Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 रसखान
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
‘ताहि अहिर की छोहरिया छछिया भरि छाछ पे नाच नचावै।’ श्रीकृष्ण गोपियों की छछिया भर छाछ के लिए उनके इशारों पर नाचते हैं। क्यों?
(क) गोपियों के सहज प्रेम के रस के कारण
(ख) उन्हें नाचने, गाने में आनन्द आने के कारण
(ग) गोपियों से स्वार्थ सिद्ध करने के कारण
(घ) गोपियों को मूर्ख बनाकर दही-छाछ प्राप्त करने के कारण
उत्तर:
(क) गोपियों के सहज प्रेम के रस के कारण
प्रश्न 2.
काग के भाग्य की सराहना क्यों की गई है?
(क) माखन-रोटी मिलने के कारण
(ख) गोपियों के दर्शन-सुख के कारण
(ग) श्रीकृष्ण के स्पर्श-सुख के कारण
(घ) ब्रज का पक्षी होने के कारण
उत्तर:
(ग) श्रीकृष्ण के स्पर्श-सुख के कारण
प्रश्न 3.
“त्यौं, रसखानि वही रसखानि जु है रसखानि सों है रसखानि।” पंक्ति में अलंकार है –
(क) उपमा
(ख) श्लेष
(ग) यमक
(घ) रूपक
उत्तर:
(ग) यमक
प्रश्न 4.
रसखान का हार्दिक लगाव प्रकट हुआ है –
(क) जन्मभूमि के प्रति
(ख) कर्मभूमि के प्रति
(ग) ब्रजभूमि के प्रति
(घ) भारत-भू के प्रति।
उत्तर:
(ग) ब्रजभूमि के प्रति
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्यौछावर करने को क्यों तैयार है?
उत्तर:
कवि अपने आराध्य की हर-हालत में कृपा-दृष्टि एवं सामीप्य पाना चाहता है, इसीलिए वह सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।
प्रश्न 2.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर:
कवि इसलिए श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है, ताकि अनन्य भक्ति का सुख मिले, जीवन का उद्धार हो जावे और अनन्य-भक्ति बनी रहे।
प्रश्न 3.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर:
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम मनुष्य, पशु, पक्षी, गोवर्धन पर्वत, कदम्ब एवं यमुना आदि सभी रूपों में अभिव्यक्त हुआ है।
प्रश्न 4.
मुख व कानों की सार्थकता किसमें है?
उत्तर:
मुख की सार्थकता प्रभु श्रीकृष्ण के गुण-गान में तथा कानों की सार्थकता उनके गुण-गान के वचनों को सुनने में है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“कौटिक लौं कलधौंत के धाम करील की कुंजन ऊपर वारौं।” पंक्ति का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
इसमें कवि ने यह कामना की है कि जिस करील के कुंजों में श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास-लीला की थी, उन पर सैकड़ों सोने के महलों को न्यौछावर कर सकता हूँ। अर्थात् भक्तकवि रसखान अपने आराध्य की प्रिय वस्तुओं एवं प्रिय स्थानों का सामीप्य पाने के लिए बड़ा-से-बड़ा त्याग करना चाहता है। इस तरह कवि ने अपने आराध्य के प्रति अनुराग व्यक्त किया है। सामान्य चीजों का महत्त्व इसी कारण बढ़ जाता है कि उससे आराध्य का सम्बन्ध रहता है। इस तरह का भाव व्यक्त करते हुए कवि ने अनन्य भक्ति एवं प्रेम-निष्ठा व्यक्त की है।
प्रश्न 2.
जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिली कालिन्दी-कुल कदम्ब की डारन। पंक्ति का शिल्प-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में ‘र’, ‘क’ एवं ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है। वैसे कोमल भावों की अभिव्यक्ति के लिए कोमल, मधुर तथा समस्त पदों का प्रयोग किया गया है। कवि ने अपने आराध्य के समक्ष कामना व्यक्त की है, जो सम्भावनात्मक है। इस कारण में उक्तनिमित्ता हेतृत्प्रेक्षा अलंकार भी है। भक्ति-भाव की दृष्टि से यह पंक्ति उत्कृष्ट है। ब्रजभाषा का प्रयोग एवं सवैया छन्द की गति-यति उचित है ।।
प्रश्न 3.
नारद, सुकदेव तथा व्यास आदि ऋषि-मुनि भी श्रीकृष्ण के स्वरूप और उनकी लीला को समझ न सके। क्यों?
उत्तर:
इस समस्त चराचर जगत् एवं सृष्टि की रचना तथा पालन करने वाले ईश्वर की लीलाओं को समझ पाना कठिन रहता है। ईश्वर की इच्छा क्या है, उसका अव्यक्त स्वरूप या रूपाकार क्या है, वह ईश्वर कहाँ पर रहता है यो क्या खाता है, कौन उसके माता-पिता हैं, इत्यादि बातों का चिन्तन करने पर कोई तात्विक उत्तर नहीं मिलता है। सृष्टि की शाश्वत गति को देखकर केवल इतना ही कहा जाता है कि इसका नियन्ता ईश्वर है, परन्तु उसका आदि व अन्त क्या है, यह कहना सर्वथा कठिन है। इसी कारण सारे ज्ञानी ऋषि-मुनि पूर्णावतार श्रीकृष्ण की, लीला आदि को नहीं समझ पाये हैं।
प्रश्न 4.
‘रसखान रस की खान हैं।’ कैसे? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यह सर्वमान्य तथ्य है कि भाव-प्रधुन, काव्य में रस की धारा अबाध रूप से प्रवाहित रहती हैं और रसखान की कविता भाव-प्रधान है। रसखान सर्वप्रथम एक भावुक भक्त थे और उन्होंने अपने आराध्य के प्रति अपने मनोभावों को मुक्तकण्ठ से अभिव्यक्ति दी है। उनकी भक्ति के आलम्बन श्रीकृष्ण, गोपियाँ, यमुना-तट, बंसी-वट एवं करील कुंज रहे हैं। रसखान तन-मन से अपने आराध्य का समीप्य चाहते थे, वे आत्म-समर्पण भाव रखकर प्रेम को ही संसार का सार मानते रहे और प्रेमपूर्वक आराध्य पर समर्पित करने को उद्यत रहे । इसी कारण रसखान के काव्य में सहज प्रेमी-हृदय की सरस अभिव्यक्ति हुई है। इसी आधार पर रसखान को रस की खान कहा जाता है, जो कि सर्वथा उचित है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण के बाल-रूप के वर्णन को अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक में श्रीकृष्ण के बाल-रूप का वर्णन दो सवैयों में किया गया है। एक सवैये में कोई गोपी बताती है कि यशोदा अपने बालक पर तेलमालिश करती है, उसके केश सँवारती है तथा नेत्रों पर अंजन लगाकर उसकी भौंहें सँवारती है। यशोदा बालक को नजर लगने से बचाने के लिए काला टीका लगाती है, हमेल का हार पहनाती है और उसे पुचकारती हुई न्यौछावर हो जाती है। इस प्रकार अबोध बालक श्रीकृष्ण की शोभा अतिशय सुखदायी लगती है। बालक को सजाने-सँवारने में माता को जो आनन्द-सुख मिलता है, वह यशोदा को स्वाभाविक रूप में मिलता है।
दूसरे सवैये में श्रीकृष्ण के कुछ बड़े बाल-रूप का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण अन्य बालकों के साथ धूल में खेलते हैं। उनके सिर पर चोटी शोभायमान हो रही है। उन्होंने पीला कच्छा और दुपट्टा धारण कर रखा है। वे कुछ-न-कुछ खाते हुए आँगन में इधर-उधर घूम रहे हैं। बालक श्रीकृष्ण की माधुरी छवि इतनी सुन्दर है। कि उन पर करोड़ों कामदेवों एवं चन्द्र-कलाओं को न्यौछावर किया जा सकता है। इस प्रकार इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के बाल-रूप का मोहक और आकर्षक चित्रण किया है। अन्य सवैयों में भी रसखान ने श्रीकृष्ण के बाल-रूप का मनोहारी निरूपण किया है।
प्रश्न 2.
रसखान के सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर:
रसखान ने अपने सवैयों में अपने आराध्य की लीला-स्थली ब्रजभूमि को लेकर अतिशय प्रेम व्यक्त किया है। ब्रजभूमि रसखान के आराध्य की मातृभूमि होने से सभी भक्तों को प्रिय रही है। प्रत्येक व्यक्ति मातृभूमि को लेकर प्रेम-अपनत्व भाव रखता है। जैसा कि रसखान ने कहा, उसी प्रकार हम भी चाहते हैं कि हमारा अपनी मातृभूमि में बार-बार जन्म होवे। अपनी मातृभूमि में मनुष्य रूप में जन्म न हो, तो इसमें विचरण करने वाले पशु रूप में हो, या पक्षी रूप में हो।
अगर मनुष्य, पशु एवं पक्षी योनि में जन्म नहीं होवे, तो पेड़-पौधों, पाषाण, नदी-सरोवरं आदि के रूप में हो। इस प्रकार हर हालत में हमारा मातृभूमि से सम्बन्ध बना रहे और इससे हम कभी अलग नही होवें। कहा भी गया है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’, अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से अधिक श्रेष्ठ एवं प्रिय होती है। प्रत्येक व्यक्ति मातृभूमि के मान-सम्मान एवं समृद्धि की कामना करता है तथा उसके कल्याण की कामना करता है। हम भी इसी तरह की कामना करते हैं।
प्रश्न 3.
“श्रीकृष्ण का सान्निध्य एवं ब्रजभूमि को सामीप्य पाना रसखान। के लिए अलौकिक आनन्द की अनुभूति है।” इस आधार पर रसखान की कृष्णभक्ति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रसखान प्रेमी भक्तकवि थे। उनकी भक्ति-भावना पर सूफियों की प्रेमभावना का गहरा प्रभाव था। इसी प्रेम-भावना के कारण रसखान अपने आराध्य श्रीकृष्ण का निरन्तर सामीप्य पाना चाहते थे और उनका साक्षात्कार होने से वे ब्रजभूमि का समीप्य चाहते थे। क्योंकि ब्रजभूमि में ही श्रीकृष्ण ने अनेक सरस लीलाएँ की थीं। रसखान उन सभी लीला-क्षेत्रों में विचरण कर प्रेम-भावना से भर जाते थे। इसी कारण अन्य कृष्ण-भक्त कवियों की अपेक्षा रसखान की भक्ति-भावना में कुछ विशिष्टता एवं अनोखापन दिखाई देता है। रसखान की भक्ति-भावना की विशेषताएँ-रसखान की प्रेमपूरित भक्तिभावना की ये विशेषताएँ दिखाई देती हैं|
- अलौकिक ब्रह्मत्त्व – रसखान ने श्रीकृष्ण को अलौकिक ब्रह्मत्त्व प्रदान करते हुए कहा कि शेष, महेश, सुरेश आदि समस्त देवता एवं समस्त ऋषिगण उनका पार नहीं पाते हैं। फिर भी वे गोपियों व अपने भक्तों के लिए आकर्षक लीलाएँ कर रूप – छवि में साकार दिखाई देते हैं।
- भक्तिजनित एकनिष्ठता – रसखान ने ‘मानुष हौं तो वही’ इत्यादि कथनों से अपनी भक्ति-भावना में अनन्य निष्ठा व्यक्त की है। इससे एक विशुद्ध प्रेमी की तरह उनका समर्पण भाव व्यक्त हुआ है।
- वात्सल्य भाव की भक्ति – सूरदास की तरह रसखान ने अपने आराध्य के बाल एवं किशोर रूप की अनेक छवियाँ अंकित की हैं। ‘धूरि भरे अति’ इत्यादि सवैयों में उनकी भक्ति की ये विशेषताएँ व्यक्त हुई हैं।
व्याख्यात्मक प्रश्न –
1. आजु गई हुती ………… पुचकारत छौनहि।
2. बैन वही उनको …………. सो है रसखानि।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या भाग देखकर लिखिए।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
“या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।” इस सवैये में रसखान का कौनसा मनोभाव व्यक्त हुआ है?
(क) श्रीकृष्ण के प्रति सद्भाव
(ख) श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव
(ग) श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण भाव
(घ) ब्रज के प्रति मोह-भाव।
उत्तर:
(ग) श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण भाव
प्रश्न 2.
रसखान तीनों लोकों का राज्य किस पर न्यौछावर करना चाहते हैं?
(क) लकड़ी और कम्बल पर
(ख) आकर्षक सौन्दर्य पर
(ग) श्रीकृष्ण की मुरली पर
(घ) रास-लीला पर
उत्तर:
(क) लकड़ी और कम्बल पर
प्रश्न 3.
रसखान सोने के महलों को किस पर न्यौछावर करना चाहते हैं?
(क) ‘लकुटी’ और कामरिया पर
(ख) करील के कुंजों पर
(ग) सुन्दर वनमाला पर
(घ) ग्वालों की झोंपड़ी पर
उत्तर:
(ख) करील के कुंजों पर
प्रश्न 4.
कवि रसखान ने किस सम्प्रदाय में दीक्षा ली थी?
(क) सूफी सम्प्रदाय
(ख) नाथ सम्प्रदाय
(ग) निम्बार्क सम्प्रदाय
(घ) बल्लभ सम्प्रदाय
उत्तर:
(घ) बल्लभ सम्प्रदाय
प्रश्न 5.
रसखान की भाषा कौनसी है?
(क) अवधी
(ख) फारसी मिश्रित
(ग) ब्रज .
(घ) उर्दू मिश्रित
उत्तर:
(ग) ब्रज
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आठहु सिद्धि नवौं निधि को सुख’ – आठ सिद्धियाँ कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
आठ सिद्धियाँ ये हैं – अणिमा, गरिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशत्व और वशित्व।
प्रश्न 2.
‘मानुष हों तो वही रसखान’, सवैया में व्यक्त कवि की भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसमें कवि रसखान ने श्रीकृष्ण-विषयक भक्ति-भावना व्यक्त की है, साथ ही अपने आराध्य की लीलाभूमि के प्रति अतिशय प्रेम व्यक्त किया है।
प्रश्न 3.
रसखान के काव्य का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर:
रसखान के काव्य का प्रमुख विषय कृष्ण-भक्ति, कृष्ण-सौन्दर्य और प्रेम-भावना है। इनका सारा काव्य इन्हीं भावों पर केन्द्रित है।
प्रश्न 4.
‘रसखानि जबै इन नैनन तें’ – रसखान अपने नेत्रों से क्या-क्या देखने की इच्छा रखते थे?
उत्तर:
रसखान का अपने आराध्य की लीलाभूमि से अतिशय अनुराग था। इस कारण वे अपने नेत्रों से श्रीकृष्ण के विंहार-स्थल ब्रज के वन, वहाँ के बांग और तालाबों को देखने की इच्छा रखते थे।
प्रश्न 5.
रसखान ने श्रीकृष्ण के बाल-सौन्दर्य का चित्रण किस प्रकार किया
उत्तर:
रसखान ने धूल से लिपटे श्रीकृष्ण को सिर पर सुन्दर चोटी धारण किये और पैरों में पैंजनी बजाते एवं आँगन में कुछ खाते-खाते चलते हुए वर्णित किया
प्रश्न 6.
रसखान की कविता में प्रमुख रूप से किस भाव का समावेश हुआ
उत्तर:
रसखान की कविता में प्रेम की तन्मयता, प्रेमपूरित भक्ति, रूपासक्ति और उल्लास के साथ आत्म-विभोरता से युक्त भावात्मकता का प्रमुख रूप से समावेश हुआ है।
प्रश्न 7.
रसखाने के काव्य में कौन-कौन-से गुण प्रमुख हैं?
उत्तर:
रसखान के काव्य में आराध्य के प्रति प्रेम की निश्छलता, प्रमादता, आडम्बरहीनता, भावुकता, प्रेमपूरित निष्ठा और अनन्यता आदि गुण प्रमुख हैं।
प्रश्न 8.
रसखान सिद्धियों एवं नौ निधियों के सुख को किससे भुलाना चाहते हैं?
उत्तर:
रसखान आठ सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को नन्द बाबा की गायें चराने से भुलाना चाहते हैं।
प्रश्न 9.
रसखान ने किन हाथों और पैरों का होना सफलता बताया है?
उत्तर:
रसखान ने बताया है कि जो हाथ श्रीकृष्ण के शरीर का स्पर्श करें और जो पैर उनका अनुगमन करें, उनको होना ही वास्तविक सफलता है।
प्रश्न 10.
‘पै रसखानि वही मेरो साधन, और त्रिलोक रहौ कि नसावौ’। इस कथन से रसखान ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर:
इससे रसखान ने यही व्यक्त किया है कि वे हर-हालत में अपने आराध्य की प्रेमपूरित भक्ति में निमग्न रहकर अपना उद्धार चाहते हैं, अन्य बातों में उनकी कोई इच्छा नहीं है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
धूल से भरे श्रीकृष्ण के बाल-रूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रसखान ने अपने सवैयों में श्रीकृष्ण के बाल-रूप का वर्णन किया है। वे अपने आराध्य के बाल-रूप पर मुग्ध हैं। उन्होंने वर्णन किया है कि बालक कृष्ण धूल से सने हुए अत्यन्त शोभायमान हो रहे हैं। उनके सिर पर आकर्षक ढंग से बाँधी गई चोटी भी उसी प्रकार शोभायमान हो रही है जिस प्रकार उनको मुखमण्डल। .. वे खेलते-खाते हुए अपने घर के आँगन में इधर-उधर विचरण कर रहे हैं, जिनके पैरों के पायजेब स्वतः ही बंजने लगते हैं और उनसे मधुर ध्वनि निकल रही है। कवि रसखान श्रीकृष्ण की बाल-छवि को करोड़ों कामदेव की कलाओं पर न्यौछावर करने की लालसा रखते हैं।
प्रश्न 2.
“काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी।” इसमें निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि रसखान के अनुसार एक गोपी किसी सखी से कहती है कि हम जैसे सामान्य लोगों की तुलना में तो उस कौए का भाग्य ही बड़ा श्रेष्ठ है, जो उन श्रीकृष्ण के हाथ से माखन-रोटी छीनकर ले गया । श्रीकृष्ण के हाथों का स्पर्श पाने से परम आनन्द की अनुभूति होती है। श्रीकृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं, अतः जो उनके हाथ का स्पर्श करता है, उसे परम आनन्द और परमगति प्राप्त होना निश्चित है। इसलिए हम से तो वह कौआ ही अधिक भाग्यशाली है जो उनके हाथ से माखन-रोटी छीनकर ले गया, जबकि आज तक हमें उनके शरीर-स्पर्श का सौभाग्य नहीं मिला है।
प्रश्न 3.
रसखान के अनुसार श्रीकृष्ण के स्वरूप की उपासना कौन-कौन और क्यों करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रसखान के वर्णनानुसार श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप की उपासना शेषनाग, शिवजी, गणेशजी, सूर्य, चन्द्रमा तथा देवन्द्र आदि सभी देवता करते हैं। कोई उन्हें अनादि, अखण्ड और अभेद्य बतलाते हैं, तो कोई अगम्य कहते हैं। देवर्षि नारद, शुकदेव और व्यास आदि उन श्रीकृष्ण की प्रशंसा या गुण-गान करते हुए अघाते नहीं हैं, उन्हीं परमेश्वर स्वरूप श्रीकृष्ण को अहीरों की लड़कियाँ थोड़ी-सी छाछ का लालच देकर नाच नचाती रहती हैं। वे श्रीकृष्ण की समस्त सांसारिक वैभव, सिद्धियों एवं मनोवांछित सुखों को प्रदान करने वाले हैं। इसी से अन्य देवी-देवताओं की उपासना को त्यागकर सब उन्हीं श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं।
प्रश्न 4.
ताहि अहीर की छोहरिया छछिया भरि छाछ पे नाच नचावै।” इस कथन से श्रीकृष्ण के स्वभाव की कौन-सी विशेषता व्यक्त की गई है?
उत्तर:
इस कथन से श्रीकृष्ण के किशोर नटखट स्वभाव और रसिक प्रवृत्ति को उद्घाटन हुआ है। सामान्यतः श्रीकृष्ण को ईश्वर का पूर्णावतार माना जाता है। वे कैसे हैं, किस रूप में हैं और उस रूप की लीला क्यों कर रहे हैं, इस रहस्य को देवता, गन्धर्व, शेषनाग, गणेश आदि भी नहीं जानते हैं। वे परात्पर परम ब्रह्म हैं, समस्त विद्याओं एवं कलाओं के अधिष्ठाता हैं। ऐसे महिमामय और अगम्य ईश्वर को अहीरों की लड़कियाँ मनचाहा नाच नचाती रहती हैं। यह उनके नटखट एवं रसिक स्वभाव की विशेषता को ही प्रकट करता है। साथ यह उनके ईश्वरत्व का सहज मानवीय भक्तवत्सल रूप भी है, जो उन्हें लीला-पुरुषोत्तम की विशेषता से मण्डित करता है।
प्रश्न 5.
‘रसखान को श्रीकृष्ण और ब्रज प्रदेश से गहरा प्रेम था।” पठितांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रसखान ने प्रेमपूरित भक्ति-भावना से सम्बन्धित छन्दों में मार्मिक प्रेमभाव का प्रभावशाली निरूपण किया है। ऐसे छन्दों में उन्होंने श्रीकृष्ण और ब्रजप्रदेश के प्रति अपने अनन्य प्रेम और आसक्ति की अभिव्यक्ति की है। अपने आराध्य की लीलाभूमि होने से ब्रजभूमि से उन्हें अपार प्रेम है। इसलिए वे अगले जन्मों में भी किसी-न-किसी रूप में ब्रजभूमि में जन्म लेने और रहने की अभिलाषा प्रकट करते हैं। यथा ‘मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं ब्रज-गोकुल गाँव के ग्वारन। जौ पशु हौं तो कही बस मेरौ, चरौं नित नंद की धेनु मॅझारन।।” इत्यादि।
प्रश्न 6.
रसखान की भक्तिनिष्ठा की पवित्रता पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
रसखान की भक्ति-भावना में निष्ठा एवं पवित्रता निजी तौर पर व्यक्त हुई है। वे किसी धर्म या उपासना पद्धति पर व्यंग्य करके अपनी भक्ति-भावना को श्रेष्ठ प्रमाणित करने का प्रयास नहीं करते हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण एवं शिवजी दोनों के प्रति अपनी भावना निवेदित करके तत्कालीन वैष्णव एवं शैव सम्प्रदायों के आपसी कलह से स्वयं को दूर रखा है। जन्म से मुसलमान होने पर भी रसखान की भक्तिभावना में तनिक भी कलुषता नहीं है, साम्प्रदायिकता का मोह भी नहीं है। उनकी भक्ति-भावना निर्दोष, निष्काम और उदात्त है। परिणामस्वरूप उनके सवैये एवं दोहे सामान्य एवं विशिष्ट जनों के मध्य समान रूप से पठनीय हैं।
प्रश्न 7.
पठितांश के आधार पर रसखान की शैली और अलंकार-विधान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रसखान की काव्य – शैली अत्यन्त सरल, स्वाभाविक, प्रवाहपूर्ण और मधुर है। रसखान में कोरा चमत्कार उत्पन्न करने की प्रवृत्ति नहीं मिलती है। उन्होंने अपनी बात को बिल्कुल सीधे-सादे, परन्तु आकर्षक ढंग से कह देने में ही अधिक रुचि ली है। रसखान ने अलंकारों का प्रयोग अवश्य किया है, परन्तु उसमें सहजतास्वाभाविकता का पूरा ध्यान रखा है। इस कारण उनकी अलंकार-योजना कहीं पर भी भार नहीं बन पायी है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक, पुनरुक्तिप्रकाश आदि। अलंकारों का उन्होंने अधिक प्रयोग किया है। वे घुमा-फिराकर बात कहना पसन्द नहीं करते, अपितु जो कुछ कहते हैं, वह पूरी तन्मयता एवं मस्ती से कहते हैं। इस कारण उनकी शैली एवं अलंकार-विधान पूर्णतया भावानुरूप है।
RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रसखान के काव्य की भावगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य की कृष्ण-भक्ति काव्यधारा में रसखान का विशिष्ट योगदान माना जाता है। इनका काव्य भावपक्ष की अनेक विशेषताओं से व्याप्त है। इन विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है –
- प्रेम-भावना – रसखान ने अपने काव्य में गोपियों और श्रीकृष्ण के स्वच्छन्द प्रेम का वर्णन किया है। उनका प्रेम-वर्णन रीतिकालीन कवियों की तरह जरा भी अश्लील या अमर्यादित नहीं है। वह शुद्ध प्रेम है, जिसमें कामना नहीं है, केवल अनन्य निष्ठा एवं कठिन साधना है।।
- संयोग-वियोग-वर्णन – रसखान के काव्य में प्रेम-वर्णन के साथ संयोगवियोग के सुन्दर और आकर्षक चित्र मिलते हैं। उन्होंने संयोग के अधिक वर्णन किये हैं और गोपियों को श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य पर आसक्तं बताकर उनके कृष्णमय होने की व्यंजना की है।
- सरस भाव-व्यंजना – रसखान के काव्य में नवीन भावों की झलक देखने को मिलती है। रूप-वर्णन एवं प्रेम-व्यापार को लेकर रसखान ने इतना रस उँडेला है कि पाठक मार्मिक अनुभूतियों से रससिक्त हो जाता है।
- ब्रजभूमि से लगाव – रसखान ने अपने आराध्य की प्रेमपूरित भक्ति के कारण ब्रजभूमि के प्रति अगाध प्रेम प्रदर्शित किया है। वे हर हालत में ब्रजभूमि में जन्म लेने और उस पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की लालसा रखते हैं। इस तरह रसखान के काव्य का भावपक्ष काफी उत्कृष्ट है।
प्रश्न 2.
संकलित सवैयों के आधार पर रसखान के काव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रसखान सहज प्रेमी एवं भावुक कवि थे। वे कृष्ण-भक्ति में निमग्न रहकर कोमल भावों की अभिव्यक्ति करने में सफल रहे। उनके काव्य के कलापक्ष की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –
- सरस ब्रजभाषा – रसखान के काव्य में कोमल एवं सरस ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है, जिसमें तद्भव एवं देशज शब्दों का भावानुसार समावेश किया गया
- अलंकार-विधान – रसखान ने अनुप्रास और यमक अलंकार का चमत्कारी प्रयोग किया है। साथ ही श्लेष, उपमा, व्यतिरेक आदि अलंकारों को प्रयोग कर वचन – भंगिमा का परिचय दिया है। उदाहरण के लिए ‘छोहरिया छछिया भरि छाछ तथा त्यौं रसखानि वही रसखानि जु है रसखानि’ इत्यादि प्रयोग देखे जा सकते हैं।
- रस-योजना – रसखान ने श्रृंगार और वात्सल्य रस के साथ भक्ति-रस का सुन्दर परिपाक दिखाया है तथा अनुभावों का उपयोग कर मनोभावों की मार्मिक व्यंजना की है।
- छन्द-विधान – रसखान ने सवैया, दोहा एवं कवित्त छन्द का प्रयोग किया है। इसका सवैया छन्द गति-यति से युक्त एवं तुकान्त होने से सुगेय है।
रचनाकार को परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
रसखान को साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
कवि रसखान के जन्म – काल, शिक्षा, व्यवसाय आदि के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। अनुमान के आधार पर इनका जन्म वि. संवत् 1605 माना जाता है। ये जाति के पठान थे और इनका शाही खानदान से सम्बन्ध था। इनका मूल नाम सैयद इब्राहीम था। रसखान ने गोस्वामी विट्ठलनाथ से बल्लभ सम्प्रदाय की दीक्षा लेकर कंठी धारण कर ली थी। ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में इनका उल्लेख मिलता है। इनके काव्य में पुष्टिमार्गीय कृष्ण भक्ति के अनुरूप सगुण लीला-भाव की प्रेमानुभूति और भक्ति-भावना का निरूपण हुआ है। इन्होंने निःस्वार्थ प्रेम को ही प्रेम का आदर्श माना है। कुछ समीक्षक इन्हें सूफी प्रेमधारा या स्वच्छन्द काव्यधारा से प्रभावित बतलाते हैं। वस्तुतः इनके सुगेय कवित्त एवं सवैयों में तथा ‘प्रेमवाटिका’ के दोहे में प्रेम-भाव का सुन्दर चित्रण हुआ है।
रसखाने की साहित्यिक व्यक्तित्व अनुपम माना जाता है। इनकी प्रमुख चार कृतियों का उल्लेख मिलता है – ‘अष्टयाम’, ‘दानलीला’, ‘प्रेमवाटिका’ और ‘सुजान रसखान’। ‘प्रेम वाटिका’ छोटी-सी रचना है, इसके केवल बावन दोहे और सोरठे हैं। ‘सुजान रसखान’ में एक सौ उनतीस छन्द हैं, जिनमें कवित्तों की संख्या अधिक है। इन दोनों कृतियों का वर्ण्य-विषय प्रेम तथा प्रेमपूरित भक्ति है। रसखान के सवैये ‘रस की खान’ कहलाते हैं। इन्होंने ब्रजभाषा का प्रयोग कुशलता से किया है।
रसखान कवि-परिचय-
हिन्दी साहित्य के कृष्ण-भक्त मुसलमान कवियों में रसखान की गणनी सर्वप्रथम की जाती है। ये जाति के पठान थे और शाही खानदान से इनका सम्बन्ध था। इनका मूल नाम सैयद इब्राहीम था। ये कृष्ण-भक्ति में इतने निमग्न हो गये कि ब्रजभूमि में जाकर रहने लगे और गोस्वामी विट्ठलनाथ से बल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षा लेकर कृष्ण की लीला-भूमि में विचरण करते रहे। इनका उल्लेख ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में हुआ है। इन्होंने नि:स्वार्थ एवं एकांगी प्रेम को ही प्रेम का आदर्श माना है। इनकी दो कृतियाँ उपलब्ध हैं ‘सुजान रसखान’ तथा ‘प्रेम वाटिका’। इन्होंने गीतिकाव्य न लिखकर कवित्त और सवैये लिखे हैं।
पाठ-परिचय-
पाठ में रसखान के सात सवैये संकलित हैं। प्रस्तुत सवैयों में इनका अपने आराध्य कृष्ण के प्रति प्रेम की निश्छलता, भावुकता, एकनिष्ठा, आडम्बरहीनता एवं आत्मीयता की भावधारा प्रवाहित हुई है। इन्होंने श्रीकृष्ण के बाल-रूप का मनोहारी वर्णन किया है तथा ब्रजभूमि के प्रति अपना अतिशय प्रेम दिखाया है। अपने आराध्य की प्रेमाभक्ति करने में ही रसखान ने मनुष्य जीवन की सार्थकता बतलायी है। इनके सवैयों में प्रेम-रस का प्रवाह वास्तव में रस की खान है, जो विशुद्ध ब्रजभाषा की मधुरता से ओतप्रोत है।
सप्रसंग व्याख्याएँ।
सवैया (1)
सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावें।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड अछेद अभेद सुबेद बतावैं।
नारद से सुक व्यास र पचि हारे तऊ पुनि पार न पावें।
ताहि अहीर की छहरिया छछिया भरि छाछ पै नाच नचावें।
कठिन शब्दार्थ-सेस = शेषनाग। महेस = शिव। गनेस = गणेश। दिनेस = सूर्य। सुरेसहु = इन्द्र भी। जाहि = जिसे। अनादि = जिसका आरम्भ नहीं। अनन्त = जिसका अन्त नहीं।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कवि रसखान द्वारा रचित सवैयों से लिया गया है। कवि ने श्रीकृष्ण के बारे में बतलाया है कि वे भगवान् हैं। सभी देवता उनका गुणगान करते हैं। वे उनकी महिमा का पार नहीं प्राप्त कर पाते। वे भगवान् नर-लीला कर रहे हैं।
व्याख्या-कवि रसखान कहते हैं कि शेषनाग, गणेशजी, शिवजी, सूर्य और इन्द्र जिनका निरन्तर गुणगान किया करते हैं। वेद उन्हें आदिरहित, अंतरहित, अखण्ड, अछेद्य ऑर अभेद्य बताते हैं। नारद, शुकदेव और व्यासजी जिनकी महिमा को जानने का प्रयास करके थक गये हैं, किन्तु उनकी महिमा का अन्त या रहस्य नहीं प्राप्त कर सके हैं। ऐसे भगवान् कृष्ण को अहीरों की लड़कियाँ (गोपियाँ) थोड़ी-सी। छाछ का लोभ देकर अपने इशारों पर नचाया करती हैं। बाल-रूप में श्रीकृष्ण उनके कहने पर नृत्य करने लगते हैं।
विशेष-
(1) श्रीकृष्ण भगवान् के पूर्ण अवतार हैं। उनकी महिमा का सभी देवता, ऋषि-मुनि आदि गान करते हैं। परन्तु वे गोपियों के सामने नर-लीला करते हैं।
(2) भगवान् की भक्ति अनेक उपायों से की जाती है। भगवान् अपने भक्तों का पूरा ध्यान रखते हैं।
(2)
आजु गई हुती भोर ही हौं रसखान रई बहि नन्द के भौनहिं।
वाको जियौ जुग लाख करोर जसोमति को सुख जात कह्यौ नहिं।
तेल लगाइ-लगाइ कै अँजने भौंहें बनाइ-बनाइ डिठौनहिं।
डालि हमेलनि हार निहारत बारत ज्यौं पुचकारत छौनहिं।
कठिन शब्दार्थ-गई हुति = गयी थी। हौं = मैं। रई = डूबी हुई, पगी हुई, अनुरक्त। भौनहिं = भवन को। वाको = उसका। अँजन = काजल। डिठौनहिं = काजल। का टीका। निहारत = देखती। बारत = न्यौछावर होती। पुचकारत = प्यार करती। छौनहिं = बालक को, पुत्र को।।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण रसखान द्वारा रचित सवैयों से उद्धृत है। कोई गोपी नन्द के भवन गई। उसने देखा कि यशोदा बालक कृष्ण को तेल लगा रही है, काजल लगा रही है, उसे आभूषण पहनाकर प्यार कर रही है। इसी सम्बन्ध में यह वर्णन है।
व्याख्या-गोपी कहती है कि आज अनुरागवश मैं सुबह ही नंदबाबा के भवन पर गई थी। मैंने देखा कि यशोदा अपने बालक के तेल लगा-लगाकरे, अंजन से भौंहें सँवार रही थी और बुरी नजर से बचाने के लिए काजल का टीका लगा रही। थी। उसने बालक को हेमपुष्पों का हार पहनाया और उसे प्यार भरी दृष्टि से देखा। वह उस पर न्योछावर हुई जा रही थी। उसे पुचकार रही थी। उसका बालक लाख, करोड़ वर्ष तक जिये। धन्य है यशोदा, जिसे ऐसा सुख मिला, उसके इस सुख का वर्णन नहीं किया जा सकता, अर्थात् वह सुख अवर्णनीय हैं।
विशेष-
(1) यहाँ कवि ने यशोदा द्वारा बालक के श्रृंगार किये जाने का और उसे प्यार करते हुए सुख का अनुभव करने का वर्णन किया है।
(2) अपने बालक को स्नान कराने, सजाने आदि में स्वाभाविक रूप से संतोष का अनुभव होता है। यशोदा को भी सुख प्राप्त हो रहा था।
(3)
धूरि भरे अति सोभित स्यामजु तैसी बनी सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरै अंगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी।
वा छबि कों रसखानि बिलोकत वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी।।
कठिन शब्दार्थ-धूरि भरे = धूल से सने हुए। सोभित = शोभा पाते हैं। पैंजनी = पायल। कछोटी = लंगोटी, कच्छा जैसा वस्त्र। बिलोकत = देखना। वारत = न्यौछावर करना। कलानिधि = चन्द्रमा। कोटी = करोड़ों। काग = कौआ।।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण भक्तकवि रसखान द्वारा रचित सवैयों से उद्धत है। इसमें श्रीकृष्ण के बाल-रूप का मनोरम वर्णन करके कवि ने उनके हाथ से माखन-रोटी ले जाने वाले कौए को भाग्यशाली बताया है।
व्याख्या-कवि रसखाने वर्णन करते हुए कहते हैं कि बालक कृष्ण धूल से सने हुए अतीव शोभायमान हो रहे हैं, उनके सिर पर आकर्षक ढंग से बाँधी गई चोटी भी उसी प्रकार अतीव सुन्दर लग रही है। बालक कृष्ण ने पीला कच्छा धारण कर रखा है। वे खेलते हुए तथा कुछ-न-कुछ खाते हुए आँगन में इधर-उधर घूम रहे हैं, इस प्रक्रिया में उनके पैरों के मुँघरू या पायल अपने आप बजने से उनकी मधुर ध्वनि सुनाई दे रही है। कवि रसखान कहते हैं कि बालक कृष्ण की उस तरह की अमित मधुर छवि को देखकर करोड़ों कामदेवों की कलाएँ तथा चन्द्रमा की करोड़ों कलाएँ उनके सौन्दर्य पर न्यौछावर हो सकती हैं। जो कोई भी उनकी इस बाल-छवि को देखता है, वह स्वयं को अतीव भाग्यशाली मानता है। कोई गोपी कहती है कि हे सखि, वह कौआ अतीव भाग्यशाली रही, जो बालक कृष्ण के हाथ से माखन-रोटी छीन कर ले गया। अर्थात् श्रीकृष्ण के शरीर-स्पर्श से जो अपरिमित आनन्द-लाभ होता है, उसे प्राप्त कर वह कौआ हमारी अपेक्षा अधिक भाग्यशाली रहा।
विशेष-
(1) इसमें कवि ने बाल-रूप का चित्रण स्वाभाविक रूप में किया है तथा कौए को भाग्यशाली बताकर अपनी दीनता व्यक्त की है।
(2) भक्ति-भावना के अनुसार आराध्य की माधुरी-छवि अंकित की गई है।
(4)
मानुष हौं तो वही रसखानि बस ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जी पसु हाँ तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मॅझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धयो कर छत्र पुरन्दर कारन।
जो खग हाँ तो बसेरो करौं मिलि कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।
कठिन शब्दार्थ-मानुष = मनुष्य। हौं = मैं। ग्वारन = ग्वालों के बीच। धेनु = गाय। मॅझारन = मध्य में। पाहन = पत्थर। गिरि = पर्वत। कर = हाथ। पुरन्दर = इन्द्र। खग = पक्षी। कालिन्दी-कूल = यमुना तट। कदम्ब = एक प्रसिद्ध वृक्ष।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण रसखान द्वारा रचित सवैयों से उद्धृत है। यह कवि रसखान की कृष्ण-भक्ति से सम्बन्धित है। इसमें कवि किसी भी रूप में कृष्ण की क्रीड़ा-भूमि ब्रज में ही रहने की इच्छा व्यक्त कर रहा है।
व्याख्या-कवि रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले ज़न्म में मनुष्य बनू, मनुष्य योनि प्राप्त करूं तो मैं चाहता हूँ कि मुझे ब्रज के गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच रहने का सौभाग्य प्राप्त हो। अगले जन्म पर मेरा कोई वश तो है नहीं। यदि मुझे पशु बनना पड़े तो मैं चाहता हूँ कि मुझे नन्द बाबा की गायों के बीच में चरने का अवसर मिले। यदि मैं पत्थर बनाया जाऊँ तो चाहता हूँ कि मैं उस गोवर्धन पर्वत का एक पत्थर बनूं जिसे कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए अपने हाथ से छत्र की तरह उठा लिया था। यदि मैं पक्षी बनें तो मुझे यमुना के किनारे कदम्ब वृक्षों की डालों पर बसेरा करने वाले पक्षी के रूप में रहने का सुअवसर मिले।
विशेष-
(1) प्रस्तुत वर्णन से स्पष्ट है कि कवि पुनर्जन्म को मानता है।
(2) कवि कृष्ण का परमभक्त है। वह हर दशा में कृष्ण की लीला-भूमि ब्रज में रहने की कामना करता है।
(3) इन्द्र के प्रकोप से ब्रजप्रदेश को बचाने के लिए कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को धारण करने का पौराणिक प्रसंग संकेतित हुआ है।
(5) या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहुँ पुर को तजि डारौं।
आठहु सिद्धि नवौं निधि को सुख नन्द की गाई चराइ बिसारौं।
ए रसखानि जब इन नैनन तें ब्रज के बन-बाग तड़ाग निहारौं।
कौटिक लौं कलधौत के धाम करील की कुंजन ऊपर वारौ।
कठिन शब्दार्थ-लकुटी = लाठी, छड़ी। अरु = और। कामरिया = कम्बले। तिहुँ पुर = तीनों लोक। तजि = त्यागना। बिसारौं = भुला दें, छोड़ दें। तड़ाग = तालाब। निहारौं = देख लें। कोटिक = करोड़ों। कलधौत = स्वर्ण के धाम = घर, भवन। वारौं = न्यौछावर कर दें।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यावतरण रसखान द्वारा रचित सवैयों से उद्धृत है। रसखान कृष्ण के भक्त हैं। वे कहते हैं कि मुझे कृष्ण की क्रीड़ास्थली के कुंजों में विचरण करने, नन्द की गायें चराने का सुख मिले तो मैं उस पर तीनों लोकों का सुख, सिद्धियों और निधियों का सुख भी न्यौछावर कर दें।
व्याख्या-रसखान कहते हैं कि मैं कृष्ण की छड़ी या लाठी और कम्बल के लिए तीनों लोकों का सुख त्याग सकता हूँ। नन्द बाबा की गायें चराने को मिलें तो उस सुख पर मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों का सुख भी त्याग दें। अर्थात् गायें चराने का सुख मिलने पर आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी भुला दूंगा। जब मेरे नेत्रों को ब्रज के बाग, तालाब देखने को मिल जाएँ और करील के कुंजों में विचरण करने का अवसर, सौभाग्य मिल जाए तो मैं उस सुख पर सोने के करोड़ों भवनों को भी न्यौछावर कर सकता हूँ। रसखान यह कहना चाहते हैं। कि मुझे कृष्ण से सम्बन्धित ब्रज की वस्तुओं से जो सुख प्राप्त हो सकता है, वह और किसी भी तरह नहीं मिल सकता।
विशेष-
(1) वर्णन से रसखान की कृष्ण-भक्ति व्यंजित हुई है।
(2) भक्त को अपने आराध्य के सान्निध्य का सर्वाधिक महत्त्व होता है, भौतिक कीमती वस्तुओं का नहीं।
(3) आठ सिद्धियाँ ये हैं-अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईश्वत्व और वशित्व। नौ निधियाँ ये हैं महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्व।।
(6)
बैन वही उनको गुन गाइ औ कान वही उन बैन सों सानी।
हाथ वही उन गात सरै अरु पाइ वही जु वही अनुजानी।
जान वही उन आन के संग औ मान वही जु करै मनमानी।
त्य रसखानि वही रसखानि जु है रसखानि सों है रसखानि॥
कठिन शब्दार्थ-बैन = वाणी। सानी = सराबोर, भरे हुए। गात = शरीर। अनुजानी = अनुगमन करना। जान = जीवनी शक्ति। मनमानी = मन के वश में होकर काम करना। रसखानि = रस की . खान।।
प्रसंग-यह अवतरण रसखान द्वारा रचित सवैयों से लिया गया है। इसमें कवि ने यह प्रतिपादित किया है कि उसी व्यक्ति का जीवन धन्य है, जो श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहता है।
व्याख्या-भक्तकवि रसखान कहते हैं कि वाणी वही धन्य है जो श्रीकृष्ण का गुणगान करती है, अर्थात् श्रीकृष्ण का गुणगान करना ही वाणी की सत्यता का प्रमाण है। कान वही उपयोगी और श्रेष्ठ हैं जो श्रीकृष्ण की मधुर वाणी के रस से भरे रहते हैं। शरीर के साथ वे ही हाथ सार्थक हैं जो श्रीकृष्ण के शरीर का स्पर्श करते हैं और उन्हें ही सब कुछ मानते रहते हैं। पैर भी तभी सार्थक हैं जो कि गतिशील होकर श्रीकृष्ण के द्वारा बताये हुए मार्ग का अनुगमन करते रहते हैं। जीवनी शक्ति और जीवन दोनों ही उस व्यक्ति के धन्य हैं, जो उन श्रीकृष्ण की मर्यादा से जुड़े हुए हैं। मान-सम्मान वही सच्चा एवं सार्थक है, जो श्रीकृष्ण की भावना के अनुकूल अर्थात् उनके मनोनुकूल कार्य करता रहता है। रसखान कहते हैं। कि सच्चे रसखान तो वे ही हैं, जो रसिक एवं आनन्द-रस की खान या भण्डार हैं, अर्थात् उन्हें ही सही अर्थ में रसखान कहा जा सकता है। आशय यह है कि आनन्द के भण्डार श्रीकृष्ण से अनुरागानुगा भक्ति रखने वाला ही वास्तविक आनन्द का अनुभव कर सकता है और वही व्यक्ति अपना जीवन आनन्दमय बना सकता।
विशेष-
(1) रसखान ने इसमें अपना अनन्य भक्ति-भाव व्यक्त किया है। उन्होंने सब प्रकार से कृष्णमय जीवन व्यतीत करने का सुझाव दिया है और कहा है कि इसी से कल्याण होगा।
(2) सार्थक पदावृत्ति से यमक अलंकार है।
(7)
सेस सुरेस दिनेस गनेस प्रजेस धनेस महेस मनावौ।
कोऊ भवानी भजौ, मन की सब आस सबै विधि जाइ पुरावौ।
कोऊ रमा भजि लेहु महा धन, कोऊ कहुँ मनवांछित पावौ।
पै रसखानि वहीं मेरो साधन, और त्रिलोक रहौ कि नसावौ।
कठिन शब्दार्थ-सुरेस = देवराज इन्द्र। दिनेस = सूर्य। प्रजेस = ब्रह्मा। धनेस = कुबेर। भवानी = पार्वती। रमा = लक्ष्मी। भजि = भजन करके। पुरावौ = पूरी करो। साधन = सहारा। नसावौ = नष्ट होवे।
प्रसंग-यह अवतरण कवि रसखान द्वारा रचित सवैयों से उद्धृत है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भाव व्यक्त किया हैं तथा उन्हीं को अपने लिए सब कुछ माना है।
व्याख्या-रसखान कहते हैं कि कोई व्यक्ति भले ही शेषनाग, देवराज इन्द्र, सूर्य, गणेश, ब्रह्मा, कुबेर एवं शिवजी आदि का भजन कर उन्हें मनाते रहें, किन्तु श्रीकृष्ण की भक्ति और भजन के समान इनमें से किसी की भी भक्ति को उतना महत्त्व नहीं है। इसी प्रकार चाहे कोई पार्वती की, भक्ति सच्चे मन से कर ले और अपनी सभी प्रकार की आशाओं या मनोरथों को सब तरह पूरा करा दे अर्थात् मनचाहा समस्त कार्य करा देवे, इसी प्रकार कोई व्यक्ति लक्ष्मी की भक्ति करके उनसे अपनी भक्ति-भाक्ना के फलस्वरूप मनवांछित अपरिमित धन भी प्राप्त कर ले, परन्तु जो फल कृष्ण-भक्ति से मिलता है वह और की भक्ति से सम्भव नहीं है। कवि रसखान कहते हैं कि मैं तो केवल श्रीकृष्ण की ही भक्ति करता हूँ, मुझे तो उन्हीं का सहारा है और वे ही मेरे समस्त साधन हैं। भले ही मेरे लिए तीनों लोक रहें या तीनों लोकों का सुख मिले या न मिले, किन्तु मैं अपने जीवन की सार्थकता श्रीकृष्ण की भक्ति से ही मानता हूँ।।
विशेष-
(1) इसमें कवि रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भाव। व्यक्त किया है।
(2) श्रीकृष्ण का भजन करने के बाद अन्य किसी देवता का भजन न करने का संकेत किया गया है।
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