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Rajasthan Board RBSE Class 11 Physics Chapter 1 भौतिक जगत तथा मापन
RBSE Class 11 Physics Chapter 1 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 11 Physics Chapter 1 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1.
S.I. पद्धति में प्रदीपन तीव्रता का मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
Cd
प्रश्न 2.
पदार्थ की मात्रा का मूल मात्रक क्या है?
उत्तर:
mol
प्रश्न 3.
एक जूल ऊर्जा कितने अर्ग के बराबर होती है?
उत्तर:
107 अर्ग।
प्रश्न 4.
प्लांक नियतांक का मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
Js (जूल सेकण्ड)
प्रश्न 5.
संख्या 0.005 में सार्थक अंक कितने होते हैं?
उत्तर:
एक।
प्रश्न 6.
अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में कितने मूल व कितने पूरक मात्रक होते हैं ?
उत्तर:
7 मूल मात्रक व 2 पूरक मात्रक।
प्रश्न 7.
बोल्ट्जमैन नियतांक का विमीय सूत्र लिखिए।
उत्तर:
[M1L2T-2K-1]
प्रश्न 8.
त्रुटियाँ कितने प्रकार की मानी जाती हैं ?
उत्तर:
तीन।
प्रश्न 9.
पृष्ठ तनाव की विमा क्या होती है?
उत्तर:
M1L0T-2
प्रश्न 10.
एक मीटर में Kr86 की कितनी तरंगदैर्ध्य होती है ?
उत्तर:
1,650,763.73
प्रश्न 11.
आवेग की विमा किसकी विमा के समान होती है?
उत्तर:
संवेग।
प्रश्न 12.
दो विमाहीन राशियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कोण, विकृति।
प्रश्न 13.
नियतांक K में प्रतिशत त्रुटि कितनी होती है?
उत्तर:
शून्य।
प्रश्न 14.
एक भौतिक राशि x के मापन में त्रुटि Δr हो तो xm में प्रतिशत त्रुटि कितनी होगी?
उत्तर:
\(m \frac{\Delta x}{x}\) × 100%
प्रश्न 15.
यदि बल तथा लम्बाई के मात्रकों में से प्रत्येक को दुगुना कर दिया जाये, तो ऊर्जा के मात्रक को मान कितने गुना हो। जायेगा?
उत्तर:
4 गुना।
RBSE Class 11 Physics Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति का सुव्यवस्थित अध्ययन विज्ञान का विषय है। मनुष्य की जानने की संगठित कोशिश तथा उसके द्वारा अर्जित ज्ञान विज्ञान बन जाता है।” भौतिक जगत में जो भी घटित होता है, उसका क्रमबद्ध अध्ययन विज्ञान कहलाता है।”
प्रश्न 2.
मात्रक किसे कहते हैं तथा मात्रकों की कितनी पद्धतियाँ होती हैं?
उत्तर:
किसी भौतिक राशि के मापन के लिए नियत किये गये मान को मात्रक कहते हैं। भौतिक राशियों के मूल मात्रकों के मापन में प्रयुक्त मुख्य मात्रक पद्धतियाँ निम्न हैं। इनमें लम्बाई, द्रव्यमान तथा समय के मूल मात्रक क्रमशः व्यक्त किये जाते हैं
- C.G.S. (सेन्टीमीटर-ग्राम-सेकण्ड) पद्धति या गौसीय पद्धति
- M.K.S. (मीटर-किलोग्राम-सेकण्ड) पद्धति या जॉर्जी (Gorgi) पद्धति।
- F.P.S. (फुट-पाउण्ड-सेकण्ड) पद्धति।
C.G.S. पद्धति या गौसीय पद्धति- इस पद्धति के अन्तर्गत . हम द्रव्यमान, लम्बाई, समय को क्रमशः ग्राम, सेन्टीमीटर, सेकण्ड में नापते हैं।
M.K.S. पद्धति- इस पद्धति में द्रव्यमान, लम्बाई, समय को क्रमशः किलोग्राम, मीटर, सेकण्ड में नापते हैं।
F.P.S. पद्धति या ब्रिटिश पद्धति- इस पद्धति में द्रव्यमान, लम्बाई, समय को क्रमशः पाउण्ड, फुट, सेकण्ड में नापते हैं।
प्रश्न 3.
एक रेडियन की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
रेडियन (Radian)किसी वृत्त की त्रिज्या के बराबर के चाप द्वारा वृत्त के केन्द्र पर अंतरित कोण, 1 रेडियन के बराबर होता है।
समतल कोण dθ = \(\left(\frac{d s}{r}\right)\) रेडियन
यदि ds = r तो dθ = 1 रेडियन
प्रश्न 4.
S.I. पद्धति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
S.I. पद्धति की विशेषताएँ (Merits of S.I. System)
- यह मैट्रिक या दशमलव पद्धति है।
- इस पद्धति में मात्रक अचर तथा उपलब्ध मानकों पर आधारित है।
- ये सभी मात्रक सुपरिभाषित एवं पुनः स्थापित होने वाले हैं।
- S.I. पद्धति विज्ञान की सभी शाखाओं में प्रयोग की जा सकती है। परन्तु M.K.S. पद्धति को केवल यांत्रिकी में प्रयोग किया जा सकता है।
- इस पद्धति में सभी भौतिक राशियों के व्युत्पन्न मात्रक केवल मूल मात्रकों को गुणा एवं भाग करके प्राप्त हो सकते हैं।
- यह मात्रकों की परिमेयकृत पद्धति है अर्थात् इस पद्धति से एक भौतिक राशि के लिए एक ही मात्रक का उपयोग होता है।
प्रश्न 5.
विमीय विश्लेषण विधि के उपयोग बताइये।
उत्तर:
विमीय विश्लेषण विधि के निम्न उपयोग हैं|
- किसी भौतिक राशि के परिमाण को एक मात्रक पद्धति से दूसरी मात्रक पद्धति में परिवर्तन करना।
- भौतिक सूत्रों की यथार्थता की जाँच करना।
- भौतिक राशियों के बीच सम्बन्ध स्थापित करना।
प्रश्न 6.
क्या विमाहीन एवं मात्रकहीन भौतिक राशि का अस्तित्व संभव है?
उत्तर:
हाँ, जैसे आपेक्षिक घनत्व, विकृति।
RBSE Class 11 Physics Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक पद्धति का वर्णन करते हुए विभिन्न मूल मात्रकों की परिभाषाएँ दीजिये।
उत्तर:
मात्रकों की अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति (S.I. System of Units)
यह M.K.S. पद्धति का परिवर्तित व परिवर्धित रूप है। 1960 में अन्तर्राष्ट्रीय माप तथा बाट की सामान्य सभा ने मात्रकों की इस अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति का नामकरण S.I. (System International) किया तथा इसमें भौतिक राशियों को मूल, व्युत्पन्न तथा पूरक मात्रकों के रूप में वर्गीकृत किया गया। इस पद्धति में सात मूल राशियाँ तथा दो। पूरक राशियों के मानक मात्रक परिभाषित किये गये हैं।
ऊपर दी गई सभी राशियों में आजकल F.PS. पद्धति को उपयोग सामान्यतः नहीं किया जाता है एवं C.G.S. का उपयोग भी कम किया जाता है। C.G.S. पद्धति में मात्रक छोटे होते हैं। भौतिक राशि का संख्यात्मक मान बहुत अधिक हो जाता है, जिससे गणना कठिन हो जाती है। आजकल M.K.S. तथा S.I, पद्धति का उपयोग किया जाता है।
(A) मूल मात्रक
(B) व्युत्पन्न मांत्रक- मूल मात्रकों पर आधारित कुछ सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली भौतिक राशियों के मात्रक कोष्ठकों में लिखे गये चिह्न द्वारा दिये गये हैं।
(C) पूरक मात्रक
मूल मात्रकों की अन्तर्राष्ट्रीय परिभाषाएँ (International definitions of fundamental units)
(1) मीटर (Meter)-एक मीटर वह दूरी है जिसमें Kr86 से निर्वात में उत्सर्जित नारंगी लाल प्रकाश की 1,650,763,73 तरंगें स्थित होती हैं एवं दूसरे शब्दों में, 1 मीटर वह दूरी है जो प्रकाश निर्वात में \(\frac{1}{299,792,458}\) सेकण्ड में तय करता है।
(2) किलोग्राम (Kilogram)- एक किलोग्राम अन्तरराष्ट्रीय बांट व माप संस्था पेरिस में रखे प्लेटिनम-इरेडियम के एक विशेष बेलन के द्रव्यमान के बराबर है। यह 4°C पर एक लीटर जल के द्रव्यमान के बराबर होता है। एक किलोग्राम मात्रा, c12 के 5 × 102 परमाणुओं के द्रव्यमान के बराबर होती है।
(3) सेकण्ड (Second)- यह वह समय है जिसमें सीजियम – 133 (Cs133) परमाणु 9,192,631,770 बार कम्पन करता है। परमाणु घड़ियाँ इस परिभाषा पर आधारित होती हैं, वे समय का यथार्थ मापन करती हैं और उनमें केवल 5000 वर्षों में एक सेकण्ड की त्रुटि हो सकती है।
(4) ऐम्पियर (Ampere)- यह विद्युत धारा का मात्रक लिया गया है। एक ऐम्पियर वह नियत विद्युतधारा है, जो निर्वात में एक मीटर | दूरी पर रखे दो सीधे समान्तर अनन्त लम्बाई व नगण्य त्रिज्या वाले तारों में प्रवाहित होने पर उनके मध्य प्रति इकाई लम्बाई पर लगने वाला बल 2 × 10-7 न्यूटन/मी. उत्पन्न करे।
(5) केल्विन (Kelvin)- सामान्य वायुमण्डलीय दाब पर जल के क्वथनांक एवं बर्फ के गलनांक के अन्तर का \(\frac{1}{100}\) वाँ भाग 1 केल्विन ताप कहलाता है। जल के त्रिक बिन्दु (273.16 केल्विन) ताप पर ऊष्मागतिक ताप का \(\frac{1}{273.16}\) हवाँ भाग 1 केल्विन कहलाता है। इसका प्रतीक K है। ताप को केल्विन में व्यक्त करने में डिग्री नहीं लिखते। उदाहरणार्थ, कमरे का ताप 304 K है, इसे 304°K लिखना गलत है।
(6) केन्डेला (Candela)- यह प्रदीपन तीव्रता का मात्रक लिया गया है। एक केन्डेला उस प्रदीपन तीव्रता की मात्रा है जो \(\frac{1}{6,00,000}\) वर्गमीटर क्षेत्रफल वाली कृष्ण वस्तु से लम्बवत् उत्सर्जित होती है, जबकि कृष्ण वस्तु (black body) का दाब 101,325 न्यूटन/मी.2 तथा ताप, प्लेटिनम के गलनांक (2046 K) के बराबर होता हैं।
(7) मोल (Mole)- 1 मोल पदार्थ की वह मात्रा (द्रव्यमान) है, जिसमें मूल अवयवों की संख्या उतनी हो जितनी कि 6C12 के 0.012 किलोग्राम मात्रा में कार्बन परमाणुओं की होती है। इस संख्या को ऐवोगैड्रो संख्या NA = 6.02 × 1023 प्रति ग्राम मोल कहते हैं।
प्रश्न 2.
मूल मात्रक और व्युत्पन्न मात्रकों में अन्तर उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिये। मात्रकों के लिए कौन-कौनसी पद्धतियाँ प्रचलित हैं?
उत्तर:
मूल मात्रक और व्युत्पन्न मात्रकों में अन्तर मूल मात्रक
मूल मात्रक | व्युत्पन्न मात्रक |
1. वे मात्रक जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, मूल मात्रक कहलाते हैं। | वे मात्रक जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, |
2. वे मात्रक जिन्हें किसी अन्य मात्रक में व्युत्पन्न नहीं किया जा सकता है। | वे मात्रक जिन्हें मूल मात्रकों का उपयोग करके व्युत्पन्न किया जा सकता है। |
3. उदाहरण- द्रव्यमान, लम्बाई, समय। | उदाहरण- बल, संवेग, कार्य, वेग |
किसी भी भौतिक राशि को व्यक्त करने के लिए उसके आंकिक मान और मात्रक मान की आवश्यकता होती है। यदि कोई भौतिक राशि Q है और उसका आंकिक मान n तथा मात्रक u हो तो उनका गुणनफल नियत रहता है। अर्थात् Q= nu = नियतांक
भौतिक राशियों के मूल मात्रकों के आधार पर निम्नलिखित पद्धतियाँ प्रचलित हैं
- C.G.S. (सेन्टीमीटर-ग्राम-सेकण्ड) पद्धति या गौसीय पद्धति
- M.K.S. (मीटर-किलोग्राम-सेकण्ड) पद्धति या जॉर्जी (Gorgi) पद्धति
- EPS. (फुट-पाउण्ड-सेकण्ड) पद्धति
- International system of Units (S.I.) (अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति)
C.G.S. पद्धति या गौसीय पद्धति- इसे पद्धति के अन्तर्गत हम द्रव्यमान, लम्बाई, समय को क्रमशः ग्राम, सेन्टीमीटर, सेकण्ड में नापते हैं।
M.K.S. पद्धति- इस पद्धति में द्रव्यमान, लम्बाई, समय को क्रमशः किलोग्राम, मीटर, सेकण्ड में नापते हैं।
F.P.S. पद्धति या ब्रिटिश पद्धति- इस पद्धति में द्रव्यमान, लम्बाई, समय को क्रमशः पाउण्ड, फुट, सेकण्ड में नापते हैं।
S.I. पद्धति- यह पद्धति M.K.S. पद्धति का परिवर्तित रूप है। इस पद्धति को 1960 में अन्तर्राष्ट्रीय माप तौल समिति द्वारा लागू किया गया था और इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुमोदित किया गया है।
प्रश्न 3.
विमीय विधि द्वारा किसी भौतिक राशि के परिमाण को एक मात्रक पद्धति से दूसरी मात्रक पद्धति में बदलने का सूत्र स्थापित कीजिए।
उत्तर:
किसी भौतिक राशि के परिमाण को एक मात्रक पद्धति से किसी अन्य मात्रक पद्धति में परिवर्तित करना— किसी भौतिक राशि का मात्रक U एवं आंकिक मान n हो तो
U ∝ \(\frac{1}{n}\)
या nU = नियतांक
यदि किसी भौतिक राशि का एक पद्धति में मात्रक, U1 तथा परिमाण n1 एवं दूसरी पद्धति में मात्रक U2 तथा परिमाण n2 हो तो
Q = n1UI1 = n2U2 ………….. (1)
चूँकि भौतिक राशि एक ही है अतः पद्धति बदलने पर भौतिक राशि की विमा नहीं बदलती है, उसके मात्रक एवं संख्यात्मक मान बदल सकते हैं।
यदि प्रथम पद्धति में द्रव्यमान, लम्बाई व समय क्रमशः M1,L1 तथा T1 हों और इनकी विमाएँ क्रमशः a, b तथा c हों तो प्रथम पद्धति के लिए
U1 = [M1aL1bL1c]…………….. (2)
अन्य मात्रक पद्धति में यदि द्रव्यमान, लम्बाई तथा समय के मात्रक क्रमशः M2, L2 तथा T2 हों तो
U2 = [M2aL2bL2c]…………….. (3)
U1 तथा U2 के मान समीकरण (2) व (3) से समीकरण (1) में रखने पर
n1 [M1aL1bL1c] = n2 [M2aL2bL2c]
\(\therefore \quad \mathrm{n}_{2}=\mathrm{n}_{1}\left[\frac{\mathrm{M}_{1}}{\mathrm{M}_{2}}\right]^{\mathrm{a}}\left[\frac{\mathrm{L}_{1}}{\mathrm{L}_{2}}\right]^{\mathrm{b}}\left[\frac{\mathrm{T}_{1}}{\mathrm{T}_{2}}\right]^{\mathrm{c}}\) ……………………… (4)
समीकरण (4) का उपयोग कर किसी भौतिक राशि के मान को एक मात्रक पद्धति से दूसरी मात्रक पद्धति में बदल सकते हैं।
फुट पाउण्डल/से. तथा वाट क्रमशः फु. पा. से. (EPS.) तथा मी. कि. से. (M.K.S.) पद्धतियों में शक्ति के मात्रक हैं। शक्ति का विमीय सूत्र M1L2T-3 होता है। अतः यहाँ से स्पष्ट है कि 4 = 1, b = 2 तथा c = -3 होंगे।
F.P.S. पद्धति में M.K.S. पद्धति में
M1 = पाउण्ड M2 = किलोग्राम
L1 = फुट L2 = मीटर
T1 = सेकण्ड T2 = सेकण्ड
n1 = 550 × 32 फुट पाउण्डल/से. n2 = 1
∵ 1 अश्व शक्ति = 550 × 32 फुट पाउण्डल/से.
प्रश्न 4.
विमीय समीकरणों के उपयोग पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
किसी भौतिक राशि के परिमाण को एक मात्रक पद्धति से किसी अन्य मात्रक पद्धति में परिवर्तित करना— किसी भौतिक राशि का मात्रक U एवं आंकिक मान n हो तो
U ∝ \(\frac{1}{n}\)
या nU = नियतांक
यदि किसी भौतिक राशि का एक पद्धति में मात्रक, U1 तथा परिमाण n1 एवं दूसरी पद्धति में मात्रक U2 तथा परिमाण n2 हो तो
Q = n1UI1 = n2U2 ………….. (1)
चूँकि भौतिक राशि एक ही है अतः पद्धति बदलने पर भौतिक राशि की विमा नहीं बदलती है, उसके मात्रक एवं संख्यात्मक मान बदल सकते हैं।
यदि प्रथम पद्धति में द्रव्यमान, लम्बाई व समय क्रमशः M1,L1 तथा T1 हों और इनकी विमाएँ क्रमशः a, b तथा c हों तो प्रथम पद्धति के लिए
U1 = [M1aL1bL1c]…………….. (2)
अन्य मात्रक पद्धति में यदि द्रव्यमान, लम्बाई तथा समय के मात्रक क्रमशः M2, L2 तथा T2 हों तो
U2 = [M2aL2bL2c]…………….. (3)
U1 तथा U2 के मान समीकरण (2) व (3) से समीकरण (1) में रखने पर
n1 [M1aL1bL1c] = n2 [M2aL2bL2c]
\(\therefore \quad \mathrm{n}_{2}=\mathrm{n}_{1}\left[\frac{\mathrm{M}_{1}}{\mathrm{M}_{2}}\right]^{\mathrm{a}}\left[\frac{\mathrm{L}_{1}}{\mathrm{L}_{2}}\right]^{\mathrm{b}}\left[\frac{\mathrm{T}_{1}}{\mathrm{T}_{2}}\right]^{\mathrm{c}}\) ……………………… (4)
समीकरण (4) का उपयोग कर किसी भौतिक राशि के मान को एक मात्रक पद्धति से दूसरी मात्रक पद्धति में बदल सकते हैं।
फुट पाउण्डल/से. तथा वाट क्रमशः फु. पा. से. (EPS.) तथा मी. कि. से. (M.K.S.) पद्धतियों में शक्ति के मात्रक हैं। शक्ति का विमीय सूत्र M1L2T-3 होता है। अतः यहाँ से स्पष्ट है कि 4 = 1, b = 2 तथा c = -3 होंगे।
F.P.S. पद्धति में M.K.S. पद्धति में
M1 = पाउण्ड M2 = किलोग्राम
L1 = फुट L2 = मीटर
T1 = सेकण्ड T2 = सेकण्ड
n1 = 550 × 32 फुट पाउण्डल/से. n2 = 1
∵ 1 अश्व शक्ति = 550 × 32 फुट पाउण्डल/से.
(2) किसी भौतिक राशि के सूत्र या समीकरण की सत्यता की जाँच करना-किसी भी विमीय समीकरण के दायीं ओर स्थित राशियों
की विमा बायीं ओर स्थित राशियों की विमा के समान होनी चाहिए। इस सिद्धान्त को विमीय समांगता का सिद्धान्त कहते हैं। इसलिए यदि किसी सूत्र की यथार्थता की परीक्षा करनी हो, तो उसके दायें पक्ष और बायें पक्ष की विमाएँ संगणित करके यह देखना चाहिए कि दोनों पक्षों की विमाएँ समान हैं या नहीं। यदि दोनों पक्षों की विमाएँ समान ने हों तो वह समीकरण सही नहीं हो सकता है। यथार्थ समीकरण के दोनों पक्षों की विमाओं का समान होना आवश्यक है।
(3) विभिन्न भौतिक राशियों में सम्बन्ध अर्थात् सूत्र स्थापित करना-यदि किसी भौतिक राशि के बारे में यह ज्ञात हो कि यह किन-किन राशियों पर निर्भर करती है तो विमीय सन्तुलन विधि द्वारा सम्बन्धित राशियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। इसके लिए सर्वप्रथम एक समीकरण लिखा जाता है, जो भौतिक राशि व अन्य राशियों में सम्बन्ध देता है। इसके बाद समीकरण के बायें पक्ष की विमा, दायें पक्ष की विमा के बराबर करके वांछित सूत्र प्राप्त किया जाता है।
प्रश्न 5.
मापन में त्रुटियों से क्या अभिप्राय है? त्रुटियों के संयोजन से त्रुटियाँ किस प्रकार परिवर्तित हो जाती हैं? समझाइये।
उत्तर:
प्रत्येक यंत्र के लिए तथा प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी भौतिक राशि को मापने के लिए यथार्थता की एक सीमा होती है। भौतिक राशि का बिल्कुल शुद्ध मापन सम्भव नहीं है। यही अनिश्चितता का सिद्धान्त होता है। मापन में यह अनिश्चितता त्रुटि कहलाती है। अर्थात् इसे इस प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं|
“किसी भौतिक राशि के वास्तविक मान एवं मापे गये मान के अन्तर को त्रुटि कहते हैं।”
मापन में उत्पन्न त्रुटियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है (A) क्रमबद्ध त्रुटियाँ (B) यादृच्छिक त्रुटियाँ (C) स्थूल त्रुटियाँ
त्रुटियों को संयोजन (Combination of Errors)
जब त्रुटिपूर्ण पाठ्यांकों (या त्रुटियों) का योग, व्यवकलन, गुणा या भाग जैसी गणितीय प्रक्रिया की जाती है तो भौतिक राशि के मापन में त्रुटियाँ जुड़ या घट जाती हैं। कुल त्रुटि ज्ञात करने हेतु त्रुटियों का संयोजन, प्रयुक्त गणितीय प्रक्रिया पर निर्भर करता है।
(i) राशियों के योग में त्रुटि (Error in sum of the quantities)— त्रुटियों के संयोजन के लिए हम Δ तथा b दो राशियाँ लेते हैं, जिनके मापित मान क्रमशः (Δ ± Δa) एवं (b ± Δb) हैं।
माना x = a + b ………….. (1)
माना Δa = राशि a की परम त्रुटि
Δb = राशि b की परम त्रुटि
Δx राशियों के योग के लिए परम त्रुटि
समीकरण (1) से x + Δx = (Δ ± Δa) + (b ± Δb)
= Δ ± Δa + b ± Δb
= (a + b) ± Δa ± Δb
या x + Δx = x ± Δa ± Δb
Δx = ± Δa ± Δb
जहाँ Δx = ± Δa ± Δb के चार सम्भव मान (+ Δa + Δb), (- Δa – Δb), (+Δa – Δb) एवं (- Δa + Δb) होंगे।
इस प्रकार x के मान में अधिकतम परम त्रुटि Δx = ± (Δa + Δb) से निर्धारित होती है।
(ii) राशियों के व्यवकलन में त्रुटि (Error in difference of the quantities) –
माना x = a – b
माना Δa = a के लिए परमं त्रुटि
Δb = b के लिए परम त्रुटि
Δx = x के लिए परम त्रुटि
अतः x ± Δx = (a ± Δa) – (b ± Δb)
= (a – b) ± Δa ∓ Δb
x + Δx = x ± a ∓ Δb (मान रखने पर)
± Δx = ± Δa ∓ Δb
Δx के चार सम्भावित मान होंगे-(+ Δa – Δb), (- ΔΔ + Δb), (- Δa – Δb), (+ Δa + Δb)
इसी प्रकार व्यवकलन में भी अधिकतम परम त्रुटि
Δx = ± (Δa + Δb)
स्पष्टतः योगफल एवं व्यवकलन प्रक्रिया में अधिकतम परम त्रुटि (Δa + Δb) ही होती है।
अतः दो रशियों के योग या व्यवकलन में अधिकतम परम त्रुटि उन अलग-अलग राशियों की परम त्रुटियों के योग के बराबर होती है।
(iii) राशियों के गुणनफल में त्रुटि (Error in product of quantities) –
मानी x = a × b
माना Δa = a के लिए परम त्रुटि
Δb = b के लिए परम त्रुटि
Δx = a व b के गुणनफल के लिए परम त्रुटि
अतः x ± Δx = (Δ ± Δa) × (b ± Δb)
(iv) राशियों के भाग में त्रुटि (Error in division of quantities):
माना x = \(\frac{a}{b}\)
माना Δa = a के लिए परम त्रुटि
Δb = b के लिए परम त्रुटि
Δx = a व b के भाग के लिए परम त्रुटि ,
अतः दो राशियों के गुणन या भागफल की प्रक्रिया में आपेक्षिक त्रुटियों का अधिकतम मान उन अलग-अलग राशियों के आपेक्षिक त्रुटियों के योग के बराबर होता है।
(v) दो राशियों की घातों के कारण त्रुटि (Error in quantity raised to some power) –
माना x = \(\frac{a^{n}}{b^{m}}\)
दोनों तरफ का log लेने पर
log x = log an – log bm
या log x = n log a – m log b
दोनों तरफ का अवकलन करने पर
\(\frac{d x}{x}=n \frac{d a}{a}-m \frac{d b}{b}\)
प्रश्न 6.
सार्थक अंकों को ज्ञात करने के क्या नियम हैं? प्रत्येक नियम को उदाहरण सहित समझाइये।।
उत्तर:
सार्थक अंक-प्रत्येक राशि को उसी सत्यता तक व्यक्त करना चाहिये जितनी सत्यता से हम उसकी माप कर सकते हैं। जितने अंकों से किसी राशि को निश्चित रूप से व्यक्त किया जा सकता है उनकी संख्या को सार्थक अंकों की संख्या कहते हैं। किसी संख्या में से दशमलव चिन्ह हटाकर तथा बायीं ओर के शून्य (यदि कोई हो) को छोड़कर जो संख्या प्राप्त होती है उसके अंकों की संख्या सार्थक अंक कहलाती है।
निम्न उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जायेगी–
- 123.64 में सार्थक अंक 5 हैं, 203.004 में सार्थक अंक 6 हैं।
- 2000 में सार्थक अंक 4 हैं, .00031 में सार्थक अंक 2 हैं।
- 1.00031 में सार्थक अंक 6 हैं, 20.00 में सार्थक अंक 4 हैं।
- .04050 में सार्थक अंक 4 हैं।
किसी व्यंजक में सार्थक अंक की संख्या ज्ञात करने के नियम निम्न हैं
- प्रथम नियम- सभी अ-शून्य अंक (Non-zero digit). सार्थक अंक होते हैं।
उदाहरणार्थ- राशि x = 8696 में सार्थक अंक चार हैं तथा राशि x = 636 में सार्थक अंक तीन हैं। - दितीय नियम- दो अ-शून्य अंकों (Non-zero digit) के मध्ये आने वाले सभी शून्य अंक सार्थक अंक की गणना में लिये जाते हैं।
उदाहरणार्थ- राशि x = 2003 में सार्थक अंकों की संख्या चार तथा राशि x = 2.02304 में सार्थक अंकों की संख्या 6 है। - तृतीय नियम- यदि संख्या का आंकिक मान 1 से कम हो तो दशमलवे के दाहिनी ओर तथा अ-शून्य अंक के बायीं ओर वाले शून्य सार्थक अंक नहीं होते हैं।
उदाहरणार्थ- राशि x = 0.00046 में सार्थक अंकों की संख्या दो है तथा राशि x = 1.00046 में (नियम 2) से सार्थक अंकों की संख्या 6 है। - चतुर्थ नियम- दशमलव बिन्दु के अन्तिम अ-शून्य अंक के पश्चात् दाहिनी ओर आने वाले सभी शून्य अंक सार्थक अंक की गणना में लिये जाते हैं।
उदाहरणार्थ- राशि x = 0.000600 में सार्थक अंकों की संख्या 3 है। राशि x = 0.0060 में सार्थक अंकों की संख्या 2 है।। - पंचम नियम- अ-शून्य अंक के दाहिनी ओर स्थित सभी शून्य सार्थक अंक नहीं होते हैं।
उदाहरणार्थ- राशि x = 20000 में सार्थक अंकों की संख्या 1 है तथा राशि x = 4650000 में सार्थक अंकों की संख्या 3 है। - षष्ठम नियम- अन्तिम अ-शून्य राशि के दाहिनी ओर आने वाले सभी शून्य सार्थक अंक लिये जाते हैं यदि उन्हें मापन द्वारा प्राप्त किया हो।
उदाहरणार्थ- दो बिन्दुओं के बीच की दूरी x = 1.060 सेमी. है तो इसमें सार्थक अंकों की संख्या 3 है। यदि दो स्थानों के बिन्दुओं के मध्य दूरी x = 4050 मीटर मापी गयी हो तो इसे 4.050 किलोमीटर अथवा 4.050 × 105 सेमी. लिखा जा सकता है। यहाँ प्रत्येक स्थिति में सार्थक अंकों की संख्या 4 है। - सप्तम नियम- किसी भौतिक राशि के मापन में प्राप्त 10 की घातों को सार्थक अंकों में नहीं गिना जाता है। जैसे x = 2.3 × 10-10 में सार्थक अंक 2 हैं तथा x = 4.5 × 1015 में सार्थक अंक 2 हैं।
- अष्टम नियम- भौतिक राशि के मापन से प्राप्त राशि में दशमलव की स्थिति बदलने से सार्थक अंकों की संख्या नहीं बदलती।
संख्या 6.456, 64.56, 645.6 या 6456 प्रत्येक स्थिति में सार्थक अंकों की संख्या 4 है।
प्रश्न 7.
किसी अंक को पूर्णाकित करने के क्या नियम हैं? प्रत्येक नियम को उदाहरण देते हुए समझाइये।
उत्तर:
किसी संख्या को सार्थक अंकों वाली संख्या में परिवर्तित करने | के लिये समीपता (Approximation) के सिद्धान्त का प्रयोग करते हैं। इसके लिये निम्न नियमों का पालन किया जाता है
(1) प्रथम नियम- जिस अंक को पूर्णांकित करना है यदि उसके दायीं (Right) ओर का अंक 5 से कम है तो पूर्णांकित करते समय यह संख्या अपरिवर्तित रहेगी।
उदाहरणार्थ- 15.43 में 4 को पूर्णांकित करना है तो इसके दायीं ओर की संख्या 3 है जो कि 5 से कम है। अतः यह अंक 4 अपरिवर्तित रहेगा पूर्णांकित अंक 15.4 होगा। इसी प्रकार से 5.33 को पूर्णांकित करने पर 5.3 प्राप्त होगा।
(2) द्वितीय नियम- जिस संख्या को पूर्णांकित करना है यदि उसके बाद आने वाला अंक 5 से अधिक है तो पूर्णांकित करने वाले अंक में 1 जोड़ देंगे। संख्या 5.89 में अंक 8 को पूर्णांकित करना है। तो यह संख्या 5.9 होगी क्योंकि 8 के पश्चात् आने वाली संख्या 9 है जो 5 से बड़ी है। इसी प्रकार 7.66 को पूर्णांकित कर 7.7 लिखा जायेगा तथा 14.628 में 2 को पूर्णांकित करने पर 14.63 प्राप्त होगा।
(3) तृतीय नियम- यदि पूर्णांकित किया जाने वाला अंक 5 है। एवं इस अंक के पश्चात् शून्य आता है तो पहली वाली संख्या अपरिवर्तित रहेगी। यदि संख्या शून्य से बड़ी है तो पूर्णांकित करने के लिये संख्या में 1 जोड़ देंगे। उदाहरणार्थ- x = 3.450 को 3.4 लिखा जायेगा क्योंकि पूर्णाकित किये जाने वाले अंक 5 के पश्चात् शून्य है। अतः संख्या अपरिवर्तित रहेगी।
(4) चतुर्थ नियम- यदि पूर्णांकित किया जाने वाला अंक 5 है। एवं इस अंक से पहले की संख्या विषम (odd) है तो उसमें 1 जोड़ देंगे। यदि यह संख्या सम है तो वह अपरिवर्तित रहेगा।
उदाहरणार्थ – x = 4.750 को 4.8 लिखी जायेगा, जबकि 1 = 25.350 को 25.4 लिखा जायेगा,
x = 5.850 हो तो पूर्णांकित अंक 5.8 होगा,
x = 18.250 हो तो पूर्णांकित अंक 18.2 होगा।
प्रश्न 8.
विमीय विश्लेषण विधि के द्वारा किसी सुत्र की सत्यता की जाँच कैसे की जाती है? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
किसी भौतिक राशि के सूत्र या समीकरण की सत्यता की जाँच करना-किसी भी विमीय समीकरण के दायीं ओर स्थित राशियों
की विमा बायीं ओर स्थित राशियों की विमा के समान होनी चाहिए। इस सिद्धान्त को विमीय समांगता का सिद्धान्त कहते हैं। इसलिए यदि किसी सूत्र की यथार्थता की परीक्षा करनी हो, तो उसके दायें पक्ष और बायें पक्ष की विमाएँ संगणित करके यह देखना चाहिए कि दोनों पक्षों की विमाएँ समान हैं या नहीं। यदि दोनों पक्षों की विमाएँ समान ने हों तो वह समीकरण सही नहीं हो सकता है। यथार्थ समीकरण के दोनों पक्षों की विमाओं का समान होना आवश्यक है।
प्रश्न 9.
भौतिक विज्ञान के महत्त्व पर निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
भौतिक विज्ञान, विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है जिसके ज्ञान के अभाव में विज्ञान की अन्य शाखाओं का विकास सम्भव नहीं है, भौतिक विज्ञान का विज्ञान की सभी शाखाओं के विकास तथा समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
(i) रसायन विज्ञान में भौतिकी का महत्त्व (Physics in relation to Chemistry)-X- किरणों के विवर्तन, परमाणु की संरचना, रेडियो-एक्टिवता के आधार पर अनेक ठोसों की संरचनाओं का विस्तार से अध्ययन सम्भव हुआ है और अणुओं के बीच लगने वाले आन्तराण्विक बलों के आधार पर रासायनिक संरचना, बंधों के प्रकार आदि का अध्ययन सम्भव हुआ है।
(ii) जीव विज्ञान में भौतिकी का महत्त्व (Physics in relation to a Sciences)- इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के निर्माण से अनेक शारीरिक संरचनाओं का अध्ययन सम्भव हुआ है और प्रकाशीय सूक्ष्मदर्शी से अनेक जैविक प्रतिदर्शी का अध्ययन किया जाता है।
(iii) गणित में भौतिकी का महत्त्व (Physics in relation to Mathematics)- भौतिकी के सिद्धान्तों द्वारा अनेक गणितीय विधियों का विकास सम्भव हुआ है। तकनीकी विकास विशेष रूप से भौतिकी के अनुप्रयोग से सम्बन्धित है। भौतिकी के सिद्धान्तों एवं नियमों का उपयोग करके बहुत-सी युक्तियाँ विकसित की गई हैं तथा यंत्र और उपकरणों को बनाया गया है। इससे मानव जीवन अत्यन्त लाभान्वित और उन्नत हुआ है। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे
- परमाणु भट्टी तथा परमाणु बम का विकास नाभिकीय विखण्डन पर आधारित है।
- वायुयानों का उड़ना बरनौली सिद्धान्त पर आधारित है।
- डीजल इंजन, पेट्रोल इंजन, भाप इंजन आदि ऊष्मागतिकी के | नियमों पर आधारित हैं।
- रॉकेट का नोदन न्यूटन गति के दूसरे तथा तीसरे नियमों पर आधारित है।
- विद्युत का उत्पादने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है।
- रेडियो, टेलीविजन, फैक्स, वायरलैस, S.T.D., I.S.D. आदि विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण पर आधारित हैं।
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कह सकते हैं कि भौतिकी प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित है।
भौतिकी का समाज से सम्बन्ध (Physics in Relation to Society)
गत दशकों में, वैज्ञानिक खोजों पर आधारित विभिन्न उत्पादों ने मानव दिनचर्या का स्वरूप ही बदल दिया है। गत एक दशक में संचार एवं चिकित्सा क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों का श्रेय निश्चित तौर पर भौतिक विज्ञान को जाता है। कम्प्यूटर, इन्टरनेट, मोबाइल, ईव्यापार जैसी सभी सुविधाओं ने प्रचलित धारणाओं के स्वरूप को ही बदल दिया है। संचार के लिए ऑप्टिक फाइबर-केबल, प्रकाश के तन्तु के सिद्धान्त पर आधारित है। उपग्रह प्रक्षेपण, उनका रिमोट द्वारा नियंत्रण, उनके द्वारा प्राप्त | सूचनाओं का संकलन यह सभी भौतिक विज्ञान की ही देन है।
विद्युत उत्पादन का कार्य हो या इसके वितरण का, जल हो, थल हो या नभ हो, जहाँ जायेंगे भौतिक विज्ञान को निश्चित तौर पर अपने संग पायेंगे। दैनिक जीवन को सुखद बनाने वाले उपस्करों से लेकर राष्ट्र की सुरक्षा हेतु प्रयुक्त प्रौद्योगिकी के उपकरण सभी का आधार भौतिक विज्ञान ही है।
भौतिक विज्ञान का उपयोग मानव जीवन को बेहतर बनाने में किया जाता है। यदि इसका कहीं दुरुपयोग होता है तो यह दोष विषय ज्ञान का नहीं है बल्कि ज्ञान का उपयोग करने वाले व्यक्ति की प्रवृत्ति एवं उसकी विकृत सोच का है।
प्रश्न 10.
वृहत् दूरियों के मापन की लम्बन विधि को समझाइये। इसकी सहायता से आकाशीय पिण्ड का आकार ज्ञात करने की विधि को विस्तारपूर्वक समझाइये।
उत्तर:
वृहत् दूरिया का मापन (Measurement of Large DistΔnces)
बहुत बड़ी दूरियाँ (जैसे–चन्द्रमा की पृथ्वी से दूरी, किसी तारे की पृथ्वी से दूरी आदि) सीधे मीटर पैमाने या मापक टेप से नहीं नापी जा सकतीं। ऐसी स्थिति में लम्बन विधि का प्रयोग किया जाता है।
लम्बन का अर्थ-यदि हम एक वस्तु को अपने सामने रखें तथा बारी-बारी से अपनी बायीं व दायीं आँख बन्द करके इसे देखें, तो हम देखते हैं कि पृष्ठभूमि के सापेक्ष वस्तु की स्थिति बदलती हुई प्रतीत होती है। इसी को लम्बन (Parallel) कहते हैं। दोनों प्रेक्षण बिन्दुओं के बीच की दूरी को आधारक (Basis) कहते हैं। इसमें दोनों आँखों के बीच की दूरी आधारक है।
(i) लम्बन विधि या विस्थापन विधि (Parallax Method)बहुत बड़ी दूरियों का मापन हम लम्बन विधि से करते हैं।
चित्रानुसार किसी दूरस्थ ग्रह P की दूरी s ज्ञात करने के लिए हम इसे पृथ्वी पर दो अलग-अलग स्थितियों A व B से, एक ही समय पर देखते हैं। A एवं B के बीच की दूरी AB = b है। इन दो स्थितियों से ग्रह की प्रेक्षण दिशाओं के बीच का कोण (θ) माप लिया जाता है। ∠APB = θ लम्बन कोण या लाम्बनिक कोण कहलाता है।
ग्रह की पृथ्वी से दूरी बहुत अधिक है अतः \(\frac{b}{s}\) << 1, अत: कोण θ बहुत ही छोटा होता है। इस स्थिति में हम AB को केन्द्र P और त्रिज्या s वाले वृत्त का चाप b मान सकते हैं।
अतः \(\theta=\frac{A B}{s}=\frac{b}{s} \Rightarrow s=\frac{b}{\theta}\)
यहाँ पर θ रेडियन में है।
अतः आधार b और कोण θ ज्ञात होने पर 5 की गणना की जा सकती है।
(ii) आकाशीय पिण्ड का आकार : चन्द्रमा का व्यास (Size of Astronomical Object : Diameter of Moon)- लम्बन विधि से किसी ग्रह का आकार अथवा कोणीय व्यास निर्धारित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, चन्द्रमा के व्यास का निर्धारण किया जा सकता है। पृथ्वी के तल पर O प्रेक्षण बिन्दु है। यदि चन्द्रमा को दूरदर्शी द्वारा देखा जाये तब इसका प्रतिबिम्ब एक वृत्तीय चकती की भाँति बनता है। व्यास के विपरीत सिरों Δ व B द्वारा अन्तरित कोण o को मापा जाता। है। अर्थात् ∠ΔOB = α जो कि चन्द्रमा का कोणीय व्यास कहलाता है।
यदि पृथ्वी से चन्द्रमा की माध्य दूरी s हो तो
ΔB = sα
यदि α रेडियन तथा s मीटर तो चन्द्रमा का व्यास
D = ΔB
= sα
अतः s तथा α ज्ञात होने पर चन्द्रमा का व्यास (D) ज्ञात कर सकते हैं।
RBSE Class 11 Physics Chapter 1 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी कण का वेग V = A + Bt है तो A व B की विमाएँ क्या होंगी?
हल:
समीकरण के विमीय सन्तुलन के सिद्धान्तानुसार
A की विमा = वेग V की विमा = [LT-1]
Bt की विमा = वेग V की विमा
= वेग V की विमा इसलिए B की विमा
अतः A = [M0L1T-1] तथा B = [M0L1T-2]
प्रश्न 2.
सम्बन्ध F = a + bx, जहाँ F बल व x दूरी है, में a वे b की विमाएँ ज्ञात कीजिए।
हल:
समीकरण के विमीय सन्तुलन के सिद्धान्तानुसार
a की विमा = बल F की विमा = [M1L1T-2]
bx की विमा = बल F की विमा
अतः a = [M1L1T-2] तथा b = [M1L0T-2]
प्रश्न 3.
वास्तविक गैस की अवस्था के वाण्डर वाल्स गैस समीकरण \(\left[\mathbf{P}+\frac{\mathbf{a}}{\mathbf{V}^{2}}\right]\) = RT है। यहाँ P दाब, V आयतन, R गैस नियतांक एवं T ताप है। इस समीकरण में नियतांक a एवं b की विमाएँ ज्ञात कीजिए।
हल:
समीकरणों के विमीय सन्तुलन के सिद्धान्त के आधार पर दो एकसमान विमा वाली राशियों को ही एक साथ एक पद में जोड़ा या घटाया जा सकता है। अतः दी गई समीकरण में
\(\left(\frac{a}{\mathbf{V}^{2}}\right)\) की विमा = दाब P की विमा
⇒ (a) की विमा = P की विमा × v2 की विमा
⇒ (a) की विमा = दाब P की विमा × (आयतन V की विमा)2
= [ML-1T-2]L3]2
= [ML-1T-2] [L6]
= [ML5T-2] = [M1L5T-2]
तथा b की विमा = आयतन V की विमा = [L]3
= [L3] = [M0L3T0]
प्रश्न 4.
यदि गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियतांक G को मान MKS प्रणाली में 6.67 × 10-11 Nm2/kg2 है तो विमीय विधि से CGS प्रणाली में इसका मान ज्ञात कीजिए।
हल:
न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियतांक का विमीय सूत्र M-1L3T-2 है
अतः यहाँ से स्पष्ट है कि a = – 1, b = 3 तथा C = – 2 होगा।
अतः n2 = 6.67 × 108 डाइन सेमी.2/ग्राम2
प्रश्न 5.
पारे का घनत्व 13.6 gm/cm3 है। विमीय विधि से MKS पद्धति में इसका मान ज्ञात करो।
हल:
घनत्व की विमा का सूत्रे = [M1L-3] होता है।
इसलिए यहाँ पर a = 1, b = – 3, c = 0 है।
n1 = 13.6 ग्राम/सेमी 3
प्रश्न 6.
विमीय विधि से सूत्र Y = \(\frac{\mathbf{M g L}}{\pi \mathbf{r}^{2} l}\) की यथार्थता की जाँच करो।
हल:
बायीं ओर की राशि (Y) प्रत्यास्थता गुणांक की विमा = [M1L-1T-2] तथा सूत्र के दायीं ओर की विमायें इस प्रकार हैं
द्रव्यमान M की विमा = [M]
लम्बाई L की विमा = [L]
लम्बाई में वृद्धि (l) की विमा = [L]
गुरुत्व जनित त्वरण g = [LT-2]
त्रिज्या r की विमा = [L]
इसलिए दायें पद की विमा = \(\frac{[\mathrm{M}]\left[\mathrm{LT}^{-2}\right][\mathrm{L}]}{[\mathrm{L}]^{2}[\mathrm{L}]}\)
यहाँ पर π विमाहीन है = \(\frac{\left[\mathrm{ML}^{2} \mathrm{T}^{-2}\right]}{\left[\mathrm{L}^{3}\right]}\) = [M1L-1T -2]
सूत्र के दोनों ओर की विमायें समान हैं, अतः विमीय दृष्टि से यह सूत्र सत्य है।
प्रश्न 7.
विमीय विधि से सूत्र \(\frac{1}{2} m v\) = mgh की सत्यता की जाँच कीजिए।
हल:
समीकरण के बायें पक्ष की विमा
\(\frac{1}{2} \mathrm{mv}^{2}\) = [M1][LT-1]2
= [M1][L2T-2]
= [M1L2T-2] …………… (1)
समीकरण के दायें पक्ष की विमा
mgh = [M1] [L1T-2][L1]
= M1L2T-2
अतः समीकरण (1) तथा (2) से स्पष्ट है कि समीकरण के दोनों पक्षों की विमायें समान हैं। अतः समीकरण \(\frac{1}{2} \mathrm{mv}^{2}\) = mgh विमीय दृष्टि से सही है। अतः यह सत्य है।
प्रश्न 8.
एक केशनली में T पृष्ठ तनाव को द्रव भरा है। द्रव को पृष्ठ तनाव केशनली की त्रिज्या (r), केशनली में द्रव स्तम्भ की ऊँचाई (h), केशनली में भरे द्रव के घनत्व (d) तथा गुरुत्वीय त्वरण (g) पर निर्भर करता है। विमीय विधि से पृष्ठ तनाव का सूत्र स्थापित कीजिए।
हल:
T ∝ r
T ∝ h
T ∝ d
T ∝ g यहाँ पर केशनली की त्रिज्या (r), केशनली में द्रव्य स्तम्भ की ऊँचाई (h), दोनों ही लम्बाई हैं।
अतः
T ∝ (rh)adbgc
T = K (rh)adbgc ………….. (1)
यहाँ पर K एक नियतांक है एवं एक विमाहीन राशि है।
बायें पक्ष की विमा = [M1L0T-2]
दायें पक्ष की विमा = [L × L]a [ M1L-3T0]b [LT-2]c
= [Mb L2a – 3b + cT-2c]
अतः [M1L0T-2] = [Mb L2a – 3b + cT-2c] विमीय समांगता के नियम से बायें पक्ष की विमा = दायें पक्ष की विमा
[M1L0T-2] = [MbL2a – 3b + cT-2c]
तुलना करने पर
b = 1, 24 – 3b + 2 = 0 और – 2 = – 20 ∴ c = 1
b तथा c के मान रखने पर
2a – 3 × 1 + 1 = 0
2a = 2 ∴ a = 1
a, b तथा c के मान समीकरण (1) में रखने पर
T = K(rh)1d1g1 = Kr hdg
प्रयोगों द्वारा K = \(\frac{1}{2}\) प्राप्त होता है।
T = \(\frac{r h d g}{2}\)
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