Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 17 इदं न मम
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 17 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास-प्रणोत्तराणि
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्ना
प्रश्न 1.
‘इदं न मम’ इति पाठः कस्मात् रूपकात् संकलितः? (‘इदं न मम’ पाठ किस रूपक से संकलित है।)
(अ) अभिज्ञान शाकुन्तलात्
(ब) स्वप्नवासवदत्तात्
(स) नाट्यकल्पात्
(द) वेणीसंहारात्
उत्तरम्:
(स) नाट्यकल्पात्
प्रश्न 2.
आचार्योपासनैव विधातव्या इति केनोक्तम् – (यह किसने कहा?)
(अ) वटुकगणेन
(ब) परार्थानन्दनेन
(स) आचार्येण
(द) स्वार्थानन्देन
उत्तरम्:
(ब) परार्थानन्दनेन
प्रश्न 3.
रिक्तस्थानानि पूरयत – (रिक्तस्थान पूर्ति करें)
(i) नानादेशसमागतानां ………………सञ्चरणम्
उत्तरम्:
नानादेशसमागतानां च सञ्चरणम् स्वः।
(ii) अतः ……………… प्राप्य वरान्निबोधत।
उत्तरम्:
अतः उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
(iii) मम मनसि कापि ……………. समुत्पन्ना शंका जिज्ञासा वा वर्तते।
उत्तरम्:
मम मनसि कापि हवन कर्मकाले समुत्पन्ना शंका जिज्ञासा वी वर्तते।
प्रश्न 4.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह योजयत् – (क खण्ड को ख खण्ड के साथ मिलाओ)
‘क’ ‘ख’
(अ) शिवसागरः छात्रः
(ब) स्वार्थानन्दः आचार्या
(स) आनन्दमयी लेखकः
उत्तरम्:
‘क’ ‘ख’
1. शिवसागरः लेखकः
2. स्वार्थानन्दः छात्रः
3. आनन्दमयी आचार्या
प्रश्न 1.
व्याकरणे आचार्यशब्दात् कस्मिन् प्रत्यये आचार्यानी पदं साधुः? (व्याकरण में आचार्य शब्द से किस प्रत्यय में आचार्या जी पद सिद्ध होता है)
उत्तरम्:
आनुक् प्रत्ययः
प्रश्न 2.
‘इदं न मम’ इत्यस्य पुनरावृत्तेः का आवश्यकता इति कस्य प्रश्नः? (‘इदं न मम’ इसकी पुनरावृत्ति की क्या आवश्यकता? यह किसका प्रश्न है?)
उत्तरम्:
स्वार्थानन्दस्य
प्रश्न 3.
व्यक्तिषु मनोवृत्तिः कीदृशी दृश्यते? (व्यक्तियों में मनोवृत्ति कैसी होती है?)
उत्तरम्:
व्यक्तिषु संकुचिता मनोवृत्तिः दृश्यते। (व्यक्तियों में संकुचित मनोवृत्ति होती है।)
प्रश्न 4.
न मानुषाच्छेष्ठतरं किंचित् इति केनोक्तम्? (मनुष्य से बढ़कर कोई नहीं है। यह किसने कहा?)
उत्तरम्:
वेदव्यासेन उक्तम्
प्रश्न 5.
स्वदेशो भुवनत्रयम् इति केन उद्घोषितम्। (‘तीनों भुवन स्वदेश हैं।’ यह किसने कहा ?)
उत्तरम्:
आचार्य शङ्करेण।
प्रश्न 6.
स्वाध्यायस्य कः क्रमः? (स्वाध्याय का क्या क्रम है?)
उत्तरम्:
शंका समाधान जिज्ञासा शान्तिर्वा स्वाध्यायस्य एव क्रमः। (शंका-समाधान और जिज्ञासा की शान्ति स्वाध्याय का ही क्रम है।)
प्रश्न 7.
आहुतयः केभ्यः भवन्ति? (आहुतियाँ किनके लिए होती हैं?)
उत्तरम्:
आहुतयः देवेभ्यः भवन्ति। (आहुति देवताओं के लिए होती हैं।)
प्रश्न 8.
कः स्वार्थं समीहते? (कौन स्वार्थ की अभिलाषा करता है?)
उत्तरम्:
सर्वेजनाः स्वार्थम् इच्छन्ति। (सभी मनुष्य स्वार्थ को चाहते हैं।)
सप्रसङ्ग संस्कृत व्याख्या कार्या –
1. स्वार्थानन्दः भवेत्कथनं समीचीनम्। …………..अतः आचार्योपसनैव विधातव्या।
प्रसङ्गः- नाट्यांशोऽयम् डॉ. शिवसागर त्रिपाठी विरचित नाट्यकल्पात् सङ्कल्पितात् ‘इदं न मम’ इति नाट्यांशात् उद्धृतः। अत्र स्वार्थानन्दः परार्थानन्दं प्रति विद्यार्जनस्य सम्बन्धे कथयति। (यह नाट्यांश डॉ. शिवसागर त्रिपाठी विरचित नाट्यकल्प से संकलित ‘इदं न मम’ नाट्यांश से लिया गया है। यहाँ स्वार्थानन्द परार्थानन्द से विद्या अर्जन के विषय में कहता है।)
व्याख्याः- यदा परार्थानन्दः स्वाध्यायस्य क्रमः कथयति तदा स्वार्थानन्दः तं कथयति यत् तव कथनं तु उचितम् एव यतः गीतायाम् अपि श्रीकृष्णोपि विद्यार्जनस्य त्रिविधं मार्गम् कथयति। ज्ञानं प्रणामेन प्रश्नोत्तरेण गुरु सेवया वा प्राप्यते। परार्थानन्दः कथयति अहम् अपि मन्ये यत् विद्या प्रणिपातेन सेवया लभ्या। एषा एव शिक्षायाः क्रिया। सा तु नः अंग एव। सदैव करणीयम् एव। परञ्च विद्यायाः ज्ञानं तु आत्माध्ययनेन, प्रश्नोत्तरेण सर्व-विध शंका समाधानेन वा भवति। अतो अस्माभिः आचार्यस्य सेवा अवश्यमेव करणीया। (जब परार्थानन्द स्वाध्याय क्रम कहता है तो स्वार्थानन्द कहता है कि तुम्हारा कहना उचित है।
क्योंकि गीता में भी श्रीकृष्ण विद्या प्राप्ति के विविध मार्ग बताते हैं। ज्ञान प्रणाम, प्रश्नोत्तर और गुरु सेवा से प्राप्त किया जाता है। परार्थानन्द कहता है-मैं भी मानता हूँ कि विद्या प्रणाम व सेवा से प्राप्य है। यही शिक्षा की क्रिया है। वह तो हमारा अंग है। सदैव करने योग्य है। परन्तु विद्या का ज्ञान तो स्वाध्याय, प्रश्नोत्तर अर्थात् सब प्रकार की शंकाओं के समाधान से होता है। अतः हमें आचार्य की सेवा अवश्य करनी चाहिए।)
2. आचार्या – शोभनं प्रश्नः। भवत्कथनं ……………. भावनायाः परिचयः उपलभ्यते।
प्रसङ्गः- गद्यांशोऽयम् अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘इदं न मम’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं डॉ. शिवसागर त्रिपाठी-विरचितात् ‘नाट्यकल्पः’ इति रूपकात् सङ्कलितः। गद्यांशेऽस्मिन आचार्या आनन्दमयी स्वार्थानन्दस्य प्रश्नम् उत्तरति हवन कार्ये च त्याग भावं प्रतिपादयति। (यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘इदं न मम’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ डॉ. शिवसागर त्रिपाठी महोदय रचित ‘नाट्यकल्प’ रूपक से संकलित है। इस गद्यांश में आचार्या आनन्दमयी स्वार्थानन्द के प्रश्न का उत्तर देती है तथा हेवन कार्य में त्याग-भाव को प्रतिपादित करती है।)
व्याख्याः- आचार्या कथयति- भवतः प्रश्नः सुन्दरः। तव वचनं तु सत्यम् अस्ति परन्तु अत्र वस्तुतस्तु त्यागस्य भावना एव ज्ञायते। हे ईश्वर! भवतः प्रदत्तै भवते एवं समर्पितं करोमि। एष एव भावः अत्र याजकस्य गुरोः विप्रस्य वो समर्पण भाव अस्ति। न तु एतेषां किमपि। अशेषमेव देवेभ्य एव दीयते। अर्थात् एतद् हविः आहुतिः वा प्रजापते इन्द्रस्य, सोमस्य इन्द्रदेवस्य सूर्यस्य वा प्रसन्नतायाः कृते अस्ति। नात्र याजकस्य स्वार्थ साधयितुम् । अनेन प्रकारेण अत्र स्वार्थनहीनभावस्य परिचय: प्राप्यते।
(आचार्या कहती हैं-आपका प्रश्न तो अच्छा है। तुम्हारा कथन भी सत्य है। परन्तु यहाँ वास्तव में तो त्याग (समर्पण) की भावना ही ज्ञात होती है। हे ईश्वर ! तेरे द्वारा दिया हुआ तुझे ही समर्पित है। यह ही भाव यहाँ यज्ञ करने वाले, गुरु, ब्राह्मण का समर्पण भाव है। इनमें से किसी का कुछ नहीं है। सभी देवताओं को दिया जाता है। अर्थात् यह हवि या आहुति प्रजापति, इन्द्र सोम अथवा सूर्य को प्रसन्न करने के वास्ते है। यहाँ यज्ञ करने का हवि देने वाले का कोई स्वार्थ नहीं है। इस प्रकार से यहाँ स्वार्थहीन भाव का परिचय प्राप्त होता है।
सप्रसंग हिन्दी व्याख्या कार्या – (सप्रसंग हिन्दी में व्याख्या कीजिए।)
1. आचार्या-वस्तुतः संसारोऽयं ……………. आत्मतुष्ठिस्तु सर्वोपरि वर्तते।
प्रसङ्ग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘इदं न मम’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ डॉ. शिवसागर त्रिपाठी कृत्। “नाट्यकल्प’ रूपक से संकलित है। इस गद्यांश में आचार्या स्वार्थानन्द के प्रश्न ‘इदं न मम’ की पुनरावृत्ति की क्या। आवश्यकता का उत्तर देते हुए कहती हैं।
व्याख्या – आचार्या कहती हैं कि वास्तव में यह संसार स्वार्थ से परिपूर्ण है। व्यक्ति की मनोवृत्ति बहुत संकीर्ण हो गई है। वह सब कुछ अपने लिए ही सोचता है तथा सब कुछ स्वयं ही पाना चाहता है।
अनाचार, दुराचार और भ्रष्टाचारों से परिपूर्ण इस युग में मानव तो आज सभी सम्बन्धों को भूलकर केवल अपने मतलब के लिए जीता है। इस संसार में अब न कोई गुरु है, न बेटी है, न बेटा है, न भाई-बन्धु है, न घर है। भ्रष्टाचार के संसार में सभी स्वार्थ को ही चाहते हैं। स्वार्थानन्द ने कहा-हे आचार्या जी, इसमें क्या हानि है। स्वार्थ सिद्धि के बिना तो जीवन यात्रा ही नहीं चल सकती। कहा भी गया है – अपने लिए पूरी धरती को भी त्याग देना चाहिए। क्योंकि आत्मसन्तुष्टि सबसे ऊपर होती है अर्थात् सबसे बढ़कर होती है।
2. आचार्या भवत्कथनं युगानुरूपम् …………………. स्वदेशो भुवनत्रयम्।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘इदं न मम’ पाठ से उद्धृत है। यह पाठ डॉ. शिवसागर त्रिपाठी-रचित ‘नाट्य कल्प’ से संकलित है। इस गद्यांश में आचार्या स्वार्थानन्द के वक्तव्य का उत्तर देते हुए कहती हैं।
व्याख्या – आचार्या स्वार्थानन्द से कहती हैं-स्वार्थानन्द! तुम्हारा कहना समय के अनुरूप और समय के अनुकूल भी है। परन्तु सत्य तो सत्य ही होता है। यथार्थ को हम नजरंदाज (उपेक्षित) नहीं कर सकते। आदमी एक समाज में रहकर ही जीवित रह सकता है। बिना समाज के उसकी जीवन यात्रा सम्यक् नहीं चलती। अकेला जीवनयापन करने में वह असमर्थ होता। वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी प्रकार से समाज पर निर्भर अवश्य होता है। व्यक्ति, परिवार, राष्ट्र, समाज और तो क्या मनुष्य की मानव मात्र के लिए प्रतिबद्धता होती है।
प्रत्येक मनुष्य सबके काम आना चाहिए। अतः संकीर्णता और उग्रता को त्यागकर अपना दृष्टिकोण उदार एवं व्यापक रखना चाहिए। आदिकाल से ही भारत का यह आदर्श रहा है कि सारी धरती कुटुम्ब के समान है। जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी तो कहा है-‘माता मेरी पार्वती है, पिता स्वयं महादेव हैं, शिव के भक्तजन मेरे भाईबन्धु हैं तथा तीनों भुवन मेरा अपना देश है। यहाँ भी स्वार्थ की भावना नहीं है, लोक-कल्याण की भावना ही है। वास्तव में तो भारतवासियों के मन में मनुष्य का स्थान सबसे ऊपर है। जीवों के प्रति दयाभाव तो सदैव उनके हृदय में रहता है।
व्याकरणात्मक प्रश्नोत्तराणि –
1. इमानि पदानि उपयुज्य वाक्यानि रचयत (इन पदों का उपयोग करके वाक्य बनाइये)
(अ) स्वाहा
(ब) सह
(स) का
(द) अपि
उत्तरम्:
पदम् वाक्यम्
(अ) स्वाहा (अ) इन्द्राय स्वाहा।
(ब) सह (ब) छात्राः अध्यापकेन सह क्रीडन्ति
(स) का (स) इन्दिरा का आसीत् ?
(द) अपि (द) अद्य सोऽपि आगच्छति।
2. निम्नलिखितानां पदानां निर्दिष्टं वचनं लिख्यताम् (निम्न पदों में निर्दिष्ट वचन लिखो)
उत्तरम्:
पदम् वचनम्
(अ) अग्निहोत्रकर्मणि (अ) एकवचनम्
(ब) आहुतीनाम् (ब) बहुवचनम्
(स) वार्षिकोत्सवः (स) एकवचनम्
(द) .भगवदर्शनाय (द) एकवचनम्
3. निम्नलिखितानां पदानां लिङ्ग परिवर्तनं करणीयम् (निम्न पदों का लिंग बदलना है)
उत्तरम्:
4. निम्नलिखितानां पदानां प्रकृति-प्रत्ययौ लेखनीयौ (निम्न पदों में प्रकृति-प्रत्यय बताइये)|
उत्तरम्:
5. निम्नलिखित पदानां समास-विग्रहः करणीयः (निम्न पदों का समास विग्रह करें)।
उत्तरम्;
6. निम्नलिखितानां पदानां सन्धि-विच्छेदः करणीयः (निम्न पदों का सन्धि-विच्छेद करना है)
उत्तरम्:
7. निम्नलिखितानां वाक्यानां निर्देशानुसारं वाच्य परिवर्तनम् कुरुत – (निम्न वाक्यों का निर्देश के अनुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए-)
उत्तरम्:
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 17 अन्य महत्वपूर्ण प्रजोत्तराणि
प्रश्न 1.
भारतीयानां मनसि कस्य प्रतिष्ठा सर्वोपरि वर्तते? (भारतीयों के मन में किसकी प्रतिष्ठा सर्वोपरि है?)
उत्तरम्:
भारतीयानां मनसि मानव-प्रतिष्ठा सर्वोपरि वर्तते। (भारतीयों के मन में मानव की प्रतिष्ठा सबसे ऊपर है।)
प्रश्न 2.
जीवदया केषां चेतसि वर्तते? (जीवदया किसके हृदय में होती है?)
उत्तरम्:
जीवदया भारतीयानाम् चेतसि वर्तते। (जीवदया भारतीयों के हृदय में होती है।)
प्रश्न 3.
शंकरमतानुसारेण कः स्वदेशः? (शंकराचार्य के अनुसार स्वदेश क्या है?)
उत्तरम्:
शङ्करमतानुसारेण भुवनत्रयम् स्वदेशः। (शंकर के अनुसार तीनों भुवन स्वदेश हैं।)
प्रश्न 4.
शङ्करः पार्वती-परमेश्वरौ किम् कथयति? (शंकराचार्य पार्वती परमेश्वर को क्या कहते हैं?)
उत्तरम्:
शङ्करः पार्वती-परमेश्वरी स्व पितरौ कथयति। (शंकराचार्य पार्वती परमेश्वर को अपना माता-पिता कहते हैं।)
प्रश्न 5.
आचार्य शंकरेण किम् उद्घोषितम्? (आचार्य शंकर ने क्या घोषणा की?)
उत्तरम्:
आचार्य शंकरेण घोषितम् यत् पार्वती-परमेश्वरौ मे पितरौ शिवभक्ताः च बान्धवाः स्वदेशः भुवनत्रयम्। (आचार्य शंकर ने घोषणा की कि पार्वती और परमेश्वर मेरे माता-पिता हैं तथा शिव के भक्त मेरे भाई-बन्धु हैं और तीनों भुवन मेरा अपना देश है।
प्रश्न 6.
अस्माकम् आदर्शी किम् अस्ति? (हमारा आदर्श क्या है?)
उत्तरम्:
अस्माकम् आदर्शः अस्ति वसुधैव कुटुम्बुकम्। (सारी वसुधा ही परिवार है, यही हमारा आदर्श वाक्य है।)
प्रश्न 7.
मानवः कीदृशः प्राणी? (मनुष्य कैसा प्राणी है?)
उत्तरम्:
मानवः एकः सामाजिकः प्राणी। (मानव एक सामाजिक प्राणी है।)
प्रश्न 8.
संसारे कस्य प्राबल्यम्? (संसार में किसकी प्रबलता है?)
उत्तरम्:
संसारे स्वार्थस्यैव प्राबल्यम्। (संसार में स्वार्थ की ही प्रबलता है।)
प्रश्न 9.
मानवमूल्यानि कुत्रगतानि? (मानव मूल्य कहाँ गये?)
उत्तरम्:
मानवमूल्यानि विलुप्तानि। (मानव मूल्य विलुप्त हो गये।)
प्रश्न 10.
सर्वक्षेत्रेषु कस्य वर्चस्वं दृश्यते। (सभी क्षेत्रों किसका वर्चस्व दिखाई दे रहा है?)
उत्तरम्:
सर्वक्षेत्रेषु विदेश-शक्तीनां बहुराष्ट्रिय कम्पनीनां च वर्चस्वं दृश्यते। (सभी क्षेत्रों में विदेशी शक्तियों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का वर्चस्व दिखाई देता है।)
प्रश्न 11.
विश्व परिवारस्य कथा कीदृशी? (विश्व परिवार की कथा कैसी है?)
उत्तरम्:
विश्व परिवारस्य तु कथैव विलक्षणा भयावहा च। (विश्व परिवार की तो कहानी ही विलक्षण और भयावह है।)
प्रश्न 12.
स्वराज्यलाभे का भावना न आसीत्? (स्वराज्य लाभ में क्या भावना नहीं थी?)
उत्तरम्:
स्वराज्यलाभप्रयासे स्वार्थ-भावना नासीत्। (स्वराज्य लाभ के प्रयास में स्वार्थ भावना नहीं थी।)
प्रश्न 13.
आङ्लदेशीयानां राज्ये कस्याः पराकाष्ठा आसीत्? (अंग्रेजों के राज्य में किसकी पराकाष्ठा थी?)
उत्तरम्:
आङ्गलदेशीयानां राज्ये आत्याचारितायाः पराकाष्ठा आसीत्। (अंग्रेजों के राज्य में अत्याचारिता की पराकाष्ठा थी।)
प्रश्न 14.
देशः स्वराज्यं कथं प्राप्तवान्? (देश ने स्वराज्य कैसे प्राप्त किया?)
उत्तरम्:
यदा देशे स्वातन्त्रयाय स्वराज्य-भावना समागता तदैव सर्वे समागता सर्वे समवेताः प्रयासरताः च अन्ततः स्वराज्यमपुः तदपि सत्याग्रहाहिंसादिबलेन। (जब देश में स्वतन्त्रता के लिए भावना आ गई तभी सब एकत्रित हो गये। इकट्ठे हुए प्रयासरतों ने अन्त में स्वराज्य प्राप्त कर लिया, वह भी सत्याग्रह अहिंसा आदि से।)
प्रश्न 15.
आदर्श वाक्यानि कुत्र शोभन्ते? (आदर्श वाक्य कहाँ शोभा देते हैं?)
उत्तरम्:
आदर्श वाक्यानि ग्रन्थेषु एव शोभन्ते। (आदर्श वाक्य ग्रन्थों में शोभा देते हैं।)
प्रश्न 16.
स्वार्थसिद्धिः कीदृशः पन्थाः? (स्वार्थ सिद्धि कैसा मार्ग है?)
उत्तरम्:
स्वार्थसिद्धिः तु संकुचितः पन्थाः। (स्वार्थ सिद्धि तो संकीर्ण रास्ता है।)
प्रश्न 17.
स्वार्थानन्दानुसारेण किं सर्वोपरि वर्तते ? (स्वार्थानन्द के अनुसार सर्वोपरि क्या है?)
उत्तरम्:
स्वार्थानन्दानुसारेण आत्मसन्तुष्टिरेव सर्वोपरि। (स्वार्थानन्द के अनुसार आत्मसन्तुष्टि सबसे ऊपर है।)
प्रश्न 18.
स्वार्थानन्दानुसारेण किं विना जीवन यात्रा नैव सम्भवति? (स्वार्थानन्द के अनुसार किसके बिना जीवन यात्रा सम्भव नहीं है।)
उत्तरम्:
स्वार्थानन्दानुसारेण स्वार्थ सिद्धि विना जीवनयात्रैव न सम्भवति। (स्वार्थानन्द के अनुसार स्वार्थ सिद्धि के बिना जीवन-यात्रा सम्भव नहीं है।)
प्रश्न 19.
‘आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्’ इति कस्य कथनम्? (अपने लिए पृथ्वी को त्याग देना चाहिए, यह किसका कथन है?).
उत्तरम्:
‘आत्मार्थे पृथिर्वी त्यजेत्’ इति स्वार्थानन्दस्य कथनम् अस्ति। (अपने लिए पृथ्वी को भी त्याग देना चाहिए। यह स्वार्थनन्द का कथन है।)
प्रश्न 20.
भ्रष्टाचारस्य संसारे सर्वः किं समीहते? (भ्रष्टाचार की दुनिया में सब क्या चाहते हैं?)
उत्तरम्:
भ्रष्टाचारस्य संसारे सर्वः स्वार्थं समीहते। (भ्रष्टाचार के संसार में सब स्वार्थ चाहते हैं।)
प्रश्न 21.
अस्मिन् युगे मनुष्यः कीदृशः जातः? (इस युग में मनुष्य कैसा हो गया है?)
उत्तरम्:
अस्मिन् युगे मनुष्यः तु अद्य सर्वसम्बन्धी विस्मृत्य स्वार्थाय एव जीवति? (इस युग में मनुष्य सब सम्बन्धों को भूलकर स्वार्थ के लिए जीवित है।)
प्रश्न 22.
देवस्य हविः कस्य स्वार्थ साधनाय? (देवता की हवि किसकी स्वार्थ साधना के लिए होती है?)
उत्तरम्:
देवस्य हविः यजमानस्य स्वार्थ-साधनाय भवति। (देवता की हवि यजमान की स्वार्थ साधना के लिए होती है।)
प्रश्न 23.
‘इन्द्राय स्वाहा-इदं न मम’ अत्र यजमानस्य कीदृग्भावनायाः परिचय प्राप्यते?) (‘इन्द्र के लिए स्वाहा-यह मेरा नहीं है’ यहाँ यजमान की कैसी भावना का परिचय मिलता है?)
उत्तरम्:
वाक्येऽस्मिन् यजमानस्य नि:स्वार्थ भावनायाः परिचयः प्राप्यते। (इस वाक्य में यजमान की नि:स्वार्थ भावना का परिचय मिलता है।)
प्रश्न 24.
‘इदं न मम’ इति अस्य पुनरावृत्तेः का आवश्यकता वर्तते? (‘इदं न मम’ इसको बार-बार कहने की क्या आवश्यकता है?)
उत्तरम्:
इदं वाक्यं पुनः- पुनः कथनेन यजमानस्य नि:स्वार्थ भाव: समर्पणं च सिद्ध्यते। (यह वाक्य कहने से यजमान की नि:स्वार्थ और समर्पण भावना सिद्ध होती है।)
प्रश्न 25.
परार्थानन्द – स्वार्थानन्दौ आचार्यायाः समीपे केन प्रयोजनेन अगच्छताम्? (परार्थानन्द और स्वार्थानन्द आचार्य के समीप किस प्रयोजन से गए ?)
उत्तरम्:
परानन्दः- स्वार्थानन्दः च शंका समाधानाय जिज्ञासां शमनाय च आचार्यायाः समीपेऽगच्छताम्। (परार्थानन्द और स्वार्थानन्द शंका समाधान और जिज्ञासा शान्ति के लिए आचार्या के पास गये थे।)
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