Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 जलवायु का वर्गीकरण
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
कोपेन ने जलवायु का वर्गीकरण कितने भागों में किया है?
(अ) 4
(ब) 5
(स) 7
(द) 9
उत्तर:
(ब) 5
प्रश्न 2.
कोपेन के अनुसार E वर्ग की जलवायु है-
(अ) शुष्क जलवायु
(ब) ध्रुवीय जलवायु
(स) शीत शीतोष्ण
(द) आर्द्र जलवायु
उत्तर:
(ब) ध्रुवीय जलवायु
प्रश्न 3.
किस जलवायु में वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है?
(अ) शुष्क जलवायु
(ब) ध्रुवीय जलवायु
(स) शीत जलवायु
(द) पर्वतीय जलवायु
उत्तर:
(अ) शुष्क जलवायु
प्रश्न 4.
Am जलवायु है-
(अ) उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु
(ब) उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु
(स) स्टैपी जलवायु
(द) मरुस्थलीय जलवायु
उत्तर:
(ब) उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु
प्रश्न 5.
कोपेन ने जलवायु का सर्वप्रथम वर्गीकरण प्रस्तुत किया
(अ) 1900
(ब) 1901
(स) 1936
(द) 1952
उत्तर:
(अ) 1900
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
कोपेन के अनुसार A जलवायु से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कोपेन के अनुसार A जलवायु से आशय है-
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु। इस प्रकार की जलवायु में सभी महीनों में तापमान 18°C से अधिक रहता है।
प्रश्न 7.
BW जलवायु से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
BW जलवायु से तात्पर्य मरुस्थलीय प्रदेश तुल्य जलवायु से है। यहाँ वर्षा की मात्रा वनस्पति के लिए अपर्याप्त होती है।
प्रश्न 8.
वाष्पीकरण की अपेक्षा अधिक वर्षा किस जलवायु के लक्षण हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु में वाष्पीकरण की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।
प्रश्न 9.
ग्रीष्म ऋतु का अभाव किस जलवायु में पाया जाता है?
उत्तर:
ध्रुवीय जलवायु में ग्रीष्म ऋतु का अभाव पाया जाता है।
प्रश्न 10.
किस जलवायु प्रदेश में वर्ष भर वर्षा होती है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु प्रदेश में वर्ष भर वर्षा होती है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
कोपेन ने विश्व को कितने जलवायु प्रदेशों में बाँटा है? संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
कोपेन ने विश्व को मुख्यतः निम्न पाँच जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया है-
- उष्ण कटिबन्धीय जलवायु प्रदेश – इस जलवायु प्रदेश में सभी महीनों में तापमान 18°C से अधिक मिलता है। शीत ऋतु के अभाव की स्थिति भी देखने को मिलती है।
- शुष्क जलवायु – इस जलवायु प्रदेश में वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है तथा जल का अभाव मिलता है।
- उष्ण शीतोष्ण आई जलवायु – ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतुएं पाई जाती हैं। सबसे टण्डे माह का औसत ताप 18°C से कम मिलता है।
- शीत शीतोष्ण जलवायु – इस जलवायु प्रदेश में कठोर शीत ऋतु मिलने के साथ, शरद काल में औसत तापमान 3°C से कम व ग्रीष्मकाल में औसत तापमान:10°C से अधिक रहता है।
- ध्रुवीय जलवायु – इस जलवायु प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु का अभाव मिलता है। सबसे गर्म माह का औसत तापमान 10°C से कम रहता है।
प्रश्न 12.
मौसम व जलवायु में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मौसम-किसी स्थान पर किसी विशेष क्षण में मौसम के घटकों; जैसे- तापमान, वायुदाब, पवन, आर्द्रता, वर्षा व मेघ के सन्दर्भ में वायु की अल्पकालीन दशाओं के योग को मौसम कहते हैं। मौसम सदैव बदलता रहता हैं। जलवायु-जलवायु किसी स्थान की लम्बे समय की औसत मौसमिक दशाओं के योग को कहते हैं। जलवायु में एक विस्तृत क्षेत्र में दीर्घकाल की वायुमण्डलीय अवस्थाओं का विवरण होता है। अत: मौसम की तुलना में जलवायु शब्द का अर्थ व्यापक होता है।
प्रश्न 13.
जलवायु किसे कहते हैं?
उत्तर:
जलवायु किसी स्थान की लम्बे समय की औसत मौसमिक दशाओं के योग को कहते हैं। जलवायु में एक विस्तृत क्षेत्र में दीर्घकाल की वायुमण्डलीय अवस्थाओं का विवरण होता है। अत: मौसम की तुलना में जलवायु शब्द का अर्थ व्यापक होता है। मोंक हाऊस के अनुसार, “जलवायु वस्तुतः किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के विवरण को सम्मिलित करती है।”
प्रश्न 14.
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक बतायें।
उत्तर:
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में मुख्यतः अक्षांशों की स्थिति, सागर तट से दूरी, समुद्री धारायें, पवनों की दिशा, सागर तल से ऊँचाई व विक्षोभ आदि को शामिल किया गया हैं। अक्षांशीय स्थिति से ताप के वितरण में असमानता मिलती है। जिससे उष्ण, शीतोष्ण व ध्रुवीय जलवायु का निर्माण होता है। समुद्र के समीपवर्ती भागों में नमी की प्रधानता के कारण नम जलवायु व दूरस्थ क्षेत्रों में शुष्क जलवायु मिलती है। समुद्री धाराएँ अपने स्वभाव के कारण उष्णता व आर्द्रता उत्पन्न करती हैं। समुद्रतल से ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी आने के कारण जलवायु का स्वरूप बदलता जाता है। पवनों का स्थलीय या सागरीय स्वरूप भी जलवायु का नियन्त्रक होता है।
प्रश्न 15.
ध्रुवीय जलवायु के लक्षण बतायें।
उत्तर:
ध्रुवीय जलवायु के निम्न लक्षण हैं-
- इस प्रकार की जलवायु में ग्रीष्म ऋतु का अभाव पाया जाता है।
- इस जलवायु वाले क्षेत्रों में सबसे गर्म माह का औसत तापमान 10°C से कम रहता है।
- इस प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्रों में वर्ष में अधिकांश समय बर्फ जमी रहती है।
ध्रुवीय क्षेत्रों में मुख्यत: टुण्डा तुल्य वनस्पति के रूप में कवक, लाइकेन, एल्गी, शैवाल आदि मिलते हैं। - ध्रुवीय जलवायु का विभाजन टुण्ड्रा व टैगा क्षेत्रों के रूप में किया जाता है।
- उपधुवीय क्षेत्रों में कोणधारी वनस्पति पायी जाती है।
- ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रतिकूल जलवायु दशाओं के कारण जनसंख्या का प्रायः अभाव देखने को मिलता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के आधार बताते हुए जलवायु प्रदेशों का वर्णन करें।
उत्तर:
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के आधार – प्रसिद्ध जर्मन जलवायुवेत्ता ब्लॉडिमिर कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण को प्रस्तुत करने लिए तापमान, वर्षा व उनके मौसमी स्वभावों को आधार माना था।
कोपेन के अनुसार जलवायु प्रदेश – इन्होंने विश्व को मुख्यत: निम्न जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया था- A-उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु, B-शुष्क जलवायु C-उष्ण-शीतोष्ण आर्द्र जलवायु, D-शीत-शीतोष्ण जलवायु, E-ध्रुवीय जलवायु। कोपेन ने इन सभी जलवायु प्रदेशों को गौण भागों में भी विभाजित किया था। इनके अनुसार वर्णित मुख्य व गौण प्रदेशों का वर्णन निम्नानुसार हैं-
A. उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु – यहाँ पर वर्ष के प्रत्येक महीने में औसत तापमान 18°C से अधिक रहता है। इस जलवायु में शीत ऋतु का अभाव होता है। यहाँ वर्ष भर वर्षा होती है। यहाँ पर वाष्पीकरण की अपेक्षा वर्षा सदैव अधिक होती है। वर्षा, ताप तथा शुष्कता के आधार पर इसके तीन उप विभाग किये गये हैं।
- AF – उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु-जहाँ पर वर्ष भर वर्षा हो, वार्षिक तापान्तर बिल्कुल नहीं होता तथा शुष्कता का अभाव है।
- AM – उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु-इसे मानसूनी वर्षा भी कहते हैं। यहाँ पर वर्षा की अधिकता होने के कारण वन भी अधिक मिलते हैं। यहाँ एक लघु शुष्क ऋतु पायी जाती है।
- Aw – उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु-इसे उष्ण कटिबन्धीय सवाना जलवायु भी कहते हैं। यहाँ पर वर्ष भर उच्च तापमान रहता है। यहाँ पर ग्रीष्मकाल में वर्षा तथा शीतकाल शुष्क रहता है।
B. शुष्क जलवायु-इसमें वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है। अतः यहाँ अतिरिक्त जल की कमी रहती है। तापमान तथा वर्षा के कारण इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- BS – स्टेपी प्रदेश – यहाँ धर्षा की मात्रा शुष्क घास के लिए उपयुक्त रहती है।
- BW – मरुस्थलीय प्रदेश – यहाँ वर्षा की मात्रा वनस्पति के लिए अपर्याप्त होती है। स्टैपी तथा मरुस्थलीय जलवायु को तापमान के आधार पर दो-दो उप विभागों में बाँटा गया है।
1. Bhs-उष्ण कटिबन्धीय स्टैपी जलवायु।
2. Bsk-शीत स्टैंपी जलवायु।
3. Bwh-उष्ण कटिबन्धीय मरुस्थलीय जलवायु।
4. Bwk-शीत कटिबन्धीय मरुस्थलीय जलवायु।
C. उष्ण शीतोष्ण आर्द्र जलवायु – इसे सम शीतोष्ण आई जलवायु भी कहते हैं। यहाँ पर सबसे ठण्डे महीने का औसत तापमान 18°C से कम तथा 3°C से अधिक होता है। यहाँ पर ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतुएं पाई जाती हैं। इसमें शीत ऋतु कठोर नहीं होती। वर्षा के मौसमी विवरण के आधार पर निम्नलिखित तीन भाग किये गये हैं-
- Cf-वर्ष पर्यन्त वर्षा।
- Cw-ग्रीष्मकाल में अत्यधिक वर्षा
- Cs-शीतकाल में अधिक वर्षा
इसके अन्य उप विभाग a-गर्म ग्रीष्म काल, b-शीत ग्रीष्म काल, c-अल्पकालिक ग्रीष्म काल।
D. शीत शीतोष्ण जलवायु-इस जलवायु में सर्वाधिक ठण्डे महीने का तापमान -3°C से कम होता है। तथा ऊष्ण महीने का औसत तापमान 10°C से अधिक होता है। यहाँ पर कोणधारी वन पाये जाते हैं। इसके दो मुख्य उप विभाग हैं-
- ET – टुण्ड्रा तुल्य जलवायु-इसमें ग्रीष्मकालीन तापमान 0°C से 10°C के मध्य रहता है।
- EF – हिमाच्छादित जलवायु–यहाँ ग्रीष्मकालीन तापमान 0°C से कम रहता है। यहाँ पर वर्ष भर बर्फ जमी रहती है। इस प्रकार कोपेन ने संक्षिप्त सूत्रों के आधार पर वर्षा, तापमान, सम्बन्धी गौण विशेषताओं का समावेश कर विश्व का जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया। यद्यपि इसमें अनेक दोष हैं।
प्रश्न 17.
सौसम एवं जलवायु में अन्तर बताते हुए कोपेन के जलवायु के प्रमुख पाँच वर्गीकरणों के लक्षण बतायें।
उत्तर:
किसी स्थान पर ताप, वायुदाब, आर्द्रता, मेघ, वर्षा, पवनों का प्रवाह इत्यादि तत्वों को मौसम एवं जलवायु के तत्व कहते हैं। मौसम व जलवायु में अन्तर होता है। यह अन्तर निम्नानुसार है
मौसम – किसी स्थान पर किसी विशेष क्षण में मौसम के घटकों (जैसे- उस तापमान, वायुदाब, पवन, आर्द्रता, वर्षा, मेघ) के सन्दर्भ में वायुमण्डल की अल्पकालीन दशाओं के योग को मौसम कहते हैं। मौसम सदैव बदलता रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मौसम वायुमण्डल की क्षणिक अवस्था है।
जलवायु – जलवायु किसी स्थान विशेष के मौसम की औसत दशा को कहते हैं। जलवायु में एक विस्तृत क्षेत्र में दीर्घकाल की वायुमण्डलीय अवस्थाओं का विवरण होता है। अतः मौसम की तुलना में जलवायु शब्द का अर्थ व्यापक होता है। मोंकहाऊस (Monkhouse) के अनुसार, “जलवायु वस्तुत: किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के विवरण को सम्मिलित करती है। कोपेन के जलवायु के वर्गीकरणों के प्रमुख लक्षण-
जलवायु के वर्ग | लक्षण |
A. उष्ण-कटिबन्धीय, आर्द्र जलवायु | तापमान सभी महीनों में 18°C से सदैव ऊँचा रहता है। शीत ऋतु का अभाव, वाष्पीकरण की अपेक्षा वर्षा अधिक। |
B. शुष्क जलवायु | वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक, जल का अभाव। |
C. उष्ण – शीतोष्ण आर्द्र जलवायु | ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतुएं पाई जाती हैं। सबसे ठण्डे महीने का औसत तापमान 18°C से कम तथा 3°C से अधिक होता है। |
D. शीत-शीतोष्ण जलवायु | कठोर शीत ऋतु, शरद काल में औसत तापमान-3°C से कम तथा ग्रीष्मकाल का औसत तापमान 10°C से अधिक रहता है। |
E. ध्रुवीय जलवायु | ग्रीष्म ऋतु का अभाव, सबसे गर्म माह का औसत तापमान 10°C से कम रहता है। |
प्रश्न 18.
शुष्क जलवायु एवं उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु का तुलनात्मक वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व में मिलने वाली जलवायु दशाएँ भिन्नताओं को दर्शाती हैं। विश्व में मिलने वाली शुष्क जलवायु एवं उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु में निम्न अन्तर मिलते है-
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोतर
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
जलवायु के तत्वों में जो शामिल नहीं है, वह है-
(अ) वायुदाब
(ब) वर्षा
(स) तापमान
(द) जलप्रवाह
उत्तर:
(द) जलप्रवाह
प्रश्न 2.
जलवायु के वर्गीकरण का आधार नहीं है।
(अ) तापमान
(ब) वर्षा
(स) बादल
(द) पवनं
उत्तर:
(स) बादल
प्रश्न 3.
संसार को ताप के आधार पर कितने कटिबन्धों में बाँटा गया है?
(अ) 2
(ब) 3
(स) 4
(द) 5
उत्तर:
(ब) 3
प्रश्न 4.
कोपेन था एक प्रसिद्ध ……….
(अ) भूगर्भशास्त्री
(ब) वनस्पति शास्त्री
(स) जलवायु विज्ञान वेत्ता
(द) जीव वैज्ञानिक
उत्तर:
(स) जलवायु विज्ञान वेत्ता
प्रश्न 5.
कोपेन ने अपने वर्गीकरण का आधार लिया
(अ) वनस्पति का प्रभाव
(ब) वनस्पति व जैव जगत पर प्रभाव
(स) जैव जगत पर प्रभाव
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) वनस्पति व जैव जगत पर प्रभाव
प्रश्न 6.
कोपेन के जलवायु विभाजन में भारत में मिलने वाली जलवायु है-
(अ) Cwg
(ब) Aw
(स) Bsh
(द) उपयुक्त तीनों
उत्तर:
(द) उपयुक्त तीनों
प्रश्न 7.
सवाना जलवायु के लिए कोपेन ने किन अक्षरों का प्रयोग किया था?
(अ) AW
(ब) Bw
(स) ET
(द) Cw
उत्तर:
(अ) AW
प्रश्न 8.
निम्न में से जो हरित गृह प्रभाव का दुष्परिणाम नहीं है, वह है-
(अ) वर्षा में वृद्धि
(ब) तापमान में वृद्धि
(स) ध्रुवों की बर्फ का पिघलना
(द) जीवों का बढ़ना
उत्तर:
(द) जीवों का बढ़ना
प्रश्न 9.
तापमापी यन्त्र का क्या नाम है?
(अ) वायुदाब मापी
(ब) क्लाइनोमीटर
(स) थर्मामीटर
(द) हाइग्रोमीटर
उत्तर:
(स) थर्मामीटर
प्रश्न 10.
सन 2050 तक वैज्ञानिकों के अनुसार कितना ताप बढ़ जायेगा?
(अ) 1.5° – 4.5°C
(ब) 2° – 8°C
(स) 5° – 10°C
(द) 5.5° – 7.5°C
उत्तर:
(अ) 1.5° – 4.5°C
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए।
स्तम्भ (अ) (जलवायु वर्ग) |
स्तम्भ (ब) (प्रयुक्त अक्षर) |
(i) उष्ण-कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु | (अ) E |
(ii) शुष्क जलवायु | (ब) D |
(iii) उष्ण-शीतोष्ण आर्द्र जलवायु | (स) A |
(iv) शीत-शीतोष्ण जलवायु | (द) C |
(v) ध्रुवीय जलवायु | (य) B |
उत्तर:
(i) स, (ii) य, (iii) द, (iv) ब, (v) अ ।
(ख)
स्तम्भ (अ) (जलवायु) |
स्तम्भ (ब) (प्रयुक्त अक्षर) |
(i) उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी | (अ) ET |
(ii) स्टैपी जलवायु | (ब) BsK |
(iii) शीत स्टैपी जलवायु | (स) EF |
(iv) भूमध्य सागरीय जलवायु | (द) BS |
(v) हिमाच्छादित जलवायु | (य) Cs |
(vi) टुण्ड्रा तुल्य जलवायु | (र) AM |
उत्तर:
(i) र, (ii) द, (iii) ब, (iv) य, (v) स (vi)
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 अतिलघूत्तात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मौसम एवं जलवायु के तत्व कौन-से हैं?
उत्तर:
तापमान, वायुदाब, आर्द्रता, मेघ, वर्षा तथा पवनों के प्रवाह आदि को मौसम एवं जलवायु के तत्व माना जाता है।
प्रश्न 2.
मौसम से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी स्थान पर किसी विशेष क्षण में मौसम के घटकों (जैसे-तापमान, वायुदाब, पवन, आर्द्रता, वर्षा, मेघ) के सन्दर्भ में वायुमण्डल की अल्पकालीन दशाओं के योग को मौसम कहते हैं।
प्रश्न 3.
मोंकहाऊस ने जलवायु की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
मोंकहाऊस के अनुसार, “जलवायु वस्तुतः किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के विवरण को सम्मिलित करती है।”
प्रश्न 4.
जलवायु के सन्दर्भ में यूनानवासियों के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूनानवासियों ने ही संसार की जलवायु को प्रथम बार वर्गीकृत करने का प्रयास किया था। इन्होंने तापमान के आधार पर संसार को तीन कटिबन्धों-उष्ण कटिबन्ध, शीतोष्ण कटिबन्ध व शीत कटिबन्ध में विभाजित किया था।
प्रश्न 5.
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण किन आधारों पर निर्भर था?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु वर्गीकरण को प्रस्तुत करने के लिए वनस्पति प्रदेशों को आधार माना था। इनके वर्गीकरण के लिए। तापमान, वर्षा व उनके मौसमी स्वभावों को मुख्य आधार माना गया था।
प्रश्न 6.
कोपेन ने विश्व को किन-किन मुख्य जलवायु प्रदेशों में बाँटा था? नाम लिखिए।
उत्तर:
कोपेन ने विश्व को मुख्यत: पाँच जलवायु प्रदेशों-उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु, शुष्क जलवायु, उष्ण-शीतोष्ण आर्द्र जलवायु, शीत-शीतोष्ण जलवायु व ध्रुवीय जलवायु प्रदेशों में बाँटा था।
प्रश्न 7.
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इस जलवायु में वर्ष भर वर्षा होती है। यहाँ पर वर्ष के प्रत्येक महीने में औसतन तापमान 18°C से अधिक रहता है। इस जलवायु में र्शीत ऋतु का अभाव होता है। यहाँ पर वाष्पीकरण की अपेक्षा वर्षा अधिक होती है।
प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय जलवायु को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय जलवायु को मुख्यतः तीन भागों-ऊष्ण कटिबन्धीय आई जलवायु (AF), उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु (AM) व उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु (AW) में बाँटा गया है।
प्रश्न 9.
मानूसनी जलवायु से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी वर्षा (AM) को मानसूनी जलवायु भी कहते हैं। यहाँ पर वर्षा की अधिकता होने के कारण वन भी अधिक मिलते हैं। यहाँ एक लघु शुष्क ऋतु पाई जाती है।
प्रश्न 10.
शुष्क जलवायु को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
शुष्क जलवायु को मुख्यत: दो भागों-स्टेपी प्रदेश (BS), मरुस्थलीय प्रदेश (BW) में बाँटा गया है। इन दोनों को पुन: उष्ण कटिबन्धीय स्टैपी. जलवायु व शीत स्टैपी जलवायु तथा उष्ण कटिबन्धीय मरुस्थलीय जलवायु व शीत कटिबन्धीय मरुस्थलीय जलवायु के रूप में बाँटा गया है।
प्रश्न 11.
उष्ण शीतोष्ण आर्द्र जलवायु को किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
उष्ण शीतोष्ण आर्द्र जलवायु को वर्ष पर्यन्त वर्षा (Cf), ग्रीष्मकाल में अत्यधिक वर्षा (Cw) तथा शीतकाल में अधिक वर्षा (Cs) के रूप में बाँटा गया है। इसके अन्य उपविभाग a-गर्म ग्रीष्म काल, b-शीत ग्रीष्म काल व c-अल्पकालिक ग्रीष्म काल भी मिलते है।
प्रश्न 12.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में अन्य विद्वानों ने क्या कमियाँ बताई हैं?
उत्तर:
अन्य विद्वानों के अनुसार कोपेन का वर्गीकरण मैदानी भागों में तो उपयुक्त लगता है लेकिन पर्वतीय प्रदेशों के लिए भ्रमित करता है। सारे विश्व को पाँच मुख्य जलवायु प्रदेशों में बाँटना पर्याप्त नहीं है। अंग्रेजों के अक्षरों के उपयोग तथा उपविभागों के विभाजन में सूत्रों के उपयोग से इनका वर्गीकरण कठिन हो गया है।
प्रश्न 13.
कोपेन के वर्गीकरण को वर्तमान में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त क्यों है?
उत्तर:
कोपेन के वर्गीकरण में मिलने वाली सरलता व अध्ययन एवं अध्यापन की सुविधा इस वर्गीकरण की सबसे बड़ी विशेषता है, जो इसे सर्वाधिक मान्यता प्रदान करती है।
प्रश्न 14.
हरित गृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी गैसें कौन-सी हैं?
उत्तर:
‘हरित गृह प्रभाव के लिए मुख्यत: कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि गैसें उत्तरदायी होती हैं।
प्रश्न 15.
हरित गृह गैसें किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साईड व क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों को हरित गृह गैसें कहा जाता है।
प्रश्न 16.
कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा निरन्तर क्यों बढ़ रही है?
उत्तर:
तीव्र औद्योगीकरण, वाहनिक प्रदूषण, कोयले, खनिज तेल व लकड़ी के जलने, प्राणियों की श्वसन क्रिया, ज्वालामुखी उद्गार व वनस्पतियों के सड़ने-गलने से वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है।
प्रश्न 17.
मीथेन गैस की उत्पत्ति किससे होती है?
उत्तर:
मीथेन गैस की उत्पत्ति धान की खेती, प्राकृतिक दलदली भूमियों, खनन, दीमक, जैवीय पदार्थों के जलने आदि से होती है।
प्रश्न 18.
हरित गृह प्रभाव में गैसों का प्रतिशत कैसे मिलता है?
उत्तर:
हरित गृह प्रभाव में कार्बन डाइऑक्साइड का योगदान 57 प्रतिशत, मीथेन का योगदान 18 प्रतिशत, नाइट्रस ऑक्साइड का योगदान 6 प्रतिशत व क्लोरो फ्लोरो कार्बन का योगदान 17 प्रतिशत मिलता है।
प्रश्न 19.
हरित गृह प्रभाव के प्रमुख दुष्परिणाम कौन-से हैं?
उत्तर:
हरित गृह के प्रमुख दुष्परिणाम में तापमान में वृद्धि, वर्षा में वृद्धि, ध्रुवों की बर्फ का पिघलना, समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि, कृषि पर प्रभाव व जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों पर प्रभाव को शामिल किया गया है।
प्रश्न 20.
भूमण्डलीय तापन का सर्वाधिक प्रभाव (समुद्री जल स्तर का बढ़ना) किन क्षेत्रों में पड़ेगा।
उत्तर:
भूमण्डलीय तापन से समुद्री जल स्तर बढ़ने का सर्वाधिक प्रभाव चीन, भारत, जापान, इण्डोनेशिया, वियतनाम, बांग्लादेश, मालद्वीव एवं प्रशान्त महासागर के हजारों द्वीपों पर पड़ेगा।
प्रश्न 21.
जलवायु परिवर्तन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी स्थान की औसत मौसमी दशाओं के योग को जलवायु कहते हैं। जब इन औसत मौसमी दशाओं (तापमान, वर्षा, आर्द्रता, दाब आदि) में परिवर्तन हो जाता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं।
प्रश्न 22.
जलवायु परिवर्तन के प्रमाण किन तथ्यों से मिलते हैं?
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के प्रमाण मुख्यत: शैलों के परिवर्तित स्वरूप, शैल क्रम, झीलों व जलीय भागों में जमा निक्षेपों, जीवाश्मों रेडियो आइसोटोप्स आदि के अध्ययनों के आधार पर प्रमाणित किया जाता है।
प्रश्न 23.
जलवायु का व्यवस्थित अध्ययन कब किया जाने लगा?
उत्तर:
सन् 1640 में वायुदाब मापी तथा थर्मामीटर एवं सन् 1676 में वर्षामापी के आविष्कार के बाद जलवायु का व्यवस्थित अध्ययन किया जाने लगा।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I
प्रश्न 1.
जलवायु मानव की किन क्रियाओं को प्रभावित करती है?
अथवा
जलवायु का मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जलवायु के मानव व उसकी क्रियाओं पर पड़ने वाले प्रभाव निम्न हैं-
- जलवायु मानव की सभी शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं पर व्यापक प्रभाव डालती है।
- मानव के द्वारा की जाने वाली कृषि प्रक्रिया, पशुपालन भी जलवायु पर निर्भर करते हैं।
- जलवायु मानव के व्यवसाय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि पर प्रभाव डालती है।
- मानव के रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, संस्कृति व सामाजिक क्रियाएँ भी जलवायु पर निर्भर करती हैं।
- मानव के आवास, औद्योगिक क्रियाएँ, उसके विचार व शारीरिक संगठन पर भी जलवायु का प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 2.
कोपेन के योगदान की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोपेन जर्मनी के एक प्रसिद्ध जलवायु वेत्ता थे जिन्होंने विश्व की जलवायु का वर्गीकरण सर्वप्रथम सन् 1900 में प्रस्तुत किया था। इन्होंने अपने वर्गीकरण को सन् 1900 से 1936 के दौरान कई बार संशोधित भी किया। इन्होंने अपने वर्गीकरण का आधार तापमान, वर्षा व उनके मौसमी स्वभावों को मानकर इनका सम्बन्ध वनस्पति से जोड़ने का प्रयास किया, क्योंकि इनको विश्वास था कि जलवायु की सम्पूर्णता का सबसे अच्छा दर्शन प्राकृतिक वनस्पति में मिलता है। इस प्रकार कोपेन ने जलवायु के वर्गीकरण की ऐसी मात्रात्मक पद्धति अपनाई जो जलवायु वनस्पति से गहरा सम्बन्ध स्थापित कर सके।
प्रश्न 3.
ध्रुवीय जलवायु को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ध्रुवीय क्षेत्रों की जलवायु सम्बन्धी दशाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोपेन के अनुसार ध्रुवीय जलवायु विश्व के उच्च अक्षांशीय भागों व ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में देखने को मिलती है। इसे कोपेन ने अंग्रेजी के E अक्षर के माध्यम से प्रदर्शित किया था। इस प्रकार की जलवायु में गर्म महीने का औसत तापमान 10°C से कम रहता है। इस जलवायु में ग्रीष्म ऋतु का अभाव मिलता है। इसे पुन: दो भागों में बाँटा गया है- (i) ET-टुण्डा तुल्य जलवायु, (ii) सतत् हिमाच्छादित जलवायु। ET-टुण्ड्रा तुल्य जलवायु-इसमें ग्रीष्मकालीन ऋतु में तापमान 0°C से 10°C के मध्य रहता है। EF-सतत् हिमाच्छादित जलवायु-इसमें ग्रीष्मकालीन तापमान 0°C से कम रहता है। ऐसे क्षेत्रों में वर्ष भर बर्फ जमी रहती है।
प्रश्न 4.
हरित गृह प्रभाव से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वायुमण्डल में पाई जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस, जलवाष्प, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि पृथ्वी पर हरित गृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी हैं। सूर्य से आने वाली लघु तरंगीय किरणों को तो ये गैसें पृथ्वी तक आने देती हैं, किन्तु पृथ्वी से होने वाले दीर्घ तरंगीय विकिरण विशेषकर अवरक्त किरणों को परावर्तित कर पुनः पृथ्वी की ओर भेज देती हैं। परिणामस्वरूप धरातलीय सतह निरन्तर गर्म होती रहती है। इस प्रभाव को ही हरित गृह प्रभाव कहते हैं।
प्रश्न 5.
हरित गृह प्रभाव किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हो सकता है? उत्तर पृथ्वी पर हरित गृह प्रभाव मुख्यतः हानिकारक प्रभाव दर्शाता है किन्तु यदि मानव के द्वारा धरातलीय सतह पर छोटे हरित गृह प्रारूप का निर्माण किया जाये तो वह निम्न बिन्दुओं के रूप में उपयोगी सिद्ध हो सकता है-
- अत्यधिक ठण्डे क्षेत्रों में जहाँ प्राय: सूर्यातप की मात्रा कम मिलती है वहाँ हरित गृह प्रभाव का निर्माण करके फलों व सब्जी के पौधों को पैदा किया जा सकता है।
- हरित गृह का निर्माण कर ठण्डे क्षेत्रों में ताप को थोड़ा बढ़ाया जा सकता है।
- हरित गृहों की मुख्य विशेषता इनके शीशे होते हैं जिससे होकर सूर्य प्रकाश अन्दर तो पहुँच जाता है, किन्तु दीर्घ तरंगों के रूप में होने वाला विकिरण इन घरों से बाहर नहीं जा पाता है जिसके कारण ठण्डे क्षेत्रों में अनुकूल स्थिति निर्मित की जा सकती है।
प्रश्न 6.
भूमण्डलीय ऊष्मन से क्या अभिप्राय है?
अथवा
वैश्विक ताप वृद्धि का क्या भावार्थ है?
अथवा
ग्लोबल वार्मिंग का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वायुमण्डल में गैसों की मात्रा व सान्द्रता लगभग स्थिर रहती है किन्तु कार्बन डाइऑक्साइड एक ऐसी गैस है जिसकी मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस गैस की मात्रा प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। यह गैस भारी होने के कारण वायुमण्डल के निचले भाग में धरातल के समीप ही एक परत के रूप में जमा हो जाती है। यह परत पृथ्वी से होने वाले ऊष्मीय विकिरण को वापस पृथ्वी की ओर लौटा देती है। इसके कारण पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि होती है। इस प्रकार पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि को ही भूमण्डलीय तापन/वैश्विक ताप वृद्धि/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।
प्रश्न 7.
‘गौरव संग स्थानान्तरण’ की नीति क्यों अपनायी जा रही है?
उत्तर:
वर्तमान में विश्व के अन्दर बढ़ती हुई वैश्विक तापन की स्थिति के कारण सागरों के अन्दर स्थित द्वीपों वे समुद्र तटीय क्षेत्रों के निवासियों के सामने जलस्तर के ऊपर उठने से अनेक समस्याएँ खड़ी हो रही हैं। करबाती (Kirbati) प्रवाल द्वीप समूह जैसे देशों से बाहर जाने वाले तो बहुत हैं लेकिन महासागरीय जलस्तर बढ़ जाने के कारण अपने घर वापस आने की सम्भावना नहीं है। इन जलवायवीय कारणों से भविष्य में मानव जनसंख्या के स्थानान्तरण बड़े पैमाने पर होने वाले हैं। अतः विश्वस्तर पर सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक सामंजस्य स्थापित करना सभी की नैतिक एवं मानवीय जिम्मेदारी होती है। इसी कारण किरबाती एवं कई द्वीपीय देश ‘गौरव संग स्थानान्तरण” (Migration with dignity) की नीति अपनाते हुए विश्व रूपी मंचों पर गुहार लगा रहे हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II
प्रश्न 1.
हरित गृह प्रभाव हेतु उत्तरदायी गैसों की उत्पत्ति एवं उनके स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानव की कौन-सी क्रियाएँ गैसों की मात्रा में वृद्धि (उत्पत्ति) कर रही हैं?
उत्तर:
तीव्र औद्योगीकरण तथा वाहनिक प्रदूषणों के कारण प्रदूषित गैसों की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। कोयला, खनिज तेल, लकड़ी आदि के जलने, प्राणियों की श्वसन क्रिया, ज्वालामुखी उद्गार, वनस्पतियों के सड़ने-गलने आदि के कारण वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। मीथेन की उत्पत्ति धान की खेती, प्राकृतिक दलदली भूमियाँ, खनन, दीमक, जैवीय पदार्थों के जलने आदि से होती है। नाइट्रस ऑक्साइड मुख्यत: नाइट्रोजन युक्त खादों के प्रयोग, जैविक पदार्थों एवं जीवाश्मी ईंधनों के जलने से उत्पन्न होती है। नायलोन के औद्योगिक उत्पादन से भी इसकी मात्रा बढ़ती है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन को निर्माण रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार हरित गृह प्रभाव में कार्बन डाइऑक्साइड का योगदान 57 प्रतिशत, मीथेन का योगदान 18 प्रतिशत, नाइट्रस ऑक्साइड का योगदान 6 प्रतिशत, क्लोरो फ्लोरो कार्बन का योगदान 17 प्रतिशत होता है।
प्रश्न 2.
हरित गृह प्रभाव को नियंत्रित करने वाले उपायों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हरित गृह प्रभाव को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
हरित गृह प्रभाव के कारण सम्पूर्ण जैव मण्डल के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। इस प्रभाव को नियंत्रित करने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
- हरित गृह प्रभाव के लिए सर्वाधिक योगदान करने वाली गैस कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में हो रही वृद्धि पर रोक लगानी होगी। इसके लिए जीवाश्मी ईंधनों के जलाने में कमी करनी होगी। वैकल्पिक ऊर्जा साधनों को अधिक प्रयोग करना होगा।
- बड़े स्तर पर हो रहे वन विनाश को रोकने के साथ ही वन क्षेत्रों का विस्तार किया जाना चाहिए।
- जनसंख्या वृद्धि को रोकने के कारगर उपाय करने होंगे।
- वाहनों तथा उद्योगों में ऐसे उपकरण लगाए जाएं, जिससे प्रदूषित गैसें कम से कम निकलें तथा वायुमण्डल में जाने से पूर्व ही उनका विघटन हो जाए।
- क्लोरो फ्लोरो कार्बन के उत्पादन को निम्नतम स्तर पर लाने का प्रयास हो।
- रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग सीमित मात्रा में किया जाए। इनके स्थान पर जैविक खादों का उपयोग किया जाना चाहिए।
प्रश्न 3.
भूमण्डलीय तापन को नियंत्रित करने वाले उपायों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्विक ताप वृद्धि को किस प्रकार कम किया जा सकता है?
उत्तर:
विश्व के तापमान में हो रही वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
- जीवाश्मी ईंधनों; जैसे– कोयला, खनिज तेल, गैस आदि के उपयोग में कमी की जानी चाहिए। इनके स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग किया जाना चाहिए।
- पृथ्वी पर वृक्षारोपण करके वन क्षेत्रों का विस्तार किया जाना चाहिए।
- जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- उद्योगों एवं वाहनों में ऐसे उपकरण लगाए जाएँ, जिससे इनके कारण होने वाला प्रदूषण कम हो।
- सतत् विकास की अवधारणा को अपनाकर अपनी क्रियाओं को संचालित करना।
- पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित किए बिना अपनी क्रियाएँ सम्पन्न करना।
- लोगों में जागरूकता उत्पन्न करना।
- विभिन्न संरक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जैविक व अजैविक घटकों के मध्य सामंजस्य बनाये रखना।
- विकसित व विकासशील देशों हेतु दोहरे मापदण्डों को समान करना।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हरित गृह प्रभाव को स्पष्ट करते हुए इसमें मिलने वाली गैसों के संगठन व इसके दुष्परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायुमण्डल में विद्यमान कुछ गैसें सौर विकिरण (लघु तरंगों) के लिए तो पारगम्य होती हैं किन्तु पार्थिव विकिरण (दीर्घ तरंगों) के लिए अपारगम्य होती हैं जिसके कारण पार्थिव विकिरण का पश्च विकिरण होने से धरातलीय तापमान में वृद्धि होने लगती है। ऐसी गैसों (CO2, N2O, CFc, SF6) से उत्पन्न प्रभाव को हरित गृह प्रभाव कहते हैं।
हरित गृह प्रभाव की स्थिति – अधिक ठण्डे प्रदेशों में जहाँ सूर्यातप का सर्दियों में अभाव रहती है। विशेषकर फलों व सब्जी के पौधों को पैदा करने के लिए हरित गृहों को प्रयोग किया जाता है। इन हरित गृहों के शीशे ऐसे होते हैं कि उनसे होकर सूर्य प्रकाश अन्दर तो पहुँच जाता है, किन्तु दीर्घ तरंगों के रूप में पृथ्वी से होने वाला विकिरणं इन घरों से बाहर नहीं जा पाता है। परिणामस्वरूप घरों के अन्दर तापमान बढ़ जाता है। पृथ्वी पर वायुमण्डल की स्थिति भी हरित गृहों के समान होती है।
हरित गृह गैसे – जलवाष्प प्राकृतिक रूप से पृथ्वी को गर्म बनाए रखती है, परन्तु मानवीय कारणों से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि गैसें पृथ्वी पर हरित गृह प्रभाव उत्पन्न कर रही हैं। इन गैसों को ‘हरित गृह गैसें भी कहते हैं। हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख है। वायुमण्डल में इसकी मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
हरित गृह गैसों का संगठन – हरिल गृह प्रभाव की स्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 57 प्रतिशत, मीथेन का योगदान 18 प्रतिशत, नाइट्रस ऑक्साइड का प्रतिशत लगभग 6 और क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों का योगदान 17 प्रतिशत मिलता है।
हरित ग्रह प्रभाव के दुष्परिणाम – हरित गृह प्रभाव धरातल पर ताप वृद्धि के द्वारा जैविक, अजैविक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक दशाओं को प्रभावित करता है इसके द्वारा उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों को निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है-
- तापमान में वृद्धि – पृथ्वी के तापमान में हो रही वृद्धि मानव जनित हरित गृह प्रभाव का एक प्रमुख दुष्परिणाम है। प्रकृति में हरित गृह गैसों का बढ़ना इसका प्रमुख कारण है। तापमान में वृद्धि के कारण पृथ्वी पर अनेक जलवायु परिवर्तन होंगे। मौसम में हो रही विसंगतियाँ इसी का परिणाम हैं।
- वर्षा में वृद्धि – पृथ्वी का तापमान बढ़ने से जलीय भागों से वाष्पीकरण अधिक होगा। परिणामस्वरूप वर्षा अधिक होगी।
- ध्रुवों की बर्फ की पिघलना – पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि के कारण ध्रुवों एवं पर्वत चोटियों की बर्फ पिघलने लगेगी।
- समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि – विश्व के औसत तापमान में वृद्धि के कारण ध्रुवीय तथा पर्वतीय क्षेत्रों की बर्फ पिघलने से समुद्रों का जलस्तर ऊपर उठेगा। परिणामस्वरूप अनेक समुद्र तटीय भाग जल में डूब जाएंगे।
- कृषि पर प्रभाव – वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन होने से कृषि भी प्रभावित होगी।
- जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों पर प्रभाव – जिन जीव-जन्तुओं की ताप सहन करने की क्षमता कम हैं, वे नष्ट हो जाएंगे। समुद्री जलस्तर में वृद्धि होने से तटवर्ती भागों की वनस्पति जलमग्न हो जाएगी।
प्रश्न 2.
भूमण्डलीय ऊष्मन को स्पष्ट करते हुए इसके प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वैश्विक ताप वृद्धि के क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं? स्पष्ट कीजिये।
अथवा
ग्लोबल वार्मिंग किस प्रकार विश्व के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है?
उत्तर:
समस्त विश्व के बिगड़ते हुए पर्यावरण संतुलन एवं प्रदूषण के कारण पृथ्वी के तापमान में जो निरन्तर वृद्धि हो रही है, ऐसी स्थिति ही भूमण्डलीय ऊष्मन कहलाती है। भूमण्डलीय ऊष्मन की इस प्रक्रिया के लिए हरित गृह गैसों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसमें भी कार्बन डाइऑक्साइड गैस सर्वाधिक उत्तरदायी गैस है। इस गैस के भारी होने के कारण वायुमण्डल के निचले । भाग में धरातल के समीप एक परत का निर्माण हो जाता है। गैस की इस परत के निर्माण से पृथ्वी से होने वाले ऊष्मीय विकिरण को अवरोधन होकर पुन: पृथ्वी की ओर आगमन होता है। इसके कारण पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि होती है। इस प्रकार तापमान बढ़ने की प्रक्रिया भूमण्डलीय ऊष्मन के रूप में उभरकर सामने आती है।
भूमण्डलीय ऊष्मन के प्रभाव – भूमण्डलीय ऊष्मन (वैश्विक ताप वृद्धि) के अनेक प्रभाव पड़ते हैं। इन प्रभावों का वर्णन निम्नानुसार है-
- तापमान में वृद्धि के कारण जलवायु में बहुत बड़े परिवर्तन होंगे। वर्तमान में मौसम में देखी जा रही विसंगतियाँ इसी वृद्धि का परिणाम हैं।
- पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से वर्षा के प्रारूप में व्यापक परिवर्तन होगा। तापमान बढ़ने से जलीय भागों का वाष्पीकरण अधिक होगा। अधिक जलवाष्प तथा तापमान से वर्षा अधिक होती है। फलस्वरूप ऋतु चक्र बदल जाएगा। ग्रीष्मकाल की अवधि बढ़ेगी तथा शीतकाल की कम होगी।
- भूमण्डलीय ऊष्मन के कारण ऐलनीनो प्रभाव में वृद्धि होगी तथा चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ेगी।
- विश्व के औसत तापमान में वृद्धि के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों तथा पर्वतीय शिखरों की बर्फ पिघलने से समुद्रों का जलस्तर ऊपर उठेगा। इसके फलस्वरूप समुद्र तटीय भाग जलमग्न हो जाएंगे। महासागरों में स्थित द्वीप डूब जाएंगे।
- तापमान में वृद्धि के कारण हिमनदों की बर्फ अधिक मात्रा में पिघलेगी। फलस्वरूप उनसे निकलने वाली नदियों में पानी की मात्रा बढ़ने से भीषण बाढ़ आ सकती है।
- तापमान वृद्धि के कारण होने वाले ऋतु चक्र परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव कृषि पर पड़ेगा। इससे कृषि का प्रारूप बदल जायेगा तथा कृषि प्रणालियाँ बदल जाएँगीं।
- तापमान वृद्धि के कारण पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा।
प्रश्न 3.
जलवायु परिवर्तन से क्या अभिप्राय है? वर्तमान में हो रहे जलवायु परिवर्तन के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान की औसत मौसमी दशाओं के योग को जलवायु कहते हैं। जब इन औसत मौसमी दशाओं (तापमान, वर्षा, आर्द्रता व दाब आदि) में परिवर्तन हो जाता है, तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास के अध्ययनों से यह प्रमाणित हो चुका है पृथ्वी पर आरम्भ से ही जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं। वर्तमान में जहाँ मरुस्थलीय प्रदेश हैं, वहाँ प्राचीन काल में हरे-भरे खेत लहराते थे। इसी प्रकार आज जहाँ स्थलीय भाग हैं, वहाँ पहले जलीय भाग थे। इन परिवर्तनों में प्रमाणों के रूप में शैलों के स्वरूप, शैल क्रम, शैलों व जलीय भागों में जमा निक्षेपों, जीवाश्मों, रेडियो आइसोटोप्स आदि को शामिल किया जाता है। पृथ्वी के प्रारम्भिक काल से वर्तमान तक इस पर ध्रुवों तथा कर्क, मकर व विषुवत रेखाओं की स्थितियों में परिवर्तन हुए हैं। पृथ्वी पर क्रमिक रूप से हिमयुगों का आगमन होता रहा है। इन हिमयुगों के समय पृथ्वी पर सभी भागों पर बर्फ की चादर फैल गई थी।
जलवायु परिवर्तन के प्रमुख स्वरूप (उदाहरण) – वर्तमान में पृथ्वी की जलवायु में निम्नलिखित प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं
- पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन् 2050 तक पृथ्वी का तापमान 1.5 से 4.5 सेल्सियस तक बढ़ जायेगा।
- पृथ्वी पर वर्षा की मात्रा एवं क्षेत्रीय वितरण में परिवर्तन हो रहा है।
- हिमनदों की बर्फ पिघल रही है फलस्वरूप वे पीछे की ओर सिकुड़ रहे हैं।
- समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि हो रही है। इसके परिणामस्वरूपं समुद्र तटीय भागों पर जल का विस्तार हो रहा है। मालदीव एवं असंख्य प्रशान्त महासागरीय द्वीप इस खतरे की चपेट में आ चुके हैं।
- पृथ्वी पर ऋतु चक्र में परिवर्तन दिखाई देने लगा है।
- भारत में गंगोत्री हिमनद 1985 और 2001 के बीच 368 मीटर कम हुआ है।
- अण्टार्कटिका के ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं जिससे सागरीय जल की मात्रा में वृद्धि हो रही है।
- विश्व में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ती जा रही है।
- विभिन्न प्रकार की बीमारियों में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
- जैव विविधता में निरन्तर कमी आ रही है।
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