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RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप

July 10, 2019 by Fazal Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रथम श्रेणी के उच्चावच कौन-से हैं?
(अ) डेल्टा व घाटियाँ
(ब) महाद्वीप व महासागर
(स) पर्वत व पठार
(द) मैदान व तट
उत्तर:
(ब) महाद्वीप व महासागर

प्रश्न 2.
कौन-सा बल अन्तर्जात बल नहीं है?
(अ) ज्वालामुखी
(ब) भूकम्प
(स) पर्वतीकरण
(द) अपरदन
उत्तर:
(स) पर्वतीकरण

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन अंतः पर्वतीय पठार का उदाहरण है?
(अ) पेंटागोनिया का पठार
(ब) तिब्बत का पठार
(स) लोयस का पठार
(द) मालागासी का पठार
उत्तर:
(द) मालागासी का पठार

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन संग्रहित पर्वत का उदाहरण है?
(अ) हिमालये
(ब) जापान का फ्यूजीयामा
(स) यूराल
(द) एण्डीज
उत्तर:
(ब) जापान का फ्यूजीयामा

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सा पठार आई पठार का उदाहरण है?
(अ) पोतवार का पठार
(ब) गोबी का पठार
(स) चेरापूंजी का पठार
(द) तारिम का पठार
उत्तर:
(स) चेरापूंजी का पठार

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
विश्व के नवीनतम पर्वत कौन-से हैं?
उत्तर:
हिमालय, यूराल एवं एण्डीज आदि पर्वत वलित पर्वत हैं जो विश्व के नवीनतम पर्वत हैं।

प्रश्न 7.
संग्रहित पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब हवी, नदी, हिमनद, लहरों एवं ज्वालामुखी के द्वारा बड़े ढेर के रूप में संग्रहित निक्षेपित पदार्थों एवं एकत्रित मलबे से जिन पर्वतों का निर्माण होता है उन्हें संग्रहित पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 8.
नर्मदा नदी किस प्रकार की घाटी में प्रवाहित होती है?
उत्तर:
नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली एक नदी है जो भ्रंशन की प्रक्रिया से निर्मित भ्रंश घाटी से होकर प्रवाहित होती हैं।

प्रश्न 9.
अवशिष्ट पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब अनाच्छादनकारी कारकों के अपदरनात्मक प्रभाव से अछूता कठोर चट्टानी भू-भाग आस-पास के क्षेत्र से ऊँचा उठा रह जाता है तो उसे अवशिष्ट पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 10.
पर्वतपदीय पठार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो पठार पर्वतों की तलहटी में स्थित होते हैं जिनके एक ओर पर्वत तथा दूसरी ओर समुद्र या मैदान होता है, उन्हें पर्वतपदीय पठार कहते हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 11.
हर्मीनियन पर्वतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
आज से लगभग 22 करोड़ वर्ष पूर्व वलित पर्वत निर्माणकारी हलचलों को हर्मीनियन, अल्टयूड, वारिस्कन व आरमोरिकन आदि नामों से जाना जाता है। इससे थ्यानशान, अल्टाई, खिंगन, नानशान, आस्ट्रेलिया के पूर्वी कार्डिलेरा पर्वत व यूरोप में पेनाइन हार्ज, आदि का निर्माण हुआ था।

प्रश्न 12.
हिमानीकृत पठारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उच्च अक्षांशों या उच्च उच्चावचीय भागों में हिमनदियों के द्वारा होने वाले अपरदने से जिन पठारों का निर्माण होता है उन्हें हिमानीकृत पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों में गढ़वाल, लेब्रोडोर, स्केण्डिनेबिया, अलास्का, एन्टार्कटिका, अफ्रीका का दक्षिणी-पूर्वी पठार, जर्मनी में प्रशा का पठार व कश्मीर में गुलमर्ग का पठार हिमानीकृत पठार ही हैं।

प्रश्न 13.
अन्तरपर्वतीय पठार क्या है?
उत्तर:
जब कोई पठार चारों ओर से या दो ओर से पर्वतों के द्वारा घिरा हुआ होता है तो पर्वतों के मध्य स्थित होने के कारण इन्हें अन्तर पर्वतीय पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों का निर्माण अन्तर्जात बल द्वारा वलित पर्वतों के निर्माण के साथ होता है। ये मुख्यत: मध्य पिण्ड के रूप में उत्पन्न हुए पठार होते हैं। ऐसे पठारों में हिमालय व कुनलुन पर्वत के बीच तिब्बत का पठार, कुनलुन व नानशान पर्वत के बीच सैदाम का पठार, एल्बूर्ज और जैग्रोस के बीच ईरान का पठार, पॉन्टिक व टॉरस के मध्य अनातोलिया को पठार ऐसे मुख्य उदाहरण हैं।

प्रश्न 14.
पूर्ववर्ती घाटी किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी भूखण्ड के उत्थान से पूर्व विकसित घाटी में भूमि के उत्थान के बाद भी नदी पूर्व निर्मित घाटी में बहती है तो उसे पूर्ववर्ती घाटी कहा जाता है। इस प्रकार की घाटियों को निर्माण स्थलखण्ड के उत्थान होने पर भी पूर्ववर्ती जलधारा द्वारा अपने तल को पूर्ववत् बनाये रखने के कारण होता है।

प्रश्न 15.
प्रौढ पठार किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऊबड़-खाबड़ एवं विषम धरातल वाले इन पठारों पर कन्दराएँ और कटक तीव्र ढाल वाले होते है। तथा नुकीली चोटियों का अधिक विस्तार होता जाता है, ऐसे पठार प्रौढ़ पठार कहलाते हैं। शुष्क व आर्द्र भागों में इस प्रकार के पठारों की संरचना भिन्न-भिन्न मिलती है। ऐसे पठारों के किनारे प्रायः सीढ़ीनुमा दिखाई देते हैं। अपेलेशियन का पठार इसी प्रकार का पठार है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
पर्वतों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
पर्वतों का वर्गीकरण – पर्वत द्वितीय श्रेणी के उच्चावच होते हैं। ये अन्तर्जात बलों के कारण उत्पन्न हुए हैं। सम्पूर्ण विश्व में पाये जाने वाले सभी पर्वत एक समान नहीं हैं। इनकी निर्माण प्रक्रिया, ऊँचाई, आयु, अवस्थिति संरचना एवं बनावट में अन्तर पाया जाता है। इन सभी दशाओं को आधार मानकर विश्व में मिलने वाले पर्वतों को मुख्यत: निम्न भागों में वर्गीकृत किया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 1
पर्वतों के इस विभिन्न आधारों पर किये गये वर्गीकरण में से उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण सर्वाधिक महत्व रखता है। पर्वतों के इस वर्गीकरण का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है|

(i) वलित पर्वत – पृथ्वी के भीतर उत्पन्न सम्पीडनात्मक बल से धरातलीय चट्टानों में वलन या मोड़ पड़ने से इस प्रकार पर्वतों का निर्माण होता है। सम्पीडन शक्ति से मुड़कर उठे भाग को अपनति तथा नीचे धंसे भाग को अभिनति कहा जाता है। तीव्रगामी भूगर्भिक हलचलें इन अभिनतियों और अपनतियों के मोड़ों को ऊँचा उठा देती हैं एवं कालान्तर में वलित पर्वतों का उत्थान हो जाता है। हिमालय, यूराल एवं एण्डीज पर्वत वलित पर्वतों के उदाहरण हैं। ये संसार के नवीनतम पर्वत हैं एवं इनकी शैलों में जीवाशेष नहीं पाये जाते हैं।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 2
(ii) गुम्बदाकार पर्वत (Dome Shaped Mountain) – पृथ्वी के भीतर उबला तप्त मैग्मा धरातल पर आने की भरसक चेष्टा करता है। जब यह मैग्मा बाहर नहीं आ पाता तो धरातलीय चट्टानें गुम्बदाकार रूप में ऊपर उठ जाती हैं। उत्तरी अमेरिका के उटाह राज्य में हेनरी और यून्टा पर्वत इसी प्रकार के पर्वत हैं।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 3
(iii) संग्रहित पर्वत (Accumulated Mountain) – हवा, नदी, हिमनद, लहरों एवं ज्वालामुखी के द्वारा बड़े ढेर के रूप में संग्रहित निक्षेपित पदार्थ एवं एकत्रित मलबे से इन पर्वतों का निर्माण होता है। जापान का फ्यूजीयामा, इटली का विसूवियस एवं अफ्रीका का किलीमंजारो ज्वालामुखी संग्रहित पर्वत हैं।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 4
(iv) भ्रंशोत्थ अथवा ब्लॉक पर्वत (Foulted Or Block Mountain) – जब दो समान्तर दरारों का मध्यवर्ती भाग ऊपर की ओर उठ जाये या मध्य भाग के दोनों ओर के भाग नीचे धंस जाये तो ब्लॉक पर्वत की उत्पत्ति होती है। भ्रंश के द्वारा इनका निर्माण होने के फलस्वरूप इन्हें भ्रंशोत्थित पर्वत भी कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 5
(v) अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountation) – अनाच्छादनकारी कारकों; यथा-नदी, पवन, लहर, हिमनद आदि के अपरदनात्मक प्रभाव से अछूता कठोर चट्टानी भू-भाग आस-पास के क्षेत्र से ऊँचा उठा रह जाता है तो उसे अवशिष्ट पर्वत कहा जाता है। जब नदी पठारी भू-भाग को काटकर समतल मैदान में बदल देती है किन्तु मध्यवर्ती चट्टानों वाले भाग का, कटाव नहीं हो पाता तो वह अवशिष्ट पर्वत का रूप ले लेता है।
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 6

(vi) मिश्रित पर्वत – ऐसे पर्वत जो सभी पर्वतीय प्रकारों या एक से अधिक पर्वतीय प्रकारों के सदृश्य होते है, उन्हें मिश्रित पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 17.
उत्पत्ति के आधार पर पठारों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
पठार पृथ्वीतल पर द्वितीय श्रेणी के उच्चावच हैं। ये पर्वतों के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं। सम्पूर्ण विश्व में मिलने वाली – पठारों की स्थिति उनकी उत्पत्ति, जलवायु देशाओं व विकास की अवस्थाएँ भिन्न-भिन्न मिलती हैं। इन सभी आधारों पर पठारों का विभाजन किया गया है। इनमें से उत्पत्ति के आधार पर पठारों के वर्गीकरण को निम्नानुसार वर्णित किया गया है

(i) लावा निर्मित पठार-भूगर्भ से लावा उद्गार व्यापक पर फैलकर ऐसे पठार का निर्माण करता है। इस प्रकर के पठारों में अन्तर्जात बलों की आकस्मिक प्रक्रिया से उत्पन्न ज्वालामुखी का विशेष योगदान होता है। लावा के तरल या गाढ़ा होने के स्वरूप के आधार पर पठार अधिक या कम विस्तृत होने के साथ-साथ कम या अधिक ऊँचा हो सकता है। इस प्रकार के पठारों में कोलम्बिया का पठार एवं दक्षिण भारत का पठार मुख्य है।

(ii) हिमानीकृत पठार-जिन पठारों का निर्माण उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों या उच्च उच्चावचीय क्षेत्रों में हिमनद प्रवाहन की प्रक्रिया द्वारा हुए अपरदन के परिणामस्वरूप होता है, उन्हें हिमानीकृत पठार कहते हैं। ऐसे पठारों में शैल श्रेणियों का अपरदन से रिसाव होने के कारण चपटा स्वरूप निर्मित होता है। ऐसे पठारों में मुख्यतः गढ़वाल का पठार, लेब्रोडोर का पठार, स्केण्डिनेबिया का पठार, अलास्का का पठार, ग्रीनलैण्ड व अफ्रीका का दक्षिणी-पूर्वी पठार, कनाडा का पठार, जर्मनी का प्रशा पठार व अन्टार्कटिका के पठार मुख्य हैं।

(iii) वायुजनित पठार-ऐसे पठार जिनका निर्माण पवनों द्वारा लायी गई मिट्टी के अत्यधिक निक्षेपण से होता है, उन्हें वायुजनित पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों में वायु के परिवहन व निक्षेपण के कारण विशाल मात्रा में एकत्रित हुई बालू पठार का निर्माण करती है। ऐसे पठारों में पाकिस्तान में पोतवार का पठार व चीन में लोयस के पठार के साथ-साथ उत्तरी अमेरिका व अफ्रीका के पठार शामिल किये जाते हैं।

(iv) जलज पठार-ऐसे पठार जिनका निर्माण समुद्री भाग अथवा भूसन्नतियों में निरन्तर जमे हुए अवसादों के कभी-कभी आंतरिक हलचलों के कारण निरंतर समुद्रतल से ऊपर उठ जाने के कारण होता है तो उन्हें जलज पठार कहते हैं। समुद्र के पेंदे में जमा होने वाले अवसाद अपरदनकारी शक्तियों का परिणाम होते हैं। इन अवसादों को अन्तर्जात बल अपनी क्रियाओं द्वारा ऊपर उठा देते हैं जिसके कारण ऐसे पठारों का अस्तित्व सामने आता है। ऐसे पठारों में मुख्यत: भारत का विन्ध्यन का पठार, चेरापूंजी का पठार तथा म्यांमार में स्थित शान के पठार को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 18.
मैदानों के वर्गीकरण एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मैदान की परिभाषा – अपेक्षाकृत समतल क्रमिक व मंद ढाल, निम्न उच्चावच वाले धरातलीय भू-भाग को मैदान कहते हैं। मैदानों का वर्गीकरण-सम्पूर्ण विश्व में मिलने वाले मैदानों की स्थिति, उनकी संरचना, उनके निर्माण के कारकों में विविधता पायी जाती है। इसी कारण मैदान भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। मैदानों की निर्माण प्रक्रिया मुख्यत: अपरदन व निक्षेपण क्रियाओं से होती है। इन दोनों निर्माण क्रियाओं को आधार मानकर मैदानों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है-

RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 7

(i) अपरदनात्मक मैदान – अपरदेन चक्र की समाप्ति पर सभी उच्चावच समप्रायः मैदान में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे बनने वाले मैदानों को निम्न भागों में बांटा गया है

(अ) नदीकृत मैदान – नदियाँ अपने मार्ग में आने वाले विषम धरातल को अपरदन के द्वारा समतल बनाकर समप्राय: मैदानों का निर्माण करती हैं। इन मैदानों में जहाँ-तहाँ कठोर प्रतिरोधी शैल– मोनाडनॉक टीलों के रूप में दिखाई देती हैं। पेरिस व लन्दन बेसिन इसी तरह के मैदान हैं।
(ब) हिमानीकृत मैदानं – उच्च पर्वत शिखरों एवं उच्च अक्ष पर हिमावरण छाया रहता है। बर्फ के नीचे का धरातल रगड़ और घर्षण के द्वारा समतल होता रहता है। कनाडा, स्वीडन, फिनलैण्ड में हिमानीकृत मैदान पाये जाते हैं।
(स) वायुघर्षित मैदान – यांत्रिक अपक्षय द्वारा ढीले एवं टूटे शैल कण हवा उड़ाकर ले जाती है। मार्ग में पड़ने वाली उत्थित चट्टानों का यह हवा अपघर्षण करती है। इसी क्रिया से वायु घर्षित मैदान का निर्माण होता है जिसे पेडीप्लेन कहते हैं।
(द) कास्टै मैदान – चूने की शैलों वाले क्षेत्र में भूमिगत जल के अपरदन चक्र की अंतिम अवस्था में धरातलीय विषमताएँ समाप्त होने से कोर्ट मैदान बनता है। भारत में नैनीताल व अल्मोड़ा, यूगोस्लाविया तथा फ्रांस के चूना प्रदेशों में इसके उदाहरण मिलते हैं।

(ii) निक्षेपणात्मक मैदान

(अ) जलोढ या कॉपीय मैदान – नदियों द्वारा ऊँचे भागों से अपरदित मलवा प्रवाहित कर निम्नवर्ती भागों में निक्षेपण करने से ये मैदान बनते हैं। स्थिति के अनुसार इन्हें पर्वतपदीय मैदान, बाढ़ मैदान तथा डेल्टा मैदान कहा जाता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र, नील नदियों के डेल्टाई मैदान बहुत उपजाऊ व घने बसे हुए हैं।

(ब) हिमोढ मैदान – ये मैदान हिमानी द्वारा किये गये निक्षेपण से बनते हैं। हिमरेखा के द्वारा लाये गये कंकड़, पत्थर व बजरी जमा होने से बीहड़-मृतिका मैदान तथा हिमानी के पिघले जल द्वारा बारीक मिट्टी के निक्षेपण से अवक्षेप मैदान का निर्माण होता है।

(स) लोयस मैदान – मरुस्थलीय प्रदेशों में हवा के साथ प्रवाहित बारीक मिट्टी के जमाव से इनका निर्माण होता है। चीन, अर्जेन्टाइना, कैस्पियन सागर के सहारे लोयस के मैदान उल्लेखनीय हैं।

(द) लावा निर्मित मैदान – ज्वालामुखी विस्फोट के साथ निकला लावा, राख व बारीक शैल कण विस्तृत क्षेत्र पर जमा होने से इन मैदानों का निर्माण होता है। दक्षिण भारत में लावा निर्मित मैदान पाये जाते हैं।

(य) झील निर्मित मैदान – जब कभी नदियों के अवसादीय निक्षेपण से झील भर जाती है तो जमा तलछट, उपजाऊ मैदान का रूप लेता है। जब कभी आंतरिक हलचलों से झील की तली ऊपर उठ जाती है तो उसका जल इधर-उधर फैल जाता है और तली मैदान में परिवर्तित हो जाती है। हंगरी का मैदान, अमेरिका का प्रेयरी प्रदेश झील निर्मित मैदान हैं।

मैदानों का महत्त्व – मैदानी भागों के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के द्वारा समझा जा सकता है-

(i) मैदानी भाग जनसंख्या के शरण स्थल हैं। विश्व की लगभग 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या मैदानों में ही निवास करती है।
(ii) मैदानों ने अनेक सभ्यताओं के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(iii) कृषि प्रक्रिया के दृष्टिकोण से मैदान सर्वाधिक उपयुक्त स्थल होते हैं।
(iv) इनके समतल स्वरूप के कारण ये यातायात परिवहन की दृष्टि से उपयुक्त स्थल होते हैं।
(v) ये मानवीय क्रियाओं के सर्वोत्तम स्थल हैं।
(vi) सिंचाई, चारागाह, आवास निर्माण, रेलमार्ग, सड़कमार्ग के दृष्टिकोण से ये आदर्श स्थिति प्रदान करने वाले होते हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थलाकृतिक स्वरूपों को मुख्यतः कितने भागों में बांटा गया है?
(अ) 2
(ब) 3
(स) 4
(द) 5
उत्तर:
(ब) 3

प्रश्न 2.
मैदान कौन-सी श्रेणी के उच्चावच हैं?
(अ) प्रथम श्रेणी के
(ब) द्वितीय श्रेणी के
(स) तृतीय श्रेणी के
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) द्वितीय श्रेणी के

प्रश्न 3.
निम्न में से जो वलित पर्वत का उदाहरण है, वह है
(अ) अरावली
(ब) फ्यूजीयामा
(स) यून्टा
(द) हिमालय
उत्तर:
(द) हिमालय

प्रश्न 4.
किलीमंजारो पर्वत कहाँ स्थित है?
(अ) भारत में
(ब) अमेरिका में
(स) अफ्रीका में
(द) यूरोप में
उत्तर:
(स) अफ्रीका में

प्रश्न 5.
अल्पाइन पर्वत काल में जो शामिल नहीं है, वह है
(अ) कुनलुन
(ब) अल्टाई
(स) आल्प्स
(द) पिरेनीज
उत्तर:
(ब) अल्टाई

प्रश्न 6.
भारत का दक्षिणी पठार उदाहरण है
(अ) हिमानीकृत पठार का
(ब) वायुजनित पठार का
(स) लावा निर्मित पठार का
(द) जलज पठार का
उत्तर:
(स) लावा निर्मित पठार का

प्रश्न 7.
हिमालय व कुनलुन पर्वत के बीच कौन-सा पठार स्थित है?
(अ) तिब्बत का पठार का
(ब) अनातोलिया का पठार
(स) सैदाम का पठार
(द) पेंटागोनिया का पठार
उत्तर:
(अ) तिब्बत का पठार का

प्रश्न 8.
अप्लेशियन का पठार किस प्रकार का पठार है?
(अ) नवीन पठार
(ब) प्रौढ़ पठार
(स) वृद्धावस्था का पठारं
(द) पुनर्युवनित पठार
उत्तर:
(ब) प्रौढ़ पठार

प्रश्न 9.
कास्टै मैदान निर्मित होते हैं
(अ) नदी से
(ब) हिमानी से
(स) वायु से
(द) भूमिगत जल से
उत्तर:
(द) भूमिगत जल से

प्रश्न 10.
सम्भ्यताओं का पालना किसे कहा गया है?
(अ) पर्वतों को
(ब) पठारों को
(स) मैदानों को
(द) महासागरों को
उत्तर:
(स) मैदानों को

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न से स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए-

स्तम्भ अ (स्थलाकृति) स्तम्भ ब (सम्बन्ध)
(i) महाद्वीप (अ) तृतीय श्रेणी का उच्चावच
(ii) पर्वत (ब) वायुजनित पठार
(iii) डेल्टा (स) हिमानीकृत पठार
(iv) लेब्रोडोर का पठार (द) प्रथम श्रेणी का उच्चावच
(v) लोयस का पठार (य) द्वितीय श्रेणी का उच्चावच

उत्तर:
(i) (द) (ii)(य) (iii)(अ) (iv)(स) (v) (ब)

(ख)

स्तम्भ अ (पर्वत का नाम) स्तम्भ ब (पर्वतकाल क्रम)
(i) अरावली पर्वत (अ) अल्पाइन पर्वत क्रम
(ii) अप्लेशियन पर्वत (ब) हर्सिनियन पर्वत क्रम
(iii) नानशान पर्वत (स) कैलिडोनियन पर्वत क्रम
(iv) वाल्कन पर्वत (द) आर्कियन पर्वत क्रम

उत्तर:
(i)(द) (ii)(स) (iii)(ब) (iv)(अ)

(ग)

स्तम्भ अ (धरातलीय स्वरूप) स्तम्भ ब (सम्बन्ध)
(i) पोतवार का पठार (अ) पुनर्युवनित घाटी
(i) मालागासी का पठार (ब) हिमानीकृत घाटी
(iii) तारीय का पठार (स) भूमिगत जलजात घाटी
(iv) U आकार की घाटी (द) प्रत्यानुवर्ती घाटी
(v) अन्धी घाटी (य) वायु निर्मित पठार
(vi) विपरीत दिशा में बहने वाली नदी (र) आर्द्र पठार
(vii) सागरतल से नीचे चले जाने पर निर्मित घाटी (ल) शुष्क पठार

उत्तर:
(i)(य) (i) (र) (iii)(ल) (iv)(ब) (v) (स) (vi) (द) (vi) (अ)

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 अतिलघूत्तात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थलाकृतिक स्वरूपों को किन-किन भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
स्थलाकृतिक स्वरूपों को मुख्यत: तीन भागों – प्रथम श्रेणी के उच्चावचे (महाद्वीप व महासागर), द्वितीय श्रेणी के उच्चावच (पर्वत, पठार वे मैदान) व तृतीय श्रेणी के उच्चावचों (घाटियाँ व डेल्टा) आदि के रूप में बांटा गया है।

प्रश्न 2.
भूपटल पर स्थलरूपों का निर्माण क्यों होता है?
उत्तर:
भूपटल पर विविध स्थलरूपों का निर्माण पृथ्वी के आन्तरिक एवं बाहरी बलों की पारस्परिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 3.
फिन्च ने पर्वतों की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
फिन्च के अनुसार, “पर्वत समुद्रतल से 600 मीटर या अधिक ऊँचे तथा 260° से 350° के ढाल वाले होते हैं।”

प्रश्न 4.
पर्वतों को किन-किन आधारों पर बाँटा गया है?
उत्तर:
पर्वतों को उनकी निर्माण प्रक्रिया, ऊँचाई, उनकी आयु, अवस्थिति, संरचना एवं बनावट के आधार पर विभाजित किया गया है।

प्रश्न 5.
वलित पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे पर्वत जिनमें पृथ्वी के भीतर उत्पन्न सम्पीडन बल के कारण चट्टानों में वलन या मोड़ पड़ जाते हैं। ऐसे लहरदार पर्वतों को वलित पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 6.
अपनति किसे कहते हैं?
उत्तर:
सम्पीडन की प्रक्रिया से चट्टानें जब घुमावदार स्वरूप में बदलती हैं, तो चट्टानों की लहरों में ऊपर की ओर उठे भाग को अपनति कहते हैं।

प्रश्न 7.
अभिनति किसे कहते हैं?
उत्तर:
सम्पीडन की प्रक्रिया से चट्टानें जब घुमावदार स्वरूप में बदलती हैं, तो चट्टानों की लहरों में नीचे की ओर धंसा भाग अभिनति कहलाता है।

प्रश्न 8.
गुम्बदाकार पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के भीतर उबला मैग्मा धरातल पर आने की भरसक कोशिश करता है। जब यह मैग्मा बाहर नहीं आ पाता तो धरातलीय चट्टानें गुम्बदाकार रूप में ऊपर उठ जाती हैं। इससे निर्मित होने वाले पर्वतों को गुम्बदाकार पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 9.
विश्व के प्रमुख संग्रहित पर्वतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्व के प्रमुख संग्रहित पर्वतों में जापान का फ्यूजीयामा, इटली का विसूवियस एवं अफ्रीका का किलीमंजारो प्रमुख हैं।

प्रश्न 10.
ब्लॉक पर्वत से क्या अभिप्राय है?
अथवा
भ्रंशोत्थ पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब दो समान्तर दरारों का मध्यवर्ती भाग ऊपर की ओर उठ जाये या मध्य के दोनों ओर के भाग नीचे धंस जाएँ तो ऐसी प्रक्रिया से बनने वाले पर्वत ब्लॉक या भ्रंशोत्थ पर्वत कहलाते हैं।

प्रश्न 11.
आयु के आधार पर पर्वतों को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
आयु के आधार पर पर्वतों को चार पर्वत निर्माणकारी कालों-आर्कियन पर्वत काल, केलेडोनियन पर्वत काल, हर्सिनियन पर्वत काल एवं अल्पाइन पर्वत काल के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 12.
अल्पाइन पर्वतों के नाम लिखिए।
अथवा
अल्पाइन पर्वत निर्माणकारी हलचल में कौन-कौन से पर्वत बने? नाम लिखिए।
उत्तर:
अल्पाइन पर्वत काल में हिमालय, अराकानयोमा, एल्ब्रुज, हिन्दुकुश, रॉकीज, एण्डीज, आल्पस, बाल्कन एवं पिरेनीज पर्वतों का मुख्य रूप से निर्माण हुआ था।

प्रश्न 13.
ऊँचाई के आधार पर पर्वतों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
ऊँचाई के आधार पर पर्वतों को चार भागों-अधिक ऊँचाई वाले पर्वत, साधारण ऊँचाई वाले पर्वत, कर्म ऊँचे पर्वत एवं निम्न पर्वतों के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 14.
अधिक ऊँचे पर्वतों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जिन पर्वतों की ऊँचाई 6000 फीट या 2000 मीटर से अधिक होती है, उन्हें अधिक ऊँचे पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 15.
पठार से क्या तात्पर्य है?
अथवा
पठार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आस-पास के धरातल से ऊँचे उठे हुए भाग, जिनका शीर्ष भाग समतल, चौड़ा एवं किनारे की ओर अधिक ढाल युक्त हो उसे पठार कहते हैं।

प्रश्न 16.
उत्पत्ति के आधार पर पठारों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर पठारों को चार भागों-लावा निर्मित पठार, वायु निर्मित पठार, हिमानी निर्मित पठार एवं जलज पठार के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 17.
लावा निर्मित पठारों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जिन पठारों की उत्पत्ति भू-गर्भ से ज्वालामुखी क्रिया से निकले हुए लावा के व्यापक क्षेत्र पर फैलने एवं कालान्तर में उसके ठंडा होकर जमने से होती है, उन्हें लावा निर्मित पठार कहते हैं।

प्रश्न 18.
जलज पठार क्या होते हैं?
उत्तर:
ऐसे पठार जो समुद्री भाग अथवा भूसन्नतियों में निरन्तर जमा हुए अवसादों व कभी-कभी आंतरिक हलचलों से उनके समुद्रतल से ऊपर उठ जाने से बनते हैं, उन्हें जलज पठार कहते हैं।

प्रश्न 19.
स्थिति के आधार पर पठारों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
स्थिति के आधार पर पठारों को तीन भागों-अन्तर्पवतीय पठार, पर्वतपदीय पठार एवं महाद्वीपीय पठारों के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 20.
महाद्वीपीय पठार किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे पठार जो किसी देश या महाद्वीप के सम्पूर्ण भाग पर विस्तृत होते हैं, उन्हें महाद्वीपीय पठार कहते हैं।

प्रश्न 21.
जलवायु के आधार पर पठारों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
जलवायु के आधार पर पठारों को तीन भागों-आर्द्र पठार, शुष्क पठार एवं हिममण्डित पठारों के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 22.
हिममण्डित पठार किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे पठार जहाँ अत्यधिक ठंड के कारण वर्ष भर अधिकांश भाग हिमाच्छादित रहता है, उन्हें हिममण्डित पठार कहते हैं।

प्रश्न 23.
विकास की अवस्था के आधार पर पठारों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
विकास की अवस्था के आधार पर पठारों को चार भागों – नवीन पठारे, प्रौढ़ पठार, वृद्धावस्था के पठार एवं पुनर्युवनित पठारों के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 24.
पुनर्युवनित पठार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आन्तरिक हलचलों के कारण वृद्धावस्था प्राप्त कर चुके पठार का पुनः उत्थान हो जाता है तथा उस पर पुन: अपरदन प्रारम्भ हो जाता है, तो ऐसे पठार पुनर्युवनित पठार कहलाते हैं।

प्रश्न 25.
मैदान किसे कहते हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
अपेक्षाकृत समतल, क्रमिक व मन्द ढाल एवं निम्न उच्चावच वाले धरातलीय भाग को मैदान कहते हैं। निर्माण प्रक्रिया के आधार पर ये दो प्रकार के होते हैं-अपरदनात्मक मैदान एवं निक्षेपणात्मक मैदान।

प्रश्न 26.
निक्षेपणात्मक मैदानों को किन-किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
निक्षेपणात्मक मैदानों को मुख्यत: जलोढ़ निर्मित मैदान, हिमोढ़ मैदान, लोयस मैदान, लावा निर्मित मैदान एवं झील निर्मित मैदानों में बाँटा गया है।

प्रश्न 27.
पेडीप्लेन किसे कहते हैं?
उत्तर:
यांत्रिक अपक्षय द्वारा ढीले एवं टूटे शैल कण हवा उड़ाकर ले जाती है। मार्ग में पड़ने वाली उत्थित चट्टानों का यह हवा अपघर्षण करती है। इसी क्रिया से निर्मित मैदानों को पेडीप्लेन कहते हैं।

प्रश्न 28.
पर्वतपदीय मैदान से क्या तात्पर्य है?
अथवा
गिरिपदीय मैदान क्या होता है?
उत्तर:
जब नदियों के द्वारा ऊँचे भागों से अपरदित मलवे को प्रवाहित कर पर्वतों के निम्नवर्ती भागों में निक्षेपित कर दिया जाता है। तो इससे निर्मित मैदानों को पर्वतपदीय या गिरिपदीय मैदान कहते हैं।

प्रश्न 29.
बट्टड़-मृतिका व अवक्षेप मैदान क्या होते हैं?
उत्तर:
हिमरेखा के नीचे हिमानी द्वारा लाए गए कंकड़, पत्थर व बजरी के जमा होने से निर्मित मैदान बड़-मृतिका मैदान व हिमानी के पिघले जल द्वारा बारीक मिट्टी के निक्षेपण से बने मैदान को अवक्षेप मैदान कहते हैं।

प्रश्न 30.
लोयस का मैदान क्या होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय प्रदेशों में हवा के साथ प्रवाहित बारीक मिट्टी के जमाव से जिन मैदानों का निर्माण होता है, उन्हें लोयस का मैदान कहते हैं।

प्रश्न 31.
झील निर्मित मैदानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
झील निर्मित मैदानों में हंगरी को मैदान, अमेरिका के प्रेयरी प्रदेश के मैदान शामिल हैं।

प्रश्न 32.
मैदानों को सभ्यताओं का पालना क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मैदानी भागों में विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ सिन्धु घाटी सभ्यता, दजला-फरात की बेबिलोनियन सभ्यता, नील घाटी सभ्यता विकसित हुई हैं। इसलिए मैदानों को सभ्यताओं की पालना कहते हैं।

प्रश्न 33.
भ्रंश घाटी किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो समानान्तर भ्रंशों के मध्य स्थल-भाग के नीचे धंसने से जिन घाटियों का निर्माण होता है, उन्हें भ्रंश घाटी कहते हैं।

प्रश्न 34.
आनुवांशिक आधार पर घाटियों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
आनुवांशिक आधार पर घाटियों को मुख्यत: पाँच भागों-अनुवर्ती घाटी, परिवर्ती घाटी, प्रत्यानुवर्ती घाटी, नवानुवर्ती घाटी एवं अक्रमवर्ती घाटी के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 35.
अनुवर्ती घाटी क्या होती है?
अथवा
नति घाटी क्या है?
उत्तर:
ढाल की नति के सहारे बनने वाली घाटी को अनुवर्ती या नति घाटी कहते हैं।

प्रश्न 36.
परिवर्ती घाटी से क्या तात्पर्य है?
अथवा
अनुदैर्घ्य घाटी किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनुवर्ती घाटी के निर्माण के बाद ढाल के नतिलम्ब के सहारे बनने वाली घाटी को परिवतीं या अनुदैर्घ्य घाटी कहते हैं।

प्रश्न 37.
पुनर्युवनित घाटी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सागरतल के नीचे चले जाने पर नदियाँ पुनः निम्नवर्ती कटाव करने लगती हैं, जिसे पुनर्युवनित घाटी कहते हैं।

प्रश्न 38.
भू-प्लेट विवर्तनिक संकल्पना से किन समस्याओं के निराकरण में सहायता मिली है?
उत्तर:
भू-प्लेट विवर्तनिक संकल्पना से पर्वतीकरण, भूकम्प, ज्वालामुखी एवं महाद्वीपीय विस्थापन जैसी समस्याओं के निराकरण में सहायता मिली है।

प्रश्न 39.
तीसरी कोटि के स्थलरूपों के विकास की समस्याओं का किसने निराकरण किया है?
उत्तर:
भू-आकृति चक्र तथा अपरदन चक्र की संकल्पनाओं ने तीसरी कोटि के असंख्य स्थलरूपों के विकास की समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त किया है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
स्थलरूपों का निर्माण करने वाले बलों को तालिका के माध्यम से दर्शाइए।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 8

प्रश्न 2.
गुम्बदाकार एवं भ्रंशोत्थ पर्वतों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
गुम्बदाकार एवं भ्रंशोत्थ पर्वतों में निम्न अन्तर मिलते हैं-

गुम्बदाकार पर्वत भ्रंशोत्थ पर्वत
(i) इन पर्वतों का निर्माण धरातल के आन्तरिक भाग से ऊपर की ओर पड़ने वाले दबाव से होता है। (i) इन पर्वतों का निर्माण भ्रंशन की क्रिया से होता है।
(ii) इसमें भू-भाग गुम्बद के आकार में ऊपर उठता है। (ii) इन भू-भाग के ऊपर उठने या धंसने का कोई निश्चित आकार नहीं होता है।
(iii) इसमें एक लम्बा भाग ऊपर की ओर उठता है। (iii) इन पर्वतों में प्राय: उठने वाले या धंसने वाले भाग कम लम्बे होते हैं।

प्रश्न 3.
पर्वतों के निर्माण की कितनी हलचलें मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्वतों का निर्माण एक आकस्मिक प्रक्रिया द्वारा न होकर एक लम्बी प्रक्रिया का प्रतिफल है। पर्वतों का यह निर्माण अनेक पर्वत निर्माणकारी कालों में हुआ है। विश्व पटल पर पर्वत निर्माण के चार कालक्रम माने गए हैं

  1. आर्कियन पर्वत काल – आज से 40 करोड़ वर्ष पूर्व कैम्ब्रियन काल में यह हलचल हुई थी।
  2. कैलेडोनियन पर्वत काल – आज से लगभग 32 करोड़ वर्ष पूर्व यह हलचल घटित हुई थी।
  3. हर्सिनियन पर्वत काल – आज से लगभग 22 करोड़ वर्ष पूर्व यह हलचल घटित हुई थी।
  4. अल्पाइन पर्वत काल – आज से लगभग 3 करोड़ वर्ष पूर्व यह हलचल घटित हुई थी।

प्रश्न 4.
पठारों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पठारों का अत्यधिक महत्त्व है, इनके महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया गया है-

  1. पठारों पर उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिसमें गहन कृषि होती है।
  2. पठार लहुमूल्य खनिजों के भण्डार घर होते हैं।
  3. इनके कठोर धरातल पर जलाशयों का निर्माण किया जाता है।
  4. पठारों के तीव्र ढालों से उतरती हुई नदियाँ जल-प्रपात बनाती हैं।
  5. पठारों पर पर्वतों की अपेक्षा यातायात के साधन अधिक विकसित होते हैं।
  6. ये जनसंख्या की दृष्टि से पर्वतों की अपेक्षा अधिक आबाद होते हैं।

प्रश्न 5.
घाटियों के निर्माण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घाटी को सामान्यतया नदी के ऋणात्मक स्थलरूप की संज्ञा दी जाती है। घाटियों का निर्माण पटल विरूपण के द्वारा भी होता है। घाटियाँ भूमिगत जल और हिमानियों के द्वारा भी बनती हैं। घाटी वस्तुत: दो ढालों के मध्य अवतलित या अपरदित खाई होती है जिसकी रचना विर्वतनिक घटनाओं या बाहरी शक्तियों के द्वारा होती है। घाटी अपने विकास से लेकर अपनी अन्तिम अवस्था तक विविध स्वरूपों को दर्शाती है।

प्रश्न 6.
विवर्तनिक घटनाओं द्वारा निर्मित घाटियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्त:
अन्तर्जात बलों के कारण होने वाली हलचलों से निर्मित घाटियाँ विवर्तनिक श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं। इस प्रकार की घाटियों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. अभिनति घाटी
  2. भ्रंश घाटी

1. अभिनति घाटी – विवर्तनिक क्रिया के सम्पीडनात्मक बल से शैलों में लहरदार मोड़ पड़ जाते हैं, इससे अपनति व अभिनति स्वरूप उत्पन्न होते हैं। वलन के अवतलित भाग में अभिनति घाटी का निर्माण होता है।
2. भ्रंश घाटी – दो समानान्तर भ्रंशों के मध्य स्थल भाग नीचे धंसने से भ्रंशघाटी का निर्माण होता है। नर्मदा नदी की घाटी ऐसी ही रिफ्ट घाटी का उदाहरण है।

प्रश्न 7.
अवस्था के आधार पर घाटियों के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घाटियाँ अपने निर्माण काल से लेकर अपनी अंतिम अवस्था तक पहुँचने में विविध अवस्थाओं से गुजरती हैं। इनमें कटाव की प्रक्रिया, ढाल की स्थिति भी भिन्न-भिन्न होती है। इसी आधार पर घाटियों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. युवा घाटी,
  2. प्रौढ़ घाटी,
  3. वृद्ध घाटी।

1. युवा घाटी – युवावस्था में घाटी का ढाल तीव्र होता है, इसलिए लम्बवत् कटाव अधिक होने से गहरी घाटी का निर्माण होता
2. प्रौढ़ घाटी – प्रौढ़ावस्था में घाटी का ढाल मन्द हो जाता है इसलिए पार्श्ववर्ती कटाव अधिक होने से घाटियाँ चौड़ी होने . लगती हैं।
3. वृद्ध घाटी – यह घाटी की अन्तिम अवस्था होती है। इस अवस्था में ढाल अत्यधिक मंद हो जाता है और घाटी संमतल होने लगती है।

प्रश्न 8.
संरचना की दिशा के अनुसार घाटियों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
घाटियों की संरचना में भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। घाटी के विकास के समय को आधार मानकर घाटियों को निम्न दो भागों में बाँटा गया है-

  1. पूर्ववर्ती घाटी,
  2. अध्यारोपित घाटी।

1. पूर्ववर्ती घाटी – किसी भूखण्ड के उत्थान से पूर्व विकसित घाटी में भूमि के उत्थान के बाद भी नदी पूर्व निर्मित घाटी में ही बहती है, तो उसे पूर्ववर्ती घाटी कहते हैं।
2. अध्यारोपित घाटी – धरातल की ऊपरी परतों पर निर्मित घाटी जब निचली कठोर चट्टानी परतों पर भी उसी दिशा का अनुसरण करती है तो उसे अध्यारोपित घाटी कहते हैं।

प्रश्न 9.
आधारतल परिवर्तन के अनुसार घाटियों के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घाटियों में प्रारम्भिक चरण से लेकर विकास के साथ-साथ उनकी तलीय स्थिति में भी परिवर्तन होता है। आधारतल के इसी परिवर्तन को आधार मानकर घाटियों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. निमग्न घाटी,
  2. पुनर्युवनित घाटी।

1. निमग्न घाटी – सागरतल ऊपर उठने पर घाटियों के मुहाने जलमग्न हो जाते हैं, तो निमज्जित घाटी का निर्माण होता है।
2. पुनर्युवनित घाटी – सागरतल के नीचे चले जाने पर नदियाँ पुनः निम्नवतीं कटाव करने लगती हैं, जिसे पुनर्युवनित घाटी कहते हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II

प्रश्न 1.
ऊँचाई के अनुसार पर्वतों का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
फिन्च के अनुसार वर्गीकृत पर्वतों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्वतों की ऊँचाई सम्पूर्ण विश्व में समान नहीं मिलती है। पर्वतों की इसी ऊँचाई को आधार मानकर पर्वतों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. अधिक ऊँचे पर्वत,
  2. साधारण ऊँचाई वाले पर्वत,
  3. कम ऊँचे पर्वत,
  4. निम्न पर्वत।

1. अधिक ऊँचे पर्वत – ऐसे पर्वत जिनकी ऊँचाई 6000 फीट या 2000 मीटर से अधिक मिलती है, उन्हें अधिक ऊँचे पर्वत कहते हैं।
2. साधारण ऊँचाई वाले पर्वत – ऐसे पर्वत जिनकी ऊँचाई 4500 फीट से 6000 फीट या 1500 से 2000 मीटर के बीच मिलती है, उन्हें साधारण ऊँचाई वाले पर्वत कहते हैं।
3. कम ऊँचे पर्वत – ऐसे पर्वत जिनकी ऊँचाई 3000-4500 फीट या 1000-1500 मीटर तक मिलती है उन्हें कम ऊँचे पर्वतों की श्रेणी में शामिल किया जाता है।
4. निम्न पर्वत – ऐसे पर्वत जिनकी ऊँचाई 2000 फीट से 3000 फीट तक या 700 से 1000 मीटर तक मिलती है, उन्हें निम्न पर्वतों के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
मानव जीवन पर पर्वतों के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पर्वत मानव जीवन पर क्या प्रभाव डालते हैं?
उत्तर:
किसी भी राष्ट्र या क्षेत्र में मिलने वाले पर्वतों की स्थिति उस क्षेत्र में मानव की क्रियाओं, उसकी सामाजिक स्थिति, पर्यटन की प्रक्रिया, जल उपलब्धता तथा धार्मिक स्वरूप को प्रभावित करती है। पर्वतों के मानव जीवन हेतु उपयोगी या लाभदायक प्रभाव निम्नानुसार हैं-

  1. पर्वतों में अनेक पर्यटन के केन्द्र विकसित होते हैं, जो पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।
  2. पर्वतों के द्वारा मनोरंजन व स्वास्थ्य लाभ एवं साहसिक पर्वतारोहण की सुविधा प्रदान की जाती है।
  3. पर्वत प्राकृतिक सीमा का निर्धारण करते हैं।
  4. पर्वत जलवायु को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  5. पर्वत सुरक्षा एवं कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
  6. पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ जल संसाधन का स्रोत बनती हैं।
  7. पर्वतीय क्षेत्रों में विविध प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
  8. पर्वतीय क्षेत्रों के निवासी साहसिक, निर्भीक, परिश्रमी, स्वस्थ और सुशील होते हैं।
  9. पर्वत धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
  10. पर्वतों से अनेक प्रकार के संसाधन प्राप्त होते हैं।
  11. पर्वत शांत व एकांत स्थल होने के कारण प्राचीनकाल से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि एवं आध्यात्मिक केन्द्र रहे हैं।
  12. पर्वतों में अनेक तीर्थ स्थल विकसित हुए हैं।

प्रश्न 3.
स्थिति के आधार पर पठारों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
सम्पूर्ण विश्व में मिलने वाले पठारों की स्थिति भिन्न-भिन्न मिलती है। पठारों की स्थिति को आधार मानकर उन्हें निम्न भागों में बाँटा गया है

  1. अन्तर्पवतीय पठार,
  2. पर्वतपदीय पठार,
  3. महाद्वीपीय पठार।

1. अन्तर्पवतीय पठार – ऐसे पठार जिनकी स्थिति पर्वतों के मध्य होती है अर्थात् इनके दो, तीन या चारों ओर ही पर्वत पाए जाते हैं, तो इन्हें अन्तर्पवतीय पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों की उत्पत्ति प्राय: अन्तर्जात बलों के द्वारा होती है। इस प्रकार के पठार प्राय: मध्यपिण्ड के रूप में मिलते हैं। विश्व में इस प्रकार के पठार हिमालय व कुनलुन के बीच तिब्बत के पठार के रूप में, पॉण्टिक व टॉरस के बीच अनातोलिया के पठार के रूप में, बोलिविया के पठार, पेरू के पठार, मैक्सिको के पठार, कोलम्बिया के पठार के रूप में मिलते हैं।

2. पर्वतपदीय पठार – ऐसे पठार जो पर्वतों की तलहटी में स्थित होते हैं जिनके एक ओर पर्वत तथा दूसरी ओर समुद्र या मैदान होता है, उन्हें पर्वतपदीय पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों का ढाल मैदान या सागर की ओर होता है। ऐसे पठारों में – मुख्यतः पेंटागोनिया के पठार व अप्लेशियन पर्वत के सहारे फैले पठारों को शामिल किया गया है।

3. महाद्वीपीय पठार – ऐसे पठार जो किसी देश या महाद्वीप के सम्पूर्ण भाग पर विस्तृत होते हैं, उन्हें महाद्वीपीय पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों का विस्तार कई लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला होता है। ऐसे पठारों में मुख्यत: भारत का दक्कन का पठार, ग्रीनलैण्ड का पठार, अण्टार्कटिका का पठार, दक्षिणी अफ्रीका का पठार, अरब का पठार एवं ऑस्ट्रेलिया का पठार शामिल हैं।

प्रश्न 4.
जलवायु के आधार पर पठारों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
विश्व में मिलने वाले पठारों पर जलवायु की स्थिति का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जलवायु दशाओं के अनुसार ही पठारों का स्वरूप देखने को मिलता है। विश्व की जलवायु दशाओं को आधार मानकर पठारों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. आर्द्र पठार,
  2. शुष्क पठार,
  3. हिममण्डित पठार

1. आर्द्र पठार – ऐसे पठार जिनमें प्रायः 50 प्रतिशत आर्द्रता तथा अच्छी वर्षा होती है, उन्हें आई पठार कहते हैं। इस प्रकार के पठारों में नदियाँ तेज गति से बहने वाली छोटी एवं बलवती होती हैं। अत: आर्द्र पठार इनके द्वारा काट दिए जाते हैं। इस प्रकार के पठारों में चेरापूँजी का पठार, मालागासी का पठार, ऑस्ट्रेलिया को पूर्वी पठार, न्यूजीलैंड का ओटोगो का पठार शामिल हैं।

2. शुष्क पठार – इस प्रकार के पठारों का निर्माण वाष्पीकरण की मात्रा वर्षा से अधिक रहने के कारण होता है। इस प्रकार के अधिकांश पठार कर्क और मकरं रेखाओं के पास महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर पाए जाते हैं। इन पठारों में तारीम का पठार, पोतवार का पठार, गोबी का पठार, सैदाम का पठार शामिल हैं।

3. हिममण्डित पठार – इस प्रकार के पठारों का निर्माण ऊँचे प्रदेशों व उच्च अक्षांशों में अत्यधिक ठण्ड के कारण वर्ष भर अधिकांश भाग में हिमाच्छादन के कारण होता है। इस प्रकार के पठारों में ग्रीनलैण्ड का पठार, अन्टार्कटिका के पठारों वपेंटागोनिया के पठार के दक्षिणी भाग को शामिल किया गया है।

प्रश्न 5.
बाह्य शक्तियों द्वारा निर्मित घाटियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाहरी अपरदनकारी शक्तियों द्वारा निर्मित घाटियों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. नदी घाटी,
  2. हिमनदी घाटी,
  3. अन्धी घाटी।

1. नदी घाटी – वर्षा का जल धरातल पर बहते हुए लम्बवत् एवं क्षैतिज कटाव करके नदी घाटी का निर्माण करता है। नदी घाटी का विकास उसकी गहराई और चौड़ाई से होता है। धरातल की संरचना, ढाल की स्थिति एवं पानी के वेग के अनुसार ही घाटी का गहरा होना व चौड़ा होना निर्भर करता है। नदीजन्य जल से प्रारम्भिक अवस्था में आकार की घाटियों का निर्माण
होता है।

2. हिमनदी घाटी – हिमाच्छादित ऊँचे पर्वतों से सरकने वाली बर्फ चौड़ी व खड़े ढाल वाली U आकार की घाटी का निर्माण करती है। बड़ी हिमानी में ऊंचाई से आकर मिलने वाली सहायक हिमनदी लटकती हुई घाटी का निर्माण करती है।

3. अन्धी घाटी – इस प्रकार की घाटियों का निर्माण चूना प्रदेशों में धरातल पर बहने वाली नदी द्वारा गहराई में कटाव करते हुए चूने की चट्टानों में बने घोल रन्ध्र में समा जाने से होता है। रन्ध्र के बाद बची शुष्क घाटी को, अन्धी घाटी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
घाटियों का आनुवांशिक वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
आनुवांशिक आधार पर घाटियों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आनुवांशिक आधार पर घाटियों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. अनुवर्ती घाटी,
  2. परिवर्ती घाटी,
  3. प्रत्यानुवर्ती घाटी,
  4. नवानुवर्ती घाटी,
  5. अक्रमवर्ती घाटी।

1. अनुवर्ती घाटी – ऐसी घाटियाँ जिनका निर्माण ढाल की नति के सहारे होता है, अनुवर्ती घाटियाँ कहलाती हैं। इस प्रकार की घाटियाँ मुख्यत: नवनिर्मित भागों, ज्वालामुखीय क्षेत्रों व तटीय मैदानों में विकसित होती हैं। ये घाटियाँ उत्थित भू-भाग के प्रारम्भिक तल पर ढाल के अनुरूप विकसित होती हैं।

2. परिवर्ती घाटी – अनुवर्ती घाटी के निर्माण के बाद ढाल के नतिलम्ब के सहारे बनने वाली घाटी को परिवर्ती या अनुदैर्घ्य घाटी कहते हैं। इस प्रकार की घाटियाँ प्राय: मुलायम शैलों वाले क्षेत्रों में मिलती हैं। ये घाटियाँ अनुवर्ती घाटियों की सहायक होती हैं।

3. प्रत्यानुवर्ती घाटी – मुख्य अनुवर्ती के विपरीत दिशा में बहने वाली परिवर्ती नदी की सहायक नदी प्रत्यानुवर्ती घाटी का निर्माण करती है। परिवर्ती घाटियों के निर्माण के बाद इनमें प्रवाहित होने वाली सरिता की सहायक सरिताओं का विकास होता है। सरिता अपहरण के द्वारा भी ऐसी घाटियों का निर्माण होता है।

4. नवानुवर्ती घाटी – अनुवर्ती नदी की दिशा के अनुरूप बहने वाली परिवर्ती नदी की सहायक नदी नवानुवर्ती घाटी का निर्माण करती है।

5. अक्रमवर्ती घाटी – संरचना और ढाल से अप्रभावित नदी घाटी को अक्रमवर्ती घाटी कहते हैं।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्वतों को परिभाषित करते हुए विभिन्न पर्वत निर्माणकारी हलचलों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्वतों के निर्माण में उत्तरदायी पर्वत निर्माण की विभिन्न हलचलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आस-पास के सामान्य धरातल से एकदम ऊँचे भाग, जिनका शिखर संकुचित व ढाल तीव्र हो, ऐसे स्थलाकृतिक स्वरूप को पर्वत कहते हैं। फिन्च नामक विद्वान ने पर्वतों को परिभाषित करते हुए बताया था कि “पर्वत समुद्रतल से 600 मीटर या अधिक ऊँचे तथा 260०. 350° के ढाल के होते हैं।” पर्वत निर्माणकारी हलचल–सम्पूर्ण विश्व में पर्वतों का निर्माण एकाएक एवं एक साथ न होकर अलग-अलग समयों में सम्पन्न हुई एक दीर्घकालिक प्रक्रिया का परिणाम है। अब तक चार प्रमुख पर्वत निर्माणकारी हलचलें घटित हुई हैं। इन हलचलों के मध्य एक लम्बा शांतकाल रहा है। शांतकाल के दौरान सम्पीडनात्मक बल संग्रहित हुआ होगा, जिसके परिणामस्वरूप इन हलचलों की क्रियान्विति हुई। पर्वतों के इन समयों के विविध कालक्रमों को मुख्यत: निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. आर्कियन कालक्रम,
  2. कैलेडोनियन कालक्रम,
  3. हर्सिनियन कालक्रम,
  4. अल्पाइन कालक्रम।

1. आर्कियन कालक्रम – पर्वत निर्माण की यह घटना आज से लगभग 40 करोड़ वर्ष पूर्व सम्पन्न हुई मानी जाती है। यह कैम्ब्रियन काल की घटना है। इस काल के अन्तर्गत यूरोप में फैनो स्केण्डीनेविया, भारत में अरावली पर्वत, धारवाड़, छोटा नागपुर, कुडुप्पा, पूर्वी घाट के पर्वतों का निर्माण हुआ था।

2. कैलेडोनियन कालक्रम – इस पर्वत निर्माण हलचल का समय आज से 32 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। इस हलचल के कारण यूरोप में अत्यधिक परिवर्तन हुए। इस काल के पर्वतों में खनिजों के भण्डार मिलते हैं। इस हलचल से अमेरिका में अप्लेशियन, यूरोप में स्कॉटिश अपलैण्ड, आयरलैण्ड के पर्वतों, जुरा पर्वत, अफ्रीका में सहाराई पर्वत, मोजाम्बिक पर्वत, भारत में गढ़वाल, स्फीती व वर्द्धवान घाटी के पर्वतों का निर्माण हुआ था।

3. हर्सिनियन कालक्रम – इस पर्वत निर्माणकारी हलचल का समय लगभग 22 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। इस हलचल से निर्मित पर्वतों में खनिज, जलविद्युत व निर्माण हेतु पत्थर पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। इस हलचल से निर्मित होने वाले पर्वतों में एशियय का थ्यानशान, अल्टाईशान, खिगनं व नानशान पर्वत, ऑस्ट्रेलिया में पूर्वी कार्डिलेरा, यूरोप में पेनाइन, हार्ज, वासजेस,
ब्लेक फारेस्ट, बोहेनिया आदि पर्वत प्रमुख हैं।

4. अल्पाइन कालक्रम – यह पर्वत निर्माणकारी हलचलों का सबसे नवीनतम कालक्रम है जिसके घटित होने का समय लगभग 3 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। यह पर्वत निर्माणकारी हलचल नवीन महाकल्प के आलिगोसीन, मायोसीन व प्लायोसीन युग में सक्रिय रही थी। इस हलचल के कारण नवीनतम मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ है। जिनमें हिमालय, कुनलुन, कराकोरम, अराकान, एल्बुर्ज, हिन्दुकुश, रॉकीज, एण्डीज, आल्पस, बाल्कन तथा पिरेनीज पर्वतों का निर्माण शामिल है।

प्रश्न 2.
पठारों को परिभाषित करते हुए विकास की अवस्था के आधार पर पठारों का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
पठारों को परिभाषित करते हुए उनका अवस्था के आधार पर विभाजन समझाइए।
उत्तर:
आस-पास के धरातल से ऊँचे उठे हुए भाग, जिनका शीर्ष भाग समतल, चौड़ा एवं किनारे की ओर अधिक ढाल वाला हो पठार कहलाता है।

पठारों का वर्गीकरण – सम्पूर्ण विश्व में मिलने वाले पठारों के स्वरूपों को आधार मानकर उन्हें निम्न भागों में बाँटा गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 8 प्रमुख स्थलाकृति स्वरूप 9

विकास की अवस्था के आधार पर पठारों का वर्गीकरण – पठारों का विकास एक लम्बी समय अवधि का परिणाम होता है। इनकी उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक को आधार मानकर इन्हें निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. नवीन पठार,
  2. प्रौढ़ पठार,
  3. वृद्धावस्था के पठार,
  4. पुनर्युवनित पठार।

1. नवीन पठार – ये पठार आसपास के मैदान से तीक्ष्ण कगार द्वारा अलग होते हैं। इन पर बहने वाली नदियाँ गहरी घाटी बनाती हैं। कोलो पठार पर नदी गहरे केनियन का निर्माण करती है। इन पठारों में उच्चावच इतना विस्तृत होता है कि वह मैदानों में आसानी से अलग हो जाती है।

2. प्रौढ़ पठार – ऊबड़-खाबड़ एवं विषम धरातल वाले इन पठारों पर कन्दराएँ और कटक तीव्र ढाल वाले होते हैं। इनके किनारे सीढ़ीनुमा दिखाई देते हैं, जैसे कि अप्लेशियन को पठार। इस प्रकार के पठारों में दीवारें लम्बवत् होती हैं तथा चट्टानी सोपानों का निर्माण होता है। इनमें चौड़े शिखर, वेदिकाएँ सोपान भी मिलते हैं।

3. वृद्धावस्था के पठार – पठार के उच्चावच समप्रायः मैदान में परिवर्तित हो जाते हैं; जैसे-राँची का पठार। इस प्रकार के पठारी भागों में नदियाँ उथली घाटियों से होकर बहती हैं। समप्रायः सतह पर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ व गुम्बद मोनाडनोक के रूप में देखने को मिलते हैं।

4. पुनर्युवनित पठार – आन्तरिक हलचलों के कारण वृद्धावस्था प्राप्त कर चुके पठार का पुनः उत्थान हो जाता है। उस पर पुनः अपरदन प्रारम्भ हो जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का मिसौरी का पठार इसका मुख्य उदाहरण है। इस प्रकार के पठारों में मेसा, बुटी, चौड़ी वेदिकाएँ देखने को मिलती हैं। भारत में राँची का पठार भी ऐसा ही पठार है।

प्रश्न 3.
स्थलरूप विकास की संकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
स्थलरूप रूप विकास की संकल्पना क्या है?
उत्तर:
धरातल पर महाद्वीप और महासागर सबसे बड़े स्थलरूप हैं। पर्वत-पठार और मैदान दूसरी कोटि के स्थलरूप हैं तथा इन पर बाह्य बलों द्वारा निर्मित होने वाले असंख्य भूरूप तीसरी कोटि के स्थल रूप हैं। इनमें से कोई भी स्थलरूप धरातल पर स्थायी नहीं है। अन्तर्जात बलों द्वारा जैसे ही कोई स्थलरूप विकसित होता है, बहिर्जात बलों द्वारा उसके विनाश की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। आज जहाँ हिमालय पर्वत खड़ा है वहाँ पहले टेथीस सागर लहराता था। पर्वत अपरदित होकर पठारों एवं मैदानों का रूप ले लेते हैं। तथा मैदान जलमग्न होकर समुद्रों का रूप ले लेते हैं। इस प्रकार स्थलरूपों के विकास का चक्र निरन्तर चलता रहता है। स्थलाकृतियों के विकास में पर्याप्त जटिलता पाई जाती है। सभी महाद्वीप और महासागर छोटी-बड़ी 20 भू-प्लेटों (Tectonic Plates) से निर्मित हैं। भूप्लेटों के खिसकने से उनके किनारों पर विवर्तनिक क्रियाएँ होती हैं जो विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का विकास करती हैं। भूप्लेट विवर्तनिक संकल्पना (Concept of Plate) के द्वारा पर्वतीकरण, भूकम्प, ज्वालामुखी एवं महाद्वीपीय विस्थापन (Continental drift) जैसी समस्याओं के निराकरण में सहायता मिली है। इसी प्रकार भूआकृति चक्र (Geomorphic Cycle) तथा अपरदन चक्र (Cycle of Erosion) की संकल्पनाओं से तीसरी कोटि के असंख्य स्थलरूपों के विकास की समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

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