Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 महाकवि जयशंकर प्रसाद
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रेमचन्दजी की पत्रिका का नाम था
(क) हंस
(ख) इन्दु
(ग) निगमागम चन्द्रिका
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(क) हंस
प्रश्न 2.
किसका घराना काशी में बहुत प्रतिष्ठित माना जाता था
(क) शिवपूजन सहाय
(ख) प्रसाद
(ग) प्रेमचन्द
(घ) निराला
उत्तर:
(ख) प्रसाद
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शिवपूजन सहायजी की कचहरी में नियुक्ति किस रूप में हुई?
उत्तर:
शिवपूजन सहायजी की कचहरी में हिन्दी नकलनवीस’ रूप में नियुक्ति हुई।
प्रश्न 2.
प्रसादजी की पुश्तैनी दुकान किसकी थी?
उत्तर:
प्रसादजी की पुश्तैनी दुकान जर्दा-सुर्ती की थी।
प्रश्न 3.
प्रसादजी के लेखन-कार्य का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
प्रसादजी के लेखन कार्य का उद्देश्य अर्थार्जन या यश-प्राप्ति की कामना न होकर स्वान्तःसुखाय था।
प्रश्न 4.
प्रसादजी के साहित्य-गुरु कौन थे?
उत्तर:
प्रसादजी के साहित्य-गुरु महामहोपाध्याय देवीप्रसाद शुक्ल कवि चक्रवर्ती
प्रश्न 5.
प्रसादजी किस युग में उत्पन्न हुए थे?
उत्तर:
प्रसादजी हिन्दी साहित्य के छायावाद और रहस्यवाद के युग में उत्पन्न हुए थे।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रसादजी की पुश्तैनी दुकान पर किन-किन साहित्यकारों द्वारा किन-किन विषयों पर विचार-विमर्श होता था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रसादजी की पुश्तैनी दुकान पर रात दस-ग्यारह बजे तक सुप्रसिद्ध अनेक साहित्यकार शास्त्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श करते थे। रायसाहब प्राचीन भारतीय शिल्पकला और मूर्तिकला पर, लाला भगवानदीन शब्दों की व्युत्पत्ति निरुक्ति पर, महाकवि रत्नाकर ब्रजभाषा साहित्य की बारीकियों पर, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल। संस्कृत-साहित्य की विविध प्रवृत्तियों पर तथा मुंशी प्रेमचन्द कथा-साहित्य के । मनोवैज्ञानिक पक्ष पर विचार-विमर्श करते थे। उसी अवसर पर प्रसादजी का वैदुष्य भी मुखरित हो जाता था।
प्रश्न 2.
“प्रसादजी की स्मरण-शक्ति बड़ी विलक्षण थी।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साहित्यकार मित्र-मण्डली के साथ विचार-विमर्श करते समय प्रसादजी वैदिक ऋचाओं और उपनिषद्-वाक्यों को कण्ठस्थ सुना देते थे। संस्कृत के महाकवियों ने किस शब्द का कब और किस अर्थ में प्रयोग किया है, इसे भी वे सोदाहरण बता देते थे। शालिहोत्र तथा आयुर्वेद-शास्त्र के महत्त्वपूर्ण प्रकरणों को उनके लक्षणों के साथ कह देते थे। उन्हें हीरा, मोती, मूंगा आदि सभी रत्नों के गुणदोष शास्त्रीय प्रमाण के साथ कण्ठस्थ थे। इसी प्रकार बनारस की पुरानी परम्पराओं । एवं वहाँ के रईसों, पण्डितों आदि की कहानियाँ सुनाने में वे दक्ष थे। इससे उनकी विलक्षण स्मरण-शक्ति का पता चलता था।
प्रश्न 3.
साहित्यकारों के जीवन की विडम्बना को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साहित्यकारों के जीवन की यह विडम्बना है कि जब तक वे जीवित रहते हैं, तब तक उनका उचित सम्मान नहीं होता है, उनके साहित्य की भी कटु आलोचना होती है। अनेक लोगों को साहित्यकारों का उत्कर्ष असह्य लगता है। लेखक बताता है कि लोगों ने जीते-जी न तो प्रेमचन्द को उचित सम्मान दिया, न प्रसादजी को और न निराला को ही आदर दिया। लेकिन जब वे इस संसार से चले गये, तब उनका गुणगान होने लगा और साहित्य-क्षेत्र में उनकी अमोघ मेधाशक्ति को मान्यता दी जाने लगी। इस तरह की परम्परा-सी बन गई है कि साहित्यकार के निधन के बाद उसका मूल्यांकन किया जाता है।
प्रश्न 4.
“उनकी तीव्र आलोचना करने वाले सज्जन भी उनके पास पहुँचकर यथोचित आदर-मान ही पाते थे।” उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक बताता है कि महाकवि प्रसाद सबके प्रति सद्भावनापूर्ण व्यवहार करते थे। इस कारण वे अपनी तीव्र आलोचना करने वाले से कोई राग-द्वेष नहीं रखते थे। उदाहरणार्थ प्रेमचन्दजी ने एक बार ‘हंस’ पत्रिका में प्रसादजी के ऐतिहासिक नाटकों की आलोचना करते हुए लिख दिया कि ‘प्रसाद प्राचीन इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ा करते हैं। जिस समय हंस पत्रिका में यह मत प्रकाशित हुआ, उसी समय प्रेमचन्दजी सदा की भाँति प्रसादजी के साथ बैठकर साहित्य-चर्चा कर रहे थे। उस समय उनके मन में प्रेमचन्दजी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी और यथोचित आदर के साथ वे उनसे बातें कर रहे थे।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शिवपूजन सहाय के ‘महाकवि जयशंकर प्रसाद’ रेखाचित्र के आधार पर प्रसादजी के व्यक्तित्व की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आचार्य शिवपूजन सहाय ने ‘महाकवि जयशंकर प्रसाद’ रेखाचित्र में प्रसादजी के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं का वर्णन किया है। तदनुसार उनके व्यक्तित्व का निरूपण इस प्रकार है
- महान् साहित्यकार – प्रसाद महान् साहित्यकार एवं महाकवि थे। उन्होंने नाटक, उपन्यास, महाकाव्य आदि की रचना से हिन्दी साहित्य के भण्डार को भरा।
- प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व – प्रसाद अनुपम प्रतिभासम्पन्न थे। उन्होंने अपनी रचनाओं तथा अन्य कार्यों में विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया।
- कला-मर्मज्ञ – प्रसाद अनेक कलाओं के मर्मज्ञ थे। वे काशी की विशेषताओं के विशेषज्ञ थे। पाककला के ज्ञाता और अपने व्यवसाय में कुशल थे।
- सर्वशास्त्रज्ञ – प्रसाद की भारतीय शास्त्रों में, आयुर्वेद, शालिहोत्र, वेद, उपनिषद् एवं संस्कृत साहित्य के सभी अंगों में गहन गति थी।
- लोकज्ञान से सम्पन्न – प्रसाद को विभिन्न व्यवसायों की पारिभाषिक शब्दावली और विविध बोलियों का गहन ज्ञान था।
- व्यवसाय में कुशल – प्रसाद अपने पैतृक व्यवसाय में कुशल थे तथा किमाम-इत्र आदि को बनाने में दक्ष थे।
- स्वाध्यायशील – प्रसाद विद्याव्यसनी थे और रात्रि में स्वाध्याय में निरत रहते थे। स्वाध्याय से ही उन्होंने सभी शास्त्रों एवं कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था।
प्रश्न 2.
‘महाकवि जयशंकर प्रसाद’ पाठ को सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
पाठ-सार प्रारम्भ में दिया गया है, उसे लिखिए।
प्रश्न 3.
शिवपूजन सहाय की दृष्टि में प्रसादजी महान् साहित्यकार के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ थे।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘महाकवि जयशंकर प्रसाद’ शीर्षक रेखाचित्र में शिवपूजन सहाय ने बताया कि प्रसाद महान् साहित्यकार एवं महाकवि थे। इसके अलावा वे विलक्षण स्मृति-शक्ति से सम्पन्न थे। वे स्वजातीय गुणों से युक्त और अनेक कलाओं के मर्मज्ञ थे। काशी की सभी विशेषताओं के भी विशेषज्ञ थे। वे काशी के पुराने, रईसों, पण्डितों, नर्तकों, लावनीबाजों एवं गायिकाओं आदि सभी की कहानियों के ज्ञाता थे। वे धर्मात्मा प्रवृत्ति के थे। व्यापारियों, मल्लाहों, सुनारों आदि की बोलियों और पशु-पक्षियों के लक्षणों के ज्ञाता भी थे।
प्रसाद की वैदिक वाङ्मय और प्राचीन इतिहास में गहरी पैठ थी। संस्कृतसाहित्य के प्रमुख अंगों का अध्ययन-मनन करने में वे सदैव तत्पर रहते थे। शालिहोत्र एवं आयुर्वेदशास्त्र के महत्त्वपूर्ण प्रकरणों को लेकर सुन्दर प्रवचन देते थे। उन्हें मोती, हीरा आदि रत्नों के गुण-दोषों को पूरा ज्ञान था। इसी प्रकार किमाम-इत्र आदि के निर्माण में दक्ष थे। काठौषधियों और जड़ी-बूटियों के ज्ञान में वैद्यक-ग्रन्थों के श्लोक उपस्थित कर देते थे। इस प्रकार प्रसाद लोक-ज्ञान से सम्पन्न महापुरुष थे।
प्रश्न 4.
प्रसादजी के परिवार में त्योहारों को किस प्रकार मनाया जाता था? स्पष्ट कीजिए। वर्तमान में त्योहार मनाने के तरीकों में क्या परिवर्तन आया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक बताता है कि प्रसादजी के घर के सामने स्थित शिव मन्दिर में महाशिवरात्रि को महोत्सव आयोजित करने की उनके परिवार की पुरानी परम्परा थी। उसमें शास्त्रीय संगीत का आयोजन होता था और अधिकतर साहित्य-सेवी उस उत्सव में सम्मिलित होते थे। श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन का त्योहार वे बड़े उत्साह और उदारता से मनाते थे। उस दिन प्रसादजी चाँदी और ताँबे के सिक्के दक्षिणा रूप में देते थे। प्रसादजी के परिवार में त्योहार पूरी मर्यादा एवं परम्परा के अनुसार मनाये जाते थे। उनमें भव्यता के साथ पवित्रता और आस्था का भाव रहता था। होली, दशहरा, दीवाली आदि सब त्योहारों में उनके परिवार की पुरानी प्रथा का पालन विधिवत् होता था।
वर्तमान काल में त्योहारों को मनाने की पुरानी परम्परा लुप्त हो रही है। अब त्योहार मनाने के तरीकों में कुछ परिवर्तन आ गया है। लोगों के पास समय की कमी और आस्था का अभाव है, प्रत्येक काम में ढोंग और दिखावा है। त्योहारों पर नौटंकी चलती है, फिल्मी गीत बजते हैं और अच्छे खान-पान पर ज्यादा जोर दिया जाता है। इस प्रकार अब त्योहार मनाने के तरीकों में काफी परिवर्तन आ गया
व्याख्यात्मक प्रश्न –
1. वैदिक ऋचाएँ ………. कुतूहल होता था।
2. इस निर्मम संसार …………….. बाद ही पहचानता है।
3. एक बार प्रेमचन्द जी …………… बिता दिया।
4. काशी में …………….. प्रवाहित हो चली।
5. श्रावणी पूर्णिमा ………….. अधिकारी बने रहे।
उत्तर:
इन अंशों की व्याख्या पाठ के अन्त में दी जा रही है, वहाँ देखिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रसादजी की पुश्तैनी दुकान कहाँ पर थी?
(क) कचहरी में
(ख) नरियरी बाजार में
(ग) बेनिया बाग में
(घ) चौक में
उत्तर:
(ख) नरियरी बाजार में
प्रश्न 2.
प्रसादजी ने किस पत्रिका का सम्पादन किया था?
(क) हंस
(ख) इन्दु
(ग) मतवाला
(घ) प्रताप
उत्तर:
(ख) इन्दु
प्रश्न 3.
प्रसादजी ने किस अवसर पर कविता-पाठ किया था?
(क) ‘प्रताप’ के अधिवेश के अवसर पर
(ख) काशी विद्वत्सभा के उत्सव पर
(ग) कोशोत्सव-स्मारक के अवसर पर
(घ) शिवरात्रि के महोत्सव पर
उत्तर:
(ग) कोशोत्सव-स्मारक के अवसर पर
प्रश्न 4.
काशी में उनसे लाभान्वित होने वाले लोग उनके परिवार को क्या नाम देते थे?
(क) पहाराज
(ख) कविराज
(ग) काशीराज
(घ) दरबार
उत्तर:
(घ) दरबार
प्रश्न 5.
प्रसादजी हिन्दी खड़ी बोली के अलावा किस भाषा के मर्मज्ञ थे?
(क) अवधी भाषा
(ख) ब्रज भाषा
(ग) भोजपुरी भाषा
(घ) पूर्वी भाषा
उत्तर:
(ख) ब्रज भाषा
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शिवपूजन सहाय काशी नागरी प्रचारिणी सभा में क्यों जाते थे?
उत्तर:
नागरी प्रचारिणी सभा में हिन्दी के कवि आते थे, हिन्दी से प्रेम रखने के कारण शिव-पूजन सहाय वहाँ पर जाते थे।
प्रश्न 2.
लेखक की रहने की व्यवस्था किसने, कहाँ पर की थी?
उत्तर:
लेखक के बड़े साले ने उनके रहने की व्यवस्था मुनसरिम शिवप्रसाद द्विवेदी के घर खजुरी मोहल्ले में कर दी थी।
प्रश्न 3.
राय कृष्णदासजी की प्रसिद्धि किस कारण थी?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय शिल्पकला एवं मूर्तिकला के पारखी कलाविद् होने से राय कृष्णदासजी की प्रसिद्धि थी।
प्रश्न 4.
प्रसादजी को किसके लच्छेदार वाक्य कण्ठस्थ थे?
उत्तर:
प्रसादजी को वैदिक ऋचाओं और उपनिषदों के लच्छेदार वाक्य कण्ठस्थ
प्रश्न 5.
प्रसादजी किन ग्रन्थों के मौखिक उद्धरण सुना देते थे?
उत्तर:
प्रसादजी शालिहोत्र, आयुर्वेद एवं हीरा, मोती, मूंगा आदि रत्नों के गुणदोषों के शास्त्रीय प्रमाणों के मौखिक उद्धरण सुना देते थे।
प्रश्न 6.
अपने व्यवसाय से सम्बन्धित किन चीजों के निर्माण में प्रसाद पूरी तरह दक्ष थे?
उत्तर:
प्रसादजी अपने व्यवसाय से सम्बन्धित जर्दा, किमाम, इत्र आदि के निर्माण में पूरी तरह दक्ष थे।
प्रश्न 7.
प्रसादजी कब वैद्यराज प्रतीत होते थे?
उत्तर:
काठौषधियों और जड़ी-बूटियों के गुणों का वर्णन करते समय वैद्यक ग्रन्थों के श्लोक कहने पर प्रसादजी वैद्यराज प्रतीत होते थे।
प्रश्न 8.
बनारस में काशी-नरेश को क्या प्रतिष्ठा प्राप्त थी?
उत्तर:
बनारस के लोगों द्वारा ‘हर हर महादेव’ मात्र कहकर करबद्ध प्रणाम करने की प्रतिष्ठा काशी-नरेश को प्राप्त थी।
प्रश्न 9.
प्रसादजी के परिवार की काशी में क्या प्रतिष्ठा थी?
उत्तर:
प्रसादजी के परिवार की काशी में बहुत प्रतिष्ठा थी, उनसे लाभान्वित होने वाले लोग उनके परिवार को ‘दरबार’ नाम से पुकारते थे।
प्रश्न 10.
काशी में होली के बाद कौन-सा महोत्सव होता था?
उत्तर:
काशी में होली के बाद गंगा की मध्य धारा में ‘बुढ़वा मंगल’ का महोत्सव होता था।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“प्रसादजी हलवाई वैश्य थे।” इस कथन से लेखक ने प्रसादजी की किस विशेषता की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
लेखक ने प्रसादजी की यह विशेषता बतायी कि वे हलवाई वैश्य होने से स्वादिष्ट भोजन एवं मिष्ठान्न बनाने में भी दक्ष थे। भोज आदि में यदि एक सौ अतिथियों को भोजन कराना है, तो बादाम और पिस्ते की बर्फी बनाने में कितना मेवा और मावा लगेगा, कितनी चीनी और केसर-इलायची पडेगी, इसका पर्चा जबानी। बोलकर तैयार करा देते थे। वे तरह-तरह की मिठाइयों की सामग्री की उचित मात्रा बदला देते थे और हलवाइयों की तरह सभी चीजों की गुणवत्ता आदि का पूरा ज्ञान रखते थे।
प्रश्न 2.
प्रसादजी किनके दाँव-पेच एवं बोलियों के रहस्य जानते थे?
उत्तर:
प्रसादजी जवानी में कुश्ती लड़ चुके थे। उन्होंने मल्ल-विद्या का भी अध्ययन किया था। वे पहलवानों के अजीब किस्से सुनाते थे, साथ ही उनके दाँवपेच के अनेक नाम भी उन्हें याद थे। अनेक व्यापार-क्षेत्रों में दलालों की बोली के विचित्र अर्थबोधक शब्द प्रचलित हैं। प्रसादजी उन शब्दों की व्युत्पत्ति और सारी । रहस्य भी बता देते थे। इसी प्रकार सुनारों और मल्लाहों की बोली के रहस्य भी। वे जानते थे। आशय यह है कि अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ ऐसे शब्द प्रचलित रहते हैं, जिनके प्रयोग का रहस्य सभी नहीं जानते हैं, परन्तु प्रसादजी को उन सभी का रहस्य ज्ञात था।
प्रश्न 3.
प्रसादजी की कविता-पाठ करने की क्या विशेषता बतायी गई है?
उत्तर:
प्रसादजी कभी किसी कवि-सम्मेलन में नहीं जाते थे, परन्तु मित्र-गोष्ठी में वे सस्वर कविता-पाठ करते थे। गंगा में बजड़े पर मित्र-मण्डली के आग्रह पर वे बड़ी उमंग से कविता-पाठ करते थे और भाव-विभोर हो जाते थे। उनका कण्ठस्वर ललित एवं माधुर्यपूर्ण था और वे सुर, राग आदि के पूर्ण ज्ञाता भी थे। एक बार हिन्दी शब्द-सागर के सम्पादकों के सम्मान समारोह में अपने गुरुजी के आदेश पर प्रसादजी ने सस्वर कविता-पाठ किया, तो सारी सभा मन्त्र-मुग्ध हो गई। स्वयं प्रसादजी भी कविता-पाठ करते समय भाव-विभोर हो जाते थे। इस तरह वे भावुक व्यक्ति थे।
प्रश्न 4.
“जगत् की यही परम्परागत रीति जान पड़ती है।” इस कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आचार्य शिवपूजन सहाय ने महाकवि प्रसाद को लक्ष्य कर ऐसी कहा है। जब तक प्रसादजी जीवित रहे, तो साहित्य-जगत् में उन्हें पूरा सम्मान नहीं मिला। उनके नाटकों, कहानियों एवं कविताओं को लेकर उस समय दुराग्रही भावना से आलोचना होती रही। एक बँधी-बँधायी लीक में उनकी घोर उपेक्षा होती रही अथवा उनके साहित्य का उचित मूल्यांकन करने में पक्षपात हुआ। हमारे देश में ऐसी परम्परा रूढ़-सी हो गई है कि जीते-जी व्यक्ति की उपेक्षा या निरादर करते रहो और उसके निधन के बाद खूब प्रशंसा करो तथा उसके कृतित्व को गौरवमय बताओ। वस्तुतः इस तरह की परिपाटी कदापि उचित नहीं है।
प्रश्न 5.
शिवपूजन सहाय प्रसादजी के घर की परिक्रमा किसलिये करते थे?
उत्तर:
उस युग में काशी में अनेक विशेषज्ञ विद्वान् रहते थे। महाकवि प्रसाद भी अपने नाटकों, कहानियों एवं छायावादी-रहस्यवादी कविताओं के कारण काफी लोकप्रिय थे। लेखक शिवपूजन सहाय को हिन्दी के साहित्यकारों से बड़ा लगाव था। वे नागरी प्रचारिणी सभा तथा अन्य माध्यमों से प्रसादजी आदि महानुभावों को निकट से देखना और सम्पर्क बनाये रखना चाहते थे। इसी से वे प्रसादजी के घर और दुकान का पता मालूम कर चुके थे। इसलिए कचहरी या नागरी प्रचारिणी सभा, में जाते समय वे प्रसादजी के दर्शनों की लालसा से उनके घर की परिक्रमा किया करते थे, अर्थात् वहाँ तक चक्कर लगाते थे।
प्रश्न 6.
प्रसादजी अपनी आलोचना करने वालों के साथ कैसा व्यवहार करते थे? लिखिए।
उत्तर:
प्रसादजी ने अपने नाटकों में ऐतिहासिक घटनाओं एवं पात्रों का चित्रण किया है। उनके ऐतिहासिक नाटकों को लेकर मुंशी प्रेमचन्द ने ‘हंस’ पत्रिका में सम्पादकीय लिखते हुए आलोचना की कि ‘प्रसादजी प्राचीन इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ा करते हैं। ऐसी आलोचना करने पर भी प्रसादजी ने प्रेमचन्द के साथ सदा की भाँति मित्रतापूर्ण व्यवहार किया। इस तरह प्रसादजी अपनी आलोचना करने वालों के साथ निर्विकार रहकर व्यवहार करते थे तथा सभी का यथोचित आदर-सम्मान करते थे।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘महाकवि जयशंकर प्रसाद’ संस्मरणात्मक रेखाचित्र के आधार पर ‘प्रसाद के विद्याव्यसनी स्वभाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
उक्त रेखाचित्र में लेखक ने प्रसाद के विद्याव्यसनी स्वभाव की ओर संकेत किया है और बताया है कि वे स्वाध्याय में तन्मय रहते थे, प्रसाद को नियमित शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला था। वे दिनभर अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते थे, परन्तु जब सारा संसार रात में सो जाता था, तो वे स्वाध्याय में लग जाते थे। उन्होंने वैदिक ऋचाओं और उपनिषदों का विस्तृत अध्ययन कर लिया था। वे शालिहोत्र, वैद्यक, संस्कृत साहित्य के सभी अंगों एवं भारतीय दर्शन में पूर्ण गति रखते थे।
वेदांगों और भारतीय शास्त्रों में उनकी बुद्धि पारंगत थी। वस्तुतः प्रसाद धन-प्राप्ति अथवा यशोलाभ के लिए साहित्यानुशीलन एवं रचना-लेखन में प्रवृत्त नहीं हुए थे। वे तो जन्मजात प्रतिभाशाली कवि एवं साहित्यकार थे। ‘कामायनी’ महाकाव्य, ‘आँसू’, अन्य कविताएँ, नाटक, उपन्यास एवं कहानी आदि सारा साहित्य उनकी। विशिष्ट प्रतिभा का परिचायक माना जाता है। वे स्वान्तःसुखाय लिखते थे और उस समय के साहित्यकारों के मध्य अपनी विलक्षण प्रतिभा को मुखरित करते थे।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
रेखाचित्रकार शिवपूजन सहाय का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
आचार्य शिवपूजन सहाय एक कर्मठ पत्रकार, प्रबुद्ध साहित्य-सेवी और राष्ट्रभाषा के अनन्य उपासक थे। इनको प्रारम्भिक जीवन काशी में बीता तथा इनका लेखन ललित-गद्य-रचना से प्रारम्भ हुआ। इन्होंने ‘मतवाला’ पत्र का सम्पादन किया। इन्हें हिन्दी में आंचलिक उपन्यास का सूत्रपात करने वाला माना जाता है। इस दृष्टि से इनका ‘देहाती दुनिया’ उपन्यास का उल्लेख किया जाता है। वे दिन वे लोग इनका संस्मरणात्मक रेखाचित्र है, ‘प्रेम कली’ इनका श्रेष्ठ गद्य-काव्य है तो दो घड़ी’ इनकी अन्यतम हास्य-व्यंग्य रचना है।
‘बाबू गुलाबराय एवं रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ने आचार्य शिवपूजन सहाय के साहित्यिक व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बताया है। इनकी भाषा व्यंग्य-विनोद से पुष्ट तथा मुहावरेदार है। इनकी भाषा में माधुर्य और ओज का अपूर्व मिश्रण दिखाई देता है। इनकी शैली परिष्कृत, तर्कपूर्ण तथा परिमार्जित है तथा भाषा भावानुकूल एवं नियमानुसार प्रयुक्त हुई है। इनके द्वारा लिखे गये संस्मरणात्मक रेखाचित्र उत्कृष्ट माने गये हैं। शिवपूजन सहाय का सारा साहित्य प्रायः गद्यात्मक है, जिसमें वर्णनात्मक, भावात्मक, विवेचनात्मक एवं अलंकृत आदि शैलियाँ प्रयुक्त हुई हैं। इन्होंने सामाजिक विषयों पर सुन्दर गद्यलेख लिखे हैं। इनका साहित्यकार व्यक्तित्व प्रभावशाली रहा है।
महाकवि जयशंकर प्रसाद लेखक परिचय-
आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म सन् 1893 में हुआ। मैट्रिक तक अध्ययन करने के बाद स्वाध्याय से इन्होंने अपना व्यक्तित्व निखारा, ‘मतवाला’ पत्र का सम्पादन किया। ये एक कर्मठ पत्रकार, आरम्भिक ललित गद्य-लेखक, निबन्धकार, साहित्यसेवी और राष्ट्रभाषा हिन्दी के अनन्य उपासक थे। इनके गद्य-लेखन में स्वाभाविकता एवं सहजता के साथ ठेठ देहाती बोलचाल की भाषा का विन्यास आकर्षक, चित्रोपम एवं सशक्त दिखाई देता है। इनका वे दिन वे लोग’ संस्मरणात्मक रेखाचित्र व्यंग्य-विनोद से सम्पन्न श्रेष्ठ कृतित्व है। इनका निधन सन् 1963 में हुआ।
पाठ-सार
शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ‘महाकवि जयशंकर प्रसाद’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र का सार इस प्रकार है आजीविका हेतु काशी-निवास-लेखक बताता है कि मैट्रिक पास करते ही वह मुगलसराय चला गया। वहाँ से आजीविका की खातिर बनारस की ‘दीवानी अदालत में नकलनवीस नियुक्त हुआ और खजुरी मोहल्ले में रहने लगा।
नागरी प्रचारिणी सभा में जाना-लेखक विद्यार्थी जीवन में आरा की नागरी प्रचारिणी सभा में जाया करता था। काशी में आने पर वहाँ भी नागरी प्रचारिणी सभा में जाने लगा। वहीं पर बाबू श्यामसुन्दर दास को नजदीक से देखने का मौका मिला।
महाकवि प्रसाद के दर्शनों की लालसा-लेखक महाकवि प्रसाद को नजदीक से देखना चाहता था। नागरी प्रचारिणी सभा में उसे प्रसाद की पत्रिका ‘इन्दु’ को देखने का अवसर मिल गया था। गोवर्धन सराय में प्रसादजी का घर था। लेखक कभी-कभी वहाँ तक चले जाता था। बनारस की चौक कोतवाली के पीछे मस्जिद के सामने नरियरी बाजार में प्रसाद की पुश्तैनी जर्दा-सुर्ती की दुकान थी। प्रसाद वहाँ पर बैठते थे। लेखक इन सब स्थानों पर प्रसाद के व्यक्तित्व को नजदीक से देखने की लालसा से जाता रहता था।
महाकवि प्रसाद का व्यक्तित्व-प्रसाद प्रतिदिन सन्ध्योपरान्त दुकान के सामने तख्त पर बैठते थे। बड़े-बड़े साहित्यकार वहीं पर आकर उनसे काव्यशास्त्र की चर्चा करते थे। रामकृष्णदास, प्रेमचन्द, महाकवि रत्नाकर, लाला भगवानदीन, आचार्य शुक्ल आदि महानुभाव वहाँ पर एकत्र हो जाते थे। उन सभी के मध्य महाकवि प्रसाद की सरस्वती मुखरित हो जाती थी। प्रसाद की. वेदों, उपनिषदों, आयुर्वेद, शालिहोत्र आदि सभी शास्त्रों में विलक्षण दक्षता थी। उनका शरीर गठीला था। वे सभी औषधियों के ज्ञाता तथा किमाम-इत्र आदि। के अच्छे निर्माता थे। वे किसी कवि-सम्मेलन में नहीं जाते थे और अपनी आलोचनी सुनकर भी निर्विकार भाव से चुप रहते थे।
धार्मिक प्रवृत्ति-महाकवि प्रसाद धार्मिक प्रवृत्ति के थे। शिवरात्रि महोत्सव धूमधाम से मनाते थे। सभी त्योहारों पर वे परिवार की परम्परा के अनुसार दानदक्षिणा भी देते थे। काशी में उन्हें लोग ‘दरबार’ की संज्ञा देते थे तथा काशीनरेश के समान वे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनका चरित्र पूर्णतया निष्कलंक था।
♦ कठिन शब्दार्थ-
मुनसरिम = मुंशी। खुशखत = सुलेख। नकलनवीस = अदालत में नकल उतारने वाला। ऐडिशनल = अतिरिक्त। नागराक्षर = नागरीलिपि के अक्षर, हिन्दी-अक्षर। दर्शनोत्कण्ठा = दर्शनों की. इच्छा। वाङ्मय = समस्त साहित्य। निद्रा-निमग्नं = नींद में डूब जाना। तन्मय = एकाग्रचित्त। निरुक्ति = शब्दों की सार्थक व्याख्या। मिकदार = मात्रा। किमाम = पान में डालने का सुगन्धित द्रव्य। काठौषधियों = लकड़ी की औषधियों। कलावन्त = उच्च कलाकार। लिहाफ = रजाई। लावनीबाजों = लावनी गीत गाने वालों। निधि = भण्डार, खजाना। अन्यमनस्कता = अन्यत्र मन लगाने का भाव। कोश = शब्दभण्डार। निर्विकार = विकार रहित। अभ्यर्थना = प्रार्थना। शालिहोत्र = अश्वविद्या, पशु-चिकित्सा सम्बन्धी शास्त्र।
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