Rajasthan Board RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 प्राकृतिक आपदाएँ व प्रबन्धन (भूकम्प एवं भूस्खलन)
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत का जिस प्राकृतिक आपदा से सम्बन्ध नहीं है, वह है-
(अ) भूकम्प
(ब) बाढ़
(स) भूस्खलन
(द) ज्वालामुखी
उत्तर:
(द) ज्वालामुखी
प्रश्न 2.
भारत में भूकम्प जिस क्षेत्र में अधिक आते है, वह है-
(अ) दक्षिण के पठार
(ब) हिमालय
(स) मध्य भारत
(द) तटीय भारत
उत्तर:
(ब) हिमालय
प्रश्न 3.
भारत में निम्नलिखित में से जिस पर्वतीय क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं, वह है-
(अ) अरावली
(ब) हिमालय
(स) सतपुड़ा
(द) विन्ध्याचल
उत्तर:
(ब) हिमालय
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 4.
प्राकृतिक आपदाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। जिन प्राकृतिक परिवर्तनों का दुष्प्रभाव मानव समाज पर पड़ता है, उन्हें प्राकृतिक आपदाएँ कहते हैं।
प्रश्न 5.
भूकम्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उत्पन्न होने वाली हलचलों के कारण पृथ्वी में होने वाले कम्पन को ही भूकम्प कहा जाता है।
प्रश्न 6.
भूस्खलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मिट्टी व चट्टानों का ढलान पर ऊपर से नीचे की ओर खिसकने, लुढ़कने तथा गिरने की प्रक्रिया को भूस्खलन कहते हैं।
प्रश्न 7.
भूस्खलन किस ऋतु में अधिक होता है?
उत्तर:
भूस्खलन वर्षा ऋतु में अधिक होता है।
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 8.
प्रबन्धन से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रबन्धन से आशय उन कार्यों, निर्णयों व जिम्मेदारियों से है जो प्राकृतिक आपदाओं की विकरालता को कम करने में सहायक हों तथा विपत्ति आने पर सफलतापूर्वक उसका सामना करने में सहायक हों। इस प्रकार के कार्य आपदा व संकट के निवारण हेतु किये जाते हैं। प्रबन्धन का मुख्य लक्ष्य है- उत्तरदायित्वों का समयबद्ध कर्तव्य पालन करना।
प्रश्न 9.
भारत के किस क्षेत्र में अधिक भूकम्प आते हैं व क्यों?
उत्तर:
भारत एक विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाला राष्ट्र है। इसके उत्तरी भाग में स्थित हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में सर्वाधिक भूकम्प आते हैं।
अधिक भूकम्प आने के कारण – हिमालय पर्वत एक नवीन मोड़दार पर्वत है जो अभी भी उत्थान की अवस्था में है। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में अभी भी संतुलन की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है। इसी कारण संतुलन मूलक कारकों की सक्रियता के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में अधिक भूकम्प आते हैं।
प्रश्न 10.
भूस्खलन प्रबन्धन के बारे में बताइये।
उत्तर:
भारत में सम्पन्न होने वाली भूस्खलन की प्रक्रिया मुख्यत: वर्षा ऋतु में सम्पन्न होती है। इसके प्रबन्धन हेतु सरकारी, सामाजिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। साथ ही लोगों की जागरूकता ही सबसे बड़ा प्रबन्ध है। मुख्य प्रबन्धों में परिवहन मार्गों के निर्माण के दौरान जल निकासी की उचित व्यवस्था, अधिक ढाल वाली चट्टानों को दीवार बनाकर सहारा देना, गाँवों की बसावट को नियंत्रित करना, मकानों को मजबूत धरातल पर बनाना, पर्वतीय क्षेत्रों में नदी तटों पर मकान न बनाना एवं सहायता की भावना ही उचित प्रबन्धन है।
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
भूकम्प आने के कारणों को समझाइये।
उत्तर:
भूकम्प की उत्पत्ति के लिए मुख्यत: प्राकृतिक कारण उत्तरदायी हैं। किन्तु मानवीय कारकों का भी भूकम्पों की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। इन दोनों प्रकार के कारणों को निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है-
(i) प्राकृतिक कारण – भूकम्प मुख्यत: पृथ्वी की विवर्तनिक गतियों के कारण उत्पन्न होते हैं-
(अ) इन विवर्तनिक गतियों में प्लेटों के प्रवाह के कारण भूकम्पों की उत्पत्ति एक मुख्य कारण है; यथा- भारतीय प्लेट के उत्तर की ओर प्रवाहन के कारण 26 दिसम्बर 2014 को दक्षिणी-पूर्वी एशिया में आया भूकम्प है। प्रायः दो प्लेटों के आमने-सामने गतिशील होने पर विनाशात्मक किनारों के टकराने से विनाशकारी भूकम्प आते हैं।
(ब) ज्वालामुखी क्रिया के दौरान जब उच्च दाब वाली जलवाष्प व गैसें भूगर्भ से बाहर आने का प्रयास करती हैं, तो धरातल पर नीचे से धक्के लगते हैं। जो भूकम्प का कारण बनता है।
(स) जब दरारों या अन्य किसी कारण से सतही जल पृथ्वी की गहराइयों तक चला जाता है, तो वह अत्यधिक तापमान के कारण जलवाष्प व गैसों में बदल जाता है। ऐसी उच्च दबाव वाली वाष्प मिश्रित गैसें पृथ्वी की सतह की ओर आने का मार्ग ढूँढ़ती हैं। फलस्वरूप भूपटल के नीचे से धक्के लगते हैं तथा भूतल पर कम्पन होने लगता है।
(द) प्रत्येक चट्टान में थोड़ी मात्रा में होने वाले खिंचाव, भिंचाव व दबाव को सहन करने की क्षमता होती है। किन्तु जब इस क्षमता से अधिक दबाव या खिंचाव होने पर चट्टानें टूट जाती हैं तथा टूटने के पश्चात ये पुनः अपनी पुरानी स्थिति में आने का प्रयास करली हैं। इस प्रक्रिया से भूकम्पों की उत्पत्ति होती है।
(य) भू-पटल पर भूगर्भिक हलचलों के कारण होने वाले सम्पीडन एवं भ्रंशन की प्रक्रिया से भी भूकम्प आते हैं जो मुख्यतः तनाव व सम्पीडन जन्य प्रक्रियाओं का परिणाम होते हैं।
(र) विश्व के ऊँचे व नीचे भागों के बीच हमेशा सन्तुलन स्थिर नहीं रहता है। समुद्रतल पर महाद्वीपों से एकाएक कटकर आये मलबे से यह.सन्तुलन बिगड़ जाता है। अतः पुनः सन्तुलन स्थापित करने के लिए ऊँचे समुद्र की तली नीचे बैठती है तथा पर्वत ऊपर उठते हैं। इस क्रिया में निर्बल स्थलों पर भूकम्प उत्पन्न हो जाता है।
(ii) अप्राकृतिक या मानवजनित कारण-इनमें मानवकृत विविध प्रकार के रचनात्मक कार्यों को शामिल किया जाता है जिनमें सुरंग को खोदना; खानों की खुदाई, बड़े-बड़े भवनों का निर्माण, रेल मार्गों, जलाशयों एवं बाँधों का निर्माण शामिल हैं। इन सबके साथ मानव के द्वारा किये जाने वाले आणविक विस्फोट, खनन क्षेत्रों में विस्फोट, गहरे छिद्रण रूपी मानवीय क्रियाएँ भी गौण रूप से भूकम्प की उत्पति में सहायक सिद्ध होती हैं।
प्रश्न 12.
प्राकृतिक आपदा भूकम्प का सामना किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
भूकम्प अकस्मात घटित होने वाली एक विध्वंसात्मक प्राकृतिक आपदा है जिसका सामना करने के लिये बचाव ही अन्तिम रास्ता होता है। इस प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए सरकारी, सामाजिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर इससे सामना करने की आवश्यकता पड़ती है। भूकम्प आने पर निम्नलिखित उपायों को अपनाकर इससे बचा जा सकता है-
- देश में भूकम्पलेखी यंत्रों का जाल बिछा दिया जाये ताकि भूगर्भ में होने वाली हलचलों का ज्ञान होता रहे ओर पूर्वानुमानों के द्वारा इससे बचा जा सके।
- पूर्वानुमानों के आधार पर भूकम्प की स्थिति में क्षेत्र विशेष के लोगों को विभिन्न प्रचार माध्यमों के द्वारा सजग करके भूकम्प का सामना करना चाहिए।
- व्यक्तियों को जब भूकम्प आने का अहसास होने लगे तो सभी को घर से बाहर खुली जगहों पर आ जाना चाहिए।
- यदि घर से बाहर निकलना सम्भव नहीं हो तो दरवाजों के मध्य खड़ा हो जाना चाहिए।
- भूकम्प की स्थिति में बिजली व गैस बन्द कर देनी चाहिए।
- यदि वाहनों में यात्रा कर रहे हों तो वाहन को रोककर, उतरकर एक ओर खुले में खड़े हो जाना चाहिए।
- हल्के झटकों के समय तुरन्त बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए।
- भूकम्प से उत्पन्न संकट की स्थिति में एकता का परिचय देना चाहिए।
- ऐसी स्थिति के दौरान जाति, धर्म, सम्प्रदाय के बन्धनों से मुक्त होकर मानवीय संवेदना के कारण मुक्त हस्त से तन-मन-धन से सहायता करनी चाहिए।
- देश के नागरिकों, स्वयंसेवी संस्थाओं, विभिन्न संगठनों, विद्यार्थियों को मिलकर सहायता हेतु तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न 13.
प्रबन्धन को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
प्रबन्धन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
- आर्थिक स्थिति
- व्यक्ति की सकारात्मक सोच
- सहयोग की भावना
- जनसंख्या घनत्त्व
- सामाजिक ईमानदारी व निष्ठा
- भौगोलिक परिस्थितियाँ
- परिवहन व संचार के साधनों की स्थिति।
1. आर्थिक स्थिति – किसी राष्ट्र में मिलने वाली आर्थिक स्थिति प्रबन्धन को नियंत्रित करने वाला मुख्य कारक है। आर्थिक स्थिति का अनुकूल एवं प्रतिकूल होना क्रमश: प्रबन्धन हेतु सहायक व विपरीत सिद्ध होता है। यदि आर्थिक स्थिति मजबूत होती है तो विकसित सामग्री का प्रयोग होता है। इसके विपरीत आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर प्रबन्धन उचित नहीं हो पाता है।
2. व्यक्ति की सकारात्मक सोच-प्राकृतिक आपदाओं के दौरान व्यक्ति की सकारात्मक सोच का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक सोच कठिन स्थिति से उबरने में सहायक होती है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मकता सोच समाज, परिवार व स्वयं व्यक्ति के लिए उत्तम होती है।
3. सहयोग की भावना-प्रबन्धन व्यक्तियों के समायोजन की एक प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से कड़ी के रूप में जुड़ा हुआ होता है। आपदाओं के दौरान व्यक्तियों में आपसी सहयोग की भावना ही सर्वाधिक सार्थक सिद्ध होती है। इस आपस भावना के कारण बड़े दुःख भी आसानी से दूर हो जाते हैं।
4. जनसंख्या घनत्व-किसी राष्ट्र में मिलने वाला जनसंख्या घनत्व प्रबन्धन को प्रभावित करता है। प्रायः अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में प्रबन्धन हेतु अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में प्रबन्धन सरलता से एवं कम पूँजी से हो जाता है।
5. सामाजिक ईमानदारी व निष्ठा-प्राकृतिक आपदाओं के दौरान लोगों में मिलने वाली ईमानदारी व निष्ठा की भावना बहुमूल्य सिद्ध होती है। यदि ईमानदारी व निष्ठा की भावना का अभाव मिलता है तो आपदाओं से भी बढ़कर स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। अत: किसी भी समाज में ईमानदारी व निष्ठा आवश्यक है।
6. भौगालिक परिस्थितियाँ-भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रबन्धन को मुख्य रूप से प्रभावित करती हैं। किसी क्षेत्र में मिलने वाली जलवायु की स्थिति, धरातलीय संरचना, जल प्रवाह की स्थिति, मृदा की संरचना आदि प्रबन्धन की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के साथ-साथ उसके क्रियान्वयन हेतु आवश्यक होती है।
7. परिवहन व संचार के साधनों की स्थिति – प्रबन्धन की प्रक्रिया परिवहन व संचार के साधनों के बिना अधूरी है। परिवहन प्रबन्धन को सफल बनाता है वहीं इसे सम्पूर्ण करने में सहायक होता है। यदि परिवहन व संचार तंत्र मजबूत होता है तो प्रबन्धन की प्रक्रिया सहज व सरल बन जाती है जिसके द्वारा त्वरित गति से आपदाओं के दौरान बचाव, सहायक सामग्री की उपलब्धता एवं सुरक्षा-सामग्री पहुंचायी जा सकती है। इसके विपरीत कमजोर परिवहन संचार तंत्र प्रबन्धन को विफल कर सकती है।
प्रश्न 14.
भूस्खलन के प्रमुख कारकों को वर्गीकृत कीजिये।
उत्तर:
भूस्खलन के लिए किसी एक कारक को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता अपितु कई कारक मिलकर भूस्खलन जैसी आपदा को जन्म देते हैं। भूस्खलन के लिए उत्तरदायी इन कारकों को मुख्यत: निम्न दो वर्गों में बाँटा गया है-
- प्राकृतिक कारक
- मानवीय कारक।
1. प्राकृतिक कारक – भूस्खलन के लिए उत्तरदायी प्राकृतिक कारकों में चट्टानों की संरचना, भूमि का ढाल, चट्टानों में वलन वे भ्रंशन, वर्षा की मात्रा व वनस्पति का आवरण आदि कारक प्रमुख हैं। नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन अधिक होते हैं क्योंकि यहाँ उत्थान की सतत् प्रक्रिया चलती रहती है जिसके कारण चट्टानों के जोड़ कमजोर होते रहते हैं व ढाल भी अधिक होता है। ऐसे में यदि वर्षा तीव्र हो जाये तो वह स्नेहन का काम करती हैं। कमजोर जोड़ों पर से चट्टानें नीचे की ओर खिसकने लगती हैं व वर्षा जल की मात्रा बढ़ने पर फिसल नीचे गिरती हैं। गुरुत्वाकर्षण बल इसमें और सहयोग करता है। जहाँ ढाल तीव्र होता है वहाँ गुरुत्वाकर्षण बल और बढ़ जाता है। जो ढाल 45° से अधिक कोण के होते हैं वहाँ भूस्खलन अधिक तीव्र होता है। पश्चिमी घाट में कोंकण रेल मार्ग पर वर्षा ऋतु में भूस्खलन इसीलिए अधिक होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में, नदी की अपरदन शक्ति अधिक होती है। नदी किनारों पर अपरदन से उनके ऊपरी क्षेत्र में भूस्खलन होता है।
2. मानवीय कारक – भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा को मानव ने अनियंत्रित विकास के कारण और अधिक बढ़ा दिया है। कागज व इमारती लकड़ी के लिए वनों का अतिदोहन किया है। इस वन विनाश से चट्टानों व मिट्टियों पर वृक्षों की जड़े अपनी मजबूत पकड़ को छोड़ देती हैं, अत: मृदा अपरदन प्रारम्भ हो जाता है। यही मृदा अपरदन धीरे-धीरे भूस्खलन का रूप ले लेता है। सड़कें, रेल मार्ग, सुरंगों के निर्माण तथा खनन के रूप में मानव भूस्खलन को बढ़ावा देता है। पर्वतीय क्षेत्रों में आवागमन मार्गों के निर्माण में पर्वतों पर से वनों व मिट्टी की बहुत बड़ी मात्रा को हटाया जाता है। यह पदार्थ नीचे की ओर सरक कर भूस्खलन की मात्रा को बढ़ाते हैं।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 15.
भारत के रूपरेखा मानचित्र में भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों को दर्शाइये।
उत्तर:
प्रश्न 16.
भारत के रूपरेखा मानचित्र में भूस्खलन क्षेत्रों को अंकित कीजिये।
उत्तर:
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
चक्रवात है-
(अ) मौसमी आपदा
(ब) स्थलाकृतिक आपदा
(स) जीवजन्य आपदा
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) मौसमी आपदा
प्रश्न 2.
हिमस्खलन है-
(अ) स्थलाकृतिक आपदा
(ब) मौसमी आपदा
(स) अ एवं ब दोनों
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) स्थलाकृतिक आपदा
प्रश्न 3.
निम्न में से वायुमंडलीय आपदा नहीं है-
(अ) टॉरनेडो
(ब) सूखा
(स) तड़ित झंझा
(द) भूकम्प
उत्तर:
(द) भूकम्प
प्रश्न 4.
धरातल पर स्थित वह बिन्दु जहाँ सर्वप्रथम भूकम्प अनुभव किया जाता है, कहते हैं-
(अ) अधिकेन्द्र
(ब) भूकम्प मूल
(स) भूकम्प केन्द्र
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अधिकेन्द्र
प्रश्न 5.
भूकम्पमापी यंत्र कहलाता है।
(अ) हीदरग्राफ
(ब) क्लोइमोग्राफ
(स) अर्गोग्राफ
(द) सिस्मोग्राफ
उत्तर:
(द) सिस्मोग्राफ
प्रश्न 6.
धरातल के नीचे जिस जगह से कम्पन प्रारम्भ होता है, उसे कहते हैं-
(अ) भूकम्प मूल
(ब) भूकम्प केन्द्र
(स) भूकम्प अधिकेन्द्र
(द) भूकम्प अपकेन्द्र
उत्तर:
(अ) भूकम्प मूल
प्रश्न 7.
लातर का भूकम्प कब आया था?
(अ) 6-08-1988 को
(ब) 30-09-1993 को
(स) 29-03-1999 को
(द) 26-01-2001 को।
उत्तर:
(ब) 30-09-1993 को
प्रश्न 8.
1971 के भूस्खलन से किस नदी पर अस्थाई झील का निर्माण हुआ था?
(अ) सोन
(ब) अलकनंदा
(स) कोसी
(द) ब्रह्मपुत्र
उत्तर:
(ब) अलकनंदा
प्रश्न 9.
भारत का दूसरा प्रमुख भूस्खलन क्षेत्र कौन-सा है?
(अ) पश्चिमी घाट
(ब) मैदानी भाग
(स) हिमालय क्षेत्र
(द) समुद्र तट
उत्तर:
(अ) पश्चिमी घाट
प्रश्न 10.
भारत के 90 प्रतिशत से अधिक भूस्खलन किस ऋतु में होते हैं?
(अ) ग्रीष्म में
(ब) शीत में
(स) वर्षा में
(द) बसंत में
उत्तर:
(स) वर्षा में
प्रश्न 11.
निम्न में से जो मौसमी आपदा नहीं है, बताइये-
(अ) चक्रवात
(ब) अनावृष्टि
(स) भूकम्प
(द) हिमपात
उत्तर:
(स) भूकम्प
प्रश्न 12.
महासागरों में उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय लहरों को कहते हैं-
(अ) आड़ी लहरें
(ब) बेलांचली लहरें
(स) लम्बवत् लहरें
(द) सुनामी लहरे
उत्तर:
(द) सुनामी लहरे
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए
स्तम्भ अ | स्तम्भ ब |
(i) अनावृष्टि | (अ) 5 रिक्टर तक तीव्रता |
(ii) भूस्खलन | (ब) जीवजन्य आपदा |
(iii) प्लेग | (स) मौसमी आपदा |
(iv) पृथ्वी का कम्पन | (द) स्थलाकृतिक आपदा |
(v) सामान्य भूकम्प | (य) भूकम्प |
उत्तर:
(i) (स), (ii) (द), (iii) (ब), (iv) (य), (v) (अ)।
स्तम्भ अ (भूकम्प का स्थान) |
स्तम्भ ब (भूकम्प की दिनांक) |
(i) जबलपुर का भूकम्प | (अ) 8-10-2005 |
(ii) भुज का भूकम्प | (ब) 21-08-1988 |
(iii) चमोली का भूकम्प | (स) 22-05-1997 |
(iv) मुजफ्फराबाद का भूकम्प | (द) 26-01-2001 |
(v) बिहार-नेपाल सीमा | (य) 29-03-1999 |
उत्तर:
(i) (स), (ii) (द), (iii) (य), (iv) (अ), (v) (ब)।
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राकृतिक वरदान किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति में होने वाले ऐसे परिवर्तन जिनका प्रभाव मानव के हित में होता है उन्हें प्रकृति का वरदान कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव जब मानव समाज का अहित करता है तो इन्हें प्रकृति आपदा कहा जाता है।
प्रश्न 3.
बाढ़ से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी धरातलीय भाग पर आकस्मिक भारी वर्षा के कारण नदियों या तटबन्धों के ऊपर जल प्रवाह हो जाना जिससे सम्पूर्ण समीपवर्ती भाग जलप्लावित हो जाता है। ऐसी स्थिति को बाढ़ कहते हैं।
प्रश्न 4.
अतिवृष्टि के क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब वर्षा अत्यधिक मात्रा में होती है तो वह बाढ़ के रूप में प्राकृतिक आपदा बन जाती है जिसे अतिवृष्टि कहा जाता है।
प्रश्न 5.
अनावृष्टि किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वर्षा बहुत कम मात्रा में होती है तो वह सूखे के रूप में प्राकृतिक आपदा बन जाती है, ऐसी स्थिति को अनावृष्टि कहते हैं।
प्रश्न 6.
प्राकृतिक संकट क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाओं के घटित हो जाने के बाद मानव समाज को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है वे समस्याएँ संकट मानी जाती हैं।
प्रश्न 7.
मानव ने पर्यावरण को संकट में कैसे डाल दिया है?
उत्तर:
मानव ने प्राकृतिक संसाधनों के अविवेक, पूर्ण दोहन, भूमि उपयोग के स्वरूप को विकृत करके, वनों के विनाश, भूमि क्षरण व जल संकट जैसी समस्या उत्पन्न करके पर्यावरण को संकट में डाल दिया है।
प्रश्न 8.
उत्पत्ति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं को तीन भागों-
- मौसमी आपदाएँ,
- स्थलाकृतिक आपदाएँ व
- जीवजन्य आपदाओं में बाँटा गया है।
प्रश्न 9.
मौसमी आपदाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी आपदाएँ जो मौसम परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं, उन्हें मौसमी आपदाएँ कहते हैं।
प्रश्न 10.
मौसमी आपदाओं में मुख्यतः किन्हें शामिल किया गया है?
उत्तर:
मौसमी आपदाओं में मुख्यत: चक्रवात, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सूखा, बाढ़ व हिमपात जैसी आपदाओं को शामिल किया गया है।
प्रश्न 11.
स्थलाकृतिक आपदाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी आपदाएँ जो स्थलाकृतिक स्वरूप में अचानक परिवर्तन होने से उत्पन्न होती हैं, उन्हें स्थलाकृतिक आपदाएँ कहते हैं। इन आपदाओं में मुख्यत: भूस्खलन, हिमस्खलन, भूकम्प व ज्वालामुखी को शामिल किया गया है।
प्रश्न 12.
जीवजनित आपदाओं से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जिन आपदाओं की उत्पत्ति में जीवों का मुख्य योगदान रहता है, उन्हें जीवजनित आपदाओं के नाम से जाना जाता है। यथा- प्लेग, महामारियाँ, मलेरिया, टिड्डीदल का आक्रमण आदि।
प्रश्न 13.
देश व समाज के चरित्र का पता कैसे चलता है?
उत्तर:
देश व समाज के चरित्र का पता प्राकृतिक आपदा के बाद मानव सेवा में उनके द्वारा किये गये कार्यों से चलता है।
प्रश्न 14.
प्रबन्धन के नियंत्रक घटक कौन से हैं?
उत्तर:
प्रबन्धन के नियंत्रक घटकों में आर्थिक स्थिति, जनसंख्या घनत्व, परिवहन व संचार के साधनों की स्थिति, व्यक्ति की सकारात्मक सोच, सहयोग की भावना, भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रमुख हैं।
प्रश्न 15.
रिक्टर पैमाना किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भूकम्पीय तरंगों को मापने के लिए रिक्टर स्केल का प्रयोग किया जाता है जिसकी खोज चार्ल्स रिक्टर ने की थी। इसी कारण इसे रिक्टर पैमाना कहा जाता है।
प्रश्न 16.
रिक्टर पैमाने पर भूकम्प की तीव्रता कहाँ तक मापी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर पैमाने पर भूकम्प की तीव्रता 1 से 12 रिक्टर तक मापी जाती है।
प्रश्न 17.
सामान्य भूकम्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन भूकम्पों की तीव्रता सीस्मोग्राफ पर 5 रिक्टर स्केल से कम होती है। उन भूकम्पों को सामान्य भूकम्प कहते हैं। इनसे किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है।
प्रश्न 18.
दक्षिणी-पूर्वी एशिया में आये भूकम्प का मूल कारण क्या था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने से दक्षिण-पूर्वी एशिया में भूकम्प आया था।
प्रश्न 19.
भूकम्पों की उत्पत्ति हेतु उत्तरदायी मानवीय कारण कौन-से हैं?
उत्तर:
खन्निजों का अविवेकपूर्ण दोहन, बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण, आणविक विस्फोट, मानव के रचनात्मक कार्यों का बढ़ता बोझ व खनन के समय किये जाने वाले विस्फोट भूकम्पों की उत्पत्ति के मानवीय कारण हैं।
प्रश्न 20.
भारत के किस क्षेत्र में सबसे कम भूकम्प आते हैं व क्यों?
उत्तर:
भारत में दक्षिण के पठार में सबसे कम भूकम्प आते हैं क्योंकि भारत का यह भाग विवर्तनिकी दृष्टिकोण से प्रायः एक स्थिर भूखण्ड है।
प्रश्न 21.
भारत को किन-किन भूकम्पीय क्षेत्रों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भारत को भूकम्पीय दृष्टिकोण से अधिकतम क्षति संभावित क्षेत्र, अधिक क्षति संभावित क्षेत्र, मध्यवर्ती क्षति सम्भावित क्षेत्र, अल्प क्षति सम्भावित क्षेत्र तथा अति अल्प क्षति संभावित क्षेत्रों में बाँटा गया है।
प्रश्न 22.
राजस्थान का पश्चिमी भाग किस भूकम्प पेटी में आता है?
उत्तर:
राजस्थान का पश्चिमी भाग मध्यमवर्ती क्षति वाली भूकम्पीय पेटी में आता है।
प्रश्न 23.
भूकम्प से हृदय क्यों दहल जाता है?
उत्तर:
भूकम्प एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो कुछ ही क्षणों में विनाशकारी परिवर्तनों का ऐसा भयंकर स्वरूप मानव समाज के सामने उपस्थित करती है जिससे हृदय दहल जाता है।
प्रश्न 24.
भूस्खलन के प्राकृतिक कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
भूस्खलन के प्राकृतिक कारकों में चट्टानों की संरचना, भूमि का ढाल, चट्टानों में वलन व भ्रंशन, वर्षा की मात्रा में वनस्पति के आवरण तथा नदी की अपरदन शक्ति को शामिल किया गया है।
प्रश्न 25.
पर्वतीय क्षेत्रों में नदी की अपरदन शक्ति अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल की मात्रा अधिक पाई जाती है। अधिक ढाल के कारण नदियों का जल तीव्र गति से बहता है जिसके कारण अधिक अपरदन होता है।
प्रश्न 26.
भूस्खलन के पश्चात सर्वप्रथम मार्गों को खोला जाता है, क्यों?
उत्तर:
भूस्खलन के पश्चात मार्गों को सर्वप्रथम इसलिये खोला जाता है ताकि आवागमन के अवरुद्ध होने से जो संकट खड़े हुए। हैं, उन्हें दूर किया जा सके।
प्रश्न 27.
भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में परिवहन मार्गों का निर्माण करते समय क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में परिवहन मार्गों का निर्माण करते समय मार्गों के दोनों ओर जल निकास की व्यवस्था का उचित ध्यान रखना चाहिए। साथ ही, मार्ग के दोनों ओर 45° कोण तक के मलवे को निर्माण के दौरान ही हटा देना चाहिए या मजबूत दीवार बनाकर चट्टानों को सहारा देना चाहिए।
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I
प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदा व संकट शब्द का क्या अर्थ होता है?
उत्तर:
आपदा शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के अनुसार Dis व Aster नामक शब्दों से हुई है जिसमें Dis का अर्थ है बुरा तथा Aster का अर्थ सितारे से है। अत: Disaster का अर्थ है सितारे बुरे होना। इस प्रकार आपदा शब्द की उत्पत्ति हुई है इसे ही संकट (Hazards) भी कहा जाता है। भारत में प्राकृतिक आपदाओं को प्रकृति का प्रकोप भी कहते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के कारण ही संकट व समस्याओं की स्थिति बनती है।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाओं के प्रबन्धन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रबन्धन के वे कार्य हैं जो आपदा व संकट के निवारण हेतु किये जाते हैं। प्राकृतिक आपदाओं से जो संकट की घड़ी आती है उसका सामना करने के लिए देश व समाज को प्रबन्धन के क्षेत्र में बहुत जिम्मेदारी व ईमानदारी से हिस्सा लेना होता है। संकट से राहत पाने के लिए प्रत्येक स्तर पर जो जिम्मेदारियाँ निर्धारित की जाती हैं उनके समयबद्ध कर्तव्य पालन से ही प्राकृतिक आपदाओं का प्रबन्धन हो पाता है। प्राकृतिक आपदाओं के प्रबन्धन हेतु देश व समाज का चरित्र सर्वोत्तम होना चाहिए।
प्रश्न 3.
भूकम्प को एक संकट की संज्ञा दी जाती है, क्यों?
अथवा
भूकम्प बहुत बड़ा संकट होता है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो कुछ ही क्षणों में विनाशकारी परिवर्तनों का ऐसा स्वरूप मानव समाज के सम्मुख उपस्थित करता है जिससे मानवीय हृदय दहलने को मजबूर हो जाता है। भूकम्प के आने से हजारों जाने काल की ग्रास बन जाती हैं, भवन रेत की ढेर की तरह भरभरा कर गिर जाते हैं, आवागमन के मार्ग टूट जाते है। नहरों, पुलों व बाँधों को क्षति पहुँचती है। पृथ्वी सतह पर दरारें पड़ जाती हैं। भूकम्प से भूस्खलन होने पर नदियों के मार्ग बदल जाते हैं जिनसे अस्थाई झीलों का निर्माण हो जाता है। तथा इनके टूटने से बाढ़ आती है। इन सभी कारणों से भूकम्प एक भयावह संकट बन जाता है।
प्रश्न 4.
भूकम्प अपनी विनाश लीला के लिए जाने जाते हैं। कैसे?
अथवा
भूकम्प अधिकांशत विनाशकारी होते हैं। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प अपने आप में ही एक भयावह प्रक्रिया है जिससे अपार जन-धन की हानि होती है। अपनी विनाशकारी लीला से ये सबको तबाह कर देते हैं। 11 अक्टूबर 1737 को कोलकाता में आए भूकम्प से भूस्खलन के कारण हजारों व्यक्ति मारे गये। 11 दिसम्बर 1967 को कोयना में आए भूकम्प से बाँध टूटने के कारण मोरवी नगर नष्ट हो गया। गुजरात में आया भुज का भूकम्प लाखों लोगों को काल का ग्रास बना गया। दक्षिणी-पूर्वी एशिया में जावा के पास आए भूकम्प से, सुनामी लहरों के कारण हजारों किमी दूर भारत के तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक विनाश हुआ। ये सभी भूकम्पों की विनाशकारी लीला के स्वरूप को दर्शाते हैं।
प्रश्न 5.
भूकम्प रूपी आपदा के दौरान भारतीयों में एकता दृष्टिगत हुई है, कैसे?
अथवा
भूकम्प आपदा में आपसी सहयोग सबसे अहम कारक सिद्ध होता है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्पीय आपदा एक अत्यंत विनाशकारी स्थिति होती है। ऐसी स्थिति में आपसी सहयोग व सामंजस्य अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है। भारतीयों को ऐसी परिस्थितियों में जाति, धर्म व सम्प्रदाय के बन्धनों से मुक्त होकर मानवीय संवेदना के कारण जो मुक्त हस्त से तन-मन-धन से सहायता करने की भावना मिलती है वह सम्पूर्ण विश्व में अद्वितीय है। इससे मानवीय सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं। भारतीय नागरिकों, यहाँ की स्वयंसेवी संस्थाओं, संगठनों, विद्यार्थियों की अपनत्व व सहयोग की भावना, विपरीत स्थिति में भी एक त्वरित समाधान सिद्ध हुई है।
प्रश्न 6.
भारत में भूस्खलन प्रवृत्त क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भूस्खलन भारत के कुछ गिने-चुने क्षेत्रों में मिलता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में भूस्खलन के जो क्षेत्र मिलते हैं उनमें मुख्यत: हिमालय क्षेत्र, उसके बाद पश्चिमी घाट व कोंकण तट शामिल हैं। भारत का सर्वाधिक भूस्खलन हिमालय क्षेत्र में होता है। तत्पश्चात पश्चिमी घाट में नदियों के प्रवाहन क्षेत्रों ने भूस्खलन को बढ़ावा दिया है। पूर्वोत्तर भारत एवं जम्मू-कश्मीर में नई सड़कों के निर्माण वाले क्षेत्रों में भी भूस्खलन की प्रक्रिया अधिक सम्पन्न मिलती है। समुद्री किनारों पर सागरीय लहरों के अपरदन के कारण भी भूस्खलन होते हैं जिसके प्रभाव कोंकण तट पर देखने को मिलते हैं।
प्रश्न 7.
भूस्खलन से बचाव कैसे किया जा सकता है?
अथवा
भूस्खलन के सम्भावित उपाय बताइये।
उत्तर:
भूस्खलन की आपदा से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जाने चाहिए-
- जल निकास की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
- गाँवों की बसावट भूस्खलन से निरापद क्षेत्रों में की जानी चाहिए।
- यातायात मार्गों पर भूस्खलन क्षेत्र के चेतावनी संकेतु लगाये जाने चाहिए।
- भूस्खलन सम्भावित क्षेत्रों में वर्षा प्रारम्भ होने पर वाहन को एक किनारे पर रोक देना चाहिए।
- पर्वतीय क्षेत्रों में नदी तटों पर मकान नहीं बनाने चाहिए।
- भूस्खलन से मार्ग कने पर फंसे हुए व्यक्तियों की दिल से हर सम्भव मदद करनी चाहिए।
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II
प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति के कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति हेतु उत्तरदायी कारकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति के लिए अनेक कारक उत्तरदायी होते हैं। प्रायः किसी एक आपदा हेतु भी अनेक कारक संयुक्त रूप से उत्तरदायी हो सकते हैं। पृथ्वी की आन्तरिक एवं बाह्य शक्तियों का प्रभाव कुछ आपदाओं को सीधे प्रभावित करता है। भूकम्प व ज्वालामुखी धरातल की अन्तर्जात शक्तियों से उत्पन्न होने वाली आपदाएँ हैं। मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण विदोहन किया है। बढ़ती जनसंख्या की माँगों की पूर्ति हेतु भूमि उपयोग के स्वरूप को विकृत किया है। जिसके कारण वन विनाश, भूमि का क्षरण व जल संकट जैसी समस्याओं ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है। जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग, अतिवृष्टि व अनावृष्टि जैसी आपदाएँ भी उत्पन्न हुई हैं। भूस्खलन व समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी उत्पन्न हो रही हैं। मानव का उपभोक्तावादी दृष्टिकोण अंधाधुंध विकास के लिए प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहा है जिनसे अनेक प्राकृतिक आपदाओं को अप्रत्यक्ष रूप से आमंत्रण मिल रहा है।
प्रश्न 2.
उत्पत्ति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक आपदाएँ उत्पत्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं को निम्न भागों में बाँटा गया है-
- मौसमी आपदाएँ,
- स्थलाकृतिक आपदाएँ,
- ज़ीवों द्वारा उत्पन्न आपदाएँ।
1. मौसमी आपदाएँ – इनमें वे प्राकृतिक आपदाएँ शामिल की जाती हैं जो मौसमी परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं। इन आपदाओं में मुख्यतः चक्रवात, अतिवृष्टि, अनावृष्टि व हिमपात आदि को शामिल किया जाता है।
2. स्थलाकृतिक आपदाएँ – इनमें वे प्राकृतिक आपदाएँ सम्मिलित की जाती हैं जो स्थलाकृतिक स्वरूप में अचानक परिवर्तन होने से उत्पन्न होती हैं। जैसे- भूस्खलन, हिमस्खलन, भूकम्प व ज्वालामुखी आदि।
3. जीवों द्वारा उत्पन्न आपदाएँ – इनमें वे प्राकृतिक आपदाएँ शामिले की जाती हैं जो जीवों व जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होती हैं; जैसे- टिड्डी दल का आक्रमण, महामारियाँ, मृत पशु, प्लेग, मलेरिया आदि।
प्रश्न 3.
भारत के भूकम्प प्रवृत क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में भूकम्पों की स्थिति भिन्नताओं को दर्शाती है। अनेक भूकम्पों के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत के सर्वाधिक भूकम्प उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र व उसकी तलहटी में आए हैं। हिमालय नवीन मोड़दार पर्वत हैं जो अभी भी उत्थान की अवस्था में है। अत: इस क्षेत्र में सर्वाधिक भूकम्प आते हैं। उत्तरी मैदानी क्षेत्र में कम शक्ति के भूकम्प आते हैं व उनकी संख्या भी अपेक्षाकृत कम है। प्रायद्वीपीय पठार को स्थिर भू-भाग माना जाता रहा है लेकिन कोयना व लातूर के भूकम्पों ने इस क्षेत्र को भूकम्प प्रभावित क्षेत्र मानने को विवश कर दिया है। भारतीय प्लेट में हो रहे खिसकाव के कारण भी भूकम्पों की पुनरावृत्ति होती रहती है।
प्रश्न 4.
भूस्खलन एक संकट है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूस्खलन का संकट एक हानिकारक संकट है। कैसे?
उत्तर:
भूस्खलन एक विनाशकारी आपदा है। जब कभी भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न होती है तो अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इसके कारण कहीं नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तो कहीं पर आवागमन के मार्गों को यह अवरुद्ध कर देता है। मार्गों की यह अवरुद्धता जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। माँग व पूर्ति का सन्तुलन बिगड़ जाता है। जब कभी भूस्खलन आबादी वाले क्षेत्रों में होता है तो उससे जन व धन दोनों की हानि होती है। लोग मकान के मलवे के ढेर में दब जाते हैं। सड़कें टूट जाती हैं। कई बार भूस्खलनों से नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तो बाढ़ से जन-धन की हानि होती है। 1971 में अलकनंदा नदी पर निर्मित अस्थाई झील के टूटने से बेलनाकूची गाँव पूरा का पूरा बह गया था। रतिघाट में हुए भूस्खलन से नैनीताल क्षेत्र के गाँव बाहरी दुनिया से अलग हो गये थे। नीलगिरी के भूस्खलन में भी जन-धन की हानि हुई थी। इस प्रकार भूस्खलन मानव के लिए एक संकट के समान है।
RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत को भूकम्पीय क्षति के आधार किन भागों में वर्गीकृत किया गया है?
अथवा
भूकम्पीय क्षति की सम्भावना के आधार पर भारत का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
भारतीय भूकम्पीय पेटी का क्षेत्रवार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाली राष्ट्र है जिसके कारण इसकी संरचना व भूवैन्यासिक स्वरूप भिन्नताओं को दर्शाता है। इस विविधता के कारण ही भूकम्पीय क्षति की सम्भावनाएँ भी भूगर्भिक स्वरूप के अनुसार भिन्न-भिन्न मिलती हैं। भूकम्पीय आधार पर भारत को मुख्यत: निम्न पेटियों में बाँटा गया है-
- अधिकतम क्षति सम्भावित पेटी
- अधिक क्षति सम्भावित पेटी
- मध्यमवर्ती क्षति सम्भावित पेटी
- अल्प क्षति सम्भावित पेटी
- अति अल्प क्षति सम्भावित पेटी
1. अधिकतम क्षति सम्भावित पेटी – यह भूकम्पीय पेटी सबसे सक्रिय पेटी है जिसमें सर्वाधिक भूकम्प आते हैं। इस पेटी में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र से सम्बन्धित राज्य शामिल हैं जिनमें मुख्यत: अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, असम, बिहार के उत्तरी भाग, गुजरात के भुज क्षेत्र, हिमाचल के कांगड़ा क्षेत्र तथा जम्मू-कश्मीर के मध्य-पश्चिमी भाग को शामिल किया जाता है।
2. अधिक क्षति सम्भावित पेटी – इस भूकम्पीय पेटी को सक्रियता के दृष्टिकोण से दूसरी पेटी माना गया है जो सिक्किम, अधिकांश बिहार, उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग, उत्तरी-पश्चिमी भाग, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तरी-पूर्वी पंजाब व हरियाणा, गुजरात में कच्छ की खाड़ी का तटीय क्षेत्र व जम्मू-कश्मीर को शामिल किया गया है।
3. मध्यमवर्ती क्षति सम्भावित पेटी-इस भूकम्पीय पेटी का विस्तार मुख्यत: राजस्थान के पश्चिमी-दक्षिणी भाग, मध्य प्रदेश में नर्मदा व ताप्ती नदियों के घाटी क्षेत्र, दक्षिणी-पूर्वी गुजरात, महाराष्ट्र का पश्चिमी भाग, झारखंड, आन्ध्र प्रदेश व तेलंगाना के कुछ क्षेत्र, पश्चिम बंगाल एवं पश्चिमी घाट क्षेत्र को शामिल किया गया है।
4. अल्प क्षति सम्भावित पेटी – इस भूकम्पीय पेटी का विस्तार मुख्यतः पठारी भागों के सीमांकन के रूप में मिलता है। यह पेटी राजस्थान में अरावली पर्वतीय क्षेत्र, घग्घर के मैदान, उड़ीसा के उत्तरी भाग, वर्धा घाटी क्षेत्र, मालवा के पठार के चारों ओर, तमिलनाडु, कर्नाटक के लम्बवत् मध्य भाग, पश्चिमी घाट के पूर्वी भागों में मुख्य रूप से मिलती है।
5. अति अल्प क्षति सम्भावित क्षेत्र – यह भारत की सबसे कम भूकम्प प्रभावित पेटी है जो दक्षिण के पठारी क्षेत्र के मध्यवर्ती भाग में फैली हुई है। इस पेटी में मुख्यतः चम्बल, बनास, काली, सिंघ, बेतवा नदी प्रवाहित क्षेत्र, मध्य प्रदेश के उत्तरी-पश्चिमी भाग, उड़ीसा का महानदी घाटी क्षेत्र तथा पेनगंगा, भीमा, कृष्णा नदियों के घाटी क्षेत्र को शामिल किया गया है। भारत की इन भूकम्पीय पेटियों को निम्न चित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
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