Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 पृथ्वी की आन्तरिक संरचना
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सियाल परत के संघटक तत्व हैं
(अ) सिलिका-मैग्नीशियम
(ब) सोडियम-एल्यूमीनियम
(स) सिलिका-एल्यूमीनियम
(द) सिलिका-लोहा
उत्तर:
(स) सिलिका-एल्यूमीनियम
प्रश्न 2.
वान डर ग्राक्ट के अनुसार ऊपर की परत की अधिकतम गहराई है
(अ) 1200 किमी
(ब) 60 किमी
(स) 2900 किमी
(द) 200 किमी
उत्तर:
(ब) 60 किमी
प्रश्न 3.
स्वैस के वर्गीकरण के परिप्रेक्ष्य में जो कथन गलत है, वह है
(अ) ऊपरी परत का घनत्व 2.7 है।
(ब) सीमा का घनत्व 4.7 से कम है।
(स) निफे में चुम्बकीय गुण पाया जाता है।
(द) सियाल निफे पर तैर रहा है।
उत्तर:
(द) सियाल निफे पर तैर रहा है।
प्रश्न 4.
सियाल, सीमा व निफे के रूप में भू-गर्भ का विभाजन किया गया था
(अ) वानडर ग्राक्ट द्वारा
(ब) डेली द्वारा
(स) होम्स द्वारा
(द) स्वैस द्वारा
उत्तर:
(द) स्वैस द्वारा
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(अ) भूकम्पीय तरंगें
(ब) गुरुत्वाकर्षण बल
(स) ज्वालामुखी
(द) पृथ्वी का चुम्बकत्व
उत्तर:
(स) ज्वालामुखी
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 अतिलघूउत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइये।
उत्तर:
वे स्रोत जिनसे प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में जानकारी प्राप्त होती है, उन्हें भूगर्भ की जानकारी के प्रत्यक्ष स्रोत कहते हैं। इन स्रोतों के अन्तर्गत ज्वालामुखी, भूगर्भिक क्षेत्रों में उद्वेधन द्वारा खनन क्षेत्र से प्राप्त चट्टानें एवं धरातलीय ठोस चट्टानें आदि को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 7.
भूकम्प विज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर:
धरातल पर आकस्मिक बल के रूप में भूकम्प रूपी घटना घटित होती है। उन भूकम्पीय घटनाओं का भूकम्पलेखी द्वारा अंकित चित्र के आधार पर उनका अध्ययन करने वाला विज्ञान भूकम्प विज्ञान कहलाता है। सामान्यत: भूकम्प का अध्ययन करने वाला विज्ञान भूकम्प विज्ञान कहलाता है।
प्रश्न 8.
भूकम्पीय तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प से उत्पन्न तरंगें जो भूकम्प मूल से उत्पन्न होकर प्रसारित होती हैं। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं।
प्रश्न 9.
पृथ्वी के आंतरिक भाग के विषय में हमारी जानकारी सीमित क्यों है?
उत्तर:
पृथ्वी का आंतरिक भाग अदृश्य व अगम्य है। गहराई के साथ तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण अधिक गहराई तक खनन व वेधन कार्य सम्भव नहीं है। तापमान की अधिकता से गहराई पर यंत्र भी पिघल जाते हैं। इसी कारण पृथ्वी के गर्भ के विषय में हमारी जानकारी सीमित है।
प्रश्न 10.
निफे के प्रमुख संघटक तत्व कौन-से हैं?
उत्तर:
स्वैस के द्वारा वर्णित निफे पृथ्वी की सबसे आन्तरिक परत है जिसका निर्माण निकिल व फेरियम धातुओं से हुआ है। इसलिए इसे निफे (Ni + Fe) कहा जाता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 लघूउत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य के आधार पर निश्चित की गई पृथ्वी की आन्तरिक परतों के नाम बताइये।
उत्तर:
पृथ्वी तल पर सम्पन्न होने वाली भूकम्पीय प्रक्रिया और इससे उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय तरंगों के आलेखन के आधार पर पृथ्वी को निम्न परतों में बांटा गया है-
- भूपर्पटी या क्रस्ट–यह सबसे ऊपरी परत है।
- अनुपटल या मैण्टिल–यह मध्यवर्ती परत है।
- अभ्यन्तर/भूक्रोड- यह निम्नवर्ती परत है।
प्रश्न 12.
‘भूक्रोड’ की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भूक्रोड की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
- यह पृथ्वी की सबसे आन्तरिक परत है।
- इसकी गहराई 2900 किमी से 6371 किमी तक मिलती है।
- इस परत में घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेमी मिलती है।
- पृथ्वी की इस परत में 5 तरंगें नहीं पहुँच पाती हैं।
- यह पृथ्वी के सबसे कठोर भाग है जिसकी रचना ठोस पदार्थों से हुई है।
- भुक्रोड को दो भागों में बांटा गया है – बाहरी क्रोड व आन्तरिक क्रोड।
- पृथ्वी की इस परत में स्वैस के अनुसार निकिल और फेरियम धातुओं की प्रधानता मिलती है।
प्रश्न 13.
‘सियाल’ की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सियाल की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- यह स्वैस के द्वारा वर्णित पृथ्वी की एक परत है।
- इस परत के निर्माण में सिलिका और एल्यूमिनियम की प्रधानता मिलती है।
- इस परत का औसत घनत्व 2.9 ग्राम प्रति घन सेमी है।
- इस परंत की गहराई 50-300 किलोमीटर तक मिलती है।
- स्वैस के अनुसार यह पृथ्वी की आंतरिक संरचना में सबसे ऊपरी परत है।
- इस परत में तेजाबी अंश की प्रधानता है।
- यह परत महाद्वीप व महासागरों के नीचे अलग-अलग गहराई तक मिलती है।
- इसे सीमा परत के ऊपर तैरता हुआ माना गया है।
प्रश्न 14.
अनुपटल क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भूकम्प की प्रक्रिया जो पृथ्वी तल पर सम्पन्न होती है। उसके दौरान भूकम्पीय तरंगों की उत्पत्ति होती है। इन भूकम्पीय तरंगों के आधार पर निर्धारित की गयी पृथ्वी की आन्तरिक परतों में से एक परत अनुपटल है। अनुपटल की विशेषताएँ।
- यह भूकम्पीय तरंगों के वर्गीकरण के आधार पर पृथ्वी की मध्यवर्ती परत है।
- यह परत भूपर्पटी के नीचे 2900 किलोमीटर की गहराई तक मिलती है।
- अनुपटल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल कहलाता है।
- ज्वालामुखी उद्गार के दौरान निकलने वाले लावा का मुख्य स्रोत यही परत है।
- अनुपटैल का निर्माण ठोस शैलों से हुआ है।
- इस पटल में ताप, दबाव व घनत्व के कारण ठोस शैलों का द्रव्य रूप में परिवर्तन हुआ माना जाता है।
प्रश्न 15.
वानडर ग्राक्ट द्वारा सुझाई गई पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की परतों के नाम बताइए।
उत्तर:
वानडर ग्राक्ट नामक विद्वान ने पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की चार परतें बताई हैं। इन परतों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है-
- बाह्य सिलिका पर्पटी – यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है।
- आन्तरिक सिलिकेट परत तथा मैण्टल – यह आन्तरिक संरचना में ऊपर से दूसरी परत है।
- मिश्रित धातुओं तथा सिलिका की परत – यह आन्तरिक संरचना में ऊपर से तीसरी परत है।
- धात्विक केन्द्र अथवा धात्विक पिण्ड – वान डर ग्राक्ट के अनुसार यह पृथ्वी की सबसे अन्तरतम परत है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 16.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में वान डर ग्राक्ट के मत की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में मत प्रस्तुत करने वालों में वान डर ग्राक्ट का प्रमुख स्थान है। वान डर ग्राक्ट ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना में चार परतें मानी हैं। इन परतों का विवरण निम्नानुसार है-
- बाह्य सिलिका पेटी (Outer silica crust)
- आन्तरिक सिलिकेट परत तथा मैण्टल (Inner Silicate layer and mantle)
- fufsta strageti a farsicht 27 aa (Zone of mixed metals and Silicate)
- धात्विक केन्द्र अथवा धात्विक पिण्ड (Metalic Nucleus)
1. बाहय सिलिका पर्पटी (Outer silica crust) – इस परत की मोटाई अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मिलती है। इस परत की मोटाई महाद्वीपों के नीचे 60 किलोमीटर तक होती है, अटलाण्टिक महासागर के नीचे 20 किलोमीटर एवं प्रशान्त । महासागर के नीचे 10 किलोमीटर तक है। इस परत का घनत्व 2.75 से 3.1 तक होता है। यह परत सिलिका, एल्यूमीनियम, पोटेशियम एवं सोडियम से बनी है।
2. आन्तरिक सिलिकेट परत तथा मैण्टिल ( Inner Silicate layer and mantle) – इस परत की मोटाई 60 से 1200 किलोमीटर तक होती है। इस परत का घनत्व 3.1 से 4.75 तक होता है। यह परत सिलिका, मैग्नीशियम एवं कैल्शियम से बनी है।
3. मिश्रित धातुओं तथा सिलिका की परत – इस परत की मोटाई 1200 से 2900 किलोमीटर तक होती है। इस परत का घनत्व 4.75 से 7.8 तक होता है। यह परत निकिल, लोहा, सिलिका, मैग्नीशियम आदि के मिश्रण से बनी है।
4. धात्विक केन्द्र अथवा धात्विक पिण्ड – यह परत 2900 किलोमीटर से भूकेन्द्र तक विस्तृत है। इस परत का घनत्व 11 से अधिक होता है। यह परत निकिल एवं लोहे से बनी है।
प्रश्न 17.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में स्वैस के मत की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्वैस नामक विद्वान ने पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का जो वर्गीकरण किया है, उसके अनुसार भूपटल का ऊपरी भाग परतदार शैलों का बना हुआ है। इस भाग के नीचे स्वैस ने रासायनिक संगठन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक स्थिति को मुख्यतः निम्न परतों में विभाजित किया है-
- सियाल (Sial),
- सीमा (Sima),
- निफे (Nife)
1. सियाल (Sial) – स्वैस के अनुसार यह पृथ्वी की ऊपरी परत है। जिसके निर्माण में सिलिका व एल्यूमीनियम नामक पदार्थों की प्रधानता मिलती है। इसलिए इस परत को सियाल. (Si + al = Sial) कहा जाता है। इस परत का औसत घनत्व 2.9 ग्राम प्रति घन सेमी मिलता हैं। इस परत की औसत गहराई 50-300 किलोमीटर मिलती है। इस परत में तेजाबी अंश की प्रधानता
मिलती है। इसमें बलुई पत्थर, शैल, ग्रेनाइट आदि चट्टानें मिलती हैं।
2. सीमा (Sima) – स्वैस के अनुसार यह पृथ्वी की मध्यवर्ती परत है, जिसके निर्माण में सिलिका एवं मैग्नेशियम की प्रधानता मिलती है। इसलिए इस परत को सीमा (Si + ma = Sima) कहा जाता है। इस परत का घनत्व 2.9-4.7 ग्राम प्रति घन सेमी मिलता है। इस परत की गहराई 1000-2000 किलोमीटर तक मिलती है। इसका संगठन बेसाल्ट व गेब्रो चट्टानों से हुआ है। इसमें क्षारीय अंश की प्रधानता मिलती है। ज्वालामुखी उद्गार के समय लावा इसी परत से निकलता है।
3. निफे (Nife) – स्वैस के अनुसार यह पृथ्वी की सबसे आन्तरिक परत है। जिसके निर्माण में निकिल एवं फेरियम की प्रधानता मिलती है इसलिए इस परत को (Ni + fe = Nife) कहा जाता है। इस परत का घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेमी मिलता है। यह परत सीमा के अन्तिम छोर से भूकेन्द्र तक फैली हुई है। यह सबसे कठोरतम परत है। इसमें चुम्बकीय शक्ति व परिदृढ़ता के गुण विद्यमान हैं। स्वैस द्वारा प्रस्तुत पृथ्वी के इस वर्गीकरण को निम्न चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
प्रश्न 18.
भूकम्पीय विज्ञान के साक्ष्य के आधार पर पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूकम्पविज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भूकम्पीय तरंगों का सिस्मोग्राफ द्वारा अंकन करके अध्ययन किया जाता है। इन तरंगों की स्थिति, इनके मार्ग व दिशाओं का स्वरूप अलग-अलग होता है। इन तरंगों के संचरण व गति में मिलने वाले परिवर्तनों को पृथ्वी की आतंरिक संरचना को जानने में आधार माना पाता है। इसी आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को निम्न भागों में बांटा गया है।
- भूपर्पटी या क्रस्ट (The crust)
- अनुपटल या मैण्टिल (The mantle & sub stratum)
- अभ्यन्तर/भूक्रोड (The Core)
1. भूपर्पटी या क्रस्ट (The crust) – यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है। इसकी औसत मोटाई 30 किमी है। यह परत भारी चट्टानों से बनी है एवं इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेमी है। इस पर्पटी की मोटाई महाद्वीपों पर लगभग 30 किमी है। पर्वतीय भागों के नीचे इसकी गहराई अधिक मिलती है। इसे दो भागों में बांटा गया है- 1. आन्तरिक पर्पटी 2. बाहरी पर्पटी। पृथ्वी की इस परत में ग्रेनाइट नामक चट्टान की प्रधानता मिलती है। इस परत में P तथा S लहरों का अंकन किया जाता है। जिससे यह सिद्ध होता हैं यह परत शैलों से बनी है।
2. मैण्टिल या अनुपटल (The mantal & substratum) – भूपर्पटी के नीचे से 2900 किमी की गहराई तक इस परत का विस्तार है। अनुपटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मण्डल के नाम से जाना जाता है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है उसका मुख्य स्रोत यही भाग है। S तरंगें 2900 किमी के बाद लुप्त हो जाती हैं अर्थात् अनुपटल ठोस शैलों से निर्मित है। इस परत में P एवं S नामक तरंगों को कोनार्ड महोदय ने चलता हुआ माना है। इस परत में बेसाल्ट चट्टानों की प्रधानता मिलती है। भूपर्पटी एवं मैण्टिल के बीच का भाग ‘मोहोसीमान्त’ कहलाता है।
3. अभ्यन्तर/भूक्रोड (The Core) – 2900 किमी से 6371 किमी की गहराई वाला भाग पृथ्वी का सबसे आन्तरिक भाग है। जिसका औसत घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेमी मिलता है। इस भाग में S तरंगें नहीं पहुँच पाती हैं। इस परत में दो भाग मिलते हैं – 1. बाह्य अभ्यतंर 2. आन्तरिक अभ्यतंर। प्रथम भाग तरल अवस्था में है जो 2900 किमी से 5150 किमी की गहराई तक विस्तृत है। अनुपटल व क्रोड के बीच की सीमा को गुटेनबर्ग असम्बद्धता क्षेत्र कहते हैं। आन्तरिक अभ्यंतर एक सघन भाग है जो 5150 किमी से 6371 किमी तक मिलती है। पृथ्वी के इसी भाग में सर्वाधिक घनत्त्व 11 ग्राम प्रति घन सेमी मिलता है। यह अत्यधिक कठोर चट्टानों से निर्मित है।
भूकम्प विज्ञान के आधार पर वर्गीकृत इन परतों को निम्न चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी की सतह से केन्द्र की ओर तापमान बढ़ने की दर है
(अ)20 मीटर पर 1° सेल्शियस
(ब) 32 मीटर पर 1° सेल्शियस
(स) 45 मीटर पर 2° सेल्शियम
(द) 56 मीटर पर 2° सेल्शियस
उत्तर:
(ब) 32 मीटर पर 1° सेल्शियस
प्रश्न 2.
सम्पूर्ण पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?
(अ) 2.9 ग्राम प्रति घन सेमी
(ब) 3.7 ग्राम प्रति घन सेमी
(स) 5.5 ग्राम प्रति घन सेमी
(द) 11 ग्राम प्रति घन सेमी
उत्तर:
(स) 5.5 ग्राम प्रति घन सेमी
प्रश्न 3.
भूकम्प विज्ञान है
(अ) ज्वालामुखी का अध्ययन करने वाला विज्ञान
(ब) भूस्खलन का अध्ययन करने वाला विज्ञान
(स) भूकम्प का अध्ययन करने वाला विज्ञान
(द) बाढ़ का अध्ययन करने वाला विज्ञान
उत्तर:
(स) भूकम्प का अध्ययन करने वाला विज्ञान
प्रश्न 4.
सर्वाधिक विनाशकारी तरंगे कौन-सी हैं?
(अ) P तरंगें
(ब) S तरंगे
(स) L तरंगे
(द) P*s* तरंगे
उत्तर:
(स) L तरंगे
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सी भूकम्पीय तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(अ) P तरंगें
(ब) 5 तरंगें
(स) धरातलीय तरंगें
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) P तरंगें
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमण्डल को वर्णित करता है?
(अ) ऊपरी व निचले मैण्टिल
(ब) भूपटल व क्रोड
(स) भूपटल व ऊपरी मैण्टिल
(द) मैण्टिल व क्रोड
उत्तर:
(स) भूपटल व ऊपरी मैण्टिल
प्रश्न 7.
दुर्बलता मण्डल किस परत में मिलता है?
(अ) भूपर्पटी में
(ब) अनुपटल में
(स) भूक्रोड में
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) अनुपटल में
प्रश्न 8.
सीमा परत के संघटक तत्व हैं
(अ) सिलिका व एल्यूमिनियम
(ब) सिलिका व मैग्नेशियम
(स) निकिल व फेरियम
(द) सोडियम व फेरियम
उत्तर:
(ब) सिलिका व मैग्नेशियम
प्रश्न 9.
निफे परत के संघटक तत्त्व हैं
(अ) सिलिका-सोडियम
(ब) मैग्नेशियम-सोडियम
(स) सिलिका-एल्यूमिनियम
(द) निकिल-फेरियम
उत्तर:
(द) निकिल-फेरियम
प्रश्न 10.
पृथ्वी की त्रिज्या कितनी है?
(अ) 6350 किमी
(ब) 6360 किमी
(स) 6371 किमी
(द) 6381 किमी
उत्तर:
(स) 6371 किमी
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए –
(क) | स्तम्भ अ (तथ्य) | स्तम्भ ब (सम्बन्ध) |
1. | तापमान | (अ) ठोस, तरल व गैस तीनों से गुजरना |
2. | ज्वालामुखी | (ब) तरल भाग में लुप्त होना |
3. | प्राथमिक तरंग | (स) प्राकृतिक साधन |
4. | द्वितीयक तरंग | (द) धरातल पर चलना |
5. | धरातलीय तरंग | (य) अप्राकृतिक साधन |
उत्तर:
(1) (य) (2) (स) (3) (अ) (4) (ब) (5) (द)
(ख) | स्तम्भ अ (परतें) | स्तम्भ ब (सम्बन्ध) |
1. | भूपर्पटी | स्वैस के अनुसार मध्यवर्ती सीमा |
2. | अनुपटल | वान डर ग्राक्ट के अनुसार सबसे आन्तरिक सीमा |
3. | भूक्रोड | स्वैस के अनुसार पृथ्वी की सबसे अंतरतम सीमा |
4. | निफे | पृथ्वी की मध्यवर्ती परत |
5. | सीमा | पृथ्वी की सबसे आन्तरिक सीमा |
6. | धात्विक पिण्ड | पृथ्वी की ऊपरी परत |
उत्तर:
(1)(र) (2) (द) (3) (य) (4)(स) (5) (अ) (6) (ब)
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 अतिलघूउत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लावा किसे कहते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्गार के समय पृथ्वी की मैण्टिल परत से निकलने वाले व धरातलीय सतह पर पहुँचने वाले तरल व तप्त पदार्थ को लावा कहते हैं।
प्रश्न 2.
मैग्मा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
धरातल के नीचे तरल व पिघली अवस्था में मिलने वाले पदार्थ को मैग्मा कहते हैं।
प्रश्न 3.
भूगर्भ की संरचना की जानकारी किन-किन साधनों से होती है?
उत्तर:
भूगर्भ की संरचना की जानकारी तापमान, दबाव एवं घनत्व, उल्कापात, ज्वालामुखी उद्गार एवं भूकम्प विज्ञान से प्राप्त होती है।
प्रश्न 4.
भूगर्भ की जानकारी के अप्राकृतिक साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भूगर्भ की जानकारी के अप्राकृतिक साधन, तापमान, दबाव एवं घनत्व हैं।
प्रश्न 5.
पृथ्वी के केन्द्र में कितना तापमान मिलता है?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र में तापमान लगभग 2000° सेल्सियस मिलता है।
प्रश्न 6.
पृथ्वी के केन्द्र में शैलें ठोस क्यों हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र में अधिक दबाव व अधिक तापमान के कारण शैलें प्लास्टिकनुमा ठोस हैं।
प्रश्न 7.
पृथ्वी की परतों में घनत्व वृद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव बढ़ने व भारी पदार्थों के होने के कारण उसकी परतों का घनत्व भी बढ़ता जाता है।
प्रश्न 8.
उल्कापात किसे कहते हैं?
उत्तर:
उल्कापिण्ड सौर्य परिवार के अंग हैं। ये ग्रहों की उत्पत्ति के समय अलग होकर अन्तरिक्ष में फैल गये थे। कभी-कभी ये उल्काएँ धरातल पर गिरती हैं। इस क्रिया को उल्कापात कहते हैं।
प्रश्न 9.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी के लिए उल्काएँ महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
उल्काएँ (उल्का पिंड) उसी प्रकार के पदार्थ से बने ठोस पिंड हैं जिनसे पृथ्वी का निर्माण हुआ है। इसी कारण उल्काएँ पृथ्वी की जानकारी के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
प्रश्न 10.
पृथ्वी के अन्तरतम में तरल अवस्था का क्या प्रमाण मिलता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्गार के समय निकले तत्व व तरल मैग्मा तथा लावा के माध्यम से स्पष्ट होता है कि पृथ्वी के अन्दर तरल अवस्था मिलती है।
प्रश्न 11.
भूकम्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकम्प भूपटल का आकस्मिक कम्पन है जो भूगर्भ में उत्पन्न होता है सामान्यत: पृथ्वी का हिलना-डुलना ही भूकम्प है।
प्रश्न 12.
भूकम्प मूल किसे कहते हैं?
अथवा
भूकम्प का उद्गम केन्द्र क्या होता है?
अथवा
अवकेन्द्र क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के अन्दर वह स्थान जहाँ से भूकम्पीय तरंगों की उत्पत्ति होती है उस स्थान को भूकम्प मूल, भूकम्प का उद्गम केन्द्र या अवकेन्द्र कहते हैं।
प्रश्न 13.
अधिकेन्द्र क्या है?
अथवा
भूकम्प केन्द्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूतल पर स्थित वह स्थान जहाँ पर सर्वप्रथम भूकम्पीय तरंगों का अनुभव किया जाता है उसे अधिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं। यह उद्गम केन्द्र के ठीक ऊपर (90° कोण पर) होता है।
प्रश्न 14.
भूकम्पीय तरंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भूकम्प के दौरान उत्पन्न होने वाली तरंगों में प्राथमिक तरंगें (P तरंग), द्वितीयक तरंगें (5 तरंग) व धरातलीय तरंगें (L तरंग) को शामिल किया गया है।
प्रश्न 15.
प्राथमिक तरंगों की क्या विशेषता है?
उत्तर:
प्राथमिक तरंगें सबसे तीव्र गति से चलती हैं, तथा ये तरंगें ठोस, तरल व गैस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं।
प्रश्न 16.
धरातलीय तरंगों की क्या विशेषता है?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें केवल धरातल पर ही चलती हैं एवं अधिकेन्द्र पर सबसे बाद में पहुँचती हैं। ये तरंगें सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं।
प्रश्न 17.
भूकम्पीय छाया क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूकम्पीय छाया क्षेत्र भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° वे 145° के बीच का क्षेत्र होता हैं जहाँ कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती है।
प्रश्न 18.
भूकम्पीय तरंगों का आलेखन किस यंत्र से होता है?
उत्तर:
भूकम्पीय तरंगों का आलेखन भूकम्पमापी यंत्र (सिस्मोग्राफ) से किया जाता है।
प्रश्न 19.
दुर्बलता मण्डल किसे कहते हैं?
अथवा
एस्थेनोस्फीयर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पृथ्वी की मध्यवर्ती परत अनुपटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मण्डल कहते हैं।
प्रश्न 20.
भूक्रोड को कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
भूक्रोड को दो भागों में बांटा गया है
- बाह्य भूक्रोड,
- आन्तरिक भूक्रोड।
प्रश्न 21.
मोहो असांतत्य क्या है?
उत्तर:
भूपर्पटी की निचली सतह पर तथा मैण्टिल की ऊपरी सतह दोनों के बीच पायी जाने वाली असम्बद्धता को मोहो असातत्य कहा जाता है।
प्रश्न 22.
गुटेनबर्ग असम्बद्धता क्या है?
उत्तर:
मैण्टिल की निम्नतम सीमा व क्रोड की ऊपरी सीमा के बीच वाले भाग को गुटेनबर्ग असम्बद्धता क्षेत्र कहते हैं। यह सीमा 2900 किमी पर मिलती है।
प्रश्न 23.
वानडर ग्राक्ट के अनुसार पर्पटी का निर्माण किस-किस से हुआ है?
उत्तर:
वनडर ग्राक्ट के अनुसार पर्पटी का निर्माण सिलिका, एल्यूमीनियम, पोटेशियम व सोडियम से बनी है।
प्रश्न 24.
वानडर ग्राक्ट की तीसरी परत की गहराई कितनी है?
उत्तर:
वानडर ग्राक्ट के अनुसार ऊपर से तीसरी परत मिश्रित धातुओं व सिलिका परत की गहराई 1200 – 2900 किमी तक मिलती है।
प्रश्न 25.
धात्विक पिण्ड (वानडर ग्राक्ट के अनुसार) परत की गहराई कितनी है?
उत्तर:
धात्विक पिण्ड की गहराई 2900 किमी से लेकर भूकेन्द्र तक है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 लघूउत्तरात्मक प्रश्न Type I
प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक सरंचना का अध्ययन भूगोल में क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का पृथ्वी तल पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी तल में आन्तरिक संरचना के अध्ययन का मुख्य स्थान है। क्योंकि पृथ्वी तल पर मिलने वाली विविध स्थलाकृतियाँ भूगर्भिक प्रक्रियाओं का परिणाम होती हैं। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में सम्पन्न होने वाली अन्तर्जात व बाहरी भाग में सम्पन्न होने वाली बहिर्जात प्रक्रियाएँ पृथ्वी तल पर परिवर्तन लाती हैं। किसी भी क्षेत्र में धरातलीय स्वरूप वहाँ की इन परिवर्तनकारी शक्तियों का परिणाम होते हैं। मानवीय क्रियाएँ व जीवन का क्रम इन शक्तियों व भू-आकृतियों से जुड़ा हुआ है। इसी कारण पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन आवश्यक है।
प्रश्न 2.
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले स्रोतों को बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में हमें जो जानकारी प्राप्त होती है। उसके निम्न प्रमुख स्रोत हैं-
- प्रत्यक्ष स्रोत,
- अप्रत्यक्ष स्रोत।
1. प्रत्यक्ष स्रोत – ऐसे स्रोत जिनसे प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी की आतंरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, उन्हें प्रत्यक्ष स्रोत कहते हैं। यथा-धरातलीय चट्टानें, ज्वालामुखी से प्राप्त पदार्थ, खनन से प्राप्त पदार्थ आदि।
2. अप्रत्यक्ष स्रोत – ऐसे स्रोत जिनमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में अप्रत्यक्ष रूप में जानकारी प्राप्त होती है। उन्हें अप्रत्यक्ष स्रोत कहते हैं। यथा-तापमान, दबाव, घनत्व, उल्कापात, गुरुत्वाकर्षण, भूकम्पीय लहरें एवं चुम्बकीय क्षेत्र आदि ।
प्रश्न 3.
भूगर्भ की जानकारी में तापमान के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की ऊपरी सतह से केन्द्र की ओर जाने पर तापमान प्रत्येक 32 मीटर पर 1° सेल्शियस बढ़ जाता है। तापमान की वृद्धि के कारण भूगर्भ में सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होने चाहिए परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है। गहराई के साथ बढ़ते दबाव के कारण चट्टानों के पिघलने का तापमान बिन्दु उतना ही ऊँचा होता जाता है एवं धरातल के नीचे तापमान के बढ़ने की दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी के केन्द्र का तापमान लगभग 2000° सेल्सिायस से अधिक है।
प्रश्न 4.
दबाव की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूगर्भ में मोटी-मोटी परतों के बढ़ते दबाव के कारण केन्द्र की ओर घनत्व में वृद्धि होती जाती है। केन्द्र में उच्च तापमान के कारण यहाँ पाये जाने वाले पदार्थों का द्रव रूप में होना स्वाभाविक है। परन्तु ऊपरी दबाव के कारण वह द्रव रूप में ठोस का आचरण करता है। अतः केन्द्र में अधिक दबाव व अधिक तापमान के कारण शैलें प्लास्टिकनुमा ठोस हैं।
प्रश्न 5.
भूकम्पीय तरंगें क्या होती हैं? इनके प्रकार बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग से ऊर्जा विमुक्तीकरण की प्रक्रिया के कारण भूकम्प के उद्गम केन्द्र से बाहर की ओर फैलने वाली तरंगों को भूकम्पीय तरंग कहते हैं। इन्हें मुख्यत: निम्न भागों में बांटा गया है-
- भूगर्भिक तरंगें,
- धरातलीय तरंगें।
1. भूगर्भिक तरंगें – ऐसी तरंगें जो भूकम्प के उद्गम केन्द्र से ऊर्जा मुक्त होने के कारण उत्पन्न होती हैं तथा पृथ्वी के । आन्तरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं, भूगर्भिक तरंगें कहलाती हैं।
2. धरातलीय तरंगें – भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण उत्पन्न नई तरंगों को धरातलीय तरंगें कहते हैं।
प्रश्न 6.
भूकम्प मूल एवं अधिकेन्द्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प मूल – पृथ्वी के आन्तरिक भाग में जिस स्थान से भूकम्प की उत्पत्ति होती है या वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलना प्रारम्भ होती है वह स्थान भूकम्प मूल कहलाता है। इसी स्थान से तरंगों के रूप में ऊर्जा भिन्न-भिन्न दिशाओं की ओर गति करती हुई पृथ्वी सतह पर पहुँचती है।
अधिकेन्द्र – भूकम्प मूल के ठीक ऊपर (90° कोण पर) स्थित पर वह स्थान जहाँ भूकम्पीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं, अधिकेन्द्र कहलाता है। यह भूकम्प मूल से सर्वाधिक निकटतम दूरी पर होता है।
प्रश्न 7.
भूगर्भिक तरंगें कौन-कौन सी हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
भूगर्भिक तरंगें दो प्रकार होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें तथा ‘S’ तरंगें कहा जाता है।
- ‘P’ तरंगें इन्हें प्राथमिक तरंगों के नाम से भी जाना जाता है। ये तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं। ये तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं तथा धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। ये तरंगें ठोस, द्रव व गैस तीनों प्रकार के पदार्थों में से होकर गुजर सकती हैं।
- ‘S’ तरंगें-इन्हें द्वितीयक तरंगों के नाम से भी जाना जाता है। ये तरंगें धरातल पर कुछ समय अन्तराल के बाद पहुँचती हैं। ये तरंगें केवल ठोस पदार्थ के माध्यम से ही चलती हैं। इनकी विशेषता के कारण वैज्ञानिक भूगर्भिक संरचना को समझने में सफल हो पाए हैं।
प्रश्न 8.
भूकम्पीय घटनाओं का मापन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
भूकम्पीय घटनाओं का मापन भूकम्पीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकम्पीय तीव्रता की मापनी ‘रिक्टर स्केल’ के नाम से जानी जाती है। भूकम्पीय तीव्रता भूकम्प के दौरान ऊर्जा मुक्त होने से सम्बन्धित है। इस मापनी के अनुसार भूकम्प की तीव्रता 0 से 10 तक होती है। आघात की तीव्रता/गहनता मापनी को इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली के नाम पर जाना जाता है। यह मापनी भूकम्प के झटकों से हुई प्रत्यक्ष हानि द्वारा निर्धारित की गई है। इसकी गहनता का विस्तार 1 से 12 तक है।
प्रश्न 9.
भूकम्प के प्रभावों को संक्षेप में बताइए।
अथवा
भूकम्पीय आपदा से होने वाले प्रकोप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भूकम्प एक आकस्मिक प्राकृतिक घटना है। इससे अपार जन-धन की हानि होती है। भूकम्प से होने वाले (हानियों) प्रकोपों को निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं-
- धरातल में कम्पन,
- धरातलीय विसंगति,
- भूस्खलन व पंकस्खलन,
- हिमस्खलन,
- धरातलीय विस्थापन,
- मृदा द्रवण,
- धरातल का एकतरफा झुकाव,
- बॉधों व तटबन्धों के टूटने से अपार जन-धन की हानि,
- आग लगना,
- इमारतों सड़कों तथा अन्य निर्माण-कार्यों का नष्ट होना,
- वस्तुओं का भारी नुकसान,
- सुनामी लहरों द्वारा तटीय क्षेत्रों में भारी धन-जन की हानि आदि।
प्रश्न 10.
मैग्मा और लावा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मैग्मा और लावा में अन्तर
मैग्मा | लावा |
1. धरातल के नीचे तरल व पिघली अवस्था में लाल रंग के तरल पदार्थ को मैग्मा कहते हैं। | 1. पृथ्वी के आन्तरिक भागों में स्थित मैग्मा जब धरातल पर आ जाता है तो इसके जमाव को लावा कहते हैं। |
2. इससे धरातल के नीचे पातालीय शैलों का निर्माण होता है। | 2. इससे धरातल के ऊपर ज्वालामुखी शैलों का निर्माण होता है। |
3. इससे धरातल के नीचे बैथोलिथ, लैकोलिथ, फैकोलिथ, सिल वे डाइक शीट जैसी अन्तर्वेधी आकृतियों का निर्माण होता है। | 3. इससे धरातल के ऊपर विभिन्न प्रकार की आकृतियों; जैसे-लावा पठार, सिंडर शंकु, लावा शील्ड, काल्डेरा आदि का निर्माण होता है। |
प्रश्न 11.
भूपर्पटी क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
क्रस्ट के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत भूपर्पटी या क्रस्ट कहलाती है।
विशेषताएँ –
- यह धरातल का सबसे ऊपरी भाग है।
- इसकी मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग – अलग पायी जाती है। जो क्रमश: 30 किमी एवं 5-10 किमी तक है। पर्वतीय भागों में ऊँचाई के अनुसार इसकी गहराई भिन्न – भिन्न मिलती है।
- यह परत भारी चट्टानों से निर्मित है। इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेण्टीमीटर है।
- महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट निर्मित हैं।
- इसे दो भागों – आन्तरिक व बाहरी पर्पटी के रूप में बाँटा गया है।
प्रश्न 12.
सिमा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्वैस के अनुसार वर्णित पृथ्वी के रासायनिक संगठनानुसार यह दूसरी परत है। इसकी निम्न विशेषताएँ हैं
- इस परत का निर्माण सिलिका व मैग्नीशियम से हुआ है।
- इस परत का घनत्व 2.9 – 4.7. ग्राम प्रति घन सेमी मिलता है।
- यह परत 1000-2000 किमी गहराई तक विस्तृत है।
- इसमें क्षारीय तत्वों की प्रधानता मिलती है।
- ज्वालामुखी के उद्गार के समय लावा इसी चट्टान से बाहर निकलता है।
प्रश्न 13.
वानडर ग्राक्ट की मिश्रित मण्डल परत की विशेषता बताइये।
उत्तर:
वानडर ग्राक्ट के अनुसार मिश्रित मण्डल की निम्न विशेषताएँ हैं-
- इस परत को पेलोसाईट क्षेत्र भी कहते हैं।
- यह परत 1200-2900 किमी की गहराई तक मिलती है।
- इस परत का घनत्व 4.75-7.8 ग्राम प्रति घन सेमी मिलता है।
- यहा परत निकिल, लोहा, सिलिका व मैग्नीशियम के मिश्रण से बनी है।
- इस परत में कैल्सियम, एल्यूमिनियम व पोटेशियम का अभाव मिलता है।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 लघूउत्तरात्मक प्रश्न Type II
प्रश्न 1.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग के बारे में संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग अदृश्य व अगम्य हैं। मनुष्य ने खनन एवं वेधन क्रियाओं के द्वारा इसके कुछ ही किलोमीटर तक के आन्तरिक भाग को प्रत्यक्ष रूप में देखा है। गहराई के साथ तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण अधिक गहराई तक खनन व वेधन कार्य करना सम्भव नहीं है। भूगर्भ में इतना अधिक तापमान है कि वेधन में प्रयोग किये जाने वाले किसी भी प्रकार के यन्त्र को पिघला सकता है। अतः वेधन कार्य कम गहराई तक ही सीमित है। ज्वालामुखी उद्गार से निकले लावा एवं गैस आन्तरिक संरचना के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं। पृथ्वी के अन्तरतम में अनेक विषमताएँ मिलती हैं जो इसे अद्वितीय बनाती हैं।
प्रश्न 2.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष प्रेक्षणों पर आधारित हैं। क्यों?
अथवा
पृथ्वी की आन्तरिक सरंचना के सभी आँकड़े अप्रत्यक्ष स्रोतों पर आधारित हैं। कैसे?
अथवा
पृथ्वी की परतदार संरचना की जानकारी के महत्वपूर्ण साधन अप्रत्यक्ष स्रोत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए मानव के पास प्रत्यक्ष साधने नहीं है। इस भाग की संरचना के बारे में मानव का ज्ञान बहुत कम गहराई तक ही सीमित है। पृथ्वी की सरंचना का प्रत्यक्ष ज्ञान कुओं, खदानों द्वारा ही अधिकांश स्थानों पर केवल 3 से 4 किमी की गहराई तक ही प्राप्त होता है। पृथ्वी के केन्द्र की गहराई (लगभग 6371 किमी) की तुलना में यह बहुत ही कम है। खनन क्रिया से हमें पता चलता है कि पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान व दबाव में भी वृद्धि होती जाती है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी के आन्तरिक भाग का तापमान लगभग 2000° सेण्टीग्रेड है। इतने उच्च तापमान के कारण पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना पूर्णतः असम्भव है। अत: पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का प्रत्यक्ष अध्ययन किया जाना मानव की सीमाओं से परे है। इसी कारण से पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी के लिए मानव प्रत्यक्ष स्रोतों-भूकम्प तरंगें, तापमान, दबाव, उल्काएँ व गुरुत्वाकर्षण आदि पर निर्भर है।
प्रश्न 3.
भूकम्प क्या है? इसकी उत्पत्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर:
साधारण भाषा में भूकम्प का अर्थ है-पृथ्वी का कम्पन। भूपर्पटी की चट्टानों में अचानक संचरण होने के कारण भूपर्पटी या प्रावार (मैण्टिल) में किसी बिन्दु पर लगने वाले झटके या झटकों के क्रम को भूकम्प कहते हैं।
भूकम्प एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो कि सभी दिशाओं में फैलकर संकट उत्पन्न करती हैं।
भूकम्प की उत्पत्ति-भू-पर्पटी पर प्रायः भ्रंश के किनारे-किनारे ही ऊर्जा निकलती है। भूपर्पटी की शैलों में गहरी दरारें ही भ्रंश होती हैं। भ्रंश के दोनों ओर की शैलें जब विपरीत दिशा में गति करती हैं, जहाँ ऊपर के शैल खण्ड दबाव डालते हैं एवं उनके आपस का घर्षण उन्हें परस्पर बाँधे रखता है। इसके बावजूद अलग होने की प्रवृति के कारण एक समय घर्षण का प्रभाव कम हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप शैल खण्ड विकृत होकर अचानक एक-दूसरे की विपरीत दिशा में खिसक जाते हैं। इसके फलस्वरूप ऊर्जा तरंगें निकलती हैं और सभी दिशाओं में गतिशील हो जाती हैं। ये ऊर्जा अलग-अलग दिशाओं में चलती हुई धरातल तक पहुँचती हैं, फलस्वरूप कम्पन होना प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार भूकम्प की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 4.
भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर ये तरंगें गुजरती हैं।
उत्तर:
भूगर्भ ऊर्जा के निकलने से तरंगों की उत्पत्ति होती है जो सभी दिशाओं में फैलकर भूकम्प लाती हैं। सामान्यत: ऊर्जा की उत्पत्ति भ्रंशों के किनारे ही होती हैं।
वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलती है उसे भूकम्प का उद्गम केन्द्र (Focus) कहते हैं। भूकम्पमापी यन्त्र (सिस्मोग्राफ) सतह पर पहुँचने वाली भूकम्प तरंगों को अभिलेखित करता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकम्पीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती है। भूकम्पीय तरंगों के संचरण से शैलों में कम्पन पैदा होता है। ये धरातल के जिस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं, वहाँ की चट्टानों को तरंगों की प्रकृति के अनुरूप प्रभावित करती हैं। इनके प्रभावों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
- भूकम्पीय तरंगें जिस क्षेत्र से होकर संचरित होती हैं, उस क्षेत्र में एकाएक कम्पन होने लगता है।
- प्राथमिक (P) तरंगों द्वारा जो कम्पन होता है, उसकी दिशा तरंगों के दिशा के समान्तर होती है। इस प्रकार की तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थों पर अपना दबाव डालती हैं। दबाव के फलस्वरूप पदार्थों के घनत्व में अन्तर आ जाता है तथा चट्टाओं में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।
- द्वितीयक प्रकार की लहरें (S) ऊध्र्वाकार तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कम्पन पैदा करती हैं। अतएव ये तरंगें जिस पदार्थ से होकर गुजरती हैं, उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। ‘S’ तरंगों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि ये द्रव पदार्थों में प्रवेश नहीं करती हैं। ये केवल ठोस पदार्थों में ही चलती हैं।
- धरातलीय तरंगें सबसे अन्त में धरातल पर पहुँचती हैं लेकिन ये सबसे अधिक खतरनाक होती हैं। धरातल पर सबसे अधिक विनाश इन्हीं तरंगों से होता है। इनसे चट्टानों का स्थानान्तरण हो जाता है और बड़े-बड़े निर्माण कार्य ध्वस्त हो जाते हैं।
RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगों के प्रवाहन स्वरूप को सचित्र स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूकम्पीय तरंगों की गति, स्वभाव व संचरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकम्पीय तरंगें भूकम्प के समय भूकम्प के कम्पन द्वारा अपनाया गया मार्ग होता है। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं। प्राथमिक, द्वितीयक व धरातलीय तरंगें।
भूकम्पीय तरंगों के भ्रमण पथ व गति के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग के बारे में जानकारी मिलती है। ये लहरें समान घनत्व वाले भाग में सीधी चलती हैं। परन्तु भूकम्प केन्द्रों पर इन लहरों के अंकन से ज्ञात होता है कि ये लहरें एक सीधी दिशा में न चलकर वक्राकार मार्ग का स्वरूप दर्शाती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि भीतर के घनत्व में विभिन्नता मिलती है। परिणामस्वरूप उनका मार्ग भी वक्राकार हो जाता है। चूंकि आन्तरिक भाग की ओर घनत्व बढ़ता है अतः कोर में ये लहरें (P व S) वक्राकार होकर सतह की ओर अवतल हो जाती हैं। S लहरें तरल पदार्थ से होकर नहीं गुजरती हैं एवं 2900 किमी से अधिक गहराई अर्थात् भूक्रोड में विलुप्त हो जाती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि इस 2900 किमी से अधिक गहराई वाला भाग तरल अवस्था में है जो केन्द्र के चारों ओर विस्तृत है। चट्टानों के घनत्व में अन्तर के साथ ही तरंगों की गति में तीन जगह पर अधिक अन्तर आता है।
भूकम्पीय तरंगों की इस गति व उनमें मिलने वाली विविधताओं को अग्र चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
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