Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 महासागरीय जल की गतियाँ
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
महासागरों में जल की गतियाँ कितने प्रकार की होती हैं?
(अ) 1
(ब) 2
(स) 3
(द) 4
उत्तर:
(स) 3
प्रश्न 2.
दीर्घ ज्वार आने का क्या कारण है?
(अ) तटरेखा का दंतुरित होना
(ब) जब सूर्य, पृथ्वी व चन्द्रमा का समकोण स्थिति में होना
(स) सूर्य, पृथ्वी व चन्द्रमा का एक सीध में होना
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) सूर्य, पृथ्वी व चन्द्रमा का एक सीध में होना
प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा कितने समय के अन्तराल पर आता है?
(अ) 12 घण्टे 26 मिनट
(ब) 12 घण्टे 56 मिनट
(स) 12 घण्टे 36 मिनट
(द) 12 घण्टे 46 मिनट
उत्तर:
(अ) 12 घण्टे 26 मिनट
प्रश्न 4.
गल्फ स्ट्रीम की धारा है
(अ) ठण्डी
(ब) गर्म
(स) आई
(द) शीतोष्ण
उत्तर:
(ब) गर्म
प्रश्न 5.
कौन-सी धारा अटलांटिक महासागर की धारा नहीं है?
(अ) गल्फ स्ट्रीम
(ब) लैब्रोडोर
(स) फाकलैण्ड
(द) क्यूरोशिवो
उत्तर:
(द) क्यूरोशिवो
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
महासागरों की मुख्य गतियाँ बताइए।
उत्तर:
महासागरों में तीन मुख्य प्रकार की गतियाँ होती हैं-
- लहरें,
- ज्वार-भाटा,
- धाराएँ।
प्रश्न 7.
महासागरीय लहरों की उत्पत्ति के कारण क्या हैं?
उत्तर:
महासागरीय लहरों की उत्पत्ति के दो मुख्य कारण निम्न हैं-
- पवन का चलना तथा
- भूपटल में गति होने से जल की सतह का तरंगित होना।
प्रश्न 8.
तरंगदैर्ध्य क्या है?
उत्तर:
दो तरंग शृंगों के बीच की दूरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।
प्रश्न 9.
ज्वार-भाटे के प्रकार बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी, चन्द्रमा तथा सूर्य की अपेक्षित स्थित के अनुसार उनकी (ज्वार-भाटा) ऊँचाई घटती तथा बढ़ती है। इस आधार पर ज्वार-भाटे के निम्न दो प्रकार होते हैं-
- वृहत्त अथवा दीर्घ ज्वार,
- लघु अथवा निम्न ज्वार।
प्रश्न 10.
उष्ण धाराएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो धाराएँ गर्म क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर चलती हैं तथा इनके जल का तापमान अधिक होने के कारण जिन क्षेत्रों में ये चलती हैं वहाँ को तापमान बढ़ा देती हैं। ये प्रायः भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चलती हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
तरंग शृंग व तरंग गर्त में क्या अन्तर है?
उत्तर:
तरंग श्रृंग – तरंग का एक भाग ऊपर उठा हुआ होता है जिसे तरंग श्रृंग कहते हैं।
तरंग गर्त – तरंग का दूसरा भाग नीचे फँसा हुआ होता है जिसे तरंग गर्त कहते हैं।
प्रश्न 12.
तरंगों के प्रकार बताइए।
उत्तर:
पवन द्वारा उत्पन्न तरंगें तीन प्रकार की होती हैं-
- सी,
- स्वेल या महातरंग,
- सर्फ।
1. सी – जब कभी सागर में विभिन्न तरंगदैर्ध्य तथा दिशाओं वाली तरंगें एक साथ उत्पन्न हो जाती हैं तो एक अनियमित तरंग प्रारूप बनता है जिसे ‘सी’ कहते हैं।
2. स्वेल या महातरंग-जब तरंगें उन पवनों के प्रभाव क्षेत्र से दूर चली जाती हैं जिन्होंने उन्हें बनाया है तब वे तरंगें एक समान ऊँचाई तथा आवर्त काल के साथ नियमित रूप धारण कर लेती हैं। इनको स्वेल या महातरंग कहते हैं।
3. सर्फ – जब तरंगें समुद्री तट के निकट पहुँचती हैं तो उनकी ढालें तीव्र हो जाती हैं और ऊँचाई बढ़ जाती है। तट पर पहुँचने के बाद ये वापस सागर की ओर आती हैं। तटीय क्षेत्रों में इन टूटती हुई तरंगों को सर्फ या फेनिल कहते हैं।
अन्य तरंगें-इन तरंगों के अलावा सुनामी, तूफानी तरंगें, अंत: तरंगें भी होती हैं।
प्रश्न 13.
ज्वार-भाटा किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वार-भाटा सागरीय जल की गतियों का महत्त्वपूर्ण प्रक्रम है, क्योंकि चन्द्रमा व सूर्य के आकर्षण से उत्पन्न ज्वारीय तरंगें नियमित रूप से ऊपर उठती तथा गिरती हैं। समुद्र का जलस्तर सदा एक सा नहीं रहता। यह समुद्री जल दिन में दो बार निश्चित अन्तराल पर ऊपर उठता तथा नीचे गिरता है। समुद्री जलस्तर के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटा का स्वभाव व ऊँचाई विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग होती है।
प्रश्न 14.
दीर्घ ज्वारे व लघु ज्वार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
दीर्घ ज्वार व लघु ज्वार में निम्न अन्तर मिलते हैं-
दीर्घ ज्वार | लघु ज्वार |
(i) दीर्घ ज्वार की स्थिति पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन होती है। | (i) लघु ज्वार की स्थिति शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन होती है। |
(ii) दीर्घ ज्वार की स्थिति में सूर्य, चन्द्रमा व पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं। | (ii) लघु ज्वार की स्थिति में सूर्य, पृथ्वी व चन्द्रमा समकोण की स्थिति में होते हैं। |
(iii) दीर्घ ज्वार के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण सूर्य व चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल का अधिक होना हैं। | (iii) लघु ज्वार के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण सूर्य व चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का एक-दूसरे के विरुद्ध काम करना है। |
(iv) दीर्घ ज्वार अधिक ऊँचाई वाला ज्वार होता है। | (iv) लघु ज्वार निम्न ऊँचाई वाला ज्वार होता है। |
प्रश्न 15.
महासागरीय धाराएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर विशेष दिशा में जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। धारा के दोनों किनारों पर तथा उसके नीचे जल स्थिर रहता है। दूसरे शब्दों में महासागरीय धाराएँ स्थल पर बहने वाली नदियों के समान हैं, परन्तु महासागरीय धाराएँ स्थलीय नदियों की अपेक्षा कहीं अधिक गतिशील होती हैं। मोंक हाऊस के अनुसार, “धारा की जलराशि का संचालन एक निश्चित दिशा में होता है।”
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
महासागरीय जल की गतियों एवं लहरों को समझाइए तथा तरंगों के प्रकार की व्याख्या करें।
उत्तर:
महासागरीय जल कभी भी स्थिर नहीं रहता है क्योंकि इस पर विभिन्न कारकों का प्रभाव पड़ता है। अतः महासागरीय जल सदैव गतिशील रहता है। इसका संचरण एक अत्यधिक जटिल परिघटना है, जिसे नियंत्रित एवं प्रभावित करने वाले कारकों में विविधता पाई जाती है। यदि वायु में गति नहीं होती तो महासागरीय जल भी स्थिर रहता। वायु तथा महासागरीय जल के घर्षण से जल में उर्मिकाएँ या लहरें पैदा होती हैं। पवनों का प्रभाव सागरों के भीतर लगभग 100 मीटर की गहराई तक पड़ता है। महासागरों में तीन प्रमुख प्रकार की गतियाँ होती हैं-
- लहरें,
- ज्वार-भाटा,
- धाराएँ।
1. लहरें – लहरें महासागर की तरल सतह का विक्षोभ होती हैं। यह महासागरीय जल की सबसे व्यापक एवं सर्वत्र होने वाली गति है। यह पवनों के चलने व भूपटल में गति होने से जल की सतह के तरंगित होने से उत्पन्न होती है।
2. ज्वार-भाटा – चन्द्रमा व सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण समुद्री जल स्तर के ऊपर उठने की प्रक्रिया को ज्वार तथा नीचे उतरने की प्रक्रिया को भाटा कहते हैं।
3. धाराएँ – महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर विशेष दिशा में जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।
लहरों/तरंगों का स्वरूप
1. तरंग शृंग – तरंग का एक भाग ऊपर उठा हुआ होता है जिसे तरंग श्रृंग कहते हैं।
2. तरंग गर्त – तरंग का दूसरा भाग नीचे धंसा हुआ होता है जिसे तरंग गर्त कहते हैं।
3. तरंग दैर्ध्व-दो तरंग श्रृंगों के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं।
तरंग की गति तरंग की गति उसके दैर्ध्य तथा आवृत-काल से सम्बन्धित है और इसे निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है।
तरंगों के प्रकार – पवन द्वारा उत्पन्न तरंगें तीन प्रकार की होती हैं।
- सी – जब कभी सागर में विभिन्न तरंग दैर्ध्य तथा दिशाओं वाली तरंगें एक साथ उत्पन्न हो जाती हैं तो एक अनियमित तरंग . प्रारूप बन जाता है जिसे ‘सी’ कहते हैं।
- स्वेल या महातरंग – जब तरंगें उन पवनों के प्रभाव क्षेत्र से दूर चली जाती हैं जिन्होंने उन्हें बनाया है तब वे तरंगें एक समान ऊँचाई तथा आवर्तकाल के साथ नियमित रूप धारण कर लेती हैं। इनको स्वेल या महातरंग कहते हैं।
- सर्फ – जब तरंगें समुद्री तट के निकट पहुँचती हैं तो उनकी ढालें तीव्र हो जाती हैं और ऊँचाई बढ़ जाती है। तट पर पहुँचने के बाद ये वापस सागर की ओर आती हैं। तटीय क्षेत्रों में इन टूटती हुई तरंगों को सर्फ या फेनिल कहते हैं।
अन्य तरंगें – पवन निर्मित तरंगों के अलावा कई अन्य प्रकार की समुद्री तरंगें भी होती हैं। इनमें प्रलयकारी तरंगें (सुनामी), तूफानी तरंगें, अंत: तरंगें आदि प्रमुख हैं। इन तरंगों की रचना भूकम्प, ज्वालामुखी या महासागरीय भूस्खलन से होती है।
प्रश्न 17.
ज्वार-भाटा किसे कहते हैं? इसकी उत्पत्ति एवं प्रकार का वर्णन करें।
उत्तर:
ज्वार – भाटा – ज्वार-भाटा सागरीय जल की गतियों का महत्वपूर्ण प्रक्रम है, क्योंकि चन्द्रमा व सूर्य के आकर्षण से उत्पन्न ज्वारीय तरंगें नियमित रूप से ऊपर उठती तथा गिरती हैं। समुद्र का जलस्तर सदा एक सा नहीं रहता। यह समुद्री जल दिन में दो बार निश्चित अन्तराल पर ऊपर उठता तथा नीचे गिरता है। समुद्री जलस्तर के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति पृथ्वी, चन्द्रमा तथा सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण होती है। ज्वार-भाटा का स्वभाव तथा ऊँचाई विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग होती है।
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति – ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का कारण चन्द्रमा, सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है। गुरुत्वाकर्षण द्वारा सम्पूर्ण पृथ्वी, सूर्य तथा चन्द्रमा की ओर खिंचती है। परन्तु इसका प्रभाव स्थल की अपेक्षा जल पर अधिक पड़ता है। यद्यपि सूर्य, चन्द्रमा से बहुत बड़ा है तो भी चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव सूर्य के प्रभाव से लगभग दो गुना है। इसका कारण यह है कि सूर्य, चन्द्रमा की अपेक्षा पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर स्थित है। ज्वार-भाटे के प्रकार-ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं-
- वृहत अथवा दीर्घ ज्वार,
- लघु अथवा निम्न ज्वार।
1. वृहत अथवा दीर्घ ज्वार – यह स्थिति पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन होती है। जब सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा तीनों एक सीध में होते हैं। यह स्थिति युत-वियुत अथवा सिजिगी कहलाती है। महीने में एक बार चन्द्रमा इतना पतला नजर आता है कि वह आकाश में चाँदी के एक डोरे की भाँति रह जाता है। इसके विपरीत एक बार चन्द्रमा सम्पूर्ण कलाओं से युक्त होकर वह आकाश में पूर्ण रूप से खिला हुआ नजर आता है। हर महीने में इन दोनों बार सबसे वृहत अथवा दीर्घ ज्वार उत्पन्न होते हैं। जब सूर्य व चन्द्रमा दोनों पृथ्वी के एक ओर होते हैं तो उसे युति कहते हैं तथा जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी होती है। तो उसे वियुति कहते हैं। इस प्रकार युति की स्थिति अमावस्या को एवं वियुति की स्थिति पूर्णिमा को होती है। ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर चन्द्रमा व सूर्य के सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है जिससे दीर्घ ज्वार का निर्माण होता है।
2. लघु अथवा निम्न ज्वार – ये साधारण ज्वार की अपेक्षा 20 प्रतिशत कम ऊँचे होते हैं। महीने के दो दिन शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जब सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा समकोण की स्थिति होते हैं लघु ज्वार उत्पन्न होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा में गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं। फलस्वरूप एक कम ऊँचाई वाले ज्वार का निर्माण होता है जिसे निम्न या लघु ज्वार कहते हैं।
प्रश्न 18.
महासागरीय धाराओं को परिभाषित करते हुए विश्व के महासागरों की धाराओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर विशेष दिशा में जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। धारा के दोनों किनारों पर तथा उसके नीचे जल स्थिर रहता है। दूसरे शब्दों में, महासागरीय धाराएँ स्थल परबहने वाली नदियों के समान हैं-परन्तु महासागरीय धाराएँ स्थलीय नदियों की अपेक्षा कहीं अधिक विशाल होती हैं। मोंक हाऊस के अनुसार, “धारा के जलराशि का संचालन एक निश्चित दिशा में होता है।”
विश्व के महासागरों की धाराएँ – सम्पूर्ण विश्व में मिलने वाले महासागरों में अनेक धाराएँ मिलती हैं। इन धाराओं को निम्न तालिका द्वारा दर्शाया गया है-
विश्व के महासागरों में मिलने वाली इन सभी धाराओं को निम्न मानचित्र के द्वारा दर्शाया गया है-
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सागर तल पर वायु के घर्षण से जल के ऊपर-नीचे होने को कहते हैं।
(अ) प्रवाह
(ब) धारा
(स) लहर
(द) ज्वार
उत्तर:
(स) लहर
प्रश्न 2.
लहरों को महासागर की तरल सतह का विक्षोभ किसने माना है?
(अ) रिचर्ड ने
(ब) डेली ने
(स) डार्विन ने
(द) मरे ने
उत्तर:
(अ) रिचर्ड ने
प्रश्न 3.
निम्न में से जो तरंग का प्रकार नहीं है, वह है।
(अ) सी
(ब) सर्फ
(स) स्वेल
(द) ज्वार
उत्तर:
(द) ज्वार
प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति में निम्नलिखित में से किसका प्रभाव अधिक होता है?
(अ) सूर्य
(ब) चन्द्रमा
(स) पृथ्वी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) चन्द्रमा
प्रश्न 5.
युति-वियुति की स्थिति होती है, जब
(अ) सूर्य व चन्द्रमा एक सीध में होते हैं
(ब) चन्द्रमा व पृथ्वी एक सीध में होते हैं।
(स) पृथ्वी, सूर्य व चन्द्रमा समकोण पर होते हैं
(द) चन्द्रमा, सूर्य व पृथ्वी एक सीध में होते हैं।
उत्तर:
(द) चन्द्रमा, सूर्य व पृथ्वी एक सीध में होते हैं।
प्रश्न 6.
चन्द्रमा कितने दिन में पृथ्वी को एक चक्कर लगाता है?
(अ) 30 दिन
(ब) 28 दिन
(स) 27\(\frac { 1 }{ 2 }\) दिन
(द) 27\(\frac { 1 }{ 3 }\) दिन
उत्तर:
(ब) 28 दिन
प्रश्न 7.
पृथ्वी से चन्द्रमा की कम दूरी कहलाती है।
(अ) अपसौर
(ब) उपभू
(स) उपसौर
(द) अपभू
उत्तर:
(ब) उपभू
प्रश्न 8.
वृहत ज्वार आता है।
(अ) अमावस्या को
(ब) पूर्णिमा को
(स) शुक्ल पक्ष अष्टमी को
(द) अ व ब दोनों
उत्तर:
(द) अ व ब दोनों
प्रश्न 9.
फ्लोरिडा धारा कहाँ मिलती है?
(अ) अफ्रीका के पूर्वी तट पर
(ब) ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर
(स) दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर
(द) मैक्सिको की खाड़ी के पूर्वी भाग में
उत्तर:
(द) मैक्सिको की खाड़ी के पूर्वी भाग में
प्रश्न 10.
ओयाशिवो धारा मिलती है-
(अ) एशिया के पूर्वी भाग में
(ब) हिन्द महासागर में
(स) उत्तरी अटलांटिक में
(द) अफ्रीका के पूर्वी भाग में
उत्तर:
(अ) एशिया के पूर्वी भाग में
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए।
स्तम्भ अ (नामकरण) |
स्तम्भ ब (जल की स्थिति) |
(i) लहर | (अ) निश्चित सीमा व निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली जलराशि। |
(ii) धारा | (ब) वायु के प्रवाह से जल में हलचल होना किन्तु जल का गतिमान न होना। |
(iii) तरंग | (स) गुरुत्वाकर्षण शक्ति से समुद्री जल का ऊपर उठना। |
(iv) ज्वार | (द) समुद्री जल का नीचे उतरना। |
(v) भाटा | (य) सागरीय सतह पर जल का दोलायमान रूप से गति करना। |
उत्तर:
(i) य, (ii) अ, (iii) ब, (iv) स, (v) द।
प्रश्न 2.
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए
स्तम्भ अ (धारा का नाम) |
स्तम्भ ब (प्रवाह क्षेत्र) |
(i) कनारी धारा | (अ) दक्षिणी अफ्रीका के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर |
(ii) ब्राजील धारा | (ब) साइबेरिया के पूर्वी तट पर |
(iii) पेरू की धारा | (स) उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर |
(iv) बेंगुएला धारा | (द) बेफिन की खाड़ी से न्यू फाउण्ड लैंड उभार तक |
(v) पूर्वी ऑस्ट्रेलियन धारा | (य) दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर |
(vi) क्यूराइल धारा | (र) ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में |
(vii) लैब्रोडोर धारा | (ल) दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर |
(viii) कैलिफोर्निया धारा | (व) अफ्रीका के उत्तरी-पश्चिमी तट पर |
उत्तर:
(i) व, (ii) य, (ii) ल, (iv) अ, (v) र, (vi) ब, (vii) द, (vii) स।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लहरें क्यों पैदा होती हैं?
अथवा
उर्मिकाएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
वायु तथा महासागरीय जल में घर्षण होने से जल में उर्मिकाएँ या लहरें उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 2.
लहर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
लहरें महासागरीय सतह पर मिलने वाले जल की दोलायमान गति होती है। इसमें सागर के जल का स्तर नीचा या ऊँचा होता रहता है। परन्तु अपने स्थान से बहकर अन्य स्थान पर नहीं जाता है।
प्रश्न 3.
तरंग की गति से क्या तात्पर्य है?
अथवा
तरंग गति ज्ञात करने के लिए किस सूत्र का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
तरंग की गति उसके दैर्ध्य तथा आवृत-काल से सम्बन्धित है और इसे निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है-
प्रश्न 4.
तरंग का आकार किन तथ्यों पर निर्भर रहता है?
अथवा
तरंग के बल के पीछे कौन-सी दशाएँ उत्तरदायी होती हैं?
उत्तर:
तरंग का आकार व बल निम्न तथ्यों/दशाओं पर निर्भर करता है-
- पवन की गति,
- पवन के चलने की अवधि,
- पवन के निर्विघ्न बहने की दूरी।
प्रश्न 5.
जल में 15 मीटर ऊँची लहरों का निर्माण कब हो सकता है?
उत्तर:
यदि पवन की गति 160 किलोमीटर प्रति घंटा हो तथा वंह लगातार 50 घंटे तक 1600 किलोमीटर से अधिक दूरी तक निर्विरोध व निरन्तर चलती रहे तो जल में 15 मीटर ऊँची लहरों का निर्माण हो सकता है।
प्रश्न 6.
सी तरंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब कभी सागर में विभिन्न तरंग दैर्ध्य तथा दिशाओं वाली तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं तो एक अनियमित तरंग प्रारूप बन जाता है जिसे ‘सी’ कहते हैं।
प्रश्न 7.
सुनामी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
महासागरीय क्षेत्रों में विवर्तनिक प्रक्रियाओं के कारण जो ऊँची-ऊँची एवं विनाशकारी लहरें उत्पन्न होती हैं उन्हें सुनामी कहा जाता है।
प्रश्न 8.
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति क्यों होती है?
उत्तर:
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति पृथ्वी, चन्द्रमा तथा सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण होती है।
प्रश्न 9.
सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण अधिक प्रभावी क्यों होता है?
उत्तर:
यद्यपि सूर्य चन्द्रमा से बहुत बड़ा है तो भी चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव सूर्य के प्रभाव से लगभग दो गुना है। क्योंकि सूर्य, चन्द्रमा की तुलना में पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर स्थित है।
प्रश्न 10.
उपभू किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब चन्द्रमा पृथ्वी से निकटतम दूरी (356000 किमी) पर होता है तो ऐसी स्थिति उपभू कहलाती है।
प्रश्न 11.
अपभू से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब चन्द्रमा एवं पृथ्वी के बीच की दूरी सर्वाधिक होती है तो ऐसी स्थिति अपभू कहलाती है। इस स्थिति में चन्द्रमा व पृथ्वी के बीच की दूरी 407000 किमी होती है।
प्रश्न 12.
अपसौर किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी सर्वाधिक होती है इसे अपसौर कहा जाता है। ऐसी स्थिति में पृथ्वी व सूर्य के बीच की दूरी (15.2 करोड़) किमी होती है।
प्रश्न 13.
उपसौर से क्या आशय है?
उत्तर:
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी न्यूनतम होती है तो ऐसी स्थिति को उपसौर कहते हैं। ऐसी स्थिति में पृथ्वी व सूर्य के बीच की दूरी 14.7 करोड़ किमी होती है।
प्रश्न 14.
उच्च ज्वार किसे कहते हैं?
अथवा
दीर्घ ज्वार कब आता है?
उत्तर:
अमावस्या एवं पूर्णिमा को जब क्रमशः युति एवं वियुति की स्थिति होती है तो पृथ्वी पर चन्द्रमा एवं सूर्य के सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न होने वाले बल से दीर्घ/उच्च ज्वार उत्पन्न होता है।
प्रश्न 15.
लघु ज्वार कब आता है?
अथवा
लघु ज्वार क्यों उत्पन्न होता है?
उत्तर:
प्रत्येक महीने में शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जब सूर्य पृथ्वी एवं चन्द्रमा समकोण की स्थिति में होते हैं तो लघु ज्वार उत्पन्न होता है।
प्रश्न 16.
दैनिक ज्वार भाटा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी स्थान पर एक दिन में आने वाले एक ज्वार तथा एक भाटा को दैनिक ज्वार-भाटा कहते हैं। यह ज्वार प्रतिदिन 52 मिनट बाद आता है।
प्रश्न 17.
अर्द्धदैनिक ज्वार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी स्थान पर प्रत्येक दिन में दो बार ज्वार आते हैं तो ऐसे ज्वारों को अर्द्धदैनिक ज्वार कहते हैं। इसमें प्रत्येक ज्वार 12 घण्टे 26 मिनट बाद आता है।
प्रश्न 18.
मिश्रित ज्वार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी स्थान में आने वाले असमान अर्द्धदैनिक ज्वार को मिश्रित ज्वार कहते हैं। इसमें दोनों ज्वारों की ऊँचाई असमान होती है।
प्रश्न 19.
महासागरीय धाराओं से क्या आशय है?
उत्तर:
महासागरीय धाराएँ स्थल पर बहने वाली नदियों के समान हैं, परन्तु महासागरीय धाराएँ स्थलीय नदियों की अपेक्षा कहीं अधिक विशाल होती हैं।
प्रश्न 20.
तापमान के आधार पर धाराएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
तापमान के आधार पर धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-
- उष्ण धारा तथा
- ठण्डी धारा।
प्रश्न 21.
ठण्डी धाराएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी धाराएँ जो ठण्डे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर बहती हैं उन्हें ठण्डी धारा कहते हैं। ये धाराएँ ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं। इनके जल का तापमान कम होता है। अतः ये जिन क्षेत्रों में चलती हैं, वहाँ के तापमान को घटा देती हैं।
प्रश्न 22.
अलास्का धारा कहाँ चलती है?
उत्तर:
अलास्का धारा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के सहारे दक्षिण से उत्तर की ओर चलती है।
प्रश्न 23.
उत्तरी भूमध्य रेखीय गर्म धारा (आन्ध्र महासागर) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह गर्म धारा 5°-20° उत्तरी अक्षांशों के मध्य भूमध्य रेखा के समीप बहती है। ये पूर्व में अफ्रीका के तट से पश्चिमी द्वीप समूह तक बहती है। इस धारा का उल्लेख सर्वप्रथम फिण्डले (1853) ने किया था।
प्रश्न 24.
कनारी धारा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह एक ठण्डी जल धारा है। यह उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट मडेरिया से केपवर्ड द्वीपों के मध्य बहती है। गल्फ स्ट्रीम का गर्म जल यहाँ तक पहुँचने पर ठण्डी धारा में बदल जाता है। यह धारा अन्त में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा में मिल जाती है।
प्रश्न 25.
सारगैसो सागर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उत्तरी अटलांटिक महासागर में गल्फ स्ट्रीम, कनारी तथा उत्तरी भूमध्य रेखीय धाराओं के चक्र के बीच में शांत जल के क्षेत्र को सारगैसो कहते हैं। इसके तट पर मोटी समुद्री घास तैरती रहती है। इस घास को पुर्तगाली भाषा में सारगैसम कहते हैं। इसी घास के नाम पर इसका नाम सारगैसो सागर रखा गया है।
प्रश्न 26.
दक्षिणी अटलांटिक डिफ्ट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
तीव्र पछुआ पवनों के प्रभाव से 40° से 60° दक्षिणी अक्षांश के मध्य पश्चिम से पूर्व की ओर जल प्रवाहित होता है। यह वास्तव में ब्राजील धारा का ही पूर्वी विस्तार है किन्तु इसकी प्रकृति बदल जाती है।
प्रश्न 27.
क्यूरोशिवो गर्म जल धारा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा फिलीपाइन द्वीप तक पहुँचने के बाद ताइवान तथा जापान के तट के साथ उत्तरी दिशा में बहने लगती है तथा क्यूरोशिवो धारा के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न 28.
पश्चिमी आस्ट्रेलिया धारा क्या है?
उत्तर:
यह एक ठण्डी जलधारा है। पछुआ पवन ड्रिफ्ट की एक शाखा आस्ट्रेलिया के दक्षिण में बहती हुई निकल जाती है तथा दूसरी शाखा आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट से उत्तर की ओर मुड़ जाती है। इस दूसरी शाखा को ही पश्चिमी आस्ट्रेलिया धारा कहा जाता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I
प्रश्न 1.
लहरों की संरचना में तरंग के कितने भाग होते हैं?
अथवा
तरंग की संरचना में तरंग के कितने भाग होते हैं?
उत्तर:
तरंगों/लहरों की जो संरचना मिलती है उसमें लहर/तरंग के निम्न भाग पाये जाते हैं-
- तरंग श्रृंग,
- तरंग गर्त,
- तरंग दैर्घ्य।
1. तरंग शृंग – तरंग का एक भाग ऊपर उठा हुआ होता है जिसे तरंग शृंग, कहते हैं।
2. तरंग गर्त – तरंग का दूसरा भाग नीचे धंसा हुआ होता है जिसे तरंग गर्त कहते हैं।
3. तरंग दैर्ध्व – दो तरंग शृंगों के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं।
प्रश्न 2.
ज्वार-भाटा संबंधी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटय संबंधी विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
- खुले सागरों एवं महासागरों में जल के निर्बाध रूप से बहने के कारण कम ऊँचा ज्वार उत्पन्न होता है जबकि उथले समुद्रों तथा खाड़ियों में ज्वारीय तरंगें अधिक ऊँची होती हैं।
- ज्वार तथा भाटा के बीच सागरीय सतह का अन्तर ज्वारीय परिसर कहलाता है।
- खुले सागरों में ज्वार का अन्तर कम होता है जबकि उथले समुद्र व खाड़ियों में ज्वार का अन्तर अधिक होता है।
- ज्वार की ऊँचाई पर तटरेखा का प्रभाव पड़ता है।
- ज्वार – भाटा का समय प्रत्येक स्थान पर भिन्न-भिन्न होता है।
प्रश्न 3.
वृहत व लघु ज्वार में क्या अन्तर मिलते हैं?
अथवा
दीर्घ एवं लघु ज्वार की तुलना कीजिए।
उत्तर:
दीर्घ एवं लघु ज्वार में मिलने वाले अन्तर निम्नानुसार हैं-
क्र.सं. | अन्तर का आधार | दीर्घ ज्वार | लघु ज्वार |
1. | उत्पन्न होने का समय | इस प्रकार का ज्वार अमावस्या व पूर्णिमा के दिन उत्पन्न होता है। | इस प्रकार का ज्वार कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आता है। |
2. | उत्पत्ति का कारण | इस प्रकार के ज्वार सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा के एक सीध में आने से उत्पन्न होते हैं। | इस प्रकार के ज्वार सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा के समकोण की स्थिति में आने से उत्पन्न होते हैं। |
3. | गुरुत्वाकर्षण की स्थिति | इस प्रकार के ज्वारों के पीछे गुरुत्वाकर्षण का अधिक होना उत्तरदायी होता है। | इस प्रकार के ज्वारों में गुरुत्वाकर्षण का कम होना उत्तरदायी है। |
4. | लहरों की ऊँचाई | इस प्रकार के ज्वारों में लहरों की ऊँचाई कम होती है। | इस प्रकार के ज्वारों में लहरों की ऊँचाई अधिक होती है। |
प्रश्न 4.
उष्ण एवं शीत धाराओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
गर्म एवं ठण्डी धाराओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
उष्ण एवं शीत धाराओं में निम्न अन्तर पाये जाते हैं-
क्र.सं. | अन्तर का आधार | उष्ण (गर्म) धाराएँ | शीत (ठण्डी) धाराएँ |
1. | धाराओं का बहाव | ये धाराएँ उष्ण क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर चलती हैं। | इन धाराओं का प्रवाहन शीत क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर मिलता है। |
2. | अक्षांशीय आधार पर प्रवाहन | ये धाराएँ भूमध्य रेखीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर चलती हैं। | ये धाराएँ ध्रुवों से भूमध्य रेखीय क्षेत्रों की ओर चलती हैं। |
3. | तापमान पर प्रभाव | ये धाराएँ जिन क्षेत्रों से गुजरती हैं वहाँ का तापमान घटा वहाँ का तापमान बढ़ा देती हैं। | ये धाराएँ जिन क्षेत्रों से गुजरती हैं वहाँ का तापमान घटा देती हैं। |
4. | धाराओं के जल का ताप | इन धाराओं के जल का तापमान अधिक होता है। | इन धाराओं के जल का तापमान कम पाया जाता है। |
प्रश्न 5.
धाराओं की उत्पत्ति हेतु उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
धाराओं की उत्पत्ति किन कारकों का परिणाम होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामुद्रिक क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाली धाराओं की उत्पत्ति के लिए निम्न कारक उत्तरदायी माने गये हैं-
- पृथ्वी को स्वभाव – गुरुत्वाकर्षण, घूर्णन।
- बाहरी समुद्री कारण – वायुदाब एवं पवने, वाष्पीकरण तथा वर्षा।
- अन्त: समुद्री कारण – दाब, ताप, लवणता, घनत्व, हिम का पिघलना।
- धाराओं को रूपान्तरित करने वाले कारक – तटरेखा की आकृति, ऋतु परिवर्तन, सागर तली की रचना इत्यादि।
प्रश्न 6.
गल्फस्ट्रीम एवं लैब्रोडोर धारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गल्फस्ट्रीम एवं लैब्रोडोर धारा में निम्न अन्तर मिलते हैं।
क्र.सं. | अन्तर का आधार | गल्फस्ट्रीम | लैब्रोडोर धारा |
1. | स्वभाव | यह एक गर्म जलधारा है। | यह एक ठण्डी जलधारा है। |
2. | प्रवाह की दिशा | यह जल धारा मुख्यतः दक्षिण से उत्तर-पूर्व की ओर बहती है। | यह जलधारा उत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर बहती है। |
3. | प्रवाहन क्षेत्र | यह जैलधारा, उत्तरी-अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी भाग में प्रवाहित होती है। | इस जलधारा का प्रवाहन उत्तरी-पूर्वी अमेरिका के सहारे बेफिन की खाड़ी व न्यूफाउण्डलैण्ड उभार तक मिलता है। |
4. | उत्पत्ति क्षेत्र | इस धारा की उत्पत्ति भूमध्यरेखीय है। | इस धारा की उत्पत्ति ध्रुवीय है। |
5. | जल का तापमान | इस धारा के जल का तापमान अधिक मिलता है। | इस धारा में जल का तापमान कम मिलता है। |
प्रश्न 7.
ओयाशिवो और क्यूरोशिवो जल धाराओं में क्या अन्तर मिलता है?
अथवा
ओयाशिवो धारा, क्यूरोशिवो जल धारा से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
ओयाशिवो एवं क्यूरोशिवो धाराओं में निम्न अन्तर मिलते हैं।
क्र.सं. | अन्तर का आधार | ओयाशिवो धारा | क्यूशिवो धारा |
1. | स्वभाव | यह एक ठण्डी जलधारा है। | यह एक गर्म जलधारा है। |
2. | प्रवाह की दिशा | यह जलधारा उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। | यह जलधारा जापान के तट से उत्तर की ओर बहने लगती है। |
3. | उत्पत्ति क्षेत्र | यह एक ध्रुवीय उत्पत्ति वाली जलधारा है। | यह एक भूमध्यरेखीय उत्पत्ति वाली जलधारा है। |
4. | बहाव क्षेत्र | यह जलधारा बैरिंग जलडमरूमध्य से शुरू होकर कमचटका प्रायद्वीप के पूर्वी तट के समीप बहती है। | यह जलधारा मुख्यतः फिलीपाइन द्वीप, ताइवान एवं जापान के तट के सहारे बहती है। |
5. | जल का ताप | इस जलधारा का तापमान कम मिलता है। | इस जलधारा का तापमान अधिक मिलता है। |
प्रश्न 8.
महासागरीय धाराओं के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
महासागरीय धाराएँ किस प्रकार अपने प्रवाहित क्षेत्र व उसके समीपस्थ भाग को प्रभावित करती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सागरीय भागों में चलने वाली जलधाराएँ अपने प्रवाहित क्षेत्र एवं उसके समीपस्थ भाग पर निम्न प्रभाव डालती हैं-
- जलधाराओं के निकटवर्ती समुद्रतलीय क्षेत्रों की जलवायु पर इनका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- इन जलधाराओं के द्वारा तापमान, आर्द्रता और वर्षा की स्थिति को नियंत्रित किया जाता है।
- ठण्डी धाराएँ ध्रुवीय एवं उपध्रुवीय क्षेत्रों से अपने साथ प्लवक लाती हैं और मछलियों के लिए खाद्य पदार्थ की आपूर्ति करती
- महासागरों के व्यावसायिक समुद्री जलमार्ग यथासंभव इन जलधाराओं का अनुसरण करते हैं।
- जहाँ ढुण्डी व गर्म जलधाराएँ मिलती हैं वहाँ मौसमी परिवर्तन के साथ मत्स्य संसाधन के विकास हेतु आदर्श स्थिति का निर्माण होता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II
प्रश्न 1.
महासागरीय तरंगों/लहरों से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय जल की सतह पर सदैव लहरें उठती व गिरती रहती हैं। रिचर्ड के मतानुसार, “लहरें महासागर की तरल सतह का विक्षोम हैं।” यह महासागरीय जल की सबसे व्यापक तथा सर्वत्र होने वाली गति है। महासागरीय लहरों की उत्पत्ति के दो मुख्य कारण हैं-
- पवन का चलना तथा
- भूपटल में गति होने से जल की सतह का तरंगित होना।
लहरें महासागरीय सतह की दोलायमान गति है। इसमें सागर के जल का स्तर नीचा या ऊँचा होता रहता है, परन्तु अपने स्थान से बहकर अन्य स्थान पर नहीं जाता। यदि कोई तैरने वाली वस्तु (जैसे – लकड़ी का टुकड़ा) जल स्तर पर फेंक दी जाए तो वह अपने ही स्थान पर ऊपर नीचे या आगे-पीछे होती रहेगी, जबकि तरंगें आगे बहती दिखाई देंगी।
प्रश्न 2.
ज्वार-भाटा के समय में मिलने वाले अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वार-भाटा के समय में अन्तर क्यों मिलता है?
उत्तर:
प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घण्टे 26 मिनट के अंतराल के बाद आता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घण्टे में एक चक्कर पूरा करती है। इस प्रकार प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे बाद ज्वार उत्पन्न होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता है। इसे अन्तर के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारण यह है कि पृथ्वी का एक परिभ्रमण पूर्ण होने पर चन्द्रमा भी अपने पथ पर आगे बढ़ जाता है। चन्द्रमा 28 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण करता है। 24 घण्टे या एक दिन में यह वृत्त का 1/28 भाग तय कर लेता है। पृथ्वी का वह स्थान चन्द्रमा के समक्ष पहुँचने में 52 मिनट लगता है। अत: प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे 26 मिनट बाद दूसरा ज्वार आता है। ज्वार की इस स्थिति को निम्न चित्र की सहायता से समझा जा सकता है-
प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा के क्या-क्या लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ज्वार-भाटा से होने वाले लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा से होने वाले लाभ निम्नानुसार हैं-
- ज्वार ऊर्जा के स्रोत हैं क्योंकि जल के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने से ऊर्जा पैदा की जा सकती है। फ्रांस व जापान में ज्वारीय विद्युत का प्रयोग किया जाता है।
- विश्व के बड़े बंदरगाह समुद्र से दूर नदी के मुहानों पर स्थित हैं (लंदन, कोलकाता आदि) ज्वारीय जल के साथ जलयान भीतर तक आ पाते हैं।
- मछली पकड़ने वाले नाविक ज्वार के साथ खुले समुद्र में मछली पकड़ने जाते हैं तथा भाटा के साथ सुरक्षित तट पर लौट आते हैं।
- ज्वार-भाटे की वापसी लहर समुद्र तट पर बसे नगरों की सारी गंदगी समुद्र में बहाकर ले जाती है।
- ज्वार-भाटे की लहर वापस जाते समय कई समुद्री वस्तुएँ; जैसे-शंख, घोंघे आदि किनारे पर छोड़ जाती है।
- ज्वार-भाटे के कारण समुद्री जल गतिशील एवं साफ रहता है तथा जल जमता नहीं है।
प्रश्न 4.
दक्षिणी अटलांटिक महासागर की धाराओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी अटलांटिक महासागर में मिलने वाली ठण्डी व गर्म जल धाराएँ निम्नानुसार हैं-
- दक्षिणी विषुवतीय गर्म धारा – यह धारा विषुवत रेखा के दक्षिण में उसके समानान्तर पूर्व से पश्चिमी की ओर चलती है।
- ब्राजील गर्म धारा – दक्षिणी विषुवतीय धारा पश्चिम में पहुँचकर ब्राजील के तट के साथ बहने लगती है। यह एक कमजोर
- फाकलैण्ड ठण्डी धारा – दक्षिणी अमेरिका के दक्षिण-पूर्व तट के साथ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। यह अपने साथ अंटार्कटिका प्रदेश से हिम शिलाएँ बहाकर लाती है। गर्म व ठण्डे जल के मिलने से यहाँ कुहासा छाया रहता है।
- बैंग्युला ठण्डी धारा – यह अफ्रीका के दक्षिणी-पश्चिमी तट के सहारे उत्तर की ओर बहने वाली धारा है। यह एक अनियमित तथा कमजोर धारा है।
- दक्षिणी अटलांटिक ड्रिफ्ट – तीव्र पछुआ पवनों के प्रभाव से 40° से 60° दक्षिणी अक्षांश के मध्य पश्चिम से पूर्व की ओर जल प्रवाहित होता है। यह वास्तव में ब्राजील धारा का ही पूर्वी विस्तार है, किन्तु इसकी प्रकृति बदल जाती है।
प्रश्न 5.
हिन्द महासागरीय धाराओं पर मानसून का प्रभाव क्यों पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिन्द महासागर एक अर्द्ध महासागर है। यह उत्तर में भारत, पूर्व में आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में अफ्रीका से घिरा हुआ है। भूमध्य रेखा के उत्तर में इसका विस्तार बहुत कम है। इसलिए इसकी धाराओं पर प्रचलित मानसून पवनों का प्रभाव बहुत प्रबल होता है और शीत तथा ग्रीष्म ऋतुओं में उनकी दिशा उलटने के साथ-साथ धाराओं की दिशाएँ भी उल्टी हो जाती हैं। मानूसन पवनों द्वारा प्रभावित धाराएँ मानसून ड्रिफ्ट या मानूसने अपवाह कहलाती हैं। प्रशान्त महासागर व अटलांटिक महासागर की भाँति हिन्द महासागर की धाराओं को भी दो भागों में विभक्त किया गया है
- उत्तरी हिन्द महासागर की धाराएँ तथा
- दक्षिणी हिन्द महासागर की धाराएँ।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 18 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तरी अटलांटिक महासागर की धाराओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आन्ध्र महासागर के उत्तरी भाग से बहने वाली धाराओं का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशान्त महासागर के पश्चात् अटलांटिक (आन्ध्र) महासागर विश्व का दूसरा बड़ा महासागर है। इसकी आकृति अंग्रेजी वर्णमाला के S अक्षर के समान है। भूमध्य रेखा इस महासागर को दो भागों में बाँटती है। भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर मिलने वाले इस महासागर के भाग को ही उत्तरी अटलांटिक महासागर कहा जाता है। भूमध्य रेखा के दक्षिणी भाग में दक्षिणी अटलांटिक महासागर का विस्तार मिलता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर में ठण्डी एवं गर्म जलधाराएँ बहती हैं जिनका वर्णन निम्नानुसार है-
(i) उत्तरी भूमध्य रेखीय गर्म धारा – यह धारा 5 से 20° उत्तरी अक्षांशों के मध्य भूमध्य रेखा के समीप बहती है। यह पूर्व में अफ्रीका के तट से पश्चिमी द्वीप समूह तक बहती है। इस धारा का उल्लेख सर्वप्रथम फिण्डले (1853) ने किया था।
(ii) अंटाईल्स गर्म धारा – ब्राजील के साओरॉक अंतरीप के निकट दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा दो भागों में बँट जाती है। उत्तरी शाखा उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा में मिलकर कैरीबियन सागर तथा मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करती है। इसका शेष भाग पश्चिमी द्वीप समूह के पूर्वी किनारे पर अंटाईल्स धारा के नाम से जाना जाता है।
(iii) फ्लोरिडा धारा – यह वास्तव में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा का ही विस्तार है जो युकाटन चैनल से होकर मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करता है। इसके लक्षण विषुवतीय जलराशि जैसे ही हैं।
(iv) उत्तरी अटलांटिक धारा – ग्रांड बैंक से दूर गल्फ स्ट्रीम पर पछुआ पवनों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यह पूर्व की ओर मुड़ जाती है।
(v) गल्फ स्ट्रीमगर्म धारा – हाल्टेरस अन्तरीप से ग्राण्ड बैंक तक इस धारा को गल्फ स्ट्रीम कहते हैं। गल्फ स्ट्रीम को मैक्सिको की खाड़ी में पर्याप्त मात्रा में गर्म जल प्राप्त होता है, जिसको यह ठण्डे क्षेत्रों में ले जाती है।
(vi) कनारी धारा – यह उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट पर मडेरिया से केपवर्ड द्वीपों के मध्य बहती है। गल्फ स्ट्रीम का गर्म जल यहाँ तक पहुँचने पर ठण्डी धारा में बदल जाता है। यह धारा अन्त में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा में मिल जाती है। इस धारा में मौसमी परिवर्तन होते हैं।
(vii) लैब्रोडोर ठण्डी धारा-यह धारा उत्तरी अटलांटिक महासागर में बहने वाली ठण्डी धारा है जो बैफिन की खाड़ी से डेविस स्ट्रेट तक दक्षिण की ओर बहती है। यह धारा सागर तल को संतुलित करने का कार्य करती है। गर्म तथा ठण्डे जल के मिलने से न्यूफाउंड लैण्ड के आसपास घना कोहरा छाया रहता है। यह मत्स्य उद्योग के लिए आदर्श अवस्था होती है।
(viii) सार गैसो सागर उत्तरी अटलांटिक महासागर में गल्फ स्ट्रीम, कनारी तथा उत्तरी भूमध्यरेखीय धाराओं के चक्र के बीच में शांत जल के क्षेत्र को सारगैसो सागर कहते हैं। इसके तट पर मोटी समुद्री घास तैरती रहती है। इस घास को पुर्तगाली भाषा में सार गैसम कहते हैं जिसके नाम पर इसका नाम सारगैसो सागर रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 11,000 वर्ग किमी है।
प्रश्न 2.
प्रशान्त महासागरीय धाराओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
उत्तरी प्रशान्त व दक्षिणी प्रशान्त महासागरीय धाराओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पूर्वी प्रशान्त और पश्चिमी प्रशान्त महासागर में मिलने वाली धाराओं का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशान्त महासागर विश्व का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा महासागर है। यह एक ऐसा महासागर है जो महाद्वीपीय भागों (स्थलमंडल) के पूर्व एवं पश्चिम दोनों ओर फैला हुआ है। अमेरिकन महाद्वीपों के पश्चिम की ओर पूर्वी प्रशान्त महासागर जबकि एशिया महाद्वीप के पूर्व की ओर पश्चिमी प्रशान्त महासागर का फैलाव मिलता है। भूमध्य रेखा इस महासागर को दो भागों में बाँटती है। भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर वाले भाग को उत्तरी प्रशान्त महासागर एवं दक्षिण की ओर फैले भाग को दक्षिणी प्रशान्त महासागर कहा जाता है। अध्ययन के दृष्टिकोण से प्रशान्त महासागर की धाराओं को भी उत्तरी व दक्षिणी प्रशान्त महासागर की धाराओं में बाँटा गया है जो निम्न प्रकार हैंउत्तरी प्रशान्त महासागर की धाराएँ
- उत्तरी विषुवतीय धारा – यह धारा मध्य अमेरिका के पश्चिमी तट से आरम्भ होकर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई फिलीपाइन द्वीप समूह तक पहुँचती है।
- क्यूरोशिवो की गर्म धारा – उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा फिलीपाइन द्वीप तक पहुँचने के बाद ताइवान तथा जापान के तट के साथ उत्तरी दिशा में बहने लगती है तथा क्यूरोशिवो धारा के नाम से जानी जाती है।
- उत्तरी प्रशान्त गर्म धारा – जापान के दक्षिणी-पूर्वी तट पर पहुँचने के बाद क्यूरोशिवो धारा प्रचलित पछुआ पवनों के प्रभाव से महासागर के पश्चिम से पूर्व की ओर बहने लगती हैं।
- कैलीफोर्निया की ठण्डी धारा – यह उत्तरी प्रशान्त धारा का ही विस्तार मानी जाती है, क्योंकि यह ठण्डे क्षेत्र से गर्म क्षेत्र की ओर बहती है। इसलिए इसे कैलिफोर्निया की ठण्डी धारा कहा जाता है।
- अलास्का धारा – उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर उत्तरी प्रशान्त महासागर की दूसरी धारा घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में उत्तर की ओर मुड़ जाती है।
- ओयासिवो की ठण्डी धारा – यह बैरिंग जलडमरूमध्य से शुरू होकर कमचटका प्रायद्वीप के पूर्वी तट के समीप उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली ठण्डे जल की धारा है।
- ओखोटस्क अथवा क्यूराइल की ठण्डी धारा – यह ओखोटस्क सागर से शुरू होकर सखालीन द्वीप के पूर्वी तट के साथ-साथ बहती हुई जापान के होकैडो द्वीप के समीप ओयोसिवो धारा से मिल जाती है।
दक्षिणी प्रशान्त महासागर की धाराएँ
- दक्षिणी विषुवतीय गर्म धारा – यह गर्म जलधारा है जो पूर्व में मध्य अमेरिका के तट से पश्चिम में ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट तक जाती है।
- दक्षिणी प्रशान्त धारा – यह तस्मानिया के निकट पूर्वी ऑस्ट्रेलिया धारा पछुआ पवनों के प्रभाव में आ जाती है और पश्चिम से पूर्व की ओर बहने लगती है। यहाँ पर इसे दक्षिणी प्रशान्त धारा के नाम से जानते हैं।
- पूर्वी ऑस्ट्रेलिया गर्म धारा – यह ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के साथ बहती है। यह गर्म जलधारा है।
- पेरू की ठण्डी धारा – दक्षिणी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम भाग पर पहुँचकर यह उत्तर की ओर मुड़ जाती है और पेरू के तट के साथ-साथ बहने लगती है। यह ठण्डे क्षेत्र से गर्म क्षेत्र की ओर चलती है।
प्रशान्त महासागर की इन सभी धाराओं को निम्नानुसार प्रदर्शित किया गया है
प्रश्न 3.
हिन्द महासागरीय धाराओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिन्द महासागर क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से विश्व का तीसरा बड़ा महासागर है। भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर इसका बहुत कम भाग आता है। इसकी आकृति के अनुसार इसका उत्तर की ओर विस्तार कम व दक्षिण में ज्यादा मिलता है। इसी आधार पर हिन्द महासागरीय धाराओं को उत्तरी हिन्द महासागरीय धाराओं व दक्षिणी हिन्द महासागरीय धाराओं में बाँटा गया है। इनका वर्णन निम्नानुसार है-
उत्तरी हिन्द महासागर की धाराएँ
(i) उत्तरी-पूर्वी मानसून ड्रिफ्ट – इसे उत्तर-पूर्वी मानसून अपवाह भी कहते हैं। यह ड्रिफ्ट मलक्का जलडमरूमध्य से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी के तट के साथ-साथ बहती हुई अरब सागर में प्रविष्ट होती है।
(i) विरुद्ध विषुवतीय धारा – पश्चिम में जंजीबार द्वीप के निकट से आरम्भ होकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। दक्षिणी हिन्द महासागर की धाराएँ।
(i) दक्षिणी विषुवतीय धारा – यह धारा भूमध्य रेखा के समीप दक्षिण में पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।
(ii) मेडागास्कर गर्म धारा – दक्षिण भूमध्यरेखीय प्रवाह की मेडागास्कर द्वीप के पूर्वी तट पर बहने वाली शाखा मेडागास्कर धारा कहलाती है।
(iii) मोजाम्बिक गर्म धारा – मेडागास्कर द्वीप के पास पहुँचने पर दक्षिण भूमध्यरेखीय धारा दो शाखाओं में बँट जाती है। एक शाखा मेडागास्कर द्वीप के सहारे दक्षिण की ओर तथा दूसरी मोजाम्बिक चैनल में प्रविष्ट हो जाती है।
(iv) अगुलाहास गर्म धारा-मेडागास्कर द्वीप के सहारे दक्षिण में मोजाम्बिक धारा व मेडागास्कर धारा मिलकर एक हो जाती है। यह संयुक्त धारा अगुला हास धारा कहलाती है।
(v) पछुआ पवन डिफ्ट-यह हिन्द महासागर के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के दक्षिणी सिरे के निकट तक पहुँच जाती है।
(vi) पश्चिमी आस्ट्रेलिया ठण्डी धारा-पछुआ पवन ड्रिफ्ट की एक शाखा आस्ट्रेलिया के दक्षिण में बहती हुई निकल जाती है तथा दूसरी शाखा आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट से उत्तर की ओर मुड़ जाती है। इस दूसरी शाखा को पश्चिमी आस्ट्रेलियाई ठण्डी धारा कहते हैं।
हिन्द महासागर की इन धाराओं को निम्न रेखाचित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
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