Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 पारिस्थितिकीय तंत्र की संकल्पना
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
जैवविविधता शब्द सर्वप्रथम किसने प्रतिपादित किया?
(अ) ई. ओ. विल्सन
(ब) डेसिड टिलमेन
(स) नोरमन मेयर्स
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(अ) ई. ओ. विल्सन
प्रश्न 2.
विश्व में जैवविविधता के कितने तप्त स्थलों का पता लगाया गया है?
(अ) 12
(ब) 20
(स) 25
(द) 34
उत्तर:
(स) 25
प्रश्न 3.
भारत में राष्ट्रीय उद्यानों की संख्या है-
(अ) 103
(ब) 72
(स) 89
(द) 96
उत्तर:
(स) 89
प्रश्न 4.
पारिस्थितिक तंत्र शब्द के प्रवर्तक हैं-
(अ) ए. जी. टांसले
(ब) फांसवर्ग
(स) ई.पी. ओडम
(द) पीटर हेगेट
उत्तर:
(अ) ए. जी. टांसले
प्रश्न 5.
पारिस्थितिकी के सम्बन्ध में कौन-सा कथन सत्य है?
(अ) पारिस्थितिकी जीवों पर पर्यावरण के प्रभावों का अध्ययन है।
(ब) पारिस्थितिकी वायु, जल और मृदा के प्रदूषण का अध्ययन है।
(स) पारिस्थितिकी मानव पर्यावरण का अध्ययन है।
(द) पारिस्थितिकी जीवों एवं पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है।
उत्तर:
(द) पारिस्थितिकी जीवों एवं पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
सम्पूर्ण पृथ्वी का कितना प्रतिशत भाग स्थल मण्डल है?
उत्तर:
सम्पूर्ण पृथ्वी का लगभग 29 प्रतिशत भाग स्थलमण्डल है।
प्रश्न 7.
जैवमण्डल किन क्रियाओं का प्रतिफल है?
उत्तर:
जैवमंडल पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले जैविक व अजैविक घटकों की परस्पर जटिल क्रियाओं का परिणाम होता है।
प्रश्न 8.
हमारे देश में सम्पूर्ण विश्व की कितनी प्रतिशत पादप विविधता पाई जाती है?
उत्तर:
हमारे देश में सम्पूर्ण विश्व की 8 प्रतिशत पादप विविधता मिलती है।
प्रश्न 9.
पौधों में पाये जाने वाले हरे रंग के द्रव्य का नाम बताइए।
उत्तर:
पौधों में क्लोरोफिल नामक हरे रंग का द्रव्यं पाया जाता है।
प्रश्न 10.
ओडम के अनुसार सूर्यातप से औसतन प्रतिदिन प्रति वर्गमीटर कितनी ऊर्जा प्राप्त होती है?
उत्तर:
ओडम के अनुसार सूर्यातप से औसतन प्रतिदिन प्रति वर्गमीटर 3000 किलोकैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
जैव मण्डल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जैवमण्डल में स्थलमण्डल, वायुमण्डल व जलमण्डल में निवास करने वाले जीवों का अध्ययन शामिल किया जाता है। इन तीनों मण्डलों में मिलने वाले जीवों की आपसी क्रियाओं एवं उनके परस्पर सम्बन्धों को जैवमण्डल का समाहित अंग माना गया। है। सामान्यत: जीवमण्डल पृथ्वी की सतह के चारों ओर व्याप्त एक आवरण होता है जिसके अन्तर्गत वनस्पति तथा पशु जीवन बिना किसी रक्षक साधन के सम्भव होता है। स्टालर के अनुसार “पृथ्वी के सभी जीवित जीव तथा वे पर्यावरण, जिनसे इन जीवों की पारस्परिक क्रिया होती है, मिलकर जीवमण्डल की रचना करते हैं।”
प्रश्न 12.
भारत में जैवविविधता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत ब्राजील के बाद सर्वाधिक जैव विविधता वाला देश है। हमारे देश में भौगालिक विषमताओं और जलवायु की भिन्नताओं के कारण पादप और जीव-जन्तुओं की विस्तृत जैव विविधता पाई जाती है। भारत में विश्व की 6.5 प्रतिशत जीव प्रजातियाँ और 8 प्रतिशत पादप प्रजातियाँ मिलती हैं। भारत में लगभग 46000 पादप प्रजातियाँ और 81,000 जीव प्रजातियाँ मिलती हैं। इन जैव विविधताओं से युक्त भारत में दो तप्त स्थल मिलते हैं। पश्चिमी घाट तप्त स्थल एवं पूर्वी हिमालय तप्त स्थल।
प्रश्न 13.
राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों का संरक्षण, अवैध तरीके से वन्य जीवों के शिकार और वन्यजीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर प्रतिबंध लगाना तथा राष्ट्रीय उद्यानों एवं अंभयारण्यों के समीपवर्ती क्षेत्र में पारिस्थितिकी विकास करना है ताकि विभिन्न पादप एवं जीव-जन्तुओं की जैव विविधता को बनाया रखा जा सके।
प्रश्न 14.
टांसले के अनुसार पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
ए.जी.टांसले के अनुसार “वह तंत्र जिसमें पर्यावरण के जैविक और अजैविक कारक अन्त:सम्बन्धित होते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र कहलाता है। टांसले द्वारा जीवमण्डल के अध्ययन में पारिस्थितिकी तंत्र शब्द के प्रयोग ने ही विश्व का ध्यान आकर्षित किया था।
प्रश्न 15.
ऊर्जा प्रवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
एक पारिस्थितिक तंत्र के जैविक और अजैविक घटक उस तंत्र की पर्यावरणीय पारिस्थितिकी से नियंत्रित होकर एक निश्चित प्रक्रिया में क्रियाशील रहते हैं। क्रियाशील रहने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यही ऊर्जा एक पारिस्थितिक तंत्र को गतिशील बनाये रखती है। इस समस्त प्रक्रिया को ही ऊर्जा प्रवाह कहा जाता है। इस ऊर्जा प्रवाह को प्रकृति प्राकृतिक रूप से नियंत्रित रखती है। जिसके फलस्वरूप उस पारिस्थितिक तंत्र में सन्तुलन बना रहता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
पारिस्थितिक तंत्र की अवधारणा पर लेख लिखिए।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र की अवधारणा-एक भौगालिक इकाई में निवास करने वाले जीवों और उस इकाई के पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का समयबद्ध और क्रमबद्ध अध्ययन पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है। ए.जी.टांसले (1935) के अनुसार “वह तंत्र जिसमें पर्यावरण के समस्त जैविक और अजैविक कारक अन्त:सम्बन्धित होते हैं, पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है।” पारिस्थितिक तंत्र से सम्बन्धित अन्य विद्वानों द्वारा इसकी परिभाषा निम्न प्रकार प्रस्तुत की गई है ।
आर.एल.लिंडमैन (1942) के अनुसार “वह तंत्र जो किसी भी परिमाण वाले एक विशिष्ट समय इकाई में भौतिक-रासायनिक-जैविक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित हो, पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है।”
फासबर्ट (1963) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र एक कार्यशील एवम् परस्पर क्रियाशील तंत्र होता है, जिसका संगठने एक या अधिक जीवों तथा उनके प्रभावी पर्यावरण से होता है।” ओडम (1971) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र ऐसे जीवों तथा उनके पर्यावरण की आधारभूत कार्यात्मक इकाई है, जो दूसरे पारिस्थितिक तंत्रों से तथा अपने अवयवों के मध्य निरन्तर अन्त:क्रिया करते रहते हैं।’
पीटर हेगेट (1975) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र ऐसी पारिस्थितिक व्यवस्था है, जिसमें पादप तथा जीव-जन्तु अपने पर्यावरण से पोषण श्रृंखला द्वारा जुड़े रहते हैं।” स्ट्राहलर (1976) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र ऐसे घटकों का समूह है, जो जीवों के समूह के साथ परस्पर क्रियाशील रहता है। इस क्रियाशीलता में पदार्थों तथा ऊर्जा का निवेश होता है, जो जैविक संरचना का निर्माण करते हैं।” पार्क (1980) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र एक निश्चित क्षेत्र के अन्तर्गत समस्त प्राकृतिक जीवों तथा तत्वों का सकल योग होता है।”
एक पारिस्थितिक तंत्र पारिस्थितिक अध्ययन की आधारभूत इकाई होता है, जिसका आकार और विस्तार अलग-अलग हो सकता है। उदाहरणार्थ एक पारिस्थितिक तंत्र सम्पूर्ण भूमण्डल पर व्याप्त पारिस्थितिक तंत्र हो सकता है, तो दूसरा पारिस्थितिक तंत्र एक चिड़ियाघर में निर्मित पिंजरे के समान छोटा हो सकता है अथवा किसी झील तक भी सीमित हो सकता है। पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक भी हो सकता है अथवा मानव निर्मित भी हो सकता है।
प्रश्न 17.
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह पर लेख लिखिए।
उत्तर:
एक पारिस्थितिक तंत्र के जैविक और अजैविक घटक उस तंत्र की पर्यावरणीय पारिस्थितिकी से नियंत्रित होकर एक निश्चित प्रक्रिया में क्रियाशील रहते हैं। क्रियाशील रहने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यही ऊर्जा एक पारिस्थितिक तंत्र को गतिशील बनाये रखती है। इस समस्त प्रक्रिया को ही ऊर्जा प्रवाह कहा जाता है। इस ऊर्जा प्रवाह को प्रकृति प्राकृतिक रूप से नियंत्रित रखती है, जिसके फलस्वरूप उस पारिस्थितिक तंत्र में सन्तुलन बना रहता है। इस प्रक्रिया में मानवीय अथवा प्राकृतिक कारणों से थोड़ा भी परिवर्तन होने पर उस पारिस्थितिक तंत्र में संकट उत्पन्न हो सकता है।
किसी भी पारिस्थितिक तंत्र को सुचारु रूप से गतिशील बनाये रखने के लिये निरन्तर ऊर्जा प्रवाह की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है, किन्तु वास्तव में सौर ऊर्जा का बहुत सूक्ष्म भाग ही पारिस्थितिक तंत्रों के उपयोग में आ पाता है। जैसे सौर ऊर्जा का मात्र 0.02 प्रतिशत भाग पौधों द्वारा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है और कुछ भाग पारिस्थितिक तंत्र के अन्य कार्यों में उपयोग हो पाता है। सौर ऊर्जा का यही सूक्ष्म भाग एक पारिस्थितिक तंत्र को गतिशील बनाये रखने में सक्षम होता है।
पौधों में पाये जाने वाला हरित लवक (क्लोरोफिल) सौर ऊर्जा को अवशोषित करके उसे कार्बनिक जैव कणों में बदल देता है। इसी प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल की सहायता से सौर ऊर्जा को प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा भोज्य पदार्थ में बदलने का कार्य करते हैं। इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण के लिये सौर ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड और जल पौधों की पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं तथा आणविक क्रिया द्वारा जैव तत्त्वों ऑक्सीजन, ग्लूकोज और कार्बोहाइड्रेट्स में बदल दिये जाते हैं। ग्लूकोज और कार्बोहाइड्रेट्स से पौधे का विकास होता है और ऑक्सीजन तथा जलवाष्प पौधों की श्वसन क्रिया द्वारा वायुमण्डल में छोड़ दी जाती है।
पौधों में संचित रासायनिक ऊर्जा को शाकाहारी जीव भोजन के रूप में प्राप्त करते हैं। पौधों से शाकाहारी जीवों में स्थानान्तरण के समय ऊर्जा का ह्रास होता है। इसके बाद मांसाहारी जीव शाकाहारी जीवों को खाते हैं, उस समय भी ऊर्जा का ह्रास होता है। इस प्रकार एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है, साथ ही ऊर्जा के इस स्थानान्तरण में उसका ह्रास भी होता रहता है। इस प्रकार प्रत्येक उपभोक्ता स्तर पर ऊर्जा की मात्रा निरन्तर रूप से कम होती जाती है।
ओडम के अनुसार सूर्यातप से औसतन प्रतिदिन प्रति वर्गमीटर 3000 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इसमें से 1500 किलो कैलोरी ऊर्जा पौधों द्वारा अवशोषित की जाती है, जिसका केवल 1 प्रतिशत (15 किलो कैलोरी) रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है। द्वितीय एवं तृतीय पोषण स्तर पर यह घटकर क्रमश: 15 किलो कैलोरी और 0.3 किलो कैलोरी रह जाती है। सामान्यत: एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में स्थानान्तरण के समय अधिकांश ऊर्जा का ह्रास होता रहता है, किन्तु उसकी गुणवत्ता बढ़ती जाती है। ऊर्जा का न तो सृजन होता है न ही विनाश, यद्यपि ऊर्जा का रूप परिवर्तित हो सकता है। इस प्रकार किसी पारिस्थितिकी तंत्र में अन्तर्गमित व बहिर्गमित ऊर्जा की मात्रा समान रहती है।
प्रश्न 18.
पारिस्थितिक तंत्र पर औद्योगीकरण के प्रभावों को विस्तार से समझइये।
उत्तर:
औद्योगिकिरण से पारिस्थितिक तंत्र पर निम्न प्रभाव दृष्टिगत होते हैं-
- औद्योगीकरण के फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
- औद्योगिक इकाइयाँ वायु और जल प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं। एक ओर इन इकाइयों से निकलने वाली विषैली गैसों के कारण वायुमण्डल निरन्तर प्रदूषित हो रहा है, तो दूसरी ओर अनेक औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला रासायनिक अपशिष्ट द्रव नदियों, भूमिगत जल और समुद्री जल को प्रदूषित कर रहा है।
- नदियों और भूमिगत जल के प्रदूषित होने के कारण औद्योगिक शहरों के समीपवर्ती क्षेत्रों में पेयजल की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है।
- पाली शहर के नलकूपों में रसायनयुक्त जल का निकलना इसका ज्वलन्त प्रमाण है।
- विषैली गैसों के प्रभाव के कारण ओजोन परत का पतला होना और औद्योगिक क्षेत्रों के समीप अम्लीय वर्षा होना सामान्य हो गया है।
- औद्योगिक इकाइयों से निकला ठोस कचरा भूमि की उपजाऊ क्षमता को कम कर रहा है जिससे उत्पादकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- औद्योगिक इकाइयों से निकला धुआँ वायुमण्डल में एक परत के रूप में जम रहा है जो पार्थिव विकिरण के परावर्तन में अवरोधक सिद्ध हो रहा है।
- औद्योगिक इकाइयाँ वैश्विक ताप वृद्धि हेतु उत्तरदायी कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं जिससे विश्व का तापमान बढ़ रहा है।
- जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया हेतु इनका अहम् योगदान सिद्ध हो रहा है जिससे जैव विविधता व पारिस्थितिक तंत्र बदल रहा सभी प्रक्रियाएँ पारिस्थितिक तंत्र को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
इकोलॉजी शब्द की रचना किस भाषा से हुई है?
(अ) फ्रांस भाषा से
(ब) ग्रीक भाषा से
(स) जर्मन भाषा से
(द) हिन्दी भाषा से
उत्तर:
(ब) ग्रीक भाषा से
प्रश्न 2.
“पृथ्वी जड़ पदार्थ नहीं है” यह विचार किसका था?
(अ) ओडम को
(ब) हम्बोल्ट का
(स) रिटर का
(द) टांसले का
उत्तर:
(ब) हम्बोल्ट का
प्रश्न 3.
वे जीव जो अपने जीवन निर्वाह हेतु दूसरे जीवों पर आश्रित होते हैं, कहलाते हैं-
(अ) प्राणी समभोजी
(ब) मृतजीवी
(स) परजीवी
(द) उपभोक्ता
उत्तर:
(स) परजीवी
प्रश्न 4.
निम्न में से जो अन्य तीन से भिन्न है, वह है-
(अ) बाज
(ब) मेढ़क
(स) लोमड़ी
(द) कुत्ता
उत्तर:
(अ) बाज
प्रश्न 5.
निम्न में जो अजैविक घटक है, वह है-
(अ) गाय
(ब) शेर
(स) मछली
(द) वर्षा
उत्तर:
(द) वर्षा
प्रश्न 6.
पौधे का विकास होता है-
(अ) ग्लूकोज व कार्बोहाइड्रेट्स से
(ब) ऑक्सीजन व जलवाष्प से
(स) नाइट्रोजन व कार्बन से
(द) हाइड्रोजन व कार्बन से
उत्तर:
(अ) ग्लूकोज व कार्बोहाइड्रेट्स से
प्रश्न 7.
वन रिपोर्ट 2015 के अनुसार भारत में वनों का कुल भौगालिक क्षेत्र है-
(अ) 19.02 प्रतिशत
(ब) 20.15 प्रतिशत
(स) 22.02 प्रतिशत
(द) 24 प्रतिशत
उत्तर:
(स) 22.02 प्रतिशत
प्रश्न 8.
जल उपकर अधिनियम लागू किया गया था-
(अ) 1971 में
(ब) 1981 में
(स) 1977 में
(द) 1986 में
उत्तर:
(स) 1977 में
प्रश्न 9.
भारत सरकार ने क्लाइमेट चेंज पर पहली नेशनल कम्यूनिकेशन रिपोर्ट कब जारी की?
(अ) 2000 में
(ब) 2003 में
(स) 2004 में
(द) 2006 मे
उत्तर:
(स) 2004 में
प्रश्न 10.
निम्न में से जो की-स्टोन (कुंजी-शिला) जाति नहीं है-
(अ) हाथी
(ब) मेढ़क
(स) लोमड़ी
(द) गाय
उत्तर:
(द) गाय
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए
(क)
स्तम्भ-अ (जीव प्रजाति) |
स्तम्भ-ब (सम्बन्ध) |
(i) शैवाल | (अ) माँसाहारी |
(ii) बकरी | (ब) अपघटक |
(iii) बिल्ली | (स) शाकाहारी |
(iv) कवक | (द) स्वपोषी घटक |
उत्तर:
(i) द , (ii) स , (iii) अ, (iv) ब ।
ख.
स्तम्भ-अ (प्रजाति का नाम) | स्तम्भ-ब (पोषक स्तर) |
(i) घास | (अ) चतुर्थ स्तर |
(ii) टिड्डा | (ब) प्रथम स्तर |
(iii) छिपकली | (स) द्वितीय स्तर |
(iv) बाज | (द) तृतीय स्तर |
उत्तर:
(i) ब, (ii) स, (iii) द, (iv) अ।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग किसने व किसके लिए किया था?
उत्तर:
पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम हैकल (1989) द्वारा वनस्पति के क्षेत्रों के लिये किया गया।
प्रश्न 2.
इकोलॉजी शब्द की रचना कैसे हुई है?
उत्तर:
इकोलॉजी Ecology शब्द की रचना ग्रीक भाषा के Oikos अर्थात् आवास तथा Logos अर्थात् अध्ययन को मिलाकर की गई है।
प्रश्न 3.
रिटर ने पारिस्थितिकी के बारे में क्या लिखा था?
उत्तर:
रिटर ने लिखा था कि धरातल पर विभिन्न तत्त्वों के स्थानिक वितरण में सामंजस्य होता है। ये तत्त्व आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं, कि उस क्षेत्र को एक विशिष्टता प्रदान कर देते हैं।
प्रश्न 4.
आर डजोज के अनुसार पारिस्थितिकी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आर डजोज के अनुसार “पारिस्थितिकी’ एक ऐसा विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध जीवों के जीवन की दशाओं और जिस पर्यावरण में ग्रह निवास करते हैं, उस पर्यावरण तथा उन जीवों के बीच के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करना है।
प्रश्न 5.
पारिस्थितिक तंत्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक भौगोलिक इकाई में निवास करने वाले जीवों और उस इकाई के पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का समयबद्ध और क्रमबद्ध अध्ययन पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है।
प्रश्न 6.
ओडम ने पारिस्थितिक तंत्र की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
ओडम के अनुसार पारिस्थितिक तंत्र ऐसे जीवों तथा उनके पर्यावरण की आधारभूत कार्यात्मक इकाई है, जो दूसरे पारिस्थितिक तंत्रों से तथा अपने अवयवों के मध्य निरन्तर अन्त:क्रिया करते रहते है।”
प्रश्न 7.
ऊर्जा के स्रोत के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
ऊर्जा के स्रोत के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र के दो प्रकार होते हैं-
- प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र व
- मानव निर्मित या कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र।
प्रश्न 8.
प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक अवस्थाओं में विकसित पारिस्थितिक तंत्र को प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है।
प्रश्न 9.
सबसे बड़ा और स्थायी पारिस्थितिक तंत्र कौन-सा है?
उत्तर:
सबसे बड़ा और स्थायी पारिस्थितिक तंत्र सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र होता है।
प्रश्न 10.
मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र कौन-सा है?
अथवा
कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र क्या होता है?
उत्तर:
मानव निर्मित एवं अनुरक्षित तंत्र को कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है।
प्रश्न 11.
विकास के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
विकास के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र को चार भागों-
- प्रौढ़ पारिस्थितिक तंत्र,
- अपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र,
- मिश्रित पारिस्थितिक तंत्र,
- निष्क्रिय पारिस्थितिक तंत्र में बाँटा गया है।
प्रश्न 12.
पारिस्थितिक तंत्र की संरचना किसके द्वारा निर्मित होती है?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र की संरचना पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों की पारस्परिक अन्त:क्रियाओं द्वारा होती है।
प्रश्न 13.
जैविक घटक किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी पारिस्थितिक तंत्र के समस्त जीवित जीव उस तंत्र के जैविक घटक कहलाते हैं, ये सभी जीव विभिन्न पारस्परिक अन्त:क्रियाओं द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।
प्रश्न 14.
पोषण क्षमता के आधार पर जैविक घटकों को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
पोषण क्षमता के आधार पर जैविक घटकों को स्वपोषी घटक व परपोषी घटक के रूप में विभाजित किया गया है।
प्रश्न 15.
स्वपोषी घटक किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे घटक जो सौर ऊर्जा से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा और मृदा से जड़ों द्वारा स्वयं अपना भोजन बनाते हैं तथा अन्य शाकाहारी जीवों के लिए भोज्य पदार्थ प्रदान करते हैं, उन्हें स्वपोषी घटक कहते हैं।
प्रश्न 16.
परपोषी घटक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसे घटक जो स्वपोषित प्राथामिक उत्पादकों द्वारा प्रदत्त भोजन ग्रहण करते हैं, उन्हें परपोषी घटक कहते हैं।
प्रश्न 17.
परपोषी घटकों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
परपोषी घटकों को मुख्यतः तीन भागों-मृतजीवी, परजीवी व प्राणी समभोजी घटकों के रूप में बाँटा गया है।
प्रश्न 18.
मृत जीवी घटक क्या होते हैं?
उत्तर:
मृतजीवी घटक पौधों और जन्तुओं से प्राप्त कार्बनिक यौगिकों को घोल के रूप में ग्रहण करके जीवित रहते हैं।
प्रश्न 19.
क्रियाशीलता के आधार पर जैविक घटकों को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
क्रियाशीलता के आधार पर जैविक घटकों को उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक के रूप में बाँटा गया है।
प्रश्न 20.
उपभोक्ताओं को कितने भागों में बाँटा गया है।
उत्तर:
उपभोक्ताओं को तीन भागों-
- शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता
- मांसाहारी या द्वितीयक उपभोक्ता तथा
- सर्वाहारी या तृतीयक उपभोक्ता के रूप में बाँटा गया है।
प्रश्न 21.
अपघटक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जो सूक्ष्म जीवाणु तथा कवक जो मृत पादपों और जन्तुओं सहित जैविक पदार्थों को सड़ा गलाकर उनका अपघटन कर देते हैं। उन्हें अपघटक कहते हैं।
प्रश्न 22.
अजैविक घटक के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
अजैविक घटक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
- जलवायु तत्त्व,
- कार्बनिक पदार्थ,
- अकार्बनिक पदार्थ।
प्रश्न 23.
खाद्य श्रृंखला किसे कहते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिकी तंत्र में सभी जीव जो उत्पादक एवं उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं एक क्रम या श्रृंखला में व्यवस्थित रहते हैं, जीवों की इस व्यवस्थित श्रृंखला को जिसके द्वारा खाद्य ऊर्जा एवं पोषक पदार्थों का स्थानान्तरण होता है, खाद्य श्रृंखला कहते हैं।
प्रश्न 24.
पोष स्तर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर या कड़ी को पोषण स्तर कहते हैं।
प्रश्न 25.
खाद्य जाल किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र में एक साथ कई खाद्य श्रृंखलाएँ क्रियाशील रहती हैं। शाकाहारी व मांसाहारी जीवों को भोजन के कई विकल्प उपलब्ध होते है, जिससे खाद्य श्रृंखलाएँ आपस में अंन्तर्ग्रन्थित होकर खाद्य जाल का निर्माण करती हैं।।
प्रश्न 26.
पारिस्थितिकी पिरामिड किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादकों, शाकाहारियों, मांसाहारियों को क्रमश: उनकी संख्या, जैवभार व ऊर्जा प्रवाह की मात्रा को आयतों द्वारा निरूपित करने पर निर्मित पिरामिड रूपी संरचना पारिस्थितिकी पिरामिड कहलाते हैं।
प्रश्न 27.
पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव के प्रभाव किन-किन रूपों में दृष्टिगत होते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव के प्रभाव मुख्यतः कृषि क्रियाओं, वनोन्मूलन, खनन क्रियाओं, औद्योगीकरण, जलवायु परिवर्तन व प्राकृतिक आपदाओं के रूप में दृष्टिगत होते हैं।
प्रश्न 28.
जलवायु परिवर्तन के लिए मानव की कौन-सी क्रियाएँ उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन हेतु मुख्यतः वनोन्मूलन, औद्योगीकरण व अणुशक्ति के आविष्कार को उत्तरदायी माना जाता है।
प्रश्न 29.
प्राकृतिक संतुलन क्या है?
उत्तर:
संसार में विविध प्रकार के जीवधारी पाए जाते हैं। किसी भी पारिस्थितिकी समुदाय में किसी भी प्राणी जाति की समष्टि का आकार तब तक स्थिर बना रहता है जब तक कि कोई प्राकृतिक प्रकोप इसकी स्थिरता को भंग न कर दे। इस स्थिरता को ही । पारिस्थितिकी के क्षेत्र में, प्रकृति में संतुलन कहते हैं।
प्रश्न 30.
जैविक समुदाय एवं पर्यावरण के मध्य संतुलन करने हेतु कौन-सी व्यवस्थाएँ होती हैं?
उत्तर:
जैविक समुदाय एवं पर्यावरण के मध्य संतुलन करने हेतु प्रतिस्पर्धा, पारिस्थितिकी तंत्र/पारितंत्र व व्यवहार को शामिल किया गया है।
प्रश्न 31.
कुंजी-शिला जातियाँ क्या हैं?
अथवा
की- स्टोन जातियाँ क्या होती है?
उत्तर:
कुंजी-शिला जातियाँ ऐसी जातियाँ हैं जो किसी क्षेत्र विशेष के पारितंत्र को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं।
प्रश्न 32.
पर्यावरण में संतुलन कब स्थापित होता है?
उत्तर:
की स्टोन जातियाँ तथा वन्य-जीव प्रकृति में अपना महत्वपूर्ण योगदान निर्धारित करते हैं। इनके संरक्षण से पर्यावरण में संतुलन स्थापित होता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I
प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी की संकल्पना का उदय कैसे हुआ?
अथवा
पारिस्थितिकी की प्रक्रिया का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिकी शब्द भले ही उन्नीसवीं शताब्दी की देन हो, किन्तु पारिस्थितिकी की संकल्पना भारतीय संस्कृति की दृष्टि से अति प्राचीन है। पुरातन काल से ही भारतीय ऋषियों एवं मनीषियों ने प्रकृति एवं जीव के अन्तर्सम्बन्धों को जनमानस का अंग बनाने के लिए इन्हें विभिन्न प्रतीकों के रूप में धर्म, सामाजिक नियम और आचरण से जोड़ दिया था। जैसे गाय को माता का स्थान प्रदान किया गया। हजारों वर्षों से मानव व पर्यावरण के बीच मित्रवत अन्तर्सम्बन्ध चले आ रहे थे किन्तु आधुनिक युग में मानव की प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की आकांक्षा ने इन सनातन नियमों और आचरण को त्याग कर केवल भौतिक सुख को जीवन का आधार मान लिया। इस प्रक्रिया से प्रकृति और जीव के अन्तर्सम्बन्धों में विकृति पैदा हो गई जिससे पारिस्थितिकी की संकल्पना का उदय हुआ।
प्रश्न 2.
पारिस्थितिकी की व्यवस्था को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिकी एक ऐसी व्यवस्था है, जो जीव और पर्यावरण की अन्त:प्रक्रिया का परिणाम होती है। यह व्यवस्था प्राकृतिक नियमों के तहत विकसित होती है। अतः पारिस्थितिकी के अध्ययन में इसी व्यवस्था के रहस्यों का पता लगाया जाता है। यह व्यवस्था इतनी जटिल है कि जैसे-जैसे विद्वान इन रहस्यों की खोज कर रहे हैं, वैसे-वैसे नये रहस्य उद्घटित होते जा रहे हैं। यद्यपि वैज्ञानिक उपलब्धियों और तकनीकी विकास के मद में चूर मानव यह मानने लगा है कि वह प्रकृति का दास नहीं है। वह अपनी इच्छानुसार प्रकृति का उपयोग और उपभोग करने के लिए स्वतंत्र है। मानव की इसी प्रवृत्ति का दुष्परिणाम अब पर्यावरण ह्रास के विभिन्न रूपों में सामने आने लगा है।
प्रश्न 3.
पारिस्थितिकी तंत्र की मुख्य विशेषता बताइए।
उत्तर:
पारिस्थितिकी तंत्र की निम्न विशेषताएँ मिलती हैं-
- एक पारिस्थितिक तंत्र पारिस्थितिक अध्ययन की आधारभूत इकाई होता है।
- पारिस्थितिक तंत्र का आकार और विस्तार अलग-अलग हो सकता है।
- पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव निर्मित भी हो सकता है।
- पारिस्थितिक तंत्र सम्पूर्ण भूमण्डल पर भी व्याप्त हो सकता है अथवा चिड़ियाघर में निर्मित पिंजरे के समान छोटा हो सकता है। अथवा किसी झील तक सीमित हो सकता है।
प्रश्न 4.
स्वपोषी एवं परपोषी घटकों में क्या अन्तर होता है?
अथवा
स्वपोषी घटक, परपोषी घटकों से किस प्रकार भिन्न होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वपोषी व परपोषी घटकों में निम्न अन्तर पाए जाते हैं।
स्वपोषी घटक | परपोषी घटक |
1. स्वपोषी घटक स्वयं अपना भोजन बनाते हैं। | 1. परपोषी घटक स्वपोषित प्राथमिक उत्पादकों द्वारा प्रदत्त भोजन ग्रहण करते हैं। |
2. स्वपोषी घंटकों को प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है। | 2. परपोषी घटकों को उपभोक्ता माना जाता है। |
3. स्वपोषी घटक शाकाहारी जीवों के लिये भोज्य पदार्थ प्रदान करते है। | 3. परपोषी घटक स्वपोषी द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग करते है। |
प्रश्न 5.
जैविक एवं अजैविक घटकों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जैविक एवं अजैविक घटकों में निम्न अन्तर पाये जाते हैं।
जैविक घंटक | अजैविक घटक |
1. किसी पारिस्थितिक तंत्र के समस्त जीवित जीव उस तंत्र के जैविक घटक होते हैं। | 1. किसी पारिस्थितिक तंत्र के समस्त निर्जीव घटक उस तंत्र के अजैविक घटक होते हैं। |
2. जैविक घटक पारस्परिक अन्त:क्रियाओं द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। | 2. अजैविक घटकों के मध्य पारस्परिक अन्त:क्रिया नहीं होती हैं। |
3. जैविक घटकों में मानवे, जीव-जन्तु एवं वनस्पति को शामिल किया जाता है। | 3. अजैविक घटकों में जलवायु के तत्त्वों, कार्बनिक पदार्थों व अकार्बनिक पदार्थों को शामिल किया जाता है। |
4. जैविक घटक परिवर्तन करने वाले घटक होते हैं। | 4. अजैविक घटक प्रायः परिवर्तित होने वाले घटक होते हैं। |
प्रश्न 6.
उपभोक्ताओं को कितने भागों में बाँटा गया है?
अथवा
उपभोक्ता कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता के तीन प्रकार होते हैं-
- प्राथमिक उपभोक्ता,
- द्वितीयक उपभोक्ता,
- तृतीयक उपभोक्ता।
1. प्राथमिक उपभोक्ता – इन्हें शाकाहारी उपभोक्ता भी कहते हैं। पौधों की पत्तियों अथवा उनके उत्पादों से भोजन प्राप्त करने वाले समस्त जीव-जन्तु जैसे-खरगोश, हिरण, बकरी, गाय, कीड़े इसी वर्ग में आते हैं।
2. द्वितीयक उपभोक्ता – इन्हें मांसाहारी उपभोक्ता भी कहते हैं। ये शाकाहारी जन्तुओं को मारकार अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इनमें मेंढ़क, बिल्ली, लोमड़ी व कुत्ता तथा शेर शामिल हैं।
3. तृतीयक उपभोक्ता – इन्हें सर्वाहारी उपभोक्ता भी कहते हैं। ये पादपों, शाकाहारी व मांसाहारी को खाकर अपना भोजन ग्रहण करते हैं। इस श्रेणी में मानव, बाजे, शेर व मछलियाँ शामिल हैं।
प्रश्न 7.
प्रत्येक उपभोक्ता स्तर पर ऊर्जा की मात्रा में निरन्तर कमी क्यों आती है?
उत्तर:
पौधों में संचित रासायनिक ऊर्जा को शाकाहारी जीव भोजन के रूप में प्राप्त करते हैं। पौधों से शाकाहारी जीवों में स्थानान्तरण के समय ऊर्जा का ह्रास होता है। इसके बाद मांसाहारी जीव शाकाहारी जीवों को खाते हैं, उस समय भी ऊर्जा का हाँस होता है। इस प्रकार एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है, साथ ही ऊर्जा के इस स्थानान्तरण में उसका ह्रास भी होता रहता है। इस प्रकार प्रत्येक उपभोक्ता स्तर पर ऊर्जा की मात्रा निरन्तर रूप से कम होती जाती है।
प्रश्न 8.
पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव के अनुकूल प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानव के कौन-से प्रभाव पारिस्थितिक तंत्र पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं?
उत्तर:
मानव ने प्रारम्भ से ही अपनी बुद्धि, ज्ञान और तकनीकी विकास के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और उनको नियंत्रित करने का प्रयास किया है। मानव ने अपने ज्ञान द्वारा अपनी समस्याओं के समाधान हेतु भूमि उपयोग, कृषि के विकास, वानिकी, वन्यजीव प्रबन्ध आदि में सफलता अर्जित की है। उदाहरणार्थ विश्व की तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि की कमी, खाद्यान्नों की कमी, विभिन्न बीमारियाँ आदि की समस्याएँ उत्पन्न हुईं तो मानव ने भूमि के बेहतर उपयोग, खाद्यान्नों के अधिकतम उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरक, उन्नत किस्म के बीज, कृषि उपकरणों का विकास तथा अनेक उन्नत औषधियों का आविष्कार करके विभिन्न बीमारियों को रोकने के प्रयास द्वारा इन समस्याओं के समाधान का प्रयत्न किया और उसमें सफलता प्राप्त की है।
प्रश्न 9.
प्रकृति संतुलन में वन्य जीवों के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वन्य जीव प्रकृति संतुलन में अपना अलग से विशिष्ट स्थान एवं महत्व रखते हैं। वन्य जीव प्रकृति में पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखते हैं तथा एक बार भी संतुलन में व्यवधान आ जाये तो उसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव जाति पर पड़ता है। उदाहरणार्थ-यदि शिकारियों के द्वारा मांसाहारी वन्य जीवों को समाप्त कर दिया जाये तो शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या में इतनी अकल्पनीय बेहताशा वृद्धि हो जायेगी कि वे जंगल के सभी पेड़-पौधों को चट कर जायेंगे तथा अंतत: जंगलों का नामोनिशान मिट जायेगा। इस स्थिति में वर्षा अल्प होगी तथा वर्षा के अभाव में फसलों का उत्पादन पर्याप्त नहीं हो पायेगा तथा मनुष्य को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि वन्य जीव प्रकृति सन्तुलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II
प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र को भिन्न-भिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया गया है। जिन्हें निम्न तालिका के माध्यम से स्पष्ट किया गया हैं।
ऊर्जा के स्रोत के आधार पर – पारिस्थितिक तंत्र दो प्रकार के होते हैं-
(i) प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र – प्राकृतिक अवस्थाओं में विकसित पारिस्थितिक तंत्र को प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है, ये तंत्र दोनों प्रकार के हो सकते हैं-स्थलीय और जलीय। स्थलीय प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों में जंगल, घास के मैदान, तालाब, नदी, रेगिस्तान, पर्वतीय क्षेत्र आदि सम्मिलित किये जाते हैं। सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र सबसे बड़ी और स्थायी पारिस्थितिक तंत्र होता है। वन, घास के मैदान, रेगिस्तान, खुले सागर आदि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र हैं।
(ii) मानव निर्मित या कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र – मानव निर्मित एवं अनुरक्षित तंत्र को कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है। जैसे-खेत, पार्क, रसोई-उद्यान, चिड़ियाघर, एक्वेरियम आदि।
(ब) आवास के आधार पर- (i) स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र, (i) जलीय पारिस्थितिक तंत्र।
(स) उपयोग के आधार पर- (i) कृषि पारिस्थितिक तंत्र, (ii) अकृषित पारिस्थितिक तंत्र।
(द) विकास के आधार पर- (i) प्रौढ़ पारिस्थितिक तंत्र, (i) अपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र, (iii) मिश्रित पारिस्थितिक तंत्र। (iv) निष्क्रिय पारिस्थितिक तंत्र।
प्रश्न 2.
परपोषी घटकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ये वे परपोषित सजीव घटक हैं, जो स्वपोषित प्राथमिक उत्पादकों द्वारा प्रदत्त भोजन ग्रहण करते हैं। परपोषी घटकों द्वारा स्वपोषियों द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग किये जाने के कारण इन्हें उपभोक्ता भी कहा जाता है। आहार ग्रहण करने की प्रक्रिया के आधार पर इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है
- मृत जीवी,
- परजीवी,
- प्राणी समभोजी।
1. मृत जीवी – मृत जीवी घटक पौधों और जन्तुओं से प्राप्त कार्बनिक यौगिकों को घोल के रूप में ग्रहण करके जीवित रहते
2. परजीवी – ये घटक अपने भोजन और जीवन निर्वाह के लिए दूसरे जीवित जीवों पर आश्रित रहते हैं।
3. प्राणी समभोजी – ये घटक अपने मुख द्वारा आहार ग्रहण करते हैं। मानव सहित सभी बड़े जन्तु इस वर्ग में आते हैं।
प्रश्न 3.
पारिस्थितिक तंत्र पर मानवीय प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र किसी एक भौगोलिक इकाई में निवास करने वाले जीव और वहाँ के पर्यावरण के बीच अन्त:प्रक्रिया का प्रतिफल हैं। इन जीवों में मानव ही ऐसा जीव है जो अपनी विभिन्न क्रियाओं द्वारा पर्यावरण से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य जीवों की तुलना में पर्यावरण को अधिक प्रभावित करता है। वास्तव में मानव सभ्यता के विकास का आधार ही प्रकृति का शोषण रहा है। प्रकृति कुछ पदार्थों को स्वत: पुन:पूर्ण कर लेती है, किन्तु अनेक तत्त्व ऐसे होते हैं, जिन्हें पुन:पूर्ण नहीं किया जा सकता। फलस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में असन्तुलन पैदा हो जाता है, जो मानव और पर्यावरण दोनों के लिये हानिकारक होता है। पारिस्थितिक तंत्र पर मानव के प्रभाव अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रकार के देखे जा सकते हैं। मानव के अनुकूल प्रभावों द्वारा मानव और पर्यावरण दोनों को लाभ होता है, किन्तु प्रतिकूल प्रभावों द्वारा एक को किसी न किसी प्रकार की हानि होती है।
प्रश्न 4.
पारिस्थितिक तंत्र पर कृषि क्रियाओं के प्रतिकूल प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याओं के समाधान हेतु मानव ने जहाँ कृषि भूमि के विस्तार, रासायनिक उर्वरक, उन्नत किस्म के बीज, कृषि यंत्रों एवं उपकरणों का विकास किया, वहीं इनके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र पर अनेक प्रतिकूल प्रभाव भी पड़े हैं; यथा–मानव ने कृषि भूमि के विस्तार के लिए वनों एवं घास के मैदानों को साफ किया है जिससे वन्य-जीवों, चारागाहों तथा सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार खाद्यान्नों के अधिक उत्पादन के लिये रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके न केवल भूमि को कृषि के अनुपयुक्त बनाने का कार्य किया है, बल्कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं को निरन्तर भूमिगत जल में मिलाकर उसे प्रदूषित करने का कार्य भी किया है। फसलों के अधिक उत्पादन के लिए सिंचाई हेतु भूमिगत जल के निरन्तर प्रयोग ने भूमिगत जल के स्तर में गिरावट उत्पन्न की है जिससे अनेक क्षेत्रों; यथा–राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि में पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है।
प्रश्न 5.
वनोन्मूलन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर कौन से प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं?
अथवा
मानव द्वारा सम्पन्न की गई वनोन्मूलन की प्रक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र पर कौन से हानिकारक प्रभाव डाल रही
उत्तर:
मानव द्वारा कृषि क्षेत्र में विस्तार एवं अन्य आर्थिक क्रियाओं हेतु वनों की अनियंत्रित कटाई किए जाने का प्रतिकूल प्रभाव पारिस्थितिक तंत्र की जलवायु, मिट्टी, वन्य जीवों, पक्षियों आदि पर स्पष्ट देखा जा सकता है। वनोन्मूलन के फलस्वरूप जलवायु गर्म होने लगती हैं, वर्षा की मात्रा में कमी आ जाती है, भूमि का कटाव होने लगता है और वन्य जीवों का विनाश होने लगता है। वनों की अनियंत्रित कटाई के फलस्वरूप ही आज विश्व के अनेक भागों में जिसमें भारत भी सम्मिलित है, अनेक वन्यजीव प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी है या विलुप्त होने के कगार पर हैं। इससे वानिकी पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो गया है, क्योंकि प्राकृतिक वनस्पति ही वानिकी पास्थितिक तंत्र का प्रमुख आधार है।
प्रश्न 6.
कुँजी-शिला जातियों की प्रकृति-सन्तुलन में भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
किसी क्षेत्र विशेष के पारितंत्र को कुंजी-शिला जातियाँ कैसे प्रभावित करती हैं?
अथवा
की-स्टोन जातियों की पारितंत्र नियंत्रण में भूमिका को वर्णित कीजिए।
उत्तर:
“कुंजी-शिला जातियाँ, ऐसी जातियाँ हैं जो किसी क्षेत्र विशेष के पारितंत्र को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं।” की-स्टोन जातियाँ पारितंत्र को स्थायित्व प्रदान करती हैं तथा इनके अभाव में ऐसे बदलाव होते हैं जिनमें पारितंत्र का स्वरूप एकदम परिवर्तित हो जाता है तथा इसके समाप्त होने की सम्भावना भी बनी रहती है। इस प्रकार पारितंत्र में की स्टोन जातियों की भूमिका अत्यधिक कारगर होती है। की-स्टोन जातियों में मुख्यत: परभक्षी जातियाँ शामिल हैं। ये जातियाँ पारिस्थितिक समुदाय पर अपना प्रभाव डालती हैं।
परभक्षी की संख्या में बढ़ोत्तरी इस बात का सूचक होती है कि ये शिकार जातियों को अपने भोजन के रूप में उपयोग करते हुए उनकी संख्या को सीमित बनाए रखती हैं। परभक्षी जातियों के अभाव में शिकार जातियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी तथा इस स्थिति में सारे पारिस्थितिक तंत्र के नष्ट होने की सम्भावना बनी रहती है। इस प्रकार की-स्टोन जातियाँ ही समुदाय में अन्य जातियों की संख्या को निर्धारित करती हैं। हाथी, मेढ़क ऐसी ही की-स्टोन जातियाँ हैं जो पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखती हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 22 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र की संरचना को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पारिस्थितिक तन्त्र विभिन्न घटकों का अन्तर्सम्बन्धित स्वरूप है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक पारिस्थितिक तंत्र की संरचना पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों की पारस्परिक अन्तः क्रिया का परिणाम होती है। पारिस्थितिक तंत्र की इस संरचना को निम्न तालिका द्वारा दर्शाया गया है।
इन सभी घटकों के स्वरूप को संक्षिप्त वर्णन निम्नानुसार है-
जैविक घटक – किसी पारिस्थितिक तंत्र के समस्त जीवित जीव उस तंत्र के जैविक घटक कहलाते हैं, ये सभी जीव विभिन्न पारस्परिक अन्त:क्रियाओं द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। जैविक घटकों को उनकी पोषण क्षमता एवम् कार्यशीलता के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. पोषण क्षमता के आधार पर जैविक घटकों का वर्गीकरण
पोषण क्षमता के आधार पर जैविक घटकों को दो भागों में बाँटा गया है-
(i) स्वपोषी घटक – स्वपोषी घटक, जिन्हें प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है, सौर ऊर्जा से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा और मृदा से जड़ों द्वारा स्वयं अपना भोजन बनाते हैं तथा अन्य शाकाहारी जीवों के लिये भोज्य पदार्थ प्रदान करते हैं।
(ii) परपोषी घटक – ये वे पारिपोषित, सजीव घटक हैं, जो स्वपोषित प्राथमिक उत्पादकों द्वारा प्रदत्त भोजन ग्रहण करते हैं। परपोषी घटकों द्वारा स्वपोषियों द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग किये जाने के कारण इन्हें उपभोक्ता भी कहा जाता है। आहार ग्रहण करने की प्रक्रिया के आधार पर इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) मृत जीवी – मृत जीवी घटक पौधों और जन्तुओं से प्राप्त कार्बनिक यौगिकों को घोल के रूप में ग्रहण करके जीवित रहते हैं।
(ब) परजीवी – ये घटक अपने भोजन और जीवन निर्वाह के लिये दूसरे जीवित जीवों पर आश्रित रहते हैं।
(स) प्राणी समभोजी – ये घटक अपने मुख द्वारा आहार ग्रहण करते हैं। मानव सहित सभी बड़े जन्तु इस वर्ग में आते हैं।
2. कार्यशीलता के आधार पर जैविक घटकों को तीन भागों में बाँटा जाता है-
(i) उत्पादक – इनमें सौर ऊर्जा से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा और मृदा से जड़ों द्वारा स्वयं अपना भोजन बनाने वाले पादप आते हैं, जिन्हें प्राथमिक उत्पादक कहा जाता है। इन स्वपोषी पादपों पर निर्भर जीव-जन्तु और मानव को द्वितीयक उत्पादक कहा जाता है।
(ii) उपभोक्ता – ये परपोषी जीव होते हैं, जो स्वपोषी पादपों द्वारा निर्मित भोजन ग्रहण करते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं
(अ) शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता – पौधों की पत्तियों अथवा उनके उत्पादों से भोजन प्राप्त करने वाले समस्त जीव-जन्तु; जैसे-खरगोश, हिरण, बकरी, गाय आदि, कीड़े तथा जलीय जीवों में विभिन्न प्रकार के मौलस्क जीव, आते हैं।
(ब) मांसाहारी या द्वितीयक उपभोक्ता-ये शाकाहारी जन्तुओं को मारकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इन्हें द्वितीयक उपभोक्ता भी कहा जाता है। जैसे-मेंढ़क, बिल्ली, लोमड़ी, कुत्ता, शेर आदि।
(स) सर्वाहारी या तृतीयक उपभोक्ता-इस श्रेणी में वे जीव आते हैं, जो पादपों, शाकाहारी व मांसाहारी जीवों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इनमें मानव, बाज, गिद्ध, मछलियाँ, शेर आदि सम्मिलित हैं। इसलिए इन्हें तृतीयक उपभोक्ता या उच्च श्रेणी उपभोक्ता कहा गया है।
(iii) अपघटक – इनमें मुख्यतः सूक्ष्म, जीवाणु तथा कवक सम्मिलित हैं, जो मृत पादपों और जन्तुओं सहित जैविक पदार्थों को सड़ा गलाकर उनका अपघटन कर देते हैं। ये जीव अपघटन की प्रक्रिया में अपना आहार ग्रहण करते हुए जैविक तत्वों को पुनर्व्यवस्थित करते हैं और प्राथमिक उत्पादकों के प्रयोग हेतु पुनः सुलभ करवाते हैं। उपर्युक्त सभी घटक सम्मिलित रूप से पारिस्थतिक तंत्र के सन्तुलन में सहायक होते हैं। अजैविक घटक–अजैविक घटक तीन प्रकार के होते हैं
- जलवायु तत्त्व ; जैसे-सूर्य का प्रकाश, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, जलवाष्प आदि।
- कार्बनिक पदार्थ ; जैसे-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, तरल पदार्थ आदि। इन्हें शरीर निर्माणक पदार्थ कहा जाता है।
- अकार्बनिक पदार्थ ; जैसे-ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, जल, कार्बन, सल्फर, कैल्शियम, खनिज, लवण आदि। ये तत्त्व पारिस्थितिक तंत्र में पदार्थों के चक्रण में विशेष भूमिका अदा करते हैं और जीवों को शक्ति प्रदान करते हैं।
प्रश्न 2.
पारिस्थितिक तंत्र पर मानव के प्रतिकूल प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानव किस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रहा है?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र पर मानव के अनुकूल प्रभावों की तुलना में प्रतिकूल प्रभाव कहीं अधिक और महत्त्वपूर्ण हैं, जिनके कारण वर्तमान समय में पर्यावरणीय समस्याएँ विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। यदि समय रहते इन समस्याओं पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो एक दिन पृथ्वी से मानव जीवन ही समाप्त हो सकता है। पारिस्थितिक तंत्र पर मानव के प्रतिकूल प्रभावों को निम्न शीर्षकों में स्पष्ट किया जा सकता है-
- कृषि क्रियाओं के प्रतिकूल प्रभाव
- वनोन्मूलन के प्रतिकूल प्रभाव
- खनन क्रियाओं के प्रतिकूल प्रभाव
- औद्योगीकरण के प्रतिकूल प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव
- प्राकृतिक आपदाओं के प्रतिकूल प्रभाव
1. कृषि क्रियाओं के प्रतिकूल प्रभाव – मानव ने कृषि भूमि के विस्तार के लिए न केवल वनों और घास के मैदानों को साफ किया है, बल्कि समुद्र से भी भूमि निकालने का प्रयास किया है, जिसका सीधा एवम् प्रतिकूल प्रभाव वन्य जीवों, चारागाहों तथा सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ा है। इसी प्रकार खाद्यान्नों के अधिक उत्पादन के लिये रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके न केवल भूमि को कृषि के अनुपयुक्त बनाने का कार्य किया है, बल्कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं के निरन्तर भूमिगत जल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। फसलों के अधिक उत्पादन के लिए सिंचाई हेतु भूमिगत जल के निरन्तर प्रयोग से भूमिगत जल के स्तर में गिरवाट आई है जिससे राजस्थान जैसे कम वर्षा वाले प्रदेशों में पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है।
2. वनोन्मूलन के प्रतिकूल प्रभाव – मानव द्वारा कृषि क्षेत्र के विस्तार, एवं अन्य आर्थिक क्रियाओं हेतु वनों की अनियंत्रित कटाई किए जाने का प्रतिकूल प्रभाव पारिस्थितिक तंत्र की जलवायु, मिट्टी, वन्य जीवों, पक्षियों आदि पर स्पष्ट देखा जा सकता है। वनोन्मूलन के फलस्वरूप जलवायु गर्म होने लगती है, वर्षा की मात्रा में कमी आ जाती है, भूमि का कटाव होने लगता है और वन्यजीवों का विनाश होने लगता है। वनों की अनियंत्रित कटाई के फलस्वरूप ही आज विश्व के अनेक भागों में, जिसमें भारत भी सम्मिलित है, अनेक वन्यजीव प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। इससे वानिकी पारिस्थितिक तंत्र असन्तुलित हो गया है, क्योंकि प्राकृतिक वनस्पति ही वानिकी पारिस्थितिक तंत्र का प्रमुख आधार है।
3. खनन क्रियाओं के प्रतिकूल प्रभाव – औद्योगिक और तकनीकी प्रगति के साथ खनन प्रक्रिया में भी वृद्धि हुई, किन्तु इससे । अनेक पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो गए। खनन प्रक्रिया के अन्तर्गत विस्तृत क्षेत्र में भूमि को खोदा जाता है, जिसके कारण भू ‘ सतह पर विस्तृत गड्ढों का निर्माण हो जाता है और उस क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं का विनाश हो जाता
है। लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की भूमि अनुपयोगी हो जाती है। भू-स्खलन घटनाओं में वृद्धि हो जाती है। खनन क्रिया के लिए किए जाने वाले भूमिगत विस्फोटों से वायुमण्डल में धूलकणों की मात्रा बढ़ जाती है, जिसका सीधा एवं प्रतिकूल प्रभाव वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। फलस्वरूप ऐसे क्षेत्रों के पारिस्थितिक तंत्र में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
4. प्राकृतिक आपदाओं के प्रतिकूल प्रभाव – मानवीय क्रियाओं के फलस्वरूप बाढ़, सूखा, अकाल, भूस्खलन आदि प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई हैं। नदियों पर बड़े बाँधों के निर्माण से भूकम्पीय क्रियाओं में वृद्धि देखी गई है। महाराष्ट्र में आये लाटूर भूकम्प के लिए कोयना बाँध को भी उत्तरदायी माना गया है। 1980 के दशक में विश्व में प्राकृतिक आपदाओं के कारण औसतन दो अरब डालर की सम्पत्ति की हानि हुई, जबकि 1990 के दशक में यह औसत बढ़कर 12 अरब डालर हो गया। 26 दिसम्बर, 2004 को सुनामी लहरों के फलस्वरूप दो लाख से अधिक व्यक्ति काल के ग्रास बन गए। अंडमान-निकोबार तट पर समुद्री तले की ऊँचाई बढ़ गई है। अतः स्पष्ट है प्राकृतिक आपदाओं से पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन पैदा होता है।
5. औद्योगीकरण के प्रतिकूल प्रभाव – औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण प्रदूषण अधिक हुआ है। औद्योगिक इकाइयों से जल एवं वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। इन इकाइयों से अनेक प्रकार की विषैली गैसें निरन्तर वायुमण्डल में मिल रही हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला रासायनिक अपशिष्ट एवं द्रव नदियों एवं भूमिगत जल को प्रदूषित कर रहा है। औद्योगिक क्षेत्रों से निकली विषैली गैसों के प्रभाव से ओजोन क्षय एवं अम्लीय वर्षा जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी हैं।
6. जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव – मानव के द्वारा किया गया वनोन्मूलन, औद्योगीकरण एवं अणुशक्ति की प्रक्रिया . के कारण जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया सम्पन्न हो रही है। वर्षा की अनियमितता, तापमान में वृद्धि, ओजोन क्षय आदि जलवायु परिवर्तन के प्रारूपों को दर्शाती है।
प्रश्न 3.
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जलवायु किसी भी पारिस्थितिक तंत्र को नियत्रिंत करती है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद से मानव की अनेक क्रियाओं द्वारा जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहा है। जलवायु के परिवर्तन के लिये मानव की निम्न क्रियाएँ महत्त्वपूर्ण कारण हैं-
(i) वनोन्मूलन – मानव अपनी सुख-सुविधा एवं लाभ के लिये वनों को अतिदोहन कर रहा है, जिससे वर्षा में अनियमितता आई है और तापमान में वृद्धि हुई है।
(ii) औद्योगीकरण – औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाली विषैली गैसें न केवल वायु को प्रदूषित करती हैं, बल्कि इनके प्रभाव से ओजोन परत विरल होने लगती है। ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी और अवरक्त किरणों को अवशोषित कर भू सतह पर पहुँचने से रोकती है। विषाक्त गैसों के परिणामस्वरूप विश्व में चर्म एवं श्वास के रोगियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
(iii) अणुशक्ति का आविष्कार – मानव का सबसे अधिक विध्वंसात्मक वैज्ञानिक आविष्कार अणुबम की खोज है, जिसके भूमिगत या समुद्र में किए जाने वाले विस्फोटों से जलवायु प्रभावित होती है। पोकरन विस्फोट के बाद बाड़मेर क्षेत्र में अधिक वर्षा का होना इसका ज्वलन्त प्रमाण है।
मानव वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर जो कुछ कर रहा है उससे जलवायु तंत्र प्रत्यक्ष रूप से और पारिस्थितिक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहा है।
6 से 17 दिसम्बर 2004 तक ब्यूनस आयर्स में जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी बैठक में मौसम में हो रहे परिवर्तनों और इनके कारणों का निर्धारण करके उन्हें नियंत्रित किए जाने के प्रयासों पर कोई सहमति नहीं बन पाई। इसके पीछे विकसित देशों संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, इटली आदि स्रोत हैं। यही नहीं सऊदी अरब, ओमान, कतर जैसे देश भी कार्बन उत्सर्जन को रोकने के विरोध में हैं। क्योंकि ऐसा करने से उनकी अर्थव्यवस्था को संकट उत्पन्न हो सकता है।
आज विश्व के प्रत्येक देश में मौसम का व्यवहार असामान्य हो रहा है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वर्षा का कोई निश्चित मौसम नहीं रहा। बर्फवर्षा के लिये कोई जगह निश्चित नहीं रहीं, क्योंकि दुबई में बर्फवर्षा हो चुकी है, फूलों के खिलने का कोई निश्चित मौसम नहीं रह गया है, गर्मी का मौसम कब प्रारम्भ होगा और तापमान किस ऊँचाई तक पहुँच जाएगा, यह निश्चित करना भी सम्भव नहीं हो पा रहा है। मौसम के इस असामान्य व्यवहार का प्रमुख कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि है। इन्टरगवर्नमेंटल मैनुअल ऑन क्लाइमेट चेंज ने ग्लोबल वार्मिंग को लेकर गम्भीर चेतावनी दी है, कि अगर इसे नहीं रोका गया तो बड़ी संख्या में तूफान और बाढ़ आयेंगे। गर्मी बढ़ेगी और लू व गर्म थपेड़ों से मरने वालों की संख्या भी बढ़ेगी। इसे कम करने का एक ही उपाय है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 1990 के स्तर से 50 से 70 प्रतिशत तक कम किया जाये।
जून 2004 में भारत सरकार ने क्लाइमेट चेंज पर पहली नेशनल कम्यूनीकेशन रिपोर्ट जारी की। जिसमें पहली बार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और उनके प्रभाव के बारे में अधिकाधिक रूप से बताया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 100 वर्षों में औसत तापमान में 0.4 डिग्री सेल्सियस की दर से वृद्धि के परिणामस्वरूप देश के पश्चिमी, उत्तरी-पश्चिमी भाग और उत्तरी आन्ध्र प्रदेश में वर्षा में 10-12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
प्रश्न 4.
पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए आवश्यक स्थितियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखने हेतु किन दशाओं का संतुलित होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिकीय संतुलन हेतु आवश्यक दशाएँ निम्नानुसार हैं-
(i) प्राकृतिक संतुलन – संसार में विविध प्रकार के जीवधारी पाए जाते हैं। किसी भी पारिस्थितिकीय समुदाय में किसी भी प्राणी जाति की समष्टि का आकार तब तक स्थिर बना रहता है, जब तक कि कोई प्राकृतिक प्रकोप इसकी स्थिरता को भंग न कर दें। इस स्थिरता को ही पारिस्थितिकी के क्षेत्र में, प्रकृति में संतुलन कहते हैं।
वर्तमान समय में सूखा, बाढ़ वर्षा की अनियमितता, भूकम्प इत्यादि प्रकृति में संतुलन नहीं होने के परिणाम हैं।
(ii) प्रकृति में संतुलन की व्यवस्था – प्रकृति में जैविक समुदाय तथा पर्यावरण के मध्य संतुलन करने हेतु निम्न व्यवस्थाएँ होती हैं।
(क) प्रतिस्पर्धा – जीवधारियों के मध्य प्रतिस्पर्धा उनकी आबादी को नियंत्रित करने में सहायक होती है। सामान्यत: पारिस्थितिक तंत्र में भोजन के स्रोत सीमित होते हैं। भोजन की प्राप्ति हेतु जीवधारियों में परस्पर संघर्ष होता है। परभक्षी, स्वयं के शिकार की समष्टि को नियंत्रित करता है। इसी तरह शिकार भी अपनी उपलब्धता के आधार पर परभक्षी की समष्टि को नियंत्रित करता है।
(ख) पारिस्थितिक तंत्र/पारितंत्र – यह अजैविक एवं जैविक घटकों से मिलकर निर्मित होता है। अजैविक घटक प्रधान रूप से जल, वायु, भूमि एवं मौसम होते हैं, जबकि जैविक घटक जीवित जीवधारी के रूप में होते हैं। पारिस्थितिक तंत्र के ये अजैविक तथा जैविक घटक परस्पर अंतर्सम्बन्धित रहते हुए तंत्र का संतुलन बनाए रखते हैं। प्रत्येक प्राणी जाति अपनी जीवन शैली द्वारा एक कार्यात्मक छवि बनाती है, जिसे निकेत कहते हैं। संक्षेप में निकेत किसी जाति की पारिस्थितिकीय भूमिका होती है तथा पारिस्थितिक तंत्रों के बीच ऊर्जा और पदार्थों के स्थानांतरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जाति अपनी ही कार्यशैली में पारिस्थितिक तंत्र को स्थायित्व/संतुलन प्रदान करती है। जाति पादप की हो अथवा प्राणी की पारिस्थितिक तंत्र के लिए उसके कार्य महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रत्येक जाति खाद्य-जाल तथा ऊर्जा प्रवाह के माध्यम से नैसर्गिक संतुलन बनाये रखती है। प्रत्येक उच्च क्रम का उपभोक्ता अपने से निचले क्रम के जीवों का भक्षण करके जैव भार तथा संख्या के पिरामिड को संतुलित रखकर जैव नियंत्रण के माध्यम से पारिस्थितिकीय व्यवस्था को स्वनियंत्रित प्रणाली का रूप देते हैं।
(ग) व्यवहार – कुछ जीवधारियों की जनसंख्या उनके व्यवहार के माध्यम से प्रभावित होती है।
(iii) प्राकृतिक संतुलन में अवरोध – मानव ने अपने क्रियाकलापों द्वारा प्राकृतिक संतुलन में अत्यधिक अवरोध पैदा किया है। एक समय ऐसा भी था जब ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में खरगोश का नामोनिशान नहीं था। 19वीं शताब्दी में कुछ पर्यटक यहाँ पर अपने खरगोश लाए क्योकि आस्ट्रेलिया में खरगोश का भक्षण करने वाले प्राणी नहीं थे, फलस्वरूप वहाँ पर खरगोश की संख्या निरंतर रूप में तेजी के साथ बढ़ी, जिसका दुष्परिणाम यहाँ हुआ कि खरगोशों ने वहाँ की कृषि-फसलों को समाप्त करना प्रारम्भ कर दिया। इसे व्यवस्थित करने हेतु वहाँ पर लोमड़ियों का प्रवेश करवाया गया, जिन्होंने सफलतापवूक वहाँ पर खरगोशों की संख्या को नियंत्रित किया। तत्पश्चात् ये लोमड़ियाँ भी वहाँ पर आबाद पक्षियों के साथ-साथ अन्य प्राणियों का | शिकार करने लगीं। इससे इस तथ्य को बल मिलता है कि प्रकृति में संतुलन की प्रक्रिया स्वत: नियंत्रित होती है।
(iv) कुँजी – शिला (की स्टोन) जातियों की प्रकृति संतुलन में भूमिका – “कुंजी-शिला जातियाँ, ऐसी जातियाँ हैं जो किसी क्षेत्र विशेष के पारितंत्र (Ecosystem) को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं।”
की-स्टोन जातियाँ पारितंत्र को स्थायित्व प्रदान करती हैं तथा इनके अभाव में ऐसे बदलाव होते हैं, जिनसे पारितंत्र का स्वरूप एकदम परिवर्तित हो जाता है तथा इसके समाप्त होने की सम्भावना भी बनी रहती है। इस प्रकार पारितंत्र में की-स्टोन जातियों की भूमिका अत्यधिक कारगर होती है।
प्रमुख परभक्षी जातियाँ की-स्टोन जातियाँ हैं तथा ये पारिस्थितिक समुदाय पर अपना प्रभाव दृष्टिगोचर करती हैं। परभक्षी की संख्या में बढ़ोतरी इस बात का सूचक होती है कि ये शिकार (Prey) जातियों को अपने भोजन के रूप में उपयोग करते हुए उनकी संख्या को सीमित बनाए रखें। परभक्षी जातियों के अभाव में शिकार जातियों की संख्या में अभिवृद्धि होगी तथा इस स्थिति में सारे पारिस्थितिक तंत्र के नष्ट होने की संभावना बनी रहती है। इस प्रकार की-स्टोन जातियाँ ही समुदाय में अन्य जातियों की संख्या को निर्धारित करती हैं।
(v) प्रकृति संतुलन में वन्य जीवों का योगदान-वन्य जीव प्रकृति संतुलन में अपना अलग से विशिष्ट स्थान एवं महत्त्व रखते हैं। वन्य जीव प्रकृति में पारिस्थितिकीय संतुलन बनाये रखते हैं तथा एक बार भी संतुलन में व्यवधान आ जाये तो उसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव जाति पर दिखाई पड़ता है। उदाहरणार्थ- यदि शिकारियों के द्वारा मांसाहारी वन्य जीवों को समाप्त कर दिया जाये तो शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या में इतनी अकल्पनीय बेहताशा वृद्धि हो जायेगी कि वे जंगल के सभी पेड़-पौधों को चट कर जायेंगे तथा अंतत: जंगलों का नामोनिशान भी शेष नहीं रहेगा। फलस्वरूप वर्षा अल्प होगी तथा वर्षा के अभाव में । फसलें अच्छी नहीं होंगी, फलस्वरूप मनुष्य को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार यह तथ्य उजागर होता है कि वन्य जीव प्रकृति संतुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
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