Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 अपरदन के कारक
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
वह भूदृश्य जो नदी के निक्षेपण से बनता है-
(अ) गार्ज
(ब) जलोढ़ पंख
(स) जल गर्तिका
(द) जल प्रपात
उत्तर:
(ब) जलोढ़ पंख
प्रश्न 2.
वह भूदृश्य जो लहरों के अपरदन से बनता है-
(अ) भृगु
(ब) डेल्टा
(स) छत्रक शिला
(द) डोलाइन
उत्तर:
(अ) भृगु
प्रश्न 3.
पवन द्वारा जो अपरदनात्मक स्थलाकृति नहीं है, वह है-
(अ) स्तूप
(ब) छत्रक शिला
(स) इन्सेल बंगे
(द) ज्यूगेन
उत्तर:
(अ) स्तूप
प्रश्न 4.
कौन-सा भूरूप हिमानी अपरदन से निर्मित नहीं है?
(अ) फियोर्ड
(ब) हिम सोपान
(स) हिम-शृंग
(द) एस्कर
उत्तर:
(द) एस्कर
प्रश्न 5.
मरुप्रदेश में लहरदार उभार को कहते हैं
(अ) बालू का कगार,
(ब) उर्मिका
(स) बरखान
(द) लोयस
उत्तर:
(ब) उर्मिका
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
जलोढ़ शंकु कैसे बनते हैं?
उत्तर:
यदि नदी के पर्वतों से मैदान में प्रवेश करते समय पर्वतीय ढाल पर शंकु के आकार में मलबे का जमाव होता है तो उसे जलोढ़ शंकु कहते हैं।
प्रश्न 7.
गार्ज किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रवाहित जल के द्वारा निर्मित खड़े पार्श्व वाली संकरी एवं गहरी घाटी को गार्ज कहा जाता है।
प्रश्न 8.
सर्क में जल भरने से बनने वाली झील का नाम बताओ।
उत्तर:
हिमानी जात क्षेत्रों में जब सर्क रूपी बेसिन में जल भर जाता है तो उससे निर्मित झील को टॉर्न/टार्न झील कहते हैं।
प्रश्न 9.
अण्डों की टोकरी स्थलाकृति का नाम बताइये।
उत्तर:
हिमानी क्षेत्रों में हिमानी के निक्षेपण की प्रक्रिया के दौरान गोलाश्म मृतिका के निक्षेपण से अण्डों की टोकरी के समान जो स्थलाकृति बनती है उसे डुमलिन कहते हैं।
प्रश्न 10.
यारडंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में हवा के द्वारा कोमल व कठोर शैलों को जब लम्बवत् परतों से बने नुकीले भू-आकार में अपरदित कर दिया जाता है तो ऐसी स्थलाकृति यारडंग कहलाती है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
गोखुर झील कैसे बनती है?
उत्तर:
वृद्धावस्था में नदी प्रवाह के दौरान मोड़ों का निर्माण करती है। इस प्रक्रिया के दौरान बहने वाली धारा को अधिक चक्कर काटना पड़ता है। यदि कटान कार्य नदी मोड़ की गर्दन से होकर सीघा मार्ग बना ले तो वह पूर्व निर्मित छल्ले को मुख्य धारा से अलग कर देती है। इस समय धारा नया मार्ग ग्रहण कर लेती है। मुख्य धारा से अलग हुए ऐसे छल्ले को गोखुरनुमा झील कहते हैं।
प्रश्न 12.
लैगून कैसे बनती है?
उत्तर:
जब रोधिका का विस्तार खाड़ी या लघु निवेशिका के सामने इस तरह होता है कि तट तथा रोधिका के बीच सागरीय जल बंद हो जाता है तो उसे लैगून कहते हैं। लैगून एक लम्बी संकीर्ण खारे जल की झील होती है। यह समुद्री लहरों से सम्बन्धित तट को निर्माण के बाद भी सुरक्षा प्रदान करती है। रोधिकाओं व पुलिन के मध्य मिलने वाली ऐसी झीलें ही लैगून झील कहलाती हैं।
प्रश्न 13.
छत्रक शिला कैसे बनती है?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में सामान्य धरातल से ऊपर उठी हुई शैलें वायु के निरन्तर अपरदन के द्वारा खड़ी चट्टान के ऊपरी भाग को कम काटती हैं, क्योंकि प्रमुख अपरदन की सामग्री सतह से कुछ ही फीट ऊपर चलती है और नीचे के भू-पटल के पास अधिक .. कटान होता है। इस प्रक्रिया के कारण मशरूमनुमा या सांप की छतरी के समान जो आकृति बनती है वह छत्रक शिला कहलाती है, इस प्रकार की स्थलाकृतियों पर मौसमी दशाओं- हवाओं, वर्षा, तापमान आदि का प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 14.
अंधी घाटी क्या है?
उत्तर:
जिस स्थान पर नदी का जल सतह के नीचे चला जाता है, उसके आगे सतह पर नदी की घाटी शुष्क बनी रहती है। इसका जल निम्नवर्ती भाग में बहने लगता है। इसके ऊपर वाले शुष्क भाग को नदी तल कहते हैं। जब नदी एक विलयन छिद्र पर समाप्त हो जाती है तथा लम्बे समय तक ऐसी स्थिति बनी रहती है तो नदी अपनी घाटी को काटै मैदान से अधिक नीचा कर लेती है। इस अवस्था में नदी का अन्त एक विलयन छिद्र पर होता हैं ऐसी घाटी को अंधी घाटी कहते हैं।
प्रश्न 15.
सर्क किसे कहते हैं?
उत्तर:
हिमानीजात क्षेत्रों में पर्वतों के ढलानों पर बर्फ में होने वाले अपरदन से इस प्रकार के स्वरूप बनते हैं। सामान्यतः हिमनद की घाटी के शीर्ष पर एक अर्द्ध वृत्ताकार/अर्द्ध चन्द्राकार या आरामदायक कुर्सी के समान जो आकृति विकसित होती है उसे सर्क या हिमगह्वर कहते हैं। इनसे निकला हुआ हिम प्रायः इनके सम्मुख मिलने वाली घाटियों में एकत्रित होता है। इनमें ऊपर का ढाल तीव्र, तलहटी पीछे की ओर गहरी मुहाने की ओर उठी हुई होती है। पीछे की दीवार अपरदन के कारण निरन्तर पीछे हटती रहती है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
नदी निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नदी के रूप में बहते हुए जल को प्रवाहित जल कहा जाता है। यह बहता हुआ जल घाटी के किनारों एवं उसकी तली को खरोंचता व कुरेदता हुआ शैल सामग्री को अलग कर अपने साथ परिवहित करता है। परिवहित होती हुई शैल सामग्री अन्यत्र स्थान पर निक्षेपित भी की जाती है। इस प्रकार प्रवाहित जल में अपघर्षण, सन्निघर्षण व प्रवाहन तीनों प्रक्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। इनसे प्रवाहित क्षेत्र में कटाव व जमाव की क्रियाओं के सम्पन्न होने से दो प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है-
- अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ,
- निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ।
इन स्थलाकृतियों को निम्न तालिका के माध्यम से दर्शाया गया है-
(i) अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) गार्ज – यह खड़े पार्श्व वाली संकरी एवं गहरी घाटी होती है।
(ब) केनियन – केनियन गार्ज की अपेक्षा अधिक तंग व गहरी घाटी है।
(स) जलप्रपात – ऊर्ध्वाधर ढाल पर जल के तीव्र गति से गिरने पर जलप्रपात निर्मित होता है।
(द) क्षिप्रिकाएं – नदी मार्ग के वे भाग जहाँ ऊपर उठी कठोर शैलों के कारण नदी उछलती हुई बहती है।
(य) जल गर्तिका – यह नदी की तली में जल के वेग की छेदन क्रिया से निर्मित गर्त होते हैं।
(र) संरचनात्मक पीठिकाएं – यह कठोर व कोमल शैलों की क्रमशः क्षैतिज परतों से घाटी के पार्श्व में बनी सोपान जैसी आकृतियाँ हैं।
(व) नदी विसर्प – यह नदी के अत्यधिक घुमावदार मोड़ होते हैं जहाँ नदी सांप की भांति बहती हुई लगती है।
(ङ) समप्राय मैदान – यह नदी द्वारा निर्मित आकृति विहीन कम ढाल वाला मैदान होता है।
(ii) निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ।
(अ) जलोढ़ शंकु – यह नदी के पर्वतों से मैदान में प्रवेश करते समय पर्वतीय ढाल पर शंकु के आकार में मलबे का जमाव होता है।
(ब) जलोढ़ पंख – यह नदी के पर्वत से मैदान में प्रवेश करते समय मलबे के पंखेनुमा आकार में जमाव होते हैं।
(स) डेल्टा – नदी के मुहाने पर जलोढ़ के निक्षेपण से निर्मित त्रिभुजाकार आकृति वाला क्षेत्र डेल्टा कहलाता है।
(द) प्राकृतिक तटबंध – ये पानी के उतर जाने के पश्चात् नदी के दोनों ओर निर्मित रेतीली मिट्टी की दीवारें होती हैं।
(थ) बाढ़ के मैदान – नदी का वह भाग जहाँ नदी बाढ़ के समय जलोढ़ को निक्षेपण करती है। बाढ़ का मैदान कहलाता है।
(र) गोखुर झील – जब नदी विसर्पित मार्ग छोड़कर सीधी बहती है एवं उसके वक्राकार भाग जलपूर्ण होकर गोखुरनुमा छाड़न झील का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 17.
हिमानी निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उच्च अक्षांशीय भागों या ऊँचे उच्चावचीय क्षेत्रों में तापमान की कमी के कारण हिमाच्छादन का स्वरूप देखने को मिलता है। ऐसे हिमयुक्त क्षेत्रों में हिमनदों का मिलना एक सामान्य दशा है। हिमनद या हिमानी हिम की ऐसी राशि है जो धरातल पर संचय के स्थान से धीरे-धीरे खिसकती है। हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानी उत्पाटन, अपघर्षण व सन्निघर्षण करते हुए शैलों का अपरदन करती है। एवं विभिन्न रूपों में हिमोढ़ का निक्षेपण करती है। इन प्रक्रियाओं से हिमक्षेत्रों में दो प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है-
(i) अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ,
(ii) निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ। हिमानी निर्मित इन स्थलाकृतियों को निम्न तालिका के माध्यम से दर्शाया गया है-
इन दोनों प्रकार की स्थलाकृतियों को निम्नानुसार वर्णित किया गया हैअपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) यू-आकार की घाटी – हिमानी नदी निर्मित घाटियों को घिसकर खड़े पावं व चौड़े सपाट तल वाली यू-आकार की घाटी का निर्माण करती है।
(ब) लटकती घाटी – यू आकार की मुख्य गहरी घाटी में उसकी सहायक हिमानी की घाटी ऊपर लटकती प्रतीत होती है।
(स) हिम गहवर – यह हिमानी द्वारा आराम कुर्सी की आकृति से निर्मित गर्त होता है।
(द) टार्न – यह सर्क रूपी बेसिन में जल भरने से निर्मित झील होती है।
(य) नूनाटक – हिम क्षेत्रों में उभरे टीले नूनाटक कहलाते हैं।
(र) कॉल – यह दो आसन्न सर्क के मिलने से निर्मित आर-पार मार्ग होता है।
(ल) श्रृंग व पुच्छ – हिमानी क्षेत्रों में ऐसी शिलाएं जिनके हिम सम्मुख ढाल तीव्र व ऊबड़-खाबड़ व विमुख ढाल सपाट व मंद होते हैं, श्रृंग व पुच्छ कहलाते हैं।
(व) मेषशिला – यह हिमानी अपरदित भेड़ की पीठ के समान शिला होती है।
(श) फियोर्ड – यह हिमानी निर्मित घाटियों के जलमग्न होने से निर्मित कटे-कटे तट होते हैं।
इन्हें अग्र चित्रों से दर्शाया गया है-
(ii) निक्षेफ्णात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) हिमोढ़-हिमानी द्वारा निक्षिप्त कंकड़ पत्थर व गोलाश्म के जमाव हिमोढ़ कहलाते हैं, जो हिमानी के किनारों, उसके अन्तिम भाग या तल पर निक्षिप्त होते हैं।
(ब) एस्कर-यह हिमानी जलोढ़क के जमाव से निर्मित लम्बे, संकरे एवं लहरदार कटक होते हैं।
(स) केम-यह हिमानी जलोढ़क से निर्मित तीव्र ढाल युक्त टीले होते हैं।
(द) केटील – ये हिमखण्डों के पिघलने से निर्मित गर्त होते हैं।
(य) ड्रमलिन – गोलाश्म मृतिका के निक्षेपण से अण्डों की टोकरी के समान आकृति डुमलिन कहलाती है।
(र) हिमानी अवक्षेप मैदान-यह हिमजल के प्रवाह से मलबे के दूर तक फैलने से निर्मित पंखे के आकार वाले मैदान होते हैं।
प्रश्न 18.
अपरदन को समझाते उसके प्रमुख कारकों से निर्मित स्थलाकृतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपरदन एक गतिशील प्रक्रम है। पृथ्वी तल पर उत्पन्न बहिर्जात शक्तियों में शामिल एक परिवहनकारी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उत्थित भूखण्ड़ अन्ततः एक समतल मैदानी भू-भाग में परिवर्तित हो जाता है। अपरदन शब्द लैटिन भाषा के Erodere शब्द से बना है जिसका तात्पर्य घिसना या कुतरना है।
अपरदन के कारक – अपदरन की क्रिया में भाग लेने वाली शक्तियों तथा नदी सागरीय तरंगों, पवनों, भूमिगत जल एवं हिमानी को अपरदन के कारक कहा जाता है। इन सभी कारकों के द्वारा ही किसी भू-भाग का अन्तर्जात बलों द्वारा उत्पन्न उच्चावचीय प्रारूपों का समतलीकरण किया जाता है। अपरदन में सभी कारकों को समान रूप से सक्रिय रहना आवश्यक नहीं होता है। अपरदन के इन सभी कारकों के द्वारा स्थलाकृतियों का वर्णन निम्नानुसार है-
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट हो जाता है कि अपरदन के मुख्यतः पाँच कारक हैं। इन सभी पाँचों कारकों से मुख्यत: दो प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है –
(i) अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ,
(ii) निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ।
इन दोनों प्रकार की स्थलाकृतियों में से अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ कटाव से जबकि निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ जमाव से बनती हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अपरदन है एक-
(अ) गतिशील प्रक्रिया
(ब) स्थैतिक प्रक्रिया
(स) चक्रीय प्रक्रिया
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) गतिशील प्रक्रिया
प्रश्न 2.
निम्न में से जो नदी निर्मित स्थलाकृति है, वह है-
(अ) एस्कर
(ब) भृगु
(स) यारडंग
(द) गोखुर झील
उत्तर:
(द) गोखुर झील
प्रश्न 3.
नदी निर्मित अपरदनात्मक स्थलाकृति है-
(अ) केम
(ब) केनियन
(स) लूप
(द) ज्यूजेन
उत्तर:
(ब) केनियन
प्रश्न 4.
मेहराब है-
(अ) सागरीय लहर निर्मित स्थलाकृति
(ब) वायु निर्मित स्थलाकृति
(स) हिमानी जात स्थलाकृति
(द) नदी जात स्थलाकृति
उत्तर:
(अ) सागरीय लहर निर्मित स्थलाकृति
प्रश्न 5.
सागरीय लहरजात निक्षेपणात्मक स्थलाकृति है-
(अ) गुहा स्तम्भ
(ब) वातगर्त
(स) टोम्बोलो
(द) जलप्रपात
उत्तर:
(स) टोम्बोलो
प्रश्न 6.
पवनकृत स्थलाकृति है-
(अ) कन्दरा
(ब) लूप
(स) तिपहल शिला
(द) टेरा रोसा
उत्तर:
(स) तिपहल शिला
प्रश्न 7.
हिमानीकृत स्थलाकृति है-
(अ) भूस्तम्भ
(ब) लेपिज
(स) नोडुल्स
(द) सर्क
उत्तर:
(द) सर्क
प्रश्न 8.
भूमिगत जल निर्मित स्थलाकृति नहीं है-
(अ) युवाला
(ब) आश्चुताश्म
(स) छत्रक शिला
(द) विलय रंध्र
उत्तर:
(स) छत्रक शिला
प्रश्न 9.
चूना प्रदेशों में घुलन क्रिया से निर्मित लाल व भूरी मिट्टियों को कहते हैं-
(अ) लेपिज
(ब) टेरा रोसा
(स) सकुण्ड
(द) ड्रिपस्टोन
उत्तर:
(ब) टेरा रोसा
प्रश्न 10.
आश्चुताश्म व निश्चुताश्म के मिलने से जो स्थलाकृति बनती है, वह है-
(अ) गुहा स्तम्भ
(ब) नोडुल्स
(स) राजकुण्ड
(द) आश्चुताश्म
उत्तर:
(अ) गुहा स्तम्भ
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए-
(क)
स्तम्भ (अ) (स्थलाकृति) |
स्तम्भ (ब) (स्थलाकृति का कारक) |
(i) द्वीपाभगिरी | (अ) भूमिगत जलजात |
(ii) लघुनिवेशिका | (ब) वायुजात |
(iii) क्षिप्रिको | (स) हिमानी जात |
(iv) डुमलिन | (द) सागरीय लहरजात |
(v) निश्चुताश्म | (य) नदी जात |
उत्तर:
(i) ब, (ii) दे, (iii) य, (iv) स, (v) अ।
(ख)
स्तम्भ (अ) (स्थलाकृति) |
स्तम्भ (ब) (स्थलाकृति का कारक) |
(i) नदी विसर्प | (अ) वायु जात |
(ii) लूप | (ब) भूमिगत जलजात |
(iii) अश्मिक जालिका | (स) प्रवाहित जलजात |
(iv) डोलाइन | (द) हिमानी जात |
(v) पैटरनास्टर झील | (य) सागरीय लहर जात |
उत्तर:
(i) स, (ii) य, (iii) अ, (iv) ब, (v) द।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी सतह पर स्थलाकृतियों का निर्माण किसके द्वारा होता है?
उत्तर:
पृथ्वी सतह पर स्थलाकृतियों का निर्माण आन्तरिक एवं बाहरी शक्तियों की पारस्परिक क्रिया के कारण होता है।
प्रश्न 2.
अनावृतिकरण का कार्य किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
बाहरी शक्तियों के द्वारा अपक्षय, अपरदन व सामूहिक स्थानान्तरण के रूप में अनावृतिकरण का कार्य किया जाता है।
प्रश्न 3.
अपरदन के कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अपरदन हेतु उत्तरदायी कारकों में नदी, सागरीय तरंगें, पवनें हिमानी एवं भूमिगत जल को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 4.
नदी जन्य अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
नदी जन्य अपरदनात्मक स्थलाकृतियों में मुख्यतः गार्ज, केनियन, जलप्रपात, क्षिप्रिकाओं, जल गर्तिकाओं, संरचनात्मक पीठिकाओं, नदी विसर्प व समप्राय मैदान को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 5.
केनियन किसे कहते हैं?
उत्तर:
नदी जन्य जल के द्वारा निर्मित अत्यधिक गहरी व तंग घाटी जो गार्ज से अधिक संकरी व गहरी होती है उसे केनियन कहते हैं।
प्रश्न 6.
जलप्रपात से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नदी के रूप में बहते हुए जल का अकस्मात ऊर्ध्वाधर ढाल पर तीव्र गति से गिरने की प्रक्रिया को जलप्रपात कहते हैं।
प्रश्न 7.
नदी विसर्प क्या होता है?
उत्तर:
नदी अपने प्रवाहित मार्ग में धरातलीय ढाल के अनुसार घुमावदार स्वरूप में बहती है। नदी के द्वारा इस प्रकार घुमावदार या साँप की भाँति बहना नदी विसर्प कहलाता है।
प्रश्न 8.
पेनीप्लेन क्या होता है?
उत्तर:
अन्तर्जात प्रक्रमों के द्वारा उत्पन्न स्थलरूपों का हिमनद, नदी, वायु, भूमिगतजल व सागरीय लहरों द्वारा उत्पन्न अन्ततः निम्न भू-भाग में बदल जाने से जिस समतल स्वरूप का निर्माण होता है, उसे पेनीप्लेन कहते हैं।
प्रश्न 9.
नदी से निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नदी निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों में जलोढ़ शंकु, जलोढ़ पंख, डेल्टा, प्राकृतिक तटबंध, बाढ़ के मैदान व गोखुर झील को शामिल किया जाता हैं।
प्रश्न 10.
डेल्टा किसे कहते हैं?
उत्तर:
नदी के मुहाने पर जलोढ़क के निक्षेपण से जिस त्रिभुजाकार आकृति का निर्माण होता है, उसे डेल्टा कहते हैं।
प्रश्न 11.
प्राकृतिक तटबंध का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
नदी के रूप में बहते हुए पानी के उतर जाने के पश्चात् नदी के दोनों ओर नदी निर्मित रेतीली मिट्टी की दीवारें बन जाती। है। इस प्रकार बनने वाली आकृति को प्राकृतिक तटबंध कहते हैं।
प्रश्न 12.
बाढ़ का मैदान किसे कहते हैं?
उत्तर:
नदी का वह भाग जहाँ नदी बाढ़ के समय जलोढ़ को निक्षेपण करती है। इस प्रकार बाढ़ निर्मित भाग को ही बाढ़ का मैदान कहते हैं।
प्रश्न 13.
सागरीय स्थलाकृतियाँ किसका परिणाम होती हैं?
उत्तर:
सागरीय स्थलाकृतियों का निर्माण तटवर्ती भागों पर लहरों की जलगति क्रिया, अपघर्षण, सन्निघर्षण व जलीय दाब क्रिया तथा मलबे के निक्षेपण का परिणाम होता है।
प्रश्न 14.
सागरीय लहरों द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
सागरीय लहरों द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलाकृतियों में भृगु, लघुनिवेशिका, कन्दरा, वात छिद्र, मेहराब, गुहा स्तम्भ, तरंग घर्षित वेदिका आदि को शामिल किया गया है।
प्रश्न 15.
लघु निवेशिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
तट के समानान्तर कठोर वे कोमल शैलों वाले क्षेत्रों में कोमल शैलों के कटाव से बनी अण्डाकार आकृति को लघु निवेशिका कहते हैं।
प्रश्न 16.
गुहा स्तम्भ किसे कहते हैं?
उत्तर:
सागरीय लहरों द्वारा अपरदन की प्रक्रिया से निर्मित मेहराब की जब छत टूट जाती है तो उससे निर्मित स्तम्भ को गुहा स्तम्भ कहते हैं।
प्रश्न 17.
सागरीय लहरों की निक्षेपण प्रक्रिया से बनने वाली स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सागरीय लहरों की निक्षेपण प्रक्रिया से पुलिन, कस्प पुलिन, स्पिट, रीधिका, अपतट रोधिका, हुक, लूप, संयोजन रोधिका, लैगुन व खाड़ी रोधिका तथा टोम्बोलो निर्मित होते हैं।
प्रश्न 18.
कस्प पुलिन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सागर की ओर लम्बाई में विस्तारित कंकड़-पत्थर, बजरी निर्मित त्रिकोण के रूप में बने बीच को कस्प पुलिन कहते हैं।
प्रश्न 19.
अपतट रोधिका क्या है?
उत्तर:
तट से दूर किन्तु उसके समानान्तर बनी बाँध या दीवार अपतट रोधिका कहलाती है।
प्रश्न 20.
संयोजक रोधिका किसे कहते हैं?
उत्त:
सागरीय क्षेत्र में मिलने वाले दो द्वीपों को जोड़ने वाले बाँध या दीवार को संयोजित रोधिका कहते हैं।
प्रश्न 21.
शुष्क स्थलाकृतियाँ किन क्रियाओं का परिणाम हैं?
अथवा
पवनजात स्थलाकृतियों के निर्माण में सहायक कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में निर्मित होने वाली स्थलाकृतियां अपवाहन, अपघर्षण व सन्निघर्षण, तथा मलबे के निक्षेपण का परिणाम होती हैं।
प्रश्न 12.
पवन से निर्मित होने वाली अपरदनात्मक स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पवन से निर्मित होने वाली अपरदनात्मक स्थलाकृतियों में वातगर्त, द्वीपाभगिरी, छत्रकशिला, भू-स्तम्भ, तिपहलशिला, अश्मिक जालिका, ज्यूगेन एवं यारडंग को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 23.
वातगर्त किसे कहते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन द्वारा ढीली व असंगठित शैलों को उड़ाकर ले जाने से जो गर्त बनता है, उसे वातगर्त कहा जाता है।
प्रश्न 24.
द्वीपाभगिरी से क्या तात्पर्य है?
अथवा
इन्सेलबर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में मिलने वाले कठोर शैलों के टीले अपरदन की प्रक्रिया से शेष बचे रह जाते हैं ऐसे अवशिष्ट टीलों को द्वीपाभगिरी कहते हैं।
प्रश्न 25.
ज्यूजेन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में यह एक क्षैतिज रूप में एकान्तर क्रम में बिछी कठोर व कोमल शैलों की परतों के हवा के अपरदन से बनी दवातनुमा आकृतियों को ज्यूजेन कहते हैं।
प्रश्न 26.
वायु निक्षेपण से बनने वाली स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में वायु के द्वारा उड़ायी गई मृदा के निक्षेपण से बालुका स्तूप, उर्मिकाएँ, बालूका प्रवाह, बालुका कगार एवं लोयस का निर्माण होता है।
प्रश्न 27.
बालुका स्तूपों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में वायु द्वारा उड़ायी गयी मृदा के निक्षेपण से जिन छोटे-छोटे गतिशील टीलों का निर्माण होता है उन्हें । बालुका स्तूप कहते हैं। ये टीले हवा के अनुसार स्थानान्तरित होते हैं।
प्रश्न 28.
हिमानीजात स्थलाकृतियों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानी के उत्पाटन, अपघर्षण व सन्निघर्षण तथा हिम निक्षेपण से स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
प्रश्न 29.
हिमानी के अपरदन से निर्मित स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिमानी के अपरदन से यू-आकार की घाटी, लटकती घाटी, हिम गह्वर, टार्न, नूनाटक, कॉल, श्रृंग व पुच्छ, मेषशिला व फियोर्ड का निर्माण होता है।
प्रश्न 30.
हिमानी निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
हिमानीजात निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों में हिमोढ़, एस्कर, केम, केटील, डुमलिन व हिमानी अवक्षेप मैदान को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 31.
हिमोढ़ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानी द्वारा निक्षेपित कंकड़, पत्थर व गोलाश्म के जमावों को हिमोढ़ कहते हैं। इनका जमाव मुख्यतः हिमानी के किनारों, उसके अन्तिम भाग या तल पर होता है।
प्रश्न 32.
हिमानी अवक्षेप मैदान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
हिमानी द्वारा हिम जल प्रवाह से मलबे का दूर तक प्रवाहन किया जाता है तथा जहाँ ढाल की मात्रा कम हो जाती है वहाँ हिमयुक्त मलबे का बड़े क्षेत्र में फैलाव हो जाता है। इस प्रकार बनने वाले मैदान को हिमानी अवक्षेप मैदान कहते हैं।
प्रश्न 33.
भूमिगत जल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे भू-पृष्ठीय चट्टानों के छिद्रों तथा दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल कहा जाता है।
प्रश्न 34.
कार्ट प्रदेश से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अटै शब्द की उत्पत्ति यूगोस्लेव भाषा के क्रास शब्द से हुई है जिसका तात्पर्य चूने के प्रदेश से होता है। इसी चूने के प्रदेश को काटै प्रदेश कहा जाता है।
प्रश्न 35.
चूना प्रदेशों में बनने वाली अपरदनात्मक स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
चूना प्रदेशों में अपरदन की प्रक्रिया से निर्मित होने वाली स्थलाकृतियों में टेरा रोसा, लेपिज, घोलरंध्र, विलय रन्ध्र, डोलाइन, सकुण्ड, राजकुण्ड, पॅसती निवेशिका व अन्धी घाटी को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 36.
चूना प्रदेशों में बनने वाली निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
चूना प्रदेशों में निक्षेपण से बनने वाली स्थलाकृतियों में आश्चुताश्म, निश्चुताश्म, गुहा स्तम्भ, ड्रिपस्टोन वे नोडुल्स को शामिल किया गया है।
प्रश्न 37.
धंसती निवेशिका से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
चूने की सतह पर असंख्य छिद्रों से जहाँ जल धंसता हुआ दिखाई देता है उसे धंसती निवेशिका कहते हैं।
प्रश्न 38.
नोडल्स किसे कहते हैं?
उत्तर:
शैल छिद्रों में एक प्रकार के खनिज घोल से हुए जमाव को ही नोडल्स कहते हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 लघूतात्मक प्रश्न Type I
प्रश्न 1.
अपरदन के कारकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपरदन एक गतिशील प्रक्रम है। अपरदन में भाग लेने वाली शक्तियों; यथा– नदी, सागरीय तरंगें, पवनें, हिमानी एवं भूमिगत जल को अपरदन के कारक कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं कि ये सभी कारके समान रूप तथा समान गति से अपरदन का कार्य करें, क्योंकि सम्बन्धित क्षेत्र की जलवायु स्थिति चट्टानों की संरचना व संगठन आदि को प्रभावित करते हैं। अपरदन के इन्हीं कारकों से पृथ्वी सतह पर विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। यदि अपरदन ये कारक नहीं होते तो धरातल सदैव विषमताओं से युक्त होता जो एक प्रतिकूल स्थिति होती।
प्रश्न 2.
क्षिप्रिका व जल गर्तिका में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
क्षिप्रिकाओं व जल गर्तिकओं में निम्न अन्तर मिलते हैं-
क्षिप्रिका | जल गर्तिको |
1. नदी मार्ग के वे भाग जहाँ ऊपर उठी कठोर शैलों के कारण नदी उछलती हुई बहती है उन्हें क्षिपिका कहते हैं। | 1. नदी की तली में जल के वेग की छेदन क्रिया से निर्मित गर्यो को जल गर्तिका कहते हैं। |
2. क्षिप्रिका प्रपात का एक छोटा एवं सामान्य रूप होती है। | 2. अधिक बड़ी गर्तिकाएँ अवनमन कुण्डों का निर्माण करती हैं। |
3. क्षिप्रिका में ऊँचाई प्रपात की अपेक्षा कम होती है। | 3. जल गर्तिकाओं से नदी का तल गहरा होता जाता है। |
4. क्षिप्रिकाएं प्राय: लम्ब तल पर होती हैं। | 4. गर्तिकाएँ प्रायः आधार तल पर निर्मित होती हैं। |
प्रश्न 3.
जलोढ़ शंकु और जलोढ़ पंख में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जलोढ़ शंकु और जलोढ़ पंख में निम्न अन्तर मिलते हैं।
जलोढ़ शंकु | जलोढ़ पंख |
1. जलोढ़ शंकु में ढाल अधिक मिलती है। | 1. जलोढ़ पंख में ढाल कम पाया जाता है। |
2. यह नदी के पर्वतों से मैदान में प्रवेश करते समय पर्वतीय ढाल पर शंकु के आकार में मलबे का जमाव होता है। | 2. यह नदी के पर्वत से मैदान में प्रवेश करते समय मलबे के पंखेनुमा आकार का जमाव होता है। |
3. जलोढ़ शंकु की स्थिति में सरिता का अधिक विभाजन नहीं होता है। | 3. जलोढ़ पंख की स्थिति में सरिता का अनेक भागों में विभाजन हो जाता है। |
प्रश्न 4.
पवनजात स्थलाकृतियां क्या होती हैं?
अथवा
मरुस्थलीय स्थलाकृतियों से क्या आशय है?
अथवा
शुष्क क्षेत्रों की स्थलाकृतियाँ क्या होती हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवनों की अपरदनात्मक व निक्षेपणात्मक क्रियाओं द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। पवनें मरुस्थलीय क्षेत्रों से अपवाहन, अपघर्षण एवं सन्निघर्षण द्वारा शैलों को काटते, छांटते एवं उन शैलकणों का परिवहन कर अन्यत्र निक्षेपण भी करती हैं। इन सभी प्रक्रियाओं के द्वारा मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवनों के कारण अपरदनात्मक व निक्षेपणात्मक क्रियाएँ होती हैं। इन क्रियाओं से निर्मित स्थलाकृतियाँ ही पवनजात/मरुस्थलीय/शुष्क क्षेत्रों की स्थलाकृतियाँ कहलाती हैं।
प्रश्न 5.
बालुका स्तूपों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हवा अपने अपरदन एवं अपवाहन द्वारा एक स्थान से मिट्टी काटकर दूसरे स्थान पर जमा करती है। इस जमाव से बने भू-आकारों को बालुका स्तूप कहते हैं। यह जमाव का कार्य विशिष्ट परिस्थितियों में ही सम्भव होता है। बालुका स्तूप मुख्यतः शुष्क एवं अर्द्धशुष्क भागों में निर्मित होते हैं। बालुका स्तूपों के आकार व स्वरूप में प्रादेशिक आधार पर अन्तर मिलता है। इनका आकार गोल, नव चन्द्राकार तथा अनुवृत्ताकार हो सकता है। इनकी ऊँचाई भी कुछ मीटर से लेकर 20 मीटर तक होती है। बालुका स्तूपों के दोनों तरफ के ढालों में भी पर्याप्त अन्तर मिलता है। इन्हें अनुप्रस्थ, परवलयिक एवं अनुदैर्ध्य बालुका स्तूपों के रूप में बांटा जाता है।
प्रश्न 6.
जलोढ़ निर्मित मैदान व हिमोढ अवक्षेप मैदान में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जलोढ़ मैदान व हिमोढ़ निर्मित मैदानों में निम्न अन्तर मिलते हैं-
जलोढ़ मैदान | हिमोढ़ मैदान |
1. इस प्रकार के मैदानों का निर्माण प्रवाहित जल के निक्षेपण से होता है। | 1. इस प्रकार के मैदानों का निर्माण हिमानी निक्षेपण से होता है। |
2. जलोढ़ मैदान काँप मिट्टी के मैदान होते हैं। | 2. हिमोढ़ मैदान बर्फ निर्मित मैदान होते हैं। |
3. जलोढ़ मैदान नदियों के द्वारा निक्षेपित मृदा से बने होने के कारण कृषि के दृष्टिकोण से उपजाऊ होते हैं। | 3. हिमोढ़ मैदान बर्फ से बने होने के कारण उपजाऊ नहीं होते हैं। |
प्रश्न 7.
कार्ट स्थलाकृतियों से क्या तात्पर्य है?
अथवा
चूना प्रदेशों की स्थलाकृतियों से क्या आशय है?
अथवा
भूमिगत जल निर्मित स्थलाकृतियों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे भू-पृष्ठीय चट्टानों के छिद्रों तथा दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल कहते हैं। चूने पत्थर वाली चट्टानों के क्षेत्र में भूमिगत जल के द्वारा सतह के ऊपर तथा नीचे विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण घुलन क्रिया द्वारा होता है। चूने के प्रदेश को काटै प्रदेश कहा जाता है। कास्टै प्रदेश शब्द युगोस्लाविया के कार्ट प्रदेश से लिया गया है। इसी नाम के आधार पर विश्व के सभी देशों में चूना पत्थर प्रदेश में निर्मित स्थलरूपों को कार्ट स्थलाकृति कहते हैं। इन प्रदेशों में बनने वाली स्थलाकृतियाँ ही कार्ट स्थलाकृतियाँ कहलाती हैं।
प्रश्न 8.
घोल रन्ध्र और विलयन रन्ध्र में क्या अन्तर है?
उत्तर:
घोल रन्ध्र और विलयन रन्ध्र में निम्न अन्तर मिलता है
घमेल रन्ध्र | विलयन रन्ध्र |
1. इनका आकार छोटा होता है। | 1. इनका आकार बड़ा होता है। |
2. इनका निर्माण कार्बन डाइआक्साइड के साथ जल के सक्रिय घोलन के कारण होता है। | 2. इनका निर्माण घोल रन्ध्रों के आपस में मिल जाने से होता है। |
3. घोल रन्ध्रों की चूना प्रदेशों में अधिक संख्या मिलती है। | 3. विलयन रन्ध्रों की संख्या कम मिलती है। |
प्रश्न 9.
शिखरिका एवं विदर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
चूना प्रदेशों में अपरदन की जो प्रक्रिया सम्पन्न होती है, उसके कारण सरशैय्या के समान नुकीली व कटीली भू-आकृतियों को लेपिज कहा जाता है। इन लेपिजों में जो तीक्ष्ण कटक या नुकीले भाग पाए जाते हैं उन्हें शिखरिका कहते हैं। जबकि . इन ऊँचे तीक्ष्ण कटकों या नुकीले भागों के बीच में जो गर्तनुमा भाग मिलते हैं उन्हें विदर के नाम से जाना जाता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 लघूतात्मक प्रश्न Type II
प्रश्न 1.
नदी निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
बहते हुए जल से निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बहते हुए जल के द्वारा निर्मित होने वाली निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ निम्नानुसार हैं-
- जलोढ़ शंकु,
- जलोढ़ पंख,
- डेल्टा,
- प्राकृतिक तटबंध,
- बाढ़ के मैदान,
- गोखुर झील।
1. जलोढ़ शंकु – यह नदी के पर्वतों से मैदान में प्रवेश करते समय पर्वतीय ढाल पर शंकु के आकार में मलबे का जमाव होता है।
2. जलोढ़ पंख – यह नदी के पर्वत से मैदान में प्रवेश करते समय मलबे के पंखनुमा आकार में जमाव होते हैं।
3. डेल्टा – नदी के मुहाने पर जलोढ़क के निक्षेपण से निर्मित त्रिभुजाकार आकृति वाला क्षेत्र डेल्टा कहलाता है।
4. प्राकृतिक तटबंध – ये पानी के उतर जाने के पश्चात् नदी के दोनों ओर निर्मित रेतीली मिट्टी की दीवारें होती हैं।
5. बाढ़ के मैदान – नदी का वह भाग जहाँ नदी बाढ़ के समय जलोढ़क का निक्षेपण करती है, बाढ़ का मैदान कहलाता है।
6. गोखुर झील – जल नदी विसर्पित मार्ग छोड़कर सीधी बहती है एवं उसके वक्राकार भाग जलपूर्ण होकर गोखुरनुमा छाड़न झील का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 2.
पवनकृत निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मरुस्थलीय क्षेत्रों में बालू के जमाव से किन स्थलाकृतियों का निर्माण होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्र अत्यधिक तापमान के कारण नमी की कमी को दर्शाते हैं। वायु का प्रभाव नमी के कमी वाले क्षेत्रों में अधिक पड़ता है। वायु के द्वारा उड़ायी गयी मृदा के जमने से जो स्थलाकृतियाँ बनती हैं, उन्हें निक्षेपणात्मक स्थलाकृति कहते हैं। वायु के जमाव से बनने वाली कुछ महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ निम्नानुसार हैं-
- बालुका स्तूप – यह रेत के छोटे-छोटे गतिशील ढेर या टीले होते हैं जो पवन के साथ स्थानान्तरित होते रहते हैं।
- उर्मिकाएँ – यह सागरीय तरंगों की भांति मरुस्थलों की रेतीली सतह पर उभरने वाले भू-आकार हैं।
- बालुका प्रवाह – यह स्थलाकृतिक अवरोध के सहारे बालु की लम्बाकार गतिशील श्रेणियाँ होती हैं।
- बालुका कगार – ये बालू की लम्बाकार, चौड़े शिखर वाली श्रेणियाँ होती हैं।
- लोयस – पवन द्वारा उड़ाकर लाये गये सूक्ष्म धूलकणों के निक्षेप को लोयस कहते हैं।
प्रश्न 3.
हिमानीकरण के प्रभावों का विवेचन कीजिए।
अथवा
हिमानी से धरातलीय स्वरूप में परिवर्तन कैसे होता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमनीकरण की प्रक्रिया का धरातल के उच्चावचों एवं जैविक समुदायों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस प्रक्रिया के प्रभावों को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है
- हिमानीकरण की प्रक्रिया से स्थलीय भाग पर हिमाच्छादन का स्वरूप बन जाता है।
- इस प्रक्रिया से पुराने स्थलरूपों में परिवर्तन एवं नये स्थलरूपों का निर्माण होता है।
- हिमानीकरण की प्रक्रिया सागरीय तल में परिवर्तन करती है।
- इस प्रक्रिया से स्थलीय भाग व सागरीय भागों में उन्मज्जन व निमज्जन होता है।
- स्थलीय भागों में परिवर्तन होने के कारण नवीन भूदृश्य का निर्माण होता है।
- हिमानीकरण की प्रक्रिया नदियों में नवोन्मेष की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है।
- विभिन्न स्थलाकृतियों; यथा-कैनियन, महाखण्डों, तरंग घर्षित वेदिकाओं का निर्माण होता है।
- हिमानीकरण की प्रक्रिया प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति में सहायक सिद्ध हुई है।
- अनेक प्रकार की हिमानीकृत झीलों का निर्माण हुआ है।
प्रश्न 4.
सकुण्ड व राजकुण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सकुण्ड व राजकुण्ड को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
युवाला व पोल्जे को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सकुण्ड (युवाला) व राजकुण्ड (पोल्जे) चूना प्रदेशों में भूमिगत जल की प्रक्रिया से निर्मित होने वाली अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ हैं। इन दोनों स्थलाकृतियों का निर्माण मुख्यत: घोलन की प्रक्रिया का परिणाम होता है। इन दोनों स्थलाकृतियों में मिलने वाले अन्तर निम्नानुसार हैं-
सकुण्ड (युवाला) | राजकुण्ड (पोल्जे) |
1. सकुण्डों का निर्माण अनेक डोलाइनों में निरन्तर घोलीकरण की प्रक्रिया के कारण उनके मिल जाने से होता है। | 1. राजकुण्ड का निर्माण चूना पत्थर वाली शैलों में नीचे कीओर भ्रंशित तथा अवतलित भागों में घुलन क्रिया द्वारा परिवर्तन होने से होता है। |
2. सकुण्ड का व्यास प्रायः एक किलोमीटर तक मिलता है। | 2. राजकुण्डों का व्यास कई वर्ग किलोमीटर में फैला होता है। |
3. इनकी दीवारें खड़ी होती हैं जो ऊपरी सतह से संलग्न मिलती हैं। | 3. इनकी तली या फर्श समतल होती हैं तथा दीवारें खड़ी होती हैं। |
4. इन्हें युवाला के नाम से भी जाना जाता है। | 4. इन्हें पोल्जे (पोलिये) के नाम से भी जाना जाता है। |
प्रश्न 5.
आश्चुताश्म एवं निश्चुताश्म को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
स्टेलैग्टाइट एवं स्टेलैग्माइट को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आश्चुताश्म व निश्चुताश्म में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आश्चुताश्म (स्टेलैग्टाइट) एवं निश्चुताश्म (स्टेलैग्माइट) दोनों चूना प्रदेश में भूमिगत जल की निक्षेपण प्रक्रिया से बनने वाली स्थलाकृतियाँ हैं। इन दोनों स्थलाकृतियों का निर्माण चूने में जल की घोलन प्रक्रिया की देन है। इन दोनों स्थलाकृतियों के स्वरूप व इनमें मिलने वाले अन्तरों को निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है-
आश्चुताश्म | निश्चुताश्म |
1. यह चूना प्रदेशों में कन्दरा की ऊपरी छत के सहारे विकसित होने वाली स्थलाकृति है। | 1. यह चूना प्रदेशों में कन्दरा की फर्श या निम्नवर्ती सतह पर निर्मित होने वाली स्थलाकृति है। |
2. यह कैन्दरों की ऊपरी सतह से नीचे की ओर लटकती हुई स्थलाकृति है। | 2. यह कन्दरा की निम्नवर्ती सतह से ऊपर की और उठती हुई स्थलाकृति होती है। |
3. इसका नुकीला भाग नीचे की ओर होता है। | 3. इसका नुकीला भाग ऊपर की ओर होता है। |
4. यह स्थलाकृति जल रिसाव से चूने के नम होने व लटकने का परिणाम होती है। | 4. यह स्थलाकृति लटकते हुए नम चूने के गुरुत्वाकर्षण के कारण गिरने से बनने का परिणाम होती है। |
5. इसे स्टेलैग्टाइट कहा जाता है। | 5. इसे स्टेलैग्माइट भी कहते हैं। |
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सागरीय लहरों से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
तरंगों से निर्मित धरातलीय स्वरूपों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
तटीय स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हवा के प्रहार से सागरतल पर उठने वाली तरंगों को लहरें कहा जाता है। लहरें तटवर्ती भागों पर जलगति क्रिया, अपघर्षण सन्निघर्षण व जलीय दाब क्रिया एवं मलबे के निक्षेपण से अनेक प्रकार की अपरदनात्मक व निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों का निर्माण करती हैं, जिनका वर्णन निम्नानुसार है-
(i) अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) भृगु – लहरों द्वारा आधार पर निरन्तर प्रहार से अपरदन के कारण निर्मित लम्बवत् किनारा भृगु कहलाता है।
(ब) लघुनिवेशिका – तट के समानान्तर कठोर वे कोमल शैलों के कटाव से बनी अण्डाकार आकृति को लघु निवेशिका कहते हैं।
(स) कन्दरा – तटवर्ती भागों में लहर निर्मित खांचों का लगातार कटाव होने से समुद्री गुफाएं बनती हैं।
(द) वात छिद्र – तटवर्ती कन्दरा की छत पर ज्वारीय तरंगें छेद कर देती हैं जिसे वात छिद्र कहते हैं।
(य) मेहराब – समुद्र तट पर दो ओर से बनने वाली गुफाओं के परस्पर मिल जाने से मेहराब की रचना होती है।
(र) गुहा स्तम्भ – मेहराब की छत के टूटने से निर्मित स्तम्भ गुहा स्तम्भ कहलाता है।
(ल) तरंग घर्षित वेदिका – यह भृगु के निरन्तर पीछे हटने से निर्मित चबूतरा होता है।
(ii) निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) पुलिन – सागर तट के सहारे लहरों द्वारा मलबे के निक्षेपण से पुलिन का निर्माण होता है।
(ब) कस्प पुलिन – सागर की ओर लम्बाई में विस्तारित कंकड़ पत्थर व बजरी निर्मित त्रिकोण के रूप में बने बीच को कस्प पुलिन कहते हैं।
(स) स्पिट – लहरों द्वारा सागर की ओर जिह्वा के रूप में किया गया निक्षेपण स्पिट कहलाता है।
(द) रोधिका – तरंग या धाराओं द्वारा निक्षेपित कटक या बांध को रोधिका कहते हैं।
(य) अपतट रोधिका-तट से दूर किन्तु उसके समान्तर बनी बांध या दीवार, अपतट रोधिका कहलाती है।
(र) हुक – स्पिट के अर्द्धचन्द्राकार घुमावदार जमाव को हुक कहते हैं।
(ल) लूप – जब हुक छल्ले की ओर मुड़कर तट से मिल जाता है तो लूपनुमा आकृति बनती है।
(व) संयोजक रोधिका – दो द्वीपों को जोड़ने वाले बांध या दीवार को संयोजी रोधिका कहते हैं।
(म) लैगून एवं खाड़ी रोधिका – किसी खाड़ी के दोनों छोर निक्षेपित दीवार या बांध से जुड़ जाते हैं जो उस दीवार को खाड़ी रोधिका तथा इस बन्द खाड़ी का लैगून कहते हैं।
(व) टोम्बोलो – द्वीपों को तट से जोड़ने वाली रोधिका टोम्बोलो कहलाती है।
इन निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों को निम्न चित्रों से दर्शाया गया है-
प्रश्न 2.
वायु निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शुष्क प्रदेशों के भू-आकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मरुस्थलीय क्षेत्रों में बनने वाली स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवनों की अपरदनात्मक व निक्षेपणात्मक क्रियाओं द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। पवनें, मरुस्थलीय क्षेत्रों में अपवाहन, अपघर्षण एवं सन्निघर्षण द्वारा शैलों को काटते, छांटते एवं उन शैलकणों का परिवहन कर अन्यत्र निक्षेपण करती है, जिससे मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवनों की इन अपरदनात्मक एवं निक्षेपणात्मक क्रियाओं द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। इन स्थलाकृतियों का वर्णन निम्नानुसार है-
(i) अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) वातगर्त – वह गर्त जो पवन द्वारा ढीली व असंगठित शैलों को उड़ाकर ले जाने से बनते हैं, वातगर्त कहलाते हैं।
(ब) द्वीपाभगिरी – यह मरुस्थल रूपी विशाल महासागर में कठोर शैलों के उभरे टीले होते हैं जो द्वीप या पर्वत की भांति दिखाई देते हैं।
(स) छत्रक शिला – ये कठोर चट्टानों के अपशिष्ट भाग हैं जिनकी आकृति छतरी के समान होती है।
(द) भूस्तम्भ – ये वे भूस्तम्भ हैं जो मरुस्थलों में कठोर शैलों के आवरण से संरक्षित होते हैं।
(य) तिपहल शिला – यह हवा के घर्षण से बना तीक्ष्ण पार्श्व वाला शैल का टुकड़ा होता है।
(र) अश्मिक जालिका – यह एक जालीदार शैल है जो भिन्न संरचना वाली शैलों पर पवन की अपघर्षण क्रिया से बनती है।
(ल) ज्यूगेन – यह क्षैतिज रूप में एकान्तर क्रम में बिछी कठोर व कोमल शैलों की परतों के हवा में अपरदन निर्मित खांचे होते हैं।
(व) यारडंग – ये कोमल व कठोर शैलों की क्रमशः लम्बवत् परतों से बने नुकीले भू-आकार होते है।
अपरदन से बनने वाली इन शुष्क स्थलाकृतियों को निम्न चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।
(ii) निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) बालुका स्तूप – यह रेत के छोटे-छोटे गतिशील ढेर या टीले होते हैं जो पवन के साथ स्थानान्तरित होते हैं।
(ब) उर्मिकाएँ – यह सागरीय तरंगों की भांति मरुस्थलों की रेतीली सतह पर उभरने वाले भू-आकार हैं।
(स) बालु का प्रवाह – यह स्थलाकृतिक अवरोध के सहारे बालु की लम्बाकार गतिशील श्रेणियां होती हैं।
(द) बालुका कगार – ये बालू की लम्बाकार, चौड़े शिखर वाली श्रेणियाँ होती हैं।
(य) लोयस – पवन द्वारा उड़ाकर लाये गये सूक्ष्म धूलकणों के निक्षेप को लोयस कहते हैं।
वायु के द्वारा शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली इन निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों को निम्न चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है-
प्रश्न 3.
भूमिगत जल से बनने वाली स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
कार्ट प्रदेशों की स्थलाकृतियाँ क्या हैं?
अथवा
चूना प्रदेशों के भू-आकारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे भू-पृष्ठीय चट्टानों के छिद्रों तथा दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल कहते हैं। चूने के पत्थर वाली चट्टानों के क्षेत्र में भूमिगत जल के द्वारा सतह के ऊपर तथा नीचे विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण घुलन क्रिया द्वारा होता है, चूने के प्रदेश को काटै प्रदेश कहा जाता है। ‘कार्ट’ शब्द की उत्पत्ति यूगोस्लेव भाषा के क्रास (Krass) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य चूने के प्रदेश से होता है। कार्ट प्रदेश शब्द यूगोस्लाविया के कार्ट प्रदेश से लिया गया है। इसी नाम के आधार पर विश्व के सभी देशों में चूना पत्थर प्रदेश में निर्मित स्थलरूपों को कार्स्ट स्थलाकृति कहते हैं। जहाँ अपरदनात्मक एवं निक्षेपणात्मक क्रियाओं द्वारा विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इन स्थलाकृतियों का वर्णन निम्नानुसार है-
(i) अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) टेरा रोसा – घुलन क्रिया से निर्मित लाल व भूरी मिट्टियाँ टेरा-रोसा कहलाती हैं।
(ब) लेपिज – यह सरशैय्या सदृश्य नुकीली व कटीली भू-आकृतियाँ होती हैं।
(स) घोलरन्ध्र – ये कार्बन डाइऑक्साइड युक्त जल की घुलन क्रिया से निर्मित गर्त होते हैं। विलय रन्ध्र व डोलाइन भी इसी प्रकार के गर्त होते हैं जो आकार में क्रमश: बड़े होते हैं।
(द) विलय रन्ध्र – यह घोल रन्ध्रों से बड़े आकार वाले रन्ध्र होते हैं।
(य) डोलाइन – बड़े आकार के विलयन रन्ध्रों को डोलाइन कहते हैं।
(र) सकुण्ड – यह अनेक डोलाइन के आपस के मिलने से निर्मित विस्तृत गर्त होते हैं।
(ल) राजकुण्ड – यह अनेक युवाला के आपस में मिलने से निर्मित विस्तृत गर्त है।
(व) धंसती निवेशिका – चूने की सतह पर असंख्य छिद्रों से जहाँ जल धंसता हुआ दिखाई देता हैं धंसती निवेशिका कहलाता है।
(श) अन्धी घाटी – चूने के प्रदेश में प्रवाहित नदी डोलाइन आदि छिद्रों से भूमिगत हो जाती है तो उसके आगे की घाटी शुष्क पड़ी रहती है जिसे अन्धी घाटी कहते हैं।
कार्ट क्षेत्रों में अपरदन की इन स्थलाकृतियों को निम्न चित्रों से दर्शाया गया है-
(ii) निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ
(अ) आश्चुताश्म – यह कंदरा की छत से लटकती हुई ठोस व नुकीली आकृति है जो छत से रिसते हुए जल के वाष्पीकरण से बनती है।
(ब) निश्चुताश्म – यह कंदरा के फर्श पर बनी स्तम्भाकार आकृति है जो फर्श पर जल के टपकने से बनती है।
(स) गुहा स्तम्भ – यह आश्चुताश्म वे निश्चुताश्म के मिलने से बनी स्तम्भाकार आकृति है।
(द) ड्रिपस्टोन – यह कन्दरा की तली पर परदे जैसा चूने का स्तम्भ होता है।
(य) नोडुल्स – शैल छिद्रों में एक प्रकार के खनिज घोल से हुए जमाव को नोडुल्स कहते हैं।
इन सभी निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों को निम्न चित्र में दर्शाया गया है-
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