Rajasthan Board RBSE Class 11 Physics Chapter 10 स्थूल पदार्थों के गुण
RBSE Class 11 Physics Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 11 Physics Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वह बल जिसके लगने से वस्तु अपना आकार या रूप बदल लेती है क्या कहलाता है?
उत्तर:
विरूपक बल कहलाता है।
प्रश्न 2.
वह गुण जिससे बाह्य बल हटा लिये जाने पर वस्तु अपने प्रारम्भिक स्वरूप को प्राप्त कर लेती है क्या कहलाता है?
उत्तर:
प्रत्यास्थता का गुण।
प्रश्न 3.
प्रतिबल का मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
N/m2 या Nm-2
प्रश्न 4.
विकृति की विमा लिखिए।
उत्तर:
विकृति विमाहीन राशि है।
प्रश्न 5.
ताँबा, इस्पात, काँच तथा रबर के प्रत्यास्थता गुणांकों को बढ़ते क्रम में लिखिए।
उत्तर:
रबर, काँच, ताँबा, इस्पात
प्रश्न 6.
प्रत्यास्थता सीमा में प्रतिबल एवं विकृति का अनुपात क्या कहलाता है?
उत्तर:
प्रत्यास्थता गुणांक
प्रश्न 7.
प्रत्यास्थता गुणांक का मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
Nm-2 या N/m2
प्रश्न 8.
अनुप्रस्थ विकृति एवं अनुदैर्ध्य विकृति का अनुपात क्या कहलाता है?
उत्तर:
पॉयसा अनुपात
प्रश्न 9.
क्या प्रतिबल सदिश राशि है?
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 10.
किसी ठोस को दबाने पर व किसी तार को खींचने पर परमाणुओं की स्थितिज ऊर्जा बढ़ेगी अथवा घटेगी ?
उत्तर:
दोनों स्थितियों में परमाणुओं की स्थितिज ऊर्जा बढ़ेगी।
प्रश्न 11.
जब हम किसी तार को खींचते हैं तो हमें कार्य क्यों करना पड़ता है?
उत्तर:
आन्तरिक प्रतिक्रिया बलों के विरुद्ध जो कार्य करना पड़ता है, वह प्रत्यास्थ ऊर्जा के रूप में एकत्रित हो जाता है।
प्रश्न 12.
दृढ़ता गुणांक का विमीय सूत्र क्या है?
उत्तर:
[M1L-1T-2]
RBSE Class 11 Physics Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रत्यास्थता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रत्यास्थता किसी वस्तु के पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्तु किसी विरूपक बल के द्वारा उत्पन्न आकार अथवा रूप के परिवर्तन का विरोध करती है। और जैसे ही विरूपक बल हटा लिया जाता है, वस्तु अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर लेती है।
प्रश्न 2.
प्रत्यानयन बल क्या होते हैं?
उत्तर:
प्रत्यानयन बल से तात्पर्य वह बल जो कि वस्तु को पूर्व अवस्था में लाते हैं अथवा लाने का प्रयत्न करते हैं।
प्रश्न 3.
प्रतिबल किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी वस्तु पर विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु विकृत होती है, परन्तु उसी समय प्रत्यास्थता के गुण के कारण वस्तु में बाह्य बल (विरूपक बल) के विपरीत दिशा में एक आन्तरिक बल उत्पन्न हो जाता है, जो वस्तु को पूर्वावस्था में लाने का प्रयास करता है। वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले आंतरिक प्रत्यानयन बल (Restoring force) को प्रतिबल कहते हैं।
साम्यावस्था की स्थिति में प्रत्यानयन बल (Restoring force) बाह्य विरूपक बल के ठीक बराबर परन्तु विपरीत होता है।
यदि किसी वस्तु के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल A पर बाह्य बल F लगाया गया हो तो, साम्यावस्था में,
प्रतिबल का मात्रक न्यूटन/मीटर2 तथा विमा M1L-1T2 है।
प्रश्न 4.
विकृति क्या होती है?
उत्तर:
बाहरी बलों के कारण किसी वस्तु के प्रति एकांक आकार में उत्पन्न परिवर्तन को विकृति कहते हैं।
विकृति का रूप आरोपित बल की दिशाओं पर निर्भर करता है। यह एक अनुपात है इसलिये इसकी कोई मात्रक तथा विमा नहीं होती है। विकृति तीन प्रकार की होती है-(a) अनुदैर्ध्य विकृति (b) आयतन विकृति (c) अपरूपण विकृति।।
प्रश्न 5.
प्रत्यास्थता सीमा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रत्यास्थ वस्तुयें विरूपक बल (Deforming force) के हटा लेने पर अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर लेती हैं। परन्तु वस्तुओं में यह गुण विरूपक बल के एक विशेष मान तक ही रहता है। यदि विरूपक बल का मान बढ़ाते जायें तो एक अवस्था ऐसी आयेगी जबकि बल को हटा लेने पर वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में नहीं लौटेगी। उदाहरण के लिये, यदि किसी दृढ़ आधार से लटके तार के निचले सिरे पर भार लटकाया जाये तो तार लम्बाई में बढ़ जाता है। भार को हटा लेने पर तार पुनः अपनी प्रारम्भिक लम्बाई में आ जाता है। यदि लटकाये गये भार को धीरे-धीरे बढ़ाया जाये तो एक अवस्था ऐसी आ जाती है कि भार हटा लेने पर तार अपनी प्रारम्भिक लम्बाई में नहीं लौटता बल्कि उसकी लम्बाई सदैव के लिये बढ़ जाती है। इस प्रकार, उसका प्रत्यास्थता का गुण नष्ट हो जाता है। किसी पदार्थ पर लगाये गये विरूपक बल की उस सीमा को जिसके अन्तर्गत पदार्थ का प्रत्यास्थता का गुण विद्यमान रहता है, उस पदार्थ की ‘प्रत्यास्थता की सीमा’ कहते हैं।
प्रश्न 6.
पॉयसा अनुपात क्या होता है?
उत्तर:
प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर अनुप्रस्थ (पाश्र्व) विकृति एवं अनुदैर्ध्य विकृति का अनुपात पदार्थ का पॉयसा अनुपात कहलाता है। इसे σ से व्यक्त करते हैं।
σ = \(\frac{d / \mathbf{D}}{l / \mathbf{L}}\)
प्रश्न 7.
हुक का नियम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर, प्रतिबल, विकृति के समानुपाती होता है।
अर्थात् प्रतिबल ∝ विकृत।
प्रश्न 8.
किसी ठोस की दृढ़ता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यदि पिण्ड पर ब्राह्य बल लगाया जाये तब ठोस के अणु अपनी स्थिति में ही बने रहने का प्रयत्न करते हैं, यही ठोसों की दृढ़ता कहलाती है। एक पूर्ण दृढ़ पिण्ड की दृढ़ता अनन्त होती है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता।
प्रश्न 9.
पूर्ण प्रत्यास्थ, प्लास्टिक एवं दृढ़ पिण्ड किन्हें कहते हैं? इनकी सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जो वस्तुयें विरूपक बल के हटाने से अपनी पूर्व अवस्था को पूर्णतः प्राप्त कर लेती हैं उन्हें पूर्ण प्रत्यास्थ (Perfectly elastic) कहते हैं। जैसे क्वार्ट्ज, फॉस्फर कांसा (phosphor bronze) आदि इसके विपरीत जो वस्तुयें विरूपक बल (Deforming force) को हटा लेने पर अपनी पूर्वावस्था में नहीं लौटती हैं बल्कि सदैव के लिये विरूपित हो जाती हैं उन्हें प्लास्टिक या पूर्ण सुघट्य (Perfectly Plastic) कहते हैं। जैसे मोम का टुकड़ा, गीली मिट्टी आदि वैसे प्रकृति में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जो पूर्णतः प्रत्यास्थ हो एक निश्चित सीमा तक के बल के लिए पदार्थों या वस्तुओं को पूर्णतः प्रत्यास्थ माना जा सकता है।
यदि किसी पदार्थ में अणु या परमाणुओं के मध्य दूरी निश्चित हो एवं बाह्य बल के प्रभाव में भी अपरिवर्तित हो तो वह दृढ़ पिण्ड कहलाता है।
RBSE Class 11 Physics Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रतिबल, विकृति, प्रत्यास्थता सीमा को समझाइये तथा पदार्थ में उत्पन्न होने वाली विभिन्न विकृतियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रतिबल (Stress)
जब किसी वस्तु पर विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु विकृत होती है, परन्तु उसी समय प्रत्यास्थता के गुण के कारण वस्तु में बाह्य बल (विरूपक बल) के विपरीत दिशा में एक आन्तरिक बल उत्पन्न हो जाता है, जो वस्तु को पूर्वावस्था में लाने का प्रयास करता है। वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले आंतरिक प्रत्यानयन बल (Restoring force) को प्रतिबल कहते हैं।
साम्यावस्था की स्थिति में प्रत्यानयन बल (Restoring force) बाह्य विरूपक बल के ठीक बराबर परन्तु विपरीत होता है।
यदि किसी वस्तु के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल A पर बाह्य बल F लगाया गया हो तो, साम्यावस्था में,
MKS पद्धति में प्रतिबल का मात्रक N m-2 (न्यूटन/मी.2) होता है तथा इसकी विमा M1L-1T-2 होती है।
जब किसी ठोस पर कोई बाह्य बल कार्य करता है तो इसकी विमाएं तीन प्रकार से बदल सकती हैं। अतः प्रतिबल तीन प्रकार के होते हैं।
(1) अनुदैर्ध्य प्रतिबल (Longitudinal stress)- जब किसी वस्तु जैसे बेलन पर उसकी लम्बाई के अनुदिश विरूपक बल लगाया जाता है, तो इस स्थिति में वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रतिक्रियात्मक बल को अनुदैर्ध्य प्रतिबल कहते हैं। बल की दिशा में लम्बाई में वृद्धि होती है तो प्रत्यानयन बल तनन प्रतिबल (Tensile stress) एवं संपीडित होने पर प्रत्यानयन बल संपीडन प्रतिबल (Compressive stress) कहलाता है। दोनों ही स्थितियों में बेलन की लम्बाई में अंतर हो जाता है। यदि बेलन पर लगाया गया बल F है व उसका काट क्षेत्र A है तो
(2) अभिलम्ब प्रतिबल (Normal stress)- जब किसी वस्तु के पृष्ठों के लम्बवत् दिशा में एक समान बल लगाया जाता है तो आयतन में परिवर्तन उत्पन्न होता है। आयतन परिवर्तन के विरुद्ध एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रतिक्रियात्मक अभिलम्ब बल या दाब को अभिलम्ब प्रतिबल कहते हैं। यदि वस्तु के आयतन में कमी होती है, तो लगने वाला प्रतिबल संपीडन प्रतिबल (Compressive stress) कहलाता है और यदि आयतन में वृद्धि होती है तो प्रतिबल तनन प्रतिबल (Tensile stress) कहलाता है।
(3) स्पर्शी प्रतिबल (Tangential stress) या अपरूपण प्रतिबल (Shearing stress)- यदि किसी पिण्ड की एक सतह को स्थिर रख (माना घर्षण बल के द्वारा) उस सतह के सम्मुख (विपरीत) सतह पर एक विरूपक स्पर्श रेखीय बल F लगाया जाए (जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है) तो पिण्ड की स्थिर सतह के लम्बवत् सतह कुछ कोण ϕ से घूम जाती है जिसके कारण पिण्ड की आकृति में परिवर्तन हो जाता है। स्पर्शीय बल के द्वारा अपरूपण उत्पन्न होता है, तो अपरूपण के विरुद्ध एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाला स्पर्शीय प्रतिक्रियात्मक बल अपरूपण प्रतिबल या स्पर्शी प्रतिबल कहलाता है। यह प्रतिबल वस्तु के रूप में परिवर्तन या ऐंठन के द्वारा उत्पन्न होता है। यदि स्पर्शीय बल F क्षेत्रफल A पर कार्यरत है तो
विकृति (Strain)
बाहरी बलों के कारण किसी वस्तु के प्रति एकांक आकार में उत्पन्न परिवर्तन को विकृति कहते हैं।
विकृति का रूप आरोपित बल की दिशाओं पर निर्भर करता है। यह एक अनुपात है इसलिये इसकी कोई मात्रक तथा विमा नहीं होती है। विकृति तीन प्रकार की होती है—(1) अनुदैर्घ्य विकृति (2) आयतन विकृति (3) अपरूपण विकृति।
(1) अनुदैर्ध्य विकृति (Longitudinal Strain)- बाह्य बल के प्रभाव में किसी वस्तु की एकांक लम्बाई में उत्पन्न परिवर्तन को तनन या अनुदैर्ध्य विकृति कहते हैं।
विरूपक बल की लम्बवत् में उत्पन्न रैखिक विकृति, पार्व विकृति कहलाती है।
उदाहरणार्थ- किसी तार को उसकी लम्बाई के अनुदिश खींचने पर उसकी लम्बाई तो बढ़ती है परन्तु उसका व्यास कम हो जाता है। लगाये गये बल की दिशा के लम्बवत् एकांक लम्बाई में होने वाले, परिवर्तन को पाश्विक विकृति (lateral strain) कहते हैं अर्थात्
(2) आयतन विकृति (Volume Strain)- बाह्य बल के प्रभाव में किसी वस्तु के एकांक आयतन में उत्पन्न परिवर्तन को आयतन विकृति कहते हैं।
यदि किसी वस्तु का प्रारम्भिक आयतन V तथा आयतन में होने वाला परिवर्तन ΔV है तो
(3) अपरूपण विकृति (Shearing Strain)- जब किसी वस्तु के एक पृष्ठ को स्थिर रखकर इसके विपरीत पृष्ठ पर स्पर्श रेखीय विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु की आकृति बदल जाती है तथा उसके आयतन या लम्बाई में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस स्थिति में उत्पन्न विकृति को अपरूपण विकृति कहते हैं। इस प्रकार की विकृति केवल ठोसों में ही होती है।
अपरूपण कोण या अपरूपण विकृति को चित्र में कोण के द्वारा दर्शाया है।
अतः अपरूपण विकृति (ϕ) = \(\frac{\Delta L}{L}\) ≅ tanϕ
प्रत्यास्थता सीमा (Elastic Limit)
प्रत्यास्थ वस्तुयें विरूपक बल (Deforming force) के हटा लेने पर अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर लेती हैं। परन्तु वस्तुओं में यह गुण विरूपक बल के एक विशेष मान तक ही रहता है। यदि विरूपक बल कां मान बढ़ाते जायें तो एक अवस्था ऐसी आयेगी जबकि बल को हटा लेने पर वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में नहीं लौटेगी। उदाहरण के लिये, यदि – किसी दृढ़ आधार से लटके तार के निचले सिरे पर भार लटकाया जाये तो तार लम्बाई में बढ़ जाती है। भार को हटा लेने पर तार पुनः अपनी प्रारम्भिक लम्बाई में आ जाता है। यदि लटकाये गये भार को धीरे-धीरे बढ़ाया जाये तो एक अवस्था ऐसी आ जाती है कि भार हटा लेने पर तार अपनी प्रारम्भिक लम्बाई में नहीं लौटता बल्कि उसकी लम्बाई सदैव के लिये बढ़ जाती है। इस प्रकार, उसका प्रत्यास्थता का गुण नष्ट हो जाता है। किसी पदार्थ पर लगाये गये विरूपक बल की उस सीमा को जिसके अन्तर्गत पदार्थ का प्रत्यास्थता का गुण विद्यमान रहता है, उस पदार्थ की ‘प्रत्यास्थता की सीमा’ कहते हैं।
प्रश्न 2.
प्रत्यास्थता, प्रत्यास्थता सीमा, पराभव बिन्दु तथा विभंजक बिन्दु समझाइए।
उत्तर:
किसी पदार्थ में विरूपक बलों के कारण उत्पन्न विकृति से प्रतिबल उत्पन्न होता है। विकृति व प्रतिबल में संबंध स्थापित करने के लिए प्रतिबल एवं विकृति के मध्य एक आलेख खींचते हैं। चित्र तनन प्रतिबल के अन्तर्गत किसी दिए गए पदार्थ (तार) के लिए प्रतिबल तथा विकृति के मध्य प्रायोगिक वक्र को प्रदर्शित करता है। भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिये प्रतिबले-विकृति वक्र भिन्न-भिन्न होते हैं। इन वक्रों की सहायता से हम यह समझ सकते हैं कि कोई दिया हुआ पदार्थ बढ़ते हुए लोड के साथ कैसे विरूपित होता है। वक्र में हम देख सकते हैं कि O से E के बीच संबंध रैखिक है अर्थात् इस क्षेत्र में हुक के नियम का पालन होता है। जब प्रत्यारोपित बले को हटा लिया जाता है तो वस्तुअपनी प्रारम्भिक अवस्था को पुनः प्राप्त कर लेती है। इस क्षेत्र में ठोस एक प्रत्यास्थ पदार्थ जैसा आचरण करता है।
बिन्दु E के बाद ग्राफ वक्रीय होने लगता है। इससे यह पता चलता है कि प्रतिबल, विकृति के अनुक्रमानुपाती नहीं रहता बल्कि विकृति अधिक हो जाती है। परन्तु बिन्दु Y तक पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण बना रहता है। वक्र में बिन्दु Y पराभव बिन्दु (Yield point) अथवा प्रत्यास्थ सीमा (Elastic limit) कहलाता है। प्रत्यास्थ सीमा, आनुपातिक सीमा के समीप ही होती है। पराभव बिन्दु के संगत प्रतिबल को पदार्थ का पराभव सामर्थ्य (Sy) कहते हैं।
बिन्दु Y से आगे, तार पर लटके भार को और बढ़ाने पर तार की लम्बाई में वृद्धि बहुत तेजी से होती है। इस दशा में भार को हटा लेने पर तार अपनी प्रारम्भिक लम्बाई में नहीं आता, बल्कि उसकी लम्बाई में कुछ स्थायी वृद्धि हो जाती है। वक्र का Y और U के बीच का भाग यह दर्शाता है। इस स्थिति में जब प्रतिबल शून्य हो जाए तब भी विकृति शून्य नहीं होती है। तब यह कहा जाता है कि पदार्थ में स्थायी विरूपण हो गया है। ऐसे विरूपण को प्लास्टिक विरूपण कहते हैं। ग्राफ पर बिन्दु U पदार्थ की चरम तनन सामर्थ्य (Su) है। इस बिन्दु के आगे प्रत्यारोपित बल को घटाने पर भी अतिरिक्त विकृति उत्पन्न होती है और बिन्दु B पर विभंजन हो जाता है। यदि चरम सामर्थ्य बिन्दु U एवं विभंजन बिन्दु B पास-पास हों तो पदार्थ को भंगुर कहते हैं। यदि वे अधिक दूरी पर हों तो पदार्थ को तन्य कहते हैं। कभी-कभी प्रत्यास्थता सीमा में .बाह्य बल हटा लेने पर भी पदार्थ तुरन्त अपनी पूर्वावस्था में नहीं आ पाता है बल्कि कुछ समय पश्चात् आता है। इस समय पश्चता को प्रत्यास्थ विश्रान्ति (Elastic relaxation) कहते हैं तथा समय को प्रत्यास्थ विश्रान्ति काल (Elastic relaxation time) कहते हैं।
यह भी देखा गया है कि जब पदार्थ पर बाह्य विरूपक बल बढ़ाया या घटाया जाता है तो पदार्थ में उत्पन्न विकृति आरोपित बल के साथ परिवर्तित नहीं हो पाती है। विकृति का आरोपित बल से पिछड़ना। प्रत्यास्थ शैथिल्य (Elastic hysteresis) कहलाता है। प्रत्यास्थ शैथिल्य के कारण ऊर्जा हानि होती है और यह ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है।
यदि चरम सामर्थ्य बिन्दु U तथा विभंजन बिन्दु B दूर हों तब ऐसे पदार्थ तन्य (ductile) कहलाते हैं। इन पदार्थों जैसे-सोना, चाँदी ताँबा इत्यादि के तार बनाये जा सकते हैं।
प्रश्न 3.
प्रतिबल, विकृति तथा प्रत्यास्थता गुणांक पदों को समझाइये। यंग प्रत्यास्थता गुणांक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रतिबल (Stress)
जब किसी वस्तु पर विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु विकृत होती है, परन्तु उसी समय प्रत्यास्थता के गुण के कारण वस्तु में बाह्य बल (विरूपक बल) के विपरीत दिशा में एक आन्तरिक बल उत्पन्न हो जाता है, जो वस्तु को पूर्वावस्था में लाने का प्रयास करता है। वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले आंतरिक प्रत्यानयन बल (Restoring force) को प्रतिबल कहते हैं।
साम्यावस्था की स्थिति में प्रत्यानयन बल (Restoring force) बाह्य विरूपक बल के ठीक बराबर परन्तु विपरीत होता है।
यदि किसी वस्तु के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल A पर बाह्य बल F लगाया गया हो तो, साम्यावस्था में,
MKS पद्धति में प्रतिबल का मात्रक N m-2 (न्यूटन/मी.2) होता है तथा इसकी विमा M1L-1T-2 होती है।
जब किसी ठोस पर कोई बाह्य बल कार्य करता है तो इसकी विमाएं तीन प्रकार से बदल सकती हैं। अतः प्रतिबल तीन प्रकार के होते हैं।
(1) अनुदैर्ध्य प्रतिबल (Longitudinal stress)- जब किसी वस्तु जैसे बेलन पर उसकी लम्बाई के अनुदिश विरूपक बल लगाया जाता है, तो इस स्थिति में वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रतिक्रियात्मक बल को अनुदैर्ध्य प्रतिबल कहते हैं। बल की दिशा में लम्बाई में वृद्धि होती है तो प्रत्यानयन बल तनन प्रतिबल (Tensile stress) एवं संपीडित होने पर प्रत्यानयन बल संपीडन प्रतिबल (Compressive stress) कहलाता है। दोनों ही स्थितियों में बेलन की लम्बाई में अंतर हो जाता है। यदि बेलन पर लगाया गया बल F है व उसका काट क्षेत्र A है तो
(2) अभिलम्ब प्रतिबल (Normal stress)- जब किसी वस्तु के पृष्ठों के लम्बवत् दिशा में एक समान बल लगाया जाता है तो आयतन में परिवर्तन उत्पन्न होता है। आयतन परिवर्तन के विरुद्ध एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रतिक्रियात्मक अभिलम्ब बल या दाब को अभिलम्ब प्रतिबल कहते हैं। यदि वस्तु के आयतन में कमी होती है, तो लगने वाला प्रतिबल संपीडन प्रतिबल (Compressive stress) कहलाता है और यदि आयतन में वृद्धि होती है तो प्रतिबल तनन प्रतिबल (Tensile stress) कहलाता है।
(3) स्पर्शी प्रतिबल (Tangential stress) या अपरूपण प्रतिबल (Shearing stress)- यदि किसी पिण्ड की एक सतह को स्थिर रख (माना घर्षण बल के द्वारा) उस सतह के सम्मुख (विपरीत) सतह पर एक विरूपक स्पर्श रेखीय बल F लगाया जाए (जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है) तो पिण्ड की स्थिर सतह के लम्बवत् सतह कुछ कोण ϕ से घूम जाती है जिसके कारण पिण्ड की आकृति में परिवर्तन हो जाता है। स्पर्शीय बल के द्वारा अपरूपण उत्पन्न होता है, तो अपरूपण के विरुद्ध एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाला स्पर्शीय प्रतिक्रियात्मक बल अपरूपण प्रतिबल या स्पर्शी प्रतिबल कहलाता है। यह प्रतिबल वस्तु के रूप में परिवर्तन या ऐंठन के द्वारा उत्पन्न होता है। यदि स्पर्शीय बल F क्षेत्रफल A पर कार्यरत है तो
विकृति (Strain)
बाहरी बलों के कारण किसी वस्तु के प्रति एकांक आकार में उत्पन्न परिवर्तन को विकृति कहते हैं।
विकृति का रूप आरोपित बल की दिशाओं पर निर्भर करता है। यह एक अनुपात है इसलिये इसकी कोई मात्रक तथा विमा नहीं होती है। विकृति तीन प्रकार की होती है—(1) अनुदैर्घ्य विकृति (2) आयतन विकृति (3) अपरूपण विकृति।
(1) अनुदैर्ध्य विकृति (Longitudinal Strain)- बाह्य बल के प्रभाव में किसी वस्तु की एकांक लम्बाई में उत्पन्न परिवर्तन को तनन या अनुदैर्ध्य विकृति कहते हैं।
विरूपक बल की लम्बवत् में उत्पन्न रैखिक विकृति, पार्व विकृति कहलाती है।
उदाहरणार्थ- किसी तार को उसकी लम्बाई के अनुदिश खींचने पर उसकी लम्बाई तो बढ़ती है परन्तु उसका व्यास कम हो जाता है। लगाये गये बल की दिशा के लम्बवत् एकांक लम्बाई में होने वाले, परिवर्तन को पाश्विक विकृति (lateral strain) कहते हैं अर्थात्
(2) आयतन विकृति (Volume Strain)- बाह्य बल के प्रभाव में किसी वस्तु के एकांक आयतन में उत्पन्न परिवर्तन को आयतन विकृति कहते हैं।
यदि किसी वस्तु का प्रारम्भिक आयतन V तथा आयतन में होने वाला परिवर्तन ΔV है तो
(3) अपरूपण विकृति (Shearing Strain)- जब किसी वस्तु के एक पृष्ठ को स्थिर रखकर इसके विपरीत पृष्ठ पर स्पर्श रेखीय विरूपक बल लगाया जाता है तो वस्तु की आकृति बदल जाती है तथा उसके आयतन या लम्बाई में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस स्थिति में उत्पन्न विकृति को अपरूपण विकृति कहते हैं। इस प्रकार की विकृति केवल ठोसों में ही होती है।
अपरूपण कोण या अपरूपण विकृति को चित्र में कोण के द्वारा दर्शाया है।
अतः अपरूपण विकृति (ϕ) = \(\frac{\Delta L}{L}\) ≅ tanϕ
प्रतिबल एवं विकृति के अनुपात को प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।
विकृति किसी दिये हुए पदार्थ के लिए इसका एक विशिष्ट मान होता। है। इसका मात्रक N/m2 होता है।
यंग का प्रत्यास्थता गुणांक
(Young’s Modulus of Elasticity)
प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर, अनुदैर्ध्य प्रतिबल तथा अनुदैर्घ्य विकृति के अनुपात को तार के पदार्थ का प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।
इसे Y द्वारा व्यक्त किया जाता है।
यंग प्रत्यास्थता गुणांक
यहाँ F = Mg तथा A = πr2 (यदि तार r त्रिज्या का बेलनाकार है), L तार की प्रारम्भिक लम्बाई तथा l लम्बाई में परिवर्तन है।
अतः Y = \(\frac{\mathrm{MgI}}{\pi \mathrm{r}^{2} l}\) न्यूटन/मी2 ………….(2)
गणितीय रूप से Y की परिभाषा को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं
यदि πr2 = 1 और l = L हो तो Y = Mg अर्थात् किसी पदार्थ का यंग का प्रत्यास्थता गुणांक उस बल के बराबर है, जो प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, एकांक क्षेत्रफल के तार की लम्बाई दुगुनी कर दे। (जबकि हुक का नियम लागू हो)।
व्यवहार में, उपर्युक्त परिभाषा संभव नहीं है, क्योंकि तार की लम्बाई में 1% वृद्धि होने पर ही प्रायः प्रत्यास्थता सीमा का उल्लंघन हो जाता है।
Y का SI मात्रक न्यूटन/मीटर2 तथा इसका विमीय सूत्र [ML-1T-2] है। यंग का प्रत्यास्थता गुणांक केवल ठोस पदार्थ के लिये निकाला जा सकता है, क्योंकि द्रव तथा गैस की अपनी कोई लम्बाई नहीं होती। इस प्रकार यह ठोस पदार्थ का ही अभिलक्षण है। ताप वृद्धि से प्रत्यास्थता गुणांक के मान में कमी आती है।
विभिन्न पदार्थों के यंग प्रत्यास्थता गुणांकों की तुलना (Comparison of Young’s Modulie for Different Substances)
रबर की अपेक्षा स्टील अधिक प्रत्यास्थ (Elastic) है।
प्रत्यास्थता किसी वस्तु के पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्तु किसी बाह्य विरूपक बल द्वारा उत्पन्न आकार अथवा रूप के परिवर्तन का विरोध करती है। स्पष्ट है कि किसी वस्तु के आकार अथवा रूप में एक नियत परिवर्तन लाने के लिये जितना अधिक बाह्य बल लगाना पड़े वह वस्तु उतनी ही अधिक प्रत्यास्थ कहलायेगी। यदि हम समान लम्बाई मोटाई के स्टील तथा रबर के तार लें तो उनमें समान लम्बाई वृद्धि करने के लिये स्टील के तार पर अधिक भार लटकाना होगी।
माना स्टील व रबड़ के दो तार समान लम्बाई L व समान त्रिज्या r के हैं। माना इन पर Mg भार लटकाने से स्टील के तार की लम्बाई में वृद्धिS तथा रबड़ की डोरी की लम्बाई में वृद्धि lR है। यदि स्टील व रबड़ के यंग प्रत्यास्थता गुणांक क्रमशः YS व YR हैं, तो
चूँकि रबड़ का तार स्टील के तार की अपेक्षा समान भार के लिये लम्बाई में अधिक खिंचता है अर्थात् lR > lS इसलिये YS >YR अर्थात् रबड़ की अपेक्षा स्टील अधिक प्रत्यास्थ है, क्योंकि इसके लिये यंग प्रत्यास्थता गुणांक YS का मान YR से अधिक है।
यदि हम विभिन्न पदार्थों की ठोस गोलियाँ बनाकर समान ऊँचाई से किसी कठोर फर्श पर गिरायें तो फर्श से टकराने पर जिस पदार्थ की गोली जितनी अधिक ऊँची उठेगी वह उतना ही अधिक प्रत्यास्थ होगा। उदाहरण के लिए, यदि हाथीदाँत, रबर तथा गीली मिट्टी की गोलियाँ एक ही फर्श पर गिरायी जाये तो फर्श पर टकराने के पश्चात् हाथीदाँत की गोली सबसे अधिक ऊँची उठती है, रबर की गोली उससे कम तथा गीली मिट्टी की गोली बिल्कुल नहीं। अतः हाथीदाँत रबर की अपेक्षा अधिक प्रत्यास्थ है तथा गीली मिट्टी लगभग पूर्णतयाः अप्रत्यास्थ है।
प्रश्न 4.
पॉयसा निष्पत्ति क्या होती है? इसकी सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
जब किसी तार पर उसकी लम्बाई के अनुदिश बल लगाते हैं तो उसकी लम्बाई बढ़ती है और लम्बवत दिशा में तार की मोटाई कम होती है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विरूपण बल लगाने से दो प्रकार की विकृतियाँ, बल की दिशा में अनुदैर्घ्य विकृति तथा बल के लम्बवत् दिशा में अनुप्रस्थ या पार्श्व विकृति, वस्तु में एक साथ उत्पन्न होती हैं। यदि अनुदैर्घ्य विकृति को α व अनुप्रस्थ या पाश्र्व विकृति को β से व्यक्त करें तो
प्रत्यास्थता सीमा में अनुप्रस्थ (पाश्र्व) विकृति (Lateral strain) एवं अनुदैर्ध्य विकृति (Longitudinal strain) का अनुपात पदार्थ का पॉयसा अनुपात कहलाता है। इसे σ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
यदि किसी पदार्थ पर लम्बाई L की दिशा में बल F लगाने से इसकी लम्बाई में परिवर्तन l तथा व्यास (मोटाई) D में परिवर्तन d हो तो
अनुदैर्ध्य विकृति α = \(\frac{l}{L}\)
पाश्र्व विकृति β = \(\frac{d}{\mathrm{D}}\)
σ = \(\frac{d / \mathrm{D}}{l / \mathrm{L}}=\frac{\mathrm{L} d}{l \mathrm{D}}\)
चूँकि पॉयसा अनुपात दो विकृतियों का अनुपात है अतः σ विमाहीन राशि होती है। पॉयसा अनुपात की सीमायें निम्न है।
सिद्धान्ततः पॉयसी अनुपात σ का मान – 1 से + 0.5 के मध्य होता है। सामान्यतः σ का मान 0.2 से 0.4 के मध्ये होता है।
(स्टील के लिये σ = 0.19, तांबे के लिये σ = 0.32 तथा पीतल के लिये σ = 0.26)
प्रश्न 5.
यंग प्रत्यास्थता गुणांक, दृढ़ता गुणांक तथा आयतन गुणांक की परिभाषा दीजिए। यंग प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात करने की सर्ल की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यंग का प्रत्यास्थता गुणांक
(Young’s Modulus of Elasticity)
प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर, अनुदैर्ध्य प्रतिबल तथा अनुदैर्घ्य विकृति के अनुपात को तार के पदार्थ का प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।
इसे Y द्वारा व्यक्त किया जाता है।
यंग प्रत्यास्थता गुणांक
यहाँ F = Mg तथा A = πr2 (यदि तार r त्रिज्या का बेलनाकार है), L तार की प्रारम्भिक लम्बाई तथा l लम्बाई में परिवर्तन है।
अतः Y = \(\frac{\mathrm{MgI}}{\pi \mathrm{r}^{2} l}\) न्यूटन/मी2 ………….(2)
गणितीय रूप से Y की परिभाषा को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं
यदि πr2 = 1 और l = L हो तो Y = Mg अर्थात् किसी पदार्थ का यंग का प्रत्यास्थता गुणांक उस बल के बराबर है, जो प्रत्यास्थता सीमा के भीतर, एकांक क्षेत्रफल के तार की लम्बाई दुगुनी कर दे। (जबकि हुक का नियम लागू हो)।
व्यवहार में, उपर्युक्त परिभाषा संभव नहीं है, क्योंकि तार की लम्बाई में 1% वृद्धि होने पर ही प्रायः प्रत्यास्थता सीमा का उल्लंघन हो जाता है।
Y का SI मात्रक न्यूटन/मीटर2 तथा इसका विमीय सूत्र [ML-1T-2] है। यंग का प्रत्यास्थता गुणांक केवल ठोस पदार्थ के लिये निकाला जा सकता है, क्योंकि द्रव तथा गैस की अपनी कोई लम्बाई नहीं होती। इस प्रकार यह ठोस पदार्थ का ही अभिलक्षण है। ताप वृद्धि से प्रत्यास्थता गुणांक के मान में कमी आती है।
विभिन्न पदार्थों के यंग प्रत्यास्थता गुणांकों की तुलना (Comparison of Young’s Modulie for Different Substances)
रबर की अपेक्षा स्टील अधिक प्रत्यास्थ (Elastic) है।
प्रत्यास्थता किसी वस्तु के पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्तु किसी बाह्य विरूपक बल द्वारा उत्पन्न आकार अथवा रूप के परिवर्तन का विरोध करती है। स्पष्ट है कि किसी वस्तु के आकार अथवा रूप में एक नियत परिवर्तन लाने के लिये जितना अधिक बाह्य बल लगाना पड़े वह वस्तु उतनी ही अधिक प्रत्यास्थ कहलायेगी। यदि हम समान लम्बाई मोटाई के स्टील तथा रबर के तार लें तो उनमें समान लम्बाई वृद्धि करने के लिये स्टील के तार पर अधिक भार लटकाना होगी।
माना स्टील व रबड़ के दो तार समान लम्बाई L व समान त्रिज्या r के हैं। माना इन पर Mg भार लटकाने से स्टील के तार की लम्बाई में वृद्धिS तथा रबड़ की डोरी की लम्बाई में वृद्धि lR है। यदि स्टील व रबड़ के यंग प्रत्यास्थता गुणांक क्रमशः YS व YR हैं, तो
चूँकि रबड़ का तार स्टील के तार की अपेक्षा समान भार के लिये लम्बाई में अधिक खिंचता है अर्थात् lR > lS इसलिये YS >YR अर्थात् रबड़ की अपेक्षा स्टील अधिक प्रत्यास्थ है, क्योंकि इसके लिये यंग प्रत्यास्थता गुणांक YS का मान YR से अधिक है।
यदि हम विभिन्न पदार्थों की ठोस गोलियाँ बनाकर समान ऊँचाई से किसी कठोर फर्श पर गिरायें तो फर्श से टकराने पर जिस पदार्थ की गोली जितनी अधिक ऊँची उठेगी वह उतना ही अधिक प्रत्यास्थ होगा। उदाहरण के लिए, यदि हाथीदाँत, रबर तथा गीली मिट्टी की गोलियाँ एक ही फर्श पर गिरायी जाये तो फर्श पर टकराने के पश्चात् हाथीदाँत की गोली सबसे अधिक ऊँची उठती है, रबर की गोली उससे कम तथा गीली मिट्टी की गोली बिल्कुल नहीं। अतः हाथीदाँत रबर की अपेक्षा अधिक प्रत्यास्थ है तथा गीली मिट्टी लगभग पूर्णतयाः अप्रत्यास्थ है।
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक
(Bulk Modulus of Elasticity)
एक गोलाकार ठोस वस्तु पर चारों ओर से समान बल लगाते हैं। (गोले को किसी द्रवे में डालकर तथा उस पर दाब लगाकर ऐसा कर सकते हैं) तो वस्तु के आयतन में कमी होती है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। ठोस के अन्दर उत्पन्न प्रंत्यानयन बल आयतन में कमी का विरोध करते हैं और जब बाह्य बल हटाते हैं तो वस्तु का आयतन पुनः पूर्ववत् हो जाता है। इस प्रत्यास्थता को आयतन प्रत्यास्थता कहते हैं। प्रत्यास्थता सीमा के अन्दर वस्तु के प्रतिबल तथा आयतन विकृति के अनुपात को पदार्थ का आयतन प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।
K = \(\frac{\mathrm{F} / \mathrm{A}}{-\Delta \mathrm{V} / \mathrm{V}}=\frac{-\mathrm{FV}}{\mathrm{A} \Delta \mathrm{V}}\) ………….. (1)
यहाँ प्रत्यानयन बल है जो संतुलन की स्थिति में बाह्य बल के बराबर है, A. गोलाकार ठोस वस्तु का क्षेत्रफल, ΔV आयतन में परिवर्तन तथा V प्रारम्भिक आयतन है। यहाँ ऋणात्मक चिह्न आयतन में कमी को व्यक्त करता है। लेकिन हम जानते हैं P = F/A होता है अतः । समी. (1) में आरोपित दाब रखने पर
K = \(\frac{-\Delta P V}{\Delta V}\) …………. (2)
K का मात्रक पास्कल या न्यूटन/मीटर होता है तथा विमा M1L-1T-2है।
संपीड्यता (β) (Compressibility)
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक के व्युत्क्रम को संपीड्यता गुर्णाक या संकुचन मापांक कहते हैं।
संपीड्यता (β) = \(\frac{1}{K}\)
गैसों की सम आयतनिक प्रक्रिया में संपीड्यता का मान शून्य, समदाबी प्रक्रिया में अनन्त और समतापी प्रक्रिया में इसका मान गैस के मूल दाब (P) का व्युत्क्रम होता है।
रुद्धोष्म प्रक्रिया में संपीड्यता का मान \(\frac{1}{\gamma P}\) होता है। यहाँ पर γ \(\frac{C_{p}}{C_{v}}\) है जो कि एक नियतांक है जिसका मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है।
अपरूपण प्रत्यास्थता गुणांक या दृढ़ता गुणांक
(Modulus or Rigidity) प्रत्यास्थता सीमा के अंदर स्पर्शीय प्रतिबल तथा अपरूपण विकृति के अनुपात को दृढ़ता गुणांक कहते हैं। इसे η से दर्शाते हैं।
इसमें आयतन स्थिर रहता है। केवल रूप में ही परिवर्तन होता है। चित्र में एक घन दिखाया गया है। जिसकी चित्र-स्पर्शीय बल F से उत्पन्न भुजा L है तथा निचला फलक अपरूपण विकृति से स्थिर कर दिया गया है। जब इसके ऊपरी पृष्ठ पर एक स्पर्श रेखीय बल F लगाया जाता है तो उस पृष्ठ के समान्तर सभी परतें (Layers) बल की दिशा में विस्थापित हो जाती हैं। इस दिशा में घन का नया विकृत रूप A’B’C’DP’Q’RS है। इस स्थिति में कोण 8 अपरूपण विकृति है। यदि कोण 8 का मान काफी छोटा हो तो
η का मात्रक न्यूटन/मी.2 होता है। अपरूपण प्रत्यास्थता गुणांक सामान्यत: यंग प्रत्यास्थता गुणांक से कम होता है। अधिकतर द्रवों के लिये η = \(\frac{1}{3} \mathrm{Y}\) होता है।
सर्ल के उपकरण में एक आयताकार धातु का फ्रेम होता है, जो चित्र में दर्शाये अनुसार एक दृढ़ आधार पर दो एक ही धातु के पतले एवं परस्पर समान्तर तारों A व B के द्वारा हुक P व Q पर लटका हुआ रहता है। स्प्रिट लेवल का एक सिरा फ्रेम P के साथ जुड़ा रहता है तथा दूसरा । भाग स्फैरोमीटर के पेचे के सिरे पर टिका रहता है। जब स्फैरोमीटर की चक्रिका को घुमाते हैं तो उसके ऊपर रखे स्प्रिट लेवल का सिरा भी उसी के अनुसार ऊपर-नीचे गति कर सकता है। P के हुक के साथ लटका भार W एक स्थिर भार है जो तार को ऐंठन रहित बनाता है। Q के हुक से एक हैंगर लटका रहता है।
जब तार A पर कोई भार रखते हैं तो उसकी लम्बाई भी बढ़ जाती है और स्प्रिट लेवल को स्वतंत्र सिरा नीचे की ओर चला जाता है। स्फैरोमीटर की चक्रिका को घुमाकर स्प्रिट लेवल को क्षैतिज अवस्था में ले आते हैं।
पहले और इस मान को पढ़कर स्फैरोमीटर द्वारा तय की गई दूरी ज्ञात कर ली जाती है। यही दूरी भार के अनुसार तार में बढ़ी हुई लम्बाई है।
विभिन्न भारों के लिये प्रयोग द्वारा उनके संपाती विस्तार ज्ञात कर लेते हैं। भार (M) को x-अक्ष के अनुरूप और विस्तार (l) को y-अक्ष के अनुरूप लेकर एक ग्राफ खींचते हैं।
माना कि तार A की प्रारम्भिक लम्बाई L है, लगाया गया द्रव्यमान M है, तार की त्रिज्या r और लम्बाई में विस्तार l है।
\(\frac{\mathbf{M}}{l}\) का मान ग्राफ से ज्ञात किया जाता है।
\(\frac{\mathbf{M}}{l}\) (ग्राफ से), r का मान स्क्रूगेज से व L का मान मीटर पैमाने से ज्ञात कर सूत्र में प्रतिस्थापित कर दिये गये तार के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात किया जाता है।
लगाया गया भार तार की प्रत्यास्थता सीमा से अधिक नहीं होना चाहिये।
प्रश्न 6.
प्रत्यास्थ प्रतिबल की परिभाषा दीजिये। यदि किसी तार को बाहर से बल लगाकर उसकी लम्बाई में वृद्धि की जाये तो सिद्ध कीजिए कि तार के प्रति एकांक आयतन पर किया गया कार्य = \(\frac{1}{2}\) × प्रतिबल × विकृति।
उत्तर:
साम्यावस्था में पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम अथवा शून्य होती है। परन्तु जब पिण्ड पर बाह्य बल लगाया जाता है तो पिण्ड में आन्तरिक प्रतिक्रियात्मक बल पैदा होता है जो अवस्था परिवर्तन का विरोध करता है। बाह्य बल द्वारा आन्तरिक प्रतिक्रियात्मक बल के विरुद्ध किया गया कार्य पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा को बढ़ा देता है। यह ऊर्जा ही प्रत्यास्थ ऊर्जा के रूप में जानी जाती है।
जब हम किसी तार को खींचते हैं तो हम अन्तरा परमाणु बलों के विरुद्ध कुछ कार्य करते हैं जो कि तार में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। माना कि L लम्बाई के तार पर बल F लगाने से उसकी लम्बाई में वृद्धि l हो जाती है। प्रारम्भ में तार में आन्तरिक बल शून्य था, परन्तु लम्बाई में वृद्धि होने पर आन्तरिक बल शून्य से बढ़ कर आरोपित बल F के बराबर हो जाता है। इस प्रकार तार की लम्बाई में l वृद्धि के लिए औसत आन्तरिक बल
\(\frac{0+F}{2}=\frac{F}{2}\)
अतः तार पर किया गया कार्य।
W = औसत बल × लम्बाई में वृद्धि = \(\left(\frac{1}{2} \mathrm{F}\right) l\)
यही तार में संचित प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा U है।
∴ U = \(\frac{1}{2}\) Fl
यदि तार की प्रारम्भिक लम्बाई L एवं अनुप्रस्थ काट A हो तब उपरोक्त समीकरण को पुनः लिखने पर
U = \(\frac{1}{2}\) (F/A) × (l/L) × LA
= \(\frac{1}{2}\) (प्रतिबल) × विकृति × तार का आयतन
∴ तार के प्रति एकांक आयतन में संचित प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा
u = \(\frac{1}{2}\) प्रतिबल × विकृति
या प्रतिबल = Y × विकृति
∴ u = \(\frac{1}{2}\) यंग प्रत्यास्थता गुणांक × विकृति2
RBSE Class 11 Physics Chapter 10 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक तार में 4 × 10-4 रेखीय विकृति उत्पन्न करने से 4.8 × 107 N m-2 का प्रतिबल उत्पन्न होता है। तार के पदार्थ को यंग प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है
प्रश्न 2.
हिन्द महासागर की औसत गहराई लगभग 3 km है। महासागर की तली में पानी के भिन्नात्मक संपीडन \(\frac{\Delta \mathbf{V}}{\mathbf{V}}\) की गणना कीजिए, दिया है पानी का आयतन गुणांक 2.2 × 109 vm-2 (g = 10 ms-2)
हल:
दिया है| हिन्द महासागर की गहराई h = 3 km = 3000 m
पानी का आयतन प्रत्यास्थता गुणांक
K = 2.2 × 109 N/m2
पानी का घनत्व d = 1 × 103 किग्रा./मी.2
प्रश्न 3.
एक 2 mm व्यास तथा 0.5 m लम्बाई के तार को एक सिरे पर कस कर दूसरे सिरे पर 0.8 rad से मरोड़ा जाता है। तार की सतह पर अपरूपण विकृति ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है
D = 2 mm
त्रिज्या r = \(\frac{D}{2}\) = 1 mm = 1 × 10-3 m
l = 0.5 m
θ = 0.8 rad.
ϕ = ?
∵ अपरूपण विकृति
ϕ = \(\frac{r}{l}\) θ
ϕ = \(\frac{1 \times 10^{-3}}{0.5}\) × 0.8 2
ϕ = 1.6 × 10-3 rad.
ϕ = 1.6 × 10-3 × \(\frac{180}{3.14}\) = 0.092°
प्रश्न 4.
ताँबे का तार 2.2 m लम्बा तार तथा इस्पात का एक 1.6 m लम्बा तार जिनमें दोनों के व्यास 3.0 mm हैं, सिरे से जुड़े हुए हैं। जब इसे एक भार से तनित किया गया तो कुल विस्तार 0.7 mm हुआ। लगाए गये भार का मान ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है
L1 = 2.2 m, L2 = 1.6 m
r1 = \(\frac{3}{2}\) mm = 1.5 × 10-3 m,
r2 = 1.5 × 10-3 m
F1 = F2 = F
F = Mg = ?
Δl1 + Δl2 = 0.7 mm = 0.7 × 10-3 m
Y1 = 1 × 1011 N/m2
Y2 = 2 × 1011 N/m2
प्रश्न 5.
एक 5 मी. लम्बी फौलाद की छड़ दो दृढ़ आधारों के बीच कसी हुई है। फौलाद का रेखीय प्रसार गुणांक = 12 × 10-6/ °C तथा Y = 2 × 1011 Nm-2। यदि ताप में 40°C की वृद्धि हो जाए तो छड़ में उत्पन्न प्रतिबल ज्ञात करो।
हल:
दिया है
L = 5 m
d. = 12 × 10-6/°C
Y = 2 × 1011 Nm-2
Δt = 40°C
प्रतिबल \(\frac{F}{A}\) = ?
प्रश्न 6.
एक mm परिच्छेद तथा 2 m लम्बे तार में 0.1 mm वृद्धि उत्पन्न करने के लिए कितना कार्य करना पड़ेगा?
हल:
दिया है
W = 1011 × \(\frac{1}{2}\) × 10-14
W= 0.5 × 10-3 J
W = 5 × 10-4 J
प्रश्न 7.
जब एक रबड़ की डोरी खींची जाती है तब आयतन में परिवर्तन उसके रूप में परिवर्तन की अपेक्षा उपेक्षीणीय है। रबड़ के लिए पॉइसा निष्पत्ति का परिकलन कीजिए।
हल:
प्रश्न 8.
रबड़ की एक ठोस गेंद को 200 m गहरी चिलका झील के ऊपरी सतह से उसकी तली तक ले जाने में गेंद के आयतन में 0.1 प्रतिशत की कमी हो जाती है। झील के जल का घनत्व 1.0 × 103 Kg m-3 है। रबड़ के आयतन प्रत्यास्थता गुणांक का मान ज्ञात कीजिए। (g = 10 m s-2)
हल:
दिया है
प्रश्न 9.
सीसे के 50 cm भुजा के एक वर्गाकार स्लैब पर, जिसकी मोटाई 10 cm है, की पतली फलक पर 9.0 × 104 N का एक अपरूपक बल लगा है। दूसरा पतला फलक फर्श से दृढ़तापूर्वक चिपका हुआ है। ऊपरी फलक कितना विस्थापित हो जावेगा?
हल:
प्रश्नानुसार, दिए गए सीसे के स्लैब को निम्नानुसार व्यक्त कर सकते हैं
प्रश्न 10.
4.7m लम्बे व 3.0 × 10-5 m2 अनुप्रस्थ काट के स्टील के तार तथा 3.5 m लम्बे व 4.0 × 10-5 m2 अनुप्रस्थ काट के ताँबे के तार पर दिए गये समान परिमाण के भारों को लटकाने पर उनकी लम्बाई में समान वृद्धि होती है। स्टील तथा ताँबे के यंग प्रत्यास्थता गुणांकों में क्या अनुपात है?
हल:
L1 = 4.7 m, L2 = 3.5 m
A1 = 3 × 10-5 m2, A2 = 4 × 10-5 m2
F1 = F2 = F= Mg
Δl1 = Δl2
\(\frac{Y_{1}}{Y_{2}}=\frac{18.8}{10.5}=1.79 \approx 1.8\)
Y1 : Y2 = 1.8 : 1
प्रश्न 11.
दो तार एक ही धातु के बने हुए हैं। प्रथम तार की लम्बाई द्वितीय तार की लम्बाई की आधी है तथा उसका व्यास दुसरे तारे के व्यास का दुगुना है। यदि दोनों तारों पर समान भारे लटकाया जाये तो उनकी लम्बाइयों में हुई वृद्धि का क्या अनुपात होगा?
हल:
दिया है
प्रश्न 12.
एक पदार्थ 109 Nm-2 के प्रतिबल से टूट जाता है। यदि पदार्थ का घनत्व 3 × 103 kg m-3 हो तो उससे बने तार की वह लम्बाई ज्ञात कीजिए जिससे वह तार लटकाये जाने पर स्वतः ही अपने भार से टूट जाये।
हल:
दिया है- प्रतिबल = 109 Nm
घनत्व d= 3 × 103 Kg m-3
तार का द्रव्यमान M = Vd
M = πr2 Ld
तार का भार = Mg
= πr2 Ldg
तार के स्वयं के भार के कारण प्रतिबल
\(=\frac{\mathrm{Mg}}{\pi r^{2}}\)
\(=\frac{\pi r^{2} \mathrm{L} d g}{\pi r^{2}}\)
प्रतिबल = Ldg
अतः तार की लम्बाई जिससे तार स्वतः अपने भार के कारण टूट जाता है।
प्रश्न 13.
एक ही धातु के दो तारों की त्रिज्याओं का अनुपात 2: 1 है। इनको समान बल आरोपित करके खींचा जाए तो उनमें उत्पन्न प्रतिबलों का अनुपात क्या होगा?
हल:
दिया है- y1 = y2 धातु समान
r1 : r2 = 2 : 1
प्रश्न 14.
किसी दृढ़ आधार से 2 m लम्बे तथा 3 g स्टील तार के द्वारा 2.5 kg भार लटकाया जाता है। स्टील के तार में 2.5 mm की लम्बाई में वृद्धि प्रेक्षित होती है। यदि स्टील के तार का घनत्व 7.8 × 103 kg m-3 हो तो उसके पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है- L= 2m
ΔL = 2.5 mm = 2.5 × 10-3 m
M = 2.5 kg
स्टील के तार का द्रव्यमान m = 3g = 3 × 10-3 kg
d = 7.8 × 103 kg m-3
तार का द्रव्यमान m = πr2Ld
प्रश्न 15.
0.8 cm अनुप्रस्थ काट की एक ताँबे की छड़ को दोनों ओर दृढ़तापूर्वक कस दिया जाता है। यदि छड़ का ताप 20°C कम कर दिया जाये तो छड़ में उत्पन्न तनाव को परिकलन कीजिये। ताँबे का यंग प्रत्यास्थता गुणांक 11 × 1010 Nm-2 तथा प्रसार गुणांक 17 × 10-6/°C है।
हल:
दिया है
A = 0.8 cm2
A = 0.8 × 10-4 m2
Δt = 20°C
F = ?
Y = 11 × 1010 Nm-2
α = 17 × 10-6/°C
चूँकि ΔL = L α Δt
\(\frac{\Delta L}{L}\) = α Δt
Y = \(\frac{\mathrm{F} / \mathrm{A}}{\left(\frac{\Delta \mathrm{L}}{\mathrm{L}}\right)}\)
Y = \(\frac{\mathrm{F}}{\mathrm{A} \alpha \Delta t}\)
F = YAα Δt
F = 11 × 1010 × 0.8 × 10-4 × 17 × 10-6 × 20
F = 11 × 16 × 17
F = 176 × 17 = 2992 N
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