Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 संविधान सभा का गठन, उद्देश्य व कार्यप्रणाली
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मिलान कीजिए।
उत्तर:
1. (ब) पं. जवाहरलाल नेहरू
2. (स) बल्लभ भाई पटेल
3. (अ) डॉ. भीमराव अम्बेडकर
4. (द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधानसभा के एकमात्र काँग्रेसी सदस्य का नाम लिखो।
उत्तर:
संविधान सभा की प्रारूप समिति के एकमात्र काँग्रेसी सदस्य डॉ. के. एम. मुंशी थे।
प्रश्न 2.
संविधान सभा के चुनाव के परिणाम बताइए।
उत्तर:
संविधान सभा के चुनाव के परिणाम-ब्रिटिश भारत के 296 सदस्यों के चुनाव जुलाई – अगस्त, 1946 में प्रान्तीय विधानमण्डलों द्वारा सम्पन्न हुए। ये चुनाव प्रधानतः दलों के आधार पर लड़े गए। इसमें भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को 208 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। 73 स्थान मुस्लिम लीग ने जीते तथा छोटे-छोटे दलों को 15 स्थान प्राप्त हुए। देशी रियासतों ने स्वयं को इन चुनावों से दूर रखा। प्रारम्भ में समस्त 93 सीटें रिक्त रहीं। लेकिन धीरे-धीरे इन रियासतों के प्रतिनिधियों का मनोनयन भी हो गया तथा वे संविधान सभा में सम्मिलित हो गए।
प्रश्न 3.
कैबिनेट मिशन के सदस्यों के नाम लिखो।
उत्तर:
कैबिनेट मिशन के सदस्य – 24 मार्च, 1946 को तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन भारत आया इसके सदस्य थे –
- लॉर्ड पैथिक लॉरेंस
- सर स्टेफोर्ड क्रिप्स एवं
- ए. वी. एलेक्जेण्डर।
प्रश्न 4.
संविधान सभा में सीटों का निर्धारण किस आधार पर किया गया?
उत्तर:
संविधान सभा में सीटों का निर्धारण निम्नलिखित आधार पर किया गया:
- प्रत्येक प्रांत एवं रियासतों द्वारा भेजे गए सदस्यों की संख्या उस प्रान्त की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की गयी। 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि चुना गया।
- प्रान्तों को उपरोक्त आधार पर संविधान सभा में दिए गए स्थान, उनमें निवास करने वाले सम्प्रदायों के आधार पर विभाजित किए गए। मतदाताओं के प्रमुख वर्ग थे-सामान्य एवं मुस्लिम और केवल पंजाब में सिख।
- प्रान्तीय विधानसभा में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने एकल संक्रमणीय मत से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन किया।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का मनोनयन रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया गया।
प्रश्न 5.
उद्देश्य प्रस्ताव किसने एवं कब पेश किया?
उत्तर:
13 दिसम्बर, 1946 को पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के समक्ष उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में भारत के भावी प्रभुत्व सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी थी। यह प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 को पारित हो गया। उद्देश्य प्रस्ताव की प्रमुख बातें संविधान निर्माण करना, भारत संघ का निर्माण करना, संविधान की सीमाओं का निर्धारण करना, सत्ता का स्रोत जनता को बनाना, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समता की स्थापना करना, अल्पसंख्यकों व पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त संरक्षण की व्यवस्था करना, सम्प्रभुता की रक्षा की व्यवस्था करना तथा विश्वशान्ति व मानवता के कल्याण में योगदान देना आदि।
प्रश्न 6.
संविधान के कुल कितने वाचन हुए लिखो?
उत्तर:
संविधान के कुल तीन वाचन हुए जो निम्न प्रकार से हैं –
1. प्रथम वाचन:
संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवम्बर, 1948 को प्रारम्भ हुआ, जो 9 नवम्बर, 1948 तक चला। इसके तहत् प्रारूप संविधान के प्रकाशन के पश्चात् संविधान में संशोधन के लिए अनेक सुझाव प्राप्त हुए और विशिष्ट संस्करण प्रकाशित हुआ।
2. द्वितीय वाचन:
संविधान सभा के संविधान का प्रथम वाचन 15 नवम्बर, 1948 को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 तक चला। इस दौरान संविधान के प्रत्येक खण्ड पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया तथा 7653 संशोधन प्रस्तुत किए गए, जिनमें से 2473 को ही स्वीकार कर इस पर विचार-विमर्श किया गया।
3. तृतीय वाचन:
संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन, 14 नवम्बर, 1949 को प्रारम्भ हुआ, जो 26 नवम्बर, 1949 को पूर्ण हुआ और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया।
प्रश्न 7.
संविधान की प्रस्तावना के महत्व को बताइये।
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना का महत्व:
प्रत्येक संविधान के प्रारम्भ में प्रस्तावना का दिया जाना एक आधारभूत आवश्यकता है। संविधान की प्रस्तावना से संविधान के आधारभूत दर्शन का ज्ञान होता है। प्रस्तावना का कानूनी महत्व भी होता है। जहाँ संविधान का कानूनी भाग अस्पष्ट है, उसे स्पष्ट करने के लिए प्रस्तावना से संवैधानिक शक्ति का बोध होता है।
प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है कि संविधान को बनाने, स्वीकार करने एवं भारत पर लागू करने वाली अन्तिम सत्ता जन इच्छा है। भारतीय जनता के पास ही अन्तिम सत्ता है और वह अपने प्रतिनिधियों द्वारा शासन कार्य चलाती है। प्रस्तावना में कुछ पवित्र उद्देश्यों की घोषणा की गयी है और साथ ही यह आशा गयी है कि इन उद्देश्यों को पूरा करना सरकार का उत्तरदायित्व है। इस प्रकार प्रस्तावना अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को निर्देशित भी करती है और उसके कार्यों को नियन्त्रित भी करती है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रारूप समिति के सदस्यों के नाम लिखते हुए समिति के कार्यों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
प्रारूप समिति के सदस्यों के नाम-संविधान सभा की प्रारूप समिति के सदस्यों के नाम निम्नलिखित हैं –
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
- अंल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर
- एम. गोपाल स्वामी अयंगर
- सैयद मोहम्मद सादुल्ला
- डॉ. के. एम. मुंशी (एकमात्र काँग्रेस सदस्य)
- टी. टी. कृष्णामाचारी
- एन. माधवराव।
प्रारूप समिति के कार्य-संविधान सभा द्वारा 19 अगस्त, 1947 को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अम्बेडकर को चुना गया। इस समिति का प्रमुख कार्य संविधान की परामर्श शाखा द्वारा तैयार किये गये। संविधान का प्रशिक्षण संविधान का प्रारूप तैयार करने और उसको समाविष्ट करके, विचार विमर्श के लिए संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत करना था। इस समिति ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इस समिति ने संविधान का प्रारूप तैयार कर 21 फरवरी, 1948 को अपनी रिपोर्ट संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत की। संविधान सभा में इस रिपोर्ट पर तीन वाचन हुए, जो निम्नलिखित हैं
(1) प्रथम वाचन:
यह 4 नवम्बर, 1948 को प्रारम्भ हुआ, जो 9 नवम्बर, 1948 तक चला, इसमें प्रारूप संविधान के प्रकाशन के बाद संविधान में संशोधन के लिए अनेक सुझाव प्राप्त हुए और विशिष्ट संस्करण प्रकाशित हुआ।
(2) द्वितीय वाचन:
संविधान सभा का दूसरा वाचन 15 नवम्बर, 1948 को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 तक चला। इस समयावधि में 7653 संशोधन पेश किये गये, जिनसे से 2473 को स्वीकार कर इस पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया।
(3) तृतीय वाचन:
संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवम्बर, 1949 को प्रारम्भ हुआ, जो 26 नवम्बर, 1949 तक चला। संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को पारित घोषित कर दिया गया। उस दिन 299 सदस्यों में से 284 सदस्य उपस्थित थे। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष 11 माह एवं 18 दिन लगे। संविधान सभा की कुल 11 अधिवेशन हुए। संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई। इसमें लगभग विश्व के 60 देशों के संविधानों का अवलोकन हुआ।
प्रारूप समिति द्वारा प्रस्तुत संविधान के प्रारूप पर व्यापक विचार-विमर्श के पश्चात् यद्यपि संविधान को जब 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया तब इसमें कुल 365 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियों थीं, लेकिन संविधान के कुल 15 अनुच्छेदों, अर्थात् 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392 तथा 393 को उसी दिन एवं 26 नवम्बर, 1949 को ही प्रवर्तित कर दिया गया।
संविधान के शेष भाग को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया क्योंकि 26 जनवरी, 1930 को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी और प्रत्येक 26 जनवरी को, स्वतन्त्रता के पूर्व तक, स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था? । संविधान सभा की अन्तिम बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई और उसी दिन संविधान सभा द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया।
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर:
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ:
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान:
भारत का संविधान लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित है अर्थात् यह भारतीय जनता द्वारा निर्मित अधिनियमित और अंगीकृत है। इस संविधान द्वारा अन्तिम शक्ति भारतीय जनता को प्रदान की गयी है। इसकी प्रस्तावना सभा में स्पष्ट कहा गया है कि “हम भारत के लोग….. दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवम्बर, 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
(2) विश्व का सबसे बड़ा संविधान:
लिखित संविधानों में भारत का संविधान विश्व के सभी संविधानों में विस्तृत संविधान है। मूल संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान में सांविधानिक संशोधनों के पश्चात् इसमें 395 अनुच्छेद व 12 अनुसूचियाँ हैं जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 7 कनाडा के संविधान में 147, ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128 दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 153 तथा स्विट्जरलैण्ड के संविधान में 195 ही अनुच्छेद हैं।
(3) सम्पूर्ण प्रभुत्व:
सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य-संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत अपने आन्तरिक और बाह्य मामलों में सम्पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है, इस अर्थ में यह सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न है। देश की प्रभुसत्ता जनता में निहित है। शासन जनता का है और जनता द्वारा तथा जनता के लिए चलाया जाता है। यहाँ लोकतान्त्रिक पद्धति को अपनाया गया है। अतः भारत लोकतान्त्रिक गणराज्य है क्योंकि यहाँ का राष्ट्राध्यक्ष वंशानुगत नहीं वरन् जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित किया जाता है।
(4) लिखित एवं निर्मित संविधान:
भारत का संविधान संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा एवं स्विट्जरलैण्ड के संविधान की तरह ही एक लिखित एवं निर्मित संविधान है। भारत के संविधान का अधिकांश भाग लिपिबद्ध है तथा इसमें परम्पराओं का भाग बहुत कम है। इसका निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया। इसके निर्माण में 2 वर्ष 11 महीने तथा 18 दिन का समय लगा।
(5) सम्पूर्ण देश के लिए एक संविधान:
संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र व राज्यों के लिए, अलग-अलग संविधानों की व्यवस्था होती है। भारत का संविधान केन्द्र व राज्यों में समान रूप से लागू होता है।
(6) संसदीय शासन व्यवस्था:
ब्रिटिश मॉडल का अनुसरण करते हुए भारतीय संविधान में संसदात्मक राजनीतिक व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके अन्तर्गत संसद सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था की धुरी है। मंत्रिमण्डल सामूहिक रूप से व्यवस्थापिका तथा लोकसभा के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है और देश के राष्ट्राध्यक्ष एवं राष्ट्रपति का पद नाममात्र की कार्यपालिका का प्रतीक है और वास्तविक शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिमण्डल द्वारा किया जाता है। जिस प्रकार भारत के राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली अपनायी गयी जहाँ राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।
(7) मौलिक अधिकार तथा कर्तव्य:
भारत संविधान के भाग में तीन मूल अधिकारों की व्यवस्था की गयी है। मूल अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक अधिकारियों को कहते हैं। भारतीय संविधान में मूलरूप से ऐसे 7 अधिकारों का प्रावधान किया गया था। ये थे –
- समानता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- सम्पत्ति का अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
लेकिन बाद में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकारों को मूल अधिकारों की श्रेणी में से निकाल दिया गया और अब शेष उक्त वर्णित 6 मूल अधिकार संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को प्राप्त हैं। ये सभी अधिकार वाद योग्य है। इनका हनन होने पर नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं। ये अधिकार विधानमण्डल व कार्यपालिका की शक्तियों को भी सीमित करते हैं। 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारत के संविधान में नागरिकों के 10 मूल कर्तव्यों का समावेश किया गया है। जिसमें संविधान का पालन करना, भारत की प्रभुता, संविधान संशोधन 2002 द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने सम्बन्धी 11वाँ मूल कर्त्तव्य जोड़ा गया है।
(8) एकात्मक और संघात्मक तत्वों का सम्मिश्रण:
संविधान निर्माता ऐसे संघ का निर्माण करना चाहते थे जिसमें केन्द्र सरकार भारत की एकता बनाए रखे और राज्यों को भी स्वायत्तता मिल जाये। इसलिए इसमें संघात्मक एवं एकात्मक तत्वों का मिश्रण है। संविधान में ऐसे अनेक प्रावधान हैं जो केन्द्र को राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बनाते हैं।
(9) कठोरता एवं लचीलेपन का सम्मिश्रण:
संविधान संशोधन की प्रक्रिया द्वारा उसके कठोर या लचीलेपन का निर्धारण किया जाता है। भारत में दोनों प्रक्रियाओं को अपनाया गया है। संविधान के कुछ भागों का संशोधन सरल एवं कुछ भागों का जटिल है। भारत के संविधान में संशोधन की तीन विधियाँ हैं
- कुछ विषय संसद के दोनों सदनों के साधारण बहुमत से संशोधित किये जाते हैं, जैसे-राज्यों का पुनर्गठन।
- भारत के संविधान के कुछ अनुच्छेदों को संशोधित करने के लिये संसद के दोनों सदनों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। संविधान के भाग तीन व चार के अनुच्छेद इस श्रेणी में आते हैं।
- संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिये संसद के दोनों पक्षों के पूर्ण बहुमत, उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत एवं आधे राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन आवश्यक है। राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति, केन्द्र व राज्यों के बीच शक्ति विभाजन आदि विषय के संशोधन के लिये यह जटिल प्रक्रिया अपनायी जाती है। उपर्युक्त संशोधन की तीन विधियों से यह स्पष्ट है कि संविधान संशोधन के लिए लचीले, अर्द्ध कठोर एवं कठोर विधियों को अपनाया गया है।
(10) समाजवादी राज्य की स्थापना:
42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द को शामिल किया गया। समाजवादी राज्य का आशय यह है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर किसी व्यक्ति विशेष का नियन्त्रण न होकर सम्पूर्ण समाज का अधिकार है।
(11) पंथनिरपेक्ष राज्य की स्थापना:
1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया है। धर्मनिरपेक्ष से आशय यह है कि राज्य का अपना कोई एक राज्य धर्म नहीं है और राज्य धार्मिक मामलों में पूर्ण ; तटस्थ है। साथ ही सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखता है। प्रत्येक नागरिक को धार्मिक मामलों में पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त एवं राज्य अनेक धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है। भारतीय संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 25 से 28 तव नगारिकों के लिए धार्मिक स्वतन्त्रता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है।
(12) नीति – निर्देशक सिद्धान्तों की व्यवस्था:
भारतीय संविधान में राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों का भी उल्लेख किया गया है। इपमें संघीय एवं प्रान्तीय सरकारों को आदेश किया गया है कि उन्हें नागरिकों के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए क्या कार्य करने चाहिए। इन सिद्धान्तों के माध्यम से राज्य के कल्याणकारी स्वरूप को प्राप्त करने का प्रयास किया गया है।
(13) आपातकालीन व्यवस्था:
संविधान में आपातकालीन स्थिति का सामना करने के लिए भारत के राष्ट्राध्यक्ष को कुछ संकटकालीन शक्तियाँ दी गयी हैं जिनका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 352, 356 एवं 360 में किया गया है। इन शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् एवं प्रधानमन्त्री की सलाह से करता है।
(14) स्वतन्त्र, निष्पक्ष और सर्वोच्च न्यायपालिका की व्यवस्था:
भारतीय संविधान में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गयी है जो निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर अपने कार्यों का सम्पादन करता है। यह भारत के संघ एवं राज्य सरकारों के विवादों को सुलझाती है। इसके साथ नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करती है। भारत में न्याय व्यवस्था का स्वरूप इकहरा है। जिसमें सर्वोच्च शिखर पर सर्वोच्च न्यायालय स्थापित है।
(15) शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना:
भारत एक नवोदित एवं विकासशील राज्य है। इसी बात को ध्यान में रखकर संविधान निर्मात्री सभा ने केन्द्र सरकार को शक्तिशाली स्वरूप प्रदान किया, ताकि भारत की एकता व अखण्डता को सुदृढ़ बनाया जा सके।
(16) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार:
भारतीय संविधान सत्ता की सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित करता है। इसी कारण से हमारे देश में 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले प्रत्येक स्त्री-पुरुष को बिना किसी भेदभाव के वयस्क मताधिकार दिया गया है ताकि वे शासन सत्ता में भागीदारी निभा सके।
(17) एक राष्ट्र भाषा का प्रावधान:
भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। संविधान के द्वारा देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी भाषा को देश की राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है। यद्यपि यह अभी तक पूर्ण रूप से सम्भव नहीं हुआ है। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मिलित किया गया है।
(18) राष्ट्रपति राष्ट्र की एकता का प्रतीक:
भारतीय संविधान में देश की सम्पूर्ण शक्तियों को सैद्धान्तिक रूप से राष्ट्रपति में निहित करके राष्ट्र की एकता का प्रतीक बनाया गया है। राष्ट्रपति का चुनाव जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से
होता है।
(19) विश्व शक्ति की कामना:
भारतीय संविधान विश्व समुदाय में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व शान्ति की कामना करता है। वसुधैव कुटुम्बकम् हमारी प्राचीन संस्कृति की विशेषता है। इसीलिए संविधान के भाग चार के अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति एवं सुरक्षा की अभिव्यक्ति को सम्मिलित किया गया है।
प्रश्न 3.
संविधान की प्रस्तावना लिखिए।
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना:
प्रस्तावना का अर्थ है, “किसी भाषण अथवा लेख में प्रारम्भिक एवं परिचयात्मक कथन।” प्रत्येक संविधान के प्रारम्भ में उसकी प्रस्तावना होती है जिसमें संविधान के मुख्य उद्देश्य और प्रयोजनों को स्पष्ट किया जाता है। संविधान के समस्त उपबन्ध प्रस्तावना में निहित होते हैं। प्रस्तावना में जिन तथ्यों, सिद्धान्तों तथा आदर्शा का निरूपण हुआ हैं वे समूचे संविधान में विद्यमान हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संविधान के आदर्शों, मूल्यों एवं आकांक्षाओं को स्पष्ट किया गया है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, विचार-अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म एवं उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए एवं उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एदत् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियम एवं आत्मार्पित करते हैं।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा समाजवादी, पंथ निरपेक्ष एवं अखण्डता आदि नये शब्द जोड़े गये। संविधान निर्माताओं के अनुसार प्रस्तावना निम्नलिखित महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करती है –
- संविधान का स्रोत क्या है, अर्थात् ‘ भारत के लोग’।
- संविधान का उद्देश्य क्या है? अर्थात् इसमें उन महान् अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की घोषणा की गयी है जिन्हें भारत के लोगों ने सभी नागरिकों के लिए सुनिश्चित बनाने की इच्छा की थी।
- इसमें संविधान के प्रवर्तन की विधि का उल्लेख है।
- भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय की स्थापना करना अर्थात् स्त्रियों सहित सभी वंचित वर्गों के विकास के विशेष प्रयत्न करना प्रस्तावना के
प्रमुख अवयव:
42वें संशोधन के बाद जिस रूप में प्रस्तावना इस समय हमारे संविधान में विद्यमान है उसके अनुसार संविधान निर्माता जिन सर्वोच्च या मूलभूत संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करते थे। उन्हें निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है
(1) हम भारत के लोग-प्रस्तावना के इन शब्दों में तीन बात निहित हैं –
- संविधान द्वारा अन्तिम सत्ता जनता में निहित है।
- संविधान के निर्माता जनता के प्रतिनिधि थे।
- भारतीय संविधान भारतीय जनता की इच्छा का परिणाम है।
(2) सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न:
समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य के शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना के आधार स्तम्भ हैं। जिनका अभिप्राय इस प्रकार हैं
(i) सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्ने:
इसका आशय यह है कि भारत अपने आन्तरिक एवं बाहरी मामलों में पूर्ण स्वतन्त्र है। वह किसी भी दूसरे देश के साथ सम्बन्ध जोड़ सकता है, यह उसकी इच्छा पर निर्भर है।
(ii) समाजवादी:
संविधान निर्माता नहीं चाहते थे कि संविधान विचारधारा या वाद विशेष से जुड़ा हो या किसी आर्थिक सिद्धान्त से सीमित हो। इसलिए मूल प्रस्तावना में समाजवाद शब्द को नहीं जोड़ा गया था किन्तु सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता दिलाने के संकल्प का वर्णन किया गया। सन् 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में समाजवाद’ शब्द को भी जोड़ दिया गया।
(iii) पंथनिरपेक्षता:
भारतीय संविधान में किसी भी एक धर्म को राष्ट्र धर्म घोषित नहीं किया गया बल्कि सभी धर्मों को समान दर्जा दिया गया है। राज्य धार्मिक मामलों में पूर्णत: तटस्थ रहता है। 42वें संविधान संशोधन द्वारा इस शब्द को प्रस्तावना में जोड़ दिया गया जिससे भावी भारत की धर्मनिरपेक्ष नीति को बल मिला है।
(iv) लोकतन्त्र:
इसका अभिप्राय यह है कि भारत में राजसत्ता का प्रयोग जनता द्वारा किया जाता है। भारतीय जनता इसका प्रयोग अप्रत्यक्ष रूप से करती है। अर्थात् जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि शासन संचालित करते हैं।
(v) गणराज्य:
भारत के राष्ट्रपति वंशानुगत आधार पर मनोनीत न होकर जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं, इसी कारण भारत को गणराज्य कहते हैं।
(3) सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय:
प्रस्तावना के अन्तर्गत इन शब्दों के आधार पर संविधान के लक्ष्य का वर्णन किया गया है।
(i) सामाजिक न्याय:
यह एक परिवर्तनशील अवधारणा है। इसका आशय है कि समाज में व्यक्ति को व्यक्ति के नाते महत्व दिया जाना चाहिए। जाति, लिंग, वर्ण, धर्म, नस्ल, या सम्पत्ति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।
(ii) आर्थिक न्याय:
इससे आशय है कि “ऐसी व्यवस्था का अन्त कर दिया जाना चाहिए जिसमें साधन सम्पन्न व्यक्ति साधनहीन व्यक्तियों का शोषण करते हैं अर्थात् व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता पूरी होनी चाहिए। अमीरी-गरीबी का अन्तर न्यूनतम होना चाहिए।”
(iii) राजनीतिक न्याय:
इससे आशय है कि सभी व्यक्तियो को शासन व्यवस्था में भाग लेने को समान अवसर मिलना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं होना चाहिए।
(4) स्वतन्त्रता, समानता एवं भ्रातृत्व-स्वतन्त्रता:
भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप को अपनाया गया है। इसी के आधार पर व्यक्तियों के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास सम्भव है, स्वतन्त्रता की सुरक्षा हेतु एक स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गयी है।
(i) समानता – हमारे संविधान निर्माताओं के सामनता के दो आयामों को अपनाया है। ये हैं प्रतिष्ठा की समानता एवं अवसर की समानता। अवसर की समानता वह साधन है जिसके आधार पर प्रतिष्ठा की समानता को प्राप्त किया जा सकता है।
(ii) बन्धुता या भ्रातृत्व – डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि बन्धुत्व का अर्थ है सभी भारतीयों के सर्वमान्य भाई-चारे की, सभी भारतीयों में एक होने की भावना का विकास। यह सिद्धान्त सामाजिक जीवन को एकता एवं अखण्डता प्रदान करता है। बन्धुता का अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष भी है जो हमें विश्वबन्धु की संकल्पना के प्राचीन भारतीय आदर्श की ओर ले जाता है। इसे संविधान के अनुच्छेद 51 में निर्देशक सिद्धान्तों में स्पष्ट किया गया है।
(5) व्यक्ति की गरिमा:
संविधान के अनुच्छेद 17 में दिये मूल अधिकार का उद्देश्य अस्पृश्यता के आचरण का अन्त करना है जो कि मानव की गरिमा के विरुद्ध है। इसी प्रकार से व्यक्ति की गरिमा को बनाये रखने के लिए अनुच्छेद 32 में भी प्रावधान है।
(6) राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता:
एकता एवं अखण्डता के बिना हम लोकतन्त्र एवं राष्ट्र की स्वाधीनता तथा नागरिकों को सम्मान के रक्षा नहीं कर सकते हैं। इसलिए अनुच्छेद 51(5) में सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तावना भारतीय संविधान की सबसे श्रेष्ठ धारणा है जिसे संविधान की आत्मा एवं कुंजी के रूप में स्वीकार किया जाता है। भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश सुब्बाराव के शब्दों में, “प्रस्तावना संविधान के आदर्शों व आकांक्षाओं को बताती है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा में सदस्य थे –
(अ) 389
(ब) 390
(स) 380
(द) 385
उत्तर:
(अ) 389
प्रश्न 2.
कैबिनेट मिशन में सदस्य थे –
(अ) 1
(ब) 3
(स) 2
(द) 4
उत्तर:
(ब) 3
प्रश्न 3.
देशी रियासतों के लिए संविधान सभा में निर्धारित सीटों की संख्या थी –
(अ) 72
(ब) 80
(स) 93
(द) 70.
उत्तर:
(स) 93
प्रश्न 4.
संविधान दिवस कब मनाया जाता है –
(अ) 26 नवम्बर
(ब) 26 जनवरी
(स) 27 नवम्बर
(द) 15 अगस्त।
उत्तर:
(अ) 26 नवम्बर
प्रश्न 5.
संविधान सभा की प्रथम बैठक के अध्यक्ष थे –
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ब) सच्चिदानन्द सिन्हा
(स) जवाहर लाल नेहरू
(द) डॉ. अम्बेडकर।
उत्तर:
(ब) सच्चिदानन्द सिन्हा
प्रश्न 6.
संविधान सभा के चुनावों में काँग्रेस को सीटें मिलीं –
(अ) 208
(ब) 220
(स) 270
(द) 216.
उत्तर:
(अ) 208
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान सभा का प्रथम दर्शन हम किस स्वतन्त्रता सेनानी के विधेयक में देखते हैं?
(अ) बाल गंगाधर तिलक
(ब) लाला लाजपत राय
(स) पं. जवाहर लाल नेहरू
(द) महात्मा गाँधी।
उत्तर:
(अ) बाल गंगाधर तिलक
प्रश्न 2.
संविधान सभा का निर्वाचन किस योजना के आधार पर हुआ?
(अ) साइमन कमीशन
(ब) क्रिप्स प्रस्ताव
(स) केबिनेट मिशन योजना
(द) माउण्टबेटन योजना।
उत्तर:
(ब) क्रिप्स प्रस्ताव
प्रश्न 3.
कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा का गठन हुआ
(अ) नवम्बर 1946 को
(ब) दिसम्बर 1945 को
(स) जनवरी 1947 को
(द) 15 अगस्त 1947 को।
उत्तर:
(अ) नवम्बर 1946 को
प्रश्न 4.
कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा के चुनाव हुए –
(अ) जुलाई 1947 को
(ब) अगस्त 1948 को
(स) जुलाई 1946 को
(द) जनवरी 1950 को।
उत्तर:
(स) जुलाई 1946 को
प्रश्न 5.
संविधान सभा के सदस्य –
(अ) काँग्रेस व मुस्लिम लीग द्वारा मनोनीत थे
(ब) प्रान्तों की व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचित एवं देशी रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत किए गए
(स) सीधे जनता द्वारा निर्वाचित किए गए।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) प्रान्तों की व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचित एवं देशी रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत किए गए
प्रश्न 6.
संविधान सभा की बैठकों की अध्यक्षता करते थे –
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ब) जी. वी. मावलंकर
(से) डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 7.
विधायिका की बैठक की अध्यक्षता कौन करता था?
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ब) दुर्गाबाई
(स) पं. जवाहर लाल नेहरू
(द) जी. वी. मावलंकर।
उत्तर:
(द) जी. वी. मावलंकर।
प्रश्न 8.
संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव कब प्रस्तुत किया गया?
(अ) 22 जनवरी, 1947
(ब) 13 दिसम्बर, 1946
(स) 22 दिसम्बर, 1946
(द) 26 जनवरी, 1950
उत्तर:
(ब) 13 दिसम्बर, 1946
प्रश्न 9.
संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव कब पारित हुआ?
(अ) 22 दिसम्बर, 1946
(ब) 22 जनवरी, 1948
(स). 22 जनवरी, 1947
(द) 13 दिसम्बर, 1946
उत्तर:
(स). 22 जनवरी, 1947
प्रश्न 10.
भारत का संविधान, अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया –
(अ) 26 नवम्बर, 1949 को
(ब) 15 अगस्त, 1947 को
(स) 26 जनवरी, 1947 को
(द) 26 जनवरी, 1950 को।
उत्तर:
(अ) 26 नवम्बर, 1949 को
प्रश्न 11.
‘इण्डियन कान्स्टीट्यूशन कॉर्नर स्टोन ऑफ ए नेशन’ पुस्तक के लेखक हैं
(अ) पं. जवाहर लाल नेहरू
(ब) ग्रेनविल आस्टिन
(स) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
(द) महात्मा गाँधी।
उत्तर:
(ब) ग्रेनविल आस्टिन
प्रश्न 12.
संविधान में सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय था –
(अ) संघीय व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान
(ब) भाषा से सम्बन्धित प्रावधान
(स) संसद के सम्बन्ध में प्रावधान
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 13.
संविधान सभा की प्रथम बैठक सम्पन्न हुई –
(अ) 9 दिसम्बर, 1946 को
(ब) 26 नवम्बर, 1949 को
(स) 15 अगस्त, 1947 को
(द) 26 जनवरी, 1950 को।
उत्तर:
(अ) 9 दिसम्बर, 1946 को
प्रश्न 14,
11 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा के लिए स्थायी सभापति निर्वाचित हुए –
(अ) एच. सी. मुखर्जी
(ब) सच्चिदानन्द सिन्हा
(स) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(द) सर. बी. एन. राव।
उत्तर:
(स) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 15.
संविधान सभा की प्रथम बैठक में कितने सदस्यों ने भाग लिया?
(अ) 211
(ब) 289
(स) 389
(द) 299
उत्तर:
(अ) 211
प्रश्न 16.
संविधान सभा के उपाध्यक्ष थे –
(अ) बी. एम. राव :
(ब) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
(स) एच. सी. मुखर्जी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) एच. सी. मुखर्जी
प्रश्न 17.
संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार थे –
(अ) सर बी. एम. राव
(ब) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
(स) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(द) गोविन्द बल्लभपन्त।
उत्तर:
(अ) सर बी. एम. राव
प्रश्न 18.
संघ शक्ति समिति के अध्यक्ष थे –
(अ) गोविन्द बल्लभ पन्त
(ब) पं. जवाहर लाल नेहरू
(स) सरदार बल्लभ भाई पटेल
(द) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर।
उत्तर:
(ब) पं. जवाहर लाल नेहरू
प्रश्न 19.
प्रक्रिया नियम समिति के अध्यक्ष थे –
(अ) सरदार बल्लभ भाई पटेल
(ब) पं. जवाहर लाल नेहरू
(स) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(द) लाला लाजपत राय।
उत्तर:
(स) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्न 20.
संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे –
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ब) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
(स) बाल गंगाधर तिलक
(द) सरदार बल्लभ भाई पटेल।
उत्तर:
(ब) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
प्रश्न 21.
भारतीय संविधान का रचयिता किसे कहा जाता है?
(अ) सरदार बल्लभ भाई पटेल को
(ब) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को
(स) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को
प्रश्न 22.
भारत की संविधान सभा ने कुल समय कार्य किया –
(अ) 2 वर्ष
(ब) 2 वर्ष 12 दिन
(स) 2 वर्ष 11 माह, 18 दिन
(द) 3 वर्ष, 2 माह, 11 दिन।
उत्तर:
(स) 2 वर्ष 11 माह, 18 दिन
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान सभा के गठन का विचार सर्वप्रथम बाल गंगाधर तिलक के स्वराज्य विधेयक में कब प्रस्तुत किया गया?
उत्तर:
1895 ई. में।
प्रश्न 2.
1938 ई. में पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के गठन के सम्बन्ध में क्या कहा था?
उत्तर:
1938 ई. में पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि संविधान सभा का गठन निर्वाचित संविधान सभा के माध्यम से वयस्क मताधिकार के द्वारा किया जाएगा एवं इसमें किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा।
प्रश्न 3.
संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव सैद्धान्तिक रूप में ब्रिटिश सरकार द्वारा कब स्वीकार किया गया?
उत्तर:
1940 ई. में ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव स्वीकार किया था। इसे अगस्त प्रस्ताव के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न 4.
कैबिनेट मिशन भारत कब आया?
उत्तर:
24 मार्च, 1946 को। प्रश्न 5. वह कौन – सी योजना थी, जिसके तहत् संविधान सभा का गठन किया गया था? उत्तर-केबिनेट (मन्त्रिमण्डल) मिशन योजना।
प्रश्न 6.
कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासतों को संविधान सभा में कितनी सीटें में आवंटित की जानी थीं?
उत्तर:
296 ब्रिटिश भारत एवं 93 सीटें देशी रियासतों को आवंटित की जानी थीं।
प्रश्न 7.
संविधान सभा में कौन-कौन से दो प्रमुख नेता सम्मिलित नहीं थे?
उत्तर:
- महात्मा गाँधी
- मोहम्मद अली जिन्ना।
प्रश्न 8.
संविधान सभा के किन्हीं 4 सदस्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- पं. जवाहर लाल नेहरू
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर
- सरदार बल्लभ भाई पटेल
- आचार्य जे. बी. कृपलानी।
प्रश्न 9.
संविधान सभा की किन्हीं दो महिला सदस्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- श्रीमती दुर्गाबाई
- श्रीमती सरोजनी नायडू।
प्रश्न 10.
संविधान सभा में विधायिका की बैठक की अध्यक्षता कौन करता था?
उत्तर:
जी. वी. मावलंकर।
प्रश्न 11.
संविधान के उद्देश्यों की झलक किस प्रस्ताव में मिलती है?
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव में।
प्रश्न 12.
उद्देश्य प्रस्ताव की भाषा किसमें निहित है?
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना में।
प्रश्न 13.
उद्देश्य प्रस्ताव के कोई दो प्रावधान लिखिए।
उत्तर:
- संविधान निर्माण करना
- सत्ता का स्रोत जनता को बनाना।
प्रश्न 14.
संविधान की प्रस्तावना में किसकी व्याख्या की गई है?
उत्तर:
संविधान निर्माण के उद्देश्य एवं लक्ष्यों की।
प्रश्न 15.
समाजवादी शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समाजवादी शब्द का अभिप्राय है कि असमानताओं का निराकरण करने, सभी लोगों की न्यूनतम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने, समान कार्य करने के लिए समान वेतन देने जैसे आदर्शों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध हो।
प्रश्न 16.
उद्देश्य प्रस्ताव कब प्रस्तुत किया गया?
उत्तर:
13 दिसम्बर, 1946 को।
प्रश्न 17.
उद्देश्य प्रस्ताव को कब स्वीकृत किया गया?
उत्तर:
22 जनवरी, 1947 को।
प्रश्न 18.
सम्प्रभुता शब्द से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सम्प्रभुता किसी स्वराज्य का एक अत्यन्त अनिवार्य तत्व होता है। इसका अर्थ होता है-बिना किसी आन्तरिक और बाहरी दबाव, प्रभाव अथवा हस्तक्षेप के राज्य की निर्णय लेने की क्षमता।
प्रश्न 19.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित किन्हीं दो लक्ष्यों को लिखिए।
उत्तर:
- भारत का एक सम्प्रभु, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष एवं लोकतान्त्रिक गणराज्य का वर्णन
- राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाना।
प्रश्न 20.
संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों का दृष्टिकोण केसा था?
उत्तर:
उदारवादी।
प्रश्न 21.
ग्रेनविल ऑस्टिन द्वारा लिखित पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘इण्डियन कॉन्स्टीटयूशन कॉर्नर स्टोन ऑफ ए नेशन’।
प्रश्न 22.
भारत की संविधान सभा का दृष्टिकोण कितने सिद्धान्तों पर आधारित था?
अथवा
भारतीय संविधान सभा की कार्यप्रणाली के आधार लिखिए।
उत्तर:
- सर्वसम्मतता
- समायोजन
- परिवर्तन के साथ चयन।
प्रश्न 23.
संविधान सभा द्वारा सर्वसम्मतता से निर्णित विषय के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- संघीय व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान
- भाषा से सम्बन्धित प्रावधान।
प्रश्न 24.
भारतीय संघीय प्रणाली का निर्धारण किस सिद्धान्त के माध्यम से हुआ?
उत्तर:
सर्वसम्मतता के सिद्धान्त के माध्यम से।
प्रश्न 25.
किन्हीं दो विषयों के नाम लिखिए जिनमें संविधान सभा में समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया ?
उत्तर:
- संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था
- मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रश्न।
प्रश्न 26.
‘राष्ट्रमण्डल’ की सदस्यता ग्रहण करने के प्रश्न का समाधान किस सिद्धान्त द्वारा किया गया?
उत्तर:
समायोजन के सिद्धान्त द्वारा।
प्रश्न 27.
संविधान सभा में पंचायत प्रश्न के समाधान हेतु कौन – सा दृष्टिकोण अपनाया गया?
उत्तर:
समायोजन सिद्धान्त।
प्रश्न 28.
संविधान सभा द्वारा परिवर्तन के साथ चयन से निर्णित विषय का नाम लिखिए।
उत्तर:
संविधान संशोधन प्रणाली।
प्रश्न 29.
ग्रेनविल ऑस्टिन के अनुसार किन-किन बातों ने संविधान सभा में सर्वसम्मति से निर्णय लेने में सहायता प्रदान की?
उत्तर:
एकता, आदर्शवाद एवं राष्ट्रीय वातावरण ने।
प्रश्न 30.
विश्व का प्रथम देश कौन – सा था, जिसमें राष्ट्रमण्डल की सदस्यता के प्रश्न पर दो विरोधी व्यवस्थाओं यथा गणतन्त्र एवं राजतन्त्र में मेल स्थापित किया।
उत्तर:
भारत।
प्रश्न 31.
संविधान सभा द्वारा निश्चित किए गए किन्हीं दो आदर्शों का नाम लिखिए।
उत्तर:
- जनता का प्रभुत्व एवं भारत की स्वतन्त्रता का उल्लेख।
- राष्ट्र की सुरक्षा एवं सांस्कृतिक बहुलवाद पर बल।
प्रश्न 32.
संविधान सभा द्वारा निश्चित किए गए आदर्शों की प्राप्ति के लिए अपनाई गई व्यवस्था के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
- सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य
- अधिकारों व स्वतन्त्रताओं का उल्लेख।
प्रश्न 33.
संविधान सभा की प्रथम बैठक कब व कहाँ हुई?
उत्तर:
संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित वर्तमान संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में 9 दिसम्बर, 1946 को हुई।
प्रश्न 34.
मुस्लिम लीग ने किस माँग को लेकर संविधान सभा का बहिष्कार किया?
उत्तर:
मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग को लेकर संविधान सभा का बहिष्कार किया।
प्रश्न 35.
संविधान सभा की प्रथम बैठक में कितने सदस्यों ने भाग लिया?
उत्तर:
211 सदस्यों ने।
प्रश्न 36.
संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष किसे बनाया गया?
अथवा
संविधान के अन्तरिम सभापति कौन थे?
उत्तर:
डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को।
प्रश्न 37.
भारतीय संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
प्रश्न 38.
संविधान सभा के विभिन्न कार्यों के सम्पादन के लिए कितनी समितियों का गठन किया गया?
उत्तर:
संविधान सभा के विभिन्न कार्यों के सम्पादन के लिए 8 बड़ी समितियों एवं लगभग 15 छोटी समितियों का गठन किया गया।
प्रश्न 39.
संविधान सभा की संघ शक्ति समिति का अध्यक्ष कौन था?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू।
प्रश्न 40.
संघीय संविधान समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू।
प्रश्न 41.
संघ शक्ति समिति में कितने सदस्य थे तथा इसका क्या कार्य था?
उत्तर:
संघ शक्ति समिति में पं. जवाहर लाल नेहरू (अध्यक्ष) के अतिरिक्त 15 अन्य सदस्य थे। इस समिति का कार्य संघ शक्ति के विषय में प्रतिवेदन देना था।
प्रश्न 42.
संघीय संविधान समिति का क्या कार्य था?
उत्तर:
संघीय संवैधानिक विषयों में परामर्श देना।
प्रश्न 43.
प्रान्तीय संविधान समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
सरदार बल्लभ भाई पटेल।
प्रश्न 44.
प्रान्तीय संविधान समिति का प्रमुख कार्य क्या था?
उतर:
प्रान्तों के संविधानों के सम्बन्ध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करना।
प्र.न 45.
प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।
प्रश्न 46.
मौलिक अधिकारों एवं अल्पसंख्यक सम्बन्धी परामर्श समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
सरदार बल्लभ भाई पटेल।
प्रश्न 47.
मौलिक अधिकार उप समिति के अध्यक्ष कौन थे? इनका कार्य क्या था?
उत्तर:
जे. बी. कृपलानी। इस समिति का मुख्य कार्य मूल अधिकारों के सम्बन्ध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था।
प्रश्न 48.
अल्पसंख्यक अधिकार उपसमिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
एच. सी. मुखर्जी।
प्रश्न 49.
अल्पसंख्यक अधिकार उपसमिति का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर:
अल्पसंख्यक अधिकार उपसमिति का प्रमुख कार्य अल्पसंख्यकों की रक्षा सम्बन्धी धाराओं एवं कबायली तथा वर्जित क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रतिवेदन देना था।
प्रश्न 50.
संविधान सभा की प्रक्रिया नियम समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
प्रश्न 51.
प्रक्रिया नियम समिति का मुख्य कार्य क्या था?
उत्तर:
प्रक्रिया नियम समिति का मुख्य कार्य प्रक्रिया सम्बन्धी नियमों, अध्यक्ष की शक्तियों, संविधान सभा के कार्य के संगठन एवं अधिकारियों की नियुक्ति तथा सभा में होने वाले रिक्त स्थानों को भरने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में सिफारिश करना था।
प्रश्न 52.
राज्यों से समझौता करने वाली समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू।
प्रश्न 53.
संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
प्रश्न 54.
संचालन समिति को मुख्य कार्य क्या था?
उत्तर:
संचालन समिति का मुख्य कार्य सूची का निर्धारण तथा सभा, अनुमान समितियों तथा अध्यक्ष के लिए। व्यापक सम्पर्क साधन के रूप में कार्य करना था।
प्रश्न 55.
संविधान सभा की सबसे महत्वपूर्ण समिति कौन-सी थी?
उत्तर:
प्रारूप समिति।
प्रश्न 56.
प्रारूप समिति का गठन कब हुआ?
उत्तर:
29 अगस्त, 1947 को।
प्रश्न 57.
प्रारूप समिति का मुख्य कार्य क्या था?
उत्तर:
परामर्श शाखा द्वारा तैयार किए गए संविधान का परीक्षण कर संविधान का प्रारूप तैयार करने एवं उसको समाविष्ट करके विचार के लिए संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करना।
प्रश्न 58.
प्रारूप समिति के किन्हीं दो सदस्यों का नाम लिखिए।
उत्तर:
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
- डॉ. के. एम. मुंशी।
प्रश्न 59.
प्रारूप समिति ने भारत में संविधान का प्रारूप तैयार कर संविधान सभा के अध्यक्ष के समक्ष कब प्रस्तुत किया?
उत्तर:
21 फरवरी, 1948 को।
प्रश्न 60.
भारतीय संविधान कब से लागू किया गया?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 से।
प्रश्न 61.
भारतीय संविधान के निर्माण में कुल कितना समय लगा?
उत्तर:
2 वर्ष 11 माह और 18 दिन।
प्रश्न 62.
भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान कितने देशों के संविधानों का अवलोकन किया गया?
उत्तर:
लगभग 60 देशों के संविधानों का।
प्रश्न 63.
संविधान की आत्मा किसे कहा जाता है?
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना को।
प्रश्न 64.
42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में किन-किन शब्दों को सम्मिलित किया गया है?
उत्तर:
समाजवादी, पंथ निरपेक्ष शब्दों को।
प्रश्न 65.
भाषा का निर्धारण किस सिद्धान्त के माध्यम से हुआ?
उत्तर:
सर्वसम्मतता के सिद्धान्त के आधार पर।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान सभा का महत्व बताइए।
उत्तर:
संविधान सभा का महत्व:
संविधान सभा का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –
1. 26 नवम्बर, 1946 को संविधान सभा द्वारा पारित वर्तमान संविधान द्वारा विश्व के सबसे बड़े जनतन्त्र भारत की स्थापना हुई। संविधान सभा में अधिकांश निर्णय सर्वसम्मति से लिए गए। इससे सभा की एकता, आदर्शवाद एवं राष्ट्रीय सहयोग का परिचय मिलता है। संविधान के कई विषयों में समायोजन के सिद्धान्त को अपनाकर समस्या का समाधान किया गया।
संविधान सभा में सौमनस्य, सद्भाव एवं समन्वय की भावना ने एक अद्भुत परिचय दिया। रियासतों अल्पसंख्यकों एवं भाषा की समस्या को जिस रूप में सुलझाया गया, वे इस भावना के सफल परिचायक थे। संविधान सभा के सदस्यों का दृष्टिकोण रूढ़िवादी अथवा संकीर्ण न होकर पूर्णत: उदार था। उन्होंने विश्व के विभिन्न संविधानों से अच्छी बातों को ग्रहण कर उनके आदर्शों एवं सिद्धान्तों को भारतीयकरण किया।
संविधान सभा द्वारा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया भी अनोखे रूप में प्रस्तुत की गयी है। इसमें एक ओर संघवाद तो दूसरी ओर ब्रिटिश संसदीय जनतन्त्र को अपनाया गया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि संविधान सभा ने भारत के लिए एक जनतान्त्रिक संविधान का निर्माण किया जो विश्व के लिए एक आदर्श है।
प्रश्न 2.
कैबिनेट मिशन क्या था? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कैबिनेट मिशन:
ब्रिटेन में क्लीमेंट एटली की सरकार ने ब्रिटिश संसद में 19 फरवरी, 1946 को यह घोषणा की थी कि ब्रिटेन के कैबिनेट मन्त्रियों का एक विशेष मिशन भारत भेजा जायेगा, जो भारत की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। इस मिशन को मुख्य उद्देश्य भारत को यथाशीघ्र एवं पूर्ण स्वतन्त्रता की प्राप्ति में सहायता करना होगा। इस कैबिनेट मिशन के अध्यक्ष भारत सचिव लॉर्ड पैथिक लारेन्स तथा सर स्टेफर्ड क्रिप्स एवं ए. वी. एलेक्जेण्डर इसके सदस्य थे।
कैबिनेट मिशन 29 मार्च, 1946 को भारत पहुँचा और इसने 16 मई, 1946 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस मिशन के प्रस्तावों में संघीय व्यवस्था, संविधान सभा, सत्ता हस्तान्तरण एवं अन्तरिम सरकार से सम्बन्धित मुद्दों पर व्यापक सुझाव प्रस्तावित किया गए। इन प्रस्तावों में पाकिस्तान निर्णय की माँग को अस्वीकार किया गया। कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार नवम्बर, 1946 को संविधान सभा का गठन हुआ।
प्रश्न 3.
संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों का नाम लिखिए।
उत्तर:
संविधान सभा के प्रमुख सदस्य:
संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों में पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, गोपाल स्वामी आयंगर, के. एम. मुंशी, पट्टाभिसीतारमैया, मौलाना अबुल कलाम आजाद, श्रीमती दुर्गाबाई, ठाकुरदास भार्गव, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पी. के. सेन, पुरुषोत्तम दास टण्डन, आचार्य जे. बी. कृपलानी, श्रीमती सरोजनी नायडू एवं गोविन्द बल्लभ पन्त आदि प्रमुख थे।
प्रश्न 4.
भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947 द्वारा संविधान सभा की स्थिति में कौन-कौन-से मुख्य परिवर्तन हुए?
उत्तर:
भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947 द्वारा संविधान सभा की स्थिति में हुए मुख्य परिवर्तन:
संविधान सभा से अलग रहने वाली देशी रियासतों के प्रतिनिधि भी धीरे-धीरे इसमें सम्मलित होने लगे तथा भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947 ने संविधान सभा की स्थिति में निम्न मुख्य परिवर्तन हुए –
- पाकिस्तान में सम्मलित हो चुके क्षेत्रों में मुस्लिम लीग के सदस्य संविधान सभा से अलग हो गए, इस कारण प्रारम्भ में तय संख्या 389 सीटों की बजाय 299 तक रह गयी। इसमें ब्रिटिश प्रान्तों को 299 एवं देशी रियातसों के 70 सदस्य रह गए।
- संविधान सभा को पूरी तरह सम्प्रभु बनाते हुए ब्रिटिश संसद में पूर्व में बने कानूनों को बदलने, संशोधन करने या रद्द करने का अधिकार दिया।
- संविधान सभा को विधायिका की शक्तियाँ भी दी गयीं। संविधान सभा की बैठक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एवं विधायिका की बैठक की अध्यक्षता जी. वी. मावलंकर करते थे। यह सभा 26 नवम्बर, 1949 तक दोनों कार्य करती रही।
प्रश्न 5.
उद्देश्य प्रस्ताव क्या था? बताइए।
अथवा
उद्देश्य प्रस्ताव के प्रमुख प्रावधान क्या थे?
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव:
संविधान सभा में संविधान के निर्माण का प्रस्ताव ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ कहलाया। यह प्रस्ताव 13 दिसम्बर, 1946 को पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के समक्ष रखा था जिसके प्रारूप में भारत के भावी प्रभुत्व सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी थी। यह प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 को पारित हो गया। उद्देश्य प्रस्ताव के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
- संविधान निर्माण करना,
- भारत संघ का निर्माण करना,
- संविधान की सीमाओं का निर्धारण करना,
- सत्ता का स्रोत जनता को बनाना,
- सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समता की स्थापना करना,
- अल्पसंख्यकों एवं पिछड़े वर्गों, जनजाति क्षेत्रों, दलितों एवं अन्य वर्गों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त संरक्षण की व्यवस्था करना,
- सम्प्रभुता की रक्षा करना,
- विश्वशान्ति और मानवता के कल्याण में योगदान देना आदि।।
प्रश्न 6.
उद्देश्य प्रस्ताव का महत्व बताइए।
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव का महत्व:
पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में प्रस्तुत किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के अनुसार संविधान सभा ने भारत को एक स्वतन्त्र और सम्प्रभुता सम्पन्न गणराज्य बनाने का निश्चय किया। इस गणराज्य में राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक समानता होगी। इसमें संस्थाएँ बनाने एवं कोई भी व्यापार करने की स्वतन्त्रता होगी। भाषण, प्रकाशन, धर्म या मत अपनाने आदि की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी। अल्पसंख्यकों, दलितों, पिछड़े वर्गों एवं जनजातीय लोगों को पूर्ण संरक्षण प्राप्त होगा। इस प्रकार उद्देश्य प्रस्ताव में भारत के भावी संविधान की रूपरेखा निश्चित की गयी।
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना निम्न प्रकार से है –
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26.11.1949 ई. (मिती मार्गशीष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
प्रश्न 8.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित शब्द लोकतन्त्रात्मक गणराज्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक गणराज्य का अर्थ होता है कि उस राज्य में जनता की सरकार, जनता के द्वारा, जनता के लिए होनी चाहिए। सरकार जनता द्वारा निर्वाचित हो, लोकतन्त्र का विचार भारत के संविधान में सार्वभौम वयस्क मताधिकार चुनाव, मौलिक अधिकारों की गारन्टी एवं उत्तरदायी शासन के रूप में परिलक्षित हैं। भारत में संसदीय लोकतन्त्र प्रणाली को अपनाया गया।
गणतन्त्र का अर्थ है भारत का राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित होता है। भारत में कोई भी पद उत्तराधिकार पर आधारित नहीं है। समस्त पद जनता के लिए उपलब्ध है। संविधान लागू होने से पूर्व भारत ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के एक सदस्य के रूप में ब्रिटिश सामग्री के सर्वोच्च अधिपत्य को स्वीकार करता था किन्तु 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के साथ ही भारत राज्य का अध्यक्ष, एक राष्ट्रपति है, जो परोक्ष रूप से निर्वाचित होता है।
प्रश्न 9.
ग्रेनविल ऑस्टिन के अनुसार संविधान सभा द्वारा अपनाए गए किन्हीं दो सिद्धान्तों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ग्रेनविल ऑस्टिन के अनुसार संविधान सभा द्वारा अपनाए गये सिद्धान्त:
ग्रेनविल ऑस्टिन के अनुसार संविधान सभा द्वारा तीन सिद्धान्त अपनाये गये –
- सर्वसम्मतता,
- समायोजन एवं
- परिवर्तन के साथ चयन।
(1) सर्वसम्मतता अथवा सहमति:
संविधान सभा एवं समितियों की बैठकों में बात मनवाने के लिए संख्याबल के स्थान पर गुणवत्ता पर अधिक बल दिया जाता था। इस प्रकार अनुनय द्वारा समझा-बुझाकर बहुमत अपनी बात की श्रेष्ठता से अल्पमत को समझाकर उसकी सहमति अर्जित की जाती थी।
(2) समायोजन:
संविधान सभा ने समायोजन के सिद्धान्त का अनुकरण करते हुए परस्पर विरोधी सिद्धान्तों को संविधान में एक साथ जगह होकर इनमें समन्वय स्थापित किया गया है। मूल अधिकारों तथा संघात्मक एवं संसदीय प्रणालियों के सम्बन्ध में ऐसा ही समायोजन किया गया है।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान सभा द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए किसी एक़ निर्णय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संघीय व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान:
संघीय ढाँचे के सम्बन्ध में संविधान सभा में विचार – विमर्श करने के लिए एक संघीय शक्ति का गठन किया गया। इस शक्ति के अध्यक्ष पं. जवाहर लाल नेहरू थे। इस संघ की प्रथम बैठक सन् 1947 में हुई जिसमें भारत के संघीय ढाँचे के सम्बन्ध में विचार – विमर्श प्रारम्भ हुआ जो नवम्बर 1949 में जाकर पूर्ण हुआ।
संघीय ढाँचे से सम्बन्धित प्रावधान में इस प्रकार के निश्चय करने थे जिससे एक ओर तो संघ के प्रतिनिधियों को और दूसरी ओर प्रान्तीय सरकारों के प्रतिनिधियों को सन्तुष्ट किया जा सकता है। संघवाद जैसी व्यवस्था को प्रभावकारी तरीके से क्रियान्वित नहीं किया जा सकता था।
प्रश्न 11.
संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था के सम्बन्ध में किस प्रकार समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया?
उत्तर:
संघात्मक एवं एकात्मक व्यवस्था के सम्बन्ध में समायोजन का सिद्धान्त:
देश के लिए शासन चलाने हेतु संघात्मक और एकात्मक शासन प्रणालियों की एक साथ स्थापना हेतु संविधान सभा में संविधान निर्माताओं ने समायोजन के सिद्धान्त को काम में लिया। इस सिद्धान्त के तहत् संघात्मक और एकात्मक शासन प्रणालियाँ एक-दूसरे की विरोधी कही जाती हैं। लेकिन भारत में इसे परिस्थितियों के अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया। भारतीय संविधान ने संघात्मक प्रणाली और एकात्मक प्रणाली को एक साथ सुनिश्चित किया है।
प्रश्न 12.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ग्रहण करने के प्रश्न को संविधान सभा में किस प्रकार सुलझाया गया?
उत्तर:
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ग्रहण करने का प्रश्न:
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ग्रहण करने के प्रश्न पर संविधान निर्माताओं ने समायोजन के सिद्धान्त को काम में लेकर सुलझाया। सन् 1946 में संविधान सभा ने यह निश्चय किया था कि भारत एक गणतन्त्र होगा। गणतन्त्र से आशय है जहाँ राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होता है। इसके बाद 1949 में संविधान सभा ने ही यह निश्चय किया कि भारत एक ऐसे संगठन – राष्ट्रमण्डल का सदस्य होगा। जिसका अध्यक्ष ब्रिटिश राजा है। इस प्रकार भारत वह पहला देश बना जिसके इन दो विरोधी व्यवस्थाओं यथा-गणतन्त्र और राजतन्त्र में मेल स्थापित किया।
प्रश्न 13.
पंचायत व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न को संविधान सभा में किस प्रकार सुलझाया गया?
उत्तर:
पंचायत व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न का समाधान:
संविधान सभा में पंचायत व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न पर दो वर्ग बने हुए थे। एक वर्ग पंचायत व्यवस्था का समर्थक था तो दूसरा वर्ग इसके विरुद्ध था। दूसरी वर्ग प्रत्यक्ष संसदीय शासन प्रणाली चाहता था। संविधान सभा ने समायोजन का सिद्धान्त अपनाकर इस प्रश्न पर हो रहे विवाद को समाप्त किया। पंचायत व्यवस्था को अलग स्तर पर लागू किया।
संघ अर्थात् केन्द्र सरकार एवं प्रान्त अर्थात् राज्य सरकारों के सम्बन्ध में केन्द्रीयकरण के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया और प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था को स्वीकार किया गया। प्रान्तीय सरकारों को नीचे के स्तर पर विकेन्द्रीकरण व्यवस्था को स्वीकार किया गया और इस सम्बन्ध में व्यवस्थापन का कार्य प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं के क्षेत्राधिकार में रखा गया तथा राज्यनीति के निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत अनुच्छेद, 40 को सम्मिलित किया गया, जिसके अन्तर्गत पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया।
प्रश्न 14.
संविधान सभा में मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान में समायोजन का सिद्धान्त किस प्रकार कारगर रहा? बताइए।
उत्तर:
संविधान सभा में मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान सम्बन्धी प्रश्न का समाधान:
संविधान सभा में मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान सम्बन्धित विषय पर अलग-अलग दृष्टिकोण थे। इनका समाधान समायोजन सिद्धान्त द्वारा किया गया। सरदार बल्लभ भाई पटेल के अनुसार मूल अधिकारों से सम्बन्धित सभा में भिन्न दृष्टिकोण थे। एक दृष्टिकोण के समर्थकों का मत था कि जितने अधिक अधिकारों का समावेश संविधान के सम्भव हो, किया जाना चाहिये।
इन अधिकारों का कार्यान्वयन न्यायालयों के द्वारा सीधे किया जा सकता है। दूसरे दृष्टिकोण के मानने वालों का मत था कि मूल अधिकारों को कुछ मुख्य अधिकारों तक ही सीमित रखना चाहिए। जो बातें बहुत ही आवश्यक हैं केवल उन्हीं को मौलिक माना जाना चाहिए। इन दोनों दृष्टिकोण के बीच बहुत विवाद हुआ अन्त में समायोजन के सिद्धान्तों के अनुसार सुलझाया लिया गया।
प्रश्न 15.
संविधान सभा में भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में हुए विवाद को किस प्रकार सुलझाया गया।?
उत्तर:
राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में प्रावधान सम्बन्धित विवाद:
राष्ट्रपति के निर्वाचन की व्यवस्था के सम्बन्ध में संविधान सभा में बहुत विवाद था। इस बारे में भी दो दृष्टिकोण मौजूद थे। संविधान सभा के कुछ सदस्यों का मत यह था कि राष्ट्रपति का वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए, दूसरी ओर कुछ अन्य संविधान सभा के सदस्य उसका निर्वाचन संसद के दोनों सदनों द्वारा निर्मित निर्वाचक मण्डल के द्वारा चाहते थे।
अन्त में समस्या के समाधान हेतु समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया। जिसके तहत् दोनों दृष्टिकोणों को मानने वालों के बीच एक समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में संसद के निर्वाचित सदस्यों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को रखा गया।
प्रश्न 16.
“भारतीय संविधान सभा का दृष्टिकोण कुछ विषयों में परिवर्तन के साथ चयन के सिद्धान्त पर आधारित था।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान सभा के समक्ष संविधान बनाते समय अनेक प्रश्न आये। कई प्रश्नों का समाधान सर्वसम्मति से किया गया तो कई प्रश्नों के समाधान में समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया। संविधान बनाते समय संविधान सभा का दृष्टिकोण कुछ विषयों में परिवर्तन के साथ चयन’ के सिद्धान्त पर आधारित था। संविधान सभा के सदस्यों का दृष्टिकोण रूढ़िवादी अथवा संकीर्ण न होकर पूर्णत: उदार था और वे संसार के किसी भी संविधान की अच्छी बातें ग्रहण करने से नहीं हिचकते थे।
संविधान, निर्माता एक ऐसे व्यावहारिक संविधान का निर्माण करना चाहते थे जिसमें ब्रिटेन, आयरलैण्ड, कनाडा, सं. रा. अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के संविधानों की श्रेष्ठ व्यवस्थाओं का भारत की परिस्थितिनुकूल समावेश किया जा सके। उन्होंने विदेशी संविधान से लिए गए विभिन्न आदर्शों और सिद्धान्तों का भारतीयकरण किया। इन सबका चयन करने में संविधान निर्माताओं को, भविष्य की सम्भावनाओं को ध्यान में रखना पड़ा। भारतीय संविधान के निर्माता इसमें सफल भी हुए हैं।
प्रश्न 17.
संविधान सभा द्वारा निश्चित किए गए आदर्श और उनकी प्राप्ति के साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संविधान सभा द्वारा निश्चित किए गए आदर्श और उनकी प्राप्ति के साधन:
संविधान सभा ने अपने समक्ष निम्न चार आदर्श रखे –
- जनता का प्रभुत्व तथा भारत की स्वतन्त्रता का उल्लेख।
- व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा सामाजिक-आर्थिक न्याय का समन्वये।
- राष्ट्र की सुरक्षा व सांस्कृतिक बहुलवाद पर बल।
- विश्व समुदाय के साथ सहयोग, सहअस्तित्व व शान्ति के आदर्श को अपनाना।
प्राप्ति के साधन:
उपर्युक्त आदर्शों को प्राप्त करने के लिए जो व्यवस्था अपनायी गयी उसके लक्षण निम्नलिखित हैं –
- सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य।
- संघीय व संसदीय व्यवस्थायें।
- अधिकारों व स्वतन्त्रताओं का उल्लेख।
- पंथ-निरपेक्ष राज्य
- स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था।
- लोकहितकारी राज्य की व्यवस्था।
प्रश्न 18.
संविधान सभा की प्रमुख समितियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ:
संविधान सभा के विभिन्न कार्यों के कुशलतम् सम्पादन हेतु 8 बड़ी समितियों एवं लगभग 15 छोटी समितियों का गठन किया गया। प्रमुख समितियों निम्नलिखित हैं –
- संघ शक्ति समिति।
- संघीय संविधान समिति।
- प्रान्तीय संविधान समिति।
- मौलिक अधिकारों एवं अल्पसंख्यकों सम्बन्धित परामर्श समिति।
- प्रक्रिया नियम समिति।
- प्रारूप समिति।
- राज्यों के लिए समिति।
- संचालन समिति।
प्रश्न 19.
प्रारूप समिति के प्रमुख सदस्यों के नाम लिखिए। अथवा संविधान की प्रारूप समिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान की प्रारूप समिति:
प्रारूप समिति संविधान के निर्माण की दिशा में गठित समितियों में एक प्रमुख स्थान रखती थी। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में 19 अगस्त, 1947 को समिति का गठन हुआ। इस समिति का मुख्य कार्य परामर्श शाखा द्वारा तैयार किये गये संविधान का अवलोकन कर संविधान का प्रारूप तैयार करने और उनको समाविष्ट करके विचार के लिए संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत करना था।
इस समिति के द्वारा भारत के संविधान का प्रारूप तैयार कर फरवरी 1948 ई. को संविधान सभा के अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रारूप समिति के प्रमुख सदस्य निम्नलिखित थे –
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर।
- एन. गोपाल स्वामी आयंगर।
- अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर।
- डॉ. के. एम. मुंशी (एकमात्र काँग्रेस सदस्य)।
- सैयद मोहम्मद सादुल्ला।
- एन. माधवराव (बी. एल. मित्र के अस्वस्थ होने पर मनोनीत)
- टी. टी. कृष्णामाचारी (1948 में डी. पी. खेतान के मृत्यु पर मनोनीत)।
प्रश्न 20.
“संविधान निर्माण प्रक्रिया की कुछ विद्वानों द्वारा की गयी आलोचनाओं को बताइए।
उत्तर:
संविधान निर्माण की प्रक्रिया की कुछ विद्वानों ने आलोचनाएँ की जो इस प्रकार हैं –
- उनका मत था किसंविधान को एक साधारण विधेयक की प्रक्रिया को अपनाकर पारित किया गया था।
- संविधान सभा के अनेक संसाधनों को प्रस्तुत तक नहीं किया जा सका एवं जो प्रस्तुत किए गए उनमें से अधिकांश पर विचार नहीं हुआ।
- संविधान की प्रारूप समिति की स्थिति स्पष्ट नहीं थी। वस्तुत: काँग्रेस के प्रमुख सदस्य संविधान के प्रमुख उपबन्धों पर चर्चा कर निर्णय कर लिया करते थे तथा उसी निर्णय की पुष्टि संविधान सभा द्वारा कर दी जाती थी।
- कुछ अन्य विद्वानों के मतानुसार संविधान सभा का दृष्टिकोण विश्व के संविधानों से उधार लेने का था। उसमें कोई मौलिकता नहीं है।
RBSE Class 11 Political Science Chapter 21 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में संविधान सभा के निर्माण की माँग के विकास क्रम को बताइए।
उत्तर:
भारत में संविधान सभा के निर्माण की माँग का विकास क्रम भारत की संविधान सभा के निर्माण की माँग एक आकस्मिक माँग नहीं थी वरन् यह एक स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ-साथ विकसित हुआ एक चिन्तन था। भारत में संविधान सभा एक प्रकार से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता की माँग थी। भारत में संविधान सभा के निर्माण की माँग का विकास क्रम निम्नलिखित है –
1. संविधान सभा के सिद्धान्त का प्रथम विचार:
संविधान सभा का प्रथम विचार राष्ट्रीय आन्दोलन के अतिवादी युग के नेता बाल गंगाधर तिलक ने प्रस्तुत किया था। इनके नेतृत्व में सन् 1895 तैयार किये गये एक स्वराज्य विधेयक में यह बात प्रस्तुत की गयी।
2. महात्मा गाँधी के विचार:
महात्मा गाँधी ने 5 फरवरी, 1922 को यह विचार व्यक्त किया कि स्वराज्य ब्रिटिश संसद को उपहार नहीं होगा यह भारत की पूर्ण आत्माभिव्यक्ति की घोषणा होगा। यह इच्छा भी नौकरशाही द्वारा नहीं, भारतीय जनता के स्वतन्त्रतापूर्वक चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त होगी। भारत का राजनैतिक भविष्य भारतीय स्वयं निर्धारित करेंगे। महात्मा गाँधी की इस माँग ने भारतीय नेताओं को भारतीय संविधान की माँग के लिए उत्प्रेरित किया।
3. श्रीमती एनीबेसेन्ट की पहल:
सन् 1922 में ही श्रीमती एनीबेसेन्ट की पहल पर केन्द्रीय विधानमण्डल के दोनों सदनों के सदस्यों की एक संयुक्त बैठक शिमला में आयोजित की गयी जिसमें संविधान निर्माण के लिए एक सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया गया। जनवरी 1925 में हुए सर्वदलीय सम्मेलन में ‘कॉमनवेल्थ ऑफ इण्डिया बिल’ प्रस्तुत किया। गया, जो संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रथम प्रमुख प्रयास था।
4. पं. मोती लाल नेहरू द्वारा संविधान सभा के निर्माण की माँग:
सन् 1924 में पं. मोती लाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष संविधान सभा के निर्माण की माँग प्रस्तुत की। ब्रिटिश सरकार का मत था कि भारतीय जातिगत, धार्मिक विद्वेष एवं पारस्परिक मतभेदों के कारण सर्वसम्मत रूप से स्वीकृत संविधान का निर्माण नहीं कर सकते। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने ब्रिटिश सरकार की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया तथा एक सर्वदलीय सम्मेलन, राष्ट्रव्यापी नेता डॉ. एम. ए. अंसारी के नेतृत्व में, 28 फरवरी, 1928 को आयोजित किया। इसमें 29 संगठनों ने भाग लिया। सभी दलों द्वारा यह निर्णय किया गया कि पूर्ण उत्तरदायी शासन ही भारत की संवैधानिक समस्या के समाधान का एकमात्र आधार हो सकता है।
5. सर्वदलीय सम्मेलन एवं नेहरू रिपोर्ट:
19 मई, 1928 को बम्बई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में “भारत के संविधान के सिद्धान्त निर्धारित करने के लिए मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। 10 अगस्त, 1928 को पेश की गयी समिति की रिपोर्ट ‘नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह भारतीयों द्वारा अपने देश के लिए सर्वांगपूर्ण संविधान बनाने का प्रथम प्रयास था।
उल्लेखनीय है कि संसद के प्रति उत्तरदायी सरकार, अदालतों द्वारा लागू कराए जा सकने वाले मूल अधिकार, अल्पसंख्यकों के अधिकार सहित मोटे-तौर पर जिस संसदीय व्यवस्था की संकल्पना 1928 के नेहरू रिपोर्ट में की गयी थी उसे लगभग ज्यों को त्यों भारतीय संविधान में अपनाया गया।
6. साम्यवादी नेता एम. एन. राय के विचार:
संविधान सभा के विचार का औपचारिक रूप से प्रतिपादन साम्यवादी नेता एम. एन. राय द्वारा किया गया जिसे सन् 1934 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने मूर्तरूप प्रदान किया।
7. पं. जवाहर लाल नेहरू के प्रयास:
सन् 1934 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के निर्माण के एम. एन. राय के विचार को मूर्तरूप प्रदान किया, नेहरू जी ने कहा था कि यदि यह स्वीकार किया जाता है कि भारत के भाग्य की एकमात्र निर्णायक भारतीय जनता है, तो भारतीय जनता को अपना संविधान निर्माण करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। 1938 ई. में पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि इस संविधान सभा का गठन निर्वाचित संविधान सभा के माध्यम से वयस्क मताधिकार के द्वारा किया जाएगा तथा इसमें किसी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा।
8. काँग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा की माँग के प्रस्ताव:
18 दिसम्बर, 1936 को काँग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित कर घोषणा की कि, “किसी बाहरी सत्ता द्वारा थोपा गया कोई भी संविधान भारत स्वीकार नहीं करेगा। इसके पश्चात् 1937 एवं 1938 के काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशनों में भी संविधान सभा की माँग को दोहराया गया। 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के बाद संविधान सभा की माँग को 17 सितम्बर, 1939 को काँग्रेस कार्यकारिणी द्वारा जारी किये गये, वक्तव्य में दोहराया गया।
9. अंगस्त प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार द्वारा संविधान सभा की माँग को सैद्धान्तिक रूप से स्वीकार करना:
काँग्रेस की संविधान सभा के गठन की माँग की उपेक्षा ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती रही, किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध की आवश्यकताओं एवं राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय दबावों के कारण ब्रिटिश सरकार इस बात पर सहमत हो गयी कि भारतीयों द्वारा भारतीय संविधान का निर्माण अपेक्षित है।
6 अगस्त, 1940 के ‘अगस्त वक्तव्य’ में ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा की माँग को पहली बार आधिकारिक रूप से स्वीकार किया, भले यह स्वीकार किया गया कि संविधान निर्माण मुख्यतया । भारतीयों का दायित्व है लेकिन यह काम युद्ध के बाद ही शुरू हो सकेगा। इस दौरान गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी परिषद् में कुछ और भारतीय प्रतिनिधि शामिल किए जायेंगे।
10. क्रिप्स योजना:
सन् 1942 ई. में ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स योजना के माध्यम से यह स्वीकार किया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा और इस प्रकार गठित संविधान सभा भारतीय संविधान निर्माण करेगी। इस क्रिप्स योजना के अन्तर्गत अन्य व्यवस्थाएँ की गयी र्थी जिन्हें भारतीयों द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया और क्रिप्स योजनाओं की व्यवस्थाएँ लागू न की जा सकीं।
11. कैबिनेट मिशन प्रस्ताव:
ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री एटली ने 1946 में एक कैबिनेट मिशन की नियुक्ति की जिसके द्वारा भारतीय संविधान सभा के गठन के सम्बन्ध में प्रस्ताव दिये गये। इन प्रस्तावों को स्वीकार कर नवम्बर 1946 को भारत के संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा का गठन हुआ।
प्रश्न 2.
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार संविधान सभा के गठन की योजना को बताइए।
अथवा
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार गठित संविधान सभा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार संविधान सभा का गठन। 24 मार्च, 1946 को 3 सदस्यीय कैबिनेट मिशन नई दिल्ली पहुँचा। इस मिशन ने 16 मई, 1946 को अपनी योजना प्रकाशित की। इसमें कहा गया कि वर्तमान परिस्थितियों में वयस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा का गठन असम्भव है।
अतः 1935 ई. के भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत गठित व्यवस्थापिका को ही प्रान्तीय विधानसभा का निर्वाचनकारी संस्थाओं के रूप में उपयोग किया जाए। मन्त्रिमण्डल / कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार नवम्बर 1946 को संविधान सभा का गठन हुआ जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –
1. कैबिनेट योजना के अनुसार संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होने थे जिसमें से 296 में ब्रिटिश भारत के क्षेत्रों के प्रतिनिधि (292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि एवं 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि हों। योजना के अनुसार ब्रिटिश भारत को आवंटित 296 में से 292 सदस्यों का चयन 11 गवर्नरों प्रान्त (मद्रास, बॉम्बे, असम, संयुक्त प्रान्त, बिहार, मध्य प्रान्त, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त, सिन्ध, बंगाल) में से तथा चार का चयन मुख्य आयुक्तों के प्रान्त (दिल्ली, अजमेर, मोरवाड़ा एवं कुर्ग-ब्रिटिश बलू बिस्तर) में से किया जाना चाहिए।
इनमें ब्रिटिश भारत के लिए आवंटित 296 सीटों का चुनाव जुलाई – अगस्त, 1946 को हुआ इसमें भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 एवं छोटे समूह को 15 स्थान (पाँच भिन्न-भिन्न दलों) को मिलें । देशी रियासतों ने स्वयं को, इन चुनावों से दूर रखा। प्रारम्भ में सभी 93 सीटें रिक्त रहीं लेकिन धीरे-धीरे इन रियासतों के प्रतिनिधियों का मनोनयन भी हो गया और वे संविधान सभा में शामिल हो गये।
2. समस्त प्रान्त एवं रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में लगभग 10 लाख पर एक सीट आवंटित की जानी थी।
3. प्रत्येक ब्रिटिश प्रान्त को आवंटित की गयी सीटों का निर्धारण मुस्लिम, केवल पंजाब में सिख एवं अन्य विशेष समुदाय के बीच में उनकी जनसंख्या के अनुपात से किया जाना था।
4. प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधियों का चुनाव प्रान्तीय असेम्बली में इस समुदाय के सदस्यों का एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से समानुपातिक प्रतिनिधित्व तरीके से मतदान किया जाना था।
5. देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का मनोनयन रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया जाना था।
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
संविधान निर्मात्री सभा के संगठन को बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया:
24 मार्च, 1946 को 3 सदस्यीय कैबिनेट मिशन नई दिल्ली पहुँचा। इस मिशन ने 16 मई, 1946 को अपनी योजना प्रकाशित की। इसमें कहा गया कि वर्तमान परिस्थितियों में वयस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा का गठन असम्भव है। अत: 1935 ई. के भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत गठित व्यवस्थापिका को ही प्रान्तीय विधानसभा का निर्वाचनकारी संस्था के रूप में उपयोग किया जाए। मन्त्रिमण्डल /कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव के अनुसार नवम्बर 1946 को संविधान सभा का गठन किया जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –
कैबिनेट योजना के अनुसार, संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होते थे जिसमें से 296 में ब्रिटिश भारत के क्षेत्रों के प्रतिनिधि (292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि एवं 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि) तथा 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि हों। योजना के अनुसार –
- प्रत्येक प्रान्त द्वारा भेजे गए सदस्यों की संख्या उस प्रान्त की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की जाए। 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि चुना जाए।
- प्रान्तों को उपरोक्त आधार पर संविधान सभा में दिए गए स्थान, उनमें निवास करने वाले सम्प्रदायों के आधार पर विभाजित कर दिए जाएँ। मतदाताओं के प्रमुख वर्ग होने थे – सामान्य एवं मुस्लिम और केवल पंजाब में सिख।
- विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर चुन जाने थे। इस चुनाव में उसी सम्प्रदाय के लोगों को भाग लेना था।
- देशी रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिए जाने की व्यवस्था थी, किन्तु उनके प्रतिनिधित्व के निर्वाचन का आधार तथा स्वरूप ब्रिटिश भारत के प्रान्तों से संविधान सभा के लिए चुने गए सदस्यों की समिति और देशी रियासतों की ओर से नियुक्त समिति के रीच पारस्परिक विचार से निश्चय किया जाना था।
- इस योजना में प्रान्तों के अलग संविधानों की व्यवस्था की गयी।
संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया:
संविधान सभा का गठन दो चरणों में पूर्ण हुआ –
प्रथम चरण:
प्रथम चरण में, जुलाई 1946 में प्रान्तों के निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए। इसमें काँग्रेस को 208 तथा मुस्लिम लीग को 73 स्थान प्राप्त हुए। 20 नवम्बर, 1946 को वायसराय ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को आमन्त्रित किया कि वे 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक में उपस्थित हों। मुस्लिम लीग ने पहले तो मिशन योजना को स्वीकारा लेकिन इसी बोच ब्रिटिश सरकार ने 6 दिसम्बर, 1946 को एक वक्तव्य जारी किया, जिसके सुदूरव्यापी परिणाम निकले।
लीग ने अलंग पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा की माँग करते हुए संविधान सभा का बहिष्कार किया। 3 जून, 1947 की माउण्टबेटन योजना के फलस्वरूप मुस्लिम बहुल क्षेत्र भारत से निकल गए। इसके कारण जिस योजना के आधार पर संविधान सभा अपनी प्रथम बैठक के समय से काम करती रही। उसके प्रक्रियागत और सारभूत, दोनों भागों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया।
द्वितीय चरण:
द्वितीय चरण में माउण्टबेटन योजना के अनुसार देश का बँटवारा हो जाने के बाद भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य – संख्या 324 रह गयी जिसमें 235 स्थान प्रान्तों के लिए और 89 देशी रियासतों के लिए थे। पंजाब और बंगाल के जो भाग भारत में रह गए थे उनके लिए नये सिरे से निर्वाचन हुए और उनके निर्वाचित सदस्यों ने 14 जुलाई, 1947 को संविधान सभा में स्थान ग्रहण किया।
देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के चुनाव की पद्धति के सम्बन्ध में यह तय हुआ कि रियासतें कोशिश करेंगी कि निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या कुल सदस्य संख्या का 50 प्रतिशत हो जाये। देशी रियासतों के लिए संविधान सभा में निर्धारित स्थानों का स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद जनसंख्या के अनुपात में कई बार बँटवारा हुआ।
26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा ने अपना संविधान निर्माण का महान् कार्य पूरा किया। उल्लेखनीय है कि हैदराबाद के 16 प्रतिनिधि इसमें अन्त तक शामिल नहीं हुए। इस प्रकार प्रान्तों के लिए प्रति 235 प्रतिनिधियों के अलावा देशी रियासतों के लिए केवल 73 प्रतिनिधि ही संविधान सभा में वस्तुत: सम्मिलित हुए। संविधान के अन्तिम मूल मसौदे पर इन्हीं 308 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे।
प्रश्न 4.
भारतीय संविधान का निर्माण किस प्रकार हुआ? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान का निर्माण-संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसम्बर, 1946 को प्रारम्भ हुआ। इसमें डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए थे। इसी अधिवेशन में 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा संविधान निर्माण की यात्रा आरम्भ की।
नेहरू ने कहा कि, “इस प्रस्ताव में हमारी वे आकांक्षाएँ व्यक्त की गयी हैं, जिनके लिए हमने इतने कठोर संघर्ष किए हैं, संविधान सभा इन्हीं उद्देश्यों को लेकर हमारे संविधान का निर्माण करेगी।” उद्देश्य प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।
समितियाँ:
उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने कुछ समितियाँ नियुक्त कीं। प्रमुख समितियाँ थीं-संघ संविधान समिति, प्रान्तीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, मूल अधिकारों एवं अल्पसंख्यकों सम्बन्धी समिति आदि। इन समितियों ने अपने – अपने विषय से सम्बन्धित सभी बातों पर गहन विचार-विमर्श करके संविधान सभा को अपनी – अपनी रिपोर्ट भेज दी। इस बीच 3 जून, 1947 को माउण्टबेटन योजना की घोषणा की जिससे सम्पूर्ण मानचित्र ही बदल गया। देश का विभाजन होना था
और दो अलग-अलग संविधान सभाएँ होनी थीं। इस विभाजन-योजना की संविधान निर्माण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया यह हुई कि संघ संविधान समिति एवं प्रान्तीय संविधान समिति ने निर्णय किया कि भारत एक शक्तिशाली केन्द्र वाला संघ होगा। इसलिए संघ शक्ति समिति ने पुनर्विचार करके अपनी नई रिपोर्ट पेश की। इसमें संघीय विषयों की सूची बढ़ा दी गयी तथा अवशिष्ट शक्तियाँ भी केन्द्र को ही सौंपने का प्रस्ताव रखा। संविधान सभा में इन समितियों की रिपोर्टों पर वाद – विवाद हुआ।
प्रारूप समिति:
29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने ‘प्रारूप समिति’ की नियुक्ति की। डॉ. भीमराव अम्बेडकर इसके अध्यक्ष चुने गए। अन्य सदस्य थे-के. एम. मुन्शी, मोहम्मद सादुल्ला, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, एन. माधवराव एन. गोपाल स्वामी आयंगर एवं टी. टी. कृष्णमाचारी। इस समिति को सलाह के लिए श्री बी. एम. राव को वैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया।
30 अगस्त, 1947 को प्रारूप समिति की पहली बैठक हुई। इसके बाद 141 दिनों तक इस समिति की बैठकें होती रहीं। इन बैठकों में प्रारूप समिति ने विभिन्न समितियों की रिपोर्टो एवं संविधान सभा में हुए वाद-विवाद के आधार पर संविधान का प्रारूप तैयार किया। यह प्रारूप ही भारत के भावी संविधान का आधार बना। इसी वजह से प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारतीय संविधान का जनक’ कहा जाता है।
प्रारूप संविधान:
प्रारूप समिति ने भारत का जो प्रारूप संविधान तैयार किया, वह 21 फरवरी, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष की सेवा में प्रस्तुत किया गया। इसके बाद प्रारूप संविधान प्रकाशित कर दिया गया ताकि उसके सम्बन्ध में देशव्यापी प्रतिक्रिया जानी जा सके। संविधान सभा के कार्यालय में अगले 8 महीनों तक अनेक टिप्पणियाँ, आलोचनाएँ एवं सुझाव प्राप्त हुए। प्रारूप समिति ने इन पर विचार कर प्रारूप संविधान का एक पुनर्मुद्रित संस्करण 26 अक्टूबर, 1948 को अध्यक्ष को सौंप दिया।
संविधान की स्वीकृति:
4 नवम्बर, 1948 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने प्रारूप को संविधान सभा के विचार हेतु प्रस्तुत किया। इसके तीन वाचन हुए, जो निम्नलिखित थे –
- प्रथम वाचन – 4 नवम्बर, 1948 से 9 नवम्बर, 1948 तक प्रारूप संविधान के प्रकाशन के बाद संविधान में संशोधन के लिए अनेक सुझाव प्राप्त हुए और विशिष्ट संस्करण प्रकाशित हुआ।
- द्वितीय वाचन – 15 नवम्बर, 1948 से इस पर खण्डवार विचार-विमर्श शुरू हुआ। यह कार्य 17 अक्टूबर, 1949 तक चला, इस समयावधि में 7653 संशोधन प्रस्ताव आए जिनमें ले 2473 पर ही सभा में चर्चा हुई।
- तृतीय वाचन – 14 नवम्बर, 1949 से विचार शुरू हुआ। यह 26 नवम्बर, 1949 तक चला।
तीन वाचनों की प्रक्रिया से गुजरते हुए 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को ‘अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित किया। संविधान सभा के 11 अधिवेशन एवं 165 बैठक संविधान के निर्माण में कुल मिलाकर 2 वर्ष, 11 माह एवं 18 दिन लगे। इसमें लगभग विश्व के 60 देशों के संविधानों का अवलोकन हुआ और इनके प्रारूप पर 114 दिनों तक विचार किया गया इसके निर्माण में लगभग 64 लाख का व्यय हुआ। संविधान के सभी अनुच्छेदों में संघ के स्थान पर भारत को राज्य का संघ घोषित किया गया। संविधान सभा का 12वाँ अन्तिम अधिवेशन 24 जनवरी, 1950 को हुआ। इस अधिवेशन में सभा ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना।
नए संविधान का श्रीगणेश:
26 नवम्बर, 1949 को अपनाए संविधान में 395 अनुच्छेद 8 अनुसूचियाँ थीं। प्रस्तावना को सबसे अन्त में लागू किया गया। इसके कुछ अनुच्छेद उसी दिन से लागू कर दिये गये। शेष प्रावधान 26 जनवरी के दिन (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में 1930 में 26 जनवरी को प्रथम स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया था) विशेष होने के कारण इसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।
प्रश्न 5.
उद्देश्य प्रस्ताव से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संविधान सभा के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव से अभिप्राय संविधान सभा में संविधान के निर्माण का प्रस्ताव ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ कहलाया। संविधान सभा के अधिवेशन में 13 दिसम्बर, 1946 को पं. जवाहर लाल नेहरू ने यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। इस प्रस्ताव को 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इस प्रस्ताव में भारत के भावी प्रमुख सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी थी।
उद्देश्य प्रस्ताव अथवा संविधान सभा के प्रमुख उद्देश्य संविधान सभा की पहली बैठक इस कारण अनिश्चितता के वातावरण में 9 दिसम्बर, 1946 को प्रारम्भ हुई कि मुस्लिम लीग के सदस्यों ने संविधान सभा की बैठक के बहिष्कार करने की घोषणा की थी। 9 दिसम्बर, 1946 को ही संविधान सभा ने सच्चिदानन्द सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किया लेकिन सभा के सदस्यों द्वारा 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। अपने अध्यक्षीय भाषण।
में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने स्वतन्त्र भारत के आदर्शों पर प्रकाश डाला और नये भारतीय समाज की रूपरेखा के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट किये। संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर, 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किये गये उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई। उद्देश्य प्रस्ताव में निम्नलिखित बातों को सम्मिलित किया गया था –
यह संविधान सभा के उद्देश्य कहलाये –
1. संविधान निर्माण करना:
संविधान सभा यह घोषणा करती है कि इसका उद्देश्य और संकल्प भारत को लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाना है जिसके भावी शासन के लिए संविधान का निर्माण करना है।
2. भारत्त संघ का गठन:
ब्रिटिश भारत के समस्त क्षेत्रों और देशी रियासतों तथा ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासतों को बाहर के सभी क्षेत्रों, जो स्वतन्त्र एवं प्रभुसत्ता सम्पन्न भारत में मिलना चाहते हैं, को मिलाकर भारत संघ का गठन किया जाएगा।
3. सीमाओं का निर्धारण करना:
उक्त समस्त क्षेत्र अपनी वर्तमान सीमाओं सहित संविधान सभा द्वारा निर्धारित की गयी सीमा में या भविष्य में निर्धारित व परिवर्तित सीमा में एक स्वायत्त इकाई होंगे तथा केन्द्र को सौंपे गये कार्यों के अतिरिक्त ये इकाइयाँ अन्य कार्यों का अनुपालन करेंगी।
4. समस्त स्रोत भारत की जनता:
भारतीय संघ, उसकी इकाइयाँ तथा सरकार एवं सरकार के अंगों की स्वतन्त्रता एवं प्रभुत्व सम्पन्नता स्रोत भारत की जनता है।
5. सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय की स्थापना करना:
भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, प्रतिष्ठा, विधि के समक्ष समता, अवसरों की समानता, न्याय तथा सार्वजनिक सदाचार की सीमा में विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, धर्म, उपासना, विश्वास और कार्य स्वतन्त्रता होगी।
6. पिछड़ी जातियों एवं अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण करना:
भारत की पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अल्पसंख्यकों को संविधान में पर्याप्त संरक्षण प्रदान किया जाएगा।
7. प्रभुत्व सम्पन्नता की रक्षा करना:
भारतीय गणतन्त्र के राज्य क्षेत्रों की अखण्डता एवं उसके जल, स्थल एवं वायु क्षेत्र की प्रभुत्व सम्पन्नता की रक्षा सभ्य राष्ट्रों की विधियों के अनुसार की जाएगी।
8. विश्व शान्ति एवं मानव जाति के कल्याण में सहयोग प्रदान करना:
प्राचीन देश भारत ने विश्व में सदैव समुचित तथा सम्मानित स्थान प्राप्त किया है तथा हम सभी भारतवासी विश्व में शान्ति बनाये रखने तथा मानव जाति के कल्याण के कार्यों में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे। उद्देश्य प्रस्ताव के उक्त कथनों पर 8 दिन तक व्यापक विचार-विमर्श किया गया और सर्वसम्मति में 22 दिसम्बर, 1946 को पारित कर दिया गया।
प्रश्न 6.
भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान सर्वसम्मतता से लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान संविधान सभा में सर्वसम्मतता (सर्वसम्मति) से लिये गये निर्णय:
भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान संविधान सभा में सर्वसम्मतता (सर्वसम्मति) से लिये गये निर्णय निम्नलिखित हैं –
(1) संघीय व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान:
संघीय ढाँचे के सम्बन्ध में संविधान सभा में विचार – विमर्श करने के लिए एक संघीय शक्ति का गठन किया गया। इस संघ के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू थे। इस संघ शक्ति की प्रथम बैठक सन् 1947 को हुई जिसमें भारत के संघीय ढाँचे के सम्बन्ध में विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ जो नवम्बर 1949 में जाकर पूर्ण हुआ।
संघीय ढाँचे से सम्बन्धित प्रावधान में इस प्रकार के निश्चिय करने थे जिससे एक ओर तो संघ के प्रतिनिधियों को और दूसरी ओर प्रान्तीय सरकारों के प्रतिनिधियों को सन्तुष्ट किया जा सके। संघवाद जैसी व्यवस्था को दबावकारी तरीके से क्रियान्वित नहीं किया जा सकता था।
(2) भाषा से सम्बन्धित प्रावधान:
संविधान सभा में देश की राष्ट्र भाषा किसे घोषित किया जाए पर भी, विवाद रहा, प्रश्न का भी सर्वसम्मतता से हल निकालने का प्रयास किया गया। संविधान सभा में भाषा के प्रश्न पर निर्णय होने में लगभग 3 वर्ष लग गये। इतनी लम्बी बहस के बाद हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित किया गया।
(3) संसद के सन्दर्भ में प्रावधान:
संसद की स्थापना के सन्दर्भ में संविधान सभा में विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों द्वारा अनेक मत प्रस्तुत किये गये। इन पर संविधान सभा और उसकी विभिन्न समितियों ने सहानुभूति पूर्ण विचार किया और अन्त में संविधान सभा ने संसद के सदनों का नामकरण, द्विसदनात्मक व्यवस्था, कार्यकाल आदि विषयों पर सर्वसम्मति से फैसला लिया।
(4) प्रस्तावना के सन्दर्भ में प्रावधान:
संविधान की प्रस्तावना के सन्दर्भ में भी अनेक मत प्रस्तुत किये गये। इन मतों में एकरूपता का अभाव था। लेकिन अन्त में सर्वसम्मति से प्रारूप समिति द्वारा तैयार किये गये प्रस्तावना के प्रारूप को स्वीकृति प्रदान की गयी।
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान कौन – कौन – से विषयों में समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया? विस्तार से बताइये।
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान अपनाये गये समायोजन के सिद्धान्त से सम्बन्धित विषय:
समायोजन से आशय दो परस्पर विरोधी समझे जाने वाले सिद्धान्तों के समन्वय से है। संविधान सभा में ऐसे अनेक विषय आये जिनमें समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया। प्रमुख विषय निम्नलिखित थे –
1. संघात्मक एवं एकात्मक व्यवस्था से सम्बन्धित विषय:
देश के लिए शासन चलाने हेतु संघात्मक एवं एकात्मक शासन प्रणालियों की एक साथ स्थापना हेतु संविधान सभा में संविधान निर्माताओं ने समायोजन के सिद्धान्त को काम में लिया। इस सिद्धान्त के तहत् संघात्मक और एकात्मक शासन प्रणालियाँ एक – दूसरे की विरोधी कही जाती हैं। लेकिन भारत में इसे परिस्थितियों के अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया। भारतीय संविधान ने संघात्मक प्रणाली एवं एकात्मक प्रणाली को एक साथ सुनिश्चित किया है।
2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ग्रहण करने सम्बन्धित प्रश्न:
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ग्रहण करने के प्रश्न पर संविधान निर्माताओं ने समायोजन के सिद्धान्त को काम में लेकर सुलझाया। सन् 1946 में संविधान सभा ने यह निश्चय किया था कि भारत एक स्वतन्त्र राष्ट्र होगा। गणतन्त्र से आशय है कि जहाँ राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होता है। इसके बाद 1949 में संविधान सभा में ही यह निश्चिय किया गया कि भारत एक ऐसे संगठन-राष्ट्रमण्डल का सदस्य होगा जिसका अध्यक्ष ब्रिटिश राजा है। इस प्रकार भारत वह पहला देश बना जिसने इन दो विरोधी व्यवस्थाओं, यथा-गणतन्त्र और राजतन्त्र में मेल स्थापित किया।
3. पंचायत व्यवस्था सम्बन्धित प्रश्न:
संविधान सभा ने पंचायत व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न पर दो वर्ग बने हुए थे। एक वर्ग पंचायत व्यवस्था का समर्थक था तो दूसरी वर्ग इसके विरुद्ध था। दूसरा वर्ग प्रत्यक्ष संसदीय शासन प्रणाली चाहता था। संविधान सभा ने समायोजन का सिद्धान्त अपनाकर इस प्रश्न पर हो रहे विवाद को समाप्त किया। पंचायत व्यवस्था को अलग स्तर पर लागू किया। संघ अर्थात् केन्द्र सरकार एवं प्रान्त अर्थात् राज्य सरकारों के सम्बन्ध में केन्द्रीकरण के सिद्धान्त को स्वीकार किया और प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था को स्वीकार किया गया।
प्रान्तीय सरकारों के नीचे के स्तर पर विकेन्द्रीकरण व्यवस्था को स्वीकार किया गया और इस सम्बन्ध में व्यवस्थापन का कार्य प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं के क्षेत्राधिकार में रखा गया तथा राज्य नीति के निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत अनुच्छेद 40 को सम्मिलित किया गया, जिसके अन्तर्गत पंचायती राज्य व्यवस्था को लागू किया गया।
4. मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान:
संविधान सभा में मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान सम्बन्ध विषय पर अलग-अलग दृष्टिकोण थे। इनका समाधान समायोजन सिद्धान्त द्वारा किया गया। सरदार बल्लभ भाई पटेल के अनुसार मूल अधिकारों से सम्बन्धित शक्ति में दो दृष्टिकोण थे। एक दृष्टिकोण के समर्थकों का मत था जितने अधिक अधिकारों का समावेश संविधान में सम्भव हो, किया जाना चाहिए।
इन अधिकारों का कार्यान्वयन न्यायालयों के द्वारा सीधे किया जा सकता है। दूसरे दृष्टिकोण के मानने वालों का मत था कि मूल अधिकारों को कुछ मुख्य अधिकारों तक ही सीमित रखना चाहिए। इन दोनों दृष्टिकोण की बीच बहुत विवाद हुआ। अन्त में समायोजन के सिद्धान्तों के अनुसार सुलझा लिया गया।
5. राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी प्रश्न:
राष्ट्रपति के निर्वाचन की व्यवस्था के सम्बन्ध में संविधान सभा में बहुत विवाद था। इस बारे में भी दो दृष्टिकोण मौजूद थे। संविधान सभा के कुछ सदस्यों का मत यह था कि राष्ट्रपति का वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए, दूसरी ओर कुछ अन्य संविधान सभा के सदस्य उसका निर्वाचन संसद के दोनों सदनों द्वारा निर्मित निर्वाचक मण्डल के द्वारा चाहते थे।
अन्त में समस्या के समाधान हेतु समायोजन के सिद्धान्त को अपनाया गया, जिसके तहत् दोनों दृष्टिकोण को मानने वालों के तहत् एक समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार, राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में संसद के निर्वाचित सदस्यों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को रखा गया।
प्रश्न 8.
संविधान सभा की कार्यप्रणाली पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
संविधान सभा की कार्यप्रणाली:
संविधान सभा की कार्यप्रणाली का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है –
संविधान सभा का दृष्टिकोण:
संविधान सभा का दृष्टिकोण एक ऐसे संविधान का निर्माण करना था जो कार्यान्वित किया जा सके। वे किसी मौलिक ग्रन्थ की खोज में नहीं थे। संविधान सभा के दृष्टिकोण को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –
(1) एक समन्वित एवं यथार्थवादी दृष्टिकोण:
संविधान सभा में समस्त प्रकार के दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग, उदाहरण के रूप में-कुछ दक्षिणपंथी, कुछ वामपंथी और कुछ मध्यममार्गी भी थे। अत: एक समन्वित दृष्टिकोण उभर कर आया और एक यथार्थवादी दृष्टिकोण को मान्यता दी गयी।
(2) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता एवं राज्य के अधिकारों के मध्य सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास:
व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व राज्य विषयक अधिकारों के बीच सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया, अत: प्रत्येक मूल अधिकार के साथ उसकी सीमाएँ निश्चित की गयीं।
(3) उदारवादी किन्तु सुरक्षा पर बल देने वाला दृष्टिकोण:
संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों का दृष्टिकोण उदारवादी तथा सुरक्षा को अधिक महत्व देने वाला था अतः संकटकालीन व्यवस्थाओं से सम्बन्धित प्रावधान, निवारक निरोध केन्द्र को अधिक शक्तियाँ देने सम्बन्धी प्रावधान आदि को सम्मिलित किया गया। संविधान निर्माण प्रक्रिया एवं दृष्टिकोण की आलोचना
संविधान निर्माण की प्रक्रिया की कुछ विद्वानों ने आलोचनाएँ की हैं। जो इस प्रकार हैं –
- उनका मानना है कि संविधान को एक साधारण विधेयक की प्रक्रिया को अपनाकर पारित किया गया था।
- संविधान सभा में बहुत से संशोधनों को प्रस्तुत तक नहीं किया जा सका तथा जो प्रस्तुत किए गए उनमें से अधिकांश पर विचार नहीं हुआ।
- संविधान की प्रारूप समिति की स्थिति स्पष्ट नहीं थी। वस्तुत: काँग्रेस के प्रमुख सदस्य संविधान के प्रमुख उपबन्धों पर निर्णय कर लिया करते थे और उसी निर्णय की पुष्टि संविधान सभा द्वारा कर दी जाती थी।
- कुछ विद्वान् यह भी कहते हैं कि संविधान सभा का दृष्टिकोण विश्व के संविधानों से उधार लेने का था। उसमें कोई मौलिकता नहीं है। संविधान सभा की कार्यप्रणाली से सम्बन्धित ग्रेनविल ऑस्टिन के विचार ग्रेनविल ऑस्टिन ने संविधान सभा की निर्णय प्रक्रिया के तीन सिद्धान्तों का विवेचन किया है – सहमति – समायोजन एवं परिवर्तन के साथ चयन।
(1) सहमति या सर्वसम्मति:
संविधान सभा एवं समितियों की बैठकों में बात मनवाने के लिए संख्याबल के स्थान पर गुणवत्ता पर अधिक बल दिया जाता था। इस प्रकार अनुनय द्वारा समझा-बुझाकर बहुमत अपनी बात की श्रेष्ठता से अल्पमत को सन्तुष्ट करता था तथा उसकी सहमति अर्जित की जाती थी । संविधान सभा में सर्वसम्मति से लिए गए निर्णयों में संघीय व्यवस्था, भाषा से सम्बन्धित प्रावधान, संविधान की प्रस्तावना और संसद का उदाहरण दिया जा सकता है, यथा
- संघीय व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान – भारत के संघीय ढाँचे के सम्बन्ध में संविधान सभा की संघ शक्ति समिति ने इस प्रकार के निश्चय किये जिससे एक ओर तो संघ के प्रतिनिधियों को और दूसरी ओर प्रान्तीय सरकारों के प्रतिनिधियों को सन्तुष्ट किया जा सके।
- भाषा से सम्बन्धित प्रावधान – भाषा के सम्बन्ध में भी सर्वमान्य समाधान निकालने का पूरा प्रयास किया गया। संविधान सभा में भाषा के प्रश्न पर निर्णय तीन वर्ष की लम्बी बहस के बाद सर्वसम्मति से किया गया और हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया।
- संसद के सम्बन्ध में – संसदीय संगठन के विभिन्न पहलुओं के सन्दर्भ में संविधान सभा के विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों द्वारा मत प्रस्तुत किए गए। इन पर संविधान सभा और उसकी समितियों ने उदारतापूर्वक विचार किया एवं अन्त में सभा ने संसद के सदनों का नामकरण, द्विसदनात्मक व्यवस्था, कार्यकाल आदि विषयों पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया।
- प्रस्तावना के सम्बन्ध में प्रस्तावना के सम्बन्ध में अनेक प्रस्ताव प्रस्तुत किये गये लेकिन अन्त में सर्वसम्मति से प्रारूप समिति द्वारा तैयार प्रस्तावना को ही स्वीकार कर लिया गया।
(2) समायोजन:
संविधान सभा ने समायोजन के सिद्धान्त का अनुकरण करते हुए परस्पर विरोधी सिद्धातों को संविधान में एक साथ जगह देकर इनमें समन्वय स्थापित किया है। समायोजन से आशय है कि हो परस्पर विरोधी समझे जाने वाले सिद्धान्तों में समन्वय से है। निम्नांकित सिद्धान्त समायोजन के सिद्धान्त की पुष्टि करते हैं
(i) संघात्मक एवं एकात्मक व्यवस्था:
संघात्मक एवं एकात्मक शासन प्रणालियाँ एक दूसरे की विरोधी कही जाती हैं। लेकिन भारत में इसे परिस्थिति के अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया। भारतीय संविधान ने संघात्मक प्रणाली एवं एकात्मक प्रणाली को एक साथ सुनिश्चित किया है।
(ii) राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ग्रहण करने का प्रश्न:
सन् 1996 में संविधान सभा ने यह निश्चय किया था कि भारत एक गणतन्त्र होगा। गणतन्त्र से आशय है जहाँ राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होता है। इसके बाद सन् 1949 में संविधान सभा ने ही यह निश्चय किया कि भारत एक ऐसे संगठन (राष्ट्रमण्डल) का सदस्य होगा जिसका अध्यक्ष ब्रिटिश राजा है। इस प्रकार भारत वह पहला देश था जिसने इन दो विरोधी व्यवस्थाओं में मेल स्थापित किया।
(iii) मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान:
मूल अधिकारों के सम्बन्ध में समिति में दो दृष्टिकोण’ विद्यमान थे। एक दृष्टिकोण के मानने वालों का मत था जितने अधिक अधिकारों का समावेश संविधान में सम्भव हो, किया जाना चाहिये। इन अधिकारियों का कार्यान्वयन न्यायालयों के द्वारा सीधे किया जा सकता है। दूसरे दृष्टिकोण के समर्थकों का मत था कि मूल अधिकारों को कुछ मुख्य अधिकारों तक ही सीमित रखना चाहिए, इन दोनों दृष्टिकोणों के बीच बहुत विवाद हुआ अन्त में समायोजन के सिद्धान्त के अनुसार सुलझा लिया गया।
(iv) राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में:
राष्ट्रपति के निर्वाचन की व्यवस्था के सम्बन्ध में संविधान सभा में काफी विवाद था। इस बारे में भी दो दृष्टिकोण थे, कुछ सदस्यों को मत था कि राष्ट्रपति का वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए। दूसरी ओर कुछ अन्य सदस्य उसका निर्वाचन संसद के दोनों सदस्यों द्वारा निर्मित निर्वाचक मण्डल के द्वारा चाहते थे। अन्त में समायोजन के सिद्धान्त के अनुसार ही दोनों दृष्टिकोणों के बीच एक समझौता हो गया जिसके अनुसार निर्वाचक मण्डल में संसद के निर्वाचित सदस्यों एवं राज्यों की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों को रखा गया।
(3) परिवर्तन के साथ चयन:
संविधान सभा का दृष्टिकोण कुछ विषयों में परिवर्तन के साथ चयन किस सिद्धान्त पर आधारित था। संविधान निर्माता एक ऐसे व्यवहारिक संविधान का निर्माण करना चाहते थे, जिसमें ब्रिटेन, आयरलैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा एवं दक्षिण अफ्रीका आदि देशों के संविधानों की श्रेष्ठ व्यवस्थाओं का भारत की परिस्थितिनुकूल समावेश किया जा सके। उन्होंने विदेशी संविधानों से लिए गए विभिन्न आदर्शों एवं सिद्धान्तों का भारतीयकरण किया। इन सबका चयन करने में संविधान निर्माताओं को भविष्य को भी ध्यान में रखना पड़ा। भारतीय संविधान के निर्माता इसमें सफल भी हुए हैं। संविधान की संशोधन प्रणाली परिवर्तन के साथ चयन’ के सिद्धान्त का एक उत्तम उदाहरण है।
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