Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 देशभक्त
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
“देवी इन्हें प्रणाम करो। यह कर्ता की पवित्र कृति है।” लीलाधर विष्णु ने देशभक्त के किस कर्त्तव्य की ओर इन्दिरा का ध्यान आकृष्ट किया –
(क) नृशंसता
(ख) देशद्रोह
(ग) लोक-रक्षा
(घ) शौर्य
उत्तर तालिका:
(ग) लोक-रक्षा
प्रश्न 2.
‘देशभक्त पर सम्राट् के प्रति विद्रोह का अपराध लगाकर न्याय का नाटक खेला जा चुका था।” न्यायाधीश ने देशभक्त को क्या आज्ञा सुनाई –
(क) वह देशद्रोह के अपराध में पश्चात्ताप करे।
(ख) वह सम्राट् की जय बोले।
(ग) वह सम्राट् की जय बोलकर पश्चात्ताप करे।
(घ) वह मृत्यु या सम्राट्-भक्ति, दोनों में से एक मार्ग चुने।
उत्तर तालिका:
(ग) वह सम्राट् की जय बोलकर पश्चात्ताप करे।
प्रश्न 3.
पंचतत्व का पुतला किसे कहा गया है
(क) पर्वत
(ख) सागर
(ग) मानव
(घ) पक्षी
उत्तर तालिका:
(ग) मानव
प्रश्न 4.
देशभक्त के स्पर्श से कौनसा अभागा स्थल पवित्र हो जाता है
(क) महल
(ख) कारागार
(ग) चरागाह
(घ) झोपड़ा
उत्तर तालिका:
(ख) कारागार
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘क्या फिर किसी से ”नाम चतुरानन पै चूकते चले गये।” लिखवाने का विचार है?’ ब्रह्माणी ने विधाता की किस बात पर यह व्यंग्योक्ति की?
उत्तर:
विधाता ने पाँच तत्त्वों के सम्मिश्रण से जब एक पुतला तैयार किया और उसको तेज, सौन्दर्य, दया, करुणा, प्रेम, विद्या, बुद्धि-बल, सन्तोष-साहस, उत्साहधैर्य-गम्भीरता आदि समस्त गुणों से सजा दिया और उसको आयु केवल बीस वर्ष की ही दी। इसके अतिरिक्त उसके भाग्य में लिखने जा रहे थे – भयंकर दरिद्रता, दुःख और चिन्ता। यह सब विसंगति देखकर ब्रह्माणी ने विधाता पर व्यंग्यक्ति की की कविगण फिर यही लिखेंगे कि चार मुख वाले ब्रह्मा से यह चूक कैसे हो रही है?
प्रश्न 2.
विधाता प्रेम-गद्गद होकर ब्रह्माणी से बोले-देखती हो, देशभक्त के चरण-स्पर्श से अभागा कारागार अपने को स्वर्ग समझ रहा है।” यहाँ कारागार को उग्रजी ने अभागा क्यों कहा है?
उत्तर:
देशभक्त एक नवयुक है जो अपने देश पर सर्वस्व लुटा देने वाला विधाता की सर्वाधिक प्रिय सृष्टि है। अडिग भाव से देशसेवा करना ही देशभक्त के चरित्र का गुण है। उसकी चारित्रिक विशेषता देव-दुर्लभ है। ऐसा महान् देशभक्त युवक जब कारागार में पहुँचा तो कारागार भी अपने को धन्य समझने लगा था। वह अपने आपको स्वर्ग के समान पवित्र और महान् समझने लगा। उग्रजी ने कारागारे को अभागा इसलिए कहा कि वहाँ प्रायः अपराधी, अत्याचारी या अन्यायी व्यक्ति हो जाते हैं, परन्तु उसे आज ऐसे महान् देशभक्त के चरणों का स्पर्श मिला जिससे वह अभागा भी धन्य हो गया था।
प्रश्न 3.
जिस दिन देशभक्त के जीवन का अन्तिम पृष्ठ लिखा जाने वाला था-उस दिन स्वर्गलोक में आनन्द का अपार पारावार क्यों उमड़ रहा था?
उत्तर:
देशभक्त विधाता की अद्भुत और अनुपम कृति थी। उसे देखकर सम्पूर्ण जगत्, धरतीमाता और देवलोक सभी आनन्दमग्न थे। ऐसे देव-दुर्लभ गुणों से सम्पन्न देशभक्त को पाकर सभी धन्य थे। उस दिन देशभक्त अपने देश के लिए, अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान होने जा रहा था। वह अन्यायी सम्राट् के सामने पश्चात्ताप प्रकट करने के बजाय मृत्यु को वरण करने जा रहा था। उसी अलौकिक त्याग, वीरता और शहादत के उत्सव को देखने के लिए ही स्वर्गलोक में खुशियों का सागर हिलोरें ले रहा था।
प्रश्न 4.
”तुम अपना काम करो, मुझसे पश्चात्ताप कराने की आशा व्यर्थ है।” कहते समय देशभक्त के मनःस्थित संकल्प को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब देशभक्त ने पश्चात्ताप करने से मना कर दिया तो सम्राट् के सैनिकों ने उसे जंजीरों में जकड़ कर तोप के सामने खड़ा कर दिया। सम्राट् के प्रतिनिधि ने कहा कि मैं न्याय की रक्षा के लिए अन्तिम बार फिर कहता हूँ कि सम्राट् की जय घोषणा करके पश्चात्ताप कर लो। यह सुनकर दृढ़ संकल्प मन:स्थिति वाले देशभक्त ने मुस्कराते हुए अडिग भाव से कहा कि तुम अपना कार्य करो, मुझसे क्षमा याचना या पश्चात्ताप कराने की आशा करना व्यर्थ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि देशभक्त स्थिर बुद्धि और दृढ़ संकल्प युक्त मनोभावों से परिपूरित था।
प्रश्न 5.
“अच्छी बात है, इस समय चित्त भी प्रसन्न है। किसी से मानव-सृष्टि की आवश्यक सामग्री यहीं मँगवाओ।”विधाता के अनुसार वे आवश्यक सामग्रियाँ कौन सी हैं?
उत्तर:
विधाता के अनुसार मानव-सृष्टि के लिए या मानव का पुतला बनाने के पाँच तत्त्व आवश्यक सामग्री में आते हैं। वे पाँचों तत्त्व हैं – क्षिति अर्थात् पृथ्वी तत्त्व, जल, अग्नि अर्थात् तेज तत्त्व, आकाश और पवन । इन्हीं के सम्मिश्रण से मानव शरीर का निर्माण होता है। तत्पश्चात् विधाता उसमें प्राण, वाणी आदि का समावेश कराते हैं।
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न.1.
“समझी। देखती हूँ, तुम्हारी आदत भी कलियुगी बूढ़ों-सी हुई जा : रही है।” इस कथन से बूढ़ों के किन लक्षणों की ओर ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है?
उत्तर:
ब्रह्माणी ने ब्रह्माजी से कोई अनुपम सृष्टि की रचना करने के लिए कहा। तब ब्रह्माजी ने विनोद भाव से कहा कि तुम भी यहीं बैठकर मेरी सहायता करो। आपको केवल इतना ही करना है कि बीच-बीच में अपने सुन्दर व मधुर कटाक्ष मेरी ओर तथा मेरी कृति की ओर फेर दिया करना, इतने से ही मेरी सृष्टि में जान आ जायेगी और मेरा मन भी काम में लगा रहेगा। यह सुनकर ब्रह्माणी ने उक्त बात कही। इस कथन में कलियुगी बूढ़ों की सौन्दर्यप्रियता, नारी जाति से लगाव, उनके कटीले नेत्रों के मधुर दर्शन आदि की तीव्र आसक्ति की ओर इंगित किया है। इसके अतिरिक्त बूढ़ों की रसिकता, सौन्दर्यतृष्णा, प्रेम-पिपासा का बढ़ना, स्त्रियों में रसीले और मधुर संवाद करने की लालसा बढ़ना आदि प्रवृत्ति की ओर ध्यान खींचा है। उनकी यह प्रवृत्ति ‘तृष्णां न जीर्णा वयमेव जीर्णा: उक्ति को सार्थक करती है।
प्रश्न 2.
इस कहानी में जिन राम कृष्णादि महापुरुषों को उद्धृत किया गया है, उनके लोक हितकारी कर्तव्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
राम, कृष्ण, प्रताप, शिवा, गोविन्द, नेपोलियन आदि महापुरुषों ने धर्म की स्थापना के लिए दुष्टों का संहार किया, देश और धर्म की रक्षा के लिए आतताइयों, देशद्रोहियों और आक्रमणकारियों से युद्ध लड़े और उन्हें मार भगाया। इनके कार्यों का संक्षिप्त में परिचय इस प्रकार है –
- राम – भगवान राम ने रावण सहित अनेक दुष्टों और राक्षसों का वध कर लोक-मर्यादा की स्थापना की।
- कृष्ण – श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया था और धर्म की स्थापना और कर्मनिष्ठा का उपदेश दिया।
- प्रताप राणा प्रताप ने मातृभूमि की आजादी और स्वधर्म की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध लड़े थे।
- शिवा – वीर शिवाजी ने भी धर्म और मातृभूमि की रक्षा की और मुगलों से युद्ध लड़े।
- गोविन्द गुरु गोविन्द सिंह ने महान् बलिदान किया और धर्म की रक्षा की।
- नेपोलियन – नेपोलियन ने अपने देश की रक्षा और स्वतन्त्रता बनाए रखने के लिए विदेशी सेनाओं से कई युद्ध लड़े थे। ये सन् 1804 से 1915 तक फ्रांस के सम्राट् रहे। इन्होंने 1916 ई. में ‘वाटरलू का युद्ध लड़ा था जो विश्व इतिहास में प्रसिद्ध है।
प्रश्न 3.
”पंचतत्व के एक पुतले को अत्याचार के उपासकों ने तोप से उड़ा दिया।” देवताओं पर इस बलिदान की क्या प्रतिक्रिया हुई और क्यों?
उत्तर:
पंचतत्त्व के एक पुतले अर्थात् देशभक्त युवक को अत्याचारियों ने जब तोप से उड़ा दिया तो देवताओं ने बहुत देर तक देशभक्त’ की जयघोष से आकाश मण्डल को गुंजायमान कर दिया। स्वर्ग में उस दिन पहले से ही उत्सव का वातावरण था। देवांगनाओं ने देशभक्त के उस महान् बलिदान पर पुष्प-वृष्टि की और देवताओं ने उस पुतले के एक-एक कण को अनमोल मणियों की तरह लूट लिया। ऐसे सर्वगुणसम्पन्न, देव दुर्लभ त्याग और बलिदान करने वाले देशभक्त युवक के पवित्र शरीर के टुकड़ों को प्राप्त करके देवतागण अपने को धन्य मान रहे थे। उनके आनन्द और खुशी की कोई सीमा नहीं थी। इस प्रकार देवताओं ने उस देशभक्त के बलिदान की महत्ता को गौरवमय बना दिया तथा अपने भाग्य की सराहना की।
प्रश्न 4.
अच्छा सुन लो। इसके भाग्य में लिखी जा रही है भयंकर दरिद्रता, दुःख, चिन्ता और इसकी आयु होगी बीस वर्षों की।” देशभक्ति के इस कष्टसाध्य जीवन-दर्शन पर अपने विचार सौ शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर:
देशभक्ति का मार्ग अत्यन्त कठिन और कष्टदायक है। इस राह पर चलने वाले के जीवन में भयंकर विपत्तियाँ आती हैं। उसे सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से अनेक संकटों से जूझना पड़ता है। शासन पक्ष का घोर विरोध सहना पड़ता है तथा उनके अत्याचारों का शिकार होना पड़ता है। देशभक्ति के पुनीत कार्य के लिए व्यक्तिगत सुखभोगों का त्याग करना पड़ता है, प्राणों का बलिदान करने को सदा उद्यत रहना पड़ता है। और अपनी आकांक्षाओं को कर्तव्य-पालन के समक्ष दबाना पड़ता है।
देश-भक्ति के मार्ग पर चलने वाले की आर्थिक स्थिति तो अत्यन्त दयनीय हो जाती है। उसे घोर दारिद्रय से जूझना पड़ता है। उसे शारीरिक और मानसिक दुःखों का सामना करना पड़ता है। देशभक्ति का मार्ग अनेक चिन्ताओं से युक्त होता है। उसे सर्वाधिक चिन्ता अपनी मातृभूमि और उसकी सन्तानों की होती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सर्वगुणसम्पन्न देशभक्त के भाग्य में विधाता भी भयंकर दरिद्रता, दुःख और चिन्ता लिख देता है और उसकी आयु भी बहुत कम ही होती है।
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
संसाररूपी रंगमंच पर प्रवेश करते समय देशभक्त की अवस्था कितनी थी
(क) उन्नीस वर्ष
(ख) बीस वर्ष
(ग) पन्द्रह वर्ष
(घ) ग्यारह वर्ष
उत्तर तालिका:
(क) उन्नीस वर्ष
प्रश्न 2.
भगवान शिव प्रसन्न होकर नाचने लगे।” शिवजी प्रसन्न हो गये थे
(क) पार्वती को देखकर
(ख) मधुर संगीत सुनकर
(ग) विष्णुजी से मिलकर
(घ) देशभक्त के दर्शन करके
उत्तर तालिका:
(घ) देशभक्त के दर्शन करके
प्रश्न 3.
“देशभक्त आनन्द विभोर होकर चिल्ला उठा – ‘माता की जय हो” यहाँ देशभक्त के आनन्द विभोर होने का कारण था
(क) माता के दर्शन होना
(ख) देशद्रोही का वध होना
(ग) त्यौहार का दिन होना
(घ) ईश्वर की कृपा प्राप्त करना
उत्तर तालिका:
(ख) देशद्रोही का वध होना
प्रश्न 4.
“उस दिन स्वर्गलोक में आनन्द की अपार पारावार उमड़ रहा था क्योंकि उस दिन
(क) राजा इन्द्र का स्वागत हो रहा था।
(ख) अप्सराओं के नृत्य का आयोजन होना था।
(ग) देशभक्त की जवानी का अन्तिम पाठ लिखा जाना था।
(घ) देशभक्त का स्वर्ग में स्वागत होने जा रहा था।
उत्तर तालिका:
(ग) देशभक्त की जवानी का अन्तिम पाठ लिखा जाना था।
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रह्माणी के अनुसार अब संसार में मौलिकता नहीं दिखाई पड़ती। इसका कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रह्माणी विधाता से कहती है कि आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना मृत्युलोक के मानव के जीवन में अब कोई नवीनता या मौलिकता का गुण दिखाई नहीं देता है। अब उनके चरित्र में कोई चमत्कारिक विशेषता परिलक्षित नहीं होती है। उनका जीवनक्रम ऊबाऊ और नीरस-सा लगने लगा है। वह कहती है कि सर्वत्र वही पुरानी गाथा दिखाई और सुनाई पड़ रही है। कोई रोता है, तो कोई खिलखिलाता है; कोई प्यार करता है, तो कोई अत्याचार करता है। वही सब पुरानी बातों की पुनरावृत्ति होती रहती है।
प्रश्न 2.
“संसार के अधिकतर प्राणी तुमको शाप ही देते हैं, एक बार आशीर्वाद भी लो।”ब्रह्माणी ने विधाता से ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
ब्रह्माणी ने ऐसा इसलिए कहा कि मृत्युलोक के मानव, जो विधाता की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है, उनका जीवन अनेक दुःखों, चिन्ताओं, हताशाओं आदि से भरा हुआ है। उनके जीवन में किसी प्रकार की नवीनता, रसमयता या आनन्द का भाव नहीं रह गया है। वे बहुत ही नीरस और एक ही ढर्रे पर चलने वाला जीवन जीने से दु:खी हो गये हैं, इसलिए सदैव अपने सृष्टिकर्ता विधाता को कोसते रहते हैं। इसीलिए विधात्री ने कहा कि आप कुछ ऐसा भी करो कि यह आपकी सन्तति आपको धन्यवाद या आशीर्वाद भी दे।
प्रश्न 3.
ब्रह्माणी के द्वारा यह कहे जाने पर कि कोई मनोरंजक सृष्टि करो; विधाता ने उसका क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
विधाता ने विधात्री के आग्रह को सुनकर कहा कि चलो अच्छी बात है। आज चित्त भी प्रसन्न है। मैं आज तुम्हारे सामने ही और तुम्हारी सहायता लेकर कोई नवीन और मनोरंजक सृष्टि करता हूँ। तुम किसी से मानव सृष्टि के लिए आवश्यक सामग्री यहीं पर मँगवा लो। मैं अभी अपना कार्य प्रारम्भ कर देता हूँ।
प्रश्न 4.
विधाता ने किन-किन तत्वों के योग से किस प्रकार मानव के पुतले का निर्माण किया?
उत्तर:
विधाता ने पाँच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और पवन को मिलाकर पुतले का निर्माण किया। तत्पश्चात् सबसे पहले तेज को बुलाकर उस पुतले में प्रवेश करने को कहा। यह पुतला अन्य सामान्य पुतलों से कुछ विशेषता लिए हुए था, इसलिए विधाता ने इसमें तेज का समावेश सर्वप्रथम तथा विशेष उद्देश्य से कराया।
प्रश्न 5.
विधात्री ने जब यह पूछा कि इस पुतले के भाग्य में क्या लिखने जा रहे हैं, तब विधाता ने क्या जवाब दिया?
उत्तर:
विधाता ने जवाब दिया कि तुम्हें इससे क्या मतलब है। तुम्हें सिर्फ तमाशा देखना है, वह देख लेना। फिर बोले कि इतनी सी बात में ही तुम्हारी भौंहें तनने लग गयीं क्या; चलो, सुन लो इसके भाग्य में लिखी जा रही है भयंकर दरिद्रता, दु:ख और चिन्ता। इतना ही नहीं इसकी आयु भी केवल बीस वर्ष ही होगी। अब तुम चुपचाप तमाशा देखती रहो। इसकी आयु कम रखी है, ताकि तमाशा भी शीघ्र ही पूरा हो जावे। उन्होंने ब्रह्माणी द्वारा पूछे जाने पर उस पुतले का नाम बताया ‘देशभक्त’।
प्रश्न 6.
संसार के रंगमंच पर देशभक्त के दर्शन करने पर भगवान शिव ने अपनी प्रसन्नता किस प्रकार प्रकट की?
उत्तर:
कहानीकार उग्रजी ने बताया कि जब भगवान शिव ने संसार के रंगमंच पर देशभक्त के पहली बार दर्शन किये तो वे आनन्दमग्न होकर नाचने लगे। उन्होंने अपनी प्राणेश्वरी पार्वती का ध्यान देशभक्त की ओर आकर्षित करते हुए कहा ”देखो यह सृष्टि की अभूतपूर्व रचना है। कोई भी देवता देशभक्त के रूप में नरलोक में जाकर अपने को धन्य समझ सकता है।” यह कहते हुए शिवजी ने कहा कि प्रिये इसे आशीर्वाद दो । प्रसन्नमुखी पार्वती ने तब कहा ‘देशभक्त की जय हो।’
प्रश्न 7.
देशभक्त को सम्राट् के लोगों ने किस प्रकार गिरफ्तार किया?
उत्तर:
जब देशभक्त ने देश-द्रोही पर पिस्तौल तान ली और गोली चलाने ही वाला था, तब संकट सिर पर देखकर देशद्रोही ने अपनी जेब से सीटी निकाल कर जोर से बजा दी। तुरन्त देशद्रोहियों को दल देशभक्त की ओर लपका। देशद्रोहियों का सरदार देशभक्त की गोली से मारा गया। तभी उन लोगों ने देशभक्त को गिरफ्तार कर लिया।
प्रश्न 8.
देशभक्त पर क्या आरोप लगाये गये तथा क्या सजा सुनाई गई?
उत्तर:
देशभक्त पर सम्राट के विरुद्ध विद्रोह करने का आरोप लगाया गया था। सम्राट् की अदालत में न्याय का नाटक खेला जा चुका था। न्यायाधीश द्वारा यह आज्ञा सुनाई जा चुकी थी कि या तो देशभक्त अपने कर्मों के लिए पश्चात्ताप प्रकट करे, सम्राट् की जय घोषणा करे या उसे तोप से उड़ा दिया जाए।
प्रश्न 9.
देशभक्त ने सम्राट् की अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के कौन से विकल्प को चुना और क्यों?
उत्तर:
देशभक्त को दो विकल्प दिये गये थे। पहला यह था कि देशभक्त अपने किये का पश्चात्ताप करके सम्राट् की जय-जयकार करे। दूसरा विकल्प था कि या फिर उसे तोप से उड़ा दिया जाये। देशभक्त ने दूसरा विकल्प तोप से उड़ा दिया जावे, चुना। कारण यह था कि वह सच्चा देशभक्त सम्राट् के अत्याचारों का विरोध करता था। वह उसकी नजरों में एक लुटेरा, मानवता का द्रोही, राक्षस और लोगों के खून का प्यासा था। वह सच्चा सम्राट् हो ही नहीं सकता। अतः उसने पश्चाताप नहीं करके बलिदान देना स्वीकार किया।
RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रह्माणी को विधाता की सृष्टि में क्या कमी नजर आती थी कि उसने कोई सुन्दर सृष्टि करने की बात कही। समझाइये।
उत्तर:
ब्रह्माणी ने ब्रह्माजी से कहा कि स्वामी आज कोई ऐसी सुन्दर सृष्टि कीजिए जो कुछ अद्भुत हो और जिसे देखकर हम उस पर गर्व कर सकें। आपकी यह। अद्भुत सृष्टि मृत्यलोक अब किसी प्रकार भी रोचक यी आकर्षक नहीं लगती है। इसमें देखने योग्य कोई बात लगती ही नहीं है। किसी प्रकार की नवीनता या प्रेरणास्पद बातें इस सृष्टि में दृष्टिगत नहीं होती हैं । सर्वत्र वही पुरानी प्रवृत्तियाँ, वही परम्परागत पात्र, वैसी ही उनकी दैनिक जीवनचर्या, जो मन को उबा देती हैं और जरा भी रुचिकर नहीं लगती हैं। अत: किसी ऐसे चरित्र का प्रदर्शन कीजिए जो लीक से हटकर कुछ अलग चमत्कारिक एवं अनुकरणीय कर दिखावे।
प्रश्न 2.
ब्रह्माजी ने लीक से हटकर नवीन बँकरने के कार्य में ब्रह्माणी से किस प्रकार की सहायता माँगी तथा ब्रह्माजी ने क्यों उत्तर दिया?
उत्तर:
ब्रह्माजी ने ब्रह्माणी के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करते हुए कहा कि अच्छी बात है। आज हम ऐसी ही कोई अद्भुत रचना करेंगे। इसमें आपकी सहायता की भी जरूरत है। ब्रह्माणी ने कहा कि मैं आपकी इसमें क्या सहायता कर सकती हूं। यह सुनकर ब्रह्माजी ने विनोद भाव से कहा कि आप तो केवल बीच-बीच में मेरी ओर तथा मेरी कृति की ओर मधुर कटाक्ष फेरते रहना। तुम्हारी मधुर दृष्टि से हमारे कार्य में चार-चाँद लग जाएंगे। यह सुनकर ब्रह्माणी ने भी व्यंग्यपूर्ण शब्दों में ही जवाब दिया कि तुम्हारी आदत भी कलियुगी बूढों की-सी होती जा रही है, अभी तक आँखों में जवानी का नशा छाया हुआ है। इस प्रकार ब्रह्माजी ने नवीन सृष्टि-रचना के लिए जिस तरह की सहायता . माँगी, उसे लेकर दोनों में व्यंग्य-विनोदपूर्ण वार्तालाप होने लगा।
प्रश्न 3.
“अरे! यह क्या तमाशा कर रहे हैं?”ब्रह्माणी के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विधाता ने ब्रह्माणी के आग्रह करने पर एक दिव्य एवं अनुपम सृष्टि के रूप में पुतला तैयार किया। उन्होंने उसमें सारे श्रेष्ठ गुणों का समावेश किया। देव दुर्लभ गुणों से सम्पन्न उस पुतले के भाग्य एवं आयु की बात आने पर जब विधाता ने बताया कि इसके भाग्य में घोर दरिद्रता, दु:ख और चिन्ता लिखी जा रही है तथा आयु लिखी जा रही है केवल बीस वर्ष। यह सुनकर आश्चर्य से चौंकते हुए ब्रह्माणी ने कहा कि यह क्या विचित्र तमाशा कर रहे हैं। एक ओर जहाँ उसे सौन्दर्य, दया, करुणा, प्रेम, विद्या, बुद्धिबल, संतोष, धैर्य. आदि गुणों से सम्पन्न किया है, वहीं दूसरी ओर ये सब दुर्भाग्य की रेखाएँ खींचकर क्या फिर से ”नाम चतुरानन पै चूकते चले गये,’ लिखवाने का विचार है। इस प्रकार ब्रह्माणी ने अपने मन के आश्चर्य को प्रकट किया।
प्रश्न 4.
देशभक्त के प्रथम दर्शन पाकर कमला की क्या प्रतिक्रिया थी तथा उनके पति भगवान विष्णु ने उन्हें क्या समझाया?
उत्तर:
कमला ने जब पहली बार देशभक्त.को देखा तो वह तेजस्वी मुख मण्डल वाला युवक हाथ में पिस्तौल लिए हुए किसी देश-द्रोही का पीछा कर रहा था। यह दृश्य देखकर कमला ने घबराकर विष्णु भगवान से पूछा कि स्वामी ! यह कौन युवक है जो मुख पर इतना तेज और पवित्रता लिए हुए है, परन्तु यह हत्या जैसा राक्षसी कर्म करने जा रहा है, यह कैसी लीला है । लीलाधारी विष्णु ने तब उनसे कहा, देखो यह देशभक्त राक्षसों का काम तमाम करने जा रहा है। मैं भी तो साधुओं की रक्षा करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की स्थापना करने के लिए पुनः-पुनः और युग-युग में अवतार धारण करता हूँ। यदि यह देशभक्त भी वही कर्म करने जा रहा है तो यह राम, कृष्ण, प्रताप, शिवाजी, गुरुगोविन्द सिंह, नेपोलियन आदि की परम्परा का ही तो अनुसरण कर रहा है। इसमें बुराई ही क्या है, आप चुपचाप देखती जाइये। आप इन्हें प्रणाम कीजिए, ये विधाता की पवित्र रचना है।
प्रश्न 5.
देशभक्त और देशद्रोही के बीच हुए संवादको अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
अपने हाथ की पिस्तौल को देशद्रोही के मस्तक के सामने तानकर देशभक्त ने कहा कि मूर्ख देशद्रोह का मार्ग छोड़कर पश्चात्ताप कर ले तथा भारत माता की सेवा करने की प्रतिज्ञा कर अन्यथा मरने के लिए तैयार हो जा। घृणा और घमण्डपूर्ण मुस्कराहट के साथ देशद्रोही ने कहा कि अज्ञानी युवक, हम शासकों के लाडले हैं और हमारे लिए माता-पिता, ईश्वर तथा सब कुछ सम्राट् ही हैं। तुम हमारे सम्राट् के सामने देश की बड़ाई कर रहे हो। यह सुनकर देशभक्त ने उससे कहा कि तुझे अन्तिम बार पुनः कह रहा हूँ कि भारत माता की जय बोल, अन्यथा इधर देख पिस्तौल चलने के लिए तैयार है। देशद्रोही ने सीटी बजाकर अपने सहयोगी देशद्रोहियों का दल बुला लिया। उन्हें देखते ही देशभक्त ने गोली चला दी जिससे देशद्रोहियों को सरदार कबूतर की तरह धरती पर लौटने लगा और देशभक्त भाव-विभोर होकर माता की जय बोलने लगा।
प्रश्न 6.
अपनी अदभुत रचना का अनुपम कृत्य देखकर विधाता ने किस प्रकार अपनी भावना व्यक्त की?
उत्तर:
जैसे ही देशभक्त ने देशद्रोहियों के सरदार का क़ाम तमाम किया, वैसे ही इन्द्रासन ने, नन्दन-कानन ने, गंगा नदी ने, तांडव नृत्य करते हुए शिवजी ने एक साथ मिलकर ‘देशभक्त की जय’ का जयघोष किया। यह सब देखकर विधाता ने प्रेम से गद्गद होकर विधात्री से कहा कि देखो, देशभक्त के चरणों के स्पर्श से कारागार भी अपने को धन्य समझ रहा है। देशभक्त के शरीर पर जकड़ी हुई लोहे की कड़ियाँ, हथकड़ी और बेड़ियाँ भी इतनी प्रसन्न हैं मानो पारस पत्थर का स्पर्श पा लिया हो। सम्पूर्ण जगत् के हृदय में प्रसन्नता को समुद्र उमड़ रहा है। आज यह वसुन्धरा भी फूली नहीं समा रही है। अपने हृदय के उल्लास को प्रकट करते हुए विधाता ने कहा कि यह मेरी कृति है, यह मेरी विभूति है। हे प्रिये ! आप मंगल गीत गाओ, आज मेरी लेखनी धन्य हो गयी है।
प्रश्न 7.
‘देशभक्त’ कहानी का प्रतिपाद्य क्या है? संक्षेप में बताइये।
अथवा
“देशभक्त’ कहानी का उद्देश्य क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ ने ‘देशभक्त’ कहानी के माध्यम से देशवासियों को-और विशेष रूप से युवा वर्ग को कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी देश सेवा के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी है। लेखक ने देवलोक के रूपक के माध्यम से देशभक्त युवकं के चरित्र को, त्याग और बलिदान से पूर्ण एक संघर्षशील व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया है। कहानी में यह भी स्पष्ट किया गया है कि देश-सेवा के पथ पर दु:ख, दरिद्रता, चिन्ता। आदि अनेक कठिनाइयाँ आती हैं।
सच्चे देशभक्त इन दुःखों का सामना करते हुए अडिग संकल्प और दृढ़ निश्चय के साथ देश-सेवा करते रहते हैं। यदि आवश्यकता पड़े तो ऐसे युवक दुनिया की बड़ी से बड़ी शक्ति से भी टकराने का जज्बा रखते हैं और बड़े से बड़ा बलिदान देने को तत्पर रहते हैं। लेखक ने देश पर मर मिटने वालों को सबसे महान् और। पूजनीय माना है। इस प्रकार ‘देशभक्त’ कहानी का उद्देश्य देश-सेवा की प्रेरणा देना तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना का प्रसार करना है। साथ ही देश की आजादी की खातिर बलिदान होने वाले शहीदों का गुणगान करना है।
प्रश्न 8.
”देशभक्त’ कहानी में संवाद छोटे, व्यंग्यपूर्ण एवं साभिप्राय हैं।” इस कथन को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
संवाद कहानी का महत्त्वपूर्ण तत्व है। प्रस्तुत कहानी में प्रयुक्त संवाद संक्षिप्त एवं व्यंग्यपूर्ण हैं। देशभक्त के चरित्र को अभिव्यक्त करने तथा कथानक को क्षिप्रता के साथ उत्कर्ष तक लाने में संवाद पूर्णतः सफल रहे हैं। प्रस्तुत कहानी के सभी संवाद संक्षिप्त एवं रोचक हैं।’देशभक्त’ कहानी के संवादों की प्रमुख विशेषता उनकी व्यंग्यात्मकता है।
उदाहरण के लिए विधाता और ब्रह्माणी के निम्नलिखित संवाद देखिए विधाता ……… हाँ कभी-कभी मेरी ओर, मेरी कृति की ओर अपने मधुर कटाक्ष को फेर दिया करना। तुम्हारी इतनी सी सहायता से मेरी सृष्टि में जान आ जायेगी, समझीं।” ब्रह्माणीसमझी। देखती हूँ, तुम्हारी आदत भी कलियुगी बूढ़ों-सी हुई जा। रही है। अभी तक आँखों में जवानी का नशा छाया हुआ है।” यहाँ इन संवादों में व्यंग्य और विनोद भरा हुआ है।
प्रश्न 9.
‘देशभक्त’ कहानी के प्रमुख पात्र देशभक्त का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
देशभक्त विधाता की अभूतपूर्व, अनुपम और अलौकिक रचना है, जिसकी सृष्टि ब्रह्माणी के विशेष आग्रह करने पर की गई थी। स्वयं विधाता ने उसे मेरी कृति, मेरी विभूति कह कर सराहा था। शिव भगवान ने उसे अभूतपूर्व सृष्टि और विष्णुजी ने विधाता की पवित्र रचना कहा। इनके अतिरिक्त देशभक्त की कतिपय महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
- विधाता की श्रेष्ठ कृति – देशभक्त सर्वगुणसम्पन्न और विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
- बलिदानी देशभक्त – वह महान् बलिदानी है जो अपने देश के लिए सहर्ष प्राणों का उत्सर्ग कर देता है।
- दृढ़ – निश्चयी – देशभक्त दृढ़निश्चयी एवं अपनी बात पर अडिग रहने वाला
- विशिष्ट व्यक्तित्व – वह संघर्षशील है जो दु:ख, दरिद्रता, चिन्ता आदि से जूझता रहता है।
- सर्वगुण सम्पन्न – वह तेजस्वी, साहसी और पराक्रमी है। सम्राट् के लोगों को जिन्हें देशद्रोही कहा गया है उनसे देशभक्त अकेला संघर्ष करता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि देशभक्त एक ऐसा चरित्र है जिसकी देवलोक में भी जय-जयकार होती है।
प्रश्न 10.
कहानी के तत्वों के आधार पर ‘देशभक्त’ की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
पाण्डेय शर्मा बेचन’उग्र’ की रचना ‘देशभक्त’ एक श्रेष्ठ कहानी है। कथा तत्वों के आधार पर इसे निम्नांकित बिन्दुओं में समझा जा सकता है –
- कथानक – देशभक्त कहानी कलेवर की दृष्टि से संक्षिप्त एवं क्षिप्रगति से उद्देश्य तक पहुँचती है।
- पात्र या चरित्र चित्रण की दृष्टि से देशभक्त युवक ही इस कहानी का प्रमुख पात्र है। यह एक चरित्र प्रधान कहानी है जो देशभक्त की चरित्राभिव्यक्ति में पूर्णत: सफल है।
- संवाद – संवादों की संक्षिप्तता एवं व्यंग्यात्मकता प्रमुख रूप से दिखाई देती
- देशकाल और वातावरण – इस दृष्टि से कहानी में पूर्णता परिलक्षित होती है।
- भाषा – शैली कहानी में पात्रानुकूल एवं भावानुकूल भाषा-शैली प्रयुक्त हुई
- उद्देश्य – इस दृष्टि से यह कहानी सब प्रकार से सफल रही है। देशभक्त के चरित्र से देश सेवा, देश के लिए त्याग एवं बलिदान की प्रेरणा देने में यह कथा एवं इसका प्रधान पात्र देशभक्त पूरी तरह सफल रहा है।
देशभक्त लेखक परिचय
पाण्डेय शर्मा बेचन ‘उग्र’ का जन्म सन् 1900 ई. में मिर्जापुर जिले के चुनार में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा काशी में हुई। स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय आपको क्रान्तिकारी विचारों के कारण विद्यालय से निकाल दिया गया। 1921 में पुनः पढ़ाई शुरू की, परन्तु राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेकर जेल चले गये। सन् 1921 से ही ‘अष्टावक्र’ नाम से कहानियाँ लिखीं। गोरखपुर से ‘स्वदेश’ पत्रिका निकाली। इसका पहला अंक ही निकला था कि अंग्रेज सरकार ने इनके नाम वारण्ट निकाल दिया।
तत्पश्चात् कलकत्ता जाकर ‘मतवाला’ पत्र का संपादन किया। कलकत्ता से बम्बई जाकर फिल्म-लेखन का काम करने लगे, किन्तु वहाँ से ‘स्वदेश पत्रिका’ के मामले में पकड़कर इन्हें गोरखपुर लाया गया और जेल में डाल दिया गया। फिर इन्हें ‘बुढ़ापा’ और ‘रुपया’ कहानियों के कारण पुनः कैद कर लिया गया। इनकी रचनाओं में स्पष्टवादिता, पुरुषार्थ, देशभक्ति आदि का स्वर प्रखर रूप में व्यक्त हुआ है।
इनकी रचनाओं में इनकी जीवनी ‘अपनी खबर’ के नाम से प्रकाशित हुई जो हिन्दी साहित्य की अनूठी देन है।’दोजख की आग’ तथा ‘इन्द्रधनुष’ इसके कहानीसंग्रह हैं। इनका नाटक ‘महात्मा ईसा’ और उपन्यास ‘चाकलेट’ बहुत चर्चित हुए।
पाठ-सार
‘देशभक्त’ कहानी उग्रजी की एक प्रेरणास्पद कहानी है। इसमें लेखक ने देश के लिए सर्वस्व लुटा देने वाले नवयुवक को विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति माना है। कहानी देवलोक के परिवेश में ब्रह्माजी और ब्रह्माणी के संवाद से आरम्भ होती है। ब्रह्माणी कहती है कि स्वामी आज कोई सुन्दर सृष्टि कीजिए जो अद्भुत और अलौकिक हो। आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना मृत्युलोक में अब कोई चमत्कारिक या आकृष्ट करने वाले चरित्र दिखाई नहीं देते। अतः आप कोई लीक से हटकर मनोरंजक और चमत्कारिक पात्र की सृष्टि कीजिए।
विधाता ने कहा कि चलो आज चित्त भी प्रसन्न है। आप किसी से सृष्टिनिर्माण की सामग्री मँगाइये और आप भी अपने कटाक्ष नेत्रों से मुझ पर और मेरी कृति पर प्रेम की वर्षा करती रहना जिससे मेरी कृति में जान आ जायेगी।
विधाता ने क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर से मानव का पुतला बनाया। सर्वप्रथम उसमें तेज का समावेश किया और दया, प्रेम, सौन्दर्य, बल, बुद्धि, संतोष, धैर्य, गम्भीरता आदि देव दुर्लभ गुणों का उसके हृदय में संचार किया। तत्पश्चात् विधाता ने उसके भाग्य में दु:ख, चिन्ता, दरिद्रता जैसे घोर पीड़ादायक शब्द लिखे और आयु भी केवल 20 वर्ष दी। विधात्री ने उलाहना देते हुए कहा कि सर्वगुणसम्पन्न युवक के लिए आप ये अभिशप्त जीवन जीने की रेखाएँ क्यों खींच रहे हैं।
ब्रह्माजी ने कहा कि आप चुपचाप तमाशा देखते जाइये। अब तो रचना हो गई। इसका नाम मृत्युलोक में ‘देशभक्त’ होगा। अब वह देशभक्त एक देशद्रोही के पीछे दौड़कर पकड़ लेता है तथा उसे माता की जय बोलने के लिए कहता है। देशद्रोही अपने सम्राट् का गुणगान करता है और तेजस्वी युवक उसे पिस्तौल से ढेर कर देता है। देशद्रोहियों का सरदार देशभक्त के हाथों मारा जाता है। देशभक्त गिरफ्तार हो जाता है। उस पर सम्राट् के विरुद्ध द्रोह का आरोप लगाकर पश्चात्ताप प्रकट करने को कहा जाता है, परन्तु देशभक्त पश्चात्ताप करने से स्पष्ट मना कर देता है।
तब देश-भक्त को जंजीरों से बाँधकर तोप से उड़ा दिया गया। उसके पुतले के एक-एक कण को देवताओं ने अनमोल मणि की तरह लूट लिया। बहुत देर तक देवलोक में देशभक्त का जयघोष होता रहा।
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