
क्षमा क्षमा सब ही करै, क्षमा न राखै कोय।
क्षमा राखिवै तै कठिन, क्षमा राखिवौ होय॥
विद्या विद्या वेल जुग, जीवन तरु लिपटात॥
पढिबौ ही जल सचिबौ, सुख दुख को फल पात॥

कठिन शब्दार्थ-वेल = लता। तरु = वृक्ष।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत दोहे बावजी चतुरसिंह जी द्वारा रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से उधृत हैं। इन पदों में नीति का मार्ग बताकर जीवनोपयोगी संदेश दिया गया है।

व्याख्या-बावजी चतुरसिंह जी कहते हैं कि क्षमा की बातें तो सभी करते हैं, लेकिन मन के भीतर क्षमा भावे कोई नहीं रखता। क्षमा भाव मन में रखना कठिन है, लेकिन उससे भी कठिन है किसी को क्षमा करना। आशय यह है कि क्षमा करने की भावना रखना ही कठिन है, फिर किसी को क्षमा करना बहुत मुश्किल है।

वे कहते हैं कि विद्यारूपी लता जीवन रूप वृक्षी से लिपटी हुई है। पढ़ना अर्थात् विद्यार्जन करना वृक्ष को जल सींचने के समान है। जिस प्रकार जल सींचने पर वृक्ष पर फल आते हैं। उसी प्रकार पढ़ने पर ही जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति होती है। जीवन में सुख-दु:ख रूपी फल विद्यार्जन के आधार पर ही प्राप्त होती हैं।

विशेष-
(i) क्षमा की महत्ता और विद्यार्जन का परिणाम स्पष्ट किया गया है।
(ii) रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार प्रयुक्त हुए हैं।
(ii) भाषा, ब्रजमिश्रित मेवाड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है।

6. वैराग्य एवं चेतावनी रेल दौड़ती ज्यूं घणा, रूख दोड़ता पेख।
तन नै जातो जाण यू, दन नै जातो देख॥
गाता रोता नीकळ्या, लड़ता करता प्यार।
अणी सड़क रै ऊपरै, अब लख मनख अपार॥
गोखड़िया खड़िया रया, कड़िया झांकणहार।
खड़खड़िया पड़िया रया, खड़िया हाकणहार॥

कठिन शब्दार्थ-घणा = बहुत। रूख = वृक्ष। पेख = दिखाई देते हैं। दन = दिवस। जातो = जाता हुआ। मनख = मनुष्य। अपार = असीमित। गोखड़िया = गोखड़े, गवाक्ष। कड़िया = निकल गए। झांकणहार = झाँकने वाले। खड़खड़िया = ताँगे। हाकणहार = हाँकने वाले॥

संदर्भ एवं प्रसंग-बावजी चतुर सिंहजी रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से संगृहीत इन पदों में संसार की निस्सारता का वर्णन है। वैराग्य भाव के साथ चेतावनी दी गई है।

व्याख्या-जब रेल दौड़ती है तो वृक्ष उसके साथ दौड़ते हुए दिखाई देते हैं, किन्तु अंततः वे वहीं रह जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य जीवन के साथ शरीर का संबंध है। एक दिन यह शरीर भी चला जाएगा, उसकी स्थिति दिन की भाँति है जो सुबह उगता है और सायं को अस्त हो जाता है। यह शरीर भी उसी भाँति जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त करता है।

वे आगे कहते हैं कि यह जीवन एक सड़क की भाँति है, जिस पर हम गाते हुए, रोते हुए, लड़ते हुए और प्यार करते हुए निकल रहे हैं। अब हमें इस सड़क पर अपने मनुष्य जीवन का अवलोकन भी कर लेना चाहिए कि हमने क्या किया? यह जीवनरूपी सड़क बिना उद्देश्य के पूरी न हो जाय, इस पर अवश्य विचार करना चाहिए।

संसार में जीवन की नश्वरता का वर्णन करते हुए वे आगे कहते हैं कि गोखड़े (गवाक्ष) आदि यहीं खड़े रह गए, लेकिन उनमें से जो झाँकने वाले थे, वे सब चले गए। इसी प्रकार ताँगे यहीं खड़े रह गए और उसको हाँकने वाले सब चले गए। भाव यह है कि संसार की संपदा यहीं रह जाएगी और मनुष्य को एक दिन संसार से विदा होना ही है।

विशेष-
(i) संसार की निस्सारता का वर्णन है।
(ii) उपमा अलंकार का सार्थक प्रयोग है। अंतिम पद में ‘पद-मैत्री’ का अच्छा उदाहरण है।
(iii) भाषा ब्रजमिश्रित मेवाड़ी बोली है।

7.
गेला नै जातो कहै, जावै आप अजाण।
गेला नै रवै नहीं, गेला री पैछाण॥
धन दारा रै मांयनै, मती जमारो खोय।
वणी अणी रा वगत में, कूण कणी रा होय॥

कठिन शब्दार्थ-अजाण = अज्ञानी। गेला = मूर्ख। गेला = रास्ता। पैछाण = पहचान। दारा = स्त्री। मती = मत। जमारो = जीवन। कूण = कौन। कणी रा = किसका।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत दोहे बावजी चतुरसिंह जी द्वारा रचित ‘चतुर चिंतामणि’ से उद्धृत हैं। इन पदों में नीति का मार्ग बताकर जीवनोपयोगी संदेश दिया गया है।

व्याख्या-बावजी चतुर सिंह जी कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति की बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति से पूछकर कार्य करता है, वह स्वयं भी अज्ञानी होता है। कारण यह है कि मूर्ख व्यक्ति को कभी सही रास्ते की पहचान नहीं रहती है। अतः उसकी बात नहीं माननी चाहिए।

वे कहते हैं कि धन और स्त्री के झगड़े में मनुष्य को अपना जीवन व्यर्थ नहीं आँवाना चाहिए। वणी-अणी अर्थात् उसके-उसकी के झगड़े में कोई किसी का नहीं होता। आशय यह है कि इन झगड़ों में कोई किसी का सगा नहीं होता। अत: इससे सदा दूर रहना चाहिए।

विशेष-
(i) ‘गेला’ शब्द में यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(ii) भाषा-मेवाड़ी व छंद-दोहा प्रयुक्त हुआ है।

RBSE Solutions for Class 11 Hindi

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)

Related

Filed Under: Class 11 Tagged With: RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 7 बावजी चतुर सिंह

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Solutions for Class 7 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 6 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 7 Maths Chapter 15 Comparison of Quantities In Text Exercise
  • RBSE Solutions for Class 6 Maths Chapter 6 Decimal Numbers Additional Questions
  • RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 3 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 3 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Maths in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 in Hindi Medium & English Medium

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2023 RBSE Solutions