• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

July 23, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1909 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय विधान परिषद में जिन चार प्रकार के सदस्यों का उल्लेख था, वे कौन थे?
उत्तर:
वे चार प्रकार के सदस्य थे –

  1. पदेन सदस्य
  2. मनोनीत सरकारी सदस्य
  3. मनोनीत गैर सरकारी सदस्य
  4. निर्वाचित सदस्य।

प्रश्न 2.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 द्वारा पंजाब, असम तथा बर्मा प्रान्तों की विधान परिषदों में अतिरिक्त सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी निर्धारित की गयी?
उत्तर:
तीस।

प्रश्न 3.
भारतीय विधान परिषद अधिनियम, 1909 द्वारा, कौन व्यक्ति केन्द्रीय विधान परिषद के सदस्य नहीं बन सकते थे?
उत्तर:

  1.  सरकारी कर्मचारी
  2. महिला
  3. मानसिक रोगी
  4. 25 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति
  5. सरकारी सेवा से निष्कासित व्यक्ति
  6. दिवालिया घोषित व्यक्ति।

प्रश्न 4.
1909 के अधिनियम द्वारा ब्रिटिश भारत के किन क्षेत्रों को केन्द्रीय विधान परिषद में गैरसरकारी सदस्यों के रूप में प्रतिनिधित्व से वंचित रखा गया?
उत्तर:
उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त, कुर्ग एवं अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्रों को।

प्रश्न 5.
1909 के परिषद अधिनियम द्वारा केन्द्रीय विधान परिषद के गठन हेतु निर्वाचन मण्डल को कितनी श्रेणियों में बाँटा गया? उनके नाम बताइये।
उत्तर:
तीन श्रेणियों में, यथा –

1. सामान्य निर्वाचक वर्ग।
2. वर्गीय निर्वाचक वर्ग।
3. विशिष्ट निर्वाचक वर्ग।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 6.
1919 के अधिनियम की कोई दो प्रमुख प्रावधान बताइए।
उत्तर:

  1.  केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार
  2. कार्यकारी परिषदों का विस्तार।

प्रश्न 7.
द्वैध शासन का आशय क्या है?
उत्तर:
द्वैध शासन का आशय है, “प्रान्तीय शासन दो क्षेत्रों में विभाजित हो और इन दोनों क्षेत्रों का प्रशासन अलग-अलग पदाधिकारियों द्वारा किया जाये, जिनके स्वरूप और उत्तरदायित्व में विभिन्नता हो।”

प्रश्न 8.
द्वैध शासन व्यवस्था में प्रान्तीय विषयों का विभाजन किन दो श्रेणियों में किया गया?
उत्तर:
द्वैध शासन व्यवस्था में प्रांतीय विषयों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभक्त किया गया था –

  1.  रक्षित विषय
  2. हस्तान्तरित विषय।

प्रश्न 9.
1919 के अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्र में स्थापित विधानमण्डल के दोनों सदनों के क्या नाम रखे गये?
उत्तर:

1. विधानसभा
2. राज्य परिषद।

प्रश्न 10.
गृह सरकार का क्या आशय है?
उत्तर:
भारतीय शासन को इंग्लैण्ड से संचालित करने वाली संस्थाओं, यथा-ब्रिटिश सम्राट, ब्रिटिश संसद, मन्त्रिमण्डल, भारत सचिव एवं भारत परिषद को सामूहिक रूप से गृह सरकार कहा जाता था।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के कोई दो प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के प्रमुख प्रावधान:
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 की प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –

1. केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार केन्द्रीय विधान परिषद के संगठन में सुधार कर, इसकी सदस्य संख्या 60 कर दी गई जिसमें 37 सरकारी सदस्य तथा 23 गैरसरकारी सदस्य होते थे जो निर्वाचित होते थे। नौ पदेन सदस्य स्थायी होते थे जिन्हें मनोनीत किया जाता था, इस तरह कुल सदस्य संख्या 69 थी। निर्वाचित सदस्यों के चयन हेतु निर्वाचक मण्डल को तीन श्रेणियों में विभाजित कर दिया गया –

  • सामान्य निर्वाचक वर्ग।
  • वर्गीय निर्वाचक वर्ग।
  • विशिष्ट निर्वाचक वर्ग।

2. प्रान्तीय विधान परिषदों के संगठन व अधिकार-इस अधिनियम द्वारा प्रान्तीय विधान परिषदों की संख्या में संशोधन किया गया। इनकी सदस्य संख्या 30 – 50 के बीच निर्धारित की गयी। प्रान्तीय विधान परिषद् में चार प्रकार के सदस्य रखे गये-

  • पदेन सदस्य
  • मनोनीत सरकारी सदस्य
  • मनोनीत गैरसरकारी सदस्य
  • निर्वाचित सदस्य।

विधान परिषदों द्वारा पारित विधेयकों को गवर्नर अथवा लेप्टीनेट गवर्नर की स्वीकृति तथा गवर्नर जनरल का अनुमोदन आवश्यक था।

प्रश्न 2.
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा केन्द्रीय वे प्रान्तीय विधान परिषदों का सदस्य बनने के लिए निर्धारित योग्यताएँ बताइये।
उत्तर:
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा केन्द्रीय व प्रान्तीय विधान परिषदों का सदस्य बनने के लिए निर्धारित योग्यताएँ:
केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान परिषदों का सदस्य बनने के लिए नियम बनाकर योग्यताएँ भी निर्धारित की गर्मी, परन्तु इस मामले में भी अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग नियम निर्धारित किये गये थे।

मद्रास, बंगाल एवं बम्बई प्रान्तों में प्रान्तीय विधान परिषदों की सदस्यता के लिये नगरपालिका अथवा जिला बोर्ड का सदस्य होना आवश्यक था परन्तु संयुक्त प्रान्त में ऐसे नियम नहीं थे। अन्य योग्यताओं में सम्पत्ति करदाता की योग्यता, ब्रिटिश प्रजाजन होना आवश्यक किया गया। सरकारी कर्मचारी, महिला, मानसिक रोगी, 25 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति, सरकारी सेवा से हटाये गये व्यक्ति दिवालिया घोषित व्यक्ति, विधान परिषदों का सदस्य बनने के योग्य नहीं माने गये।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 3.
1909 के भारतीय परिषद् अधिनियम के कोई दो दोष बताइये।
उत्तर:
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के दोष:
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के दो प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं –

1. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का आरम्भ:
1909 के अधिनियम द्वारा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली प्रारम्भ की गयी। विभिन्न हितों व वर्गों को पृथक् निर्वाचन का अधिकार दिया गया। मुसलमानों, वाणिज्य संघों व जर्मीदारों आदि के लिये स्थान सुरक्षित कर दिये गये। यह स्थान उनकी जाति की संख्या के अनुपात से अधिक थे। इससे साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला और धर्मनिरपेक्षता को आघात पहुँचा। अन्ततः इसने भारत विभाजन की माँग के लिये रास्ता तैयार किया। कुछ समय पश्चात् ही पंजाब में सिखों, मद्रास में गैर-ब्राह्मणों व आंग्ल-भारतीयों ने पृथक् निर्वाचन की माँग प्रारम्भ कर दी।

2. केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत:
1909 का अधिनियम केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित करता था, जिससे गैरसरकारी सदस्यों की स्थिति कमजोर हो गई। इसी कारण गैर सरकारी सदस्य विधान परिषदों में बहुत कम उपस्थित होते थे।

प्रश्न 4.
1909 के अधिनियम द्वारा प्रान्तीय विधान परिषदों में गैरसरकारी बहुमत से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के द्वारा प्रान्तीय विधान परिषदों में गैरसरकारी सदस्यों को बहुमत स्थापित किया गया। प्रान्तीय विधान परिषद में गैरसरकारी सदस्य दो प्रकार के होते थे-मनोनीत सरकारी सदस्य और निर्वाचित गैरसरकारी सदस्य। यह अधिनियम प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित करता था लेकिन निर्वाचित गैर सरकारी सदस्यों का नहीं।

इसमें मनोनीत गैर सरकारी सदस्य भी सम्मिलित थे। सरकारी सदस्य एवं सरकार द्वारा मनोनीत और गैरसरकारी सदस्य मिलकर निर्वाचित सदस्यों से संख्या में अधिक हो जाते थे। इसे ही गैर सरकारी बहुमत कहा गया। प्रान्तीय विधान परिषदों में स्थापित गैर-सरकारी सदस्यों का बहुमत मात्र दिखावा था। यह बहुमत कोई महत्त्व नहीं रखता था।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 5.
1919 के अधिनियम की कोई चार प्रमुख प्रावधान बताइये।
उत्तर:
1919 के अधिनियम प्रावधान:
1919 के अधिनियम के चार प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –

1. भारत परिषद में परिवर्तन:
भारत परिषद के गठन में परिवर्तन किए गए। इसमें कम-से-कम 8 तथा अधिक-से-अधिक 12 सदस्य नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। इन सदस्यों में कम-से-कम आधे ऐसे सदस्य होने आवश्यक थे, जो नियुक्ति की तिथि के समय से पूर्व भारत में कम-से-कम 10 वर्ष रह चुके हों तथा इस देश को अपनी नियुक्ति की तिथि के 5 वर्ष पूर्व न छोड़ा हो। इस परिषद का कार्यकाल भी 7 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया।

2. नरेश मण्डल की स्थापना:
देशी राजाओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए एक नरेश मण्डल के निर्माण का सुझाव दिया गया था। उसी सुझाव के आधार पर 9 फरवरी, 1921 को नरेश मण्डल की स्थापना की गयी। यह केवल परामर्शदात्री संस्था थी। नरेश मण्डल का अध्यक्ष गवर्नर जनरल होता था।

3. मताधिकार व निर्वाचन:
इस अधिनियम द्वारा मताधिकार में वृद्धि की गयी। इस वृद्धि के कारण लगभग दस प्रतिशत जनता को मताधिकार प्राप्त हुआ। सन् 1909 के भारत परिषद अधिनियमं द्वारा केवल मुसलमानों को ही अलग निर्वाचन का अधिकार प्रदान किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा सिखों, ईसाइयों, यूरोपवासियों व आंग्ल भारतीयों को भी पृथक् निर्वाचन का अधिकार दे दिया गया।

4. सत्ता का विकेन्द्रीकरण:
प्रशासन तथा राजस्व के कुछ विषयों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया एवं उन्हें केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण से हटाकर प्रान्तीय सरकार को दे दिया गया। प्रान्तों को प्रथम बार ऋण लेने तथा कर लगाने का अधिकार भी प्रदान किया गया। प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना करके भी विकेन्द्रीकरण की दिशा में प्रयास किया गया।

प्रश्न 6.
1919 के अधिनियम में निर्वाचन व मताधिकार की क्या व्यवस्था की गयी थी?
उत्तर:
1919 के अधिनियम में निर्वाचन व मताधिकार की व्यवस्था :
1919 के अधिनियम द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया आरम्भ की गयी तथा इसका विस्तार किया गया। इस अधिनियम द्वारा मताधिकार में वृद्धि कर दी गयी। इस वृद्धि के कारण लगभग दस प्रतिशत भारतीय जनता को मताधिकार प्राप्त हुआ। सन् 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा केवल मुसलमानों को ही पृथक् निर्वाचन अधिकार प्रदान किया गया था।

मॉण्टेग्यू – चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की निन्दा की गयी थी। परन्तु इस अधिनियम में, इसे न केवल मुसलमानों के लिये बनाये रखा गया, बल्कि पंजाब में सिखों के लिये, तीन प्रान्त छोड़कर शेष प्रान्तों में यूरोपियन के लिये, दो प्रान्तों में आंग्ल भारतीयों के लिये और एक प्रान्त में भारतीय ईसाइयों के लिये लागू कर दिया गया।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 7.
द्वैध शासन की योजना के चार प्रमुख अन्तर्निहित दोष बताइए।
उत्तर:
द्वैध शासन की योजना के प्रमुख अन्तर्निहित दोष:
द्वैध शासन की योजना के चार प्रमुख अन्तर्निहित दोष निम्नलिखित हैं –

  1.  दोषपूर्ण सिद्धान्त-द्वैध शासन प्रणाली सैद्धान्तिक दृष्टि से दोषपूर्ण थी। एक ही प्रान्त की शासन व्यवस्था को दो भिन्न तथा अलग-अलग प्रकृति की शक्तियों के अधीन कर देने से शासन में गतिरोध उत्पन्न होना स्वाभाविक था।
  2. गवर्नर की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ-गवर्नर को मन्त्रियों को नियन्त्रित करने, मन्त्रियों के प्रस्ताव को अस्वीकार करने एवं प्रत्येक विषय में हस्तक्षेप करने की नीति के कारण उत्तरदायित्व का हस्तान्तरण नहीं हो सका।
  3. मन्त्रियों द्वारा सेवाओं पर नियन्त्रण का अभाव-लोकसेवा के सदस्यों की नियुक्ति, स्थानान्तरण तथा पदोन्नति पर गवर्नर का नियन्त्रण होता था न कि उस मन्त्री का जिसके अधीन वे कार्य करते थे।
  4. हस्तान्तरण क्षेत्र के लिए पृथक् वित्त व्यवस्था नहीं-प्रान्त के विषयों का विभाजन तो कर दिया गया किन्तु दोनों के लिए अलग-अलग वित्त की व्यवस्था नहीं की गयी। वित्त व्यवस्था के बिना प्रभावी शासन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

प्रश्न 8.
द्वैध शासन की उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
द्वैध शासन की उपयोगिता:
द्वैध शासन की उपयोगिता निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –

  1. इस अधिनियम के द्वारा पहली बार भारतीयों को बड़े स्तर पर मताधिकार प्रदान किया गया था जिससे भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न हुई।
  2. नियमित रूप से होने वाले चुनावों ने भारतीयों में सार्वजनिक जीवन के प्रति जागृति उत्पन्न की। भारतीयों को शासन की जानकारी प्राप्त हुई तथा उनका आत्मविश्वास जागा।
  3. लगभग सभी प्रान्तों में पुरुषों के साथ – साथ महिलाओं को भी मताधिकार प्राप्त हुआ।
  4. प्रान्तीय क्षेत्रों में कार्य करने वाले भारतीय मन्त्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में सुधार करने व सामाजिक कुरीतियाँ दूर करने में सराहनीय कार्य किया।
  5. द्वैध शासन के कारण सार्वजनिक सेवाओं के भारतीयकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 की प्रमुख प्रमुख विशेषताओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 की प्रमुख विशेषताओं का मूल्यांकन भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 को 15 नवम्बर, 1909 को ब्रिटिश सम्राट से अनुमोदन प्राप्त हुआ तत्पश्चात् इसे लागू किया गया। इस अधिनियम के निर्माण में लार्ड मार्ले (भारत सचिव) एवं लार्ड मिण्टो (वायसराय) की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण इसे मार्ले-मिण्टो सुधार अधिनियम भी कहा जाता है।

इस अधिनियम में, केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार, प्रान्तीय विधान परिषदों के संगठन व अधिकारों में वृद्धि, कार्यकारी परिषदों का विस्तार तथा मताधिकार के प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए। यह अधिनियम भारत में उदारवादियों को भी सन्तुष्ट नहीं कर पाया। इसकी आलोचना अग्रलिखित है

1. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की स्थापना:
1909 के अधिनियम के द्वारा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली प्रारम्भ की गयी। विभिन्न वर्गों को पृथक् निर्वाचन का अधिकार दिया गया। मुसलमानों, वाणिज्य संघों व जमींदारों आदि के लिये स्थान सुरक्षित कर दिये गये। यह स्थान उनकी जाति की संख्या के अनुपात से अधिक थे। इससे साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला और धर्म निरपेक्षता को आघात पहुँचा। अन्ततः इसने भारत विभाजन की माँग के लिये रास्ता तैयार किया। कुछ समय पश्चात् ही पंजाब में सिखों, मद्रास में गैर ब्राह्मणों व आंग्ल भारतीयों ने पृथक् निर्वाचन की माँग प्रारम्भ कर दी।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

2. विधान परिषदों की सीमित शक्तियाँ व सरकारी बहुमत:
इस अधिनियम द्वारा विधान परिषद सदस्यों को दी। गयी शक्तियाँ सीमित थीं। वे कार्यकारिणी सदस्यों से प्रश्न पूछ सकते थे, लेकिन कार्यकारिणी सदस्य सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिये बाध्य नहीं थे। सदस्यों को जनहित के मुद्दों पर प्रस्ताव पारित करने का अधिकार था, लेकिन इन प्रस्तावों को मानना, न मानना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता था। वायसराय व गवर्नरों को अनेक स्वेच्छाचारी शक्तियाँ प्राप्त थीं।

3.  केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत:
1909 का अधिनियम केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित करता था जिससे गैर सरकारी सदस्यों की स्थिति कमजोर थी। इसी कारण गैर सरकारी सदस्य विधान परिषदों में बहुत कम उपस्थित होते थे।

4. प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत मात्र दिखावा:
सिद्धांतत: प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी बहुमत स्थापित किया गया था पर व्यवहार में स्थिति बिल्कुल उलट थी। गैर सरकारी सदस्य दो प्रकार के होते थे-मनोनीत और सरकारी सदस्य तथा निर्वाचित गैर सरकारी सदस्य। मनोनीत गैर सरकारी सदस्य हमेशा सरकार का साथ देते थे। निर्वाचित गैर सरकारी सदस्य बहुत से वर्गों का प्रतिनिधित्व करते थे, जिससे सरकार के विरुद्ध उनका एकजुट होना कठिन था। गवर्नरों को अनेक विषयों पर निषेधाधिकार (Veto) की शक्तियाँ प्राप्त थी। इस कारण गैर सरकारी बहुमत कोई महत्व नहीं रखता था।

5. सीमित व पक्षपातपूर्ण मताधिकार:
1909 के अधिनियम में जनता को प्रदत्त मताधिकार सीमित व पक्षपातपूर्ण था। मुसलमानों में मध्यवर्गीय जमींदार, व्यापारियों और स्नातकों को मताधिकार दिया गया, परन्तु इस श्रेणी के गैर मुसलमानों को मताधिकार से वंचित रखा गया। उदाहरण के रूप में – पूर्वी बंगाल में उसी हिन्दू को मताधिकार दिया गया जिसके द्वारा रे 5000 वार्षिक राजस्व दिया जाता था, लेकिन र 750 राजस्व देने वाले मुसलमान को भी मताधिकार दिया गया। हिन्दू बाहुल्य प्रान्तों में अल्पसंख्यकों के हित रक्षार्थ मुसलमानों को विशेष प्रतिनिधित्व दिया गया, परन्तु मुस्लिम बाहुल्य प्रान्त (पंजाब, पूर्वी बंगाल व असम) में हिन्दुओं को इस प्रकार की प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया।

6. उत्तरदायी शासन व्यवस्था का प्रयास नहीं:
भारतीय जनता राष्ट्रीय आन्दोलन के माध्यम से उत्तरदायी शासन की माँग एक लम्बे समय से करती आ रही थी। लेकिन 1909 के अधिनियम में उत्तरदायी शासन की स्थापना नहीं की गयी। इसका उद्देश्य मात्र कुछ भारतीयों को कानून निर्माण व अन्य प्रशासनिक कार्यों का प्रशिक्षण देना था।

7. निहित स्वार्थों को अनावश्यक प्रोत्साहन व महत्व:
इस अधिनियम के माध्यम से जमींदारों, चैम्बर आफ कॉमर्स (व्यापार मण्डल) जैसे कुछ विशेष वस्तुस्थितियों को अनावश्यक प्रतिनिधित्व देकर महत्व प्रदान किया गया। ये निहित स्वार्थी तत्व ब्रिटिश सरकार के नियन्त्रण में थे और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ थे। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि 1909 का अधिनियम आधा – अधूरा, अनेक दोषपूर्ण व्यवस्थाओं को जन्म देने वाला व भारतीयों को सन्तुष्ट करने वाला नहीं था। इससे भारतीयों को कुछ संस्थाओं में पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा सहभागिता अवश्य मिल गयी किन्तु अनेक विसंगतियों का जन्म भी हुआ।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 2.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के प्रमुख प्रावधान क्या थे? इस अधिनियम की आलोचना करते हुए उपयोगिता लिखिए।
उत्तर:
भारतीय परिषद अधिनियम 1909 के प्रावधान एवं उनकी उपयोगिता भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 की प्रमुख विशेषताएँ/प्रावधान निम्नलिखित थे –
1. केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार:
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के द्वारा केन्द्रीय विधान परिषद के संगठन में सुधार कर, इसकी अतिरिक्त सदस्य संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गयी जिसमें 37 सरकारी सदस्य एवं 23 गैर सरकारी सदस्य होते थे जो निर्वाचित होते थे और 9 पदेन सदस्य स्थायी होते थे जिन्हें मनोनीत किया जाता था। इस तरह कुल संख्या 69 हो गयी। निर्वाचित सदस्यों के चयन हेतु निर्वाचक मण्डल को 3 श्रेणियों में विभाजित कर दिया गया-

  1. सामान्य निर्वाचक वर्ग
  2. वर्गीय निर्वाचक वर्ग
  3. विशिष्ट निर्वाचक वर्ग।

सामान्य विषयों से सम्बन्धित विधेयकों पर विधान परिषद् को बजट व आय तथा जनहित के मामलों पर वाद विवाद करने तथा नियम बनाने का अधिकार आरत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम) दिया गया। इन पर भारत सचिव से पुष्टि का प्रावधान रखा गया था।

सेना, विदेश नीति, देशी रियासतों आदि बहुत से विषय विधान परिषद के क्षेत्र से अलग रखे गये थे। विधान परिषद अपने से सम्बन्धित विषयों पर लाये गये विधेयकों पर विचार कर इन्हें पारित कर सकती थी परन्तु उन्हें वायसराय के हस्ताक्षर होने पर ही लागू किया जा सकता था। वायसराय को निषेधाकार शक्ति प्राप्त थी।

2. प्रान्तीय विधान परिषदों का संगठन व अधिकार:
इस अधिनियम द्वारा प्रान्तीय विधान परिषदों की सदस्य संख्या में भी संशोधन किया गया। इनकी सदस्य संख्या 30-50 के बीच निर्धारित की गयी। मद्रास, बम्बई व बंगाल प्रान्त की विधान परिषदों की सदस्य संख्या 20 से बढ़ाकर 50, संयुक्त प्रान्त, पूर्वी बंगाल प्रान्तों के लिये 15 से बढ़ाकर 50, पंजाब, असम व बर्मा के लिये 9 से बढ़ाकर 30 कर दी गयी थी। विधान परिषदों को अपनी नियमित बैठकों में जनहित के विषयों पर वाद-विवाद कर विधेयक पारित करने का अधिकार दिया गया। बजट पर ये वाद-विवाद कर सकते थे, परन्तु मत नहीं दे सकते थे। प्रान्तीय विधान परिषदों में चार प्रकार के सदस्य होते थे –

  • पदेन सदस्य,
  • मनोनीत सरकारी सदस्य,
  • मनोनीत गैर सरकारी सदस्य,
  • निर्वाचित सदस्य। यह अधिनियम प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित करता था।

3. मताधिकार व प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में प्रावधान:
1909 के अधिनियम द्वारा जनता को मताधिकार दिया गया। मताधिकार के लिये अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग मानक रंखे गये। मद्रास में जिन जमींदारों की वार्षिक आय १ 15000 थी तथा जो 10 हजार भू – राजस्व सरकार को देते थे, उनको मताधिकार दिया गया। बंगाल में ‘राजा’ अथवा ‘नवाब’ की उपाधि जिनके पास थी, मध्य प्रान्त में मजिस्ट्रेट की मानद उपाधि प्राप्त को मताधिकार दिया गया।

इसी प्रकार मुसलमानों के लिये भी मतदान करने के लिये अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग मानक तय किये गये। मुसलमान और गैर मुसलमान व्यक्तियों के मताधिकार की योग्यताएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की रखी गयीं। इस अधिनियम द्वारा मुसलमानों, जमींदारों, चैम्बर ऑफ कॉमर्स को अलग से प्रतिनिधित्व दिया गया। केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान परिषदों के सदस्य बनने के लिये भी योग्यताएँ नियम बनाकर निर्धारित की गयी। इस मामले में भी अलग – अलग प्रान्तों में अलग-अलग नियम निर्धारित किये गये थे।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

4. कार्यकारिणी परिषदों का विस्तार-इस अधिनियम के द्वारा भारत सचिव, वायसराय तथा प्रान्तीय गवर्नरों की कार्यकारी परिषदों के गठन में संशोधन कर भारतीयों को प्रतिनिधित्व दिया गया था। भारत सचिव की परिषद में दो भारतीय सदस्य के होने की व्यवस्था र्थी। वायसराय की कार्यकारी परिषद में एक भारतीय सदस्य बनाया गया था।

मद्रास व बम्बई के गवर्नरों की कार्यकारी परिषद की सदस्य संख्या दो से बढ़ाकर चार की गयी, जिसमें कम – से – कम दो सदस्य ऐसे होने का प्रावधान था जिन्हें 12 वर्ष तक भारत में ब्रिटिश शासन की सेवा करने का अनुभव हो। इन परिषदों में किसी विषय पर विचार-विमर्श के बाद मतदान से निर्णय लिया जाता था लेकिन मतदान में बराबर मत होने पर गवर्नर व पीठासीन अधिकारी को दो मत तथा निर्णायक मत देने का अधिकार दिया गया था।

प्रश्न 3.
भारत शासन अधिनियम, 1919 के प्रावधानों की व्याख्या कीजिए और उनके महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1919 के प्रावधान:
1. गृह शासन व भारत परिषद में परिवर्तन:
भारतीय उपनिवेश के मामलों की देखभाल करने के लिये ब्रिटेन स्थित मन्त्रिमण्डल में एक मन्त्री होता था वह भारत सचिव कहलाता था। उसकी एक परिषद होती थी, जिसे भारत परिषद् कहा जाता था। इस पर होने वाला व्यय भारत को ही वहन करना पड़ता था। अतः भारतीय स्वाधीनता आन्दोलनकारी इसकी समाप्ति की माँग करते आ रहे थे। इस अधिनियम में इसे समाप्त तो नहीं किया गया, परन्तु संरचनात्मक दृष्टि से कुछ परिवर्तन किये गये। भारत परिषद में अब कम – से – कम 8 व अधिकतम सदस्यों की संख्या 12 कर दी गई (अब तक कम से कम 12 व अधिकतम 14 सदस्य होते थे)।

2. भारतीय प्रशासन पर गृह सरकार के नियन्त्रण में कमी:
प्रान्तीय स्तर पर रक्षित विषयों में तथा केन्द्रीय स्तर पर सभी विषयों पर भारत सचिव (भारत मन्त्री-इंग्लैण्ड में मन्त्री को सचिव कहा जाता है) का नियन्त्रण पहले जैसा बना रहा। हस्तान्तरित विषयों के मामलों में प्रान्तों को प्रशासन की कुछ छूट दी गयी। भारत सचिव, ब्रिटिश साम्राज्य के हितों, केन्द्रीय विषयों के प्रशासन तथा अपने विशिष्ट अधिकारों की रक्षा के लिये ही हस्तक्षेप कर सकता था। इस अधिनियम में आशा की गयी कि धीरे-धीरे यह हस्तक्षेप कम हो जायेगा।

3. प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन या द्वैध शासन की स्थापना:
1919 के अधिनियम द्वारा प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी शासन स्थापित किया गया। प्रान्तीय शासन को दो भागों में बाँटा गया।

  • संरक्षित विषय
  • हस्तान्तरित विषय।

संरक्षित विषयों का प्रशासनिक संचालन गवर्नर व उसकी कार्यकारिणी परिषद के द्वारा किया जाता था। इन पर व्यवस्थापिका का कोई नियन्त्रण नहीं था। हस्तान्तरित विषय, लोकप्रिय मन्त्रियों को सौंप दिये गये जो व्यवस्थापिका के निर्वाचित बहुमत में से चुन जाते थे और उनके प्रति उत्तरदायी होते थे।

4. प्रान्तीय कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व:
अधिनियम द्वारा रक्षित क्षेत्र का प्रशासन गवर्नर को सौंपा गया था। लेकिन प्रान्तों की कार्यकारिणी परिषदों में भी भारतीय सदस्यों की संख्या पहले से बढ़ा दी गयी। इन सदस्यों की नियुक्ति, भारत मन्त्री की सिफारिश पर ब्रिटिश सम्राट द्वारा की जाती थी।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

5. प्रान्तीय विधान परिषदों का पुनर्गठन:
इस अधिनियम द्वारा विनियम और अविनियमन प्रान्त का भेद समाप्त कर एक तरह के प्रान्त बनाये गये। इस अधिनियम द्वारा विधान परिषदों को, निर्वाचित सदस्यों का बहुमत रखकर अधिक लोकतन्त्रात्मक बनाया गया और उनके अधिकारों में वृद्धि की गयी।

6. केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन;
अधिनियम द्वारा प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई लेकिन केन्द्रीय शासन पहले की भाँति केन्द्रीय विधान परिषद के नियन्त्रण से मुक्त रखा गया। शासन को प्रभावित करने की दृष्टि से व्यवस्थापिका सभा का विस्तार अवश्य किया गया, लेकिन साथ ही गवर्नर जनरल की शक्तियों में भी वृद्धि कर दी गयी। परिणामस्वरूप, वह व्यवस्थापिका की सहमति के बिना ही महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकता था। इस प्रकार केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यों में वृद्धि के बावजूद केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन ही बना रहा।

7. केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में अधिक भारतीयों की नियुक्ति:
गवर्नर जनरल को पहले की ही भाँति निरंकुश एवं स्वेच्छाकारी बने रहने दिया गया लेकिन कार्यकारिणी परिषद में कुछ सुधार किए गए। प्रथम, कार्यकारिणी सदस्यों की निर्धारित सदस्य संख्या सम्बन्धी प्रतिबन्ध हटा दिया गया। द्वितीय, भारतीय उच्च न्यायालयों के उन वकीलों को जिन्हें कार्य करते हुए दस वर्ष हो चुके हों, परिषद का विधि सदस्य होने के योग्य ठहराया गया। तृतीय, कार्यकारिणी परिषद में भारतीय सदस्यों की संख्या एक से बढ़ाकर तीन कर दी गयी, किन्तु ये संदस्य, जनता के प्रतिनिधि न होकर सरकार का समर्थन करने वाले होते थे। इन भारतीय सदस्यों को सरकार के सबसे कम महत्वपूर्ण विभाग दिये जाते थे।

8. द्विसदनात्मक केन्द्रीय विधानमण्डल:
इस अधिनियम द्वारा केन्द्र के स्तर पर एक सदनात्मक विधान मण्डल के स्थान पर द्विसदनात्मक विधान मण्डल की स्थापना की गयी। इन सदनों के नाम केन्द्रीय विधान सभा तथा राज्य परिषद रखे गये।

9. विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा दिया जाना:
इस अधिनियम द्वारा प्रशासन और राजस्व के कुछ विषयों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया। प्रान्तों को प्रथम बार ऋण लेने तथा कर लगाने का अधिकार भी प्रदान किया गया।

10. नरेश मण्डल की स्थापना:
मॉन्टेग्यू – चेम्सफोर्ड रिपोर्ट के आधार पर देशी राजाओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए एक ‘नरेश मण्डल’ के निर्माण का सुझाव दिया गया था। उसी सुझाव के आधार पर 9 फरवरी, 1921 को नरेश मण्डल की स्थापना की गयी। यह केवल परामर्शदात्री संस्था थी। नरेश मण्डल का अध्यक्ष गवर्नर जनरल था।

11. मताधिकार व निर्वाचन:
इस अधिनियम द्वारा मताधिकार में वृद्धि की गयी। इस वृद्धि के कारण लगभग 10 प्रतिशत जनता को मताधिकार प्राप्त हुआ। सन् 1909 के भारत परिषद अधिनियम द्वारा केवल मुसलमानों को ही पृथक् निर्वाचन का अधिकार प्रदान किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा सिखों, ईसाइयों, यूरोपवासियों व आंग्ल भारतीयों को भी पृथक् निर्वाचन का अधिकार दे दिया गया।

12. शक्ति विभाजन:
1919 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। जिन विषयों का सम्बन्ध सम्पूर्ण भारत या अन्तर्घान्तीय हितों से था वे केन्द्र के अधीन रखे गये तथा जो विषय प्रान्तीय हितों (स्थानीय महत्व के) से विशेष सम्बन्ध रखते थे, वे प्रान्तों के अन्तर्गत रखे गये।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 4.
1919 के अधिनियम में निहित द्वैध शासन की व्यवस्था सिद्धान्ततः दोषपूर्ण और कार्य संचालन में अव्यवहारिक थी। व्याख्या कीजिए। द्वैध शासन की दोषपूर्णता एवं अव्यवहारिकता
अथवा
द्वैध शासन की असफलता के प्रमुख कारण
उत्तर:
1 अप्रैल, 1837 को द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त हो गया। इसकी असफलता के कारण निम्न थे –
1.  सिद्धान्ततः दोषपूर्ण:
वैध शासन प्रणाली सैद्धान्तिक दृष्टि से दोषपूर्ण थी। एक ही प्रान्त की शासन व्यवस्था को दो भिन्न तथा अलग-अलग प्रकृति की शक्तियों के अधीन कर देने से शासन में गतिरोध उत्पन्न होना स्वाभाविक था।

2. विषयों को अव्यावहारिक विभाजन:
विषयों का विभाजन इतना अतार्किक था कि इससे अधिक अव्यावहारिक विभाजन की कल्पना नहीं की जा सकती थी। उदाहरणार्थ; किसी मन्त्री को सिंचाई विभाग के बिना कृषि मन्त्री
बना देना या कारखाने, बिजली, जलशक्ति, खनिज पदार्थ और श्रम के बिना किसी को उद्योग मन्त्री बना देंना नितान्त अव्यावहारिक निर्णय था।

3. गवर्नर की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ:
गवर्नर को मन्त्रियों को नियन्त्रित करने, मन्त्रियों के प्रस्ताव को अस्वीकार करने तथा प्रत्येक विषय में हस्तक्षेप करने की नीति के कारण उत्तरदायित्व का हस्तानतरण नहीं हो सका।

4. हस्तान्तरित क्षेत्र के लिए पृथक् वित्त व्यवस्था नहीं:
प्रान्त के विषयों को विभाजन तो कर दिया गया किन्तु दोनों के लिए पृथक्-पृथक् वित्त की व्यवस्था नहीं की गयी। वित्त व्यवस्था के बिना प्रभावी शासन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

5.  मन्त्रियों द्वारा सिविल सेवाओं पर नियन्त्रण का अभाव:
लोकसेवा के सदस्यों की नियुक्ति, स्थानान्तरण और पदोन्नति पर गवर्नर का नियन्त्रण होता था न कि उस मन्त्री का जिसके अधीन वे कार्य करते थे।

6. विधान परिषदों का गठन दोषपूर्ण:
विधान परिषदों में लगभग 80 प्रतिशत सरकारी या सरकार द्वारा मनोनीत गैर सरकारी सदस्य थे। जो सदस्य निर्वाचित थे वे भी विशेष हितों के ही प्रतिनिधि थे और उनमें से अधिकांश सरकार को प्रसन्न करने में लगे रहते थे।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

7. सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त का अभाव:
गवर्नर मन्त्रियों की नियुक्ति दलीय आधार पर नहीं करता था। सभी मन्त्री एक ही दल के नहीं होने के कारण सामूहिक उत्तरदायित्व का अभाव रहता था।

8. तत्कालीन समय के राजनैतिक वातावरण का अनुकूल न होना:
भारत में तत्कालीन समय में जलियाँवाला बाग की घटना, खिलाफत आन्दोलन, रौलट अधिनियम जैसे कठोर दमनकारी कानूनों ने भारतीयों के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति अविश्वास व कुण्ठा उत्पन्न कर दिया। ब्रिटिश शासन द्वारा आरम्भ किये गये सुधारों के प्रति भारतीय जन मानस में उदासीनता का भाव आ गया।

9. आर्थिक दुर्दशा एवं मैस्टन पंचाट:
सन् 1920 में भयंकर अकाल पड़ा। भारतीय बाजारों में मन्दी का माहौल एवं जनता की गरीबी से भारतीयों में असन्तोष था। मैस्टन पंचाट द्वारा आधे से अधिक प्रान्तों द्वारा केन्द्र को अधिक अनुदान दिया जाना था। इससे आर्थिक स्थिति खराब हो गयी।

10. काँग्रेस व मुस्लिम लीग का असहयोग:
काँग्रेस व मुस्लिम लीग में परस्पर सहयोग का अभाव था। अंग्रेजों की “फूट डालो राज करो” की नीति इनके बीच मतभेदों के बढ़ाने का कार्य करती।

11. नौकरशाही का असहयोगपूर्ण व्यवहार:
ब्रिटिश नौकरशाही भारतीय मन्त्रियों के अधीन ईमानदारी से काम करने को तैयार नहीं थी। इससे द्वैध शासन असफल रहा।

12. ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन:
ब्रिटेन में अनुदार दल की सरकार बन जाने पर ब्रिटिश शासन का दृष्टिकोण भी सुधारों के प्रति बदल गया। प्रान्तों में हस्तक्षेप बढ़ गया।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
केन्द्रीय विधान परिषद में निम्न में से किस क्षेत्र को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था –
(अ) मद्रास
(ब) अजमेर-मेरवाड़ा
(स) बंगाल
(द) बम्बई।
उत्तर:
(ब) अजमेर-मेरवाड़ा

प्रश्न 2.
भारतीय परिषद, 1909 द्वारा केन्द्रीय विधान परिषद में अतिरिक्त सदस्यों की अधिकतम संख्या 16 से बढ़ाकरकी गयी –
(अ) 60
(ब) 50
(स) 30
(द) 69
उत्तर:
(अ) 60

प्रश्न 3.
जमींदारों को उनके चुनाव क्षेत्रों में मताधिकार देने में यह अधिनियम विभेद करता था, मद्रास में यह मताधिकार किन्हें दिया गया –
(अ) जिनकी आय 15 हजार वार्षिक हो।
(ब) जिनके पास राजा या नवाब की उपाधि थी।
(स) जो मजिस्ट्रेट की मानद उपाधि रखते थे।
(द) सभी को।
उत्तर:
(अ) जिनकी आय 15 हजार वार्षिक हो।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 4.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की प्रस्तावना से सम्बन्धित नहीं है –
(अ) ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश साम्राज्य का अखण्ड भाग रहेगा।
(ब) ब्रिटिश भारत में उत्तरदायी शासन, ब्रिटिश पार्लियामेंट की घोषित नीति का लक्ष्य है।
(स) उत्तरदायी शासन धीरे-धीरे ही दिया जा सकता है।
(द) उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए प्रशासन की हर शाखा से भारतीयों का अधिकाधिक सम्बन्ध और स्वशासी। संस्थाओं का क्रमिक परिवर्तन।
उत्तर:
(द) उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए प्रशासन की हर शाखा से भारतीयों का अधिकाधिक सम्बन्ध और स्वशासी। संस्थाओं का क्रमिक परिवर्तन।

प्रश्न 5.
1919 के अधिनियम में केन्द्रीय शासन के अन्तर्गत रखे गये विषयों में शामिल नहीं था –
(अ) वैदेशिक विषय
(ब) रेल
(स) सेना
(द) अकालपीड़ित सहायता।
उत्तर:
(द) अकालपीड़ित सहायता।

प्रश्न 6.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 के प्रावधान से सम्बन्धित है –
(अ) चुनावों हेतु पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का आरम्भ
(ब) प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना
(स) केन्द्र में द्वैध शासन प्रणाली
(द) भारत परिषद को समाप्त कर दिया गया।
उत्तर:
(अ) चुनावों हेतु पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का आरम्भ

प्रश्न 7.
द्वैध शासन की असफलता का कारण नहीं है –
(अ) विषयों का अतार्किक और अव्यावहारिक विभाजन
(ब) वायसराय को प्रदत्त स्वेच्छाचारी शक्तियाँ
(स) मन्त्रियों का सेवाओं पर नियन्त्रण
(द) सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त का अभाव।
उत्तर:
(स) मन्त्रियों का सेवाओं पर नियन्त्रण

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 8.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 के अन्तर्गत केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में सुधार से सम्बन्ध नहीं रखता –
(अ) दस वर्ष का अनुभव रखने वाले भारतीय उच्च न्यायालय के वकीलों को परिषद की कानूनी सदस्य बनने के योग्य माना गया
(ब) तेज बहादुर सपू पहले भारतीय कानूनी सदस्य केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में नियुक्त हुए
(स) केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद का सदस्य नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बनाया गया
(द) केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों की संख्या एक से बढ़ाकर तीन कर दी गयी।
उत्तर:
(स) केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद का सदस्य नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बनाया गया

प्रश्न 9
फरवरी, 1921 को स्थापित नरेश मण्डल का मुख्यालय रखा गया –
(अ) दिल्ली
(ब) मुम्बई
(स) जयपुर
(द) कोलकाता।
उत्तर:
(अ) दिल्ली

प्रश्न 10.
द्वैध शासन की उपयोगिता से सम्बन्धित नहीं है –
(अ) द्वैध शासन के कारण मताधिकार का विस्तार हुआ
(ब) द्वैधं शासन के कारण भारतीयों में राजनैतिक जागरूकता को बढ़ावा मिला
(स) द्वैध शासन के कारण सार्वजनिक सेवाओं के भारतीयकरण को प्रोत्साहन मिला
(द) द्वैध शासन व्यवस्था महिला मताधिकार के विरोध में थी।
उत्तर:
(द) द्वैध शासन व्यवस्था महिला मताधिकार के विरोध में थी।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से किस अधिनियम को मार्ले-मिण्टो सुधार भी कहा जाता है।
(अ) भारतीय परिषद अधिनियम, 1909
(ब) भारतीय शासन अधिमियम, 1919
(स) भारतीय शासन अधिनियम, 1935
(द) भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 1947
उत्तर:
(अ) भारतीय परिषद अधिनियम, 1909

प्रश्न 2.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1919 की प्रमुख विशेषता थी –
(अ) केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार
(ब) प्रान्तीय विधान परिषदों का संगठन व अधिकार
(स) कार्यकारी परिषदों का विस्तार
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के द्वारा मद्रास, बम्बई व बंगाल प्रान्त की विधान परिषदों की सदस्य संख्या 20 से बढ़ाकर कर दी गयी –
(अ) 25
(ब) 50
(स) 75
(द) 90.
उत्तर:
(ब) 50

प्रश्न 4.
निम्न में से किस अधिनियम के द्वारा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का आरम्भ हुआ –
(अ) 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा
(ब) 1919 के भारत शासन अधिनियम द्वारा
(स) 1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा
(द) 1947 के भारत स्वतन्त्रता अधिनियम द्वारा।
उत्तर:
(अ) 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 5.
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम का मुख्य दोष था –
(अ) साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का प्रारम्भ
(ब) केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत
(स) सीमित व पक्षपात पूर्ण अधिकार
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
निम्न में से भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की प्रमुख विशेषता नहीं है –
(अ) गृह शासन व भारत परिषद में परिवर्तन
(ब) केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन
(स) द्विसदनीय केन्द्रीय मण्डल का निर्माण
(द) सीमित व पक्षपातपूर्ण मताधिकार।
उत्तर:
(द) सीमित व पक्षपातपूर्ण मताधिकार।

प्रश्न 7.
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के निर्माण में मुख्य योगदान है –
(अ) मार्ले-मिण्टो का
(ब) चर्चिल का
(स) मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड का
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) मॉण्टेग्यू – चेम्सफोर्ड का

प्रश्न 8.
केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन की स्थापना की गयी –
(अ) भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 द्वारा
(ब) पिट्स इण्डिया एक्ट द्वारा
(स) भारत शासन अधिनियम 1919 द्वारा
(द) भारत स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947 द्वारा।
उत्तर:
(स) भारत शासन अधिनियम 1919 द्वारा

प्रश्न 9.
1919 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में प्रथम भारतीय कानूनी सदस्य बने –
(अ) तेज बहादुर सप्रू
(ब) बाल गंगाधर तिलक
(स) पं. जवाहर लाल नेहरू
(द) :हात्मा गाँधी।
उत्तर:
(अ) तेज बहादुर सप्रू

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 10.
द्विसदनीय केन्द्रीय विधानमण्डल का निर्माण हुआ –
(अ) 1919 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा
(ब) 1861 के अधिनियम द्वारा
(स) रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 द्वारा
(द) भारत शासन अधिनियम, 1919 द्वारा।
उत्तर:
(द) भारत शासन अधिनियम, 1919 द्वारा।

प्रश्न 11.
1919 के अधिनियम द्वारा प्रान्तों के अन्तर्गत रखे गए विषय थे –
(अ) स्थानीय स्वशासन
(ब) शिक्षा
(स) सार्वजनिक कार्य
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 12.
1919 में अधिनियम द्वारा भारतीय शासन में जो महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया, वह था –
(अ) केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना
(ब) प्रान्तों में वैध शासन की स्थापना
(स) वायसराय के पद को समाप्त करना
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) प्रान्तों में वैध शासन की स्थापना

प्रश्न 13.
द्वैध शासन के अन्तर्गत हस्तान्तरित विषय नहीं था –
(अ) स्थानीय स्वशासन
(ब) भू-राजस्व
(स) चिकित्सा
(द) कृषि।
उत्तर:
(ब) भू-राजस्व

प्रश्न 14. निम्न में से किस प्रान्त में द्वैध शासन लागू हुआ –
(अ) बंगाल
(ब) असम
(स) बिहार
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 15.
प्रान्तों में द्वैध शासन लागू हुआ –
(अ) 1 अप्रैल, 1921 से
(ब) 2 अप्रैल, 1925 से
(स) 15 मई, 1932 से
(द) 1 अप्रैल, 1937 से।
उत्तर:
(अ) 1 अप्रैल, 1921 से

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 16.
द्वैध शासन की असफलता का प्रमुख कारण था –
(अ) विषयों का अविवेकपूर्ण व अव्यावहारिक विभाजन
(ब) सामूहिक उत्तरदायित्वों के सिद्धान्त का अभाव
(स) गवर्नर की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 17.
निम्न में से भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की आलोचना का आधार नहीं है –
(अ) प्रान्तों में प्रस्तावित द्वैध शासन की योजना सन्तोषप्रद न होना
(ब) साम्प्रदायिक निर्वाचन का अनुचित विस्तार
(स) केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत
(द) केन्द्र में शक्तिशाली विधानमण्डल का अभाव।
उत्तर:
(स) केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भारत में स्थापना कब हुई?
उत्तर:
31 दिसम्बर सन् 1600 को।

प्रश्न 2.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर कौन-से एक्ट द्वारा ब्रिटिश संसद के नियन्त्रण की शुरुआत हुई?
उत्तर:
1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा।

प्रश्न 3.
किस वर्ष भारत का शासन सीधे ब्रिटिश सम्राट के नियन्त्रण में चला गया?
उत्तर:
1858 ई. में।

प्रश्न 4.
किस अधिनियम द्वारा भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का अन्त हुआ?
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1858 के द्वारा।

प्रश्न 5.
भारत परिषद अधिनियम 1909 को मार्ले-मिण्टो सुधार क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि उक्त अधिनियम के निर्माण में तात्कालीन भारत सचिव लार्ड मार्ने एवं वायसराय लार्ड मिंटो का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इसलिए इसे मार्लेमिण्टो सुधार भी कहते हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 6.
1909 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय विधान परिषद में निर्वाचित सदस्यों के चयन हेतु निर्वाचक मण्डल को कितनी श्रेणियों में बाँट दिया गया?
उत्तर:
1. सामान्य निर्वाचक वर्ग।
2. वर्गीय निर्वाचक वर्ग।
3. विशिष्ट निर्वाचक वर्ग।

प्रश्न 7.
1909 के अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्रीय विधान परिषद् को कौन-कौन से अधिकार दिए गए?
उत्तर:
केन्द्रीय विधान परिषद् को सामान्य विषयों से सम्बन्धित विधेयकों पर, बजट व आम जनहित के मामलों पर वाद-विवाद एवं नियम बनाने का अधिकार दिया गया।

प्रश्न 8.
1909 के अधिनियम के तहत प्रान्तीय विधान परिषद में कौन-कौन से चार प्रकार के सदस्य होते थे?
उत्तर:

  1. पदेन सदस्य
  2. मनोनीत सरकारी सदस्य
  3. मनोनीत गैर सरकारी सदस्य
  4. निर्वाचित सदस्य।

प्रश्न 9.
विधान परिषदों द्वारा पारित विधेयकों पर किसकी स्वीकृति व अनुमोदन आवश्यक था?
उत्तर:
विधान परिषदों द्वारा पारित विधेयकों पर गवर्नर, लेफ्टीनेंट गवर्नर की स्वीकृति तथा गवर्नर जनरल का अनुमोदन आवश्यक था।

प्रश्न 10.
1909 के अधिनियम द्वारा कार्यकारी परिषद में कितने भारतीय सदस्य सम्मिलित किए गए?
उत्तर:
एक भारतीय सदस्य को सम्मिलित किया गया।

प्रश्न 11.
1909 के अधिनियम द्वारा भारत सचिव की परिषद में कितने भारतीय सदस्य सम्मिलित किए गए?
उत्तर:
दो भारतीय सदस्य।

प्रश्न 12.
किस अधिनियम द्वारा जनता को मताधिकार प्रदान किया गया?
उत्तर:
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 द्वारा सीमित लोगों के लिए मताधिकार प्रदान किया गया।

प्रश्न 13.
किस अधिनियम द्वारा पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था की गयी?
उत्तर:
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के द्वारा पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था की गयी।

प्रश्न 14.
किस अधिनियम के तहत प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का तो बहुमत था, लेकिन निर्वाचित सदस्यों का बहुमत नहीं था?
उत्तर:
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के तहत।

प्रश्न 15.
किस अधिनियम में सर्वप्रथम विधान परिषदों के सदस्यों को कार्यकारिणी सदस्यों से प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया?
उत्तर:
भारत परिषद अधिनियम, 1909 में।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 16.
कौन-सा अधिनियम केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत स्थापित नहीं करता था?
उत्तर:
भारत परिषद अधिनियम, 1909

प्रश्न 17.
प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्य कितने प्रकार के होते थे?
उत्तर:
प्रान्तीय विधान परिषद में गैर सरकारी सदस्य दो प्रकार के होते थे –

  1. मनोनीत गैर सरकारी सदस्य
  2. निर्वाचित गैर सरकारी सदस्य।

प्रश्न 18.
कौन से अधिनियम में जनता को सीमित एवं पक्षपातपूर्ण मताधिकार दिया गया?
उत्तर:
भारतीय परिषद् अधिनियम 1909 में।

प्रश्न 19.
1909 के भारतीय परिषद् अधिनियम की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1.  केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार
  2. कार्यकारी परिषदों का विस्तार।

प्रश्न 20.
1999 के भारतीय परिषद अधिनियम के कोई दो दोष लिखिए।
उत्तर:

  1. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का आरम्भ
  2. केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत।

प्रश्न 21.
मॉटेग्यू – चेम्सफोर्ड रिपोर्ट का सम्बन्ध किस भारतीय शासन अधिनियम से था?
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 से।

प्रश्न 22.
भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली कब स्थान्तरित की गयी?
उत्तर:
सन् 1911 में।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 23.
1919 के अधिनियम की प्रस्तावना के कोई दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:

  1.  प्रशासन में भारतीयों का सम्पर्क बढ़ाया जाएगा
  2. स्वशासन की संस्थाओं का विकास किया जाएगा।

प्रश्न 24.
गृह शासन और भारत परिषद में परिवर्तन किस अधिनियम के तहत किया गया?
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 के तहत।

प्रश्न 25.
भारतीय उपनिवेश के मामलों को देखने के लिए ब्रिटेन स्थित मन्त्रिमण्डल में एक मन्त्री होता था। उसे किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
भारत सचिव के नाम से।

प्रश्न 26.
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलनकारी भारत परिषद की समाप्ति की माँग क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
क्योंकि भारत परिषद पर होने वाला व्यय भारत पर थोपा गया था।

प्रश्न 27.
भारतीय प्रशासन पर गृह सरकार के नियन्त्रण में कमी किस अधिनियम के तहत की गयी?
उत्तर:
भारत परिषद अधिनियम, 1919 के तहत।

प्रश्न 28.
किस अधिनियम के द्वारा प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन स्थापित किया गया?
उत्तर:
1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा।

प्रश्न 29.
किस अधिनियम द्वारा केन्द्र में एक सदन वाले विधान मण्डल को द्विसदनात्मक बना दिया गया?
उत्तर:
1919 के अधिनियम द्वारा केन्द्र में एक सदन वाले विधान मण्डल को द्विसदनात्मक बना दिया गया।

प्रश्न 30.
किस अधिनियम द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन की स्थापना की गयी?
उत्तर:
1919 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन की स्थापना की गयी।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 31.
1919 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में किए गए दो प्रमुख सुधारों को लिखिए।
उत्तर:

  1. कार्यकारिणी पर से संख्या सम्बन्धी पूर्व प्रतिबन्ध हटा दिया गया।
  2. 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले भारतीय उच्च न्यायालय के वकीलों को परिषद का कानूनी सदस्य बनने के योग्य माना गया।

प्रश्न 32.
1919 के अधिनियम के तहत केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद के कानूनी सदस्य बनने वाले प्रथम भारतीय कौन थे?
उत्तर:
तेजबहादुर सपू।

प्रश्न 33.
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के तहत स्थापित द्विसदनीय केन्द्रीय विधानमण्डल के सदनों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. विधानसभा
  2.  राज्य परिषद।

प्रश्न 34.
1919 के अधिनियम के तहत गठित राज्य परिषद की सदस्य संख्या बताइए।
उत्तर:
अधिकतम 60 सदस्य।

प्रश्न 35.
1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा विधान सभा एवं राज्य परिषद का कार्यकाल कितने वर्ष तय किया गया?
उत्तर:
विधान सभा व राज्य परिषद का कार्यकाल क्रमशः 3 वर्ष व 5 वर्ष तय किया गया।

प्रश्न 36.
1919 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय विधानमण्डल के किसी भी सदन को सामान्य कार्यकाल समाप्ति से पूर्व ही भंग करने का अधिकार किसे दिया गया?
उत्तर:
वायसरायं को।

प्रश्न 37.
किस अधिनियम द्वारा विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा दिया गया?
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 के द्वारा।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 38.
नरेश मण्डल की स्थापना का सुझाव किस रिपोर्ट में दिया गया था?
उत्तर:
मॉन्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में

प्रश्न 39.
1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित दो केन्द्रीय विषयों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सेना
  2. रेल।

प्रश्न 40.
1919 के अधिनियम द्वारा प्रान्तों के अन्तर्गत रखे गए किन्हीं दो विषयों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. स्थानीय स्वशासन
  2. सिंचाई

प्रश्न 41.
साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की आलोचना किस रिपोर्ट में की गयी?
उत्तर:
मॉटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में।

प्रश्न 42.
नरेश मण्डल की स्थापना कब व कहाँ की गयी?
उत्तर:
9 फरवरी, 1921 को दिल्ली में।

प्रश्न 43.
नरेश मण्डल की कुल सदस्य संख्या कितनी थी?
उत्तर:
121.

प्रश्न 44.
किस अधिनियम द्वारा 10 वर्ष पश्चात् एक रॉयल कमीशन की नियुक्ति का प्रावधान किया गया?
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 के द्वारा।

प्रश्न 45. भारत शासन अधिनियम, 1919 द्वारा लागू दो महत्वपूर्ण परिवर्तन क्या थे?
उत्तर:

  1. केन्द्र तथा प्रान्तों के मध्य शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया।
  2. भारत में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गयी।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 46.
1919 के अधिनियम के अन्तर्गत साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किन-किन समुदायों तक किया गया?
उत्तर:
मुसलमानों के साथ – साथ सिखों, यूरोपियनों, एंग्लो-इण्डियन व भारतीय ईसाई, जर्मीदार व व्यापार मण्डल . तक साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया।

प्रश्न 47.
भारतीय प्रान्तों में द्वैध शासन को कब लागू किया गया?
उत्तर:
1 अप्रैल, 1921 को।

प्रश्न 48.
भारत के कौन-कौन से प्रान्तों में द्वैध शासन लागू किया गया?
उत्तर:
भारत के आठ प्रान्तों-बंगाल, आसाम, बिहार, मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत एवं पंजाब में द्वैध शासन लागू किया गया।

प्रश्न 49.
उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रान्त में द्वैध शासन को कब लागू किया गया?
उत्तर:
सन् 1932 में।

प्रश्न 50.
प्रान्तों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कब कर दिया गया?
उत्तर:
1 अप्रैल, 1937 को।

प्रश्न 51.
द्वैध शासन की असफलता के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. विषयों का अविवेकपूर्ण व अव्यावहारिक विभाजन,
  2. गवर्नर की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ।

प्रश्न 52.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की कोई दो कमियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. आंतों में प्रस्तावित द्वैध शासन की योजना सन्तोषप्रद नहीं होना,
  2. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का अनुचित विस्तार।

प्रश्न 53.
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के कोई दो महत्व बताइए।
उत्तर:

  1. प्रान्तों के क्षेत्र में सर्वप्रथम उत्तरदायी शासन की दिशा में शुभारम्भ किया गया।
  2. केन्द्र व प्रान्तों के विधान मण्डलों के विस्तार के साथ-साथ उनमें सुधार का प्रयास किया गया।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 को मार्ले-मिण्टो सुधार क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
भारत में स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलनकारियों के बढ़ते दबाव को दृष्टिगत रखते हुए तत्कालीन वायसराय लार्ड मिण्टो ने ब्रिटिश सरकार को एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस प्रतिवेदन में भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का सामना करने के लिए विधान परिषदों में प्रतिनिधित्व बढ़ाये जाने का प्रस्ताव था। भारत सचिव लार्ड मार्ले ने इस प्रतिवेदन में दिए गए प्रस्ताव पर एक विधेयक तैयार कर 17 फरवरी, 1909 को ब्रिटिश संसद के निम्न सदन कॉमन सभा में प्रस्तुत किया।

25 मई, 1909 को यह विधेयक ब्रिटिश संसद ने पारित कर दिया। 15 नवम्बर, 1909 को ब्रिटेन के सम्राट की स्वीकृति मिलने के पश्चात् यह ‘भारत परिषद् अधिनियम 1909’ के नाम से लागू हुआ। इस अधिनियम के निर्माण में तत्कालीन भारत सचिव लार्ड मार्ने एवं वायसराय लार्ड मिण्टो का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस कारण इस अधिनियम को मार्ले-मिण्टो सुधार भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय विधान परिषद में सुधार भारत परिषद अधिनियम, 1909 की एक प्रमुख विशेषता थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय विधान परिषद् में सुधार भारत परिषद अधिनियम, 1909 की एक प्रमुख विशेषता थी। इस अधिनियम के तहत केन्द्रीय विधान परिषद की सदस्य संख्या में वृद्धि की गयी। इसकी सदस्य संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गयी। जिसमें 37 सरकारी सदस्य और 23 गैर सरकारी सदस्य होते थे जो निर्वाचित होते थे और 9 पदेन सदस्य स्थायी थे। निर्वाचित सदस्यों के चयन हेतु निर्वाचक मण्डल को 3 श्रेणियों में विभाजित कर दिया गया।

  1. सामान्य निर्वाचक वर्ग
  2. वर्गीय निर्वाचक वर्ग
  3.  विशिष्ट निर्वाचक वर्ग।

सामान्य विषयों से सम्बन्धित विधेयकों पर विधान परिषद को बजट वे आम जनहित के मामलों पर वाद-विवाद करने व नियम बनाने का अधिकार दिया गया। इन पर भारत सचिव से पुष्टि का प्रावधान रखा गया था। सेना, विदेश नीति, देशों रियासतों आदि बहुत से विषय विधान परिषद के क्षेत्र से अलग रखे गये थे। विधान परिषद अपने से सम्बन्धित विषयों पर लाये गये विधेयकों पर विचार कर इन्हें पारित कर सकती थी। परन्तु उन्हें वायसराय के हस्ताक्षर होने पर ही लागू किया जा सकता था। वायसराय को निषेधाकार शक्ति प्राप्त थी।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 3.
1909 के भारत परिषद अधिनियम के अनुसार प्रान्तीय विधान परिषदों के संगठन एवं अधिकारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1909 के भारत परिषद अधिनियम के अनुसार प्रान्तीय विधान परिषदों का संगठन एवं अधिकार1919 के भारत परिषद अधिनियम के द्वारा प्रान्तीय विधान परिषदों के गठन की प्रक्रिया केन्द्रीय विधान परिषद के गठन की प्रक्रिया के समान रखी गयी। इसमें चार प्रकार के सदस्य होते थे –

  1. पदेन सदस्य
  2. मनोनीत सरकारी सदस्य
  3. मनोनीत गैर सरकारी सदस्य
  4.  निर्वाचित सदस्य।

यह अधिनियम प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत स्थापित करता था लेकिन निर्वाचित गैर सरकारी सदस्यों का नहीं। इस अधिनियम द्वारा प्रान्तीय विधान परिषदों के सदस्यों की संख्या में भी संशोधन किया गया। इनकी सदस्य संख्या 30-50 के मध्य निर्धारित की गयी। बम्बई, मद्रास व बंगाल प्रान्त की विधानपरिषदों की सदस्य संख्या 20 से बढ़ाकर 50, संयुक्त प्रान्त, पूर्वी बंगाल प्रान्तों की 15 से बढ़ाकर 50, पंजाब, अंडमान, बर्मा के लिए 9 से बढ़ाकर 30 कर दी गयी।

विधान परिषदों को अपनी नियमित बैठकों में जनहित के विषयों पर वाद-विवाद कर विधेयक पारित करने का अधिकार दिया गया। बजट पर सदस्य वाद-विवाद कर सकते थे लेकिन मत नहीं दे सकते थे। विधान परिषदों द्वारा पारित विधेयकों पर गवर्नर अथवा लेफ्टीनेंट गवर्नर की स्वीकृति तथा गवर्नर जनरल का अनुमोदन आवश्यक था। विधान परिषदों द्वारा पारित विधेयकों को मानने के लिएं अथवा लागू करने के लिए सरकार बाध्य नहीं थी।

प्रश्न 4.
1909 के भारत परिषद अधिनियम द्वारा कार्यकारी परिषदों का किस प्रकार विस्तार किया गया?
उत्तर:
1909 के भारत परिषद् अधिनियम के माध्यम से भारत सचिव, वायसराय, गवर्नरों की कार्यकारी परिषदों के गठन में संशोधन कर भारतीयों को प्रतिनिधित्व दिया गया था। भारत सचिव की परिषद में दो भारतीय सदस्य सम्मिलित किए गए। वायसराय की कार्यकारी परिषद में एक भारतीय सदस्य को स्थान दिया गया था। मद्रास व बम्बई के गवर्नरों की कार्यकारी परिषद में सदस्य संख्या दो से बढ़ाकर चार की गयी जिसमें कम से कम दो ऐसे सदस्यों का प्रावधान या जिन्हें 12 वर्ष तक भारत में ब्रिटिश शासन की सेवा करने का अनुभव हो।

इन परिषदों में किसी विषय पर विचार-विमर्श के बाद मतदान से निर्णय लिया जाता था लेकिन मतदान पर बराबर मत होने पर गवर्नर व पीठासीन अधिकारी को दो मत अथवा निर्णायक मत देने का अधिकार प्रदान किया गया था। परिषद गवर्नर जनरल को यह अधिकार प्रदान किया गया था कि वह सपरिषद भारत सचिव की अनुमति से अध्यादेश द्वारा उप राज्यपालों द्वारा अपने प्रान्तों के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रान्त के लिये जारी किसी अध्यादेश को ब्रिटिश संसद के किसी भी सदन द्वारा निरस्त करवा सकता था।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 5.
1909 के भारत परिषद अधिनियम में मताधिकार एवं प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में क्या प्रावधान रखे गए?
उत्तर:
1909 के भारत परिषद अधिनियम में मताधिकार एवं प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में प्रावधान-1909 के भारत परिषद अधिनियम द्वारा जनता को मताधिकार दिया गया। यह एक ओर तो अत्यन्त सीमित था, दूसरी ओर यह अत्यन्त पक्षपातपूर्ण भी था और तीसरे, प्रत्येक प्रान्त में इसका स्वरूप भिन्न-भिन्न था। मद्रास में जिन जमींदारों की वार्षिक आय ₹ 15000 थी अथवा जो रे 10000 भू-राजस्व सरकार को देते थे, मताधिकार दिया गया।

बंगाल में राजा या नवाब की उपाधि जिनके पास थी, मध्य प्रान्त में मजिस्ट्रेट की मानद उपाधि प्राप्त व्यक्ति को मताधिकार दिया गया। उसी प्रकार मुसलमानों के लिये भी मताधिकार देने के लिए मुसलमान और गैर मुसलमान व्यक्तियों के लिए मताधिकार की योग्यताएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की रखी गयीं। इसी अधिनियम द्वारा मुसलमानों, जमींदारों, चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स को अलग से प्रतिनिधित्व दिया गया। साथ ही इन्हें इनकी संख्या के अनुपात से भी अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया।

प्रश्न 6.
1909 के भारत परिषद अधिनियम द्वारा प्रतिपादित साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1909 के भारत परिषद अधिनियम द्वारा भारत में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का प्रारम्भ किया गया। विभिन्न वर्गों एवं हितों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया। मुसलमानों, वाणिज्य संघों एवं जर्मीदारों आदि के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए गए। इस अधिनियम के द्वारा विधायी परिषदों में मुसलमानों के स्थान सुरक्षित कर दिये गये और यह व्यवस्था की गयी कि इन स्थानों को केवल मुस्लिम मतदाताओं द्वारा चुने हुए मुस्लिम प्रतिनिधि ही भर सकते थे। मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात से अधिक सदस्य निर्वाचित करने का भी अधिकार दिया गया। इसके अतिरिक्त इस अधिनियम में वाणिज्य संघों एवं जमींदारों आदि को भी आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया।

प्रश्न 7.
1909 के भारत परिषद अधिनियम के प्रमुख दोष बताइए।
उत्तर:
1909 के भारत परिषद अधिनियम के दोष – 1909 के भारत परिषद अधिनियम के प्रमुख दोष निम्नलिखित थे –

  1.  साम्प्रदायिक एवं पृथक् निर्वाचन प्रणाली का आरम्भ
  2. विधान परिषदों की सीमित शक्तियाँ व सरकारी बहुमत
  3. केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी बहुमत
  4. प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत मात्र दिखावा
  5. सीमित व पक्षपातपूर्ण मताधिकार
  6. उत्तरदायी शासन की स्थापना का प्रयास न करना।
  7. निहित स्वार्थों को अनावश्यक प्रोत्साहन व महत्व।

प्रश्न. 8.
साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का प्रारम्भ 1909 के भारत परिषद अधिनियम का सर्वाधिक बड़ा दोष था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का प्रारम्भ 1909 के भारत परिषद अधिनियम का सर्वाधिक बड़ा दोष था। विभिन्न हित समूहों व वर्गों को पृथक् निर्वाचन का अधिकार दिया गया। मुसलमानों, वाणिज्य संघों व जमींदारों आदि के लिए स्थान सुरक्षित कर दिये गये, यह स्थान भी उनकी जाति की संख्या के अनुपात से अधिक थे। इससे साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिला और धर्म निरपेक्षता को आघात पहुँचा। अन्ततः इसने भारत विभाजन की माँग के लिये रास्ता तैयार कर दिया।

कुछ समय पश्चात् ही पंजाब में सिखों, मद्रास में गैर ब्राह्मणों व आंग्ल भारतीयों ने पृथक् निर्वाचन की माँग प्रारम्भ कर दी। साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को खतरनाक मानते हुए भारत सचिव मार्ले ने वायसराय लार्ड मिन्टो को एक पत्रे भी लिखा जिसमें उन्होंने लिखा किं, “याद रखना, पृथक् निर्वाचन क्षेत्र बनाकर हम ऐसे घातक विष के बीज बो रहे हैं, जिनकी फसल बड़ी कड़वी होगी।”

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 9.
आप किस आधार पर कह सकते हैं कि 1909 के अधिनियम द्वारा विधान परिषदों की शक्तियाँ सीमित कर दी गयीं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1909 के अधिनियम ने परिषद के सदस्यों को प्रश्न पूछने, बजट पर बहस करने, प्रस्ताव रखने आदि के अधिकार प्रदान किया था। तथापि व्यवहार में ये सीमित शक्तियाँ अत्यन्त संकुचित थीं, यथा –

  1.  विधान परिषद सदस्य, कार्यकारिणी सदस्यों से प्रश्न पूछ सकते थे, लेकिन कार्यकारिणी सदस्य सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं थे।
  2. सदस्यों को जनहित के मुद्दों पर प्रस्ताव पारित करने का अधिकार था, लेकिन इन प्रस्तावों को मानना न मानना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता था।
  3. वायसराय तथा गवर्नरों को अनेक स्वेच्छाचारी शक्तियाँ प्राप्त थीं।
  4. विधान परिषदों की शक्तियों पर भी अनेक कानूनी प्रतिबन्ध थे।

प्रश्न 10.
‘1909 के अधिनियम में प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत मात्र दिखावा था।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि 1909 के अधिनियम में प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों को बहुमत प्राप्त था, किन्तु यह मात्र दिखावा था। सिद्धान्ततः प्रान्तीय विधान परिषदों में गैर सरकारी बहुमत स्थापित किया गया था। व्यवहार में स्थिति बिल्कुल भिन्न थी, गैर सरकारी सदस्य दो प्रकार के होते थे – मनोनीत, सरकारी सदस्य और निर्वाचित गैर सरकारी सदस्य मनोनीत और सरकारी सदस्य हमेशा सरकार का साथ देते थे। निर्वाचित गैर सरकारी सदस्य बहुत से वर्गों का प्रतिनिधित्व करते थे, जिससे सरकार के खिलाफ उनका एकजुट होना कठिन था। गवर्नरों को अनेक विषयों पर निषेधाधिकार की शक्तियाँ प्राप्त थीं। इस कारण गैर सरकारी बहुमत कोई महत्व नहीं रखता था।

प्रश्न 11.
1909 के अधिनियम में जनता को प्रदत्त मताधिकार सीमित व पक्षपातपूर्ण था।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि 1909 के अधिनियम में जनता को प्रदत्त मताधिकार सीमित एवं पक्षपातपूर्ण था। मुसलमानों में मध्यवर्गीय जर्मीदार, व्यापारियों तथा स्नातकों को मताधिकार दिया गया, परन्तु इस श्रेणी के गैर मुसलमानों को मताधिकार से वंचित रखा गया। उदाहरण के रूप में, पूर्वी बंगाल में उसी हिन्दू को भी मताधिकार दे दिया गया जिसके द्वारा १ 5000 वार्षिक राजस्व दिया जाता था, इधर र 750 राजस्व देने वाले मुसलमान को भी मताधिकार दे दिया गया।

हिन्दुओं की अधिक जनसंख्या वाले प्रान्तों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विशेष प्रतिनिधित्व दिया गया परन्तु मुस्लिमों की अधिक जनसंख्या वाले प्रान्तों यथा-पंजाब, असम एवं पूर्वी बंगाल में हिन्दुओं को इस प्रकार का प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मताधिकर में समानता का अभाव था।

मत देने का अधिकार प्रत्येक प्रान्त, प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक धर्मावलम्बी को पक्षपातपूर्ण ढंग से प्रदान किया गया। इसमें मतदाताओं की संख्या अत्यन्त सीमित रखी गयी थी। स्त्रियों को मताधिकार नहीं दिया गया था। जर्मीदारों और वाणिज्य मण्डल जैसे विशिष्ट हित समूहों एवं वर्गों को यह अनावश्यक रूप से दिया गया था।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 12.
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम का महत्व बताइए।
उत्तर:
1909 के भारतीय परिषद अधिनियम का महत्व:
भारत परिषद अधिनियम, 1909 को महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है

  1. गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद में एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी।
  2. स्वशासन की दिशा में अग्रेसर होने के कारण यह अधिनियम महत्वपूर्ण था।
  3. इस अधिनियम के द्वारा निर्वाचन के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया।
  4. प्रान्तों के विधान परिषदों में सरकारी बहुमत को समाप्त कर दिया गया।
  5. इस अधिनियम के द्वारा सार्वजनिक महत्व के विषयों विशेषकर वित्तीय विषयों पर विचार-विमर्श का अधिकार प्रदान करना एक प्रगतिशील कदम था।
  6. यह अधिनियम राजनीतिक प्रशिक्षण की दृष्टि से उपयोगी था।
  7. भारत में उत्तरदायी शासन प्रणाली के विकास एवं राजनीतिक प्रशिक्षण में इस अधिनियम के द्वारा किये गये सुधारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

प्रश्न 13.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की प्रस्तावना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की प्रस्तावना:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की प्रस्तावना में कहा गया था कि –

  1. भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहेगा।
  2. प्रशासन में भारतीयों का सम्पर्क बढ़ाया जायेगा।
  3. भारत में ब्रिटिश नीति का लक्ष्य उत्तरदायी शासन की स्थापना होगा।
  4. स्वशासन की संस्थाओं का विकास किया जायेगा।
  5. उत्तरदायी शासन एवं स्वशासन की संस्थाओं की स्थापना का कार्य धीरे-धीरे तथा क्रमिक ढंग से होगा।
  6. कब कितनी प्रगति हो, इसका निर्णय ब्रिटेन की संसद के द्वारा किया जाएगा।
  7. प्रान्तीय मामलों में, प्रान्त की सरकारों को केन्द्रीय नियन्त्रण से मुक्त रखने का भी प्रयास किया जायेगा।

प्रश्न 14.
1919 के भारत शासन अधिनियम द्वारा प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन व द्वैध शासन की स्थापना किस प्रकार की गयी?
अथवा
प्रान्तों में द्वैध शासन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
भारत शासन अधिनियम, 1919 के द्वारा प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन स्थापित किया गया। प्रान्तीय शासन को दो भागों में विभाजित किया गया –

  1. संरक्षित विषये,
  2. हस्तान्तरित विषय।

संरक्षित विषयों का प्रशासनिक संचालन गवर्नर व उसकी कार्यकारिणी परिषद के द्वारा किया जाता था। इन पर व्यवस्थापिका का कोई नियन्त्रण नहीं था। हस्तान्तरित विषय, लोकप्रिय मन्त्रियों को सौंप दिये गये जो व्यवस्थापिका के निर्वाचित बहुमत में से चुने जाते थे तथा उनके प्रति उत्तरदायी होते थे। इस प्रकार प्रान्तीय शासन को दो भागों में विभाजित करने की व्यवस्था को ही ‘द्वैध शासन’ का नाम दिया गया।

प्रश्न 15.
1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में कौन-कौन से सुधार किए गए?
उत्तर:
1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद में निम्नलिखित सुधार किए गए –

  1. कार्यकारिणी पर से पूर्व संख्या सम्बन्धी प्रतिबन्ध हटा दिया गया।
  2. 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले भारतीय उच्च न्यायालय के वकीलों को परिषद का कानूनी सदस्य बनने के योग्य माना गया। इसके तहत तेजबहादरु सपू पहले भारतीय कानूनी सदस्य बने।
  3. कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों की संख्या एक से बढ़ाकर तीन कर दी गयी, लेकिन यह सदस्य जनता के प्रतिनिधि न होकर सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले व्यक्ति होते थे। इन्हें कम महत्त्व के विभाग दिये जाते थे।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 16.
1919 के भारतीय अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित द्विसदनीय केन्द्रीय विधान मण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित केन्द्रीय व्यवस्थापिका-1919 के भारतीय शासन अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित केन्द्रीय व्यवस्थापिका की प्रमुख बातें निम्न प्रकार –

  1. इस अधिनियम द्वारा केन्द्रीय व्यवस्थापिका को एक-सदनात्मक से द्वि-सदनात्मक बना दिया गया। इसमें उच्च सदन को राज्य परिषद एवं निम्न सदन को विधान सभा नाम दिया गया।
  2. इस अधिनियम में केन्द्रीय व्यवस्थापिका के उच्च सदन राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 रखी गई, जिसमें 33 सदस्य निर्वाचित एवं 27 सदस्य वायसराय द्वारा मनोनीत होते थे।
  3. निम्न सदन विधान सभा में 140 सदस्य होते थे। गठन के बाद यह संख्या 145 कर दी गयी जिसमें 104 निर्वाचित (52 सामान्य निर्वाचन क्षेत्र के, 32 साम्प्रदायिक चुनाव क्षेत्रों (जिसमें 30.मुसलमानों व दो सिखों द्वारा) तथा 20 विशेष चुनाव क्षेत्रों (7 जर्मीदारों, 9 यूरोपियन एवं 4 व्यापार मण्डलों) के द्वारा चुने जाते थे।
  4. विधान सभा का कार्यकाल 3 वर्ष एवं राज्य परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया।
  5. वायसराय को केन्द्रीय विधानमण्डल के किसी भी सदन को उसके कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व भी भंग करने का अधिकार प्राप्त था।
  6.  वायसराय की कार्यकारिणी परिषद का प्रत्येक सदस्य किसी-न-किसी सदन का सरकारी सदस्य था, लेकिन वह दोनों सदनों में उपस्थित हो सकता था तथा उनके वाद-विवादों में भाग ले सकता था।
  7. केन्द्रीय विधान मण्डल के अधिकारों में भी वृद्धि की गयी थी।
  8. सदस्यों को सदन के भीतर अपने विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता थी, वह पूरक प्रश्न पूछ सकते थे। उन्हें कानून बनाने का अधिकार था। वे बजट पर बहस एवं उसके कुछ अंशों पर मतदान भी कर सकते थे। सदनों को स्थगन या कार्य रोको तथा अन्य प्रस्ताव पास करने का भी अधिकार इनको प्रदान किया गया था।

प्रश्न 17.
1919 के अधिनियम ने किस प्रकार विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा दिया? बताइए।
उत्तर:
1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा केन्द्रीयकरण की नीति का त्याग कर दिया गया। इस अधिनियम के द्वारा प्रशासन एवं राजस्व के कुछ विषयों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया अर्थात् उन्हें केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण से हटाकर प्रान्तीय सरकार को दे दिया गया। प्रान्तों को प्रथम बार ऋण देने तथा कर लगाने का अधिकार भी प्रदान किया गया।

प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना करके भी विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा दिया गया। यह प्रयास प्रान्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा देने वाला था। इस प्रकार 1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा केन्द्रीकरण की उस नीति को समाप्त कर दिया गया था, जो वायसराय लार्ड कर्जन के समय चरम सीमा पर पहुँच गयी थी।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 18.
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय एवं प्रान्तीय सरकारों के मध्य शक्ति विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के द्वारा केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों के मध्य शक्ति विभाजन:
1919 के भारतीय शासन अधिनियम के द्वारा केन्द्र और प्रान्तों के मध्य जिन शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया था वे विषय लगभग सम्पूर्ण भारत के हितों से सम्बन्धित थे। केन्द्र के अधीन रखे गए, विषय – सेना, रेल, डाक व तार, आयकर, रक्षा, मुद्रा टंकण, जहाजरानी व्यापार, दीवानी व फौजदारी कानून, धार्मिक मामले एवं अखिल भारतीय सार्वजनिक सेवाएँ आदि थे। प्रान्तों को वे विषय दिए गए, जो मुख्य रूप से प्रान्तों से सम्बन्धित थे, जैसे-स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक कार्य, शिक्षा, जन स्वास्थ्य व चिकित्सा, सिंचाई, अकाल पीड़ित सहायता, राजस्व, कृषि, जंगल, जेल, पुलिस व न्याय आदि के प्रबन्ध व शासन का अधिकार।

प्रश्न 19.
1919 के अधिनियम के तहत स्थापित नरेश मण्डल के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
1919 के भारत शासन अधिनियम के तहत स्थापित नरेश मण्डल:
मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में देशी राजाओं के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए एक नरेश मण्डल की स्थापना का सुझाव दिया गया था। 1919 का अधिनियम ब्रिटिश भारत तक ही सीमित था। देशी राज्यों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया गया था, फिर भी उनको ब्रिटिश भारत के समीप लाने के लिए 9 फरवरी, 1921 को एक नरेश मण्डल की दिल्ली में स्थापना की गयी। इसका अध्यक्ष वायसराय होता था। यह मात्र परामर्शदात्री संस्था थी।

इस मण्डल की कुल सदस्य संख्या 121 थी, जिसमें 109 बड़ी रियासतों के प्रतिनिधि तथा 12 छोटी रियासतों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे। यह मंण्डल देशी राज्यों की समस्याओं से ब्रिटिश सरकार को अवगत कराता था। सभी देशी राज्यों को इसमें सम्मिलित होना अनिवार्य नहीं था। इस मण्डल के प्रथम चांसलर बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह थे।

प्रश्न 20.
द्वैध शासन का क्रियान्वयन किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
द्वैध शासन का क्रियान्वयन-1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन की स्थापना की गयी। 1 अप्रैल, 1921 को भारत के आठ प्रान्तों यथा-बंगाल, बिहार, असम, मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रान्त, मध्य प्रान्त एवं पंजाब में द्वैध शासन की व्यवस्था को लागू किया गया। 1932 ई. में उत्तर – पश्चिमी सीमा प्रान्त में भी इसे लागू किया गया।

यह व्यवस्था 31 मार्च, 1937 तक चलती रही। मध्य प्रान्त एवं बंगाल में संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न होने पर कुछ समय पश्चात इसे निलम्बित कर दिया गया। 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा प्रान्तीय स्वायत्तता की व्यवस्था की गई। 1 अप्रैल, 1937 को प्रान्तों में इस व्यवस्था के सूत्रपात के साथ ही द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 21.
विषयों का अविवेकपूर्ण व अव्यावहारिक विभाजन किस प्रकार द्वैध शासन की असफलता का एक प्रमुख कारण बना? बताइए।
उत्तर:
द्वैध शासन प्रणाली में प्रान्तीय विषयों का विभाजन तर्कहीन, अवैज्ञानिक एवं अव्यावहारिक था। विभागों का वितरण इस प्रकार किया गया था कि उसका कोई-न-कोई भाग सुरक्षित विभागों के अधीन रखा गया था। जैसे शिक्षा एक हस्तान्तरित विषय था परन्तु यूरोपियन और आंग्ल भारतीयों की शिक्षा एक सुरक्षित विषय था। विषयों का विभाजन इतना अतार्किक था कि इससे अधिक अव्यावहारिक विभाजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

उदाहरण के रूप में; किसी मन्त्री को सिंचाई विभाग के बिना कृषि मन्त्री बना देना अथवा कारखाने, जल विद्युत शक्ति, खनिज पदार्थ और श्रम के बिना किसी को उद्योगमन्त्री बना देना पूर्णत: अव्यावहारिक निर्णय था। व्यवहार में परिषद् के सदस्यों और मन्त्रियों में आवश्यक सहयोग का अभाव था। फलस्वरूप द्वैध शासन असफल हो गया।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

प्रश्न 22.
द्वैध शासन की योजना की असफलता के लिए उत्तरदायी किन्हीं अन्य बाहरी परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
द्वैध शासन की योजना की असफलता के लिए उत्तरदायी अन्य बाहरी परिस्थितियाँ निम्नलिखित थीं –
1. नौकरशाही का नकारात्मक व्यवहार:
ब्रिटिश लोक सेवक भारतीय मन्त्रियों के अधीन ईमानदारी से कार्य करने के लिए तैयार नहीं थे। उनका व्यवहार सदैव नकारात्मक रहता था।

2. काँग्रेस व मुस्लिम लीग का असहयोग:
ब्रिटिश भारत के दो प्रमुख राजनैतिक दलों यथा – काँग्रेस व मुस्लिम लीग में परस्पर तालमेल का अभाव था। अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने उनके मध्य मतभेदों को बढ़ाने का कार्य किया। दोनों की दृष्टि प्रशासनिक सुधारों की अपेक्षा देश की स्वतन्त्रता एवं देश के विभिन्न वर्गों में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में लगी हुई थी।

3. तत्कालीन परिस्थितियाँ:
देश में जलियाँवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत आन्दोलन एवं रौलट एक्ट जैसे कठोर दमनकारी कानूनों ने भारतीय जनता के मन में ब्रिटिश सरकार के प्रति अविश्वास और कटुता पैदा कर दी। फलस्वरूप ब्रिटिश शासन द्वारा प्रारम्भ किए गए सुधारों के प्रति भारतीय जनता में उदासीनता का भाव उत्पन्न हो गया।

प्रश्न 23.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की कोई दो कमियाँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की कमियाँ:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की दो प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित थीं –

1. प्रान्तों में प्रस्तावित द्वैध शासन की योजना का सन्तोषप्रद न होना-प्रान्तों में प्रस्तावित द्वैध शासन की योजना सन्तोषप्रद नहीं थी। गवर्नर की कार्यकारी परिषद एवं मन्त्रियों के कार्यों के मध्य विभाजन रेखा स्पष्ट नहीं थी। वित्त सम्बन्धी अधिकार गवर्नर व कार्यकारी परिषद के सदस्यों के पास थे। वह मन्त्रियों के कार्यों में हस्तक्षेप करते थे। मन्त्री व उनके अधीन लोक सेवकों में सामंजस्य का अभाव था। गवर्नर की स्वेच्छाचारी शक्तियाँ तथा सामूहिक उत्तरदायित्व का अभाव आदि द्वैध शासन की प्रमुख कमियाँ थीं।

2. केन्द्र में शक्तिशाली विधानमण्डल का अभाव:
यद्यपि केन्द्र में द्विसदनीय विधानमण्डल – विधानसभा और राज्यपरिषद की स्थापना की गयी, लेकिन इनका गठन न तो लोकतान्त्रिक था और न ही पर्याप्त शक्तियाँ इन्हें प्रदान की गर्थी। विधानसभा और राज्य परिषद पर अनेक प्रतिबन्ध लगे हुए थे।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

RBSE Class 11 Political Science Chapter 17 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय शासन अधिनियम, 1919 भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति नाराजगी बढ़ रही थी। 1909 के भारतीय विकेन्द्रीकरण आयोग की रिपोर्ट, भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली (1911) करने, प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ होने के घटनाक्रम ने भारतीय जन आन्दोलन को प्रोत्साहित किया।

अतः मॉन्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट 20 अगस्त, 1917 के सुझावों के आधार पर एक विधेयक 28 मई, 1919 को, ब्रिटिश लोक सदन (पार्लियामेंट के निम्न सदन) में रखा गया। पार्लियामेंट से पारित विधेयक को 23 दिसम्बर, 1919 को सम्राट की स्वीकृति मिलने पर यह भारतीय शासन अधिनियम, 1919 कहलाया।

शासन अधिनियम 1919 के दोष / आलोचनात्मक मूल्यांकन:
1. द्वैध शासन की योजना का संतोषप्रद न होना:
यह इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण दोष था, इस अधिनियम में गवर्नर की कार्यकारी परिषद् तथा मन्त्रियों के कार्यों के मध्य कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं थी। वित्त सम्बन्धी अधिकार गवर्नर व कार्यकारिणी सदस्यों के पास थे। वे मन्त्री के कार्य में हस्तक्षेप करते थे। मन्त्री एवं उनके अधीन कार्य कर रहे लोक सेवकों में सामंजस्य का अभाव था। गवर्नर की स्वेच्छाचारी शक्ति द्वैध शासन की एक बड़ी कमी थी।

2. केन्द्र में शक्तिशाली विधानमण्डल का अभाव:
1919 के इस अधिनियम द्वारा केन्द्र में यद्यपि द्विसदनात्मक विधान मण्डल की स्थापना की गई, लेकिन न तो उसका गठन पूर्णतया लोकतान्त्रिक था न ही उसे पर्याप्त शक्तियाँ दी गयीं। उस पर अनेक बन्धन व सीमायें लगी हुई थीं।

3.  गवर्नर जनरल की निरंकुशता यथावत्:
इस अधिनियम में गवर्नर जनरल को बहुत अधिक शक्तियाँ तथा अधिकार प्रदान किये गये थे। देश का समस्त प्रशासन उसकी देख-रेख व नियन्त्रण में चलता था। वह सुरक्षा व शान्ति स्थापना के नाम पर कभी भी विधान मण्डल के कार्य में हस्तक्षेप कर सकता था। इसका भारतीयों ने पुरजोर विरोध किया।

4. साम्प्रदायिक निर्वाचन का अनुचित विस्तार:
इस अधिनियम के द्वारा साम्प्रदायिक निर्वाचन का विस्तार किया गया जो एक अनुचित कदम था। इसे मुस्लिमों के साथ-साथ सिखों, यूरोपीयनों, जमींदारों, भारतीय वाणिज्य संघ, एंग्लो इण्डियन व भारतीय ईसाइयों के लिए लागू कर दिया गया। इस स्थिति को बुद्धिजीवियों ने देश के लिए हानिकारक समझा।

5. गृह सरकार के नियन्त्रण में कमी संतोषजनक न होना:
भारत में गृह – शासन द्वारा हस्तक्षेप कम करने की माँग की जा रही थी, लेकिन इस अधिनियम द्वारा गृह सरकार के नियन्त्रण में कमी करने के लिए भारत मन्त्री के अधिकार में किसी प्रकार का औपचारिक परिवर्तन नहीं किया गया।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

भारत शासन अधिनियम, 1919 का महत्व:
1919 के भारत शासन अधिनियम का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –

  • इस अधिनियम की प्रस्तावना में ब्रिटिश शासन के लक्ष्य – भारत में उत्तरदायी शासन की स्थापना की प्रथम बार घोषणा की गई थी।
  • इस अधिनियम द्वारा प्रान्तों में सर्वप्रथम उत्तरदायी शासन की दिशा में कदम बढ़ाया गया।
  • केन्द्र व प्रान्तों के विधान मण्डलों के विस्तार के साथ – साथ उनमें सुधार के प्रयास किये गये।
  •  पहले की अपेक्षा जनसंख्या के अधिक भाग को मताधिकार प्राप्त हो सका।
  • गवर्नर एवं गवर्नर जनरल की। कार्यकारी परिषदों में पूर्व की अपेक्षा अधिक भारतीयों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ।
  • शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया गया।
  •  भारतीयों को राजनीतिक प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त हुए।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)

Related

Filed Under: Class 11 Tagged With: RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 17 भारत में संवैधानिक विकास की पृष्ठभूमि (1909 व 1919 के अधिनियम)

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Solutions for Class 7 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 6 Our Rajasthan in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 7 Maths Chapter 15 Comparison of Quantities In Text Exercise
  • RBSE Solutions for Class 6 Maths Chapter 6 Decimal Numbers Additional Questions
  • RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 3 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 3 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Maths in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 in Hindi Medium & English Medium

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2023 RBSE Solutions