Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi व्याकरण अविकारी शब्द (अव्यय)
अविकारी शब्द (अव्यय)
परिभाषा–जिस शब्द में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण रूप-परिवर्तित नहीं होता है, अर्थात् कोई विकार नहीं आता है और वाक्य-प्रयोग में सदैव एक जैसा रहता है, उसे अविकारी शब्द कहते हैं। इसे ही अव्यय शब्द भी कहते हैं।
‘अव्यय’ का शाब्दिक अर्थ है, जो व्यय या खर्च न हो। अर्थात् जिसका रूप लिंग, वचन, कारक आदि से सदा अविकृत या अप्रभावित रहे। इसी कारण अव्यय को अविकारी शब्द कहा गया है।
अव्यय के भेद-अव्यय या अविकारी शब्दों को मुख्यतः चार भेदों में विभाजित किया जाता है-
- क्रियाविशेषण अव्यय।
- सम्बन्धबोधक अव्यय
- समुच्चयबोधक अव्यय
- विस्मयादिबोधक अव्यय।
1. क्रियाविशेषण अव्यय
जो अव्यय या अविकारी शब्द क्रिया की विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे
रमेश धीरे-धीरे जा रहा है।
तुम कल शीघ्र आना।
परसों हम शहर जायेंगे।
इन वाक्यों में धीरे-धीरे’, ‘कल शीघ्र’ और ‘परसों’ क्रियाविशेषण हैं, क्योंकि ये क्रमशः ‘जा रहा है’, ‘आना’ और ‘जायेंगे’ क्रिया की विशेषता प्रकट कर रहे हैं। क्रियाविशेषण के भेद-कुछ विद्वान् अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के चार भेद मानते हैं और कुछ दस भेद मानते हैं। परन्तु सामान्य रूप में इसके छः भेद मान्य हैं
- कालवाचक क्रियाविशेषण
- स्थानवाचक क्रियाविशेषण
- रीतिवाचक क्रियाविशेषण
- परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
- स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण
- निषेधवाचक क्रियाविशेषण
(1) कालवाचक क्रियाविशेषण-जिस अव्यय शब्द से क्रिया के होने . का काल या समय ज्ञात होता है, उसे कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
- कल वह दिल्ली जायेगा।
- प्रतिदिन विद्यार्थी अपना पाठ पढ़ते हैं।
इन वाक्यों में ‘कल’ और ‘प्रतिदिन’ कालवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी प्रकार अन्य क्रियाविशेषण शब्द हैं—अब, अभी, जब, कभी, कब, तभी, तुरन्त, घड़ी-घड़ी, पूर्व, फिर, पश्चात्, पहले, पीछे, निरन्तर, परसों, सदा, शीघ्र, नित्य, सुबह, प्रातः, ; सायं, दिनभरे, दोपहर, तुरन्त, आजीवन, आजकल, प्रतिदिन आदि।
(2) स्थानवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों में क्रिया घटित होने के स्थान का बोध होता है, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
- अँधेरे में उधर मत जाओ।
- रमेश भीतर कमरे में है।
इन वाक्यों में ‘उधर’ और ‘भीतर’ स्थानवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी तरह के अन्य अव्यय हैं-इधर, ऊपर, नीचे, यहाँ, वहाँ, जहाँ, तहाँ, पास, दूर, बाहर, भीतर, दायाँ, बायाँ, किधर, उधर, जिधर, इस तरफ, उस तरफ आदि।।
(3) रीतिवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया के होने की रीति का बोध होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
- रमेश धीरे-धीरे चलता रहा।
- अचानक वर्षा प्रारम्भ हो गई।
इन वाक्यों में धीरे-धीरे’ और ‘अचानक’ शब्दों से क्रिया के होने की रीति का ज्ञान हो रहा है। इसी तरह के अन्य अव्यय हैं–सहसा, ऐसे, वैसे, ज्योंही, तैसे, शीघ्रतापूर्वक, इसलिए, वृथा, यथाशक्ति, झट से, एकाएक आदि। विशेष-रीतिवाचक क्रियाविशेषण विविध रूपों में प्रयुक्त होता है। इस कारण यह प्रश्नवाचक, निश्चयवाचक, अनिश्चयवाचक, कारणवाचक आदि कई भेदों में विभक्त किया जा सकता है।
(4) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया के परिमाण या मात्रा का बोध होता है, उन्हें परिमणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
- तुम थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करते रहो।
- रमेश बहुत ज्यादा बोलता रहता है।
इन वाक्यों में थोड़ा-थोड़ा’ और ‘बहुत ज्यादा परिमाणवाचक अव्यय हैं। इसी प्रकार अन्य अव्यय हैं-अति, अधिक, अत्यन्त, कम, कुछ, अल्प, केवल, प्रायः, लगभग, सर्वथा, जितना, उतना, किंचित्, जरा, काफी, पर्याप्त, यथेष्ट, तनिक, सर्वथा, अतिशय, कितना आदि।
विशेष-परिमाणवाचक क्रियाविशेषण के अधिकताबोधक, न्यूनताबोधक, पर्याप्तबोधक, तुलनाबोधक एवं श्रेणीबोधक भेद माने जाते हैं। इसके उदाहरण ऊपर दिये गये हैं।
(5) स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण—जिन अव्यय शब्दों से क्रिया की स्वीकृति का ज्ञान होता है, उन्हें स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
- मैं तुम्हारा काम अवश्य कर दूंगा।
- हाँ, तुम्हारा कहेना सभी को अच्छा लगता है।
इन वाक्यों में ‘अवश्य’ और ‘हाँ’ स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी प्रकार अन्य शब्द हैं-जी हाँ, निःसन्देह, अच्छा, ठीक, बिलकुल, बहुत अच्छा आदि।
(6) निषेधवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया के निषेध . का बोध होता है, उन्हें निषेधवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
- तुम आलस्य मत करो।
- परिश्रम करने वाला कभी नहीं हारता है।
इन वाक्यों में ‘मत’ और ‘कभी नहीं निषेधवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी प्रकार न, नहीं, कदापि नहीं, मत आदि निषेधवाचक क्रियाविशेषण हैं।
2, सम्बन्धबोधक अव्यय
जिन अव्यये शब्दों के द्वारा वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरे शब्दों के साथ प्रकट होता है, उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे
- तुम्हारी कलम रमेश के पास है।
- घर के सामने बड़ा चबूतरा है।
इन वाक्यों में ‘पास’ और ‘सामने’ शब्द के द्वारा संज्ञा और सर्वनाम के सम्बन्ध का ज्ञान हो रहा है। इसी प्रकार सम्बन्धबोधक अव्यय हैं-बिना, परे, द्वारा, ओर, तक, रहित, प्रतिकूल, निकट, मध्य, बगैर, मात्र, लायक, बाहर, निकट, अलावा आदि।
सम्बन्धबोधक अव्यय के काल, दिशा, समता, विरोध, साहचर्य, स्थान, साधन, कारण आदि अनेक उपभेद-सूचक शब्द माने जाते हैं।
3. समुच्चयबोधक अव्यय
जो अव्यय दो या दो से अधिक शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं या पृथक् करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे—
- रमा और गीता विद्यालय जाती हैं।
- मैं पढ़ता परन्तु पुस्तक नहीं थी।
इन वाक्यों में ‘और’ दो शब्दों को तथा परन्तु’ दो वाक्यांशों को सम्बद्ध कर रहा है। इस कारण ये दोनों समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
समुच्चयबोधक अव्यय के मुख्य दो भेद माने जाते हैं–
- संयोजक अव्यय, और
- विभाजक अव्यय।
इन भेदों के अतिरिक्त वाक्यांशों और वाक्यों को सम्बद्ध तथा पृथक् करने वाले अव्ययों का वर्गीकरण अनेक उपभेदों में किया जा सकता है। इस दृष्टि से भी इसके निम्न दो भेद मान्य हैं
(क) समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय।।
(ख) व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय। यदि, तथा, एवं, जो, फिर, यथा, पुनः, और आदि संयोजक अव्यय व किन्तु, . परन्तु, पर, वरना, बल्कि, अपितु आदि विभाजक अव्यय हैं।
4. विस्मयादिबोधक अव्यय
जिन अव्यय शब्दों के द्वारा हर्ष, शोक, घृणा, आश्चर्य, भय, ग्लानि, प्रशंसा, क्रोध आदि भावों की अभिव्यक्ति होती है, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते। हैं। जैसे
- हाय! यह तुमने क्या कर डाला
- अरे! तुमने तो अनर्थ कर दिया
- वाह! तुम तो छिपे हुए रुस्तम निकले!
इन वाक्यों में ‘हाय’, ‘अरे’ और ‘वाह’ अव्यय के द्वारा क्रमशः घृणा और आश्चर्य का भाव व्यक्त हुआ है।
आश्चर्य, हर्ष, शोक, लज्जा, ग्लानि आदि अनेक भाव विविध शब्दों के द्वारा व्यक्त किये जाते हैं। अतः भाव के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्यय के अनेक भेद हो सकते हैं। छिः, धत्, थू, ओहो, आह, हा, ठीक, हाँ-हाँ, अहा, धन्य, धिक्, अहो, हाय, ओ, हे राम, हाय-हाय, आहा, वाह, शाबाश, धिक्कार, हाय अल्लाह, हा ईश्वर आदि इसी प्रकार के अव्यय शब्द हैं।
विशेष—
(i) यद्यपि हिन्दी में मुख्य रूप से अव्यय के चार ही भेद माने जाते हैं, परन्तु शब्दों के प्रारम्भ में जुड़ने वाले संस्कृत-उपसर्ग भी अव्यय के सामने माने जाते हैं। वे उपसर्ग इस प्रकार हैं—
प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आ, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि और उप। इन्हें ‘प्रादि अव्यय’ कहा जाता है।।
(ii) विस्मयादिबोधक अव्यय के साथ विस्मय का चिह्न (!) अवश्य लगाना पड़ता है, ऐसा करने पर ही उसकी सही अभिव्यक्ति होती है।
अभ्यास प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
समुच्चयबोधक अव्यय है–
(क) अहा!
(ख) परन्तु
(ग) अवश्य
(घ) अचानक।
उत्तर:
(ख) परन्तु
प्रश्न 2.
“कल वर्षा आयेगी।” वाक्य में ‘कल’ क्रियाविशेषण अव्यय है
(क) स्थानवाचक
(ख) रीतिवाचक
(ग) कालवाचक
(घ) परिमाणवाचक।।
उत्तर:
(ग) कालवाचक
प्रश्न 3.
“मेरे घर के सामने पेड़ है।” ‘सामने’ अव्यय है
(क) समुच्चयबोधक
(ख) सम्बन्धबोधक
(ग) विस्मयादिबोधक
(घ) क्रियाविशेषण अव्यय।
उत्तर:
(ख) सम्बन्धबोधक
अतिलघूत्तरात्मक एवं लघूत्तरात्मक प्रश्न।
प्रश्न 1.
अविकारी पद किसे कहते हैं? इनके प्रकारों के नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जिस शब्द में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण रूप-परिवर्तन नहीं होता है, उसे अविकारी या अव्यय कहते हैं। अविकारी के चार भेद होते हैं—
- क्रियाविशेषण अव्यय,
- सम्बन्धबोधक अव्यय,
- समुच्चयबोधक अव्यय तथा
- विस्मयादिबोधक अव्यय।
प्रश्न 2.
क्रियाविशेषण अव्यय के दो उदाहरण-वाक्य लिखिए।
उत्तर:
- कल वह घर जायेगा।
- बालक धीरे-धीरे चलने लगा।
प्रश्न 3,
विस्मयादिबोधक अव्यय किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
जिन अव्यय शब्दों के द्वारा हर्ष, शोक, घृणा, आश्चर्य, भय, ग्लानि आदि भावों को व्यक्त किया जाता है, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे–
हाय! उसे सर्प ने डस लिया।
छिः! तुम्हें शर्म नहीं आती।
प्रश्न 4.
प्रादि अव्यय के चार शब्द लिखिए।
उत्तर:
प्रति-प्रतिदिन, प्रत्येक। अति—अत्यावश्यक, अत्यन्त।
प्रश्न 5.
संयोजक और विभाजक अव्यय के चार-चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
संयोजक अव्यय–तथा, और, एवं, यथा। विभाजक अव्यये–किन्तु, परन्तु, वरना, अपितु।।
प्रश्न 6.
अव्यय को अविकारी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
अव्यय शब्दों में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण रूप-परिवर्तन अर्थात् कोई विकार उत्पन्न नहीं होता है, इसी कारण अव्यय को अविकारी शब्द कहा जाता है।
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