Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 उधार मांगना भी एक कला है
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
बिना पूँजी व्यापार प्रारम्भ करने के लिए
(क) बैंक से ऋण लेना चाहिए।
(ख) सहकारी समिति से सहयोग लेना चाहिए।
(ग) मित्रों से सहयोग लेना चाहिए।
(घ) उधार माँगने की कला का अभ्यास करना चाहिए।
उत्तर:
(घ) उधार माँगने की कला का अभ्यास करना चाहिए।
प्रश्न 2.
यदि आपको उधार माँगने की कला में पारंगत होना है तो सर्वप्रथम
(क) बड़े लोगों में रहिए
(ख) स्वयं को प्रभावशाली बनाइये
(ग) ऊँची पार्टियों में जाइये।
(घ) अपनी चमड़ी को मोटा बनाइये।
उत्तर:
(घ) अपनी चमड़ी को मोटा बनाइये।
प्रश्न 3.
प्रायः सभी शौकिया उधार लेने वाले इस बहाने को पेंसिलीन के इंजेक्शन की तरह प्रयोग करते हैं
(क) कल दे दूंगा।
(ख) अभी पैसा नहीं है।
(ग) आपका पैसा देना है।
(घ) भाई अभी वेतन नहीं मिला है।
उत्तर:
(घ) भाई अभी वेतन नहीं मिला है।
प्रश्न 4.
पाँचों अँगुलियाँ घी में (और सिर कड़ाही में) का तात्पर्य है –
(क) पौष्टिक भोजन करना
(ख) घृत युक्त पकवान में रहना।
(ग) आराम युक्त जीवन जीना
(घ) सब ओर से लाभ।
उत्तर:
(घ) सब ओर से लाभ।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जिससे उधार लेना होता है, उसके साथ पूर्वराग के रूप में क्या करना चाहिए?
उत्तर:
जिससे उधार लेना होता है, उसे पूर्वराग के रूप में चाय पिलानी चाहिए, खुशामद रूपी पालिश की जानी चाहिए।
प्रश्न 2.
‘ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्’ सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
यह चार्वाक दर्शन का सिद्धान्त है, जब तक जीओ मौज-मस्ती से रहो, ऋण लेकर भी सुख से रहो, मरने के बाद कुछ नहीं मिलता है।
प्रश्न 3.
जो बड़े कलाकार होते हैं वे अपने साथ क्या रखते हैं?
उत्तर:
जो बड़े कलाकार होते हैं, वे अपने पास बैंक की पासबुक तथा चैक दोनों रखते हैं।
प्रश्न 4.
लेखक के मित्र मक्खनलाल ने पत्र में क्या लिखा?
उत्तर:
मक्खनलाल ने पत्र में लिखा कि ‘मैं यहाँ राजी-खुशी हूँ, तुम्हारी राजी-खुशी जमुनाजी से मनाता हूँ। मौसम बड़ा अच्छा है।”
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उधार माँगने वालों के लिए गीता में एक सिद्धान्त कौन-सा है और क्या है?
उत्तर:
उधार माँगने वालों के लिए गीता में एक सिद्धान्त है – स्थितप्रज्ञ बनो। स्थितप्रज्ञ उसे कहते हैं जो सब प्रकार के भ्रमों से मुक्त रहे, सब तरह के मनोगत भावों और कामनाओं से मुक्त रहे। अपनी ही आत्मा में स्वयं सन्तुष्ट एवं विवेकशील बना रहे। इस तरह मान-अपमान, लाभ-हानि या विरोधी भावों में अपनी बुद्धि को एकरस या स्थिर रखे। गीता का यह सिद्धान्त निर्णय लेने या समझदारी दिखाने में दृढ़ता रखने से सम्बन्धित है। उधार माँगने वाला इसे बेशर्मी दिखाने में और मानअपमान की चिन्ता न करने में अपनाता है।
प्रश्न 2.
“एक सज्जन से पूछा कि संसार का सारा धन यदि आपको मिले जाए तो आप क्या करियेगा?” इस पर लेखक को उक्त सज्जन ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
लेखक को उक्त सज्जन ने उत्तर दिया कि उस धन से मैं अपना ऋण चुकाऊँगा, जितना भी चुक सके वह चुकाऊँगा उस सज्जन के कथन का आशय यह माना जा सकता है कि उसने कई लोगों से काफी उधार और ऋण ले रखा है। वह वस्तुतः उधार चुकाने में लापरवाह है और उसे नहीं चुकाना चाहता है। न तो संसार का सारा धन उसे मिल सकता है और न वह ऋण चुकाना जरूरी मानता है। यह ऋण न चुकाने की एक कलाकारी भरा हुआ कथन है। ऐसा पहुँचे हुए मक्कार एवं धूर्त लोग ही कहते हैं।
प्रश्न 3.
बिना गुरु के किसकी प्राप्ति नहीं हो सकती है और क्यों?
उत्तर:
बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। क्योंकि किसी भी विषय का या किसी भी कला का पूर्ण ज्ञान उस विषय के ज्ञाता व्यक्ति से ही मिलता है। अतः विषय-विशेषज्ञ गुरु की जरूरत पड़ती है, वही शिक्षण-प्रशिक्षण एवं उपदेश के द्वारा ज्ञान को हृदयंगम कराता है तथा जरूरत पड़ने पर प्रायोगिक ज्ञान भी दे सकता है। लेखक ने उधार माँगने को भी एक कला बताया है। अतः इसके ज्ञान के लिए किसी ऐसे गुरु की जरूरत होती है, जो इस क्षेत्र में काफी अनुभवी हो। वही प्रशिक्षण देकर शिष्य को सक्षम बना सकता है।
प्रश्न 4.
उधार सम्प्रदाय के मानने वाले कहाँ मिलेंगे?
उत्तर:
डॉ. बरसानेलाल चतुर्वेदी ने काफी अनुशीलन के बाद बताया है कि कुछ लोगों को उधार लेने का शौक होता है अथवा मजबूरी भी होती है। ऐसे लोगों का एक अलग ही सम्प्रदाय या वर्ग होता है। इस सम्प्रदाय के लोग दफ्तरों में, विद्यालयों एवं मिलों में मिल जाते हैं। जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काफी मिलते हैं। एक बार उधार माँगने की आदत पड़ जावे, तो वह आदत फिर छूटने का नाम नहीं लेती है। अधिकतर वेतनभोगी या दैनिक मजदूरी करने वाले लोग इस सम्प्रदाय में दिखाई देते हैं। पेंशनभोगी लोग भी इसी सम्प्रदाय में आते हैं।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“उधार माँगना भी एक कला है।” पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
पाठ का सार प्रारम्भ में दिया गया है, उसे देखिए।
प्रश्न 2.
पठित पाठ के आधार पर उधार सम्प्रदाय के लोगों का चरित्रचित्रण कीजिए।
उत्तर:
उधार माँगना भी एक कला है’ हास्य-व्यंग्य में लेखक ने उधार माँगने वालों का वर्गीकरण किया है तथा उसी आधार पर उनके चरित्र-चित्रण को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। सामान्य रूप से उधार माँगने वालों की ये विशेषताएँ बतायी गई हैं।
- मोटी चमड़ी का होना – उधार माँगने वाला मोटी चमड़ी का होता है। उस पर सामान्य घुड़की या मान-अपमान की बात का असर नहीं पड़ता है। इसी कारण वह बेशर्म एवं निर्लज्ज प्रकृति का होता है।
- बहाना बनाने में चतुर – उधार माँगने वाले बहाना बनाने में चतुर होते हैं। वे कभी तो वेतन न मिलने का बहाना बनाते हैं तो कभी रास्ता बदल कर जाने और भूल जाने का दिखावा करते हैं। कभी बीमार पड़ने व घर का बजट बिगड़ जाने का बहाना बनाते हैं।
- स्वार्थी प्रवृत्ति – उधार माँगने वाले पहले मीठी-मीठी बातें करते हैं। पूर्व परिचित की तरह चाय-पानी पिलाकर अनुकूल बनाते हैं और मौका मिलते ही उधार माँगने में सफल हो जाते हैं।
- धूर्तता का आचरण – उधार माँगने वाले कुछ लोग पक्के धूर्त होते हैं। वे उधार देना भूल जाते हैं, उसकी बात भी नहीं करते हैं और यदि कोई कुछ कठोरता से कहता है, तो वे अपनी इज्जत का हवाला देते हैं। क्या आपका रुपया लेकर भाग जाऊँगा?’, ‘मुझे स्वयं ख्याल है’ इत्यादि बातें कहकर तगादा करने वाले को निरुत्तर कर देते हैं।
प्रश्न 3.
आपका शिकार किसी बड़े शिकारी ने किया हो तथा कड़ाई से अगर वसूली की जाए तो इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
उत्तर:
इस सन्दर्भ में लेखक बताता है कि यदि किसी ऊँचे कलाकार ने आपसे उधार लिया है, तो उससे तगादा करना भारी पड़ सकता है। वह ऊँचा शिकारी बहाने बनाने की कला में चतुर तो होगा ही, साथ ही वह बेशर्मी से धमकाने में भी माहिर होगा। उसके साथ यदि कड़ाई से उधार-वसूली का प्रयास किया जावे, तो वह बड़ी बेरुखी से कहेगा कि क्या आपका रुपया लेकर मैं भाग जाऊँगा?”, “आपने अपने आपको क्या समझ रखा है?, हमारी भी इज्जत है।”
वह कठोर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए फिर कहेगा कि ”आपको बार-बार याद दिलाने की आवश्यकता नहीं, मुझे स्वयं उधार चुकता करने का ख्याल है।” लेखक बताता है कि उस बड़े शिकारी की कठोर प्रतिक्रिया को सुनकर छोटा शिकार अर्थात् उधार देने वाला व्यक्ति सोचने लगेगा कि किस बुरी घड़ी में इस व्यक्ति को उधार दिया और इससे इस तरह का प्रेम-व्यवहार किया।
प्रश्न 4.
”हमारे देश का विकास उधार की बैसाखियों के सहारे हुआ है।” पठित पाठ के आधार पर अपने तार्किक विचार 200 शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद देश के सामने अनेक समस्याएँ थीं। देश का आर्थिक एवं औद्योगिक विकास तीव्र गति से करना था, सैन्य सामग्री की आपूर्ति करनी थी, पंचवर्षीय योजनाओं के लिए धन की जरूरत थी। इस तरह उस समय सरकार ने विश्व बैंक से, कुछ बड़े राष्ट्रों से, विश्व स्वास्थ्य संगठन से तथा विश्व की बड़ी कम्पनियों से समझौते कर सहायता प्राप्त की अथवा उनसे उधार लेकर देश के विकास का रथ आगे बढ़ाया। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, रक्षा उपकरण आदि सामग्री का उत्पादन करने में, नयी प्रौद्योगिकी के विकास में भी रूस आदि देशों से पर्याप्त सहायता लेनी पड़ी।
इस तरह विदेशी सहयोग प्राप्त करने और ऋण लेने का क्रम लगातार चलता रहा। समृद्ध राष्ट्रों ने जब-जब सहायता राशि में कटौती की या उधार देने में कठोर शर्तों के बहाने मना कर दिया, तब-तब उन परियोजनाओं का काम रोकना पड़ा और देश के विकास का ढाँचा जितनी तेजी से खड़ा होना चाहिए था, वह नहीं हो सका। इसी कारण स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लगभग सात दशक हो जाने पर भी देश की उचित प्रगति नहीं हुई, अभी भी भारत प्रगतिशील देश ही कहलाता है। यह एक अकाट्य सत्य है कि हमारे देश का जितना भी विकास हुआ है कि वह विदेशी सहायता अथवा समृद्ध राष्ट्रों से ऋण लेकर ही हुआ है। अब कुछ नव-निर्माण एवं आर्थिक क्षेत्र में भारत प्रगति की ओर बढ़ रहा है।
व्याख्यात्मक प्रश्न –
1. जिस प्रकार देवी …………. छोट चुकी है।
2. सचमुच कुछ लोगों ……………… एक बार ही चढ़ती है।
3. जैसे अंकगणित …………….. क्यों लगी?
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या आगे दी गई है, वहाँ देखिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
उधार माँगना भी एक कला है’ – यह किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) निबन्ध
(ग) रेखाचित्र
(घ) हास्य-व्यंग्य।
उत्तर:
(घ) हास्य-व्यंग्य।
प्रश्न 2.
‘उधार माँगना भी एक कला है’ के लेखक का नाम है।
(क) हरिशंकर परसाई
(ख) बरसाने लाल चतुर्वेदी
(ग) बनारसीदास चतुर्वेदी
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी
उत्तर:
(ख) बरसाने लाल चतुर्वेदी
प्रश्न 3.
हास्य-व्यंग्य के नायक के मित्र का क्या नाम बताया गया हैं?
(क) नटवरलाल
(ख) बिहारीलाल
(ग) मक्खनलाल
(घ) बरसाने लाल
उत्तर:
(ग) मक्खनलाल
प्रश्न 4.
उधार माँगने की कला में जिसका शिकार किया जाता है, वह होता है
(क) एक पक्षी के समान
(ख) एक मित्र के समान
(ग) एक गुरु के समान
(घ) एक व्यापारी के समान
उत्तर:
(क) एक पक्षी के समान
प्रश्न 5.
उधार माँगने वाले किस बात का तनिक भी खयाल नहीं रखते हैं?
(क) लोग हम पर क्यों विश्वास करते हैं।
(ख) लोग क्यों उधार देने से डरते हैं।
(ग) लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं
(घ) लोग हमारी बेइज्जती करते हैं।
उत्तर:
(ग) लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बिना पूँजी के कोई व्यापार प्रारम्भ करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
बिना पूँजी के कोई व्यापार प्रारम्भ करने के लिए उधार माँगने की कला का अभ्यास करना चाहिए।
प्रश्न 2.
उधार माँगने की कला कैसे उस्ताद से सीखनी चाहिए?
उत्तर:
उधार माँगने की कला ऐसे उस्ताद से सीखनी चाहिए, जो इस विषय का माना हुआ विद्वान् हो।
प्रश्न 3.
उधार माँगने में सफलता मिलना कितना कठिन बताया गया है?
उत्तर:
जितना कठिन प्लेटफार्म को छोड़ चुकी गाड़ी का मिलना है, उतना ही कठिन मौका चूक जाने पर उधार माँगने में सफलता पाना है।
प्रश्न 4.
लेखक ने किस उत्सुकता से मित्र द्वारा भेजा गया पत्र खोला?
उत्तर:
लेखक ने सोचा कि इस पत्र में मित्र ने उधार का रुपया भी रखा होगा, इस उत्सुकता से उसने पत्र खोला।।
प्रश्न 5.
“काठ की हांडी तो एक बार ही चढ़ती है।” इस कहावत का आशय पठित पाठ के अनुसार बताइए।
उत्तर:
किसी से उधार बार-बार नहीं, एक ही बार मिलता है, किसी को धोखा एक ही बार दिया जा सकता है।
प्रश्न 6.
“यह शिकारी की रियाज पर निर्भर करता है। इस कथन का आशय लिखिए।
उत्तर:
जिस व्यक्ति ने उधार माँगने की कला का जितना अभ्यास किया होगा, वह उतना ही सफल रहेगा। निरन्तर अभ्यास करने से ही सफलता मिलती है।
प्रश्न 7.
लेखक ने उधार माँगने वाले लोगों का सम्प्रदाय कैसा बताया है?
उत्तर:
लेखक ने उधार माँगने वाले लोगों का एक अलग ही सम्प्रदाय बताया। है, जो कि बहानेबाज एवं बेशर्म होते हैं।
प्रश्न 8.
लेखक के अनुसार किनकी पाँचों उँगलियाँ घी में रहती हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार जो लोग किसी सिद्धि प्राप्त अर्थात् कलाकार उस्ताद से उधार माँगने का प्रशिक्षण लेते हैं, उनकी पाँचों उँगलियाँ घी में रहती हैं।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पक्षी का शिकार करने और उधार माँगने का शिकार करने में क्या समानता एवं असमानता है? पठित पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
लेखक बताता है कि यद्यपि पक्षी का शिकार करने और उधार माँगने का शिकार करने में समानता है, क्योंकि दोनों में बड़ी कलाकारी एवं सावधानी से शिकार किया जाता है। परन्तु पक्षी पर निशाना साधकर शिकार किया जाता है। यदि निशाना चूक गया अथवा निशाना साधने से कुछ क्षण पहले पक्षी उड़ गया, तो शिकार नहीं होता है। परन्तु उधार माँगने की कला में एक बार मौका हाथ से निकल गया, तो फिर वैसा अवसर मिल भी सकता है और नहीं भी मिल सकता है। पक्षी पर। बार-बार निशाना साधा जा सकता है, परन्तु उधार में ऐसा मौका नहीं मिलता है। इसमें यही असमानता है।
प्रश्न 2.
उधार माँगने की कला में पारंगत होने के लिए क्या बनना चाहिए?
उत्तर:
लेखक के अनुसार उधार माँगने की कला में पारंगत होने के लिए मोटी चमड़ी का होना चाहिए, अर्थात् निर्लज्ज, बेशर्म एवं ढीठ होना चाहिए। इसके लिए ‘स्थितप्रज्ञ’ बनना चाहिए, अर्थात् मान-अपमान की चिन्ता नहीं करनी चाहिए, उधार लेकर भूल जाना चाहिए। भले आदमी वापस माँगते ही नहीं हैं, कुछ हैं जो माँगते हैं। अतएव दोनों को समान भाव से देखना चाहिए। उधार लेकर उसे चुकाने की चिन्ता न रखकर निर्द्वन्द्व बनना चाहिए और एकदम भुलक्कड़ बन जाना चाहिए।
प्रश्न 3.
प्रवास से लौटे मित्र का कैसा व्यवहार रहा? पठित पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
मित्र के प्रवास से लौटने का समाचार सुनकर लेखक स्टेशन पर उनका स्वागत करने गया । लेखक ने सोचा कि मेरी विनयशीलता का अच्छा प्रभाव पड़ेगा और मित्र मेरा उधार दिया रुपया चुका देगा। परन्तु मित्र ने प्रवास-यात्रा की सबे बातें कीं, कुशल-क्षेम आदि सब कुछ कहा, परन्तु उधार का रुपया चुकाने का जरा भी नाम नहीं लिया। इस प्रकार मित्र का व्यवहार पूरी तरह टरकाने वाला और बेशर्मी से भरा रहा। ऐसा लगा कि वह उधार के रुपये के बारे में साफ भूल ही गया है। इस बात का चिन्तन कर लेखक उससे तगादा नहीं कर सका।
प्रश्न 4.
“शिकार स्वयं ही आत्म-समर्पण कर देते हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकार अर्थात् उधार देने वाला व्यक्ति उधार चुकाने वाले से बार-बार तगादे करता है, परन्तु वह बहाने बनाने में काफी चतुर होता है। उधार माँगकर उसे न चुकाने की कला में अभ्यस्त होने से वह कभी कहता है कि घर में तथाकथित बीमारी हो जाने से उसका बजट गड़बड़ा गया है, उसका स्वयं का रुपया किसी परिचित व्यक्ति के पास फँसा हुआ है, वह स्वयं इतने दिनों अस्वस्थ रहते कमजोर हालत में है, इत्यादि । इस तरह के बहाने बनाकर वह उधार चुकाने का तगादा करने वाले को निरुत्तर कर देता है। इस दशा में वह स्वयं ही चुप हो जाता है।
प्रश्न 5.
क्या उधार माँगने की चालाकी को कला कहना उचित है? सतर्क उत्तर लिखिए।
उत्तर:
शास्त्रों में चौदह विद्याओं और चौसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है। जो कार्य हाथ की सफाई से या शरीर की क्रियाओं से प्रायोगिक रूप में किया जाता है, उसे कला कहते हैं, जैसे – संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, तक्षण कला, शिल्पकला, वयनकला आदि। चौसठ कलाओं में बढ़ईगिरी, नाई-कर्म, तलवारबाजी आदि के साथ जालसाजी एवं धोखेबाजी की भी गणना की गई है। उधार माँगने में तथा उधार चुकाने के बहाने बनाने में भी चतुराई दिखाई जाती है। इसी चतुराई के कारण उधार माँगने को कला कहा गया है। अतः आंशिक रूप से इसे कला मानना उचित है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“उधार सम्प्रदाय वाले नकदी पर ही जोर नहीं देते।” इस कथन को सोदाहरण बताते हुए शिकार का अहित भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उधार माँगने वाले कुछ लोग खाने-पीने तथा गृहस्थी की आवश्यकता का सामान भी उधार में लेते हैं। इस कथन के सन्दर्भ में लेखक उदाहरण देता है कि कोई बड़ा अफसर उस क्षेत्र में नियुक्त होकर आया। उसकी गृहस्थी का सारा सामान अर्दली, चपरासी आदि लाते हैं। वे दुकानदार से कहते हैं कि साहब एक साथ ही सारा हिसाब कर देंगे, चिन्ता मत कीजिए। उधार लिये काफी समय बीतता है, बड़े साहब कभी दुकान पर नहीं आते हैं। दुकानदार शिष्टाचारवश उन्हें याद नहीं दिला पाता है और स्वयं शिकार बन जाता है। ऐसी स्थिति में यदि वह : दुकानदार बड़े साहब के साथ कड़ाई से पेश आवे, वसूली करने उनके घर पर या।
दफ्तर में जावे, तो इससे उसका अहित हो सकता है। तब साहब उसकी दुकान का चालान करा सकता है, मिलावटी माल रखने का दोषी बताकर जुर्माना या सजा दिला सकता है। इस प्रकार साहब के कठोर व्यवहार से वह दुकानदार उनका शिकार बन जाता है। साहब ने उससे नकदी रूप में उधार नहीं लिया, अपितु सामग्री रूप में लिया और चुकाने में अपनी ओर से लापरवाही या उपेक्षा दिखाई, तो इससे शिकार का हा अहित हुआ।
प्रश्न 2.
‘उधार माँगना भी एक कला है’ रचना में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
उधार माँगना भी एक कला है’ व्यंग्य-रचना में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है, जो उधार माँगकर या ऋण लेकर उसे डकार जाने या हजम करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं। जो लोग उधार माँगकर ईमानदारी से उसे । चुकाने का प्रयास करते हैं, उनका इसमें उल्लेख नहीं हुआ है। इसमें बताया गया है कि उधार-सम्प्रदाय के लोगों का चरित्र बेशर्मी, बेहयाई, मक्कारी एवं फरेब से भरा रहता है। वे उधार माँगने के अनेक तरीके अपनाते हैं, शिकार को. फाँसने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातें और बहाने बनाते हैं तथा खुशामद करते हैं या कपटी मित्रता का आचरण करते हैं।
एक बार उधार मिल जावे, तो फिर वे मोटी चमड़ी वाले बनकर देने के नाम पर अनेक बहाने बनाते हैं, एकदम भूल जाते हैं और उन्हें स्मरण कराने पर कहते हैं कि क्या आपका रुपया लेकर मैं भार जाऊँगा?” इस तरह के उत्तर से वे सामने वाले को निरुत्तर कर देते हैं। उधार माँगने वाले हर जगह मिल जाते हैं और वे हर किसी से उधार माँग लेते हैं, परन्तु र शर्मी से अपनी इज्जत का ढोंग करते हैं। ऐसे लोगों के बारे में सभी अच्छी राय नहीं रखते हैं। प्रस्तुत व्यंग्य-लेख में ऐसे ही लोगों का चित्रण कर उन पर सशक्त व्यंग्य किया गया है। सामाजिक सहानुभूति एवं सहयोग की भावना की घोर उपेक्षा करने वालों पर भी इसमें करारा व्यंग्य-प्रहार हुआ है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी के साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
स्वातन्त्र्योत्तर काल में हिन्दी में व्यंग्य-लेखन का काफी प्रसार हुआ है। तथा समाज के विविध पक्षों एवं अनेक वर्गों को लेकर विविध शैलियों में हास्यव्यंग्य प्रखर बनाया गया है। आधुनिक समय में डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी को हास्य का जन्मसिद्ध अधिकारी माना जाता है। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में हास्य-रस’ विषय पर शोधकार्य कर पी-एच.डी. उपाधि प्राप्त की है। इन्होंने हास्य रस की कुशलता से विवेचना की है और इसके सिद्धान्त का प्रतिपादन करने में मौलिक चिन्तन व्यक्त किया है। चतुर्वेदीजी ने वाग्छल, व्यंग्य एवं स्मित – ये तीन भेद बताते हुए हास्य के साथ व्यंग्य का सुन्दर समन्वय दर्शाया है।
‘हाथी के पंख’ इनकी कहानियों एवं निबन्धों का संग्रह है। इसमें पारिवारिक समस्याओं को लेकर हास्य-व्यंग्य की सृष्टि हुई है। ‘चाटुकारिता एक कला है’, ‘बरात की बात’ तथा ‘ श्री मुफ्तानन्दजी से मिलिए’ इनके हास्यरस से परिपूर्ण सुन्दर निबन्ध हैं। चतुर्वेदीजी की शैली विचार-प्रधान है, भाषा सरल और विचारों को बोधगम्य बनाने वाली है। इनके व्यंग्य के मर्मभेदी प्रहार पाठकों के हृदय में गुदगुदी मचाते हैं। सम्प्रति हास्य-व्यंग्य लेखन में इनकी लेखनी प्रशस्त है।
उधार माँगना भी एक कला है। लेखक परिचय-
आधुनिक युग में हास्य-व्यंग्य लेखन में विषयगत व्यापकता आ गई है। डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी ऐसे प्रतिष्ठित हास्य-व्यंग्य लेखक हैं, जिन्होंने हास्य-व्यंग्य के सभी रूपों एवं सभी भेदों का प्रयोग किया है। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में हास्य रस’ विषय पर पी-एच.डी. उपाधि प्राप्त की है। ‘चाटुकारिता एक कला है’, ‘बरात की बात’ एवं ‘श्री मुफ्तानन्दजी से मिलिए’ इनकी हास्य-रसपूर्ण सुन्दर रचनाएँ हैं। इन्होंने विचारात्मक शैली में स्मित हास्य की सुन्दर रचना की है।
पाठ-सार
डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित ‘उधार माँगना भी एक कला है’ शीर्षक हास्य-व्यंग्य में जो चित्रण किया गया है, उसका सार इस प्रकार है उधार माँगने की कला का अभ्यास-लेखक बताता है कि बिना पूँजी के कोई व्यापार प्रारम्भ करना हो, तो उधार माँगने की कला का अभ्यास करना चाहिए। परन्तु उधार माँगने का काम इतना आसान नहीं है।
इसके लिए किसी गुरु से ट्रेनिंग लेनी चाहिए और सतत अभ्यास करना चाहिए। शिकार फँसाने में सावधानी-जिस प्रकार देवी पर बलि चढ़ाने से पहले बकरे को पौष्टिक भोजन कराया जाता है, उसी प्रकार उधार माँगने से पूर्व शिकार को चाय-पानी पिलाकर अपने अनुकूल किया जाता है और जैसे ही वह तैयार हो जाये, उसे तुरन्त फाँस लिया जाता है।
कला में प्रवीण होने के उपाय-लेखक बताता है कि उधार माँगने की कला में प्रवीण होने के लिए मान-अपमान की चिन्ता मत करें, उधार लेकर देना भूल जाइये और बहाने बनाने के तरीके अपनाते रहिये। जैसे उधार चुकाना भूल जाइये, कभी उस रास्ते से मत जाइये और यदि मुलाकात हो भी तो उधार चुकाने की बात मत छेड़िए।
उधार माँगने का सम्प्रदाय-उधार माँगने वालों का एक अलग सम्प्रदाय या वर्ग होता है। ऐसे लोग दफ्तरों, विद्यालयों, मिल-कारखानों और जीवन के अन्य क्षेत्रों में मिल जाते हैं। कुछ लोग तो उधार माँगने का शौक रखते हैं, ऋण लेकर मौज में रहना चाहते हैं। इसलिए वे हर किसी को अपना शिकार बना लेते हैं। जब कोई तगादा करता है, तो बहाना बनाते हैं।
कुछ चतुर कलाकार-कुछ बड़े कलाकार जेब में बैंक की पासबुक और चैक दोनों रखते हैं और जिससे रुपये उधार लिये, उसे एक महीने आगे की तारीख का चैक पकड़ा देते हैं। कुछ सेवक बड़े अफसरों की गृहस्थी का सामान उधार ले आते हैं, परन्तु चुकाते समय शिष्टाचार की घुड़की देते हैं।
बहाने अनेक-उधार चुकाने पर अनेक बहाने चलते हैं, जैसे घर में बीमारी की वजह से बजट गड़बड़ा गया, मेरा रुपया दूसरों पर फैंस गया, मालिक कुछ दिनों के लिए बाहर गये हैं। इससे भी आगे यह वाक्य कहा जाता है कि क्या मैं आपकी उधार लेकर भाग जाऊँगा? क्या मेरी इतनी भी इज्जत नहीं है?
स्वार्थ-सिद्धि की प्रबलता-उधार माँगकर उसे हजम करने वाले यह भी नहीं सोचते हैं कि लोग उनके बारे में क्या कहते हैं। सारे संसार का धन यदि मिल जावे, तो भी वे पूरा कर्ज एक साथ नहीं चुकाना चाहेंगे, क्योंकि उनमें स्वार्थ-सिद्धि की प्रबलता रहती है। वे सदा पाँचों उँगलियाँ घी में रखने का प्रयास करते हैं।
कठिन शब्दार्थ-
उस्ताद = गुरु। शागिर्दी = शिष्यत्व। पौष्टिक = पुष्ट करने वाला। करमकल्ला = पत्तागोभी। स्थितप्रज्ञ = समभाव वाली स्थिति, सबको समान मानने वाली बुद्धि से युक्त व्यक्ति। प्रवास = घर से बाहर, परदेश। सम्प्रदाय = एक वर्ग, समूह। ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् = ऋण लेकर घी पी ले। आत्मीय = स्नेही व्यक्ति। अर्पित = अर्पण करना, देना। शिष्टाचारवश = सभ्य आचरण के कारण। रियाज = अभ्यास। अनन्त = जिसका अन्त न हो, असीम-असंख्य। पूर्वराग = आरम्भिक प्रेम, मिलन से पूर्व होने वाला प्रेम।
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