Rajasthan Board RBSE Class 11 Physics Chapter 8 दोलन गति
RBSE Class 11 Physics Chapter 8 पाठ्यपुस्त के प्रश्न
RBSE Class 11 Physics Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सरल आवर्त गति के लिये त्वरण तथा विस्थापन में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
त्वरण, विस्थापन के समानुपाती है। अर्थात् त्वरण विस्थापन
प्रश्न 2.
सीमांत सिरे से सरल आवर्त गति प्रारम्भ करने वाले पिण्ड का प्रारम्भिक कला कोण कितना होता है?
उत्तर:
π/2
प्रश्न 3.
सरल आवर्त गति में विस्थापन का मान इसके त्वरण मान से कितने कला कोण से आगे होता है?
उत्तर:
विस्थापन, त्वरण से 7 कला कोण से आगे होते हैं।
प्रश्न 4.
सरल आवर्त गति में कौनसी भौतिक राशि संरक्षित रहती है?
उत्तर:
कुल यांत्रिक ऊर्जा।
प्रश्न 5.
सरल लोलक की कुल ऊर्जा तथा दोलन आवृत्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
कुल ऊर्जा E = 2π2mn2a2
प्रश्न 6.
यदि 0.1 kg के पिण्ड का आयाम 3 cm तथा दोलन काल 2 s हो तो कुल यांत्रिक ऊर्जा का मान क्या होगा?
उत्तर:
कुल ऊर्जा = \(\frac{1}{2} m \omega^{2} \mathbf{A}^{2}\)
प्रश्न 7.
कठोर स्प्रिंग के स्थान पर उतनी ही लम्बाई की मुलायम | स्प्रिंग का उपयोग करने पर दोलन काल पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
बढ़ जायेगा। मुलायम स्प्रिंग के लिए K का मान कठोर स्प्रिंग से कम होता है।
प्रश्न 8.
एक सरल लोलक के दोलन आयाम को उसके वर्तमान मान का आधा कर दिया जाये तो उसके आवर्तकाल का मान कितना होगा?
उत्तर:
अपरिवर्तित रहेगा; क्योंकि आवर्तकाल आयाम पर निर्भर नहीं करता है।
प्रश्न 9.
सरल आवर्त गति में विस्थापन एवं त्वरण के मध्य कितना कालान्तर होता है?
उत्तर:
π रेडिंयन या 180°
प्रश्न 10.
सरल आवर्त गति कर रहे का त्वरण q=दिया गया है तथा इस कण का आवर्तकाल क्या होगा?
उत्तर:
प्रश्न 11.
सरल लोलक की कुल ऊर्जा E है। जिस कण पर लोलक का विस्थापन आयाम का आधा होता है, उस क्षण लोलक की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा क्या होगी?
उत्तर:
प्रश्न 12.
सरल लोलक में प्रत्यानयन बल का मान लिखिये जबकि विस्थापन कोण 8 कम हो।
उत्तर:
प्रत्यानयन बल \(\vec{F}\) = – mg sin θ
प्रत्यानयन बल का मान F = mg sin θ
यदि θ अल्प है तब sin θ ≈ θ
तब प्रत्यानयन बल F = mg θ
RBSE Class 11 Physics Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सिद्ध करें कि एक समान वृत्तीय गति का प्रक्षेप सरल आवर्त गति होता है।
उत्तर:
माना कि कोई कण एक वृत्त की परिधि पर, जिसका केन्द्र O तथा त्रिज्या A है, एक समान चाल से चक्कर लगा रहा है। जब कण किसी बिन्दु P पर होता है। तब कण से वृत्त के व्यास YY’ पर डाले गये लम्ब का पाद (foot) बिन्दु N पर है। जब कर्ण बिन्दु X पर होता है तो लम्ब का पाद बिन्दु O पर होता है। जब कण परिधि पर चलते हुए बिन्दु Y पर पहुँचता है तो लम्ब का पाद N भी व्यास पर चलकर Y पर पहुँच जाता है। जब कण परिधि पर चलकर X’ पर पहुँचता है तो पांद भी व्यास पर चलकर Y से O पर आ जाता है। जब कण X’ से Y’ पर आ जाता है, तो पाद O से Y’ तक चलता है और जब कण Y’ से चलकर X पर पहुँच जाता है तोपाद भी Y’ से पुनः O पर पहुँच जाता है।
इस प्रकार पाद् N बिन्दु O के इर्द-गिर्द सरल रेखा में गति करता है। N की यह रैखिक गति सरल आवर्त गति है। N के O से Y तक, Y से Y’ तक तथा Y’ से O तक जाने को एक कम्पन कहते हैं। | इस प्रकार यदि कोई कण किसी वृत्ताकार पथ पर एक समान चाल से गतिशील हो तो कण से वृत्त के व्यास पर खींचे गये लम्ब के पाद की रैखिक गति को सरल आवर्त गति कहते हैं।
प्रश्न 2.
स. आ. गति के अभिलक्षण एवं समीकरण लिखिये।
उत्तर:
स.आ. गति के अभिलक्षण-सरल आवर्त गति F = – ky द्वारा नियंत्रित होती है तथा इसमें
- गति सदैव सरल रेखा में तथा एक नियत बिन्दु के इधर उधर होती है।
- गतिमान वस्तु के त्वरण की दिशा सदैव साम्यावस्था की ओर इंगित करती है।
- दोलन की प्रत्येक स्थिति में कण का त्वरण उसकी साम्यावस्था से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है। स.आ. गति का समीकरण \(\frac{d^{2} y}{d t^{2}}+\omega^{2} y=0\)
जहाँ ω2= klm
तथा इसका हल y = a sin (ωt + ϕ)
प्रश्न 3.
स. आ. गति में एक समय चक्र अवधि हेतु विस्थापन, वेग एवं त्वरण को ग्राफीय निरूपण कीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
सिद्ध करें कि परवलयिक विभव कूप में कण स. आ. गति करता है।
उत्तर:
जब कोई पिण्ड सरल आवर्त गति करता है तो उसकी माध्य स्थिति से x दूरी पर स्थितिज ऊर्जा P.E. = U = \(\frac{1}{2} k x^{2}\) होती है। जब हम स्थितिज ऊर्जा U और विस्थापन x में ग्राफ खींचते हैं तो एक परवलय प्राप्त होता है। इस प्रकार के विभव फलने को परवलयिक विभव कूप कहते हैं क्योंकि इसका आकार कुएं के समान होता है। सरल आवर्त गति इस प्रकार के विभव कूप में पायी जाती है।
स्पष्ट है कि प्रत्यावस्थान बल विस्थापन के समानुपाती होता है। और उसकी दिशा माध्य स्थितिज की ओर होती है।
अतः पिण्ड सरल आवर्त गति करेगा।
तथा इसका हल x = A sin ( ωt + ϕ) होगा। अतः यदि किसी वस्तु का विभव फलन U = \(\frac{1}{2} k x^{2}\) हो तो वस्तु सरल आवर्त गति करेगी।
प्रश्न 5.
कमानी स्प्रिंग से लटके पिण्ड के दोलन में यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण को समझाइये।
उत्तर:
स्प्रिंग से लटके पिण्ड की गति में ऊर्जा-रूपांतरणआगे चित्र दिया है जिसमें एक स्प्रिंग लटकी है, जिसके निचले सिरे पर एक पिण्ड बंधा है। पिण्ड अपनी साम्य स्थिति में है। जब पिण्ड को थोड़ा नीचे खींचकर छोड़ देते हैं तो यह ऊपर-नीचे दोलन करने लगता है। दोलन की विभिन्न स्थितियों को चित्र में दर्शाया गया है।
जब पिण्ड को नीचे खींचते हैं तो स्प्रिंग खिंचती है। जैसा चित्र ‘अ’ में दर्शाया गया है। स्प्रिंग को खींचने में किया गया कार्य इनमें स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। अतः पिण्ड की निम्नतम स्थिति में कुल ऊर्जा स्प्रिंग में स्थितिज ऊर्जा के रूप में विद्यमान रहती। है।
जब पिण्ड को छोड़ देते हैं तो स्प्रिंग अपनी सामान्य अवस्था में आने लगती है तथा इसके साथ ही पिण्ड अपनी साम्य स्थिति की ओर लौटने लगता है। अतः स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा पिण्ड की गतिज ऊर्जा में बदलने लगती है। पिण्ड के साम्य स्थिति में आने पर कुल ऊर्जा पिण्ड की गतिज ऊर्जा के रूप में होती है। जैसा चित्र ‘ब’ में दर्शाया है।
पिण्ड साम्य स्थिति में ठहरता नहीं है बल्कि जड़त्व के कारण ऊपर की ओर जाता है जिससे कि स्प्रिंग दबने लगती है। पुनः पिण्ड की गतिज ऊर्जा स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा में बदलने लगती है।
पिण्ड की उच्चतम स्थिति में इसकी गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है तथा कुल ऊर्जा स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाती है। जैसा चित्र ‘स’ में दर्शाया गया है। इस प्रकार गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाओं का परस्पर रूपान्तरण होता रहता है परन्तु कुल ऊर्जा का मान प्रत्येक स्थिति में उतना ही रहता है। अतः दोलन में यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है।
प्रश्न 6.
सरल लोलक का आवर्तकाल सूत्र लिखिये। आवर्तकाल किन-किन कारकों से प्रभावित होता है?
उत्तर:
दोलनकाल \(\mathrm{T}=2 \pi \sqrt{\frac{l}{g}}\)
स्पष्ट है कि सरल लोलक का दोलनकाल इसकी प्रभावी लम्बाई (I) के वर्गमूल के समानुपाती तथा गुरुत्वीय त्वरण ? के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। गुरुत्वीय त्वरण g के माने में परिवर्तन के कारण दोलन काल भी प्रभावित होता है। दोलन काल, गोलक की द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। सरल लोलक की लम्बाई बदलने पर दोलन काल भी प्रभावित होता है।
प्रश्न 7.
छोटी-छोटी एक जैसी कई स्प्रिंगों को (i) श्रेणी क्रम तथा (ii) समान्तर क्रम में संयोजित करने पर स्प्रिंग नियतांक का मान किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर:
छोटी-छोटी एक जैसी कई स्प्रिंगों को जब हम श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं तब संयोजन का प्रभावी स्प्रिंग नियतांक k का मान प्रत्येक छोटी स्प्रिंग के नियतांक का \(\frac{1}{n}\) गुना हो जाता है। यहाँ पर ॥ छोटी-छोटी एक जैसी स्प्रिंगों की संख्या है। अर्थात् पहले की तुलना में \(\frac{1}{n}\) गुना हो जाता है।
समान्तर क्रम में संयोजित स्प्रिंगों के लिये प्रभावी बल नियतांक प्रत्येक स्प्रिंग के बल नियतांक के योग के बराबर होता है।
k = k1 + k2
प्रश्न 8.
औसत गतिज या स्थितिज ऊर्जा प्रति दोलन का ग्राफीय निरूपण कीजिये।
उत्तर:
ग्राफीय निरूपण (Graphical Representation)-
प्रश्न 9.
सरल लोलक बनाने के लिए गोलक को गोलाकार ही क्यों लिया जाता है?
उत्तर:
इसके मुख्य दो कारण हैं
- गोलाकार वस्तुओं का गुरुत्व केन्द्र उनके केन्द्र पर स्थित होता है। अतः गुरुत्व-केन्द्र की स्थिति शुद्धता से ज्ञात की जा सकती है। अतः लोलक की प्रभावी लम्बाईका मान भी शुद्धता से ज्ञात हो जाता है।
- दिये गये आयतन के लिए गोलाकार वस्तु की सतह का क्षेत्रफल न्यूनतम होता है, अतः उस पर वायु का घर्षण बल भी न्यूनतम लगता है, इससे दोलन अधिक समय तक चलते रहते हैं।
प्रश्न 10.
पुल पार करते समय कदम मिलाकर चलते सैनिकों से कदम तोड़कर चलने (सामान्य व्यक्ति की तरह चलने) को क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
यदि सैनिक कदम से कदम मिलाकर चलेंगे तो उनकी कदम ताल के कारण उत्पन्न आवृत्ति पुल की नैसर्गिक दोलन आवृत्ति के तुल्य हो सकती है। अतएव यह उच्च आयाम से दोलित होकर अनुनाद की घटना उत्पन्न कर सकता है, जिससे पुल को नुकसान हो सकता है।
प्रश्न 11.
अवमंदित दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी,पिण्ड के वह दोलन जो प्रतिरोधी बल की उपस्थिति में होते हैं जैसे द्रव श्यानता घर्षण वायु घर्षण इत्यादि की। उपस्थिति में होने वाले दोलनों का आयाम निरन्तर घटता रहता है। इन दोलनों को अवमंदित दोलन कहते हैं।
RBSE Class 11 Physics Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आवर्त गति तथा सरल आवर्त गति में अन्तर स्पष्ट कीजिये। सरल आवर्त गति के अभिलक्षण बताइये। उदाहरण सहित अवकल समीकरण भी लिखिये।
उत्तर:
(1) आवर्त गति (Periodic Motion)
जब कोई गतिमान वस्तु एक निश्चित समय के पश्चात् अपनी पुरानी अवस्था में आ जाती है तथा वह फिर इसी प्रकार की गति बारबार करती है तो उस गति को आवर्त गति कहते हैं।
उदाहरणार्थ-पंखे के ब्लेडों की गति, पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना, सरल लोलक के गोलक की गति, चन्द्रमा का पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाना, उत्तर-दक्षिण दिशा में विस्थापित किया गया मुक्त रूप से लटका छड़ चुम्बक, परमाणु के कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की गति, छड़ी की सुइयों का घूमना आदि। एक पूर्ण गति करने में पिण्ड को | निश्चित समय लगता है जिसे आवर्त काल कहते हैं। इसे प्रायः T से | प्रदर्शित करते हैं।
जब किसी वस्तु को स्थायी साम्यावस्था की स्थिति से अल्प-सा विस्थापित कर छोड़ दिया जाता है तो वह साम्यावस्था की स्थिति के इर्द-गिर्द आवर्ती गति करती है। इस प्रकार की गति को सरल आवर्त । गति कहते हैं। यह गति एक सरल रेखा में हो सकती है। जैसे, सरल। लोलक अथवा भारित कमानी का पिण्ड। एक वृत्त के चाप पर भी कोणीय गति हो सकती है। जैसे, असरल लोलक (Compound Pendulum) अथवा मरोड़ी लोलक में। वस्तु को जब माध्य स्थिति से विस्थापित किया जाता है तो उस पर एक बल लगता है जो उसे माध्य स्थिति की ओर लाता है। सरल आवर्त गति, दोलन गति का एक विशेष रूप है, जो सबसे सरल होता है। यह गति दो प्रकार की होती है
- रेखिक सरल.आवर्त गति
- कोणीय सरल आवर्त गति
सरल आवर्त गति की शुद्ध गतिकीय परिभाषा ”किसी वृत की परिधि पर होने वाली एक समान गति वृत के व्यास पर प्रक्षेप (Projection) सरल आवर्त गति होता है।”
माना कि चित्र अनुसार m द्रव्यमान का एक कण A त्रिज्या तथा O केन्द्र वाले वृत की परिधि पर समान कोणीय चाल , से चक्कर लगा रहा है। किसी क्षण जब कण, बिन्दु P पर है; तब कण की स्थिति से वृत्त के व्यास YY’ पर डाले गये लम्ब का पाद (Foot) बिन्दु M पर है। वृत्तीय पथ पर परिक्रमण करता कण जब बिन्दु X पर होता है तो लम्ब का पाद बिन्दु M, व्यास YY’ के अनुदिश गति करता हुआ O बिन्दु पर होता है। जब कण Y बिन्दु पर होता है तब लम्ब का पाद बिन्दु M भी Y बिन्दु पर पहुँच जाता है। जब कण X’ बिन्दु पर होता है। तब लम्ब का पाद बिन्दु पुनः O बिन्दु पर आ जाता है। कण के ?’ बिन्दु पर पहुंचने पर लम्ब का पाद बिन्दु भी Y पर होता है और एक चक्कर पूरा कर जब कण X बिन्दु पर होता है तब लम्बे का पाद भी Y” से चलकर पुनः O पर आ जाता है। स्पष्ट है जब अभीष्ट कण वृत्तीय पथ पर एक चक्कर पूरा करता है तब लम्ब का पाद-बिन्दु M, वृत्त के केन्द्र O के इधर-उधर सरल रेखा में गति करता है। यह बिन्दु M की रेखिक सरल आवर्त गति है। अतः एक समान वृतीय गति में प्रक्षेप के लम्बपाद बिन्दु की गति सरल आवर्त गति होती है।
बिन्दु M के O से Y, Y से Y” तक तथा Y” से 0 तक जाने को एक पूर्ण कम्पन कहेंगे।
हम जानते हैं कि वृत्तीय गति में कण पर अभिक्रेन्द्रीय बल (mω2A परिमाण में) सदैव वृत के केन्द्र की ओर प्रवृत होता है अतः कण के P बिन्दु पर होने पर यह बल OP दिशा में होगा। बल का YY’ दिशा में घटक (mω2A sin ωt) होगा।
विस्थापन y को दिशा oy में धनात्मक लेते हैं। उपरोक्त बल yo दिशा में लग रहा है, अर्थात् ऋणात्मक होगा अतः
F = – mω2y ….(1)
F = – ky …..(2)
जहाँ k = mω2, बल नियतांक कहलाता है।
समीकरण (1) से स्पष्ट है कि कण का द्रव्यमान m, कोणीय वेग ω नियत होने के परिणामस्वरूप बल, विस्थापन y के अनुक्रमानुपाती होता है तथा इसकी दिशा, विस्थापन y के विपरीत होती है अतः बल F को प्रत्यानयन बल (Restoring Force) कहते है।
अतः सरल आवर्त गति किसी वस्तु की अपनी साम्यवस्था के इधर-उधर वह दोलनी या कम्पनिक गति है जिसमें प्रत्यानयन बल।
- साम्यावस्था से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है।
- सदैव साम्यावस्था की ओर इंगित करता है।
सरल आवर्त गति F = – ky द्वारा नियंत्रित होती है तथा इसमें
- गति सदैव सरल रेखा में तथा एक नियत बिन्दु के इधर उधर होती है।
- गतिमान वस्तु के त्वरण की दिशा सदैव साम्यावस्था की ओर इंगित करती है।
- दोलन की प्रत्येक स्थिति में कण का त्वरण उसकी साम्यावस्था से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है।
(1) रैखिक सरल आवर्त गति (Linear Simple Harmonic Motion)
किसी वस्तु की रैखिक सरल आवर्ती गति होने के लिए निम्नलिखित तीन प्रतिबन्ध हैं—
(i) वस्तु की गति एक स्थिर बिन्दु (साम्य स्थिति) के इधरउधर सरल रेखा में हो। ।।
(ii) वस्तु पर कार्यरत प्रत्यानयन बल अर्थात् उससे वस्तु में उत्पन्न त्वरण सदैव माध्य स्थिति से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो अर्थात् ∝ – y जहाँ (-) चिह्न बताता है कि a की दिशा सदैव y की दिशा के विपरीत है।
(iii) बल अर्थात् त्वरण सदैव साम्य स्थिति की ओर दिष्ट हो।
(iv) गति समकालिक (isochronous) है, अर्थात् आवर्तकाल आयाम पर निर्भर नहीं करती है।
इस प्रकार सरल आवर्त गति में प्रत्यानयन बल, साम्य स्थिति से विस्थापन के समानुपाती तथा विपरीत दिशा में होता है। अर्थात्
F∝ – y
⇒ F =-ky …….. (1)
यहाँ F = प्रत्यनियन बल, y = साम्य स्थिति से विस्थापन तथा k प्रत्यानयन बल नियतांक कहलाता है, जिसका मात्रक न्यूटन/मीटर होता है।
प्रत्यानयन बल (F) तथा विस्थापन (y) में वक्र निम्न प्रकार रैखिक प्राप्त होता है
रैखिक सरल आवर्त गति का अवकल समीकरण-
माना कि m द्रव्यमान की वस्तु पर F बल आरोपित है जिसके कारण उत्पन्न त्वरण
समीकरण (3) को रैखिक सरल आवर्त गति का अवकल समीकरण (Differential Equation of S.H.M.) कहते हैं। इस समीकरण के हल का रूप निम्न होता है–
y = A sin(ωt + ϕ) ….(4)
जहाँ A तथा ϕ क्रमशः दोलन के आयाम (Amplitude) तथा कला नियतांक (Phase Constant) कहलाते हैं।
(2) कोणीय सरल आवर्त गति (Angular Simple Harmonic Motion)
यह प्रत्यानयन बल आघूर्ण के प्रभाव में होने वाली गति होती है। जैसे पिण्ड लोलक की गति, मरोड़ी लोलक की गति इत्यादि।
इस गति में कण साम्य स्थिति के इर्द-गिर्द कोणीय दोलन करता है। कण को पथ किसी वृत्त के चाप के अनुदिश होता है। प्रत्यानयन बल आघूर्ण कोणीय विस्थापन (8) का समानुपाती होता है और सदा माध्य स्थिति की ओर कार्य करता है और विपरीत दिशा में होता है।
गणितीय रूप में बल आघूर्ण @@@∝ – θ
= -cθ ….(1)
यहाँ c एक स्थिरांक है जिसे प्रत्यानयन बल आघूर्ण नियतांक कहते हैं तथा 8 कोणीय विस्थापन है।
कोणीय सरल आवर्त गति का अवकल समीकरण (Differential Equation of Angular Simple Harmonic Motion)
माना कि किसी वस्तु को घूर्णन अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण I तथा कोणीय त्वरण α है तब
यह कोणीय सरल आवर्त गति का अवकल समीकरण है। इस समीकरण के हल का स्वरूप निम्न प्रकार होता है-θ = θ0 sin (ωt + ϕ)
कोणीय सरल आवर्त गति को समीकरण (3) से भी परिभाषित किया जा सकता है।
यदि किसी वस्तु का कोणीय त्वरण कोणीय विस्थापन के समानुपाती हो और सदा माध्य स्थिति की ओर कार्य करे तो वह वस्तु कोणीय सरल आवर्त गति करेगी।
प्रश्न 2.
सिद्ध करें कि नियत कोणीय चाल ω0 से a त्रिज्यावाले वृतीय पथ में परिक्रमण करने वाले कण का लम्ब पाद बिन्दु, सरल आवर्त गति करता है। इस गति की समीकरण भी लिखिये।
उत्तर:
जब किसी वस्तु को स्थायी साम्यावस्था की स्थिति से अल्प-सा विस्थापित कर छोड़ दिया जाता है तो वह साम्यावस्था की स्थिति के इर्द-गिर्द आवर्ती गति करती है। इस प्रकार की गति को सरल आवर्त । गति कहते हैं। यह गति एक सरल रेखा में हो सकती है। जैसे, सरल। लोलक अथवा भारित कमानी का पिण्ड। एक वृत्त के चाप पर भी कोणीय गति हो सकती है। जैसे, असरल लोलक (Compound Pendulum) अथवा मरोड़ी लोलक में। वस्तु को जब माध्य स्थिति से विस्थापित किया जाता है तो उस पर एक बल लगता है जो उसे माध्य स्थिति की ओर लाता है। सरल आवर्त गति, दोलन गति का एक विशेष रूप है, जो सबसे सरल होता है। यह गति दो प्रकार की होती है
- रेखिक सरल.आवर्त गति
- कोणीय सरल आवर्त गति
सरल आवर्त गति की शुद्ध गतिकीय परिभाषा ”किसी वृत की परिधि पर होने वाली एक समान गति वृत के व्यास पर प्रक्षेप (Projection) सरल आवर्त गति होता है।”
माना कि चित्र अनुसार m द्रव्यमान का एक कण A त्रिज्या तथा O केन्द्र वाले वृत की परिधि पर समान कोणीय चाल , से चक्कर लगा रहा है। किसी क्षण जब कण, बिन्दु P पर है; तब कण की स्थिति से वृत्त के व्यास YY’ पर डाले गये लम्ब का पाद (Foot) बिन्दु M पर है। वृत्तीय पथ पर परिक्रमण करता कण जब बिन्दु X पर होता है तो लम्ब का पाद बिन्दु M, व्यास YY’ के अनुदिश गति करता हुआ O बिन्दु पर होता है। जब कण Y बिन्दु पर होता है तब लम्ब का पाद बिन्दु M भी Y बिन्दु पर पहुँच जाता है। जब कण X’ बिन्दु पर होता है। तब लम्ब का पाद बिन्दु पुनः O बिन्दु पर आ जाता है। कण के ?’ बिन्दु पर पहुंचने पर लम्ब का पाद बिन्दु भी Y पर होता है और एक चक्कर पूरा कर जब कण X बिन्दु पर होता है तब लम्बे का पाद भी Y” से चलकर पुनः O पर आ जाता है। स्पष्ट है जब अभीष्ट कण वृत्तीय पथ पर एक चक्कर पूरा करता है तब लम्ब का पाद-बिन्दु M, वृत्त के केन्द्र O के इधर-उधर सरल रेखा में गति करता है। यह बिन्दु M की रेखिक सरल आवर्त गति है। अतः एक समान वृतीय गति में प्रक्षेप के लम्बपाद बिन्दु की गति सरल आवर्त गति होती है।
बिन्दु M के O से Y, Y से Y” तक तथा Y” से 0 तक जाने को एक पूर्ण कम्पन कहेंगे।
हम जानते हैं कि वृत्तीय गति में कण पर अभिक्रेन्द्रीय बल (mω2A परिमाण में) सदैव वृत के केन्द्र की ओर प्रवृत होता है अतः कण के P बिन्दु पर होने पर यह बल OP दिशा में होगा। बल का YY’ दिशा में घटक (mω2A sin ωt) होगा।
विस्थापन y को दिशा oy में धनात्मक लेते हैं। उपरोक्त बल yo दिशा में लग रहा है, अर्थात् ऋणात्मक होगा अतः
F = – mω2y ….(1)
F = – ky …..(2)
जहाँ k = mω2, बल नियतांक कहलाता है।
समीकरण (1) से स्पष्ट है कि कण का द्रव्यमान m, कोणीय वेग ω नियत होने के परिणामस्वरूप बल, विस्थापन y के अनुक्रमानुपाती होता है तथा इसकी दिशा, विस्थापन y के विपरीत होती है अतः बल F को प्रत्यानयन बल (Restoring Force) कहते है।
अतः सरल आवर्त गति किसी वस्तु की अपनी साम्यवस्था के इधर-उधर वह दोलनी या कम्पनिक गति है जिसमें प्रत्यानयन बल।
- साम्यावस्था से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है।
- सदैव साम्यावस्था की ओर इंगित करता है।
सरल आवर्त गति F = – ky द्वारा नियंत्रित होती है तथा इसमें
- गति सदैव सरल रेखा में तथा एक नियत बिन्दु के इधर उधर होती है।
- गतिमान वस्तु के त्वरण की दिशा सदैव साम्यावस्था की ओर इंगित करती है।
- दोलन की प्रत्येक स्थिति में कण का त्वरण उसकी साम्यावस्था से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है।
सरल आवर्त गति का विस्थापन समीकरण (Displacement Equation of S.H.M.)
माना निर्देश वृत्त पर कण P बिन्दु X से गति प्रारम्भ करता है तथा t सेकण्ड में θ रेडियन का कोण घूम जाता है। यदि कण का कोणीय वेग ω हो तो कोणीय वेग की परिभाषा से
\(\omega=\frac{\theta}{t}\) अथवा θ = ωt
जबे कण X बिन्दु पर होता है तो इसका प्रक्षेप M वृत्त के केन्द्र O पर होता है अर्थात् O कण P के प्रक्षेप M की साम्य स्थिति अथवा प्रारम्भिक स्थिति है तथा । सेकण्ड में N का अपनी प्रारम्भिक स्थिति O से विस्थापन ON = y(माना)
समकोण ∆OMP में
∠OPM = ∠POX = 8 (∵ एकान्तर कोण है)
त्रिभुज से \(\sin \theta=\frac{O M}{O P}\) या OM = OP sin θ
या y = A sin θ
या y = A sin ωt (∵ 8 = ωt है ।) ….(1)
यही सरल आवर्त गति का विस्थापन समीकरण कहलाता है, चूँकि इसकी सहायता से किसी भी क्षण ‘t’ पर सरल आवर्त गति करते वास्तविक कण की इसकी साम्य स्थिति से विस्थापन y के मान की गणना की जा सकती है।
प्रश्न 3.
सरल आवर्त गति में कण की स्थितिज ऊर्जा, गतिज ऊर्जा एवं कुल ऊर्जा के व्यंजक प्राप्त कर यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण की पुष्टि कीजिये।
उत्तर:
सरल आवर्त दोलक की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy of a Simple harmonic oscillator)
सरल आवर्ती दोलक की गतिज ऊर्जा दोलक की गति के कारण विद्यमान होती है। सरल आवर्त गति कर रहे पिण्ड के लिए।
तात्क्षणिक विस्थापन y = A sin ωt ….(1)
तात्क्षणिक वेग v = Aω cos ωt …..(2)
यहाँ A पिण्ड की गति का आयाम तथा @ कोणीय आवृत्ति है, पिण्ड की तात्क्षणिक गतिज ऊर्जा
KE = \(\frac{1}{2}\)mv2
KE = \(\frac{1}{2}\)mω2A2 cos2 ωt ….(3)
उपरोक्त समीकरण गतिज ऊर्जा (KE) को समय के फलन के रूप में व्यक्त करता है-
उपरोक्त समीकरण गतिज ऊर्जा (k) को विस्थापन (y) के रूप में व्यक्त करता है।
साम्य स्थिति के लिए y = शून्य लेने पर गतिज ऊर्जा अधिकतम KEmax = \(\frac{1}{2}\)mω2A22 होगी।
अधिकतम विस्थापन y = ± A लेने पर गतिज ऊर्जा KEmin = शून्य प्राप्त होती
गतिज ऊर्जा k तथा विस्थापन y में ग्राफ-
औसत गतिज ऊर्जा (Average Kinetic Energy)
सरल आवर्त दोलक की स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy of a Simple harmonic oscillator)
तात्क्षणिक विस्थापन y = A sin ωt ….(1)
त्वरण a =- ω2A sin ωt
a =- ω2(y) = -ω2y ….(2)
यदि पिण्ड का द्रव्यमान m और उस पर कार्यरत प्रत्यानयन बल F है तो F = ma = m(- ω2y)
a = ω2y
F = -mω2y ….(3)
किया गया कार्य DW =-Fdy
समीकरण (3) से मान रखने पर।
dW =- (- mω2y)dy
dW = mω2ydy
पिण्ड को y दूरी से विस्थापित करने में किया गया कुल कार्य
यह कार्य ही दोलक की स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
∴ स्थितिज ऊर्जा U = \(\frac{1}{2}\)mω2y2
साम्य स्थिति के लिए y = 0 लेने पर
Umin = शून्य
अधिकतम विस्थापन y = ±A के लिए
Umax = \(\frac{1}{2}\)mω2A2
स्थितिज ऊर्जा U तथा विस्थापन y में ग्राफ-
स्थितिज ऊर्जा U तथा समय t में ग्राफ प्राप्त करने के लिएy को मान समीकरण (4) में रखने पर।
U = \(\frac{1}{2}\)mω2A2sin2ωt ….(5)
स्थितिज ऊर्जा U तथा समय (t) में ग्राफ निम्न तरह का प्राप्त होता है-
स्थितिज ऊर्जा तथा समय के बीच ग्राफ-
सरल आवर्त दोलक की कुल ऊर्जा (Total Energy of a Simple harmonic oscillator)
सरल आवर्त गति कर रहे कण की कुल ऊर्जा
समय या विस्थापन पर निर्भर नहीं है।
इस प्रकार सरल आवर्त गति कर रहे कण की कुल ऊर्जा नियत रहती है।
इस प्रकार सरल आवर्त गति में कण की सम्पूर्ण ऊर्जा कण के आयाम के वर्ग (A2) तथा आवृत्ति के वर्ग (n2) के समानुपाती होती है।
गतिज ऊर्जा (K) तथा स्थितिज ऊर्जा (U) का विस्थापन (y) के साथ परिवर्तन का ग्राफ-
चित्र में सरल आवर्त गति करते हुए कण की गतिज ऊर्जा (K), स्थितिज ऊर्जा (U) तथा कुल ऊर्जा (E) का विस्थापन y के साथ परिवर्तन दर्शाया गया है, स्पष्ट है विस्थापन स्थितिज ऊर्जा वक्र परवलय है। इस प्रकार प्राप्त वक्र A O B को आवर्त दोलक का स्थितिज ऊर्जा आलेख कहते हैं।
ऊर्जा समय ग्राफ निम्न प्रकार होता है-
उक्त सारणी से स्पष्ट है कि अधिकतम विस्थापन की स्थिति में कण की स्थितिज ऊर्जा का अधिकतम व गतिज ऊर्जा शून्य होती है तथा माध्य स्थिति में गतिज ऊर्जा अधिकतम व स्थितिज ऊर्जा शून्य होती है। इस प्रकार सरल आवर्त गति में कण की कुल ऊर्जा नियत रहती है।
पुनः ग्राफ के अध्ययन से स्पष्ट है कि गति के दौरान स्थितिज एवं गतिज ऊर्जा का योग, अर्थात् कुल ऊर्जा स्थिर बनी रहती है। ग्राफ, में x = \(\frac{a}{\sqrt{2}}\) वह विस्थापन का मान है जहाँ गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा समान है अतः
हालांकि कुल ऊर्जा घर्षण बलों के विरुद्ध विसरण होने के कारण स्थिर नहीं रह पाती है। सामान्यतः कण की कुल ऊर्जा धीरे-धीरे कम होती जाती है फलतः आयाम बराबर घटने लगता है।
प्रश्न 5.
किसी सरल आवर्त दोलक के लिये प्रति दोलनकाल औसत गतिज ऊर्जा, प्रति दोलनकाल औसत स्थितिज ऊर्जा के व्यंजक प्राप्त कर प्रति दोलन गतिज ऊर्जा, प्रति दोलन स्थितिज ऊर्जा तथा इनके औसत मानों को आलेखित कीजिये।
उत्तर:
सरल आवर्त दोलक की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy of a Simple harmonic oscillator)
सरल आवर्ती दोलक की गतिज ऊर्जा दोलक की गति के कारण विद्यमान होती है। सरल आवर्त गति कर रहे पिण्ड के लिए।
तात्क्षणिक विस्थापन y = A sin ωt ….(1)
तात्क्षणिक वेग v = Aω cos ωt …..(2)
यहाँ A पिण्ड की गति का आयाम तथा @ कोणीय आवृत्ति है, पिण्ड की तात्क्षणिक गतिज ऊर्जा
KE = \(\frac{1}{2}\)mv2
KE = \(\frac{1}{2}\)mω2A2 cos2 ωt ….(3)
उपरोक्त समीकरण गतिज ऊर्जा (KE) को समय के फलन के रूप में व्यक्त करता है-
उपरोक्त समीकरण गतिज ऊर्जा (k) को विस्थापन (y) के रूप में व्यक्त करता है।
साम्य स्थिति के लिए y = शून्य लेने पर गतिज ऊर्जा अधिकतम KEmax = \(\frac{1}{2}\)mω2A22 होगी।
अधिकतम विस्थापन y = ± A लेने पर गतिज ऊर्जा KEmin = शून्य प्राप्त होती
गतिज ऊर्जा k तथा विस्थापन y में ग्राफ-
औसत गतिज ऊर्जा (Average Kinetic Energy)
सरल आवर्त दोलक की स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy of a Simple harmonic oscillator)
तात्क्षणिक विस्थापन y = A sin ωt ….(1)
त्वरण a =- ω2A sin ωt
a =- ω2(y) = -ω2y ….(2)
यदि पिण्ड का द्रव्यमान m और उस पर कार्यरत प्रत्यानयन बल F है तो F = ma = m(- ω2y)
a = ω2y
F = -mω2y ….(3)
किया गया कार्य DW =-Fdy
समीकरण (3) से मान रखने पर।
dW =- (- mω2y)dy
dW = mω2ydy
पिण्ड को y दूरी से विस्थापित करने में किया गया कुल कार्य
यह कार्य ही दोलक की स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
∴ स्थितिज ऊर्जा U = \(\frac{1}{2}\)mω2y2
साम्य स्थिति के लिए y = 0 लेने पर
Umin = शून्य
अधिकतम विस्थापन y = ±A के लिए
Umax = \(\frac{1}{2}\)mω2A2
स्थितिज ऊर्जा U तथा विस्थापन y में ग्राफ-
स्थितिज ऊर्जा U तथा समय t में ग्राफ प्राप्त करने के लिएy को मान समीकरण (4) में रखने पर।
U = \(\frac{1}{2}\)mω2A2sin2ωt ….(5)
स्थितिज ऊर्जा U तथा समय (t) में ग्राफ निम्न तरह का प्राप्त होता है-
स्थितिज ऊर्जा तथा समय के बीच ग्राफ-
प्रश्न 6.
सरल लोलक क्या है? अल्प विस्थापन के लिये इसकी गति की विवेचना कीजिये। आवर्तकाल के सूत्र का निगमन कीजिये, यह किन-किन राशियों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
सरल लोलक (Simple Pendulum)
“यदि किसी पदार्थ के भारी कण को भार रहित, लम्बाई में स्थिर (न बढ़ने वाले) तथा पूर्ण लचकदार धागे के एक सिरे से बाँधकर किसी दृढ़ आधार से लटका दें तो यह समायोजन सरल लोलक कहलाता है।” व्यवहार में ऐसा समायोजन सम्भव नहीं है, अतः इसको ‘आदर्श सरल लोलक’ कहते हैं। एक आदर्श सरल लोलक में निम्न लक्षण होते हैं
- बिन्दु द्रव्यमान-सरल लोलक के दोलक का द्रव्यमान एक ही बिन्दु पर केन्द्रित होना चाहिये। यह संभव तब ही हो सकता है। जबकि उसका आकार शून्य हो। आकार रहित द्रव्यमान को बिन्दु द्रव्यमान कहते हैं। बिन्दु द्रव्यमान मात्र एक संकल्पना है।
- धागा एवं तंतु जिससे बिन्दु द्रव्यमान को निलंबित करते हैं, भार रहित होना चाहिये तथा दोलक के भार से उसका विस्तरण नहीं होना चाहिये।
- दृढ़ आधार-जिस आधार से वह निलंबित किया जाता है, वह दृढ़ होना चाहिये।
- घर्षण रहित-उसके विविध भागों में आंतरिक एवं बाह्य घर्षण शून्य होना चाहिये।
हम यहाँ पर एक आदर्श सरल लोलक के व्यावहारिक प्रतिरूप पर विचार करते हैं।
चित्र के अनुसार भारी धातु की एक छोटी गेंद अर्थात् गोलक को पतले धागे से लटकाते हैं। बिन्दु ) (गोलक का गुरुत्व केन्द्र) तथा बिन्दु A क्रमशः दोलन एवं निलंबन बिन्दु हैं। इन दोनों बिन्दुओं के बीच की दूरी को कार्यकारी लम्बाई कहते हैं।
गोलक को थोड़ा सा दाईं ओर खींचकर मुक्त करने पर वह दोलन करने लगता है।
वास्तव में घर्षण बलों के विरुद्ध ऊर्जा का विसरण होने से आयाम धीरे-धीरे कम होता जाता है।
किसी कण विस्थापित अवस्था AP में गोलक पर कार्यकारी बल
(i) गोलक का भार w = mg, पृथ्वी के केन्द्र की ओर जहाँ m गोलक का द्रव्यमान है तथा g गुरुत्वीय त्वरण है।
(ii) धागे में तनाव बल \(\overrightarrow{\mathrm{T}}\), PA दिशा में कार्य करता है। mg को दो घटकों में वियोजित कर सकते हैं-घटक mg cos θ जो कि धागे की सीध में 7 के विपरीत दिशा में कार्य करता है तथा घटक mg sin θ जो कि धागे के लम्बरूप दिशा में कार्य करता है। घटक mg cos θ तथा धागे में तनाव \(\overrightarrow{\mathrm{T}}\) को सन्तुलित करता है लेकिन mg sin θ घटक असंतुलित रह जाता है। घटक mg sin θ गोलक को साम्यस्थिति में लाने का प्रयत्न करता है। इसे प्रत्यानयन बल (restoring force) कहते हैं।
बॉब पर प्रत्यानयन बल
F = – mg sin θ
ऋण चिह्न यह दर्शाता है कि बल, विस्थापन की विपरीत दिशा में, अर्थात् साम्य स्थिति की ओर है।
यदि कोणीय विस्थापन θ अल्प है तब
गोलक का त्वरण उसके विस्थापन के अनुक्रमानुपाती है तथा उसकी दिशा विस्थापन के विपरीत है। अतः निश्चित ही बॉब की यह सरल आवर्त गति है।
समीकरण (1) से
\(\omega^{2}=\frac{g}{l}\)
अतः गति का आवर्तकाल
\(\mathrm{T}=2 \pi \sqrt{\frac{l}{g}}\) …..(2)
यह सरल लोलक के आवर्त काल का सूत्र है।
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि-
(i) आवर्तकाल की द्रव्यमान पर निर्भरता नहीं है। यदि एक झूले पर एक लड़की झूल रही हो तथा उसी झूले पर एक अन्य लड़की आकर बैठ जाये तो झूले के आवर्तकाल पर कोई भी प्रभाव नहीं होता है।
(ii) लोलक के आवर्तकाल की आयाम पर निर्भरता समीकरण (2) से स्पष्ट है कि आवर्तकाल का मान आयाम पर निर्भर नहीं करता परन्तु यह अल्प कोणीय आयाम हेतु ही सत्य है।
(iii) आवर्तकाल लम्बाई के वर्गमूल के अनुक्रमानुपाती है। यदि झूले पर झूलती लड़की खड़ी हो जाये तो गुरुत्व केन्द्र ऊपर उठ जाने से झूले की प्रभावी लम्बाई घट जाती है। फलतः आवर्तकाल कम हो जाता है।
(iv) गुरुत्वीय त्वरण पर निर्भरता-आवर्तकाल गुरुत्वीय त्वरण g के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती है। जब किसी लोलक घड़ी को पहाड़ अथवा खान में ले जाते हैं तो g का मान घटने से आवर्तकाल बढ़ जाता है। अर्थात् घड़ी सुस्त हो जाती है।
(v) सेकण्ड लोलक-ऐसा सरल लोलक जिसका आवर्तकाल 2 सैकण्ड (s) होता है। एक सेकण्ड लोलक की लम्बाई समी. (2) से
\(l=\left(\frac{T}{2 \pi}\right)^{2} g\)
T = 2 सैकण्ड, π = 3.14, g = 9.8 m/s
तब सेकण्ड लोलक की लम्बाई
l = 99.4 cm
(vi) ∵ T = \(\frac{1}{\sqrt{g}}\) तथा gध्रुव > gभूमध्य रेखा
अतः ध्रुव के सापेक्ष भूमध्य रेखा पर आवर्तकाल अधिक होगा। अर्थात्
Tध्रुव < Tभूमध्य रेखा
सरल लोलक से गुरुत्वीय त्वरण का मान ज्ञात करना–सरल। लोलक के दोलनों हेतु आवर्तकाल
\(\mathrm{T}=2 \pi \sqrt{\frac{l}{g}}\)
निलम्बन बिन्दु से धातु के गोले के केन्द्र (गुरुत्वीय केन्द्र) तक की दूरी को सरल लोलक की प्रभावी लम्बाई कहते हैं, जिसे L द्वारा व्यक्त करते हैं । गोलक (धातु के गोले की त्रिज्या वर्नियर कैलीपर्स से ज्ञात कर सकते हैं।) अतः L= l + e+r जहां । निलम्बन बिन्दु से हुक तक की धागे की लम्बाई, e = हुक की लम्बाई तथा r गोले की त्रिज्या है। 100 से 150 सेमी. के धागे की लम्बाई के विभिन्न मानों के संगत, 15, 20, 25, 30 दोलनों का समय ज्ञात करते हैं तथा g = 4π\(\frac{l}{\mathrm{T}^{2}}\) गुरुत्वीय त्वरण g ज्ञात करते हैं।
प्रश्न 7.
कमानी स्प्रिंगों के श्रेणीक्रम तथा समान्तर क्रम संयोजन में क्या अन्तर है? प्रत्येक संयोजन में प्रभावी स्प्रिंग नियतांक का व्यंजक प्राप्त कीजिये।
उत्तर
(1) श्रेणीक्रम संयोजन (Series Combination)
सामने चित्र में दर्शायी गई स्थिति में दोनों स्प्रिंग S1 तथा S2 आपस में श्रेणीक्रम में जुड़ी हैं जब पिण्ड को y दूरी से नीचे खींचेंगे। तो दोनों स्प्रिंगों में विस्तार भिन्न होगा। माना S1 की लम्बाई में वृद्धि y1 और S2 की लम्बाई में वृद्धि y2 है।
तब y = y1 + y2 स्प्रिंग S1 तथा S2 में प्रत्यानयन बल को मान होगा-
F1= -k1y1
F2 = -k2y2
∵ दोनों स्प्रिंग श्रेणीक्रम में हैं, इनमें तनाव एक समान रहेगा।। अतः पिण्ड पर प्रत्यानयन बल
इस स्थिति में स्प्रिंग की लम्बाई में वृद्धि प्रत्येक स्प्रिंग की लम्बाई में वृद्धि की दुगुनी होगी तथा प्रभावी बल नियतांक प्रत्येक स्प्रिंग के बल नियतांक का आधा होगा।
यदि k1 = k2 = k3 = ….. k’ स्प्रिंग नियतांक वाली n स्प्रिंग: श्रेणी क्रम में संयोजित हैं तो संयोजन का प्रभावी स्प्रिंग निग्नतांक होगा
स्पष्ट है कि संयोजन का प्रभावी नियतांक k, प्रत्येक छोटी स्प्रिंग के नियतांक का \(\frac{1}{n}\) गुना और आवर्तकाल \(\sqrt{n}\) गुना हो जाता है।
इसी प्रकार यदि किसी स्प्रिंग को काटकर उसके n बराबर टुकड़े कर दिये जायें तो प्रत्येक टुकड़े का बल नियतांक n गुना हो जायेगा तथा आवर्तकाल \(\frac{1}{\sqrt{n}}\) गुना रह जायेगा।
(2) समान्तर क्रम संयोजन (Parallel Combination)
माना दो स्प्रिंग जिनके बल स्थिरांक k1 तथा k2 हैं। चित्र में दिखाये अनुसार समान्तर क्रम में m द्रव्यमान के पिण्ड से जुड़ी है।
अब m द्रव्यमान को y विस्थापन दिया जाता है। अतः प्रत्येक स्प्रिंग की लम्बाई में बराबर विस्तार होगा। स्प्रिंगों द्वारा पिण्ड पर आरोपित प्रत्यानयन बल के मान होंगे–
Fa = -k1y
तथा F2 = -k2y
ये दोनों बल एक ही दिशा में हैं तथा विस्थापन y के विपरीत हैं। अतः दोनों स्प्रिंगों द्वारा पिण्ड पर आरोपित कुल प्रत्यानयन बल का मान होगा
प्रश्न 8.
मुक्त दोलन, अवमंदन तथा प्रणोदित दोलनों को उदाहरण सहित समझाते हुये अनुनाद की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
(1) मुक्त सरल आवर्ती दोलन या मुक्त दोलन (Undamped Simple harmonic oscillation or free oscillations)
जब किसी कम्पन कर सकने वाली वस्तु, उदाहरणार्थ सरल लोलक या स्वरित्र पर केवल प्रत्यानयन बल कार्य करता है तो वह वस्तु अनन्त काल तक कम्पन कर सकती है। इस प्रकार के कम्पनों को मुक्त कम्पन कहते हैं तथा इस प्रकार के दोलन को मुक्त दोलन कहते हैं। इसकी आवृत्ति को प्राकृतिक आवृत्ति (Natural Frequency) कहते हैं। मुक्त दोलन में केवल प्रत्यानयन बल कार्य करता है। इसके आयाम तथा ऊर्जा दोनों समय के साथ नियत रहते हैं। जैसा कि चित्र में प्रदर्शित है
उदाहरण-(i) सरल लोलक के गोलक को साम्य स्थिति से विस्थापित करके छोड़ने पर वह स्वाभाविक आवृत्ति से दोलन करता है। इस स्थिति में यदि वायु के प्रतिरोधकों को नगण्य माना जाये तब दोलन, मुक्त दोलन होते हैं।
(ii) किसी स्वरित्र द्विभुज को रबर पैड से मारने पर उसकी भुजायें स्वाभाविक आवृत्ति से दोलन करती हैं। यह आवृत्ति स्वरित्र द्विभुज की भुजाओं की मोटाई पर निर्भर करती है।
मुक्त दोलनों में किसी क्षण वस्तु पर लगने वाला प्रत्यानयन बल, साम्य स्थिति से वस्तु के विस्थापन के समानुपाती होता है।
इकाई विस्थापन की स्थिति में वस्तु पर लगने वाले प्रत्यानयन बल को वस्तु की कठोरता s कहते हैं।
मुक्त दोलन का आवर्त काल
इस प्रकार से स्पष्ट होता है कि मुक्त दोलन का आवर्त काल तथा आवृत्ति केवल वस्तु के द्रव्यमान तथा कठोरता के अनुपात पर निर्भर है। द्रव्यमान के बढ़ने या कठोरता के घटने पर T का मान बढ़ जाता है और आवृत्ति घट जाती है।
(2) अवमंदित दोलन (Damped Oscillation)
व्यवहार में कोई वस्तु अनन्त काल तक दोलन नहीं कर सकती।। यदि हम सरल लोलक पर विचार करें तो पाते हैं कि घर्षण बल से विसरण के परिणामस्वरूप ऊर्जा का क्षय होने से दोलन का आयाम लगातार घटता जाता है और अन्त में सरल लोलक की विरामअवस्था में आ जाता है। यह घर्षण बल पिण्ड की गति का सदैव विरोध करता है अतः वस्तु को प्रारम्भिक विस्थापन में दी गई ऊर्जा धीरे-धीरे, परन्तु लगातार घर्षण के विरुद्ध कार्य करते हुये ऊष्मा में बदलती है। यह ऊर्जा वस्तु को कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती अतः ऊर्जा क्षय के कारण दोलनों का आयाम धीरे-धीरे घटता जाता है तथा अंत में आयाम शून्य हो जाता है और वस्तु रुक कर विराम अवस्था में आ जाती है। ऊर्जा क्षय के कारण दोलनों के आयाम के लगातार कम होते जाने को अवमन्दन कहते हैं।
चित्र में घर्षण बल (अवमन्दक बल) की उपस्थिति के कारण घटते आयाम के अवमन्दक दोलक दर्शाये गये हैं।
अवमंदित दोलन । अवमन्दक बल, सामान्यतः दोलक के वेग के अनुक्रमानुपाती । होते हैं तथा यह वेग की दिशा की विपरीत दिशा में कार्यरत होते हैं।
अर्थात् Fd ∝ – v
Fd = – bv …..(1)
समीकरण (1) में b अवमंदन नियतांक कहलाता है।
यहाँ v वस्तु का वेग है।
b का मान माध्यम के गुणों जैसे श्यानता, वस्तु के आकार तथा आकृति पर निर्भर करता है।
प्रत्यानयन बल FR = – ky ……..(2)
अतः दोलक पर कार्यरत कुल बल, प्रत्यानयन बल एवं अवमंदक बल के योग के बराबर होता है।
प्रणोदित कम्पन (Forced Vibrations)
जब किसी वस्तु पर कोई ऐसा बाह्य आवर्त बल लगता है जिसकी आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति से भिन्न हो, तो शुरू में वस्तु अपनी स्वाभाविक आवृत्ति से ही कम्पन करने का प्रयत्न करती है, जबकि बाह्य आवर्त बल उस वस्तु पर अपनी आवृत्ति आरोपित करने का प्रयत्न करता है। अतः वस्तु और आवर्त बल के बीच एक प्रकार की स्पर्धा उत्पन्न हो जाती है जिससे कभी तो वस्तु का दोलन आयाम बढ़ जाता है और कभी कम हो जाता है अर्थात् प्रारम्भ में वस्तु के कम्पन अनियमित होते हैं। परन्तु वस्तु के दोलन की यह अनियमितता शीघ्र ही समाप्त हो जाती है तथा अन्ततः वस्तु बाह्य आवर्त बल की आवृत्ति से ही दोलन करने लगती है। इस प्रकार के दोलनों को प्रणोदित दोलन या कम्पन कहते हैं क्योंकि इन दोलनों में वस्तु सदैव आरोपित बाह्य आक्र्त बल की आवृत्ति से ही कम्पन करती है, उसकी अपनी स्वाभाविक आवृत्ति चाहे कुछ भी क्यों न हो। अतः प्रणोदित दोलनों या कम्पनों को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-
“जब कोई वस्तु किसी बाह्य आवर्त बल के अन्तर्गत बाह्य बल की आवृत्ति से दोलन करती है तो वस्तु के दोलन प्रणोदित दोलन यो प्रणोदित कम्पन कहलाते हैं।”
उदाहरण—(1) किसी स्वरित्र की मुँठ को हाथ से पकड़कर उसको कम्पन कराने पर मन्द ध्वनि काफी समय तक सुनाई पड़ती है परन्तु यदि हम मुँठ को किसी बॉक्स पर टिका दें तो ध्वनि तीव्र हो जाती है। इसका कारण यह है कि स्वरित्र को बॉक्स पर टिकाने पर स्वरित्र के दोलन मूठ द्वारा बॉक्स पर पहुँच जाते हैं तथा बॉक्स व उसमें भरी वायु में प्रणोदित कम्पन उत्पन्न हो जाते हैं। बॉक्स का धरातल अधिक होने व उसके अन्दर वायु होने से ध्वनि की तीव्रता बढ़ जाती है। चूंकि अब स्वरित्र द्विभुज तीव्र ध्वनि दे रहा है। अतः उसकी कम्पन ऊर्जा शीघ्र समाप्त हो जाती है, जिस कारण ध्वनि का आना शीघ्र ही बन्द हो जाता है।
(2) जब हम टेलीफोन के माउथ पीस में लगे कार्बन माइक्रोफोन के सामने बोलते हैं तो हमारे मुँह से निकले ध्वनि-कम्पनों के प्रभाव से माइक्रोफोन पर डायफ्राम (diaphragm) कम्पन करने लगता है। इस प्रकार ये कम्पन प्रणोदित दोलन’ होते हैं जिनकी आवृत्ति हमारी आवाज (ध्वनि) की आवृत्ति के बराबर होती है।
यदि चित्र के अनुसार चार सरल लोलक A, B, C एवं D लटका दिये जायें और इनमें से लोलक A को कम्पित कर दें तो हम पायेंगे कि । B, C एवं लोलक D भी A की आवृत्ति से कम्पन करने लगते हैं। लोलक B, C एवं D लोलक के कम्पन को प्रणोदित कम्पन कहते हैं।
इस घटना में A प्रेरक है जो B, C एवं D लोलक में कम्पन प्रेरित करता है जब प्रेरक की आवृत्ति, प्रेरित की प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर होती है तो प्रेरित में अधिकतम ऊर्जा हस्तान्तरित होती है। एवं प्रेरित का आयाम भी अधिकतम होता है।
अनुनाद (Resonance)
प्रणोदित दोलनों के अध्ययन से हम जानते हैं कि जब किसी। वस्तु पर कोई बाह्य बल, जिसकी आवृत्ति वस्तु की स्वभाविक आवृत्ति | से भिन्न है, को आरोपित किया जाता है तो वह वस्तु उस बल की। आवृत्ति से प्रणोदित दोलन करने लगती है। प्रारम्भ में इन दोलनों का आयाम छोटा होता है परन्तु जब बाह्य बल की आवृत्ति, वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर अथवा इसका पूर्ण गुणज होती है तो वस्तु के प्रणोदित दोलनों का आयाम बहुत बड़ा हो जाता है, इस अवस्था को अनुनाद कहते हैं। इस परिस्थिति में प्रेरक बल से प्रेरित वस्तु में ऊर्जा अधिकतम हस्तान्तरित होती है।
उदाहरणार्थ-चित्र में एक पतली डोरी पर चार लोलक लटके दिखाये गये हैं। लोलक A व C की लम्बाई आपस में बराबर है। अतः इनकी आवृत्तियाँ भी बराबर हैं। लोलक B की लम्बाई इनसे कुछ अधिक तथा लोलक D की लम्बाई कुछ कम है। यदि लोलक A को दोलन करा दें तो ये दोलन डोरी द्वारा अन्य लोलकों तक पहुँच जाते । हैं। इससे इन लोलकों पर A की आवृत्ति का बल लगता है। यह देखा जा सकता है कि लोलक B तथा D, जिनकी आवृत्ति लोलक A से भिन्न है, कम आयाम से प्रणोदित दोलन करते हैं जबकि लोलक C के प्रणोदित दोलनों का आयाम धीरे-धीरे बढ़ता जाता है तथा A के आयाम के बराबर हो जाता है। यह अनुनाद के कारण होता है। अतः C के दोलन अनुनादी दोलन हैं।
व्याख्या–जब बाह्य बल की आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर होती है, तब बाह्य बल प्रत्येक अवस्था में वस्तु के दोलन की कला में होता है। फलतः आवर्त बल द्वारा लगाये गये। उत्तरोत्तर आवेग निरन्तर वस्तु की गतिज ऊर्जा बढ़ाते जाते हैं। इस कारण वस्तु के दोलन का आयाम लगातार बढ़ता जाता है परन्तु आयाम में वृद्धि घर्षण आदि क्षय-बलों के कारण सीमित हो जाती है जब बाह्य बल द्वारा प्रति दोलने में वस्तु को दी गयी ऊर्जा, वस्तु द्वारा प्रति दोलन में घर्षण आदि से ऊर्जा के क्षय के बराबर हो जाती है, आयाम का बढ़ना रुक जाता है। इस संतुलनावस्था में ही आयाम का मान अधिकतम होता है। | यदि ऊर्जा क्षय न होती तो अनुनाद की अवस्था में आयाम बढ़ते-बढ़ते अनन्त हो जाता।
दैनिक जीवन में अनुनाद से सम्बन्धित कई परिघटनायें देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए।
(1) प्रत्येक भवन की अपनी प्राकृतिक आवृत्ति होती है जो उसकी ऊँचाई, आमाप के अन्य प्रचालों तथा निर्माण में प्रयुक्त सामग्री पर निर्भर करती है। जब भवनों की प्राकृतिक आवृत्ति भूकम्प के समय उत्पन्न पृथ्वी के कम्पनों की आवृत्ति के बराबर हो जाती है तो भवन बड़े आयाम के साथ कम्पन करने लगते हैं जिससे वे धराशायी हो जाते हैं। इस प्रकार जिस भवन की प्राकृतिक कम्पन आवृत्ति, भूकम्पी तरंग की आवृत्ति के सन्निकट होती है उसके क्षतिग्रस्त होने की सम्भावनाएँ सबसे अधिक होती हैं।
(2) पुल को पार करते समय सैनिकों की टुकड़ी पुल पर कदम मिलाकर नहीं चलती । इसका कारण यह है कि यदि सैनिकों के कदमों की आवृत्ति पुल की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर हो जाये तो पुल में अनुनादी दोलनों के कारण कम्पन आयाम बहुत बढ़ जाएगा। फलस्वरूप उस पुल के टूटने का खतरा हो जाएगा। इसी प्रकार, पुल को पार करती रेल के पहियों की आवृत्ति पुल की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर होने पर पुल को अनुनादित होकर गिरने का भय रहता है।
(3) जब कम्पित स्वरित्र को किसी ऐसे खोखले बॉक्स पर रखा। जाये जिसमें वायु भरी हो तब वायु की स्वाभाविक आवृत्ति स्वरित्र की आवृत्ति के बराबर होने पर बहुत तीव्र ध्वनि सुनाई देती है। ऐसा अनुनाद के कारण होता है।
(4) हम विशिष्ट आकाशवाणी स्टेशन से प्रसारित कार्यक्रम को रेडियो ट्रांजिस्टर को समस्वरित करके सुनते हैं।
(5) पुल अथवा सुरंग में से गुजरते समय ड्राइवर ट्रेन की सीटी नहीं बजाते ।
∵ प्रणोदित दोलन का आयाम का सूत्र होता है।
यदि ωd = ω हो तो आयाम अधिकतम होगा परन्तु अवमंदन बलों की उपस्थिति के कारण अनन्त नहीं होगा। संगत आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं। इस स्थिति में आयाम
\(A_{\mathrm{m}}=\frac{\mathrm{F}_{0}}{\sqrt{\omega_{\mathrm{d}}^{2} \mathrm{b}^{2}}}=\frac{\mathrm{F}_{0}}{\omega_{\mathrm{d}} \mathrm{b}}\)
अनुनादी आवृत्ति पर दोलक आरोपित बल लगाने वाले निकाय से अधिकतम ऊर्जा का अवशोषण कर लेता है। दोलक के अनुनाद की तीक्ष्णता अवमंदन पर निर्भर करती है।
RBSE Class 11 Physics Chapter 8 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
कोई पिण्ड निम्नलिखित समीकरण के अनुसार सरल आवर्त गति से दोलन करता है–
\(x=5.0 \cos \left(2 \pi t+\frac{\pi}{4}\right) m\)
t = 1.5s –
हल:
= 197,192 × 0.707
= 139.41 मी./से.
उदाहरण 2.
सरल आवर्त गति करते पिण्ड का आवर्तकाल 2 सेकण्ड है। t = 0 समय से प्रारम्भ होकर कितने समय पश्चात् इसका विस्थापन, आयाम के बराबर होगा?
हल:
दिया है– T =2 सेकण्ड
t = ?
y = A
सरल आवर्त गति के समीकरण से
प्रश्न 3.
सरल आवर्त गति कर रहे एक कण का अधिकतम वेग 8 cm/s है और माध्य स्थिति से 4 cm दूरी पर त्वरण 16 cm/s है। आवर्तकाल एवं आयाम ज्ञात करें।
हल:
दिया है- Vmax = 8 सेमी./से.
आयाम (y) =4 सेमी.।
त्वरण a = 16 सेमी./से.
हम जानते हैं।
Vmax = Aω = 8
अतः A = \(\frac{8}{\omega}\)
त्वरण a = ω2y
या 16 = ω2 × 4
∴ ω2 = \(\frac{16}{4}\) = 4
या ω = \(\sqrt{4}\) = 2 रेडियन/सेकण्ड
अतः आयाम a = \(\frac{8}{\omega}\)
= \(\frac{8}{2}\) = 4 सेमी.
आपतकात \(\mathrm{T}=\frac{2 \pi}{\omega}=\frac{2 \pi}{2}=\pi\)
=3.14 सेकण्ड।
प्रश्न 4.
एक कण की सरल आवर्त गति में विस्थापन मध्यमान अवस्था से 4 cm एवं 5 cm पर वेग के मान क्रमशः 10 cm/s तथा 8 cm/s होते हैं। कण का आवर्तकाल ज्ञात कीजिये।
हल:
दिया है
y1 = 4 सेमी.
y1 = 10 सेमी./से.
y2 =5 सेमी.
y2 = 8 सेमी./सेकण्ड
प्रश्न 5.
एक कण सरल आवर्त गति कर रहा है। इसका अधिकतम वेग 3 m/s तथा गति का आयाम 0.2 m है। गति का आवर्त काल ज्ञात कीजिये।
हल:
दिया है
Vmax = 3 m/s
A = 0.2 m
∴ T = ?
Vmax = Aω
प्रश्न 6.
1 kg संहति के किसी गुटके को एक कमानी से बाँधा गया है। कमानी स्थिरांक 50 N/m है। गुटके को उसकी साम्यावस्था की स्थिति x = 0 से t = 0 पर किसी घर्षणहीन पृष्ठ पर कुछ दूरी x = 10 cm तक खींचा जाता है। गुटको अपनी माध्य स्थिति 5 m. दूर है। तब उसकी गतिज, स्थितिज तथा कुल ऊर्जा के मान की गणना कीजिये।
हल:
दिया है m = 1 किग्रा.
k = 50 न्यूटन/मी.
विस्थापन x =5 सेमी. = 5 × 10-2 मी.
आयाम A = 10 सेमी. = 10 × 10-2 मी.
प्रश्न 7.
एक सरल आवर्त दोलक का आवर्तकाल 6 s है। साम्य स्थिति से गति प्रारम्भ करने वाले दोलक के लिये कितने समय पश्चात् उसका विस्थापन उसके आयाम का आधा होगा?
हल:
साम्य स्थिति से सरल आवर्त गति प्रारम्भ करने वाले कण के लिए तात्क्षणिक विस्थापन
प्रश्न 8.
9.0 J कुल ऊर्जा वाले सरल आवर्ती दोलक की किसी क्षण स्थितिज ऊर्जा 5J है। दोलक का आयाम 0.01 m हो तो इस 2 kg द्रव्यमान वाले दोलक का आवर्तकाल ज्ञात कीजिये।
हल–
दिया है
E = 9.0 J
PE. = 5 J
A = 0.01 m
m = 2 kg
T = ?
चूंकि E = \(\frac{1}{2}\) mω2A2 …………(1)
P.E. = U = \(\frac{1}{2}\) mω2y2 ………………(2)
समीकरण (2) में (1) का भाग देने पर
प्रश्न 9.
यदि चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी पर गुरुत्वीय त्वरण मान का छठा भाग है तो चन्द्रमा पर उसी सरल लोलक का आवर्तकाल कितना गुना होगा?
हल:
पृथ्वी पर सरल लोलक का आवर्तकाल
प्रश्न 10.
एक सरल लोलक के गोलक का द्रव्यमान 0.025 | kg है। इसकी डोरी की प्रभावी लम्बाई 1 m है तथा इसका आवर्तकाल 2.0 s है। गुरुत्वीय त्वरण g का मान ज्ञात करो।
हल:
दिया है
m = 0.025 kg
l = 1 m
T = 2.0 s
g = ?
∵ \(\mathrm{T}=2 \pi \sqrt{\frac{l}{g}}\)
प्रश्न 11.
एक सेकण्ड लोलक की लम्बाई (जहाँ g = 9.8 m/s)1m है। किसी ग्रह पर जहाँ g = 4.9 m/s है, सेकण्ड लोलक की लम्बाई क्या होगी?
हल:
सेकण्ड लोलक की प्रभावी लम्बाई
प्रश्न 12.
सरल आवर्त गति करते हुये पिण्ड की किस स्थिति में वेग, अधिकतम वेग का आधा होता है?
हल:
प्रश्न 13.
निम्न स्थिति से सरल लोलक के आवर्तकाल में प्रतिशत परिवर्तन का मान ज्ञात कीजिये
(i) लोलक की लम्बाई 5% बढ़ने पर
(ii) लोलक की द्रव्यमान 5% बढ़ने पर
(iii) लोलक की आयाम 5% बढ़ने पर
हल:
हम जानते हैं
अतः आवर्तकाल में प्रतिशत वृद्धि = 2.5% उत्तर
(ii) आवर्तकाल लोलक के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता, अतः द्रव्यमान बढ़ाने पर आवर्तकाल वही रहेगा।
(iii) आवर्तकाल गति के आयाम पर भी निर्भर नहीं करता, अतः आयाम घटाने पर आवर्त काल वही रहेगा।
इसलिए प्रतिशत परिवर्तन = शून्य
अतः आवर्तकाल समान रहेगा।
प्रश्न 14.
एक आदर्श स्प्रिंग से 0.5 kg द्रव्यमान के पिण्ड को लटकाकर ऊर्ध्व दोलन कराये जाते हैं। दोलन काल 1/2 से. है तो स्प्रिंग नियतांक का मान ज्ञात कीजिये।
हल:
दिया है- m = 0.5 kg
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