Rajasthan Board RBSE Class 11 Physics Chapter 6 गुरुत्वाकर्षण
RBSE Class 11 Physics Chapter 6 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 11 Physics Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कृत्रिम उपग्रह पर भारहीनता अनुभव होती है लेकिन चन्द्रमा पर क्यों नहीं ?
उत्तर:
कृत्रिम उपग्रह का स्वयं का द्रव्यमान कम होने के कारण प्रभावी गुरुत्वाकर्षण नगण्य है। चन्द्रमा में अधिक द्रव्यमान होने के कारण उसके स्वयं का गुरुत्व
बल लगने से भारहीनता महसूस नहीं होती।
प्रश्न 2.
किसी उपग्रह को अपनी कक्षा में चक्कर लगाने के लिए कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
अभिकेन्द्र बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है। अतः ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती।
प्रश्न 3.
यदि पृथ्वी एक खोखला गोला हो तो इसकी पृष्ठ से 10 km गहराई पर किसी वस्तु का भार क्या होगा?
उत्तर:
खोखले गोले में g = 0 होने से वस्तु का भार W = mg से W = 0 अर्थात् शून्य होगा।
प्रश्न 4.
समुद्र में ज्वार-भाटा क्यों उत्पन्न होता है?
उत्तर:
चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण।
प्रश्न 5.
पृथ्वी ध्रुवों पर चपटी क्यों है?
उत्तर:
अक्ष पर घूर्णन के कारण।
प्रश्न 6.
यदि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर वृत्तीय कक्षा में घूमती है। तो गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा किया गया कार्य क्या होगा?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल घूमने के लिये आवश्यक अभिकेन्द्र बल प्रदान करता है, जो गति के लम्बवत् होता है। अतः कार्य शून्य होगा।
प्रश्न 7.
1 kg Wwt. (किग्रा भार) में कितने न्यूटन होते हैं ?
उत्तर:
1 kg wt. (किग्रा. भार) = 1 × 9.8 = 9.8 न्यूटन
प्रश्न 8.
पृथ्वी तल से किसी वस्तु के लिये पलायन वेग का मान 11.2 km/s है। जब वस्तु क्षैतिज से 30° पर फेंकी जाये तो पलायन वेग का मान क्या होगा?
उत्तर:
पलायन वेग कोण पर निर्भर नहीं करता है।
प्रश्न 9.
चन्द्रमा पृथ्वी की तुलना में बहुत हल्का है, फिर ये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा गिरती क्यों नहीं ?
उत्तर:
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल, चन्द्रमा की गति के लम्बवत् होता है, अतः कार्य शून्य होगा।
प्रश्न 10.
10 ग्राम सोने का भार ध्रुवों पर भूमध्य रेखा की तुलना में अधिक होता है, क्यों ?
उत्तर:
क्योंकि वस्तु का भार W = mg
W ∝ g
ध्रुवों पर गुरुत्वीय त्वरण g अधिक है अतः ध्रुवों पर 10 gm सोने का भार अधिक होगा।
प्रश्न 11.
भारत द्वारा छोड़े गये प्रथम उपग्रह का नाम बताइये।
उत्तर:
आर्यभट्ट, 19 अप्रैल, 1975
प्रश्न 12.
गुरुत्वीय क्षेत्र की विमा लिखिये।
उत्तर:
[M0LT-2]
RBSE Class 11 Physics Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भार एवं द्रव्यमान में अन्तर समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु का भार उस पर कार्यरत गुरुत्वीय बल होता है और गुरुत्वीय त्वरण g के परिवर्तन से यह विभिन्न स्थानों पर भिन्न हो सकता है, W = mg वस्तु का द्रव्यमान m उसमें पदार्थ की मात्रा को बताता है जो कि नियत रहती है।
प्रश्न 2.
यदि पृथ्वी के कक्ष में घूमते हुये उपग्रह का द्रव्यमान किसी कारणवश दो गुना हो जाये तो, इसके आवर्तकाल पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
चूँकि
आवर्तकाल उपग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता अतः। उपग्रह के द्रव्यमान का मान दो गुना होने पर आवर्तकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 3.
क्या किसी कृत्रिम उपग्रह को ऐसी कक्षा में स्थापित किया जा सकता है कि वह सदैव राजस्थान की राजधानी जयपुर के ऊपर ही दिखायी देता रहे? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नहीं। क्योंकि भू-स्थिर उपग्रह (geo-stationary satellite) का आवर्तकाल 24 घण्टे होता है। इसके लिए उसकी कक्षा पृथ्वी के विषुवत रेखीय तल (equatorial plane) में होनी चाहिए। चूंकि जयपुर पृथ्वी के विषुवत् रेखीय तल पर स्थित नहीं है, अतः किसी कृत्रिम उपग्रह को जयपुर के ठीक ऊपर स्थिर नहीं देखा जा सकता।
प्रश्न 4.
सामान्यतया राकेट भूमध्य रेखीय तल में पश्चिम से पूर्व की ओर ही क्यों छोड़े जाते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी सदैव पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। इस कारण से रॉकेट को छोड़ने के लिए कम वेग की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 5.
सरल लोलक पर आधारित घड़ी को यदि पृथ्वी के केन्द्र पर रखें तो इसका आवर्तकाल क्या होगा? क्या घड़ी चलेगी?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र पर गुरुत्वीय त्वरण g = 0 अतः आवर्तकाल T = \(2 \pi \sqrt{\frac{l}{g}}\) = ∞
अतः घड़ी नहीं चलेगी।
प्रश्न 6.
हरित गृह प्रभाव के कारण यदि ध्रुवों की बर्फ पिघले तो पृथ्वी पर दिन अवधि पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
बर्फ पिघलने पर पृथ्वी के द्रव्यमान वितरण में परिवर्तन के कारण जड़त्व आघूर्ण बढ़ जायेगा। कोणीय संवेग संरक्षण से पृथ्वी का कोणीय वेग घट जायेगा तथा दिन की अवधि बढ़ जायेगी।
प्रश्न 7.
भिन्न-भिन्न देश अपनी संचार व्यवस्था के लिये संचार उपग्रह कक्षाओं में स्थापित करते हैं, क्या यह कक्षायें भिन्न होती हैं? समझाइए।
उत्तर:
नहीं, क्योंकि संचार उपग्रह का आवर्तकाल 24 घण्टे होता है, अर्थात् प्रत्येक देश के लिए यह समान होता है अतः भूमध्य रेखा पर 36000 km. त्रिंज्या वाली त्रिज्या होती है, अर्थात् भू-स्थिर उपग्रह होने के कारण सभी उपग्रहों की कक्षायें समान होती हैं।
प्रश्न 8.
यदि पृथ्वी स्वयं की अक्ष के सापेक्ष घूर्णन बन्द कर दे, तो गुरुत्वीय त्वरण के मान में, विषुवत रेखा व ध्रुवों पर क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
यदि पृथ्वी घूर्णन करती है तब
g’ = g – Rω2 cos2 λ.
यदि पृथ्वी स्वयं के अक्ष के सापेक्ष घूर्णन बन्द कर दे तब
λ = 0 तथा
g’ = g
अतः विषुवत रेखा एवं ध्रुवों पर गुरुत्वीय त्वरण समान होंगे। अर्थात् विषवत् रेखा पर गुरुत्वीय त्वरण बढ़कर ध्रुवों के समान हो जायेगा।
प्रश्न 9.
क्या कुछ ऐसे आकाशीय पिंड भी होते हैं, जिनके लिये गुरुत्वीय त्वरण का मान अनंत हो सकता है?
उत्तर:
हाँ, काला विविर (Black Hole) से कोई वस्तु पलायन नहीं कर सकती है अतः गुरुत्वीय त्वरण का मान अनन्त माना जा सकता है।
प्रश्न 10.
एक उपग्रह ग्रह के चारों ओर वृत्ताकार कक्षा में घूमता है। यदि उपग्रह पर गुरुत्वाकर्षण बल F हो तो अभिकेन्द्र बले क्या होगा?
उत्तर:
अभिकेन्द्र बल भी गुरुत्वाकर्षण बल के बराबर F होगा।
प्रश्न 11.
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक का S.I, पद्धति में मात्रक बताइए।
उत्तर:
न्यूटन मी./किग्रा. या Nm2kg-2
प्रश्न 12.
यदि किसी कारणवश उपग्रह की गतिज ऊर्जा 100 प्रतिशत बढ़ जाये तो उसका क्या व्यवहार होगा?
उत्तर:
अतः उपग्रह बाह्य आकाश की ओर पलायन कर जायेगा।
RBSE Class 11 Physics Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी उपग्रह की गतिज ऊर्जा तथा बंधन ऊर्जा के सूत्र व्युत्पन्न कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह की ऊर्जा (Energy of Satellite)
ग्रहों के चारों ओर घूमते उपग्रहों में स्थितिज ऊर्जा तथा गतिज ऊर्जा दोनों प्रकार की निहित होती है क्योंकि वह गुरुत्वीय क्षेत्र में स्थित रहकर गतिशील अवस्था में है। यदि ग्रह का द्रव्यमान M तथा उपग्रह का m हो, तो
समीकरण (3) से स्पष्ट है कि उपग्रह की कुल ऊर्जा ऋणात्मक है जिसका अभिप्राय है कि उपग्रह को अनन्त पर भेजने के लिए (अथवा इसकी कुल ऊर्जा को अनन्तीय ऊर्जा के बराबर जो शून्य है, करने के लिए) हमें उपग्रह को ऊर्जा देनी होगी। इस बाहरी ऊर्जा को बंधन ऊर्जा कहते हैं।
उपग्रह की बन्धन ऊर्जा (Binding Energy of Satellite)
ग्रह के चारों ओर परिक्रमण कर रहे उपग्रह या अन्य पिण्ड को दी गई ऊर्जा की वह न्यूनतम मात्रा जिससे उपग्रह अपनी ‘बद्ध’ (bound) कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाये या गुरुत्वीय, क्षेत्र से बाहर चले जाये ‘बंधन ऊर्जा’ कहलाती है।
उपग्रह की कुल ऊर्जा का मान = \(-\frac{G M m}{2 r}\)
अतः पलायन कराने के लिए उपग्रह की \(+\frac{G M m}{2 r}\) ऊर्जा बाहर से देनी होगी जिससे कुल ऊर्जा का मान शून्य हो जाये।
अतः बन्धन ऊर्जा = \(+\frac{G M m}{2 r}\)
प्रश्न 2.
भारतीय खगोलविदों के योगदान का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत में अन्तरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई माने जाते हैं। उच्चस्तरीय अन्तरिक्ष शोध कार्यों के लिये ISRO (INDIAN SPACE RESEARCH ORGANISATION) भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना 15 अगस्त 1969 को हुई। भारतीय अन्तरिक्ष की यात्रा महत्वपूर्ण है जो प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट (1975) से लेकर वर्तमान में GSAT-18 प्रक्षेपण तक वर्णन की जा सकती है। भारतीय मूल के खगोलविद् डॉ. चन्द्रशेखर सुब्रमणियम को सन् 1983 में चन्द्रशेखर सीमा के लिये नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था।
इसके अनुसार सभी श्वेत वामन तारों (White Dwarfs) का द्रव्यमान चन्द्रशेखर सीमा द्वारा निर्धारित सीमा में रहता है।
Dr. C.V. Raman, मेघनाद साहा के सिद्धान्त भी अन्तरिक्ष कार्यों में उपयोगी रहे। विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की।
भारत के प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट का निर्माण ISRO द्वारा किया गया, जिसे सोवियत यूनियन द्वारा 19 अप्रैल 1975 को प्रक्षेपित किया। रोहिणी उपग्रह सन् 1980 में भारतीय अन्तरिक्ष यान SLV-3 द्वारा श्री हरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया। यह भारत द्वारा प्रथम प्रक्षेपण था। सन् 2014 में GSLV-D5 द्वारा भारी उपग्रह GSAT-14 को इसकी कक्षा में प्रक्षेपित किया। इसके लिये ISRO ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण किया। इस प्रथम सफल उड़ान के बाद भारत विश्व में इस तकनीक को हासिल करने वाला छठा देश बन गया। इसके बाद 27 अगस्त 2015 को GSLV-D6 द्वारा GSAT-6 यान का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक किया। जुलाई, 2012 में देश के पूर्व राष्ट्रपति एवं मिसाइलमैन डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा कि ISRO व DRDO द्वारा अनुसंधान कार्य अंतरिक्ष तकनीक को सस्ता बनाने में किये जाते हैं।
भारत में अन्तरिक्ष की उपलब्धियों का क्रम निम्नानुसार है
1. सन् 1963 में भारत ने पहले रॉकेट का प्रक्षेपण थुबा से किया।
2. 1967 में अहमदाबाद में उपग्रह संचार प्रणाली केन्द्र बनाया गया।
3. सन् 1972 में अंतरिक्ष आयोग एवं अंतरिक्ष विभाग की स्थापना विभिन्न शोध कार्यों के लिये की गई।
4.. सन् 1975 में महान् खगोलविद् आर्यभट्ट के नाम पर प्रथम उपग्रह 19 अप्रैल 1975 को छोड़ा गया।
5. 7 जून, 1979 को भास्कर-1 का प्रक्षेपण किया गया।
6. 18 जुलाई, 1980 को रोहिणी RS-1 का प्रक्षेपण हुआ।
7. 31 मई, 1981 को रोहिणी RS-D1 का प्रक्षेपण हुआ।
8. 20 नवम्बर, 1981 को भास्कर-2 का प्रक्षेपण किया गया।
9. सन् 1981 में एप्पल नामक संचार उपग्रह का प्रक्षेपण हुआ।
10. 10 अप्रेल, 1982 को INSAT-1A (INDIAN NATIONAL SATELLITE) प्रक्षेपण किया गया तथा 17 अप्रेल, 1982 को रोहिणी RS-D2 का प्रक्षेपण हुआ।
11. 30 अगस्त 1983 को INSAT-1B को छोड़ा गया।
12. सन् 1984 में भारत का राकेश शर्मा प्रथम अंतरिक्ष यात्री बना।
13. 1988 में भारत का पहला दूरसंवेदी उपग्रह का प्रक्षेपण हुआ।
14. 12 जून, 1990 को INSAT-1D का सफल प्रक्षेपण हुआ।
15. 10 जुलाई, 1992 को INSAT-2A का प्रक्षेपण हुआ।
16. 23 जुलाई, 1993 को INSAT-2B का प्रक्षेपण हुआ।
17. 7 दिसम्बर, 1995 दिसंबर को INSAT-2C का प्रक्षेपण हुआ।
18. 4 जून, 1997 को INSAT-2D प्रक्षेपण के समय खराब हो गया तथा 29 सितम्बरे में IRS-1D का सफल प्रक्षेपण रहा।
19. 2001 में GSLV-D1 का प्रक्षेपण आंशिक सफल रहा।
20. 10 अप्रैल, 2003 को INSAT-3A का प्रक्षेपण हुआ।
21. 2004 में GSLV-EDUSAT को सफलतापूर्वक प्रक्षेपण रहा।
22. 22 अक्टूबर 2008 को चन्द्रयान-1 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण हुआ।
23. 5 नवम्बर 2013 को मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण हुआ।
24. 24 सितम्बर 2014 को मंगलयान (प्रक्षेपण के 298 दिन के बाद) मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हुआ।
25. 5 जनवरी 2014 को GSLV-D5 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण हुआ।
26. 18 दिसम्बर 2014 को GSLV-MK ifi की प्रायोगिक उड़ान सफल रही।
27. 28 सितम्बर 2015 को खगोलीय शोध को पूर्णतया समर्पित भारत की स्वदेशी पहली वेधशाला एस्ट्रोसैट का सफल प्रक्षेपण किया गया।
28. 11 नवम्बर, 2015 को GSAT-15; 20 जनवरी, 2016 . को IRNSS-1E; 10 मार्च, 2016 को IRNSS-1F; 28 अप्रेल, 2016 को IRNSS-1G, 22 जून, 2016 को कार्टोसेट-2C; 8 सितम्बर, 2016 को INSAT-3DR; 26 सितम्बर, 2016 को स्केटसेट-1, 5 अक्टूबर, 2016 को GSAT-18; 15 फरवरी, 2017 को कार्टोसेट-2D का प्रक्षेपण किया गया।
सदी की महानतम् उपलब्धि
चन्द्रयान- 1 22 अक्टूबर 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया। इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से PSLV-C11 द्वारा प्रक्षेपित किया गया।
चन्द्रयान- 1 ने चाँद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाकर सदी की महत्वपूर्ण खोज की है।
ISRO के अनुसार चाँद पर पानी खनिज और चट्टानों की सतह पर है।
इसका मुख्य उद्देश्य चन्द्रमा पर पानी की तलाश, He गैस की तलाश करना था। इस उपलब्धि के लिये भारत विश्व में छठा देश बन गया। कक्षा से सम्पर्क टूटने पर इसे बन्द कर दिया गया।
मंगलयान
मंगलयान को सन् 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया गया। मंगलयान की सफलता प्रथम प्रयास में अर्जित अद्वितीय उपलब्धि है, जो भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा को संपूर्ण विश्व में स्थापित करती है।
मंगलयान Mars Orbitter Mission (MOM) 5 नवम्बर 2013 को इसरो (ISRO) द्वारा श्रीहरिकोटा से छोड़ा। 24 सितंबर 2014 को भारत मंगल पर पहुँचने वाला पहला ऐसा देश था जो प्रथम प्रयास में ही सफल हुआ। यह भारतीय वैज्ञानिकों एवं खगोलविदों की उत्कृष्ट उपलब्धि मानी जाती है।
मंगलयान के उद्देश्य
- मीथेन गैस की उपस्थिति से जीवन की सम्भावना का पता लगाना।
- मंगल की सतह की संरचना व खनिज की जानकारी।
ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम व हाइड्रोजन की माप का अध्ययन करना।
प्रश्न 3.
कक्षीय वेग तथा पलायन वेग से क्या अभिप्राय है? इनके लिये सूत्र स्थापित कर सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिण्ड को ऊपर की ओर फेंकने पर वह ग्रह के गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर लेती है तथा उस ग्रह पर कभी वापस नहीं आती है।
(i) पृथ्वी के पृष्ठ से पलायन कराने के लिए वेग-माना कि m द्रव्यमान वाली किसी वस्तु का पलायन वेग v, है तब पृथ्वी की सतह पर पलायन गतिज ऊर्जा का मान
अतः किसी वस्तु को पृथ्वी तल पर 11.2 किमी./से. वेग प्रदान कर दें तो वस्तु पृथ्वी से पलायन कर जायेगी अर्थात् वस्तु पृथ्वी पर कभी लौटकर नहीं आयेगी।
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि पलायन वेग, फेंकी गई वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है।
चन्द्रमा के लिए पलायन वेग का मान
पृथ्वी की तुलना में लगभग \(\frac{1}{5}\) गुना है।
(ii) पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर स्थित वस्तु को पलायन कराने के लिए वेग
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि ऊँचाई बढ़ने के साथ पलायन वेग का मान कम होता जायेगा।
इस स्थिति में पलायन वेग पृथ्वी तल के निकट परिक्रमण करने वाले उपग्रह के कक्षीय वेग के समान होगा।
कक्षीय वेग तथा पलायन वेग में सम्बन्ध (Relation between Orbital Velocity and Escape Velocity)
हम जानते हैं कि पृथ्वी तल के समीप परिक्रमण करने वाले पिंड का कक्षीय वेग
v0 = \(\sqrt{g \mathrm{R}}\)
वस्तु का पृथ्वी तल पर पलायन वेग ve = \(\sqrt{2 g \mathrm{R}}\)
अतः = \(\frac{v_{e}}{v_{0}}=\sqrt{\frac{2}{1}}\)
\(\therefore \quad v_{e}=\sqrt{2} v_{0}\)
अतः यदि किसी कारणवश उपग्रह का कक्षीय वेग 5 गुना करने पर उपग्रह कक्षा से पलायन कर जायेगा।
प्रश्न 4.
g तथा G के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
गुरुत्वीय त्वरण (g)-यदि कोई वस्तु ऊपर 1m से मुक्त रूप से छोड़ी जाती है तो वह गुरुत्व बल के कारण पृथ्वी की ओर गिरने लगती है तथा उसका वेग बढ़ता जाता है या वस्तु में त्वरण उत्पन्न हो जाता है। इसी त्वरण को गुरुत्वीय त्वरण ‘g’ कहते हैं। यह वस्तु के आकार व द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। अर्थात् गुरुत्वीय त्वरण उस बल के बराबर है जिसे बल से ग्रह एकांक द्रव्यमान की वस्तु को अपने केन्द्र की ओर आकर्षित करता है। ‘g’ का मात्रक मी./से.2 तथा न्यूटन/किग्रा. है।
अर्थात् पृथ्वी की ओर मुक्त रूप से गिरती वस्तु के वेग में प्रति सेकण्ड होने वाली वृद्धि को गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं।
यहाँ पृथ्वी का माध्यम घनत्व ρ है।
समीकरण (1) से (3) गुरुत्वीय त्वरण (g) तथा सार्वत्रिक नियतांक G के बीच सम्बन्ध है।
प्रश्न 5.
सिद्ध कीजिए कि पृथ्वी तल के समीप घूमते हुये उपग्रह का कक्षीय वेग लगभग 8 km/s होता है।
उत्तर:
पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिण्ड को ऊपर की ओर फेंकने पर वह ग्रह के गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर लेती है तथा उस ग्रह पर कभी वापस नहीं आती है।
(i) पृथ्वी के पृष्ठ से पलायन कराने के लिए वेग-माना कि m द्रव्यमान वाली किसी वस्तु का पलायन वेग v, है तब पृथ्वी की सतह पर पलायन गतिज ऊर्जा का मान
अतः किसी वस्तु को पृथ्वी तल पर 11.2 किमी./से. वेग प्रदान कर दें तो वस्तु पृथ्वी से पलायन कर जायेगी अर्थात् वस्तु पृथ्वी पर कभी लौटकर नहीं आयेगी।
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि पलायन वेग, फेंकी गई वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है।
चन्द्रमा के लिए पलायन वेग का मान
पृथ्वी की तुलना में लगभग \(\frac{1}{5}\) गुना है।
(ii) पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर स्थित वस्तु को पलायन कराने के लिए वेग
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि ऊँचाई बढ़ने के साथ पलायन वेग का मान कम होता जायेगा।
इस स्थिति में पलायन वेग पृथ्वी तल के निकट परिक्रमण करने वाले उपग्रह के कक्षीय वेग के समान होगा।
प्रश्न 6.
भूस्थायी उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊँचाई की गणना कीजिए। इसको संचार के रूप में कैसे उपयोग करते हैं?
उत्तर:
ऐसा उपग्रह जिसका आवर्तकाल, पृथ्वी का स्वयं की अक्ष के सापेक्ष आवर्तकाल अर्थात् 24 घण्टे के बराबर हो अर्थात् वह उपग्रह जो पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर हो, भू-स्थिर उपग्रह कहलाता है। भूमध्य रेखा पर स्थित प्रेक्षक को उपग्रह स्थिर दिखायी देता है। उसे तुल्यकालिक उपग्रह भी कहते हैं। इसका उपयोग दूरसंचार कार्यक्रम के संप्रेषण में, रेडियो संवाद के प्रसारण में, उल्कापिंड अध्ययन एवं मौसम सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करने में होता है। संचार उपग्रह भी भूस्थिर उपग्रह होता है।
भूस्थिर उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊँचाई
r ≅ 4.2 × 107 m
r = 42 × 106 m = 42000 km.
R + h = 42000 km.
h = 42000 – 6400 km.
h ≈ 36000 km.
अतः भू-स्थिर उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊँचाई लगभग 36000 Km. होती है।
प्रश्न 7.
पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता (1) ऊँचाई के साथ (2) गहराई के साथ (3) पृथ्वी के घूर्णन के कारण समझाइये।
उत्तर:
गुरुत्वीय त्वरण (g) के मान में ऊँचाई, गहराई, [Variation in Acceleration due to gravity (g)
गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी तल पर विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। तल से ऊपर अथवा नीचे जाने पर भी ‘g’ बदलता है।
(i) पृथ्वी तल के ऊपर जाने पर g के मान में परिवर्तन पृथ्वी तल पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान
g = \(\frac{\mathrm{GM}}{\mathrm{R}^{2}}\) होता है। …………… (1)
यदि h << R हो तो द्विपद प्रमेय से
(1 + x)n = 1 + nx यदि x << 1
उच्च घातों के पदों को नगण्य मानने पर
gh ≅ \(g\left(1-\frac{2 h}{\mathrm{R}}\right)\) …………………. (4)
\(\left(1-\frac{2 h}{\mathrm{R}}\right)\) का मान h << R के मानों के लिए सदैव धनात्मक एवं इकाई से कम है, अतः gh का मान g से कम होगा। अर्थात् पृथ्वी तल से ऊँचाई पर जाने से g का मान सदैव कम हो जाता है।
नोट-यदि h << R न हो तो समीकरण (4) का प्रयोग न कर समीकरण (3) का प्रयोग करना चाहिए।
गुरुत्वीय त्वरण g के मान में ऊँचाई h के साथ परिवर्तन को निम्न वक्रीय परिवर्तन द्वारा दर्शाया जा सकता है
यहाँ h << R के लिए g के मान में सरल रेखीय परिवर्तन होगा परन्तु h के उच्च मानों के लिए परिवर्तन वक्रीय होगा।
(ii) g के मान में पृथ्वी तल से गहराई के साथ परिवर्तन-यदि पृथ्वी तल से h’ गहराई पर स्थित बिन्दु P’ पर (चित्र) गुरुत्वीय त्वरण का मान 8 हो तो इस बिन्दु पर (R – h’) त्रिज्या के गोले का ही गुरुत्वीय क्षेत्र होगा। इस बिन्दु के चारों ओर खोखले गोलाकार कवच के कारण P’ बिन्दु पर रखी वस्तु पर गुरुत्वीय बल शून्य होगा। (R – h’) त्रिज्या के गोले का द्रव्यमान M’ मान लीजिए।
(iii) पृथ्वी के आकार के कारण g के मान में परिवर्तनअभी तक हम पृथ्वी की आकृति गोलाकार मान रहे थे वास्तव में पृथ्वी ध्रुवों पर चपटी है, अर्थात् पृथ्वी की विषुवतीय त्रिज्या (Re) अधिक तथा ध्रुवीय त्रिज्या (Rp) कम होती है।
प्रश्न 8.
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा को परिभाषित कीजिये। किसी पिंड को पृथ्वी तल से h ऊँचाई तक भेजने में स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन की गणना करो। जब h << R हो तो स्थितिज ऊर्जा परिवर्तन बताओ।
उत्तर:
गुरुत्वीय स्थितिज
किसी वस्तु को अनंत से गुरुत्वीय क्षेत्र के अन्दर किसी बिन्दु तक लाने में जितना कार्य प्राप्त होता है, उसे उस बिन्दु पर वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। ये अदिश राशि है। ये सदैव ऋणात्मक होती है। तथा अनंत पर इसका मान शून्य माना जाता है।
मानाकि पृथ्वी का द्रव्यमान M व त्रिज्या R है। इसके केन्द्र से r दूरी पर एक बिन्दु P है। मानाकि एक सूक्ष्म द्रव्यमान को अनन्त (∞) से P तक लाया जाता है। सूक्ष्म द्रव्यमान किसी समय o से दूरी है, इस पर गुरुत्वाकर्षण बल F = \(\frac{G M m}{x^{2}}\) यह बल आकर्षण बल है, इस बल द्वारा m को सूक्ष्म दूरी dx से विस्थापित करने पर किया गया कार्य
कार्य = बल × विस्थापन
dw = \(\frac{G M m}{x^{2}}\) dx ……………….(1)
द्रव्यमान कण m को ∞ से P तक लाने में बल द्वारा किया गया। कुल कार्य
w = \(\int_{\infty}^{r} \frac{G M m}{x^{2}} \mathrm{d} x\)
परिभाषा के अनुसार यह कार्य ही गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा है।
∴ U = \(-\frac{\mathrm{GM} m}{r}\) ……………(2)
स्थिति (1) यदि पिंड पृथ्वी सतह पर हो r = R
U = \(-\frac{\mathrm{GM} m}{R}\) ………….. (3)
(2) पृथ्वी तल से h ऊँचाई तक ले जाने में किया गया कार्य वस्तु की स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन ΔU = w
W = ΔU = U2 – U1 …………… (4)
ΔU = h ऊँचाई पर स्थितिज ऊर्जा – पृथ्वी तल पर स्थितिज ऊर्जा
ΔU = \(\frac{m g h}{\left(1+\frac{h}{R}\right)}\) ……………(5)
विशेष स्थिति- यदि h << R
अतः \(\frac{h}{\mathrm{R}}\) << 1
अतः \(\frac{h}{\mathrm{R}}\) को नगण्य मानने पर
ΔU = mgh ………….. (6)
प्रश्न 9.
केप्लर के नियमों को समझाइये।
उत्तर
केप्लर ने ग्रह की गति सम्बन्धी निम्न नियम दिये
प्रथम नियम- प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घ-वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमण करता है तथा सूर्य कक्षा के एक फोकस पर होता है।
द्वितीय नियम- ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समयान्तराल में समान क्षेत्रफल पार करती है। इस प्रकार ग्रह की क्षेत्रीय चाल नियत रहती है।
माना कि ग्रह dt समय में dA क्षेत्रफल पूरा करता है तो क्षेत्रीय चाले
\(\frac{d \mathbf{A}}{d t}\) = नियतांक
चित्र से ग्रह को P से Q तक जाने में जो समय लगता है, वही । समय R से T तक जाने में लगेगा
अतः SPQ का क्षेत्रफल = SRT का क्षेत्रफल
स्पष्ट है ग्रह की चाल बदलती है। जब ग्रह सूर्य से दूर जाने पर चाल घटती है और पास आने पर चाल बढ़ती है।
अतः क्षेत्रीय चाल, कोणीय संवेग के रूप में लिखने पर घूमते हुये ग्रह का कोणीय संवेग नियत रहता है।
तृतीय नियम- ग्रह के परिक्रमण काल का वर्ग सूर्य से उसकी औसत दूरी के घन के समानुपाती होता है।
T2 ∝ r3
या.. T2 = Kr3
जहाँ K नियतांक है। T परिक्रमण काल (आवर्तकाल) है तथाr सूर्य से ग्रह की औसत दूरी है।
अतः स्पष्ट है कि सूर्य से ग्रह जितनी दूर होगा, उसका आवर्तकाल उतना ही अधिक होगा। अतः बुध (Mercury) का आवर्तकाल सबसे कम एवं नैप्चून का सर्वाधिक होगा।
प्रश्न 10.
अन्तरिक्ष में भारहीनता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु के भार का आभास उस पर लगने वाले प्रतिक्रिया बल के कारण होता है। यदि प्रतिक्रिया बल शून्य हो जाये तो भारहीनता की स्थिति अनुभव होती है। स्वतन्त्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तु अथवा व्यक्ति पर प्रतिक्रिया बल नहीं लगता अतः व्यक्ति को भारहीनता की अनुभूति होती है।
कृत्रिम उपग्रह में हम भारहीनता को समझ सकते हैं। मानाकि एक उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर r त्रिज्या की कक्षा में घूम रहा है। पृथ्वी का द्रव्यमान M है। उपग्रह को आवश्यक अभिकेन्द्र बल, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा प्राप्त होता है। उपग्रह में रखी वस्तु पर कार्यरत बल
(1) पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल F = \(\frac{\mathrm{GMm}}{r^{2}}\) केन्द्र की ओर
(2) उपग्रह के तल की प्रतिक्रिया बाहर की ओर (केन्द्र से), वस्तु पर केन्द्र की ओर परिणामी बल
= \(\frac{\mathrm{GMm}}{r^{2}}\) – R
ये परिणामी बल ही वस्तु को आवश्यक अभिकेन्द्र बल प्रदान करेगा।
∴ R = 0 अतः उपग्रह की सतह पर वस्तु पर प्रतिक्रिया शून्य है। इसलिए वस्तु भारहीनता की अवस्था में होती है।
प्रश्न 11.
प्रक्षेपण वेग के लिये सूत्र प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु को पृथ्वी सतह से ऊर्ध्वाधर, एक निश्चित ऊँचाई की कक्षा में स्थापित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम वेग, वस्तु का प्रक्षेपण वेग कहलाता है।
यदि वस्तु को पृथ्वी सतह से h ऊँचाई तक v वेग से प्रक्षेपित किया है तो इसकी सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा में बदल जाती है।
ऊर्जा संरक्षण नियम से गतिज ऊर्जा में कमी = स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि
\(\frac{1}{2} m v^{2}=\frac{m g h}{\left(1+\frac{h}{R}\right)}\)
यह मानते हुए कि g नियत है।
\(v^{2}=\frac{2 g h}{\left(1+\frac{h}{\mathrm{R}}\right)}\)
अतः प्रक्षेपण वेग
v = \(\sqrt{\frac{2 g h}{\left(1+\frac{h}{R}\right)}}\)
वस्तु द्वारा प्राप्त अधिकतम ऊँचाई
h = \(\frac{v^{2} \mathrm{R}}{2 g \mathrm{R}-v^{2}}\)
यदि वेग बहुत कम है तब v2 << 2gR
अतः v को नगण्य मानने पर।
h = \(\frac{v^{2}}{2 g}\)
अतः प्राप्त अधिकतम ऊँचाई, गति के तृतीय नियम से प्राप्त ऊँचाई के बराबर ही है।
प्रश्न 12.
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम को लिखिये। इसे सदिश रूप में व्यक्त कीजिये तथा दर्शाइये कि इसमें क्रियाप्रतिक्रिया नियम का पालन होता है।
उत्तर:
न्यूटन ने इस बल के बारे में गहन अध्ययन कर एक नियम प्रतिपादित किया कि ”विश्व में प्रत्येक कण अन्य दूसरे कण से विशेष आकर्षण बल से आकर्षित होता है, जिसे ‘गुरुत्वाकर्षण बल’ कहते हैं।” दो कणों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल कणों के द्रव्यमान m1 एवं m2 के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके मध्य दूरी r के वर्ग के प्रतिलोमानुपाती होता है। यह बल दोनों कणों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होता है।
यहाँ G एक नियतांक है, जिसको हम गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियतांक कहते हैं। यहाँ सार्वत्रिक शब्द से अभिप्राय है कि ब्राण्ड में वस्तु की भौतिक अवस्था कैसी भी हो, यानी वस्तु साधारण हो अथवा ग्रहों के रूप में पिण्ड हो, इस नियतांक का मान सर्वत्र एकसमान ही आता है। इसका मान
G का मान कैवेन्डिश ने सन् 1798 में ज्ञात किया।
समीकरण (1) से यदि m1 = m2 = 1
तथा r = 1 हो तो
F = G होगा।
अर्थात् सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक परिमाण में उस आकर्षण बल के बराबर होता है जो एक-दूसरे से एकांक दूरी पर स्थित एकांक द्रव्यमान के दो कणों के मध्य कार्य करता है।
समीकरण (1) से G = \(\frac{\mathrm{F} r^{2}}{m_{1} m_{2}}\)
विमीय सूत्र ज्ञात करने पर
G = \(\frac{\left[\mathrm{M}^{1} \mathrm{L}^{1} \mathrm{T}^{-2}\right]\left[\mathrm{L}^{2}\right]}{\left[\mathrm{M}^{1}\right]\left[\mathrm{M}^{1}\right]}\)
= [M-1L3T-2]
सामान्यतया इस बल का मान इतना कम होता है कि पृथ्वी पर रखी साधारण वस्तुएँ परस्पर आकर्षित होते हुए भी उसका आभास नहीं होता, अन्यथा वे परस्पर मिल जातीं|
अधिक द्रव्यमान की वस्तुओं जैसे–सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा तथा ग्रहों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल का मान अधिक होता है। इसकी उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है। इसका मात्रक न्यूटन मी.2/किग्रा.2 है।
गुरुत्वाकर्षण नियम सदिश रूप में (Gravitational Law in Vector Form)
कण m1 पर m2 कण द्वारा आरोपित बल
अतः ‘आरोपित बल बराबर एवं विपरीत होते हैं। अतः गुरुत्वाकर्षण बल न्यूटन के तृतीय नियम का पालन करता है।
RBSE Class 11 Physics Chapter 6 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
धातु के दो गोले, जिनका द्रव्यमान क्रमशः 50 kg व 100 kg है तथा इनके केन्द्रों की बीच की दूरी 50 cm है। इनके बीच गुरुत्वाकर्षण ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है- m1 = 50 kg, m2 = 100 kg
r = 50 cm = 50 × 102 m
F = ?
F = \(\frac{G m_{1} m_{2}}{r^{2}}\)
F = \(\frac{6.67 \times 10^{-11} \times 50 \times 100}{\left(50 \times 10^{-2}\right)^{2}}\)
F = 13.34 × 10-7
F = 1.33 × 10-6 N
प्रश्न 2.
यदि किसी कारणवश, उपग्रह की कक्षीय चाल 41.4 प्रतिशत बढ़ जाये। क्या इस स्थिति में उपग्रह पलायन कर जायेगा? स्पष्ट कीजिए।
हल:
माना उपग्रह की कक्षीय चाल v0 है तथा उपग्रह की पलायन चाल ve है।
यदि कक्षीय चालं 41.4% बढ़ा दें तब
v0‘ = v0 + \(\frac{41.4}{100}\) v0
v0‘ = 1.414 v0
v0‘ = \(\sqrt{2}\)
v0 = \(\sqrt{2}\) × 7.92 km/s
v0‘ = 11.2 km/s
v0‘ = ve = पलायन चाल
अतः उपग्रह पलायन कर जायेगा।
प्रश्न 3.
एक पिंड को पृथ्वी तल से 10 km/s के वेग से फेंका जाता है, ये पलायन वेग से थोड़ा कम है, गणना कीजिये पिंड कितनी ऊँचाई तक जायेगा?
हल:
प्रक्षेपण वेग v = 10 km/s
v = 10 × 103 m/s
प्रश्न 4.
पृथ्वी के पृष्ठ पर किसी वस्तु का भार 72 N है। पृथ्वी की त्रिज्या की आधी ऊँचाई पर, वस्तु पर गुरुत्वीय बल कितना होगा?
हुल:
mg = 72 N
h = R/2
mgh = ?
प्रश्न 5.
पृथ्वी सतह पर पलायन चाल 11.2 km/s है। किसी वस्तु को इस चाल की दो गुनी चाल से फेंकने पर, पृथ्वी से अत्यधिक दूरी पर वस्तु की चाल क्या होगी? सूर्य तथा अन्य आकाशीय पिंडों की उपस्थिति की उपेक्षा करें।
हल:
ऊर्जा संरक्षण सिद्धान्त से
पृथ्वी तल पर कुल ऊर्जा = अनन्त पर कुल ऊर्जा
प्रश्न 6.
तीन समान द्रव्यमान M के पिंड a भुजा के समबाहु त्रिभुज के शीर्ष पर स्थित हैं। तीनों पिंडों को एक वृत्त पर किस चाल से घुमाया जाये कि त्रिभुज वृत्तीय कक्ष की परिधि पर चले तथा त्रिभुज की भुजा अपरिवर्तित रहे?
हल:
वृत्तीय गति करते हुए प्रत्येक पिण्ड पर अन्य दो पिण्डों के कारण गुरुत्वाकर्षण बल लगेगा और इस बल का केन्द्र O की ओर घटक उसको अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करेगा।
प्रश्न 7.
3 कि.ग्रा. की वस्तु की स्थितिज ऊर्जा पृथ्वी सतह पर – 54 जूल है, तो इसके पलायन वेग की गणना कीजिए।
हल:
दिया है- . m = 3 kg
UR = – 54 जूल
ve = ?
प्रश्न 8.
पृथ्वी तल से लगभग किस ऊँचाई पर गुरुत्वीय त्वरण का मान सतह की तुलना में 10 प्रतिशत कम हो जायेगा?
हल:
दिया है- gh = g – 10% of g
प्रश्न 9.
पृथ्वी व सूर्य के बीच ऐसा बिन्दु होता है, जहाँ पर दोनों के कारण किसी वस्तु पर नेट गुरुत्वाकर्षण बल शून्य होता है। इसे लैगरेन्जियन बिन्दु भी कहते हैं। पृथ्वी से इस बिन्दु की दूरी ज्ञात कीजिए। सूर्य व पृथ्वी की बीच की दूरी लगभग 10 km है। सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी से 3.24 × 105 गुना है।
हल:
दिया है- r = 108 km = 1011 m
Ms = 3.24 × 105 Me
नेट गुरुत्वाकर्षण बल शून्य होने के लिए
वर्गमूल करने पर
प्रश्न 10.
कल्पना कीजिये कि एक वस्तु किसी बड़े तारे के चारों ओर R त्रिज्या के वृत्तीय कक्षा में घूम रही है, इसका आवर्तकाल T है यदि वस्तु तथा तारे के बीच गुरुत्वाकर्षण बल के समा \(\mathbf{R}^{\left(-\frac{5}{2}\right)}\) के समानुपाती है तो इसका आवर्तकाल त्रिज्या पर किस। प्रकार निर्भर करेगा?
हल:
उपग्रह पर कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल
F = \(\frac{\mathrm{GMm}}{\mathrm{R}^{5 / 2}}\)
क्योंकि F ∝ R-5/2
यह गुरुत्वाकर्षण बल, अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है अतः
प्रश्न 11.
चन्द्रमा पर पलायन चाल की गणना कीजिए। दिया है पृथ्वी की त्रिज्या चन्द्रमा से चार गुनी व द्रव्यमान 80 गुना है।
हल:
Re = 4 Rm
Rm = Re/4
Me = 80 Mm
Mm = \(\frac{\mathbf{M}_{e}}{80}\)
Vm = \(\sqrt{\frac{2 \mathrm{GM}_{m}}{\mathrm{R}_{m}}}=\sqrt{\frac{2 \mathrm{GM}_{e} \times 4}{\mathrm{R}_{\mathrm{e}} \times 80}}\)
V = \(=\left(\sqrt{\frac{2 \mathrm{GM}_{e}}{\mathrm{R}_{e}}}\right) \frac{1}{\sqrt{20}}=\frac{11.2}{4.48}\) km/sec
vm = 2.5 km/s
प्रश्न 12.
एक आकाशीय प्रयोगशाला जिसका द्रव्यमान 2 × 103 kg है, को 2R त्रिज्या की कक्षा से 3R त्रिज्या कक्षा में स्थानान्तरित किया जाता है तो किये गये कार्य की गणना करो। यहाँ R = 6400 km ( पृथ्वी की त्रिज्या) है।
हल:
m = 2 × 103 kg
r1 = 2R
r2 = 3R
ΔU = U2 – U1
प्रश्न 13.
यदि पृथ्वी की त्रिज्या 6400 km हो तो किसी वस्तु का भूमध्य रेखा (Equator) पर रेखीय वेग क्या होगा?
हल:
R = 6400 km
v = Rω = \(\mathrm{R} \frac{2 \pi}{\mathrm{T}}\)
v = 6400 x \(\frac{6.28}{24}\) T = 24 hours
v = \(\frac{40192}{24}\) = 1674.66 km/hour
∵ 1 km = 0.621 mile
v = 1039.96 = 1040 miles/hour
प्रश्न 14.
यदि m द्रव्यमान की वस्तु को पृथ्वी सतह से पृथ्वी की त्रिज्या R के बराबर ऊँचाई तक ले जाने में स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि क्या होगी?
हल:
ΔU = \(\frac{m g h}{\left(1+\frac{h}{R}\right)}\)
∵ h = R
ΔU = \(\frac{m g R}{\left(1+\frac{R}{R}\right)}=\frac{m g R}{2}\)
प्रश्न 15.
एक उपग्रह पृथ्वी केन्द्र से r दूरी पर पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है। यदि वृत्तीय कक्षा की त्रिज्या 1% घट जाती है। तो उसकी चाल में क्या वृद्धि होगी?
हल:
प्रश्न 16.
सूर्य की त्रिज्या कितनी हो जाये कि ये काला विविर (Black-Hole) बन जाये? सूर्य द्रव्यमान नियत मानें (1030 kg) तथा प्रक्षेप्य के वेग की अधिकतम सीमा प्रकाश वेग के बराबर मानें क्योंकि आइन्सटीन के विशिष्ट सापेक्षवाद सिद्धान्त के अनुसार किसी वस्तु का वेग प्रकाश वेग से अधिक नहीं हो सकता है।
हल:
काले विविर ऐसे आकाशीय पिण्ड होते हैं जिनसे कोई वस्तु पलायन नहीं कर पाती है क्योंकि इनका गुरुत्वाकर्षण अत्यधिक होता है।
क्योंकि आइन्सटीन के विशिष्ट सापेक्षवाद सिद्धान्त के अनुसार किसी वस्तु का वेग प्रकाश के वेग से अधिक नहीं हो सकता है, अतः
प्रश्न 17.
पृथ्वी के अन्दर केन्द्र से गुजरती हुई आर-पार सुरंग में किसी वस्तु को डालने पर, सरल आवर्त गति करने लगती है। इसके लिये आवर्तकाल का मान ज्ञात कीजिए। यदि पृथ्वी की 6.4 × 106 m व द्रव्यमान 6 × 1024 kg है।
हल:
F = – mg
F = \(-m \frac{\mathrm{GM}}{\mathrm{R}^{3}} r\)
\(m \frac{d^{2} r}{d t^{2}}=-\dot{m} \frac{\mathrm{GM}}{\mathrm{R}^{3}} r\)
≈ 85 minutes
प्रश्न 18.
पृथ्वी की त्रिज्या 4% कम हो जाये तथा द्रव्यमान नियत रहे तो पलायन वेग में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
R’ = R – 4% of R
प्रश्न 19.
दो पिंड जिनके द्रव्यमान क्रमशः M1 व M2 हैं। तथा एक-दूसरे से d दूरी पर रखे हैं। सिद्ध कीजिए जिस बिन्दु पर गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता शून्य है, गुरुत्वीय विभव V = \(-\frac{\mathbf{G}}{d}\left(\mathbf{M}_{1}+\mathbf{M}_{2}+2 \sqrt{\mathbf{M}_{1} \mathbf{M}_{2}}\right)\) होगा।
हल:
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