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RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 2 पृथ्वी एक ग्रह के रूप में

July 8, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 2 पृथ्वी एक ग्रह के रूप में

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सूर्य से पृथ्वी की स्थिति है।
(अ) चौथे स्थान पर
(ब) दूसरे स्थान पर
(स) तीसरे स्थान पर
(द) पहले स्थान पर
उत्तर:
(स) तीसरे स्थान पर

प्रश्न 2.
आन्तरिक ग्रहों की सही स्थिति होती है
(अ) बृहस्पति के पश्चात्
(ब) बृहस्पति से अरुण तक
(स) शनि से वरुण तक
(द) बुध से मंगल तक
उत्तर:
(द) बुध से मंगल तक

प्रश्न 3.
पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है
(अ) चन्द्रमा
(ब) टाइटन
(स) आर्यभट्ट
(द) चन्द्रयान
उत्तर:
(अ) चन्द्रमा

प्रश्न 4.
प्रकाश की गति प्रति सैकण्ड होती हैं
(अ) 4 लाख किमी
(ब) 3 लाख किमी
(स) 3.6 लाख किमी
(द) 4.3 लाख किमी
उत्तर:
(ब) 3 लाख किमी

प्रश्न 5.
पृथ्वी पर सर्वाधिक तापमान, घनत्व और दबाव पाया जाता है
(अ) पृथ्वी के धरातल के निकट
(ब) पृथ्वी के मध्य में
(स) पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल में
(द) पृथ्वी के केन्द्र पर
उत्तर:
(द) पृथ्वी के केन्द्र पर

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
चट्टानी मण्डल का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
चट्टानी मण्डल का दूसरा नाम स्थलमण्डल के रूप में पृथ्वी से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 7.
‘ब्रह्माण्ड विस्तार की खोज किस खगोल वैज्ञानिक ने की?
उत्तर:
सन् 1929 मे एडविन हब्बल ने ब्रह्माण्ड विस्तार के प्रमाण दिये थे। इन्हें ही ब्रह्माण्ड विस्तार की खोज का श्रेय दिया जाता है।

प्रश्न 8.
‘निहारिका’ (Nebula) क्या है?
उत्तर:
धूलि एवं गैसों का बादल नेबुला या निहारिका कहलाता है। अमेरिकी खगोलशास्त्री जी.पी. तुंपियर के अनुसार सौरमण्डल का निर्माण धूल और बर्फ से बने एक घूमने वाले बादल ‘सोलर नेबुला’ से अर्थात् सौर निहारिका से हुआ है।

प्रश्न 9.
क्षुद्र ग्रह (Asteroids) किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंगल तथा बृहस्पति नामक ग्रहों की कक्षाओं के मध्य छोटे-बड़े आकार के अनेक चट्टानी पिण्ड पाये जाते हैं। इन चट्टानी पिण्डों को ही क्षुद्र ग्रह कहते हैं।

प्रश्न 10.
‘बोने ग्रह (Dwarf Planet) क्या है?
उत्तर:
ऐसे ग्रह जिनकी कक्षा वृत्ताकार नहीं होती या जो किसी अन्य ग्रह की कक्षा को काटते हैं तथा जिनमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल का अभाव मिलता है उन्हें बोने ग्रह कहा जाता है; यथा – प्लूटो, चेरॉन, सेरस 2003, यूबी 313।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 11.
‘ब्रह्माण्ड विस्तारित परिकल्पना क्या है?
उत्तर:
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति सम्बन्धी सर्वमान्य सिद्धान्त ‘बिग बैंग’ सिद्धान्त है। इसे ही विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना कहा जाता है। इस परिकल्पना के अनुसार ब्रह्माण्ड का निरन्तर विस्तार हो रहा है। समय गुजरने के साथ आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। वैज्ञानिकों का मत है कि आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में निरन्तर वृद्धि हो रही है। किन्तु प्रेक्षण द्वारा आकाशगंगाओं का विस्तार प्रमाणित नहीं होता है।

प्रश्न 12.
खगोल विज्ञानी ‘फ्रेड हायल’ का योगदान क्या है?
उत्तर:
खगोल विज्ञानी ‘फ्रेड हायल’ ने स्थिर संकल्पना का प्रतिपादन किया था। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्माण्ड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। इसके अलावा इन्होंने लिटिलटन के साथ मिलकर नवतारक परिकल्पना का भी प्रतिपादन किया था। इसमें हाइड्रोजन के जलने से भारी तत्त्वों के निर्माण के बारे में बताया था। अभिनव तारा बनने की प्रक्रिया से तारे का प्रकाश पहले की अपेक्षा लाखों गुना बढ़ना बताया था।

प्रश्न 13.
पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में अन्तर समझाइये।
उत्तर:
पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में निम्नलिखित अन्तर मिलते हैं –

क्र.स. अन्तर का आधार पार्थिव ग्रह जोवियन ग्रह
1. आकार पार्थिव ग्रह आकार में छोटे मिलते हैं। जोवियन ग्रह आकार में बड़े मिलते हैं।
2. सूर्य से दूरी पार्थिव ग्रहों की सूर्य से दूरी कम मिलती है। जोवियन ग्रहों की सूर्य से दूरी अधिक पाई जाती है।
3. संरचना पार्थिव ग्रहों की संरचना चट्टानी मिलती है। जोवियन ग्रहों की संरचना मुख्यत गैसीय है।
4. शीतलन का समय पार्थिव ग्रहों को शीतल होने में कम समय लगा है। जोवियन ग्रहों को शीतल होने में अधिक समय लगा है।
5. उपग्रहों की संख्या पार्थिव ग्रह शीघ्रता से शीतल हुए हैं। जिसके कारण इनके उपग्रहों की संख्या कम है। जोवियन ग्रह देरी से शीतल हुए हैं। जिसके कारण इनके उपग्रहों की संख्या अधिक मिलती है।
6. सौर पंवन का प्रभाव सौर पवन के अधिक प्रभाव के कारण ग्रहों से गैस व धूलिकणों का अधिक उड़ना मिलता है। सौर पवन के कम प्रभाव के कारण जोवियन ग्रहों से गैस व धूलिकणों का उड़ना नहीं मिलता है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना किन पदार्थों से निर्मित हुई है?
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना में अनेक पदार्थों की मौजूदगी मिलती है। पृथ्वी में मिलने वाली तीनों परतें अलग-अलग पदार्थों के मिश्रण से बनी हैं। पृथ्वी की ऊपरी परत भूपर्पटी के निर्माण में सागरीय तली के अन्तर्गत आग्नेय चट्टानों का स्वरूप देखने को मिलता है। महाद्वीपीय तल में आग्नेय व कायान्तरित चट्टानें पाई जाती हैं। इनमें मुख्यत: सिलिका व एल्यूमिनियम की प्रधानता मिलती है। साथ ही तेजाबी पदार्थ अधिक पाए जाते हैं। मध्यवर्ती भाग में मिलने वाली प्रवार नामक परत में सिलिका व मैग्नेशियम पदार्थों की प्रधानता मिलती है। इसमें क्षारीय पदार्थ प्रधानता से मिलते हैं। पृथ्वी की अन्तरतम परत (क्रोड) में मुख्यत: निकिल एवं फेरियम की प्रधानता मिलती है।

प्रश्न 15.
‘गोल्डीलॉक्स पेटी’ (Goldilock Zone) क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन सूर्य से एक निश्चित दूरी तथा आदर्श सौर्य ताप होने के कारण सम्भव हो पाया है। इस प्रकार की अवस्था को ‘गोल्डीलॉक्स पेटी’ के नाम से जाना जाता है। जिसमें सूर्य से एक निश्चित दूरी होने पर ग्रह पर जल द्रव्य अवस्था में पाया जाता है। ऐसी दशा के कारण ही पानी की उपलब्धता एवं वायुमण्डलीय दशा के विद्यमान होने से ही जीवन सम्भव हो पाया है। गोल्डीलॉक्स जैसी स्थिति की खोज करने में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं ताकि पृथ्वी के समान अन्य ग्रह पर भी जीवन के लिए आदर्श दशाओं को खोजा जा सके।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
‘महा विस्फोट सिद्धान्त’ (Big bang Theory) का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर:
महा विस्फोट सिद्धान्त (Big bang Theory) – ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आधुनिक सर्वमान्य सिद्धान्त ‘बिग बैंग सिद्धान्त’ है। इसे विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना भी कहा जाता है। क्योंकि इस सिद्धान्त की मान्यता है कि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है। इस सिद्धान्त को प्रतिस्थापित करने का श्रेय एडविन हब्बल को है जिन्होंने प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया कि ब्रह्माण्ड विस्तृत हो रहा है और समय के साथ-साथ आकाश-गंगाएँ एक-दूसरे से दूर होती जा रही हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है। कि आकाश-गंगा के बीच की दूरी बढ़ रही है किन्तु प्रेक्षण द्वारा आकाश-गंगाओं का विस्तार प्रमाणित नहीं होता है।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 2 पृथ्वी एक ग्रह के रूप में 1

ब्रह्माण्ड के विस्तार की अवस्थाएँ – बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड का विस्तार निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में हुआ है

(i) ब्रह्माण्ड निर्माणकारी पदार्थ का एक ही स्थान पर स्थित होना – प्रारम्भिक अवस्था में ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाले सभी पदार्थ अत्यन्त छोटे गोलक के रूप में एक ही स्थान पर केन्द्रित थे । इन सूक्ष्म पदार्थों का आयतन कम तथा तापमान एवं घनत्व अनन्त था।

(ii) विस्फोट प्रक्रिया द्वारा ब्रह्माण्ड का तीव्र गति से विस्तार होना – बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार कालान्तर में इन छोटे कणों में तीव्र गति से विस्फोट हुआ। इस विस्फोट के कारण ब्रह्माण्ड का तीव्र गति से विस्तार हुआ। यह विस्तार आज भी जारी है। विस्तार की घटना एक सैकण्ड के अल्पांश में ही बड़ी तीव्र गति से हुई। इसके पश्चात् विस्तार की गति मन्द हुई। बिग बैंग होने के प्रारम्भिक तीन मिनट में ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ। विस्फोट की यह घटना आज से लगभग 14 अरब वर्ष पहले हुई थी।

(iii) तापमान में तीव्र गति से कमी आना – बिग बैंग की घटना के घटित होने से तीन लाख वर्षों के दौरान तापमान में तीव्र गति से ह्रास हुआ। यह लगभग 4500 केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थों का निर्माण हुआ। इसी के फलस्वरूप पारदर्शी ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ।
संक्षेप में, ब्रह्माण्ड में आकाशगंगाओं का निर्माण इसी प्रक्रिया के द्वारा हुआ। प्रारम्भ में आकाशगंगाएँ छोटी थीं। इनके बीच की दूरियाँ कम थीं। बिग बैंग प्रक्रिया के कारण आकाशगंगाओं के मध्य स्थित छोटे गोलकों में विस्फोट हुआ जिससे आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ने लगी अर्थात् ब्रह्माण्ड का विस्तार होने लगा। ब्रह्माण्ड का विस्तार पहले तीव्र गति और बाद में मन्द गति से हुआ।
इस प्रकार तारों के विस्फोट और पदार्थों के घनीभूत होने से ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी प्रक्रिया की पुनरावृत्ति ग्रहों पर हुई और उपग्रहों का निर्माण हुआ। इस प्रकार सौरमण्डल एवं ग्रहों की उत्पत्ति हुई।

आलोचना – इस सिद्धान्त की निम्न आलोचनाएँ की गयी हैं

  1. इस सिद्धान्त के अनुसार आकाश गंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है किन्तु प्रेक्षण आकाश-गंगाओं के विस्तार को सिद्ध नहीं करते।
  2. हायल नामक भूगोलवेत्ता ने ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ का प्रतिपादन किया जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड किसी भी समय एक जैसा ही रहा है। यद्यपि आज अनेक ऐसे प्रमाण मिले हैं जिनके आधार पर विद्वान ब्रह्माण्ड विस्तार के ही पक्षधर हैं।

प्रश्न 17.
‘सौरमण्डल’ (Solar System) को समझाइये।
उत्तर:
सूर्य एवं इसके परिवार को सामूहिक रूप से सौरमण्डल के नाम से जाना जाता है। सौरमण्डल की उत्पत्ति निहारिका से हुई है। हमारे सौरमण्डल में आठ ग्रह हैं। हमारे सौरमण्डल में सूर्य (तारा), 8 ग्रह, 183 उपग्रह, लाखों छोटे पिण्ड जैसे-क्षुद्रग्रह, धूमकेतु एवं वृहद मात्रा में धूलिकण व गैसें हैं। सौरमण्डल से सम्बन्धित देशाओं को निम्नानुसार वर्णित किया गया है

ग्रह – ग्रह वे आकशीय पिण्ड हैं, जो निश्चित कक्षाओं पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों में अपना प्रकाश नहीं होता है। वे अपारदर्शी होते हैं और सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं। ग्रह अपने अक्ष पर घूमते हैं।

ग्रहों का वर्गीकरण – सौरमण्डल में ग्रहों की संख्या 8 है। सूर्य से दूरी के क्रम में इनके नाम इस प्रकार है-बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) व नेप्च्यून (वरुण)। अभी तक प्लूटों को भी एक ग्रह माना जाता था किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय खगोलकी संगठन ने अगस्त 2006 में अपनी बैठक में इसे बौने ग्रह के रूप में परिभाषित किया। सौरमण्डल के ग्रहों को दो भागों में विभाजित किया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 2 पृथ्वी एक ग्रह के रूप में 2

  1. आन्तरिक ग्रह – क्षुद्र ग्रहों की पट्टी और सूर्य के बीच स्थित ग्रहों बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल को आन्तरिक ग्रह कहते हैं। इन्हें पार्थिव ग्रह भी कहते हैं। ये चारों ग्रह पृथ्वी के समान ठोस हैं तथा अपेक्षाकृत उच्च घनत्त्व वाले चट्टानी खनिजों एवं धातुओं से बने हैं।
  2. बाह्य ग्रह – क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बाहर वाले ग्रहों-बृहस्पति, शनि, यूरेनस एवं नेप्च्यून को बाह्य ग्रह कहते हैं। बृहस्पति की भाँति होने के कारण इन ग्रहों को जोवियन ग्रह भी कहते हैं। ये ग्रह आकार में अपेक्षाकृत बड़े हैं। इनका घनत्व अपेक्षाकृत कम है। ये सभी ग्रह मुख्यत: तरल और गैसीय पदार्थों से बने हैं। गैसों में हाइड्रोजन एवं हीलियम की प्रधानता है। ग्रहों के निर्माण व विकास की अवस्थाएँ – समस्त ग्रहों का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुआ।

ग्रहों के निर्माण व विकास की विभिन्न अवस्थाएँ मानी गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. गैस व धूलकणों की तश्तरी विकसित होना – निहारिका के अन्दर गैस के गुंथित झुंड के रूप में तारे पाये जाते हैं। इन गुंथित झुण्डों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में गैसीय क्रोड का निर्माण हुआ। इन गैसीय क्रोड के चारों ओर गैस व धूलिकणों की घूमती हुई तश्तरी विकसित हुई।
  2. ग्रहाणुओं का विकास होना – ग्रहों के विकास की द्वितीय अवस्था में गैसीय बादल का संघनन प्रारम्भ हुआ तथा क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले पारस्परिक आकर्षण प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं के रूप में विकसित हुए। ये ग्रहाणु गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप आपस में जुड़ गए।
  3. बड़े पिण्डों से ग्रहों का निर्माण होना – ग्रहों के विकास की अन्तिम अवस्था में अनेक छोटे-छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिण्ड ग्रहों के रूप में निर्मित हुए। इस तरह ग्रहों का निर्माण एवं विकास हुआ।

प्रश्न 18.
भूगर्भिक समय सारणी (Geological time Scale) व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूगर्भिक समय सारणी – पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर आज तक के भूवैज्ञानिक इतिहास को भूवैज्ञानिक समय मापनी/सारणी कहते हैं। इसके अन्तर्गत धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियों, प्राणियों तथा वनस्पतियों की उत्पत्ति एवं विकास को एक, निश्चित क्रम में विभिन्न कालों व काल खण्डों में बांटकर अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान काल तक की अवधि बहुत लम्बी है। अत: इस समय को इयान, महाकाल्प, कल्प व युग में विभाजित किया गया है। भूतल पर मिलने वाले विशिष्ट भू-वैज्ञानिक लक्षणों को आधार मानकर पृथ्वी के इतिहास को विभाजित किया गया है, जो निम्नानुसार है

भूगर्भिक समय मापनी (Geological Time Scale)
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 2 पृथ्वी एक ग्रह के रूप में 3

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से जो जीवन्त ग्रह है वह है-
(अ) बुध
(ब) मंगल
(स) पृथ्वी
(द) शनि
उत्तर:
(स) पृथ्वी

प्रश्न 2.
लाप्लास ने अपनी निहारिका परिकल्पना कब प्रतिपादित की थी?
(अ) 1750 में
(ब) 1765 में
(स) 1785 में
(द) 1796 में
उत्तर:
(द) 1796 में

प्रश्न 3.
जेम्स जींस की संकल्पना का क्या नाम था?
(अ) वायव्य राशि परिकल्पना
(ब) निहारिका परिकल्पना
(स) ज्वारीय परिकल्पना
(द) अन्तर तारक धूलि परिकल्पना
उत्तर:
(स) ज्वारीय परिकल्पना

प्रश्न 4.
प्रारम्भिक चरण में कौन-सी गैस सर्वाधिक मात्रा में थी?
(अ) नाइट्रोजन
(ब) हाइड्रोजन
(स) हीलियम
(द) आक्सीजन
उत्तर:
(ब) हाइड्रोजन

प्रश्न 5.
बिग बैंग सिद्धान्त के प्रतिपादक कौन हैं?
(अं) लाप्लास
(ब) कोण्ट
(स) ऑटो श्मिड
(द) एडविन हब्बल
उत्तर:
(द) एडविन हब्बल

प्रश्न 6.
तारों का निर्माण लगभग कब हुआ था?
(अ) 2 से 3 अरब वर्ष पूर्व
(ब) 5 से 6 अरब वर्ष पूर्व
(स) 7 से 8 अरब वर्ष पूर्व
(द) 9 से 10 अरब वर्ष पूर्व
उत्तर:
(ब) 5 से 6 अरब वर्ष पूर्व

प्रश्न 7.
वर्तमान में कितने उपग्रह हैं?
(अ) 163
(ब) 174
(स) 183
(द) 192
उत्तर:
(स) 183

प्रश्न 8.
निम्न में से जो जोवियन ग्रह है, वह है.
(अ) शुक्र
(ब) शनि
(स) पृथ्वी
(द) मंगल
उत्तर:
(ब) शनि

प्रश्न 9.
प्लूटो वामन के कुल कितने प्राकृतिक उपग्रह हैं?
(अ) 2
(ब) 4
(स) 5
उत्तर:
(स) 5

प्रश्न 10.
डायनासोर का युग किसे कहा जाता है?
(अ) कैम्ब्रियन युग को।
(ब) डिवोनियन युग को
(स) जुरेसिक युग को
(द) अल्पनूतन युग को
उत्तर:
(स) 5

प्रश्न 11.
ऑक्सीजन की मात्रा वायुमण्डल में कितने वर्ष पूर्व पूर्णरूप से भर गयी थी?
(अ) 100 करोड़ वर्ष पूर्व
(ब) 200 करोड़ वर्ष पूर्व
(स) 300 करोड़ वर्ष पूर्व
(द) 400 करोड़ वर्ष पूर्व
उत्तर:
(ब) 200 करोड़ वर्ष पूर्व

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए

(क) स्तम्भ अ (परिकल्पना का नाम) स्तम्भ ब (प्रतिपादक)
(i) वायव्य राशि परिकल्पना (अ)  ऑटो श्मिड
(ii) निहारिका परिकल्पना (ब) जेम्स जींस
(iii) ग्रहाणु परिकल्पना (स) काण्ट
(iv) ज्वारीय परिकल्पना (द) लाप्लास
(v) अन्तरतारक धूलि परिकल्पना (य) चैम्बरलिन

उत्तर:
(i) (स) (ii) (द) (iii) (य) (iv) (ब) (v) (अ)

(ख) स्तम्भ अ (ग्रह का नाम) स्तम्भ ब (उपग्रहों की संख्या)
(i) पृथ्वी (अ) 14
(ii) मंगल (ब) 27
(iii) बृहस्पति (स) 1
(iv) शनि (द) 2
(v) अरुण (य) 62
(vi) वकण (र) 67

उत्तर :
(i) (स) (ii) (द) (iii) (र) (iv) (य) (v) (ब) (vi) (अ)

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रह किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रह ऐसे आकाशीय पिण्ड होते हैं, जो किसी विशाल तारे के चारों ओर चक्कर लगाते हैं; यथा–हमारे सौरमण्डल में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले 8 ग्रह मिलते हैं।

प्रश्न 2.
ब्रह्माण्ड से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ब्रह्माण्ड वह अनन्त आकाश है जिसमें असंख्य तारे, ग्रह, सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा आदि सम्मिलित हैं। इसे अंग्रेजी भाषा में कॉसमास कहा जाता है। आकाश सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सूचक है।

प्रश्न 3.
काण्ट की परिकल्पना में संशोधन किसने किया था?
उत्तर:
काण्ट की परिकल्पना में संशोधन लाप्लास ने किया था।

प्रश्न 4.
कार्ल वाइजास्कर ने नीहारिका परिकल्पना में क्या संशोधन किया था?
उत्तर:
कार्ल वाइजास्कर ने सूर्य को एक सौर निहारिका से घिरा हुआ माना था जो मुख्यत: हाइड्रोजन, हीलियम व धूलिकणों की बनी थी। इन कणों के घर्षण से एक चपटी तश्तरी प्रक्रम द्वारा ही ग्रहों का निर्माण माना था।

प्रश्न 5.
बिग बैंग सिद्धान्त हेतु किसका उदाहरण दिया गया है?
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धान्त हेतु गुब्बारे का उदाहरण दिया गया है। इसमें एक गुब्बारे पर कुछ निशान लगाकर उसे फुलाने पर। गुब्बारे पर लगे निशानों के फैलने की प्रवृत्ति बताई है। इसमें निशानों के बीच दूरी बढ़ने के साथ-साथ निशान स्वयं भी बढ़ते हैं जो आकाशगंगाओं के विस्तार का सूचक हैं।

प्रश्न 6.
परमाणवीय पदार्थ का निर्माण कब व कैसे हुआ?
उत्तर:
बिग बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ।

प्रश्न 7.
ब्रह्माण्ड पारदर्शी कैसे हुआ?
अथवा
ब्रह्माण्ड के पारदर्शी होने के लिए उत्तरदायी कारण कौन-सा है?
उत्तर:
बिग बैंग की घटना से 3 लाख वर्षों के दौरान तापमान 4500 कैल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ जिसके कारण ब्रह्माण्ड पारदर्शी हो गया।

प्रश्न 8.
तारों का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
गैस रूपी बादलों के संचयन से नीहारिका का निर्माण हुआ। इस बढ़ती हुई नीहारिका में गैस के झुण्ड विकसित हुए। ये । झुण्ड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिण्ड बने जिनसे तारों का निर्माण हुआ।

प्रश्न 9.
प्रकाश वर्ष से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रकाश वर्ष दूरी का मात्रक है। एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करता है वह एक प्रकाश वर्ष होती है।

प्रश्न 10.
ग्रहों के निर्माण की कितनी अवस्थाएँ हैं?
उत्तर:
ग्रहों के निर्माण की तीन अवस्थाएँ हैं –

  1. गैसीय बादल से क्रोड का निर्माण,
  2. गोले संसंजन प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं का विकास,
  3. ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने से बड़े पिण्डों के रूप में ग्रहों का निर्माण।

प्रश्न 11.
सौरमण्डल के आठ ग्रह कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सौरमण्डल के आठ ग्रह हैं – बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण ग्रह।

प्रश्न 12.
आन्तरिक ग्रह कौन-कौन से हैं?
अथवा
पार्थिव ग्रह कौन-से हैं?
उत्तर:
सूर्य के समीप मिलने वाले बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल को आन्तरिक या पार्थिव ग्रह कहते हैं।

प्रश्न 13.
बाहरी ग्रह कौन-कौन से हैं?
अथवा
जोवियन ग्रह क्या हैं?
उत्तर:
सूर्य से दूर स्थित बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण ग्रहों को बाहरी या जोवियन ग्रह कहते हैं।

प्रश्न 14.
पार्थिव ग्रह जनक तारे (सूर्य) के समीप क्यों बने?
उत्तर:
पार्थिव ग्रहों के जनक तारे (सूर्य) के समीप बनने का मुख्य कारण अत्यधिक तापमान के कारण गैसों का संघनित नहीं हो पाना उत्तरदायी है।

प्रश्न 15.
प्लूटो को बौना ग्रह क्यों घोषित किया गया है?
अथवा
प्लूटो को मुख्य ग्रह से बौना ग्रह क्यों बना दिया गया?
उत्तर:
प्लूटो एक ऐसा आकाशीय पिण्ड है जिसका अपना वृत्ताकार कक्ष नहीं है, पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण का अभाव हैं तथा यह दूसरे ग्रह की कक्षा में चक्कर काटता है। इसलिये इसे बौना ग्रह घोषित किया गया है।

प्रश्न 16.
सर जॉर्ज डार्विन ने चन्द्रमा के बारे में क्या बताया था?
उत्तर:
सर जॉर्ज डार्विन ने बताया था कि प्रारंभ में पृथ्वी व चन्द्रमा तेजी से घूमते एक ही पिण्ड थे। यह पूरा पिण्ड डंबल की आकृति में परिवर्तित हुआ और फिर टूट गया। उनके अनुसार चंद्रमा का निर्माण उसी पदार्थ से हुआ है। जहाँ आज प्रशांत महासागर एक गर्त के रूप में मौजूद है।

प्रश्न 17.
‘द बिग स्प्लैट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कुछ विद्वानों के अनुसार पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चंद्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव का नतीजा है। जिसे ‘द बिग स्प्लैट’ कहा जाता है।

प्रश्न 18.
प्रारम्भ में पृथ्वी की दशा कैसी थी?
उत्तर:
प्रारम्भ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमण्डल विरल था जो हाइड्रोजन वं हीलियम से बना था।

प्रश्न 19.
पृथ्वी के इतिहास को किन महाकल्पों में बांटा गया है?
उत्तर:
पृथ्वी के इतिहास को मुख्यतः चार महाकल्पों-नवजीवन महाकल्प, मध्यजीवी महाकल्प, पुराजीवी महाकल्प और प्रागजीव महाकल्प के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 20.
पृथ्वी के इतिहास को किन कल्पों में बांटा गया है?
अथवा
भूगर्भिक इतिहास को किन कल्पों में बांटा गया है?
उत्तर:
पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास को चतुर्थ कल्प, तृतीय कल्प, क्रिटेशियस, जुरेसिक, ट्रियासिक (द्वितीय कल्प) परमियन, कार्बोनिफेरस, डिवोडियन, सिलुरियन, आडविसुवियन कैम्ब्रियन (प्रथम कल्प) के रूप में बांटा गया है।

प्रशन 21.
पुराजीव महाकल्प को किन-किन भागों में बांटा गया है।
उत्तर:
पुराजीव महाकल्प को कैम्ब्रियन, आडविसुवियन, सिलुरियन, डिवोनियन, कार्बोनिफेरस एवं परमियन कालों में बांटा गया है।

प्रश्न 22.
तृतीय कल्प को किन-किन युगों में बांटा गया है?
उत्तर:
तृतीय कल्प को पांच युगों-प्लायोसीन (अतिनूतन), मायोसीन (अल्प नूतन), ओलिगोसीन (अधिनूतन), इओसीन (आदिनूतन) व पुरानूतन युगों के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 23.
मछली का उद्भव किस कल्प व युग की देन है?
उत्तर:
मछली का उद्भव प्रथम कल्प के आविसुवियन युग की देन है।

प्रश्न 24.
पृथ्वी की संरचना में पदार्थों की भिन्नता क्यों मिलती है?
उत्तर:
तापमान की अधिकता के कारण हल्के एवं भारी पदार्थ घनत्व के अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए। इसी कारण हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह के ऊपरी भाग जबकि भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में चले गए।

प्रश्न 25.
विभेदन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पृथ्वी में मिलने वाले हल्के एवं भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की प्रक्रिया को विभेदन कहा गया है।

प्रश्न 26.
पृथ्वी की आंतरिक संरचना में कौन-कौन सी परतें मिलती हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की आंतरिक संरचना में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर भूपर्पटी, मैण्टिल एवं क्रोड नामक परतें पायी जाती हैं।

प्रश्न 27.
पुच्छल तारे से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सूर्य के चारों ओर अपनी निश्चित अण्डाकार कक्षा में परिक्रमण करने वाले आकाशीय पिण्ड जो सूर्य के निकट आने पर ऊष्मा के कारण अन्दर के पदार्थों व गैसों का सूर्य के विपरीत दिशा में फैलाव करते हैं जिससे एक पुच्छ का निर्माण होता है ऐसे तारों को ही पुच्छल तारा कहते हैं।

प्रश्न 28.
उल्काएँ क्या हैं?
उत्तर:
जब आकाशीय चट्टानी पिण्ड पृथ्वी के धरातल की तरफ आते हैं तो घर्षण के कारण ये चट्टानी पिण्ड ज्वाला पकड़ लेते हैं और आकाश से अग्नि के शोलों के रूप में इन्हें टूटते या गिरते तारों को उल्काओं के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 29.
वर्तमान वायुमण्डल किन तीन अवस्थाओं की देन है?
उत्तर:
वर्तमान वायुमण्डल आदिकालिक गैसों के ह्रास, जलवाष्प के वायुमण्डल के विकास में सहयोग व जैवमण्डल के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया की देन है।

प्रश्न 30.
वायुमण्डल का उद्भव कैसे हुआ है?
उत्तर:
पृथ्वी के ठंडा होने व विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमण्डल का उद्भव हुआ।

प्रश्न 31.
महासागर कैसे बने?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्गों में इकट्ठा होने लगा जिससे महासागरों का निर्माण हुआ।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
पृथ्वी रूपी ग्रह की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
पृथ्वी एक अनूठा ग्रह है। कैसे ? चार कारण बताइये।
उत्तर:
पृथ्वी सौरमण्डल का एक अद्वितीय ग्रह है। यह ग्रह अन्य ग्रहों से भिन्न है इसकी निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. पृथ्वी सौरमण्डल का एक जीवन्त ग्रह है। इसमें जीवन का संगीत सुनने को मिलता है।
  2. पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिसमें जल तरल अवस्था में मिलता है।
  3. पृथ्वी पर वायुमण्डल पाया जाता है।
  4. यह सौर परिवार में सूर्य से तीसरा ग्रह है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी का उद्भव एवं विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी का उद्भव लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। प्रारम्भ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म एवं निर्जन ग्रह थी। इसका वायुमण्डल विरल था जो कि हाइड्रोजन व हीलियम गैसों से बना था। यह आज की पृथ्वी के वायुमण्डले से बहुत भिन्न था। अनेक घटनाओं एवं क्रियाओं से यह चट्टानी, निर्जन एवं गर्म पृथ्वी एक सुन्दर ग्रह के रूप में परिवर्तित हो गयी। आज से लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व इस ग्रह पर जीवन का विकास हुआ। पृथ्वी की संरचना परतदार है जिसका बाह्य भाग कम घनत्व का तथा आन्तरिक भाग अधिक घनत्व का है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कौन-कौन सी परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति के संदर्भ में एकतारक एवं द्वैतारक संकल्पनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं। जिनमें इमैनुअल काण्ट की वायव्य राशि परिकल्पना, लाप्लास की नीहारिका परिकल्पना, चैम्बरलिन और मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना, जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना, ऑटो श्मिड की अन्तरतारक धूलि परिकल्पना, एडविन हब्बल का ब्रह्माण्ड विस्तारित दृष्टिकोण आदि प्रमुख संकल्पनाएँ हैं।

प्रश्न 4.
द्वैतारक सिद्धान्त क्या है? अथवा द्वैचारक परिकल्पना क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित वह सिद्धान्त या परिकल्पना जो पृथ्वी सहित सौरमण्डल की उत्पत्ति दो अथवा अधिक तारों से मानता है द्वैतारक सिद्धान्त कहलाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार सौरमण्डल का निर्माण सूर्य के समीप तक दूसरे भ्रमणशील तारे के द्वारा माना जाता हैं। इस वर्ग की अधिकांश परिकल्पनाओं का प्रतिपादन बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ। चेम्बरलिन व मोल्टन, जेम्स जीन्स, जैफ्रीज, रसेल आदि वैज्ञानिकों की परिकल्पनाएँ इस वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित की जाती हैं।

प्रश्न 5.
चैम्बरलिंन एवं मोल्टन ने पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे बतायी है?
उत्तर:
चैम्बरलिन एवं मोल्टन के अंनुसार ब्रह्माण्ड में एक अन्य भ्रमणशील तारा सूर्य के नजदीक से परिक्रमा करते हुए गुजरा। इसके परिणामस्वरूप ‘तारे के गुरुत्वाकर्षण से सूर्य सतह से सिगार के आकार का कुछ पदार्थ (फिलामेण्ट) निकलकर अलग हो गया। यह तारा जब सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य सतह से बाहर निकला हुआ यह पदार्थ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। धीरे-धीरे इसके संघनित होने से यह ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गया।

प्रश्न 6.
वाइजास्कर ने ग्रहों की उत्पत्ति कैसे मानी है?
उत्तर:
वाइजास्कर के अनुसार सूर्य एक सौर नीहारिका से घिरा हुआ था। यह नीहारिका मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम व धूलिकणों की बनी थी। इन कणों के घर्षण व टकराने से एक चपटी तश्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ। इस बादल में अभिवृद्धि की प्रक्रिया हुई इसी प्रक्रम के कारण ग्रहों का अस्तित्त्व उभरेकर हमारे सामने आया है।

प्रश्न 7.
आकाशगंगाओं का निर्माण एक लम्बी प्रक्रिया का प्रतिफल है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आकाशगंगाएँ ब्रह्माण्डीय विविधताओं का परिणाम हैं। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आकाशगंगाओं की उत्पत्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक ब्रह्माण्ड में ऊर्जा व पदार्थों का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई जिसके परिणामस्वरूप पदार्थों का एकत्रण हुआ। पदार्थों का यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह होती है। आकाशगंगाओं का विस्तार अत्यधिक होता है। इनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्ष में होती है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरुआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है।

प्रश्न 8.
पार्थिव ग्रहों की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
आन्तरिक ग्रहों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पार्थिव (आन्तरिक) ग्रहों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं

  1. पार्थिव ग्रहों का निर्माण जनक तारे के समीप हुआ है।
  2. इन ग्रहों में गैसों का संघनन नहीं हो पाया है।
  3. पार्थिव ग्रह आकार में छोटे मिलते हैं।
  4. पार्थिव (आन्तरिक) ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम मिलती है।
  5. पार्थिव ग्रहों के उपग्रह कम मिलते हैं।

प्रश्न 9.
जोवियन ग्रहों की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
बाहरी ग्रहों में मिलने वाली विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
जोवियन (बाहरी) ग्रहों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. जोवियन ग्रह सूर्य से अधिक दूरी पर पाये जाते हैं।
  2. इन ग्रहों पर गैसों का अधिक घनीभवन पाया जाता है।
  3. जोवियन ग्रह आकार में बड़े मिलते हैं।
  4. जोवियन ग्रहों में गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक मिलती है।
  5. इन ग्रहों में उपग्रहों की संख्या अधिक पायी जाती है।

प्रश्न 10.
चन्द्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर:
पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव का परिमाण मानी जाती है। इस टकराव को ‘द बिग स्प्लैट’ की संज्ञा दी गई है। पृथ्वी के बनने के कुछ समय पश्चात् मंगल ग्रह के 1 से 3 गुणा बड़े आकार का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया। टकराव से अलग हुआ यह पदार्थ फिर पृथ्वी के कक्ष में घूमने लगा और क्रमश: आज का चन्द्रमा बना। यह घटना या चन्द्रमा की उत्पत्ति लगभग 4.44 अरब वर्ष पहले हुई मानी गयी है।

प्रश्न 11.
पुराजीव कल्प को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पुराजीव कल्प की घटनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पुराजीव महाकल्प का समय 24.5 करोड़ वर्ष से 57.0 करोड़ वर्ष पूर्व माना गया है। इस महाकल्प को परमियन, कार्बोनिफेरस, डिवोनियम, सिलुरियन आविसुवियन व कैम्ब्रियन युगों के रूप में बांटा गया है। परमियन युग के दौरान रेंगने वाले जीवों की अधिकता, कार्बोनिफेरस युग में पहले रेंगने वाले जंतु-रीढ़ की उत्पत्ति, डिवोनियन काल में स्थल वे जल पर रहने वाले जीव की उत्पत्ति, सिलुरियन काल में हड्डी वाले पहले जीव की उत्पत्ति, आविसुवियन काल में पहली मछली की उत्पत्ति एवं कैम्ब्रियन युग में जल में बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीवों की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 12.
नवजीवन महाकल्प के युगों के समय को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नवजीवन महाकल्प के युगों की आयु को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नवजीवन महाकल्प को मुख्यतः अतिनूतन, अल्पनूतन, अधिनूतन, आदिनूतन व पुरानूतन युगों में बांटा गया है। अतिनूतन काल 20 लाख से 50 लाख वर्ष पूर्व माना जाता है। अल्पनूतन काल 50 लाख वर्ष पूर्व से 2.4 करोड़ वर्ष पूर्व तक, अधिनूतन काल 2.4 करोड़ वर्ष से 3.7 करोड़ वर्ष तक, आदिनूतन काल 3.7 करोड़ वर्ष से 5.8 करोड़ वर्ष व पुरानूतन काल 5.8 करोड़ वर्ष से 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक माना गया है।

प्रश्न 13.
पुच्छल तारों की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
पुच्छल तारे किस प्रकार आकर्षक आकाशीय पिण्ड होते हैं?
उत्तर:
पुच्छल तारा हमारे सौरमण्डल का सबसे आकर्षक पिण्ड है। इसकी अग्रलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. ये सूर्य के चारों ओर अपनी निश्चित अण्डाकार कक्षा में परिक्रमण करते हैं।
  2. इनमें से कुछ की कक्षा लाखों किमी लम्बी होती है, जिसमें सूर्य के पास आने में इन्हें सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं।
  3. इनमें नाभिकीय भाग ठोस व चट्टानी होते हैं।
  4. इनमें सौर हवाओं के प्रभाव से पुच्छ का निर्माण होता है।
  5. इनकी लम्बाई लाखों किमी तक हो सकती है।
  6. कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर जल एवं जीवन पुच्छल तारों (कॉमेट) के माध्यम से प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 14.
उल्काओं की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उल्काओं की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. ये आकाश से अग्नि के शोलों के रूप में धरातल पर आते हैं।
  2. इनका आकार बड़ा होने की स्थिति में ये पृथ्वी तल पर बम की तरह टकराते हैं।
  3. उल्का पिण्ड कई खनिजों के बने होते हैं।
  4. ये सौरमण्डल की रहस्यमयी गुत्थी सुलझाने में मदद करते हैं।
  5. इनके गिरने से बने गड्डों में झीलों का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 15.
वायुमण्डल के विकास की प्रमुख अवस्थाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान वायुमण्डल के विकास की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ हैं

  1. प्रथम अवस्था – वर्तमान वायुमण्डल के विकास की इस अवस्था में आदिकालिक वायुमण्डलीय गैसों का ह्रास हुआ।
  2. द्वितीय अवस्था – इस अवस्था में भाप एवं जलवाष्प का पृथ्वी से उत्सर्जन हुआ जिसने वायुमण्डल के विकास में सहयोग किया।
  3. तृतीय अवस्था – इस अवस्था में जैवमण्डल की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डल की संरचना को संशोधित किया।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II

प्रश्न 1.
ग्रहों के विकास की अवस्थाओं को संक्षेप में बताइए।
अथवा
ग्रहों का निर्माण एवं विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
ग्रहों के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएँ मानी जाती हैं –

  1. तारे नीहारिका के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating disc) विकसित हुई।
  2. अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए। संघटन (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिण्ड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिण्डों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।
  3. अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिण्ड ग्रहों के रूप में बने।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की भूपर्पटी के विकासक्रम को संक्षेप में बताइए।
अथवा
स्थलमण्डल के विकासक्रम का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
ग्रहाणु व अन्य खगोलीय पिण्डों की संरचना अधिकांशतया घने एवं हल्के पदार्थों के मिश्रण से हुई है। ग्रहाणु, ग्रहों की उत्पत्ति से पूर्व ब्रह्माण्ड में बिखरे हुए छोटे-छोटे धूलिकणों जैसी आकृति वाले कण थे। इन ग्रहाणुओं के एकत्र होने से ही पृथ्वी सहित अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ। गुरुत्व बल के कारण ज़ब पदार्थों का एकत्रीकरण हो रहा था तो इन एकत्रित पिण्डों ने पदार्थ को प्रभावित किया जिससे अत्यधिक ताप की उत्पत्ति हुई। अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो गयी। तापमान की अधिकता के कारण ही चट्टानों के हल्के व भारी पदार्थों का स्तरीकरण होना आरम्भ हो गया। भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र की ओर चले गये तथा हल्के पदार्थ धरातलीय भाग की ओर आने लगे। ये पदार्थ समय के साथ-साथ ठण्डे हो गये और ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गये। अंत में ये पृथ्वी की भूपर्पटी के रूप में विकसित हो गये।।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल के विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के वायुमण्डल की वर्तमान संरचना में नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन का प्रमुख योगदान है। वर्तमान वायुमण्डल के विकास की तीन अवस्थाएँ हैं। इसकी पहली अवस्था में आदिकालिक वायुमण्डलीय गैसों का ह्रास है। दूसरी अवस्था में, पृथ्वी के भीतर से निकली भाप एवं जलवाष्प ने वायुमण्डल के विकास में सहयोग किया। अंत में वायुमण्डल की संरचना को जैव मण्डल के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया (Photosynthesis) ने संशोधित किया।
प्रारंभिक वायुमण्डल जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। ऐसा केवल पृथ्वी पर ही नहीं वरन् सभी पार्थिव ग्रहों पर हुआ अर्थात् सभी पार्थिव ग्रहों से, सौर पवन के प्रभाव के कारण, आदिकालिक वायुमण्डल या तो दूर धकेल दिया गया या समाप्त हो गया। यह वायुमण्डल के विकास की पहली अवस्था थी।

प्रश्न 4.
जलमण्डल का विकास किस प्रकार हुआ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
महासागरों का निर्माण किस प्रकार हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के आरम्भिक वायुमण्डल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया आदि गैसें अधिक मात्रा में थीं तथा स्वतन्त्र रूप से आक्सीजन की मात्रा अत्यन्त न्यून थी। धरातल पर लगातार ज्वालामुखी विस्फोट होने से वायुमण्डल में जलवाष्प एवं विभिन्न गैसों की मात्रा तीव्र गति से बढ़ने लगी। पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन प्रारम्भ हो गया। वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आ गयी। इसके परिणामस्वरूप अधिक संघनन प्रारम्भ हो गया तथा धरातल पर अत्यधिक वर्षा हुई। पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्गों में एकत्रित होने लगा जिससे महासागरों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर उपस्थित समस्त महासागर पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ वर्षों के अन्तर्गत निर्मित हुए जिनमें जीवन का विकास हुआ।

प्रश्न 5.
जीवन की उत्पत्ति किस प्रकार हुई? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पृथ्वी पर जीवन के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है। नि:संदेह पृथ्वी का आरंभिक वायुमण्डल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था। आधुनिक वैज्ञानिक, जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं, जिससे पहले जटिल जैव (कार्बनिक) अणु (Complex organic molecules) बने और उनका समूहन हुआ। यह समूहन ऐसा था जो अपने आपको दोहराता था। (पुन: बनने में सक्षम था) और निर्जीव पदार्थ को जीवित तत्त्व में परिवर्तित कर सका। हमारे ग्रह पर जीवन के चिह्न अलग-अलग समय की चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्म के रूप में हैं। 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की शैवाल (Blue green algae) की संरचना से मिलती जुलती है। यह कल्पना की जा सकती है। कि इससे पहले समय में साधारण संरचना वाली शैवाल रही होगी। यह माना जाता है कि जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्षों पहले आरंभ हुआ।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी सौरमण्डल का एक अद्वितीय ग्रह हैं। इसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पृथ्वी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पृथ्वी विलक्षणताओं का ग्रह है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी सौरमण्डल का एक मुख्य ग्रह है। यह सूर्य से क्रम में तीसरा स्थान रखता है। पृथ्वी भौगोलिक एवं भूगर्भिक रूप से एक जीवन्त ग्रह है। जहाँ अन्य ग्रहों की अपेक्षा जीवन का संगीत सुनाई व दिखाई देता है। पृथ्वी के अतिरिक्त कहीं और जीवन होने के पर्याप्त प्रमाणों का अभाव मिलता है। पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य से एक निश्चित दूरी तथा आदर्श सौर्य ताप होने के कारण जीवन को बनाये हुए है। सूर्य से एक निश्चित दूरी होने के कारण ही इस ग्रह पर जल द्रव अवस्था में पाया जाता है। पृथ्वी पर वायुमण्डलीय दशाएँ पूर्णत: जैविक समुदाय हेतु अनुकूल हैं। पृथ्वी पर मिलने वाले मानव के कारण ही आज भूपटल के अध्ययन का महत्त्व बन पाया है क्योंकि सभी तथ्यों का अध्ययन मानवीय संदर्भ में ही होता है। पृथ्वी पर मानव, जन्तु एवं वनस्पति समुदाय का मिलना इसकी एक मुख्य विलक्षणता है, जो अन्य किसी ग्रह पर देखने को नहीं मिलती है। पृथ्वी पर ही विविध प्रकार की मौसमी घटनाएँ होती हैं।

ऋतुओं को बनना और उनसे विविध प्रकार की दशाओं का निर्माण होना पृथ्वी पर एक रोचक वं मनोरम दृश्य उत्पन्न करता है। मानवीय क्रियाओं व प्राकृतिक वातावरण के आपसी समायोजन तथा संस्कृति का जो बेजोड़ नमूना पृथ्वी पर देखने को मिलता है वह अपने आप में एक अनुपम स्थिति को दर्शाता है। पृथ्वी पर मिलने वाले विशाल जलावरण के कारण यह एक नीले ग्रह की संज्ञा से भी विभूषित की गई है। जीव-जन्तुओं की विविध प्रजातियाँ, उनकी आपसी क्रियाएँ पृथ्वी पर एक स्वप्निल स्वरूप का निर्माण करते हैं। इन सभी दशाओं के कारण पृथ्वी सौरमण्डल के अन्य सभी ग्रहों की तुलना में एक अद्वितीय, अनुपम व आकर्षक ग्रह बन पाया है।

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