Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 1857 का स्वतंत्रता संग्राम और राजस्थान पर उसका प्रभाव एवं राजस्थान में क्रान्तिकारी, प्रजामण्डल व किसान आन्दोलन
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
1857 का स्वतंत्रता संग्राम कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
10 मई 1857 को मेरठ से सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ।
प्रश्न 2.
राजस्थान में सर्वप्रथम कहाँ सैनिक विद्रोह हुआ?
उत्तर:
28 मई 1857 को नसीराबाद में।
प्रश्न 3.
15वीं बंगाल इन्फेन्ट्री कहाँ तैनात थी?
उत्तर:
नसीराबाद में।
प्रश्न 4.
फस्र्ट बाम्बे लांसर्स क्या थी?
उत्तर:
अंग्रेजों के वफादार सैनिकों की टोली।
प्रश्न 5.
एनफील्ड राइफल्स क्या थी?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार द्वारा सेना के उपयोग हेतु प्रयुक्त नई रायफल।
प्रश्न 6.
काली बाई और नानाभाई खांट किस रियासत से संबंधित थे?
उत्तर:
डूंगरपुर रियासत से।
प्रश्न 7.
तात्या टोपे राजस्थान में कहाँ आए थे?
उत्तर:
तांत्या टोपे राजस्थान के टोंक में आए थे।
प्रश्न 8.
खरवा’ नामक स्थान का महत्व बताइए।
उत्तर:
खरवा नामक स्थान पर एरिनपुरा के विद्रोही सेनिकों की भेंट ठाकुर कुशाल सिंह से हुई।
प्रश्न 9.
विथोड़ा नामक स्थान पर किन-किन के मध्य युद्ध हुआ?
उत्तर:
ठाकुर कुशाल सिंह की सेना एवं जोधपुर की राजकीय सेना के बीच।
प्रश्न 10.
जयदयाल और मेहराव खाँ को कहाँ फांसी दी गई।
उत्तर:
एजेन्सी के निकट नीम के पेड़ पर सरेआम फाँसी दी गई।
प्रश्न 11.
तात्या टोपे ने किस रियासत पर अधिकार किया था?
उत्तर:
बांसवाड़ा रियासत पर।
प्रश्न 12.
1857 में राजस्थान में कितनी सैनिक छावनियाँ थीं?
उत्तर:
6 सैनिक छावनियाँ।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
1857 में राजपूताना में कितने सैनिक और कितनी छावनियाँ थीं?
उत्तर:
1857 की क्रान्ति के प्रारम्भ होने के समय राजपूताना (राजस्थान) में नसीराबाद, नीमच, देवली, ब्यावर, एरिनपुरा एवं खेरवाड़ा में 6 सैनिक छावनियाँ र्थी। इन सभी 6 सैनिक छावनियों में लगभग पाँच हजार भारतीय सैनिक थे।
प्रश्न 2.
1857 में राजस्थान का ए. जी. जी. कौन था?
उत्तर:
1857 में राजस्थान का ए. जी. जी. (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) जार्ज पैट्रिक लारेन्स था।
प्रश्न 3.
आउवा के किले के द्वार पर किस एजेंट का सिर लटकाया गया?
उत्तर:
जोधपुर की सेना की पराजय की खबर पाकर ए.जी.जी. जार्ज लारेन्स स्वयं एक सेना लेकर आउवा पहुँचा मगर 18 सितम्बर 1857 को वह विद्रोहियों से परास्त हुआ। इस संघर्ष के दौरान जोधपुर का पोलिटिकल एजेन्ट मोक मेसन क्रान्तिकारियों के हाथों मारा गया। उसका सिर आउवा के किले के द्वार पर लटका दिया गया।
प्रश्न 4.
ब्रिगेडियर होम्स ने किस पर और कहाँ आक्रमण किया?
उत्तर:
ब्रिगेडियर होम्स ने 29 जनवरी 1858 को आउवा पर आक्रमण किया।
प्रश्न 5.
रिसालदार मेहराव खाँ और जयदयाल ने कहाँ की सेना का नेतृत्व किया?
उत्तर:
रिसालदार मेहराव खाँ और लाला जयदयाल ने विद्रोही सेना का नेतृत्व किया। विद्रोही सेना को कोटा के अधिकांश अधिकारियों व किलेदारों का भी सहयोग व समर्थन प्राप्त हो गया। विद्रोहियों ने राज्य के भण्डारों, राजकीय बंगलों, दुकानों, शस्त्रागारों, कोषागार एवं कोतवाली पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 6.
क्रान्ति का अन्त कब हुआ?
उत्तर:
1857 की क्रान्ति का अन्त 21 सितम्बर 1857 को दिल्ली में हुआ, जहाँ मुगल बादशाह को परिवार सहित बन्दी बना लिया गया। जून 1858 तक अंग्रेजों ने अधिकांश स्थानों पर पुनः अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया किन्तु तांत्या टोपे ने संघर्ष जारी रखा। अंग्रेजों ने उसे पकड़ने में पूरी ताकत लगा दी। राजपूताना के सहयोग के अभाव में तात्या टोपे को स्थान-स्थान पर भटकना पड़ा।
अन्त में उसे पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई। क्रांति के दमन के पश्चात् कोटा के प्रमुख नेता जयदयाल तथा मेहराव खाँ को भी नीम के पेड़ पर फाँसी दे दी गई। क्रान्ति से सम्बन्धित अन्य नेताओं को भी मार दिया गया या जेल में डाल दिया गया। आउवा ठाकुर पर मुकदमा चलाकर उसे बरी कर दिया गया। इस प्रकार क्रान्ति का अन्त हुआ।
प्रश्न 7.
ठाकुर कुशाल सिंह आउवा ने कहाँ पर समर्पण किया?
उत्तर:
ठाकुर कुशाल सिंह आउवा ने नीमच में अंग्रेजों के सामने 8 अगस्त 1860 को आत्मसमर्पण कर दिया। उसे पर मुकदमा चलाया गया, किन्तु उसे बरी कर दिया गया।
प्रश्न 8.
15 तोपों से घटाकर 11 तोपों की सलामी किस रियासत के महराव के लिए की गई ?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा गठित जांच आयोग ने मेजर बर्टन तथा उसके पुत्रों की हत्या के सम्बन्ध में महराव रामसिंह द्वितीय को निरपराध किन्तु उत्तरदायी घोषित किया गया। इसके दण्ड स्वरूप उसकी तोपों की सलामी 15 तोपों से घटाकर 11 तोपें कर दी गईं।
प्रश्न 9.
बिजौलिया के किसान आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बिजौलिया मेवाड़ की प्रथम श्रेणी की जागीरी थी, यहाँ के उमराव को रावजी कहा जाता था। इसमें कुल 63 गाँव थे। जिसमें विभिन्न वर्गों के लोग रहते थे। बिजौलिया के किसानों पर लाल-बाग, बेगार जेसे-अत्याचार ठिकानेदार द्वारा किये जाते थे। उनसे बहुत ही अमानवीय तरीकों से और कठोरता से अवैध वसूली की जाती थी। 1897 में पहली बार किसानों का असंतोष फूट पड़ा निर्णय किया गया कि नानजी और ठाकरी पटेल के नेतृत्व में एक टुकड़ी महाराणा फतह के पास जाए।
इन किसानों ने 6 – 7 माह के अथक प्रयासों से लागू हटा दी गयीं। लेकिन ठिकानेदार ने बड़ी चतुराई और धूर्तता से जनता का दमन किया और नए – नए कर वसूलना शुरू कर दिया। 1913 में किसानों की दशा शिथिल हो चुकी थी। साधू सीताराम दास, ब्रह्मदेव, फतहकरण चारण आदि 100 किसानों के साथ राव जी से मिलने गए किन्तु रावजी ने मिलने से इंकार कर दिया और उन पर 5 रूपए चंवरी नामक नया
प्रश्न 10.
गुरु गोविन्द गिरी ने जन जागरण हेतु क्या किया?
उत्तर:
गुरु गोविन्द गिरी राजस्थान में बागड़ प्रदेश के भीलों के प्रथम उद्धारक थे। इन्होंने ‘सम्प सभा’ की स्थापना । कर आदिवासी भीलों में समाज व धर्म सुधार आन्दोलन चलाया। दक्षिणी राजस्थान में गोविन्द गिरी के नेतृत्व में आदिवासी क्षेत्र में क्रान्ति आन्दोलन का सूत्रपात किया गया एवं इस आन्दोलन को भगत आन्दोलन कहा गया।
उन्होंने दक्षिणी राजस्थान, गुजरात और मालवा के भीलों को संगठित करके उनकी व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने का प्रयास किया। 1913 में बांसवाड़ा की मानगढ़ पहाड़ी पर सभी भील भाई अपने गुरु गोविन्द गिरी के नेतृत्व में धार्मिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय कार्यक्रमों में व्यस्त थे। उसी समय अंग्रेजों ने जलियांवाला कांड की तरह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। प्रतिक्रिया स्वरूप सभी क्षेत्रों के भीलों में राजनीतिक और राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न हो गई।
प्रश्न 11.
राजस्थान सेवा संघ की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
सन् 1920 में विजय सिंह पथिक ने अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की। इस संस्था ने किसान आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
प्रश्न 12.
हरिजन सेवक संघ की स्थापना कहाँ हुई?
उत्तर:
डूंगरपुर में 1935 में ठक्कर बापा की प्रेरणा से हरिजन सेवक संघ की स्थापना हुई।
प्रश्न 13.
मेवाड़ में प्रजामंडल की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
मेवाड़ में प्रजामंडल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 को माणिक्य लाल वर्मा द्वारा की गई।
प्रश्न 14.
वागड़ सेवा मंदिर की स्थापना कहाँ की गई?
उत्तर:
वागड़ सेवा मंदिर की स्थापना डूंगरपुर में भोगीलाल पांड्या द्वारा की गई।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान का अभूतपूर्व योगदान रहा। जिसका निम्न बिन्दुओं पर वर्णन किया जा सकता है –
1. नसीराबाद में क्रान्ति:
राजस्थान में सर्वप्रथम नसीराबाद छावनी में 28 मई, 1857 को 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री के सैनिकों व अन्य भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किया। यहाँ क्रान्तिकारी सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर हमले किए व मेजर स्पोटिस वुड व न्यूबरी की हत्या कर दी।
2. नीमच में क्रान्ति:
3 जून, 1857 को नीमच छावनी के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने शस्त्रागार को आग लगा दी तथा अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर हमला कर एक अंग्रेज सार्जेन्ट की पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी। नीमच छावनी के ये सैनिक चित्तौड़गढ़, हम्मीरगढ़ एवं बनेडा में अंग्रेज बँगलों को लूटते हुए, शाहपुरा होते हुए दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
3. टोंक में क्रान्ति:
देवली छावनी में सन् 1857 को सैनिकों ने विद्रोह कर टोंक रवानगी ली जहाँ जनता ने नवाब के आदेशों की परवाह न करते हुए इनका जोरदार स्वागत किया। टोंक से आगरा होते हुए ये सैनिक दिल्ली पहुँचे।
4. एरिनपुरा में क्रान्ति:
अगस्त, 1857 में जब नसीराबाद, नीमच, देवली आदि स्थानों के विद्रोह की सूचना एरिनपुरा छावनी (जोधपुर) के सैनिकों को प्राप्त हुई तो उन्होंने 21 अगस्त को विद्रोह कर एरिनपुरा पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् आबू की अंग्रेज बस्ती पर धावा बोलते हुए क्रान्तिकारी सैनिकों ने ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ का नारा, लगाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
5. आऊवा में क्रान्ति:
आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह अंग्रेजों एवं जोधपुर के महाराणा तख्त सिंह से नाराज थे। ठाकुर कुशाल सिंह ने एरिनपुरा के क्रान्तिकारी सैनिकों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया।
6. कोटा में क्रान्ति:
कोटा राजस्थान का एकमात्र ऐसा स्थान था, जहाँ पर सैनिक छावनी न होते हुए भी जनता ने विद्रोह किया और 6 माह तक जनता का शासन रहा। राजस्थान में सर्वप्रथम यहीं पर जनता के द्वारा कोतवाली पर झंडा फहराया गया।
7. धौलपुर में विद्रोह:
धौलपुर का शासक भगवंतसिंह अंग्रेज समर्थक था। अक्टूबर, 1857 में ग्वालियर व इन्दौर के क्रान्तिकारी सैनिकों ने धौलपुर में प्रवेश कर वहाँ की सेना को अपनी ओर मिला लिया। क्रान्तिकारियों ने दो माह तक राज्य पर अपना अधिकार बनाए रखा।
8. भरतपुर में विद्रोह:
भरतपुर का राजा जसवन्तसिंह नाबलिग था। अतः वहाँ का शासन पॉलिटिकल एजेंट मॉरीशन की देख-रेख में संचालित होता था। इससे नाराज होकर गुर्जरों एवं मेवों ने 31 मई, 1857 को विद्रोह कर दिया और क्रान्तिकारियों के साथ मिल गए। मॉरीशन भरतपुर से आगरा भाग गया।
9. करौली में विद्रोह:
करौली का शासक मदनपाल ने अंग्रेजों का साथ दिया। उसने अपनी जनता से विद्रोह में भाग न लेने और साथ न देने की अपील की, लेकिन जनता ने क्रान्तिकारियों का साथ दिया।
10. अलवर में विद्रोह:
अलवर के महाराजा बन्नेसिंह ने अंग्रेजों के सहयोग हेतु आगरा सेना भेजी। अलवर के दीवान फैजुल्ला खाँ की राष्ट्रीय भावना क्रान्तिकारियों के साथ थी। अलवर राज्य की जनता की सहानुभूति क्रान्तिकारियों के साथ थी।
11. बीकानेर में विद्रोह:
बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह अंग्रेज समर्थक था। वह सेना लेकर विद्रोह को दबाने बीकानेर के बाहर भी गया। इससे अंग्रेजों को शरण व सुरक्षा प्रदान की। अंग्रेजी विरोधी भावनाओं पर इसने कठोर रवैया अपनाकर उन पर नियन्त्रण रखा।
12. मेवाड़ और बागड़ में क्रान्ति:
मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने अंग्रेजों को विद्रोह को दबाने में सहायता की। नीमच के क्रान्तिकारी नीमच छावनी को लूटकर मेवाड़ के ठिकाने शाहपुरा पहुँचे। राज्य की जनता ने क्रान्तिकारियों का सहयोग किया। मेवाड़ के सलूम्बर व कोठारिया के सामन्तों ने क्रान्तिकारियों का सहयोग किया।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम यद्यपि सफल नहीं हुआ, किन्तु इसके माध्यम से प्रस्फुटित हुई ब्रिटिश विरोधी भावना के प्रभाव से राजस्थान भी अछूता नहीं रहा। यहाँ भी स्वतन्त्रता की ज्वाला भड़क उठी।
प्रश्न 2.
राजपूताना में क्रांति के मुख्य कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान (राजपूताना) में क्रांति के कारण राजस्थान में 1857 की क्रान्ति का सूत्रपात एवं प्रारम्भ नसीराबाद में हुआ जिसके कारण निम्नलिखित थे –
1. ए. जी. जी. ने 15वीं बंगाल इन्फेन्ट्री जो अजमेर में थी, उस पर अविश्वास करके उसे नसीराबाद भेज दिया था। परिणामस्वरूप उनमें घोर असंतोष उत्पन्न हो गया।
2. मेरठ में हुए विद्रोह की सूचना के पश्चात् अंग्रेज सैन्य अधिकारियों ने नसीराबाद स्थित सैनिक छावनी की रक्षा हेतु फर्स्ट बाम्बे लांसर्स (First Bombay Lancers) के उन सैनिकों से जो वफादार समझे जाते थे, गश्त लगवाना प्रारम्भ कर दिया। तोपों को तैयार रखा गया।
अत: नसीराबाद में जो 15 नेटिव इन्फेन्ट्री थी, उसके सैनिकों ने सोचा कि अंग्रेजों ने यह कार्यवाही भी भारतीय सैनिकों को कुचलने के लिए की है तथा गोला बारूद से भरी तोपें उनके विरुद्ध प्रयोग करने के लिए तैयार की गईं हैं। अत: उनमें विद्रोह की भावना जाग्रत हुई।
3. बंगाल और दिल्ली में छदमधारी साधुओं ने चर्बी वाले कारतूसों के विरुद्ध प्रचार – प्रसार कर विद्रोह का संदेश प्रचारित किया जिससे विद्रोह का राष्ट्रीय वातावरण बन गया। 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण चर्बी वाले कारतूसों को लेकर था। एनफील्ड राइफलों में प्रयोग में लाये जाने वाले कारतूस की टोपी (केप) को दाँतों से हटाना पड़ता था।
इन कारतूसों को चिकना करने के लिए गाय या सूअर की चर्बी प्रयोग में लायी जाती थी। इसका पता चलते ही हिन्दू-मुसलमान सभी सैनिकों में विद्रोह की भावना प्रबल हो गई। सैनिकों ने यह समझा कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं। यही कारण था कि क्रांति का प्रारम्भ नियत तिथि से पहले हो गया।
प्रश्न 3.
राजस्थान में प्रजामंडल आन्दोलन की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन भारतीय जनता ब्रिटिश नौकरशाही से तो त्रस्त थी ही। सामन्तों, जागीरदारों तथा शासकों के अत्याचारों, करों, लगान व बेगारों से भी दु:खी थी। इस स्थिति से काँग्रेस भी चिन्तित थी। 1928 ई. में जब काँग्रेस ने देशी राज्यों में भी उत्तरदायी शासन की मार्गों की तब राष्ट्रीय आन्दोलन में एक नया मोड़ आ गया। काँग्रेस ने पूर्ण उत्तरदायी शासनं प्राप्त करने में रियासतों को पूर्ण समर्थन की घोषणा की। अतः रियासतों में इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रजामण्डल गठित किये गये।
प्रजामण्डलों की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे –
- प्रशासन में जनप्रतिनिधियों का सहयोग लिया जाये।
- स्थानीय स्वशासन पूरी तरह जनप्रतिनिधियों को सौंपा जाये।
- राज्य में भाषण देने, संघ बनाने एवं लिखने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाए।
- सभा करने, जुलूस निकालने व आन्दोलन और सत्याग्रह पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध न हो।
- बन्दी स्वतन्त्रता सेनानियों एवं राजनीतिक केदियों को बिना शर्त रिहा किया जाये।
- राष्ट्रगीत गाने व तिरंगा फहराने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाये।
राजस्थान में स्थापित प्रजामण्डलों का वर्णन निम्नानुसार है –
जोधपुर राज्य में 1934 में मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था। 1937 में इसे अवैध घोषित किये जाने पर मई 1938 में मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना की गयी। मारवाड़ की राजनीतिक संस्थाओं ने 1932, 1940, 1942 – 44 में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु आन्दोलन चलाए। मारवाड़ प्रजामण्डल तथा मारवाड़ लोक परिषद् के प्रमुख नेता जयनारायण व्यास थे।
बीकानेर राज्य में प्रथम बार मघाराम वैद्य ने 1936 में प्रजामण्डल की स्थापना की, परन्तु महाराजा गंगासिंह ने नवजात प्रजामण्डल का दमन करने हेतु मघाराम वैद्य को 6 वर्ष के लिए राज्य से निष्कासित कर दिया। इसके बाद 1942 में रघुवरदयाल ने बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की। प्रजामण्डल के अन्य प्रमुख नेता दीनदयाल आचार्य तथा कुम्भाराम आर्य थे।
उदयपुर राज्य में 1938 में बलवन्त सिंह मेहता की अध्यक्षता में प्रजामण्डल की स्थापना हुई। इसके महामन्त्री माणिक्यलाल वर्मा बनाए गए। जयपुर राज्य में सर्वप्रथम 1931 में कपूरचन्द पाटनी ने तथा बाद में 1937 में सेठ जमनालाल बजाज की प्रेरणा से प्रजामण्डल का पुनर्गठन किया गया। 1938 में प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन सेठ जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में हुआ। जैसलमेर राज्य निरंकुश सामन्तवाद का गढ़ था।
सागरमल गोपा पर जेल में भीषण अत्याचार (1941 – 46) लिए गये। मीठालाल व्यास ने दिसम्बर, 1945 में जोधपुर में जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना की। अलवर में 1938 में पं. हरिनारायण शर्मा और कुंजबिहारी लाल मोदी के प्रयत्नों से, कोटा में 1939 में, प. नयूनराम शर्मा एवं पं अभिन्न हरि के प्रयत्नों से प्रजामण्डल की स्थापना की गयी।
भरतपुर राज्य में दिसम्बर 1938 में प्रजामण्डल की स्थापना की गयी, जिसके प्रमुख नेता गोपीलाल यादव, ठाकुर देशराज, मास्टर आदित्येन्द्र, राजबहादुर आदि थे। डूंगरपुर राज्य में प्रजामण्डल की स्थापना जनवरी, 1944 में भोगीलाल पंड्या ने की। सिरोही राज्य में गोकुलभाई भट्ट ने प्रजामण्डल की स्थापना जनवरी, 1939 में की। बूंदी (1944), धौलपुर (1938), करौली (1939) आदि में प्रजामण्डलों की स्थापना की गयी। प्रजामण्डल आन्दोलन ने राजस्थान में उत्तरदायी शासन की स्थापना, रिसायतों के भारतीय संघ में अधिमिलन एवं राजस्थान के एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
प्रश्न 4.
राजस्थान में किसान आन्दोलन को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
राजस्थान में किसान आन्दोलन।
1. बिजोलिया किसान आन्दोलन:
बिजोलिया मेवाड़ राज्य की बड़ी जागीर थी, जिसे ऊपरमाल भी कहा जाता था। यहाँ के किसानों ने अत्यधिक भू – लगान, लागत एवं जबरन बेगार तथा जागीरदार के अत्याचारों से परेशान होकर किसान आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। बिजोलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व साधु सीताराम दास, विजयसिंह पथिक, माणिक्यलाल वर्मा जमुनालाल बजाज और हरिभाऊ उपाध्याय ने किया।
इस आन्दोलन को कुचलने के लिए अत्याचार किए गए, घरों को लूट लिया गया और स्त्रियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। समाचार-पत्रों के माध्यम से यह आन्दोलन पूरे देश में चर्चित हुआ। अन्त में किसानों की जीत हुई। इस आन्दोलन से किसानों के आत्मबल में वृद्धि हुई और अत्याचारों के विरुद्ध संगठित होने की प्रेरणा मिली। सन् 1897 से 1941 ई. तक क्रियान्वित यह भारत का सबसे लम्बे समय तक चला किसान आन्दोलन था।
2. जोधपुर राज्य में किसान आन्दोलन:
जोधपुर राज्य में लगान की उच्च दर, जबरदस्ती बेगार तथा अनेक लागतों (उपकर) एवं जागीरदारों द्वारा किसानों के सामाजिक, आर्थिक शोषण के विरुद्ध किसानों ने आन्दोलन चलाने का निश्चय किया। यहाँ के किसान आन्दोलन का नेतृत्व मारवाड़ हितकारिणी सभा, मारवाड़ प्रजामण्डल, मारवाड़े लोकपरिषद् एवं मारवाड़ किसान सभा ने किया। जयपुर किसान आन्दोलन के प्रमुख नेता जयनारायण व्यास, आनन्दराय सुराणा, भंवरलाल सर्राफ, बलदेवराम मिर्जा एवं नरसिंह कच्छवाह थे।
3. बूंदी में किसान आन्दोलन:
बूंदी के किसानों ने सामन्तवादी शोषण के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ किया। बूंदी के किसानों के सत्याग्रह का नेतृत्व पं. नयनूराम शर्मा ने किया। पुलिस द्वारा गोली चलाने के साथ – साथ क्रूर दमन से यह आन्दोलन धीमा पड़ गया। बूंदी के किसान आन्दोलन का मार्गदर्शन राजस्थान सेवा संघ अजमेर ने किया। परिणामस्वरूप लाग-बेगार में कुछ छूट प्राप्त हुई।
4. अलवर राज्य में किसान आन्दोलन:
1923 – 24 में अलवर महाराजा जयसिंह ने लगान की दरों को बढ़ा दिया। विरोधस्वरूप 14 मई, 1925 को लगभग 800 किसान अलवर जिले की बानसूर तहसील के नीमूचाणा गाँव में एकत्र हुए। इस सभा पर राज्य की पुलिस ने अंधाधुन्ध गोलियाँ बरसाईं। इस घटना में 95 व्यक्ति मारे गए व 250 व्यक्ति घायल हुए। महिलाओं का अपमान किया गया। महात्मा गाँधी ने इस कांड को जलियाँवाला बाग हत्याकांड से भी अधिक वीभत्स बताया और इसे दोहरी डायरशाही की संज्ञा दी। अन्ततः सरकार को किसानों के समक्ष झुकना पड़ा।
5. सीकर:
शेखावटी में किसान आन्दोलन – सीकर – शेखावटी में किसान आन्दोलन के प्रवर्तक हरलाल सिंह थे। 1930 से लेकर 1942 ई. तक किसान पंचायतों के नेतृत्व में किसान आन्दोलन चलते रहे। इस आन्दोलन के सूत्रधार पं. तारकेश्वर शर्मा, ठाकुर देशराज, हरलाल सिंह, घासीराम चौधरी एवं नेतराम सिंह आदि थे।
6. बीकानेर राज्य में किसान आन्दोलन:
बीकानेर राज्य में 1932 ई. में किसान आन्दोलन हनुमानसिंह आर्य के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ। 1945 – 46 में दुधवा खारी और कांगड़ा गाँव पर जर्मीदारों ने भीषण अत्याचार किए। बीकानेर राज्य में किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व मघाराम वैद्य, केदारनाथ, रघुवरदयाल गोयल एवं कुंभाराम आर्य ने किया।
प्रश्न 5.
राजपूताना में क्रान्ति के परिणाम बताइए।
उत्तर:
राजपूताना में 1857 की क्रान्ति के परिणाम:
1. क्रांति के पश्चात् यहाँ के नरेशों को ब्रिटिश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया क्योंकि राजपूताना के शासक उनके लिए उपयोगी साबित हुए थे। अब ब्रिटिश नीति में भी परिवर्तन किया गया।
2. शासकों को संतुष्ट करने के लिए “गोद निषेध” के सिद्धान्त को समाप्त कर दिया गया।
3. राजकुमारों के लिए अंग्रेजी शिक्षा का प्रबन्ध किया जाने लगा था।
4. अब राज्य कम्पनी शासन के स्थान पर ब्रिटिश नियंत्रण में सीधे आ गए। साम्राग्री विक्टोरिया की ओर से की गई। घोषणा (1858) द्वारा देशी राज्यों को यह आश्वासन दिया गया कि देशी राज्यों का अस्तित्व बना रहेगा।
5. क्रान्ति के बाद नरेशों एवं उच्चाधिकारियों की जीवन शैली में पाश्चात्य प्रभाव स्पष्ट दिखाई देने लगा। अब राजपूताना के राजा महाराजा अंग्रेजी साम्राज्य की व्यवस्था में सेवारत होकर आदर प्राप्त करने व उनकी प्रशंसा के अभ्यस्त हो गए।
6. सामन्तों ने खुले रूप से ब्रिटिश शासन का विरोध किया था अतः क्रांति के बाद अंग्रेजों की नीति सामन्तों को अस्तित्वविहीन बनाने की रही। जागीर क्षेत्र की जनता की दृष्टि में सामन्तों की प्रतिष्ठा को कम करने का प्रयास किया गया। सामन्तों को बाध्य किया गया कि वे सैनिकों को नगद वेतन दें। सामन्तों के न्यायिक अधिकारों को सीमित करने का प्रयास किया गया। उनके विशेषाधिकारों पर कुठाराघात किया गया।
7. क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजी सरकार ने रेलवे व सड़कों का जाल बिछाना शुरू कर दिया जिससे आवागमन की व्यवस्था सुचारू हो सके। मध्यम वर्ग के लिए शिक्षा का प्रसार कर एक शिक्षित वर्ग को खड़ा किया गया, जो अंग्रेजों के लिए उपयोगी हो सके।
8. अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए वैश्य समुदाय को संरक्षण देने की नीति अपनाई गई। बाद में वैश्य समुदाय राजपूताना में और अधिक प्रभावी हो गया।
9. 1857 की क्रान्ति ने अंग्रेजों की इस धारणा को निराधार सिद्ध कर दिया कि मुगलों एवं मराठों की लूट से त्रस्त राजस्थान की जनता ब्रिटिश शासन की समर्थक है परन्तु यह भी सच है कि भारत विदेशी जुए को उखाड़ फेंकने के इस प्रथम बड़े प्रयास में असफल रहा। राजस्थान में फैली क्रांति की ज्वाला ने अर्द्ध शताब्दी के पश्चात् भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को संघर्ष करने की प्रेरणा दी।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रारम्भ माना जाता है –
(अ) 10 मई 1857
(ब) 1 मई 1857
(स) 15 मई 1857
(द) 5 मई 1857
उत्तर:
(अ) 10 मई 1857
प्रश्न 2.
10 मई 1857 को राजस्थान का ए. जी. जी. (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) था –
(अ) जॉर्ज पेट्रिक लारेंस
(ब) लार्ड मेयो
(स) लार्ड कर्जन
(द) वावेल।
उत्तर:
(अ) जॉर्ज पेट्रिक लारेंस
प्रश्न 3.
राजस्थान में नसीराबाद छावनी में क्रांति का प्रारम्भ कब हुआ?
(अ) 28 मई 1857
(ब) 18 जून 1857
(स) 3 जून 1857
(द) 12 जून 1857
उत्तर:
(अ) 28 मई 1857
प्रश्न 4.
“चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ का नारा किसने लगाया?
(अ) जोधपुर लिजियन
(ब) ठा. कुशाल सिंह आउवा
(स) तात्या टोपे
(द) महारावल लक्ष्मण सिंह।
उत्तर:
(अ) जोधपुर लिजियन
प्रश्न 5.
“राजस्थान केसरी” के सम्पादक कौन थे?
(अ) मणिक्यलाल वर्मा
(ब) हरिभाऊ उपाध्याय
(स) केसरी सिंह बारहठ
(द) जमनालाल बजाज।
उत्तर:
(अ) मणिक्यलाल वर्मा
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
10 मई, 1857 को किस स्थान पर क्रान्ति का सूत्रपात हुआ?
(अ) अजमेर
(ब) लखनऊ
(स) मेरठ
(द) कलकत्ता।
उत्तर:
(स) मेरठ
प्रश्न 2.
1857 की क्रान्ति के समय राजस्थान में सैनिक छावनी थी –
(अ) नीमच
(ब) देवली
(स) नसीराबाद
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 3.
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के समय राजस्थान का ए.जी.जी. कौन था?
(अ) जार्ज पैट्रिक लारेन्स
(ब) मेजर बर्टन
(स) मोकमेसन
(द) होम्स।
उत्तर:
(अ) जार्ज पैट्रिक लारेन्स
प्रश्न 4.
राजस्थान में 1857 ई. की क्रान्ति सर्वप्रथम कहाँ हुई?
(अ) देवली
(ब) एरिनपुरा
(स) खेरवाड़ा
(द) नसीराबाद।
उत्तर:
(द) नसीराबाद।
प्रश्न 5.
राजस्थान में नसीराबाद छावनी में क्रान्ति का प्रारम्भ हुआ –
(अ) 28 मई, 1857
(ब) 18 जून, 1857
(स) 10 मई, 1857
(द) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) 28 मई, 1857
प्रश्न 6.
निम्न में से किस सैनिक छावनी में मेजर स्पोटिस वुड एवं न्यूलरी की हत्या कर दी गयी थी?
(अ) नसीराबाद
(ब) एरिनपुरा
(स) ब्यावर
(द) देवली।
उत्तर:
(अ) नसीराबाद
प्रश्न 7.
नसीराबाद की क्रान्ति की सूचना नीमच पहुँची –
(अ) 28 मई, 1857 को
(ब) 3 जून, 1857 को
(स) 10 मई, 1857 को
(द) 1 जून, 1857 को।
उत्तर:
(ब) 3 जून, 1857 को
प्रश्न 8.
1835 ई. में अंग्रेजों ने जोधपुर की सेना के सवारों पर अकुशल होने का आरोप लगाकर जोधपुर लीजियन का गठन किया। इसका केन्द्र रखा गया –
(अ) एरिनपुरा गरिनपरा
(ब) जोधपुर
(ब) जोधपर
(स) ब्यावर
(द) खेरवाड़ा।
उत्तर:
(अ) एरिनपुरा गरिनपरा
प्रश्न 9.
एरिनपुरा के विद्रोही सैनिकों की खरवा नामक स्थान पर किससे भेंट हुई?
(अ) तात्या टोपे से
(ब) ठाकुर कुशाल सिंह से
(स) वजीरुद्दौला से
(द) भगवन्तसिंह से।
उत्तर:
(ब) ठाकुर कुशाल सिंह से
प्रश्न 10.
आऊवा की क्रान्ति का नेतृत्व किसके द्वारा किया गया?
(अ) ठाकुर कुशालसिंह द्वारा
(ब) ठाकुर रामदयाल द्वारा
(स) लाला जयदयाल द्वारा
(द) राबर्ट्स द्वारा।
उत्तर:
(स) लाला जयदयाल द्वारा
प्रश्न 11.
मोकमेसन जिसका सिर क्रान्तिकारियों ने आऊवा के किले के द्वार पर लटका दिया था, कहाँ का पोलिटकल एजेन्ट था?
(अ) भरतपुर का
(स) अजमेर का
(द) जयपुर का।
उत्तर:
(ब) जोधपुरका
प्रश्न 12.
कोटा का पॉलिटिकल एजेन्ट था –
(अ) मेजर बर्टन
(ब) जनरल राबर्ट्स
(स) मोकमेसन
(द) ब्रिगेडियर होम्स।
उत्तर:
(अ) मेजर बर्टन
प्रश्न 13.
निम्न में से किस स्थान की विद्रोही सेना का नेतृत्व रिसालदार मेहराब खाँ और लाला जयदयाल ने किया था –
(अ) जयपुर
(ब) टोंक
(स) सलूम्बर
(द) कोटा।
उत्तर:
(द) कोटा।
प्रश्न 14.
राजस्थान की किस रियासत का नवाब अंग्रेज समर्थक था, लेकिन जनता व सेना की सहानुभूति क्रान्तिकारियों के साथ थी –
(अ) टोंक।
(ब) धौलपुर
(स) जोधपुर
(द) बीकानेर।
उत्तर:
(अ) टोंक।
प्रश्न 15.
राजस्थान के एकमात्र, ऐसे शासक का नाम बताइए जो 1857 की क्रान्ति के दौरान सेना लेकर विद्रोहियों को दबाने के लिए बीकानेर राज्य के बाहर भी गया –
(अ) मदनपाल
(ब) सरदार सिंह
(स) स्वरूप सिंह
(द) भगवन्त सिंह।
उत्तर:
(ब) सरदार सिंह
प्रश्न 16.
राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व किसने किया?
(अ) गोविन्द गुरु ने
(ब) अर्जुनलाल सेठी ने
(स) हरिदेव जोशी ने
(द) माणिक्यलाल वर्मा ने।
उत्तर:
(अ) गोविन्द गुरु ने
प्रश्न 17.
क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद के प्रमुख प्रतिपादक थे –
(अ) अर्जुनलाल सेठी
(ब) दामोदर सावरकर
(स) विपिनचन्द्र पाल
(द) दामोदर दास।
उत्तर:
(ब) दामोदर सावरकर
प्रश्न 18.
अर्जुनलाल सेठी के नेतृत्व में क्रान्तिदल स्थापित था –
(अ) कोटा
(ब) ब्यावर
(स) अजमेर
(द) जयपुर।
उत्तर:
(द) जयपुर।
प्रश्न 19.
कोटा में किसके नेतृतव में क्रान्तिदले स्थापित था –
(अ) दामोदर दास राठी
(ब) शचीन्द्रनाथ सान्याल
(स) केसरीसिंह बारहठ
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) केसरीसिंह बारहठ
प्रश्न 20.
राजस्थान के प्रमुख क्रान्तिकारी थे।
(अ) अर्जुनलाल सेठी
(ब) केसरीसिंह बारहठ
(स) राव गोपालसिंह
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 21.
अर्जुन लाल सेठी ने वर्धमान विद्यालय स्थापित किया –
(अ) जयपुर में
(ब) भरतपुर में
(स) इन्दौर में
(द) शाहपुरा में।
उत्तर:
(अ) जयपुर में
प्रश्न 22.
नीमेज हत्याकांड में किसे कालापानी की सजा दी गयी थी –
(अ) विष्णु गुप्त को
(ब) विष्णु दत्त को
(स) अर्जुनलाल सेठी को
(द) केसरीसिंह को।
उत्तर:
(ब) विष्णु दत्त को
प्रश्न 23.
किस क्रान्तिकारी ने सर्वधर्म समभाव एवं साम्प्रदायिक एकता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था –
(अ) जोरावरसिंह बारहठ
(ब) विजयसिंह पथिक
(स) अर्जुनलाल सेठी
(द) मोतीचन्द।
उत्तर:
(स) अर्जुनलाल सेठी
प्रश्न 24.
निम्न में से कौन क्रान्तिकारी स्वामी दयानन्द सरस्वती के स्वधर्म प्रेम, संस्कृति प्रेम, स्वभाषा प्रेम एवं स्वदेशी प्रेम के सन्देश से अत्यन्त प्रभावित था –
(अ) ठाकुर केसरीसिंह बारहठ
(ब) अर्जुनलाल सेठी
(स) जोरावरसिंह बाहरठ
(द) रामनारायण चौधरी।
उत्तर:
(अ) ठाकुर केसरीसिंह बारहठ
प्रश्न 25.
1903 के दिल्ली दरबार में उदयपुर के महाराणा फतहसिंह के भाग नहीं लेने की घटना किसकी प्रेरणा का परिणाम थी –
(अ) जोरावरसिंह बारहठ
(ब) केसरीसिंह बारहठ
(स) प्रताप सिंह बाहरठ
(द) राव गोपाल सिंह।
उत्तर:
(ब) केसरीसिंह बारहठ
प्रश्न 26.
निम्न में से किस क्रान्तिकारी को 23 दिसम्बर, 1912 को वायसराय लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली प्रवेश के उपलक्ष्य में आयोजित जुलूस के दौरान बम फेंकने की घटना से सम्बन्ध है –
(अ) जोरावर सिंह बारहठ
(ब) अर्जुनलाल सेठी
(स) रामनारायण चौधरी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) जोरावर सिंह बारहठ
प्रश्न 27.
बरेली जेल की काल कोठी में यातनाएँ सहते हुए किस क्रान्तिकारी का देहान्त हुआ था –
(अ) रामनारायण चौधरी
(ब) विजय सिंह पथिक
(स) प्रताप सिंह बारहठ
(द) राव गोपालसिंह।
उत्तर:
(स) प्रताप सिंह बारहठ
प्रश्न 28.
रास बिहारी बोस एवं शचीन्द्रनाथ सान्याल के साथ राजस्थान के किस क्रान्तिकारी ने उत्तरी भारत में सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनायी थी?
(अ) राव गोपालसिंह
(ब) विजयसिंह पथिक
(स) माणिक्यलाल वर्मा
(द) प्रताप सिंह बारहठ।
उत्तर:
(अ) राव गोपालसिंह
प्रश्न 29.
बिजोलिया किसान आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता थे –
(अ) प्रतापसिंह बारहठ
(ब) राम नारायण चौधरी
(स) विजयसिंह पथिक
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(स) विजयसिंह पथिक
प्रश्न 30.
निम्न में से किसने क्रान्तिकारियों को आर्थिक सहयोग देकर क्रान्तिकारी आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई –
(अ) दामोदरदास राठी
(ब) विजयसिंह पथिक
(स) अर्जुनलाल सेठी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) दामोदरदास राठी
प्रश्न 31.
बीकानेर में राजनैतिक संगठन स्थापित करने का प्रथम प्रयास किसने किया?
(अ) रघुवर दयाल गोयल ने
(ब) माणिक्यलाल वर्मा ने
(स) मघाराम वैद्य ने
(द) भूरेलाल बया ने।
उत्तर:
(स) मघाराम वैद्य ने
प्रश्न 32.
31 दिसम्बर, 1945 को पं. नेहरू की अध्यक्षता में राजस्थान के किस शहर में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का अधिवेशन हुआ था।
(अ) उदयपुर
(स) जयपुर
(द) बीकानेर।
उत्तर:
(अ) उदयपुर
प्रश्न 33.
उदयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष थे –
(अ) माणिक्यलाल वर्मा
(ब) बलवन्तसिंह मेहता
(स) रघुवरदयाल गोपाल
(द) गोपीलाल यादव।
उत्तर:
(ब) बलवन्तसिंह मेहता
प्रश्न 34.
जयपुर में प्रजामण्डल की सर्वप्रथम स्थापना किसने की?
(अ) कपूरचन्द पाटनी ने
(ब) सेठ जमनालाल बजाज ने
(स) पं. हरिनारायण शर्मा ने
(द) कुंजबिहारी लाल मोदी ने।
उत्तर:
(अ) कपूरचन्द पाटनी ने
प्रश्न 35.
जैसलमेर का वह क्रान्तिकारी जिसे जेल में ही जलाकर मार डाला गया –
(अ) मीठालाल व्यास
(ब) सागर मल गोपा.
(स) राधास्वरूप
(द) गौरीशंकर।
उत्तर:
(ब) सागर मल गोपा.
प्रश्न 36.
कोटा राज्य में जनजागृति के उदय, विकास एवं उत्कर्ष का श्रेय किसे दिया जाता है?
(अ) पं. नयनूराम शर्मा को
(ब) भोगीलाल पंड्या को
(स) भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी को
(द) पं. अभिन्न हरि को।
उत्तर:
(अ) पं. नयनूराम शर्मा को
प्रश्न 37.
भरतपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष थे –
(अ) गोपीलाल यादव
(ब) मास्टर आदित्येन्द्र
(स) किशनलाल जोशी
(द) ठाकुर देशराज।
उत्तर:
(अ) गोपीलाल यादव
प्रश्न 38.
महात्मा गाँधी ने कहाँ के किसान आन्दोलन पर सरकार द्वारा की गयी बर्बरतापूर्ण कार्यवाही को दोहरी डायर शाही बताया –
(अ) सीकर
(ब) नीमूचाणा
(स) बिजोलिया
(द) जोधपुर।
उत्तर:
(ब) नीमूचाणा
प्रश्न 39.
बीकानेर के किसान आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता थे –
(अ) हनुमानसिंह आर्य
(ब) मोतीलाल तेजावत
(स) लक्ष्मीनारायण
(द) गोविन्द गुरु।
उत्तर:
(स) लक्ष्मीनारायण
प्रश्न 40.
गुरु गोविन्द गिरी के बाद भीलों को संगठित करने का कार्य किसने किया?
(अ) गोकुलभाई भट्ट ने
(ब) हनुमानसिंह ने
(स) मोतीलाल तेजावत ने
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) गोकुलभाई भट्ट ने
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 अति लघूत्तात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
1857 की क्रान्ति के समय राजस्थान में कितनी सैनिक छावनियाँ थीं? प्रत्येक का नाम लिखिए।
उत्तर:
1857 की क्रान्ति के समय राजस्थान में छः सैनिक छावनियाँ थीं –
- नसीराबाद
- नीमच
- देवली
- ब्यावर
- एरिनपुरा
- खेरवाड़ा।
प्रश्न 2.
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति का सूत्रपात कहाँ से हुआ?
उत्तर:
नसीराबाद से।
प्रश्न 3.
राजस्थान की नसीराबाद छावनी में क्रान्ति का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
28 मई, 1857 को।
प्रश्न 4.
किस छावनी के सैनिकों ने ‘चलो दिल्ली, मारो फिरंगी’ का नारा लगाया था?
उत्तर:
एरिनपुरा छावनी के सैनिकों ने।
प्रश्न 5.
ठाकुर कुशाल सिंह की सेना ने कहाँ व कब जोधपुर की राजकीय सेना को पराजित किया था?
उत्तर:
8 सितम्बर, 1857 को बिथोडा नामक स्थान पर।
प्रश्न 6.
आऊवा की कुलदेवी का नाम बताइए।
उत्तर:
सुगाली माता।
प्रश्न 7.
राजस्थान की किस रियासत की जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध तीव्र आक्रोश था?
उत्तर:
कोटा रियासत की जनता में।
प्रश्न 8.
कोटा में विद्रोही सेना का नेतृत्व किसने किया।
उत्तर:
रिसालदार मेहराब खाँ और लाल जयदयाल ने।
प्रश्न 9.
अलवर रियासत के किस शासक ने 1857 की क्रान्ति के दौरान अंग्रेजों की सहायतार्थ सेना आगरा भेजी थी?
उत्तर:
महाराजा बन्नेसिंह ने।
प्रश्न 10.
अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध 1857 की क्रान्ति का निशान क्या था?
उत्तर:
कमल ओर चपाती।
प्रश्न 11.
दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में गोविन्द गुरु के नेतृत्व में संचालित आन्दोलन को किस नाम से जाना गया?
उत्तर:
भगत आन्दोलन के नाम से।
प्रश्न 12.
आदिवासी क्षेत्रों में क्रान्ति आन्दोलन का सूत्रपात किसने किया?
उत्तर:
गोविन्द गुरु ने।
प्रश्न 13.
राजस्थान में सामरिक राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति किस रूप में हुई?
उत्तर:
क्रान्तिकारी गतिविधियों के रूप में।
प्रश्न 14.
20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में राजस्थान में तीन क्रान्तिकारी दल कौन-कौन से थे?
उत्तर:
तीन क्रान्तिकारी दल इस प्रकार थे –
- जयपुर में अर्जुनलाल सेठी के नेतृत्व में संचालित दल।
- कोटा में केसरीसिंह बारहठ के नेतृत्व में संचालित दल।
- अजमेर में रामगोपालसिंह खरवा व ब्यावर के दामोदरदास राठी के नेतृत्व में संचालित दल।
प्रश्न 15.
अर्जुनलाल सेठी की धारणा क्या थी?
उत्तर:
अर्जुनलाल सेठी की धारणा थी कि भारत की राजनीतिक, आर्थिक दुर्दशा का मूलकारण भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद है।
प्रश्न 16.
प्रसिद्ध क्रान्तिकारी ठाकुर केसरीसिंह बारहठ का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
21 नवम्बर, 1872 को शाहपुरा रियासत के देवपुरा गाँव में ।
प्रश्न 17.
आप किस आधार पर कह सकते हैं कि केसरीसिंह बारहठ ब्रिटिश सत्ता विरोधी मानसिकता रखते थे?
उत्तर:
ठाकुर केसरीसिंह बारहठ ने उदयपुर के महाराणा फतेहसिंह को चेतावनी रा चंगट्या’ नामक सोरठे पत्र के रूप में प्रस्तुत कर फरवरी 1903 में लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार में भाग लेने से रोका था।
प्रश्न 18.
ठाकुर केसरी सिंह के क्रान्तिदल में सम्मिलित किन्हीं चार सदस्यों का नाम लिखिए।
उत्तर:
1. रामकरण,
2. हीरालाल जालोरी,
3. डॉ. गुरुदत्त,
4. सोमदत्त लहरी।
प्रश्न 19.
लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की घटना से किस क्रान्तिकारी का सम्बन्ध है?
उत्तर:
जोरावरसिंह बारहठ का।
प्रश्न 20.
बनारस षड्यन्त्र केस में राजस्थान के किस क्रान्तिकारी को पाँच वर्ष की सजा हुई थी?
उत्तर:
प्रतापसिंह बारहठ को।
प्रश्न 21.
राजस्थान के किस क्रान्तिकारी ने क्रान्ति-पथ छोड़कर गाँधी का मार्ग अपनाया था?
उत्तर:
रामनारायण चौधरी ने।
प्रश्न 22.
राजस्थान में क्रान्तिकारियों के लिए हथियारों की व्यवस्था कौन करता था?
उत्तर:
राव गोपालसिंह।
प्रश्न 23.
जब रासबिहारी बोस एवं शचीन्द्र सान्याल ने उत्तरी भारत में सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनायी, तो अजमेर पर आक्रमण करने का दायित्व किसे सौंपा गया?
उत्तर:
अजमेर – मेरवाड़ा में खरवा ठिकाने के राव गोपालसिंह को।।
प्रश्न 24.
ब्रिटिश सरकार ने राव गोपालसिंह एवं भूपसिंह को कौन-से किले में नजरबन्द किया था?
उत्तर:
टॉडगढ़ (अजमेर) के किले में।
प्रश्न 25.
रासबिहारी बोस ने राजस्थान में क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार करने एवं शस्त्र एकत्रित करने के लिए किसे अजमेर भेजा।
उत्तर:
विजयसिंह पथिक को।
प्रश्न 26.
किसके आमन्त्रण पर विजयसिंह पथिक ने बिजोलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व ग्रहण । किया था?
उत्तर:
सीताराम दास के आमन्त्रण पर।
प्रश्न 27.
बिजोलिया किसान आन्दोलन देश भर में किस प्रकार विख्यात हुआ?
उत्तर:
बिजोलिया किसान आन्दोलन के समाचार को गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा अपने-पत्र में छापने से यह आन्दोलन देश भर में विख्यात हो गया।
प्रश्न 28.
राजस्थान के किस क्रान्तिकारी ने श्यामजी कृष्ण वर्मा एवं अरविन्द घोष को अपने यहाँ ठहराकर देशभक्ति और ब्रिटिश विरोधी मानसिकता का परिचय दिया?
उत्तर:
सेठ दामोदरदास राठी ने।
प्रश्न 29.
राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रारम्भ होने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
- राजस्थान के क्रान्तिकारी, मूल क्रान्तिकारी धारा और उसके नेताओं से जुड़े हुए थे।
- अंग्रेजों द्वारा क्रान्तिकारियों के दमन की प्रतिक्रिया में राजस्थान में भी नवयुवकों ने क्रान्तिकारी धारा को अपनाया।
प्रश्न 30.
क्रान्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक आधार क्या था?
उत्तर:
क्रान्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक आधार सामरिक राष्ट्रवाद था।. गोली और बम का प्रयोग करना क्रान्तिकारियों का कर्त्तव्य माना जाता था।
प्रश्न 31.
क्रान्तिकारी आन्दोलन के कोई दो योगदान लिखिए।
उत्तर:
- क्रान्तिकारियों की मातृभूमि निष्ठा व सामरिक राष्ट्रवाद की अवधारणा राष्ट्रीय आन्दोलन के कालखण्ड में भारतीयों को निरन्तर प्रेरणा देती रही।
- क्रान्तिकारी आन्दोलन में निहित राष्ट्रभाव ने किसान एवं प्रजामण्डल आन्दोलनों की पृष्ठभूमि तैयार की।
प्रश्न 32.
विजयसिंह पथिक की कोई दो देन बताइए।
उत्तर:
- इन्होंने राजस्थान के किसानों को जागृत किया और स्थानीय देशभक्ति की भावना को सजीव बनाया।
- राजस्थान में सामन्तवाद की जड़ों को हिला कर रख दिया।
प्रश्न 33.
रामनारायण चौधरी ने पीड़ित राजस्थान का दूसरा गाँधी किसे बताया?
उत्तर:
विजयसिंह पथिक को।
प्रश्न 34.
राजस्थान में राजनीतिक चेतना एवं उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए संघर्ष की पृष्ठभूमि का। निर्माण किसने किया?
उत्तर:
राजस्थान की रियासतों के किसान वर्ग एवं प्रजामण्डल आन्दोलनों ने।
प्रश्न 35.
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना कब व कहाँ की गयी?
उत्तर:
दिसम्बर, 1927 को मुम्बई में।
प्रश्न 36.
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना क्यों की गयी?
उत्तर:
देशी भारत की विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं एवं उनके द्वारा संचालित आन्दोलन में समन्वय स्थापित करने तथा उन्हें राजनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय देशी राज्य लोकपरिषद् की स्थापना की गयी।
प्रश्न 37.
देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत के अभिन्न अंग के रूप में देशी राज्यों ( भारतीय रियासतों) में शान्तिपूर्ण एवं सांविधानिक साधनों से उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
प्रश्न 38.
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के प्रथम सम्मेलन में राजस्थान की ओर से किन नेताओं ने भाग लिया?
उत्तर:
विजयसिंह पथिक, पं. नयनूराम शर्मा, त्रिलोक चन्द माथुर, रामनारायण चौधरी एवं जयनारायण व्यास ने भाग लिया।
प्रश्न 39.
काँग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में किस नीति को प्रस्ताव पारित किया गया?
उत्तर:
काँग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में रियासतों की राजनीतिक संस्थाओं की गतिविधियों के साथ पूर्ण सहयोग की नीति का प्रस्ताव पारित किया गया।
प्रश्न 40.
राजस्थान में राजनीतिक चेतना का प्रमुख केन्द्र कौन-सा स्थान था?
उत्तर:
अजमेर।
प्रश्न 41.
अजमेर राजस्थान के किन-किन क्रान्तिकारियों की कर्मस्थली रहा है?
उत्तर:
यह अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक, केसरीसिंह बारहठ एवं ठाकुर गोपालसिंह की कर्मस्थली रहा है।
प्रश्न 42.
अजमेर से प्रकाशित किन्हीं चार समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- राजस्थान केसरी।
- नवीन राजस्थान।
- नवज्योति।
- राजस्थान सन्देश।
प्रश्न 43.
राजस्थान की जनता ने प्रजामण्डलों की स्थापना क्यों की?
उत्तर:
राजस्थान की जनता ने उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु प्रजामण्डलों की स्थापना की।
प्रश्न 44.
जोधपुर राज्य में राजनीतिक आन्दोलन प्रारम्भ करने का श्रेय किस संस्था को प्राप्त है?
उत्तर:
मारवाड़ हितकारिणी सभा को।
प्रश्न 45.
मारवाड़ हितकारिणी सभा ने उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए राज्य की जनता का राजनीतिक मार्गदर्शन किसके नेतृत्व में किया?
उत्तर:
जयनारायण व्यास के नेतृत्व में।
प्रश्न 46.
मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
1934 ई. में मानमल जैन, अभयमल जैन एवं छगनराज चौपासनी ने।
प्रश्न 47.
सिविल लिबर्टीज यूनियन की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
मई 1936 ई. में रणछोड़दास गट्टानी ने।
प्रश्न 48.
मारवाड़ लोक परिषद् की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
18 मई, 1938 को रणछोड़दास गट्टानी ने।
प्रश्न 49.
मारवाड़ लोक परिषद् के नेतृत्व में किसानों ने ‘लाग – बागों की समाप्ति के लिए जागीरदारों के विरुद्ध जन आन्दोलन कब प्रारम्भ किया?
उत्तर:
7 सितम्बर, 1939 को।
प्रश्न 50.
मारवाड़ लोक परिषद् के किन्हीं चार प्रमुख नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
- जयनारायण व्यास
- अभ्यमले जैन
- छगनराज चौपासनी
- रणछोड़ दास गट्टानी।
प्रश्न 51.
मारवाड़ लोक परिषद् का प्रथम सार्वजनिक अधिवेशन कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
7 से 9 फरवरी, 1942 को लाडनू में रणछोड़दास गट्टानी के अध्यक्षता में।
प्रश्न 52.
जयनारायण व्यास द्वारा लिखित दो पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- मारवाड़ में उत्तरदायी शासन आन्दोलन क्यों
- मारवाड़ की स्थिति पर प्रकाश।
प्रश्न 53.
बीकानेर राज्य में प्रजामण्डल की स्थापना हेतु प्रथम प्रयास कब व किसने किया?
उत्तर:
बीकानेर राज्य में प्रजामण्डल स्थापना हेतु प्रथम प्रयास मघाराम वैद्य ने किया। उन्होंने 4 अक्टूबर, 1936 को बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की?
प्रश्न 54.
बीकानेर में जुलाई 1942 में किसकी अध्यक्षता में प्रजामण्डल की स्थापना की गयी?
उत्तर:
एडवोकेट रघुवर दयाल गोयल की अध्यक्षता में।
प्रश्न 55.
राजस्थान में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का अधिवेशन कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
31 दिसम्बर, 1945 को पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में उदयपुर में।
प्रश्न 56.
17 जुलाई, 1946 को बीकानेर राज्य में बीरबल दिवस क्यों मनाया गया?
उत्तर:
क्योंकि 30 जून, 1946 को रायसिंह नगर में प्रजामण्डल का अधिवेशन हुआ। इसमें बीरबल सिंह जुलूस का नेतृत्व करते हुए पुलिस से गोली से शहीद हुए। अतः इन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए 17 जुलाई, 1946 को बीरबल दिवस मनाया गया।
प्रश्न 57.
वृहत् राजस्थान का उद्घाटन कब व किसने किया?
उत्तर:
30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने।
प्रश्न 58.
मेवाड़ में संगठित राजनीतिक आन्दोलन का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
1938 ई. में।
प्रश्न 59.
मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
24 अप्रैल, 1938 को माणिक्यलाल वर्मा ने।
प्रश्न 60.
मेवाड़ प्रजामण्डल का अध्यक्ष किसे बनाया गया?
उत्तर:
बलवन्तसिंह मेहता को।
प्रश्न 61.
मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन कब व किसकी अध्यक्षता में आयोजित किया गया तथा इसमें क्या माँग की गयी?
उत्तर:
मेवाड़ प्रजामण्डल को प्रथम अधिवेशन नवम्बर 1941 में माणिक्यलाल वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इसमें नागरिक अधिकारों और उत्तरदायी शासन की स्थापना की माँग की गयी।
प्रश्न 62.
जयपुर में प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
1931 ई. में पूरनचन्द पाटनी ने।
प्रश्न 63.
जयपुर प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन कब व किसके सभापतित्व में सम्पन्न हुआ?
उत्तर:
1938 ई. में सेठ जमनालाल बजाज के सभापतित्व में।
प्रश्न 64.
प्रजामण्डल आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
उत्तरदायी सरकार की स्थापना एवं नागरिकों को उनके प्राथमिक अधिकार दिलाना।
प्रश्न 65.
जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना कब व कहाँ की गयी?
उत्तर:
15 दिसम्बर, 1945 को मीठालाल व्यास ने जोधपुर में जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना की।
प्रश्न 66.
अलवर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसके प्रयासों से हुई?
उत्तर:
पं. हरिनारायण शर्मा और कुंजबिहारी लाल मोदी के प्रयासों से 1938 ई. में अलवर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना की गयी।
प्रश्न 67.
कोटा प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
1939 ई. में पं. नयनूराम शर्मा एवं पं. अभिन्न हरि ने कोटा प्रजामण्डल की स्थापना की।
प्रश्न 68.
भरतपुर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना कब व कहाँ की गयी?
उत्तर:
दिसम्बर, 1938 को रेवाड़ी में।
प्रश्न 69.
भारत छोड़ो आन्दोलन में भरतपुर राज्य प्रजामण्डल के किन-किन नेताओं ने भाग लिया?
उत्तर:
जुगल किशोर चतुर्वेदी, मास्टर आदित्येन्द्र, ठाकुर देशराज, रेवतीराम शरण, ठाकुर जीवाराम, राजबहादुर एवं मास्टर गोपीलाल यादव ने।
प्रश्न 70.
डूंगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसकी अध्यक्षता में की गयी?
उत्तर:
26 जनवरी, 1944 को भोगीलाल पंड्या की अध्यक्षता में।
प्रश्न 71.
बांसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसकी अध्यक्षता में की गयी?
उत्तर:
1943 ई. को भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी की अध्यक्षता में।।
प्रश्न 72.
सिरोही राज्य में प्रजामण्डल की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
22 जनवरी, 1939 को प्रसिद्ध गाँधीवादी नेता गोकुल भाई भट्ट ने।
प्रश्न 73.
बँदी लोक परिषद की स्थापना किसकी अध्यक्षता में की गयी?
उत्तर:
सन् 1944 में हरिमोहन माथुर की अध्यक्षता में।
प्रश्न 74.
राजस्थान में किसान आन्दोलन का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
सामन्तशाही व्यवस्था द्वारा किसानों का आर्थिक-सामाजिक शोषण किया जाना।
प्रश्न 75.
बिजोलिया ठिकाने में किसान आन्दोलन प्रारम्भ होने के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
अधिक भू – लंगान, लागत एवं बेगार को जबरन लेना तथा जागीरदारों के अत्याचार बिजोलिया ठिकाने में किसान आन्दोलन प्रारम्भ होने के प्रमुख कारण थे।
प्रश्न 76.
बिजोलिया किसान आन्दोलन के प्रथम चरण (1897 – 1916) का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
साधु सीताराम दास ने।
प्रश्न 77.
बिजोलिया किसान आन्दोलन के द्वितीय चरण (1916 – 1929) का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
विजयसिंह पथिक ने।
प्रश्न 78.
बिजोलिया किसान आन्दोलन के तृतीय चरण (1929 – 41) का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
सेठ जमनालाल बजाज व हरिभाऊ उपाध्याय ने।
प्रश्न 79.
मारवाड़ लोक परिषद् की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
18 मई, 1938 को।
प्रश्न 80.
बूंदी के किसानों के सत्याग्रह का नेतृत्व कब व किसने किया?
उत्तर:
15 जून, 1922 को पं. नयनूराम शर्मा ने।
प्रश्न 81.
शेखावाटी किसान आन्दोलन के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर:
हरलाल सिंह, तारकेश्वर शर्मा, घासीराम चौधरी, नेतरामसिंह एवं ठाकुर देशराज आदि।
प्रश्न 82.
बीकानेर राज्य में किसान आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
हनुमानसिंह आर्य ने।
प्रश्न 83.
‘सम्प सभा’ की स्थापना किसने की?
उत्तर:
गोविन्द गुरु ने।
प्रश्न 84.
भीलों और गरासियों में ‘एकी आन्दोलन’ किसने चलाया?
उत्तर:
मोतीलाल तेजावत ने।
प्रश्न 85.
राजस्थान में किसान आन्दोलन के जनक कौन थे?
उत्तर:
विजयसिंह पथिक।
प्रश्न 86.
राजस्थान में किसान आन्दोलन का महत्व बताइए।
उत्तर:
- पंचायती राज की अवधारणा का उदय
- उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु प्रजामण्डल आन्दोलन का जन्म।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्जुनलाल सेठी को गिरफ्तार क्यों किया गया?
उत्तर:
क्रान्तिकारी कार्यों के संचालन हेतु धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए 20 मार्च, 1913 को वर्धमान विद्यालय के शिक्षक विष्णुदत्त ने अपने चार विद्यार्थियों मोतीचन्द, जयचन्द, माणकचन्द, जोरावर सिंह के सहयोग से बिहार के आरा जिले के नीमेज में जैन उपासरे पर डाका डाला था, उपासरे का महन्त भगवानदास मारा गया। नीमेज हत्याकांड षड्यन्त्र की योजना बनाने के आरोप में अर्जुनलाल सेठी को गिरफ्तार किया गया।
प्रश्न 2.
जोरावरसिंह बारहठ का सम्बन्ध कौन-कौन सी दो क्रान्तिकारी घटनाओं से जोड़ा जाता है?
उत्तर:
जोरावरसिंह का सम्बन्ध स्वतन्त्रता संग्राम की निम्न दो क्रान्तिकारी घटनाओं से जोड़ा जाता है –
- प्रथम घटना नीमेज हत्याकाण्ड (बिहार) है, जिसमें जोरावरसिंह भूमिगत हो गये।
- दूसरी घटना का सम्बन्ध 28 दिसम्बर, 1912 को वायसराय लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली प्रवेश के उपलक्ष्य में आयोजित जुलूस के दौरान बम फेंकने से है, उन्होंने चाँदनी चौक स्थित पंजाब नेशनल बैंक की छत पर बैठी महिलाओं के बीच से बुर्का पहनकर लार्ड हार्डिंग के हाथी के हौदे पर बम फेंकी, इससे वायसराय लार्ड हार्डिंग के चोट लगी। इस घटना के बाद जोरावरसिंह ने लगभग 27 वर्ष भूमिगत अवस्था में व्यतीत किए।
प्रश्न 3.
रासबिहारी बोस ने राजस्थान सहित भारत में क्रान्ति की कौन-सी तिथि निश्चित की थी?
उत्तर:
रासबिहारी बोस एक महान क्रान्तिकारी थे। इन्होंने शचीन्द्र सान्याल के साथ मिलकर भारत में सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनायी। इस हेतु दिसम्बर 1914 में बनारस में क्रान्ति दलों के प्रमुखों की एक बैठक आयोजित की गयी जिसमें । निर्णय किया गया कि 21 फरवरी, 1915 को राजस्थान सहित सम्पूर्ण भारत में क्रान्ति की जाए।
प्रश्न 4.
डाबरा गाँव की घटना का सम्बन्ध किस विषय से है ?
उत्तर:
13 मार्च, 1947 को जोधपुर राज्य के तत्कालीन डीडवाना परगना के डाबरा गाँव में मारवाड़ किसान सभा और मारवाड़ लोक परिषद् की ओर से एक सम्मेलन बुलाया गया था। लोक परिषद् के नेता मथुरादास माथुर व अन्य कार्यकर्ता वहाँ के स्थानीय नेता मोतीलाल चौधरी के घर पर ठहरे थे। डाबरा के जागीरदारों ने मोतीलाल के घर पर ही लाठियों, तलवारों एवं बन्दूकों से हमला कर दिया। इस घटना में चुन्नीलाल शर्मा एवं चार अन्य किसान शहीद हो गए। डाबरा गाँव वर्तमान नागौर जिले में स्थित है।
प्रश्न 5.
जोधपुर, जयपुर, कोटा, भरतपुर, अलवर और जैसलमेर में प्रजामण्डलों की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
प्रजामण्डल आन्दोलनों ने राजस्थान में उत्तरदायी शासन की स्थापना, रियासतों के भारत संघ में अधिमिलन एवं राजस्थान के एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
जोधपुर, जयपुर, कोटा, भरतपुर, अलवर और जैसलमेर में प्रजामण्डलों की स्थापना क्रमशः 1934 ई. 1931 ई., 1939 ई., 1938 ई., 1938 ई. एवं 1945 ई. में हुई।
प्रश्न 6.
जनजातीय भील समाज की चेतना में गोविन्द गुरु की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गोविन्द गुरु एक महान समाज सुधारक थे। इन्होंने डूंगरपुर – बांसवाड़ा में भीलों के सामाजिक एवं नैतिक उत्थान के लिए अथक प्रयास किए। इनका जन्म 20 दिसम्बर, 1858 को डूंगरपुर राज्य के बसियाँ गाँव में हुआ था। 1880 ई. में स्वामी दयानन्द सरस्वती जब उदयपुर आए तो गोविन्द गुरु ने उनके विचारों से प्रभावित होकर भील समाज में सुधार एवं जनचेतना का महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ किया।
इन्होंने भीलों को सामाजिक दृष्टि से संगठित करने एवं मुख्य धारा में लाने के लिए सम्पसभा की स्थापना की। गोविन्द गुरु ने सम्पसभा के माध्यम से बांसवाड़ा व डूंगरपुर में भीलों में गुजरात जागृति का संचार किया। गोविन्द गुरु के प्रयलों से ही भीलों ने राज्य को लाग-बेगार देना बन्द कर दिया था।
प्रश्न 7.
जनजातीय मीणा समाज में सामाजिक चेतना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान के जयपुर राज्य ने सन् 1930 में मीणाओं पर जरायम पेशा कानून लगा दिया था जिसके द्वारा उन्हें अपराधी जाति घोषित कर दिया गया था। सन् 1933 में मीणा क्षत्रिय सभा की स्थापना हुई। मीणाओं पर लगे प्रतिबन्ध हटाने के लिए 1945 ई. में सवाई माधोपुर में एक बैठक हुई, जिसमें राज्यव्यापी आन्दोलन करने का निर्णय किया गया। आन्दोलन के नेता लक्ष्मीनारायण झारवात को बन्दी बना लिया गया।
मीणा सुधार समिति के नेतृत्व में जून, 1947 में जयपुर में विशाल प्रदर्शन किया गया। अन्ततः 1952 में राजस्थान में जरायम पेशा कानून रद्द कर दिया गया। इस प्रकार जयपुर के जरायम पेशा अधिनियम, 1930 से मीणा समाज को पर्याप्त संघर्ष के बाद 1952 में मुक्ति मिली। यह घटना मीणा समाज की सामाजिक चेतना का परिचायक है।
प्रश्न 8.
मेवाड़ के किसान आन्दोलन का सम्बन्ध वहाँ के कौन-कौन से नेताओं से था?
उत्तर:
मेवाड़ के किसान आन्दोलन का सम्बन्ध वहाँ के साधु सीताराम दास, विजय सिंह पथिक, प्रेमचन्द भील, गणपति माथुर, माणिक्य लाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय और जमनालाल बजाज आदि नेताओं से था।
प्रश्न 9.
एरिनपुरा एवं आऊवा की क्रान्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एरिनपुरा में क्रान्ति:
अगस्त, 1857 में जब नसीराबाद, नीमच, देवली आदि स्थानों के विद्रोह की सूचना एरिनपुरा छावनी (जोधपुर) के सैनिकों को प्राप्त हुई तो उन्होंने 21 अगस्त को विद्रोह कर एरिनपुरा पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् आबू की अंग्रेज बस्ती पर धावा बोलते हुए क्रान्तिकारी सैनिकों ने ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह भी क्रान्तिकारियों के साथ अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उठ खड़े हुए।
आऊवा में क्रान्ति:
आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह अंग्रेजों एवं जोधपुर के महाराजा तख्त सिंह से नाराज थे। इन्होंने एरिनपुरा के क्रान्तिकारी सैनिकों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। ठाकुर कुशालसिंह की सेना ने जोधपुर की राजकीय सेना को 8 सितम्बर, 1857 को बिथोडा नामक स्थान पर पराजित कर दिया।
जोधपुर की सेना की पराजय का समाचार सुनकर ए. जी. जी. जार्ज लारेंस’ स्वयं एक सेना लेकर आऊवा पहुँचा और 18 सितम्बर, 1857 को स्वयं भी पराजित हो गया। इस संघर्ष के दौरान जोधपुर का पॉलिटिकल एजेंट मोकमेसन क्रान्तिकारियों के हाथों मारा गया। क्रान्तिकारियों ने उसका सिर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दिया। अक्टूबर, 1857 को क्रान्तिकारी सैनिक दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गए।
प्रश्न 10.
1857 की क्रान्ति में आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
1857 की क्रान्ति में आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह की भूमिका:
1857 की क्रान्ति में आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह ने प्रभावी भूमिका का निर्वाह किया। ठाकुर कुशाल सिंह ने एरिनपुरा में क्रान्तिकारी सैनिकों का नेतृत्व करना स्वीकार किया। इन्होंने अपने सहयोगी सामंतों एवं क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर जोधपुर राज्य की राजकीय सेना को 8 सितम्बर, 1857 को बिथोडा नामक स्थान पर पराजित किया।
जोधपुर की सेना की पराजय का समाचार सुनकर ए. जी. जी. लारेंस स्वयं एक सेना लेकर आऊवा पहुँचा और 18 सितम्बर, 1857 को पराजित हुआ। इस संघर्ष में जोधपुर का पोलिटिकल एजेंट मोकमेसने मारा गया। क्रान्तिकारियों ने उसका सिर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दिया। आऊवा की हार का बदला लेने के लिए ए. जी. जी. लारेंस ने ब्रिगोडियर होम्स के नेतृत्व में सेना आऊवा भेजी। भीषण युद्ध के दौरान कुशालसिंह विजय की उम्मीद को न देखकर सलूम्बर की ओर चले गए।
प्रश्न 11.
राजस्थान के स्वतन्त्रता संग्राम में तात्या टोपे की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के स्वतन्त्रता संग्राम में गत्या टोपे की भूमिका:
तात्या टोपे पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी नाना साहब का स्वामिभक्त सेवक था। वह ग्वालियर का विद्रोही नेता था। वह राजस्थान के ब्रिटिश विरोधी लोगों से सहयोग प्राप्त करने की आकांक्षा में राजस्थान आया था। तात्या टोपे मराठा सेना सहित 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा पहुँचा, वहाँ उसका सामना ‘कुआदा’ नामक स्थान पर जनरल राबर्ट्स की सेना से हुआ। क्रान्तिकारियों को इसमें सफलता नहीं मिली। टोपे वहाँ से अकोला, चित्तौड़गढ़ व सिंगोली होता हुआ झालावाड़ पहुँचा। वहाँ इसने राणा पृथ्वी सिंह को हराया
और झालावाड़ की सेना उनके साथ ही गयी तात्या टोपे वहाँ से कोटा उदयपुर होते हुए, ग्वालियर चला गया। दिसम्बर, 1857 में तांत्या पुनः राजस्थान आया और 11 दिसम्बर, 1857 को बांसवाड़ा को घेरकर जीत लिया। फिर टोपे बांसवाड़ा से सलूम्बर, मीडर होते हुए जनवरी 1858 में टोंक पहुँचे। वहाँ टोंक की सेना व वहाँ की जनता ने इनका स्वागत किया। जब मेजर ईडन विशाल सेना के साथ टोंक पहुँचा तो एक विश्वासघाती मानसिंह नसका ने नश्वर के जंगलों में अंग्रेजी सेना को पकड़वा दिया और अतत: 18 अप्रैल, 1859 को तांत्या को फाँसी दे गई।
प्रश्न 12.
स्वतन्त्रता आन्दोलन में अर्जुनलाल सेठी की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता आन्दोलन में अर्जुनलाल सेठी की भूमिका:
अर्जुनलाल सेठी का जन्म 9 सितम्बर, 1880 को जयपुर में हुआ। भारतीय जनपद सेवा के अन्तर्गत इन्हें जिलाधीश का पद दिया गया था लेकिन इसे स्वीकार न करके इन्होंने जनता व किसानों पर किए जा रहे अत्याचार व दमन के विरुद्ध आन्दोलनात्मक जीवन पद्धति को अपनाया। ये अरबी फारसी, अंग्रेजी, संस्कृत एवं जैन दर्शन के विद्वान थे।
इन्होंने विद्यार्थियों को क्रान्तिपथ पर अग्रसर के लिए, क्रान्ति का प्रशिक्षण देने के लिए सन् 1907 में जयपुर में वर्धमान विद्यालय की स्थापना की। नीमेज हत्याकांड षड्यन्त्र की योजना बनाने के आरोप में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ब्रिटिश सरकार के दबाव में इन्हें बिना मुकदमा चलाए जयपुर सरकार द्वारा दिसम्बर, 1914 में 5 वर्ष के कारावास की सजा दी गयी जिसका विरोध होने पर इन्हें मद्रास की वेल्लूर जेल भेज दिया गया।
यहाँ से सेठी जी 1920 ई. में मुक्त हुए और अजमेर को अपनी कार्यस्थली बनाया। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद, शौकत उस्मानी व अशफाक उल्ला खाँ इनसे सहयोग, प्रेरणा और मार्गदर्शन लेते थे। इन्होंने सर्वधर्म समभाव व साम्प्रदायिक एकता के लिए भी कार्य किया। 23 दिसम्बर, 1941 को अजमेर में इनका देहान्त हो गया।
प्रश्न 13.
प्रखर क्रान्तिकारी ठाकुर केसरीसिंह बारहठ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ठाकुर केसरीसिंह बारहठ का परिचय:
प्रखर क्रान्तिकारी एवं राष्ट्रवाद के प्रबल पुरोधा ठाकुर केसरीसिंह बारहठ का जन्म 21 नवम्बर, 1872 को शाहपुरा रियासत (भीलवाड़ा) के गाँव देवपुरा में हुआ। स्वामी दयानन्द सरस्वती से प्रभावित केसरी सिंह जी संस्कृत व डिंगल काव्य के विद्वान थे। 1903 ई. में इनके लिखे सोरठे चेतावणी रा चुंगट्या’ का ही असर था कि मेवाड़ के महाराणा फतहसिंह ने अपनी गौरवमयी परम्परा का पालन किया। इन्होंने क्रान्तिकारी गोपाल सिंह खरवा और जयपुर में अर्जुनलाल सेठी के साथ अभिनव भारत समिति में भी कार्य किया।
इन्होंने गोपाल सिंह खरवा के साथ गुप्त क्रान्तिकारी संगठन ‘वीर भारत सभा’ का भी गठन किया। ठाकुर केसरीसिंह सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से मातृभूमि को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराना चाहते थे। इसके लिए इनका देश के प्रमुख क्रान्तिकारियों यथा रासबिहारी बोस, मास्टर अमीरचन्द, लाला हरदयाल, श्यामकृष्ण वर्मा, अर्जुनलाल सेठी एवं राव गोपाल सिंह खरवा आदि के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। इन्होंने कोटा क्रान्तिदल का भी गठन किया। एक महन्त की हत्या प्रकरण में इन्हें 20 वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया। 23 दिसम्बर, 1941 को इनका देहान्त हो गया।
प्रश्न 14.
राव गोपाल खरवा ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जो योजना बनाई, उसको स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अजमेर:
मेरवाड़ा में खरवा ठिकाने के राव गोपालसिंह एक महान देशभक्त व क्रान्तिकारी थे। ये क्रान्तिकारियों के लिए हथियारों की व्यवस्था करते थे। इन्होंने ‘वीर भारत सभा’ का गठन केसरीसिंह बारहठ के साथ मिलकर किया। दिसम्बर, 1914 में बनारस में क्रान्ति दलों में प्रमुख की बैठक में यह निर्णय लिया कि 21 फरवरी, 1915 को सम्पूर्ण भारत में क्रान्ति की जाए।
रासबिहारी बोस एवं शचीन्द्र सान्याल ने राजस्थान में सशस्त्र क्रान्ति का दायित्व ‘राव गोपाल सिंह को सौंपा। 21 फरवरी, 1915 को राव गोपाल सिंह एवं भूपसिंह अजमेर के रेलवे स्टेशन के निकट जंगल में 2000 से अधिक सशस्त्र सैनिकों के साथ क्रान्ति के निश्चित संकेत की प्रतिक्षा कर रहे थे किन्तु क्रान्ति का भेद खुल जाने के कारण क्रान्ति की यह योजना असफल हो गयी। ब्रिटिश सरकार ने राव गोपाल सिंह व भूपसिंह को पकड़ लिया।
प्रश्न 15.
विजय सिंह पथिक के व्यक्तित्व एवं कार्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विजयसिंह पथिक को व्यक्तित्व एवं कार्य:
विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। इनका जन्म 24 मार्च, 1882 को गुठावली गाँव (बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश) में हुआ। यह सर्वप्रथम प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नेता सचीन्द्र सान्याल के सम्पर्क में आए और सदा के लिए इनकी जीवन पद्धति क्रान्तिकारी हो गयी। रासबिहारी बोस ने भूपसिंह को राजस्थान में क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार करने एवं शस्त्र एकत्रित करने हेतु अजमेर भेजा।
अजमेर में भेद खुल जाने पर इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा टॉडगढ़ किले में नजरबन्द रखा गया। मार्च 2015 में भूपसिंह टाँडगढ़ से भाग निकले। यहाँ से निकलने के पश्चात् वे बिजोलिया आए जहाँ पर विजयसिंह पथिक के नाम से जाने गए। साधु सीताराम दास के आमन्त्रण पर विजयसिंह पथिक ने बिजोलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व ग्रहण कर लिया। इन्होंने बेंगू किसान आन्दोलन (1921-1925) का नेतृत्व किया।
इन्होंने सन् 1920 में राजस्थान केसरी का सम्पादन 1922 ई. में अजमेर में राजस्थान सेवा संघ के नवीन राजस्थान और बाद में इसी को ‘तरुण राजस्थान’ के नाम से प्रकाशित किया। इन्होंने 1930 में आगरा से ‘नव सन्देश’ नामक पत्र को प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक “What are Indian State’ है। स्वतन्त्रता के पश्चात् इन्होंने राजस्थान सेवा आश्रम की स्थापना की। विजय सिंह पथिक न केवल राजस्थान के बल्कि भारतीय किसान आन्दोलन के जनक माने जाते हैं। 28 मई, 1954 को इनका देहान्त हो गया।
प्रश्न 16.
राजस्थान में किसान आन्दोलन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
राजस्थान में किसान आन्दोलन के प्रमुख कारण :
राजस्थान में किसान आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
1. किसानों से नाजयाज भूराजस्व व लाग:
बाग’ लिया जाना-रियासतों के शासकों एवं जागीरदारों ने अपने बढ़ते खर्चे की पूर्ति हेतु किसानों पर नए – नए कर लगाना प्रारम्भ कर दिया। किसानों से भूराजस्व के अतिरिक्त अनेक प्रकार की लाग-बाग’ (उपकर व बेगार) जबरन वसूल किए जाते थे। विभिन्न जातियों के लोगों को अपने परम्परागत व्यवसाय के अनुसार बेगार देनी पड़ती थी।
2. ‘लाग-बाग’ के अतिरिक्त कर:
लाग-बाग के अतिरिक्त जागीरदार अपने शासक को दी जाने वाली रेख (जागीर के कुल राजस्व का वार्षिक कर), तलवार बंधाई (उत्तराधिकार शुल्क), चाकरी (शासक को सैन्य सेवा के बदले दी जाने वाली वार्षिक राशि) एवं नजराना (भेंट की राशि) की राशि भी किसानों से जबरदस्ती वसूली जाती थी।
3. किसानों का सामाजिक:
आर्थिक शोषण-राजस्थान की विभिन्न रियासतों की सामन्तशाही व्यवस्था ने किसानों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। उनका निरन्तर सामाजिक व आर्थिक शोषण किया जा रहा था, जिससे किसान परेशान थे।
4. जागीरदारों का अमानवीय व्यवहार:
बेगार से मना करने पर प्रायः किसानों की पिटाई की जाती थी। लगान लागते न देने वाले किसानों को जागीरदारों द्वारा उनकी पुश्तैनी भूमि के बेदखल कर दिया जाता था। उपर्युक्त समस्त कारकों से राजस्थान में किसान आन्दोलन हेतु प्रेरित हुए।
प्रश्न 17.
बूंदी और अलवर राज्य में किसान आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बूंदी में किसान आन्दोलन:
बेंगू व बिजोलिया किसान आन्दोलन से प्रभावित होकर बूंदी के किसानों ने भी समान्तवादी शोषण के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ किया। पण्डित नयनूराम शर्मा ने 15 जून, 1922 को बूंदी के किसानों के सत्याग्रह का नेतृत्व किया, पण्डित नयनूराम शर्मा को नवम्बर, 1922 में राज्य सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। मई, 1923 में पुलिस ने सत्याग्रही किसानों पर गोली चलायी। इस क्रूर दमन से आन्दोलन धीमा पड़ गया। बूंदी के किसानों का मार्गदर्शन राजस्थान सेवा संघ, अजमेर ने किया।
अलवर राज्य में किसान आन्दोलन:
मई 1925 में अलवर राज्य की दो तहसीलों बानसूर और थानागाजी में सरकार द्वारा लागू की गयी भूराजस्व की ऊँची दरों के विरोध में आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। 14 मई, 1925 को बानसूर तहसील के गाँव नीमूचाणा में किसानों की सभा पर राज्य सरकार के सैनिकों ने गोलियों की बौछार कर दी।
इस घटना में 95 किसान मारे गए तथा 250 किसान घायल हुए। इसके अतिरिक्त 353 घरों को जला दिया गया। महिलाओं का भी अपमान किया गया। महात्मा गाँधी ने इस हत्याकाण्ड की बहुत अधिक आलोचना की उन्होंने अपने पत्र ‘यंग इण्डिया’ में इस हत्याकण्ड को ‘दोहरी डायरशाही’ बताया।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन:
(1) राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन की पृष्ठभूमि-सन् 1857 की असफल क्रान्ति की ब्रिटिश सत्ता विरोधी विचारधारा राजस्थान को भी विरासत में प्राप्त हुई। 1905 में बंगाल विभाजन की घटना का राष्ट्रव्यापी विरोध, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल एवं लाला लाजपत राय द्वारा प्रतिपादित उग्र राष्ट्रीयता की विचारधारा, वीर सावरकर द्वारा सामरिक राष्ट्रवाद की व्याख्या तथा क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस एवं शचीन्द्रनाथ सान्याल के प्रभाव के कारण राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन की पृष्ठभूमि का निर्माण हुआ।
(2) क्रान्ति के नायक:
राजस्थान में सामरिक राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति क्रान्तिकारी गतिविधियों के रूप में हुई। उस समय राजस्थान में क्रान्तिकारियों के तीन दल थे –
(i) जयपुर दल के नेता अर्जुनलाल सेठी थे। उन्होंने क्रान्तिकारियों के प्रशिक्षण हेतु जयपुर में वर्धमान विद्यालय स्थापित किया, बाद में वे इसे इन्दौर ले गए। ठा. केसरीसिंह के पुत्र प्रतापसिंह बारहठ तथा दामाद ईश्वरदास आशिया सेठी जी के विद्यालय में पढ़ते थे। नीमेज हत्याकांड (20 मार्च, 1913) की योजना बनाने के आरोप में उन्हें बन्दी बना लिया गया। साढ़े सात वर्ष की सजा भुगतने के बाद वे मद्रास (अब चेन्नई) की वेल्लूर जेल से 1920 में मुक्त हुए। उनकी गणना राजस्थान के प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं में की जाती है।
(ii) ठाकुर केसरीसिंह बारहठ के नेतृत्व में कोटा का क्रान्तिकारी दल सक्रिय था। वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रखर पक्षधर थे। इनके द्वारा रचित ‘चेतावनी री चूंगट्या’ पढ़कर उदयपुर के महाराणा फतेहसिंह ने 1903 में दिल्ली दरबार में भाग नहीं लिया। कोटा में जोधपुर के एक धनी महंन्त प्यारेलाले की हत्या (25 जून, 1912) के आरोप में उन्हें 20 वर्ष की सजा दी गयी। शाहपुरा में उनकी जागीर (देवपुरा) जब्त कर ली गयी। उन्हें 1919 ई. में कारावास से मुक्त किया गया। उनके सम्पूर्ण परिवार ने भारत की ब्रिटिश दासता के मुक्ति हेतु कठोर यातनाएँ भोगीं। ठा. केसरीसिंह बारहठ के भाई जोरावर सिंह बारहठ ने क्रान्तिकारी आन्दोलन में अद्वितीय भूमिका का निर्वाह किया।
उनको नाम प्रमुख रूप से दो घटनाओ:
प्रथम नीमेज हत्याकांड (मार्च 1913) तथा द्वितीय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने (23 दिसम्बर, 1912) से जुड़ा हुआ है। उन्होंने 27 वर्ष तक भूमिगत जीवन बिताया। उनका देहान्त भूमिगत अवस्था में ही 1939 ई. में हो गया। ठाकुर केसरीसिंह के पुत्र प्रतापसिंह को बनारस षड्यन्त्र केस में विश्वासघात के कारण बन्दी बना लिया गया। उन्हें पाँच वर्ष की सजा दी गयी। बरेली की काल कोठरी में नारकीय वेदनाएँ सहते हुए उनका देहान्त मई, 1918 में हुआ।
(3) सशस्त्र क्रान्ति की योजना:
क्रान्तिकारी नेता रासबिहारी बोस ने सन् 1909 – 1910 में भूपसिंह (बाद में विजयसिंह पथिक के नाम से प्रसिद्ध) को राजस्थान में क्रान्ति हेतु शस्त्रों के संग्रह, निर्माण एवं मरम्मत की शिक्षा हेतु भेजा था। सशस्त्र क्रान्ति की तिथि 21 फरवरी, 1915 निश्चित की गयी थी। इस दिन खरवा के पास जंगलों में राव गोपालसिंह खरवा तथा भूपसिंह अपने सैकड़ों क्रान्तिकारी सैनिकों सहित क्रान्ति के संकेत की प्रतिक्षा करते रहे, परन्तु 19 फरवरी को क्रान्ति का भेद खुल जाने के कारण, ब्रिटिश सरकार ने क्रान्तिकारियों को बन्दी बना लिया। भूपसिंह और राव गोपालसिंह खरवा को टॉडगढ़ के किले में बन्दी बना लिया गया।
कुछ समय बाद वहाँ से भूपसिंह भाग गए तथा उन्हें बिजोलिया किसान आन्दोलन को नेतृत्व विजयसिंह पथिक के नाम से प्रदान किया। राव गोपालसिंह भी टॉडगढ़ से भाग गए। उन्हें अगस्त 1915 में गिरफ्तार कर उनकी खरवा गाँव की जागीर जब्त कर ली गयी। उन्हें 1920 में नजरबन्दी से मुक्त किया गया। मूल्यांकन-क्रान्तिकारी आन्दोलन का महत्व यह है कि इसने ब्रिटिश सत्ता विरोधी जन भावनाओं को जीवित रखा। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आन्दोलन के कालखण्ड में भारतीयों को ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति प्राप्त करने की निरन्तर प्रेरणा मिलती रही।
प्रश्न 2.
राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन का मूल्यांकन:
ब्रिटिश भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका थी। राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन का मूल्यांकन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(1) राष्ट्र की क्रान्ति की मुख्य धारा से सम्बद्ध गतिविधियाँ:
राजस्थान के क्रान्तिकारी देश की मूल क्रान्तिकारी धारा के साथ-साथ उनके नेताओं यथा मास्टर अमीरचन्द, रासबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि से जुड़े हुए थे।
(2) ब्रिटिश सत्ता विरोधी भावनाओं को जागृत रखने में सफल :
क्रान्तिकारी आन्दोलन का क्षेत्र सीमित था, परन्तु ब्रिटिश सत्ता विरोधी भावनाओं को जीवित और जागृत बनाए रखने का श्रेय क्रान्तिकारी नेताओं को है।
(3) राष्ट्रवाद की प्रखर अभिव्यक्ति:
परम्परागत मान्यता के अनुसार दिल्ली में दिसम्बर, 1971 में लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने का श्रेय रासबिहारी बोस को दिया जाता है। वर्तमान उपलब्ध ठोस प्रमाणों के आधार यह कहा जा सकता है कि जोरावरसिंह बारहठ ने लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका था। इस प्रकार भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन में राजस्थान की भूमिका राष्ट्रवाद की प्रखर अभिव्यक्ति थी।
(4) सामरिक राष्ट्रवाद:
क्रान्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक आधार सामारिक राष्ट्रवाद था। गोली और बम का उपयोग करना क्रान्तिकारियों को कर्तव्य माना जाता था।
(5) मातृभूमि के प्रति निष्ठा व सामरिक राष्ट्रवाद भारतीयों के लिए प्रेरणापरक:
क्रान्तिकारियों के अदम्य साहस, ब्रिटिश सत्ता विरोधी प्रबल स्तर, भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित भाव, काल कोठरियों और काला पानी (अण्डमानद्वीप) में असीम नारकीय यातनाएँ भोगना इस तथ्य का प्रमाण है कि उनके जीवन का एकमात्र आदर्श-‘तेरा (भारत वैभव अमर रहे, हम रहें ना रहें’) था। क्रान्तिकारियों की मातृभूमि निष्ठा व सामरिक राष्ट्रवाद की अवधारणा राष्ट्रीय आन्दोलन के विभिन्न चरणों में निरन्तर प्रेरणा देती रही।
(6) केन्द्रीय स्तर पर संगठित योजना का अभाव:
राजस्थान के क्रान्तिकारियों की कोई एकीकृत अथवा केन्द्रीय स्तर पर संगठित योजना नहीं थी।
(7) किसान तथा प्रजामण्डल आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार करना:
क्रान्तिकारी आन्दोलन ने निहित राष्ट्रभाव ने कालान्तर में किसान तथा प्रजामण्डल आन्दोलनों की पृष्ठभूमि तैयार की। क्रान्तिकारी तथा गाँधीवादी सामाजिक नेता रामनारायण चौधरी ने 1980 में अजमेर से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘बीसवीं सदी का राजस्थान’ में निम्नलिखित सपूतों के बारे में लिखा है कि
श्री विजयसिंह पथिक:
राजस्थान की ग्रामीण जनता के पहले नेता थे। उन्होंने यहाँ के किसानों को जगाया, उन्होंने स्थानीय देशभक्ति की भावना को सजीव बनाया, उन्होंने राजस्थानी युवकों को आजन्म देशसेवा की दीक्षा दी। सामन्तवाद की जड़ें राजस्थान में पथिकजी ने हिलाई थीं। वे पीड़ित राजस्थान के लिए दूसरे गाँधी थे।
पण्डित अर्जुनलाल सेठी:
राजस्थान में राष्ट्रीयता के प्रणेता थे। उन्होंने इस प्रान्त में आजादी की चेतना का बीज बोया तथा उसे अपने त्याग व तपस्या से सींचा। उन्होंने यहाँ साम्राज्यवाद तथा पूँजीवाद से पहले-पहले लोहा लिया था। वे राजस्थान के लोकमान्य तिलक थे।
ठाकुर केसरीसिंह बारहठ:
इनके सम्पूर्ण परिवार ने त्याग का जो उदाहरण प्रस्तुत किया वह आधुनिक राजस्थान में तो अद्वितीय है ही, देशभर में भी इसकी मिसाल शायद ही मिले। वे राजस्थान के योगी अरविन्द थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र प्रतापसिंह बारहठ क्रान्तिदल के नेता थे। ‘यथा नाम तथा गुण’ के अनुसार वे वर्तमान राजस्थान में राणा प्रताप के अवतार ही थे।
राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन:
डूंगरपुर, बांसवाड़ा, दक्षिण मेवाड़, सिरोही, ईडर, गुजरात आदि के पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाली भील व गरासिया जनजातियों में अंग्रेज व जागीरदार विरोधी चेतना का संचार करने हेतु गोविन्द गुरु ने ‘सम्पसभा’ की स्थापना की। गोविन्द गुरु ने समाज सुधार के कार्य भी किए। इनके पश्चात् मोतीलाल तेजावत ने भीलों में ‘लाग-बाग’ विरोधी चेतना का संचार किया। उन्होंने भीलों में एकी आन्दोलन चलाया।
सिरोही राज्य में भीलों का नेतृत्व मोतीलाल तेजावत ने एवं बाद में गोकुलभाई भंट्ट ने किया। इनके प्रयासों से सिरोही राज्य में जुलाई 1941 में बेगार प्रथा बन्द कर दी गयी। मीणाओं पर लगे प्रतिबन्ध हटाने के लिए 1945 ई. में सवाई माधोपुर बैठक में राज्यव्यापी आन्दोलन करने का निर्णय किया गया। मीणा क्षत्रिय सभा एवं मीणा सुधार समिति के प्रयासों से 1952 ई. में राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रचलित जरायम पेशा कानून रद्द कर दिए गए।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार एवं जागीरदारों ने किसानों को बहुत अधिक परेशान किया। इसके फलस्वरूप हुए किसान आन्दोलन से राजस्थान में राजनीतिक नेतृत्व का जन्म हुआ। उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु प्रजामण्डल आन्दोलन का जन्म हुआ। इसके अतिरिक्त किसान आन्दोलनों ने देशी राज्यों की समस्या की ओर काँग्रेस का ध्यान आकर्षित किया तथा राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुधारों पर बल दिया।
प्रश्न 3.
राजस्थान के दो प्रमुख क्रान्तिकारियों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के क्रान्तिकारियों में राव गोपालसिंह खरवा, केसरीसिंह बारहठ, अर्जुनलाल सेठी, प्रतापसिंह बारहठ एवं जोरावरसिंह बारहठ के नाम उल्लेखनीय हैं
(1) राव गोपालसिंह खरवा:
खरवा ठिकाने के राव गोपालसिंह स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों और आर्य समाज के शिक्षा प्रसार कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे। ये तिलक के राष्ट्रीय विचारों के भी समर्थक थे। राव गोपाल सिंह अंग्रेजी शासन के विरुद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस और शचीन्द्र सान्याल के साथ जुड़े। इन्होंने खरवा की जनता को जागरूक किया।
विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्ल अपनाने की शपथ दिलाई। राव गोपालसिंह कोलकाता गये वहाँ ‘वन्देमातरम्’ समाचार-पत्र के सम्पादक श्री अरविन्द घोष से मिले। इन्होंने नेशनल कॉलेज में देशभक्ति भाव जगाने वाला भाषण दिया। वे वीर भारत एवं अनुशीलन समिति जैसे क्रान्तिकारी संगठनों से भी जुड़े रहे।
1913 में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर टॉडगढ़ किले में नजरबन्द रखा। बाद में राव गोपालसिंह, पं. मदनमोहन मालवीय के समर्थक बन गये। शिक्षा के प्रसार-प्रचार तथा सामाजिक सुधार कार्यों और अंग्रेज विरोधी राष्ट्रीयता के विकास में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। राव गोपालसिंह खरवा की 1956 ई. में मृत्यु हो गयी।
(2) केसरीसिंह बारहठ:
राजस्थान में क्रान्तिकारियों में शाहपुरा के केसरीसिंह बारहठ का महत्वपूर्ण स्थान था। इनके पिता कृष्णसिंह बारहठ स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुयायी और भक्त थे। अत: केसरीसिंह बचपन से ही आर्य समाज के प्रचार – प्रसार और सामाजिक सुधार कार्यों एवं राष्ट्रीय भावना से प्रभावित हुए थे। इन्होंने नाना (कविदास श्यामलदास) के मार्गदर्शन में राजनीति, साहित्य और शस्त्र शिक्षा प्राप्त की। 1903 ई. में इनके लिखे ‘चेतावणी रा चूंगट्या’ का ही असर था कि मेवाड़ महाराणा फतहसिंह ने अपनी गौरवमयी परम्परा का पालन किया।
केसरीसिंह ने राजपूत हितकारिणी सभा में दिये गये भाषण में शक्ति और देशभक्ति का सन्देश दिया। वे 1903 से 1911 ई. के मध्य देश के अन्य क्रान्तिकारियों के भी समर्थक रहे। क्रान्तिकारी गोपालसिंह खरवा और जयपुर के अर्जुनलाल सेठी के साथ, ‘अभिनव भारत समिति’ ये भी कार्य किया बंगाल का अति गुप्त क्रान्तिकारी संगठन वीर भारत सभा का भी इन्होंने गठन किया। सन् 1914 में महान क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ की मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 4.
राजस्थान में क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रमुख क्रान्तिकारियों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राजस्थान के क्रान्तिकारी आन्दोलन में प्रमुख क्रान्तिकारियों की भूमिका:
राजस्थान के क्रान्तिकारी आन्दोलन में प्रमुख क्रान्तिकारियों की भूमिका को वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –
(1) राजस्थान में सामरिक राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति क्रान्तिकारी गतिविधियों के रूप में हुई। उस समय उत्तर भारत में रासबिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल के नेतृत्व में ‘अभिनव भारत’ नाम से गुप्त क्रान्तिकारी संस्था का निकट सम्बन्ध राजस्थान के क्रान्तिकारी दलों से भी था। उस समय राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में तीन क्रान्तिकारी दल थे –
- अर्जुनलाल सेठी के नेतृत्व में जयपुर में।
- केसरी सिंह बारहठ के नेतृत्व में कोटा में।
- अजमेर में राव गोपाल सिंह खरवा और ब्यावर के दामोदरदास राठी द्वारा संचालित दल।
राजस्थान के प्रमुख क्रान्तिकारी निम्नलिखित थे:
1. अर्जुनलाल सेठी:
जयपुर के मूल निवासी अर्जुनलाल सेठी (1880-1941) की धारणा थी कि भारत की । राजनीतिक-आर्थिक दुर्दशा का मूल कारण भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद है। सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये बाध्य किया जा सकता है। सेठी जी ने छात्रों को क्रान्ति पथ का अग्रगामी बनाने एवं क्रान्ति का प्रशिक्षण देने हेतु सन् 1907 में जयपुर में वर्धमान विद्यालय की स्थापना की। बाद में इन्होंने क्रान्तिकारी राजनीति से संन्यास ले लिया और साम्प्रदायिक एकता के लिए जीवन समर्पित कर दिया। 23 दिसम्बर, 1941 को इनका निधन हो गया।
2. ठाकुर केसरीसिंह बारहठ:
प्रखर क्रान्तिकारी ठाकुर केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवम्बर, 1872 ईस्वी को भीड़वाड़ा में हुआ था। ठाकुर केसरीसिंह की ब्रिटिश सत्ता विरोधी मानसिकता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि लार्ड कर्जन द्वारा फरवरी 1903 में आयोजित दिल्ली दरबार में उदयपुर के महाराणा फतहसिंह के भाग नहीं लेने की घटना ठा. केसरी सिंह बाहरठ की प्रेरणा का परिणाम थी।
महाराणा को ठा. केसरीसिंह बाहरठ ने चेतावणी रा चुंगट्या’ (डिंगल भाषा में लिखे गए तेरह सोरठे) पत्र-रूप में प्रस्तुत किए। परिणामस्वरूप महाराणा ने लार्ड कर्जन के दरबार में उपस्थित . होना मान – मर्यादा के विरुद्ध समझा। ठाकुर केसरीसिंह का देश के शीर्ष क्रान्तिकारी-रासबिहारी बोस, मास्टर अमीरचन्द, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, अर्जुन लाल सेठी, राव गोपालसिंह खरवा आदि के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था।
3. जोरावरसिंह बारहठ:
भीलवाड़ा के शाहपुरा कस्बे के ठाकुर केसरीसिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावरसिंह बारहठ ने 23 दिसम्बर, 1912 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका। वायसराय घायल हो गया तथा उसके हाथी का महावत मारा गया। जोरावर सिंह को पकड़ने के लिए अंग्रेज सरकार ने कई इनामों की घोषणा की किन्तु वे आजन्म पकड़ में नहीं आये तथा 27 वर्ष तक भूमिगत रहकर देश की आजादी के लिए कार्य करते रहे।
4. प्रतापसिंह बारहठ:
ठा. केसरीसिंह बारहठ के पुत्र प्रतापसिंह बारहठ अदम्य साहस के धनी थे। बनारस षड्यन्त्र केस (1915) में प्रताप को पाँच वर्ष की सजा हुई। उन्हें काल कोठरी में रखा गया। बरेली जेल की काल कोठरी में यातनाएँ सहते हुए प्रताप का देहान्त 24 मई, 1918 को हुआ। जन आक्रोश से बचने के लिए जेल अधिकारियों ने प्रताप की लाश को जेल परिसर में ही गड्ढा खोदकर कब्र में दफना दिया।
5. राव गोपालसिंह:
राव गोपालसिंह देशभक्ति तथा क्रान्तिकारी विचारधारा वाले जागीरदार थे। ये गुप्त सैनिक संगठन “वीर भारत संस्था से जुड़े हुए थे। राव गोपालसिंह का मुख्य कार्य क्रान्तिकारियों के लिए अस्त्र-शस्त्र की व्यवस्था करना था। बाद में गोपाल सिंह खरवा को गिरफ्तार कर लिया गया। अवसर पाकर वे फरार हो गए किन्तु अधिक समय तक वे बाहर नहीं रह सके। उन्हें पुन: नजरबन्द कर दिया गया है। वे सन् 1920 में ही रिहा हो सके।
6. विजयसिंह पथिक:
इनका वास्तविक नाम भूपसिंह था। सशस्त्र क्रान्ति 1915 के क्रियान्वयन के लिए राजस्थान में गोपालसिंह खरवा व दामोदर राठी की सहायता हेतु रासबिहारी बोस ने इन्हें अजमेर भेजा। जहाँ पर भेद खुल जाने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा इन्हें टाँडगढ़ किले में नजरबन्द रखा गया। इन्होंने बिजोलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया। इन्होंने सन् 1930 में आगरा से नवसन्देश नामक पत्र प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् पथिक अजमेर में रहे। 28 मई, 1954 को इनका देहान्त हो गया।
7. अन्य क्रान्तिकारी:
राजस्थान में स्वतन्त्रता की अलख जगाने वाले अन्य प्रमुख क्रान्तिकारी दामोदरदास राठी, जमना लाल बजाज, जयनारायण व्यास, रामनारायण चौधरी, माणिक्य लाल वर्मा, भोगीलाल पाण्ड्या, गोकुलभाई भट्ट, सागरमलगोपा, हीरालाल शास्त्री, मोतीलाल तेजावत आदि थे।
प्रश्न 5.
बिजोलिया किसान आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बिजोलिया किसान आन्दोलन:
भारत में सर्वप्रथम अहिंसात्मक युद्ध समरनीति पर आधारित सामंतवाद के विरुद्ध किसानों का संगठित आन्दोलन मेवाड़ के बिजोलिया ठिकाने से प्रारम्भ होता है। बिजोलिया के किसान आन्दोलन के गुरु होने के पीछे निम्नलिखित कारण जिम्मेदार थे
- अधिक भू – लगान का होना।
- राजाओं और जागीरदारों के भवनों, साज – सामानों व विलासिता के बढ़ने से किसानों पर नये कर लगाये गये तथा जबरन बेगार लिया जाता था। आय के साधनों का अभाव था। जागीरदारों ने भी अपनी-अपनी जागीरों में कर लगा दिये थे।
- जागीरदार किसानों के साथ अमानवीय व्यवहार करते थे। वे किसानों की जमीन को छीन लेते थे और उनकी पिटाई कर सामान फेंक देते थे।
(1) बिजोलिया किसान आन्दोलन का प्रथम:
चरण (1897-1916)-बिजोलिया किसान आन्दोलन के प्रथम चरण का नेतृत्व साधु सीताराम दास ने किया। राव कृष्णसिंह ने 1903 में एक नई लाग (उपकर) सँवरी का कर (पुत्री के विवाह के लिए प्रति परिवार 5 रु. ठिकाना शुल्क देना) लगाया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप 1905 में किसानों ने ठिकाने की जमीन को पड़त रख दी और बिजोलिया छोड़कर ग्वालियर राज्य की सीमा में पहुँच गए।
राव पृथ्वीसिंह ने 1913 में तलवार बंधाई की लाग (लागत) प्रजा पर थोप दी। किसानों ने साधु सीताराम दास के नेतृत्व में ठिकाने के राव का विरोध किया, परन्तु सुदृढ़ संगठन और सशक्त नेतृत्व के अभाव में बिजोलियों किसानों का प्रतिरोध असफल रहा।
(2) बिजोलिया किसान आन्दोलन का द्वितीय चरण (1916 – 1929):
बिजोलिया किसान आन्दोलन का द्वितीय चरण का नेतृत्व क्रान्तिकारी, पथिक के परामर्श से किसानों ने प्रथम विश्वयुद्ध का चन्दा तथा लाग-बेगार देने से इन्कार कर दिया। किसान आन्दोलन के पक्ष में राष्ट्रवादी समाचार-पत्र प्रताप (कानपुर) और बाल गंगाधर तिलक के ‘मराठा’ में लेख छपे।
ठिकाने ने अपना दमन – चक्र चलाते हुए लाग – बेगार जबरन लेना शुरू किया। पथिक जी, माणिक्यलाल वर्मा, सीतारामदास, गणपति माथुर और प्रेमचन्द भील पर राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तारी वारंट निकला, भूमिगत होने के कारण पथिक जी को बन्दी नहीं बनाया जा सका।महाराणा मेवाड़ द्वारा नियुक्त दो जाँच आयोगों (अप्रैल, 1919 तथा फरवरी 1920) द्वारा भी किसानों के कष्ट दूर नहीं हुए।
किसान ऊपरभाल की समस्त भूमि पड़ेत रखकर बिजोलिया ठिकाने को छोड़कर सीमावर्ती राज्यों में खेती करने चले गये। उस सयम पथिक जी बधाणा (ग्वालियर) राज्य से आन्दोलन का मार्गदर्शन कर रहे थे। राजपूताने के ए.जी.जी. सर रॉबर्ट हालैण्ड की मध्यस्थता (1922) द्वारा ठिकाने और किसानों के बीच सम्मानपूर्वक समझौता हो गया। बिजोलिया किसान आन्दोलन की यह गौरवशाली विजय थी। किसानों पर चलाये गये मुकदमे वापस ले लिये गये।
(3) आन्दोलन का तृतीय चरण (1929 – 1941):
आन्दोलन के तृतीय चरण का नेतृत्व माणिक्यलाल वर्मा के अनुरोध पर सेठ जमनालाल बजाज एवं हरीभाऊ उपाध्याय ने किया। आन्दोलन का लक्ष्य समर्पित मालभूमि को पुनः प्राप्त करना था। अनन्तः 1931 के किसान सत्याग्रह के बाद सेठ जमनालाल बजाज और मेवाड़ के प्रधानमन्त्री श्री विजय राघवाचार्य के सहयोग से पुराने खातेदारों को अपनी माल भूमि पुनः प्राप्त हो सकी। इस प्रकार दीर्घकालीन संघर्ष (18971940) के बाद 1941 में बिजोलिया किसान आन्दोलन का पटाक्षेप हुआ। कालांतर में इस आंदोलन को बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप अन्य स्थानों पर भी किसान आंदोलन प्रारम्भ हुए।
प्रश्न 6.
राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन:
राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन की विवेचना निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की गयी है –
(1) भील और गरासियों का आन्दोलन:
डूंगरपुर, दक्षिण मेवाड़, बांसवाड़ा, सिरोही, ईडर, गुजरात और मालवा के बीच के तमाम पहाड़ी प्रदेशों में आबादी मुख्यतः भील और गरासियों की है। भील तथा गरासियों के आन्दोलन का विवेचन अग्र बिन्दुओं के अन्तर्गत है –
(i) गोविन्द गुरु के नेतृत्व में सम्पसभा’ की स्थापना:
भीलों का नेतृत्व गोविन्द गुरु (1858-1920) ने किया। उन्होंने भीलों में संगठन और समाज-सुधार के लिए सम्पसभा’ की स्थापना की। गोविन्द गुरु के प्रयत्नों से भीलों ने राज्य को लाग-बेगार देना बन्द कर दिया। अन्त में, मानागढ़ की पहाड़ी (गुजरात) के वार्षिक मेले, नवम्बर, 1913 को भीलों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही की गई। इस भीषण नरसंहार में 1500 भील मारे गए तथा गोविन्द गुरु को बन्दी बना लिया गया।
(ii) मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में एकी आन्दोलन:
गोविन्द गुरु के बाद भीलों को संगठित करने का कार्य मोतीलाल तेजावत (1886-1963) ने किया। इसी उद्देश्य से उन्होंने 1921 में झाड़ोल ठिकाने (मेवाड़) की नौकरी छोड़ी। तेजावत ने बैठ-बेगार’ ओर ‘लाग-बाग’ समाप्त करने सम्बन्धी मांगों को लेकर मेवाड़ के ठिकानों की भील-गरासियों को ‘एकी आन्दोलन’ के अन्तर्गत संगठित किया।
एकी आन्दोलन के प्रभाव से डूंगरपुर के महारावल ने जुलाई 1921 में बेगार समाप्ति के आदेश जारी कर दिए। 19 अगस्त, 1921 को झाड़ोल के ठाकुर ने मोतीलाल तेजावत को बन्दी बना लिया, परन्तु आस-पास के गाँवों के लगभग 700 भीलों ने एकत्र होकर तेजावत को मुक्त करवा लिया। 31 दिसम्बर, 1921 को महाराणा मेवाड़ ने तेजावत को गिरफ्तार करवाने पर १ 500 इनाम देने की घोषणा की।
(iii) सिरोही राज्य में मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में भील आन्दोलन:
मेवाड़ से मोतीलाल तेजावत जनवरी, 1922 में सिरोही आए। सिरोही राज्य में किसान आन्दोलन दो चरणों में हुआ। प्रथम चरण में मोतीलाल तेजावत ने भील और गरासियों के लिए ‘एकी आन्दोलन’ चलाया। उन्होंने भीलों को राज्य को भू-लगान, लाग-बेगार देने से मना कर दिया। 6 मई, 1922 को राज्य ने दमन-चक्र चलाया। भीलों के 640 घर जला दिए गए, 29 भील मारे गए और 80 हजार की सम्पत्ति नष्ट कर दी गयी। अन्ततः भीलों के लोकप्रिय नेता तेजावत को ईडर पुलिस ने 1929 में बन्दी बना लिया और उन्हें मेवाड़ राज्य को सौंप दिया।
(iv) गोकुल भाई भट्ट के नेतृत्व में सिरोही में भील आन्दोलन:
दूसरे चरण में गोकुल भाई भट्ट ने प्रजामण्डल के नेतृत्व में किसान आन्दोलन का संचालन किया। राज्य ने किसान जाँच समिति की स्थापना की। उसके सुझावों के अनुसार, जुलाई, 1941 में बेगार प्रथा समाप्त कर दी गयी। किसानों को कुछ रियायतें दी गई, परन्तु जागीर क्षेत्रों में किसानों का शोषण न्यूनाधिक रूप से होता रहा।
(2) मीणा आन्दोलन:
जयपुर, अलवर राज्य की निवासी जनजाति मीणा कभी राज्य के अनेक भागों की शासक थे। 1933 ई. में मीणा क्षत्रीय सभा की स्थापना हुई। मीणा जाति पर, जरायम पेशा के लगे हुए प्रतिबन्ध को हटाने के लिए 1945 में सवाई माधोपुर में बैठक हुई तथा राज्यव्यापी आन्दोलन करने का निर्णय किया गया। आन्दोलन के नेता लक्ष्मीनारायण झारवाल को गिरफ्तार कर लिया गया।
मीणा सुधार समिति के नेतृत्व में जून 1947 में जयपुर में विशाल प्रदर्शन किया गया। अन्ततः 1952 में राजस्थान की विभिन्न रियासतों में जरायम पेशा कानून रद्द कर दिये गये। इस प्रकार जयपुर के जरायम पेशा अधिनियम, 1930 से मीणा समाज को निरन्तर संघर्ष के बाद 1952 में मुक्ति मिली।
प्रश्न 7.
प्रजामण्डल तथा किसान आन्दोलनों के महत्व का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
प्रजामण्डल आन्दोलनों का महत्व:
राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलनों के महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत विवेचित किया गया है –
(1) रियासतों के विलय में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करना:
प्रजामण्डल आन्दोलनों के नेताओं को इस बात का श्रेय है कि वे 3 जून से 15 अगस्त, 1947 के कालखण्डों में रियासतों के शासकों पर भारतीय संघ में अधिमिलन के लिए निरन्तर जन आन्दोलनों के माध्यम से दबाव डालते रहे। जयनारायण व्यास प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने संयुक्त राज्य की कल्पना 1929 में प्रस्तुत की थी। प्रजामण्डल आन्दोलनों ने सरदार बल्लभ भाई पटेल द्वारा 21 रियासतों के विलय तथा वृहत्तर राजस्थान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
(2) राजस्थान में उत्तरदायी शासन के लिए संघर्ष:
प्रजामण्डल आन्दोलनों ने राजस्थान की रियासतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना पर बल दिया। इससे धीरे-धीरे रियासतों के राजाओं को यह अहसास होता गया कि अब लोकतान्त्रिक सरकारों का समय आ रहा है।
(3) स्वतन्त्रता आन्दोलन की चेतना को रियासतों में विस्तारित करना:
प्रजामण्डलों ने समाज में राजनैतिक स्थिति के प्रति जनता में चेतना उत्पन्न की। राजाओं ने प्रजामण्डलों को गैर कानूनी ठहराकर नेताओं को जेल में डाल दिया। इससे जनता में और जागृति पैदा हुई। इस प्रकार प्रजामण्डल आन्दोलन ने ब्रिटिश भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की चेतना को रियासतों में फैलाया और राजस्थान के आन्दोलन का संचालन राष्ट्रीय आन्दोलन के एक अटूट एवं अविभाज्य अंग के रूप में किया।
किसान आन्दोलनों का महत्व:
राजस्थान में किसान वर्ग का स्वाधीनता संग्राम में योगदान निम्नलिखित रूपों में था –
(1) ब्रिटिश सत्ता विरोध के रूप में:
सर्वप्रथम बिजोलिया किसान आन्दोलन ने राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता विरोधी बीज बोए। उदयपुर के ब्रिटिश रेजीडेंट ने ए.जी.जी. राजपूताना को 1923 में पत्र लिखा, “मेवाड़ अव्यवस्था और कानून विरोधी गतिविधियों का मुख्य स्थल बन गया है।” आन्दोलन मुख्यत: महाराणा के विरुद्ध है, परन्तु यह शीघ्र ब्रिटिश विरोधी स्वरूप धारण करके समीपवर्ती ब्रिटिश क्षेत्रों में फैल सकता हैं। बिजोलिया किसान आन्दोलन के परिणाम दूरगामी हुए। धीरे-धीरे इस किसान आन्दोलन की चिंगारी भयंकर दावानल का स्वरूप ग्रहण करके समस्त राजस्थान में फैल गई।
(2) राजस्थान में राजनीतिक चेतना को बढ़ावा:
किसान आन्दोलन के जनक विजयसिंह पथिक थे। उन्होंने राजस्थान सेवा संघ (अजमेर) राजस्थान केसरी’ (वर्धा) और ‘नवीन राजस्थान’ (अजमेर) के माध्यम से राजस्थान में राजनीतिक चेतना का अभियान छेड़ा।
(3) राजस्थान के भावी स्वतन्त्रता सेनानियों का उदय:
राजस्थान के किसान आन्दोलन के गर्भ से ही राजस्थान के भावी स्वतन्त्रता सेनानी उत्पन्न हुए, जैसे-माणिक्यलाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय, गोकुलभाई भट्ट, रामनारायण चौधरी, हंसराज भील नेता मोतीलाल तेजावत, कुंभाराम आर्य, जयनारायण व्यास, मथुरादास माथुर, द्वारकादास पुरोहित, हीरालाल शास्त्री आदि।।
(4) सामन्तवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष:
किसान आन्दोलनों की प्रारम्भिक सफलताओं से प्रेरित होकर राजस्थान में प्रजामण्डलों की स्थापना की गयी जिनके नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु सामन्तवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष किया गया।
(5) देशी राज्यों की समस्याओं के प्रति काँग्रेस का ध्यान आकर्षित करना:
किसान आन्दोलनों के कारण ही देशी राज्यों की समस्याओं की ओर अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का ध्यान आकर्षित हुआ। सर्वप्रथम बिजोलिया आन्दोलन की जानकारी लेने हेतु महात्मा गाँधी ने फरवरी, 1918 में पथिकजी को बम्बई बुलाया और महादेव भाई देसाई को जाँच हेतु। बिजोलिया भेजा। काँग्रेस ने सर्वप्रथम 1928 में रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की माँग की।
(6) पंचायत राज्य की अवधारणा प्रदान करना:
किसान आन्दोलनों ने पंचायत राज की अवधारणा दी। पंचायतों ने लोकतन्त्र की प्राथमिक पाठशालाओं की भूमिका प्रस्तुत की।
(7) राजनीतिक सुधारों के साथ:
साथ सामाजिक और आर्थिक सुधारों पर बल-किसान वर्ग के आन्दोलनों ने राजनीतिक सुधारों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक सुधारों पर भी बल दिया। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजस्थान में रियासती शोषण से मुक्ति एवं संग्राम को सफल बनाने में प्रजामण्डल एवं किसान आन्दोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
प्रश्न 8.
राजस्थान में प्रजामंडल आन्दोलन के कारण लिखिए।
उत्तर:
1938 के बाद राजस्थान में प्रजामण्डलों की स्थापना हुई। इसके निम्नलिखित कारण थे –
- राजस्थान में किसान आन्दोलन ही प्रजामंडल आन्दोलन का मुख्य कारण था। किसान आन्दोलनों को प्रजामंडल आन्दोलनों का पूरक माना जाता है। बीकानेर और सीकर में किसान आन्दोलन को प्रजा परिषद का बहुत सहयोग और समर्थन मिला। बिजौलिया और मारवाड़ में किसान प्रजामंडल से दूर रहे। यह आन्दोलन अहिंसात्मक रूप से संगठित रहे। इसी कारण जनसाधारण इससे प्रभावित हुआ।
- प्रजामंडल आन्दोलन के नेतृत्व में विजय सिंह पथिक, माणिकलाल वर्मा, जय नारायण व्यास, हीरा लाल शास्त्री, गोकुल भाई भट्ट जैसे प्रभावी और जनप्रिय नेताओं की सक्रिय और राष्ट्रीय भूमिका रही।
- समाचार – पत्रों के योगदान को नकार नहीं जा सकता। पथिक के ‘राजस्थान केसरी’, ‘नवीन राजस्थान’, ‘तरुण राजस्थान’ आदि कई समाचार-पत्रों ने अंग्रेजी सरकार के जन-दमन को प्रभावी रूप से प्रकाशित किया और आलोचना भी की।
- प्रथम युद्ध के भागीदार भारतीय सैनिकों में स्वदेश प्रेम के बीज फूटने लगे थे।
- आर्य समाज के समाज सुधार आन्दोलन, स्वधर्म, स्वदेशी और स्वभाषा जैसे विचारों ने जनता की आँखें खोल दी।
- तत्कालीन शासकों द्वारा जनता से बलात रूप से धन वसूला जा रहा था परिणामस्वरूप जनता में असंतोष फैल
गया। - राजस्थान के गौरवशाली इतिहास ने मेवाड़, भरतपुर और अलवर के शासक और जनता प्रेरित व सक्रिय हुई।
- आस – पास के प्रान्तों के राष्ट्रीय आन्दोलनों ने राजस्थान की जनता को प्रभावित किया।
- राजस्थान में गुरु गोविन्द ने स्वदेशी आन्दोलन को जनसाधारण का आन्दोलन बना दिया।
- अर्जुन लाल सेठी एवं अन्य के बलिदान ने जनता में राजनीतिक और राष्ट्रीय आन्दोलन की लहर पैदा कर दी।
- साहित्यकारों की राष्ट्रीय भावनाओं से ओत – प्रोत रचनाओं और उनकी कविताओं ने विद्रोह की ज्वाला का भड़काया।
- 1920 में अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई। इस संस्था ने किसान आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
- 29 दिसम्बर 1919 को दिल्ली में राजस्थान मध्य भारत सभा का प्रथम अधिवेशन जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में हुआ।
- 1929 में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना हुई।
- 1938 में हरिपुरा में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें राजस्थान से अनेक क्रान्तिकारी नेताओं ने सहभागिता निभाई। इसके परिणामस्वरूप राजस्थान में प्रजामंडल आन्दोलनों के लिए प्रेरणा मिली।
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